शराब और ड्रग्स की लत के खिलाफ एक केंद्रीय मंत्री की मुहिम
बिहार में ज़हरीली शराब से मरने वालों की संख्या शुक्रवार को 60 तक पहुंच गई, जिसके बाद विधानसभा के अंदर फिर से हंगामा शुरू हो गया। सदन में दोनों पक्षों के सदस्यों ने एक-दूसरे पर आरोपों-प्रत्यारोपों की झड़ी लगा दी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, “दारू पीकर कोई मर जाए तो क्या हम उसे कम्पन्सेशन देंगे? बिल्कुल नहीं देंगे। सवाल ही नहीं उठता।“
नीतीश कुमार ने अपने बयान ‘पियोगे, तो मारोगे’ को दोहराया और कहा, “इसका तो हम और ज्यादा प्रचार करेंगे। कहेंगे कि देखो, शराब पीया तो मरा।“
नीतीश कुमार ने शुक्रवार को गुजरात के मोरबी में पुल ढहने की घटना का जिक्र करते हुए बीजेपी पर तंज कसा । उन्होंने कहा, “गुजरात में कुछ दिन पहले पुल गिरा। कितने लोग मरे, लेकिन खबरों में कितने आया। बस एक दिन आया। इसके बाद बंगाल में जो हुआ वो भी कहीं नहीं छपा, लेकिन बिहार में जो हुआ वो खूब चर्चा है।“ उन्होंने दावा किया कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की तुलना में बिहार में जहरीली शराब के सेवन से कम मौतें होती हैं।
मुख्य विपक्षी दल बीजेपी ने कहा, ‘नीतीश कुमार के हाथ सीधे खून से सने हैं।’ विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि स्प्रिट के रूप में जब्त की गई और थाने में पड़ी जहरीली शराब लोगों को पीने के लिए बेची गई। बीजेपी के सांसद सुशील कुमार सिंह ने बिहार में जहरीली शराब से होने वाली मौतों को ‘नरसंहार’ बताया और इसके लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया।
बिहार में जहरीली शराब के सेवन से 60 लोगों की मौत एक दर्दनाक हादसा है। मरने वाले गरीब थे, नासमझ थे। उनके पीछे छूट गए परिवार बेबस और बेसहारा हैं। मैं मान लेता हूं कि जिन्होंने जहरीली शराब पी, उन्होंने गलत किया। शराब पीने की वजह से उनकी जान चली गई, लेकिन राज्य सरकार इन गरीब परिवारों को मझधार में छोड़कर अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती। सिर्फ इतना ही नहीं, मुआवजे की मांग को ठुकराते हुए मुख्यमंत्री यह कहकर उनके जख्मों पर नमक छिड़कते हैं कि ‘जो शराब पीएगा, वह मरेगा ही।’ यह एक असंवेदनशील बयान है। सरकार का काम सिर्फ शराबबंदी का कानून बनाकर ही खत्म नहीं हो जाता।
नीतीश कुमार दावा कर रहे हैं कि शराबबंदी कानून सख्ती से लागू हो रहा है, लेकिन आंकड़े कुछ और कहानी कहते हैं। आधिकारिक आंकड़े देखकर लगता है कि जैसे बिहार में शराब की नदियां बह रही हों। आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले 6 साल में शराबबंदी के बाद बिहार में 2 करोड़ 9 लाख 79 हजार लीटर शराब जब्त की गई है। सोचिए शराब की सप्लाई किस स्तर पर हो रही होगी। हर रोज औसतन 10 हजार लीटर शराब जब्त हो रही है। शराब पीने या एक-आध बोतल शराब रखने के चक्कर में 6 लाख लोगों को जेल भेजा चुका है। जहरीली शराब के सेवन से एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
अब तक 4 लाख मामले दर्ज हो चुके हैं और निपटारा सिर्फ 4 हजार मामलों का हुआ है। सुप्रीम कोर्ट तक यह टिप्पणी कर चुका है कि अदालतों का पूरा वक्त सिर्फ शराबबंदी से जुड़े केस में जमानत की सुनवाई में जा रहा है। सोचिए सिस्टम पर कितना प्रेशर है, कितना बोझ बढ़ गया है, और नतीजा कुछ नहीं निकल रहा है। लोग अब भी जहरीली शराब पी रहे हैं, और मर रहे हैं। बस इतना फर्क आया है कि पहले सरकारी दुकान से सस्ती शराब 20 रुपये में मिलती थी, अब अवैध रूप से जहरीली शराब 100 रुपये में मिल रही है।
कोई यह नहीं कहता कि शराब सेहत के लिए एक अच्छी चीज है। कोई नहीं कहता कि शराब पर पाबंदी लगाना गलत बात है। लेकिन कोई भी कानून लागू करने से पहले यह सोचा जाना चाहिए कि सरकार में इसे लागू करने की क्षमता है या नहीं, सिस्टम है या नहीं। इस बात पर विचार होना चाहिए था कि अगर इन परिस्थतियों में यह कानून लागू किया गया तो इसके क्या परिणाम हो सकते हैं।
बिहार में चल रही जुबानी जंग के बीच लोगों को केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर से सीखना चाहिए। कौशल किशोर आवासन और शहरी कार्यों के राज्य मंत्री हैं और यूपी के मोहनलालगंज से बीजेपी के सांसद हैं। करीब 2 साल पहले, 19 अक्टूबर 2020 को शराब के ज्यादा सेवन की वजह से लीवर फेल होने के कारण उनके 28 साल के बेटे आकाश किशोर की मौत हो गई। कौशल और उनकी विधायक पत्नी जया देवी ने अपने बेटे की जिंदगी बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे। दोनों ने अब शराब और ड्रग्स के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया है।
कौशल किशोर कहते हैं, ‘मैंने 2 साल पहले अपने बेटे को शराब के कारण खो दिया। उसके बाद मैंने भारत को नशा मुक्त बनाने का संकल्प लिया है। अब तक 18 लाख लोगों ने शराब या नशीले पदार्थों का सेवन न करने का संकल्प लिया है और लगभग 10,000 लोग शराब का सेवन बंद कर चुके हैं। जहर तुरंत मार देता है, लेकिन शराब या नशीली दवाएं धीमे जहर की तरह काम करती हैं और लोग तिल-तिल कर मरते हैं। हमें युवा पीढ़ी को शराब या नशे की लत से बचाना है। हमने आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान अपना अभियान ‘हिंदुस्तानियों, नशा छोड़ो’ शुरू किया है।’
कौशल किशोर लोगों को अपनी कहानी सुनाते हैं कि जब गलत लोगों की संगत में पड़कर बेटे को शराब की लत लगी तो उन पर और उनकी पत्नी पर क्या गुजरी। अब उनके घर में उनकी बहू और 4 साल का एक पोता है। कौशल किशोर लोगों से कहते हैं कि बच्चों पर ध्यान दीजिए और उनके दोस्तों पर नजर रखिए। वह कहते हैं कि लोगों को अपने बच्चों को जरूर बताना चाहिए कि कोई भी नशा कितना खतरनाक हो सकता है।
कौशल किशोर अपने अनुभव से एक और जरूरी सलाह सभी मां-बाप को देना चाहते हैं। उनका कहना है कि उन्होंने यह जानते हुए भी कि उनका बेटा शराब का आदी है, उसकी शादी करके गलती कर दी। उन्होंने कहा, ‘कोई अपने बेटे की शादी तब तक न करे जब तक कि वह नशे को पूरी तरह नहीं छोड़ देता। और कोई लड़का कितना भी रईस हो, अगर वह नशा करता है तो किसी लड़की के पिता को अपनी बेटी की शादी उससे नहीं करनी चाहिए।’
मैं कौशल किशोर और जया देवी की प्रशंसा करूंगा कि उन्होंने लोगों को शराब के खतरे के प्रति आगाह करने का अभियान शुरू किया। उन्होंने अपने बेटे की मौत से जो सीखा, उसे समाज के साथ शेयर किया। यह आसान काम नहीं है। दिल पर पत्थर रखकर लोगों को बताना कि शराब की लत कितनी खतरनाक होती है, अपने बेटे की मौत का उदाहरण देकर समझाना बहुत हिम्मत का काम है। कौशल किशोर अब लोगों से कह रहे हैं कि उन्हें यह समझने में देर हो गई कि बेटा बुरी संगत में है, यह गलती कोई और न करे।
A minister’s campaign against alcohol and drug addiction
As the death toll in Bihar hooch tragedy reached 60 on Friday, there was pandemonium again inside the Assembly, with members from both sides trading charges and counter charges. Chief Minister Nitish Kumar said, “no mercy will be shown to people who consume liquor. We must ask people not to drink alcohol.”
On Friday, Nitish Kumar repeated his remark “Piyoge, toh maroge”(you will die if you drink liquor) and took a jibe at BJP over the Morbi bridge collapse incident in Gujarat. He said, “even though so many people died in Morbi, that news made it to the newspapers just for a day”. He claimed that the number of deaths due to spurious liquor in Bihar is on the lower side compared to Madhya Pradesh and Uttar Pradesh.
The main opposition BJP said, “blood is already on the hands of Nitish Kumar directly”. The opposition leaders alleged that spurious liquor in the form of spirit that was seized and lying in a police station was sold to people to consume. BJP MP Sushil Kumar Singh described spurious liquor deaths in Bihar as “mass murder” and held the state government responsible.
The death of 59 people in Bihar due to spurious liquor is a serious tragedy. The victims were poor, uneducated, and their families are now rudderless. I agree, the victims made a mistake by drinking poisonous liquor. They lost their lives because of this, but the state government cannot wash off its hands by leaving these poor families in the lurch. On top of it, the chief minister, while rejecting demands to pay ex-gratia, rubs salt into the wounds by saying “piyoge toh maroge”. This is an insensitive remark. The state government’s responsibility does not end with enacting prohibition law.
Nitish Kumar’s claim that prohibition is being enforced strictly flies in the face of statistics. Official figures show that liquor is flowing like river in Bihar. In the last six years of prohibition, two crore nine lakh 79 thousand litres of liquor was seized. Think about the magnitude of supply sources. On an average, nearly 10,000 litres of alcohol was seized daily. Nearly six lakh people were sent to jail either for consuming alcohol or for keeping a bottle or a half of alcohol. More than 1,000 people have died of spurious liquor.
Till now, four lakh cases have been filed, but only about 4,000 cases have been disposed of. Even the Supreme Court has commented that most of the time of lower courts in Bihar is spent in hearing bail petitions in prohibition cases. Think about the huge pressure that has been created, both on the executive and the judiciary, but no fruitful results have come out till now. Consumption of alcohol is on the rise, and people are dying of spurious liquor. The only difference is that, earlier cheap country liquor was being sold from government shops at Rs 20 a pouch, and now people are paying Rs 100 for a pouch of spurious liquor.
It is nobody’s case that consumption of alcohol is good for health. Nobody is arguing that prohibition is wrong. But while enforcing a law, the state government should have checked whether it has a system in place to enforce that law. The consequences of enforcing such a law should have been assessed.
In the vocal slugfest that is going on in Bihar, I would advise people to take a cue from Kaushal Kishore, Union Minister of State for Housing and Urban Affairs. Kaushal Kishore is the BJP MP from Mohanlalganj, UP. Two years ago, he lost his 28-year-old son Akash on October 19, 2020 when his liver stopped functioning due to excessive alcohol consumption. Kaushal and his MLA wife Jaya Devi tried their best to save their son’s life, but failed. Both the parents have now launched a nationwide campaign against alcohol and drugs.
Says Kaushal Kishore, “I lost my son to alcohol two years ago. After that I pledged to make India drugs free. So far, 18 lakh people have pledged not to consume alcohol or drugs and nearly 10,000 people have already stopped consuming alcohol. Poison kills instantly, but excessive consumption of alcohol or drugs becomes a slow poison that ultimately kills. We have to protect the young generation from being addicted to liquor or drugs. We have launched our campaign ‘Hindustaniyon, Nasha Chhodo” during the Azadi Ka Armit Mahotsav”.
Kaushal Kishore addresses people and recalls the trauma that he and his wife went through when they found that their son was addicted to alcohol. They have a daughter-in-law and a four-year-old grandson to look after. They tell people to keep close watch on the activities of their children and their friends. They must tell their children about the harm caused by alcohol addiction.
Kaushal Kishore also tells parents about another mistake that he committed. He says, he made a mistake by marrying off his son even when he knew he was addicted to alcohol. “Do not marry off your sons until and unless they leave alcohol or drugs. It does not matter even if the family is rich. If he is addicted, parents of girls must avoid marrying off their daughters to such youths.”
I would like to praise Kaushal Kishore and his wife Jaya Devi for launching this anti-addiction campaign. It is not easy for a couple to share details about their personal life to people while trying to create social awareness. To narrate the follies of their son in the presence of people needs courage. Kaushal Kishore now tells people not to waste time if they find that their son is addicted.
