ज़हर का तड़का: चीनी लहसुन से सावधान !
आज सबसे पहले आपको उस खतरे के बारे में आगाह करना चाहता हूं जो आपके किचन तक पहुंच चुका है. आप जिस चमकदार, साफ सुथरे, बड़े लहसुन को अच्छा समझ कर खरीदते हैं, खाते हैं, असलियत में वो चीनी लहसुन है, जो कि धईमा ज़हर है और सेहत के लिए खतरनाक है. सरकार ने चाइनीज़ लहसुन के आयात पर रोक लगा रखी है, इसे बेचना मना है, पर ये नेपाल या अफगानिस्तान के रास्ते भारत पहुंच रहे हैं. आजकल हर सब्जी वाले की दुकान पर, चाइनीज लहसुन धडल्ले से बिक रहा है. इलाहबाद हाईकोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी करके पूछा है कि जब चाइनीज लहसुन पर बैन है तो फिर ये देश में कैसे आ रहा है, खुलेआम कैसे बिक रहा है? इलाहबाद हाईकोर्ट में एक पेटिशनर चाइनीज लहसुन लेकर पहुंच गया. जज साहब से कहा कि इस लहसुन की बिक्री पर दस साल से पाबंदी है, इसका आयात भी गैरकानूनी है. ये कानून का उल्लंघन है और लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ है. हाईकोर्ट ने खाद्य सुरक्षा विभाग के अधिकारियों को बुलाया और निर्देश दिया कि दो हफ्ते के अंदर लैब में इनकी जांच करने के बाद पूरी वस्तुस्थिति से अवगत कराएं. कोर्ट ने वक्त तो दे दिया लेकिन ये निर्देश भी दिया कि सरकार लोगों को चाइनीज लहसुन के खतरों से सावधान करे, एक हेल्पलाइन नंबर जारी करे, जिस पर फोन या मैसेज करके लोग इसकी शिकायत कर सकें कि चाइनीज लहसुन कहां बिक रहा है. दुनिया में लहसुन की पैदावार में चीन के बाद, भारत दूसरे नंबर पर है. बाज़ार में छोटी छोटी गांठों वाली जो लहसुन बिकती है, वो देसी है, और जो बिल्कुल सफेद और बड़ी बड़ी मोटी गांठों वाला लहसुन है, वो चीनी लहसुन है. कुछ लहसुन ईरान से भी इंपोर्ट होता है.वो भी आकार में बड़ा है, लेकिन हल्के गुलाबी रंग का होता है, जबकि चाइनीज़ लहसुन बिल्कुल सफेद होता है. ईरानी और चाइनीज लहसुन में फ़र्क़ करना मुश्किल है. इसलिए ईरानी लहसुन के नाम पर चाइनीज़ लहसुन धड़ल्ले से बिक रहा है. पता ये लगा है कि ज्यादातर चाइनीज़ लहसुन की सप्लाई नेपाल और अफगानिस्तान के रास्ते होती है. लहसुन को पहले चाइ से नेपाल की मंडियों में पहुंचाया जाता है. फिर वहां से आढ़ती और तस्करी करने वाले इसे चोरी छुपे सीमा पार करा कर भारत में ले आते हैं. गुरुवार को यूपी के महाराजगंज में पुलिस ने 110 बोरी चाइनीज़ लहसुन ज़ब्त किया था. 2014 में चीनी लहसुन की टेस्टिंग हुई थी. शुद्धता के जो मानक है, उस पर चाइनीज़ लहसुन खरा नहीं उतरा था, लैब टेस्ट में फेल हो गया था. चाइनीज़ लहसुन में तय मात्रा से ज़्यादा कीटनाशक मिले थे. जेनेटिकली मॉडीफाइड होने के कारण चीनी लहसुन में फंगल इन्फेक्शन भी जल्दी हो जाता है, इसलिए इसे खतरनाक माना गया और सरकार ने इस पर बैन लगा दिया.
कौन सोच सकता था कि छोटा सा लहसुन इतना बड़ा मुद्दा बन जाएगा, पर ये चाइनीज लहसुन है. इससे पहले चाइनीज चावल, चाइनीज अंडे और चाइनीज नूडल्स ने परेशान किया था. ये सब सेहत लिए खतरनाक थे. उसी तरह चाइनीज लहसुन को भी खतरनाक पाया गया. चीन विश्व में लहसुन का सबसे बड़ा उत्पादक है, पर उसमें सबसे ज्यादा कीटनाशक डाला जाता है, और इसे सैप्टिक टैंक के पानी से उगाया जाता है. हमारे देश में खास तौर पर आयुर्वेद में लहसुन को एक तरह की औषधि माना जाता है. ब्लड प्रेशर की हलात में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए लहसुन दिया जाता है पर अगर दवा ही ज़हर बन जाए तो मरीज का क्या होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. अब सवाल ये है कि चीनी लहसुन और देसी लहसून में क्या फर्क होता है और इसे कैसे पहचाना जा सकता है ? कुछ टिप्स मैं आपको दे देता हूं.. चीनी लहसुन आकार में बड़ा होता है, जबकि देसी लहसुन छोटा होता है. चीनी लहसुन की कलियां छोटी और मोटी होती हैं, जबकि देसी लहसुन की कलियां लंबी और पतली होती हैं. चीनी लहसुन आपको पूरी तरह सफेद मिलेगा जबकि देसी लहसुन मटमैला या पीला भी हो सकता है. चीनी लहसुन में गंध कम होती है और देसी लहसुन की गंध तेज होती है. इसी तरह चीनी लहसुन को छीलना बहुत आसान होता है लेकिन देसी लहसुन में छिलकों की इतनी परतें-दर-परतें होती है कि इसे पूरी तरह छीलने में वक्त लग जाता है. अब जब आप बाजार में जाएं तो इस आधार पर पहचान लें कि आप कौन सा लहसुन खरीद रहे हैं और कौन सा लहसुन खा रहे हैं, क्योंकि मार्केट में दोनों मिलते हैं. चीनी लहसुन थोड़ा सस्ता होता है, पर देसी लहसुन महंगा है. मेरी सलाह है कि आप सस्ते के चक्कर में ना पड़ें. जिस प्रोडक्ट के नाम के आगे चाइनीज लग जाता है, उसकी गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर शक तो वैसे ही होता है. इसीलिए संभल कर रहें..
