
नरेन्द्र मोदी की सरकार ने राजनीति में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए एक बड़ा कदम उठाया. सरकार ने लोकसभा में तीन बिल पेश किये नमें यह प्रावधान है कि अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठा कोई व्यक्ति किसी मामले में 30 दिन के लिए जेल जाता है, तो उसकी कुर्सी खुद-ब-खुद चली जाएगी.
   चूंकि अभी तक कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि अगर किसी गंभीर इल्जाम में किसी सरकार का मुखिया या मंत्री जेल जाता है, लम्बे वक्त तक जेल में रहता है, उसे कोर्ट से ज़मानत भी नहीं मिलती और वो इस्तीफा भी नहीं देता. तो ऐसे में क्या किया जाए? जेल में बंद मुख्यमंत्री या मंत्री को कोई बर्खास्त नहीं कर सकता, कोई कोर्ट उसे पद से नहीं हटा सकता. सवाल ये भी था कि क्या कोई मुख्यमंत्री जेल से सरकार चला सकता है? क्या जेल में बैठकर मंत्रालय का कामकाज निपटा सकता है?  इन्हीं सवालों का जवाब इन तीनों बिल में है जिन्हें गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में पेश किया.
   चूंकि इस तरह के बदलाव के लिए संविधान में संशोधन करना होगा, इसीलिए इस बिल को 130वां संविधान संशोधन विधेयक का नाम दिया गया है. इस बिल को दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत के साथ पास करना होगा. विपक्ष ने सदन में जमकर हंगामा किया.
    गृह मंत्री अमित शाह ने बिल पेश करते हुए कहा कि येकानून बनने के बाद  कोई भी जेल से सरकार नहीं चला सकेगा. ये बिल जब क़ानून बन जाएंगे तो, प्रधानमंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ साथ केंद्र और राज्यों के मंत्रियों की जवाबदेही तय होगी. जनता को साफ़-सुथरी,  भ्रष्टाचारमुक्त और पारदर्शी सरकार मिलेगी.
     अगर किसी नेता के खिलाफ ऐसे आरोप में मामला दर्ज होता है जिसमें पांच साल कैद या उससे ज्यादा की सजा हो, तो  आरोप लगने के बाद अगर वो व्यक्ति 30 दिन तक जेल में रहेगा, तो वह चाहे प्रधानमंत्री हों या किसी राज्य का मुख्यमंत्री या केंद्र, राज्य या केंद्रशासित क्षेत्र का मंत्री, उसे तुरंत इस्तीफा देना होगा. अगर वो इस्तीफा नहीं देता है, तो राष्ट्रपति या राज्यपाल उसे बर्खास्त कर सकेंगे.
  तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बिल का विरोध करते हुए इसे तानाशाही कदम बताया है.
   विपक्षी दलों ने कहा कि ये बिल संविधान के ख़िलाफ़ है, इसका मक़सद राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारों को गिराना है, इससे क़ानून के बुनियादी उसूल, innocent until proven guilty का उल्लंघन होगा. विरोधी दलों के नेताओं की अलग ही टेंशन हैं, अलग किस्म के डर हैं. विरोधी दलों को लगता है कि इस तरह का कानून बनाकर बीजेपी विपक्ष की सरकारों को अस्थिर करने का इंतज़ाम कर रही है ताकि किसी भी मुख्यमंत्री या मंत्री को फ़र्ज़ी केस में गिरफ़्तार कराकर  उस राज्य की सत्ता पर क़ाबिज़ हो सके.
    ममता बनर्जी ने कहा कि असल में ये बिल भारत में लोकतंत्र के ख़ात्मे की शुरुआत हैं, जिसमें क़ानून की प्रक्रिया को ख़त्म करके, अदालत  के फैसले से पहले ही किसी को दोषी घोषित कर दिया जाएगा, राज्यपालों के पास बेइंतिहा अधिकार होंगे, जांच एजेंसियों का राज आ जाएगा, वो बीजेपी के इशारे पर किसी भी विपक्षी CM को गिरफ़्तार करके उसकी सरकार गिरा देंगी.
    कांग्रेस के मनीष तिवारी ने 130वें संविधान संशोधन बिल को संविधान के मूल ढांचे के ख़िलाफ़ बताया. समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव ने दूसरी बात कही. उन्होंने कहा कि बीजेपी खुद अपनी ही क़ब्र खोद रही है, जब वो सत्ता से हटेगी, तो यही क़ानून उसके लिए मुसीबत बन जाएंगे.
    राजद नेता तेजस्वी ने तीसरा एंगल दिया. कहा कि तीनों बिल  नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को डराने के लिए लाए गए हैं क्योंकि मोदी सरकार के पास बहुमत नहीं है. इस कानून का डर दिखाकर बीजेपी नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को अपने पाले में रखेगी.
     जो बिल पेश हुए, उसकी एक पृष्ठभूमि है. हालके वर्षों में अरविंद केजरीवाल ने जेल में रहकर दिल्ली में सरकार चलाने की कोशिश की थी. उस समय केंद्र सरकार और अदालत असहाय थी, क्योंकि कानून में किसी को जेल में रहते हुए मुख्यमंत्री बने रहने से रोकने का कोई प्रावधान नहीं था.
