राहुल की भारत जोड़ो यात्रा: क्या विपक्षी दल उन्हें नेता के रूप में स्वीकार करेंगे ?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की समापन रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल पर जमकर निशाना साधा। इसके साथ ही उन्होंने आरएसएस को भी जोड़ा और कहा कि ये लोग हिंसा भड़काते हैं।
शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में लगातार हो रही बर्फबारी के बीच राहुल गांधी ने कहा, ‘मुझे पता है कि हिंसा क्या होती है। मैंने इसे देखा है और इसे झेला है। जिन्होंने हिंसा नहीं देखी या हिंसा को नहीं झेला है, वे इसे नहीं समझ पाएंगे। जैसे मोदीजी, अमित शाहजी, भाजपा और आरएसएस – वे इस दर्द को कभी नहीं समझेंगे…मोदी, अमित शाह, अजीत डोभाल, आरएसएस के लोग जो हिंसा भड़काते हैं, वे इस दर्द को नहीं समझेंगे। सेना के किसी जवान का परिवार यह समझेगा, पुलवामा में शहीद हुए सीआरपीएफ जवानों का परिवार यह समझेगा, कश्मीर के लोग समझेंगे कि वह दर्द क्या होता है।
लोगों की भावनाओं की रग को छूने की कोशिश करते हुए राहुल गांधी ने अपनी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी की हत्याओं का जिक्र किया। उन्होंने याद किया कि कैसे जब वे 14 साल के थे तो स्कूल में पढ़ाई के दौरान और फिर जब वे अमेरिका के एक कॉलेज में थे तब उन्हें इन हत्याओं के बारे में फोन कॉल मिली थी। राहुल गांधी ने कहा, दोनों फोन कॉल उसी तरह की थी, जिस तरह की कॉल परिवार के किसी सदस्य के मरने पर कश्मीर के लोगों को और पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए सुरक्षाकर्मियों के परिवारों को मिली थी।
समापन रैली में कांग्रेस ने 23 विपक्षी दलों को न्योता भैजा था, लेकिन केवल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती, नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख उमर अब्दुल्ला और सीपीआई नेता डी. राजा ने इस रैली में हिस्सा लिया। समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, जद (यू), आरजेडी समेत ज्यादातर पार्टियों ने राहुल की रैली से किनारा कर लिया। वहीं जीएमके, झामुमो, आरएसपी, आईयूएमएल और बसपा ने रैली में शामिल होने के लिए अपने प्रतिनिधियों को भेजा । हालांकि, कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि ज्यादातर पार्टियों के नेता मौसम की खराबी के कारण नहीं पहुंच पाए। रैली के बाद राहुल ने प्रियंका गांधी के साथ मजेदार ‘स्नोबॉल फाइट’ (एक-दूसरे पर बर्फ के गोले फेंकना) की। राहुल की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ 7 सितंबर को कन्याकुमारी से शुरू हुई और 22 राज्यों से होते हुए 145 दिनों की यात्रा के बाद श्रीनगर पहुंची।
राहुल गांधी ने कहा कि इस यात्रा का मकसद राजनीतिक नहीं था । ‘यह कांग्रेस की यात्रा नहीं है । इसका उद्देश्य भारत को एकजुट करना है।’ इसके साथ ही उन्होंने यह आरोप लगाकर कि बीजेपी और आरएसएस नफरत फैला रहे हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को घेरने की कोशिश की। राहुल गांधी ने कहा-‘मोदी और अमित शाह डरते हैं। वे कश्मीर में पैदल नहीं चल सकते हैं। लोगों ने मुझे भी डराने की कोशिश की लेकिन मैं डरा नहीं। राहुल ने इल्जाम लगाया कि बीजेपी के लोग उनकी सफेद टी-शर्ट को लाल रंग में रंगना चाहते थे। अफसरों ने उनसे कहा था कि अगर पैदल चलेंगे तो उन पर हैंड ग्रेनेड फेंके जा सकते हैं। राहुल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर उनका घर है और यहां के लोगों से उन्हें ग्रेनेड नहीं, प्यार मिला।
अपने भाषण में महबूबा मुफ्ती ने कहा, ‘गोडसे की विचारधारा ने जम्मू-कश्मीर से जो छीना है, राहुल की यह यात्रा उसे वापस लौटाएगी। राहुल गांधी ने कश्मीर के लोगों में उम्मीद की रोशनी जगाई है।’ नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘इस यात्रा ने यह साबित किया है कि भारत में अब भी संघ की विचारधारा से अलग विचारधारा के लोग मौजूद हैं। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि अभी तो राहुल कन्याकुमारी से कश्मीर तक चले हैं। अब उन्हें गुजरात से असम की यात्रा भी करनी चाहिए और वो भी राहुल के साथ इस यात्रा में शामिल होंगे।
बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने राहुल के आरोपों का जवाब देते हुए कहा, ‘ये कश्मीर की बदली हुई फिजा का ही सबूत है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी कश्मीर में बेखौफ होकर बर्फ से खेल रहे हैं। राहुल गांधी ने अपनी यात्रा को भारत जोड़ो का नाम दिया था लेकिन उन्होंने देश को ये नहीं बताया कि देश जितनी बार टूटा वो सब कांग्रेस के कारण टूटा।’
मैंने जब राहुल गांधी का भाषण सुना तो पहले दस- बारह मिनट तो ये समझना मुश्किल था कि वो कहना क्या चाहते हैं। आपने देखा होगा कि कांग्रेस के नेता ये कह-कह कर थक गए कि भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी की छवि बनी है। पर राहुल ने सोमवार को कहा कि यह यात्रा उन्होंने अपने लिए नहीं की। राहुल गांधी कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं लेकिन वो कहते हैं कि ये यात्रा उन्होंने अपनी पार्टी के लिए भी नहीं की। फिर उन्होंने यह भी कह दिया कि उनकी यात्रा राजनीति के लिए नहीं है। लेकिन उन्होंने नरेन्द्र मोदी और अमित शाह पर जो हमला किया वो पूरी तरह राजनीतिक था। इसलिए वो क्या कहते हैं और क्या करते हैं, ये समझना जरा मुश्किल है।
राजनीति को समझने वाले कहते हैं कि राहुल ने यह यात्रा अपने करीबी लोगों के कहने पर की। उनके सलाहकारों ने कहा कि लोगों में यह धारणा पनपने लगी कि राहुल राजनीति में ज्यादा रुचि नहीं रखते हैं और वे अनिच्छुक हैं। उनकी यह छवि बनने लगी कि मेहनत नहीं करते हैं और छुट्टी पर रहते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री पद के नए-नए दावेदार सामने आने लगे। कांग्रेस के नेता खुश हैं कि यात्रा की वजह से राहुल ने अपने आप को नीतीश कुमार और के चंद्रशेखर राव जैसे नेताओं के मुकाबले बड़ा नेता साबित कर दिया।
अब कांग्रेस के नेताओं को लगता है कि उन्हें एक नया राहुल गांधी मिल गया है जो उनकी नैया पार लगाएगा। जो काम पहले वाला राहुल नहीं कर पाया वो नया राहुल करके दिखाएगा। लेकिन चाहे ममता बनर्जी हों या फिर केसीआर, चाहे नीतीश कुमार हों या तेजस्वी यादव या फिर अखिलेश यादव, ये सारे नेता कांग्रेस का प्लान पंचर करने में लगे हैं। नीतीश कुमार, तेजस्वी और अखिलेश यादव मजहब के बाद अब सियासत को जाति के लेबल पर लाने की कोशिश में लगे हैं। इसके लिए पहले जातिगत जनगणना और अब रामचरित मानस को मोहरा बनाया गया है। कुल मिलाकर विपक्षी दलों की एकता अभी एक मृगतृष्णा बनी हुई है।
Rahul’s Yatra: Will opposition parties accept him as the leader?
At the culmination rally of ‘Bharat Jodo Yatra’ in Srinagar on Monday, Congress leader Rahul Gandhi lashed out at Prime Minister Narendra Modi, Home Minister Amit Shah and National Security Adviser Ajit Doval. He clubbed them along with RSS and said, they were “instigators of violence”.
Amidst a steady drizzle of snow at Sher-e-Kashmir stadium, Rahul Gandhi said, “I know what is violence. I have seen it and suffered it. Those who have not seen or suffered violence, will not understand it. Like Modi, Shah, RSS, they have not suffered violence….Those who instigate violence like Modi, Amit Shah, Ajit Doval, people of RSS, they will not understand pain. But the people of Kashmir, the people of CRPF, BSF and the Army, and their families will understand.”
Trying to touch an emotional chord, Rahul Gandhi referred to the assassinations of his grandmother Indira Gandhi and father Rajiv Gandhi. He recalled how he received phone calls when he was a 14-year-old in school, and then as a college student in the US, informing him about the assassinations. Rahul said, the two phone calls were similar to the phone calls received by families of people of Kashmir and of security personnel, like those who died in Pulwama terror attack.
The Congress had invited 23 opposition parties to attend the culmination rally, but only JKPDP chief Mehbooba Mufti, National Conference chief Omar Abdullah and CPI leader D. Raja attended. None of the top opposition leaders from Samajwadi Party, Trinamool Congress, JD(U), RJD attended, while DMK, JMM, RSP, IUML and BSP sent their representatives. Congress leaders cited bad weather as the reason. After the rally, Rahul and his sister Priyanka Gandhi played with snow, to the amusement of onlookers. Rahul’s Bharat Jodo Yatra began on September 7 from Kanyakumari and after 145 days of travel through 22 states, reached Srinagar.
Rahul Gandhi, said the aim of this yatra was not political. “This is not the yatra of Congress. Its aim is to unite India”, said Rahul Gandhi, but in the same breath, he lambasted Prime Minister Modi and his government, alleging that the BJP and RSS were spreading hate.
Rahul Gandhi said, “Modi and Amit Shah are afraid. They cannot muster the courage to travel in Kashmir on foot. People tried to strike fear in me. Some wanted to colour my white T-shirt in red. Officers told me that if you walk on foot, hand grenade can be thrown. Jammu Kashmir is my home. No grenade was thrown at me, but the people gave me their affection.”
In her speech, Mehbooba Mufti said, “Rahul’s Yatra will bring back the affection that was snatched away from Kashmiris by people who follow Godse’s ideology. Rahul has kindled a ray of hope among the people of Kashmir.” National Conference chief Omar Abdullah said, “this yatra has proved that there exists in India a vast majority of people who do not follow the RSS ideology. Rahul must now travel from Gujarat to Assam also, and I will accompany him.”