Beware of Chinese garlic : A slow poison
The Lucknow bench of Allahabad High Court has directed the UP Food Safety department to probe how banned Chinese garlic, that is considered harmful for health, is still available in markets. This was in response to a public interest litigation filed by a lawyer complaining that Chinese garlic is still being sold in markets despite the Centre clamping a ban on its import. Chinese garlic is considered a slow poison, because of excessive use of pesticide. The Food Safety department has sought two weeks time to test Chinese garlic in food lab and give its report.
The High Court directed that a Helpline WhatsApp number be issued in public interest so that people can send their complaints. Garlic is normally recommended for use by Ayurvedic doctors and dieticians, but the issue of banned Chinese garlic being sold in Indian markets is a case for worry. Earlier, there were controversies involving Chinese fake rice, Chinese fake eggs and Chinese fake noodles. All these products were declared harmful for health. China is the world’s largest garlic producer but its farmers use excessive pesticide to grow garlic. It is grown inside septic tanks, and there have been frequent reports of fungus being found in Chinese garlic. In Ayurveda, garlic is considered a medicine to enhance immunity for those suffering from blood pressure. One can well imagine what patients will face if they consumer Chinese garlic considered as slow poison. Let me share some tips with you about how to differentiate between Indian and Chinese garlic.
Indian ‘desi’ garlic are smaller in size, while Chinese garlic pods are bigger. ‘Desi’ garlic pods are slim and long. Chinese garlic look completely white, while ‘Desi’ garlic pods are yellowish. Chinese garlic have less smell, while ‘desi’ garlic pods have a strong smell. It is easier to remove the covering of Chinese garlic pods, while ‘desi’ garlic pods have several peels of covering and it takes longer to take out the pods. If you buy garlic from market, be careful to differentiate the Indian garlic from the Chinese one. The Chinese garlic may look cheaper while Indian garlic may cost more. My advice to all of you is: Do not be swayed by cheaper Chinese garlic.
Who fears Yogi’s shadow on Himachal? And why?
A day after several Congress leaders, including T.S. Singhdeo, Tariq Anwar and Imran Pratapgarhi strongly objected to a Himachal Pradesh minister’s diktat mandating all street vendors and food establishment owners to follow the ‘Yogi model’ in displaying their names prominently, the state government on Thursday evening clarified that no such order has been issued and the matter is still being studied by a House Committee of the Assembly. The controversy arose after Himachal Pradesh urban development minister Vikramaditya Singh on Wednesday told a meeting of municipal corporation and urban development ministry officials that all food establishment owners will have to prominently display their names. Clearly, the Congress government in HP was taking a cue from the ‘Yogi model’ being implemented in UP. Congress MP Imran Pratapgarhi spoke to Rahul Gandhi and demanded withdrawal of the order. Another Congress MP Tariq Anwar said he would write to the partry president demanding his intervention. Former Deputy CM of Chhattisgarh T S Singhdeo said, it seems such steps are being taken “to isolate a particular section of society and Congress would not support this.”
Vikramditya Singh’s mother and Himachal state Congress chief Pratibha Singh supported the move, but after both mother and son were summoned to Delhi by party high command, Vikramaditya Singh backed out saying that no such order has been issued and the matter is before a House Committee. He said, anybody from any part of India was free to come to Himachal Pradesh and do business. The moot question is, why did the Congress forced its minister in HP to drop the idea? Was it because this idea was based on ‘Yogi model’? Was it because that a similar step was taken by the BJP government in UP? At least, Congress should not object, because it had been saying since 2014 that Modi government was only implementing Congress schemes, with different names. Congress even claimed that the Swacch Abhiyan (cleanliness movement), Jan Dhan scheme and Make In India scheme were initiated by the party.
In UP, Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav claims copyright on each of the welfare schemes implemented by Yogi government. Then why this political storm over Shimla? The real reason is: fear of losing Muslim votes. The first objections were raised by Muslim leaders in Congress like Imran Pratapgarhi and Tariq Anwar, who portray themselves as champions of Muslim voters. They feel that by following the ‘Yogi model’, Congress may lose Muslim voters. This is the reason why the Himachal minister was forced to change his stand. The same Himachal minister had earlier described the constructions at the controversial Sanjauli mosque in Shimla as illegal. The minister stood in the state assembly, and openly warned that this illegal mosque could pose a danger to peace in Shimla, but the next day, he had to change his stand. The U-turn taken by minister Vikramaditya Singh and Chief Minister Sukhvinder Singh Sukhu’s government on Thursday makes it quite clear that the order to display names of owners of food eateries would no more be implemented.
हिमाचल में योगी की छाया: किस डर ने सताया?
