केजरीवाल, भ्रष्टाचार और मोदी
शराब घोटाले के केस में अरविंद केजरीवाल ED के सामने पेश नहीं हुए. उन्होंने ED के समन को मानने से इनकार कर दिया. ED के नोटिस को केजरीवाल ने राजनीति से प्रेरित बताया. ED के सवालों के जवाब देने के बजाये उन्होंने ED पर तमाम तरह के सवाल पूछे. केजरीवाल ने पूछा कि आपने मुझे मुख्यमंत्री के तौर पर बुलाया या आम आदमी पार्टी के संयोजक के तौर पर. केजरीवाल ने पूछा आपने मुझे विटनेस के तौर पर बुलाया या आरोपी के तौर पर. केजरीवाल ने ED की नीयत पर सवाल उठाए और पूछा कि ED ने इंफोर्मेशन बीजेपी नेताओं को क्यों लीक की? केजरीवाल ने ED से समन वापस लेने को कहा और ये चिट्ठी भेजने के बाद वो चुनाव प्रचार के लिए मध्य प्रदेश के सिंगरौली में रोड शो करने सीएम भगवंत मान के साथ गए. वहां केजरीवाल ने लोगों से कहा कि उन्हें नहीं मालूम कि वो कब तक बाहर हैं, तीन दिसंबर को जब वोटों की गिनती होगी, उस दिन जेल में होंगे या जेल से बाहर, वो नहीं कह सकते. बीजेपी के नेताओं ने केजरीवाल को डरपोक कहा, किसी ने भगोड़ा कहा, किसी ने कहा कि केजरीवाल ED के सवालों से भाग रहे हैं क्योंकि उनके पास जवाब नहीं है. दूसरी तरफ इंडिया एलायन्स की पार्टियां केजरीवाल के पक्ष में खुलकर सामने आईं. अखिलेश यादव ने कहा, बीजेपी जांच एजेंसियों का इस्तेमाल करके विरोधियों को जेल में डाल रही है. तेजस्वी यादव ने कहा कि जो भी सरकार अच्छा काम करती है, बीजेपी उसके पीछे ED और CBI को लगा देती है लेकिन पंजाब के कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा शराब घोटाला तो हुआ है और केजरीवाल ने इसे पहले दिल्ली में किया और फिर पंजाब में किया, लेकिन ये मामला कितना संगीन है इसके पीछे की राजनीति कितनी गहरी है..इसका इशारा गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया. छत्तीसगढ़ के कांकेर में एक रैली को संबोधित करते हुए नरेन्द्र मोदी ने कहा कि कोई कितना भी ताकतवर हो, कितने भी बड़े पद हो, कितना भी बड़ा नेता हो, अगर भ्रष्टाचार किया है, अगर जनता का पैसा खाया है, तो लूट का माल लौटाना ही पड़ेगा, जेल जाना ही पड़ेगा. मोदी ने सीधे सीधे न केजरीवाल का नाम लिया, न शराब घोटाले की बात की. लेकिन उन्होंने आखिर में जो वाक्य जोड़ा कि ‘दिल्ली वालों तक ये आवाज पहुंचनी चाहिए’, इसका मतलब साफ था. अब सवाल ये है कि मोदी ने छत्तीसगढ़ में दिल्ली की बात क्यों की. मैं आपको बता दूं कि छत्तीसगढ़ में भी भूपेश बघेल की सरकार पर भी शराब घोटाले का इल्जाम है. दिल्ली में भी शराब घोटाले के केस में केजरीवाल की पार्टी के तीन बड़े नेता पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं और अब केजरीवाल को नोटिस मिला है. इसीलिए मोदी ने पहले घोटालों की बात की, भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया, फिर कहा कि जनता का पैसा खाने वालों को लूट का माल भी लौटना पड़ेगा और जेल भी जाना पड़ेगा. मोदी के इस हमले का असर तुरंत सभी विरोधी दलों पर दिखा. अखिलेश यादव ने कहा कि इसमें तो कोई शक नहीं है कि बीजेपी जांच एजेंसियों के ज़रिए विरोधियों को परेशान कर रही है, उन्हें जेल में डाल रही है. जो यूपी में आजम खान के साथ हुआ अब वही दिल्ली में केजरीवाल के साथ हो रहा है, जो भी इस सरकार के ख़िलाफ़ बोलता है, उस पर बीजेपी केस कर देती है, अब चुनाव में जनता इसका जवाब देगी. बिहार से RJD नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि विपक्ष की कोई भी सरकार अच्छा काम करती है, तो बीजेपी उसके पीछे ED, CBIस आयकर विभाग को लगा देती है, आज दिल्ली में ये हो रहा है, कल बिहार में भी होगा क्योंकि बीजेपी असली मुद्दों पर बात नहीं करना चाहती. शिवसेना उद्धव गुट के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा कि किसी भी नेता को ED नोटिस से घबराना नहीं चाहिए, विपक्ष के सारे नेताओं को समझना होगा कि अगले एक साल तक ऐसे नोटिस आते रहेंगे. दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस का कोई बड़ा नेता केजरीवाल का न समर्थन कर रहा है, न विरोध. कांग्रेस के नेता खामोश हैं लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू ने साफ साफ कह दिया कि घोटाला तो हुआ है, अफसरों ने गवाही दी है, ब्लैक लिस्टेड कंपनियों को शराब के ठेके दिए गए. सिद्धू ने कहा कि केजरीवाल ने शराब घोटाले का हुनर केसीआर से सीखा, पहले उसको दिल्ली में लागू किया, फिर पंजाब में, ऐसे में उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी ही चाहिए. जिस वक्त केजरीवाल मध्य प्रदेश में रोड शो कर रहे थे, उस वक्त दिल्ली में केजरीवाल सरकार के मंत्री राजकुमार आनंद के घऱ पर ED की रेड चल रही थी. राजकुमार आनंद के सरकारी घर समेत कुल 12 जगहों पर छापे पड़े. आनंद पर हवाला के ज़रिए सात करोड़ रुपए का घोटाला करने का इल्ज़ाम है. इस मामले में राजस्व जांच निदेशालय ने जांच करके चार्जशीट दाख़िल कर दी थी. दिल्ली की कोर्ट ने इसका संज्ञान भी ले लिया था. उसके बाद ही ED ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत केस दर्ज करके आनंद के ख़िलाफ़ जांच शुरू की. आनंद दिल्ली के पटेल नगर से विधायक हैं और दिल्ली सरकार में सामाजिक न्याय मंत्री हैं. अगर विरोधी दलों के उन नेताओं की सूची देखें, जिनके खिलाफ ED ने केस फाइल किए हैं तो केजरीवाल की बात ठीक लगेगी कि सरकार विरोधी दलों के सारे नेताओं को जेल में डाल देगी और 2024 का चुनाव अकेले लड़ेगी. केजरीवाल राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं. वो आसानी से हार मानने वालों में नहीं हैं. वो हमेशा बाजी पलटने की कोशिश करते हैं. उनकी पार्टी के लोग कह रहे हैं कि ED ने पिछले 9 साल में 5000 केस फाइल किए, इनमें से 95% केस विरोधी दलों के नेताओं और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ हैं और कन्विक्शन रेट (सज़ा अनुपात) 0.5 प्रतिशत है. ये सब बातें सुनने में विश्वसनीय लग सकती है लेकिन कहावत है- ‘सौ सुनार की, एक लुहार की’. नरेंद्र मोदी ने आज कहा और वो पहले भी कई बार कह चुके हैं कि जो भ्रष्टाचार करेगा, वो जेल जाएगा. मोदी बार बार कहते हैं, ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’, और भ्रष्टाचार के मामले में कोई समझौता नहीं होगा. ये बात सही भी है. नरेंद्र मोदी इस मामले में किसी की नहीं सुनते. वो अपनी राजनीतिक नफा-नुकसान के बारे में भी विचार नहीं करते. उनके लिए भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा है. पहले दिन से ही उन्होंने बैंक लूटने वालों, घोटाला करने वालों, पब्लिक का पैसा जेब में डालने वालों के खिलाफ कार्रवाई की है. और वो साफ साफ कहते हैं कि कोई कितना भी प्रभावशाली हो, अगर वो भ्रष्टाचार करेगा तो वो उसे छोड़ेंगे नहीं. अगर ये मोदी की ताकत है, तो आज के ज़माने में ये मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती भी है. क्योंकि 2024 के चुनाव के लिए जो विरोधी दल इकट्ठा हुए हैं, उसकी वजह सिर्फ ED और CBI के मामले हैं. इन दोनों एजेंसियों ने बीजेपी के लिए कुछ किया हो या ना किया हो, विपक्ष की बड़ी मदद की है. सारे मोदी-विरोधी दलों को ED के सूत्र में बांध दिया है. अब राजनीति के विशेषज्ञ इस बात का विश्लेषण करने में लगे हैं कि ED और CBI के मामलों से चुनाव में मोदी को फायदा होगा या नुकसान.
