शुक्रवार रात को ‘आज की बात’ शो में इंडिया टीवी ने खबरें दिखाई कि कैसे पुलिस ने गुजरात, ओडिशा, महाराष्ट्र और तेलंगाना में तस्करों से गाएं बरामद की। पुलिस के मुताबिक, अगले हफ्ते बकरीद पर कुर्बानी के लिए सैंकड़ों गायों को पिक-अप ट्रक और कंटेनर में भरकर ये तस्कर इन्हें ले जा रहे थे। सबसे ज्यादा शर्मनाक बात ये थी कि तस्करों ने अपनी गाड़ियों में गायों को अमानवीय तरीके से ठूंस कर रखा था। जब इन ट्रकों से गायों को उतारा गया तो उनमें बहुत सी गायें नीम बेहोशी की हालत में थी ।
ओडिशा के बालेश्वर जिले में पुलिस ने गुरुवार रात को 11 गोतस्करों के कब्जे से 77 गायों को बरामद किया, 8 पिकअप वैन में 77 गायों को भरा गया था, 20 गायों को ट्रक में भूसे की तरह भरा गया था। जिनमें कईं फर्श पर पड़ी थीं। इस सिलसिले में 11 तस्करों को गिरफ्तार किया गया है। इन लोगों ने कबूल किया कि बकरीद के मौके पर कुर्बानी के लिए गायों को ले जाया जा रहा था।
गुजरात में पुलिस ने स्थानीय एनजीओ की मदद से वडोदरा, भरूच और वलसाड में गायों को कसाइयों के चंगुल से छुड़ाया। भरूच में तस्कर गायों को कंटेनर में भरकर ले जा रहे थे । उन्हें जीव दया फाउंडेशन के कार्यकर्ताओं की मदद से छुड़ाया गया। ड्राइवर ने हाईवे पर कंटेनर को भगाने के लिए स्पीड बढ़ाई तो पुलिस ने ट्रक का पीछा किया और फोर्स बुलाई। इसके बाद जाकर हाईवे पर गायों से भरे कंटेनर को पकड़ा गया। वलसाड में स्थानीय गोरक्षक दल ने पांच गायों और एक बछड़े को ले जाने वाले तस्करों को पकड़ने में पुलिस की मदद की। इन गायों को महाराष्ट्र ले जाया जा रहा था।
महाराष्ट्र के अमरावती में स्थानीय बजरंग दल कार्यकर्ताओं को जैसे ही खबर मिली कि पिक-अप ट्रक में 12 गायों को भरकर ले जा रहे हैं तो उन्होंने सड़क रोक दी। रेहान नाम के ड्राइवर ने बचने के लिए ट्रक को डिवाइडर से भिड़ा दिया लेकिन पकड़ा गया। 22 जुलाई को अमरावती ग्रामीण पुलिस ने ट्रक में 12 गायों को भरकर ले जाते हुए 2 लोगों को मध्य प्रदेश सीमा के पास गिरफ्तार किया। इन गायों को गोकशी के लिए तस्कर नागपुर लेकर जा रहे थे। अमरावती जिले में ही पिछले 2 हफ्तों के दौरान 200 से ज्यादा गायों को कटने से बचाया गया है।
तेलंगाना के करीमनगर जिले में जिला कलेक्टर और पुलिस कमिश्नर ने मुस्लिम समुदाय के बीच एक ऑडियो क्लिप जारी किया है जिसमें मौलाना मुस्लिमों से बकरीद पर गाय नहीं काटने की अपील कर रहा है, क्योंकि गोकशी कानूनी जुर्म है। मौलाना मुसलमानों से कह रहे हैं कि वे बकरीद के समय हिंदू समुदाय की भावनाओं का आदर करें।
महाराष्ट्र में सरकार ने गाइडलाइन जारी कर मुस्लिम समुदाय से बकरीद की नमाज़ घर में पढ़ने के लिए कहा है क्योंकि कोरोना की वजह से धार्मिक आयोजनों पर पाबंदी है। राज्य सरकार ने मुस्लिम समुदाय से कुर्बानी के लिए बकरे ऑनलाइन खरीदने की सलाह दी है क्योंकि पशु मंडी में भीड़ जुटाना प्रतिबंधित है। राज्य सरकार ने मुस्लिम समुदाय से बकरीद पर ‘प्रतीकात्मक कुर्बानी’ की अपील भी की है। हालांकि कांग्रेस के मंत्री नसीम खान ने इन गाइडलाइन पर आपत्ति जताई है और इसे अल्पसंख्यकों के धार्मिक मसलों में दखल बताया है। मुंबई की रजा अकेडमी के उपाध्यक्ष मौलाना सईद नूरी ने कहा कि बकरीद पर कुर्बानी होकर रहेगी, उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी सोसाइटी में बकरों की कुर्बानी देंगे, उन्होंने ऑनलाइन बकरों की खरीदारी पर भी सवाल खड़े किए।
