Rajat Sharma

अल-फलाह यूनिवर्सिटी कैसे दहशतगर्दों का अड्डा बना

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अल-फलाह यूनिवर्सिटी के डॉक्टर्स की साज़िश कितनी भयानक थी, इसे लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. डॉक्टर मुजम्मिल की डायरी में तबाही का सीक्रेट प्लान मिला. उसकी गर्लफ्रेंड डॉक्टर शाहीन की डायरी में लड़कियों को रिक्रूट करने के लिए “ऑपरेशन हमदर्द” की डिटेल मिली.
दहशत फैलाने के लिए आठ डॉक्टर्स की चार टीमें बनाई गई थीं. चार गाड़ियां खरीदी गईं थी. बारूद का इंतज़ाम हो गया था. डेटोनेटर्स भी पहुंच गए थे. ब्लास्ट की तारीखें भी तय कर दी गई थीं. 6 दिसंबर को अयोध्या में और 26 जनवरी को दिल्ली में ब्लास्ट होना था. वाराणसी और लखनऊ भी आतंकवादियों के निशाने पर थे लेकिन पुलिस इस गिरोह के 4 सदस्यों तक पहुंच गई, इसीलिए ‘व्हाइट कॉलर मॉड्यूल’ की सारी प्लानिंग फेल हो गई.
अब डॉक्टर्स की जांच जैसे जैसे आगे बढ़ रही है, एक एक करके सारे राज़ खुलने लगे हैं. एक-एक करके दहशतगर्दों के हमदर्द पकड़े जा रहे हैं. अब तक सात गिरफ्तारियां हो चुकी हैं. लखनऊ से डॉ. शाहीन का भाई डॉक्टर परवेज़ पकड़ा गया, कानपुर से डॉक्टर आरिफ को गिरफ्तार किया गया. पुलिस अब डॉ. मुजम्मिल के भाई डॉ. मुज़फ्फर को खोज रही है. उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया है.
डॉ. मुज़म्मिल और डॉ. उमर के साथ डॉ. मुज़फ्फर भी तुर्किए गया था और अगस्त में देश से भाग गया. उसकी लोकेशन फिलहाल अफगानिस्तान में मिली है.
इधर फरीदाबाद में पुलिस ने डॉक्टरों के इस मॉड्यूल की वो चौथी कार भी बरामद कर ली है, जो डॉ. शाहीन ने खरीदी थी. ये कार अल-फलाह यूनिवर्सिटी में मिली. इसका इस्तेमाल भी ब्लास्ट में होना था.
अल-फलाह यूनिवर्सिटी को इस व्हाइट कॉलर मॉड्यूल के डॉक्टर्स ने आतंकवाद का अड्डा बना दिया. पुलिस को अल-फलाह यूनिवर्सिटी के कैंपस से एक और कार मिली. ये वो चौथी कार है जिसका इस्तेमाल ब्लास्ट के लिए किया जाना था.
दहशतगर्दों के नेटवर्क में शामिल डॉक्टर्स चार कारों के जरिए चार शहरों में ब्लास्ट की प्लानिंग कर रहे थे. जो चार गाड़ियां खरीदी गईं थीं, उसमे सें दो कारें डॉ शाहीन सईद ने खरीदी थीं और दो डॉ. उमर ने. सबसे पहले शाहीन की गाड़ी पकड़ी गई जिसमें AK-47 और विस्फोटक बरामद हुआ.
दूसरी आई-20 कार से उमर ने लाल किले के पास ब्लास्ट किया. तीसरी इको स्पोर्ट्स गाड़ी जो उमर के नाम पर खरीदी गई थी, वो अल-फलाह यूनिवर्सिटी के पास एक गांव से बरामद हुई. डॉ. शाहीन के नाम पर जो ब्रेज़ा कार सितंबर में खरीदी गई, वह भी मिल गई.
डॉ. शाहीन, डॉ. मुज़म्मिल, डॉ. उमर और उनके साथियों की प्लानिंग ये थी कि हर कार में विस्फोटक भरकर अलग अलग शहरों में ब्लास्ट करें. हर ब्लास्ट के लिए दो-दो डॉक्टर्स की चार टीमें भी बन गई थी, कब ब्लास्ट करना है, कहां ब्लास्ट करना है, उसकी प्लानिंग भी हो चुकी थी. डॉ. मुज़म्मिल ने पूछताछ में सब कुछ उगल दिया है.