Get connected on Twitter, Instagram & Facebook
महाराष्ट्र में मराठा, OBC आरक्षण को लेकर सियासत
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन की आग अब बढ़ती जा रही है. बीड़, धाराशिव, संभाजीनगर, पुणे, मुंबई के बाद अब नागपुर, नासिक में भी प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. दूसरी तरफ सरकार की कोशिश जारी हैं. बुधवार को सर्वदलीय बैठक हुई, सभी पार्टियां इस मुद्दे पर एक राय हैं कि पूरे मराठा समुदाय को आरक्षण मिलना चाहिए. सरकार भी इसके लिए तैयार है लेकिन मुश्किल ये है कि ये काम तुरंत नहीं हो सकता. इसको करने में वक्त लगेगा और आमरण अनशन पर बैठे मनोज जरांगे और उनके साथी वक्त देने को तैयार नहीं हैं. मनोज जरांगे ने एलान कर दिया है कि अगर सरकार ने आरक्षण के मुद्दे पर कोई पक्का फैसला नहीं किया तो वो पानी पीना भी छोड़ देंगे. सरकार ने उनसे जिद छोड़ने की अपील की है. मनोज जरांगे का कहना है कि अगर सरकार मराठा समुदाय को तुरंत पिछड़ी जाति में शामिल करके आरक्षण नहीं दे सकती तो सभी मराठों को फिलहाल कुनबी जाति का सर्टिफिकेट जारी करने का आदेश दे, जिससे पिछड़ी जाति के कोटे से उन्हें आरक्षण मिलना शुरु हो जाए. सरकार इसके लिए तैयार है. सभी जिला अधिकारियों को इसके निर्देश दिए गए हैं कि वो पुराना रिकॉर्ड निकालें, पुराने दस्तावेज जमा करें, जिससे मराठों का कुनबी प्रमाणपत्र जारी किया जा सके. ये रास्ता मुश्किल है. पिछड़े वर्ग के नेताओं ने कहना शुरू कर दिया कि वो मराठों को आरक्षण देने के पक्ष में तो हैं, लेकिन ये काम दूसरी जातियों का हक मारकर नहीं होना चाहिए. मुसीबत ये है कि सरकार आरक्षण की सीमा को वो पचास प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा नहीं सकती. अगर ऐसा करती है तो आंदोलन तो खत्म हो जाएगा लेकिन आरक्षण का मसला एक बार फिर कोर्ट में अटकेगा. इसीलिए मुख्यमंत्री एकनाथ शिन्दे ने कहा कि सरकार ऐसा रास्ता निकालना चाहती है जिससे मराठों को पक्का आरक्षण मिले, मामला कोर्ट कचहरी के चक्कर में न फेंसे, ये बात आंदोलनकारियों को समझनी चाहिए. शिन्दे ने कहा कि सरकार आंदोलन के खिलाफ नहीं हैं लेकिन आंदोलन की आड़ में हिसा को बर्दाश्त नहीं करेगी, ये बात आंदोलनकारियों को ध्यान में रखनी चाहिए. अब सवाल ये है कि रास्ता क्या निकलेगा? आंदोलन खत्म कैसे होगा? मराठों को आरक्षण मिलेगा या नहीं? मिलेगा तो कब मिलेगा? कितना वक्त लगेगा और क्यों लगेगा? आरक्षण देने में कानूनी अड़चनें क्या हैं? सर्वदलीय बैठक में शरद पवार ने सलाह दी कि सरकार जल्दी से जल्दी उन सभी कमियों को पूरा करे, उन जरूरी शर्तों को पूरा करे जिनके कारण पिछली बार सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर रोक लगा दी थी. बैठक में सभी पार्टियों ने हिंसा पर चिंता जताई और आंदोलनकारियों से संयम बनाए रखने की अपील की. सभी नेताओं ने मनोज जरांगे पाटिल से अनशन खत्म करने की मांग की, लेकिन शाम को जरांगे ने इस अपील को ठुकरा दिया. मनोज जरांगे ने सरकार को वक्त देने से इंकार कर दिया. कहा कि पिछली बार सरकार ने 30 दिन मांगे थे, 40 दिन दिए, अब एकनाथ शिंदे आएं और बताएं कि उन्होंने 40 दिन में क्या किया? मनोज जरांगे ने कहा कि अब मराठा आरक्षण लागू होने से पहले वो अपना अनशन नहीं तोड़ेंगे, सरकार विधानसबा का विशेष सत्र बुलाए और आरक्षण का कानून पास करे. विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग पर सर्वदलीय बैठक में महाराष्ट्र के एटवोकेट जनरल वीरेंद्र सराफ ने कहा कि अगर विशेष सत्र बुलाया भी जाता है तो इससे कोई रास्ता नहीं निकलेगा क्योंकि इस मामले में राज्य सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती. अब सवाल ये है कि अगर राज्य सरकार तुरंत कुछ नहीं कर सकती, विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने से कुछ नहीं होगा, तो फिर रास्ता क्या है? यहां आकर बात अटकती है, और सियासत यहीं से शुरू होती है. अब इस मामले में केन्द्र सरकार का लपेटा जा रहा है. कहा जा रहा है कि केन्द्र सरकार चाहे तो मराठों को तुरंत आरक्षण मिल सकता है. मोदी सरकार कानून बनाकर रक्षण की अधिकतम सीमा पचास प्रतिशत से ज्यादा कर दे. विपक्ष के नेता सरकार के साथ होने का दावा भी कर रहे हैं और सरकार पर हमले भी कर रहे हैं. दूसरी तरफ सरकार के सामने मुश्किल ये है कि वह मराठा आरक्षण के खिलाफ बोल नहीं सकती और इस मुद्दे को लेकर जो हिंसा हो रही है, उसे भी रोकना जरूरी हैं. हालांकि ये सही है कि महाराष्ट्र में पिछले तीन दिन में काफी हिंसा हुई लेकिन सरकार के सख्त रूख के बाद हिंसा और आगजनी की खबरें आनी बंद हो गई. हालांकि प्रदर्शन हो रहे हैं, आंदोलन चल रहा है और बुधवार को कई नए इलाकों में प्रदर्शन हुए. सारे नेता ये कहकर बात शुरू करते हैं कि ये मुद्दा राजनीति का विषय नहीं है लेकिन उसके बाद सभी राजनीति ही करते हैं. हालांकि ये बात तो साफ है कि शिंदे सरकार ने मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन करने वालों से 30 दिन मांगे थे, उन्होंने 40 दिन दिए लेकिन शिंदे साहब इस मामले में तैयारी नहीं कर पाए. इसी तरह सर्वदलीय बैठक बुलाने में भी उन्होंने देर की. अगर ये काम पहले करते तो हिंसा से बचा जा सकता था. लेकिन ये भी सही है कि इस बार मराठा आरक्षण के आंदोलन को हवा देने का काम शरद पवार और उनकी पार्टी के नेताओं ने किया. उनकी मंशा इस मामले में केंद्र सरकार को फंसाने की है. इसीलिए उनके लोग बार बार कह रहे हैं कि अगर मराठाओं को कोई आरक्षण दे सकता है तो केंद्र सरकार दे सकती है. वो एक तीर से दो शिकार करना चाहते हैं. शरद पवार और उनकी तरह के बाकी नेता जो मराठा आरक्षण के आंदोलन को हवा दे रहे हैं, उनकी नजर मराठों के 15 % वोटबैंक पर है लेकिन पिछले दो दिन में उन्हें एहसास हुआ है कि अगर उन्होंने सिर्फ मराठों पर इतना जोर दिया तो पिछड़े वर्ग में रिएक्शन हो जाएगा. ऐसी जातियों की संख्या 50% से ज्यादा है. तो सियासत का तकाज़ा तो ये है कि 15% के चक्कर में 50 परसेंट को नाराज नहीं किया जा सकता. अब तो पिछड़े वर्ग के नेताओं ने अपना हक मांगने की बात शुरू कर दी है. इसीलिए ये मामला और उलझ गया है. लगता है कि एकनाथ शिंदे के पास इस मामले को सुलझाने की न समझ है और न अनुभव. वो किसी तरह पूरे मामले को टालने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है. इसे टाला नहीं जा सकता.
MARATHA AND OBC POLITICS ON THE BOIL
The state-wide agitation for Maratha OBC reservation quota has intensified across Maharashtra with protest rallies being held in Pune, Nagpur, Nashik and several other district towns. The stir has now spread to rural areas. The leader of the agitation Manoj Jarange on Wednesday night turned down an all-party appeal to call off his ‘fast unto death’, saying that the agitation has already reached a ‘do or die’ situation and he would not step back at any cost. Jarange said his indefinite hunger strike will continue till the entire Maratha community is recognized as Kunbi and included in OBC category for reservation. A Maratha youth Sumit Mane, who was handed over the first Kunbi certificate by Dharashiv district collector, came out of the collectorate and set the certificate on fire in front of a crowd. On Wednesday, Maratha protesters blocked the Nashla-Chhatrapati Sambhajinagar Road in Yeola taluka and the Solapur-Nanded highway by setting tyres on fire. Similar road blockades were organized in Jalna and Hingoli. All internet services were suspended in nine tehsils of Chhatrapati Sambhajinagar district for 48 hours in the wake of arson, protests and rioting in rural areas of the district over the last two days. Already, internet has been suspended in Beed and Jalna districts since Tuesday after large-scale violence. Section 144 prohibitory order has been clamped indefinitely in Sambhajinagar, Beed, Dharashiv and Nanded districts. Chief Minister Eknath Shinde has sought more time to fulfil Jarange’s demand after an all-party meeting on Wednesday. The all-party meeting adopted a resolution in favour of Maratha reservation, but said it should have legal standing and all parties should cooperate in this endeavour. It also condemned large-scale violence that has taken place since Monday. At the all-party meeting, NCP chief Sharad Pawar suggested that the state government should fix all legal loopholes and fulfil necessary conditions to avoid quashing of its decision in the Supreme Court. Eknath Shinde said, his government wants to give “permanent reservation” to Maratha community, but it requires times and patience. NCP-Ajit faction leader Chhagan Bhujbal said at the meeting that while giving OBC reservation to Marathas, care must be taken to ensure that the claims of other OBC communities are not affected adversely. Manoj Jarange rejected the all-party appeal saying he had already given 40 days’ time, and it is up to the chief minister to come and tell what his government did in the last 40 days. He demanded that a special assembly session be called and a bill granting OBC status to entire Maratha community be adopted. Meanwhile, on the ground level, reports about arson and violence have stopped coming in after the state administration has taken a hard stance after suspension of internet services. The state government has filed more than 141 FIRs and arrested 164 agitators. Manoj Jarange is angry and has demanded their release. He says, Marathas are fighting for their rights, and acts of violence are being engineered to bring a bad name to the agitation. Political leaders in Maharashtra have been saying all along that quota issue should not be politicized, but the same leaders are doing politics over this issue. It is true Eknath Shinde government had sought 30 days’ time from Jarange, and he was given 40 days’ time, but Shinde could not adhere to the timeline. He also delayed calling the all-party meeting. Had he called the meeting earlier, violence could have been avoided. It is also true that Sharad Pawar and his party leaders are trying to fan the agitation over Maratha reservation issue. Their aim is to put the Centre in a bind. Leaders of Sharad Pawar’s party have been time and again saying that only Centre can grant OBC status to Maratha community. There is a two-fold move behind this. Sharad Pawar and his faction leaders are eyeing 15 per cent Maratha vote bank. In the last two days, they have realized that too much emphasis on Marathas could also cause reactions among other backward castes, who number more than 50 per cent. Politically, 50 per cent voters cannot be kept unhappy while seeking the support of 15 per cent voters. Already, other backward caste leaders have started demanding their share of the reservation pie. The entire issue has now become vexed and complicated. Eknath Shinde lacks the expertise and experience to resolve this ticklish issue. He is trying to gain time by shelving the matter. Already, it is too late and the problem cannot be brushed under the carpet.