योगी आदित्यनाथ के चक्कर में कांग्रेस के नेताओं में झगड़ा शुरू हो गया. हिमाचल के लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने ऐलान किया कि योगी आदित्यनाथ ने यूपी में खाने पीने की दुकानों में नेम प्लेट और मालिक का नाम पता लिखने को जिस तरह अनिवार्य बनाया है, उसी तरह हिमाचल प्रदेश में भी खाने पीने के दुकानदारों और रेहड़ी पटरी वालों को नेमप्लेट लगाना जरूरी होगा. विक्रमादित्य सिंह के इस फैसले को लेकर कांग्रेस के तमाम नेताओं को आपत्ति है, जैसे टी एस सिंह देव, तारिक अनवर और इमरान प्रतापगढ़ी.तमाम नेताओं ने कांग्रेस हाईकमान से शिकायत की और हिमाचल सरकार से अपना फैसला वापस लेने की मांग की. हालत ये हो गई शाम होते होते हिमाचल प्रदेश सरकार की तरफ से ऐलान हो गया कि इस तरह का कोई फैसला नहीं हुआ है, इस मामले में विधानसभा की कमेटी बनी है, वही जो तय करेगी, वही होगा. इसके बाद विक्रमादित्य सिंह को भी कहना पड़ा कि फिलहाल कोई फैसला नहीं लिया गया है. कमेटी रेहड़ी पटरी और दुकानदारों को आईकार्ड जारी करेगी, और वही आईकार्ड सबको डिस्प्ले करना होगा. लेकिन कांग्रेस के नाराज नेताओं को सिर्फ इतने से संतोष नहीं हैं, वो चाहते हैं कि कांग्रेस हाईकमान इस मामले में दखल दे, ये पता लगाए कि आखिर विक्रमादित्य सिंह ने बिना सलाह मशविरे के इस तरह के नाज़ुक मसले पर बयान क्यों दे दिया. लेकिन सवाल ये है कि क्या विक्रमादित्य सिंह ने वाकई में बिना सोचे विचारे फैसला सुना दिया. अगर वो कुछ करना ही चाहते थे तो फिर योगी आदित्यनाथ का नाम लेकर उन्हें श्रेय देने की जरूरत क्या थी? शहरी विकास, लोक निर्माण और नगर निगम के अधिकारियों की मीटिंग में विक्रमादित्य सिंह ने कहा था कि शिमला में हुए विरोध प्रदर्शन, अपराधों की बढती संख्या को देखते हुए सरकार ने फ़ैसला किया है कि रेहड़ी पटरी वालों और दुकानदारों को अपना नाम और पहचान ऐसी जगह लिखकर रखनी होगी, जो सबको आसानी से दिखे. चूंकि यूपी में योगी आदित्यनाथ ने भी दो दिन पहले ही खाने पीने की दुकानों के मालिकों को अपना नाम पता और फोन नंबर डिस्प्ले करने का निर्देश दिया था, खाने पीने का सामान बेचने वाले हर दुकानदार और वहां काम करने वालों का वेरिफिकेशन कराने, दुकान में CCTV कैमरे लगाने और साफ सफाई के मानक पूरे करने के आदेश दिए थे, विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि जो फैसला यूपी सरकार ने किया है, उसी तर्ज पर उन्होंने भी हिमाचल में दुकानदारों का वेरिफिकेशन, उनके नाम पते डिस्प्ले करने को अनिवार्य बनाने का आदेश दिया है ताकि हिमाचल के लोगों के हितों की रक्षा की जा सके. विक्रमादित्य सिंह ने सीधी और साफ बात की लेकिन उनकी ये साफगोई कांग्रेस के नेताओं को बुरी लग गई. सबसे ज्यादा बुरा ये लगा कि उन्होंने अपने आदेश को यूपी से जोड़ दिया, योगी का नाम ले लिया, ये कह दिया कि जिस तरह यूपी में हुआ, वैसा वो हिमाचल में भी करेंगे. इसी बात पर कांग्रेस के नेता भड़क गए. विक्रमादित्य के एलान को बीजेपी की नक़ल क़रार दिया . कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने राहुल गांधी से बात करके विक्रमादित्य सिंह की शिकायत की, फैसला वापस लेने की मांग की. कांग्रेस के एक और सांसद तारिक़ अनवर ने कह दिया कि वो कांग्रेस अध्यक्ष को चिट्ठी लिख कर इस मामले में दखल देने की मांग करेंगे. छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री टी एस सिंहदेव ने भी विक्रमादित्य सिंह के फैसले पर आपत्ति जताई. टी एस सिंहदेव ने कहा कि अगर पहचान जरूरी है, तो इसके लिए नियम कानून पहले से ही , दुकानदारों को नगर निगम से लाइसेंस मिलता है. सिंहदेव ने कहा कि ऐसा लगता है कि किसी एक वर्ग को अलग-थलग करने की नीयत से इस तरह की बातें हो रही हैं. जब विवाद बढ़ा तो विक्रमादित्य सिंह की मां और हिमाचल कांग्रेस की अध्यक्ष प्रतिभा सिंह उनके बचाव में सामने आईं. प्रतिभा सिंह ने कहा कि वो सरकार के फ़ैसले के साथ हैं. लेकिन पार्टी हाईकमान की तरफ से संदेश पहुंच गया. विक्रमादित्य सिंह और प्रतिभा सिंह दोनों को दिल्ली तलब किया गया. विक्रमादित्य सिंह से कहा गया कि वो ऐसे बयान न दें कि विपक्षी दलों को मौक़ा मिले, पार्टी के नेता नाराज़ हों. इसके बाद विक्रमादित्य सिंह अपने बयान से पीछे हट गए. उन्होंने कहा कि उनके आदेश का यूपी से कोई लेना देना नहीं है, हिमाचल प्रदेश एक अलग राज्य है. वह तो हाई कोर्ट के ऑर्डर का ही अनुपालन कर रहे हैं. विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में किसी से भी भेदभाव नहीं होगा, देश का कोई भी नागरिक हिमाचल में आकर दुकान लगा सकता है. हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी सफ़ाई दी. कहा कि अभी तो इस मामले पर सिर्फ़ बातचीत हो रही है. एक स4वदलीय कमेटी बनाई गई है. कमेटी सभी से बात करके कैबिनेट को अपनी सिफ़ारिश देगी. हिमाचल प्रदेश के मुख्य संसदीय सचिव संजय अवस्थी ने अपनी सरकार के मंत्री विक्रमादित्य सिंह के बयान को उनकी निजी राय बतायी. संजय अवस्थी ने कहा कि विक्रामदित्य सिंह के बयान को गंभीरता से लेने की ज़रूरत नहीं है… क्योंकि, अभी तो सरकार ने इस पर कोई चर्चा ही नहीं की. हिमाचल में कांग्रेस ने अपने मंत्री का आइडिया ड्रॉप क्यों करवाया? क्या सिर्फ इसीलिए कि ये आइडिया योगी का था? क्या सिर्फ इसीलिए कि खाने पीने की दुकानों पर नाम लगाने की स्कीम यूपी में लागू हुई थी? कांग्रेस को तो ये शिकायत नहीं होनी चाहिए क्योंकि कांग्रेस हमेशा से ये कहते रही है कि मोदी कांग्रेस की योजनाओं को लागू करते हैं सिर्फ नाम बदलते हैं. कांग्रेस का तो दावा है, स्वच्छ अभियान भी हमारा, जनधन भी हमारा, मेक इन इंडिया भी हमारा और यूपी में तो अखिलेश यादव योगी सरकार की हर योजना पर अपना कॉपीराइट जताते हैं.तो फिर शिमला में तूफान खड़ा करने की क्या जरूरत थी? इसकी असली वजह है, मुस्लिम वोटों के खोने का डर. कांग्रेस के जिन नेताओं ने सबसे पहले आवाज उठाई, इमरान प्रतापगढ़ी और तारिक अनवर जैसे नेता मुस्लिम वोटों के चैंपियन हैं. उन्हें लगता है कि योगी के रास्ते पर चले तो मुसलमान कांग्रेस से नाराज हो जाएंगे. इसीलिए मंत्री को अपने बयान से पलटवा दिया. पहले भी शिमला की मस्जिद को कांग्रेस के मंत्री ने ही गैरकानूनी बताया था. विधानसभा में खड़े होकर कांग्रेस के मंत्री ने ही शिमला की शांति पर खतरे को लेकर आगाह कराया था लेकिन अगले दिन वो भी अपनी बात से पलट गए. विक्रमादित्य के बयानों और फिर सुक्खू सरकार की सफाई से इतना तो साफ है कि दुकानों पर साफ सफाई कराने और नेमप्लेट लगाने का ये आदेश लागू नहीं होगा.
