अफगानिस्तान से एक अच्छी खबर आई है। 15 अगस्त से अपनी जीत का जश्न मना रहे तालिबान को करारा झटका लगा है। अमरुल्ला सालेह के नेतृत्व में नॉर्दन एलायन्स ने तालिबान से 3 जिलों, पोल-ए-हेसर, देह सलाह और बानू को आजाद करवा लिया है, और इस लड़ाई में काफी लोग हताहत हुए हैं। इस बात की जानकारी अस्वका न्यूज एजेंसी ने ट्विटर पर दी है। सोशल मीडिया पर इन 3 जिलों के आजाद होने के दृश्य पोस्ट किए गए हैं।
अशरफ गनी की जगह खुद को अफगानिस्तान का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित करने वाले अमरुल्ला सालेह ने अन्य सभी अफगानों से तालिबान के खिलाफ युद्ध में शामिल होने की अपील की है। ऐसी खबर है कि मार्शल अब्दुल रशीद दोस्तम और अता मोहम्मद नूर के प्रति वफादार सैनिकों ने पूरे पंजशीर इलाके पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए अहमद शाह के नेतृत्व वाले सैनिकों के साथ हाथ मिला लिया है। यह इलाका वर्तमान में तालिबान के नियंत्रण में नहीं है। तालिबान के लिए इन जिलों पर जल्द ही कब्जा करना मुश्किल हो सकता है।
इस बीच अफगानिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर कंधार में और शुक्रवार को काबुल में, तालिबान स्पेशल फोर्स के लड़ाकों ने पहली बार सलवार-कमीज की वर्दी में ‘अल्लाहु अकबर’ के नारे लगाते हुए फ्लैग मार्च निकाला। कहा जा रहा है कि इन लड़ाकों को पाकिस्तान ने ट्रेनिंग दी है। तालिबान के लड़ाके पाकिस्तानी कमांडो की मिरर इमेज हैं। अमूमन तालिबान के लड़ाकों को एक रेग्यूलर आर्मी के सैनिकों की तरह ट्रेनिंग नहीं दी जाती है। उनकी बंदूक के सामने जो आता है वे उसे मारने में यकीन रखते हैं। इससे ज्यादा न वे जानते हैं, न मानते हैं और न ही इससे ज्यादा उन्हें सिखाया गया है। काबुल से 318 किलोमीटर दूर जाबुल प्रांत के कलात शहर में भी तालिबान के लड़ाके वर्दी पहनकर सड़कों पर निकले, वीडियो बनवाया और फिर अफगानिस्तान की जगह इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान नाम का ऐलान किया।
तालिबान स्पेशल फोर्स के इन लड़ाकों की तस्वीरें देखकर कोई भी आसानी से समझ सकता है कि अफगान जनजातियों के युवाओं को काफी तेजी से ट्रेनिंग देकर उन्हें वर्दी पहनने और मार्च करने के लिए कहा गया है। नब्बे के दशक के दौरान हमने जो पुराना तालिबान देखा, वह राइफल चलाने वाले लड़ाकों का एक गिरोह था। नया तालिबान व्यवस्थित रूप से संगठित, प्रशिक्षित और हथियारबंद नजर आता है। इनमें से ज्यादातर लड़ाकों को पाकिस्तानी सेना द्वारा गुप्त रूप से आधुनिक हथियारों के साथ ट्रेनिंग दी गई है। वहीं, अफगानिस्तान की सेना को अमेरिका की तरफ से मिले हाईटेक युद्धक सामानों तक तालिबान की पहुंच हो जाने से वह और ज्यादा घातक हो गया है।
