पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ आपत्तिजनक बयानों को लेकर शुक्रवार दोपहर जुमे की नमाज के बाद देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए। हालांकि आपत्तिजनक बयान देनेवाले बीजेपी के दोनों नेताओं को पार्टी ने निलंबित कर दिया है, लेकिन विरोध का सिलसिला थम नहीं रहा है। शुक्रवार को रांची और प्रयागराज में विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया। रांची में पथराव और आगजनी की घटनाओं में दो लोगों की मौत हो गई। यहां हिंसा प्रभावित इलाके में कर्फ्यू लगा दिया गया है। वहीं शनिवार को भी इस मामले को लेकर पश्चिम बंगाल के हावड़ा में प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शनकारियों की ओर से पथराव किए गए। यहां भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस को आंसू गैस के गोले दागने पड़े।
तेलंगाना में प्रदर्शन के दौरान तिरंगे का अपमान किया गया जबकि रांची में एसएसपी घायल हो गए वहीं एसएचओ के सिर में चोटें आई हैं। शुक्रवार को एक नया ट्रेंड ये देखा गया कि प्रदर्शनकारियों ने बच्चों के हाथों में भी पत्थर थमा दिए। ये बच्चे भी पुलिस पर पथराव कर रहे थे। पुलिस की कार्रवाई से बचने के लिए प्रदर्शनकारियों ने मानव ढाल के तौर पर इन बच्चों का इस्तेमाल किया।
कर्नाटक में मुस्लिम महिलाएं बुर्का पहनकर प्रदर्शन के लिए बाहर निकलीं। ज्यादातर जगहों पर प्रदर्शनकारी पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ आपत्तिजनक बयान के लिए बीजेपी प्रवक्ता नुपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे।
शुक्रवार को दिल्ली, मुरादाबाद, सहारनपुर, प्रयागराज, भोपाल, हावड़ा, रांची, अहमदनगर, बेलगावी, हैदराबाद और महबूबनगर में विरोध प्रदर्शन हुए। सबसे हैरान करने वाला दृश्य प्रयागराज का था। यहां जुमे की नमाज के तुरंत बाद अटाला मोहल्ले की गलियों से छोटे-छोटे बच्चे बाहर निकले और पुलिस पर पथराव करने लगे। बच्चे खुद पत्थर लेकर नहीं निकले थे बल्कि दंगाइयों ने पुलिसकर्मियों को निशाना बनाने के लिए जानबूझकर इन बच्चों के हाथ में पत्थर थमा दिया था।
नमाज के बाद अचानक खुल्दाबाद चौराहे पर भारी भीड़ जमा हो गई और छतों से पुलिस पर पथराव शुरू हो गया। हालात पर काबू पाने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले भी दागे। लेकिन उसका भी ज़्यादा असर नही हुआ। करीब आधे घंटे तक पथराव होता रहा। इससे पहले गुरुवार और शुक्रवार को पुलिस अधिकारियों ने स्थानीय मुस्लिम नेताओं के साथ शांति बैठक भी की थी लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। कई गाड़ियों में आग लगा दी गई। पथराव में आईजी, डीएम और एससपी समेत कई अधिकारी भी घायल हो गए।
इसी तरह के विरोध प्रदर्शन मोरादाबाद और सहारनपुर में भी हुए। हालांकि इससे पहले यहां मौलानाओं और बुजुर्गों ने जुमे की नमाज के बाद किसी तरह का हंगामा न करने की अपील की थी साथ ही इसी तरह का वादा पुलिस से भी किया था कि किसी तरह का विरोध प्रदर्शन नहीं होगा। लेकिन इसके बाद भी ऐसा हुआ। यूपी पुलिस के एक सीनियर अधिकारी ने कहा, शुक्रवार के विरोध प्रदर्शन के बाद 6 जिलों से करीब 140 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। अधिकारी ने बताया कि प्रयागराज, सहारनपुर, हाथरस, अंबेडकर नगर, मुरादाबाद और फिरोजाबाद से ये गिरफ्तारियां हुई हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार देर रात शीर्ष अधिकारियों के साथ मीटिंग की। उन्होंने पथराव और आगजनी करनेवाले उपद्रवियों को सबक सिखाने का निर्देश दिया। उन्होंने अफसरों को साफ-साफ निर्देश दिया है कि बेगुनाह को परेशान ना किया जाए और गड़बड़ी करने वालों को ऐसा सबक सिखाया जाए कि वो जिंदगी भर याद रखें। अगर बच्चों को पुलिस पर पत्थर फेंकने के लिए ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है तो ऐसा करनेवाले मास्टरमाइंड कुछ और नहीं बल्कि देशद्रोही हैं। इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
