Rajat Sharma

My Opinion

कर्नाटक में कांग्रेस ने कैसे बीजेपी को हराया

AKBबहुत दिनों बाद कांग्रेस ने बीजेपी को बुरी तरह हराया. शनिवार को कर्नाटक में कांग्रेस की जबरदस्त जीत हुई. विधानसभा के इस चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस की सीधी टक्कर थी. बीजेपी ने पूरी ताकत लगाई थी, कांग्रेस को बड़ी जीत मिली, स्पष्ट बहुमत मिला और बीजेपी की बुरी हार हुई. बहुत दिन के बाद कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं में उत्साह देखने को मिला, और लंबे अरसे के बाद बीजेपी के खेमे में हताशा दखने को मिली. कर्नाटक में कांग्रेस को 224 में 136 सीटें मिली है. कांग्रेस को पिछले चुनाव के मुकाबले 56 सीटें ज्यादा मिली हैं. बीजेपी को चालीस सीटों का नुकसान हुआ है. बीजेपी को कुल 65 सीटें मिली हैं. कर्नाटक के इस चुनाव की खास बात ये रही कि बीजेपी की सीटें तो कम हुईं लेकिन वोट परसेंट में कोई कमी नहीं आई. बीजेपी को इस बार भी 36 प्रतिशत वोट मिले, पिछले चुनाव में भी बीजेपी तो 36 प्रतिशत वोट मिले थे, .कांग्रेस को पिछली बार के मुकाबले 6 प्रतिशत वोट ज्यादा मिले लेकिन इस में से 5 प्रतिशत वोट JD-S से आए और और एक प्रतिशत दूसरी पार्टियों के कम हुए , यही वजह है कि न तो कांग्रेस को कर्नाटक में इतनी ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद थी, और न बीजेपी को इतनी बुरी हार की आंशका थी. कांग्रेस इस बार चौकन्नी थी, हर स्थिति के लिए तैयार थी, chartered plane भी खड़े थे, और resort भी बुक थे, पर इस की नौबत ही नहीं आई. अब रविवार को बैंगलूरू में कांग्रेस विधायक दल की बैठक होगी…जिसमें नए मुख्यमंत्री के नाम का फैसला होगा. अब सवाल ये है कि बीजेपी की इतनी बुरा हार क्यों हुई ? बीजेपी की पराजय की कहानी कांग्रेस के नेताओं के उन बयानों में छुपी है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खर्गे ने कहा कि जीत मिलकर काम करने का नतीजा है. अब तक बीजेपी कांग्रेस की अंदरुनी झगड़े का फायदा उठाती थी, इस बार कांग्रेस ने बीजेपी के अंदरुनी झगड़ों का फायदा उठाया. कांग्रेस नेता सिद्धरामैया ने कहा कि भ्रष्टाचार की वजह से बीजेपी की हार हुई, ‘चालीस परसेंट कमिशन’ की बात जनता के दिमाग पर चिपक गई. बीजेपी उसे धो नहीं पाई. अब तक बीजेपी कांग्रेस को ‘करप्शन का किंग’ बता कर कॉर्नर करती थी.. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि हम गारंटी की वजह से जीते. बीजेपी इस चक्कर में रह गई उनकी केन्द्र की योजनाओं के लाभार्थी उन्हें वोट देंगे.. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने कहा कि हमने जनता के मुद्दों को उठाया इसलिए वोट मिले. ये बात सही है क्योंकि बीजेपी ने भावनात्मक मुद्दे उठाए. उसका असर ये हुआ कि बीजेपी का अपना वोट बैंक ठीक रहा. छत्तीसगढ के सीएम भूपेश बघेल कह रहे थे कि बजरंग बली की कृपा से जीते.. बीजेपी ने बजरंग बली के अपमान का मुद्दा उठाया था., हिन्दू वोट के लामबंद होने की उम्मीद थी, लेकिन इसका उल्टा असर भी हुआ. कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम मतदाता एकजुट हो गए और इसका फायदा कांग्रेस को हुआ. डीके शिवकुमार ने कहा कि जब वो जेल में थे, तभी उन्होंने कसम खाई थी कि बीजेपी को हराएंगे. बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में कांग्रेस को हराने का ऐसा जुनून नहीं दिखाई दिया. इसीलिए बीजेपी अतिरिक्त वोटरों को नहीं जोड़ पाई. जेडीएस को वोटों का जितना नुकसान हुआ वो कांग्रेस के पास चले गए और ये भी सच है कि बीजेपी आखिर तक इस बात का इंतजार करती रही, कि त्रिशंकु विधानसभा होगी., रिजॉर्ट्स के दरवाजे खुलेंगे और किसी तरह जोड़-तोड़ करके हम सरकार बना लेंगे, लेकिन जनता का आदेश बिल्कुल स्पष्ट था. अब कांग्रेस मे इस बात के लिए दौडभाग शुरू हो गई कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा. सिद्धारमैया पूर्व मुख्यमंत्री है, कर्नाटक में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं., और मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार हैं, इसलिए वरूणा में चुनाव नतीजा घोषित होने के बाद सिद्धारमैया चार्टेड फ्लाइट से बैंगलुरू पहुंच गए.. लेकिन मुख्यमंत्री पद की रेस में कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डी के शिवकुमार भी हैं. शिवकुमार भी आठवीं बार चुनाव जीते हैं. उन्होंने कांग्रेस का पूरा कैंपेन मैनेज किया , पार्टी के लिए बहुत मेहनत की, इसलिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उनकी दावेदारी भी मजबूत है. .कांग्रेस ने शुरुआत से ही स्थानीय मुद्दों पर फोकस किया. कर्नाटक में कांग्रेस नेताओं को इस बात का भी अंदाजा था कि बीजेपी स्थानीय नेतृत्व कमजोर है और पार्टी अपने दम पर लड़ नहीं पाएगी. कांग्रेस ने ये भी समझ लिया था कि वो मोदी से नहीं जीत सकती, इसलिए हमला मोदी की बजाए कर्नाटक की सरकार के भ्रष्टाचार पर था, नाकाबिलियत पर था.. कांग्रेस ने अपने यहा के गुटों को, आपसी झगड़ों को भी ठीक से मैनेज किया. पार्टी के सारे नेता बीजेपी को हराने के लिए एकजुट होकर लड़े. इसका फायदा कांग्रेस को हुआ.दूसरी तरफ बीजेपी में कर्नाटक के नेता आपस में टकरा रहे थे, कोई टिकट कटने से नाराज था, तो कोई अहमियत न मिलने से परेशान.. दियुरप्पा और बोम्मई अपना वर्चस्व साबित करने में लगे रहे. राज्य सरकार का काम लचर था. भ्रष्टाचार के इल्जाम का बीजेपी कोई सॉलिड जवाब भी नहीं दे पाई. भ्रष्टातार और लचर काम जैसे मुद्दों को दबाने के लिए मोदी का सहारा लिया गया. पूरी कोशिश के बावजूद मोदी का कैंपेन पार्टी को बचा नहीं पाया. उसकी वजह ये है कि जब तक मोदी मैदान में उतरे, तब तक कर्नाटक की जनता अपना मन बना चुकी थी, .लोग वहां की सरकार से नाराज थे. मोदी के अलावा बीजेपी ने आरएसएस नेटवर्क, बूथ मैनेजमेंट और पन्ना प्रमुखों पर ध्यान केंद्रित किया. बीजेपी के संगठन मंत्री बीएल संतोष कर्नाटक से आते हैं.उन्हें अपनी मशीनरी पर पूरा भरोसा था. .बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने काम तो किया लेकिन मन से नहीं किया. पार्टी के कार्यकर्ता बूथ तक तो पहुंचे, लेकिन उनमें उत्साह की कमी थी. उन्होंने कांग्रेस की तरह इस चुनाव को जीवन मरण का प्रश्न नहीं बनाया..कर्नाटक की जनता ने कांग्रेस को एक निर्णायक जनादेश दिया है..कांग्रेस की जीत में राहुल और प्रियंका का रोल है, डी के शिवकुमार और सिद्धरामैया और खर्गे को भी पूरा श्रेय मिलना चाहिए. कांग्रेस के नेताओं ने जो भाईचारा इलैक्शन कैंपेन के दौरान दिखाया, वो भाईचारा मुख्यमंत्री चुनने और सरकार बनाने में भी दिखाएं तभी कर्नाटक का भला होगा.. जहां तक बीजेपी का सवाल है, इसके बाद अब मौका है कर्नाटक में नया नेतृत्व तैयार करने का, पुराने जाल से निकल कर नई जमीन तैयार करने का. इस चुनाव की एक अच्छी बात ये हुई कि जेडी-एस बिल्कुल किनारे हो गई. .जेडी-एस ने जो पांच परसेंट वोट खोया वो सारा कांग्रेस के पास आया.

उत्तर प्रदेश से खुशखबरी

बीजेपी के लिए अच्छी खबर उत्तर प्रदेश से आई. शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया है और सभी 17 बड़े शहरों में मेयर के पद जीत लिए. समाजवादी पार्टी , बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला. नगर निगम के चुनाव में इस बार बीजेपी ने मुस्लिम उम्मीदवारों को दिल खोलकर टिकट दिया था, उनमें से भी कई उम्मीदवारों को कामयाबी मिली है.. यूपी में दो विधानसा सीटें, रामपुर की स्वार और मिर्जापुर की छानबे., पर इुचुनाव हुए, दोनों सीटें बीजेपी के मित्र दल, अपना दल (सोने लाल) ने जीतीं. ने जीतीं. रामपुर की स्वार सीट पर NDA की जीत महत्वपूर्ण है क्योंकि ये सीट आजम खां के बेटे अब्दुल्ला आजम की सदस्यता रद्द होने के कारण खाली हुई थी. इस इलाके में आजम खां का दबदबा है, लेकिन बीजेपी ने अपना दल के टिकट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारा और जीत दर्ज की ये बड़ी बात है. अपना दल के उम्मीदवार शफीक अहमद अंसारी ने समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार अनुराधा चौहान को 8724 वोट से हराया, जबकि छानबे विधानसभा सीट पर अपना दल की रिंकी कोल ने समाजवादी पार्टी की कीर्ति कोल को 9587 वोट से हराया . उत्तर प्रदेश में हालांकि चुनाव स्थानीय निकायों का था, लेकिन यहां खेल बड़ा था. अगर बीजेपी हार जाती, तो सब लोग मिलकर योगी आदित्यनाथ की नाक में दम कर देते. लेकिन, योगी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि, चाहे कुछ नेता उनसे नाराज़ हों, जातियों के ठेकेदार उनके ख़िलाफ़ रहें, पर जनता योगी के साथ है. योगी ने कानून और व्यवस्था में सुधार करके, गुंडागर्दी ख़त्म करके, यूपी के लोगों को विकास का जो रास्ता दिखाया है, उसका फ़ायदा उन्हें हर चुनाव में मिला है. स्थानीय निकायों के चुनाव समाजवादी पार्टी के लिए खतरे का संकेत हैं क्योंकि, बीजेपी ने पहली बार मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, कई जगह जीत हुई. मुसलमानों का बीजेपी को समर्थन देना, समाजवादी पार्टी के लिए चिंता का सबब हो सकता है.. कई इलाक़ों में तो, समाजवादी पार्टी तीसरे नंबर पर आ गई. रामपुर में, आज़म ख़ान के घर में समाजवादी पार्टी की हार भी एक ख़तरे की घंटी है. . जहां तक योगी का सवाल है, योगी ने बिलकुल सामने खड़े होकर चुनाव प्रचार की कमान संभाली. इस जीत ने उनका दबदबा एक बार फिर क़ायम कर दिया., लेकिन, अब जनता ने उनको ट्रिपल इंजन की सरकार दे दी..अब योगी आदित्यनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी, जनता के सपनों को पूरा करना. और उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना.