बदलापुर या बदला पूरा: एनकाउंटर या शूटआउट?
बदलापुर में मासूम बच्चियों के साथ गंदी हरकत करने वाले अक्षय शिंदे के एनकाउंटर के केस में अब जमकर सियासत हो रही है. चूंकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी एनकाउंटर पर शक ज़ाहिर कर दिया. इसलिए अब महाविकास अघाडी के नेता मुंबई पुलिस और एकनाथ शिन्दे की सरकार को घेर रहे हैं. एनकाउंटर में मारे गए अक्षय शिन्दे के पिता का आरोप है कि उनके बेटे की हत्या की गई, और उन्हीं की अर्जी पर सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाया, कड़ी टिप्पणियां की. हाईकोर्ट ने पूछा कि चार पुलिस वालों की मौजूदगी में आरोपी ने पुलिस की पिस्टल छीन ली, फायरिंग कर दी, ये बात गले नहीं उतरती. अदालत ने कहा कि पुलिस के मुताबिक ,आरोपी ने तीन फायर किए, एक गोली पुलिस अफसर के पैर में लगी, तो बाकी दो गालियां कहां गई. पुलिस ने आरोपी के पैर या हाथ में गोली क्यों नहीं मारी? सीधे सिर पर निशाना क्यों साधा? इसलिए पहली नज़र में गड़बड़ तो लगती है. हालांकि हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि वो फिलहाल इस केस में मैरिट के आधार पर कुछ नहीं कहना चाहते, अगली तारीख में सारे तथ्य और सबूत अदालत के सामने पेश किए जाएं, चूंकि इस मामले की जांच अब CID को सौंप दी गई है, इसलिए हाईकोर्ट ने पुलिस को केस के सभी कागज़ात CID को सौंपने का निर्देश दिया. चूंकि अदालत ने पुलिस से सवाल पूछे तो महा विकास अघाड़ी के नेताओं ने इसी मुद्दे पर सरकार को घेरा लेकिन महायुति के नेता और कार्यकर्ताओं को भी विरोधियों के आरोपों की फिक्र नहीं है. एकनाथ शिंदे की शिवसेना और बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने मुंबई की सड़कों पर बड़े-बड़े पोस्टर, बैनर और होर्डिंग्स लगा दिए. अखबारों में विज्ञापन दिए.. एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने जो विज्ञापन दिए हैं, उसमें उन्हें धर्मवीर बताया गया है. बीजेपी के लोगों ने होर्डिंग्स में देवेंद्र फडणवीस की तस्वीर के साथ बड़े-बड़े शब्दों में लिखा है- बदलापुरा…यानि बदला पूरा हो गया. कई होर्डिंग्स में लिखा गया कि महा विकास अघाड़ी की सरकार में पुलिस, सरकार के लिए पैसे वसूलने का काम करती थी लेकिन अब पुलिस जनता के लिए हिसाब लेती है, फर्क साफ है. AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी मुंबई में थे. उन्होंने कहा कि बीजेपी के पोस्टर्स बैनर से साफ हो गया कि महाराष्ट्र की सरकार को अब इंसाफ पर भरोसा नहीं रहा, वो बदला लेना जानती है, उसने बदला लिया है. ओवैसी ने कहा कि कोर्ट से इंसाफ होता है, बदला लेना तो गैगस्टर्स का काम है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने जो सवाल पूछे वो बिल्कुल सही हैं..कोर्ट में पुलिस को ये साबित करना पड़ेगा कि ये एनकाउंटर था या शूटआउट? लेकिन इस मामले में पब्लिक का सेंटिमेंट बिलकुल अलग है..जो लोग छोटी छोटी बच्चियों के साथ किए गए दुष्कर्म से नाराज होकर प्रोटेस्ट कर रहे थे, अपराधी को फांसी की सजा देने की मांग कर रहे थे, उनके कलेजे को ठंडक मिली है, वो शांत हैं. ये सही है कि कोर्ट पब्लिक की भावनाओं से प्रभावित नहीं होती लेकिन सियासत ज़रूर प्रभावित होती है. इसीलिए विरोधी दलों के नेता लोगों को ये समझाने में लगे हैं कि एनकाउंटर किसी बीजेपी समर्थक को बचाने के लिए किया गया. वो भी खुलकर एनकाउंटर के विरोध में नहीं बोल रहे हैं. दूसरी तरफ एकनाथ शिंदे और फडणवीस के समर्थक पब्लिक सेंटिमेंट के साथ हैं. वो लोगों से कह रहे हैं कि बदला पूरा हुआ. नैतिकता के लिहाज से विपक्ष और सरकार दोनों पक्ष गलत हैं. अब मामला हाईकोर्ट के सामने है. कायदे से तो सबको अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिए. लेकिन मुश्किल ये है कि अदालत का फैसला जब आएगा,तब आएगा. अभी तो सारी पार्टियों के सामने महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव है.
Badlapur or Badla Poora: Encounter Or Shootout?