BJP spokesman Sudhanshu Trivedi replied to Rahul’s allegations and said, “the return of peace in the Kashmir Valley has made it possible for Rahul and Priyanka Gandhi to play with snow. Rahul named his yatra ‘Bharat Jodo’, but he did not tell the nation that it was Congress which partitioned India. ”
After watching Rahul Gandhi speaking at the rally on Monday, I could not understand for the first 10 to 12 minutes what exactly he wanted to convey. You must have noticed Congress leaders claiming that ‘Bharat Jodo Yatra’ has refurbished rahul’s image, but on Monday, Rahul Gandhi said, he did not go on this yatra for his own interest. Rahul Gandhi is the tallest leader in the Congress, but he said, this yatra was not for the Congress too. He also said, this yatra was not for political objectives. But his attacks on Narendra Modi and Amit Shah were purely political. It is difficult to understand the meaning behind what Rahul speaks and does in practice.
Those who know politics say, Rahul undertook this yatra on the advice of his close confidantes. His advisers told him that a common impression has gained currency among people that Rahul is not very much interested in politics, and is reluctant, that he is unwilling to put in hard work, and often goes out of the country on vacation. Because of this, fresh contenders for the post of PM have come forward. Congress leaders are now happy that the yatra has put Rahul on a higher pedestal compared to those of Nitish Kumar and K Chandrashekhar Rao.
Congress leaders feel that they have got a new avatar of Rahul, who will regain the grand old party’s lost glory. They believe the new avatar of Rahul will deliver what the earlier avatar could not. But leaders like Mamata Banerjee, KCR, Nitish Kumar, Tejashwi Yadav and Akhilesh Yadav, are out to puncture the plans of Congress.
Nitish Kumar, Tejashwi Yadav and Akhilesh Yadav, have now started rejigging their political gambit on the basis of caste instead of religion. That is why, caste census has been ordered in Bihar and Ramcharit Manas is also being targeted to reignite the caste cauldron. Opposition unity still continues to be a mirage.
कश्मीर में राहुल की यात्रा के दौरान सुरक्षा में चूक क्यों हुई?
राहुल गांधी ने शनिवार को एक बार फिर से अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू कर दी। इससे पहले शुक्रवार को सुरक्षा में चूक का आरोप लगाकर उन्होंने अपनी पदयात्रा को स्थगित कर दिया था। आज अंवतीपोरा में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती भी राहुल की इस यात्रा में शामिल हुईं।
राहुल की यात्रा टी ब्रेक के लिए पम्पोर में रुकी। इसके बाद यह यात्रा श्रीनगर के बाहरी इलाके पंथा चौक की ओर जाएगी जहां रात्रि विश्राम करने की योजना है। प्रियंका गांधी भी श्रीनगर पहुंच चुकी हैं और वे भी राहुल की पदयात्रा में शामिल होंगी। रविवार को भारत जोड़ो यात्रा पंथा चौक से शुरू होकर बुलवार्ड रोड स्थित नेहरू पार्क पहुंचेगी।
शुक्रवार को राहुल गांधी ने जम्मू के बनिहाल से अपनी यात्रा शुरू की थी और बुलेटप्रूफ वाहन के जरिए काजीगुंड में जवाहर टनल को पार किया। इसके बाद यात्रा में भीड़ इतनी ज्यादा हो गई कि वे मुश्किल से 500 मीटर और चल पाए। दरअसल, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला बड़ी संख्या में राहुल गांधी का स्वागत करने पहुंचे। उमर अब्दुल्ला भी राहुल के साथ-साथ यात्रा में पैदल चलने लगे।
सुरक्षा एजेंसियों ने राहुल गांधी के चारों तरफ जो बाहरी सुरक्षा घेरा बनाया था वह भीड़ बढ़ने के चलते टूट गया। सुरक्षा बलों के लिए भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया। सुरक्षा घेरे से बाहर चल रहे लोग भी राहुल गांधी के सुरक्षा घेरे के भीतर आ गए। जिसके चलते यात्रा रोकनी पड़ी।
बाद में राहुल गांधी ने कहा कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त पुलिस फोर्स मौजूद नहीं रहने के चलते उनकी सुरक्षा टीम से जुड़े लोगों ने यात्रा को स्थगित करने को कहा। राहुल गांधी ने आरोप लगाया-‘भीड़ को संभालने वाले पुलिसकर्मी कहीं नजर नहीं आ रहे थे…प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह सुरक्षा मुहैया कराए। मेरे लिए बहुत मुश्किल है कि मैं अपनी सुरक्षा में लगे लोगों के सुझावों के खिलाफ जाऊं।’
कांग्रेस के नेताओं ने आरोप लगाया कि प्रशासन राहुल गांधी की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहा है। यात्रा के मैनेजर और कांग्रेस नेता जीतू पटवारी ने कहा, मैंने पार्टी नेताओं के साथ पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित कराने के लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर से भी मुलाकात की थी। इसके बाद भी पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम नही किए गए। ऐसा लगता है कि यह प्रशासन की ओर से जानबूझकर किया गया है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘ राजनीति अपनी जगह है पर कश्मीर घाटी में राहुल गांधी की सुरक्षा से खिलवाड़ करके सरकार ने अपने निम्नतम से भी निम्नतम स्तर का प्रदर्शन किया है। भारत पहले ही इन्दिरा गांधी जी और राजीव गांधी जी को खो चुका है, किसी भी सरकार या प्रशासन को ऐसे मामलों पर राजनीति करने से बाज आना चाहिए।’
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने गृह मंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखकर उनसे इस मामले में दखल देने और भारत जोड़ो यात्रा को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने का अनुरोध किया। उन्होंने लिखा, ‘यदि आप व्यक्तिगत रूप से इस मामले में हस्तक्षेप कर सकते हैं और संबंधित अधिकारियों को यात्रा समाप्ति और 30 जनवरी को श्रीनगर में होनेवाले समारोह तक पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने की सलाह दे सकते हैं, तो मैं आपका आभारी रहूंगा।’
जम्मू-कश्मीर के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) आर के गोयल ने यात्रा आयोजकों को अचानक बढ़ती भीड़ के लिए जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, केंद्रीय अर्धसैनिक बल की 15 कंपनियां और जम्मू-कश्मीर पुलिस की 10 कंपनियां यात्रा के लिए तैनात की गई थीं, लेकिन आयोजकों को इस बात की पहले से कोई जानकारी नहीं थी कि यात्रा में शामिल होने के लिए बनिहाल में भारी भीड़ जमा होगी। उन्होंने कहा कि सुरक्षा अधिकारियों को जानकारी दिए बिना अचानक से यात्रा को रोक दिया गया, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हो गई।
गोयल ने कहा, यात्रा में भीड़ इसलिए बढ़ गई क्योंकि टनल में दाखिल होने के बाद समर्थकों के वापस लौट जाने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और बड़ी संख्या में लोग काफिले के साथ चलने लगे। इससे सुरक्षा घेरा टूट गया। वहीं दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर बीजेपी प्रमुख रविंद्र रैना ने दावा किया कि यात्रा में भीड़ नहीं जुटी थी इसलिए राहुल गांधी ने सुरक्षा का बहाना बनाकर इसे कैंसिल किया।
सियासी बयानों की बात अलग है, लेकिन सुरक्षा का मामला बिल्कुल अलग है। राहुल गांधी की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होने ही चाहिए। यह बात सही है कि सिक्यॉरिटी एजेंसीज ने राहुल गांधी को जम्मू कश्मीर में पैदल यात्रा न करने की सलाह दी थी, लेकिन राहुल जिद पर अड़े रहे। सुरक्षा में लगे अफसर ये कह कर नहीं बच सकते कि उन्हें आयोजकों ने भारी भीड़ के बारे में नहीं बताया था। सिक्यॉरिटी एजेंसी का काम तो हर हाल में पूरी सुरक्षा देना होता है। जहां तक प्रोटोकॉल और तय नियम कायदों के पालन का सवाल है, तो राहुल गांधी के लिए प्रोटोकॉल को तोड़ना कोई नई बात नहीं है।
24 दिसंबर को जब दिल्ली में राहुल गांधी की सुरक्षा में चूक का मामला उठा था, उस वक्त भी CRPF ने आधिकारिक तौर पर बताया था कि राहुल गांधी ने 113 बार खुद सिक्यॉरिटी प्रोटोकॉल तोड़ा है। जब सुरक्षा एजेंसियों को मालूम है कि राहुल गांधी सुरक्षा के साथ खुद खिलवाड़ करते हैं तो उन्हें ज्यादा सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि अब वह कश्मीर में हैं। तमाम देशविरोधी ताकतें मौके की तलाश में हैं जिससे कश्मीर को एक बार फिर गलत कारणों से चर्चा में लाया जा सके।
शुक्रवार को नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जैसे-जैसे यात्रा घाटी में आगे बढ़ेगी, भीड़ भी बढ़ती जाएगी। उमर अब्दुल्ला ने आरोप लगाया कि ‘मोदी सरकार ने मुसलमानों को उनके हक से महरूम कर दिया है। 15 फीसदी आबादी होने के बावजूद केंद्रीय मंत्रिपरिषद में एक भी मुसलमान नहीं है। न ही सत्ताधारी पार्टी में एक भी मुस्लिम सांसद है। मोदी सरकार ने मुसलमानों से सत्ता में भागीदारी छीन ली है।’
उमर अब्दुल्ला हिंदू-मुसलमानों के आधार पर लोगों को बांटने की बात कह रहे हैं, और इसे ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का नाम दे रहे हैं। यही सियासत है। अगर पुरानी बातें याद दिलाई जाएंगी तो शायद उमर अब्दुल्ला को जवाब देते न बने। महबूबा मुफ्ती हों या उमर अब्दुल्ला, दोनों ने अब तक कश्मीर को हिन्दू-मुसलमानों के आधार पर बांट कर ही राज किया है। जम्मू को उसका हक इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि जम्मू में हिंदुओं और सिखों की संख्या ज्यादा थी।
उमर अब्दुल्ला को यह भी याद करना चाहिए उनकी सरकार में, उनके वालिद (फारूक अब्दुल्ला) की सरकार में और उनके दादा (शेख अब्दुल्ला) की सरकार में कितने हिंदू मंत्री थे। उमर को यह भी बताना चाहिए कि जब कट्टरपंथियों और जिहादियों की वजह से कश्मीरी पंडितों को घाटी से घर, मकान, दुकान छोड़कर भागना पड़ा, उससे एक दिन पहले तक जम्मू कश्मीर में किसकी सरकार थी।
असल में PDP हो, नेशनल कॉन्फ्रेंस हो या कांग्रेस, इन सभी दलों की यही सियासत रही है कि कश्मीरियों को हिंदू और मुसलमान में, गद्दी और नॉन गद्दी में बांटते रहो, दूरियां बढ़ाते रहो और सरकारें चलाते रहो। लेकिन अब वक्त बदल गया है। कश्मीर बदल गया है। कश्मीर में अब सब कश्मीरी हैं, सबके हक बराबर हैं। यह बात उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं को पच नहीं रही है। अब आर्टिकल 370 की दीवार गिर चुकी है।
इसलिए ये नेता एक बार फिर मजहब की दीवार खड़ी करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अब कश्मीर के लोग असलियत जान चुके हैं। अगली बार जब भी चुनाव होंगे तो पहले की तरह 7 फीसदी वोटों से सरकार नहीं बनेगी। यहीं चिंता उमर को खाए जा रही है।
Why security lapse occurred during Rahul’s Yatra in Kashmir
A day after suspending his ‘Bharat Jodo Yatra’ alleging security lapse, Congress leader Rahul Gandhi on Saturday resumed his walk, with People’s Democratic Party chief Mehbooba Mufti joining him from Awantipora.
