मुंबई में बुधवार को एक नया लेटर बम फूटा। मुंबई पुलिस के निलंबित सहायक पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाजे़ ने एनआईए की विशेष अदालत को चिट्ठी लिखी है। हाथ से लिखी इस चिट्ठी में उपमुख्यमंत्री अजीत पवार और उद्धव ठाकरे के राइट हैंड अनिल परब समेत महाराष्ट्र के तीन मंत्रियों के नाम हैं। सचिन वाजे मुकेश अंबानी के घर के बाहर जिलेटिन से भरी गाड़ी पार्क करने और मनसुख हिरेन की हत्या के मामले में एनआईए की गिरफ्त में है।
चार पन्नों की इस चिट्ठी में सचिन वाजे़ ने तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख, उपमुख्यमंत्री अजीत पवार और अनिल परब पर आरोप लगाया है कि इन लोगों ने उसे जबरन पैसे वसूलने को कहा। वाजे़ ने आरोप लगाया है कि अनिल परब ने उसे SBUT यानी सैफी बुरहानी अपलिफ्टमेंट ट्रस्ट की जांच शुरू करने को कहा और फिर जांच बंद करने के एवज में ट्रस्ट के लोगों से 50 करोड़ रुपये वसूलने को कहा। इस चिट्ठी के मुताबिक अनिल परब ये भी चाहते थे कि सचिन वाजे़ BMC के 50 कॉन्ट्रैक्टर्स से 2-2 करोड़ रुपये की वसूली करे।
अपनी चिट्ठी में वाजे़ ने लिखा कि कैसे गृह मंत्री अनिल देशमुख ने निलंबन के बाद उसकी बहाली को लेकर दो करोड़ रुपये मांगे थे। सचिन वाजे ने पूरी कहानी लिखी है और बताया है कि उसकी बहाली से शरद पवार नाराज थे, वो चाहते थे कि उसे फिर से सस्पेंड (निलंबित) किया जाए। अनिल देशमुख ने वाजे़ को फोन करके कहा था कि वो शरद पवार को मना लेंगे। लेकिन इसके एवज में दो करोड़ रुपए देने होंगे। वाजे़ ने यह भी आरोप लगाया कि नवंबर 2020 में उप मुख्यमंत्री अजीत पवार के बेहद करीबी होने का दावा करनेवाले दर्शन घोडावत ने उसे अवैध गुटखा विक्रेताओं से 100 करोड़ रुपये महीने वसूलने को कहा था।
वाजे़ के मुताबिक दर्शन घोडावत ने उसे महाराष्ट्र में ‘अवैध गुटखा और तंबाकू व्यापार’ के बारे में समझाया और फोन नंबर दिए। वाजे़ ने अपनी चिट्ठी में लिखा-‘उस शख्स ने इस बात पर जोर दिया कि मुझे हर महीने इन अवैध गुटखा विक्रेताओं से 100 करोड़ वसूलने चाहिए।’ वाज़े ने लिखा कि उसे दर्शन घोडावत ने वॉर्निंग दी थी कि अगर वह इस काम को नहीं करेगा तो उसकी नौकरी जा सकती है। वाज़े ने चिट्ठी में दावा किया कि दर्शन ने उससे कहा कि था कि उप मुख्यमंत्री अजित पवार बहुत नाराज़ हैं, गुटखा कंपनियों के मालिकों से कहो कि उनसे मिलें।
सचिन वाजे ने इस चिट्ठी में मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह के उन आरोपों को दोहराया है जिसमें अनिल देशमुख पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने पुलिस अधिकारियों से 1680 बार-रेस्टोरेंट से तीन लाख से साढ़े तीन लाख रुपये हर महीने वसूली करने को कहा था।
इस चिट्ठी में कहा गया है कि अगस्त 2020 में वाजे़ को अनिल परब के आधिकारिक बंगले पर बुलाया गया और SBUT से जुड़ी शिकायत देखने को कहा गया जिसकी जांच अभी शुरुआती स्तर पर थी। वाजे़ से कहा गया कि ट्रस्टियों को भी पूछताछ के दायरे में लाएं। उन्होंने (परब) ने भी इस बात पर ‘जोर दिया कि SBUT की जांच को बंद करने के एवज में 50 करोड़ रुपये के लिए बातचीत पर शुरू की जाए। मैंने ऐसे करने से मना कर दिया क्योंकि मैं SBUT से जुड़े किसी शख्स को नहीं जानता था और मेरा इस जांच पर किसी तरह का कंट्रोल भी नहीं था।’
सचिन वाज़े ने यह आरोप भी लगाया कि अनिल परब ने इस साल जनवरी में उसे फिर से अपने बंगले पर बुलाया। वाजे़ ने कहा-‘मुझे बीएमसी में सूचीबद्ध फर्जी ठेकेदारों के खिलाफ जांच करने के लिए कहा।’ वाजे़ की चिट्ठी के मुताबिक ‘उन्होंने (अनिल परब) ने मुझसे कहा कि BMC के 50 कॉन्ट्रैक्टर्स से 2-2 करोड़ रुपये की वसूली करो’। उन्होंने कहा कि अज्ञात लोगों द्वारा दायर शिकायत पर जांच चल रही है। यह जांच सीआईयू (अपराध जांच शाखा) में प्रारंभिक अवस्था में थी और मेरा स्थानांतरण होनेतक इसमें कुछ भी गलत नहीं पाया गया था।’