तालिबान स्पेशल फोर्स के लड़ाके एक नया झंडा लिए हुए थे। दिलचस्प बात यह है कि यह तालिबान द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला नौवां झंडा है। तालिबान ने पिछले 20 सालों में 9 बार अपना झंडा बदला है। पहले तालिबान के लड़ाके 4-4 के ग्रुप में नजर आते थे, पिकअप ट्रकों में बैठकर अपने हथियार लहराते थे, लेकिन नया तालिबान दुनिया को एक नया संदेश देना चाहता है कि उसकी सेना भी संगठित, सुसज्जित, प्रशिक्षित और वर्दीधारी है। वे अब अमेरिका द्वारा अफगान सेना को दी गई M4 कार्बाइन और M16 राइफलें लेकर चलते हैं। तालिबान के इन लड़ाकों की ट्रेनिंग रातोंरात नहीं हुई। इसके लिए इन लड़ाकों की हथियारों के साथ बिल्कुल उसी लेवल की ट्रेनिंग हुई जैसी किसी भी बड़े देश की सेना की एलीट फोर्स की होती है।
शुक्रवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में मैंने कुछ तस्वीरें और वीडियो दिखाए थे कि कैसे तालिबान की स्पेशल फोर्स को पाकिस्तान में ट्रेनिंग दी गई। जिस वक्त तालिबान का 85 पर्सेंट अफगानिस्तान पर कब्जा हो गया था, और तालिबान के लड़ाके काबुल की तरफ बढ़ रहे थे, उस समय सभी हैरान थे कि अचानक अफगान सेना ने जिहादी लड़ाकों के सामने हथियार क्यों डाल दिए। इसकी वजह थी कि इस बार अफगानिस्तान के सामने कंधे पर बंदूक रखनेवाले स्ट्रीट फाइटर तालिबानी नहीं बल्कि पाकिस्तान में ट्रेन्ड स्पेशल ऑपरेशन फोर्स और शॉक ट्रूप्स थे। इन एलीट फाइटर्स को माउंटेन वॉरफेयर के साथ-साथ डायरेक्ट ऐक्शन, गुरिल्ला वॉर, स्पेशल रेड्स, डेजर्ट कॉम्बैट और स्पेशल ऑपरेशंस को लीड करने में महारथ हासिल है। यह बात तो किसी से छिपी नहीं है कि काबुल में कब्जा करने वाले तालिबानी ऑपरेशन के पीछे सिराजुद्दीन हक्कानी का आतंकी संगठन था। कहा जाता है कि तालिबान के पूर्व चीफ मुल्ला उमर का बेटा मुल्ला याकूब प्रेसिडेंशियल पैलेस में घुसने वाली इस एलीट फोर्स का हिस्सा है।
इसमें कोई शक नहीं है कि पाकिस्तान स्थित हक्कानी ग्रुप ने काबुल में एक चुनी हुई सरकार को हटाने में तालिबान की मदद की थी। हक्कानी नेटवर्क ने पाकिस्तानी सेना की खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से तालिबान स्पेशल फोर्स को खड़ा करने के लिए ट्रेनिंग दी और हथियार भी मुहैया कराए। तालिबान के लड़ाकों को मैन-टू-मैन मार्किंग, क्लोज कॉम्बैट और आमने-सामने की गन फाइट में ट्रेन्ड किया गया था। उन्हें दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखने, टैक्टिकल पोजिशंस हासिल करने, और फिर दुश्मन पर हमला करने की ट्रेनिंग दी गई थी। 1996 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था, तब उसकी आर्मी को चरवाहों की सेना कहा जाता था। नए तालिबान के पास एक एलीट फोर्स है जिसे मॉडर्न वॉरफेयर की पूरी ट्रेनिंग मिली हुई है। इसके लड़ाकों को फिजिकल एंड्योरेंस, टैक्टिकल वॉरफेयर, स्टॉर्मिंग और अत्याधुनिक हथियारों के इस्तेमाल की कमांडो ट्रेनिंग दी गई थी।
करीब 40 साल पहले अमेरिका ने अफगानिस्तान से रूसी सेना को खदेड़ने के लिए पाकिस्तान में मौजूद मुजाहिदीन को भारी मात्रा में हथियार और इक्विपमेंट दिए थे। रूस की एयर फोर्स अमेरिका द्वारा मुजाहिदीन को दी गई स्टिंगर मिसाइलों का सामना नहीं कर सकी। रूसी सेना की हार के बाद अफगानिस्तान में गृह युद्ध हो गया। इसी के बाद नब्बे के दशक के मध्य में तालिबान का जन्म हुआ। सऊदी अरब और पाकिस्तान ने एक आंख वाले मुल्ला उमर को तैयार किया, और फिर उमर ने तालिबान को खड़ा कर दिया।