प्लानिंग के मुताबिक, 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद ध्वंस की बरसी पर अयोध्या, वाराणसी और लखनऊ में धमाके का प्लान था. 26 जनवरी को लालकिले में ब्लास्ट किया जाना था. नेटवर्क में शामिल ज्यादातर लोग पकड़े जा चुके हैं. अब पुलिस इनके मददगारों को खोज रही है. इसके लिए एक-एक कड़ी को जोड़ा जा रहा है.
पुलिस ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी में काम करने वाले फहीम को पकड़ा. फहीम ही वो शख्स है जिसने डॉ. उमर के नाम पर रजिस्टर्ड लाल रंग की EcoSport कार को फरीदाबाद के खंडावली गांव में पार्क किया था. जांच में पता लगा कि जिस घर के सामने ये गाड़ी पार्क की गई थी, वो घर फहीम की बहन का है.
फहीम अल-फलाह मेडिकल कॉलेज में उमर के असिस्टेंट के तौर पर काम करता था. गांव वालों का कहना है कि जिस वक्त ये गाड़ी पार्क की गई, उस वक्त कार में एक महिला भी थी जिसने बुर्का पहन रखा था. पुलिस इस महिला के बारे में पता लगाने की कोशिश कर रही है.
अल-फलाह मेडिकल कॉलेज में NIA और दूसरी जांच एजसियों के अफसर डेरा डाले हुए हैं. यूनिवर्सिटी के स्टाफ से पूछताछ हुई. जब पुलिस ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी की बिल्डिंग नंबर 17 के रूम नंबर 13 की तलाशी ली तो साफ हो गया कि यही कमरा आतंकवादियों का मीटिंग प्वाइंट था. इसी कमरे में सारी प्लानिंग हुई. कमरा नंबर 13 में डॉ. मुजम्मिल और रूम नंबर 4 में डॉ. उमर बैठते थे. रूम नंबर 13 में डॉ मुजम्मिल की इजाज़त के बगैर किसी के भी घुसने की मनाही थी. यहां से कुछ केमिकल्स और डिजिटल डेटा, कई तरह के डिवाइसेज़ और पेन ड्राइव मिली हैं.
पुलिस को शक है कि डॉ. मुजम्मिल, डॉ. शाहीन और डॉ उमर ने मेडिकल कॉलेज की लैब से वो केमिकल्स चुराए जिनका इस्तेमाल विस्फोटक तैयार करने में होता है. इन्हीं केमिकल्स के साथ अमोनियम नाइट्रेट और ऑक्साइड मिलाकर विस्फोटक तैयार किए गए.
यूनिवर्सिटी के लैब से केमिकल किस तरह यूनिवर्सिटी से बाहर ले जाने हैं, ये भी इसी कमरे में तय होता था. ये हैरान करने वाली बात है कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी में आतंकी साज़िश रची जाती रही, वहां की फैकेल्टी इस काम में शामिल थी, लंबे वक्त से यूनिवर्सिटी के अंदर ये सब चल रहा था लेकिन किसी को कानों-कान खबर तक नहीं हुई. इसीलिए अल-फलाह यूनिवर्सिटी जांच एजेंसियों के शक के दायरे में है.
यूनीवर्सिटी की बिल्डिंग नंबर 17 के रूम नंबर 13 और कमरा नंबर 4 से जांच एजेंसियों को डॉ उमर और डॉ मुज़म्मिल की डायरियां मिली हैं.
एक डायरी धौज गांव के उस कमरे से भी बरामद हुई है जहां डॉ. मुजम्मिल ने 360 किलो विस्फोटक छुपाकर रखा था. इस कमरे से मिली मुजम्मिल की डायरी में कोडवर्ड्स में काफी जानकारी लिखी है. इसमें 8 और 12 नवंबर की तारीख का जिक्र है.
डायरी में करीब दो दर्जन लोगों के नाम है. इनमें ज्यादातर जम्मू-कश्मीर और फरीदाबाद के लोग हैं. जांच में ये तो साफ हो गया है कि ब्लास्ट की साजिश कम से कम दो महीने से चल रही थी.