Apple iPhone हैकिंग एलर्ट की तह तक जांच हो
एक बार फिर विरोधी दलों ने सरकार पर स्नूपिंग यानी जासूसी का इल्जाम लगाया है. मंगलवार को दिन भर इस मुद्दे को लेकर सियासत हुई. दिल्ली से लेकर हैदराबाद तक, मुंबई से लेकर लखनऊ तक, अहमदाबाद से लेकर कोलकाता तक, विरोधी दलों के नेताओं की प्रेस कॉन्फ्रेंस हुईं. सब ने कहा कि नरेन्द्र मोदी की सरकार विरोधी दलों के नेताओं के फोन टैप करवा रही है. फोन हैक करवा रही है और इन सारे इल्जामात के पीछे एप्पल कंपनी की तरफ से भेजा गया एक ई-मेल था, जिसमें एप्पल का फोन इस्तेमाल करने वाले नेताओं से कहा गया कि “ रिमोटली उनके फोन को हैक करने की कोशिश की गई. ‘स्टेट स्पॉन्सर्ड हैकर्स’ ने उनके फोन को निशाना बनाने की कोशिश की है. हैकर्स आपके फोन के जरिए आपके कैमरा, माइक्रोफोन और दूसरी संवेदनशील जानकारी तक पहुंच सकते हैं.” हालांकि इसी मैसेज में एप्पल ने भी कहा है कि ये एलर्ट गलत भी हो सकता है, लेकिन सावधान रहने की जरूरत है. ये मैसेज कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खर्गे, शशि थरूर, सुप्रिया श्रीनेत, पवन खेड़ा के अलावा AIMIM चीफ असद्दुदीन ओवैसी, सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव, AAP सांसद राघव चड्ढा, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा, शअवसेना (उद्धव) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी और CPI-M नेता सीताराम येचुरी समेत तमाम नेताओं को आया. जैसे ही ये नोटिफिकेशन मिला, इन सारे नेताओं ने उसे सोशल मीडिया पर शेयर करके सरकार पर हमले शुरू कर दिए. कांग्रेस नेता राहुल गांधी को नोटिफिकेशन मिला या नहीं, ये तो उन्होंने नहीं बताया, लेकिन सबसे पहले इस मुद्दे पर उन्होंने सरकार पर हमला किया. राहुल ने कहा कि सरकार डर गई है, तानाशाह विपक्ष की एकता से परेशान हो गया है, इसलिए अब सरकारी ताकत विरोधी दलों की जासूसी में लगाई जा रही है. राहुल ने कहा कि वो डरने वाले नहीं हैं. ओवैसी ने शायरी के जरिए मोदी सरकार पर हमला किया, लिखा, खूब पर्दा है कि लगे चिलमन से बैठे हैं, साफ छुपते भी नहीं, सामने आते भी नहीं. अखिलेश यादव ने लोकतन्त्र को खतरे में बताया, महुआ मोइत्रा ने इसे सरकार का डर बताया. तमाम रिएक्शन्स आए. सरकार की तरफ से IT मंत्री अश्विनी वैष्णव ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया, इस मामले की जांच CERT-IN से कराने के आदेश दे दिए. एप्पल ने कहा कि उसकी तरफ़ से जो एलर्ट भेजा गया है, वो किसी खास देश की सरकार को लेकर नहीं है, 150 देशों में एप्पल के यूज़र्स को ये मैसेज, अलग अलग समय पर भेजा गया है. ये भी हो सकता है कि ये Algorithm की ग़लती हो या फिर फॉल्स एलर्ट हो. एप्पल ने कहा कि कुछ लोगों की पहचान या फिर उनके काम की वजह से वो हैकर्स के निशाने पर रहते हैं, जब भी एप्पल को फ़ोन पर ऐसी संदिग्ध गतिविधियां दिखती हैं, तो वो अपने यूज़र को एलर्ट भेजता है, लेकिन एप्पल ये पक्के तौर पर दावा नहीं कर रहा है कि जासूसी के पीछे किसी सरकार का ही हाथ है. बड़ी बात ये है कि कुछ महीने पहले जब दुनिया के दूसरे हिस्सों में यूजर्स को एप्पल की तरफ से इसी तरह का एलर्ट मिला था, उस वक्त भी एप्पल से इसके बारे में सवाल पूछे गए थे. उस वक्त 22 अगस्त को बिल्कुल यही बात एप्पल ने अपनी वेबसाइट पर जारी एक बयान में कही थी. मंगलवार को भी एप्पल ने वही कहा. विपक्ष के नेताओं ने कहा, सवाल ये है कि एप्पल का एनक्रिप्शन सबसे मज़बूत होता है, फिर कैसे हैकिंग हो रही है? आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज ने सवाल उठाया कि आख़िर इस तरह का मैसेज किसी बीजेपी सांसद या नेता को क्यों नहीं आया. सौरभ भारद्वाज ने कहा कि हार के डर से परेशान बीजेपी अब विपक्ष की रणनीति जानने के लिए जासूसी पर उतर आई है, ये लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक है. राहुल गांधी हर बात को अडानी से जोड़ते हैं. मंगलवार को भी उन्होंने यही किया. कहा, अडानी के राज़ खुलने के कारण सरकार विपक्ष के नेताओं की जासूसी करवा रही है, सरकार अडानी के मुद्दे से लोगों का ध्यान हटाना चाहती है, सरकार लोगों को डराना चाहती है, लेकिन वो डरेंगे नहीं. भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा, राहुल गांधी को पहले तो एप्पल से सवाल करना चाहिए कि ये क्या मैसेज है और एप्पल के जवाब से तसल्ली न हो तो FIR करा दें. रविशंकर प्रसाद ने कहा कि राहुल गांधी ने तो पेगासस मामले में भी जासूसी का आरोप लगाया था लेकिन उन्होंने जांच में सहयोग करने से मना कर दिया था. अखिलेश यादव ने कहा, ये सब देश में लोकतन्त्र का खत्म करने की साजिश है, जब से बीजेपी की सरकार आई है, वो जासूसी ही करवा रही है. अखिलेश यादव ने कहा कि विरोधी दलों की जासूसी करवाने से बीजेपी को कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि कितने लोगों की जासूसी करवाएगी, पूरा देश ही बीजेपी के खिलाफ है. केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि जो लोग एप्पल के जवाब से संतुष्ट नहीं हैं, वो शिकायत करें, सरकार जांच कराएगी, हो सकता है कि ये मैसेज हैकर्स की तरफ़ से विपक्षी नेताओं को मज़ाक़ के तौर पर भेजा गया हो. इस मामले में नोट करने वाली पहली बात तो ये है कि जिन नेताओं के नाम हैकिंग का अलर्ट आया, वो सारे विरोधी दलों के नेता हैं और सरकार के खिलाफ खुल कर बोलते हैं, इसलिए ये शक होना लाज़मी है कि कहीं सरकार की कोई एजेंसी तो उनका फोन हैक नहीं करवा रही. दूसरी बात, लोकतंत्र में विरोधी दलों के नेताओं के फोन को टैप करना या हैक करना किसी भी तरह से सहीं नहीं माना जा सकता, लेकिन सरकार जांच करवा रही है. ये अच्छी बात है. इस मामले की तह तक जाना चाहिए. पता लगना चाहिए कि क्या वाकई में हैकिंग की कोशिश हुई या नहीं. मुझे लगता है कि एप्पल का जो मैसेज आया इस पर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली, उसके दो पहलू हैं. एक सीक्रेसी यानी प्राइवेसी का मामला और दूसरा राजनीतिक. जहां तक प्राइवेसी और सीक्रेसी का सवाल है तो ये सही है कि अगर किसी के पास भी ऐसा मैसेज आएगा, तो उसे लगेगा कि उसके फोन को हैक करने का कोशिश की गई, और अगर ये मैसेज रिसीव करने वाला विरोधी दल का नेता है तो वो यही कहेगा कि सरकार करा रही थी. लेकिन हकीकत तो यही है कि ये तो एप्पल को भी नहीं पता कि हैकर्स कौन हैं? कब हैकिंग हुई? और एप्पल ये भी कह रहा है कि इस तरह के एलर्ट यूजर्स को सावधान करने के लिए भेजे जाते हैं. जरूरी नहीं है कि जिसको एलर्ट मिले उसका फोन हैक करने की कोशिश हुई ही हो. लेकिन इस एक अलर्ट का ये असर तो हुआ है कि विरोधी दलों को नरेन्द्र मोदी पर हमला करने का एक मौका मिल गया और इस एलर्ट के चक्कर में इंडिया एलायन्स के वो सारे नेता जो अब तक एक दूसरे को आंख दिख रहे थे, वो फिर एकजुट हो गए, एक सुर में बोलने लगे.