इसलिए बार-बार आपा खो रहे हैं नीतीश कुमार
बिहार के सारण जिले के छपरा में ज़हरीली शराब पाकर मरने वालों की संख्या गुरुवार को बढ़कर 39 हो गई। अधिकारियों ने कहा कि कई परिवार सख्त शराबबंदी कानून लागू होने के कारण अपने यहां हुई मौतों के बारे में सूचना देने से कतरा रहे हैं। ज्यादातर पीड़ित मशरक और इसुआपुर इलाकों से हैं।
बुधवार को बिहार विधानसभा के अंदर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एक ऐसा रूप दिखा, जो पहले कभी नहीं देखा गया था। गुस्से में चिल्लाते हुए नीतीश ने विपक्षी बीजेपी के नेताओं से कहा, ‘तुम सभी को क्या हो गया है? तुम सब झूठ बोल रहे हो। तुम जो मांग कर रहे हो और कर रहे हो, वह गंदी राजनीति है। याद रखो कि तुम (शराबबंदी के समर्थन में) पहले क्या कहते थे।’
आम तौर पर शांत रहने वाले नीतीश कुमार गुस्से से कांप रहे थे और विपक्ष में बैठे बीजेपी नेताओं पर चिल्ला रहे थे। उन्होंने कहा: ‘तुम सब शराबी हो गए हो…तुम्हीं सब बिहार में गड़बड़ी कर रहे हो….तुम सब बरबाद हो जाओगे।’
बिहार के लोगों ने नीतीश कुमार को पहली बार इतनी कठोर भाषा का इस्तेमाल करते हुए देखा। विपक्ष ने जहरीली शराब से हुई मौतों पर चर्चा के लिए सदन में नोटिस दिया था, जिसे नामंजूर कर दिया गया। जैसे ही विपक्षी सदस्यों ने अपनी मांग को लेकर हंगामा शुरू किया, नीतीश कुमार अपना आपा खो बैठे और विपक्षी सदस्यों का खुलकर अपमान किया।
नीतीश कुमार अपनी शालीनता के लिए जाने जाते हैं, अनुभवी नेता हैं। वह जानते हैं कि सदन में आमतौर पर ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता। उकसावे की शुरुआत तब हुई, जब कुढ़नी से विधानसभा उपचुनाव में जीते बीजेपी नेता केदार गुप्ता के शपथ लेते समय बीजेपी के सदस्य ‘कुढ़नी तो झांकी है, पूरा बिहार बाकी है’ का नारा लगाने लगे।’
नीतीश कुमार पहले तो शांत रहे, लेकिन जब बीजेपी के नेताओं ने क्वेश्चन आवर में छपरा में जहरीली शराब से मौतों के मुद्दे पर चर्चा की मांग खारिज होने पर वेल में आकर नारेबाजी शुरू की, तो उन्होंने आपा खो दिया। बीजेपी के नेता शराबबंदी के फेल होने, और माफिया को संरक्षण देकर शराब की कालाबाजारी को बढ़ावा देने का इल्जाम लगा रहे थे।
जब स्पीकर बीजेपी के विधायकों से शांत होने की अपील कर रहे थे, अपनी सीट पर वापस जाने को कह रहे थे, उसी वक्त नीतीश कुमार अचानक उठे और चिल्लाने लगे। नीतीश ने कहा कि जब बिहार में शराबबंदी का फैसला हुआ, तब बीजेपी के नेता साथ में थे, लेकिन ‘अब तुम सब शराब पीने लगे हो, शराबी हो गए हो, बहुत गंदा काम कर रहे हो, इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।’ उन्होंने स्पीकर से विपक्ष के सभी नेताओं को सदन से निकालने की मांग की। आमतौर पर शांत रहने वाले नीतीश गुस्से में कांप रहे थे, और उनका यह रुख देखकर पूरा सदन हैरान रह गया था।
नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ने कहा कि विपक्ष के सदस्यों का अपमान करने के लिए मुख्यमंत्री को माफी मांगनी चाहिए। विजय सिन्हा ने आरोप लगाया कि बिहार में अपराधी, गैंगस्टर और माफिया ‘जंगल राज’ को बढ़ावा मिल रहा है।
इसके बाद नीतीश कुमार फिर से भड़क गए और विजय सिन्हा से कहा, ‘तुम पूरी तरह बर्बाद हो जाओगे। सबको पता है कि तुम कैसे जीते हो, और कौन गया था तब तुम्हारी जीत हुई थी।’ नीतीश कुमार दरअसल यह कहना चाहते थे कि विजय सिन्हा के क्षेत्र में वह प्रचार करने गए थे, इसीलिए चुनावों में उनकी जीत हुई थी।
बीजेपी के नेताओं ने बाद में सदन के बाहर धरना दिया और आरोप लगाया कि बिहार में शराब माफिया कुछ ताकतवर लोगों के संरक्षण में काम कर रहा है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी, जिन्होंने नीतीश के साथ 15 साल तक बतौर उपमुख्यमंत्री काम किया, ने कहा, ‘नीतीश कुमार पहले तो ऐसे नहीं थे। पता नहीं उनको क्या हो गया है। उम्र का असर है या हालात का, कह नहीं सकते। लेकिन नीतीश का यह रूप देखकर हैरानी होती है।’
नीतीश कुमार ने पिछले कुछ महीनों में कई बार संयम खोया है। वहीं, लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव विधानसभा में खामोश रहे। उन्होंने बाद में बेहद सधे हुए अंदाज में नीतीश कुमार का बचाव किया। उन्होंने कहा, ‘शराबबंदी की शपथ तो बीजेपी के नेताओं ने भी ली थी। शराबबंदी के फैसले के वक्त बीजेपी भी सरकार में शामिल थी। उनके वक्त भी जहरीली शराब से मरने की घटनाएं होतीं थीं, लेकिन तब बीजेपी ने ऐसा हंगामा क्यों नहीं किया। बीजेपी के मंत्री के घर से भी शराब बरामद हुई थी।’
तेजस्वी यादव को बीजेपी पर इल्जाम लगाने का पूरा हक है। उनकी यह बात सही है कि जिस वक्त बिहार में शराबबंदी का फैसला हुआ था, उस वक्त बीजेपी नीतीश कुमार के साथ सरकार में शामिल थी। लेकिन यह भी सही है कि जब पहले बिहार में जहरीली शराब पीकर लोगों की जान गई थी, उस वक्त तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी के नेताओं ने भी नीतीश कुमार की सरकार पर सवाल उठाए थे। 2 साल पहले, नंबवर 2020 की बात है। उस वक्त तेजस्वी यादव विपक्ष के नेता थे, और बीजेपी सरकार में थी। उस वक्त नीतीश कुमार ने तेजस्वी को इसी तरह डांटा था। उन्होंने कहा था, ‘दोस्त का लड़का है इसलिए सुनता रहता हूं, लेकिन अब बहुत हो गया।’
जहरीली शराब से बड़ी संख्या में लोगों की मौत निश्चित रूप से चिंता की बात है। ये सरकार और प्रशासन की नाकामी है। पिछले एक साल में बिहार में करीब 100 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हुई है। पिछले साल अगस्त में सारण जिले में जहरीली शराब से 9 लोगों की मौत हुई थी और 17 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी। इसी साल 21 मार्च को भागलपुर, बांका और मधेपुरा में नकली शराब पीने से 37 लोगों की जान चली गई थी। पिछले साल 5 नंबवर को मुजफ्फरपुर और गोपालगंज में 24 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने की वजह से हुई थी। ये तो वे मामले हैं जिनकी रिपोर्ट हुई, जो चर्चा में आ गए। ऐसे न जाने कितने मामले होंगे जिनके बारे में पीड़ित परिवार शराबबंदी कानून के तहत कार्रवाई के डर से अपनों की मौत की सूचना भी नहीं देते।
चूंकि इस तरह की घटनाएं लगातार हो रही हैं, इसलिए नीतीश कुमार के फैसले पर सवाल उठाना कोई गलत बात नहीं है। जब नीतीश ने शराबबंदी का फैसला किया था, उस वक्त RJD ने इसका विरोध किया था। तेजस्वी यादव शराबबंदी का विरोध करते हुए कहते थे, ‘बिहार में शराबबंदी है, लेकिन शराब की होम डिलीवरी हो रही है। घर-घर शऱाब मिल रही है। शराबबंदी कानून भ्रष्ट पुलिसवालों के लिए वसूली का जरिया बन गया है।’
हालांकि नीतीश कुमार शराबबंदी के मुद्दे पर अडिग हैं। उन्होंने गुरुवार को कहा, शराबबंदी मेरी व्यक्तिगत इच्छा से लागू नहीं की गई, बल्कि राज्य की महिलाओं के अनुरोध पर इसे लागू किया गया। पिछली बार जब जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत हुई थी, तो कुछ लोगों ने कहा था कि पीड़ितों को मुआवजा दिया जाना चाहिए। अगर कोई जहरीली शराब पीएगा तो वह मरेगा ही। इसकी मिसाल हम सबके सामने है। ऐसी मौतों पर शोक व्यक्त किया जाना चाहिए और नकली शराब के बारे में जागरूकता फैलाई जानी चाहिए। लोगों को इसके बारे में समझाना होगा।’
नीतीश कुमार ने गुरुवार को कहा कि उन्होंने अधिकारियों को अवैध शराब की बिक्री में शामिल गरीब लोगों को न पकड़ने का निर्देश दिया है। नीतीश ने कहा, ‘अवैध शराब बनाने वाले और शराब का कारोबार करने वाले लोगों को पकड़ना होगा।’
लेकिन खुद नीतीश कुमार के सहयोगियों की राय अलग है। RJD नेता और पूर्व मंत्री सुधाकर सिंह ने मांग की कि शराबबंदी कानून को वापस लिया जाए और लोगों में जागरूकता फैलाने पर जोर दिया जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि भ्रष्ट पुलिसकर्मी ही अवैध शराब के व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं, और शराबबंदी कानून के उल्लंघन के बढ़ते मामलों के की वजह से कोर्ट पर भी प्रेशर बढ़ रहा है।
नीतीश कुमार के सियासी विरोधी और केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार किसी टेंशन में हैं, फ्रस्टेशन में हैं। अब यह फ्रस्ट्रेशन राजनीतिक मजबूरियों का है, या फिर तेजस्वी को कुर्सी सौंपने का, यह कहना मुश्किल है।’
पिछले कुछ दिनों से नीतीश कुमार बार-बार कह रहे हैं कि अब तेजस्वी यादव को ही सारा काम करना है, बिहार की सरकार उन्हीं को संभालनी है। नीतीश की पार्टी में तो यहां तक चर्चा है कि वह JDU का RJD में विलय कर सकते हैं। जाहिर-सी बात है कि इस सुगबुगाहट से नीतीश की पार्टी के कई नेता परेशान हैं। उनमें सबसे बड़ा नाम उपेंद्र कुशवाहा हैं, जो नीतीश की ही तरह कुर्मी समुदाय के नेता हैं। उपेंद्र कुशवाहा ने बुधवार को कहा, ‘किसी ने आधिकारिक तौर पर (विलय के बारे में) कुछ नहीं कहा है, न ही हमारे पार्टी फोरम पर कोई चर्चा हुई है, लेकिन अगर कोई JDU का RJD में विलय करना चाहता है तो यह एक आत्मघाती कदम होगा।’
उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार के पुराने साथी हैं, लेकिन कुछ साल पहले दोनों के रास्ते अलग हो गए थे। उन्होंने अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बनाई और NDA के साथ चले गए। वह मोदी की पहली सरकार में मंत्री बने, और जब मोदी की दूसरी सरकार में मंत्री पद नहीं मिला तो NDA छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का JDU में विलय कर दिया, और नीतीश ने उन्हें JDU संसदीय बोर्ड का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया। नीतीश की ही तरह उपेंद्र भी कुर्मी समाज से आते हैं, और उन्हें लगता था कि नीतीश के बाद वही उनके उत्तराधिकारी होंगे। लेकिन अब नीतीश अचानक तेजस्वी को आगे बढ़ाने लगे हैं, JDU को RJD में मर्ज करने की बात हो रही है। इसके चलते उपेंद्र कुशवाहा को अपने सियासी मुस्तकबिल की चिंता सता रही है।
बीजेपी के नेता सुशील मोदी ने दावा किया कि RJD और JDU का विलय तय है क्योंकि नीतीश के साथ आने के लिए लालू यादव ने यही शर्त रखी थी। उन्होंने नीतीश से पहले ही कह दिया था कि बिहार को तेजस्वी के हवाले करके वह राष्ट्रीय राजनीति में जाएं। सुशील मोदी ने कहा, ‘अब JDU के नेताओं को अपना भविष्य खुद देखना होगा। आने वाले दिनों में JDU के अंदर विद्रोह की स्थिति पैदा होने वाली है। JDU के अंदर खलबली मची हुई है, लोग नहीं चाहते कि उनका विलय हो। वे नहीं चाहते हैं कि तेजस्वी के नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ें। इसलिए आगे आने वाले कुछ महीनों के अंदर बिहार की राजनीति में कई भूचाल आने वाले हैं।’
सुशील मोदी की ही बात को बीजेपी के एक अन्य नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा, ‘नीतीश ने 2025 तक अपनी गद्दी सुरक्षित कर ली है। अब JDU के दूसरे नेता देखें कि उनका भविष्य कहां सुरक्षित रहेगा। अब RJD JDU को ठग रही है या JDU RJD को, यह पता नहीं चल रहा है। लेकिन मैं JDU के लोगों से कहूंगा कि 2025 का उनका भविष्य किसके हाथ में है, वे उसकी चिंता शुरू कर दें।’
RJD के नेता शिवानंद तिवारी ने कहा, ‘नीतीश कुमार 2005 से ही बिहार के मुख्यमंत्री हैं। अब अगर वह तेजस्वी को गद्दी सौंपने की बात कर रहे हैं, तो इसमें गलत क्या है? तेजस्वी यादव खुद को साबित कर चुके हैं, इसलिए वह चीफ मिनिस्टर की कुर्सी के स्वाभाविक दावेदार हैं।’
यह सही है कि लोगों ने नीतीश कुमार को पहली बार इस तरह से गुस्से में कांपते हुए देखा। उन्होंने अपना संयम क्यों खोया, इसे समझने की जरूरत है। इसकी दो वजहें हैं।
पहली, नीतीश कुमार ने 6 साल पहले बिहार में शराबबंदी का कानून तो बना दिया, पर जमीन पर उसे लागू नहीं करवा पाए। बिहार में आज भी आसानी से शराब मिल जाती है, बस पास में पैसे होने चाहिए। चूंकि गरीब लोग ज्यादा कीमत की शराब खरीद नहीं सकते, इसलिए वे कच्ची, नकली, जहरीली शराब खरीदते और पीते हैं। पहले पहले RJD कहती थी कि शराबबंदी लागू नहीं कर सकते तो कानून को वापस ले लीजिए, अब वही बात BJP कहती है। पहले वह बीजेपी पर निर्भर थे, अब उनकी सरकार RJD के सहारे चल रही है। और इस तरह नीतीश दोनों तरफ से फंस जाते हैं।
दूसरी, नीतीश इसलिए भी फ्रस्टेट हैं क्योंकि वह जानते हैं कि अब थोड़े दिनों में उनकी कुर्सी जा सकती है। उन्हें तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाना ही पड़ेगा। नीतीश कुमार मजबूर हैं। न तो वह तेजस्वी से नाराजगी जता सकते हैं, और न ही अपनी कुर्सी बचा सकते हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की राजनीति का सहारा लेने की कोशिश की थी, लेकिन वह बहाना भी हवा हवाई हो गया। विरोधी दलों में प्रधानमंत्री पद के दावेदारों की फेहरिस्त बहुत लंबी है, और उसमें नीतीश कुमार का नाम काफी नीचे है। अब नीतीश जाएं तो कहां जाएं। वह पिछले 17 साल से बिहार के मुख्यमंत्री हैं।
नीतीश कुमार सियासत के माहिर खिलाड़ी हैं और वह हर बार पलटी मारकर अपनी कुर्सी बचाते रहे। लेकिन अब पलटी मारने का सारा स्टॉक खत्म हो चुका है। अब पाला बदलने की कोई गुंजाइश नहीं बची, ऐसे में क्रोध आना, आपा खोना स्वाभाविक है।
मैं नीतीश कुमार को पिछले कई दशकों से जानता हूं। वह व्यवहार में शालीनता रखने वाले, मुस्कुराकर अपनी बात कहने वाले नेता रहे हैं। मैंने उन्हें कभी गुस्से में नहीं देखा है। लेकिन लगता है कि राजनैतिक मजबूरियों ने उन्हें बहुत परेशान कर दिया है। जिस बीजेपी से उन्होंने दामन छुड़ाया था, वह एक के बाद एक चुनाव जीतती जा रही है। जिन नरेंद्र मोदी का साथ नीतीश कुमार ने छोड़ा, वह 2024 की रेस में सबसे आगे दिखाई दे रहे हैं। गुजरात में मोदी की ऐतिहासिक जीत नीतीश कुमार को यकीनन काफी चुभती होगी।
The real reasons why Nitish Kumar lost his cool
The death toll in the spurious hooch tragedy in Chapra of Saran district of Bihar climbed to 39 on Thursday, as officials said, several families were afraid of reporting deaths, due to stringent prohibition law in force. Most of the victims are from Mashrak and Isuapur localities.