आतंकवादी अल-फलाह यूनिवर्सिटी में बैठकर ब्लास्ट की प्लानिंग कर रहे थे, लेकिन किसी को इतनी बड़ी साज़िश की कानों कान खबर न हो, ऐसा कैसे हो सकता है? इसीलिए अब जांच एजेसियां अल-फलाह यूनिवर्सिटी की पूरी कुंडली खंगाल रही है.
इस मामले में ED की एंट्री भी हो गई है. अब ED अल-फलाह यूनिवर्सिटी के सारे ट्रांजैक्शन्स का रिकॉर्ड चैक कर रही है. इस यूनिवर्सिटी की फंडिंग की जांच हो रही है. ये भी पता लगाया जा रहा है कि हरियाणा की इस यूनिवर्सिटी में ज्यादातर प्रोफेसर्स, असिस्टेंट प्रोफेसर्स और मेडिकल छात्र जम्मू कश्मीर से ही क्यों आते थे.
हालांकि अल-फलाह यूनिवर्सिटी की तरफ से अब बार बार सफाई दी जा रही है. ये कहा जा रहा है कि जो लोग आतंकवादी गतिविधियों में पकड़े गए हैं, उनका यूनिवर्सिटी के साथ प्रोफेशनल रिश्ता था. वो यूनिवर्सिटी के बाहर क्या कर रहे हैं, इससे यूनिवर्सिटी का कोई लेना-देना नहीं है.
अल-फलाह यूनिवर्सिटी को चलाने वाले चेरिटेबिल ट्रस्ट के एडवाइज़र मोहम्मद रज़ी ने कहा कि यूनिवर्सिटी जांच एजेंसियों की पूरी मदद कर रही है. ट्रस्ट के चेयरमैन जवाद अहमद सिद्दीकी भी जांच एजेंसियों के संपर्क में हैं.
मोहम्मद रज़ी ने कहा कि जवाद अहमद सिद्दीकी की पृष्ठभूमि को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं लेकिन कोर्ट ने उन्हें पुराने सारे मामलों में क्लीन चिट दे दी है.
अल-फलाह यूनिवर्सिटी की सफाई अपनी जगह है लेकिन यूनीवर्सिटी की तरफ से इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला कि अल-फलाह मेडिकल कॉलेज की लैब से विस्फोटक तैयार करने में इस्तेमाल होने वाले केमिकल कैंपस से बाहर कैसे गए.
Association of Indian Universities ने अल-फलाह की सदस्यता रद्द कर दी. अल-फलाह यूनिवर्सिटी से AIU का LOGO और नाम इस्तेमाल न करने को कहा गया है.
ये भी खुलासा हुआ कि अल-फलाह यूनीवर्सिटी ये भी झूठा दावा कर रही थी कि नेशनल असेसमेंट एंड एक्रीडेशन काउंसिल यानि NAAC ने उसे A ग्रेड की रेटिंग दी है. NAAC ने साफ किया कि अल-फलाह यूनीवर्सिटी ने न तो कभी रेटिंग के लिए अप्लाई किया और न ही उसे कभी रेटिंग दी गई.
NAAC ने अल-फलाह यूनीवर्सिटी से जवाब मांगा है. NAAC का नोटिस मिलने के बाद यूनिवर्सिटी के वेबसाइट डाउन हो गई.
अल-फलाह यूनिवर्सिटी को इस पूरे मामले में क्लीन चिट कैसे दी जा सकती है ? ऐसा कैसे हो सकता है कि कश्मीर से आतंकवादियों द्वारा भेजे गए डॉक्टर्स एक-एक करके यहां आते गए, नौकरी पाते गए और कोई पूछने वाला नहीं था ?
जिन डॉक्टरों को बाकी जगहों से देशद्रोह या अनुशासनहीनता के लिए निकाला गया, उनकी नियुक्ति यहां बड़े आराम से हो गई. मौलाना इश्तियाक रोज अल-फलाह के चक्कर काटते रहे, डॉक्टरों को जिहाद की सीख देते रहे और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं था ?
अल-फलाह का मेडिकल कालेज आतंकवाद का अड्डा बन गया. अल-फलाह के पास गांव में बारूद का ढेर लग गया. ब्लास्ट के लिए तैयार कारें कैम्पस में सजकर खड़ी रहीं और किसी को पता नहीं चला?