The yatra halted in Pampore for tea break, and it will proceed towards Pantha Chowk on the outskirts of Srinagar for night halt. Priyanka Gandhi also reached Srinagar and she will join her brother’s Yatra. On Sunday, the Yatra will resume from Pantha Chowk and reach Nehru Park on Boulevard Road.
Rahul Gandhi, who had begun his Yatra from Banihal in Jammu region on Friday, crossed the Jawahar Tunnel into the Valley in Qazigund in a bulletproof vehicle and afterwards he could barely walk for another 500 metres due to surging crowd. National Conference leader Omar Abdullah had come with a huge crowd of supporters to join the Yatra.
Security forces found it difficult to control the crowd of supporters, and the yatra had to be cancelled for the day. The outer security cordon broke down due to the pressure of the crowd and people entered the inner security ring of Rahul Gandhi.
Later, Rahul Gandhi said, his security team asked him to halt the yatra, in the absence of adequate police force to manage the crowd. Rahul alleged that “policemen who were supposed to manage the crowd were nowhere to be seen.. It is the administration’s responsibility to provide security….I had to call off my yatra because I can’t go against the advice of my security personnel.”
Congress leaders alleged that the administration is “playing” with the security of Rahul Gandhi. Yatra manager and party leader Jitu Patwari said, he and his partymen had met the Lt. Governor for ensuring adequate security arrangements, but “this seems to be a deliberate action on part of the administration.”
Congress general secretary Jairam Ramesh tweeted, “To engage in politics is one thing, but by playing with Rahul Gandhi’s security in Kashmir Valley, the government has hit a new low. Already, India lost Indira Gandhi and Rajiv Gandhi, and any government or administration must desist from doing politics in such matters.”
Congress President Mallikarjun Kharge in a letter to Home Minister Amit Shah requested him to intervene and provide adequate security to Bharat Jodo Yatra. “I shall be grateful if you could personally intervene in this matter and advise the officials concerned to provide adequate security till the culmination of the Yatra and the function on January 30 at Srinagar”, he wrote.
Additional Chief Secretary (Home) of Jammu and Kashmir, R K Goyal blamed the Yatra organisers for the sudden emergence of surging crowds. He said, 15 companies of central paramilitary force and 10 companies of J&K police were deployed for the Yatra, but the organisers had no prior information that a huge crowd will gather at Banihal to join the Yatra. He said, the Yatra was abruptly halted without informing security officials, adding to confusion.
Goyal said, the crowd swelled because supporters who were expected to stay back after the Yatra entered the tunnel, also continued to walk, adding to the break of security cordon. On the other hand, J&K BJP chief Ravindra Raina claimed that the Yatra was called off because of lack of response from people in the Valley.
Political allegations aside, security is a serious issue. There should have been tight security for Rahul Gandhi. Security agencies had advised Rahul not to walk on foot in the Valley, but Rahul insisted. Security officials cannot shun their responsibility by saying that there were not told about the huge crowds by the organisers. The work of security agencies is to provide full protection. As far as following security protocol is concerned, breach of protocol by Rahul Gandhi is not new.
On December 24, when a security breach occurred in Delhi, CRPF officially said that Rahul Gandhi had done security violations 113 times. Security agencies should have been more cautious, when the Yatra reached the Valley. Anti-national elements are waiting for the opportunity to strike, so that Kashmir may become headlines again for the wrong reasons.
On Friday, NC chief Omar Abdullah said,as the Yatra will progress through the Valley, it will attract more crowds. Omar Abdullah alleged that “Modi government has deprived Muslims of their rights. Despite being 15 per cent of the population, there is not a single Muslim in the Union Council of Ministers. Nor is there a single Muslim MP in the ruling party. Modi government has snatched away the partnership of Muslims from power.”
Omar Abdullah is speaking about dividing people on Hindu-Muslim lines, and yet he claims this is Bharat Jodo Yatra. One must remind Omar Abdullah and Mehbooba Mufti how both of them tried to create divisions among Hindus and Muslims in the Valley, and how they deprived Hindus of their rights in Jammu region despite Hindus and Sikhs being in the majority.
Omar Abdullah should check how many Hindu ministers were there in the governments led by his father (Farooq Abdullah) and grandfather (Sheikh Abdullah). Omar must also disclose whose government was there in the Valley, a day before thousands of Kashmiri Pandits were forced by zealots and jihadi mobs to leave their homes and shops, and start an exodus.
Whether it is the PDP, or National Conference, or the Congress, their politics in J&K had always centred around dividing Hindus and Muslims, creating divide, and cling to power. But times have now changed. Kashmir has changed. All are Kashmiris in Kashmir, having equal rights. Leaders like Omar Abdullah or Mehbooba Mufti cannot digest this. The wall of Article 370 has been demolished.
That is why these leaders are desperately trying to create wall between Hindus and Muslims. The people of Kashmir now know the realities. Whenever the next election takes place, governments may not be formed as they used to be formed before. Omar Abdullah has realized this.
भारत की स्वदेशी सैन्य शक्ति की परेड
भारत ने गुरुवार को दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया। 21 तोपों द्वारा दी जाने वाली परंपरागत सलामी पहली बार 105 एमएम वाली भारतीय फील्ड तोपों से दी गयी। इन तोपों ने कर्तव्य पथ पर अंग्रेजों के जमाने की 25-पाउंडर तोपों की जगह ली। इसके तुरंत बाद एक विशाल जनसमूह की मौजूदगी में, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी और कई विदेशी राजनयिक एवं अन्य गणमान्य लोग शामिल थे, ‘स्वदेशी’ सैन्य शक्ति नजर आई।
परेड में शामिल मेड इन इंडिया सैन्य साजो-सामान में हाल ही में तैनात लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर प्रचंड भी शामिल था। इसने तीर शैली में अमेरिका में बने अपाचे हेलिकॉप्टरों और 2 स्वदेशी ALH MK-IV हेलिकॉप्टरों के फॉर्मेशन को लीड किया। परेड में पहला स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम आकाश और मेन बैटल टैंक अर्जुन भी नजर आए। अर्जुन की स्पीड 70 किमी प्रति घंटा है और यह 120 मिमी की मेन राइफल, 7.62 मिमी की मशीन गन एवं एक स्वदेशी एंटी-एयरक्राफ्ट गन से लैस है।
5 किमी के रेंज वाली ‘फायर एंड फॉरगेट’ नाग एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल भी इस परेड में नजर आई। दक्षिण कोरियाई तकनीक से भारत की लार्सन एंड टुब्रो कंपनी द्वारा निर्मित के-9 वज्र-टी सेल्फ-प्रोपेल्ड होवित्जर भी परेड के प्रमुख आकर्षणों में से एक था।
ब्रह्मोस सुपरसोनिक हाई-प्रिसिजन क्रूज मिसाइल को 861 मिसाइल रेजिमेंट ने प्रदर्शित किया, जबकि 27 वायु रक्षा मिसाइल रेजिमेंट ने परेड में पहले स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम आकाश का दीदार कराया। आकाश वेपन सिस्टम हवा में 150 किमी से भी ज्यादा दूरी तक निगरानी रख सकता है और 25 किमी की सीमा के भीतर दुश्मन के किसी भी विमान को धूल चटा सकता है। परेड में मेड इन इंडिया 8×8 एम्फिबियस इंफैन्ट्री आर्मर्ड वीइकल को भी प्रदर्शित किया गया।
वे दिन गए जब भारत की फौज अपने हथियारों के लिए विदेशों पर निर्भर रहा करती थी। नरेंद्र मोदी की सरकार ने स्वदेशी रक्षा क्षेत्र के विकास पर पूरा जोर दिया है और ये उपकरण उसी पहल का सबूत हैं।
अतीत में, हमारी सीमाओं की सुरक्षा को मजबूत रखने के लिए हथियारों का आयात जरूरी समझा जाता था। इसके बाद सरकार ने धीरे-धीरे सैन्य उपकरणों के आयात को कम करने और उन्हें देश में ही निर्मित करने का निर्णय लिया। इससे भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा की बचत हुई है।
दूसरी बात यह कि हर रक्षा सौदे को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगते थे। उस समय किसी ने नहीं सोचा कि ये हथियार हम भारत में क्यों नहीं बना सकते। नरेंद्र मोदी ने इस बारे में सोचा और नतीजा सबके सामने है। यह तो सिर्फ एक शुरुआत है। उत्तर प्रदेश के झांसी में डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर जल्द ही बनकर तैयार हो जाएगा।
भारत अभी भी दुनिया में हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है। हमारा 60 फीसदी से ज्यादा मिलिटरी हार्डवेयर रूस से मंगाया गया है और बाकी इजरायल, अमेरिका और फ्रांस से लिया गया है। मौजूदा समय में हमारी फौज के पास रूसी टैंक, फ्रांसीसी लड़ाकू विमान और अमेरिका से आए ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और हेलिकॉप्टर हैं। लेकिन चीजें तेजी से बदल रही हैं और स्वदेशी निर्माण पर जोर दिया जा रहा है। के-9 वज्र-टी हॉवित्जर और प्रचंड हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर इसकी बड़ी मिसालें हैं।
मोदी सरकार ने 2025 के लिए पहला माइलस्टोन तय किया है, तब तक 1.75 लाख करोड़ रुपये के सैन्य उपकरण तैयार हो जाएंगे और भारतीय कंपनियां 35,000 करोड़ रुपये के हथियारों का निर्यात करेंगी। मौजूदा वित्तीय वर्ष में, भारतीय हथियारों का निर्यात 16-17,000 करोड़ रुपये के दायरे में रहने की उम्मीद है।
यहां हमें एक बात का ध्यान रखना चाहिए। ऐसे कई देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था भारत जैसे देशों को सैन्य उपकरणों, जंगी जहाजों और विमानों के निर्यात पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है। ये देश कभी नहीं चाहेंगे कि भारत इन सैन्य उपकरणों का बड़े पैमाने पर खुद ही निर्माण करे। आगे चुनौतियां भी हैं लेकिन हमें भरोसा रखना चाहिए कि वह दिन जल्दी ही आएगा जब भारत न सिर्फ पूरी तरह आत्मनिर्भर होगा बल्कि दूसरे देशों को हथियार, गोला-बारूद, फाइटर विमान और युद्धपोत भी बेचेगा।
India parades defence indigenization
India showcased its military might at the Republic Day parade on Thursday in Delhi. For the first time, indigenous 105 mm field guns fired a 21-gun salute, replacing vintage British 25-pounder guns on Kartavya Path (formerly Raj Path). This was soon followed by a display of ‘swadeshi’ military muscle in the presence of a large crowd that included foreign diplomats and other dignitaries, with chief guest Egyptian President Abdel Fattah el-Sisi watching.