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HOW CONGRESS DEFEATED BJP IN KARNATAKA

akbThere was good news for Congress for the first time since 2018, when the voters of Karnataka gave a clear mandate to the party. In the 224-seat Assembly, Congress won 136 seats, 56 more than last time, while BJP lost 40 seats. It managed to win only 65 seats. Though BJP lost in the numbers game, there has been no decline in the party’s voting percentage. It got 36 pc votes, the same that it got five years ago. Congress vote percentage rose by six per cent, out of which five pc votes came from Janata Dal(S). This was the main reason why the Congress never dreamt it would win so many seats, while the BJP never imagined it would face such a defeat. This time, the Congress camp was alert, unlike last time. It was ready to face any situation, its leaders had chartered aircraft ready and they had booked luxury resorts to pack off their MLAs, if the election threw up a hung assembly. The main question: Why did BJP lose so heavily? The reason lies in the statements of Congress leaders, after the results were out. Congress president Mallikarjun Kharge said, the victory was the result of team work. Till now, BJP used to gain from infighting within Congress, but this time Congress benefited from infighting within BJP. Congress leader Siddaramiah said, BJP lost because of the ’40 per cent commision sarkara’, the label that Congress stuck on its rival. BJP could not wash off that label. Till now, BJP used to corner Congress on the issue of corruption. Another Congress leader Jairam Ramesh said, ‘we won because of the five ‘guarantees’ that we gave to the people.’ BJP was caught napping as it expected votes from beneficiaries of all welfare measures taken by the Centre. Priyanka Gandhi said, ‘we got votes because we raised people’s issues’. It is true because BJP raised emotional issues and kept its vote bank intact. Chhattisgarh CM Bhupesh Baghel said, ‘we won because of the blessings of Lord Bajrangbali’. BJP had raised the issue of “insult” to Lord Bajrangbali and had expected consolidation of Hindu votes, but it had adverse effect. Muslim voters fully backed the Congress to give it a resounding win. Congress leader D K Shiv Kumar said, when he was in jail, he had vowed to defeat BJP. On the other hand, there was lack of passion and enthusiasm among the BJP leaders and workers to defeat the Congress. BJP failed to get votes from those who were undecided. Most of the JD(S) votes went to Congress. It is also a fact that BJP waited till the last moment expecting a hung assembly that could have opened up the gates of holiday resorts, and the party expected to form a government, by hook or by crook. The people’s mandate was clear. Already, the race has begun for the post of CM in Congress camp. Siddaramaiah is a former CM and one of the tallest Congress leaders in Karnataka. His stake for the post is strong, and he immediately flew by a chartered flight to Bengaluru soon after his election from Varuna was declared. But state Congress chief D K Shiv Kumar is also in the race. He won the assembly election eight times, and micro-managed the entire party election campaign. He toiled hard and his stake is also strong. In Karnataka, Congress leaders knew that the BJP cannot win the elections only with the help of Modi. That is why, Congress leaders did not make personal attacks on Modi and instead raised the “40 per cent commission” and inefficiency issues. Congress managed its factions and internal squabbles carefully, and leaders of all factions joined hands. On the other hand, BJP leaders were busy in infighting, several of them were unhappy for being denied tickets, Yeddyurappa and Bommai tried to prove their own supremacy, the state government’s performance was below average, and the party could not reply effectively to the charges of corruption. To sideline corruption and inefficiency issues, BJP took the help of Modi. Despite his best efforts, Modi’s campaign could not save the party from defeat. By the time, Modi began his campaign, the people of Karnataka had already made up their minds. The common people were unhappy with the BJP government in Karnataka. BJP used its RSS network of booth management and ‘panna pramukhs’. Its organizing secretary B L Santhosh hails from Karnataka and he had full trust in his machinery. BJP workers worked, but lacked the verve to win. Like the Congress, they did not make this election a life-or-death issue. The result: people of Karnataka gave the Congress a decisive mandate. Rahul and Priyanka played their role in the party’s victory. Credit also goes to D K Shiv Kumar, Siddaramaiah and Mallikarjun Kharge. Let’s hope this brotherhood will be evident when the chief minister is elected in the legislative party. For the BJP, it is now time to develop a new leadership, prepare a new ground by coming out from old webs.

GOOD NEWS FROM UP FOR BJP

BJP got good news from Uttar Pradesh, where it made a clean sweep of all 17 posts of mayors in the urban local body elections. The party’s ally, Apna Dal (Sonelal) also won both the assembly byelections from Swar and Chhanbey. The Swar seat was vacant after local SP strongman Azam Khan’s son Abdullah Azam was disqualified. BJP’s ally Apna Dal fielded a Muslim, Shafiq Ahmed Ansari, who defeated the SP candidate Anuradha Chauhan by a margin on 8,724 votes. In Chhanbey, Apna Dal candidate won by a margin of 9.587 votes. Though the urban local body polls were purely on local issues, the stakes were high. Had the BJP lost, Yogi Adityanath could have faced problems from his rivals in the party. Yogi has once again proved that no matter how much caste based leaders are angry with him, the common people are still behind him. By improving law and order, ending criminal gangs, and opening up new avenue of progress, Yogi has brought benefits to BJP in all the elections that it fought during the last seven years. The local bodies poll results are alarming for Akhilesh Yadav’s Samajwadi Party. BJP, for the first time, tested waters by fielding Muslim candidates who won. This could cause worry for Samajwadi Party, which had been traditionally backed by Muslim voters. In some localities, SP candidates stood third. The defeat of SP candidate in Azam Khan’s bailiwick Rampur, is also an alarming signal for the party. As far as Yogi is concerned, the chief minister led the election campaign from the front and put his stamp of supremacy. The people of UP have now a ‘triple engine’ system in place. The main challenge that Yogi will face is how to fulfill the aspirations of the people.

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पाकिस्तान : इमरान को लेकर सियासी पेंच

akb fullआखिरकार शुक्रवार देर रात पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को इस्लामाबाद हाई कोर्ट परिसर से रिहा किया गया. वे कारों के एक काफिले के साथ लाहौर रवाना हुए. रास्ते में हजारों पार्टी कार्यकर्ताओं ने टॉल प्लाज़ा पर उनका स्वागत किया. अपनी रिहाई से पहले, इमरान खान ने एक वीडियो में आरोप लगाया कि इस्लामाबाद के आई जी पुलिस अकबर नासिर ने देर रात तक उन्हें अदालत परिसर में रोक कर रखने की कोशिश की, लेकिन जब उन्होंने धमकी दी कि वो अपने कार्यकर्ताओं को प्रोटैस्ट करने के लिए कहेंगे, तो पुलिस अधिकारी ढीले पड़ गये और उन्हें जाने दिया. हाई कोर्ट की चार अलग अलग बेंचों ने एक दर्जन से ज्यादा मामलों में इमरान खान को ज़मानत दे दी और उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी. इमरान खान को बेल मिलने से प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ काफी हताश हैं. कोर्ट ने उनके बने बनाए प्लान पर पानी फेर दिया. उन्होंने तो सोचा था कि इमरान पर इतने केस करेंगे, इतने केस करेंगे कि उन्हें समझ ही न आए कि जेल से निकलें तो कैसे निकलें. वो तो इमरान को मुकदमों में फंसाकर चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित करवाना चाहते थे, लेकिन कोर्ट ने इमरान को हीरो बना दिया. अब लगता है कि अदालत इमरान को गिरफ्तार होने नहीं देगी और हुकूमत इमरान को बाहर रहने नहीं देगी. शुक्रवार को भी इमरान को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस मौजूद थी. पाकिस्तान के गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह समेत सरकार के तमाम मंत्रियों ने कहा कि इमरान ने दो सौ लोगों को ट्रेन किया, बम चलाने, आग लगाने की ट्रेनिंग दी, फौजी अफसरों के घर जलवाए, उसे तो हर हालत में जेल में डालेंगे, लेकिन सरकार के लोग इस बात से खफा भी हैं, और हैरान भी हैं कि कोर्ट ने इमरान को सिर्फ प्रोटैक्शन नहीं दी, इज्जत भी दी और “ हैप्पी टू सी यू” कहा. अब वो कह रहे हैं आखिर बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी? कब तक कोर्ट इमरान को बचा पाएगी? सरकार के लोग अब अदालत के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे, जजों के खिलाफ प्रोटेस्ट करवाएंगे लेकिन इमरान को इसका भी फायदा होगा. गौर करने वाली बात ये है कि पाकिस्तान में चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल और पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी दोनों इमरान खान को सपोर्ट कर रहे हैं, दोनों चाहते हैं कि मुल्क में तुरंत चुनाव करवाए जाएं, और हुकूमत चुनाव टालना चाहती है. अब 9 सितंबर को राष्ट्रपति आरिफ अल्वी का कार्यकाल खत्म हो रहा है और 16 सितंबर को पाकिस्तान के चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल रिटायर हो जाएंगे, इसलिए ऐसा लग रहा है कि शहबाज शरीफ की कोशिश ये होगी कि सितंबर तक इमरान खान को कोर्ट और जेल के चक्कर कटवाए जाएं, सिंतबर के बाद जब राष्ट्रपति और चीफ जस्टिस अपनी मर्जी के हों, उसके बाद इमरान खान और उनकी पार्टी को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जाए, उसके बाद ही पाकिस्तान में चुनाव हों. चूंकि इमरान खान भी सरकार की रणनीति समझ रहे हैं, इसीलिए वो पूरी कोशिश करेंगे कि मुल्क में ऐसे हालात बना दिए जाएं, आवाम को इतना भड़का दिया जाए, जिससे सरकार तुरंत चुनाव कराने पर मजबूर हो जाए. पाकिस्तान में यही खेल चल रहा है.