ये सब कैसे हो सकता है ? साज़िश करने वाले डॉक्टर्स को अल-फलाह ने पनाह दी, पैसे दिए, विस्फोटक तैयार करने के लिए labs दी और धीरे-धीरे अल-फलाह एक बड़े आतंकवादी module का सेंटर बन गया. ये संयोग नहीं, प्रयोग लगता है.
अल-फलाह यूनिवर्सिटी का सबसे सनसनीखेज़ किस्सा डॉ. शाहीन के आतंकवादी बनने का है. डॉ. शाहीन के भाई डॉक्टर परवेज को अरेस्ट किया जा चुका है. डॉ. परवेज लखनऊ की इंटीग्रल यूनीवर्सिटी में प्रोफेसर था. डॉ. परवेज ने दिल्ली ब्लास्ट से तीन दिन पहले सात नवंबर को यूनिवर्सिटी से इस्तीफा दे दिया था.
यूपी ATS ने गुरुवार को लखनऊ की इंटीग्रल यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले जम्मू कश्मीर के करीब 60 छात्रों का बैकग्राउंड चैक किया. परवेज के घर से पुलिस ने जो लैपटॉप, दस मोबाइल और दूसरे गैजेट्स बरामद किए गये, उससे ये साफ हो गया कि डॉ. परवेज भी अपनी बहन डॉ. शाहीन के साथ टेरर मॉड्यूल में शामिल था.
वह कश्मीर के कुछ लोगों से लगातार संपर्क में था लेकिन वो टेरर नेटवर्क से जुड़े लोगों को जब भी कॉल करता था या कोई मैसेज करता था तो उसे तुंरत डिलीट कर देता था. अब पुलिस इसके गैजेट्स का सारा डेटा रिकवर करने की कोशिश कर रही है.
डॉ. परवेज से पूछताछ में पुलिस को कानपुर के डॉक्टर आरिफ मीर के बारे में पता लगा. डॉ. आरिफ कश्मीर का रहने वाला है. वह कानपुर के LPS इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी और कार्डिएक सर्जरी हॉस्पिटल में रेजीडेंट डॉक्टर के तौर पर काम कर रहा था. डॉ. आरिफ़ कानपुर के अशोक नगर में कमरा किराए पर लेकर रह रहा था. पुलिस ने डॉ आरिफ को हिरासत में लिया है.
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने यूपी के हापुड़ से डॉक्टर फारूख को डिटेन किया है. डॉ. फारूख कश्मीर का रहने वाला है. वह हापुड़ में GS हॉस्पिटल के gynaecology विभाग में काम करता है. डॉ. फारूख ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी से ही MBBS और MD किया था.
डॉ. फारूख के बारे में जानकारी डॉक्टर मुज़म्मिल से पूछताछ के बाद सामने आई. मुजम्मिल ने अपने बयान में खुलासा किया कि दिल्ली विस्फोट की साजिश में डॉ. फारूख की अहम भूमिका थी. वह डॉक्टर शाहीन के संपर्क में भी था. इसके बाद पुलिस ने डॉ. फारूख को गिरफ्तार कर लिया.
डॉ. मुज़म्मिल की दोस्त डॉ. शाहीन की डायरी पुलिस ने बरामद की है जिससे कई राज सामने आए. जैश-ए-मोहम्मद के हैंडलर्स ने शाहीन को कोड वर्ड में ‘मैडम सर्जन’ का नाम दिया था, देशभर में ब्लास्ट की साजिश को नाम दिया गया था, ‘ऑपरेशन हमदर्द’. ‘मैडम सर्जन’ का काम था मुस्लिम लड़कियों का रिक्रूटमेंट करना.
डॉ. शाहीन जैश-ए-मोहम्मद के कमांडर्स के साथ तालमेल का काम करती थी. जांच के दौरान सुरक्षा एजेंसियों को शाहीन के चैटबॉक्स में ‘टीम D’ का जिक्र मिला है.
‘टीम D’ यानी आतंकी गतिविधियों में शामिल डॉक्टरों की टीम. इस टीम में शाहीन और उसके डॉक्टर साथी शामिल थे जिनको कोड वर्ड के ज़रिए टास्क दिया जाता था.