Among the Made In India military equipment displayed was the recently deployed Light Combat Helicopter Prachanda. It led a formation of US-built Apache choppers and two indigenous ALH MK-IV choppers in arrow style. The first indigenous Akash air defence system, main battle tank Arjun, that has a speed of 70 kmph, equipped with a 120 mm main rifled gun, 7.62 mm machine gun and an indigenous anti-aircraft gun, rolled on at the parade.
The fire-and-forget Nag anti-tank guided missile, with an effective range of 5 km, was also displayed. The K-9 Vajra-T self-propelled howitzer built by India’s Larsen and Toubro company with South Korean technology was also one of the major attractions of the parade.
The Brahmos supersonic high-precision cruise missile was showcased by 861 missile regiment, while the first indigenously developed Akash system was displayed at the parade by 27 Air Defence Missile regiment. Akash weapon system can keep surveillance over 150 km of air space and can shoot down any hostile aircraft within a range of 25 km. The Made In India 8×8 amphibious infantry armoured vehicle was also displayed at the parade.
Gone are the days when Indian armed forces used to be dependent on import of all military equipment. Prime Minister Narendra Modi’s government has laid full emphasis on the development of indigenous defence sector and these equipment are proof of that initiative.
In the past, arms import was deemed necessary in order to beef up security on our borders. Gradually, the government decided to scale down import of military equipment and start manufacturing them indigenously. This has saved major outgo of foreign exchange.
Secondly, purchase of defence equipment led to allegations of corruption in arms deals. At that time, nobody thought that these military equipment can be built in India. Narendra Modi thought about this and the result is there for all to see. This is just the beginning. The Defence Industrial Corridor is coming up near Jhansi, UP.
India is still the world’s second biggest arms importer. Over 60 per cent of its military hardware is on Russian origin and the rest is sourced from Israeli, US and France. Presently, our armed forces have a mix of Russian tanks, French fighter aircraft and American transport aircraft and choppers. But things are changing fast and stress is being laid on indigenous manufacturing. The K-9 Vajra-T howitzer and Prachanda light combat helicopters are main examples.
Modi government has set the first milestone for 2025, by which time Rs 1.75 lakh crore worth military equipment will be produced and Indian companies will make arms export worth Rs 35,000 crore. This fiscal year, Indian arms export is expected to be in the range of Rs 16-17,000 crore.
Here we should bear one thing in mind. There are countries whose economies depend heavily on export of military equipment, warships and aircraft to countries like India. These countries will never want India to go in for massive defence indigenization. There are challenges ahead, and we should hope for the day when India will not only manufacture all the ships, aircraft and missiles that it wants, but also export them.
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री: भारत को बदनाम करने की कोशिश करने वालों की असली मंशा क्या है?
जामिया मिलिया इस्लामिया और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) कैंपस में वामपंथी कार्यकर्ताओं द्वारा पीएम मोदी पर बनी बीबीसी डॉक्यूमेंट्री ( इंडिया : द मोदी क्वेश्चन) की स्क्रीनिंग की कोशिश, गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश को बदनाम करने की मानसिकता के अलावा और कुछ नहीं हैं। CPI-M की छात्र शाखा स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) के कार्यकर्ताओं ने बुधवार को छात्रों को जामिया मिलिया इस्लामिया में इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग में शामिल होने के लिए कहा था। इसके बाद वहां पुलिस तैनात कर दी गई। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने स्क्रीनिंग की इजाजत देने से इनकार कर दिया। यूनिवर्सिटी में चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात कर उसे एक किले में बदल दिया गया और अंत में स्क्रीनिंग की कॉल वापस ले गई। पुलिस ने 13 छात्रों को हिरासत में ले लिया।
इससे पहले मंगलवार की रात वाम समर्थक कार्यकर्ताओं ने जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) कैंपस के अंदर इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की कोशिश की लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन ने बिजली और इंटरनेट सेवा ठप कर दी। इस दौरान पथराव की भी खबरें आईं। एसएफआई के कार्यकर्ताओं ने पथराव के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) को जिम्मेदार ठहराया।
एक बात साफ है कि इनका इरादा डॉक्यूमेंट्री देखने का नहीं बल्कि इसे सार्वजनिक तौर पर दिखाकर हंगामा करने का है। इसके पीछे राजनीतिक मकसद साफ नजर आता है। दरअसल, यह गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश को शर्मिंदा करने की कोशिश है। इजिप्ट के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सीसी दिल्ली में मौजूद हैं और वे गणतंत्र दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भी हैं। जेएनयू के लिए ऐसे विवाद कोई नए नहीं हैं। यह वामपंथी छात्रों का गढ़ रहा है। यहां मोदी का विरोध होना स्वाभाविक है। इतना ही नहीं जेएनेयू में तो दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी एक्शन लेना पड़ा था। कई दिनों के लिए कैम्पस को बंद कर दिया गया था।
जब मनमोहन सिंह प्रधामंत्री थे तो उनके खिलाफ भी जेएनयू में नारे लगे थे और प्रदर्शन हुआ था। इतना ही नहीं पाकिस्तान के समर्थन में मुशायरे का आयोजन भी किया गया था। जेएनयू कैंपस वो जगह है जहां नक्सलवादियों के हमले में शहीद हुए CRPF के जवानों की मौत पर जश्न मनाया गया था।
यहां अफजल गुरु की फांसी की तीसरी बरसी पर जुटे छात्रों ने ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे..इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाह’ जैसे देश-विरोधी नारे लगाए थे। इसलिए यहां अगर गुजरात दंगों को लेकर पीएम मोदी पर बनी BBC डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की कोशिश की जाती है तो यह किसी के लिए अचरज की बात नहीं होनी चाहिए।
उधर, सीपीआई (एम) के शासन वाली केरल के अलग-अलग जिलों और यूनिवर्सिटी कैम्पस में वामपंथी स्टूडेंट यूनियन के लोग खुलकर इस डॉक्यूमेंट्री को दिखा रहे हैं। बुधवार को बड़े पैमाने पर इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की गई। हालांकि, बीजेपी के लोग अपनी तरफ से इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग रोकने की कोशिश कर रहे हैं। बुधवार को तिरुवंतपुरम के पूजापोरा इलाके में DYFI कार्यकर्ताओं ने एक कॉलेज कैंपस में इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की। BJP कार्यकर्ता जब इसका विरोध करने पहुंचे तो पुलिस ने कैम्पस के बाहर बैरिकेड लगाकर उन्हें रोक दिया। BJP कार्यकर्ताओं ने जब कैम्पस के अंदर दाखिल होने की कोशिश की तो पुलिस ने उन्हें तितर-बितर करने के लिए वाटर कैनन का इस्तेमाल किया।
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा-‘ ये डॉक्यूमेंट्री उस देश की संस्था ने बनाई है जिसने हम पर 200 साल राज किया। जिन लोगों ने ये कहा कि भारत के लोग लोकतंत्र के लायक नहीं हैं और अगर अंग्रेज यहां से चले गए तो भारत के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। अब वो देख रहे हैं कि भारत ना सिर्फ एकजुट, आज़ाद और लोकतांत्रिक है बल्कि भारत को अब दुनिया के नेता के तौर पर देखा जा रहा है। इसी वजह से वो हताश हैं और भारत के खिलाफ प्रचार किया जा रहा है।’
आरिफ मोहम्मद खान ने कहा-‘मैं तो भारत के उन लोगों के बारे में सोचकर हैरान हूं जो इस ओपिनियन को इतनी अहमियत दे रहे हैं। विदेशी लोगों की डॉक्यूमेंट्री को ज्यादा अहमियत दी जा रही है.. और ये वो लोग हैं जिन्होंने भारत को उपनिवेश बनाकर रखा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ज्यादा अहमियत विदेशियों की ओपनियिन को दी जा रही है। मुझे नहीं लगता कि इस मुद्दे को ज्यादा तूल देने की जरूरत है।’
बुधवार को वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ए. के. एंटनी के बेटे अनिल एंटनी ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस के ही कार्यकर्ताओं ने इस डॉक्यूमेंट्री का विरोध करने की वजह से अनिल एंटनी को गालियां दी थीं। अनिल एंटनी ने इस डॉक्यूमेंट्री को ‘भारत की संप्रभुता का उल्लंघन’ करार दिया था। उन्होंने मंगलवार को ट्वीट किया था कि कांग्रेस जिस तरह एक BBC को भारत की सर्वोच्च संस्थाओं की राय से भी ज्यादा अहमियत दे रही है, वह गलत है। उन्होंने ‘नफरत से भरी फोन कॉल्स और गालियों’ का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस ने अनिल एंटनी को अपना ट्वीट डिलीट करने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया।
इस्तीफा देने के बाद अनिल एंटनी ने कहा, ‘मैं कई मुद्दों पर बीजेपी का विरोध करता हूं। मैंने अब तक बीजेपी का विरोध किया है, लेकिन बात जब देशहित की हो, संप्रभुता की हो, देश की सुरक्षा की हो, स्ट्रैटजिक इंट्रेस्ट की हो, तब मुझे लगता है कि हमें ऐसे लोगों के हाथों नहीं खेलना चाहिए जिससे आने वाले समय में हमें नुकसान हो। यही वजह है कि मैंने BBC की डॉक्यूमेंट्री को लेकर ये कहा कि इसके पीछे एजेंडा हो सकता है, इसलिए हमें (कांग्रेस) इसे लेकर थोड़ा सतर्क रहने की जरूरत है।’