तालिबान ने अफगानिस्तान पर 5 साल राज किया। जब अफगानिस्तान में बैठे अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन ने 9/11 के आतंकवादी हमलों की प्लानिंग कर उन्हें अंजाम दिया, तब अल कायदा को खदेड़ने के लिए अमेरिका ने 2001 में अफगानिस्तान पर हमला किया और फिर वहां अपने पैर जमा लिए। तालिबान के लड़ाकों ने फिर पाकिस्तान में शरण ली। आज अफगानिस्तान पर कब्जा करने वाले नए तालिबान के पास लड़ाकों की बद्री 313 बटालियन है, जो नाइट विजन इक्विपमेंट से लैस है। वे रात के समय दुश्मन पर आसानी से हमला बोल सकते हैं। नए तालिबान के लड़ाकों को सिराजुद्दीन हक्कानी के आतंकी नेटवर्क के गढ़ उत्तरी वजीरिस्तान में ट्रेनिंग दी गई थी। उनकी ट्रेनिंग के वीडियो देखने से यह साफ है कि तालिबान कमांडो को पाकिस्तानी सैन्य सलाहकारों और ISI के अधिकारियों ने व्यापक प्रशिक्षण दिया था।
अब तक दुनिया ये मान रही थी कि चप्पल पहनकर आए तालिबान के 70 हजार लड़ाकों के सामने अफगानिस्तान की 3 लाख की फौज ने घुटने टेक दिए। अमेरिका की ट्रेन्ड की हुई, अमेरिकी हथियारों से लैस अफगान आर्मी ने पैदल तालिबानियों के सामने घुटने टेक दिए। लेकिन आज पता लगा कि तालिबान के लड़ाके न तो अन्ट्रेन्ड हैं, और न ही पैदल। वे लड़ाई में माहिर हैं और उन्हें जंग लड़ने की ट्रेनिंग पाकिस्तान ने और हक्कानी ग्रुप ने दी है। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि पाकिस्तान ने एक बार फिर अमेरिका को मूर्ख बनाया और दुनिया की आंखों में धूल झोंकी। पाकिस्तान ने पहले एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को पनाह दी, अलकायदा को सपोर्ट किया। इसके बाद अब पाकिस्तान ने तालिबानी लड़ाकों को अपने यहां ट्रेनिंग दी, हथियार दिए। और तो और पाकिस्तान ने अपने जिहादियों को भी तालिबानियों के साथ लड़ने के लिए भेज दिया।
मैंने कुछ अमेरिकन एक्सपर्ट्स से बात की, जिन्होंने बताया कि ये मत सोचिए कि ये सब पिछले 15 दिन में हुआ। उनका कहना है कि असल में 2 साल से अमेरिका ने तालिबान के साथ डील की थी। इस डील के तहत तालिबान ने वादा किया था कि वे अमेरिकी सैनिकों पर हमले नहीं करेंगे। इन एक्सपर्ट्स ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 2 सालों में अफगान फोर्स पर तालिबान के हमले तेज हो गए थे, लेकिन अमेरिकी फोर्स पर हमले नहीं हुए। 20 साल मे अफगान फौज के जितने लोग हताहत नहीं हुए, उससे ज्यादा पिछले 2 साल में मारे गए।
पाकिस्तान ने हालात का फायदा उठाते हुए तालिबान के लड़ाकों को काफी तेजी से ट्रेनिंग दी। आंकड़ों से साफ हो जाता है कि पिछले 2 सालों में बड़ी संख्या में अफगान नागरिक मारे गए, तालिबान मजबूत होता गया और पाकिस्तान का दखल बढ़ता गया। अमेरिका को केवल अफगानिस्तान में अपने सैनिकों और नागरिकों के हितों की चिंता थी। अफगान आर्मी की बड़ी प्रॉब्लम ये थी कि उसे सप्लाई और बैकअप मिलना बंद हो गया था। अन्ट्रेन्ड दिखने वाले 70 हजार तालिबान ने 3 लाख की फौज को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, लेकिन मुझे लगता है कि नॉर्दर्न एलायन्स अपनी सेना को एकजुट कर रहा है और तालिबान को एक बड़ी चुनौती देने की तैयारी कर रहा है।