समीर वानखेडे़ पर सीबीआई के छापे

केंद्रीय जांच ब्यूरो ने शुक्रवार को नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के पूर्व ज़ोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े समेत पांच लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में एफआईआर फाइल की. इससे पहले सीबीआई ने मुंबई, दिल्ली, कानपुर, रांची में 29 ठिकानों पर छापे मारे. समीर वानखेड़े भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी हैं. समीर ने दो साल पहले मुंबई में एक जहाज़ पर छापा मरवा कर मादक पदार्थ जब्त करने के मामले में सुपरस्टार शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को गिरफ्तार किया था. उस वक्त समीर वानखेड़े के खिलाफ कई आरोप लगाये गये और उन्हें एनसीबी से हटा दिया गया. ऐसे सबूत मिले हैं कि समीर वानखेड़े ने शाहरुख खान के बेटे आर्य़न के खिलाफ एक फर्जी मामला दायर किया था और उसे रिहा करने के एवज में 25 करोड रु. की रिश्वत मांगी थी. 25 लाख रुपये नकद वानखेड़े को एडवान्स के तौर पर दिये गये थे. आर्यन खान को 22 दिन बाद जेल से रिहा कर दिया गया, और बाद में एनसीबी ने उसे क्लीन चिट दे दी. एनसीबी की विजिलेंस टीम ने मामले की जांच की और अपनी रिपोर्ट एनसीबी के निदेशक और गृह मंत्रालय के पास भेजी, जिसके बाद सीबीआई ने भ्रष्टाचार का माला दर्ज़ किया. वानखेड़े इस समय चेन्नई में टैक्सपेयर्स सर्विसेज विभाग में तैनात हैं. वो लोग जो समीर वानखेड़े को ‘मोस्ट ऑनेस्ट ऑफ़िसर’ कहते थे, हीरो बताते थे, अब ख़ामोश हैं.. ये बात बिल्कुल साफ़ है, समीर ने आर्यन पर झूठा केस बनाया, आर्यन को 22 दिन जेल में रहना पड़ा. मैंने उस वक़्त भी कहा था कि समीर वानखेड़े ने फ़र्ज़ी केस बनाया, आर्यन के पास से कोई ड्रग नहीं मिली थी लेकिन, सिस्टम ऐसा है कि फिर भी उन्हें जेल भेज दिया गया.. और आंकड़ा तो देखिए, 25 करोड़ रुपये, जो आर्यन को छोड़ने के लिए समीर वानखेड़े ने मांगे थे, करप्शन की, ब्लैकमेल की, लालच की सारी हदें पार कर दीं. आर्यन के वो 22 दिन तो वापस नहीं आ सकते, लेकिन लोगों का भगवान पर भरोसा ज़रूर बढ़ जाएगा. ज़ुल्म करने वाले का हिसाब इसी दुनिया में होता है. ऊपरवाला देखता है. समीर पर सीबीआई का केस इसी का उदाहरण है.

The Kerala Story: बैन करने से कोई फायदा नहीं होगा

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को अपने मंत्रियों और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी के साथ लखनऊ में The Kerala Story फिल्म देखी और बाद में उसकी तारीफ की. उन्होंने कहा कि इस फिल्म से साफ है किस तरह आतंकवादी संगठन हिन्दू लड़कियों का धर्मांतरण करके उनका गलत इस्तेमाल कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश में इस फिल्म को टैक्स फ्री घोषित किया गया है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार से प्रश्न किया कि उसने अपने राज्य में फिल्म के प्रदर्शन पर प्रतिबंध क्यों लगाया जबकि इसे देश के दूसरे सभी राज्यों में दिखाया जा रहा है. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चन्द्रचूड और न्यायाधीश पी. एस. नरसिम्हा ने कहा, पश्चिम बंगाल देश के दूसरे राज्यों से कोई अलग नहीं है. अगर जनता ये महसूस करे कि ये फिल्म देखने लायक नहीं हैं, तो वह नहीं देखेगी. ‘द केरल स्टोरी’ एक फिल्म है. इस पर सियासत करने की बजाय इसे एक आर्ट की तरह, एक क्रिएटिव काम की तरह लिया जाना चाहिए, जिसे अच्छी लगे, देखे. जिसे न पसंद आए, न देखे. तमिलनाडु और बंगाल की सरकारों ने बैन करने के लिए जो कानून और व्यवस्था खराब होने के अंदेशे का जो तर्क दिया, वो बेमानी है. ऐसे तो कोई भी सरकार, कभी भी इंटेलिजेंस इनपुट की बात कहके, कानून और व्यवस्था ख़राब होने का डर दिखाकर, किसी भी फिल्म को बैन कर सकती है. वैसे भी, डिजिटल इंडिया के ज़माने में लोग घर बैठे सब कुछ देख लेते हैं, इस तरह के प्रतिबंध का कोई मतलब नहीं रहता.

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PAKISTAN: THE GAME BEHIND IMRAN’S ARREST

AKBFinally, the courtroom drama ended in Islamabad High Court late on Friday night, when former Prime Minister Imran Khan left the court premises on his way to his home in Lahore. Thousands of jubilant party workers accompanied Imran Khan, as his cavalcade crossed the toll plaza on the Islamabad-Lahore highway. Hours before he was set free, Imran Khan, in a video message, alleged that the Islamabad IG Police Akbar Nasir tried to prevent him from leaving the court premises, but later relented when the former PM threatened to stage protest. Four different benches of Islamabad High Court granted him bail on over a dozen petitions barring police from arresting him. Prime Minister Shahbaz Sharif is frustrated over courts granting bail to Imran Khan. The judiciary in Pakistan has poured cold water over Shahbaz Sharif’s plan. The Prime Minister had planned to embroil Imran Khan in such a large number of cases that his lawyers could find it difficult to secure bail for him. The plan was also to disqualify Imran Khan from contesting elections, but the judiciary has made Imran Khan a hero. It is now clear that the judiciary will not allow Imran Khan to be arrested, while the establishment will try its level best to ensure that Imran Khan does not come out. Pakistan Interior Minister Rana Sanaullah and other ministers alleged that Imran’s party had trained nearly 200 workers on how to carry out violence and arson, and even trained them to make explosives. Homes of army officers were set on fire. The ministers said they would try to keep Imran behind bars at all costs. At the same time, those in the PPP-PML government are angry and surprised that the Supreme Court not only gave Imran Khan protection, but also gave him respect, when the Chief Justice told the former PM “Happy to see you” inside court. Shahbaz Sharif’s ministers still challenge how long the judiciary will help Imran Khan from staying away from jail. The ruling coalition PDM (Pakistan Democratic Movement) has declared that its supporters will stage protest against judges outside Supreme Court from Monday onwards. I feel, this will indirectly help Imran Khan. One point to note is that, both the Chief Justice Umar Ata Bandial and President of Pakistan Arif Alvi support Imran Khan and both want early general elections. The ruling coalition government wants to delay elections. President Arif Alvi’s tenure ends on September 9, while Chief Justice Bandial will retire on September 16. It appears Shahbaz Sharif will try to make Imran Khan make rounds of courts and jail till them. After mid-September, when Pakistan will get a new President and a new Chief Justice, measures will be taken to debar Imran Khan and his party from contesting elections. Elections will be held only in such a situation. Imran Khan understands the strategy of the Sharif government. He will try his best to create conditions in Pakistan, so that the common people become angry and force the government to conduct early elections. This, in essence, is the political game that is being played out in Pakistan.

SAMEER WANKHEDE EXPOSED IN ARYAN KHAN CASE

Central Bureau of Investigation on Friday filed FIR against five persons including former zonal director Sameer Wankhede of Narcotics Control Bureau, after conducting raids at 29 places in Mumbai, Delhi, Kanpur and Ranchi. Wankhede is an officer of Indian Revenue Service. He had arrested Aryan Khan, son of superstar Shahrukh Khan, in a drugs seizure case two years ago during a raid on a cruise in Mumbai. At that time, several allegations were made against Wankhede, and he was removed from NCB. Evidences have been found how Wankhede had filed a fake drugs case against Shahrukh Khan’s son, and he had demanded Rs 25 crore bribe for releasing Aryan Khan. The FIR says, Rs 25 lakh cash was paid as advance to Wankhede. Aryan Khan was released from jail after 22 days, and later the NCB gave a clean chit to him. The vigilance team of NCB probed the matter and sent a detailed report to NCB chief and Home Ministry, after which CBI filed a corruption case. Wankhede is presently posed in Taxpayers Services department in Chennai. It is strange that those who were describing Sameer Wankhede as a most honest officer and a hero, are now silent. The facts are clear. Sameer Wankhede prepared a false case against Aryan Khan, and the latter had to spend 22 days in jail. At that time, I had clearly said that Wankhede has made a false case, since no drugs were found in possession of Aryan, but our system is such that he was also sent to jail. And look at the figure of Rs 25 crore, that was demanded as bribe from him. It crossed all limits of corruption, blackmail and greed. Nobody can return those 22 horrible days to Aryan Khan, but people will now have more faith in Almighty. Those who commit atrocities on innocent people, get their punishment in due time. CBI case against Sameer Wankhede is one such example.

THE KERALA STORY: WHY BANNING IT WILL NOT WORK

Uttar Pradesh chief minister Yogi Adityanath, along with his ministers and state BJP chief Bhupendra Chaudhary, watched a special screening of the movie ‘The Kerala Story’ in Lucknow on Friday. The Chief Minister praised the movie and said it exposes the conspiracy that is going on in the name of religious conversion. The movie has been declared tax-free in UP. On Friday, the Supreme Court asked West Bengal’s Mamata Banerjee government why it banned the movie when it was running in theatres in other parts of the country. The bench of Chief Justice D Y Chandrachud and Justice P S Narasimha said, “West Bengal is no different from any other part of the country. If the public feels, it’s not worth watching, they will not watch it.” I agree with what the Supreme Court said. ‘The Kerala Story’ is a film. Instead of using it as political fodder, it should be taken as a creative work of art. Those who do not like it, may not watch it. The arguments given by Tamil Nadu and West Bengal governments citing law and order issue, are not tenable. If we take such arguments as justified, any state government can ban screening of any film citing intelligence inputs. In this digital age, anybody can watch movies sitting at home. Banning films is not the solution.