A division bench of Bombay High Court has raised critical questions relating to the death of Badlapur sexual assault accused, who was killed while being ferried in a police van from Taloja jail to Badlapur police station. Justices Revati Mohite Dere and Prithviraj Chavan said, “it is very hard to believe that a man of slight build, such as the accused, could not be overpowered by four policemen sitting inside the van, when he turned violent. ” Raising question about the police version about how Akshay Shinde, the accused, was killed, the bench said, “we want to know the truth. We are not remotely suspecting activities done by police. But come clean.” Justice Chavan said, “Have you ever used a pistol? I have fired 100 times. It requires strength…A layman cannot fire a pistol, unless he is trained. Any Tom, Dick and Harry can fire from a revolver, but to fire from a pistol requires strength, unless it is made in Austria. A weak man cannot move the slide back….This can’t be termed an encounter. The definition of encounter is different.”
The division bench was hearing a petition filed by the deceased’s father seeking a SIT probe into the circumstances in which Shinde was killed. The bench said, “it appears he was shot at point-blank range…We need an impartial probe into the incident, even if there are cops involved.” Since the matter is being probed by CID, the High Court directed the police to hand over all documents and evidence to the probe team. Meanwhile, there were allegations and counter-allegations between the ruling Mahayuti alliance and opposition Maha Vikas Aghadi leaders. Chief Minister Eknath Shinde’s Shiv Sena put out hoardings, banners, posters and newspaper ads describing the CM as “Dharmaveer”, while BJP posters depicted Deputy CM Devendra Fadnavis on posters saying “Badla poora” (meaning revenge has been taken).
AIMIM chief Asaduddin Owaisi, who was in Mumbai, said, ‘it is now clear from BJP posters and banners that the state government has no faith in justice, and is more intent on taking revenge.’ Personally, I feel, the questions raised by Bombay High Court are valid. Police will have to prove in court whether it was an encounter or a shootout. For the moment, public sentiment is quite different. Those who have been demanding hanging of Akshay Shinde for sexually assaulting nursery kids, are happy with the outcome. It is true that a court of law should not be swayed by public sentiments, but political parties are trying to score brownie points. Opposition leaders are trying to tell people that the shootout took place in order to protect a BJP supporter, but even then, the same leaders are not opposing encounters. On the other hand, supporters of Chief Minister Eknath Shinde and Deputy CM Fadnavis are openly with public sentiment. They are clearly sending the message to the people that “revenge has been taken”. From a moral point of view, the stands taken by both the ruling and opposition camps are questionable. The matter is now before the High Court. All of us should wait for the court’s verdict. For the present, the swords are out in both camps in view of the forthcoming Maharashtra assembly elections.
मैसूरु ज़मीन घोटाला : CM की कुर्सी खतरे में
मैसूरु जमीन घोटाले के केस में फंसे कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की कुर्सी खतरे में पड़ गईं. कर्नाटक हाईकोर्ट ने सिद्धारमैया के खिलाफ केस चलाने की मंजूरी दे दी लेकिन सिद्धारमैया ने साफ कह दिया कि वो सिंगल बेंच के फैसले को डबल बेंच में चुनौती देंगे. ज़रूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट जाएंगे, लेकिन इस्तीफा नहीं देंगे. सिद्धारमैया के खिलाफ जमीन घोटाले के केस में राज्यपाल थावर चंद गहलौत ने मुकदमा चलाने की जो अनुमति दी थी, जिसे सिद्धारमैया ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. मंगलवार को हाईकोर्ट ने सिद्दारमैया की अर्ज़ी खारिज कर दी और राज्यपाल के फैसले को सही बताया. जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल बेंच ने राज्यपाल के आदेश को सही ठहराया. अब इस ज़मीन घोटाले में सिद्धरामैया पर मुकदमा चलेगा, उनके खिलाफ FIR दर्ज होगी, आरोपों की जांच की जाएगी. जज ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले में जो तथ्य सामने आए हैं और चूंकि आरोप मुख्यमंत्री के परिवार पर लगे हैं इसलिए भी इसकी जांच की जानी चाहिए.
अब नैतिकता के आधार पर सिद्धारमैया से इस्तीफे की मांग हो रही है लेकिन सिद्धारमैया का कहना है कि जब कोई घोटाला हुआ ही नहीं. जब उन्होंने कोई गलत काम किया ही नहीं, तो वो इस्तीफा क्यों दें? मुख्यमंत्री का आरोप है, ये सब कांग्रेस सरकार को गिराने की बीजेपी की साजिश है, इसलिए वो किसी कीमत पर इस्तीफा नहीं देंगे. ये बात तो तय है कि कानूनी और राजनीतिक तौर पर सिद्धारमैया की मुश्किलें इस फैसले के बाद बढ़ गई हैं. सिद्धारमैया के ऊपर पार्टी के अंदर से भी दबाव है. अभी तक कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है. सिद्धारमैया कह रहे हैं कि जिस जमीन की बात हो रही है, वो जमीन भी उन्होंने वापस कर दी है, लेकिन मैं आपको बता देता हूं कि पूरा मामला है क्या. दरअसल जिस जमीन को लेकर घोटाले का इल्जाम लग रहा है, वो करीब साढ़े तीन एकड़ जमीन सिद्धारमैया के brother-in-law ने 2010 में उस वक्त खरीदी थी जब सिद्धारमैया उपमुख्यमंत्री थे. इस जमीन को सिद्धारमैया के ब्रदर इन लॉ ने अपनी बहन यानि सिद्दारमैया की पत्नी पार्वती को गिफ्ट कर दी. मैसूरू अर्बन डेवलेपमेंट अथॉरिटी ने इस जमीन का अधिग्रहण किए बिना यहां देवनूर स्टेज थ्री ले आउट को डेवलेप कर दिया. जब कर्नाटक में बसवराज बोम्मई की बीजेपी सरकार थी, उस वक्त 2022 में इसी जमीन के बदले सिद्धरामैया की पत्नी ने साउथ मैसूरू के पॉश इलाके में अलग अलग प्लास्ट के रूप में 38 हजार 283 स्कवायर मीटर जमीन ले ली. अब सिद्धरामैया पर आरोप है कि गांव की जमीन के बदले उन्होंने मैसूर के पॉश इलाके में कई गुना मंहगी जमीन ले ली. सिद्धरामैया पर पारिवारिक संपत्ति के कागज़ात में जालसाजी का भी आरोप है. जब ये विवाद बढ़ा तो सिद्धारमैया ने जमीन वापस कर दी, लेकिन मामला कोर्ट तक पहुंच गया और मंगलवार को हाईकोर्ट ने भी सिद्धारमैया के खिलाफ फैसला सुना दिया. इसलिए बीजेपी उनका इस्तीफा मांग रही है. चूंकि ये कहा जा रहा है कि डी के शिवकुमार भी चाहते हैं कि सिद्दारमैया इस्तीफा दें और उनके मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हो जाए, लेकिन डी के शिवकुमार फिलहाल इस मामले से खुद को दूर रखना चाहते हैं. इसलिए हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद डी के शिवकुमार सबसे पहले सिद्धारमैया से मिलने पहुंचे. इसके बाद उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री पर लगे आरोप झूठे हैं, सिद्धारमैया कानूनी लड़ाई लडेंगे, इस्तीफा नहीं देंगे.