मुझे लगता है कि यूपी पुलिस ने जितनी तेजी से एक्शन लिया और दंगे की साजिश को नाकाम किया वो काबिले तारीफ है। यह सीएम योगी आदित्यनाथ की सतर्कता और सख्ती का ही नतीजा है कि हालात काबू में हैं वरना हालात को खराब करने की साजिश तो गहरी थी। अब दंगा करने वाले पकड़े जाएंगे, जो फरार हैं उनके पोस्टर छपेंगे। सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की वसूली होगी और जो अवैध संपत्ति मिलेगी उस पर बुलडोजर चलेगा।
अब कुछ लोग ऐसे है कि इस एक्शन पर हंगामा खड़ा करेंगे। बहुत से बयान बहादुर सामने आएंगे। पत्थरबाजों के लिए घड़ियाली आंसू बहाएंगे । उन्हें मजलूम बताएंगे। यह दिखाने की कोशिश करेंगे कि सरकार बेगुनाहों को परेशान कर रही है। लेकिन अच्छी बात यह है कि योगी इस तरह की बातों की परवाह नहीं करते। मुझे लगता है कि दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी योगी आदित्यनाथ से यह बात सीखनी चाहिए। कानून तोड़ने वालों के खिलाफ सख्त एक्शन लेने की हिम्मत दिखानी चाहिए।
कम से कम झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को तो योगी आदित्यनाथ से सीख जरूर लेनी चाहिए। क्योंकि जुमे की नमाज के बाद पत्थरबाजी की सबसे ज्यादा परेशान करने वाली तस्वीरें रांची आई हैं। यहां शुक्रवार को प्रदर्शनकारियों ने न सिर्फ पथराव और आगजनी की बल्कि रास्ते में एक हनुमान मंदिर को भी नुकसान पहुंचाया। यहां प्रदर्शनकारियों की तादाद बहुत ज्यादा थी जबकि पुलिसकर्मी कम संख्या में मौजूद थे।
रांची के एसपी अंशुमन कुमार ने बताया कि मुस्लिम समाज के लोगों से बात हुई थी और उन्होंने शांतिपूर्ण प्रदर्शन की बात कही थी लेकिन नमाज के बाद अचानक प्रदर्शन हिंसक हो गया। प्रदर्शनकारियों ने रांची के अलबर्ट एक्का चौक पर स्थित एक हनुमान मंदिर को निशाना बनाया। पहले मंदिर पर पत्थर फेंके गए और फिर कुछ लोगों ने मंदिर के अंदर जाकर तोड़फोड़ की। जिस वक्त मंदिर पर हमला हुआ उस वक्त वहां 3-4 पुजारी मौजूद थे लेकिन वो भीड़ के डर से अपनी जान बचाकर भाग गए।
हैरानी इस बात को लेकर है कि रांची में इतना हंगामा होने और धारा 144 लगने के बावजूद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के तेवरों में जो सख्ती दिखनी चाहिए थी, वो नहीं दिख रही है। हेमंत सोरेन कह रहे हैं कि हमें सिर्फ हिंसा की बात नहीं करनी चाहिए, हिंसा क्यों हुई..इस पर भी ध्यान देना चाहिए। मुख्यमंत्री का काम लेक्चर देना नहीं होता, उनका काम कानून का राज स्थापित करना होता है। अगर अपने राज्य के पुलिस वाले का रोना सुनकर भी हेमंत सोरेन की नींद नहीं टूटती, अगर उन्मादी भीड़ के खिलाफ एक्शन लेने का आदेश देने की हिम्मत हेमंत सोरेन नहीं जुटा पाते तो फिर ऐसे मुख्यमंत्री का क्या काम ? जो लोग अल्लाह और पैगंबर के नाम पर हंगामा, खून-खराबा, आगजनी और मंदिरों पर हमला करें, उनके लिए सही जगह जेल ही है। अगर हेमंत सोरेन इन दंगाइयों को जेल में डालने की हिम्मत नहीं दिखाते तो ये शर्मानक होगा।