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पाकिस्तान: इमरान खान को ज़मानत

akbपाकिस्तान में शुक्रवार को इस्लामाबाद होई कोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को दो हफ्ते के लिए ज़मानत दे दी. हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि इमरान को 17 मई तक गिरफ्तार न किया जाय. इमरान आज मुल्क से खिताब करने वाले हैं. इस तरह तीन दिन से पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में चल रहे ड्रामे पर पर्दा गिरा. इमरान खान ने हाई कोर्ट में कहा कि अगर मुझे गिरफ्तार किया गया, तो सरकार को इसके नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहने चाहिए. हाई कोर्ट परिसर में ‘इमरान खान जिन्दाबाद’ के नारे लगाए गए, इमरान के समर्थकों और पाकिस्तान रेंजर्स के बीच झड़पें भी हुई. कई गाड़ियों में आग लगा दी गई. इमरान खान को कल रात पुलिस लाइन्स गेस्ट हाउस में रखा गया और आज सुबह कड़ी सुरक्षा के बीच हाई कोर्ट में लाया गया. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि इमरान खान को फौरन रिहा किया जाय , लेकिन साथ ही उन्हें हिदायत दी थी कि वो अपने खिलाफ चल रहे मामलों में सुनवाई के लिए हाई कोर्ट में पहुंचे. शुक्रवार को इमरान खान ने हाई कोर्ट में कहा कि उन्हें हिरासत मे पीटा गया, और उनके साथ इस वक्त जो कुछ हो रहा है, उसके लिए थल सेनाध्यक्ष जनरल आसीम मुनीर जिम्मेवार हैं. इमरान ने कहा कि ‘ये मेरा वतन है, और मैं अपना वतन छोड़ कर मुल्क के बाहर नहीं जाऊंगा.’ गुरुवार को, पाकिस्तान की सूचना मंत्री मरियम औरंगजेब ने सुप्रीम कोर्ट की जम कर आलोचना करते हुए कहा था कि अगर चीफ जस्टिस बंडियाल को इमरान खान के प्रति इतनी हमदर्दी है, तो वो इस्तीफा देकर उनकी पार्टी में क्यों नहीं शामिल हो जाते. मरियम औरंगजेब ने कहा कि ‘ सुप्रीम कोर्ट ने एक चोर, एक लुटेरे, और एक भ्रष्ट इंसान को रिहा करने का आदेश दिया है.’ एक पूर्व मंत्री शेख रशीद ने मांग की कि मुल्क में फौरन चुनाव कराए जाएं, साथ ही उन्होंने हिंसा और आगजनी करने वालों की जम कर मज़म्मत की. शेख रशीद की ये बात सही है कि शहबाज़ शरीफ ने इमरान खान को गिरफ्तार करके उन्हें वाकई में हीरो बना दिया, लेकिन ये भी सही है कि पाकिस्तान में कुछ भी ठीक नहीं हैं. जिस तरह से रेंजर्स ने इमरान खान को गिरफ्तार किया, वो गलत था. इसके बाद इमरान खान के समर्थकों ने जिस तरह पाकिस्तान में आग लगाई, वो भी गलत था. इसके बाद जिस तरह मंत्रियों ने कोर्ट के खिलाफ बयानबाजी की, वो भी ठीक नहीं था. फिर जिस तरह से सेना की तरफ से धमकियां दी गई और जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को जलील किया, वो भी ठीक नहीं था. कुल मिलाकर पाकिस्तान में कोई नियम कानून को नहीं मान रहा है, जिसकी जो मर्जी है वही कर रहा है.इसलिए अब पाकिस्तान में आगे क्या होगा, कोई नहीं जानता.

महाराष्ट्र: नैतिकता की बात करना हास्यास्पद

महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार के बारे में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे सरकार को इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा, लेकिन साथ में ये जरूर कहा कि पिछले साल 30 जून को विधानसभा में शक्ति परीक्षण से एक दिन पहले अगर उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा न दिया होता, तो इस बात की संभावना थी कि उनकी सरकार बहाल हो जाती. सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा में 30 जून को कराये गये शक्ति परीक्षण को गैरकानूनी बताया. कोर्ट ने इसके साथ ही तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भूमिका की आलोचना की और कहा कि राज्यपाल का मुख्यमंत्री से कहना कि वह विधानसभा के अन्दर बहुमत साबित करे, गलत था. कोर्ट ने कहा कि किसी पार्टी के अन्दरूनी झगड़े में विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराना माध्यम नहीं हो सकता. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया, जबकि उद्धव ठाकरे ने मांग की कि शिंदे नैतिक आधार पर अब इस्तीफा दें. भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि ‘ मैं तो कानून का छात्र नहीं हूं. मैने जो उचित समझा, वही किया. जब कोई इस्तीफा लेकर मेरे सामने आ जाए, तो मैं क्या करता?’ मुझे ये सुनकर हंसी आई कि शिन्दे और उद्धव नैतिकता की बात कर रहे हैं. एकनाथ शिन्दे ने जब उद्धव ठाकरे के विधायक तोड़े, उन्हें लेकर गुवाहाटी में बैठ गए तो कहां गई थी नैतिकता. उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ चुनाव लड़ा, और सरकार NCP और कांग्रेस के साथ बना ली, तो उन्हें नैतिकता याद क्यों नहीं आई. देवेन्द्र फडणवीस और अजीत पवार ने जब रात के अंधेरे में समझौता करके सरकार बनाई थी, तब नैतिकता का सवाल दिल में क्यों नहीं उठा. इसलिए महाराष्ट्र के ये सारे के सारे नेता नैतिकता की बात न ही करें तो अच्छा. सुप्रीम कोर्ट के आदेश का असर ये हुआ कि जिसको जो चाहिए था वो मिल गया. शिन्दे को सरकार में आना था, उन्हें अपनी कुर्सी की फिक्र थी, वो बच गई. शिन्दे मुख्यमंत्री बने रहेंगे. उद्धव को ये दिखाना था कि उन्हें गलत तरीके से हटाया गया, शिन्दे ने उन्हें धोखा देकर सरकार बनाई, तो उनकी बात सही सााबित हो गई. जिन विधायकों को सदस्यता जाने का डर था, उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा, क्योंकि फैसला स्पीकर के हाथ में है. अब महाराष्ट्र में शिन्दे की सरकार चलती रहेगी, उद्धव शिन्दे को मिंघे कहकर ढो़ल बजाते रहेंगे, और नैतिकता अपने लिए किसी कोने में जगह पाने का इंतजार करती रहेगी.

दिल्ली में एक सरकार हो, अलग अलग एजेंसियां नहीं

दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को एक बड़ी सफलता मिली. पांच जजों की खंडपीठ ने अपने अहम फैसले में कहा कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार को सेवाओं पर कार्यकारी और विधायी अधिकार, दोनों हैं. चुनी हुई सरकार अफसरों की ट्रांसफर, पोस्टिंग कर सकती है और अफसर मंत्रियों के सामने जवाबदेह होंगे. पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार का यह फर्ज है कि वह दिल्ली की जनता की इच्छाओं को पूरा करे, जिसने उसे चुना है. पीठ ने ये भी कहा कि दिल्ली सरकार का सेवाओं पर पूरा नियंत्रण रहेगा, लेकिन जो विषय दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है, उस पर नियंत्रण नहीं रहेगा. कोर्ट ने ये भी कहा कि उपराज्यपाल दिल्ली की अफसरशाही पर नियंत्रण के मामले में चुनी हुई सरकार का निर्णय मानने के लिए बाध्य होंगे. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने फैसले का स्वागत किया और सेवा विभाग के सचिव को तुरंत उनके पद से हटा दिया. मैं इस बात से सहमत हूं कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास अफसरों को नियुक्त करने और उनका तबादला करने अधिकार होना चाहिए. इसमें केन्द्र सरकार का दखल न हो तो अच्छा. लेकिन केजरीवाल को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वो अफसरों के खिलाफ बदले की भावना से कार्रवाई न करें. काम करने वाले अफसरों को आजादी भी मिले और सम्मान भी. अब किसी अफसर को घर बुला कर उसके साथ घूंसेबाजी की शिकायत करने का मौका न मिले. दिल्ली की मुख्य समस्या ये है कि यहां मल्टीपल एजेंसी काम करती है. केन्द्र सरकार का दखल है, दिल्ली सरकार है, इसके अलावा DDA, MCD, NDMC, दिल्ली छावनी बोर्ड है. और जब इन संस्थाओं में आपसी समन्वय और सम्पर्क की कमी होती है, तो दिल्ली के विकास में समस्या पैदा होती है. अगर इस दिक्कत को दूर कर लिया जाए, और मल्टीपल एजेंसियों की बजाए दिल्ली में एक सरकार हो, जिसके पास सारे अधिकार हों, तभी दिल्ली का विकास ठीक से हो पाएगा.

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PAKISTAN: IMRAN GETS BAIL

akbOn Day 3 of the courtroom saga in Pakistan, former Prime Minister Imran Khan got two weeks’ bail from Islamabad High Court in all cases failed against him before May 9. The High Court ordered that the former PM shall not be arrested till May 17. There was high drama in the High Court complex, with Imran’s supporters raising slogans and setting fire to some vehicles. In the High Court, Imran Khan warned, if he was arrested, the government must remain prepared to face consequences. On Thursday night, Imran Khan was kept in Islamabad Police Lines guest house and was brought to High Court amidst tight security. The Supreme Court on Thursday had ordered immediate release of Imran Khan and at the same time, directed him to appear before the High Court for hearing in different cases. Imran Khan told the High Court that he was beaten up in custody and whatever happened to him was due to Army Chief Gen Asim Muneer. He also said, he would not go out of Pakistan to save himself. “This is my country and I shall not leave”, Imran Khan said. On Thursday, Pakistan Information Minister Mariyam Aurangzeb lashed out at the Supreme Court for ordering release of Imran Khan. She said, the apex court has released “a thief, a dacoit and a corrupt person”. Former minister Sheikh Rashid demanded immediate general elections, and at the same time condemned arson and vandalism taking place across Pakistan. Sheikh Rashid is right. Prime Minister Shehbaz Sharif and his party has made Imran Khan a hero by arresting him. At the same time, one must say that nothing is working properly in Pakistan at this moment. The manner in which Pak Rangers forcibly arrested Imran Khan was unjustified. The manner in which Imran’s supporters set fire to the Corps Commander’s residence in Lahore and Radio Pakistan office in Peshawar, after from looting and arson, is deplorable. The way in which senior ministers in Pakistan condemned the Supreme Court judges is unacceptable. Nobody in Pakistan is following rules, law and precedents. Everybody is engaged in reckless action. Nobody can say what is going to happen in Pakistan in the coming weeks.

MAHARASHTRA: MUCH ADO ABOUT MORALITY

A five-judge bench of Supreme Court on Thursday refused to unseat the Eknath Shinde-led government in Maharashtra, but at the same time said, Uddhav Thackeray-led coalition government could have had a chance to be reinstated had the CM not resigned a day before the floot test on June 30 last year, which the apex court declared as “illegal”. The Supreme Court said, the then Governor Bhagat Singh Koshiyari “was not justified in calling upon the chief minister to prove majority inside the House”. The apex court said, the “governor should not enter the political thicket and be arbiter of intra-party disputes. Floor test is not a medium to resolve inner-party conflicts.” While Eknath Shinde welcomed the verdict, Uddhav Thackeray demanded Shinde should resign on moral ground. Koshiyari said, “I am not a law student. I did what I thought was right. What can I do when I have someone’s resignation?” I cannot suppress laughter on seeing Eknath Shinde and Uddhav Thackeray speaking about morality. When Shinde broke away with Thackeray’s MLAs and went to Guwahati, where was morality? Uddhav Thackeray fought elections as an ally of BJP, but after the results were out, he formed a government with NCP and Congress. Did he think about morality? When Devendra Fadnavis and Ajit Pawar went to Raj Bhavan after midnight to take oath as CM and Deputy CM, why wasn’t their conscience pricked due to morality? The effect of Thursday’s Supreme Court verdict was: All of them got what they deserved. Shinde wanted to continue as CM, he was worried about his chair. He is now safe. Uddhav wanted to show to the world that his government was toppled and Shinde cheated him and former his government. His words were proved truye. The MLAs, who feared they would lose their membership, need not worry now, as the apex court said the Speaker will decide. Shinde government will continue in Maharashtra, Uddhav will continue to describe Shinde as backstabber. And morality will continue to wait to get its place in a corner.