In a rare outburst inside the Bihar Assembly on Wednesday, Bihar chief minister Nitish Kumar exploded in anger and told opposition BJP leaders, “What has happened to you all? You are lying. What you are demanding and doing is dirty politics. Remember what you used to say in the past (in support of prohibition)”.
Nitish Kumar, normally a cool politician, was trembling in anger as he shouted at BJP leaders sitting in opposition benches. He said: ‘Tum sab sharaabi hogaye ho…Tumhi sab Bihar me gadbadi kar rahe ho ….Tum sab barbad ho jaogey” (All of you have become drunk. You people are doing mischief. You will be destroyed).
It was the first time, people in Bihar watched Nitish Kumar using such harsh language bordering on insult. The opposition had given notice for discussion on the hooch tragedy, which was disallowed. As the opposition members pressed their demand, Nitish Kumar lost his cool and outrightly insulted the opposition members.
Nitish Kumar is known to be a polite politician having great acumen and vast experience, and he knows, such words are not used normally inside the House. The provocation began, when the newly elected BJP member from Kudhni, Kedar Gupta took oath, and BJP members shouted slogans, “Kudhni toh jhaanki hai, Poor Bihar baaqi hai” (our victory in Kudhni is just a curtain raiser, we will win the whole of Bihar).
Nitish Kumar kept his cool, but when the BJP members came into the well demanding suspension of question hour to discuss the hooch tragedy, he exploded in anger. The BJP members were alleging that state police was giving protection to liquor mafia and encouraging sale of spurious liquor.
While the Speaker was appealing to members to go back to their seats, Nitish Kumar rose and shouted at the top of his voice. He said, it was the BJP which had supported him when prohibition was enforced in Bihar, but know “they are encouraging illegal sale of liquor… We will not tolerate this”. He asked the Speaker to remove all the opposition members from the House. The entire House was shocked to watch a normally cool Nitish Kumar trembling in anger.
The Leader of Opposition Vijay Sinha demanded that the Chief Minister must apologize for insulting opposition members. Vijay Sinha went on to allege that criminals, gangsters and mafia ‘jungle raaj’ are on the rise.
Nitish Kumar again became angry and told Vijay Sinha, “Tum barbaad ho jaogey..Sabko pata hai kaise jitey ho. Koun gaya tha, tab jitey they” (You will be destroyed. People know how you won, and who went there to ensure your victory). The chief minister wanted to remind Sinha that it was he who had campaigned for him during the elections.
BJP members later staged a sit-in outside the House and alleged that liquor mafia is active in Bihar under patronage of some powerful people. Sushil Modi, senior BJP Rajya Sabha member, who has worked with Nitish Kumar as deputy chief minister for 15 years, said, “Nitish Kumar was never like this before. I fail to understand what has happened to him. May be it could be because of age, or the present situation. I am surprised.”
Nitish Kumar has lost his patience in the recent past too. On the contrary, Tejashwi Yadav, son of Lalu Prasad Yadav, remained calm inside the Assembly. He later defended Nitish Kumar in an indirect manner, by saying, “even BJP leaders had supported the prohibition when they were in power. At that time too, hooch deaths used to take place, but BJP never protested. Liquor was seized from the house of a BJP minister too.”
Tejashwi Yadav has every right to question BJP’s stance. It is true that BJP was in power when Nitish Kumar enforced prohibition. But it is also true that when people started dying after taking illicit hooch, it was Tejashwi and his party leaders who had raised questions before Nitish Kumar. In November, 2020, Tejashwi Yadav was leader of opposition and BJP was in power. At that time, it was Nitish Kumar, who had reprimanded Tejashwi, by saying, “You are the son of my friend, that’s why I am listening to you. Enough is enough.”
The death of a large number of people in hooch tragedy is surely a matter of concern. It exposes the weakness of the administration. In the last one year, nearly 100 people have died after consuming illicit hooch. In August last year, 17 people lost their eyesight in Saran district after consuming illicit liquor. On March 21 this year, 37 people died after consuming illicit hooch in Bhagalpur, Banka and Madhepura. ON November 5 last year, 24 people died in Muzaffarpur and Gopalganj after consuming illicit liquor. All these are cases that were reported. There are umpteen number of cases, where the families of victims did not report the deaths fearing action against them under prohibition law.
Since such incidents are taking place frequently, there is nothing wrong in questioning Nitish Kumar’s prohibition law. When RJD was in opposition, it was Tejashwi Yadav who had opposed prohibition by saying that “home delivery of liquor is taking place in Bihar, and prohibition has become a tool of income for corrupt policemen”.
Nitish Kumar is however firm on the issue of prohibition. On Thursday, he said, “Enforcing prohibition was not my personal wish, but it was a response to the demand and cries of women in Bihar….Last time, when people died of spurious liquor, some people said, the victims should be compensated. If someone consumes spurious liquor, he will die. The example is before all of us. Such deaths should be condoled, and awareness about spurious liquor must be spread. People must be made to understand.”
On Thursday, Nitish Kumar said, he has instructed officials not to nab poor people involved in sale of illicit liquor. “People manufacturing illicit hooch, and carrying on alcohol trade must be caught.”
But Nitish Kumar’s own allies have a different view. RJD leader and former minister Sudhakar Singh demanded that the prohibition law be withdrawn, and stress must be laid on spreading awareness among people. He alleged that corrupt policemen were encouraging trade in illicit liquor, and the courts are under pressure due to mounting cases of violation of prohibition law.”
Nitish Kumar’s political rival, Union rural development minister Giriraj Singh said, “it seems Nitish Kumar is facing some sort of tension, or frustration or disappointment. May be, due to pressure from Tejashwi to quit power.”
For the last few days, Nitish Kumar had been repeatedly saying that it is now time for Teajshwi Yadav to take over power in Bihar. There is speculation that Nitish Kumar may seek merger of his party Janata Dal(United) in RJD. Naturally, several JD(U) leaders are worried. Prominent among them is Upendra Kushwaha, a leader from Kurmi community to which Nitish Kumar belongs. On Wednesday, Upendra Kushwaha said, “nobody has said anything officially (about merger), nor has there been any discussion on our party forum, but if anybody seeks to merge JD(U) into RJD, it will be a suicidal step.”
Upendra Kushwaha is an old associate of Nitish Kumar. He formed his Rashtriya Lok Samata Party, joined NDA, became Union Minister in Modi government, but left NDA when he was not made minister by Modi during his second term. He merged his Rashtriya Lok Samata Party in JD(U), and Nitish made him the chairman of JD(U) parliamentary board. Kushwaha wants to become the political successor of Nitish Kumar. But now that Nitish Kumar has publicly started promoting Tejashwi Yadav, and has floated the idea of merger with RJD, Kushwaha is worried about his political future.
BJP leader Sushil Modi said, the merger of RJD and JD(U) is bound to happen because it was Lalu Yadav who had told Nitish to hand over power in Bihar to Tejashwi and enter national politics. Sushil Modi said, “JD(U) leaders will now have to chart their own future. In the coming days, there could be a revolt in JD(U). Most of the leaders are opposed to merger with RJD. They do not want to fight the next elections under Tejashwi’s leadership. The coming months could witness a political earthquake in Bihar politics. ”
Another BJP leader Tarkishore Prasad, who was earlier deputy CM, said, “Nitish Kumar has protecting his throne till 2025. It is up to other JD(U) leaders to decide where their political future will be safe. Nobody knows whether RJD and JD(U) are playing double cross game against each other. But my advice to JD(U) leaders is: Start thinking about your political future for 2025.”
RJD leader Shivanand Tiwari said, “Nitish Kumar has been CM of Bihar since 2005. If he wants to hand over reins of power to Tejashwi, what is wrong in it? Tejashwi has already proved himself, and he is the natural claimant to the seat of chief minister.”
Now that people, for the first time, have seen Nitish Kumar trembling in anger, let me outline two plausible reasons why he lost his cool.
First, Nitish Kumar as chief minister notified the Bihar Prohibition and Excise Act in 2016, six years ago, but failed to implement the law on the ground. Liquor is freely available in Bihar even today, for a price. Low-income group people buy spurious and poisonous liquor, since they cannot afford to buy liquor at exorbitant rates. Earlier, RJD opposed prohibition, and now BJP is opposing it. Earlier, Nitish was dependent on BJP, and now he is dependent on RJD. Thus, Nitish is caught in a bind, from both ends.
Secondly, his frustration is there because he knows that he may lose his chair soon. He would have to anoint Tejashwi as the chief minister. Nitish Kumar is helpless. Neither can he afford to make Tejashwi angry, nor can he save his chair. Nitish Kumar tried his hand in national politics, but it vanished in thin air. The list of claimants for the post of Prime Minister among opposition parties, is too long, and Nitish Kumar figures somewhere at the bottom. There seems to be no way out for him. Nitish has been chief minister of Bihar consistently for the last 17 years.
A wily and astute politician, Nitish made surprising political somersaults to save his chair. But there is no scope for another one. He is now in a blind alley, and there is no way out – no scope for making another somersault. In such circumstances, it is natural for a politician to lose his cool.
I know Nitish Kumar for the last several decades. He has always been polite, and most often, he used to speak with a disarming smile. I never saw him angry. It may be that he is now worried due to political compulsions. The BJP that he ditched, has been winning elections consequently. Narendra Modi, whom Nitish Kumar ditched, is way ahead in the race for 2024. Modi’s historic, landslide win in Gujarat, may surely have cause uneasiness in Nitish Kumar’s mind.
तवांग में झड़प: सैन्य नीति पर फैसला बंद कमरों में होता है, सार्वजनिक बहस से नहीं
एक तरफ अरुणाचल प्रदेश के तवांग में भारतीय सेना के जवानों और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बारे में पूरे ब्यौरे छन-छन कर सामने आ रहे हैं, तो दूसरी तरफ अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने हालात पर चिंता व्यक्त की है। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि वह वास्तविक नियंत्रण रेखा की स्थिति पर बारीकी से नजर रखे हुए है। पेंटागन के प्रेस सचिव वायु सेना ब्रिगेडियर जनरल पैट राइडर ने आरोप लगाया कि चीन ‘LAC पर अपनी फौज को इकट्ठा कर रहा है और सेना के लिए बुनियादी ढांचों का निर्माण कर रहा है ’। उन्होंने कहा, चीन तेजी से आक्रामक होता जा रहा है और भारत-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के मित्र देशों और साझेदारों के इलाकों में ज़रूरत से ज्यादा सक्रियता दिखा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता ने दोनों देशों से अपील की कि वे आपसी तनाव को कम करें। प्रवक्ता ने कहा, ‘हम सभी से अपील कर रहे हैं कि उस क्षेत्र (तवांग सेक्टर) में तनाव न बढ़े।’
मंगलवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने बताया, कैसे 300 से ज्यादा चीनी सैनिक रात के अंधेरे में यांग्त्से में हमारी सेना की चौकी को तबाह करने के लिए करीब 3 बजे भारतीय इलाके में घुस आए, लेकिन तुरंत रीइंफोर्समेंट आने की वजह से हमारे बहादुर जवानों ने दुश्मन को खदेड़ दिया। हिंसक झड़प के दौरान हमारे जवानों ने जिस तरह की बहादुरी दिखाई, उसके बार में जानने के बाद आप भी भारतीय फौज के बहादुर जवानों की जाबांजी पर गर्व करेंगे। हालांकि संवेदनशील मुद्दा होने की वजह से सरकार ने घटना के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया, लेकिन मुझे जो जानकारी मिली है उससे साफ पता चलता है कि झड़प के दौरान वक्त पर मिली रीइंफोर्समेंट की वजह से चीन की फौज को अपने घायल सैनिकों को स्ट्रेचर पर लादकर वापस भागना पड़ा।
यांगत्से में 8-9 दिसंबर की रात को क्या हुआ था?
