
दिवाली से पहले सोशल मीडिया पर PVC पाइप और एक लाइटर से घर में ही तेज आवाज़ करने वाली बंदूक बनाने की reel ख़ूब वायरल हुईं. लोगों ने रील देखकर घर में देसी पटाखा गन बनाना सीखा. फिर उसकी दुकान लगा ली. कुछ लोगों ने खुद ही गन बनाकर अपने बच्चों को थमा दी. इसके बाद दिवाली पर हादसे हुए.
   कम से कम 10 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई और तीन सौ से ज्यादा लोग अस्पतालों में भर्ती हैं.
   भोपाल और उसके आसपास के जिलों में pvc पाइप से बनी नकली guns की जमकर बिक्री हुई. लोगों ने डेढ़ सौ से दो सौ रुपए देकर ये guns ख़रीदीं और जब इन्हें दिवाली पर इस्तेमाल किया, तो त्यौहार मातम में बदल गया.
    सिर्फ भोपाल में 150 से ज़्यादा लोग घायल हुए. लोगों की आंखों में चोट लगी. कई लोगों की आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई.
    pvc के दो pipes को जोड़कर जुगाड़ से गन का आकार दिया जाता है. फिर इसके अंदर पोटाश या कैल्शियम कार्बाइड के टुकड़े डाले जाते हैं. इन टुकड़ों पर पानी की कुछ बूंदें डालकर लाइटर से ignition दिया जाता है. संकरे पाइप में केमिकल रिएक्शन से बनने वाली गैस जब फैलती है, तो ज़ोरदार धमाका  होता है, चिंगारी निकलती है.
   हैरानी की बात ये है कि गुरुवार को जब हमारे संवाददाता अमिताभ अनुराग भोपाल की सड़कों पर निकले तो कई जगह ये गन बिकती हुई दिखाई दी. गुरुवार की रात ‘आज की बात’ शो में ये खबर प्रसारित होने के बाद भोपाल के जिला कलक्टर ने पीवीसी पाइप गन की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया.
   पहले ये गन्स गांवों में किसानों के काम आती थीं.  इनकी मदद से किसान  आवारा पशुओं को अपने खेत से भगाते थे.  लेकिन, इस बार ये pipe guns  सोशल मीडिया पर trend हुईं  तो इनको बनाकर बेचने वालों को भी कम लागत में ज़्यादा कमाई का नुस्खा मिल गया.
     जबलपुर, इंदौर, ग्वालियर, विदिशा और भोपाल में ऐसी गन्स को हज़ारों लोगों ने ख़रीदा और इस्तेमाल किया. ये pvc गन्स चलाने में जितनी आसान हैं, उतनी ही ज़्यादा ख़तरनाक हैं.
  जो लोग इस गन के चक्कर में घायल होकर अस्पताल में भर्ती हैं, उन्होंने बताया कि तीन-चार बार फ़ायर करने के बाद उनकी गन ने काम करना बंद कर दिया था. जब उन्होंने चेक करने के लिए पाइप में झांकने की कोशिश की तो धमाका हो गया.
    भोपाल में जो हुआ, उसकी वजह सोशल मीडिया पर चलने वाले रील हैं. यहीं से लोगों ने PVC पाइप बम बनाना सीखा.  इस चक्कर में ना जाने कितने लोगों की आंखों की रोशनी चली गई.
   आजकल लोग हर वक्त फेसबुक, व्हाट्सऐप और यू्ट्यूब में घुसे रहते हैं. यहां चलने वाले वीडियो का यकीन करके उस पर अपना फायदा देखने लगते हैं. इन platforms पर लिखी गई हर बात को सच मानने लगते हैं. इसका नुकसान कितना होता है, कैसा होता है, ये भोपाल, ग्वालियर और विदिशा जैसी जगहों पर देखने को मिला.
   मेरा आपसे निवेदन है कि किसी भी वीडियो पर आंख बंद करके यकीन न करें. अपना भला-बुरा आपको खुद समझना होगा.
छठ की भीड़ : रेलवे से कहाँ चूक हुई?