DELHI MUST NOT HAVE MULTIPLE AGENCIES

The Aam Aadmi Party government in Delhi scored a victory over the Centre in its battle over who will control ‘services’ in the National Capital Territory. A five-judge bench of Supreme Court ruled that the elected government of Delhi has both executive and legislative jurisdiction over ‘services’, enabling it to decide posting and transfer of bureaucrats and make them accountable to ministers. The bench said, “it is the responsibility of the govt of NCTD to give expression to the will of the people of Delhi who elected it. Therefore, the ideal conclusion would be that GNCTD ought to have control over services, subject to exclusion of subjects that are out of its legislative domain”. The apex court said that the Lt. Governor shall be bound by the decision of the elected government on the issue of controlling the bureaucracy in NCTD. Chief Minister Arvind Kejriwal welcomed the verdict and promptly moved out the secretary of services department. I agree that the elected government in Delhi must have powers to appoint and transfer officers, and it would be better if the Centre does not interfere. But Kejriwal must also ensure that his officers should not be vindictive. Bureaucrats who work hard must be given freedom and respect. There must be no such incident in which an officer is summoned to the residence and he is subjected to physical blows. Delhi’s problem is that there are multiple agencies at work. The Centre, Delhi government, DDA, MCD, NDMC, Delhi Cantonment Board, etc. Whenever there is lack of coordination and communication between these agencies, problems arise in the path of Delhi’s development. Such shortcomings should be addressed, and in place of multiple agencies, there should be a single government in Delhi, which must have all powers. Only then can Delhi march towards progress.

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पाकिस्तान में हिंसा : दीवार पर लिखी है इबारत

AKBसारी दुनिया ये देख कर हैरान है कि जिस फौज का पाकिस्तान में खौफ था, लोग उस पर हमला कर रहे हैं. लोग जानते हैं कि इमरान खान की गिरफ़्तारी फौज और आई. एस. आई. का काम है. मुझे लगता है कि पाकिस्तान मे फौज, आई. एस. आई . और शहबाज़ शरीफ की सरकार ने इमरान खान को पाकिस्तान में एक बार फिर हीरो बना दिया है.. जब इमरान खान प्रधानमंत्री थे, तो लोग उनसे नाराज रहते थे, वो जनता से किए गए वादों को पूरा नहीं कर पाए थे. उन्होंने भी सत्ता में आने से पहले बड़ी बड़ी बातें की थी. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को लेकर बेसिर पैर की तरक़ीबें बताई थी, भ्रष्टाचार दूर करने के वादे किए थे, लेकिन ये सब कुछ करना पाकिस्तान में व्यावहारिक रूप से संभव नहीं था. इसलिए प्रधानमंत्री के तौर पर इमरान खान असफल होते दिखाई दे रहे थे. अगर वो सरकार में बने रहते, तो शायद अगला चुनाव न जीत पाते. लेकिन पाकिस्तान में बड़े सियासी फैसले जनमत के दम पर नहीं होते. न तो इमरान खान का तख्ता पलटने का फैसला सियासी तौर पर सही था, और न ही उन्हें उठा कर जेल में पटकने का फैसला सही है. इमरान खान सरकार से हटने के बाद पब्लिक के बीच उतरे और सही मायने में लीडर बने. गिरफ्तार होने से पहले उन्होंने वीडियो में जो कहा, वो बात पाकिस्तान के लोगों के दिलों में उतर गई. लोग इमरान खान के लिए मरने मारने को तैयार हो गए. इस एक वीडियो ने इमरान को पाकिस्तान का मसीहा बना दिया. पाकिस्तान की सड़कों पर उतरे लाखों लोग इसका सबूत है. जो लोग फौज से टकराने को तैयार हों, जिनके चेहरों पर कोई खौफ न हो, वे सब लोग आने वाले वक्त में इमरान के लिए बहुत बड़ी ताकत बन जाएंगे. ये लोग आने वाले दिनों में इमरान खान के बहुत काम आएंगे, और अचरज की बात ये है कि ये बात न तो पाकिस्तान की फौज को दिखाई दे रही है और न सरकार में बैठे शहबाज शरीफ और उनके दोस्तों को.

कर्नाटक : कहना मुश्किल है, ऊंट किस करवट बैठेगा

कर्नाटक के मामले में ये कहना मुश्किल है कि एग्ज़िट पोल कितने सही साबित होंगे. जब किसी चुनाव में कांटे की टक्कर होती है, तो, किसी के लिए भी अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है. 2018 में भी कर्नाटक में कांटे की टक्कर थी, किसी को बहुमत नहीं मिला था और सारे ओपिनियन पोल ग़लत साबित हुए थे. इस बार भी ऐसा हो, तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. हालांकि, इस बार के चुनाव में कुछ बातें नई हैं. एक तो पहले जेडी(एस) बड़ा फैक्टर होती थी, मुकाबले त्रिकोणीय होता थे, इस बार वो इतना बड़ा फैक्टर नहीं है . इस बार ज़्यादातर सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस की टक्कर है. पिछली बार के मुक़ाबले, कांग्रेस में इस बार बदलाव दिखाई दिया. इस चुनाव में कांग्रेस ने अपने नेताओं की आपसी लड़ाई को ठीक से मैनेज किया. लेकिन, बीजेपी इस बार अपने नेताओं को मैनेज नहीं कर पाई.. उसकी लड़ाई खुलकर सामने आई.. दूसरी बात, कांग्रेस का नज़रिया पहले ही दिन से साफ था कि स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ना है. कांग्रेस में, शुरुआती दौर में कोई भ्रम नहीं था. लेकिन, बाद के दौर में बीजेपी ने बाज़ी पलटी. जैसे ही कांग्रेस ने PFI और बजरंग दल को एक ही तराजू में तोलने की ग़लती की, चुनाव में बजरंग बली की एंट्री हुई और कांग्रेस बुरी तरह कनफ्यूज़ हुई. चुनाव का मुख्य मुद्दा बदल गया. कांग्रेस की दूसरी बड़ी समस्य़ा ये है कि उसके पास न तो नरेंद्र मोदी जैसा कैंपेनर है, न उनके जैसा करिश्मा. जब मोदी चुनाव प्रचार में उतरते हैं, तो रैली करें या रोड शो, वह हवा बदल देते हैं. मोदी ने इस चुनाव में भी जी-तोड़ मेहनत की, लेकिन कांग्रेस के मुख्य कैंपेनर राहुल गांधी, अनिच्छुक नज़र आए. इसीलिए कोई नहीं कह सकता कि ऊंट किस करवट बैठेगा. 13 मई का इंतजार करें .शनिवार को सुबह 6 बजे से आप इंडिया टीवी पर कर्नाटक चुनाव के शुरुआती रूझान और नतीजे देख सकते हैं. इंडिया टीवी के सभी रिपोर्टर ग्राउंड से आप तक रिपोर्ट पहुंचाएंगे. जाने-माने एक्सपर्ट हमारे साथ होंगे. 224 सीटों के पल-पल का हाल आप तक पहुंचे, इसके लिए हमने विशेष इंतजाम किये हैं. 13 मई नतीजे का दिन है. सुबह 6 बजे से आप कर्नाटक के रूझान और नतीजों का एक एक अपडेट सबसे पहले देख पाएंगे इंडिया टीवी पर.

अब फिर प्रचार में मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को नाथद्वारा में साढ़े पांच हजार करोड़ की योजनाओं का उद्घाटन औऱ शिलान्यास किया. इस सरकारी कार्यक्रम के बाद एक रैली की. सरकारी प्रोग्राम में प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक मंच पर थे. इसके बाद माउंट आबू में हुई बीजेपी की रैली में मोदी और वसुन्धरा राजे एक मंच पर थे. दोनों जगह मोदी ने मौके और माहौल के हिसाब से बात की. नाथद्वारा में जैसे ही गहलोत बोलने के लिए खड़े हुए तो पब्लिक ने ‘मोदी, मोदी’ के नारे लगाने शुरू कर दिए. .ये देखकर मोदी थोडा असहज हुए.. उन्होंने लोगों को रोका. फिर मंच पर बैठे सीपी जोशी से कहा कि नारेबाजी बंद करवाइए. मोदी के हावभाव देखकर नारेबाजी बंद हो गई . लेकिन ये नारेबाजी अशोक गहलोत को चुभ गई. गहलोत ने कहा कि लोकतंत्र में विपक्ष का सम्मान भी जरूरी है, विपक्ष के बिना सत्ता पक्ष का क्या मतलब है. गहलोत ने प्रधानमंत्री से अपील की कि वह राजस्थान की लम्बित परियोजनाओं को जल्द मंजूरी दें. मोदी ने माउंट आबू की रैली में कांग्रेस पर सीधा हमला बोला. मोदी ने कहा कि राजस्थान की सरकार के पास जनता की भलाई के काम करने की फुर्सत ही नहीं है, क्योंकि मुख्यमंत्री को न अपने विधायकों पर भरोसा है, और न ही विधायकों को अपने मुख्यमंत्री पर विश्वास है. मोदी ने कहा कि जिस राजस्थान में एक दूसरे को नीचा दिखाने का कंपटीशन चल रहा है, वहां की सरकार को पब्लिक की चिंता कैसे हो सकती है. मोदी जब सरकारी कार्यक्रम में होते हैं, तो वो प्रधानमंत्री की भूमिका में रहते हैं, और जब बीजेपी के कार्यक्रम में पहुंचते हैं, तो कैंपेनर के रोल में तब्दील हो जाते हैं. राजस्थान में भी यही देखने को मिला. सरकारी कार्यक्रम में उन्होंने मुख्यमंत्री गहलोत को अपने पास बिठाया, अपना दोस्त बताया और उनकी तारीफ़ भी की, लेकिन थोड़ी देर बाद, जब वो बीजेपी की रैली में पहुंचे, तो मोदी ने सचिन पायलट और गहलोत की तकरार को मुद्दा बनाया, कांग्रेस को फ्रॉड बताया. यही नरेंद्र मोदी की ख़ासियत है. एक चुनाव का प्रचार पूरा होता है, और वो दूसरे की तैयारी में जुट जाते हैं. राजस्थान के बाद, अब उनका अगला दौरा मध्य प्रदेश में होगा.