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के सैनिक इंडियन आर्मी की चौकियों पर कब्जा करना चाहते थे, और उन्होंने इसकी पूरी प्लानिंग कर रखी थी। चीनियों को पता था कि किस वक्त भारतीय चौकी पर जवानों की संख्या कम होती है। उन्होंने घुसपैठ के लिए रात का वक्त चुना और कील लगे लकड़ी के डंडे, लोहे के कांटेदार पंजे, नुकीले पत्थरों, टेज़र गन जैसे हथियारों से लैस होकर आए। उनकी संख्या 300 से ज्यादा की थी और वे 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित भारतीय चौकियों पर कब्जा करने की नीयत से आए थे। उन्होंने हमले के लिए वह दिन चुना जब इंडियन आर्मी के जवान रोटेट होते हैं, और पुराने जवानों की जगह नए जवान आते हैं।
जब चीनी सैनिकों ने हमला किया, उस वक्त यांगत्से की पोस्ट पर जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फैंट्री के लगभग 75 जवान तैनात थे। चीनी सैनिकों को लगा था कि वे रात के अंधेरे में बड़ी आसानी से भारतीय चौकी पर कब्जा कर लेंगे। जब हमारे जवानों ने उन्हें ललकारा, तो चीनी सैनिकों ने पत्थरों से हमला कर दिया और साथ ही कील लगे लकड़ी के डंडे, लोहे के कांटेदार पंजे और टेजर गन निकाल ली। 30 मिनट के अंदर ही यांग्त्से पोस्ट पर रीइन्फोर्समेंट पहुंच गई और चीनी घुसपैठियों को घेर लिया। इसके बाद हुई हिंसक झड़प में चीन के दर्जनों सैनिक बुरी तरह जख्मी हो गए और सूरज निकलने से पहले ही पीठ दिखाकर वापस भाग गए।
दो दिन बाद, 10-11 दिसंबर की रात को चीन के कुछ सैनिकों ने एक बार फिर घुसपैठ की कोशिश की, लेकिन मौके पर तैनात भारत के जवानों ने उन्हें बुरी तरह पीटा। चीन के कुछ सैनिकों की तो हालत इतनी खराब थी कि वे अपने पैरों पर खड़े होकर वापस भाग भी नहीं पाए, उन्हें उनके कुछ साथी कंधों पर लादकर ले गए। उसी दिन, दोनों पक्षों के स्थानीय कमांडरों ने एक फ्लैग मीटिंग की और इस मामले को आगे नहीं बढ़ाने पर सहमत हुए।
मैंने कई रक्षा विशेषज्ञों से अरुणाचल प्रदेश में तवांग इलाके के सामरिक महत्व के बारे में बात की और यह जानने की कोशिश की कि चीन अक्सर यहां LAC का उल्लंघन क्यों कर रहा है। उन्होंने बताया कि इस इलाके में हमारे जवान ऊंचाई वाले ठिकानों पर काबिज़ हैं, जहां से वे चीनी सैनिकों की गतिविधियों पर आसानी से नजर रखते हैं। भारत की सेना ने 17,000 फीट की ऊंचाई पर पोस्ट बना रखी है, जबकि दूसरी तरफ चीनी पोस्ट कम ऊंचाई पर है। काफी ऊंचाई पर भारतीय जवानों द्वारा लगातार निगरानी रखे जाने के कारण चीनी अधिकारियों को लगता है कि यह उनके रसद मार्ग और बाकी चौकियों के लिए खतरा बन सकता है। पिछले साल अक्टूबर में भी इसी तरह की झड़प हुई थी।
2006 से अब तक तवांग के अलग-अलग पोस्ट पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच 15-16 बार झड़पें हो चुकी है, और हर बार चीनी सैनिकों को पीछे हटना पड़ा । चीन की हरकतों पर हर वक्त नजर रखने के लिए हमारी सेना से सरहद पर हाई टेक सर्विलांस सिस्टम लगा रखे हैं। पूरे LAC पर तैनात भारतीय जवानों को बिना हथियार के, खाली हाथ दुश्मनों से लोहा लेने की ट्रेनिंग दी जा रही है। इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, भयंकर ठंड पड़ती है, हमेशा चौकस रहना पड़ता है, इसलिए जवानों को योग और पराम्परिक भारतीय युद्ध कलाओं का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है ।
दूसरी तरफ चीनी सेना अपने इलाकों में कैंप, सड़कें और पुल बना रही है। कुछ इलाकों में तो उसने अपने सैनिकों के लिए नए गांव भी बसा दिए हैं। भारत भी चीन से लगने वाली सीमा के पास ऑल वेदर रोड, हेलीपैड और पुल बनाकर बुनियादी ढांचा विकसित कर रहा है। चूंकि सड़कें बन चुकी हैं, इसीलिए हमारे जवानों तक रीइन्फोर्समेंट कुछ ही मिनटों में पहुंच जाता है। चीनी अधिकारियों को यही बात खटक रही है।
संसद के दोनों सदनों में विपक्षी दलों के नेता, कांग्रेस की अगुआई में मंगलवार से ही तवांग के हालात पर बहस कराने की लगातार मांग कर रहे हैं। दोनों सदनों में सभापतियों ने इस मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए पिछली कई घटनाओं का हवाला दिया और बहस की इजाज़त नहीं दी। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, ‘भारत की एक इंच जमीन पर भी कोई कब्जा नहीं कर सकता। 8 दिसंबर की रात को हमारे जवानों ने जो वीरता दिखाई है, मैं उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूं। उन्होंने चीनियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।’ लेकिन विपक्ष इतने से संतुष्ट नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार को 17 विपक्षी दलों के नेताओं के साथ बैठक की। दोनों सदनों में इन पार्टियों ने फिर से बहस की मांग उठाई और बाद में वॉकआउट कर दिया।
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा, ‘सरकार कम से कम हमें पूरे हालात के बारे में विहंगम जानकारी तो दे, और जनता को तो बताए कि हालात के बारे में उसकी क्या समझ है और कुछ सवालों के जवाब दे। यह तो सामान्य बात है। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान पंडित नेहरू ने संसद में बहस कराई थी और जवाब देने से पहले उन्होंने संसद में कम से 100 सदस्यों की बातों को सुना । हम इसी तरह की रचनात्मक विमर्श की बात कर रहे हैं। हम पिछले कुछ समय से यही कह रहे हैं कि संसद इसी काम के लिए होती है। यह एक ऐसा मंच है जहां सरकार की जनता के प्रति जवाबदेही बनती है। 2017 में डोकलाम के बाद से गलवान घाटी, डेपसांग और अब तवांग में पिछले 5 साल से चीन LAC पर हमारे इलाकों को थोड़ी-थोड़ी हथियाने की कोशिश करता आ रहा है। इस पर बहस होनी चाहिए। ’
AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया कि चीन ने हमारी 7 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है, और LAC से 8 किलोमीटर अंदर तक भारतीय सीमा में घुसकर बैठा है। उन्होंने कहा, ‘अगर सरकार वाकई में कुछ छिपा नहीं रही, तो सभी पार्टियों के नेताओं को लेकर तवांग का दौरा क्यों नहीं कराती ताकि सांसद खुद हालात को अपनी आंखों से देख सकें?’
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खर्गे ने तो यहां तक कह दिया कि ‘सरकार की कमजोरी की वजह से देश के जवान शहीद हो रहे हैं। रक्षा मंत्री तो बयान देकर चले गए। उन्होंने न तो सफाई दी और न ही हमें सवाल पूछने दिया।’ समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव ने कहा, ‘LAC पर झड़प इसीलिए हुई क्योंकि चीन की सेना हमारे इलाके में घुसी थी। हमारे जवानों ने तो अपना फर्ज निभा दिया, लेकिन सवाल यह है कि सरकार क्या कर रही है?’
इसमें कोई शक नहीं है कि चीन ने हमारी सीमा में घुसने की कोशिश की, और हमारी चौकी पर कब्जे की नीयत से हमला किया। यह भी सही है कि हमारे जांबाज़ जवानों ने चीन के सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब दिया, जो हमलावर पैदल आए थे, उन्हें घायल कर उनके साथियों के कंधों पर लाद कर वापस भेजा। सेना ने इस बात की पुष्टि की है कि हमारा कोई भी जवान गंभीर रूप से घायल नहीं है। जिन 6 जवानों के घायल होने की खबर है, उन्हें भी मामूली चोटें आई हैं। सेना ने यह भी साफ कर दिया है कि हमारी एक इंच जमीन पर भी चीन का कब्जा नहीं हुआ है।
सेना द्वारा ये सारी बातें साफ करने के बाद भी अगर कोई शक करता है, सवाल उठाता है, तो ये हमारे जवानों की बहादुरी पर और देश के लिए मर मिटने के उनके जज्बे का अपमान है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस तरह की झड़पें पहले भी होती रही हैं, लेकिन उस वक्त हमारे सैनिकों की तैयारी उस लेवल की नहीं होती थी, उस इलाके में इन्फ्रास्ट्रक्टर नहीं था, इसलिए रीइन्फोर्समेंट पहुचने में वक्त लगता था। लेकिन अब वक्त बदल गया है। LAC से सड़कें जुड़ी हुई हैं, हर मौसम में खुली रहने वाली सड़कें हैं, पुल और सुरंगे बन गई हैं।
हमारी सेना का मूवमेंट बहुत तेज हो गया है, और अब हमें इसका फायदा भी नजर आ रहा है। चीन के सैनिकों ने घुसपैठ की कोशिश की, कुछ ही देर में वहां तैनात फौजियों के पास मदद पहुंच गई, और इसीलिए चीन के सौनिकों को उल्टे पांव भागना पड़ा। दुनिया के किसी जिम्मेदार मुल्क में देश की सुरक्षा से जुड़े इस तरह के सवाल सार्वजनिक तौर पर नहीं उठाए जाते। लोकतंत्र और देशों में भी है, लेकिन जब सीमा पर तनाव होता है तो दुश्मन मुल्क से निपटने की रणनीति का ऐलान संसद में नहीं किया जाता।
दुश्मन का मुकाबला कैसे करना है, यह सेना तय करती है, और ये काम बंद कमरों के अन्दर होता है, सार्वजनिक बहस करा कर नहीं।
–क्या विपक्ष चाहता है कि सरकार संसद में ये बता दे कि हमारे कितने सैनिक LAC के पास तैनात हैं, और उनके पास कितने और कैसे हथियार हैं? हमारी फौज का बैकअप क्या है?
–क्या विपक्ष चाहता है कि सरकार चीन को खुलकर जंग के लिए ललकारें?
–क्या हम मोदी से अपेक्षा करते हैं कि वह युद्ध जैसे हालात पैदा कर दें? आज के जमाने में युद्ध, हथियारों से कम और दिमाग से ज्यादा लड़े जाते हैं। इसीलिए ऐसे संवेदनशील सवालों पर चर्चा करने से बचा जाता है। कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जिनको लगता है कि उनकी पार्टी चुनावों में तो मोदी को हरा नहीं पा रही, तो शायद शी जिनपिंग उनका काम कर दें।
Tawang: Why sensitive details about army strategy, deployment cannot be revealed in debate
As details trickle in about the violent face-off between Indian army jawans and Chinese troops at Yangtse near Tawang in Arunachal Pradesh, the United Nations and United States have expressed concern. The US Defense Department said, it was “closely watching the situation along the Line of Actual Control”. Pentagon press secretary Air Force Brig. Gen. Pat Ryder slammed China for continuing “to amass forces and build military infrastructure along the so-called LAC”. He said, China is growingly asserting itself and being pro-active in areas directed towards US allies and partners in Indo-Pacific region.
Spokesperson for United Nations Secretary General Antonio Guterres called for “de-escalation” and said, “we also call to ensure that the tensions in that area (Tawang sector) do not grow.”
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Tuesday night, we reported how more than 300 Chinese troops entered Indian territory at around 3 am in the darkness of night with the intent to destroy our post in Yangtse, but were repelled by our brave jawans, who called in immediate reinforcements.
The details about the gallantry of our jawans during the violent face-off will make every Indian proud. Though most of the officials are tight-lipped about the details, information that I have received clearly shows that timely reinforcements at the scene of face-off forced the Chinese troops to retreat carrying their injured soldiers on stretchers.
What happened on the night of December 8-9 in Yangtse? PLA Chinese troops wanted to occupy our army’s positions, and the transgression was planned well in advance. The Chinese knew when our posts are thinly defended. They chose the darkness of night and carried spiked clubs with nails, steel fists, pointed rocks and taser guns. They were more than 300 in strength and wanted to occupy Indian positions at a height of 17,000 feet. They chose the day of attack when the duty of Indian army jawans rotate. New jawans are deployed to replace old ones.
At the time of attack, there were only 75 jawans of J&K Light Infantry at the post. The PLA troops were confident of occupying the Indian position by force easily. When our jawans challenged them, the Chinese troops started throwing stones, and drew out their spiked clubs and taser guns to attack. Within 30 minutes, fresh Indian reinforcements reached the spot and surrounded the Chinese intruders. In the violent clash that followed, dozens of Chinese troops were injured, and they ultimately fled, by the time the first rays of sun appeared.
Two days later, on December 10-11 night, some PLA troops again tried to intrude, but they were again bashed up by Indian jawans. Some of the injured Chinese troops had to be carried away by their comrades. The same day, the local commanders of both sides had a flag meeting and both agreed not to escalate the issue further.
I spoke to some defence experts about the strategic importance of Tawang area in Arunachal Pradesh and asked why the Chinese are regularly transgressing the LAC there. They disclosed that our jawans are at a commanding height from where they can easily keep a watch on the activities of Chinese troops. The Indian post is at a height of 17,000 feet, while the Chinese post on the other side is at a lower height. With Indian jawans manning a dominant position, the Chinese officials feel it could be a risk for their supply lines and other posts. A similar clash took place in October last year.
Since 2006, Indian and Chinese troops have had face-offs at least 15 to 16 times in Tawang sector, and after each face-off, the Chinese had to retreat. Our army has deployed hi-tech surveillance system near the LAC to keep a watch on enemy movements. Indian jawans deployed along the LAC have been given training in hand-to-hand combat. Due to low level of oxygen and severe cold, our jawans also undergo Yoga and traditional Indian martial arts training too.
On the other side, the Chinese are building camps, roads and bridges, and in some areas, they have set up new villages for their troops. India, too, is developing its infrastructure close to the LAC, by building all-weather roads, helipads and bridges. Due to better connectivity, reinforcements can reach our jawans within minutes. This is what rattles the Chinese more.
In both Houses of Parliament, the Opposition led by Congress has been demanding discussion on the Tawang situation since Tuesday. The Chair, in both the Houses, disallowed debate, citing past precedents because of the sensitivities involved. Home Minister Amit Shah said, “Nobody can occupy an inch of Indian land. I praise the valour and bravery of jawans displayed on the night of December 8. They forced the Chinese to retreat.” But the opposition is not satisfied. Congress President Mallikarjun Kharge held a meeting with leaders of 17 opposition parties on Wednesday morning. They again raised the demand for debate, and staged a walkout from both Houses.
Congress leader Shashi Tharoor said, “the government needs to give us an overview, talk to the public about what its understand is, and answer some questions. This is normal. During the 1962 India-China war, Pandit Nehru held a debate, and he listed to 100 speakers in Parliament before coming up with a reply. That is the kind of constructive engagement that we are seeking…We have been saying for some time now that this is what Parliament is for. It is a forum for the government to be accountable to the people of India on a matter like this, where for five years, Chinese have been nibbling at our LAC starting with Doklam in 2017, and going on till what happened in Tawang, and the incidents in Galwan, Depsang, Hot Springs, and so on. ”
AIMIM chief Asaduddin Owaisi alleged that China continues to occupy seven thousand km of our territory, and in some place, it has intruded eight km inside our area. He said, “if the government has nothing to hide, then why can’t it take a delegation of MPs to Tawang to gauge the situation?”