बिहार के लोगों में महापर्व छठ को लेकर इस बार काफी उत्साह है. बिहार के जो लोग देश के दूसरे राज्यों में रहते हैं, वे छठ के मौके पर घर जाते हैं. इसलिए ट्रेनों में जबरदस्त भीड़ है. गुजरात के रेलवे स्टेशन्स के बाहर दो किलोमीटर लंबी लाइनें लगी हुई देखी गई.
    रेलवे ने छठ के लिए तेरह हजार विशेष ट्रेनों का इंतजाम किया लेकिन भीड़ इतनी ज्यादा है कि सारे इंतजाम कम पड़ रहे हैं.
   गुरुवार को खुद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मोर्चा संभाला. स्टेशनों पर भीड़ प्रबंधन और ट्रेनों की लोकेशन्स पर नजर रखने के लिए तीन वॉर रूम बनाए गए. सबकी फीड सीधे रेल भवन में बने वॉर रूम में पहुंच रही थी, जहां अश्विनी वैष्णव खुद मौजूद थे. जिस स्टेशन पर ज्यादा भीड़ दिखती है, वहां तुरंत ट्रेन भेजी जाती है.
   जैसे अंबाला स्टेशन पर जबरदस्त भीड़ थी, अमृतसर से पूर्णिया की तरफ जाने वाली ट्रेन जैसे ही स्टेशन पर पहुंची तो धक्कामुक्की शुरू हो गई. तुंरत जालंधर से एक स्पेशल ट्रेन भेजी गई. यात्री उस ट्रेन में बैठकर बिहार के लिए रवाना हो गए.
  बीते सालों से सबक लेकर इस बार रेलवे ने भीड़ प्रबंधन के लिए नया mechanism तैयार किया. देश के ऐसे 35 रेलवे स्टेशन चिह्नित किये गये, जहां त्योहार के वक्त सबसे ज्यादा भीड़ होती है. इन स्टेशनों पर सीसीटीवी कैमरों के जरिए 24 घंटे रेलवे मॉनिटरिंग की जाती है, किसी भी स्टेशन पर भीड़ बढ़ती है तो वहां के स्थानीय अफसरों से फीडबैक लेकर स्पेशल ट्रेन पहुंचाई जाती है.
    छठ पूजा के लिए लोग पहले भी जाते थे. ट्रेनों में भीड़ पहले भी होती थी. कई लोग ट्रेन की छत पर बैठकर सफर करते थे. कुछ लोग ट्रेन पर लटककर अपनी जान पर खेलकर घर जाते थे और कोई इसकी परवाह नहीं करता था.
  रेलवे में इस तरह की यात्रा को नॉर्मल माना जाता था. भीड़ अब भी है. ट्रेनें अब भी कम पड़ रही हैं, लेकिन रेलवे को अब लोगों की परवाह है. इसकी वजह है रेल मंत्री की व्यक्तिगत दिलचस्पी.
    अश्विनी वैष्णव ने Data study करके प्लान बनाया, स्पेशल ट्रेन चलाईं, सुविधाएं बढ़ाई, पर जब लोगों को पता चला कि अब स्पेशल ट्रेन चल रही हैं, अब ज़्यादा सहूलियतें है तो जो लोग पहले छठ पर घर नहीं जाते थे, उन्होंने भी अपने बैग पैक कर लिए, भीड़ और बढ़ गई.
   अंदाज़ा गलत निकला,  इंतज़ाम कम पड़ने लगे, पर लोगों को इस बात का संतोष है कि रेलवे उनकी यात्रा और उनकी सुविधाओं की चिंता करता है. और ये विश्वास बड़ी चीज़ है.
   एक बात और. सोशल मीडिया पर जो दावे किए जाएं उस पर आंख मूंद कर कतई यकीन न करें. सरकार की तरफ से जो औपचारिक जानकारी दी जाए, उसी पर भरोसा कीजिए क्योंकि सोशल मीडिया के चक्कर में आजकल सबसे ज्यादा गड़बड़ होती है.
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