Mysuru land scam : Pressure on CM to resign
With the Karnataka High Court dismissing Chief Minister Siddaramaiah’s challenge to the sanction given by Governor for probing the Mysuru Urban Development Authority land scam case involving his wife Parvathi, the opposition has started demanding his resignation. Siddramaiah’s problems have increased both legally and politically, and there is pressure on him from his party leaders too. Siddaramaiah has refused to quit saying that the High Court has only favoured a probe but “that does not mean I am guilty”.
Siddaramaiah says, he has done nothing illegal, and the land in question has been returned by him. Let us go into the merits of the case. The 3.5 acre land was purchased by Siddaramaiah’s brother-in-law in 2010, when the former was Deputy Chief Minister. His brother-in-law gifted this land to his sister (CM’s wife Parvathi). Mysuru Urban Development Authority, without acquiring village land, started developing Devanur Stage-3 layout. In 2022, when Basavaraj Bommai was BJP chief minister, Siddaramaiah’s wife acquired 38,283 square meter of plots in the posh locality of south Mysuru, in exchange for the 3.5 acre land.
Siddaramaiah’s family now faces allegation that he acquired costly plots in Mysuru’s posh locality by exchanging cheap village land. There are also allegations of forgery in some documents relating to Siddaramaiah’s family properties. When this controversy came into public focus, the chief minister returned the land, but, by that time, the matter had reached the courts.
On Tuesday, Karnataka High Court said,”if the petitioner (Siddaramaiah) was not in the seat of poer, helm of affairs, the benefit of such magnitude would not have flown…In the opinion of the court, the Chief Minister…should not fight shy of any investigation. There is lurking suspicion, looming large allegations, and the beneficiary of Rs 56 crore is the family of the chief minister.”
The main opposition party BJP demanded the chief minister’s resignation, while both Congress President Malliakarjun Kharge and Lok Sabha leader of opposition Rahul Gandhi have maintained silence. There are speculations that the Deputy CM D K Shivakumar also wants Siddaramaiah should resign and make way for him to become the chief minister, but, for the moment, Shivakumar is playing safe.
Soon after the High Court gave its verdict, D K Shivakumar met the Chief Minister and later said that all allegations against Siddaramaiah were baseless. He said, Siddaramaiah will not resign and will fight the legal battle.
जात ना पूछो अपराधी की !
उत्तर प्रदेश में एक बार फिर एनकाउंटर में मारे गए अपराधी की जाति पर सियासत हुई. सुल्तानपुर में डकैती का आरोपी अनुज प्रताप सिंह पुलिस एनकाउंटर में मारा गया. उस पर एक लाख रु. का इनाम था. पुलिस ने लूट का माल भी बरामद कर लिया है.. कुल14 में से दो डकैत मारे जा चुके हैं, नौ जेल में हैं, तीन फरार हैं. इस केस में पहला एनकाउंटर मंगेश यादव का हुआ था, तो अखिलेश यादव ने कहा था कि मंगेश यादव था, इसलिए पुलिस ने उसे मार डाला. सोमवार को अनुज सिंह का एनकाउंटर हुआ, अनुज राजपूत समुदाय से था तो अखिलेश यादव की पार्टी ने कहा कि अब योगी सरकार एनकाउंटर में जाति का संतुलन बैठाने में लगी है. अखिलेश ने ट्वीट किया, टकिसी का भी फर्ज़ी एनकाउंटर नाइंसाफी है’. सोमवार को ही महाराष्ट्र के बदलापुर में नर्सरी में पढ़ने वाली बच्चियों के साथ गलत हरकत करने वाले आरोपी ने पुलिस वैन के अंदर पुलिस की रिवॉल्वर छीनकर फायर किया. जवाबी फायरिंग में उसकी मौत हो गई.
यूपी एनकाउंटर
ये बहस तो अनंतकाल से चल रही है कि क्या किसी अपराधी का एनकाउंटर करना सही है? लेकिन अखिलेश यादव ने इसमें एक नया एंगल जोड़ दिया है. वो पूछते हैं कि अगर अपराधी यादव है या मुसलमान है तो ही उसका एनकाउंटर क्यों होता है? दूसरी जाति के अपराधी को पुलिस की गोली क्यों नहीं लगती है? सवाल जायज़ है. इसी पृष्ठभूमि में सोमवार को जब अनुज प्रताप सिंह की एनकाउंटर में मौत हुई, उसके पिता का एक वाक्य..’अब तो अखिलेश यादव के कलेजे को ठंडक पहुंच गई होगी’..बहुत कुछ कहता है. मैं तो मानता हूं कि अपराधी की न कोई जाति होती है और न कोई मजहब. किसी जाति में , किसी धर्म में ये नहीं सिखाया जाता कि गुंडागर्दी करो, लूटपाट करो, किसी की जान लो लेकिन चूंकि पिछले कुछ हफ्तों में बार बार एनकाउंटर में मारे जाने वालों की जाति पूछी गई तो मैंने अपने रिपोर्टर से कहा कि मार्च 2017 में जब योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री बने थे, उसके बाद से अब तक के आंकड़े निकालें. पता चला कि सात साल में यूपी में 207 अपराधी एनकाउंटर में मारे गए. इन अपराधियों में 67 मुस्लिम, 20 ब्राह्मण, 18 ठाकुर, 17 जाट और गुर्जर, 16 यादव, 14 दलित, तीन ट्राइबल, दो सिख, 8 ओबीसी और 42 दूसरी जातियों के थे. इसलिए ये कहना तो गलत होगा कि यूपी की पुलिस जाति देखकर एनकाउंटर करती है. लेकिन राजनीति के मैदान में ये सब नहीं देखा जाता. सब लोग जाति के नाम पर, धर्म के नाम पर सियासत करते हैं. इसीलिए ये मसला तो बार-बार बनेगा, बार- बार उठेगा.