अपनी चिट्ठी में सचिन वाज़े ने दावा किया कि वह निर्दोष है और उसे फंसाया गया क्योंकि उसने जबरन वसूली करने से इनकार कर दिया था। लेकिन क्या वह वास्तव में निर्दोष था? सचिन वाज़े द्वारा चिट्ठी में लगाए गए आरोपों के मतलब को समझने की कोशिश करनी चाहिए।
बुधवार को इस मामले में एक और डेवलपमेंट हुआ। सचिन वाज़े को लेकर मुंबई पुलिस के ज्वाइंट कमिश्नर (अपराध) मिलिंद भाराम्बे की तरफ से सरकार को एक गोपनीय रिपोर्ट भेजी गई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक 17 साल के निलंबन के बाद पिछले साल जून महीने में सचिन वाज़े की बहाली हुई थी। बहाली के बाद वाज़े की सीआईयू में पोस्टिंग पर क्राइम ब्रांच के प्रमुख ने आपत्ति जताई थी। लेकिन तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने इस आपत्ति को खारिज कर दिया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक तत्कालीन ज्वाइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस (क्राइम) संतोष रस्तोगी को न चाहते हुए भी इस फैसले को मानना पड़ा था।
कुल मिलाकर इस रिपोर्ट में सचिन वाज़े के काम के लिए परमबीर सिंह को ही जिम्मेदार बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सहायक पुलिस इंस्पेक्टर रैंक का अफसर होने के बावजूद जून 2020 से 12 मार्च 2021 तक अपने 9 महीने के कार्यकाल में वाज़े सीधे पुलिस कमिश्नर को रिपोर्ट करता था। रिपोर्ट के मुताबिक परमबीर सिंह के कहने पर हाईप्रोफाइल केस की जांच सचिन वाज़े को दी गई और वाज़े अपने सीनियर अफसरों की बजाए सीधे परमबीर सिंह को रिपोर्ट करता था। कहां छापा मारना है, किसे गिरफ्तार करना है, इसका आदेश वह सीधे पुलिस कमिश्नर से लेता था।
इस पूरे घटनाक्रम की टाइमिंग पर नजर डालें तो इस गोपनीय रिपोर्ट के मीडिया में लीक होने के तीन घंटे बाद सचिन वाजे़ की एनआईए अदालत को हाथ से लिखी गई चिट्ठी सामने आई। इस चिट्ठी में वाजे़ यह दावा कर रहा है कि उसे फंसाया गया है क्योंकि उसने मंत्रियों के वसूली आदेश को मानने से इनकार कर दिया था। हालांकि अपनी चिट्ठी में वाज़े ने एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार, शिवसेना सुप्रीमो और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बख्श दिया है।
वाज़े की चिट्ठी में आरोप लगने पर सफाई देने खुद शिवसेना नेता अनिल परब सामने आए। अनिल परब ने कहा कि इस तरह के आरोपों से उन्हें कोई हैरानी नहीं हो रही है क्योंकि महाराष्ट्र बीजेपी के नेता कई दिन से कह रहे थे अब अनिल परब का इस्तीफा होने वाला है। बीजेपी नेताओं के बयानों से साफ है कि वो उनके खिलाफ प्लानिंग कर रहे थे और सीबीआई के आते ही सचिन वाज़े के जरिए अपने प्लान पर काम कर दिया। इसके बाद अनिल परब ने इमोशनल बात की। अनिल परब ने कहा कि उन्होंने राजनीति बाल ठाकरे से सीखी है, इसलिए वो कोई गलत काम नहीं कर सकते। अनिल परब ने कहा कि उनकी दो बेटियां हैं, जिन्हें वो बहुत प्यार करते हैं। अब उन्हीं बेटियों की कसम खाकर कहते हैं कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया।
जरा सोचिए, सचिन वाज़े शिवसेना में रहा और शिवसेना की सरकार ने उसे दोबारा बहाल किया। एक और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा भी शिवसेना का उम्मीदवार था।अब अगर ऐसे पुलिस अधिकारी शिवसेना के नेताओं के बारे में कुछ कहते हैं तो इसे नजरंदाज कैसे किया जा सकता है? अनिल परब ने कहा कि वो सरकार और शिवसेना को बदनाम करने की साजिश देख रहे हैं। कुछ दिन पहले अनिल देशमुख ने भी यही बात कही थी। हालांकि हाईकोर्ट के आदेश के बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा था। अनिल परब कह रहे हैं कि ये बीजेपी की चाल है, लेकिन उनके पास इस बात का क्या जबाव है कि आरोप लगाने वाला उनका ही आदमी है, शिवसेना का आदमी है तो फिर बीजेपी ने उससे चिट्ठी कैसे लिखवाई?