Congress president Mallikarjun Kharge went to the extent of saying “it is because of the weakness of the government, that our jawans are being martyred on the border. The Defence Minister gave his statement and went away, but we are not being allowed to seek clarifications on his statement”. Samajwadi Party leader Ramgopal Yadav said, “the clash took place on LAC because the Chinese intruded in our area. Our jawans fulfilled their duty, but what is the government doing?”
There is no doubt that Chinese troops tried to intrude into our territory with the intent of occupying one of our forward posts in Tawang. It is also correct that our brave jawans forced the enemy to retreat, carrying their injured comrades on their shoulders. The Army has clarified that not a single jawan has been seriously injured. All the six wounded jawans have minor injuries. Army has also clarified that not an inch of our land has been occupied.
Despite these clarifications from our Army, if people raise doubts and questions, it is tantamount to indirectly demeaning the valour of our armed forces. Experts say, such clashes do take place, but earlier, the preparedness of our jawans was not up to the mark, there was no infrastructure, and reinforcements took time. But the situation has now changed. There is road connectivity near LAC. All-weather roads, tunnels, bridges have been built.
Our army movements have become faster, and the benefits are there for all to see. Within minutes of the Chinese intruding into our area, reinforcements reached the spot, and the enemy troops had to flee. In no responsible country of the world are matters relating to security raised publicly. There is democracy in other countries too, but when there is tension on the border, the strategy to deal with the enemy is not announced inside Parliament.
It is the Army that decides how to tackle the enemy, and this is done in closed rooms.
–Does the opposition want that our government should reveal in Parliament, how many jawans are deployed near the LAC, and what sort of weapons they carry? What sort of back-up they have?
–Does the opposition want that our government should openly challenge China to a war?
–Can we expect from Prime Minister Narendra Modi to create a war-like situation? In today’s world, war is fought more with a mind and less with weapons. That is why, debates in public on such sensitive matters are avoided. There might be some people who may be thinking that since their party cannot defeat Narendra Modi in elections, at least Xi Jinping can do the work for them.
अरुणाचल में झड़प: भारतीय सेना घुसपैठियों को हमेशा करारा जवाब देगी
भारत और चीन के बीच 30 महीने से सीमा पर चल रहा तनाव 9 दिसंबर को बढ़ गया, जब 300 से ज्यादा चीनी PLA सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश में तवांग के पास यांग्त्से में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) को पार करके घुसपैठ की और उन्हें रोकने की कोशिश करने वाले भारतीय जवानों पर हमला कर दिया। सेना के सूत्रों ने कहा कि कम से कम 6 घायल भारतीय जवानों को इलाज के लिए गुवाहाटी के बेस मिलिट्री अस्पताल ले जाया गया, जबकि बड़ी संख्या में चीनी सैनिक भी घायल हुए हैं।
मंगलवार को संसद के दोनों सदनों में अपने बयान में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, ”9 दिसंबर को तवांग सेक्टर के यांग्त्से इलाके में PLA के सैनिकों ने घुसपैठ की और यथास्थिति को बदलने की कोशिश की। इस कोशिश का हमारे जवानों ने डटकर मुकाबला किया। हमारे जवानों ने बहादुरी से पीएलए को हमारे क्षेत्र में अतिक्रमण करने से रोका और उन्हें अपनी पोस्ट पर जाने के लिए मजबूर कर दिया।”
राजनाथ सिंह ने कहा, “इस आमने-सामने की झड़प में दोनों पक्षों के कुछ सैनिकों को चोटें आईं। मैं इस सदन को बताना चाहता हूं कि हमारे किसी भी सैनिक की मौत नहीं हुई है और न ही किसी सैनिक को कोई गंभीर चोट आई है। भारतीय सैन्य कमांडरों के समय पर दखल के कारण पीएलए के सैनिक अपने-अपने ठिकानों पर वापस चले गए हैं। चीनी पक्ष को इस तरह के कार्यों से बचने और सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए कहा गया है। इस मुद्दे को चीनी पक्ष के साथ कूटनीतिक स्तर पर भी उठाया गया है। मैं सदन को आश्वस्त करना चाहता हूं कि हमारी सेनाएं हमारी सीमाओं की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं और इसे चुनौती देने के किसी भी प्रयास को विफल करने के लिए तैयार हैं।”
संक्षेप में, हमारी सेना ने अरुणाचल प्रदेश में LAC के पास 17 हजार फीट की ऊंचाई पर थांग ला में चीनी सैनिकों को करारा जवाब दिया है। इस झड़प में कम से कम 20 चीनी सैनिकों के घायल होने की खबर है। चीनी सैनिक LAC को पार करके हमारे इलाके में कुछ स्ट्रक्चर बनाने की फिराक में थे और उस योजना को विफल कर दिया गया। 11 दिसंबर को एक फ्लैग मीटिंग में भारतीय कमांडर ने अपने चीनी समकक्ष से कड़े शब्दों में कहा था कि ऐसी हरकत बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
2020 के बाद एलएसी पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच यह दूसरी बड़ी झड़प थी जिसमें सैनिक जख्मी हुए हैं। 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में कर्नल संतोष बाबू सहित 20 भारतीय सेना के जवान शहीद हो गए थे और बड़ी संख्या में वरिष्ठ अधिकारियों समेत चीनी सैनिक मारे गए थे। तब से, लद्दाख क्षेत्र में दोनों ओर सेना और वायु सेना ने जबरदस्त मोर्चेबंदी कर रखी है।
कई रिटायर्ड फौजी अफसरों ने कहा है कि इस तरह की चीनी घुसपैठ एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है, क्योंकि तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) स्पष्ट रूप से परिभाषित है और इसके बारे में अलग-अलग धारणाएं नहीं होनी चाहिए। रिटायर्ड मेजर जनरल ध्रुव कटोच ने कहा कि चीनी सैनिकों और उनके अधिकारियों को अब इस बात का अंदाजा हो गया होगा कि इस तरह की घुसपैठ होने पर भारतीय सेना कैसे जवाब दे सकती है। एक अन्य रिटायर्ड सैन्य अधिकारी ने कहा कि यांग्त्से इलाके में भारतीय सेना बहुत मजबूत स्थिति में है इसलिए चिंता करने की कोई बात नहीं है।
जब से सोमवार शाम को तवांग में झड़प के बारे में खबर आई, विपक्षी नेता, मुख्य रूप से कांग्रेस से, एलएसी में मौजूदा स्थिति पर खुली बहस की मांग कर रहे हैं। जबकि अध्यक्ष अनुरोध कर रहे हैं कि मामला संवेदनशील है और इस तरह के मुद्दों पर स्पष्टीकरण की अनुमति नहीं है।
सोमवार रात, कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया, “दो साल से ज्यादा समय से चीन अवैध रूप से भारतीय इलाकों पर कब्जा जमाये हुए है। हम मांग करते हैं कि प्रधानमंत्री संसद में आएं और जमीनी हालात के बारे में बताएं क्योंकि एलएसी पर चीनी सेना से भारत के कई इलाकों पर अवैध रूप से कब्जा किया है।
लगता है कि कांग्रेस अपनी पुरानी गलतियों से सबक नहीं सीखती। सोमवार रात भारतीय सेना ने एक बयान में साफ तौर पर कहा कि अरुणाचल प्रदेश में एक भी चीनी सैनिक भारतीय क्षेत्र में कदम नहीं रख पाया, फिर भी कांग्रेस को शक़ है। सुरजेवाला ने तो यहां तक दावा कर दिया कि चीनी सैनिक एलएसी पर ‘चिकन नेक’ तक लगभग पहुंच चुके हैं। यह हमारी बहादुर सेना का घोर अपमान है।
नब्बे के दशक में हुए समझौते के बाद से भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच आपसी समझ यह है कि दोनों पक्ष एलएसी से उचित दूरी बनाए रखेंगे। एक दूसरे पर हथियारों से हमला नहीं करेंगे और न ही कोई गोली चलाई जाएगी। इस शांति समझौते के कारण, जब भी तनाव बढ़ता है, दोनों पक्षों के बीच हाथापाई होती है और एक-दूसरे को धक्का देते हैं। लेकिन सर्दियों की शुरुआत के साथ 17,000 फीट की ऊंचाई पर एक मात्र धक्का घातक हो सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि ये जोरदार सेटबैक है। हाल के महीनों में भारत और चीन के बीच चल रही बातचीत को इस ताजा झड़प ने झटका दिया है।
लेकिन मैं आपको बता सकता हूं कि LAC पर चीन की तुलना में भारतीय सेना किसी भी मायने में कमजोर स्थिति में नहीं है, चाहे तैनात सैनिकों की संख्या हो या हथियार हो या सपोर्ट सिस्टम और ट्रांसपोर्टेशन। भारतीय सेना हमारी सीमाओं की रक्षा के लिए पूरी तरह सक्षम है, और यह चीन को बराबरी की टक्कर दे सकती है।
भारत एक शांतिप्रिय देश रहा है। इसने अपने किसी पड़ोसी देश पर पहले हमला नहीं किया है। हालांकि, जब-जब दुश्मन ने हमारी सीमा में घुसपैठ की कोशिश की, हमारे जांबाज जवानों ने इसका मुंहतोड़ जवाब दिया। पाकिस्तान पहले भी कई बार इसका स्वाद चख चुका है।
Arunachal clash: Indian army will always give a befitting reply to intruders
The 30-month-long military confrontation between India and China escalated on December 9, when more than 300 Chinese PLA troops intruded across the Line of Actual Control in Yangtse near Tawang in Arunachal Pradesh, and attacked the Indian jawans who tried to prevent them. At lest six injured Indian jawans were evacuated to the base military hospital in Guwahati for treatment, while a large number of Chinese troops were also injured, army sources said.
In his statement in both Houses of Parliament on Tuesday, Defence Minister Rajnath Singh said, “On December 9 in Yangtse area of Tawang sector, PLA troops intruded and attempted to change the status quo. This attempt was tackled by our jawans in a determined manner. Our jawans bravely stopped the PLA from encroaching upon our territory and force them to retreat to their post.”
Rajnath Singh said, “In this face-off, few soldiers on both sides suffered injuries. I would like to tell this House that none of our soldiers died or suffered any serious injury. Due to the timely intervention of Indian military commanders, PLA soldiers have retreated to their own locations. .The Chinese side was asked to refrain from such actions and maintain peace and tranquillity along the border. The matter has also been taken up with China through diplomatic channels. I want to assure the House that our forces are committed to guard our borders and ready to thwart any attempt that will be made to challenge it.”
In a nutshell, our army has given a befitting reply to the Chinese troops who were up to a big mischief in Thang La, at a height of 17,000 feet near the LAC in Arunachal Pradesh. There are reports that at least 20 Chinese soldiers were injured in the clash. The intention of the Chinese side was to build some structures inside our territory, and that plan has been foiled. At a flag meeting on December 11, the Indian commander told his Chinese counterpart in strong words that such actions will not be tolerated.
This was the second big clash between Indian and Chinese troops at the LAC since 2020, when 20 Indian army jawans including Col. Santhosh Babu were martyred in Galwan Valley, Ladakh, and a large number of Chinese troops along with their senior officer were killed. Since then, there has been a strong build-up of army and air force on both sides in the Ladakh region.
Several senior retired army officers have said that such Chinese intrusions are part of a well-planned conspiracy, because the Line of Actual Control in Tawang sector is clearly defined, and there should be no differing perceptions about the line. Retd. Major Gen Dhruv Katoch said that the Chinese troops and their officers must now be having a fair idea about how Indian army can respond if such intrusions take place. Another retired army officer said that the Indian army holds dominant positions at a fairly top height in Yangtse and there must be no reasons to worry.
Since the time news broke about the clash in Tawang on Monday evening, opposition leaders, mainly from Congress, have been demanding an open debate on the prevailing situation in LAC, despite requests from the Chair that the matter is sensitive and clarifications are not allowed on such issues, keeping past precedents in mind.
On Monday night, Congress leader Randeep Surjewala alleged: “For over two years, China has been illegally occupying Indian territory. We demand that the Prime Minister should come to Parliament and explain about the exact ground situation since Indian territory has been illegally occupied by Chinese PLA at different points on LAC.”
It seems Congress has not learnt from past mistakes. On Monday night, the Indian Army in a statement clearly said that not a single Chinese soldiers managed to step inside Indian territory in Arunachal Pradesh, and yet the Congress is raising doubts. Surjewala went to the extent of claiming that Chinese soldiers have almost reached till ‘Chicken’s Neck’ on LAC. This is an outright insult to our brave army.
The understanding between Indian and Chinese troops since the agreement signed in Nineties is that both sides will maintain a proper distance from the LAC, and will not attack the other with weapons, nor will any shot be fired. Because of this Peace and Tranquillity Agreement, whenever tension erupts, the two sides engage in fisticuffs and pushing each other. At heights of 17,000 feet, and that too, with the onset on winter, a mere push can be deadly. There is no doubt, this latest clash has caused a setback to the dialogue that has been going on between both countries in recent months.
But let me be emphatic. The Indian Army is in no way in a weaker position on the Line of Actual Control, compared to that of China, whether in the number of troops deployed, or weapons, support systems, transportation and all other attack or reconnaissance systems. Indian Army is fully equipped to guard our borders, and it can give an equal fight to the Chinese.
India is a peace-loving nation. It has never attacked any of its neighbours first. However, whenever the enemy tried to intrude into our borders, our brave jawans have come out with flying colours by giving a befitting reply. Pakistan has already tasted it several times in the past.