APPLE PHONE HACKING ALERT MUST BE PROBED IN DEPTH
A political row was triggered on Tuesday when several opposition MPs said, they received alerts from Apple cautioning that their iPhone could be targeted for hacking by “state-sponsored attackers”. The alert read: “ALERT: State-sponsored attackers may be targeting your iPhone. Apple believes you are being targeted by state-sponsored attackers who are trying to remotely compromise the iPhone associated with your Apple ID. These attackers are likely targeting you individually because of who you are or what you do. If your device is compromised by a state-sponsored attacker, they may be able to remotely access your sensitive data, communications, or even your camera and microphone. While it’s possible this is a false alarm, please take this warning seriously.” These alerts were received by Congress leaders Mallikarjun Kharge, Shashi Tharoor, Supriya Shrinate, Pawan Khera, K C Venugopal, T S Singhdeo, AIMIM chief Asaduddin Owaisi, Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav, AAP leader Raghav Chadha, Trinamool MP Mahua Moitra, Shiv Sena (UT) MP Priyanka Chaturvedi and CPI(M) leader Sitaram Yechury. Most of the leaders soon took to social media to express concern and blamed Prime Minister Narendra Modi’s government for carrying out ‘surveillance’ on opposition. Congress leader Rahul Gandhi may or may not have received the alert, but he linked the issue with Adani, and alleged that the “surveillance attempt is a direct consequence of the recent expose about industrialist Gautam Adani.” Asaduddin Owaisi quoted an Urdu couplet “khoob pardah hai, ki chilman se lage baithe hain, saaf chhupte bhi nahin, saamne aate bhi nahin”. SP chief Akhilesh Yadav outrightly alleged that the Centre is carrying out surveillance of the phones of opposition leaders. Trinamool MP Mahua Moita wrote a letter to Lok Sabha Speaker seeking protection from what she called “illegal surveillance by the government using software available only to state actors”. She wrote, “This threat is doubly shocking in the light of Pegasus software (sold only to governments) that was used to compromise the devices of various members of opposition”. The ministry of electronics and information technology has asked CERT-IN, the nodal agency for responding to computer security incidents, to probe the matter. Information Technology Minister Ashwini Vaishnaw tweeted: “The Government of Bharat takes its role of protecting the privacy and security of all citizens very seriously and will investigate to get to the bottom of these notifications. …We are concerned by the statements we have seen in media from some MPs as well as others about a notification received by them from Apple. … We have asked Apple to join the investigation with real, accurate information on the alleged state-sponsored attacks. ..Information by Apple on this issue seems to be vague and non-specific in nature. Apple states these notifications may be based on information which is ‘incomplete or imperfect’.” Vaishnaw said, “there are a few people in the country who are compulsive critics. Their only objective is to criticise the government.” Apple Inc has said, “Apple does not attribute the threat notification to any specific state-sponsored attacker…Detecting such attacks relies on threat intelligence signals that are often imperfect and incomplete. It’s possible that some Apple threat notifications may be false alarms or that some attacks are not detected.” Apple says, it has issued the same advisory to 150 countries. Union Commerce Minister Piyush Goel said, if opposition leaders are not satisfied with Apple’s reply, they should file complaint and the government will carry out a probe. He said, it could be that the message could have been sent by hackers to opposition leaders as a joke. BJP leader Ravi Shankar Prasad reminded that it was Rahul Gandhi who refused to submit his phone for investigation during the Pegasus controversy and had refused to cooperate in the probe. The first point to note is that that the hacking alert went to all leaders of opposition who are quite vocal against the Modi government. Naturally, there can be suspicion whether any government agency is trying to hack their phone or not. Secondly, tapping or hacking of phones of opposition leaders in a democracy cannot be justified on any count, and the government has already said, it will get the matter probed. This is a positive sign and the investigators must find out the truth. They must find out whether there has been any attempt to hack or not. I think, the reactions of leaders to the Apple alert notifications have two aspects: One, it’s an issue of personal privacy and secrecy, and Two, the political angle. Naturally, if any individual gets such an alert from Apple, he or she may suspect that there could have been attempts to hack the phone. If the recipient is an opposition leader, he or she will naturally allege that the government is carrying out surveillance. But the reality is that even Apple does not know who the hackers are, or when the hackings took place. Apple has also said that such alerts are normally sent to users to caution them about hacking. It is not necessary that those who got alerts may have their phones hacked. But one consequence of this alert was that the opposition leaders got a chance to snipe at Narendra Modi. At a time when INDIA opposition bloc leaders were at odds against one another, this alert brought unity among them, and they have started speaking in the same voice..
महाराष्ट्र में आरक्षण की आग : एकनाथ शिंदे के लिए चुनौती
महाराष्ट्र में अब मराठा आंदोलन की चिंगारी शोलों में तब्दील हो चुकी हैं. सोमवार को बीड, हिंगोली, ठाणे, मुंबई, धाराशिव समेत कई इलाकों में हिंसा भड़क उठी. प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर आगज़नी की, बसों पर पथराव किया. NCP के दो विधायकों समेत कई नेताओं के घरों पर हमला किया, आग लगा दी. बीड में हालात बेकाबू होने के बाद शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया. बीड में सोमनार को दिन भर जमकर हिंसा हुई. भीड़ ने बीड में एनसीपी के दफ्तर को आग के हवाले कर दिया. बाद भीड़ ने शरद पवार की पार्टी के विधायक संदीप क्षीरसागर का घर जला दिया. दिन में अजित पवार की पार्टी के विधायक प्रकाश सोलंके के घर को भी सैकड़ों आंदोलनकारियों ने आग के हवाले कर दिया. माजलगांव और वाडवानी में आरक्षण की मांग को लेकर सोमवार को बंद की कॉल दी गई थी, इसलिए ज्यादातर बाजार बंद रहे. हजारों लोगों की भीड़ विधायक प्रकाश सोलंके के घर पर पहुंच गई. पहले वहां पथराव किया, वहां खड़ी गाडियों को तोड़ा गया, घर के अंदर घुसकर सामान तोड़े, और आखिर में घर को आग लगा दी. जिस वक्त ये हमला हुआ उस वक्त विधायक प्रकाश सोलंके घर के अंदर मौजूद थे. सोलंके ने खुद को एक कमरे में बंद करके किसी तरह जान बचाई. सोलंके ने कहा कि हमला करने वाले पूरी तैयारी के साथ आए थे, उनके पास डीजल पेट्रोल से भरे डिब्बे थे. NCP विधायक ने आरोप लगाया कि घर के बाहर पुलिस मौजूद थी लेकिन उसने भीड़ को रोकने की कोशिश नहीं की. मराठा आंदोलनकारियों के गुस्सा बीजेपी विधायक प्रशांत बंब के दफ्तर पर भी निकला. प्रशांत बंब छत्रपति संभाजी नगर की गंगापुर सीट से विधायक हैं. उनके दफ्तर पर आंदोलनकारियों ने हमला कर दिया, दफ्तर में तोड़फोड़ की गई. मराठा आरक्षण के नाम पर जो आंदोलन कर रहे हैं, वो सरकारी दफ्तरों को भी निशाना बना रहे हैं. बीड के माजलगांव में नगर परिषद के दफ्तर को प्रदर्शनकारियों ने आग के हवाले कर दिया. करीब 4 हजार की भीड़ दफ्तर के अंदर घुसी. आंदोलनकारियों ने दफ्तर में कंप्यूटर, फर्नीचर सब तोड़ डाले, इसके बाद प्रदर्शनकारियों ने कर्मचारियों से दफ्तर से बाहर जाने को कहा और इसके बाद बिल्डिंग में आग लगा दी. पुलिस मौके पर नहीं पहुंची. आंदोलनकारियों ने कई हाईवे ब्लॉक कर दिए. बीड में धुले-सोलापुर नेशनल हाईवे को टायर जला कर ब्लॉक कर दिया. बीड की तरह धाराशिव में भी मराठा आंदोलनकारियों ने उग्र प्रदर्शन किया और राष्ट्रीय राजमार्ग पर ट्रैफिक को रोका. मराठा आंदोलनकारी एकनाथ शिंदे की सरकार पर लगातार दबाव बढ़ा रहे हैं. एक तरफ हिंसा हो रही है तो दूसरी तरफ 25 अक्टूबर से आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पाटिल भूख हड़ताल पर बैठे हैं. पाटिल को समर्थन देने के लिए मराठा युवाओं ने भी कई इलाकों में भूख हड़ताल शुरु कर दी है. इन लोगों का आरोप है कि शिंदे सरकार ने वादा पूरा नहीं किया. एकनाथ शिंदे ने एक महीने की मोहलत मांगी थी, वो मियाद पूरी हो गई लेकिन आरक्षण नहीं मिला. मराठा आंदोलन में हुई हिंसा के लिए विरोधी दलों ने एकनाथ शिन्दे की सरकार को जिम्मेदार ठहराया. NCP नेता सुप्रिया सुले ने कहा कि कानून और व्यवस्था गृह विभाग की जिम्मेदारी है और देवेन्द्र फडणवीस को तुरंत इस्तीफा देना चाहिए. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि कि उनकी सरकार आरक्षण का वादा पूरा करेगी, लेकिन सरकार चाहती है कि ऐसा इंतजाम करे जिससे आरक्षण का मुद्दा कोर्ट में न अटके. इसलिए इसमें थोड़ वक्त लग रहा है. शिन्दे ने कहा कि प्रदर्शनकारियों को थोड़ा धैर्य रखना चाहिए, हिंसा से कुछ हासिल नहीं होगा, इस तरह की हरकतों से मराठा आंदोलन भटक सकता है. कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण ने कहा कि एकनाथ शिंदे विपक्ष पर इल्जाम लगा रहे हैं लेकिन सच तो ये है कि मराठा आरक्षण के लिए बनी कमेटी में एकनाथ शिंदे भी थे. मराठा आरक्षण का मुद्दा बहुत पुराना और बहुत जटिल है. 42 साल पुराना ये मसला 42 घंटों में सुलझ जाएगा इसकी उम्मीद करना ठीक नहीं है. एक नज़र पूरी पृष्ठभूमि पर डालें. महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर सबसे पहले 1981 में अन्नासाहेब पाटिल ने आंदोलन किया था, उसके बाद हर पार्टी ने मौके के हिसाब से इस पर सियासत की. इसकी बजह ये है कि महाराष्ट्र में मराठाओं की आबादी 33 प्रतिशत है. अब तक महाराष्ट्र के जो 21 मुख्यमंत्री हुए हैं, उनमें 12 मराठा हैं. एकनाथ शिन्दे मराठा हैं, उनकी सरकार में उपमुख्यमंत्री अजित पवार मराठा हैं. पूर्व कांग3स मुख्यमंत्री पृथ्वी राज चव्हाण भी मराठा हैं. 2014 में पृथ्वी राज चव्हाण ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अध्यादेश के जरिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया लेकिन वो जानते थे कि मामला कोर्ट में अटकेगा. वही हुआ. चुनाव के बाद देवेन्द्र फड़नवीस की सरकार बनी. फड़नवीस ने एम जी गायकवाड़ की अध्यक्षता वाले पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के आधार पर मराठों को आरक्षण देने की मंजूरी दी. 2019 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसे मंजूरी भी दे दी लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में जाकर अटक गया. 2021 में जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया.. इस बार सरकार की कोशिश है कि मराठा आरक्षण पूरी तैयारी के साथ लागू किया जाए. कोई भूलचूक न रहे, मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट के सामने जाकर निरस्त न हो जाए, लेकिन अब फिर चुनाव सामने हैं. मुद्दा नाज़ुक है. मामले को फिर से गरम किया जा रहा है. आरक्षण जैसा सवाल नौकरी और रोजगार से जुडा है, इस पर आग लगाना आसान होता है और उसे बुझाना बहुत मुश्किल. और यही एकनाथ शिंदे के सामने बड़ी चुनौती है.