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PAK VIOLENCE: WRITING ON THE WALL

AKBThe world is amazed as it watches visuals of commoners attacking the Pakistan army installations and vehicles in the aftermath of nationwide violence following the arrest of Pakistan Tehreek-i-Insaaf chairman Imran Khan. Army has been called out to help civil administration in Islamabad, Punjab, Balochistan and Khyber Pakhtoonkhwa. Mobs set fire to Radio Pakistan building in Peshawar and the corps commander’s residence in Lahore. The man on the street in Pakistan, who used to be in awe of the army in the past, has now decided to give the army a fight. People know that Imran Khan was arrested not by the National Accountability Bureau, but by the Army and ISI. Watching the fast-paced developments in Pakistan, I feel, Pakistan Army, ISI and Prime Minister Shehbaz Sharif have unwittingly made Imran Khan a hero again. When Imran Khan was Prime Minister, the man on the street was unhappy with his regime, because he failed to fulfil his promises. Imran Khan had made lofty promises before coming to power. He had floated ridiculous ideas for transforming Pakistan’s economy, but it was not practically possible to implement them in Pakistan. Imran Khan appeared to be failing as a Prime Minister. Had he remained in power, he might not have won elections again, but in Pakistan, important political decisions are not taken on the basis of prevailing public opinion. Neither the decision to unseat Imran Khan as PM was justified, nor the decision to grab him by his collar and putting him behind bars was correct. After being removed from power, Imran Khan went before the people and became a successful leader in a true sense. The words that he spoke a day before his arrest in a widely circulated video, caught the imagination of the people. The man on the street became ready to fight his battle against the establishment. That single video made Imran a mass leader among the people. The evidence lies in the fact that thousands of people have come out on the streets to protest and fight the army. The people are not scared of the army. These commoners, in the coming days and weeks, will become the biggest strength of Imran and his party. The surprising part is that neither the Pakistan Army nor Prime Minister Shehbaz Sharif and his alliance partners are unwilling to read the writing on the wall.

KARNATAKA RESULT: DIFFICULT TO PREDICT

It is very difficult to say how far the exit poll predictions for Karnataka assembly elections will prove to be true. Whenever an election is closely contested, it is difficult to predict the correct result. In 2018, the contest was close in Karnataka, and the elections threw up a hung assembly. All the opinion poll predictions proved false. One should not be surprised if the exit poll predictions prove wrong this time. There are some factors which are new this time. Firstly, Janata Dal(S) earlier used to be a big factor and was making most of the contests triangular, but this time, JD(S) is no more a big factor. There are straight contests between Congress and BJP for most of the seats this time. There was a clear change in Congress leadership this time unlike the earlier elections. The party properly managed infighting between its leaders, but the BJP failed to manage its leaders and the fighting came out in the open. Secondly, Congress was clear in its strategy this time. It decided to focus only on local issues. In the initial phase, there was no confusion in the party, but later, BJP changed the game. The moment Congress equated PFI with Bajrang Dal in its manifesto, it marked the entry of Lord Bajrangbali in the election and the Congress leadership was confused. The main election issue changed. The second biggest problem for the Congress was that it had not a single campaigner to match the charisma of Narendra Modi. The Prime Minister, through his rallies and road shows, changed the way the wind was blowing. Modi toiled hard, but the main campaigner for Congress, Rahul Gandhi appeared to be a reluctant campaigner. Nobody can say what will be the final result. No pollster could predict 282 for Modi in 2014 and 303 in 2019.

MODI IN CAMPAIGN MODE

Prime Minister Narendra Modi and Rajasthan chief minister Ashok Gehlot attending an event in Nathdwara to launch projects worth Rs 5,500 crore. Later Modi addressed a BJP rally in Mount Abu with former CM Vasundhara Raje. At the official event, the crowd shouted slogans in favour of Modi and did not allow Gehlot to speak. Modi had to intervene and he requested the people to listen to their chief minister. A peeved Ashok Gehlot said, opposition must be given respect in a democracy. He appealed to the PM to clear several pending projects in Rajasthan. At his rally, Modi attacked the Congress saying Rajasthan ministers do not have time to work for public welfare. Modi said, neither the CM trusts his MLAs, nor the MLAs trust their CM. “A competition to insult each other is going on in Rajasthan”, Modi said. Modi has his own style of working. At government events, he functions as a Prime Minister, but at BJP meetings, his changes as a campaigner. At the government function, he asked Gehlot to sit beside him, introduced him as his friend and praised, but at the BJP meeting, Modi raised the issue of ongoing tussle between Gehlot and his rival Sachin Pilot. This is Modi’s hallmark. Moreover, once an election campaign is over, Modi starts another campaign. After visiting Rajasthan, Modi’s next stop will be Madhya Pradesh.

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पाकिस्तान में हालात बेकाबू

AKBपाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को मंगलवार को पाक रेंजर्स की एक टुकड़ी ने गिरफ्तार कर लिया जिसके बाद पूरे देश हंगामा मच गया और चारों तरफ अफरा-तफरी मच गई। रेंजर्स ने इमरान खान को धक्का दिया और उनकी गर्दन को पकड़कर घसीटा। उन्हें एक बख्तरबंद गाड़ी में इस्लामाबाद हाईकोर्ट पररिसर से दूर ले जाया गया। इस कार्रवाई के दौरान पाक रेंजर्स जबरन हाईकोर्ट परिसर में घुस गए, जवानों ने खिड़की के शीशे तोड़ दिए पूर्व प्रधानमंत्री को गिरफ्तार कर लिया। इसके तुरंद बाद पाकिस्तान के लगभग सभी प्रमुख शहरों में देर रात तक घटनाएं या आगजनी और पत्थरबाजी हुई। मरान को अल-कादिर यूनिवर्सिटी ट्रस्ट के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया गया है। मंगलवार की रात उन्हें पुलिस लाइन में रखा गया और डॉक्टरों की टीम ने उनके स्वास्थ्य की जांच की। इमरान खान के केस में इस बात की कोई वैल्यू नहीं कि उन्हें किस केस में गिरफ्तार किया गया है। सारा पाकिस्तान जानता है कि शहबाज शरीफ की सरकार ने इमरान के खिलाफ 121 मामले दर्ज किए हैं। कई बार उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की गई। लेकिन कभी इमरान खान के समर्थकों ने रोक दिया तो कभी अदालत ने। इस बार इमरान को उठाने का पूरा प्लान ISI ने बनाया। रेजर्स ने पूरी प्लानिंग के साथ इमरान को गिरफ्तार किया। ISI इमरान को लेकर इतनी आक्रामक क्यों है ? ये कोई रहस्य नहीं है। इमरान खान कई दिनों ने ISI के मेजर जनरल फैसल नसीर पर आरोप लगा रहे हैं। मेजर जनरल को डर्जी हैरी कहते हैं और इमरान ने कई बार कहा कि डर्टी हैरी ने दो बार उनकी हत्या कराने की कोशिश की। अब मेजर जनरल इमरान को झूठा और फर्जी साबित करना चाहते हैं। मंगलवार को उन्होंने दिखा दिया कि इमरान खान पैर में गोली लगने की वजह से व्हील चेयर पर चलते थे लेकिन वो अपने पैरों पर चलकर पुलिस की गाड़ी में बैठे या कहें उन्हें पैरों पर चला कर रेंजर्स ने पुलिस की गाड़ी में बैठाया। अब ISI के मेजर जनरल यह साबित करने की कोशिश करेंगे कि इमरान खान के पैर में कोई गोली-वोली नहीं लगी, ये सब ड्रामा था। इमरान को ISI ने गिरफ्तार करवाया, लेकिन इसमें शहबाज शरीफ की पूरी भूमिका है। जिन रेंजर्स ने इमरान खान को कोर्ट रूम की खिडकियों के शीशे तोड़ कर कॉलर पकड़कर घसीटा वो पाकिस्तान के गृह मंत्री के लिखित आदेश के बगैर एक्शन नहीं लेते। लेकिन जिस अंदाज में इमरान खान को गिरफ्तार किया गया उससे उन्हें जनता की सहानुभूति मिलेगी। जब लोग सड़कों पर उतरेंगे, हिंसा होगी, तो हालात और बिगड़ेंगे। दुख की बात ये है कि हालात को संभालने वाला कोई नहीं है। क्योंकि पाकिस्तान की फौज इस वक्त शहबाज शरीफ के साथ है और पाकिस्तान की न्यायपालिका इमरान खान के साथ है। दोनों एक दूसरे से स्कोर सैटल करने में लगे हैं। इसलिए पाकिस्तान में स्थिति और बिगड़ेगी। जहां तक भारत का सवाल है तो पड़ोस में अस्थिरता हमारे लिए अच्छी नहीं है। अपने घर में आग लगी हो तो आप उसे बुझा सकते हैं लेकिन पड़ोसी के घर में आग लगी हो और पड़ोसी दुश्मन हो तो उस आग की गर्मी परेशान करती है।

द केरल स्टोरी : फिल्म देखनेवालों को पीटना अपराध

पश्चिम बंगाल के हावड़ा के बेलूर स्थित रंगोली मॉल में पुलिस ने ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म देखने पहुंचे लोगों को थिएटर से घसीटकर बाहर निकाल दिया। दिलीप घोष सहित भाजपा के अन्य नेताओं ने इस कार्रवाई की निंदा की। महाराष्ट्र में एनसीपी नेता जितेंद्र आव्हाड ने फिल्म निर्माताओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। ‘द केरल स्टोरी’ को लेकर इतनी सियासत ना होती अगर कर्नाटक में चुनाव ना होते। अगर चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका जिक्र ना करते तो यह बड़ा मुद्दा नहीं बनता। लव जिहाद बीजेपी के लिए कोई नया मुद्दा नहीं है। केरल में लड़कियों को मुस्लिम बनाने और ISIS में भेजने का मुद्दा बीजेपी पहले भी उठाती रही है, लेकिन सियासत दोनों तरफ से बराबर की जा रही है। इस फिल्म का विरोध करने वाले, बैन लगाने वाले भी अपने अपने मुस्लिम वोट बैंक को इंटेक्ट करना चाहते हैं। हैरानी इस बात पर है कि बीबीसी की गुजरात दंगों पर बनी फिल्म पर जब पाबंदी लगाई गई थी तब ममता बनर्जी ने उसका विरोध किया था अब ममता बनर्जी ‘द केरल स्टोरी’ को रोकने में लगी हैं। जो लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते थे वो लोग इस बैन को लेकर खामोश हैं। मेरा कहना यह है कि इस मामले में चाहे जितनी पॉलिटिक्स हो, फिल्म कितनी भी बुरी हो, इसे देखने जाने वालों की पिटाई करना और पुलिस से उन्हें पकड़वाना जुर्म है। ये नहीं होना चाहिए।

राजस्थान में सियासी ड्रामा

कांग्रेस के असंतुष्ट नेता सचिन पायलट ने मंगलवार को कहा कि अब ये साफ हो गया है कि मुख्यमंत्री ‘अशोक गहोलत की नेता वसुंधरा राजे हैं, न कि सोनिया गांधी’। पायलट ने कहा कि अब लोग यह स्पष्ट तौर पर समझते हैं कि गहलोत ने वसुंधरा के शासन के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के आदेश क्यों नहीं दिए। सचिन पायलट अजमेर से जयपुर के लिए पांच दिवसीय पदयात्रा शुरू करेंगे। गहलोत सरकार के कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने भी अशोक गहलोत पर निशाना साधा। प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि 2020 में अगर राजस्थान की सरकार गिरने से बची थी तो उसके पीछे सिर्फ और सिर्फ सोनिया गांधी और राहुल गांधी थे। किसी और को उसका क्रेडिट नहीं लेना चाहिए, ना ही किसी को इस बात की गलतफहमी होनी चाहिए कि उसने सरकार बचाई थी। मेरा मानना है कि सारी दुनिया जानती है कि सचिन पायलट ने अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत की थी पर कांग्रेस इसे स्वीकार नहीं करती। सबको पता है कि अशोक गहलोत ने अपनी चतुराई से पार्टी द्वारा मुख्यमंत्री बदलने के प्लान को पलीता लगा दिया था लेकिन कांग्रेस इसे नहीं मानती। हर किसी को पता है कि गहलोत और पायलट इसी तरह टकराते रहे तो राजस्थान में कांग्रेस को भारी नुकसान होगा और कांग्रेस इस मामले में भी डिनायल मोड में है। सबसे दिलचस्प बात ये है कि सचिन पायलट अब ये साबित करने में लगे हैं कि गहलोत और वसुंधरा राजे आपस में मिले हुए हैं और ये बात बीजेपी को भी परेशान कर रही है।