राहुल यात्रा पर, हिमाचल में सीएम पद के लिए नेताओं में घमासान
हिमाचल प्रदेश में नए मुख्यमंत्री के नाम को लेकर तीन दिनों से चला आ रहा सस्पेंस शनिवार को भी जारी रहा। कांग्रेस के नवनिर्वाचित विधायकों ने शुक्रवार रात विधायक दल की बैठक में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पास किया कि हिमाचल का मुख्यमंत्री कौन होगा, इसका फैसला पार्टी हाईकमान करेगा। अब पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सीएम के नाम पर अंतिम फैसला लेंगे।
पार्टी के केंद्रीय पर्यवेक्षक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने शुक्रवार को राज्यपाल से मुलाकात की। पर्यवेक्षकों ने नेता चुनने के लिए समय मांगते हुए 40 नवनिर्वाचित कांग्रेस विधायकों की सूची राज्यपाल को सौंपी और सरकार बनाने का दावा पेश किया।
शुक्रवार और शनिवार को शिमला में प्रदेश कांग्रेस दफ्तर के बाहर सीएम पद के लिए दावेदारों की ओर से दमखम दिखाने का दौर जारी रहा। समर्थकों ने जमकर नारेबाजी की। सीएम पद की रेस में राज्य कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वीरभद्र सिंह की विधवा प्रतिभा सिंह भी हैं। उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने पति की विरासत पर जोर देते हुए कहा कि वीरभद्र सिंह की लोकप्रियता के कारण पार्टी सत्ता में लौटी है। वीरभद्र सिंह की विरासत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
प्रतिभा सिंह ने कहा, ‘जब मुझे राज्य का कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, तब सोनिया जी ने मुझसे पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए कहा था। मैंने सभी 68 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया और जो 40 सीटों की संख्या हमें मिली है, वह हमारी कड़ी मेहनत का परिणाम है।’
सूत्रों का कहना है कि पर्यवेक्षकों को मुख्यमंत्री पद के लिए दिये गये तीन संभावित नामों में प्रतिभा सिंह का नाम नहीं है। सीएम के संभावित तीन नाम हैं- कांग्रेस प्रचार समिति के प्रमुख सुखविंदर सिंह सुक्खू, कांग्रेस विधायक दल के नेता नेता मुकेश अग्निहोत्री और राजिंदर राणा। सूत्रों के मुताबिक, चूंकि प्रतिभा सिंह विधायक नहीं हैं (वह मंडी से सांसद हैं), अगर उन्हें मुख्यमंत्री चुना जाता है तो उपचुनाव कराना होगा। उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह को नई सरकार में अहम पद दिया जा सकता है। शुक्रवार को दो बार विधायक दल की बैठक स्थगित करनी पड़ी और देर शाम पार्टी अध्यक्ष को मुख्यमंत्री चुनने के लिए अधिकृत करने का प्रस्ताव पारित किया गया।
गुरुवार रात को अंतिम परिणाम आने तक कांग्रेस नेताओं को यह डर सता रहा था कि कहीं बीजेपी उनके विधायकों की खरीद-फरोख्त में तो नहीं जुट जाएगी, लेकिन शुक्रवार शाम तक पार्टी लीडरशिप को इस बात की आशंका होने लगी कि कहीं उसके अपने नेता राज्य इकाई में फूट न डाल दें। हालत ये थी कि जब पर्यवेक्षक के तौर पर भूपेश बघेल और भूपेन्दर हुड्डा शिमला पहुंचे तो हैलीपैड पर उतरते ही उनके सामने नारेबाजी शुरू हो गई। जब वे गाड़ी में बैठकर निकले को प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य के समर्थकों ने उनकी गाड़ी को घेर कर नारेबाजी शुरू कर दी। भूपेश बघेल के होटल पहुंचने पर भी प्रतिभा सिंह के समर्थकों ने नारेबाजी जारी रखी।
यह शक्ति प्रदर्शन का राउंड वन था। शक्ति प्रदर्शन का दूसरा राउंड तब शुरू हुआ जब कांग्रेस दफ्तर में विधायक दल की बैठक शुरू हुई। मुख्यमंत्री पद के दावेदार सुखविंदर सिंह सुक्खू को उनके समर्थक कंधे पर बिठाकर कांग्रेस दफ्तर लाए। सुक्खू के समर्थक उनके पक्ष में नारे लगा रहे थे। यह दिखा रहे थे कि मुख्यमंत्री पद की रेस में उनके नेता की अनदेखी ना की जाए। इसके तुरंत बाद विक्रमादित्य सिंह के समर्थक भी अपने नेता को कंधे पर बिठाकर ले आए। ये लोग भी यह दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि वीरभद्र सिंह के परिवार को नज़रअंदाज़ नहीं करने देंगे। समर्थक मांग कर रहे थे कि कांग्रेस ने यह चुनाव वीरभद्र सिंह के नाम पर जीता है इसलिए मुख्यमंत्री की कुर्सी भी इसी परिवार के सदस्य को मिलनी चाहिए। विधायक दल की बैठक में सीएम के नाम के लिए पार्टी अध्यक्ष को अधिकृत करने का प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद भी पार्टी दफ्तर में नारेबाजी होती रही।
सीएम पद पर जारी सस्पेंस के बीच प्रतिभा सिंह के तेवर भी सख्त होते चले गए। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि वीरभद्र सिंह की विरासत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि चुनाव वीरभद्र सिंह के नाम पर जीतें और कुर्सी किसी और को दे दें। प्रतिभा सिंह चाहती हैं कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह को यह जिम्मेदारी सौंपी जाए। विक्रमादित्य सिंह शिमला ग्रामीण सीट से चुनाव जीते हैं। विक्रमादित्य भी दावेदारी पेश कर रहे हैं। हालांकि विक्रमादित्य बड़े ही सधे अंदाज में बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसमें तो कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस को जीत उनके पिता वीरभद्र सिंह के नाम पर मिली है। इसलिए उम्मीद है कि पार्टी हाईकमान सही फैसला लेगा।
यह बात तो सही है कि प्रतिभा सिंह ने पार्टी की जीत के लिए मेहनत की। उनके राजनीति में आने के बाद से ही हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की किस्मत बदली है। लगातार हार से कांग्रेस का मनोबल गिरा हुआ था। पिछले साल मंडी लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव हुआ और कांग्रेस ने प्रतिभा सिंह को टिकट दिया। प्रतिभा सिंह ने ये सीट बीजेपी से छीन ली। इसके पांच महीने बाद इसी साल अप्रैल में सोनिया गांधी ने प्रतिभा सिंह को हिमाचल प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया और विधानसभा चुनाव की तैयारियां करने को कहा। प्रतिभा सिंह के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव हुआ और कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला। कांग्रेस के लिए भी उनकी दावेदारी को खारिज करना आसान नहीं होगा।
भूपेश बघेल ने शुक्रवार को शिमला में कदम रखने पर कहा था कि पार्टी आलाकमान किसी को नाराज नहीं करेगा। लेकिन जब वे शहर में पहुंचे तो माहौल की गर्मी देखकर समझ गए कि मामला इतना आसान नहीं जितना वो समझ रहे थे।असल में प्रतिभा सिंह और विक्रामदित्य सिंह के बाद हिमाचल में प्रचार समिति के अध्यक्ष सुखविन्दर सिंह सुक्खू ने भी कह दिया कि चुनाव संगठन ने लड़ा और संगठन को उन्होंने खड़ा किया इसलिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावेदारी तो उनकी भी बनती है। दावा यह भी किया जा रहा है कि सुखविन्दर सिंह सुक्खू के पास प्रतिभा सिंह से ज्यादा विधायकों का समर्थन है।
शिमला में जो ड्रामा हो रहा है वह कांग्रेस के लिए नई बात नहीं हैं। इस तरह की तस्वीरें और नारेबाजी हम कर्नाटक में देख चुके हैं। बाद में राजस्थान में भी यह देख चुके हैं। अशोक गहलोत के समर्थकों ने हाईकमान के पर्यवेक्षकों को खाली हाथ लौटा दिया था। विधायक दल की मीटिंग ही नहीं हो पाई थी।
शुक्रवार को ठीक वही हालात शिमला में दिख रहे थे। लेकिन यह भूपेश बघेल और भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की सफलता है कि वो दिनभर की मेहनत के बाद पार्टी के नेताओं को एक लाइन का प्रस्ताव पास करने के लिए मनाने में कामयाब रहे।
असल में कांग्रेस की यह परंपरा है कि विधायक दल की मीटिंग में एक प्रस्ताव जाता है कि मुख्यमंत्री के नाम का फैसला विधायक हाईकमान पर छोड़ते हैं और फिर दिल्ली से नाम तय होता है। यह परंपरा उस वक्त तो ठीक लगती थी जब तक हाईकमान की लोकप्रियता थी और कांग्रेस में गांधी नेहरू परिवार का दबदबा था।
लेकिन अब हालात बदल गए हैं। स्थानीय नेता मेहनत करते हैं, पार्टी को जिताते हैं तो वे अपने नेता का फैसला भी खुद करना चाहते हैं। शिमला में शुक्रवार को दिनभर यही दिखा। राहुल गांधी प्रचार के लिए हिमाचल में गए भी नहीं और जीत की बधाई ट्विटर पर दे दी। इसके बाद भी वो चाहते हैं कि हिमाचल में मुख्यमंत्री के नाम का फैसला वो करें।
वक्त और ज़माना बदल गया है लेकिन गांधी-नेहरू परिवार के तौर-तरीके नहीं बदले। राहुल गांधी ने हिमाचल में प्रचार के लिए भारत जोड़ो यात्रा से छुट्टी नहीं ली लेकिन शुक्रवार को अपनी मम्मी का जन्मदिन मनाने के लिए प्रियंका और रॉबर्ट वाड्रा के साथ राजस्थान के रणथम्भौर नेशनल पार्क पहुंच गए।
उम्मीद है कि गांधी परिवार हिमाचल प्रदेश के सीएम का फैसला जल्द ले लेगा और राज्य का सियासी संकट खत्म हो जाएगा। लेकिन यह स्थाई समाधान नहीं होगा। क्योंकि राहुल गांधी को छुट्टी पर रहने की आदत है और कांग्रेस का मुकाबला नरेंद्र मोदी से है, जो कभी छुट्टी नहीं लेते। उन्हें ना मुख्यमंत्री हटाने में देर लगती है और ना बनाने में ।
With Rahul on Yatra, leaders in HP fight over CM post
The three-day-long suspense in Himachal Pradesh over the selection of the new Chief Minister continued on Saturday, despite the newly elected MLAs unanimously passing a resolution on Friday night authorizing the Congress President Mallikarjun Kharge to decide on who will be the chief minister.
The central observers of the party, Chhattisgarh CM Bhupesh Baghel, former Haryana CM Bhupinder Singh Hooda met the Governor on Friday and submitted a list of 40 newly elected Congress MLAs, while seeking time to elect a leader and stake claim to form a government.
Supporters of rival factions shouted slogans outside the state Congress office in Shimla on Friday and Saturday, as there was hectic lobbying for the plum post of chief minister. State Congress chief Pratibha Singh, widow of former CM Late Virbhadra Singh and one of the main contenders for CM post, publicly asserted her husband’s legacy saying the party has returned to power because of his popularity.
Pratibha Singh said, “When I was appointed state party chief, Sonia Ji had asked me to ensure our party’s victory. I visited all the 68 constituencies and our tally of 40 seats is the outcome of the hard work that we put in.”
Sources said, Pratibha Singh’s name is not among the names of three probables for the chief minister post given to the observers. The three names are – Congress campaign committee chief Sukhwinder Singh Sukhu, CLP leader Mukesh Agnihotri and Rajinder Rana. Sources said, since Pratibha Singh is not an MLA (she is an MP from Mandi), byelections will have to be held if she is chosen as chief minister. To assuage her feelings, her son Vikramaditya Singh may be given a plum post in the new government. The meeting of new MLAs had to be postponed twice on Friday, and late in the evening, a resolution was adopted authorizing the party president to select the chief minister.
Till Thursday night, when the final results came in, Congress leaders were fearing whether BJP would poach their MLAs, but by Friday evening, the leadership has started apprehending whether its own leaders may split the state unit. Congress workers shouted slogans when the two main observers, Baghel and Hudda landed at Shimla helipad.
Supporters of Pratibha Singh and her son Vikramaditya Singh surrounded the car in which the observers were travelling, and shouted slogans. There was sloganeering by Pratibha Singh’s supporters even when Bhupesh Baghel reached his hotel.
After Round 1 of power display, Round 2 began when the MLAs started assembling at the state party office for the meeting. Sukhwinder Singh Sukhu’s supporters hoisted him on their shoulders and brought him to the party office. Soon afterwards, Vikramaditya Singh was brought by his supporters sitting on their shoulders.
The supporters were demanding, either mother or son from Virbhadra Singh’s family be made the chief minister, because, according to them, the election was fought in the name of the late chief minister. The sloganeering continued at the party office, even after the MLAs passed a resolution authorizing the party chief to select the CM.
As the suspense continued, Pratibha Singh hardened her stance by saying that the party leadership “cannot ignore the legacy” of late Virbhadra Singh. It will not be justified if the elections are fought in his name and the post of chief minister be given to a person outside the family, she said. Pratibha Singh is even ready to accept if the post of CM is given to her son, who has won from Shimla Rural seat. On his part, Vikramaditya Singh only said, “I hope the high command will take a right decision.”
There is no doubt that Pratibha Singh toiled hard for her party’s victory. She snatched the Mandi Lok Sabha seat from BJP in the byelection last year. Five months later, Sonia Gandhi as party chief appointed her the state president. The elections were fought under her leadership and the party got majority. For the Congress high command, it will not be easy to set aside her demand.
Bhupesh Baghel said on Friday that the party high command will not make anybody angry, and everybody will be co-opted. But when Baghel reached Shimla city, he found that the matter was not so easy as he thought. Campaign Committee chief Sukhwinder Singh Sukhu told the observers that it was the party organisation that fought the elections, and that he commanded the support of more MLAs compared to Pratibha Singh.
The drama that is unfolding in Shimla is not new for Congress party. We saw a similar drama in Karnataka, and later in Rajasthan. Chief Minister Ashok Gehlot’s supporter MLAs practically forced the high command observers to return to Delhi empty-handed. The CLP meeting could not take place in Jaipur.
A similar situation arose in Shimla on Friday, but it goes to the credit of Bhupesh Baghel and Bhupinder Hooda that they managed to persuade the newly elected MLAs to pass a unanimous resolution authorizing the party high command.
It has been a longstanding tradition in Congress for legislators to pass resolution authorizing the high command to decide about chief minister, and the decision used to be taken in Delhi. The MLAs used to accept the high command’s diktat from Delhi. But this was during the days of Gandhi-Nehru family which ruled the party with an iron hand. At that time, the “high command” was popular and the Gandhi-Nehru family used to assert its leadership.
Times have now changed. Leaders at the local level put in their toil to ensure victory, and at the time of choosing the chief minister, they want to select their leader. This is what happened in Shimla on Friday. Rahul Gandhi did not go to Himachal Pradesh for campaigning. He congratulated his party workers on Twitter, and yet he wants that he should be given the power to select the chief minister.
Times have changed, but the style of working of Gandhi-Nehru family has not altered. Rahul Gandhi reached Ranthambhore National Park in Rajasthan to celebrate her mother’s birthday, along with Priyanka and Robert Vadra.