MARATHA UNREST: A BIG CHALLENGE FOR EKNATH SHINDE
Protesters demanding reservation for Maratha community indulged in arson and vandalism in Marathwada region of Maharashtra on Monday and Tuesday setting fire to the homes of MLAs and the offices of NCP and BJP. A BJP office was set on fire in Hingoli on Tuesday, but the fire was soon doused by police. On Monday, the homes of two NCP MLAs Prakash Solunke of Majalgaon and Sandeep Kshirsagar in Beed district were set on fire by mobs. Solunke belongs to Ajit Pawar-led NCP while Kshirsagar belongs to Sharad Pawar-led NCP. The protesters stoned state-run buses and blocked the Dhule-Solapur highway by throwing burning tyres on the road. Curfew was imposed in Beed district while Sec 144 prohibitory orders have been clamped in Dharashiv district. Security has been stepped up outside the homes of MLAs, MPs and ministers to prevent violence. Meanwhjile, the fast unto death by Maratha agitation leader Manoj Jarange-Patil entered the seventh day in Antarwali Sarati village in Jalna district. Jarange-Patil appealed to protesters not to resort to violence. He alleged that “politicians from the ruling dispensation are getting the houses of MLAs torched by their own men”. More than 4,000 protesters set fire to the Municipal Council office in Beed on Monday before ransacking the office and broke computer systems and furniture. In Chunabhatti, Mumbai, Maratha protesters sat on hunger strike in solidarity with Jarange-Patil. Maharashtra chief minister Eknath Shinde on Monday said, Kunbi (OBC) certificates will be issued to 11,530 Marathas on the basis of Nizam-era proof in Marathwada, as per recommendation of Justice Sandeep Shinde committee. The chief minister said, the state government has set up a three-member committee comprising retired judges, Justice M G Gaikwad and Justice Dilip Bhosale, to advise on the curative petition in Supreme Court on Maratha reservation issue. This committee will also advise the Backward Class Commission on empirical data required to prove the social backwardness of Maratha community. The chief minister appealed to Maratha youths not to resort to the extreme step of committing suicide or indulge in violence, as it will be a dark blot for the entire community. Eknath Shinde said, the state government needs time as it is a legal issue and the curative petition should not be dismissed in the apex court this time. Meanwhile, an opposition delegation led by Sunil Prabhu met the Governor on Monday and suggested that a unanimous resolution for Maratha reservation be adopted by state assembly and forwarded to the Centre, so that necessary legal amendments can be brought. The demand for Maratha reservation is an old one, and it is a complicated issue, no doubt. The issue has been hanging fire for the last 42 years and it will be improper to expect it to be solved within 42 hours. Annasaheb Patil was the first leader to launch an agitation for Maratha reservation in 1981. Over the years, political parties in Maharashtra used this issue to grind their own axe. Marathas constitute 33 per cent of Maharashtra’s population. Out of the 21 chief ministers in Mahrashtra till now, 12 were Marathas. The present chief minister is also a Maratha. His deputy chief minister Ajit Pawar is also a Maratha. Former Congress chief minister Prithviraj Chavan was also a Maratha. In 2014, just before the assembly elections, Prithviraj Chavan’s government brought an ordinance giving 16 per cent reservation to Maratha community in government jobs and education. Chavan knew that this ordinance will not stand judicial scrutiny. When Devendra Fadnavis became chief minister, his government sanctioned Maratha reservation based on the Backward Class Commission report. In 2019, Bombay High Court upheld this measure, but in 2021, a five-judge Constitution Bench of Supreme Court headed by Justice Ashok Bhushan quashed the move. This time, the state government wants to take no such risk of rejection in apex court, based on legal loopholes. Since general elections are slated next year, and the issue is sensitive, Maratha reservation has become a hot topic among voters. The question of reservation is linked to government jobs and employment. It is easier to light a fire, but for Eknath Shinde, it is a big challenge. The question is, how to douse the fire.
गाज़ा में युद्धविराम की अपील, पर इज़राइली बमबारी जारी
शुक्रवार की रात को जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भारी बहुमत से एक प्रस्ताव पारित कर गाज़ा में तुरंत युद्धविराम लागू करने की अपील की, उसी समय इज़राइल की सेना गाज़ा में ज़बरदस्त बमबारी कर रही थी. संयुक्त राष्ट्र महासभा में यह प्रस्ताव जॉर्डन और अन्य अरब मुल्कों ने पेश किया था. इसके पक्ष में 120 वोट पड़े, जबकि अमेरिका, इज़राइल सहित 14 देशों ने प्रस्ताव का विरोध किया. भारत, ब्रिटेन, कनाडा सहित 45 देशों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. कनाडा की मांग थी कि प्रस्ताव में हमास द्वारा 7 अक्टूबर को किये गये बेगुनाहों के कत्लेआम की निंदा की जाय, लेकिन अरब देश इसे शामिल करने के लिए तैयार नहीं हुए. इधर, इज़राइल और हमास की जंग की चिंगारी दूसरे देशों में फैलने का खतरा पैदा हो गया है. जंग की आग इज़राइल की सीमा से आगे बढ़कर सीरिया और इराक़ तक पहुंचने के आसार हैं. इस जंग में अमेरिका और ईरान आमने सामने हो गए हैं. अमेरिकी वायु सेना के एफ-15 और एफ-16 विमानों ने शुक्रवार की सुबह सूरज निकलने से पहले सीरिया और इराक में कई मिसाइल्स फायर की. अमेरिका का दावा है कि इराक़ और सीरिया में उसके बेस पर पिछले कुछ दिनों में हमले हुए हैं, इसलिए अमेरिका ने आतंकवादियों के ठिकानों को बर्बाद किया है. इसी बीच एक रॉकेट मिस्र में गिरा. इससे मिस्र आगबबूला है. इजराइल का कहना है कि ये हमास का रॉकेट है जो मिसफायर हुआ लेकिन हमास का दावा है कि इजराइल ने मिस्र के खिलाफ मोर्चा खोला है. मिस्र ने कहा है कि वो खामोश नहीं बैठेगा, जवाब देगा. ईरान ने भी जंग की तैयारी शुरू कर दी है. ईरान के विदेश मंत्री ने कहा है कि अगर गाज़ा पर बमबारी तुंरत बंद नहीं हुई तो अब इजराइली सेना को ईरानी फौज का सामना करना पड़ेगा. कुल मिलाकर अब इजराइल और हमास की जंग में ईरान, सीरिया, लेबनान और मिस्र के साथ साथ अमेरिकी फौज भी सक्रिय हो गई है. दूसरी तरफ इजराइल ने गुरुवार और शुक्रवार की रात के अंधेरे में गाजा में ज़मीनी हमला शुरु किया, लेकिन वही हुआ जिसकी आशंका अमेरिका बार बार जाहिर कर रहा था. रात में इजराइल की सेना टैंकों के साथ गाजा में घुसी लेकिन थोड़ी ही देर के बाद इजराइली टैंक वापस लौटने पर मजबूर हो गए क्योंकि हमास की तरफ से इजराइल पर जवाबी हमला हुआ. हमास के जवाबी हमले से इजराइली सेना भी चौंक गई और उसने वापस लौटने में ही भलाई समझी. हालांकि इजराइल का दावा है कि उसने हमास के बड़े कमांडर और हमाल की हवाई विंग के चीफ को मार गिराया है और उसके कई ठिकाने बर्बाद कर दिए हैं. इजराइल जो दावे कर रहा है, वो अपनी जगह है लेकिन अब ये जंग दूसरे मुल्कों की तरफ बढ़ता दीख रहा है. पूर्वी सीरिया में इरान समर्थित आतंकियों के जिन ठिकानों पर अमेरिकी वायु सेना के विमानों ने शुक्रवार को हमले किये, वे मुख्यत: गोलाबारूद और हथियार वाले भंडार थे. छह फाइटर जेट्स ने सीरिया और इराक़ की सीमा पर अबु कमाल नाम के ठिकाने पर प्रिसिज़न बॉम्बिंग की, मतलब सटीक निशाना लगाने वाली मिसाइलें दाग़ी. इन हमलों में ईरान की सेना के इलीट रिपब्लिकन गार्ड्स के ठिकाने नष्ट हो गए. अमेरिका ने एक बयान में बताया है कि 17 अक्टूबर के बाद से सीरिया और इराक़ में उसके सैनिक अड्डों पर लगातार हमले हो रहे थे, जिनमें अमेरिका के 21 सैनिक घायल हो गए थे. उसी का बदला लेने के लिए अमेरिकी विमानों ने ये बमबारी की. अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने एक बयान में कहा कि 17 अक्टूबर से अब तक उसके ठिकानों पर 12 से ज़्यादा हमले हो चुके हैं. अमेरिका का कहना है कि ये हमले ईरान के सपोर्ट वाले ग्रुप कर रहे हैं जिसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति के आदेश पर सीरिया-इराक़ बॉर्डर पर रिपब्लिकन गार्ड्स के हथियारों के डिपो पर बमबारी की गई. 7 अक्टूबर को इज़राइल पर हमास के हमले के बाद, पूरे मिडिल ईस्ट में भयंकर तनाव है. इज़राइल की मदद के लिए, अमेरिका ने अपने दो जंगी बेड़े मिडिल ईस्ट में तैनात कर दिए हैं. तीसरा अमेरिकी एयरक्राफ्ट करियर पहले से ही मिडिल ईस्ट में मौजूद है. इजराइल और हमास के मामले पर पूरी दुनिया दो भागों में तो पहले ही बंट चुकी थी लेकिन अब दो तरह की सोच वाले मुल्कों के बीच टकराव दिखाई दे रहा है, जो चिंता की बात है. जहां तक इजराइल का सवाल है,उसे दुनिया के एक बड़े हिस्से का समर्थन है. हमास की बर्बरता के बाद इजराइल ठान चुका है कि वह हमास को सबक सिखा कर रहेगा. फिलहाल उसकी सबसे बड़ी मांग ये है कि हमास ने जिन 224 लोगों को बंधक बनाया हुआ है, उन्हें छोड़े, लेकिन इसके बाद भी इजराइल इस बात की कोई गारंटी नहीं देना चाहता कि वो गाज़ा में हमास पर हमले रोक देगा. दूसरी तरफ दुनिया को चिंता है, गाज़ा में रहने वाले आम लोगों की. गाजा में रहने वाले लोगों के पास खाने पीने और दवाओं की भारी कमी है, अस्पताल तबाह हो चुके हैं. न पेट्रोल है, न बिजली और जो मदद पहुंच रही है, वो न के बराबर है. गाजा में इस जंग के पहले करीब पांच सौ ट्रक रोज जाते थे,अब पिछले तीन हफ्ते में खाने पीने और दवाईयों को लेकर सिर्फ 76 ट्रकों को जाने की अनुमति मिली. इंसानियत के लिहाज से ये बहुत कम है. इजराइल ने गाजा को दी जाने वाली बिजली की सप्लाई भी कम कर दी है, ईंधन भी कम है. ये सप्लाई इसीलिए रोकी गई कि हमास के आतंकवादी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन अब धीरे धीरे इजराइल पर इस बात के लिए दबाव बन रहा है कि वो ज़रूरत का सामान जाने की इजाज़त दे. गाज़ा में रहने वाले लोगों को भोजन, पानी और दवा के साथ साथ बिजली की भी सप्लाई मिले लेकिन अभी तक इस बारे में इजराइल ने कोई सकारात्मक संकेत नहीं दिया है.
