आज मैं आपके साथ कोविड वैक्सीनेशन के बारे में एक अच्छी खबर शेयर करना चाहता हूं। यह खबर पिछले 3 दशकों से आतंकवाद का दंश झेल रहे जम्मू और कश्मीर से आई है। खबर के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के जम्मू, शोपियां, सांबा, गांदरबल एवं कुछ अन्य जिलों में 45 साल से ज्यादा उम्र की 100 प्रतिशत जनसंख्या को वैक्सीन की डोज लग चुकी है। यहां के अधिकांश अन्य जिलों में भी 90 प्रतिशत टीकाकरण का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में 28.41 लाख से ज्यादा लोगों को वैक्सीन की पहली डोज लगाई जा चुकी है। पहली और दूसरी डोज को जोड़ दें तो यह संख्या करीब 34 लाख हो जाती है। इनमें फ्रंटलाइन वर्कर्स, हेल्थ केयर वर्कर्स, 60 साल से ऊपर के वरिष्ठ नागरिक और 45 साल से अधिक की आयु के लोग शामिल हैं। इस समय जम्मू और कश्मीर राष्ट्रव्यापी टीकाकरण की लिस्ट में केरल के बाद दूसरे नंबर पर है। जम्मू-कश्मीर की 21.6 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन की पहली खुराक लग चुकी है जबकि केरल में यह आंकड़ा 22.4 प्रतिशत लोगों का है। वहीं, पूरे भारत के वर्तमान राष्ट्रीय टीकाकरण औसत की बात करें तो यह सिर्फ 12.6 प्रतिशत है।
जम्मू और कश्मीर में,18-44 आयु वर्ग के 2.57 लाख लोगों को वैक्सीन की पहली डोज लग चुकी है और 48 लाख लोगों को टीका लगाया जाना है। 45 से ज्यादा के आयु वर्ग में सिर्फ 29 लाख लोगों का वैक्सीनेशन बाकी है। जम्मू-कश्मीर के सभी 20 जिलों में वैक्सीनेशन सेंटर्स की तादाद में इजाफा किया गया है। बुजुर्ग, कमजोर और शारीरिक रूप से अक्षम नागरिकों को घर-घर जाकर टीका लगाने का काम शुरू हो गया है।
शुक्रवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने श्रीनगर के बटमालू इलाके में एक वैक्सीनेशन सेंटर के बाहर लोगों की लंबी-लंबी लाइनें दिखाई थीं। हमने राजौरी, शोपियां और आतंकवाद से प्रभावित अनंतनाग के भी विजुअल्स दिखाए थे। इन विजुअल्स से पता चलता है कि हेल्थ केयर वर्कर्स कैसे पैदल ही नदियों और पहाड़ी इलाकों को पार करके गांवों में लोगों को वैक्सीन लगाने के लिए पहुंच रहे हैं। तमाम बाधाओं के बावजूद अपना काम कर रहे इन बहादुर स्वास्थ्यकर्मियों को सलाम है।
डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ और नर्सों की टीम को अनंतनाग के दुर्गम इलाकों में रहने वाले खानाबदोश लोगों तक पहुंचने के लिए रोजाना कई किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है। खानाबदोश लोग अपने घरों को एक जगह से दूसरी जगह पर शिफ्ट करते रहते हैं। जो लोग वैक्सीनेशन को लेकर अब भी संकोच करते हैं और हेल्थ वर्कर्स को अपने गांव में आने नहीं देते, उन्हें जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले से आई तस्वीरें देखनी चाहिए। यहां डॉक्टर और नर्स घुटनों तक पानी भरे नाले को पार कर रहे हैं ताकि लोगों तक पहुंचकर उन्हें वैक्सीन लगाई जा सके। ये दृश्य राजौरी जिले के समोटे के पास स्थित कांडी गांव के थे।