हमारे संविधान में गाय से जुड़े कानून सिर्फ राज्य विधानमंडल ही बना सकते हैं। अभी तक 20 राज्यों में गोहत्या के खिलाफ सख्त कानून है जबकि 8 राज्यों यानि पश्चिम बंगाल, केरल, असम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा में गोहत्या पर पाबंदी नहीं है।
पिछले 4 साल के दौरान अधिकतर राज्यों ने गोहत्या के खिलाफ कानून को सख्ती से लागू किया है और काफी हद तक गोहत्या पर लगाम लगी है। लेकिन बकरीद से पहले अचानक इस तरह से गौतस्करी का बढ़ना चिंता की बात है। ऐसे समय में प्रशासन को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। हालांकि बड़ी बात ये है कि देश के कई बड़े मौलवियों और उलेमा ने बकरीद पर गाय की कुर्बानी न करके हिंदुओं की धार्मिक भावना का आदर करने की अपील की है।
देश में धार्मिक भाईचारा बनाए रखना समय की मांग है। लेकिन समाज में ऐसे असामाजिक तत्व हैं जो बकरीद के दौरान गोहत्या करके शांति भंग करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे प्रयासों को पैदा होने से पहले ही खत्म कर दिया जाना चाहिए। तर्क ये दिया जाता है कि बकरा बहुत महंगा होता है और जो गाय दूध देना बंद कर देती हैं, किसान उन्हें सस्ते में बेच देते हैं, इसलिए गोवध को मान्यता देनी चाहिए। मुंबई, हैदराबाद, भोपाल जैसे की बड़े शहरों में कई ऐसे नेता सामने आए, जिन्होने इस मसले पर सियासत करते हुए बकरीद के त्योहार को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की।
देश में बहुत सारे ऐसे मौलाना, उलेमा हैं जो इस बात से सहमत हैं कि कोरोना महामारी के कारण इस बार हालात असामान्य हैं और मुस्लिम समुदाय को भी असमान्य कदम उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए, जैसे ईद के दिन घरों में नमाज़ पढ़ना, प्रतीकात्मक कुर्बानी देना, मस्जिदों में भीड़ न करना, आदि। मुसलमानों ने पिछले साल बकरीद मनाई थी और अगले साल भी मनाएंगे, लेकिन इस साल उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करना चाहिए और बड़े सार्वजनिक समारोह से बचना चाहिए।
कोरोना महामारी की वजह से पहले ही जम्मू-कश्मीर में इस साल अमरनाथ यात्रा रद्द कर दी गई है, सालाना हज यात्रा भी रोक दी गई है। ऐसे हालात में जो नेता ये कह रहे हैं कि मुसलमानों को मस्जिद में जाकर ईद की नमाज पढ़नी चाहिए और सार्वजनिक तौर पर कुर्बानी देनी चाहिए , वे कतई मुसलमानों का, समाज का और मुल्क का भला चाहने वाले नहीं हो सकते। ऐसे लोग अपने ही समुदाय के साथ अन्याय कर रहे हैं।
खतरनाक कोरोना वायरस हिंदू, मुस्लिम, सिख या इसाई नहीं देखता। अपने हित के लिए मुस्लिम समुदाय बकरीद के दिन भीड़ में इकट्ठा होकर नमाज पढ़ने से परहेज करें। हम सब ऐहतियात बरतें, इसी में भलाई है। क्योंकि कोरोना से बच गए तो बकरीद अगले साल भी आएगी, अगले साल कुर्बानी भी दे पाएंगे। वरना ये बकरीद तो मना लेंगे, मनमानी कर लेंगे, लेकिन अपने साथ-साथ पूरे परिवार को, पूरे समाज को मुसीबत में डाल देंगे।