Hopefully, the family will decide who will become the new CM, and the crisis in HP will be over, but this is not a permanent solution. Rahul Gandhi has this habit of vacationing frequently, but the Congress party is facing a big challenge from Narendra Modi, who never takes leave to unwind himself. He takes no time either in selecting a CM, or firing a CM.
मोदी ने यूं लिखी गुजरात में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत की पटकथा
गुजरात की जनता ने गुरुवार को विधानसभा चुनाव में बीजेपी को रिकॉर्ड तोड़ जीत दिलाकर इतिहास रच दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने इन चुनावों में विपक्ष का लगभग पूरी तरह से सफाया कर दिया, और इसी के साथ मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल का सोमवार (12 दिसंबर) को शपथ लेने का रास्ता भी साफ हो गया।
बीजेपी पिछले 27 साल से गुजरात में शासन कर रही है और 2027 तक वह सूबे में अपने शासन के लगातार 32 साल साल पूरा कर लेगी। शाम को दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय के बाहर एक विजय रैली को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि गुजरात के लोगों ने राज्य की स्थापना के बाद से अब तक पहली बार सीट शेयर और वोट शेयर दोनों में पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं।
बीजेपी ने कुल 182 में से 156 सीटों पर जीत हासिल करके 1985 में कांग्रेस द्वारा बनाए गए 149 सीटों के रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया। बीजेपी का वोट शेयर इस बार 5 साल पहले के 49.1 फीसदी से बढ़कर इस बार 52.5 फीसदी हो गया। आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल, जो दावा कर रहे थे कि IB की एक कथित रिपोर्ट के मुताबिक उनकी पार्टी को बहुमत मिल रहा है, को भी करारी हार का सामना करना पड़ा। AAP ने केवल 5 सीटें जीतीं, जबकि 5 साल पहले 77 सीटें जीतने वाली मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस इस बार सिर्फ 17 सीटें ही जीत सकी।
गुरुवार की शाम बीजेपी मुख्यालय के बाहर मनाये गये जश्न के माहौल में गजब का आत्मविश्वास देखने को मिला। प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और अधिकांश कैबिनेट मंत्री मुख्यालय पहुंचे, जबकि हजारों कार्यकर्ता वहां पहले से जमा थे।
मोदी ने कहा, ‘जीत जितनी बड़ी है, जिम्मेदारी भी उतनी ही बड़ी है। अब जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना है। अब और ज्यादा मेहनत करनी है। इस बार अपने चुनाव अभियान के दौरान मैंने कहा था कि भूपेंद्र को नरेंद्र का रिकॉर्ड तोड़ना चाहिए, और उन्होंने ऐसा कर भी दिया। 2002 के बाद से ही मेरे हर कदम को स्क्रूटिनाइज किया जाता है, बहुत कड़ी आलोचना की जाती है, लेकिन मैंने कभी इसका बुरा नहीं माना। मैंने इस बात की कोशिश की कि मुझसे कोई गलती न हो। मेरी सरकार भारत को विकास के रास्ते पर ले गई और हमारा लक्ष्य 2047 तक भारत को विकसित देश बनाना है।’
नतीजों से खुश बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने गुजरात के लगभग सभी शहरों में जमकर जश्न मनाया। बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने ढोल-नगाड़े भी बजाए, पटाखे भी फोड़े और एक दूसरे पर गुलाल भी उड़ाया।
बीजेपी के 52.5 फीसदी वोटिंग प्रतिशत ने सारी कहानी कह दी। इसका मतलब यह है कि अगर सारे विरोधी मिलकर भी बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ते तो भी उसी की जीत होती। इससे पहले गुजरात में माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में 1985 में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 149 सीटें मिलीं थी। यह अब तक सबसे ज्यादा सीटों का रिकॉर्ड था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उस वक्त कांग्रेस के लिए सहानुभूति थी। दूसरा उस वक्त कांग्रेस ने जातिगत समीकरण बनाया था, जिसे ‘खाम’ कहा जाता है। KHAM का मतलब था, क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुसलमान।
इस बार मोदी के नेतृत्व में 156 सीटों के साथ हुई भारी जीत ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। इस बार बीजेपी की जीत में कोई भी जातिगत समीकरण काम नहीं आया। गुजरात में बीजेपी की यह लगातार सातवीं जीत थी। यह चुनाव सिर्फ नरेंद्र मोदी के प्रति लोगों के विश्वास और उनके विकास के कामों के भरोसे लड़ा गया। भूपेंद्र पटेल 150 से ज्यादा विधायकों के समर्थन से विधानसभा में बैठने वाले गुजरात के पहले मुख्यमंत्री होंगे। उन्हें 15 महीने पहले ही पिछले साल सितंबर में मुख्यमंत्री बनाया गया था। उस वक्त उनके पास सिर्फ 99 विधायकों का समर्थन था।
गुरुवार को चुनाव नतीजे आने के बाद भूपेंद्र पटेल सबसे पहले गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष सी. आर. पाटिल से मिले और उन्हें धन्यवाद दिया। उन्होंने गुजरात के लोगों को शुक्रिया कहा और फिर साफ कहा कि बीजेपी की जीत नरेंद्र मोदी के प्रति गुजरात की जनता के प्यार और भरोसे का नतीजा है।
बीजेपी ने यह कमाल कैसे किया, ये समझना हो तो अहमदाबाद और सूरत के चुनाव नतीजे समझने होंगे। अहमदाबाद में विधानसभा की 21 जबकि सूरत में 16 सीटें हैं। अहमदाबाद की 21 में से 19 सीटों पर 90 फीसदी के स्ट्राइक रेट से बीजेपी जीती है, जबकि सूरत की तो सभी 16 सीटों पर बीजेपी की जीत हुई यानी कि वहां 100 फीसदी का स्ट्राइक रेट रहा। अहमदाबाद की मुस्लिम बहुल सीटों पर भी BJP को अच्छा समर्थन मिला। सूरत में इस बार केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को बहुत उम्मीद थी, लेकिन वहां उनकी पार्टी का खाता भी नहीं खुला। कांग्रेस भी सूरत में शून्य पर रह गई।
सूरत की मजूरा सीट से जीत हासिल करने के बाद गुजरात के गृह मंत्री हर्ष सांघवी ने कहा कि जनता ने उन सभी सियासी दलों को जवाब दे दिया है जो गुजरात को तोड़ने की साजिश कर रहे थे। हर्ष सांघवी नई पीढ़ी के नौजवान नेता हैं, शुरू से बीजेपी के साथ हैं। अल्पेश ठाकोर कांग्रेस से बीजेपी में आए और गांधीनगर दक्षिण सीट से जीते। कुछ महीने पहले बीजेपी में शामिल हुए पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने भी विरमगाम सीट से जीत दर्ज की।
जीत के बाद हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर ने कहा कि कांग्रेस गुजरात के लोगों की जनभावनाओं का ख्याल नहीं रखती। उन्होंने कहा कि देश और धर्म से जुड़े मुद्दों पर कांग्रेस की राय, गुजरात की जनता के रुख से अलग होती है। दोनों ने कहा कि यही वजह है कि इस बार कांग्रेस को इतनी शर्मनाक हार झेलनी पड़ी। हार्दिक पटेल ने तो यहां तक कह दिया कि अब अगले 25 साल तक गुजरात में BJP के अलावा किसी के लिए कोई जगह नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस नहीं सुधरी, तो गुजरात में खत्म हो जाएगी।
मोरबी की सीट पर बीजेपी की जीत ने सभी को चौंका दिया। चुनाव की तारीखों के ऐलान ने कुछ दिन पहले मोरबी में पुल हादसा हुआ था, जिसमें करीब 130 लोगों की मौत हो गई थी। विरोधियों को लगा था कि कम से कम इस सीट पर तो बीजेपी हारेगी लेकिन बीजेपी ने सही रणनीति बनाई। पार्टी ने मोरबी के मौजूदा विधायक और भूपेंद्र पटेल सरकार के मंत्री ब्रजेश मेरजा का टिकट काटकर कांतिलाल अमृतिया को उम्मीदवार बनाया। कांतिलाल अमृतिया ने मोरबी हादसे के बाद खुद नदी में कूदकर कई लोगों की जान बचाई थी। कांतिलाल अमृतिया ने कांग्रेस के उम्मीदवार को 61,580 वोटों से हराया।
गुजरात में बीजेपी जीतेगी यह तो सबको पहले से पता था, लेकिन कांग्रेस की इतनी बुरी हार होगी, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। जो आम आदमी पार्टी सरकार बनाने का दावा कर रही थी, वह 5 सीटों पर अटक जाएगी, ऐसा उन्होंने भी सोचा नहीं होगा। गुजरात की जनता ने उन लोगों को जवाब दे दिया जो कहते थे कि मोदी को 50 किलोमीटर का रोड शो इसलिए करना पड़ा क्योंकि बीजेपी चुनाव हार रही है।
लेकिन गुजरात में BJP की बंपर जीत सिर्फ मोदी के 5 दिन के कैंपेन और 4 घंटे की रोड शो से नहीं हुई। मोदी ने इस चुनाव को ऐतिहासिक तौर पर जीतने की तैयारी 5 साल पहले ही शुरू कर दी थी, जब 2017 के चुनाव में पार्टी को सिर्फ 99 सीटें मिली थीं। मोदी को गुजरात में इतनी कम सीटें आना बर्दाश्त नहीं हुआ, और उन्होंने उसी वक्त तय कर लिया था कि 2022 के चुनाव में इतनी सीटें जीतेंगे कि एक इतिहास बन जाए। 2017 के चुनाव के बाद एक-एक करके कांग्रेस के कई विधायक इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए। मोदी की नजर क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों पर भी थी। उनकी नजर खासतौर से उन नेताओं पर थी जिनका असर आदिवासी क्षेत्रों में है।
मोदी ने सौराष्ट्र का ध्यान रखते हुए वहां के 3 सांसदों को केंद्र सरकार में मंत्री बनाया और फिर सत्ता विरोधी लहर की हवा निकालने का प्लान बनाया। उन्होंने एक झटके में मुख्यमंत्री विजय रूपाणी समेत गुजरात की पूरी सरकार बदल दी। इसके बाद पाटीदार भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया और थोड़े ही दिन बाद पाटीदारों में प्रभावशाली हार्दिक पटेल और OBC नेता अल्पेश ठाकोर को बीजेपी में शामिल कर लिया। धीरे-धीरे मोदी ने गुजरात में क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों की ऐसी बिसात बिछाई कि कांग्रेस पूरी तरह चकरा गई।
अपनी चुनावी सभाओं में नरेंद्र मोदी ने गुजराती अस्मिता की बात की, और इसके साथ-साथ इतनी सारी योजनाएं, इतने सारे प्रोजेक्ट शुरू किए कि लोग अभिभूत हो गए। उदाहरण के तौर पर सेमीकंडक्टर बनाने का 20 अरब रुपये का प्रोजेक्ट और एयरफोर्स के ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट भारत में बनाने का प्रोजेक्ट उन्होंने गुजरात में लगवाया। जब जमीन तैयार हो गई तो मोदी ने जबरदस्त कैंपेन किया, और गुजरात के एक-एक इलाके को कवर किया। अपने चुनाव अभियान में उन्होंने गुजरात की जनता से भावनात्मक अपील की, और कांग्रेस का पुराना रिकॉर्ड याद दिलाया। इन सारी बातों का नतीजा यह हुआ कि गुजरात में सीटों और वोटों के रिकॉर्ड टूट गए।
कांग्रेस की ऐतिहासिक हार की वजह भी बीजेपी की जीत के मंत्र में छुपी है। कांग्रेस को इस बार गुजरात में इतनी सीटें भी नहीं मिली कि वह नेता विपक्ष के पद पर दावेदारी कर सके। नेता विपक्ष के लिए कम से कम 10 फीसदी सीटें होनी चाहिए। 182 सदस्यों वाली गुजरात विधानसभा में नेता विपक्ष पद की दावेदारी के लिए कम से कम 18 सीटें होनी चाहिए थीं, लेकिन कांग्रेस सिर्फ 17 सीटें जीत सकी। गुजरात चुनाव के नतीजों पर गुरुवार को कांग्रेस का कोई नेता नहीं बोला। जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से पार्टी के खराब प्रदर्शन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘हार गए तो क्या बात करनी। अब बैंठेंगे, सोचेंगे। पता लगाएंगे कि क्यों हारे।’ खरगे ने जो कहा, वही देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की बुरी हालत की वजह है।
कांग्रेस के नेताओं को भले ही इतने बुरे प्रदर्शन के पीछे की वजह मालूम न हो, लेकिन कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को जरूर पता है कि पार्टी की यह हालत क्यों हुई, और इसके लिए कौन जिम्मेदार है। गुजरात कांग्रेस में चुनाव के प्रभारी रघु शर्मा ने एक महीने पहले कांग्रेस दफ्तर के बाहर एक काउंटडाउन क्लॉक लगवाई थी, और ऊपर लिखा था कि ‘गुजरात में परिवर्तन का काउंटडाउन शुरू हो गया है। 8 दिसंबर को परिवर्तन होगा।’ गुरुवार को जब नतीजे आए तो कांग्रेस के मायूस कार्यकर्ताओं ने पार्टी के दफ्तर में लगी ‘काउंटडाउन क्लॉक’ को तोड़कर फेंक दिया।
कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं ने सड़क पर चिल्ला-चिल्ला कर कहा कि ‘पार्टी को बीजेपी ने नहीं, गुजरात कांग्रेस के नेताओं ने हराया है।’ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो कांग्रेस के जख्मों पर नमक छिड़क दिया। उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस तो चुनाव से पहले ही मैदान से बाहर हो गई थी। गुजरात में चुनाव हो रहा था, और कांग्रेस का नेतृत्व राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के इर्द-गिर्द घूम रहा था। अगर यही हाल रहा तो राहुल गांधी को कांग्रेस खोजो यात्रा निकालनी पड़ेगी।
यह बात सही है कि कांग्रेस ने गुजरात में गंभीरता से चुनाव लड़ा ही नहीं। राहुल गांधी गुजरात में एक बार मुंह दिखाने के लिए गए और सिर्फ 2 रैलियों को संबोधित किया। प्रियंका गांधी तो चुनाव प्रचार के लिए गुजरात गईं ही नहीं। कांग्रेस सिर्फ राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके विश्वासपात्र रघु शर्मा के भरोसे चुनाव लड़ रही थी। कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने चुनाव के आखिरी दौर में जरूर कुछ रैलियां कीं।
मल्लिकार्जुन खरगे भले ही पुराने और अनुभवी नेता हैं, लेकिन मेरा मानना है कि अगर किसी को लगता है कि उनके नाम पर, उनके चेहरे पर गुजरात में वोट मिलेगा तो ये नासमझी है। कांग्रेस ने ये नासमझी की। अब कांग्रेस हार के लिए तमाम तरह के तर्क देगी। वह कहेगी कि राहुल गांधी हार के लिए जिम्मेदार नहीं है क्योंकि उन्होंने गुजरात में चुनाव प्रचार नहीं किया। कुछ नेता यह कहने भी लगे हैं कि गुजरात में कांग्रेस को आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने हरवा दिया, क्योंकि दोनों ने कांग्रेस के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगा दी।
मुझे लगता है कि इस तरह के तर्क बेमानी हैं। मैंने गुजरात के नतीजे देखे हैं, उनको स्टडी किया है। केजरीवाल की पार्टी के सिर्फ 5 उम्मीदवार जीते हैं। कुल 36 सीटें ऐसी हैं जिनपर अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के वोट को मिला दिया जाए तो वे बीजेपी के जीते हुए उम्मीदवारों से ज्यादा होते हैं। इनमें से खंभालिया, जमजोधपुर, धर्मपुर, लिंबड़ी, लिंबखेड़ा, ब्यारा जैसी 13 सीटें ऐसी हैं जिनमें आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले हैं। यानी कि इन सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार की वजह से आम आदमी पार्टी के कैंडिडेट्स को हार का सामना करना पड़ा। 23 सीटें ऐसी हैं जिन पर कांग्रेस का उम्मीदवार, आम आदमी पार्टी की वजह से हारा। इसलिए, अगर इसको आधार बनाया गया तो AAP भी कह सकती है कि उसे कांग्रेस के कारण बड़ा नुकसान हुआ। मुझे लगता है कि यह तर्क ठीक नहीं हैं।
केजरीवाल ने दावा किया था कि IB की एक रिपोर्ट में गुजरात में AAP की जीत की बात कही गई है। उनके इस दावे पर अब बीजेपी प्रमुख जे. पी. नड्डा और गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष सी. आर. पाटिल सहित BJP के तमाम नेता जमकर व्यंग्य कर रहे हैं। नड्डा की बात सही है। केजरीवाल ने लिखकर दावा किया था कि बीजेपी गुजरात से जाने वाली है क्योंकि वहां बदलाव की आंधी चल रही है। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि गुजरात AAP के चीफ गोपाल इटालिया, CM उम्मीदवार ईशुदान गढ़वी और अल्पेश कथिरिया बड़े अंतर से चुनाव जीतेंगे। इन तीनों को हार का सामना करना पड़ा। गढ़वी खंबालिया से, इटालिया कतारगाम से और कथिरिया वराछा रोड से हार गए।