हमारे संवाददाता मंजूर मीर ने एक रिपोर्ट में बताया कि शोपियां जिले के हीरापोरा गांव में 98 परशेंट लोगों को वैक्सीन लग चुकी है। यह जम्मू और कश्मीर का पहला गांव है जो ‘कोरोना मुक्त’ घोषित किया गया है। इस गांव में 82 लोग कोरोना कोरोना की चपेट में आ गए थे जिससे यहां के लोगों में इस महामारी का जबरदस्त खौफ था। लेकिन लोगों के जज्बे और सरकारी कर्मचारियों के कमिटमेंट के कारण सारे लोग ठीक हो गए और गांव कोरोना मुक्त हो गया। शोपियां जिले के कई और गांवों में इसी तरह के वैक्सीनेशन कैंप लग रहे हैं। इसका श्रेय कश्मीर घाटी के हेल्थ केयर वर्कर्स की मेहनत और डेडिकेशन को जाता है। अकेले श्रीनगर जिले में 45 से अधिक की आयु वर्ग के 47 प्रतिशत लोगों ने वैक्सीन की पहली डोज लगवा ली है।
मैं इस बड़ी कामयाबी के लिए जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा की तारीफ करना चाहूंगा। कश्मीर की वैक्सीनेशन ड्राइव मुल्क के अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक मिसाल है। कश्मीर घाटी में भी लोगों के मन में डर पैदा करने के लिए WhatsApp पर फर्जी खबरें और आधारहीन अफवाहें फैलाई गईं, लेकिन घाटी के लोगों ने यकीन नहीं किया और वैक्सीन लगवाने के लिए खुलकर आगे आए। कश्मीर घाटी में 90 प्रतिशत से ज्यादा आबादी मुसलमानों की है, लेकिन किसी को भी वैक्सीन से डर नहीं लगा।
कश्मीर की सफलता की तुलना लखनऊ, दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात जैसी जगहों पर हो रहे कोरोना टीकाकरण के विरोध से करें। लखनऊ में लोगों द्वारा वैक्सीनेशन वर्कर्स को धमकी देने के बाद मस्जिदों से ये अपील की गई कि लोग सहयोग करें और वैक्सीन लगवाने के लिए आगे आएं। इटावा, वाराणसी, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर और हापुड़ से भी मस्जिदों से दिन में कई बार वैक्सीन लगवाने की अपील की जा रही है। यहां तक कि दिल्ली में भी मस्जिदों से लोगों से वैक्सीन लगवाने की अपील की गई। हमारे रिपोर्टर सैयद नजीर उत्तर-पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद इलाके की मदीना मस्जिद गए थे। मस्जिद के इमाम पहले ही वैक्सीन लगवा चुके हैं और अब दूसरों से भी वैक्सीनेशन करवाने के लिए कह रहे हैं।
इस बात में कोई शक नहीं है कि वैक्सीनेशन को लेकर बड़ी संख्या में मुस्लिमों के मन में आशंका और डर है। और यह शक इतना गहरा है कि इसे आसानी से खत्म करना मुश्किल है। इसकी वजह सिर्फ सोशल मीडिया पर फैल रही अफवाहें नहीं हैं। मुस्लिम नेताओं के सियासी और गैरजिम्मेदाराना बयान भी आग में घी का काम कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के सांसद सफीकुर्रहमान बर्क ने कहा, ‘कोरोना कोई बीमारी है ही नहीं। कोरोना अगर बीमारी होती तो इसका इलाज होता। यह बीमारी सरकार की गलतियों की वजह से आजादे इलाही है जो अल्लाह के सामने रोकर, गिड़गिड़ाकर माफी मांगने से ही खत्म होगी।’ समाजवादी पार्टी के एक और सांसद एसटी हसन ने कहा, ‘पिछले 7 सालों में बीजेपी के शासन के दौरान गलत कामों के चलते अल्लाह के कुफ्र से कोरोना और चक्रवात आए हैं। इस दौरान सरकार ने शरीयत कानूनों के साथ छेड़छाड़ की और मुसलमानों के खिलाफ सीएए लेकर आई।’ जब नेता इस तरह की बयानबाजी करेंगे, तो मुसलमानों में कोरोना को लेकर भ्रम फैलेगा, वैक्सीन को लेकर कन्फ्यूजन होगा। मुझे अब भी उन मौलवियों पर भरोसा है जिन्होंने खुद आगे आकर वैक्सीन लगवाई है और मुसलमानों से इस अभियान में शामिल होने की अपील कर रहे हैं।