चैटिंग के दौरान Heart स्पेशलिस्ट, Eye स्पेशलिस्ट, Physician शब्दों का इस्तेमाल होता था. छोटे हथियार के लिए Medicine स्टॉक, रेकी वाली जगह को लेकर ऑपरेशन थिएटर शब्द का इस्तेमाल किया जाता था.
पैसों का इंतज़ाम करने के लिए ऑपेरशन की तैयारी जैसे कोड़वर्ड का इस्तेमाल होता था. शाहीन की डायरी से ही पुलिस को पता चला कि आंतक की साजिश को अंजाम तक पहुंचाने के लिए टीम-D ने 26 लाख रूपये जुटाए थे. इसमें से 3 लाख रूपये से 26 क्विंटल NKP फर्टिलाइज़र, टाइमर और रिमोट समेत कुछ और सामान खरीदा गया.
डॉक्टर शाहीन की डायरी से आफिरा बीबी के बारे में भी पता चला. आफिरा बीबी जैश-ए- मोहम्मद की महिला विंग की कमांडर है. पुलवामा हमले के मास्टरमाइंड उमर फारूक की पत्नी है. डॉक्टर शाहीन को पाकिस्तान से सारे ऑर्डर आफिरा बीबी के ज़रिए मिलते थे.
पुलिस को इस बात के भी सबूत मिले हैं कि डॉक्टर शाहीन जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मसूद अज़हर की बहन सादिया अज़हर के साथ लगातार संपर्क में थी. आफिरा और सादिया ने ही ऑपरेशन हमदर्द की जिम्मेदारी डॉक्टर शाहीन को दी थी.
इंडिया टीवी के पॉलिटिकल एडीटर देवेन्द्र पाराशर ने खबर दी है कि दिल्ली ब्लास्ट का कनेक्शन पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से होने के सबूत मिले हैं. पकड़े गए डॉक्टर्स के एक हैंडलर का नाम फैसल अशफ़ाक़ बट है. अशफ़ाक़ बट अफ़ग़ानिस्तान में रहता है. टेरर मॉड्यूल में शामिल डॉक्टर्स हाशिम और डॉक्टर उकासा नाम के हैंडलर्स के संपर्क में भी थे. इन दोनों हैंडलर्स की लोकेशन विदेश में मिली है.
पकड़े गए डॉक्टर्स ने टेलीग्राम चैनल पर दो ग्रुप्स बनाए हुए थे. इनके नाम फ़रज़ंदान-ए-दारुल उलूम देवबंद और काफ़िला-ए-ग़ुरबा थे. इन्हीं दोनों टेलीग्राम ग्रुप्स के ज़रिए लोगों को Radicalize किया जाता था.
ये लोग पैसों के लेन-देन के लिए भी टेलीग्राम चैनल का ही इस्तेमाल कर रहे थे.
इस बात में तो कोई शक नहीं कि अल-फलाह को आतंक का अड्डा बनाने में पाकिस्तान का हाथ है. इस बात में भी कोई संदेह नहीं कि इस बार बड़ी चालाकी से डॉक्टरों को जिहादी बनाया गया.
पढ़े-लिखे लोग जब दहशतगर्द बनते हैं तो ज्यादा ख़तरनाक होते हैं. उनसे सुराग निकालना मुश्किल होता है. पाकिस्तान का इस आतंकी नेटवर्क से कनेक्शन स्थापित न हो पाए, इसीलिए इस बार ISI ने तुर्किए का सहारा लिया. तुर्किए की सरकार भारत विरोधी है. हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर वो पाकिस्तान का साथ देती है. ऑपरेशन सिंदूर के वक्त भी भारत पर हमले के लिए तुर्किए में बने ड्रोन्स मैदान में आए थे. लेकिन जिस तरह से हमारी पराक्रमी फौज ने एक एक ड्रोन्स को मार गिराया, उसी तरह आतंकवाद के एक एक एजेंट का सफाया होगा.
हमें अपने सुरक्षा बलों पर भरोसा रखना चाहिए कि वो पाकिस्तान के कनेक्शन का पर्दाफाश करेंगे और दहशतगर्दों के आकाओं को सज़ा भी देंगे.
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