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PAKISTAN IN TURMOIL

AKBPakistan was thrown into turmoil on Tuesday after former Prime Minister chairman Imran Khan was suddenly arrested by a contingent of Pak Rangers in connection with a corruption case. He was pushed, shoved and dragged by his neck by Rangers personnel, and whisked away from Islamabad High Court premises in an armoured vehicle. Pak Rangers personnel broke window panes, forcibly entered the High Court premises and nabbed the former PM. Soon after, incidents or arson and stoning took place late through the night in almost all major cities of Pakistan. Imran as arrested by National Accountability Bureau in connection with a corruption case involving money laundering through Al-Qadir University Trust. He was kept at police lines on Tuesday night and his health was checked by a team of doctors. It does not matter in which case Imran was arrested. The people of Pakistan know that Prime Minister Shahbaz Sharif’s government had filed 121 cases against Imran Khan, and in recent months, security forces tried to arrest him several times but failed. This time, the plan for his arrest was meticulously planned and executed by the all-powerful ISI (Inter Services Intelligence) of Pakistan army. The reason behind the aggressive stance of ISI towards Imran Khan is no secret. Imran had been alleging for the last several days that senior ISI officer Maj Gen Faisal Naseer has been working as ‘Dirty Harry’ and had tried to assassinate him twice. The ISI officer is now trying to prove Imran Khan wrong. The former PM, who had been travelling in a wheel chair for the last several months, was forced to stand up and walk to the armoured vehicle. The ISI major general will now try to prove that Imran Khan was never hit by a bullet in his leg, and it was a drama. The arrest was a clear ISI action, but the role of Prime Minister Shahbaz Sharif cannot be ignored. The Pak Rangers personnel, who broke the window panes of the court room, and dragged Imran by his collar, normally take orders from the Interior Minister of Shahbaz’s government. Visuals of the manner in which Imran Khan was arrested and dragged to an armoured vehicle are sure to generate public sympathy for him. The situation in Pakistan is surely going to deteriorate as violence spreads in several provinces. The sad part is that there is nobody to control the situation. While the Pakistan army is siding with Shahbaz Sharif, the judiciary is with Imran Khan. Both camps are trying to settle scores. This is surely going to spiral the crisis out of control. As far as India is concerned, instability in the neighbourhood is not good news. One can douse fires in one’s own house, and if there is a fire in a neighbour’s house, who is your enemy, the heat of the flames can cause concern for the neighbourhood.

THE KERALA STORY: BEATING UP MOVIEGOERS IS A CRIME

In Belur, Howrah, West Bengal, police on Tuesday attacked moviegoers at the Forum Rangoli Mall theatre and disrupted screening of ‘The Kerala Story’. BJP leaders, including Dilip Ghosh, condemned the action. In Maharashtra, NCP leader Jitendra Ahwad demanded action against the makers of the movie. While movie goers are flocking to theatres to watch this controversial film, one fact must not be noted. The movie may not have attracted much political action, were it not for the Karnataka assembly elections. Had Prime Minister Modi not mentioned the movie in one of his election speeches, this issue would not have got much traction. Love Jihad is not a new issue. BJP had been raising the matter of girls in Kerala being converted to Islam and sent to join ISIS. There is politics going on from both sides. Those opposing and banning this movie want to keep their Muslim vote bank intact. The surprising part is that when the Centre prohibited screening of the BBC documentary on 2002 Gujarat riots early this year, it was Mamata Banerjee who had opposed this ban. And now, it is Mamata’s police which is disrupting the screening of The Kerala Story movie. Those who were speaking about freedom of expression are now silent about the ban imposed by Mamata Banerjee’s government. My view is: whatever may be the political objectives, it is a crime to use police to bash up cine goers who want to watch a movie. This is not acceptable.

POLITICAL DRAMA IN RAJASTHAN

Dissident Congress leader Sachin Pilot on Tuesday said, it is now clear that Chief Minister “Ashok Gehlot’s leader is Vasundhara Raje and not Sonia Gandhi”. Pilot said, people now clearly understand why Gehlot did not order probe into allegations of corruption during Vasundhara’s rule. Pilot will start a five-day padayatra from Ajmer to Jaipur. Another Congress minister Pratap Singh Khachriawas said, Gehlot’s government was saved in 2020 by Sonia Gandhi and nobody else. My view on this is: the entire world knows how Pilot led the revolt against Gehlot, but Congress is unwilling to accept this. Everybody knows how Gehlot, through clever moves, sabotaged the Congress leadership’s plan to change the CM, but Congress is unwilling to accept this. Everybody understands if Gehlot and Pilot continue fighting like this, Congress may suffer electoral reverses in assembly polls this year. The most interesting part is, Pilot is trying to prove that Gehlot and Vasundhara Raje are in cahoots, and this is worrying the BJP leadership.

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कर्नाटक में कांटे का मुकाबला

AKb (1)कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार सोमवार शाम को खत्म होने के साथ राजनीतिक पंडित नतीजों के आकलन में जुट गए हैं। दो हफ्ते पहले जब प्रचार अभियान शुरू हुआ तो विशेषज्ञों ने जो एक आकलन किया था उसके मुताबिक कांग्रेस शुरुआत में आगे चलती नजर आ रही थी। कांग्रेस ने बीजेपी की बोम्मई सरकार पर 40 प्रतिशत कमीशन का मुद्दा सफलतापूर्वक चिपका दिया था। ऐसे में बीजेपी बचाव की मुद्रा में दिखी। बीजेपी के भी कुछ नेता ऐसे थे जो इस तरह का आरोप लगा रहे थे। बीजेपी को दूसरा धक्का तब लगा जब उसने नई पीढ़ी को मौका देने की कोशिश की और पुराने लोगों के टिकट काटे। ऐसे में जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी जैसे पुराने और अनुभवी नेता बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। हवा कांग्रेस के पक्ष में बनने लगी थी। लेकिन इसके बाद कांग्रेस ने एक के बाद एक, कई गलतियां की। चुनाव घोषणापत्र में पीएफआई और बजरंग दल को एक जैसा बता दिया और मुस्लिम आरक्षण को बहाल करने का वादा कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को पकड़ लिया। उन्होंने चुनावी सभाओं में बजरंग बली का जयघोष किया और पासा पलट दिया। तीन दिन तक तो कांग्रेस इसी की सफाई देने के चक्कर में पड़ी रही। इसके बाद कांग्रेस ने एक और गलती की। पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हुबली में अपनी जनसभा में कर्नाटक की ‘संप्रभुता’ की रक्षा करने की बात कही। अमित शाह ने इसे मुद्दा बना दिया और फिर कांग्रेस को सफाई देनी पड़ी। दो हफ्ते पहले तक कांग्रेस आक्रामक थी और बीजेपी बचाव की मुद्रा में थी लेकिन आज स्थिति उलटी है। अब कांग्रेस रक्षात्मक मुद्रा में है। शुरुआत में कांग्रेस आगे दिखाई दे रही थी लेकिन पूरे कर्नाटक में नरेंद्र मोदी के तूफानी प्रचार के बाद बीजेपी अब कांग्रेस की बराबरी पर आ गई है। जिस चुनाव में टक्कर जितनी कांटे की होती है, जहां हार जीत के अंतर कम होने के आसार होते हैं, वहां किसी के लिए भी यह अनुमान लगाना बहुत मुश्किल होता है कि सरकार किसकी बनेगी। ऐसे कांटे के टक्कर वाले चुनाव में ज्यादातर ओपिनियल पोल भी गलत साबित हो जाते हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग 10 मई को होगी और नतीजे 13 मई को आएंगे।

‘द केरल स्टोरी’ : प्रतिबंध जायज नहीं

आतंकवाद से जुड़े लव जिहाद पर बनी विवादित फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ पर पश्चिम बंगाल सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि तमिलनाडु में थिएटर मालिकों ने फिल्म दिखाने से मना कर दिया है। दूसरी ओर, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकारों ने फिल्म को ‘टैक्स फ्री’ कर दिया है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को अपने कैबिनेट मंत्रियों के साथ इस फिल्म को देखने की योजना भी बनाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक में अपनी एक चुनावी रैली में फिल्म की तारीफ करते हुए कहा कि यह ‘आतंकवादी साजिशों पर आधारित है और केरल में आतंकवादी साजिशों को उजागर करती है’। इस फिल्म का निर्माण विपुल अमृतलाल शाह ने और निर्देशन सुदीप्तो सेन ने किया है। ‘द केरल स्टोरी’ उन हिन्दू लड़कियों की कहानी पर आधारित है जिन्हें बहला-फुसलाकर पहले इस्लाम कबूल करवाया गया फिर उनका निकाह मुस्लिम नौजवान से कराया और फिर उन्हें आतंकवादी संगठन ISIS में भर्ती करा दिया गया।

बंगाल तो रचानत्मकता, कला और संस्कृति प्रदेश है। इसलिए वहां फिल्म पर पाबंदी की खबर से आश्चर्य हुआ। क्या ममता बनर्जी को वाकई में लगता है कि थियेटर में लोग फिल्म देख लेंगे तो कानून और व्यवस्था की समस्या खड़ी हो जाएगी या फिर उन्होंने इस फिल्म पर इसलिए प्रतिबंध लगाया क्योंकि कर्नाटक के चुनाव में नरेंद्र मोदी ने ‘ द केरल स्टोरी’ का जिक्र किया और इसे मुद्दा बनाया? फिल्म के विषय पर विवाद हो सकता है, फिल्म की कहानी पर विरोध हो सकता है, लेकिन फिल्म पर प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं है। जरूरी नहीं है कि 100 फीसदी लोग फिल्म के विरोध में हों और 100 फीसदी लोग फिल्म के पक्ष में हों। जिसे देखना है देखे, जिसे नहीं देखना है वो न देखे, लेकिन राज्य सरकारों का काम सियासी नफा- नुकसान के हिसाब से अपना फैसला जनता पर थोपना नहीं होता।