गुजरात में प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर के पास सौंदर्यीकरण परियोजनाओं का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को जो कहा, उसे सुनना चाहिए। मोदी ने कहा, ‘जो तोड़ने वाली शक्तियां हैं, जो आतंक के बलबूते साम्राज्य खड़ा करने वाली सोच है, वो किसी कालखंड में कुछ समय के लिए भले हावी हो जाएं लेकिन, उसका अस्तित्व कभी स्थायी नहीं होता, वो ज्यादा दिनों तक मानवता को दबाकर नहीं रख सकती।’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘इस मंदिर को सैकड़ों सालों के इतिहास में कितनी ही बार तोड़ा गया, यहां की मूर्तियों को खंडित किया गया, इसका अस्तित्व मिटाने की हर कोशिश की गई। लेकिन इसे जितनी भी बार गिराया गया, वे उतनी ही बार उठ खड़ा हुआ। इसीलिए, भगवान सोमनाथ मंदिर आज भारत ही नहीं, पूरे विश्व के लिए एक विश्वास है और एक आश्वासन भी है। सत्य को असत्य से हराया नहीं जा सकता। आस्था को आतंक से कुचला नहीं जा सकता। ये बात जितनी तब सही थी जब कुछ आततायी सोमनाथ को गिरा रहे थे, उतनी ही सही आज भी है, जब विश्व ऐसी विचारधाराओं से आशंकित है।’
एक हजार साल पहले, सन् 1025 में सोमनाथ मंदिर पर पहली बार महमूद गजनवी ने हमला किया था। यह आक्रांता भी अफगानिस्तान से आया था। इसलिए मोदी ने सोमनाथ मंदिर पर हुए हमले और उसके पुनर्निर्माण को आज के हालात से जोड़ा और उन्होंने ठीक कहा कि आतंकवाद और दहशतगर्दी का खेल लंबा नहीं चलता। हमारे मुल्क में भी जो लोग तालिबान का गुणगान कर रहे हैं, उनमें दूरदर्शिता का अभाव है। उन्हें अंदाजा नहीं हैं कि ऐसी बयानबाजी से कितना नुकसान हो सकता है। असदुद्दीन ओवैसी ने जो कहा, वही बात शफीकुर रहमान बर्क, मौलाना सज्जाद नोमानी और मुनव्वर राना जैसे लोगों ने कही। ये लोग बताने लगे हैं कि तालिबान बदल गया है। उन्हें ये नजर नहीं आया कि काबुल एयरपोर्ट पर सैकड़ों महिलाएं देश से बाहर निकलने के इंतजार में अपने छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लेकर बैठी हैं और किसी तरह उन्हें तालिबान के कहर से बचाना चाहती हैं।
मेरा सवाल है: अगर तालिबान बदल गया है तो हजारों बेहाल अफगान पुरुष, महिलाएं और बच्चे अपनी जान पर खेलकर अफगानिस्तान छोड़ने के लिए मशक्कत क्यों कर रहे हैं? अगर तालिबान बदल गया है तो काबुल एयरपोर्ट पर हजारों की भीड़ क्यों दिख रही है? क्या ये लोग तालिबान को बेहतर जानते हैं या ओवैसी, बर्क और राना जैसे लोग बेहतर जानते हैं? सबसे शर्मनाक बात तो ये है कि कुछ लोगों ने आंतक मचाने वाले तालिबानियों की तुलना स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से कर दी। क्या महिलाओं के हक छीनने वाले, बच्चों को गोलियों से उड़ाने वालों को फ्रीडम फाइटर कहा जा सकता है? आपका सरकार से विरोध हो सकता है, मोदी से नाराजगी हो सकती है, लेकिन आप जम्हूरियत और इंसानियत के खिलाफ नहीं जा सकते।