यहां मैं कहना चाहता हूं कि सचिन वाज़े भी कोई दूध का धुला नहीं है। पिछले दिनों जो कुछ भी सामने आया उससे लगता है कि वो हर तरह के कुकर्मों में शामिल था। वह बड़े नेताओं का करीबी था। अब उस पर हत्या की साजिश का आरोप है, विस्फोटक लगाने की साजिश रचने का संदेह है। उसकी लग्जरी गाड़ियां, होटल में उसका कमरा, नोट गिनने की मशीन, ये सब एक अपराधी का सामान हो सकता है, किसी निर्दोष और मासूम का नहीं। कुल मिलाकर ऐसा लगता है ये सब लोग आपस में मिले हुए हैं।एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। और जब ये लगा कि मामले की जांच सीबीआई कर रही है और फंस जाएंगे तो अपने आपको बचाने के लिए दूसरों के राज भी खोल रहे हैं।
महाराष्ट्र में जो इल्जाम लगे हैं और दावे-प्रतिदावे किए जा रहे हैं, उसका सीधा सा मतलब है- सरकार की कोशिश ये है कि सचिन वाज़े को परमबीर सिंह का आदमी साबित किया जाए और परमबीर सिंह ये साबित करने में लगे हैं कि सचिन वाजे़ अनिल देशमुख के इशारे पर वसूली करता था। सचिन वाजे़ शिवसेना, एनसीपी , परमबीर सिंह या फिर अनिल देशमुख चाहे किसी का भी आदमी हो, लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि महाराष्ट्र का एक छोटा सा पुलिस अफसर करोड़ों की वसूली कर रहा था।
सचिन वाजे़ की चिट्ठी के तीन पहलू हैं जिन्हें समझना जरूरी है। पहली बात तो ये कि महाराष्ट्र सरकार ने ये दिखाने की कोशिश की कि सचिन वाजे़ मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह का आदमी था और वही उसको लेकर आए थे। सचिन वाजे़ सहायक पुलिस इंस्पेक्टर था लेकिन वो सीधे पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को रिपोर्ट करता था।
दूसरा पहलू ये है कि राज्य सरकार ने यह दिखाने की कोशिश की कि पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख कहीं से भी वसूली के इस खेल में शामिल नहीं हैं। ये सारा खेल परमबीर सिंह का है। लेकिन सचिन वाजे़ की जो चिट्ठी सामने आई उसने इस खेल को पलट दिया। यह चिट्ठी परमबीर सिंह के इस आरोप की पुष्टि करती है कि अनिल देशमुख ने सचिन वाजे़ से सौ करोड़ रुपया महीना वसूली करने को कहा था।
वाजे़ की इस चिट्ठी का तीसरा और सबसे अहम पहलू ये है कि उसका उद्देश्य सौ करोड़ वसूली के स्कैंडल को उजागर करना नहीं है। वो तो अब अपने आपको निर्दोष साबित करने के चक्कर में कोर्ट को ये बताना चाहता है कि उससे जब-जब कहा गया कि वसूली करो तो उसने इन्कार कर दिया। यानि वो बहुत मासूम और ईमानदार अफसर है।
यहां ये बात ध्यान में रखना जरूरी है कि सचिन वाजे़ निर्देष और ईमानदार पुलिस अधिकारी नहीं था। फर्जी एनकाउंटर और वसूली के इल्जाम में 16 साल सस्पेंड रहा। उसके लिए सबसे महंगे फाइव स्टार होटल में सौ दिन के लिए कमरा बुक था। ये वो मासूम अफसर है जिसकी तनख्वाह महज 60 हजार रुपए है लेकिन उसके पास सात लक्जरी गाडियां हैं। एक गाड़ी की कीमत एक करोड़ से ज्यादा है।
ये सारी बातें समझने के बाद यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि सचिन वाजे़ बहुत शातिर है। इस चिट्ठी से वो दूसरों को फंसाना और अपने आपको बचाना चाहता है। अब अदालत सबूतों के आधार पर तय करेगी कि सचिन वाज़े के इल्जामात में कितनी सच्चाई है। लेकिन फिलहाल सचिन वाजे़ की चिट्ठी से उद्धव ठाकरे की मुश्किलें बढ़ेंगी वहीं बीजेपी को एक बार फिर उद्धव ठाकरे को घेरने का अच्छा मौका मिलेगा। मुख्यमंत्री ठाकरे राज्य में इन दिनों दो मोर्चों पर एक साथ लड़ रहे हैं। एक तरफ कोरोना महामारी लगातार तेजी से बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर सरकार को भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों का सामना करना पड़ रहा है।