जो लोग ये सवाल उठा रहे हैं कि फिल्म में जो दावे किए गए वो गलत हैं। लव जिहाद के कुछ ही मामले हुए, कुछ ही लड़कियों को सीरिया भेजा गया लेकिन ऐसा दिखाया जा रहा है कि हजारों लड़कियों को सीरिया भेज दिया गया। मेरा कहना है कि एक लड़की को भेजा गया हो या एक हजार लड़कियों को, लड़कियों की संख्या से मामले की गंभीरता कम नहीं होती। दूसरी बात कोई फिल्म ये दावा नहीं करती कि वो पूरी तरह तथ्यों पर आधारित है। फिल्म एक विषय पर बनती है, तथ्यों पर नहीं। लव जिहाद जमीनी हकीकत है। इस पर किसी प्रोड्यूसर ने फिल्म बनाई तो गलत क्या है? चूंकि बीजेपी के नेता फिल्म का समर्थन कर रहे हैं, इसलिए ‘द केरल स्टोरी’ का विरोध किया जा रहा है। फिल्म पर प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं है। जो लोग यह इल्जाम लगा रहे हैं कि बीजेपी मुस्लिम विरोधी है और ‘द केरल स्टोरी’ के जरिए मुसलमानों को बदनाम करने की साजिश हो रही है इसलिए बीजेपी इस फिल्म को प्रमोट कर रही है। ऐसे नेताओं को यूपी के मुसलमानों की बात सुननी चाहिए। क्योंकि यूपी के मुसलमानों ने कहा कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सी फिल्म आई और कौन सी फिल्म गई। किसने फिल्म का समर्थन किया और किसने विरोध किया। वो सिर्फ सरकार के काम देखते हैं। बीजेपी ने यूपी शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में बिजनौर, अलीगढ़, मेरठ, सहारनपुर, कानपुर, वाराणसी और लखनऊ में 395 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। इनमें से करीब 90 फीसदी पसमांदा मुसलमान हैं। इन मुस्लिम उम्मीदवारों ने योगी और बीजेपी के बारे में जो कहा उससे मैं हैरान रह गया। योगी आदित्यनाथ अपनी सभी रैलियों में मतदाताओं से कहते रहे हैं कि कल्याणकारी उपायों का लाभ सभी वर्गों तक पहुंच रहा है।

क्या वसुंधरा ने गहलोत सरकार को बचाया?

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने धौलपुर में एक जनसभा में दावा किया कि 2020 में जब सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस विधायकों के एक गुट ने विद्रोह कर दिया था तब बीजेपी नेता और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने उनकी सरकार बचाई थी। गहलोत ने आरोप लगाया कि उस वक्त गृह मंत्री अमित शाह ने हमारे विधायकों को 10 से 20 करोड़ बांटा। गहलोत ने कहा कि वह पैसा अमित शाह को वापस लौटा देना चाहिए। सीएम गहलोत ने कहा कि उस वक्त वसुंधरा राजे सिंधिया और कैलाश मेघवाल ने कहा था हमारी कभी परंपरा नहीं रही है कि चुनी हुई सरकार को हम पैसे के बल पर गिराएं। इन्होंने सरकार गिराने वालों का साथ नहीं दिया जिस कारण हमारी सरकार बची रही। उधर, केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि गहलोत जो राग अलाप रहे हैं उसका कोई सबूत हो तो दिखाएं। अगर उनको पता है कि पैसे दिए गए हैं और भ्रष्टाचार हुआ है तो उसकी शिकायत दर्ज कराएं। उन्होंने मामले की सीबीआई से जांच कराने की चुनौती दी।

वसुन्धरा राजे ने कहा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 2023 में होने वाली हार से डरकर होकर झूठ बोल रहे हैं। राजे ने कहा कि रिश्वत लेना और देना दोनों अपराध हैं,यदि उनके विधायकों ने पैसा लिया है तो एफआईआर दर्ज करवाएं। वसुंधरा राजे ने ने कहा कि विधायकों की ख़रीद फ़रोख़्त की जहां तक बात है तो इसके महारथी तो स्वयं अशोक गहलोत हैं जिन्होंने 2008 और 2018 में अल्पमत में होने के कारण ऐसा किया था। उस वक्त न भाजपा को बहुमत मिला था और न ही कांग्रेस को। उस समय चाहते तो हम भी सरकार बना सकते थे पर यह भाजपा के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ था। इसके विपरीत गहलोत ने अपने लेन-देन के माध्यम से विधायकों की व्यवस्था कर दोनों समय सरकार बनाई थी।

गहलोत ने जो बयान दिया उसके पीछे की राजनीति समझने की कोशिश करनी चाहिए। सार्वजनिक तौर पर उन्होंने अमित शाह का नाम लिया लेकिन जिस शख्स को वह निशाना बना रहे थे वह कोई और नहीं बल्कि सचिन पायलट थे। यह ‘कहीं पे निगाहे, कहीं पे निशाना’ वाला मामला है। गहलोत ने अमित शाह के खिलाफ इस तरह के आरोप लगाने के लिए एक सार्वजनिक मंच का सहारा लिया लेकिन उनकी यह चाल शायद ही काम आए। उधर, मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सचिन पायलट ने अशोक गहलोत पर तंज कसते हुए कहा कि ‘अशोक गहलोत की नेता वसुंधरा राजे हैं, सोनिया गांधी नहीं’। आनेवाले दिनों में राजस्थान कांग्रेस का घमासान और गहराने के आसार हैं।

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A CLOSE CONTEST IN KARNATAKA

akbAs campaign ended for the Karnataka assembly elections on Monday evening, political pundits are busy calculating the outcome. When the campaign began two weeks ago, experts had made an overall assessment that Congress appears to be leading in the beginning. The party played its ’40 per cent commission’ card against the Bommai government, and BJP appeared to be on the defensive. There were some leaders in BJP too, who were levelling the corruption charges. The second setback to BJP took place, when the party decided to field young candidates, and denied tickets to old-timers like former CM Jagadish Shettar, Laxman Savadi. They quit BJP and joined Congress. The wave appeared to be favouring the Congress, but the party then committed one mistake after the other. The Congress election manifesto put PFI and Bajrang Dal on an equal footing and promised to restore Muslim job reservation. Prime Minister Narendra Modi latched on to this issue. He started chanting ‘Bajrang Bali Ki Jai’ in his election meetings and turned the tables on the Congress. For three days, Congress leaders were in a quandary over how to respond. The Congress then committed another mistake. Former party president Sonia Gandhi, in her only public meeting in Hubbali, spoke about defending Karnataka’s ‘sovereignty’. Amit Shah made it an issue. The Congress had to again give clarifications. Two weeks ago, Congress was on the offensive and BJP on the defensive, but today, the situation has changed. Congress is now on the defensive. In the beginning, Congress appeared to be leading, but after Modi’s whirlwind campaign across Karnataka, BJP has now come on equal footing with the Congress. In a closely contested election, margins of victory and defeat are slender, and it becomes very difficult for anybody to predict who will form the government. Opinion polls for such close contests often prove wrong. Polling is on May 10 and the results will be out on May 13.

‘THE KERALA STORY’ : BAN NOT JUSTIFIED

The controversial movie on terror-linked love jihad, ‘The Kerala Story’ has been banned by the West Bengal government, while in Tamil Nadu, theatre owners have refused to screen the film. On the other hand, BJP governments in Madhya Pradesh and Uttar Pradesh have declared the movie ‘tax-free’. UP chief minister Yogi Adityanath plans to watch the move along with his cabinet ministers on Friday. Prime Minister Narendra Modi, in one of his election rallies in Karnataka, praised the movie saying it was “based on terrorist plots and exposes terror conspiracies in Kerala”. The movie, directed by Sudipto Sen and produced by Vipul Amrutlal Shah, portrays the stories of Hindu women from Kerala who were converted to Islam and then recruited by the terror outfit ISIS. Bengal is known for its art, creativity and culture, and news about the ban on the movie by the Trinamool Congress government has surprised me. Does Mamata Banerjee really feels that the movie could create law and order problems after people watch it in theatres? Or, did she ban the movie only because PM Modi mentioned it during Karnataka elections and made it an issue? The subject of the movie can be questioned, the storyline can be opposed, but imposing ban on a movie cannot be justified. It is not that 100 per cent people are against this movie, or 100 per cent people support this film. Anybody is free whether to watch the movie or not. The function of a state government is not to impose its decision on the people based on political gains or losses. Those who say that the claims made in this movie are incorrect, and that only a few love jihad incidents took place in which some girls were sent to Syria after being converted to Islam, but it is being shown as if thousands of girls are being converted and sent to Syria. My view is that whether it is one girl or one thousand girls, the number of victims does not lessen the gravity of the problem. Secondly, no movie claims that it is fully based on facts. Movies are created on a subject, not necessarily based on facts. Love Jihad in India is a ground reality. What’s wrong if a producer makes a film on this topic? Was ‘The Kerala Story’ banned only because BJP leaders were supporting the movie. This is not justified. Those who allege that BJP is anti-Muslim, and that Muslims are being defamed by screening this movie, should hear what Muslim candidates fielded by BJP in the UP urban local body elections said. These Muslim candidates said, ‘it does not matter which movie comes or goes, who support or oppose. For us, the work of the government matters the most’. BJP has fielded 395 Muslim candidates in the UP urban local body polls in Bijnor, Aligarh, Meerut, Saharanpur, Kanpur, Varanasi and Lucknow. Nearly 90 per cent of these are Pasmanda Muslims. I was surprised to watch what these Muslim candidates said about Yogi and BJP. Yogi has been telling voters in all his rallies that the benefits of welfare measures are reaching all sections, irrespective of caste and community.

DID VASUNDHARA SAVE GEHLOT GOVT ?

Rajasthan chief minister Ashok Gehlot dropped a bombshell at a public meeting in Dholpur by claiming that BJP leader and former CM Vasundhara Raje saved his government in 2020, when a section of Congress MLAs led by Sachin Pilot revolted. Gehlot alleged that Home Minister Amit Shah distributed money to the tune of Rs 10-20 crores to dissident Congress MLAs, but Vasundhara Raje and another BJP leader Kailash Meghwal came to his government’s rescue. Gehlot challenged the dissident MLAs (belonging to Pilot camp) to return the money to Amit Shah. Union Jal Shakti Minister Gajendra Singh Shekhawat challenged Gehlot to come out with evidence or get the matter probed by CBI. Vasundhara Raje, in a statement, said, ‘Gehlot is facing defeat in this year’s assembly polls and is trying to diver the issues by telling lies’. She challenged Gehlot to file FIRs against the legislators who took bribes. She alleged that it was Gehlot “who is a master in horse trading of MLAs and had indulged in it in 2008 and 2018.” After hearing versions from all sides, one must try to understand the politics behind what exactly Gehlot did. Publicly, his barbs were meant for Amit Shah, but the person he was targeting was none other than Sachin Pilot. It is a case of ‘kahin pe nigahen, kahin pe nishana’. Gehlot used a public platform to level such allegations against Amit Shah, but his ploy may not work. Already, Sachin Pilot, at a press conference on Tuesday, lashed out at Gehlot saying, ‘Ashok Gehlot’s leader seems to be Vasundhara Raje and not Sonia Gandhi’. The turmoil in Rajasthan Congress is going to deepen in the coming days.

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