गुजरात के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले हिंदुओं में भी वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट है। राजकोट के हिंदू बहुल 98 गांवों में, जो कि गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी का विधानसभा क्षेत्र है, अभी तक 10 प्रतिशत से भी कम वैक्सीनेशन हुआ है। ऐसे कई गांव हैं जहां स्वास्थ्य कार्यकर्ता सात-सात बार घर-घर घूम आए, लेकिन पूरे गांव में 10 लोगों को भी वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार नहीं कर पाए। ज्यादातर गांववालों को ऐसी अफवाहों पर यकीन हो गया था कि जो भी वैक्सीन लगवाएगा बाद में उसकी मौत हो जाएगी। राजकोट जिले के 688 में से करीब 200 गांवों में 10 प्रतिशत से भी कम टीकाकरण हो पाया है।
मुंबई में स्थित एशिया के सबसे बड़े स्लम एरिया धारावी में, जहां कोरोना की पहली लहर ने मौत का तांडव मचाया था, 8 लाख में से सिर्फ 15 से 16 हजार लोगों ने वैक्सीन लगवाई है। संकरी गलियों, एक-दूसरे से सटे छोटे-छोटे घरों और घनी आबादी वाले इस इलाके में टीकाकरण का काम सबसे तेज होना चाहिए था, क्योंकि यहां कोरोना कुछ ही घंटों में फैल सकता है। सरकार ने धारावी में 3 बड़े-बड़े वैक्सीनेशन सेंटर बनाए हैं, टेंट लगे हैं, कुर्सियां पड़ी हैं, पानी का इंतजाम है, हेल्थ वर्कर्स तैनात हैं, वैक्सीन भी है लेकिन वैक्सीन लगवाने के लिए मुश्किल से ही कोई आगे आ रहा है।
मैं जब उत्तर प्रदेश के गांवों में वैक्सीनेशन टीम के पहुंचने पर लोगों के छिपने की खबरें देखता हूं तो दुख होता है। बिहार में कोरोना संकट के दौरान गरीब लोग भूखे न रहें, इसलिए सरकार ने जगह-जगह कम्युनिटी किचन बनाए हैं। लेकिन लोग वहां खाना खाने इसलिए नहीं आते क्योंकि किसी ने अफवाह फैला दी कि जो कम्युनिटी किचन में जाएगा उसे पहले वैक्सीन लगाई जाएगी, फिर खाना दिया जाएगा। मध्य प्रदेश के उज्जैन से खबर आई की एक वैक्सीनेशन टीम पर गांववालों ने हमला कर दिया। जो लोग सोशल मीडिया पर सरकार से वैक्सीनेशन की स्पीड को लेकर सवाल करते हैं, उन्हें इन जगहों पर जाकर देखना चाहिए कि गांववाले किस तरह टीकाकरण का विरोध कर रहे हैं।
वैक्सीनेशन के लिए लोगों को तैयार करना काफी मुश्किल काम है। सरकार का दावा है कि जुलाई तक इतनी वैक्सीन होगी कि हर दिन एक करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाई जा सकेगी। मुझे सरकार के दावे पर शक नहीं है, लेकिन क्या हर रोज एक करोड़ लोग वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार होंगे? इसलिए जो लोग वैक्सीन की उपलब्धता पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें टीकाकरण को लेकर जारी आधारहीन अफवाहों पर लगाम लगाने में ज्यादा समय लगाना चाहिए। उन्हें लोगों से अपील करनी चाहिए कि वे वैक्सीन जरूर लगवाएं। इससे कोरोना महामारी के खिलाफ जंग जीतने में काफी मदद मिलेगी।