   असल में शुरुआती दौर में कानून बनाने वालों ने ये कभी सोचा भी नहीं होगा कि कोई मंत्री या मुख्यमंत्री जेल जाने के बाद भी इस्तीफा नहीं देगा. उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि नैतिकता का आधार इस तरह दफ्न हो जाएगा.
  हैरानी इस बात की है कि विपक्षी दल भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून का विरोध कर रहे हैं. विरोध करने वाले जनता को इस बात का क्या जवाब देंगे कि कोई मुख्यमंत्री या मंत्री जेल में रहकर सरकार चलाए? मंत्रालय चलाएं और फैसले लेते रहें? ये कहां तक न्यायोचित है ? ये एक कानूनी सुधार है, इसकी जरूरत थी. किसी को भी गिरफ्तार होने पर कुर्सी छोड़नी पड़े, ये अब लाजिमी हो जाएगा.
दिल्ली की CM पर हमला : वजह पता करो
   दिल्ली में हैरान करने वाली घटना हुई. मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर एक शख्स ने हमला कर दिया. रेखा गुप्ता को थप्पड़ मारा, उनके बाल पकड़ कर उन्हें जमीन पर पटक दिया. सीएम की सुरक्षा में तैनात कर्मियों ने तुरंत इस शख्स को काबू में कर लिया. इस हमले में रेखा गुप्ता के सिर, गर्दन, कंधे और पीठ में चोट आई है.
   हर बुधवार को सुबह सात बजे से मुख्यमंत्री का जनता दरबार लगता है. हमला करने वाला शख्स फरियादी के भेष में मुख्यमंत्री के कैंप ऑफिस में पहुंचा था. चूंकि जनता दरबार में भीड़ होती है, इसलिए सुरक्षा का ज्यादा तामझाम नहीं होता. इसका फायदा इस शख्स ने उठाया.
    जिस वक्त रेखा गुप्ता लोगों की समस्याएं सुन रहीं थी, उस वक्त ये शख्स लाइन से बाहर निकला और रेखा गुप्ता पर टूट पड़ा. पुलिस वाले कुछ समझ पाते, उससे पहले ही उसने रेखा गुप्ता को थप्पड़ मारा और उनके बाल पकड़ कर खींचने की कोशिश की.
अचानक हुए इस हमले में मुख्यमंत्री नीचे गिर गईं. पुलिस वालों ने मुख्यमंत्री को छुड़ाने की कोशिश की, उसकी पिटाई की लेकिन उसने रेखा गुप्ता के बाल नही छोड़े. पुलिस ने किसी तरह रेखा गुप्ता को इस व्यक्ति के चंगुल से छुडाया.
     शुरूआती जांच में इस शख्स ने पुलिस को अपना नाम राजेश भाई सखारिया बताया है. उम्र 41 साल, गुजरात के राजकोट का रहने वाला है. अभी तक हमले का उद्देश्य पता नहीं लगा है. लेकिन पुलिस को शुरूआती जांच में कुछ ऐसे सबूत मिले हैं जो इस तरफ इशारा करते हैं कि हमला पूर्वनियोजित था, पूरी तैयारी के साथ, प्लानिंग के साथ..किया गया.
     हमले से 24 घंटे पहले राजेश ने मुख्यमंत्री के घर की रेकी की. राजेश रविवार को ही दिल्ली पहुंच गया था. मुख्यमंत्री के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज से पता चला है कि राजेश एक रिक्शे से मुख्यमंत्री के घर के पास पहुंचा, रिक्शे वाले से कुछ बात की, फिर किसी व्यक्ति को फोन लगाकर बात करता हुआ दिखा. इसके बाद उसने मुख्यमंत्री के घर के बाहर खड़े होकर वीडियो बनाई. मंगलवार को इस शख्स ने मुख्यमंत्री के घर के बाहर मौजूद सुरक्षाकर्मी से पूछा कि वो सीएम से कैसे मिल सकता है. स्टाफ ने एक पर्ची में कैंप ऑफिस का एड्रेस राजेश भाई सखारिया को लिखकर दिया.
   दिल्ली सरकार के मंत्री प्रवेश वर्मा ने कहा कि ये हमला किसी बड़ी साजिश की तरफ इशारा कर रहा है. आरोपी सिविल लाइंस के गुजरात भवन में रुका था जो सीएम के कैंप ऑफिस से 800 मीटर की दूरी पर है.
     ये बात तो साफ है कि रेखा गुप्ता पर हमला पूरी प्लानिंग के साथ किया गया. ये भी स्पष्ट है कि हमलावर का इरादा सिर्फ विरोध जताने का नहीं था. हमला जानलेवा हो सकता था. इसकी असली वजह तो पुलिस की जांच पूरी होने पर ही सामने आएगी लेकिन इस घटना का एक असर ये होगा कि रेखा गुप्ता अब लोगों से खुलकर नहीं मिल पाएंगी.
   जब से रेखा गुप्ता दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी हैं, वो लगातार लोगों के बीच रही हैं. उनका घर और दफ्तर सबके लिए खुला था लेकिन अब वो चाहें तो भी सुरक्षा के नियम उन्हें लोगों के बीच रहने से रोकेंगे.