अनिल एंटनी के पिता एके एंटनी करीब छह दशक से कांग्रेस में हैं। वे केरल के मुख्यमंत्री रहे, देश के रक्षा मंत्री रहे और नेहरू-गांधी परिवार के वफादार भी हैं। ऐसे में अगर उनके बेटे को कांग्रेस से इस्तीफा देना पड़ा है तो पार्टी को इस पर सोचना चाहिए। लेकिन कांग्रेस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा है। राहुल गांधी तो खुलकर BBC की डॉक्यूमेंट्री को सपोर्ट कर रहे हैं। राहुल गांधी का कहना है कि सरकार चाहे जितने बैन लगा ले लेकिन सच सामने आ ही जाता है। बुधवार को उन्होंने कहा-टअगर आप हमारे शास्त्रों, भगवत गीता और उपनिषद पढ़ेंगे तो उनमें लिखा है, सच्चाई छिपाई नहीं जा सकती। सच्चाई हमेशा सामने आ जाती है। आप बैन कर सकते हैं, संस्थाओं को कंट्रोल कर सकते हैं, CBI, ED का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन सच तो सच होता है। सच्चाई चमकती है, सच की आदत होती है किसी भी तरह सामने आने की।’
सवाल सिर्फ मोदी का नहीं है। देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले का भी है। देश के आत्मसम्मान का भी है। दंगे आज से 20 साल पहले हुए थ। डॉक्यूमेंट्री बनाने वाले BBC के लोग देश से बाहर के हैं। यह मामला निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सुना जा चुका है। जो लोग इस डॉक्यूमेंट्री में फीचर हुए हैं, उनके विचार भी अदालत के फैसले के बाद बदल चुके हैं।
ज़माना बदल गया, मामला खत्म हो गया, लेकिन जो लोग सच देखना नहीं चाहते, सच सुनना नहीं चाहते, सुप्रीम कोर्ट की बात मानना नहीं चाहते, उनका कोई कुछ नहीं कर सकता। जो लोग मोदी को अब तक चुनाव में हरा नहीं पाए, उन्हें बदनाम करके खुश हो लेते हैं।
BBC की इस डॉक्यूमेंट्री की पब्लिक स्क्रीनिंग कराने की कोशिश के पीछे वही लोग हैं जो CAA के प्रोटेस्ट के पीछे थे। ये वही लोग हैं जो किसान आंदोलन को हवा देने में लगे थे। इनका अपना एक इकोसिस्टम है, जिसकी गूंज JNU से लेकर पश्चिम बंगाल के जादवपुर यूनिवर्सिटी तक सुनाई देती है। बाहर के मुल्कों में भी इन्हें सपोर्ट करने वाले बहुत लोग हैं।
इस पूरे विवाद की टाइमिंग पर ध्यान देना जरूरी है। भारत को G-20 की अध्यक्षता मिली है। गणतंत्र दिवेस का मौका है। गणतंत्र दिवस की परेड में मिस्र के राष्ट्रपति मुख्य अतिथि हैं। इसलिए इस तरह की डॉक्यूमेंट्री के नाम पर प्रोटस्ट और हंगामे की योजना बनाई गई। यह तो सिर्फ शुरुआत है। पिक्चर अभी बाकी है।
BBC documentary: Know the real motive of those trying to defame India
The attempts by pro-Left activists to screen the BBC documentary on Gujarat riots titled ‘The Modi Question’ in Jamia Millia and JNU campuses are nothing but reflective of their mindset to bring infamy to our country on the eve of 74th Republic Day.
Activists of CPI-M student wing Students’ Federation of India had asked students to attend the screening in Jamia Milla on Wednesday, after which police was deployed. The university administration refused to give permission for screening. The university was turned into a fortress and finally the screening was called off, and 13 students were detained by police.
On Tuesday night, pro-Left activists in Jawaharlal Nehru University tried to screen the documentary inside the campus, but the administration disconnected power and internet was snapped. There were reports of stone pelting, and SFI activists blamed ABVP, the RSS students’ wing.
The motive was clear: to create public ‘hungama’ instead of screening the documentary. There was political objective behind it. The objective was to embarrass the government during the visit of Egyptian President Abdel Fattah El-Sisi. JNU is considered a stronghold of pro-Left students, who are stridently anti-Modi. Even the late PM Indira Gandhi had to take action against JNU activists during her rule and the campus had to be closed down for some time.
During Dr Manmohan Singh’s rule too, there were anti-government protests, and ‘mushaira’ was organized in support of Pakistan. This was the campus where the martyrdom of our CRPF jawans at the hands of Maoists was celebrated.
Anti-Indian slogans like ‘Bharat Tere Tukde Honge, Inshallah, Inshallah’ were chanted during the third anniversary of the execution of Parliament attack mastermind Afzal Guru. There is nothing new if an anti-Modi documentary is sought to be screened.
In CPI(M)-ruled Kerala, the BBC documentary was extensively screened by pro-Left groups in several districts and university campuses on Wednesday. In Thiruvananthapuram, BJP supporters were prevented by police by erecting barricades, when DYFI activists screened the documentary. Police had to use water cannons to disperse BJP supporters.
Kerala Governor Arif Mohammad Khan said, “the documentary has been made by people from a nation which ruled us for 200 years. These were the people who were claiming that Indians were not fit for democracy, and if the British left, India will be broken into several pieces. These were the people who had predicted that India’s freedom and democracy will not remain intact. Today they find India strong, independent and democratic, and India is regarded as one of the leading countries in world forums.”
Khan said, “I am surprised that there are Indians who give importance to the opinion of such people. These were the people who had made India their colony to exploit. The Supreme Court’s opinion is being given less weightage compared to the opinion expressed by foreigners in their documentary. I think such an issue need not be given much importance.”
On Wednesday, Anil Antony, son of senior Congress leader A K Antony resigned from all posts in the party after he was heckled and abused by party supporters for opposing the documentary. Anil Antony had described the BBC documentary as “an infringement of India’s sovereignty.” He had tweeted on Tuesday that placing the views of BBC over Indian institutions will undermine the sovereignty of the nation. While resigning, he cited “intolerant calls and abuses” over the matter. The Congress had directed Anil Antony to delete his tweet, which he refused to do so.
After resigning, Anil Antony said, “I oppose BJP on several issues. I have opposed BJP till now, but when national interest, sovereignty and national security and strategic interests are concerned, I think we should not play into the hands of such people. That is why I said there could be an agenda behind the BBC documentary, and we in the Congress need to be alert.”
Anil’s father A K Antony has been in the Congress for more than six decades. He was Kerala chief minister, India’s Defence Minister, and a loyalist of Nehru-Gandhi family. If his son resigns, the party needs to rethink. On Wednesday, Rahul Gandhi said, “truth will always come out, even if you ban it. Our Upanishads and Bhagwad Gita say, truth always comes out, it cannnot be hidden. You can control institutions, you can misuse CBI, ED, but truth is after all, truth. Truth always shines and it has the natural tendency to come it.”
The question is not about Modi. It is about the judgement of our Supreme Court. It relates to India’s self-esteem. The riots took place 20 years ago. Those in the BBC who made the documentary, were outsiders. The matter was heard right from the lower courts till the apex court. Those featured in the BBC documentary, have been heard from the lower courts to the Supreme Court. Their views have also changed now.
Times have changed. The matter is at rest, but there are people who do not wish to see the truth. Such people do not wish to obey the verdict of the apex court. Nothing can be done about such people. Those who failed to defeat Modi in elections, are at least having the consolation of trying to defame him.
The people who are trying to screen the BBC documentary are those, who instigated the protests against Citizenship Amendment Act. These were the people who had instigated the farmers to sit on dharna for more than a year. They have their own eco-system. Their voices can be heard from JNU campus till Jadavpur University campus in Bengal. There are many outside India who support such people.
One should look at the timing of such screenings. India has taken over as the chairman of G-20 group. Republic Day was observed with fanfare across the country. The President of Egypt was the chief guest at the Republic Day parade. These were the reasons why the screening of the controversial BBC documentary was sought to be done. This is only the beginning. More is to follow.
सर्जिकल स्ट्राइक वाले बयान पर राहुल दिग्विजय सिंह के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करना चाहते ?
भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के अंदर किए गए सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे पर मंगलवार को कांग्रेस असमंजस में दिखी। पार्टी के अंदर दो तरह की बातें सुनाई दी। राहुल गांधी ने अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान नगरोटा में एक पत्रकार वार्ता में कहा, ‘जो दिग्विजय सिंह जी ने कहा उससे मैं बिलकुल सहमत नहीं हूं। हमारी आर्मी पर हमारा पूरा विश्वास है। आर्मी जो करती है, सबूत देने की कोई जरूरत नहीं है। मैं निजी तौर पर उनके बयान से बिल्कुल सहमत नहीं हूं और कांग्रेस पार्टी की आधिकारिक स्थिति भी यही है कि वो दिग्विजय जी की निजी राय है। हमारी पार्टी की राय नहीं।’
वहीं जब राहुल गांधी से यह पूछा गया कि पार्टी की राय के खिलाफ बयान देने पर दिग्विजय सिंह पर क्या एक्शन होगा ? तो राहुल ने कहा- ‘हम एक लोकतांत्रिक पार्टी हैं। हम कोई तानाशाह नहीं हैं। कांग्रेस में सबको अपनी बात कहने का हक है। पार्टी का नज़रिया दिग्विजय जी के व्यक्तिगत विचारों से ऊपर है।’
इससे एक दिन पहले दिग्विजय सिंह ने उरी आतंकी हमले के बाद सेना की तरफ से किए गए सर्जिकल स्ट्राइक की प्रमाणिकता पर सवाल उठाया था। उरी हमले में सेना के 19 जवानों की मौत हो गई थी। दिग्विजय सिंह ने सोमवार को जम्मू के सरवरी चौक पर एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था, ‘वे (बीजेपी) सर्जिकल स्ट्राइक की बात करते हैं, लेकिन इसका कोई सबूत नहीं है। वे सब झूठ फैलाते हैं।’
उसी दिन पार्टी के महासचिव जयराम रमेश ने कहा, ‘दिग्विजय सिंह ने जो कुछ भी कहा वह उनका व्यक्तिगत बयान है, कांग्रेस का नजरिया इससे अलग है। 2014 से पहले यूपीए सरकार के समय में भी सर्जिकल स्ट्राइक किए गए। कांग्रेस ने राष्ट्रीय हित में की जाने वाली सभी सैन्य कार्रवाइयों का समर्थन किया है और आगे भी करती रहेगी।’
राहुल गांधी की फटकार के बाद दिग्विजय सिंह ने भी मंगलवार को अपना रुख बदल लिया और सिलसिलेवार ट्वीट कर 2019 के पुलवामा आतंकी हमले के बारे में और सफाई मांगा। दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया: ‘मैंने अपने सशस्त्र बलों को हमेशा सर्वोच्च सम्मान दिया है। मेरी दो बहनों की शादी नेवल ऑफिसर्स से हुई थी। सेना के अधिकारियों से सवाल पूछने का प्रश्न ही नहीं उठता। मेरा सवाल तो मोदी सरकार से है।’
सवाल-1 उस अक्षम्य खुफिया तंत्र की विफलता के लिए कौन जिम्मेदार है जिसके चलते सीआरपीएफ के हमारे 40 जवान शहीद हुए ? 2- आतंकवादी 300 किलो आरडीएक्स कहां से ला सकते थे ? 3- सीआरपीएफ जवानों को एयरलिफ्ट करने के अनुरोध को क्यों ठुकराया गया? मोदी सरकार से ये मेरे वाजिब सवाल हैं। क्या मुझे एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में तथ्यों को जानने का अधिकार नहीं है? इस गंभीर चूक के लिए किसे दंडित किया गया है ? किसी दूसरे देश में ऐसा होता तो गृह मंत्री को इस्तीफा देना पड़ता।
दिग्विजय सिंह की हरकतें कांग्रेस पार्टी के लिए फजीहत बन गई हैं। सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर दिग्विजय सिंह के बयान पर उठे विवाद ने पिछले दो दिनों से जम्मू-कश्मीर में राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को लेकर आ रही सकारात्मक खबरों पर पानी फेर दिया है। अंत में, हालात को संभालने के लिए राहुल गांधी को मीडिया के सामने आना पड़ा। इसमें कोई शक नहीं कि दिग्विजय सिंह के बयान से कांग्रेस को नुक़सान हुआ है और राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का नैरेटिव बिगड़ा है। श्रीनगर में समाप्त होनेवाली इस यात्रा में अब केवल 5 दिन बाकी हैं।
बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने दिग्विजय सिंह के बयान को उनका व्यक्तिगत नजरिया बताने के लिए राहुल गांधी पर जमकर हमला किया। उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस की यही रणनीति है, पहले सेना का अपमान करो, सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगो और जब फंस जाओ तो व्यक्तिगत नजरिया कहकर किनारा कर लो। कांग्रेस को आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए …राहुल भी कई मौकों पर सेना को अपमानित कर चुके हैं और वे भी सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग चुके हैं।’
कांग्रेस नेता जयराम रमेश का गुस्सा मंगलवार को तब साफ दिखा जब उन्होंने यात्रा के दौरान दिग्विजय सिंह से सवाल पूछने की कोशिश कर रही इंडिया टीवी की रिपोर्टर विजय लक्ष्मी का माइक हटा दिया। जयराम रमेश ने पत्रकार को धक्का मारते हुए कहा, ‘कृपया हमें वॉक करने दो। जाओ प्रधानमंत्री से सवाल पूछो।’
जयराम रमेश की बौखलाहट, उनका गुस्सा ये समझने के लिए काफी है कि दिग्विजय सिंह के बयान से कांग्रेस में कितनी बेचैनी है। इस बयान से राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का नैरेटिव बिगड़ा है। लेकिन इससे दिग्विजय सिंह की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। वो मज़े से हंसते-मुस्कुराते ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में सबसे आगे चलते रहे। इस पर बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि जिस तरह से जयराम ने दिग्वजिय को रोका और जिस अंदाज़ में दिग्विजय फिर बोलने को तैयार थे उसे देखकर लगा कि कांग्रेस की ये रणनीति है कि कुछ लोग बोलेंगे, विवाद पैदा करेंगे और बाद में पार्टी उनकी निजी राय बताकर किनारा कर लेगी।
इसमें कोई दो राय नहीं कि राहुल गांधी ने पिछले 130 दिन से पैदल चलकर जो थोड़ा बहुत गुडविल कमाया था उसे दिग्विजय सिंह ने अपने एक बयान से मिट्टी में मिला दिया। इसीलिए, कांग्रेस अब बैकफुट पर नजर आ रही है। दिग्विजय सिंह की गिनती कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेताओं में होती है। वे गांधी-नेहरू परिवार के विश्वासपात्र हैं। राहुल गांधी के राजनीतिक गुरू हैं। दस साल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
दिग्विजय सिंह के बयान से कांग्रेस के नेता अब भले ही किनारा कर रहे हैं लेकिन हक़ीक़त यह है कि तमाम मौकों पर राहुल गांधी समेत कांग्रेस के कई नेता सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग चुके हैं।
दिग्विजय सिंह ने पुलवामा आतंकी हमले को लेकर सवाल उठाए हैं। पुलवामा हमले की जांच नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) कर रही थी। डेढ़ साल के भीतर 13, 800 पन्नों की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की गई। इस केस में NIA ने कुल 19 लोगों को आरोपी बनाया, इनमें सात आरोपी पाकिस्तान के नागरिक हैं। इन आरोपियों में जैश-ए-मुहम्मद का सरगना मौलाना मसूद अज़हर और JEM के बड़े आतंकी रऊफ़ असगर और अम्मार अल्वी उर्फ छोटा मसूद के नाम भी शामिल हैं। 12 आरोपी भारत के नागरिक हैं। इनमें से एक तो आत्मघाती हमलावर आदिल डार था जो मौक़े पर ही मारा गया था। इसके अलावा, मुहम्मद उमर फ़ारुक़, सज्जाद अहमद बट और मुदस्सिर अहमद ख़ान सुरक्षा बलों के हाथों मारे भी मारे जा चुके हैं। मुहम्मद उमर को पुलवामा हमले का मास्टरमाइंड कहा जाता है और वह ट्रेनिंग लेने के लिए अफ़ग़ानिस्तान भी गया था।
क़रीब डेढ़ साल की जांच में NIA ने मौक़े से कई सबूत जुटाए और इस आतंकी हमले की कड़ियां जोड़ीं। एनआईए इस निष्कर्ष पर पहुंची कि CRPF के काफ़िले पर हमले की साज़िश पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI ने रची थी। कश्मीर के कई आतंकवादियों ने आरोपियों को पनाह दी और उनकी मदद की। एनआईए ने सभी की भूमिकाओं का पता लगाया और अब यह मामला अदालत में है। एनआईए के डीजी वाईसी मोदी ने कहा-जिस पुलिस अधिकारी देविंदर सिंह के नाम का जिक्र दिग्विजय सिंह ने किया था, पुलवामा हमले में उसकी कोई भूमिका नहीं थी।
रिटायर्ड एयर मार्शल और पश्चिमी एयर कमान के पूर्व प्रमुख रघुनाथ नाम्बियार ने कहा, ‘ये महाशय नहीं जानते कि ये क्या बोल रहे हैं। उन्हें ग़लत जानकारी दी जा रही है। उन्हें सच्चाई पता नहीं है। मैंने बालाकोट हमले के दो दिनों बाद वेस्टर्न एयर कमान की ज़िम्मेदारी संभाली थी और मुझे अच्छी तरह पता है कि बालाकोट में क्या हुआ था। मैं आपको भरोसा देना चाहता हूं कि हमारे बहादुर पायलटों ने ठीक वैसा ही किया, जिसका उन्हें आदेश दिया गया था और उन्होंने हमारे तय किए हुए सभी मक़सद कामयाबी से पूरे किए। आप किसी की झूठी बातों पर भरोसा मत कीजिए और विश्वास रखिए कि बालाकोट हवाई हमला पूरी तरह से कामयाब रहा था।’
2019 में एयर स्ट्राइक से पहले भारतीय सेना ने 2016 में पाक के कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक की थी। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ उस वक़्त कश्मीर में कोर कमांडर थे। उन्होंने कहा- ‘जिस समय कश्मीर के उरी में आर्मी कैंप पर हमला हुआ उस दौरान तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पारिकर के साथ एक बैठक हुई जिसमें फैसला लिया गया कि इस बार आतंकियों को जवाब देना है इसीलिए सर्जिकल स्ट्राइक का प्लान बनाया गया। हालांकि पब्लिक डोमेन में यह नहीं बताया जा सकता कि सर्जिकल स्ट्राइक का प्रारूप क्या था। जो लोग सबूत मांगते हैं उनकी वजह से सेना का मनोबल कमजोर होता है। इसीलिए ऐसे लोगों को इस तरह की बयानबाजी से बचना चाहिए।’
सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के समय आर्मी और एयरफोर्स के जो बड़े अफसर थे उन्होंने सारी बात साफ-साफ कह दी। अब और क्या सबूत चाहिए? हालांकि जिस वक्त सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी उसके अगले ही दिन उस वक्त के DGMO रणबीर सिंह ने खुद इसकी जानकारी दी थी। इसके बाद तो किसी के मन में किसी तरह की शंका और आशंका की गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए थी।
एक बात साफ है कि राहुल गांधी कुछ भी कहें, दिग्विजय सिंह अपनी बात पर कायम हैं। इस बात को उन्होंने अपने ट्वीट से एक बार फिर पक्का कर दिया है। वैसे तो दिग्विजय सिंह, राहुल गांधी से कह सकते हैं कि अगर फौज के शौर्य की बात नहीं करना पार्टी की पॉलिसी है तो राहुल ने थोड़े दिन पहले ये क्यों कहा था कि ‘चीनी सैनिकों ने हमारे जवानों की पिटाई की थी’।
दिग्विजय सिंह यह भी पूछ सकते हैं कि पी. चिदंबरम ने सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो जारी करने की मांग क्यों की थी? संदीप दीक्षित ने फ़ौज के एक्शन को ड्रामा क्यों बताया था? संजय निरूपम ने क्यों कहा था कि सर्जिकल स्ट्राइक का दावा फर्जी है? तब राहुल ने क्यों नहीं कहा था कि कांग्रेस इन सबकी बातों से सहमत नहीं है?
