नशे की गिरफ्त में पंजाब
पंजाब एक खतरनाक स्तर तक नशे की चपेट में आ चुका है। अमृतसर समेत तमाम शहरों में लड़के और लड़कियां खुलेआम ड्रग्स लेते नजर आ जाते हैं। मंगलवार की रात अपने प्राइमटाइम शो ‘आज की बात’ में हमने एक नवविवाहिता की परेशान करने वाली तस्वीरें दिखाईं। दुल्हन के कपड़े और शादी का चूड़ा पहनी हुई वह लड़की सड़क पर चल भी नहीं पा रही थी। उसके लिए अपने पैरों पर खड़े हो पाना भी मुश्किल लग रहा था। यह वीडियो ड्रग्स के कारोबार के लिए बदनाम अमृतसर के मकबूलपुरा इलाके का है। संभलने के लिए वह एक ही जगह पर काफी देर तक खड़ी रही। वह अफीम के नशे में थी।
यह वीडियो तो एक बानगी भर है। पूरे पंजाब में खुलेआम नशाखोरी और ड्रग्स की बिक्री का सिलसिला जारी है। अपने शो में हमने दिखाया कि कैसे सड़क के किनारे इस्तेमाल की हुई सीरिंज का अंबार लगा हुआ है। मकबूलपुरा को, जहां ज्यादातर लोगों की मौत ड्रग्स के ओवरडोज से हुई है, अनाथों और विधवाओं का गांव कहा जाता है।
नवविवाहिता का वीडियो देखने के बाद मैंने अपने रिपोर्टर्स को अमृतसर के मकबूलपुरा इलाके में रहने वाले लोगों से मिलने के लिए भेजा। उन्होंने जो पाया वह बेहद भयावह था। ड्रग्स की लत ने पंजाब के सामाजिक ताने-बाने को बर्बाद कर दिया है।
अमृतसर गईं इंडिया टीवी रिपोर्टर गोनिका अरोड़ा ने बताया कि पास में पुलिस चौकी होने के बावजूद मकबूलपुरा में खुलेआम ड्रग्स को खरीदा और बेचा जा रहा था। यहां के लोगों ने बताया कि ड्रग्स के कारण तमाम परिवारों ने अपनों को खो दिया। एक लड़की ने हमारी रिपोर्टर को बताया कि वह पिछले 10-12 साल से ड्रग्स ले रही है और वह ड्रग्स खरीदने के लिए ही मकबूलपुरा जाती है। हमारी रिपोर्टर ने रिक्शे में बैठकर नशे की डोज लेने जाती लड़कियों के भी वीडियो रिकॉर्ड किए।
मकबूलपुरा के कई लोगों ने हमारी रिपोर्टर को बताया कि नशेड़ियों से परेशान होकर वे अपना घर बेचने जा रहे हैं, क्योंकि जब वे लोगों को यहां नशा करने से मना करते हैं तो वे धमकियां देने लगते हैं। मकबूलपुरा मोहल्ले में 12 गलियां हैं और हर गली में नशे का कारोबार खुलेआम होता है। न तो नशा करने वाले रिहैब सेंटर जाने को तैयार हैं और न ही पुलिस कार्रवाई करती है।
कुछ दिन पहले चंड़ीगढ़ PGI में एक रिसर्च हुई थी, जिसमें यह पता लगा कि पंजाब का हर सातवां व्यक्ति नशे का आदी है। एक अनुमान के मुताबिक, पंजाब में एक साल में 7,500 करोड़ रुपये का नशे का कारोबार होता है। नशे के कारण पंजाब में क्राइम रेट करीब 33 फीसदी तक बढ़ गया है। चिंता की बात यह है कि नशे के कारण मौत ने पंजाब के ज्यादातर घरों का दरवाजा देख लिया है। तमाम घरों की दीवारों पर उन नौजवान लड़कों की तस्वीरें टंगी है जो नशे का शिकार हो गए।
हमारी रिपोर्टर ने मकबूलपुरा में नशा प्रभावित परिवारों की 5 केस स्टडीज को नोट किया।
पहले घर में एक महिला राजबीर ने खुलासा किया कि कैसे उसका पति नशे का आदी हो गया और उसने घर का सामान तक बेच डाला। घर में बच्चों को दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल रही, परिवार अब भुखमरी के कगार पर है, लेकिन उसका पति नशीले पदार्थों का सेवन बंद करने को राजी नहीं है।
दूसरा घर 70 साल के सतपाल सिंह का था। उनका एक ही बेटा है जो 3 साल पहले नशे का आदी हो गया था। उन्होंने बताया कि उनके परिवार में सिर्फ बेटा ही कमाता है, राजमिस्त्री का काम करता है, लेकिन घर में एक भी पैसा नहीं देता। सारा पैसा ड्रग्स पर उड़ा देता है। पुलिस उसे दो बार गिरफ्तार भी कर चुकी है।
तीसरे केस में हमारी रिपोर्टर एक बुजुर्ग दंपत्ति के घर गईं। वे आंखों में आंसू लिए अपने बेटे की तस्वीर लेकर बैठे थे। उनके बेटे की मौत ड्रग्स के ओवरडोज से हो गई। बुजुर्ग दंपत्ति ने बिस्तर पकड़ लिया है और उनका कोई सहारा भी नहीं है।
चौथे घर में भोली नाम की एक महिला ने बताया कि कैसे ड्रग्स ने उनसे उनके पति और बेटे को छीन लिया। उनका पति एक शराबी था और 4 साल पहले उसकी मौत हो गई थी। पति की मौत के 5 महीने बाद ही उनका 21 साल का बेटा भी ड्रग्स की लत के कारण दुनिया से चला गया।
पांचवीं केस स्टडी में, हमारी रिपोर्टर की मुलाकात 16 साल के एक लड़के से हुई। उसके परिवार में कोई बड़ा-बुजुर्ग नहीं बचा था। उसके पिता और 2 चाचाओं की मौत ड्रग्स के कारण हुई थी। लड़का अब अपनी मां और दो चाचियों का पेट भरने के लिए काम करता है।
इंडिया टीवी की रिपोर्टर ने आम आदमी पार्टी की स्थानीय विधायक जीवन ज्योत कौर से मुलाकात की, जिन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता नवजोत सिंह सिद्धू को मात दी थी। उन्होंने दावा किया कि अधिकारी कार्रवाई कर रहे हैं और यहां के लोगों ने खुद ही शिकायत की है कि पुलिस कुछ मामलों में परिजनों को तंग कर रही है। जीवन ज्योत ने दावा किया कि पुलिस तस्करों के पास से ड्रग्स की बरामदगी कर रही है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बताती है।
हमारी संवाददाता ने अमृतसर के पुलिस कमिश्नर अरुण पाल सिंह से भी मुलाकात की। सिंह ने कहा कि उन्होंने नवविवाहित युवती का वीडियो देखा है, और उसे एक रिहैब सेंटर भेज दिया गया है। पुलिस चीफ ने माना कि मकबूलपुरा ड्रग तस्करों का हॉटस्पॉट बन चुका है, लेकिन चूंकि अमृतसर अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास है, इसलिए ड्रग तस्करों पर लगाम लगाना एक बड़ी चुनौती है।
पंजाब पुलिस का दावा है कि उसने 5 जुलाई से पिछले 2 महीनों में उसने 2.73 करोड़ रुपये कैश, 322 किलो हेरोइन, 167 किलो अफीम, 145 किलो गांजा, 222 क्विंटल चूरा पोस्त और 16.9 लाख रुपये कीमत के ड्रग टैबलेट्स, कैप्सूल और इंजेक्शन जब्त किए हैं। पुलिस के मुताबिक, उसने 4,223 ड्रग तस्करों को गिरफ्तार किया है और 3,236 FIR दर्ज की है।
इन आंकड़ों को खंगालने के बाद मैंने पाया कि इनमें से सिर्फ 328 मामले ऐसे हैं जो ड्रग्स के धंधे से जुड़े हैं, और बाकी सारे मामले ड्रग्स के इस्तेमाल के हैं। यानी कि पुलिस ने जो ऐक्शन लिया है उसमें नंबर तो बड़े-बड़े नजर आते हैं, दावे भी बड़े-बड़े किए जा रहे हैं, लेकिन जो मामले बनाए गए हैं वे कमजोर हैं। ज्यादातर लोग बड़ी आसानी से छूट जाते हैं और फिर इसी धंधे में लग जाते हैं।
मंगलवार की रात जब मेरा प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ टेलिकास्ट हो रहा था तो खबर आई कि मकबूलपुरा के एसएचओ समेत पंजाब पुलिस के 17 अफसरों का तबादला कर दिया गया है। लेकिन इस तरह की दिखावे की कार्रवाई से इस गंभीर समस्या से छुटकारा नहीं मिलेगा।
यह एक कड़वी सच्चाई है कि पंजाब में ड्रग्स के खिलाफ राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी है। कोई भी पार्टी हो, किसी ने इस मामले में ईमानदारी से काम नहीं किया। अकाली दल की सरकार थी तो कांग्रेस ड्रग्स का मुद्दा जोर-शोर से उठाती थी। राहुल गांधी ने पंजाब को ड्रग मुक्त करने का वादा किया था। कांग्रेस की सरकार आई तो नवजोत सिंह सिद्धू ने ड्रग्स को लेकर बहुत शोर मचाया, लेकिन 5 साल में ड्रग्स के खिलाफ कोई बड़ा काम नहीं हुआ।
चुनाव से कुछ पहले अकाली दल के नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज करवाकर उनकी गिरफ्तारियां करवा दीं , हालांकि जनता ने हकीकत समझ ली और सिद्धू को चुनाव में जबाव दे दिया। जनता ने इसके बाद जीवन ज्योत कौर को विधायक बनाया, लेकिन वह भी अभी तक कुछ खास नहीं कर पाई हैं। मुझे लगता है कि चुनाव के वक्त AAP सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने पंजाब को ड्रग्स के जहर से मुक्त करने का जो वादा किया था, उस पर खरा उतरने की उन्हें पुरजोर कोशिश करनी चाहिए।
मुझे आज भी याद है कि मैं 2014 में ‘आप की अदालत’ का एक स्पेशल शो रिकॉर्ड करने के लिए अमृतसर गया था। उसमें अमृतसर से चुनाव लड़ रहे बीजेपी नेता अरुण जेटली मेरे मेहमान थे। उस शो के दौरान एक लड़की ने खड़े होकर, हाथ जोड़कर रोते हुए कहा था, ‘पंजाब के पास सब कुछ है, बस भगवान के लिए हमारे सूबे को ड्रग्स से मुक्ति दिलवा दीजिए। पंजाब के बेटों को बचा लीजिए।’
उस बेटी की आवाज आज भी मेरे कानों में गूंजती है। ड्रग्स ने पंजाब का पानी और पंजाब की जवानी दोनों को बर्बाद कर दिया है। यह एक ऐसा मसला है जिस पर सारे राजनैतिक दलों को मिलकर काम करना चाहिए। राज्य और केंद्र सरकारों को मिलकर इस समस्या के निदान के लिए एक ठोस रणनीति बनानी चाहिए।
Punjab in the grip of drug addiction
Narcotics addiction in Punjab has reached alarming proportions with visuals of young men and women openly taking drugs in Amritsar and several other cities. In my primetime show ‘Aaj Ki Baat’ on Tuesday night, we showed disturbing visuals of a newly married girl, wearing bridal clothes and wedding bangles, struggling to walk on the street. She was finding it difficult to even stand on her feet. This video was shot in Maqboolpura locality of Amritsar, notorious for drug trade. With droopy, red eyes, she was struggling with herself to regain her composure. She was under the influence of opium.
The video is only the tip of the iceberg. Drugs abuse and sale of narcotics is going on openly across Punjab. In our show, we showed visuals of a large number of used syringes thrown on the roadside. Maqboolpura is known as the village of orphans and widows, where most of the people have died due to overuse of drugs.
After watching the video of the newly-wed girl, I sent my reporters to meet families living in Maqboolpura locality in Amritsar. What they found was horrifying. Drugs abuse has wrecked Punjab’s social fabric.
India TV reporter Gonika Arora, who went to Amritsar, reported that sale and purchase of drugs was going on openly in Maqboolpura, despite a police post nearby. Local residents narrated how several families lost their near and dear ones because of drugs. One girl told our reporter that she has been taking drugs for the last 10-12 years, and she visits Maqboolpura only for buying drugs. Our reporter recorded visuals of girls sitting in rickshaws and openly taking drugs.
Several local residents told our reporter that they were planning to sell their houses and move elsewhere because of rampant drugs trade in their locality. There are twelve lanes in Maqboolpura locality, and in every lane, drugs trade is going on openly. Neither the drug addicts are willing to go for rehabilitation, nor is the police ready to take action.
A recent study made by doctors in the Post-Grade Institute of Medical Education, Chandigarh, reveals that one in seven persons in Punjab have become drug addicts. The drugs trade in Punjab is estimated annually to the tune of Rs 7,500 crore. Because of drug abuse, crime rate has jumped by nearly 33 per cent. In many of the homes, youths have died due to overuse of drugs.
Our reporter noted down five case studies of drug-affected families in Maqboolpura.
In the first home, a woman Rajbir disclosed how her husband became a drug addict and sold off his assets. The family is now on the verge of starvation, but her husband is unwilling to stop drugs abuse.
In the second home, 70-year-old Satpal Singh had only one son, who became a drug addict three years ago. He narrated how his son, who works as a mason, refuses to give a single paisa of his earnings, and spends them on drugs. He has been arrested by police twice.
In the third case, our reporter went to the home of an old couple. They sat holding a picture of their son, with tears in their eyes. Their son died due to overuse of drugs. The elderly couple is now bedridden, bereft of any assistance.
In the fourth home, a woman named Bholi narrated how her husband and son died due to addiction. Her husband was an alcoholic and died four years ago, and five months later, her 21-year-old son died due to drugs.
In the fifth case study, our reporter met a 16-year-old boy. There were no male adults in his family. His father and two uncles died of drugs. The boy now works to feed his mom and two aunts.
India TV reporter met the local AAP MLA Jeevanjot Kaur, who had defeated Congress stalwart Navjot Singh Sidhu. She claimed that authorities were taking action and local residents have even complained that police is harassing families in some cases. She claimed that police was making recoveries of drugs from traders. But the ground reality proves otherwise.
Our reporter also met Amritsar Police Commissioner Arun Pal Singh, who said, he had seen the video of the newly married girl, and she has been sent to a rehab centre. The police chief admitted that Maqboolpura has become the hotspot for drug peddlers, but since Amritsar is close to international border, it has become a big challenge to eliminate drug traffickers.
On record, Punjab Police claims, in the last two months since July 5, it has seized Rs 2.73 crore cash, 322 kg heroin, 167 kg opium, 145 kg ganja, 222 quintals choora-post (sawdust poppy) and Rs 16.9 lakh worth drug tablets, capsules and injections. The state police claims, it arrested 4,223 drug peddlers and 3,236 FIRs were registered.
After going through these statistics meticulously, I found only 328 cases relate to drug traffickers, and all the remaining cases relate to drug addicts. Clearly, in order to inflate figures, police took action against drug addicts. The figures may look big, but the cases that will go to courts will make it easier for drug peddlers to come out on bail, and restart their trade.
On Tuesday night, while my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ was being telecast, came news that 17 Punjab Police officers including the SHO of Maqboolpura has been transferred. But such cosmetic action will not help in striking at the roots of this grave problem.
The hard fact is that there is total lack of political will to take action against drugs traders in Punjab, whichsoever party is in power. Shiromani Akali Dal government did not sincerely take action when it was in power, while Congress and its leader Rahul Gandhi raised the drugs issue during elections and promised to make Punjab drugs-free. Even Navjot Singh Sidhu made loud noises about tackling drug peddlers, but no major action was taken during the last five years.
On the eve of assembly elections, FIRs were filed against some Akali leaders and arrests were made, but the common people knew the trick, and responded to Sidhu accordingly. The people elected AAP leader Jeevanjot Kaur as their MLA, but even she has failed to make much headway. It’s time that AAP chief Arvind Kejriwal, who had promised to make Punjab free from the poison of drugs during elections, must fulfil his promise.
I still remember, in 2014, I had gone to Amritsar to record my show ‘Aap Ki Adalat’ with BJP leader Arun Jaitley, who was contesting LS elections from the city, as my guest. A young girl stood up among the audience and with folded hands, with tears flowing from her eyes, requested, “Punjab has everything, but please, for God’s sake, free our state from the evil of drugs. Please save our boys in Punjab”.
The sad voice of that young girl still rings in my ears. Drugs have destroyed Punjab’s youth and has sapped its strength. It is a burning issue on which all political parties must join hands. Both the Centre and the state government must chalk out a pro-active policy to solve this problem.
ज्ञानवापी आदेश: हिंदुओं और मुसलमानों को संयम बरतना चाहिए
सोमवार, 12 सितंबर को दो बड़ी खबरें आईं । पहली ये कि 2024 में मकर संक्रांति के दिन 14 जनवरी को अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला विराजमान हो जाएंगे। अभी इस मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है।
दूसरी, वाराणसी के जिला जज ने आदेश दिया कि ज्ञानवापी में श्रृंगार गौरी की पूजा का हक देना, वजूखाने में मिली आकृति शिवलिंग है या नहीं, इन मामलों में सुनवाई जारी रहेगी। मुस्लिम पक्ष ने इस सुनवाई पर रोक लगाने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि 1991 का पूजा स्थल कानून इस मामले की सुनवाई पर रोक नहीं लगाता क्योंकि वादी ने कभी भी मस्जिद को मंदिर में बदलने की मांग नहीं की।
जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश ने अपने 26 पन्नों के आदेश में कहा, ‘वादी के मुताबिक, उन्होंने 15 अगस्त 1947 के बाद भी नियमित रूप से विवादित स्थान पर मां श्रृंगार गौरी, भगवान हनुमान की पूजा की। (इसलिए) वादी का मुकदमा पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की धारा 9 द्वारा वर्जित नहीं है।’ जज ने अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें मुकदमे की मेनटेनेबिलिटी को चुनौती दी गई थी। जिला जज मूल याचिका पर 22 सितंबर से सुनवाई शुरू करेंगे।
अदालत का फैसला बहुत ही सीमित है, लेकिन इसके नतीजे असीमित हो सकते हैं। कोर्ट का फैसला आने के तुरंत बाद वाराणसी, कानपुर और जम्मू में ढोल-नगाड़े बजे, मिठाई बांटी गई और आतिशबाजी शुरू हो गई। इसके बाद AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी अपनी दलीलों के साथ आगे आए।
ओवैसी ने कहा, ‘अदालत के इस आदेश से अस्थिरता शुरू हो सकती है। हम उसी रास्ते पर जा रहे हैं जिस रास्ते पर बाबरी मस्जिद का मामला गया था। जब बाबरी मस्जिद पर फैसला दिया गया था, तो मैंने सभी को चेतावनी दी थी कि इससे देश में नयी समस्याएं पैदा होंगी क्योंकि वह फैसला आस्था के आधार पर सुनाया गया था। मुझे यकीन है कि इस आदेश के बाद पूजा स्थल कानून लाने का मकसद ही नाकाम हो जाएगा। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी को चाहिए कि वह इस आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करे।’
ओवैसी ने कहा कि जज ने यह आदेश देने से पहले सबूतों को देखने की भी जहमत नहीं उठाई। ओवैसी बैरिस्टर हैं। वह नियम कानून सब जानते हैं, दूसरों से ज्यादा जानते हैं। वह ये भी समझते हैं कि कोर्ट के इस फैसले का फिलहाल सबूतों और दलीलों से कोई लेना-देना नहीं है। फिलहाल तो मामला सिर्फ पिटिशन की मेंटेनेबिलिटी (ग्राह्यता) का था। असल में 1883 में ज्ञानवापी पर किसका दावा था, 1897 में क्या हुआ, 1942 के गजेटियर में क्या लिखा है, ये सब दलीलें तो सुनवाई शुरू होने के बाद काम आएंगी।
अपनी याचिका में 5 हिंदू महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश और हनुमान की नियमित पूजा करने की इजाजत मांगी थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि 1993 से पहले पूरे साल श्रृंगार गौरी की पूजा होती थी, लेकिन इसके बाद राज्य सरकार ने पूजा पर उसी साल रोक लगा दी। अंजुमन इंतज़ामिया मसाजिद ने यह कहकर याचिका खारिज करने की मांग की कि ये केस तो चलने के लायक ही नहीं है क्योंकि यह 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ है।
मसाजिद कमेटी का यह भी कहना था कि महिलाओं की याचिका 1995 के वक्फ ऐक्ट और 1983 के श्री काशी विश्वनाथ ऐक्ट के भी खिलाफ है, इसलिए पूजा की इजाजत मांगने वाली इस याचिका को खारिज कर देना चाहिए। वहीं, हिंदू पक्षकारों का कहना था कि उनकी याचिका, किसी स्थान का टाइटिल या स्वरूप नहीं बदलती। उनकी मांग तो सिर्फ पूजा करने की है, इसलिए इस पर 1991 का पूजा स्थल अधिनियम लागू ही नहीं होता। अदालत ने हिंदू पक्षकारों की दलील को सही मानते हुए उनके हक में फैसला सुनाया।
जिला जज ने अपने आदेश में तीन मुख्य बिंदुओं पर विचार किया।
पहला, क्या पूजा स्थल अधिनियम इस मुकदमे के आड़े आता है: अदालत ने कहा, ‘उन्होंने पूजा स्थल को मस्जिद से मंदिर में बदलने की मांग नहीं की है….वे केवल मां श्रृंगार गौरी की पूजा के अधिकार की मांग कर रहे हैं..इसलिए पूजा स्थल अधिनियम, 1991 इसके आड़े नहीं आता है।’
दूसरा, क्या वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 85 मुकदमे के आड़े आती है: अदालत ने कहा, ‘..यह वर्तमान मामले में काम नहीं करता है क्योंकि वादी गैर-मुस्लिम हैं।’
तीसरा, क्या यूपी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम, 1980 इस मुकदमे के आड़े आता है: इस पर कोर्ट ने कहा, ‘… अधिनियम द्वारा मंदिर परिसर के भीतर या बाहर बंदोबस्ती में स्थापित मूर्तियों की पूजा के अधिकार का दावा करने वाले मुकदमे के संबंध में कोई रोक नहीं लगाई गई है।’
हिंदू याचिकाकर्ताओं के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा, अभी यह तय नहीं हो पाया है कि वह जगह मंदिर थी या मस्जिद। उन्होंने कहा, ‘हम सुनवाई के दौरान कार्बन डेटिंग और ‘वुजूखाना’ की दीवारों को तुड़वाने की मांग करेंगे।’
ओवैसी और तमाम मुस्लिम संगठनों को यही चिंता है कि अयोध्या के बाद काशी, इसके बाद मथुरा और फिर न जाने कौन-कौन से विवाद सामने आ जाएंगे। रजा अकादमी के अध्यक्ष मौलाना सईद नूरी ने कहा, ‘अब तो रास्ता खुल गया है। अब तो बहुत-सी मस्जिदों और चर्चों पर दावे ठोके जाएंगे।’
मुझे लगता है कि वाराणसी की कोर्ट ने जो फैसला सुनाया, उसको लेकर हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों के नेताओं ने कुछ ज्यादा ही रिऐक्ट किया। हिंदुओं ने ढोल नगाड़े बजाकर यह दिखाया कि जैसे उन्हें ज्ञानवापी मस्जिद में प्रवेश और पूजा की इजाजत मिल गई है। मुस्लिम नेताओं ने ऐसे रिएक्ट किया कि जैसे अब ज्ञानवापी मस्जिद को गिराकर वहां मंदिर बनाने का रास्ता साफ हो गया। हालांकि फैसले में ऐसी कोई बात नहीं थी।
हिंदू पक्ष ने ‘हर हर महादेव’ के नारे लगाकर ये प्रचारित किया कि फैसले से भगवान विश्वनाथ के प्राचीन मंदिर का एक और रास्ता खुल गया है, जैसे ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग स्थापित हो गया है। मुस्लिम नेताओं ने इस मामले को ऐसे पेश किया जैसे इस फैसले के बाद पूरे देश में हजारों मस्जिदें खतरे में पड़ जाएंगी। दोनों पक्षों का इंटरप्रिटेशन ठीक नहीं है। अभी तो सिर्फ इतना फैसला हुआ है कि वाराणसी की अदालत में श्रृंगार गौरी की पूजा फिर से शुरू होने की इजाजत देने के मामले की सुनवाई होती रहेगी। ज्ञानवापी विवाद में दोनों पक्षों को अंतिम फैसला आने का इंतजार करना चाहिए।
याचिकाकर्ता क्या कहते हैं, नेता क्या कहते हैं, इससे अदालतों की कार्रवाई पर, कोर्ट के फैसलों पर कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मुझे लगता है कि कुछ बातें साफ-साफ होनी चाहिए। अयोध्या में 500 साल तक संघर्ष चला, और अंत में सुप्रीम कोर्ट से मामला निपटा। काशी और मथुरा में भी मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाई गई। इसमें तो कोई दो राय नहीं है और इसके लिए किसी तरह की जांच की जरूरत भी नहीं हैं। लेकिन, यह भी सही है कि ऐसे ये सिर्फ 3 मामले नहीं हैं। 3 हजार से ज्यादा ऐसी जगहें हैं, 3 हजार से ज्यादा ऐसी मस्जिदें हैं, जहां पहले मंदिर हुआ करते थे। अगर सारे मामले कोर्ट पहुंच जाएं, सारे विवादों में जांच होने लगे तो अदालतें बाकी और कोई काम हो ही नहीं पाएगा।
इसलिए एक बार बातचीत से रास्ता निकाल कर इस तरह के मामलों को हमेशा के लिए बंद करना चाहिए। कुछ लोग कह सकते हैं कि विवादों को खत्म करने के लिए ही 1991 का ‘उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991’ बनाया गया था, लेकिन हकीकत यह है कि उस वक्त भी इसका मकसद विवाद खत्म करना नहीं था। इसका असली मकसद यह था कि हिंदू अब कभी उन विवादित जगहों पर दावा न कर पाएं, जिन पर कई सौ सालों से मुसलमानों का कब्जा है।
चूंकि नीयत साफ नहीं थी, एक पक्ष की आवाज को दबाने के लिए कानून बना इसीलिए हिंदू संगठनों ने इसका विरोध किया। अब फिर एक बार इस कानून को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट इस पर 11 अक्टूबर से सुनवाई शुरू करेगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस तरह के विवादों को खत्म करने का रास्ता निकलेगा। हालांकि उसके बाद भी स्थायी रास्ता निकलेगा इसकी गारंटी नहीं है, क्योंकि ऐसे सारे मामलों में सियासत बीच में आ जाती है। एक विवाद खत्म नहीं होता और दूसरा शुरू कर दिया जाता है।
Gyanvapi order: Both Hindus, Muslims should not overreact
Two major developments took place on Monday (Sept 12). First, the announcement was made that the idol of Ram Lala will be installed on January 14 (Makar Sankranti) in 2024 inside the sanctum sanctorum of Ram Temple in Ayodhya, presently undergoing construction.
Second, the district court in Varanasi held as maintainable the suit filed by five Hindu women seeking the right to perform daily worship of Goddess Shringar-Gauri and other “visible and invisible deities” in the Gyanvapi mosque complex, near the famous Kashi Vishwanath temple. The court said, the Places of Worship Act, 1991, is not a bar in this case as the plaintiffs never asked for the mosque to be converted into a temple.
District Judge Ajaya Krishna Visheshva, in his 26-page order, said: “According to the plaintiffs, they worshipped Maa Shringar Gauri, Lord Hanuman at the disputed place regularly even after 15th August, 1947….(hence) the suit of the plaintiffs is not barred by Section 9 of Places of Worship Act, 1991.” The judge rejected the petition of Anjuman Intezamia Masajid challenging the maintainability of the suit. The district judge will begin hearing on the original plea from September 22.
The court’s order is very much limited, but it is going to have unlimited consequences. Sweets were distributed and fireworks took place, when Hindus celebrated the court order in Varanasi, Kanpur and Jammu. These visuals prompted AIMIM chief Asaduddin Owaisi to raise objections.
Owaisi said, “a destabilizing effect will start after this. We are going on the same path as that of Babri Masjid issue. When judgement on Babri Masjid was given, I warned everyone that this will create problems in the country as that judgement was given on the basis of faith. I believe that after this order, the very purpose of bringing Places of Worship Act will fail. Anjuman Intezamia Masajid Committee should appeal against this order in higher court”.
Owaisi said, the judge did not go through the evidences before giving this order. Owaisi is a barrister and he knows the finer nuances of law. This order has nothing to do with evidences and arguments. The order was on maintainability of the petition. The question of who was in control of Gyanvapi in 1883, what happened in 1897, what is written in The Gazetteer in 1942, all these matters would come up when the hearing will begin.
In their petition, the five Hindu women had sought permission to perform regular prayers of Shringar Gauri, Lord Ganesh and Lord Hanuman inside the Gyanvapi campus. They had said that there used to be pooja of Shringar Gauri throughout the year before 1993, but the state government put a ban on prayers that year. The Muslim side wanted that the petition be dismissed because it was against the Places of Worship Act, 1991, Waqf Act of 1995 and Shri Kashi Vishwanath Act of 1983. The Hindu petitioners said that their plea does not alter the title or structure of the religious place, and it was only limited to prayers. The district judge accepted their plea.
The district judge, in his order, dealt with three main points.
One, whether the suit is barred by Places of Worship Act: The court said, “They have not sought the relief for converting the place of worship from a mosque to a temple….only demanding right to worship Maa Shringar Gauri..Therefore the Places of Worship Act, 1991 does not operate as the bar.”
Two, whether the suit is barred by Section 85 of Waqf Act, 1995: the court said, “..it does not operate in the present case because the plaintiffs are non-Muslims”.
Three, whether the suit is barred by UP Sri Kashi Vishwanath Temple Act, 1980: On this, the court said, “….no bar has been imposed by the Act regarding a suit claiming right to worship idols installed in the endowment within the premises of the temple, or outside.”
Vishnu Shankar Jain, lawyer for Hindu petitioners, said, it is yet to be decided whether the place was a temple or a mosque. “We will seek carbon dating and demolition of the walls of ‘wazukhana’ during the hearing”, he added.
Owaisi and Muslim clerics are worried that after the Ayodhya judgement, more disputes will now be reopened, beginning with Varanasi and Mathura. Maulana Saeed Noori of Raza Academy, Mumbai, said, “the path has now been opened. More claims will be made on mosques and churches now.”
I feel both the Hindu and Muslim sides overreacted to today’s order of district court. Hindus, by beating drums and setting off firecrackers, celebrated as if they have got the permission to offer prayers inside Gyanvapi mosque, while Muslim leaders reacted as if the order has opened the way for demolition of the mosque and building of a temple. There is nothing in the order to substantiate these feelings.
Hindus, by chanting ‘Har Har Mahadev’, acted as if the Shivling has been installed inside Gyanvapi mosque, while Muslim leaders reacted as if thousands of mosques across India are now in danger. The interpretations from both sides are not correct. Today’s order is limited only to the maintainability of the petition seeking permission for revival of prayers. Both sides should wait for the final verdict in Gyanvapi dispute.
Remarks made by petitioners or leaders will not have any effect on the court hearings or its final verdict. However, some facts should be made clear right now. For nearly 500 years, there were clashes over the Ayodhya issue, and the matter was finally disposed of in Supreme Court. Temples were demolished to build mosques in Kashi and Mathura. On this point, nobody can have two opinions, and even probes are not needed. But, it is also true that the disputes are not limited to only three religious places. There are more than 3,000 mosques, when temples used to exist. If all these disputes reach the courts, the judiciary will not have time for other cases.
Peaceful negotiation is the only way out to put a full stop to such disputes, once and for all. Some may argue that Places of Religious Worship Act is already in place since 1991, but the reality is that the objection was not to end all disputes. The real objection was to prevent Hindus from staking claims on those disputed places, which are under the control of Muslims since several centuries.
Since the intention was not bonafide, this law was opposed by Hindu organizations. This law has now been challenged again, and the Supreme Court will start hearing from October 11. Only after the Supreme Court verdict, a way can be found out to put a stop all such disputes in future, but still there is no guarantee. Politics comes in the path of resolving all such disputes. The moment one dispute ends, another crops up.
राजस्थान में हजारों गायों की मौत का जिम्मेदार कौन ?
राजस्थान के कई जिलों में लंपी (LSD) बीमारी से हजारों गायों की मौत हो चुकी है। तमाम जिलों में बड़ी तादाद में गायें मरी पड़ी हैं। इन शवों से उठ रही बदबू आसपास के इलाकों में फैल रही है जिससे लोगों का जीना मुहाल हो गया है। इन इलाकों में दो मिनट खड़े रहना भी मुश्किल है। बदबू के चलते लोगों को उल्टी आ रही है। चील-कौवे इन शवों के आसपास मंडरा रहे हैं। ड्रोन कैमरे से ली गई तस्वीरें में कई वर्ग किलोमीटर के इलाके में मरी हुई गायें बिखरी पड़ी दिखाई दे रही हैं। कई जगह तो हालात ऐसे हैं कि मरी हुई गायों को गिनना मुश्किल है।
राजस्थान के कई जिलों में आम लोगों का दावा है कि उनके इलाके में 50 हजार से ज्यादा गायें लंपी वायरस का शिकार बन चुकी हैं। लेकिन राज्य सरकार का कहना है कि पूरे राजस्थान में लंपी वायरस से कुल 45 हजार गायों की मौत हुई है और करीब 11 लाख मवेशी प्रभावित हुए हैं।
शुक्रवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने जोधपुर, भीलवाड़ा, बीकानेर, बाड़मेर, जालोर, गंगानगर, नागौर, जैसलमेर, करौली, दौसा, भरतपुर, अजमेर, बूंदी और कोटा की ग्राउंड रिपोर्ट दिखाई। जिस गाय को हिंदू शास्त्रों में मां का दर्जा दिया गया है और जिसकी देख-रेख के तमाम दावे सरकार करती है, उस गाय की दुर्दशा देखकर आपको दुख होगा। लंपी वायरस ने राजस्थान में विकराल रूप ले लिया है। गायों की मौत इतनी बड़ी संख्या में हुई है कि कई जिलों में दूध के दाम 10 से लेकर 20 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ गए हैं।
अपने शो में हमने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के होम डिस्ट्रिक्ट जोधपुर का दृश्य दिखाया। यहां सड़कों पर गायों की लाशें सड़ रही हैं। सैकड़ों की संख्या में गायें मरी पड़ी हैं। मरी हुई गायों की संख्या इतनी ज्यादा है कि आवारा कुत्ते, चील-कौवे भी इन्हें खत्म नहीं कर पा रहे हैं। सड़ रहे शवों की बदबू अब जोधपुर शहर तक पहुंचने लगी है। इन शवों के निस्तारण का कोई सरकारी इंतजाम नहीं है।
हमारे रिपोर्टर मनीष भट्टाचार्य ने जोधपुर का दौरा किया। उन्होंने बताया कि अकेले जोधपुर में लंपी बीमारी से 3,800 से ज्यादा गायों की मौत हो चुकी है। हर तरफ गायों के शव बिखरे होने के चलते लोगों का सड़कों पर चलना दुश्वार है। लोग सड़कों पर चलने से परहेज कर रहे हैं। इन सड़कों पर आते जाते कम ही लोग मिलते हैं। एक शख्स ने दावा किया कि मरी हुई गायें आम लोगों ने नहीं फेंकी हैं बल्कि इन गायें को नगर निगम के लोगों ने सड़कों पर फेंक दिया है।
लंपी (LSD) वायरस जानवरों के लिए बहुत ही खतरनाक है। इस वायरस के चपेट में आने से गायों की मौत बहुत ही भयानक होती है। पहले गायों को बुखार होता है, भूख कम हो जाती है और इसके बाद फेफड़ों में इन्फेक्शन होता है और एक हफ्ते के बाद शरीर पर छोटी-छोटी गांठें बन जाती हैं। गायों की नाक से सैलाइवा टपकने लगता है। इसके बाद शरीर पर बनी गांठे बड़ी होती जाती हैं। यह रोग मच्छरों, मक्खियों, ततैयों और मवेशियों के सीधे संपर्क से और दूषित भोजन और पानी से भी फैलता है। इस बीमारी के चलते कुछ समय के बाद जानवर की मौत हो जाती है।
जोधपुर में दूध की भारी किल्लत है और उत्पादन 50 प्रतिशत तक गिर गया है। उत्पादन कम होने से दूध की कीमतें बढ़ गई हैं। लेकिन सबसे ज्यादा मुसीबत में गाय पालने वाले किसान हैं। यहां कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही। वेटरिनरी डॉक्टर्स का इंतजाम नहीं है, दवाओं का अता-पता नहीं है। इसलिए गाय पालने वाले किसान खुद ही किसी तरह गायों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अब तक तो किसानों की कोशिशें कामयाब नहीं हुई हैं और गायों के मरने का सिलसिला जारी है। एक स्थानीय डेयरी मालिक ने कहा-इस महामारी के चलते दूध का उत्पादन लगभग आधा रह गया है।
राजस्थान सरकार ने दावा किया है कि पशुओं के वैक्सीनेशन के लिए 30 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं और अबतक साढ़े 6 लाख से ज्यादा पशुओं को वैक्सीन लगाई जा चुकी है, लेकिन जमीनी हालात इन दावों को झुठलाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि मवेशियों पर वायरस का हमला होने से पहले वैक्सीनेशन की जरूरत होती है, लेकिन अगर वायरस पहले ही फैल चुका और उसके बाद वैक्सीनेशन हो तो यह प्रभावी नहीं हो पाता है।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर मनीष भट्टाचार्य ने अपनी गाड़ी से एक बड़े इलाके में बिखरे शवों की तस्वीरों ली। ये शव करीब 1 से 1.5 किलोमीटर लंबे इलाके में फैले हुए थे। जोधपुर, बीकानेर, बाड़मेर, जालौर और गंगानगर के किसानों ने सरकार की ओर से कोई मदद न मिलने पर कुछ गैर सरकारी संगठनों की मदद से अपने मवेशियों को बचाने का अभियान शुरू कर दिया है। वे इसके लिए दवा के साथ-साथ पशुशाला में कीटनाशक का छिड़काव कर रहे हैं।
राजस्थान के 33 में से 31 जिले लंपी वायरस की चपेट में हैं। बीकानेर में सरकार ने दावा किया कि केवल 2600 गायों की मौत हुई है लेकिन तस्वीरें हकीकत बयां कर रही हैं। यहां दूर-दूर तक मरी हुई गायें ही दिख रही हैं। बीकानेर के बाहर जोड़बीड़ नाम की एक जगह गायों की लाशों का अंबार लगा है। जहां तक नज़र जाती है, गायों के शव ही नज़र आते हैं। यह इलाका शहर से दूर है लेकिन मरी हुई गायों की बदबू अब शहर वालों को परेशान कर रही है। बीकानेर की मेयर हालात देखने जोड़बीड़ पहुंचीं तो वह भी वहां पांच मिनट से ज्यादा खड़ी नहीं रह पाईं। मेयर ने कहा कि बीकानेर में लंपी वायरस से दस हज़ार से ज़्यादा जानवर मर चुके हैं और प्रशासन लीपा-पोती में जुटा है। वहीं बीकानेर नगर निगम के कमिश्नर गोपाल राम बिरदा ने मेयर के बयान पर विरोध जताया और दावा किया कि जोड़बीड़ इलाक़े में तो वर्षों से मरे जानवर फेंके जाते रहे हैं। उन्होंने तो यहां तक दावा किया कि इस इलाके में जो मरी हुई गायें दिख रही हैं वो लंपी वायरस से नहीं मरीं।
बीकानेर के जिलाधिकारी भगवती प्रसाद कलाल ने गायों के शवों को लेकर एक अलग तर्क दिया। उन्होंने दावा किया-‘जोड़बीड़ मैदान में हजारों मरे हुए मवेशियों की तस्वीरें भ्रामक हैं। यह मरे हुए पशुओं का निस्तारण करने के लिए एक तय की हुई जगह है। शहर में मरे जानवरों के शवों को यहां लाया जाता है। उनके चमड़े को निकाल दिया जाता और बाकी हिस्सों को सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। बाद में ठेकेदार बचे हुए कंकाल को बाजार में बेचता है। जानवरों के करीब 1,000 शव तो यहां अक्सर पाए जाते हैं।’ हालांकि उन्होंने यह माना कि बीकानेर में लंबी के कारण 2,600 से ज्यादा पशुओं की मौत हुई है।
ये बात सही है कि जोड़बीड़ में गिद्धों का सबसे बड़ा कंज़र्वेशन सेंटर है और यहां गिद्धों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है लेकिन यह बात गलत है कि बीकेनेर में इतनी बड़ी संख्या में गायों की स्वभाविक मौत हुई है। अगर ऐसा होता तो इस इलाके की पहले भी इस तरह की तस्वीरें आतीं।
वैसे हालात भीलवाड़ा में भी खराब हैं। यहां लंपी रोग से ग्रसत गायों के लिए अलग क्वारंटीन सेंटर बनाए जा रहे हैं। यहां एक क्वारंटीन सेंटर में 60 गायों को रखा गया है। इस क्वारंटीन सेंटर में वक्त पर इलाज मिलने से 13 गायें स्वस्थ हो चुकी हैं। भीलवाड़ा नगर परिषद की कमिश्नर दुर्गा कुमारी ने बताया कि बीमार गाय को लाकर पहले अलग रखा जाता है। उसका ट्रीटमेंट किया जाता है। क्वारंटीन सेंटर में उसके खाने-पीने का भी पूरा इंतजाम किया जाता है ताकि वो जल्दी से ठीक हो सके।
राजस्थान के पश्चिमी इलाके में लंपी वायरस का असर बहुत ज्यादा है जबकि पूर्वी राजस्थान में कम है। सवाल ये है कि बीमारी अचानक तो फैली नहीं। इसकी खबरें तो डेढ़ महीने से आ रही थी। राजस्थान सरकार ने वक्त रहते कदम क्यों नहीं उठाए ? मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी कई पूर्व मंत्रियों द्वारा वायरस फैलने के बारे में बताया गया था। करीब दो हफ्ते पहले लंपी वायरस से निपटने की रणनीति के लिए एक वर्चुअल मीटिंग हो रही थी। इस बैठक में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और गहलोत सरकार में मंत्री रहे रघु शर्मा अपनी ही सरकार के कृषि और पशुपालन मंत्री लाल चंद कटारिया से भिड़ गए थे। रघु शर्मा ने कहा था कि अफसर हालात की गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं। उनके इलाके में लंपी वायरस तेजी से फैल रहा है और वेटरिनरी डॉक्टर्स का ट्रांसफर दूसरे इलाकों में कर दिया गया है, ये ठीक नहीं है। शुक्रवार को बीजेपी नेताओं ने राज्यपाल से मुलाक़ात की और कहा कि वो मुख्यमंत्री गहलोत को कहें कि इस बीमारी की गंभीरता समझें और इससे निपटने के लिए सभी ज़रूरी उपाय करें।
इस केस में यह तो साफ दिख रहा है कि राजस्थान सरकार लंपी वायरस से मरने वाली गायों की संख्या को बहुत कम करके बता रही है। दूसरी बात यह सही है कि अब राजस्थान सरकार थोड़ी एक्टिव हुई है। क्वारंटीन सेंटर बने हैं और वैक्सीनेशन भी शुरू हुआ है। लेकिन यह काम बहुत पहले होना चाहिए था। अब बहुत देर हो गई है। अशोक गहलोत अनुभवी मुख्यमंत्री हैं और मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि वे हालात का अंदाजा लगाने में फेल कैसे हो गए? अब राजस्थान में गायों की मौत से किसानों का नुकसान हो रहा है। दूध की कमी हो रही है और यह मंहगा भी हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि हालात जल्दी काबू में आएंगे इसकी उम्मीद कम है।
ऐसा नहीं कि ये बीमारी सिर्फ राजस्थान में फैली है। देश के 12 राज्यों में लंपी वायरस के मामले सामने आए हैं। यूपी में भी यह वायरस पहुंच चुका है। राज्य के 75 जिलों में से 23 जिलों में यह वायरस फैल चुका है। चूंकि योगी सरकार ने तीन हफ्ते पहले ही इसकी तैयारी शुरू कर दी थी इसलिए हालात नियंत्रण में हैं। अब तक, लगभग 12 लाख गायें और अन्य जानवर प्रभावित हुए हैं, लेकिन केवल 220 मौतें हुई हैं। इलाज के बाद करीब 10 हजार गायें ठीक हो गईं। यूपी सरकार ने बड़े पैमाने पर पशुओं का वैक्सीनेशन शुरू किया है। अब तक करीब 9 लाख वैक्सीन दी जा चुकी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पीलीभीत से इटावा जिले तक 300 किमी लंबा और 10 किमी चौड़ा क्वारंटाइन कॉरिडोर बनाने का फैसला किया है। यह पांच जिलों से होकर गुजरेगा।
असल में अब तक लंपी वायरस का असर हरियाणा और राजस्थान से लगे पश्चिमी यूपी के जिलों में ही है। सरकार चाहती है कि वायरस को इसी इलाके में रोक दिया जाए। इसलिए क्वारंटाइन जोन बनाए जा रहे हैं।
अगर सरकार प्रोएक्टिव हो तो बड़ी से बड़ी मुसीबत का मुकाबला किया जा सकता है। जब राजस्थान में लंपी वायरस के मामले आने शुरू हुए थे उसी वक्त योगी आदित्यनाथ ने लंपी वायरस को रोकने के उपाय करने शुरू कर दिए थे। सबसे पहले जो पशु बाजार लगते थे उन पर पाबंदी लगाई। फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों में बड़े पैमाने पर गायों का वैक्सीनेशन शुरू किया। अब तीन सौ किलोमीटर का कॉरीडोर बनाने का फैसला लिया गया है, जिससे वायरस को आगे बढ़ने से रोका जा सके। योगी ने यही रणनीति कोरोना के दौरान अपनाई थी और कोरोना को काबू किया था। उनकी दुनिया भर में तारीफ हुई। अब योगी ने एक बार फिर लंपी वायरस से मुकाबला करने के मामले में दूसरों राज्यों को रास्ता दिखाया है। दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को योगी से सीखना चाहिए।
Who is responsible for the death of thousands of cows in Rajasthan?
Sordid visuals of thousands of cows dying of Lumpy Skin Disease (LSD) in several districts of Rajasthan have caused widespread anxiety among people. Hundreds of carcasses of dead cows have been found lying in the open, causing a nauseating stench, with crows and vultures feeding on them. Pictures taken with the help of drone cameras reveal a large number of carcasses spread over several square kilometre area. In some places, it is even difficult to keep a count of those dead.
Local residents from several districts of Rajasthan have put the death toll at more than 50,000, while the state government has said that 45,000 cows have died of the virus and nearly 11 lakh cattle have been affected.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Friday night, we showed scary ground reports from Jodhpur, Bhilwara, Bikaner, Barmer, Jalore, Ganganagar, Nagaur, Jaisalmer, Karauli, Dausa, Bharatpur, Ajmer, Boondi and Kota. Cow is regarded as holy mother in Hindu scriptures, but the Lumpy Skin Disease is spreading like an epidemic. Meanwhile, due to acute shortage of milk, prices have shot up by Rs 10 to 20 per litre in some districts of Rajasthan.
In my show, we showed dead cows lying in the open on streets in Jodhpur, the home district of Chief Minister Ashok Gehlot. Carcasses have been found lying in several streets with stray dogs, crows and vultures feeding on them. The stench is pervading in Jodhpur city. There are no proper arrangements for disposal of carcasses.
Our reporter Manish Bhattacharya, who visited Jodhpur, reported that more than 3,800 cows have died of LSD in Jodhpur alone. People are avoiding to walk on the streets because of carcasses. One of the local residents alleged that the carcasses have been thrown on streets by the local municipal corporation staff.
Lumpy Skin Disease is a contagious viral disease that affects cattle and causes fever, and later nodules appear on the skin. The disease is spread by mosquitoes, flies, lice, wasps and through direct contact among cattle, and also through contaminated food and water. The cattle dies after some time.
In Jodhpur, there is now acute milk shortage and milk prices have shot up by 50 per cent. Farmers who rear cattle are facing problems, as there is no assistance from the government for providing vet doctors and medicines. Farmers are forced to use their own line of treatment, thereby causing largescale death of cows. A local dairy owner said, milk production has dropped by nearly half after this epidemic.
Rajasthan government claims that Rs 30 crore have been allotted for vaccination of cattle, and till now more than 6.5 lakh cattle have been vaccinated, but the ground situation belies the claims. Experts say that vaccination is needed before the virus attacks cattle, but if vaccination where the virus has already spread, it becomes ineffective.
India TV reporter Manish Bhattacharya took visuals of carcasses lying on a vast area from his vehicle. The dead bodies were spread on an area that is one to 1.5 kilometre long. With no sign of assistance from government, local farmers in Jodhpur, Bikaner, Barmer, Jalore and Ganganagar have, with the help of some NGOs, started a campaign to protect their cattle, by giving medicines and spraying insecticide in cattle sheds.
Thirtyone out of 33 districts of Rajasthan have been affected by Lumpy Skin Disease. In Bikaner, government has claimed only 2,600 cows have died, but the visuals show the opposite. In a large area named Jodbeed, hundreds of carcasses are lying in the open, away from the city. The Mayor of Bikaner could not stand in the area for more than five minutes due to the pervading stench emanating from carcasses. The Mayor alleged that more than 10,000 cows have died in Bikaner alone, but the state government is concealing facts. She was countered by Gopal Ram Birda, commissioner of Bikaner Municipal Corporation, who claimed that Jodbeed has been a ground for disposal of cattle carcasses since several years. He also claimed that most of the cattle did not die of LSD.
The District Collector of Bikaner Bhagwati Prasad Kalal claimed: “Photos showing thousands of dead cattle dumped in a ground in Jodbeed is misleading. It is a demarcated zone to dispose of dead animals. Carcasses of animals that die in the city are brought here, the skin is removed, and the skeletons are left to dry. The contractor later picks up these bones to sell in the market. Almost 1,000 carcasses are always found here.” The Collector however admitted that more than 2,600 cattle have died due to LSD in Bikaner.
The claim that Jodbeed is a conservation centre for vultures is true. The number of vultures is increasing here, but the claim that such a large number of cows have died due to natural causes is misleading.
In Bhilwara, a separate quarantine centre has been created for cows affected by LSD. Sixty cattle are presently in this quarantine centre, and 13 cattle have recovered after treatment. The city’s Nagar Parishad commissioner Durga Kumari claimed that cattle affected by virus are immediately quarantined in this centre, they are provided food and medicines, so that they can recover soon.
The epidemic is widespread in western Rajasthan, while its effect in eastern part is less. The question is: since the spread of Lumpy skin virus had been in the news for last two months, why didn’t the state government take timely action to prevent these deaths? Chief Minister Ashok Gehlot was also told about the spread of the virus by several ex-ministers, and a virtual meeting was done two weeks ago, but in the meeting, former Health Minister Raghu Sharma had a spat with Agriculture and Animal Husbandry Minister Lal Chand Kataria. Raghu Sharma alleged that officials are not taking this disease seriously, and vet doctors are being transferred to other districts. BJP leader in a delegation met the Governor on Friday and demanded that the state government must take emergency measures.
It is clear that Rajasthan government is concealing the exact statistics about death of cattle due to lumpy skin disease. The state government has now become active, it has opened quarantine centres and vaccination of cows has begun, but all these measures should have been taken two months ago. Ashok Gehlot is an experienced chief minister and I fail to understand why he failed to gauge the enormity of the crisis. Experts say, since the virus is spreading fast, it is difficult to predict when the situation will be brought under control.
12 states in India are facing the onslaught of lumpy skin virus. In neighbouring Uttar Pradesh, the virus has spread in 23 out of 75 districts. Till now, nearly 12 lakh cows and other animals have been affected, but only 220 deaths have been reported. Nearly 10,000 cows recovered after treatment. UP government has started large-scale vaccination of cattle. Till now, nearly 9 lakh vaccines have been given. UP chief minister Yogi Adityanath has decided to create a a huge 300 km long and 10 km wide quarantine corridor from Pilibhit to Etawah district. This will pass through five districts.
The virus is presently more in Rajasthan, Haryana and parts of western UP. Authorities are trying to prevent the spread of the virus but creating quarantine zones.
A pro-active government can face any big challenge. When reports of spread of lumpy virus came from Rajasthan, Yogi Adityanath was soon off the mark. He started prevention measures in UP. Animal markets were banned, and a massive cattle vaccination programme began in western UP. This reminds us of how Yogi’s government had tackled the Covid challenge that earned him plaudits from across the world. Other chief ministers should learn from Yogi Adityanath.
राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ करना क्यों जरूरी था?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को दिल्ली में ऐतिहासिक ‘राजपथ’ (किंग्सवे) का नाम बदलकर ‘कर्तव्य पथ’ कर दिया। इसके साथ ही गुलामी का एक और प्रतीक इतिहास के गर्त में चला गया। मोदी ने इंडिया गेट के पास नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 28 फुट ऊंची प्रतिमा भी स्थापित की। यहां कभी ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम की मूर्ति हुआ करती थी। इसके साथ ही गुलामी के एक और प्रतीक का अंत हो गया।
राजपथ को ब्रिटिश शासन के दौरान किंग्सवे नाम दिया गया था, और आजादी के बाद इसका नाम बदलकर राजपथ कर दिया गया था। औपनिवेशिक शासन की अंतिम निशानियों को मिटाने के लिए मोदी ने राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ कर दिया। इंडिया गेट के पास आयोजित एक इन्द्रधनुषी समारोह में मोदी ने कहा, ‘गुलामी का प्रतीक किंग्सवे यानि राजपथ, आज से इतिहास की बात हो गया है, हमेशा के लिए मिट गया है। आज कर्तव्य पथ के रूप में नए इतिहास का सृजन हुआ है।’
इंडिया गेट पर नेताजी की प्रतिमा का अनावरण करते हुए मोदी ने कहा, ‘आज इंडिया गेट के समीप हमारे राष्ट्रनायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस की विशाल प्रतिमा भी स्थापित हुई है। गुलामी के समय यहाँ ब्रिटिश राजसत्ता के प्रतिनिधि की प्रतिमा लगी हुई थी। आज देश ने उसी स्थान पर नेताजी की मूर्ति की स्थापना करके आधुनिक और सशक्त भारत की प्राण प्रतिष्ठा भी कर दी है। वाकई ये अवसर ऐतिहासिक है, ये अवसर अभूतपूर्व है। हम सभी का सौभाग्य है कि हम आज का ये दिन देख रहे हैं, इसके साक्षी बन रहे हैं।’
मोदी ने नेताजी को ‘महामानव’ बताते हुए कहा, ‘सुभाषचंद्र बोस ऐसे महामानव थे जो पद और संसाधनों की चुनौती से परे थे। उनकी स्वीकार्यता ऐसी थी कि, पूरा विश्व उन्हें नेता मानता था। उनमें साहस था, स्वाभिमान था। उनके पास विचार थे, विज़न था। उनके नेतृत्व की क्षमता थी, नीतियाँ थीं। नेताजी सुभाष कहा करते थे- भारत वो देश नहीं जो अपने गौरवमयी इतिहास को भुला दे। भारत का गौरवमयी इतिहास हर भारतीय के खून में है, उसकी परंपराओं में है। नेताजी सुभाष भारत की विरासत पर गर्व करते थे और भारत को जल्द से जल्द आधुनिक भी बनाना चाहते थे। अगर आजादी के बाद हमारा भारत सुभाष बाबू की राह पर चला होता तो आज देश कितनी ऊंचाइयों पर होता! लेकिन दुर्भाग्य से, आजादी के बाद हमारे इस महानायक को भुला दिया गया। उनके विचारों को, उनसे जुड़े प्रतीकों तक को नजर-अंदाज कर दिया गया।’
मोदी ने कहा, ‘आज देश का प्रयास है कि नेताजी की वो ऊर्जा देश का पथ-प्रदर्शन करे। कर्तव्य पथ पर नेताजी की प्रतिमा इसका माध्यम बनेगी। देश की नीतियों और निर्णयों में सुभाष बाबू की छाप रहे, ये प्रतिमा इसके लिए प्रेरणास्रोत बनेगी। नेताजी सुभाष, अखंड भारत के पहले प्रधान थे जिन्होंने 1947 से भी पहले अंडमान को आजाद कराकर तिरंगा फहराया था। उस वक्त उन्होंने कल्पना की थी कि लालकिले पर तिरंगा फहराने की क्या अनुभूति होगी। इस अनुभूति का साक्षात्कार मैंने स्वयं किया, जब मुझे आजाद हिंद सरकार के 75 वर्ष होने पर लाल किले पर तिरंगा फहराने का सौभाग्य मिला।’
मोदी ने कहा, ‘तो ये गुलामी की मानसिकता के परित्याग का पहला उदाहरण नहीं है। ये न शुरुआत है, न अंत है। ये मन और मानस की आजादी का लक्ष्य हासिल करने तक, निरंतर चलने वाली संकल्प यात्रा है।’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘ये बदलाव केवल प्रतीकों तक ही सीमित नहीं है, ये बदलाव देश की नीतियों का भी हिस्सा बन चुका है। आज देश अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे सैकड़ों क़ानूनों को बदल चुका है। भारतीय बजट, जो इतने दशकों से ब्रिटिश संसद के समय का अनुसरण कर रहा था, उसका समय और तारीख भी बदली गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए अब विदेशी भाषा की मजबूरी से भी देश के युवाओं को आजाद किया जा रहा है। यानी, आज देश का विचार और देश का व्यवहार दोनों गुलामी की मानसिकता से मुक्त हो रहे हैं। ये मुक्ति हमें विकसित भारत के लक्ष्य तक लेकर जाएगी।’
मोदी ने 25 दिन पहले स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से किए गए अपने वादे को पूरा कर दिया है। उन्होंने न केवल उपनिवेशवाद की अंतिम निशानियों को हटा दिया, बल्कि देश के लोगों को इंडिया गेट से लेकर बोट क्लब तक एक ऐसी हरी-भरी मनोरम वीथिका दी है जिसके दोनों ओर नहर और फव्वारे हैं।
477 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित यह पैदल पथ 16.5 किलोमीटर लंबा है, मुख्य सड़क को पार करने के लिए 4 अंडरपास बनाए गए हैं, बिजली के 74 पुराने खंभों की मरम्मत की गई है और 900 नए खंभे लगाए गए हैं। इसके अलावा 400 से ज्यादा नई बेंच, 150 से ज्यादा डस्टबिन और 650 से ज्यादा साइनबोर्ड लगाए गए हैं। इंडिया गेट से बोट क्लब तक पूरे इलाके में विभिन्न राज्यों के पकवानों के स्टॉल, शौचालय और पीने के पानी के फाउंटेन लगाए गए हैं। हरे-भरे पेड़ों वाले लॉन के बीचों-बीच लाल बलुआ पत्थर से बनी बेंचें लगाई गई हैं।
नेताजी की इस 28 फुट ऊंची प्रतिमा का वजन 65 मीट्रिक टन है। इसे 280 मीट्रिक टन वाली काली ग्रेनाइट की एक ही चट्टान को तराश कर बनाया गया है। नेताजी की इस प्रतिमा को बनाने में करीब 26,000 घंटे का वक्त लगा। इस प्रतिमा को मैसुरू के शिल्पकार अरुण योगीराज और उनकी टीम ने बनाया है। इस मूर्ति को तेलंगाना के खम्मम से दिल्ली तक 100 फुट लंबे और 140 पहियों वाले स्पेशल ट्रक में लाया गया।
नया संसद भवन, केंद्रीय सचिवालय, उपराष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री आवास अब अगले चरण में बनकर तैयार होंगे। गुरुवार को मोदी ने लाल बलुआ पत्थर की बेंच, पगडंडियों और नहरों से भरे इस विशाल पथ को बनाने वाले मजदूरों से मुलाकात की। उन्होंने मजदूरों से वादा किया कि वह अगले साल गणतंत्र दिवस परेड में उन्हें बतौर स्पेशल गेस्ट बुलाएंगे।
राजपथ को कर्तव्य पथ का नाम देना जरूरी था। नेताजी सुभाश चंद्र बोस की प्रतिमा की स्थापना करना जरूरी था। गुलामी की मानसिकता के प्रतीकों को मिटाना जरूरी था। यह देश की भावना है, यह हमारे राष्ट्र का आत्म गौरव है। लेकिन इसके साथ इस पूरे निर्माण कार्य का एक व्यावहारिक पक्ष भी है। राजपथ के दोनों तरफ स्थित जिन सरकारी भवनों में बरसों से दफ्तर चल रहे थे, वे पुराने हो चुके थे। वहां सुरक्षा और एयर कंडिशनिंग से लेकर पार्किंग की समस्याएं बढ़ती जा रही थी।
नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने पाया कि इन सरकारी भवनों के गलियारों में पुरानी फाइलों के अंबार लगे हुए हैं। उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों के दफ्तरों को नया स्वरूप देने के लिए, उन्हें ज्यादा चुस्त और कुशल बना कर नई अत्याधुनिक तकनीक से लैस करने के लिए एक प्लान पर काम किया, ताकि नए भारत को एक नई पहचान मिल सके। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर तेजी से काम चल रहा है और अब यह अंतिम चरण में है। दुनिया जल्द ही एक सशक्त भारत और इसकी गौरवशाली विरासत के प्रतीकों को देखेगी।
Why was it necessary to rename Raj Path as Kartavya Path?
Another symbol of slavery was consigned to the dustbin of history on Thursday when Prime Minister Narendra Modi renamed the historic ‘Rajpath’ (Kingsway) in Delhi as ‘Kartavya Path’. He also installed a 28-foot statue of Netaji Subhash Chandra Bose at the India Gate canopy, under which the British monarch George V once stood. This marked the end of another symbol of what Modi called ‘mental slavery’.
Raj Path was initially named Kingway during British Rule, and after independence, it was renamed Raj Path. To remove the last vestiges of colonial rule, Modi renamed Raj Path as Kartavya Path. In his address at the colourful function near India Gate, Modi said, “Rajpath, the symbol of slavery, is now part of history. It has been erased forever. Today, a new history has been created in the form of Kartavya Path”.
Unveiling the statue of Netaji under the India Gate canopy, Modi said, “Today we have installed a huge statue of our ‘rashtra nayak’ (hero of the nation) Netaji Subhash Chandra Bose. During the period of slavery, there was the statue of the representative of British monarchy here. By installing Netaji’s statue here, we have kindled the soul of a modern and strong India. This is a historic moment, an opportunity that is unprecedented. We are fortunate to be witness to this historic day.”
Modi praised Netaji as a ‘maha manav’ (great man). He said: “He was beyond the challenges of posts and resources. His acceptance was such that the entire world respected him. He had courage and self-respect. He had ideas and vision. He had the leadership capability and policies. Netaji used to say, ‘India is not a country which will forget its glorious history. India’s glorious history is in the blood of every India and in its traditions.’ Netaji was proud of India’s heritage and he wanted to modernize India at a fast pace. Had India followed the path of Subhash Babu after Independence, our country would have attained big heights. But unfortunately, our national hero was forgotten after independence. His thoughts and all the symbols related to him were ignored.”
“It will be our endeavour to ensure that Netaji’s energy would show the path to our country. Netaji’s statue on Kartavya Path will become the medium. This statue will inspire us so that Netaji’s imprint on our policies and decisions must remain forever”, Modi said. “Netaji was the first prime minister of undivided India who hoisted the tricolour much before 1947 after liberating Andaman Islands. At that time, he must have dreamed how we would have felt after hoisting the tricolour on Red Fort. I had this feeling myself, when I had the fortune to hoist the tricolour on the completing of 75 years of Azad Hind government.”
Modi said, “this is not the first time that we removed the mindset of slavery. This is neither the beginning, nor the end. This is a continuous ‘sankalp yatra’ which will go on till we achieve the objective of freedom of mind.”
The Prime Minister said, “This change is not limited to symbols only, it has become part of our policies. We have removed hundreds of laws that were in force since British rule. India’s budget, which was being presented earlier in sync with British time and their parliament for decades, is now being placed on different date and time. By implementing the National Education Policy, we are going to free our youths from the compulsions of studying foreign language. Today our ‘vichar’ (thoughts) and ‘vyavahar’(practice) are being freed from the slavery mindset. This liberation will take us to our aim of a developed India”.
By renaming Raj Path and installing Netaji’s statue under the India Gate canopy, Modi has fulfilled his promise given 25 days ago on Independence Day from the ramparts of Red Fort. He has not only removed the last vestiges of colonialism, but also provided to Indians, a lush, scenic avenue with lawns on both sides along with water canals and fountains, from India Gate to Boat Club.
Built at a cost of Rs 477 crore, the pedestrian walkway is spread across 16.5 km, with four underpasses built at busy junctions to segregate traffic, 74 old light poles restored and 900 new ones added, more than 400 benches, 150 dustbins and over 650 new signages. There are kiosks for state-specific food, toilets and drinking water fountains in the entire area from India Gate towards the former Boat Club. Benches made of red sandstone have been installed in the midst of lawns with lush greenery and trees.
The 28-foot high Netaji statue weighs 65 metric tonnes. It has been sculpted from a huge black granite rock weighing 280 tonnes brought from Khammam, Telangana. It took 26,000 hours to make the statue. Built by Mysuru sculptor Arun Yogiraj and his team. It was brought in a 100-foot long truck having 140 wheels.
The new Parliament building, Central Secretariat, Vice President House and Prime Minister House will now be completed in the next phase. On Thursday, Modi met the labourers who worked on building the huge avenue, with red sandstone benches, pathways and canals. He promised to invite them as guests at next year’s Republic Day parade.
Raj Path deserved to be renamed Kartavya Path. Netaji’s statue deserved to be installed under the India Gate canopy. Removal of all symbols and vestiges of slavery mindset was necessary. It is an issue of national pride and self-respect. Along with this is a practical issue, too. Central government buildings on both side of Raj Path had become old and overcrowded. There were frequent problems relating to vehicle parking, security and air-conditioning.
When Modi took over, he found loads of old files lying in the corridors. He worked on a new plan to make the offices of different ministries efficient and equipped with new state-of-the-art technology, so that a new India can get a new makeover. Work is going on at a fast pace on the Central Vista project, and it is in the final stage. The world shall see the symbols of a stronger India and its proud heritage, soon.
Pathetic conditions in Patna Medical College Hospital
Tejashwi Yadav, the deputy chief minister of Bihar, who holds the health portfolio, made a surprise midnight visit to the state’s largest hospital, Patna Medical College Hospital, on Tuesday night, and was surprised to see the pathetic conditions prevailing there.
Unclaimed bodies were lying in the corridor, patients were sleeping on the floor, some had tied saline drop bottles by ropes to overhead lights, the hospital had only Paracetamol and pain killer tablets to give to patients, and the most important thing of all: doctors were absent. The pharmacy in-charge was also absent.
Critical patients, supposed to be inside ICU, were lying on stretchers, unattended. There was nobody to listen to the problems of the relatives accompanying the patients.
This is an example of Chief Minister Nitish Kumar’s 17-year-long ‘sushasan’ (good governance) . On Wednesday, Tejashwi Yadav held a meeting with civil surgeons and promised to improve the conditions of hospitals. He said, ‘conditions will definitely improve’. But our reporter, Nitish Chandra, who visited PMCH on Monday morning, found no change in the conditions prevailing in the hospital.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Wednesday night, we showed visuals of how the state’s largest hospital was left at the mercy of nurses and trainee docs, while all senior doctors were absent from duty. Tejashwi Yadav also visited the Gardiner Road Hospital and Gardanibagh government hospital, but, by then, the word had spread, and he found doctors on duty in the remaining two hospitals.
Tejashwi Yadav first visited the general ward of PMCH. There was not a single doctor present on duty. Relatives of patients, on seeing the minister, came to him and narrated their grievances. Beds were broken, there were no pillows and bed sheets, patients were lying on mattresses, relatives were carrying saline drip bottles in their hands, as no stand was available, the ward was crowded and the stench of urine from nearby washrooms that emanated was nauseating. The relatives showed the minister the dirty washrooms that were unfit for use. Tejashwi could not summon the courage to enter the washrooms for inspection.
Most of the relatives said they were poor and had no money to buy medicines from outside and the hospital pharmacy had no medicines prescribed by doctors. They alleged that doctors, nurses and other staff turned a blind eye to their requests. Tejashwi then went to the pharmacy, but the manager was missing. The pharmacy was being run by two employees, kept on contract. They could not show him the list of medicines available. On his insistence, one employee told him that only 46 medicines were available, and the list was with the in-charge who would come in the morning.
Normally, nearly 600 types of medicines should have been available in the hospital pharmacy for giving to patients, free of cost.
Patna Medical College Hospital boasts of having 1,675 beds, and the state government has kept a target of increasing it to 5,462 beds. Nearly Rs 5,500 crore budget was earmarked for PMCH last year. On an average, nearly four thousand patients visit PMCH daily.
Tejashwi went to the doctors’ chambers. He could not find a single senior doctor present. There were only two junior doctors, who were post-graduate medical students, present. The junior doctors said, their senior had gone for dinner since 11 pm. Tejashwi found similar conditions in another ward, where only nurses were present.
There are 36 wards in PMCH. A total of 586 posts of doctors and professors have been sanctioned, but presently, there are only 331 doctors, while 255 posts are vacant.
When Tejashwi Yadav wanted to see the hospital superintendent, it was found that he, too was absent. Tejashwi called him on phone to come to the hospital immediately. He then went to the control room, where registration of patients is done. He wanted to check the doctors’ roster and the names of doctors on duty, but he was told no such lists or rosters were available. He was told there was no doctor handling the control room. The man sitting in the control room was a male nurse. When Tejashwi asked him, what business he had to be there, the male nurse replied: ‘I have been asked to be on duty here’.
While returning, Tejashwi noticed a closed room. When he asked, who was inside, he was told, it is the doctors’ room. The room was opened, and Tejashwi found a doctor lying, deep in sleep, on a bed, inside a mosquito net. Hearing the commotion, the man woke up and told the minister, ‘I am Dr. Anees’.
While leaving PMCH, Tejashwi Yadav said, strict action will be taken against officials and doctors for carelessness and dereliction of duty. PMCH medical superintendent Dr Indrashekhar Thakur, also said, action would be taken.
These were mere assurances. I sent India TV reporter Nitish Chandra to PMCH on Wednesday morning. He was stopped by security guards from entering the hospital. The reporter managed to speak to relatives of patients who were coming out. They said, conditions inside the hospital have not improved an inch and there was still shortage of doctors and medicines.
On Wednesday, news came about a clash with doctors and relatives of patients after a child died in the Children’s War. The child’s family alleged that the death was due to carelessness of doctors, and the child did not get timely treatment. Other relatives too joined the family members, and after a nasty quarrel, the two sides were engaged in the scuffle. By evening, the junior doctors went on flash strike.
I think it was a right decision of Tejashwi Yadav to go to the hospital unannounced and see with his own eyes, the achievements of ‘Sushasan Babu’ (Nitish Kumar). People from poorer classes have the right to treatment in government hospitals. Even the common man on the street is feeling unsafe.
On Wednesday, two persons were murdered in Patna, a policeman was killed in Siwan, and a mining department inspector sought security after he got threats from local mafia. The number of murders and ‘rangdari’ (extortion by goons) incidents has increased. People are questioning whether the goons are more afraid of police and administration. People also say that the conditions in Bihar hospitals have been pathetic since long.
But the question is: Nitish Kumar has been chief minister of Bihar for the last 17 years. Who gave him the title ‘Sushasan Babu’? Is Nitish Kumar not responsible for deterioration of law and order and conditions in hospitals?
If he believes that by bringing all opposition leaders like Sharad Pawar, Rahul Gandhi, Akhilesh Yadav and Sitaram Yechury on a single platform, the conditions in Bihar will improve, he must do so. Maybe Nitish Kumar is in Delhi for the last three days in the hope of a magic to improve the life of people in Bihar.
मदरसों का आधुनिकीकरण क्यों जरूरी है?
यूपी और बिहार के ज़्यादातर प्राइवेट मदरसों की हालत आज की तारीख में बेहद खराब है। मैं इसके बारे में विस्तार से बताऊंगा लेकिन सबसे पहले मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि मंगलवार को मौलानाओं और उलेमा ने यूपी सरकार के गैर-सहायता प्राप्त मदरसों का सर्वे करने के फैसले के बारे में क्या कहा।
मौलानाओं ने, जिनमें से ज्यादातर यूपी में मदरसे चलाते हैं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा बुलाई गई एक बड़ी बैठक में हिस्सा लिया। मीटिंग में ज्यादातर उलेमा ने यूपी की योगी सरकार को चेतावनी दी और इल्जाम लगाया कि राज्य सरकार मदरसों की छवि खराब करने की कोशिश कर रही है। दिन भर चली बैठक के अंत में ऐलान किया गया कि उलेमा किसी दबाव में नहीं झुकेंगे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार मदरसों को हर संभव मदद दे, उनका आधुनिकीकरण करे और मदरसे के छात्रों के लिए बेहतर शिक्षा की व्यवस्था करे। उलेमा ने कहा कि उन्हें सर्वे से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन उनमें से ज्यादातर ने यूपी सरकार की नीयत पर शक जताया। कुछ मौलानाओं ने तो यहां तक कहा कि इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए और अगर जरूरत पड़े तो संसद का घेराव भी करना चाहिए।
ज्यादातर उलेमा सभी गैर सहायता प्राप्त मदरसों का 25 अक्टूबर तक सर्वे पूरा करने के योगी सरकार के आदेश से नाखुश थे। जमीयत द्वारा बुलाई गई बैठक में (1) मामले से निपटने के लिए उलेमाओं की कमेटी बनाने और (2) 24 सितंबर को देवबंद के दारुल उलूम में अगली बैठक में आगे की रणनीति बनाने की बात तय हुई। जमीयत नेता मौलाना महमूद मदनी ने आरोप लगाया कि सरकार अल्पसंख्यक समुदाय को शक की नजर से देख रही है। उन्होंने कहा, राज्य सरकार को मदरसों का सर्वे कराने का आदेश जारी करने से पहले मुस्लिम संगठनों से सलाह मशविरा करना चाहिए था।
कुछ मौलानाओं ने सवाल किया कि क्या सरकार को चंदे से चलने वाले मदरसों का सर्वे करने का हक है। इस मीटिंग में सबसे पहले तो मदरसों के प्रिंसिपल्स को बताया गया कि सरकार का आदेश क्या है, सरकार जो सर्वे कर रही है उसके सवालों के जबाव कैसे देने हैं, अपने रिकॉर्ड्स को दुरूस्त कैसे करना है, आमदनी और खर्चे का हिसाब कैसे रखना है। मजे की बात यह है कि मीटिंग के बाद मौलाना मदनी, मौलाना नियाज अहमद फारूकी या कमाल फारूकी में से किसी ने भी यूपी सरकार के फैसले का विरोध नहीं किया। किसी ने भी यह नहीं कहा कि सरकार गलत कर रही है। सबने कहा कि यूपी सरकार का फैसला ठीक हो सकता है, लेकिन उसकी नीयत पर शक है।
बैठक में कई मौलानाओं ने असम में स्थानीय अधिकारियों द्वारा कुछ मदरसों पर बुलडोजर चलवाने के फैसले का विरोध किया। इन मदरसों के कुछ शिक्षकों के अल कायदा और अन्य कट्टरपंथी संगठनों के साथ संबंध की बात सामने आई थी।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के मेम्बर कमाल फारूकी ने कहा कि योगी सरकार ने मदरसों का सर्वे कराने का जो फैसला किया है, वह कानूनी तौर पर सही है। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि कुछ मदरसों में कमियां हों, लेकिन ये कमियां सरकारी सर्वे से दूर नहीं होगी, स्टीयरिंग कमेटी इन कमियों को दूर करने में मदरसों की मदद करेगी। लेकिन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के नेशनल सेक्रेटरी मौलाना नियाज अहमद फारूकी ने कहा कि मदरसों की हालात मुसलमान खुद ठीक कर लेंगे, और अगर सरकार ने आंख टेढ़ी की तो फिर उसी तरह जवाब दिया जाएगा।
यूपी सरकार प्राइवेट मदरसों का सर्वे राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सिफारिश पर करवा रही है। आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि एक प्राइवेट मदरसे में बच्चों को चेन से बांध कर रखा गया था, जबकि एक दूसरे मदरसे में बच्चों को बेरहमी से पीटा गया था। ऐसी कई घटनाएं सामने आने के बाद यूपी सरकार ने प्राइवेट मदरसों के सर्वे की सिफारिश को मानने का फैसला किया गया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, यूपी में इस वक्त 16 हजार से ज्यादा मदरसें हैं, जिनमें से सिर्फ 560 मदरसे सरकारी मदद से चलते हैं। यानी कि सिर्फ 3.5 फीसदी मदरसों को सरकारी मदद मिलती है, जबकि बाकी के 96.5 फीसदी मदरसे चंदे से चलते हैं।
मैंने इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स से लखनऊ, कानपुर, उन्नाव, बस्ती, गोंडा, गोरखपुर, सहारनपुर, बुलंदशहर, मेरठ, मुरादाबाद और बागपत में गैर सहायता प्राप्त मदरसों की असली हालत देखने को कहा। जब जमीनी हकीकत सामने आई तो पता चला कि ज्यादातर मदरसे बहुत ही बुरी हालत में थे।
मंगलवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने गाजियाबाद के पास लोनी के एक मदरसे की तस्वीरें दिखाई थीं। इस मदरसे में एक बड़ा हॉल है जिसमें बच्चे रहते भी हैं, उसी में पढ़ते भी हैं और रात को वहीं दरी बिछाकर सो भी जाते हैं। अधिकांश बच्चे गरीब परिवारों से आते हैं और उनके पास फीस देने के लिए पैसे नहीं होते हैं। मदरसे के मैनेजर ने दावा किया कि बच्चों को उर्दू और अरबी के अलावा अंग्रेजी और हिंदी भी पढ़ाई जाती है। इंडिया टीवी के रिपोर्टर ने जब टीचर से बात की, तो पता चला कि अंग्रेजी में उनका हाथ तंग था। 13 से 14 साल तक के बच्चों को अभी ए, बी, सी, डी सिखाई जा रही थी।
इसमें हंसने की कोई बात नहीं है। हम सभी को बैठकर थोड़ा आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। इसमें इन बच्चों की कोई गलती नहीं है। उनके पास अच्छे टीचर नहीं हैं, पढ़ने की सुविधा नहीं है। आमतौर पर स्कूल जाने वाले बच्चों के सपने बड़े होते हैं। वे डॉक्टर, आईएएस, पीसीएस, साइंटिस्ट या इंजीनियर बनना चाहते हैं, लेकिन जब हमारे रिपोर्टर ने मदरसे के बच्चों से पूछा तो उनमें से ज्यादातर ने कहा कि वे काजी, हाफिज, मुफ्ती या मौलाना बन जाएं, वही बहुत है।
मेरठ में स्थित एक दूसरे मदरसे का हाल गाजियाबाद के मदरसे से बेहतर था। यहां कमरे ठीक-ठाक बने थे, खिड़की दरवाजे ठीक थे, कमरे में दरियां बिछी थीं, और बच्चों के पास पढ़ाई के लिए छोटी-सी डेस्क भी थी। लेकिन मदरसे में सिर्फ दीनी तालीम पर जोर दिया जाता है, कुरान और अरबी पढ़ाई जाती है। इंग्लिश, साइंस और मैथ्स जैसे सब्जेक्ट्स से यहां के बच्चों का ज्यादा वास्ता नहीं था।
ज्यादातर प्राइवेट मदरसों का न तो को सिलेबस होता है, न उनके विषय तय होते हैं और न ही शिक्षकों की योग्यता तय होती है। ये मदरसे चंदे से चलाए जाते हैं। हमारे संवादातता मेरठ के एक दूसरे मदरसे में गए। यह मदरसा कई साल से चल रहा है, और लोगों की मदद से बिल्डिंग बन गई है। इस मदरसे में कुर्सी और टेबल का इंतजाम भी हो गया है, शिक्षक भी ठीक-ठाक हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि बच्चों को सिर्फ उर्दू में तालीम मिल रही है। शिक्षकों को भी थोड़ी ठीक सैलरी मिल जाती है।
मेरे कहने का मतलब है कि अगर यूपी सरकार एक सर्वे करवा कर ये सारी डिटेल इकट्ठा करना चाहती है, और मदरसों की हालत में सुधार करना चाहती है, तो इसमें दिक्कत क्या है? यदि राज्य सरकार किसी तरह की मदद देगी तो मदरसों को निश्चित रूप से अच्छे शिक्षक मिलेंगे और छात्रों को आधुनिक शिक्षा मिलेगी। मेरठ के मदरसे में 4 शिक्षक थे जिन्हें हर महीने 13,000 रुपये सैलरी दी जाती है। यह पैसा मोहल्ले के लोग चंदे के जरिए जुटाते हैं।
मुझे लगता है कि ओवैसी जैसे मुस्लिम नेताओं को इन मदरसों में जाना चाहिए और देखना चाहिए कि वहां बच्चे किन हालात में पढ़ाई कर रहे हैं। ज्यादातर मदरसे एक या दो कमरों के घर में चल रहे हैं। छोटे-छोटे शहरों या गांव की तो बात ही छोड़ दीजिए, यूपी की राजधानी लखनऊ में भी घरों में मदरसे चल रहे हैं। हमारी संवाददाता रुचि कुमार लखनऊ के काकोरी इलाके में गई, और पाया कि वहां भी घर के अंदर मदरसा चल रहा था। वहां एक कमरा था जिसमें मौलवी कुरान और उर्दू के साथ-साथ इंग्लिश और गणित भी पढ़ा रहे थे, लेकिन न तो इन सब्जेक्ट्स का कोई कोर्स था और न ही किसी बोर्ड की किताबें थीं।
लखनऊ में बेशक कुछ मान्यता प्राप्त आलीशान मदरसे भी हैं जो सरकारी मदद से चलाए जा रहे हैं। लखनऊ के ऐशबाग में स्थित दारुल उलूम फिरंगी महल मदरसे में सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं। यहां लड़के और लड़कियां, दोनों पढ़ाई करते हैं। दीनी तालीम के साथ-साथ साइंस, मैथ्स, हिंदी, इंग्लिश, हिस्ट्री और कम्प्यूटर साइंस, सारे सब्जेक्ट्स पढ़ाए जाते हैं। मदरसे में कुरान शरीफ के साथ-साथ NCERT की किताबें भी पढ़ाई जाती हैं। यहां बड़े-बड़े क्लास रूम हैं, प्लेग्राउंड है और एक बड़ी लाइब्रेरी भी है।
जब छात्रों को आधुनिक शिक्षा मिलती है तो उसका नजरिया भी पूरी तरह बदल जाता है। छात्र भी ये समझने लगते हैं कि उनके सामने करियर के कितने विकल्प हैं। लखनऊ के इस बड़े मदरसे के छात्रों ने खुलकर कहा कि उन्हें डॉक्टर और इंजीनियर बनना है। मौलाना खालिद रशीद फिरंगीमहली ने कहा कि उनका मकसद बच्चों को दीन के साथ दुनिया की भी तालीम देना है। उन्होंने कहा, ‘जब हमारी बेटियां आगे बढ़ेंगी, तभी देश आगे बढ़ेगा।’
योगी आदित्यनाथ की सरकार का प्राइवेट मदरसों के सर्वे के पीछे का मकसद सभी मुस्लिम बच्चों को बराबरी का मौका देना है। यूपी के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री दानिश अली अंसारी ने कहा कि सर्वे को लेकर जो कंफ्यूजन फैलाया जा रहा है वह ठीक नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हमारी सरकार का मकसद मदरसों की हालत को बेहतर करना है, जिससे मुस्लिम बच्चों को अच्छी शिक्षा और रोजगार मिल सके।’
दो बातें तो साफ हैं। एक तो यह कि सारे मदरसों की हालत खराब नहीं है। बहुत सारे मदरसे ऐसे हैं जिनमें पढ़ाई का अच्छा इंतजाम है, अच्छे क्लासरूम हैं, अच्छे शिक्षक हैं। कई मदरसों में कंप्यूटर से लेकर कुरान तक सारे विषयों की पढ़ाई होती है। लेकिन यह भी सच है कि ज्यादातर मदरसों की हालत खराब है। वहां न तो अच्छे क्लासरूम हैं, न ही प्रशिक्षित शिक्षक हैं और न ही पढ़ाई के लिए जरुरी सुविधाएं हैं।
दूसरी बात यह कि मौलाना मदनी को भी सर्वे से शिकायत नहीं है, लेकिन उन्हें योगी सरकार की नीयत पर शक जरूर है। इसलिए मुझे लगता है कि मौलाना मदनी जैसे पॉजिटिव सोच रखने वाले मौलानाओं को सर्वे पूरा होने का इंतजार करना चाहिए। उन्हें मदरसों को इस सर्वे में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। मुझे लगता है कि सरकार की नीयत साफ है। प्राइवेट मदरसे चलाने वाले भी मदद चाहते हैं, बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं। लेकिन जैसे ही इसमें सियासत घुसती है, वैसे ही मुश्किल शुरू हो जाती है। योगी ने प्राइवेट मदरसों के सर्वे का आदेश दिया, तो बिना आदेश की डिटेल जाने समझे औवैसी ने इसे ‘मिनी-NRC’ बता दिया।
चूंकि मदरसों के सर्वे का आदेश योगी ने दिया इसलिए बहुत से मौलानाओं ने सरकार की नीयत पर शक जता दिया। चूंकि योगी ने पहल की इसलिए जिन राज्यों में गैर-बीजेपी दलों की सरकारें हें उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि वे अपने यहां मदरसों का सर्वे बिल्कुल नहीं करवाएंगे। बिहार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मोहम्मद जमा खान ने कहा कि उनके राज्य में मदरसों के इस तरह के सर्वे की जरूरत ही नहीं है। उन्होंने कहा कि बीजेपी को हर मसले पर हिंदू-मुस्लिम करने की आदत पड़ गई है।
गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के जो हालात यूपी में है, वैसा ही बिहार में भी है। ज्यादातर मदरसे एक-एक कमरे में चल रहे हैं। मदरसों में देश विरोधी गतिविधियों की खबरें भी आई थीं। कुछ दिन पहले मोतिहारी के मदरसे से NIA ने एक मौलवी को गिरफ्तार किया था, जिसके संबंध आंतकवादी संगठनों से थे। चूंकि वह बाहर से मदरसे में पढ़ाने आया था, इसलिए वहां के लोगों को उसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। कहने का मतलब यह है कि अगर मुस्लिम बच्चों का भला करना है तो मदरसों की हालत सुधारने की जरूरत है।
Why modernization is a must for all madarsas
The conditions of most of the private madarsas in UP and Bihar are today patethic, but before sharing the details with you, I would like to disclose what maulanas and ulema said on Tuesday about the UP government’s move to conduct a survey of unaided madarsas.
The maulanas, most of whom aree running madarsas in UP, were taking part in a top-level meeting convened by Jamiat Ulema-e-Hind. In the meeting, most of the ulema warned the Yogi government in UP and alleged that the state government was trying to project the madarsas in a bad light. At the end of the day-long meeting, it was announced that the ulema will not bow under any pressure. They said that the state government should extend all possible assistance and modernize the madarsas, and make arrangements for better education facilities for madarsa students. The ulema said they had no objection to the survey, but most of them expressed doubts over the intentions of the UP government. Some maulanas suggested that the community should approach the Supreme Court, and, if need be, gherao Parliament.
Most of the ulema were unhappy with the order issued by Yogi government to complete the survey of all unaided madarsas by October 25. The meeting convened by Jamiat decided (1) to form a committee of ulema to deal with the issue and (2) chalk out a plan of action at the next meeting in Darul Uloom, Deoband on September 24. Jamiat leader Maualana Mehmood Madani alleged that the minority community is being looked at in suspicion by the government. He said, the state government should have consulted Muslim organizations before issuing the order to conduct survey of madarsas.
Some of the maulanas questioned about whether the government had a right to conduct a survey of those madarsas which are being run on donations. At the meeting, the principals of madarsas were told in detail about the government order for survey. They were advised how to maintain their accounts and how to respond to the questionnaires. At the end of the meeting, neither Maulana Madani, nor Maulana Niaz Ahmed Farooqui or Kamal Farooqui opposted the UP government’s order. None of them questioned the government’s move, but they raised the issue of intention on part of the UP government.
Several maulanas in the meeting opposed the demolitions of a few madarsas in Assam by local authorities using bulldozers, after it was found that some of the teachers in the madarsas had connections with Al Qaeda and other radical outfits.
All India Muslim Personal Law Board member Kamal Farooqui said that the UP government’s order was legally valid, and if shortcomings in some madarsas are found during survey, the steering committee would help the madarsas in removing them. But, Jamiat national secretary Maulana Niaz Ahmed Farooqui said, Muslim community on its own will improve the conditions of madarsas, and if the government took a hard position, “we will give them a reply”.
The UP government decided to conduct a survey of unaided madarsas after the National Commission for Protection of Child Rights (NCPCR) in its report mentioned that in one madarsa, a student was kept bound in chains, while in another madarsa, a student was badly beaten up by the teacher. In UP, there are more than 16,000 madarsas, out of which only 560 madarsas, roughly 3.5 per cent, get aid from the state government. Nearly 97 per cent madarsas in UP are being run by donations.
I asked India TV reporters to conduct a survey of unaided madarsas in Lucknow, Kanpur, Unnao, Basti, Gonda, Gorakhpur, Saharanpur, Bulandshahr, Meerut, Moradabad and Baghpat. The ground reality check that emerged showed that most of the madarsas were in a pathetic condition.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Tuesday night, we showed visuals from a madarsa in Loni near Ghaziabad, where the children lived in a big hall, where they studied and slept at night on ‘durries’. Most of the children came from poor families and had no means of paying fees. While the madarsa manager claimed that the children were being taught English and Hindi, apart from Urdu and Arabic, our India TV reporter spoke to the teacher, whose knowledge of English was pathetic. Children as old as 13 to 14 years were being taught the English alphabets.
This is nothing to be laughed at. It should make all of us sit up and do some introspection. It’s not the mistake of children. They lack good teachers and are deprived of proper learning material. Normally, children dream of becoming a doctor, engineer, a scientist or a bureaucrat, but when our reporter spoke to most of them, they said, they wanted to become ‘qazi’, ‘hafeez’, ‘mufti’ or ‘maulana’.
In another madarsa in Meerut, the rooms were satisfactory, there were windows, and children had desks in front of them for studies. But the thrust of learning was on religious scriptures. They were being taught Urdu, Arabic and the Holy Quran. Most of the children were being deprived of subjects like English, Science, Maths and Computer Science.
Most of the madarsas do not have a syllabus or a curriculum, the teachers are not qualified, and the madarsas run on donations. Our reporter visited another madarsa in Meerut. It was being run in a building, built from donations by local residents, there were chairs and tables, there were teachers, but the problem is that the medium of instruction is only Urdu. The teachers get a paltry sum as salary.
My point is: if the UP government wants to collect all these details through a survey, and try to improve the conditions of madarsas, where is the need to object? If the state government provides aid, the madarsas will surely get good teachers and students may get modern education. At the madarsa in Meerut, there were four teachers, getting Rs 13,000 as monthly salary, raised through donations from local people.
I think Muslim leaders like AIMIM chief Asaduddin Owaisi should visit these madarsas and watch the conditions in which the students are getting education. Most of the madarsas are being run in one or two rooms, even in the state capital like Lucknow. India TV reporter Ruchi Kumar visited a madarsa in Kakori near Lucknow, and found that a madarsa was being run in a private residence. There was a room where the moulvi was teaching them Urdu, Holy Quran, English and Maths, but there was no curriculum that was being followed, nor any NCERT book was being used to impart education.
There are, of course, some big madarsas in Lucknow, that are being run with government assistance. The Darul Uloom Firangimahal Madarsa in Aishbagh, Lucknow, has modern facilities. Boys and girls study here. Along with religious subjects, education in Science, maths, Hindi, English, History and Computer Science is being imparted. There are big classrooms where students bring NCERT books along with Holy Quran for studies. There is a big library and a playground too.
When students get modern education, their entire world outlook undergoes change. The students find a plethora of career options before them. The students in the big madarsa in Lucknow were openly saying they wanted to be doctors, engineers and techies. Maulana Khalid Rashid Firangimahali said, his aim is to impart both religious and modern education to students. “If our daughters move ahead, the nation will move ahead”, he said.
The main aim of Yogi Adityanath government is to provide equal education opportunities to Muslim children, so that they can look towards a brighter future. UP Minority Affairs Minister Danish Ali Ansari said, it is wrong to spread confusion about the survey. “Our government’s aim is to improve the conditions of madarsas, so that Muslim children can get good jobs after education”, Danish Ali Ansari said.
Two points are clear: One, the conditions in all the madarsas are not as pathetic, many madarsas have good arrangements, where students get education about both computer science and Quran. But the fact cannot be brushed aside that the conditions in most of the madarsas are poor. There are no proper classrooms, there is lack of trained teachers and lack of education material.
Two, Jamiat leader Maulana Madni has no complaint about the survey, but he has his suspicions about Yogi. I feel, the ulema having a positive outlook like Maualana Madni should wait for the results of the survey to come out. They should rather encourage all madarsas to participate in the survey. I believe, Yogi government’s intentions are clear. The unaided madarsas do need help to improve the education of children. But, problems begin the moment politics is injected into this issue. When Yogi government issued the order for survey of madarsas, Owaisi, without going through the detailed order, described it as a “mini-NRC”.
Since it was Yogi’s order, most of the ulema looked at it with suspicion. Since it was Yogi who took the initiative, other non-BJP governments in states said they would not conduct the survey in their respective states. Bihar Minister for Minority Affairs Mohammed Zama Khan said, such a survey of madarsas in his state is not needed. He blamed the BJP for making it a Hindu-Muslim issue. The conditions of unaided madarsas in Bihar are as pathetic as in UP. Most of them run in single rooms. A few days ago, a moulvi at a madarsa in Motihari, Bihar was nabbed by NIA for his pro-terror activities. Since he used to come and teach in the madarsa, the local management did not know much about his pro-terror activities. The moot point is: Muslim children must get modern education in a good atmosphere.
क्या नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट कर पाएंगे?
जनता दल (यूनाइटेड) के प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों तमाम विपक्षी दलों के नेताओं से मिल रहे हैं। उनका लक्ष्य है, 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले सभी गैर-बीजेपी दलों को एक मंच पर लाना।
31 अगस्त को पटना में तेलंगाना राष्ट्र समिति के सर्वेसर्वा, मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने नीतीश कुमार से मुलाकात की, लेकिन विपक्ष को एक मंच पर लाने के सवाल पर बात नहीं बन पायी। मीडिया में ऐसी खबरें थीं कि केसीआर कांग्रेस को विपक्षी मोर्चे से बाहर रखना चाहते थे, लेकिन नीतीश कुमार का कहना था कि बगैर कांग्रेस और वाम दलों को शामिल किए मजबूत विपक्षी एकता नहीं हो सकती।
पटना में हुई प्रेस कांफ्रेंस में दोनों नेताओं के हाव-भाव सब कुछ बयां कर रहे थे। जब पत्रकारों ने प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार के बारे में सवाल पूछा तो नीतीश कुमार जाने के लिए उठ खड़े हुए। केसीआर ने कई बार नीतीश कुमार को ‘बैठिये’ कहकर रोका, लेकिन नीतीश ने सवाल लेने से इनकार कर दिया और केसीआर से ‘चलिये’ कहते हुए उन्हें अपने साथ ले गए।
दिल्ली जाने से पहले नीतीश कुमार ने सोमवार को पटना में आरजेडी के सर्वेसर्वा लालू प्रसाद यादव से मुलाकात कर उनसे सलाह मशविरा किया। लालू अभी बीमार हैं और अपनी पत्नी राबड़ी देवी के सरकारी आवास में रह रहे हैं। खबरों के मुताबिक, लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार को विपक्षी एकता के रास्ते में आने वाली बाधाओं से निपटने का प्लान समझा दिया । बैठक में लालू के बेटे और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी मौजूद थे। पत्रकारों ने जब मुलाकात के दौरान हुई बातचीत के बारे में पूछा तो नीतीश कुमार ने टाल-मटोल करते हुए कहा, ‘लालू जी मेरे बड़े भाई जैसे हैं। मैं उनका आशीर्वाद लेने आया था। हम दोनों के विचार एक जैसे हैं।’
जो बात नीतीश कुमार ने नहीं बताई, वह उनके डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने बता दी। तेजस्वी ने कहा, ‘नीतीश कुमार को सभी विपक्षी दलों को लामबंद करने का काम सौंपा गया है। अगर सभी विपक्षी दल एकजुट हो गए तो 2024 का चुनाव बीजेपी के लिए मुश्किल होगा।’
नीतीश कुमार ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से दिल्ली में उनके आवास पर करीब एक घंटे तक मुलाकात की। बाद में पत्रकारों से बात करते हुए नीतीश कुमार ने कहा, ‘मेरा प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनने का कोई इरादा नहीं है। बीजेपी क्षेत्रीय दलों को कमजोर करने की कोशिश कर रही है और मेरी कोशिश ये है कि आम चुनाव से पहले विपक्षी दलों को एकजुट किया जाय।’
एक पत्रकार ने जब पूछा कि अगर प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर उनके नाम पर सहमति बनती है तो क्या वह इसके लिए तैयार होंगे, तो नीतीश कुमार ने कहा, ‘मैंने इसके बारे में नहीं सोचा है। मैं सिर्फ अपने बारे में सोचता हूं।’ अब इस बयान के कई मतलब हैं, आप जो चाहें मतलब निकाल लें।
नीतीश कुमार ने सोमवार को जनता दल (सेक्युलर) के प्रमुख एचडी कुमारस्वामी से भी मुलाकात की और विपक्षी एकता के प्रयासों पर चर्चा की। गौर करने वाली बात यह है कि कर्नाटक में अपनी सरकार गिरने के बाद कुमारस्वामी ने कांग्रेस के साथ अपना गठबंधन तोड़ दिया था।
मंगलवार को नीतीश कुमार ने CPI(M) के महासचिव सीताराम येचुरी और CPI के नेता डी. राजा से मुलाकात की। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के बारे में जब पत्रकारों ने फिर सवाल पूछा, तो नीतीश कुमार ने कहा, ‘मैं दावेदार नहीं हूं और न ही इसे लेकर मेरी कोई इच्छा है। हमारा पूरा ध्यान सभी वाम दलों, क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस को एकजुट करने पर है। हम सभी एकजुट होजाएं , यही सबसे बड़ी बात होगी ।’
विपक्षी नेताओं के साथ नीतीश कुमार की बैठकों से वामपंथी नेताओं को भी थोड़ी उम्मीद जगी है। सीताराम येचुरी ने सोमवार को कहा, ‘नीतीश कुमार ने यह मान लिया है कि उन्होंने बीजेपी के साथ जाकर गलती की थी। अब विरोधी दल निश्चित रूप से उनका स्वागत करेंगे। जहां तक प्रधानमंत्री पद की दावेदारी का सवाल है तो नीतीश कुमार में पीएम बनने के सारे गुण हैं, लेकिन फिलहाल इस मुद्दे पर बात करने का यह वक्त नहीं है।’
नीतीश कुमार ने रविवार को अपनी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि उन्होंने 2017 में बीजेपी के साथ गठबंधन करके बड़ी गलती की थी। उन्होंने कहा, ‘मैं यह गलती दोबारा नहीं करूंगा।’ उसी दिन इसके जवाब में बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और बीजेपी नेता सुशील मोदी ने कहा, ‘नीतीश कुमार इस तरह कई बार गलती मान चुके हैं। 2013 में बीजेपी के साथ जाने पर गलती मानी थी। फिर 2017 में जिंदगी में दोबारा कभी आरजेडी के साथ न जाने की कसम खाई थी, और अब फिर कह रहे हैं कि बीजेपी के साथ जाना गलत था। इसीलिए लालू यादव ने उन्हें पलटूराम का नाम दिया था।’
मंगलवार को नीतीश कुमार ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के चीफ अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की। नीतीश इसके बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और इंडियन नेशनल लोकदल के प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला से भी मुलाकात करेंगे।
कुल मिलाकर विपक्ष का कोई भी नेता यह नहीं कहता कि उसे प्रधानमंत्री बनना है। सब यही कहते हैं कि उनकी कोई इच्छा नहीं है। नीतीश कुमार के अलावा राहुल गांधी भी यही कहते हैं, केजरीवाल भी यही कहते हैं, केसीआर भी यही कहते हैं, ममता भी यही कहती हैं। लेकिन हकीकत यही है कि झगड़ा प्रधानमंत्री की कुर्सी का ही है। प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर ही बात बिगड़ जाती है वरना मोदी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशें तो पहले भी बहुत हुई हैं।
जहां तक नीतीश कुमार का सवाल है तो दोनों पार्टियों के कई बड़े नेता आपसी बातचीत में यह बताते हैं कि लालू ने नीतीश को दोबारा समर्थन ही इसी शर्त पर दिया है कि फिलहाल नीतीश मुख्यमंत्री रहेंगे, लेकिन 2024 के पहले वह देश की सियासत में जाएंगे और सीएम की कुर्सी पर तेजस्वी यादव बैठेंगे। यही वजह है कि नीतीश कुमार सभी विपक्षी दलों के नेताओं से मिल रहे हैं और उन्हें मोदी विरोधी मोर्चा बनाने के लिए राजी करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। नीतीश अभी से 2024 की तैयारी में जुट गए हैं।