ISRAEL BOMBS GAZA AS UN CALLS FOR TRUCE
Even as the UN General Assembly adopted a non-binding resolution calling for immediate humanitarian truce in Gaza, Israeli Air Force carried out overnight bombardment on nearly 150 Hamas underground sites inside southern Gaza. A large number of Hamas terrorists, including the chief of Hamas aerial wing Issam Abu Rukbeh, who masterminded October 7 paraglider attacks on Israeli settlements, were killed. Israeli infantry, combat engineering forces and tanks are still inside Gaza Strip as ground operation continued in the morning, with all internet and phone connections snapped. On Friday morning, US F-16 and F-15 fighter jets struck two terrorist sites inside Syria linked to Iran Revolutionary Guard Corps in, what Pentagon said, retaliation of drone and missile attacks against US bases and personnel in the region. The attacks were carried out on weapons and ammunition storage facilities near Boukamal in eastern Syria, a senior US Air Force official said. On Saturday morning, the Israeli defence minister Yoav Gallant spoke to US defense secretary Lloyd Austin about the ongoing ground operations inside Gaza. US officials believe that the “expanded” operations by Israel inside Gaza could be the beginning of a major ground offensive against Hamas. Meanwhile, two Egyptian towns of Taba and Nuweiba were hit by rockets, but Israel said they were fired by Hamas terrorists. Iran’s foreign minister Hossein Amirabdollahian told the United Nations that if Israel’s attacks on Gaza do not stop, United States “will not be spared from this fire”. “I want to tell American leaders, whoa re now managing the genocide in Palestine, that we do not want expansion of war in the region. But if the genocide in Gaza continues, they will not be spared from this fire”. ..Iran stands ready to play its part in this humanitarian endeavour, along with Qatar and Turkey”, the foreign minister said. Already, Iran’s ground forces have begun military war exercises to display its might. Its elite Islamic Revolutionary Guards Corps and air force are taking part in the exercise. The commander-in-chief of Islamic Revolutionary Guards Corps Gen Hossein Salami has said, “Israeli army will be buried inside Gaza, and the US will also be destroyed by the fire they have lit.” His comments came two days after his deputy Brig. Gen. Ali Fadavi said, Iran will launch missiles directly towards Israel’s Haifa port, if it “foolishly decides to go ahead with its ground assault in Gaza”. Iran is providing support to Islamic militia groups in Yemen, Syria and Lebanon to counter US and Israel’s might in the region. Israeli PM Benjamin Netanyahu is in no mood to listen. He has already given permission to his forces to launch ground assault inside Gaza. India TV reporter Amit Palit was near Jabalia camp, when Israeli defense force carried out surgical strike inside Gaza. Rockets were fired by Hamas on Israeli tanks, but the Israeli forces returned after completing their operation. The fate of nearly 229 Israelis held hostages by Hamas is still not known. The death toll in Gaza has already topped 8,800 in the last 22 days and almost the entire Gaza Strip has been reduced to rubble. Already the world is now divided into two camps over the Israel-Hamas conflict with both sides pursuing divergent line of thought. On Friday night, 120 countries voted in favour of a resolution moved by Arab countries, while 14 including the US and Israel voted against and 45 countries, including India, UK, Canada and others abstained. With more attacks going on, the situation threatens to escalate into a bigger regional conflict, which is a worrying sign. Israel has the support of US, western powers and other countries. Israel has vowed to take revenge on the massacres carried out by Hamas. It wants that Hamas must release the hostages soon. Unless the hostages are not released, Israel is unwilling to give guarantee that it will not stop its attacks on Gaza. On the other hand, countries across the world are worried about the fate of lakhs of people living inside Gaza. They have been facing acute difficulties due to lack of food, water, medicines, fuel, electricity and other essentials. Many hospitals have been reduced to rubble. The humanitarian assistance that is being allowed inside Gaza is only a trickle. In the last three weeks, only 76 trucks were allowed to carry food and medicines into Gaza. This is negligible considering the gigantic humanitarian issue involved.
कांग्रेस क्यों राम मंदिर समारोह के आमंत्रण के लिए आतुर है ?
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में कांग्रेस नेता कमल नाथ ने गुरुवार को कहा कि ‘अयोध्या में बन रहा राम मंदिर केवल बीजेपी का नहीं, यह हमारे देश का मंदिर है. हर भारतीय का है. यह हमारे सनातन धर्म का बहुत बड़ा चिह्न है. ये मंदिर किसी पार्टी का नहीं है. ये तो ऐसे बात कर रहे हैं जैसे ये मंदिर बीजेपी का है. ‘ कमलनाथ ने कहा, ‘ प्रभु राम पर बीजेपी का कॉपी राइट थोड़े है, राम तो सबके हैं, राम मंदिर भी सबका है, इसलिए इस मामले में बीजेपी की नहीं चलेगी.’ दरअसल जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्विटर पर लिखा कि वो 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में शामिल होंगे, इस मुद्दे पर सियासत शुरू हो गई. रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की तरफ से प्रधानमंत्री को प्राण प्रतिष्ठा के समारोह का न्योता दिया गया. उसके बाद से ही विरोधी दलों के नेताओं ने पूछना शुरू कर दिया कि मंदिर सिर्फ बीजेपी का नहीं है, तो फिर सिर्फ बीजेपी के नेताओं को ही आमंत्रित क्यों किया जा रहा है? कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि ‘भगवान राम को एक ही पार्टी तक सीमित क्यों किया जा रहा है, न्योता सभी को भेजना चाहिए.’ सलमान खुर्शीद के अलावा अधीर रंजन चौधरी, नाना पटोले, संजय राउत जैसे तमाम नेताओं ने यही सवाल उठाया. सबने एक जैसी ही बात कही. बीजेपी का कोई नेता मुद्दे पर कुछ नहीं बोला लेकिन विपक्ष को जबाव दिया विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष आलोक कुमार ने. उन्होने याद दिलाया कि कांग्रेस ने 2007 में राम सेतु मामले में ‘ सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर भगवान राम को काल्पनिक चरित्र बताया था और उन्हें ऐतिहासिक मानने से इनकार कर दिया था, उनके अंदर रामभक्ति अचानक कैसे जाग गई.’ रामजन्म भूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि उन्होंने किसी पार्टी के नेताओं को न्योता नहीं भेजा है, इस ऐतिहासिक मौके पर देश भर के चार हज़ार से ज्यादा साधू संत और समाज के अलग-अलग क्षेत्रों के जाने-माने लोग मौजूद रहेंगे. जब चंपत राय से पूछा गया कि विरोधी दलों के नेता कह रहे हैं कि इस कार्यक्रम को बीजेपी का प्रोग्राम बना दिया गया है, तो चंपत राय ने कहा, “जिसके घर में लड़के की शादी है, बारात में किसे बुलाना है, ये वही तय करेंगे, कोई और नहीं.” अब किसी को इस बात पर हैरानी नहीं होती कि कांग्रेस के नेता मांग कर रहे हैं, उन्हें भी रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समारोह में आमंत्रित किया जाए. कांग्रेस के नेता कह रहे हैं कि मोदी राम मंदिर को चुनाव का मुद्दा बना रहे हैं जबकि राम तो सब के हैं लेकिन शायद कांग्रेस के लोग इतिहास भूल गए हैं. राजीव गांधी ने शाहबानो के केस में मुसलमानों की नाराजगी दूर करने के लिए कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदला. फिर हिन्दुओं को मनाने के लिए रामलला का ताला खुलवाया. ये चुनावी पैंतरी ही था. मुझे अच्छी तरह याद है कि 1989 में चुनाव से पहले वी पी सिंह ने कांग्रेस समर्थक शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के ज़रिए राममंदिर का शिलान्यास करवाने की कोशिश की थी. शंकराचार्य अयोध्या के लिए निकल चुके थे लेकिन मुलायम सिंह यादव धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर बनना चाहते थे. उन्होंने मुस्लिम वोट के चक्कर में स्वरूपानंद सरस्वती को गिरफ्तार करा लिया. इसके बाद लालू प्रसाद यादव ने भी वोट के चक्कर में रथयात्रा पर निकले लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया था. इसके बाद वो वक्त भी आया जब कांग्रेस ने कोर्ट में प्रभु राम को काल्पनिक चरित्र बता दिया था. इसीलिए अब ये देखकर हैरानी होती है कि उन्हीं पार्टियों के सारे नेता रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में शामिल होने को आतुर हैं. इस बात की चर्चा भी गर्म है कि राहुल गांधी के सहयोगी अयोध्या की रेकी कर आए हैं. अब किसी दिन राहुल भी अयोध्या में राम मंदिर के दर्शन करते दिखाई देंगे. ये राजनीतिक सोच में बड़ा बदलाव है. एक ज़माने में यही नेता भगवान राम का नाम लेने से कतराते थे, उन्हें लगता था कि उनके मुस्लिम वोटर नाराज़ हो जाएंगे. अब ज़माना बदल गया है. सब राम का नाम लेते हैं. अब तो सबको लगता है कि बीजेपी राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के अवसर को भव्य बनाएगी. प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में रामलला मंदिर में विराजमान होंगे, इसकी गूंज पूरे देश में सुनाई देगी. अब विरोधी दलों को लगता है कि बीजेपी को चुनाव में इससे फायदा होगा. इसीलिए उनके सुर बदले हैं और कमलनाथ जैसे नेता कह रहे हैं, ‘राम मंदिर तो सबका है, सिर्फ बीजेपी का नहीं’. ज़माना वाकई में बदल गया है.