दरअसल, दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं को बोलने का मौका इसलिए मिला क्योंकि वे जानते हैं कि राहुल गांधी भी कई बार सेना के शौर्य पर सवाल उठा चुके हैं। वैसे बयानबाजी के मामले में दिग्विजय सिंह का कोई मुकाबला नहीं है। वे डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार के वक्त हुए बाटला हाउस एनकाउंटर को फर्जी बता चुके हैं। वे ओसामा बिन लादेन जैसे ख़ूंख़ार आतंकवादी का नाम अदब के साथ लेते हैं। उन्हें ज़ाकिर नाईक शान्ति का दूत दिखता है और भारतीय सेना के शौर्य पर उन्हें यकीन नहीं हैं। वे सरकार से सबूत मांगते हैं।
सरकार का नाम लेकर सेना पर सवाल उठाना ठीक नहीं है। लेकिन लगता है राहुल गांधी, दिग्विजय सिंह के खिलाफ कोई एक्शन इसलिए नहीं लेते, क्योंकि उन्हें लगता है कि दिग्विजय सिंह ही आरएसएस और बीजेपी के खिलाफ सबसे तीखा बोलते हैं। दिग्विजय ही नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के खिलाफ वैसा ही बयान देते हैं जैसा राहुल गांधी को पसंद है।
Why Rahul can’t take action against Digvijaya Singh for his ‘surgical strike’ remark
The Congress on Tuesday appeared to be in two minds on taking a firm stand on the issue of surgical strikes carried out by armed forces inside Pakistan.
Rahul Gandhi, during his ‘Bharat Jodo Yatra’, said at a media meet in Nagrota, “I do not agree with Digvijaya Singh’s statement. It is crystal clear that we (as a party) disagree with it. We trust the Army. The armed forces do their job exceptionally well and need not provide any proof of that. We do not appreciate Digvijaya Singh’s views. I can assure you that his views are not shared by the party.”
Asked whether any action would be taken against Digvijaya Singh, Rahul Gandhi replied: “We are a democratic party. We aren’t a dictatorship. Digivijaya Singh’s personal views are not above that of the party.”
The day before, Digvijaya Singh had questioned the authenticity of surgical strikes, after the Uri terror attack in which 19 jawans were killed. Singh, while addressing a gathering at Sarwari Chowk in Jammu on Monday had said, “ They (BJP) talk about surgical strikes, but there is no proof. All they do is spread lies.”
The same day, party general secretary Jairam Ramesh said, “the views expressed by Digvijaya Singh are his own and do not reflect the position of Congress. Surgical strikes were carried out before 2014 by the UPA government. Congress has supported and will continue to support all military actions that are taken in the national interest.”
Even after Rahul Gandhi’s snub, Digivijaya Singh, on Tuesday, changed tack, and issued a series of tweets demanding explanations about the 2019 Pulwama terror attacks. Digvijaya Singh tweeted: “I have held our armed forces in high esteem. Two of my sisters were married to Naval officers. There is no question of my asking questions to Defence officials. My questions are to the Modi government.”
“ Question 1-Who is responsible for the unpardonable intelligence failure where our 40 CRPF personnel were martyred? 2- From where the terrorists could source 300 kg of RDX? 3- Why was the request by CRPF to airlift the CRPF personnel denied? These are my valid questions to the Modi govt. Don’t I as a responsible citizen have a right to know the facts? Who has been punished for this serious lapse? In any other country, the Home Minister would have been made to resign.”
Digvijaya Singh’s antics have become a sore for the Congress party. For the last two days, positive news about Rahul Gandhi’s ‘Bharat Jodo Yatra’ in Jammu and Kashmir has been drowned in the raging controversy over Digivijaya Singh’s remarks about surgical strikes. Finally, Rahul had to appear before the media to set the record straight. Digivijaya’s remarks on surgical strike has spoiled the party’s narrative about the Yatra, with only five days to go for the march to end in Srinagar.
BJP leader Ravi Shankar Prasad attacked Rahul Gandhi for describing Digvijaya Singh’s remarks as his “personal opinion”. He said, ‘Congress resorts to such tactics whenever the party is trapped due to its leaders’ remarks against the army. Congress must clarify its stand on terrorism and national security…Even Rahul Gandhi in the past had insulted the armed forces and had demanded proof about the surgical strikes.’
Congress leader Jairam Ramesh’s anger was evident on Tuesday, when he brushed off the mike of India TV reporter Vijay Laxmi when she was trying to ask questions at Digvijaya Singh during the Yatra. Jairam Ramesh literally shoved the reporter, saying “Please allow us to walk. Go and ask questions from the Prime Minister.”
Jairam Ramesh’s brusqueness and anger was indicative of the thinking in the Congress leadership, which suddenly found its ‘Bharat Jodo Yatra’ narrative, spoiled by its own senior leader. Digvijaya Singh, however, looked unruffled, during the Yatra, and was seen smiling. BJP leader Ravi Shankar Prasad said, it was clear that Jairam Ramesh was trying to prevent Digvijaya from speaking, and all this appears to be part of the Congress strategy.
The goodwill that Rahul Gandhi garnered during the last 130 days of his Yatra has been frittered away by a single remark made by Digvijaya Singh. The Congress now appears to be on the backfoot. Digvijaya Singh is one of the top leaders of the party. He is trusted by the Gandhi Nehru family. He has been the political guru of Rahul Gandhi. He has been chief minister of Madhya Pradesh for a decade.
Congress may well distance itself from Digvijaya Singh’s remark, but the fact is that, several Congress leaders including Rahul Gandhi, had, in the past, demanded proof about the surgical strikes.
Digivijaya Singh has raised questions about Pulwama terror attack. This case was investigated by National Investigation Agency, and in a matter of 18 months, 13,800 page charge sheet was filed in court. 19 persons were made accused, out of whom, seven were Pakistani nationals, including Jaish-e-Muhammad chief Maulana Masood Azhar, and JEM masterminds Rauf Asgar and Ammar Alvi alias Chhota Masood. Twelve accused are Indian nationals. The suicide bomber Adil Dar died on the spot. Several others including Mohammed Umer Farooq, Sajjad Ahmed Butt and Mudassir Ahmed Khan were killed by security forces. Muhammad Umer was the mastermind of Pulwama attack. He had undergone training in Afghanistan.
NIA pieced most of the evidence and arrived at the conclusion that the terror attack was planned by Pakistan’s spy agency ISI and was executed with the help of terror groups based in the Valely. NIA has clearly established the role of all the accused, and the matter is in court. NIA director general Y C Modi said, the police official Devinder Singh, whose name was mentioned by Digvijaya Singh, had no role in the Pulwama attack.
Retired Air Marshal Raghunath Nambiar, former chief of Western Air Command, said, “This person (Digvijay Singh) does not know what he is speaking about. He has been given incorrect information. I took over Western Air Command two days after Balakot strike. I know very well what happened in Balakot. I can only assure that our brave pilots did what they were ordered to do, and they fulfilled all their objectives. Please do not listen to false claims of others and do trust our word that the Balakot air strike was a success.”
Retired Lt Gen Satish Dua, who was the Corps Commander in Kashmir during the 2016 surgical strike, said, “After the Uri attack, there was a meeting with Defence Minister Manohar Parrikar. It was decided to give a strong response to the terrorists. Surgical strike was planned. We cannot disclose in public domain the outline of the surgical strike. Those demanding proof are lowering the morale of the armed forces. Such people should abstain from making such comments.”
I have mentioned here what the top IAF and army officers said about the surgical strike and Balakot air strike. What more proof is wanted? The day after the surgical strike, the then DGMO Ranbir Singh had given details, and there should be no room for doubts in anybody’s mind.
Whatever Rahul Gandhi may say, Digvijaya Singh stands by his remarks. His series of tweets underline this. Digvijaya Singh may now ask Rahul Gandhi, if questioning the army’s valour is not the party policy, why did Rahul said a few weeks ago that “Chinese soldiers beat up our jawans”?
Digvijaya Singh may also ask, why another senior leader P. Chidambaram had demanded official video about the surgical strike? Why Congress leader Sandeep Diskhit had described it as a ‘drama’? Why Sanjay Nirupam had described the surgical strike claim as ‘fake’? Why didn’t Rahul, at that time, say that the party does not agree with such remarks?
Let me put the record straight. Leaders like Digvijaya Singh got the chance to say this because they know that Rahul Gandhi, in the past, had raised questions about the army’s valour.
No one can beat Digvijaya Singh as far as making outrageous comments are concerned. During Prime Minister Dr Manmohan Singh’s rule, he had described the Batla House encounter in Delhi as fake. He had described Al-Qaeda chief as ‘Osama Ji’ with respect. He had described Zakir Naik as a messenger of peace. He does not have faith in the Indian army’s valour and is asking for evidence.
To question the army while criticizing the government is not fair. But Rahul Gandhi is unwilling to take action against Digvijaya Singh because he feels that he is the most vocal and strident critic of BJP and RSS, and this suits his ears.
अंडमान के 21 द्वीपों का नामकरण : गुलामी के प्रतीकों को खत्म करने की मोदी की पहल
सोमवार को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाई गई। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंडमान और निकोबार के 21 बड़े द्वीपों का नाम परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर रखा। इन द्वीपों का अभी तक कोई नाम नहीं रखा गया था।
प्रधानमंत्री मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए रॉस आईलैंड पर नेता जी को समर्पित नेशनल मेमोरियल के मॉडल का अनावरण किया। पीएम मोदी जब 2018 में अंडमान गये थे, उस समय रॉस आईलैंड का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप रखा था। 1943 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजाद हिंद फौज का नेतृत्व करते हुए नेताजी ने रॉस आईलेंड पर पहली बार तिरंगा फहराया था। 2018 में नील आईलैंड का नाम ‘शहीद’ द्वीप और हैवलॉक आईलैंड का नाम ‘स्वराज’ द्वीप रखा गया था।
नील आइलैंड का नाम ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल जेम्स नील की वजह से मिला। 1857 में जब आज़ादी की पहली जंग हुई थी तो जेम्स नील ने ही उस विद्रोह को कुचलने का काम किया था। इसी तरह हैवलॉक आइलैंड नाम भी ब्रिटिश जनरल सर हेनरी हैवलॉक के नाम पर पड़ा था। लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने इन दोनों द्वीपों को ब्रिटिश शासन से आज़ाद करवा कर 30 दिसंबर 1943 को यहां पर तिरंगा फहराया था।
सोमवार को अंडमान-निकोबार के दूसरे 21 और द्वीपों को भी नए नाम मिले। इन द्वीपों के नाम उन जांबाज़ जवानों और अफसरों के नाम पर रखे गए जिन्होंने देश की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया, अदम्य साहस दिखाया और जिन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। इन 21 द्वीपों में सबसे बड़े अनाम द्वीप का नाम पहले परमवीर चक्र विजेता के नाम पर रखा गया। दूसरे सबसे बड़े अनाम द्वीप का नाम दूसरे परमवीर चक्र विजेता के नाम पर रखा गया। इस तरह से 21 अनाम द्वीपों को 21 परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर नए नाम मिले।
जिन 21 परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर द्वीपों का नाम रखा गया है, वे हैं: मेजर सोमनाथ शर्मा, सूबेदार और मानद कैप्टन (तत्कालीन लांस नायक) करम सिंह, सेकेंड लेफ्टिनेंट रामा राघोबा राणे, नायक जदुनाथ सिंह, कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह, कैप्टन जी एस सलारिया, लेफ्टिनेंट कर्नल (तत्कालीन मेजर) धन सिंह थापा, सूबेदार जोगिंदर सिंह, मेजर शैतान सिंह, कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद, लेफ्टिनेंट कर्नल अर्देशिर तारापोर, लांस नायक अल्बर्ट एक्का, मेजर होशियार सिंह, सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल, फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों, मेजर रामास्वामी परमेश्वरन, नायब सूबेदार बाना सिंह, कैप्टन विक्रम बत्रा, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे, सूबेदार मेजर (तत्कालीन राइफलमैन) संजय कुमार और रिटायर्ड सूबेदार मेजर (मानद कैप्टन) ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव।
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा, ‘इस दिन को आज़ादी के अमृतकाल के एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में आने वाली पीढ़ियां याद करेंगी। बंगाल से दिल्ली और अंडमान तक, भारत की हर पार्टी नेताजी की विरासत को सलाम करती है.. जब इतिहास रचा जा रहा है.. नेताजी का ये स्मारक, शहीदों और वीर जवानों के नाम पर ये द्वीप, हमारे युवाओं के लिए, आने वाली पीढ़ियों के लिए एक चिरंतर प्रेरणा का स्थल बनेंगे।’
प्रधानमंत्री ने याद दिलाया कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पहली बार राष्ट्रीय तिरंगा फहराया गया था और भारत की पहली स्वतंत्र सरकार नेताजी द्वारा बनाई गई थी। उन्होंने कहा, ‘अंडमान की इसी धरती पर वीर सावरकर और उनके जैसे अनगिनत वीरों ने देश के लिए तप, तितिक्षा और बलिदानों की पराकाष्ठा को छुआ था। सेल्यूलर जेल की कोठरियां, उस दीवार पर जड़ी हुई हर चीज आज भी अप्रतिम पीड़ा के साथ-साथ उस अभूतपूर्व जज़्बे के स्वर वहां पहुंचने वाले हर किसी के कान में पड़ते हैं, सुनाई पड़ते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से, स्वतन्त्रता संग्राम की उन स्मृतियों की जगह अंडमान की पहचान को गुलामी की निशानियों से जोड़कर रखा गया था। हमारे आइलैंड्स के नामों तक में गुलामी की छाप थी, पहचान थी।’
परमवीर चक्र विजेताओं का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा, ‘जिन 21 परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर इन द्वीपों को जाना जाएगा, उन्होंने मातृभूमि के कण-कण को अपना सब-कुछ माना था। उन्होंने भारत मां की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। भारतीय सेना के वे वीर सिपाही देश के अलग-अलग राज्यों से थे। अलग-अलग भाषा, बोली और जीवनशैली के थे। लेकिन, मां भारती की सेवा और मातृभूमि के लिए अटूट भक्ति उन्हें एक करती थी, जोड़ती थी, एक बनाती थी। एक लक्ष्य, एक राह, एक ही मकसद और पूर्ण समर्पण। जैसे समंदर अलग-अलग द्वीपों को जोड़ता है, वैसे ही ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का भाव भारत मां की हर संतान को एक कर देती है। इन सभी परमवीरों के लिए एक ही संकल्प था- राष्ट्र सर्वप्रथम! इंडिया फ़र्स्ट! उनका ये संकल्प अब इन द्वीपों के नाम से हमेशा के लिए अमर हो गया है। करगिल युद्ध में ‘ये दिल मांगे मोर’ का विजयघोष करने वाले कैप्टन विक्रम बत्रा, इनके नाम पर अंडमान में एक पहाड़ी भी समर्पित की जा रही है।’
पीएम मोदी ने कहा, इन द्वीपों का नामकरण उन परमवीर चक्र विजेताओं का सम्मान तो है ही, साथ ही भारतीय सेनाओं का भी सम्मान है। ‘आज़ादी के तुरंत बाद से ही हमारी सेनाओं को युद्धों का सामना करना पड़ा। हर मौके पर, हर मोर्चे पर हमारी सेनाओं ने अपने शौर्य को सिद्ध किया है। ये देश का कर्तव्य था कि राष्ट्र रक्षा और इन अभियानों में स्वयं को समर्पित करने वाले जवानों को, सेना के योगदानों को व्यापक स्तर पर पहचान दी जाए।’
नरेन्द्र मोदी की खासियत है कि वे आवेग में आकर या बिना सोचे-समझे कोई काम नहीं करते। मोदी ने सोमवार को जिन द्वीपों के नाम बदले वो गुलामी के प्रतीकों को खत्म करने की उनकी नीति का एक कदम है। पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से मोदी ने जो पांच संकल्प लिए थे उनमें एक प्रतिज्ञा ये भी थी कि गुलामी के प्रतीकों को और गुलामी की मानसिकता को खत्म करना है। इसी के तहत इंडिया गेट से जॉर्ज पंचम की प्रतिमा हटाकर नेताजी की प्रतिमा लगाई गई। इसके बाद भारतीय नौसैना का फ्लैग चेंज किया और फिर सोमवार को अंडमान के द्वीपों का नामकरण किया। ये नेताजी की ऐतिहासिक विरासत को सही श्रद्धांजलि है।
Renaming 21 Andaman islands: Modi’s quest for removing symbols of slavery
On the occasion of birth anniversary of Netaji Subhas Chandra Bose, observed as ‘Parakram Diwas’ on Monday, Prime Minister Narendra Modi named 21 largest unnamed islands of Andaman & Nicobar after the 21 recipients of Param Vir Chakra, the nation’s highest military honour.
Through video conferencing, the Prime Minister unveiled a model of the national memorial dedicated to Netaji on Ross island, named Netaji Subhas Chandra Bose Dweep during Modi’s visit in 2018. On Ross Island, during the Second World War, Netaji, leading the Azad Hind Fouj, had unfurled the national tricolour in 1943. Havelock island and Neil Island were renamed Swaraj Dweep and Shaheed Dweep in 2018.
Neil Island was named by British rulers in memory of Brigadier General James Neil, who had played a big role in crushing the 1957 First Indian War of Independence. Havelock Island was named after British General Sir Henry Havelock. It was on December 30, 1943 that Netaji wrested both these islands from the British, and proudly hoisted Indian tricolour flag.
On Monday, the largest unnamed island was named after the first Param Vir Chakra awardee, the second largest unnamed island was named after the second Param Vir Chakra awardee, and so on. This was an everlasting tribute to our national heores, several of whom gave the supreme sacrifice to protect India’s borders.
The 21 Param Vir Chakra awardees, in whose name the islands were renamed are: Major Somnath Sharma, Subedar and Hon. Captain (then Lance Naik) Karam Singh, 2nd Lt. Rama Raghoba Rane, Nayak Jadunath Singh, Company Havildar Major Piru Singh, Capt G S Salaria, Lt Col (then Major) Dhan Singh Thapa, Subedar Joginder Singh, Major Shaitan Singh, Company Quarter Master Havildar Abdul Hamid, Lt Col Ardeshir Tarapore, Lance Naik Albert Ekka, Major Hoshiar Singh, 2nd Lt Arun Khetrapal, Flying Officer Nirmaljit Singh Sekhon, Major Ramaswamy Parameswaran, Naib Subedar Bana Singh, Captain Vikram Batra, Lt Manoj Kumar Pandey, Subedar Major (then Rifleman) Sanjay Kumar and Subedar Major Retd (Hon. Captain) Grenadier Yogendra Singh Yadav.
In his address, Modi said, “this day will be remembered by future generations as a significant chapter in the ‘Azadi Ka Amrit Kaal’…From Bengal to Delhi to Andaman, every party of India salutes and cherishes the legacy of Netaji….When history is being made, future generations not just remember, assess and evaluate it, but they also find constant inspiration from it”
The Prime Minister reminded that the national tricolour was hoisted for the first time in Andaman and Nicobar islands and the first independent government of India was formed by Netaji. He said, ‘Veer Savarkar and many other heroes like him had touched the pinnacle of penance and sacrifice for the nation on this very island. The voices of that unprecedented passion along with immense pain are still heard from the cells of Cellular Jail today….The identity of Andaman was associated with the symbols of slavery instead of the memories of freedom struggle. Even the names of our islands had the imprint of slavery.”
Mentioning the Param Vir Chakra heroes, Modi said, “They sacrificed everything to protect Mother India. These brave jawans and officers of the Indian Army were from different states, spoke different languages and dialects, and lived different lifestyles, but it was the service of Maa Bharati and their unwavering devotion for the motherland, that united them. Like the sea that connects different islands, the feeling of ‘Ek Bharat Shreshta Bharat’ united every child of Mother India. ..All these Paramveers had only one resolve – Nation First! India First! This resolution has now become immortal forever in the renaming of these islands. A hill in Andaman is also being named after Captain Vikram Batra, the hero of Kargil war.”
Modi said, the renaming of these islands is not only dedicated to the Paramveer Chakra awardees, but also the Indian armed forces. “Our army had to face wars right from the time of independence. They have proved their bravery on all fronts. It is the duty of the country to ensure that the soldiers who dedicated themselves to national defence, should be widely recognized along with the contributions of the army.”
It goes to the credit of Prime Minister Narendra Modi that he never takes decisions out of impulse or without proper planning. The islands that were renamed on Monday, were a legacy of slavery, and is part of his major plan to remove all vestiges of foreign rule. Last year, Modi had announced five ‘sankalps’ (vows) from the ramparts of Red Fort on Independence Day. One of the vows was to remove all symbols and vestiges of slavery and putting an end to the slavery mindset. As part of this plan, King George V’s statue was replaced with that of Netaji at India Gate. Modi then changed the flag of Indian Navy with a new ensign. The renaming of Andaman islands on Monday is a fitting tribute to the historic legacy of Netaji.