रांची में जो हुआ वो कोई हिन्दुस्तानी बर्दाश्त नहीं करेगा। हेमंत सोरेन को इन लोगों के साथ सख्ती बरतनी चाहिए। एक बात तो साफ है कि ये सब स्वत:स्फूर्त नहीं था। जुमे के दिन देशभर में प्रदर्शन का पैन इंडिया प्लान था। हैदराबाद में कई मस्जिदों के बाहर हंगामा हुआ। भारत दौरे पर आए ईरान के विदेश मंत्री शुक्रवार को हैदराबाद में थे और उन्होंने जुमे की नमाज़ हैदराबाद की ऐतिहासिक मक्का मस्जिद में पढ़ी। लेकिन, प्रदर्शन करने वालों ने विदेशी मेहमान का भी लिहाज़ नहीं किया। मक्का मस्जिद के बाहर नारेबाज़ी हुई और पुलिस पर पथराव हुआ।
तेलंगाना के महबूबनगर में तो विरोध के नाम पर हद ही पार कर दी गई। पैग़ंबर के अपमान का आरोप लगाकर प्रदर्शनकारी तिरंगा लेकर सड़कों पर उतरे थे लेकिन उन्होंने तिरंगे में अशोक चक्र की जगह कलमा लिख दिया था। पता नहीं, ऐसा करके प्रदर्शनकारी क्या मैसेज देना चाहते थे ? लेकिन, ये तो राष्ट्रीय ध्वज का अपमान है। इस तरह के प्रदर्शन की इजाज़त बिल्कुल भी नहीं दी जा सकती है। देश के हर नागरिक को विरोध करने का लोकतांत्रिक अधिकार है लेकिन तिरंगे पर कलमा लिखना राष्ट्रीय ध्वज का सरासर अपमान है। किसी राजनीतिक दल से नाराज़गी हो सकती है लेकिन तिरंगा राष्ट्र गौरव है और तिरंगे का अपमान करने का अधिकार किसी को नहीं है।
नुपुर शर्मा के बयान की हम सबने निंदा की है। लेकिन गला काटने औऱ रेप करने की बात करने का हक किसी को नहीं है। जो लोग मजहब की आड़ में शक्ति प्रदर्शन करना चाहते हैं उन्हें ये समझना पड़ेगा कि देश में कानून का राज चलेगा। मैं मानता हूं कि ज्यादातर मुसलमान अमन पसंद हैं उनके बीच में कुछ तत्व ऐसे हैं जो लोगों की भावनाओं को भड़काते हैं उनकी पहचान करके उन्हें आइसोलेट करने की जरूरत है क्योंकि ऐसे मुट्ठीभर लोगों की वजह से पूरी कौम बदनाम होती है। शुक्रवार की घटनाओं को देखने के बाद एक बात तो साफ है कि जहां-जहां पथराव और आगजनी हुई, वो पूरी प्लानिंग के तहत हुई।
आगजनी, पत्थरबाजी और हंगामे को लेकर तीन तरह के तर्क सामने आए हैं। एक, तो ये कि नुपुर शर्मा के बयान से लोगों की भावनाएं भड़की हैं। इस मामले में जो एक्शन हुआ उसे ये लोग नाकाफी मानते हैं इसलिए लोगों ने गुस्सा ज़ाहिर किया। पुलिस ने लाठी चलाई और विरोध करने से रोका इसलिए पत्थरबाजी और हिंसा हुई। यानी जो कुछ हुआ उसके लिए पुलिस दिम्मेदार है। दूसरा तर्क ये दिया जा रहा है कि मौलानाओं और इमामों ने लोगों को इकट्ठा होने के लिए मना किया था। विरोध प्रदर्शन करने वाले बाहर से बड़ी तादाद में आए इसलिए दंगा हुआ। ये लोग कौन थे ? कहां से आए ? ये पुलिस बताए। पुलिस की इंटेलिजेंस फेल हो गई। यानी इसके मुताबिक भी पुलिस जिम्मेदार है। वहीं एक तीसरे ग्रुप का तर्क ये है कि मुसलमानों को बदनाम करने के लिए पुलिस ने पथराव करवाया। तीनों मामलों में सारी जिम्मेदारी पुलिस पर डाल दी गई। लेकिन मुझे नहीं लगता कि ऐसी बातों पर कोई यकीन करेगा।
सच तो ये है कि पुलिस ने संयम बरता। हर राज्य में पुलिस ने कम से कम फोर्स का इस्तेमाल किया। पुलिस की बेबसी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कई जगह बच्चों को ढाल बनाया गया। आप सोच सकते हैं कि अगर पुलिस की लाठी से कहीं एक बच्चे की भी मौत हो जाती तो कितना बड़ा मुद्दा बनता। सच तो ये है कि पत्थर चले, बड़ी संख्या में पुलिसवालों को चोट लगी, तिरंगे का अपमान हुआ और इस सबके पीछे सोशल मीडिया में चला कैम्पेन था। लोगों को भड़काने के लिए व्हाट्सऐप मैसेज भेजे गए। अब जरूरत इस बात की है कि ऐसे सभी लोगों की पहचान करके सबक सिखाया जाए। इस बात का भी ध्यान रखने की जरूरत है कि कोई बेकसूर, कोई बेगुनाह इसका शिकार ना हो।