क्या महुआ की संसद की सदस्यता जाएगी?
पैसे लेकर सवाल पूछने के केस में संसद की एथिक्स कमेटी ने तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ जांच शुरू कर दी. शिकायत करने वाले बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे और वकील जय अनंत गुरुवार को कमेटी के सामने पेश हुए और अब महुआ को कमेटी ने 31 अक्टूबर को पेश होने को कहा है. एथिक्स कमेटी के अध्यक्ष विनोद सोनकर ने कहा कि महुआ को उनका पक्ष रखने तका मौका दिया जाएगा. इसके साथ ही कमेटी ने गृह और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयों से महुआ मोइत्रा, दर्शन हीरनंदानी और जय अनंत के बीच हुई बातचीत का ब्यौरा मांगा है. महुआ मोइत्रा पर फेवर लेकर पार्लियामेंट में सवाल पूछने के जो आरोप अब तक मीडिया में थे, अब वो संसद की Ethics कमेटी के सामने गवाहों के समेत पेश कर दिए गए हैं. Ethics कमेटी को अगर इस बात के सबूत मिल गए कि महुआ के नाम पर संसद के पोर्टल पर पार्लियामेंट के लिए सवाल दुबई से पोस्ट किए गए थे, अगर इस बात के सबूत मिले कि महुआ को एमपी के तौर पर मिला लॉगिन दुबई में बैठे दर्शन हीरानंदानी ने ऑपरेट किया था, तो वो उनके खिलाफ कमेटी कार्रवाई कर सकती है. महुआ की पार्टी तृणमूल कांग्रेस अभी ‘देखो और इंतज़ार करो’ की नीति अपना रही है, अगर कमेटी ने महुआ को दोषी पाया तो उनकी संसद की सदस्यता भी जाएगी और तृणमूल कांग्रेस भी उन्हें बाहर कर देगी.
WHY CONGRESS WANTS AN INVITE FOR RAM TEMPLE CONSECRATION?
After Prime Minister Narendra Modi accepted the formal invitation from Sri Ram Janmabhoomi Teerth Kshetra Trust to attend the consecration ceremony of the Ram Temple in Ayodhya, slated for January 22, several Congress leaders have raised questions. Congress leader Salman Khurshid asked, “Is the invitation going to just one party? Is God now limited to one party? The invitation should be for everyone.” Madhya Pradesh Congress chief Kamal Nath said, “Ram temple belongs to every person in India and it is a great symbol of our Sanatan Dharma. Does the temple belong only to BJP?” Leader of Congress in Lok Sabha Adhir Ranjan Chowdhury said, “Ram mandir has nothing to do with politics. Indians have been worshipping Lord Ram since thousands of years. Suddenly Modi Ji have become a Ram Bhakt and he is trying to divide people on the basis of religion”. Shiv Sena (UBT) leader Sanjay Raut said, “there was no need to invite the Prime Minister. As PM, he would have definitely gone on his own. Thousands of kar sevaks sacrificed their lives for Ram Janmabhoomi. Shiv Sena, Bajrang Dal, VHP were there. Advani Ji took out rath yatra. Prime Minister will go there but I think this seems to be part of preparation for elections.” VHP president Alok Kumar reminded that it was Congress-led UPA government which had filed an affidavit in Supreme Court refusing to accept Lord Ram as part of Indian history and had described him as a mythological figure. Trust general secretary Champat Rai angrily said, “those organizing a son’s wedding will decide whom to invite and whom not to.” Nobody should be surprised over the demands of Congress leaders that they should also be invited to the ceremony. Congress leaders also allege that Modi is trying to make Ram temple an issue before the elections. Lord Ram belongs to each one of us, but Congress leaders have probably forgotten past history. Former Prime Minister, Rajiv Gandhi, in order to appease Muslim voters, got Muslim Personal Law amended in Parliament to overturn Supreme Court verdict in Shah Bano case. It was his government, in order to appease Hindus, ordered opening up of the locked Ram Janmabhoomi for worship of Ram Lalla idol. Both these steps were part of electoral tactics. I still remember: Just before the 1989 Lok Sabha elections, V P Singh had tried to organize ‘shilanyas’ (foundation laying) of Ram Janmabhoomi temple by using the help of pro-Congress Shankaracharya Swaroopanand Saraswati. The Shankaracharya had already left for Ayodhya, but Mulayam Singh Yadav wanted to project himself as the champion of secularism. He ordered the arrest of Shankaracharya, to appease Muslim voters. Later in 1991, Bihar chief minister Lalu Prasad, in order to appease Muslim vote bank, ordered arrest of L K Advani in Samastipur to stop his Ayodhya-bound rath yatra. In the Supreme Court, Congress-led UPA government in 2007, filed an affidavit through Archaeological Survey of India in Ram Sethu case before the Supreme Court, in which it was said, “Valmiki Ramayana and Ramcharit Manas are mythological texts..which cannot be said to be historical records to incontrovertibly prove the existence of the characters”. After describing Lord Ram as a mythological character, it is now surprising that the leaders of the same party are eager to attend the consecration ceremony of Ram temple in Ayodhya. Already, there are media reports that a close associate of Congress leader Rahul Gandhi has already made a recce of Ayodhya and has met religious leaders. Very soon, Rahul may visit Ayodhya to pay obeisance to Lord Ram. This indicates a big paradigm shift in the thought process of Congress leaders. There was a time when the same leaders used to avoid the very mention of Lord Ram, fearing backlash from Muslim voters. Times have now changed. Most of the mainstream parties are invoking the name of Lord Ram. Already opposition parties have begun to realize that the BJP is going to pull out all stops to make the Ram Temple consecration ceremony a grand success, and it can reap a rich electoral harvest. It is, in this context, that we hear leaders like Kamal Nath saying, ‘Ram Temple belongs not only to BJP, but to each and every Indian’. Times have really changed.
WILL MAHUA LOSE HER LS MEMBERSHIP?
Parliament’s Ethics Committee on Thursday recorded the oral testimonies of complainants BJP MP Nishikant Dubey and advocate Jai Anant Dehadrai in the “cash for question” allegations against Trinamool Congress MP Mahua Moitra. The panel has now sought assistance from Home and Information Technology ministries for getting details about conversations between industrialist Darshan Hiranandani, Mahua Moitra and Dehadrai. The Trinamool MP has been summoned to record her testimony on October 31. If the panel finds concrete evidence of the industrialist Hiranandani, based in Dubai, using the login and password of Mahua Moitra in Parliament website for sending questions to Lok Sabha secretariat, she may land in big trouble and may lose her membership. Already, her party Trinamool Congress is now in a wait-and-watch mode. If Mahua loses her Lok Sabha membership, the party may also decide to expel her.
Get connected on Twitter, Instagram & Facebook
इज़राइल, फलस्तीन, हमास पर भारत का संतुलित रुख
इज़राइल और हमास की जंग अब गाज़ा के दायरे से बाहर जा रही है. पूरा मध्य पूर्व इसकी चपेट में आ सकता है, ईरान और अमेरिका भिड़ सकते हैं. ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाा खामनेई ने कह दिया कि अमेरिका के हाथ गाज़ा के बच्चों के खून से रंगे हैं, गाजा में हजारों लोगों की मौत का जिम्मेदार अमेरिका है, अगर इजराइली फौज गाजा में घुसने की हिमाकत करती है तो उसे ईरान की इलीट ब्रिगेड, क़ुद्स फ़ोर्स का सामना करना पड़ेगा. ईरान की धमकी को अमेरिका ने बहुत गंभीरता से लिया है. अमेरिका ने चेतावनी दी है कि ईरान और उसके सहयोगी संगठन अमेरिकी नागरिकों को निशाना बनाने के गलती न करें वरना अमेरिका को अपने लोगों की हिफाजत करना अच्छे से आता है. दूसरी तरफ तुर्किए के राष्ट्रपति अर्दोआन भी खुलकर हमास के समर्तन में आ गए. अर्दोआन ने कहा हमास आतंकवादी संगठन नहीं है, इजराइल आतंकवादी देश है, अगर इजराइल गाजा पर हमले नहीं रोकता तो इसके खतरनाक नतीजे भुगतने होंगे. ईरान और तुर्किए के अलावा मिस्र , जॉर्डन, सऊदी अरब, लेबनान, सीरिया जैसे मध्य पूर्व के कई देशों ने गाज़ा पर तुरंत हमले रोकने की बात कही है., लेकिन इजराइल इसके लिए तैयार नहीं हैं. इस मामले में अमेरिका भी इजराइल के साथ है. इजराइल ने फिर कह दिया है कि जब तक हमास का खात्मा नहीं करेंगे तब तक एक्शन जारी रहेगा क्योंकि हमास का वजूद इंसानियत के लिए खतरा है. इजराइल ने पहली बार हमास के उन दहशगर्दों के वीडियो जारी कर दिए जिन्होंने 7 अक्टूबर को इजराइल के सरहदी इलाकों में घुसकर कत्लेआम मचाया था. हमला करने वाले हमास के कुछ आतंकवादियों को इजराइली सेना ने जिंदा पकड़ा है . ये दरिंदे बता रहे हैं कि इजराइल में घुसने का हुक्म उन्हें किसने दिया था, क्या टारगेट था, क्या मकसद था. एक बंधक के बदले दस हजार डॉलर और एक फ्लैट इनाम के तौर पर देने का वादा किया गया था. हमास के आतंकवादियों ने बताया कि उन्हें इजराइली पुरूषों को तुरंत खत्म कर देने, ज्यादा से ज्यादा महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को अगवा करके गाज़ा लाने का हुक्म दिया गया था और उन्होंने वैसे ही किया. जो सामने दिखा, उसे गोली से उड़ा दिया. 7 अक्टूबर के हमले का एक और ऑडियो सामने आया जिसमें हमास का एक आतंकवादी फोन पर अपने पिता से बात करता हुआ दिखाई दे रहा है. वो कह रहा है कि उसने अभी अभी दस इजराइलियों को मार डाला है. इस हैवानियत पर उसका पिता शाबाशी दे रहा है और बेटे की सुरक्षित वापसी की दुआ कर रहा है. हमास के आतंकवादियों के कबूलनामे सुनकर रौंगटे खडे हो जाते हैं. ये समझ में आता है कि हमास के हैवान कितने खौफनाक इरादों के साथ इजराइल में घुसे और वो अपने खतरनाक मंसूबों को पूरा करने में कामयाब हुए. हमास के आतंकवादियों के जो क़बूलनामे रिलीज़ हुए हैं, वो उनसे पूछताछ के दौरान रिकॉर्ड किए गए थे. इज़राइल की सुरक्षा एजेंसी शिन बेत ने इन आतंकवादियों को 7 अक्टूबर के हमले के बाद पकड़ा था और इनसे हमले के बारे में, बंधकों के बारे में पूछताछ की थी. एक वीडियो हमास के आतंकवादी शादी मुहम्मद का है, जो कि कुख्यात अल क़स्साम ब्रिगेड का सदस्य है, जिसने इज़राइल पर ये पूरा हमला प्लान किया था. अल क़स्साम के अलावा, हमास की बेहद ख़तरनाक नुख़बा फोर्स के आतंकवादी भी इज़राइल पर हमले में शामिल थे. सारे हमलावरों को स्पष्ट आदेश था कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को मार दो, बाक़ी को बंधक बना लो, हर एक बंधक के बदले में हमास ने इन हैवानों को दस हज़ार डॉलर और एक फ्लैट देने का लालच दिया था. हमास ने 7 अक्टूबर का हमला पूरी प्लानिंग के साथ किया था. हमला करने वाले आतंकवादियों को ट्रेनिंग दी गई थी. पूछताछ में इन दहशतगर्दों का एक एक खुलासा दिल दहलाने वाला है.. इन आतंकवादियों ने बताया कि उन्हें तीन टारगेट दिए गए थे – घरों पर हमला करके पुरुषों और बच्चों को मार देना था, महिलाओं और बुज़ुर्गों को बंधक बनाना था और इज़राइल के सुरक्षा बलों की चौकियों में हमला करके फौज के जवानों को मारकर उनके हथियार लूटना और उसका वीडियो बनान था. हमास के आतंकवादी फौजी मुहम्मद ने कहा कि सभी नौजवानों को मार देने का ऑर्डर था, फिर चाहे वो वर्दी में हों या फिर आम नागरिक.पूछताछ के दौरान, हमास के इन आतंकवादियों ने इज़राइली सुरक्षा एजेंसी के अधिकारियों को गुमराह करने की कोशिश भी की. पूछने पर एक आतंकी ने पहले बताया कि वो अल क़स्साम ब्रिगेड से है, फिर कहा कि वो नुख़बा फोर्स से है, हालांकि, उसने अपना मक़सद बिल्कुल साफ़ साफ़ बताया. कहा कि वो इज़राइलियों से ज़मीन ख़ाली कराने के लिए गया था. हमास के हमले का बदला लेने के लिए इज़राइल, ग़ाज़ा पट्टी पर लगातार बमबारी कर रहा है, गाज़ा की सीमा पर तैनात इज़राइल के टैंक और तोपें भी हमास के ठिकानों को निशाना बना रहे हैं. इस बमबारी में गाज़ा के सिविलियन इलाके भी तबाह हो रहे हैं. गाज़ा में इज़राइल की बमबारी से अब तक लगभग छह हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 18 हज़ार से ज़्यादा लोग घायल हैं. फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने इज़राइल पर फिलिस्तीनियों के नरसंहार का आरोप लगाया है… फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों से मुलाक़ात के दौरान महमूद अब्बास ने कहा कि इज़राइल अपने 222 बंधकों को छुड़ाने के लिए हज़ारों बेगुनाहों को मार रहा है, लेकिन, उसने ख़ुद 1200 से ज़्यादा फिलिस्तीनियों को बंधक बना रखा है. महमूद अब्बास ने गाज़ा में तुरंत बमबारी रोकने की मांग की. इजरायल के सैनिक गाजा पट्टी के करीब खड़े हैं भारी संख्या में टैंक और बख्तरबंद गाड़ियों ने घेराबंदी की हुई है. गाजा में घुसने के लिए पूरी तैयारी है, पर निर्देशों का इंतजार है. इजरायल के रक्षा मंत्री ने अपनी फौज से कहा है कि अबतक आप गाजा को दूर से देखते थे, लेकिन जल्दी ही आप इसे अंदर से देखेंगे, लेकिन सच ये है कि इजरायल की सरकार अभी ग्राउंड पर एक्शन करने से थोड़ा कतरा रही है. दो हफ्ते बाद भी इजरायल की तरफ से हवाई हमले तो लगातार जारी है पर जमीन पर अभी कोई एक्शन नहीं हुआ है. इसकी दो वजहें हो सकती हैं. एक इजराइली सेना के अधिकारी काफी सावधानी बरत रहे हैं. हमास ने गाजा में जो सुरंगों का जाल बिछाया हुआ है, उसके बारे में इजराइल के पास अभी पूरी जानकारी नहीं है और बिना ज़मीनी हालत जाने, अंदर जाकर एक्शन करने पर काफी नुकसान हो सकता है. दूसरी वजह राजनीतिक है. अगर इजरायल ने गाजा पर कब्जा कर भी लिया, तो वो इस का क्या करेगा? ये सवाल है. अगर हमास का नियंत्रण खत्म कर दिया तो गाज़ा इजराइल की फौज के कब्जे में होगा.फिर वो इसे किस को गाज़ा सौंपेगा? इस्रायल की फौज वहां से वापस कैसे निकलेगी? गाजा किसे सौंपेगी? इजरायल को एहसास है कि गाजा कितना भी कमजोर हो जाए फिलिस्तीन के लोगों की हमदर्दी उसके साथ बनी रहेगी. इसलिए वहाँ ज्यादा रुकना रणनीति के लिहाज से ठीक नहीं होग. वैसे भी इजरायल और हमास की जंग का असर अब पूरी दुनिया पर दिखाई देने लगा है. बंधवार को लेबनान में हमास, इस्लामिक जिहाद और हिज़्बुल्लाह के नेता मिले. हिज़्बुल्लाह, हमास के समर्थन में इज़राइल पर उत्तर की तरफ़ से हमले कर रहा है. तीनों संगठनों के नेताओं के बीच क्या बातचीत हुई ये तो पता नहीं चला लेकिन, हमास के प्रवक्ता ने ये ज़रूर कहा कि वो फिलिस्तीन की आज़ादी की लड़ाई जारी रखेंगे. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इज़राइल-फिलिस्तीन मसले पर चर्चा में भारत ने बहुत संतुलित रुख़ अपनाया. संयुक्त राष्ट्र में भारत के सहाय़क प्रतिनिधि आर. रवींद्र ने कहा कि हमास के हमले के बाद सबसे पहले इज़राइल का समर्थन करने वाले देशों में भारत भी शामिल था लेकिन भारत को गाजा के बेगुनाह लोगों की भी फिक्र है. इसीलिए भारत ने गाज़ा के लोगों के लिए भी 38 टन राहत सामग्री भेजी है. संयुक्त राष्ट्र में भारत ने कहा कि वो चाहता है कि इज़राइल के साथ स्वतंत्र और सार्वभौम फिलिस्तीन देश भी बने, दोनों की सीमाएं तय हों, सभी देश उनको मान्यता दें, तभी स्थायी शांति क़ायम होगी. भारत के रुख संतुलित भी है और व्यावहारिक भी. मैने पहले ही कहा कि इजराइल अगर गाज़ा पर कब्जे करता है तो उसे बरकरार रखना मुश्किल होगा.इसीलिए अब अमेरिका भी इजराइल को सलाह दे रहा है कि वो गाजा पर ग्राउंड अटैक न करे, सरहद पार न करे. एक बात तय है कि जंग हमेशा तो नहीं चल सकती. आखिरकार कोई रास्ता तो निकालना पड़ेगा. इजराइल को हमास के खिलाफ एक्शन का पूरा हक है लेकिन गाजा के लोगों को इस तरह मुसीबत में तो नहीं छोड़ा जा सकता है.. इसीलिए भारत गाजा के लोगों की मदद कर रहा है और इजराइल से संयम बरतने की अपील कर रहा है. प्रधानमंत्री मोदी की इस नीति का पूरी दुनिया समर्थन कर रही है. हमारे देश में भी जो मुस्लिम नेता और मौलाना पहले आतंकवाद के खिलाफ इजराइल का समर्थन करने पर मोदी को कोस रहे थे, अब वही लोग गाज़ा के लोगों के लिए मदद भेजने पर मोदी की तारीफ कर रहे हैं.