महाराष्ट्र में एनकाउंटर
महाराष्ट्र में भी एक एनकाउंटर हुआ. बदलापुर में नाबालिग बच्चियों से रेप का आरोपी अक्षय शिंदे मारा गया. क्राइम ब्रांच की टीम मुंबई की तलोजा जेल से उसे बदलापुर लेकर जा रही थी. अक्षय ने एक पुलिस वाले की बंदूक छीनकर तीन राउंड फायरिंग की. जवाब में वैन में मौजूद दूसरे पुलिस कर्मी ने अक्षय पर फायर किया. अक्षय को अस्पताल ले जाया गया , जहां उसकी मौत हो गई. अक्षय शिन्दे को बदलापुर के एक स्कूल में नर्सरी में पढ़ने वाली बच्चियों के साथ गलत हरकतें करने के इल्जाम में गिरफ्तार किया गया था. बाद में अक्षय की पत्नी ने भी उस पर सेक्सुअल असॉल्ट का केस दर्ज करवाया था. इसी केस में पुलिस पूछताछ के लिए उसे जेल से बदलापुर थाने ले जा रही थी. अब इस एनकाउंटर को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है.शरद पवार, नाना पटोले, सुप्रिया सुले ने एनकाउंटर पर शक जताया और उसकी जांच कराये जाने की मांग की. उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि पहले विपक्ष के यही नेता आरोपी को फांसी देने की मांग कर रहे थे और अब वही नेता एनकाउंटर पर सवाल खड़े कर रहे हैं. फडणवीस ने कहा कि पुलिस को आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी, इस पर सियासत करना ठीक नहीं हैं. मुंबई पुलिस के लिए एनकाउंटर कोई नई बात नहीं है. एक ज़माने में तो मुंबई पुलिस में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट हुआ करते थे लोकिन वो सारे ऑपरेशन माफिया के खिलाफ होते थे. बदलापुर का केस एक अलग तरह का है. एक तो एनकाउंटर में मारे जाने वाले अक्षय के खिलाफ नाबालिग बच्चियों से बलात्कार का आरोप था जिसको लेकर इस इलाके के लोगों में बहुत गुस्सा था. दूसरी बात अक्षय शिंदे पर और भी कई सारे केस थे, इसीलिए पुलिस की बात सच लगती है कि अक्षय ने बंदूक छीनकर फायरिंग की होगी. असलियत तो जांच में सामने आएगी लेकिन चूंकि महाराष्ट्र में चुनाव होने वाले हैं, इसीलिए इस मुद्दे पर सियासत तो होगी. जब ये केस हुआ था तो अपराधी को फांसी देने की मांग की गई थी.अब वो एनकाउंटर में मारा गया तो भी सरकार की नीयत पर सवाल उठाए जा रहे हैं. ये बयानबाजी राजनैतिक है और दोनों तरफ से इसी तरह की बातें सुनने को मिलेंगी. कम से कम ये कोई नहीं कहेगा कि यहां जाति के आधार पर मारा गया क्योंकि मुख्यमंत्री शिंदे हैं और जिसका एनकाउंटर हुआ वो भी शिंदे है.
Encounters: Are They Caste Based ?
Two encounters, one in UP and the other in Maharashtra, have hit the news headlines, with political parties taking potshots at one another. Anuj Pratap Singh, an accused in the Sultanpur jewellery heist, carrying Rs 1 lakh reward on his head, was killed by UP Special Task Force, while in Maharashtra, Akshay Shinde, an accused in the sexual assault of school kids, was killed inside a police van while being ferried from Taloja jail to Badlapur.
UP encounter
First, the encounter in Unnao, UP. Anuj Pratap Singh was the second accused in the jewellery heist to be killed in an encounter. Earlier, his fellow suspect Mangesh Yadav was gunned down by STF. Of the 14 suspects, two robbers have been killed, nine are in jail and three others absconding. When Mangesh Yadav was killed, Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav alleged that UP police was targeting a particular caste. The accused Anuj Pratap Singh, killed in Monday, was a Thakur, and Akhilesh’s party alleged that Chief Minister Yogi’s government was now trying “to create a balance between castes”. Akhilesh Yadav tweeted saying “fake encounter of anyone is nothing but injustice”. The debate on fake or real encounters has been going on since long, with the question being raised whether killing of criminals in encounter is justified. Akhilesh Yadav has added a caste angle to this debate. He has been asking, why only Yadavs or Muslims are being killed in encounters in UP, and why criminals belonging to other castes do not get hit by bullets? His question may be a valid one, but the remark of Anuj Pratap Singh’s father after his son’s death on Monday was – “Now Akhilesh Yadav’s heart will get relief”. This remark is loaded with meanings. I believe, criminals have no caste or religion. No caste or religion teaches anybody to kill, loot, extort or maim. But when the issue of caste was raised about encounters, I asked my reporters to find out statistics about those killed in encounters since Yogi Adityanath took over as Chief Minister in March, 2017. The facts are revealing. In the last seven years, 207 criminals were gunned down in encounters in UP. Of them, 67 were Muslims, 20 Brahmins, 18 Thakurs, 17 Jats and Gurjars, 16 Yadavs, 14 Dalits, three tribals, two Sikhs, 8 belonged to OBC castes and 42 belonged to other castes. To say that the UP police targets criminals in encounters on the basis of caste, is therefore, incorrect. But in politics, such facts are never touched. Politicians of most parties indulge in mudslinging in the name of caste and religion. This issue is going to crop up again, and again.