केजरीवाल के लिए राहत की सिर्फ इतनी सी है कि उन्होंने गुजरात चुनावों में 12.9 फीसदी वोट हासिल किए। ईशुदान गढ़वी ने दावा किया कि AAP ने इस बार भले ही सिर्फ 5 सीटें जीती हों, लेकिन 2027 के चुनावों में वह BJP की तरह प्रचंड जीत हासिल करेगी।
केजरीवाल की यह बात सही है कि गुजरात में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन दावों से कम लेकिन उम्मीद से बेहतर रहा है। केजरीवाल अपनी पार्टी को 10 साल में ही चुनाव आयोग से राष्ट्रीय दल का दर्जा दिलवाने में कामयाब रहे।
असल में केजरीवाल को सफलता वहां मिलती है जहां कांग्रेस कमजोर होती है। ऐसा भी कह सकते हैं कि कांग्रेस जब मजबूती के साथ चुनाव नहीं लड़ती तो आम आदमी पार्टी मौके का पूरा फायदा उठाती है। जब उत्तराखंड में कांग्रेस ने मजबूती से चुनाव लड़ा, बीजेपी को टक्कर दी, तो वहां केजरीवाल के ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। पंजाब में कांग्रेस आपस में लड़ी, वहां केजरीवाल को बंपर जीत मिल गई। सबसे ताजा उदाहरण हिमाचल प्रदेश का है, जहां कांग्रेस ने इस बार पूरा जोर लगाया तो उसे बहुमत मिल गया लेकिन केजरीवाल की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली और सिर्फ 1.10 फीसदी वोट मिले।
How Modi scripted landslide win in Gujarat
The people of Gujarat scripted history on Thursday by giving a record-breaking landslide win to BJP in the assembly elections. Chief Minister Bhupendra Patel will take oath on Monday (Dec 12), after his party, under the leadership of Prime Minister Narendra Modi, virtually steamrolled the opposition.
BJP has been ruling in Gujarat for the last 27 years, and by 2027, it will have completed 32 years of uninterrupted rule. In the evening, while addressing a victory rally outside BJP headquarters in Delhi, PM Modi said that the people of Gujarat have broken all past records, both in seat share and vote share, since the formation of Gujarat.
BJP won a whopping 156 out of a total of 182 seats, while the previous record was set in 1985 when the Congress had won the highest number of 149 seats. BJP’s vote share this time rose from 49.1 per cent five years ago to 52.5 per cent this time. Aam Aadmi Party chief Arvind Kejriwal who had been flourishing a supposedly Intelligence Bureau report about his party likely to get majority, had to eat humble pie. AAP won only five seats, while the main opposition Congress which had won 77 seats five years ago, could manage to win only 17 seats this time.
The celebration outside BJP headquarters on Thursday evening clearly depicted the aura of brimming self-confidence. Prime Minister Modi, Home Minister Amit Shah, most of the cabinet ministers were present, while several thousand BJP workers thronged the rally.
Modi said, “the victory is big, the responsibility is big, and we have to fulfil the aspirations of people…I had said during my campaign that Bhupendra will have to break Narendra’s record and he did it….Since 2002, each of my steps was scrutinized and criticized, but I never took umbrage. I ensured that there must be no mistake. India is going ahead in its march towards progress and our aim is make India a developed nation by 2047.”
There were wild celebrations by jubilant BJP workers in almost all the cities of Gujarat. Firecrackers were burst along with drumbeats, and the workers sprinkled coloured power on one another.
BJP’s voting percentage of 52.5 per cent said it all. Even if the votes of all the opposition parties and independents are counted together, the BJP left them behind. The 1985 landslide win of Congress under Madhavsinh Solanki took place in the aftermath of Indira Gandhi’s assassination that had triggered a huge sympathy wave across the nation. The Congress, at that time, had set up the KHAM caste combination consisting of Kshatriyas, Harijans, Adivasis and Muslims.
This time, Modi’s 156 landslide win broke all previous records. None of the caste combinations worked. This was the seventh consecutive victory for BJP in Gujarat. The tsunami of popular support for Modi was complete. Bhupendra Patel will be the first CM of Gujarat to sit in the assembly with the support of more than 150 MLAs. He was made the CM only 15 months ago, in September last year. At that time he had the support of only 99 MLAs.
On Thursday, Bhupendra Patel thanked Gujarat BJP chief C. R. Patil, the man behind the gargantuan state party machinery. The CM said, the landslide win indicates the level of love and trust that Narendra Modi enjoys among the people of Gujarat.
To understand the reasons behind the landslide win, one needs to go through the results from Ahmedabad and Surat. In Ahmedabad, BJP won 19 out of 21 seats, a strike rate of 90 per cent, while in Surat, it swept all the 16 seats, a strike rate of 100 per cent. BJP got good support from Muslim dominated constituencies in Ahmedabad too. Kejriwal’s AAP had pinned high hopes on Surat, but failed to open its account. Congress too failed to win a single seat in Surat.
Gujarat Home Minister Harsh Sanghvi, who won from Majura seat in Surat, said, the people have soundly replied to all those parties who were trying to divide Gujarat. Harsh Sanghvi belongs to the new, young crop of BJP leaders. Alpesh Thakore, who left Congress and joined BJP, won from Gandhinagar seat. Patidar movement leader Hardik Patel who left Congress and joined BJP won from Viramgam.
After their victory, both Alpesh Thakore and Hardik Patel said, Congress is no more working for the aspirations of the people of the state. They said, Congress’ views on national and religion-related issues were totally opposed to the prevailing sentiments of Gujarati people. This, they said, was the reason why Congress had to face a shameful defeat. Hardik Patel went a step further. He said, there is no space for any other party except BJP in Gujarat for the next 25 years. If the Congress does fails to reform itself, it will cease to exist in Gujarat, he added.
The result from Morbi, where the hanging bridge disaster killed 130 people and took place a few days before the announcement of elections, surprised everyone. Keeping popular sentiment in mind, BJP denied ticket to its sitting MLA and minister Brajesh Merja and fielded Kantilal Amritiya, who had personally jumped into the river to save many lives. Amritiya won by a margin of 61,580 votes.
BJP’s win in Gujarat after the end of polling was a foregone conclusion, but nobody expected the Congress to fare so badly. AAP leaders, who were claiming that they would come to power, never dreamed that they would have to contend with only five seats. Opposition leaders, who were saying a few days ago that Modi had to take out a 50-km long road show in Ahmedabad to save his party from defeat, had to eat humble pie.
The landslide victory of BJP in Gujarat was not achieved because of Modi’s five-day campaign and four-hour road show. The Prime Minister had begun preparations for Gujarat five years ago, when BJP won only 99 seats in 2017. Modi had then made up his mind to score a landslide win in 2022. He worked hard to achieve this objective. After the 2017 elections, several Congress MLAs deserted their party, one by one, and joined BJP. Modi’s eye was also on local and caste equations. He targeted those leaders who had a good base among tribal voters.
Modi inducted three MPs from Saurashtra in his cabinet, and then prepared his plan to take the wind out of anti-incumbency wave. In a single stroke, he replaced the entire bunch of ministers in Gujarat, including the then chief minister Vijay Rupani. He made a Patidar, Bhupendra Patel, the chief minister, and after a few days, brought Hardik Patel and OBC leader Alpesh Thakore into BJP. With full care, Modi laid out his matrix of local and caste equations, and stumped the Congress completely.
In his poll campaign, Modi spoke of Gujarati pride (asmita), and in the span of a month, he launched a large number of projects, captivating voters. He ensured that Gujarat bagged the Rs 20 billion semiconductor project and the Air Force transport aircraft project. After preparing the field, Modi went full throttle in his campaign, covering each region of Gujarat. He made emotional appeals to the people, and reminded them of the old record of Congress rule. The result was, BJP broke all records in vote and seat share in the history of Gujarat.
The reason behind the historic defeat of Congress also lies in BJP’s ‘victory mantra’. Congress failed to get the requisite number of seats (18) to claim the post of leader of opposition in the assembly. Top Congress leaders on Thursday refused to speak about the party’s worst performance in Gujarat. Congress President Mallikarjun Kharge, on being asked, briefly said: “What can we say since we have lost. We will sit together and analyse. We will find out why we lost.” What Kharge said, graphically describes the reason behind the pathetic state of India’s oldest political party.
Congress leaders may be at a loss to explain the reasons behind the pathetic performance, but lower level Congress workers know why their candidates lost. They went to the state party office in Ahmedabad on Thursday, when the counting was going in. They pulled down a countdown clock and smashed it into pieces. The countdown clock was installed by Gujarat election in-charge Rajasthan minister Raghu Sharma, on which was written, “the countdown for change has begun. There will be Parivartan (change) on December 8.”
Some Congress workers went out on the streets and loudly said, ‘it is not BJP but Gujarat Congress leaders, who made our party lose’. It was left to Madhya Pradesh chief minister Shivraj Singh Chouhan to rub salt into their wounds. He said, “Congress was out of race when the election began. Gujarat was going to the polls, but the Congress leadership was busy with Rahul Gandhi’s Bharat Jodo Yatra. If such a situation continues, Rahul Gandhi will have to take out a Congress Khojo Yatra”.
It is true that the Congress did not fight the Gujarat elections seriously. Rahul Gandhi made a guest appearance only once in Gujarat and addressed two rallies. Priyanka Gandhi did not go to Gujarat for campaigning. The party was fighting the elections under Rajasthan CM Ashok Gehlot and his confidante Raghu Sharma. The new Congress president Kharge addressed a few rallies during the last leg of elections.
Kharge may be an old hand and experienced Congress leader, but I feel that if anybody expects that Congress will get votes in his name in Gujarat, then it is simply mindless. Congress made this mindless mistake. The party leadership may now come forward with several arguments. Some may say that Rahul Gandhi is not accountable because he did not campaign in Gujarat. Some have already started saying that AAP and Asaduddin Owaisi’s AIMIM ensured the defeat of Congress by dividing the Muslim vote bank.
I feel such arguments are useless. I have gone through the results of Gujarat in detail. Kejriwal’s party won only five seats. There are 36 seats, where if the votes polled by Congress and AAP are added, then the sum is more than what the BJP candidates polled. Out of these there are 13 seats including Khambhalia, Jamjodhpur, Dharmapur, Limbdi, Limbkheda, Byara, where AAP got more votes than the Congress candidates. In other words, AAP lost these seats due to Congress. There are 23 seats, where Congress candidates lost because of AAP. So, AAP leaders can also claim their candidates lost due to Congress. I think this argument is incorrect.
Kejriwal’s claim about IB report indicating AAP’s win in Gujarat, is now being openly mocked by BJP leaders, including party chief J P Nadda and state party chief C R Patil. Nadda is right. Kejriwal had given it in writing that BJP will lose and Gujarat will witness a change. Kejriwal had also made three more predictions. He had predicted that his state party chief Gopal Italia, CM candidate Isudan Gadhavi and Alpesh Katharia will win by big margins. All three of them lost. Gadhvi lost in Khambhalia, Italia lost in Katargam and Katharia lost in Warchha.
For Kejriwal, the only relief is, his party garnered 12.9 per cent votes. Isudan Gadhavi made the claim that, AAP may have won five seats this time, but in 2027, it will repeat BJP’s landslide win.
Kejriwal is right that AAP’s performance in Gujarat was more than expected, but less than was being claimed. He however succeeded in getting his 10-year-old party the status of a national party from the Election Commission.
Kejriwal’s party scores well in those states where the Congress is either weak or is not fighting the election strongly. In Uttarakhand, Congress gave a tough fight to BJP, and most of the AAP candidates forfeited their deposits. In Punjab, Congress leaders fought among themselves, and AAP got a bumper win. The latest example is Himachal Pradesh, where the Congress fought the BJP, scored a majority, and AAP got only 1.1 per cent votes. It failed to win a single seat.