Maharashtra encounter
The man, Akshay Shinde, killed inside a police van while being taken from jail to Badlapur, used to work as a sweeper in a school. He allegedly assaulted two nursery students sexually. According to police, he snatched the revolver of a policeman inside the van, and fired three rounds, before he was shot. He was rushed to hospital, where he was declared dead, while the injured policeman is still in hospital. On hearing the death of Shinde, local residents in Badlapur distributed sweets, while opposition leaders questioned the circumstances in which he was shot. NCP chief Sharad Pawar demanded a high-level probe, while state Congress chief Nana Patole demanded a judicial probe. Maharahstra deputy CM Devendra Fadnavis said, the accused was killed by police in self-defence. Fadnavis reminded that it was the opposition which was demanding public hanging of Akshay Shinde when news about sexual assault of nursery kids broke out, and now they have changed their tune. Encounter is not new to Mumbai Police. There was a time when ‘encounter specialists’ used to work in Mumbai Police, but their operations were limited to mafia gangsters. The Badlapur case is quite different. Akshay Shinde was facing serious allegations under POCSO act for sexually assaulting nursery kids and there was anger against him in public. There were several other cases against him. Prima facie the police statement that Akshay snatched the revolver and shot rounds, seems to be true. However, more facts will emerge only after a thorough probe. Since assembly elections are due in Maharashtra soon, political parties are bound to make it an issue. The same political parties who were demanding death by hanging for Akshay Shinde, are now questioning the intentions of the government. Their statements are purely political in nature. One will continue to hear similar remarks from both sides. But at least, nobody will allege that Akshay Shinde was killed because of his caste. Because both the Chief Minister of Maharashtra and the accused who was killed have Shinde as their surnames.
Sinners of Tirupati : Animal Fat in Prasadam
Tirumala Tirupati Devasthanams (TTD) is one of the world’s richest shrines and there is no dearth of funds for the Trust that runs Lord Venkateswara’s shrine. After Andhra Pradesh chief minister N. Chandrababu Naidu released a report prepared by a Gujarat-based livestock lab confirming the presence of animal tallow in samples of ghee supplied for making Tirupati laddus, the question arises: Where was the need to seek ghee at cheaper rates? Who can believe that the TTD Trust was facing fund shortage while purchasing pure ghee for the Lord? Had the Trust told the people that it was facing fund shortage in buying pure ghee for making laddus, crores of rupees would have poured into its coffers in a single day. Let me give some statistics. TTD Trust owns 11,329 kg of gold ornaments valued at Rs 8,500 crore. The Devasthanam Trust has Rs 18,817 crore cash balance in its accounts. Its annual revenue is nearly Rs 1200 crore.
The temple has a more than Rs 5,000 crore budget for maintenance. Every day, 3.5 lakh laddus are prepared as prasadam for Lord Venkateswara. Even if one accounts for a cheaper price for ghee purchased for making laddus, the profit would have been hardly Rs 9-10 crore. Was adulterated ghee purchased to save Rs 9-10 crore? Was the ghee supplier changed by the world’s richest temple to save Rs 10 crore and ghee containing beef tallow and fish oil was detected by the lab in its sample? Nobody will believe this. The moot question is: Was cheaper ghee rate shown as excuse to change the ghee supplier? Was bribe given to get the ghee supply contract? Who hurt the emotions of more than a billion devotees of Lord Venkateswara? Those who committed this unforgiveable sin must be punished. AP minister Pawan Kalyan has given a good suggestion. He has suggested that a Sanatan Dharma Raksha Board be set up to look into all problems faced by Hindu shrines.
तिरुपति में पाप : प्रसाद में चर्बी
ये बात तो सही है कि तिरुपति बालाजी दुनिया का सबसे वैभवशाली देवस्थान है. भगवान वैंकटेश्वर के ट्रस्ट के पास पैसे की कोई भी कमी नहीं है. तो फिर घी का रेट कम कराने की क्या जरूरत थी ? कौन मानेगा कि भगवान को चढ़ाने वाले शुद्ध घी के लिए पैसे कम पड़ गए ? अगर कोई एक बार कह देता कि शुद्ध घी के लिए धनराशि कम पड़ रही है तो एक दिन में करोड़ों रुपये का दान आ जाता. मैं आपको कुछ आंकड़े बताता हूं – तिरुपति बालाजी ट्रस्ट के पास 11 हजार 329 किलो सोना है, जिसकी कीमत करीब साढ़े 8 हजार करोड़ रुपये है. इस धनवान देवस्थान के पास 18 हजार 817 करोड़ रुपये का कैश बैलैंस है. हर साल 1200 करोड़ रुपये की आय होती है. मंदिर के रखरखाव के लिए पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का सालाना बजट है. हर रोज़ भगवान वेंकटेश के प्रसाद के लिए साढ़े 3 लाख लड्डू बनाए जाते हैं. अगर लड्डुओं का हिसाब लगाया भी जाए कि घी का रेट कम कराने से कितना फायदा हुआ, तो ये आंकड़ा 9-10 करोड़ रुपये से ज्यादा नहीं आएगा. क्या 9-10 करोड़ रुपये बचाने के लिए घटिया क्वॉलिटी की घी का इस्तेमाल किया गया? क्या दुनिया के सबसे अमीर देवस्थान में 10 करोड़ रुपये बचाने के लिए घी का supplier बदला गया? और ऐसी घी खरीदी गई जिसमें गाय की चर्बी और फिश ऑयल मिला. इस पर कोई यकीन नहीं करेगा. सवाल ये है कि क्या घी के सप्लायर को बदलने के लिए रेट का बहाना ढूंढा गया? क्या घी का टेंडर देने में पैसा खाया गया? वो कौन हैं जिनकी वजह से भक्तों की भावनाएं आहत हुईं, लड्डू बनाने वाले घी में चर्बी मिलाई गई? जिसने भी ये पाप किया है, उसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए. पवन कल्याण ने अच्छा सुझाव दिया है. भारत के मंदिरों से जुड़ी सारी समस्याओं पर विचार करने के लिए सनातन धर्म रक्षा बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए.