Rajat Sharma

My Opinion

योगी ने यूपी में सभी वक्फ संपत्तियों के सर्वे का आदेश क्यों दिया?

AKBउत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सुन्नी और शिया सेंट्रल वक्फ बोर्डों की सभी संपत्तियों के सर्वे का आदेश दिया है। सर्वे का मकसद संपत्तियों के स्वामित्व में गड़बड़ियों का पता लगाना है, साथ ही इस बात का भी पता लगाना है कि किन लोगों ने इन संपत्तियों पर गैरकानूनी तरीके से कब्ज़ा किया ।

यूपी में करीब 1,62,229 वक्फ संपत्तियां हैं, जिनमें सुन्नी वक्फ बोर्ड नाम लगभग 1,50,000 संपत्तियां और शिया वक्फ बोर्ड के नाम लगभग 12,229 संपत्तियां रजिस्टर्ड हैं। इन संपत्तियों की कीमत हजारों करोड़ रुपये में है।

वक्फ और हज मामलों के मंत्री धर्मपाल सिंह ने कहा, ‘सर्वे अच्छे इरादे से किया जा रहा है और सबसे पहले वक्फ संपत्तियों की पहचान करने के आदेश दिए गए हैं।’ सर्वे का आदेश सभी जिलाधिकारियों को भेज दिया गया है और उन्हें एक महीने के भीतर ब्योरा देने को कहा गया है।

सर्वे का मकसद यह पता लगाना है कि क्या वक्फ संपत्तियों पर व्यक्तियों या संगठनों ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है। इस्लामी परंपराओं के मुताबिक, धार्मिक और कल्याणकारी कार्यों के लिए दान की जाने वाली संपत्तियां ‘वक्फ’ की श्रेणी में आती हैं, जिसका मतलब होता है, दीन के काम के लिए दान दी गई वस्तु या संपत्ति। एक बार दान की गई इस संपत्ति को ‘अल्लाह की संपत्ति’ माना जाता है।

राज्य सरकार को ऐसी तमाम शिकायतें मिली थीं जिनमें कहा गया था कि वक्फ बोर्ड के कुछ सदस्यों को रिश्वत देकर वक्फ की संपत्तियों को मार्केट रेट से काफी कम कीमत पर बेच दिया गया। यह भी पता चला कि बोर्ड के कुछ सदस्यों ने अपने करीबियों को वक्फ संपत्तियों का केयरटेकर (मुतवल्ली) बनाया, और उन्होंने तमाम तिकड़में लगाकर प्रॉपर्टी पर कब्जा कर लिया। वक्फ की संपत्ति को ‘अल्लाह की संपत्ति’ माना जाता है क्योंकि यह लोगों की दान की हुई जायदाद होती है। ऐसी संपत्ति का इस्तेमाल इमामबाड़े, मस्जिदें, मदरसे, कब्रिस्तान, ईदगाह और कर्बला के लिए होता है।

वक्फ की संपत्तियों का इस्तेमाल दीन की बेहतरी के लिए, गरीब मुसलमानों की भलाई के लिए, स्कूल-कॉलेज और हॉस्टल बनाने में होता है। इस संपत्ति में अगर कोई कॉमर्शल प्रॉपर्टी है तो उससे होने वाली आमदनी भी मुसलमानों की बेहतरी में ही खर्च होती है।

वक्फ की संपत्तियों की देखरेख की जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड पर है। स्थानीय स्तर पर वक्फ बोर्ड की तरफ से मुतवल्ली या केयरटेकर नियुक्त किए जाते हैं, बस यहीं खेल हो जाता है। बहुत सी जगहों पर मुतवल्लियों ने प्रॉपर्टी डीलर्स और दूसरे लोगों के साथ साठ-गांठ करके, वक्फ की संपत्ति औने-पौने दाम में बेच दी या अवैध कब्जे करवा दिए। इन वक्फ संपत्तियों पर कब्जा जमाने के लिए लाखों-करोड़ों रुपये की रिश्वत दी जाती है। मिसाल के तौर पर, दिल्ली में आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्ला खान पर यही इल्जाम है कि उन्होंने मदरसे को तोड़ कर दुकानें बनवा दीं। इन दुकानों को मामूली किराये पर चढ़ा दिया जाता था और बदले में करोड़ों रुपये की रिश्वत वसूल ली जाती थी।

यूपी शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन अली जैदी के मुताबिक, वक्फ की संपत्ति लैंड माफिया का पसंदीदा निशाना बन चुकी है। वक्फ बोर्ड का कानून साफ कहता है कि इसकी किसी भी प्रॉपर्टी को मार्केट वैल्यू से 2.5 पर्सेंट से कम किराये या लीज पर नहीं दिया जा सकता, और 11 महीने से ज्यादा का रेंट और लीज एग्रिमेंट नहीं हो सकता, लेकिन इन नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

अली जैदी ने यूपी सरकार से वक्फ की 6 संपत्तियों पर अवैध कब्जों की शिकायत की थी। इनमें लखनऊ में ठाकुरगंज की मोती मस्जिद, महानगर के कब्रिस्तान, लालबाग का इमामबाड़ा, प्रयागराज का छोटा कर्बला शामिल हैं। इसी तरह प्रयागराज के गुलाम हैदर इमामबाड़े के एक बड़े हिस्से को भू-माफिया ने अवैध रूप से बेच दिया था, और कुछ हिस्से को किराए पर दे दिया था।

प्रयागराज के इस इमामबाड़े की जमीन पर अवैध कब्जे का इल्जाम इसके मुतवल्ली वकार रिजवी पर था। वकार रिजवी को उस वक्त के शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने मुतवल्ली बनाया था। बाद में इमामबाड़े की जमीन पर हुए अतिक्रमण पर बुलडोजर चला और मामले की जांच CBI को सौंप दी गई थी। इमामबाड़े की तरफ से हाई कोर्ट में पैरवी करने वाले वकील फरमान नकवी ने बताया कि वक्फ की संपत्ति में हेराफेरी की ये पूरी साजिश शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी ने ही रची थी।

एक अनुमान के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में वक्फ की 60 से 70 फीसदी संपत्ति पर अवैध कब्जे हैं। देश भर में 2009 तक वक्फ के पास करीब 4 लाख एकड़ जमीन थी, जो 2022 में बढ़कर 8 लाख एकड़ हो गई। सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा प्रॉपर्टी के मामले में वक्फ तीसरे नंबर पर आता है। अधिकांश राज्यों में वक्फ बोर्ड पर जो लोग काबिज हैं, वे अपने लोगों को मुतवल्ली बनाकर ऐसी संपत्तियों पर कब्जा कर लेते हैं। कई बार इसका उल्टा भी होता है, और सरकारी जमीनों के साथ-साथ निजी जमीनों को भी वक्फ की संपत्ति बताकर उसपर कब्जा कर लिया जाता है।

वक्फ के नाम पर क्या-क्या होता है, इसका एक बहुत ही हैरान करने वाला उदाहरण आपको बताता हूं। तमिलनाडू के तिरुचिरापल्ली जिले के एक पूरे के पूरे गांव को वक्फ की प्रॉपर्टी बता दिया गया। इस गांव में हिंदुओं की आबादी ज्यादा है। गांव में 150 साल पुराना मंदिर है। फिर भी इस गांव के लोगों के पुश्तैनी घरों और उनकी जमनी को वक्फ की प्रॉपर्टी बताकर उन पर कब्जा करवाने की मांग की गई थी। गांव के लोगों को जमीन बेचने के लिए वक्फ से NOC (अनापत्ति प्रमाण पत्र) लेनी पड़ रही थी, यह साबित करना पड़ रहा था कि जमीन उनकी है, वक्फ बोर्ड की नहीं।

चूंकि दस्तावेजों में हेरफेर करके इस तरह की गड़बड़ियां की जाती हैं, इसलिए यूपी सरकार द्वारा सर्वे कराने का फैसला एक स्वागत योग्य कदम है। एक और उदाहरण है। प्रयागराज में प्रसिद्ध चंद्रशेखर आजाद पार्क (पूर्व में अल्फ्रेड पार्क), जहां 1931 में अंग्रेजों से लड़ते हुए महान क्रांतिकारी ने खुद को गोली मार ली थी, को इलाहाबाद हाई कोर्ट के सामने वक्फ संपत्ति के रूप में दिखाया गया था। ऐसे ही हजारों मामले हैं, और राज्यव्यापी सर्वे करने के योगी आदित्यनाथ के कदम का समर्थन मुस्लिम उलेमा भी कर रहे हैं।

योगी सरकार का आदेश 1989 के बाद रजिस्टर्ड हुईं सभी वक्फ संपत्तियों के सर्वे से संबंधित है। AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने सवाल किया कि 1989 को कट-ऑफ वर्ष क्यों तय किया गया। यूपी सरकार के सूत्रों ने बताया कि 7 अप्रैल 1989 को मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार के राजस्व विभाग ने एक आदेश जारी किया था जिसके तहत बंजर भूमि को वक्फ संपत्ति के रूप में ‘अवैध रूप से रजिस्टर्ड’ किया गया था।

आदेश में कहा गया था कि राज्स्व रिकॉर्ड में चूंकि वक्फ की कई संपत्तियां बंजर, ऊसर, भीटा आदि के तौर पर दर्ज है, उन्हें दुरूस्त करके कब्रिस्तान, मस्जिद या ईदगाह के तौर पर दर्ज की जाए। इस आदेश का असर यह हुआ कि तमाम जगहों पर सरकारी जमीन और ग्राम पंचायतों की जमीन वक्फ की संपत्ति के तौर पर दर्ज हो गई।

इसी साल 7 सितंबर को योगी सरकार ने 1989 के राजस्व विभाग के आदेश को रद्द कर दिया था। इसने सभी डिविजनजल कमिश्नरों और जिलाधिकारियों को एक महीने के भीतर राजस्व रिकॉर्ड को सही करने के लिए 1989 के आदेश के तहत की गई सभी कार्यवाहियों की जांच करने का निर्देश दिया था। वक्फ संपत्तियों का सर्वे भी 8 अक्टूबर तक पूरा कर लिया जाएगा।

AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने 1989 की समयसीमा पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि यूपी सरकार मुसलमानों को निशाना बना रही है। उन्होंने कहा, ‘यह मदरसों और वक्फ संपत्तियों के सर्वे पर ही नहीं रुकेगा। यूपी सरकार वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करना चाहती है।’

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, ‘जो लोग यूपी को एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात कर रहे थे, वे अब हिंदू मुसलमान के मुद्दों पर पब्लिक को उलझा रहे हैं। योगी जी को बताना चाहिए कि क्या ऐसे ही यूपी एक देश की इकनॉमी का पावर हाउस बनाएंगे। एक ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी सर्वे करने से बन जाएगी?’

इस साल 21 फरवरी को केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को एक चिट्ठी भेजकर सर्वे करने के बाद अपने लैंड रिकॉर्ड्स को सही करने के लिए कहा था, क्योंकि रेवेन्यू रिकॉर्ड्स में वक्फ की संपत्तियों के कई व्यक्तियों और निजी संगठनों के नाम पर रजिस्टर्ड होने के बारे में तमाम शिकायतें मिली थीं।

इसी चिट्ठी के मिलने के बाद योगी सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को वक्फ संपत्तियों का सर्वे करने का निर्देश दिया। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि राज्य सरकार वक्फ संपत्तियों पर से अवैध कब्जे को हटाने की कोशिश करेगी, और इनका इस्तेमाल गरीब मुसलमानों के कल्याण के लिए किया जाएगा।

वक्फ की संपत्ति पर सियासत करने की बजाय इस मामले को समझने की जरूरत है। सियासत करने वाले समझा रहे हैं कि सर्वे में सिर्फ यह पता लगेगा कि कितनी सरकारी जमीन पर वक्फ का कब्जा है, लेकिन यह आधा सच है। असल में सर्वे से यह भी पता चलेगा कि वक्फ की कितनी जमीन पर गैरकानूनी कब्जे हैं।

सर्वे में उन लोगों के नाम और चेहरे भी सामने आएंगे जिन्होंने अवैध तरीके से वक्फ संपत्तियों को कौड़ियों के दाम किराए पर ले रखा है और उन पर कब्जा जमा लिया है। इससे आखिरकार वक्फ बोर्ड और गरीब मुसलमानों को ही फायदा होगा। मुस्लिम छात्रों के लिए स्कूल और कॉलेज की जगह मिलेगी, कब्रिस्तानों के लिए जमीन मिलेगी, और वक्फ की आमदनी बढ़ेगी।

सर्वे से उन लोगों की दुकानें बंद हो जाएंगी जो वक्फ की जायदाद पर कब्जा करके बैठे हैं। उससे उन्हीं लोगों को दिक्कत हो रही है। यह सर्वे सिर्फ उत्तर प्रदेश सरकार का ही नहीं है, बल्कि केंद्र सरकार ने भी सभी राज्यों में वक्फ की संपत्तियों की जानकारी हासिल करने को कहा है। अनुमान तो यह है कि वक्फ बोर्ड देशभर में कुल मिलाकर 8 लाख एकड़ जमीन के मालिक हैं, लेकिन इस बारे में कोई पक्का रिकॉर्ड नहीं है। सभी वक्फ संपत्तियों का देशव्यापी सर्वे इसीलिए जरूरी है।

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Why Yogi ordered a survey of all waqf properties in UP?

AKB30 The Uttar Pradesh government led by Chief Minister Yogi Adityanath has ordered a survey of all properties managed by Sunni and Shia Central Waqf Boards in the state to find out anomalies, if any, in the ownership of properties and to find out how these properties were acquired.

There are presently nearly 1,62,229 waqf properties, which include nearly 1,50,000 properties registered with the Sunni Waqf Board and nearly 12, 229 properties registered with Shia Waqf Board, the values of which run into several thousands of crores.

“The survey is being done with good intention and orders have been given to identify Waqf properties first”, said Dharampal Singh, UP Minister for Waqf and Haj Affairs. The order for surveying all Waqf properties has been sent to all district magistrates and they have been asked to submit details of the properties within one month.

The survey is meant to find out whether waqf properties have been illegally occupied by individuals or organizations. Under Islamic customs, properties that are donated for religious and welfare work come under the category of ‘Waqf’, which means a charitable, religious endowment. This property, once donated, is treated as “Allah’s property”.

The state government had received numerous complaints about reported sale of waqf properties at rates lower than the prevailing market prices, with huge bribes paid to some Waqf Board members. It has also been found that some Board members appointed their acolytes as caretakers (mutawallis) of waqf properties, who grab them through various means. Waqf properties which are considered ‘Allah’s properties’ because of donations by people, are normally used as Imambara, mosque, kabristan (burial ground), Eidgah or ‘Karbala’ ground.

Waqf properties are also used for building schools colleges and hostels for the betterment of Muslim community. If there is any commercial property on Waqf land, the earnings from the property is used for the welfare of the community.

The game begins when Waqf Boards appoint caretakers or mutawallis to look after these properties. These caretakers in connivance with property dealers and other vested interests, sell these properties at throwaway prices or allow outsiders to grab them. Lakhs and crores worth bribe money is paid for acquiring these waqf properties. In Delhi, AAP MLA Amanatullah Khan is facing charge of demolishing a madarsa, and built shops in its place. These shops were rented out at nominal rates, and, in return, crores of rupees in bribes were paid.

According to UP Shia Waqf Board chairman Ali Zaidi, waqf properties have become the favourite targets for ‘land mafia’. The Waqf Board law clearly says, no property shall be rented or leased out at less then 2.5 per cent of market value, and no rent or lease agreement shall be for a period exceeding 11 months, but these rules have been flouted.

Ali Zaidi had lodged complaints about illegal occupation of six major waqf properties, like Moti Masjid in Lucknow’s Thakurganj, the burial ground in Mahanagar locality of Lucknow, the Imambara in Lal Bagh and the Chhota Karbala in Prayagraj. He had also alleged that a large portion of Ghulam Haider Imambara in Prayagraj was illegally sold to land mafia, and some portions were rented out.

The accused was Waqar Rizvi, who was appointed caretaker (mutawalli) by the then Shia Waqf Board chairman Waseem Rizvi. Later, local authorities used bulldozers to raze illegal constructions on Imambara land and the matter was handed over to CBI for probe. According to Farman Naqvi, advocate for Imambara in Allahabad High Court, the entire conspiracy was masterminded by the then Shia Waqf Board chief Waseem Rizvi.

According to one calculation, nearly 60 to 70 per cent waqf properties in UP have been illegally occupied. Across India, Waqf Boards owned nearly four lakh acres of land in 2009, which went up to 18 lakh acres by 2022. Presently, Waqf Boards are the third largest owner of properties in India, after Army and Railways. In most of the states, board members appoint their own men as caretakers (mutawallis) to occupy such properties, and in reverse, even government owned or private land is also shown as waqf property and occupied by vested interests.

I would like to mention a stark example of how properties are acquired in the name of waqf. In Tiruchirapalli, Tamil Nadu, an entire village was shown as waqf property despite the fact that most of the population in this village belonged to Hindu community. There is a 150-year-old temple in this village. Yet, the ancestral homes and land of residents in this village, were sought to be occupied by showing them as waqf properties. The people of this village had to take NOC (no objection certificates) from the Waqf Board for selling their properties.

Since documents relating to waqf properties are tampered with, such a survey by UP government is a welcome step. There is another example. The famous Chandrashekhar Azad Park (formerly Alfred Park) in Prayagraj, where the great revolutionary shot himself during an encounter with British Indian police in 1931, was shown as waqf property before the Allahabad High Court. There are thousands of similar cases, and the Muslim ulema is now supporting Yogi Adityanath in his move to carry out a state-wide survey.

Yogi government’s order relates to survey of all waqf properties registered after 1989. AIMIM chief Asaduddin Owaisi questioned why the 1989 cut-off year was decided. UP government sources said, on April 7, 1989, the revenue department of the then Congress government led by Chief Minister Narayan Dutt Tiwari had issued an order under which uncultivable land was “illegally registered” as waqf property.

The order stated that since several waqf properties are registered as fallow land, the revenue records should be corrected and the properties should be mentioned as kabristan, masjid or Eidgah. Because of this order, thousands of government and panchayat land were registered as waqf properties.

On September 7 this year, the Yogi government revoked the 1989 revenue department order. It directed all divisional commissioners and district magistrates to examine, within one month, all proceedings that were carried on under the 1989 order, in order to correct revenue records accordingly. The survey of waqf properties will also be completed by October 8.

AIMIM chief Asaduddin Owaisi, while questioning the 1989 deadline, alleged that the UP government is targeting Muslims. “This will not end with surveys of madarsas and waqf properties. The UP government wants to occupy waqf properties.”

Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav said, “those who were claiming to make UP a trillion-dollar economy, are now embroiling Hindus and Muslims in disputes. Yogi must reveal his plans for making UP an economic powerhouse of India”.

On February 21 this year, the Centre had sent a letter to all state governments asking them to correct their land records after conducting surveys, as numerous complaints had been received about waqf properties being registered in the name of individuals and private organisations in revenue records.

In pursuance of this letter, Yogi government directed all district magistrates to conduct the survey of waqf properties. UP deputy chief minister K P Maurya said, the state government will try to remove illegal occupation of waqf properties, and these would be used for the welfare of poor Muslims.

The issue of waqf properties should be seen in the correct perspective, instead of looking at it from political angles. Politicians may say that the survey will only reveal how much government land had been occupied by waqf boards, but this is a half-truth. The survey will reveal how much waqf properties have been illegally occupied.

The survey will also reveal the names and faces of those who have grabbed waqf properties through illegal means, by purchasing them at throwaway prices. This will ultimately benefit the Waqf Boards and poor Muslims. More land will be available as burial grounds, for building schools and colleges for Muslim students, and the earnings of Waqf Boards will rise.

The survey will help in reoccupying waqf land grabbed by vested interests. Naturally, some leaders and their acolytes are worried about this survey. This survey in UP is a follow-up of the Centre’s direction for conducting a survey of all waqf properties in India. According to one estimate, there is nearly 18 lakh acres land lying as waqf property, but there are no authentic data to substantiate this. A nationwide survey of all waqf properties is the need of the hour.

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32 साल बाद कश्मीर घाटी को पहला मल्टीप्लेक्स कैसे मिला

AKBकश्मीर घाटी में 32 साल बाद मंगलवार को पहला मल्टीप्लेक्स श्रीनगर में खुला। इसका शुभारम्भ जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने किया। घाटी में हाल के वर्षों में आये बड़े बदलाव की तरफ यह एक स्पष्ट संकेत है। मुझे इस समारोह में जाने का मौका मिला। मैंने अपनी आंखों से कश्मीरी युवाओं की सोच में आए बदलाव को महसूस किया। पिछले तीन दशकों में कश्मीरी नौजवानों की कम से कम तीन पीढ़ियों को घाटी के सिनामाघरों में फिल्म देखने का मौका नहीं मिला था। 1990 में जिहादी आतंकवादियों ने बंदूक का खौफ दिखा कर घाटी के सभी सिनेमाघरों को जबरन बंद करवा दिया था।

दिल्ली, मुंबई, कोलकाता या चेन्नई जैसे महानगरों की तो बात ही छोड़ दीजिए, मुरादाबाद, सहारनपुर, बठिंडा, रोहतक, भिवानी और भरूच जैसे टियर-II शहरों में भी आजकल मल्टीप्लेक्स हैं। श्रीनगर के लोगों के लिए मंगलवार को पहला मल्टीप्लेक्स का खुलना किसी सपने के सच होने जैसा था। टिकट खरीदने के लिए लाइन में लगे कश्मीरी युवाओं के चेहरे पर जो खुशी मैंने देखी, उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है।

जरा सोचिए, सलमान खान की 1989 की सुपरहिट फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ कश्मीर के सिनेमाघरों में कभी लग ही नहीं पाई। 2014 में जब सलमान खान ‘बजरंगी भाईजान’ की शूटिंग के लिए कश्मीर गए थे, तो उन्हें शूटिंग करते हुए देखने के लिए नौजवानों की भीड़ उमड़ पड़ी थी, लेकिन वही नौजवान घाटी में उनकी फिल्म नहीं देख सके। मैं पहलगाम में फिल्म की शूटिंग के दौरान तीन दिनों तक सलमान के साथ था। सलमान की बातें आज भी मेरे कानों में गूंजती हैं। उस वक्त उन्होंने मुझसे कहा था, ‘ सोचिए, जिस फिल्म में इतने सारे कश्मीरी काम कर रहे हैं, उस फिल्म को देखने के लिए कश्मीर में एक भी थियेटर नहीं है। इससे ज्यादा दुख की बात और क्या हो सकती है।’

कश्मीरियों को अब ‘बजरंगी भाईजान’ या शाहरुख की फिल्म ‘जब तक है जान’ देखने के लिए जम्मू नहीं जाना पड़ेगा। दिलचस्प बात यह है कि श्रीनगर में बने आईनॉक्स मल्टीप्लेक्स के मालिक एक प्रतिष्ठित कश्मीरी पंडित व्यवसायी विजय धर हैं। मैं विजय धर को पिछले 40 सालों से जानता हूं। वह एक जमाने में पूर्व पीएम राजीव गांधी के सलाहकार हुआ करते थे। विजय धर के पिता डी. पी. धर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के वरिष्ठ सलाहकार थे। विजय धर ने कश्मीर घाटी में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत काम किया है।

विजय धर के दिल में कश्मीर और ‘कश्मीरियत’ सबसे ऊपर है। विजय धर ने मुझे बताया कि उन्होंने नफे-नुकसान के लिए, बिजनेस के लिए, मल्टीप्लेक्स नहीं बनाया । उन्होंने कहा, ‘मैं कश्मीर को फिर से जन्नत में तब्दील होते हुए देखना चाहता हूं। मुझे वह दिन याद है जब 1990 में मेरा थियेटर बंद हुआ था। सनी देओल की ‘यतीम’ फिल्म लगी हुई थी। आतंकवाद ने कश्मीर को यतीम बना दिया। अब कश्मीर को फिर आबाद करना है, अपनी जन्मभूमि का कर्ज चुकाना है।’

बादामी बाग छावनी के पास स्थित हाई सिक्यॉरिटी जोन शिवपोरा में इस मल्टीप्लेक्स को पूरा होने में 5 साल लगे। इसमें 520 लोगों के बैठने की क्षमता है और तीनों मूवी थिएटर हाई-टेक साउंड सिस्टम और अत्याधुनिक तकनीक से लैस हैं। मल्टीप्लेक्स में फूड कोर्ट भी है। मल्टीप्लेक्स का शुभारम्भ करते हुए लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने कहा, ‘इसी जगह पर एक ज़माने में ब्रॉडवे सिनेमा हुआ करता था, यहां सबसे पहले शम्मी कपूर की फिल्म ‘जानवर’ की स्क्रीनिंग हुई थी। फिल्म की शूटिंग भी डल झील के आसपास हुई थी। मुझे खुशी है कि सिनेमा प्रेमी आज फिर यहां लौट आये हैं।’

इंडिया टीवी के रिपोर्टर मंज़ूर मीर ने मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने आए स्थानीय युवाओं से बात की। पिछले तीन दशकों से सिनेमा हॉल से महरूम रहने वाले ये नौजवान खुश नजर आ रहे थे। उनमें से कइयों ने कहा कि वे फिल्में देखने के लिए जम्मू जाते थे। वहीं कुछ ने कहा कि सिनेमा हॉल फिर से खुलने से रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। मंगलवार को आमिर खान की फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ दिखाई गई। 30 सितंबर से सिनेप्रेमी ऋतिक रोशन और सैफ अली खान की फिल्म ‘विक्रम वेधा’ देख सकते हैं। देश के बाकी हिस्सों की तरह इस मल्टीप्लेक्स में भी 30 सितंबर को ही फर्स्ट डे, फर्स्ट शो होगा।

1990 से पहले कश्मीर घाटी में सिर्फ 15 सिनेमा हॉल थे, जिनमें से 9 श्रीनगर में और 6 दूसरे जिलों में थे। श्रीनगर में ब्रॉडवे, रीगल, नीलम, फिरदौस, शिराज़, खय्याम, नाज़, और शाह जैसे सिनेमा हॉल थे। 1989 में जब कश्मीर घाटी में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद शुरू हुआ तो सिनेमा को गैर-इस्लामी बताकर ‘अल्लाह टाइगर्स’ नाम के आतंकी संगठन ने सिनेमा हॉल बंद करने या फिर अंजाम भुगतने की चेतावनी दी। 1 जनवरी, 1990 से घाटी में सभी थियेटर बंद कर दिए गए।

1999 में श्रीनगर में तीन सिनेमा हॉल रीगल, नीलम और ब्रॉडवे खोले गए, लेकिन आतंकियों ने रीगल में पहले ही शो के दौरान हमला किया, जिसमें एक शख्स की मौत हो गई जबकि 12 लोग घायल हो गए। हमले के बाद रीगल सिनेमा हॉल को बंद कर दिया गया, और खौफ के कारण ब्रॉडवे और नीलम थियेटर भी बंद हो गए। कई सिनेमा हॉल सुरक्षा बलों के कैंप में तब्दील हो गए जबकि कुछ सिनेमा हॉल में होटल और अस्पताल खुल गए।

मल्टीप्लेक्स सिर्फ फिल्में देखने की जगह भर नहीं होती, यह लोगों की आज़ाद ज़िन्दगी जीने की निशानी है, दुनिया से जुड़ने का एक माध्यम है। मल्टीप्लेक्स मनोरंजन के अलावा लोगों के रोजगार का जरिया भी है। मुझे ‘बजरंगी भाईजान’ की शूटिंग के दौरान सलमान खान के कहे गए शब्द याद आते हैं। उस वक्त सलमान ने मुझसे कहा था, ‘कश्मीर की वादियां स्विट्जरलैंड से भी ज़्यादा खूबसूरत हैं। यहां शूटिंग करने में मज़ा आता है। बस अगर सरकार बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी, बढ़िया होटल और अच्छी गाड़ियों जैसी कुछ सुविधाओं का इन्तज़ाम करा दे, तो फिर कश्मीर को दुनिया का सबसे बेहतरीन शूटिंग डेस्टिनेशन बनने से कोई नहीं रोक सकता।’ मैं सलमान खान को उनका वादा याद दिलाना चाहूंगा। मैं उनसे और फिल्म इंडस्ट्री के अन्य लोगों से गुज़ारिश करूंगा कि वे कश्मीर में फिल्मों की शूटिंग शुरू करें।

श्रीनगर में मल्टीप्लेक्स तो मंगलवार को खुला लेकिन पुलावामा और शोपियां में इसके 2 दिन पहले ही सिनेमा हॉल शुरू हो चुके थे। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा खुद इन दोनों जगहों पर गए थे और दर्शकों के साथ फिल्म देखी थी। उन्होंने कहा कि जल्द ही जम्मू-कश्मीर के हर जिले में ऐसे सिनेमा हॉल बनाए जाएंगे। सिन्हा ने कहा कि अनंतनाग, श्रीनगर, बांदीपुरा, गांदेरबल, डोडा, राजौरी, पुंछ और किश्तवाड़ में भी इस तरह के सिनेमा हॉल खोला जाएगा। पुलवामा के सिनेमा हॉल में तो हिजाब पहनी कई स्कूलीं छात्राएं भी इस साल की सुपरहिट मूवी RRR देखने आई।

शम्मी कपूर से लेकर यश चोपड़ा तक, ऐसे तमाम ऐक्टर और डायरेक्टरों की हमेशा कोशिश रही कि उनकी हर फिल्म में कम से कम एक गाना कश्मीर की वादियों में शूट किया जाए। उनकी फिल्मों के जरिए पूरी दुनिया में लोग कश्मीर की खूबसूरती को बड़े पर्दे पर देखते थे। कश्मीर के लोगों को भी इस पर नाज़ होता था। कश्मीर में आतंकवाद का दौर शुरू होने के बाद थिएटर बंद हो गए, लेकिन फिल्मों की शूटिंग जारी रही। अब 32 साल के लंबे इंतजार के बाद कश्मीर की जनता का सिनेमा हॉल में फिल्म देखने का सपना पूरा होगा।

कश्मीर की वादियों में ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’, ‘जब तक है जान’, ‘ये जवानी है दीवानी’, ‘हैदर’, ‘हाइवे’, ‘फैंटम’ , ‘बजरंगी भाईजान’, ‘फितूर’ और ‘राज़ी’ जैसी तमाम फिल्मों की शूटिंग हुई, लेकिन इनमें से एक भी फिल्म कश्मीर में रहने वाले आम कश्मीरियों ने अपने यहां के थिएटर में नहीं देखी। वे इन फिल्मों को या तो टीवी पर देखते थे या जम्मू या किसी दूसरे राज्य में देखने जाते थे। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने मुझे बताया कि वह जल्दी ही जम्मू कश्मीर के लिए एक नई फिल्म नीति ला रहे हैं, जिसके तहत बड़े फिल्म निर्माताओं को कश्मीर में शूटिंग के लिए सहूलियतें दी जाएंगी। साथ ही कश्मीरी नौजवानों को फिल्म बनाने की दिशा में प्रोत्साहित करने के लिए विशेष रियायतें मिलेंगी। मनोज सिन्हा का संकल्प है कि वह कश्मीर में जन्नत के दिनों को ज़रूर वापस लाएंगे |

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How Kashmir Valley got its first multiplex after 32 years

AKBAfter a gap of 32 years, Kashmir Valley got its first multiplex in Srinagar on Tuesday, with Lt. Governor Manoj Kumar Sinha cutting the blue ribbon. This is clear indication of a big transformation that has taken place in the trouble-torn valley. I was witness to the inauguration ceremony and I personally felt the transformation that has come among Kashmiri youths. At least three generations of young Kashmiris have missed the magic of watching movies in cine theatres for the last three decades. All cinema halls in the Valley were forcibly closed down by jihadi terrorists in 1990.

Forget metros like Delhi, Mumbai, Kolkata or Chennai, even Tier-II towns like Moradabad, Saharanpur, Bathinda, Rohtak, Bhiwani and Bharuch have multiplexes nowadays, but for the people of Srinagar, it was a dream come true on Tuesday. I have no words to explain the meaning behind the smiles that I saw on the faces of Kashmiri youths, who had lined up to buy tickets.

Imagine, Salman Khan’s 1989 superhit film ‘Maine Pyar Kiya’ was never screened in the cinema theatres of the valley. In 2014, when Salman Khan had gone to the Valley for shooting ‘Bajrangi Bhaijaan’, there were throngs of youths watching him doing the shooting scenes, but they could not watch his movie in the Valley. I was with Salman during the shooting in Pahalgam for three days. Salman’s words still ring in my ears. He told me, “Just think, so many Kashmiris are working in this film, but there is not a single cinema hall in Kashmir for them to watch the movie. It is really sad”.

Kashmiris will no more have to go to Jammu to watch ‘Bajrangi Bhaijaan’ or Shahrukh’s movie ‘Jab Tak Hai Jaan’. Interestingly, the Inox multiplex built in Srinagar is owned by Vijay Dhar, a reputed Kashmiri Pandit businessman. I know Vijay Dhar for the last 40 years. He used to be adviser to former PM Late Rajiv Gandhi. He is the son of Late D. P. Dhar, a senior adviser to former Prime Minister Indira Gandhi. Vijay Dhar has done much work in the field of education in Kashmir Valley.

An avowed supporter of ‘Kashmiriyat’, Vijay Dhar told me he has not built the multiplex to make money. “My dream is to see that the Valley regains its touch of paradise. I remember the day, when my theatre closed down in 1990. Sunny Deol’s movie ‘Yateem’ was being screened. Terrorism made Kashmir a ‘yateem’(orphan). Our aim is to bring back the shine to Kashmir Valley and repay the debt to our land of birth”, Vijay Dhar said.

The Inox multiplex took five years to complete in the high security zone, Shivpora, near Badami Bagh cantonment. It has a total seating capacity of 520, and all the three movie theatres have been built with hi-tech sound system and state-of-the-art technology. There is a food court in the multiplex. While inaugurating the multiplex, Lt. Gov. Manoj Sinha said, “At this place was Broadway cinema, the first film shown here was Shammi Kapoor’s movie ‘Jaanwar”. The film was shot at the Dal Lake nearby. The lovers of cinema are back here today”.

India TV reporter Manzoor Mir spoke to local youths who watched the movie in the multiplex. They looked happy after being deprived of cinema halls for the last three decades. Several of them said, they used to go to Jammu to watch movies. Some of them said, new job opportunities will open up if cinema halls reopen. On Tuesday, Aamir Khan’s movie ‘Lal Singh Chaddha’ was screened. From September 30, cinegoers can watch Hrithik Roshan and Saif Ali Khan’s movie ‘Vikram Vedha’. The multiplex will screen the first day, first show on September 30, along with the rest of the country.

Prior to 1990, there were only 15 cinema theatres in Kashmir Valley, out of which nine were in Srinagar and the remaining six in other districts. The major cinema halls in Srinagar were Broadway, Regal, Neelam, Firdous, Shiraaz, Khayyam, Naaz and Shah. When Pakistan-sponsored terrorism reared its head in 1989, a terror outfit, Allah Tigers, warned cinema hall owners to close down their theatres or face punitive action. From January 1, 1990, all cinema theatres shut shop in the Valley.

In 1999, three cinema halls Regal, Neelam and Broadway were reopened in Srinagar, but terrorists threw a hand grenade during the first show in Regal cinema, killing one and injuring 12 others. Regal cinema hall was closed down, and the fear was so palpable that the other two theatres, Broadway and Neelam, were also closed down. Several cinema halls were converted into security camps, while some other halls were converted into hotels and hospitals.

A multiplex is not merely a place to watch a movie, it is a symbol of freedom, a place where one can link up with others. Multiplexes provide jobs, apart from entertainment. I remember Salman Khan’s words, during the shooting of ‘Bajrangi Bhaijaan’. Salman had then said, “The vales of Kashmir are more beautiful than those of Switzerland. I feel great while doing my shooting scenes here. If the government provides us internet connectivity, good hotels and better vehicles, no force on earth can prevent Kashmir from becoming a great shooting destination”. I would like to remind Salman Khan about his promise. I would request him and others from film industry to start shooting films in Kashmir.

Apart from the multiplex in Srinagar, two cinema halls were opened in Pulwama and Shopian two days ago by Lt. Governor Manoj Sinha. He has promised to open more multi-purpose cinema halls in every district of Jammu and Kashmir. Cinema halls will be opened in Anantnag, Srinagar, Bandipora, Ganderbal, Doda, Rajouri, Poonch and Kishtwar. In Pulwama cinema hall, Kashmiri girls wearing hijab turned up in large numbers to watch ‘RRR’, the superhit movie.

From Shammi Kapoor to Yash Chopra, many actors and directors popularized Kashmir as a great tourist destination by doing song sequences in the valley. The people of Kashmir took pride watching these movies. With the onset of terrorism in the Valley, the cinema theatres were closed down, but film shootings continued. After 32 year-long-wait, the people of Kashmir will now fulfil their dream of watching movies in cinema halls.

Many movies like ‘Student of the Year’, ‘Jab Tak Hai Jaan’ ‘Yeh Jawaani Hai Deewani, ‘Hyder’, “Highway’, ‘Phantom’, ‘Bajrangi Bhaijaan’ ‘Fitoor’ and “Raazi”, were shot in the Kashmir Valley, but the people of the valley could not watch them in cine theatres. They had to visit Jammu or other states to watch these movies, or watched them on TV. Lt. Governor Manoj Sinha told me that he would soon bring a new film policy for Kashmir, in which facilities and benefits will be given to big film makers for shooting their scenes in Kashmir. Moreover, Kashmiri youths will also get special benefits in order to encourage them to make movies here. Sinha has vowed to bring back the days of paradise back in Kashmir.

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चंडीगढ़ वीडियो लीक मामले से हम क्या सबक सीख सकते हैं?

akb full_frame_60183चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में वीडियो लीक की घटना ने छात्रावासों में रहने वाली छात्राओं की निजता (प्राइवेसी) को लेकर तमाम सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या लड़कियों को कॉमन वॉशरूम इस्तेमाल करना चाहिए? यूनिवर्सिटी, कॉलेज और प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट्स में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाली छात्राओं के माता-पिता प्राइवेसी के मुद्दे को लेकर चिंतित हैं। पंजाब में इस शर्मनाक घटना ने छात्राओं और उनके परिवारों में डर और आक्रोश का तूफान खड़ा कर दिया है। यह सब कई अफवाहों के चलते हुए, जिनके बारे में मैं आपको विस्तार से बताऊंगा।

यूनिवर्सिटी से पोस्ट-ग्रैजुएट कर रही एक छात्रा ने वॉशरूम में अपना नहाने का वीडियो बनाकर हिमाचल प्रदेश में एक लड़के को भेज दिया। हॉस्टल में ही रहने वाली एक लड़की ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया। जल्द ही यह खबर पहले हॉस्टल और फिर यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले छात्रों तक फैल गई। शनिवार और रविवार की रात को यूनिवर्सिटी कैंपस में जमकर विरोध प्रदर्शन हुए।

अफवाह उड़ी कि यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में रहने वाली 60 से ज्यादा लड़कियों के आपत्तिजनक वीडियो सर्कुलेट किए जा रहे हैं। यह भी कहा जाने लगा कि यूनिवर्सिटी की लड़कियों के वॉशरूम के कुछ वीडियो पॉर्न साइट्स पर डाल दिए गए। इस तरह की बातें सुनकर लड़के-लड़कियों के परिवार वाले कैंपस में पहुंच गए। पुलिस ने यूनिवर्सिटी कैंपस से छात्रा और शिमला से उसके 23 वर्षीय बॉयफ्रेंड को गिरफ्तार कर लिया। हिमाचल प्रदेश से 31 साल के एक शख्स को भी गिरफ्तार किया गया है। फॉरेन्सिक एक्सपर्ट तीनों के फोन की जांच कर रहे हैं कि कहीं और भी वीडियो तो फॉरवर्ड नहीं किए गए या कोई चैट तो डिलीट नहीं की गई।

चूंकि यह बेटियों से जुड़ा संवेदनशील मसला था, इसलिए मैंने अपने 4 रिपोर्टर्स को मौके पर भेजा। इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स ने पंजाब पुलिस के आला अफसरों के साथ-साथ जांच में लगे पुलिसवालों, चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों और उनके पैरेन्ट्स से बात की। मामले की गंभीरता को देखते हुए यूनिवर्सिटी को एक हफ्ते के लिए बंद कर दिया गया है। जो छात्र पंजाब और आसपास के राज्यों के हैं, उन्हें फिलहाल हॉस्टल खाली कर घर जाने को कह दिया गया है। पुलिस ने फिलहाल इस मामले में आरोपी लड़की और उसके दो ‘दोस्तों’ को गिरफ्तार किया है।

दोनों आरोपी हिमाचल प्रदेश से पकड़े गए हैं और आम घरों से हैं। पहले आरोपी का नाम सनी मेहता है। उसने 12वीं तक की पढ़ाई की है और शिमला की एक बेकरी में काम करता है। उसके पिता मजदूरी करते हैं। दूसरा आरोपी भी 12वीं क्लास तक ही पढ़ा है और उसके पिता भी मजदूरी करते हैं। जिस लड़की को अरेस्ट किया गया है वह चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी से MBA कर रही है। चूंकि इस मामले से लोगों में जबरदस्त नाराजगी है, इसलिए पंजाब पुलिस इसमें फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।

चंड़ीगढ़ यूनिवर्सिटी का प्रशासन और पंजाब पुलिस बार-बार ये बात कह रही है कि अभी तक तो ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है जिससे यह आशंका हो कि हॉस्टल की 60 लड़कियों के वीडियो बनाए और सर्कुलेट किए गए हैं। लेकिन आरोपी लड़की के साथ हॉस्टल में रहने वाली कई लड़कियां बार-बार कह रही हैं कि उन्होंने आरोपी लड़की को वीडियो बनाते हुए रंगे हाथों पकड़ा था। उन्होंने कहा कि लड़की के फोन में आपत्तिजनक वीडियो भी थे। लड़कियों इल्जाम लगा रही हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन मामले को दबाने की कोशिश कर रहा है। लड़कियों की चिंता जायज है, उनका गुस्सा भी गलत नहीं है, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि वे सब सिर्फ कही सुनी हुई बातों के आधार पर बोल रही हैं।

हमारे संवाददाता ने पुलिस और यूनिवर्सिटी के अधिकारियों से बात की। पता लगा कि आरोपी लड़की दो हफ्ते पहले ही हॉस्टल में आई थी और वह ज्यादातर लड़कियों को जानती भी नहीं थी। उसने वॉशरूम मे सिर्फ अपना वीडियो बनाया था, और वही वीडियो शिमला में रहने वाले अपनी जान-पहचान के लड़के को भेजा था।

मोहाली रूरल के एसपी नवनीत विर्क ने बताया कि 60 लड़कियों के वीडियो का दावा पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा कि ये बातें सिर्फ अनुमान के आधार पर, शक के आधार कही जा रही हैं। ये सारी बातें सोशल मीडिया के जरिए तेजी से फैलीं और इन अफवाहों के कारण छात्राओं के परिजनों और रिश्तेदारों में डर फैल गया। विर्क ने कहा, ‘वह अपना वीडियो बना रही थी। किसी लड़की ने उसे ऐसा करते देखा और दूसरी लड़की से जाकर बात की। यह बात वॉर्डन को बता दी गई। वॉर्डन ने जब लड़की का फोन खोला तो उसमें कुछ वीडियो थे, जो उसके खुद के थे। उसको ऐसे समझ लिया गया कि उसने खुद की बजाय और लड़कियों के भी वीडियो बनाए होंगे, लेकिन ऐसा कुछ भी अभी तक सामने नहीं आया है। यह एक कॉमन वॉशरूम था।’

इस बारे में अफवाह इसलिए फैली क्योंकि हॉस्टल वॉर्डन ने आरोपी छात्रा को डांटते हुए लगातार यह बात कही कि हो सकता है कि उसने दूसरी लड़कियों का भी वीडियो बनाकर अपने दोस्त को भेजा हो। वॉर्डन बिना तथ्यों की जांच किए ही लड़की पर आरोप लगा रही थी। जब वॉर्डन आरोपी लड़कियों को डांट रही थी, उस वक्त वहां मौजूद लड़कियां वॉर्डन का वीडियो बना रही थीं। उन्होंने ये वीडियो तुरंत ही सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिए।

चूंकि हॉस्टल की लड़कियों ने वॉर्डन की भी शिकायत की थी, इसलिए यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने 2 हॉस्टल वॉर्डन्स को सस्पेंड कर दिया है जबकि बाकी हॉस्टल की वॉर्डन्स का ट्रांसफर कर दिया है। हमारे रिपोर्टर पुनीत परिंजा ने हॉस्टल में रहने वाली एक छात्रा से बात की जो Le Corbusier हॉस्टल के उसी फ्लोर पर रहती है जिस पर आरोपी लड़की का कमरा है। उसने हमारे रिपोर्टर से कहा कि उसने आरोपी छात्रा का फोन देखा था और चैट भी पढ़ी थी। लड़की ने आशंका जताई कि आरोपी छात्रा को उसका बॉयफ्रेंड ब्लैकमेल कर रहा था। उसने यह भी कहा कि लड़की के फोन में और किसी लड़की का आपत्तिजनक वीडियो नहीं था। छात्रा ने बताया कि दूसरी लड़कियों के 60 वीडियो बना पाना नामुमकिन है क्योंकि वह 2 हफ्ते पहले ही हॉस्टल आई थी।

एक बात तो तय है कि 60 लड़कियों के आपत्तिजनक वीडियो बनाने की बात पूरी तरह निराधार है। इसके बावजूद पंजाब पुलिस कोई चांस नहीं लेना चाहती। पूछताछ के दौरान पुलिस को पता लगा कि जब MMS की बात फैल गई तो लड़के ने लड़की से फोन का सारा डेटा और ऐप डिलीट करने को कहा था। पुलिस ने तीनों आरोपियों के फोन फॉरेन्सिक लैब में यह चेक करने के लिए भेज दिए हैं कि कोई डेटा डिलीट किया गया है या नहीं। पुलिस ने पुष्टि की है कि तीनों आरोपी एक-दूसरे को पिछले 3 साल से जानते थे। पुलिस पता लगाएगी कि क्या सनी नाम का लड़का इस तरह लड़कियों को ब्लैकमेल करता है और क्या वह लड़कियों के वीडियो पॉर्न साइट्स को बेचता है। पंजाब पुलिस ने भरोसा दिलाया है कि वह इस केस की तह तक जाएगी और पूरी हकीकत लोगों के सामने रखेगी।

पंजाब पुलिस की SIT ने मंगलवार को पेन ड्राइव, कंप्यूटर और अन्य उपकरण बरामद करने के लिए दोनों पुरुष संदिग्धों, सनी मेहता और रंकज वर्मा को हिमचल प्रदेश में उनके गृहनगर ले गई। पुलिस अधिकारियों को शक है कि दोनों ने अन्य उपकरणों में वीडियो और तस्वीरें स्टोर करके रखी होंगी। पुलिस यह भी पता लगाने की कोशिश कर रही है कि कहीं और भी वीडियो तो इंटरनेट पर शेयर या अपलोड नहीं किए गए। पंजाब के मोहाली स्थित खरड़ कोर्ट ने छात्रा समेत तीनों आरोपियों को पहले ही एक हफ्ते के पुलिस रिमांड पर भेज दिया है।

पुलिस ने छात्रों और उनके परिवारों से अफवाहों पर यकीन न करने की अपील की है। एडिशनल डीजीपी गुरप्रीत कौर देव ने कहा कि मामले की गहराई से जांच की जा रही है और अभी तक गिरफ्तार छात्रा द्वारा शेयर की गई उसकी खुद की वीडियो के अलावा किसी और वीडियो के बारे में कोई सबूत नहीं मिला है।

हमें एक बात याद रखनी चाहिए। यह मामला हमारी बेटियों के भविष्य से जुड़ा है। एक लड़की ने आपत्तिजनक वीडियो बनाया और अफवाह उड़ गई कि हॉस्टल की 60 लड़कियों के वीडियो बने। गर्मी की वजह से प्रदर्शन करते समय कुछ लड़कियां बेहोश हो गईं तो ये बात उड़ा दी गई कि 8 लड़कियों ने खुदकुशी कर ली। तिल का ताड़ बना दिया गया, राई का पहाड़ बना दिया गया। इन अफवाहों ने लोगों के मन में एक डर पैदा कर दिया। यह सही है कि एक बार तो लड़कियों को लगा कि कहीं उनका भी वीडियो तो नहीं बना लेकिन थोड़ी देर में उन्हें समझ में आ गया कि यह एक अफवाह थी।

ज्यादातर लड़कियों को अपना डर नहीं है, वे इन हालात से निपटना भी जानती हैं, और इन अफवाहों से लड़ना भी जानती हैं। उनकी सबसे बड़ी चिंता है अपने मां-बाप का डर, उनको कैसे समझाएं। हर लड़की को घर से फोन आने लगे। उनके मां-बाप ने कहा कि तुम घर वापस आ जाओ, सुरक्षा सबसे जरूरी है। पिता ने कहा कि पढ़ना है तो घर में रहकर पढ़ो, हॉस्टल में रहने की क्या जरुरत है। सबसे बड़ा डर यही है कि कहीं पैरेंट्स अपनी बेटियों को पढ़ाना न बंद कर दें। दुर्भाग्य की बात है कि इतना कुछ महज अफवाहों की वजह से हुआ है।

इसलिए मैं सभी से अपील करता हूं कि अपनी आंखें और कान खुले रखें, सतर्क रहें और जो देखें या सुनें उसे बिना वेरीफाई किए सोशल मीडिया पर पोस्ट न करें। अगर सोशल मीडिया पर यह अफवाह न फैलती कि 60 लड़कियों का वीडियो बनाया गया तो इतना हंगामा न होता।

सबसे जरूरी बात: अगर कभी गलती हो जाए, अनजाने में कुछ गड़बड़ी हो जाए तो डरने की जरूरत नहीं। पुलिस के पास जाकर अपनी रिपोर्ट दर्ज करवाएं। जब भी ऐसी बातों को छिपाने की कोशिश की जाती है तो ब्लैकमेल करने वालों को मौका मिलता है। आजकल ऐसे बहुत सारे केस देखने को मिलते हैं, इसलिए ब्लैकमेलरों से सतर्क रहें।

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Chandigarh video leak scandal: The lessons we should learn

akb full_frame_74900The video leak scandal in Chandigarh University has set off a storm of questions about the privacy of girl students staying in hostels, whether they use common washrooms. Parents of students pursuing higher education in universities, colleges and professional institutes are worried about the issue of privacy. In Punjab, the scandal has set off a storm of fear and rage among girl students and their families. This was fuelled by several baseless rumours, about which I shall deal in detail.

A first year post-graduate girl student made an obscene video of herself in the washroom, and sent it to her male ‘friend’ in Himachal Pradesh. One of her colleagues caught her in the act, and the news soon spread throughout the hostel, and from there to students studying in the university. There were protests on Saturday and Sunday nights in the university campus.

Rumours were spread that at least 60 obscene videos of girl students have been circulated. Rumours were also spread that some of these videos have found their way to hardcore porn sites on the internet. Parents rushed to the university campus to speak to their children. Police arrested the girl student from the campus and her 23-year-old boyfriend in Shimla. A 31-year-old male was also arrested from Himachal Pradesh. Forensic experts are going through the phones of all the three to check whether more videos have been forwarded or whether chats have been deleted.

Since it was a sensitive matter relating to daughters, I sent four reporters to investigate the matter in Mohali. They spoke to top police officials and girl students of the university along with their parents. The university has been closed for one week, and students from Punjab and neighbouring states have been asked to vacate the hostels for the time being. The two ‘friends’ of the girl student arrested from HP, are from low profile backgrounds. The first, Sunny Mehta, has studied till Class 12 and works in a bakery in Shimla. His father is a labourer. The other male accused has also studied up to Class 12, and his father is also a labourer. The girl student was pursuing MBA in Chandigarh University. Punjab Police is carefully putting all the pieces of the jigsaw puzzle to find out the motives behind this scandal.

The university administration and Punjab Police have been saying repeatedly that no evidence has so far been found about sixty obscene videos circulating. But, several girl students staying in D Block hostel insist that they have seen several objectionable videos in the girl’s phone. They are alleging that the university authorities are trying to hush up the matter. The girls’ concerns and anger are justified, but one must understand that most of them are levelling charges based on hearsay and suspicions.

Our reporter spoke to university officials and police. He found that the girl student had joined the hostel only two weeks ago, and she had no acquaintance with most of the hostel inmates. She had only made a video of herself inside the washroom, and had forwarded to her friend in Shimla.

SSP of Mohali Navneet Virk emphatically said that the charge of 60 videos of girl students was totally baseless, and speculative and based on suspicion. Since these rumours floated fast on social media, it caused panic among the parents and relatives of girl students. Virk said, “she was making the video of her own, another girl saw it, and told her friend, who in turn informed the warden. The warden confiscated the phone. When the phone was opened, there were some videos of the girl herself. From this, it was surmised that the girl might have made videos of other girls too, but till now, no evidence has surfaced of other videos. It was a common washroom.”

The rumours spread because the hostel warden, while scolding the accused girl student, was alleging that she might have made videos of others too and had sent them to her friend. The warden, without crosschecking facts, was making allegations. This was heard by other girls who were warching, and they made a video of the scolding scene, and posted it on social media.

Since the hostel inmates had complained about the warden, the university administration suspended two hostel wardens, while other hostel wardens were transferred. Our reporter Puneet Parinja spoke to a hostel inmate who was staying on the same floor of Le Corbusier hostel. She told our reporter that she read the chats on the girl’s phone, and her apprehension was that the girl was being blackmailed by her boyfriend. She also said, there were no other objectionable videos in the girl’s phone. The inmate said, it was physically impossible to make 60 videos of others because the girl has joined the hostel only two weeks back.

One thing is certain. The rumour about 60 objectionable videos made of girl students is completely baseless. Punjab Police is however not leaving anything to chance. Police have found that the boyfriend had asked the girl to delete all data and apps from her phone. The cellphones of all three accused are now in the forensic lab to check whether data have been deleted or not. Police have verified that the three accused knew each other for the last three years. The blackmailing angle will also be pursued. Police will also probe whether the male friend Sunny Mehta was selling objectionable videos to porn sites. Punjab Police has promised to delve deep into this case and unearth facts.

On Tuesday, the special investigation team of Punjab Police took both the male suspects, Sunny Mehta and Rankaj Verma to their hometowns in Himachal Pradesh, to recover pen drives, computers and other devices. Police officials suspect the two might have stored several videos and photos on other devices. Police is trying to find out whether more videos were shared or uploaded on internet. Already the Kharar court in Mohali, Punjab, has sent the three accused, including the girl student, to police remand for one week.

Police have appealed to students and their families not to believe in rumours. Additional DGP Gurpreet Kaur Deo said, the matter is being thoroughly investigated and so far, there is no evidence of videos other than those of the arrested girl student being shot and shared .

We should remember one thing. This matter is related to the future of our daughters. A girl made an objectionable video, but rumours were spread about 60 videos made of her hostel inmates. Another rumour was spread that eight girl students committed suicide, but the fact was that some girl students fainted due to heat, during the protests that took place on Saturday and Sunday nights. Such rumours tend to make mountains out of a mole hill. They are being spread to strike fear in the minds of people. Most of the girl students realized that rumours were being spread, and they are tackling such rumours with strength. The problem is about their parents who are a worried lot. Several parents have asked their daughters to return home and stop staying in hostels. The biggest fear is whether the parents will discontinue their daughters’ education. Unfortunately, such things are happening because of rumours.

I would therefore appeal to all to be vigilant, and refrain from posting or forwarding baseless rumours without verifying facts. Had the rumours about 60 objectionable videos not spread on social media, such angry protests would not have taken place.

The final suggestion: if anyone feels that he or she has committed a wrong, there is nothing to fear. Go to the police and report. Whenever a victim tries to hide facts, the blackmailers gain an upper hand. Beware of blackmailers.

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मोदी ने पुतिन से यूक्रेन युद्ध खत्म करने को क्यों कहा?

AKBप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से साफ-साफ कहा कि ‘अब युद्ध का जमाना नहीं है’। उन्होंने यह बात शुक्रवार को उज्बेकिस्तान के समरकंद में SCO शिखर सम्मेलन से इतर एक द्विपक्षीय बैठक के दौरान कही। मोदी ने रूस-यूक्रेन संघर्ष का जिक्र करते हुए पुतिन से कहा कि अब ‘डेमोक्रेसी, डायलॉग और डिप्लोमेसी’ का वक्त है।

मोदी ने पुतिन से यूक्रेन युद्ध के कारण खाद्यान्न, ईंधन और उर्वरक की कमी के रूप में अन्य देशों के सामने आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए पहल करने का भी आग्रह किया। पुतिन ने मोदी से पहले अपनी बात रखी थी। उन्होंने रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत की स्थिति को स्वीकार हुए कहा था कि उनका देश संघर्ष को जल्द से जल्द रोकने की पूरी कोशिश करेगा।

पुतिन से मोदी की अपील वॉशिंगटन पोस्ट और न्यूयॉर्क टाइम्स के वेब पेज की मुख्य खबर थी। इसे अमेरिकी मुख्यधारा की मीडिया ने व्यापक कवरेज दी थी। वॉशिंगटन पोस्ट के खबर की हेडलाइन थी, ‘मोदी ने यूक्रेन में युद्ध के लिए पुतिन को फटकार लगाई।’

वेबसाइट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, ‘मोदी ने पुतिन को आश्चर्यजनक रूप से सार्वजनिक फटकार लगाते हुए कहा: ‘आधुनिक दौर युद्ध का युग नहीं है और मैंने आपसे इस बारे में फोन पर बात की है।’ रिपोर्ट में कहा गया, ‘पुतिन ने मोदी से कहा, ‘मैं यूक्रेन में संघर्ष पर आपका रुख जानता हूं, मैं आपकी चिंताओं से अवगत हूं, जिनके बारे में आप बार-बार बताते रहते हैं। हम इसे जल्द से जल्द रोकने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। दुर्भाग्य से, विरोधी पक्ष यूक्रेन के नेतृत्व ने वार्ता प्रक्रिया छोड़ने का ऐलान किया और कहा कि वह सैन्य माध्यमों से यानी ‘युद्धक्षेत्र में’ अपना लक्ष्य हासिल करना चाहता है। फिर भी, वहां जो भी हो रहा है, हम आपको उस बारे में सूचित करते रहेंगे।’

‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ की हेडलाइन थी, ‘भारत के नेता ने पुतिन को बताया कि यह युद्ध का दौर नहीं है।’ उसने लिखा, ‘मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यूक्रेन के हमले के बाद पुतिन के साथ पहली आमने-सामने की बैठक के एक दिन बाद ये टिप्पणियां कीं। जिनपिंग ने रूसी राष्ट्रपति की तुलना में अधिक शांत लहजा अपनाया और अपने सार्वजनिक बयानों में यूक्रेन के जिक्र से बचने की कोशिश की।’

पुतिन के साथ अपनी मुलाकात के दौरान मोदी यूक्रेन के मुद्दे को काफी चतुराई से उठाया। मोदी ने पहले तो जंग में फंसे भारतीय छात्रों को सुरक्षित निकालने के लिए यूक्रेन और रूस का शुक्रिया अदा किया और कहा कि वह इसके लिए दोनों देशों के आभारी हैं, लेकिन साथ ही पुतिन से ये भी कहा कि युद्ध किसी के लिए अच्छा नहीं है। मोदी ने कहा, युद्ध समाधान नहीं खुद समस्या है।

रूस ने यूक्रेन पर इसी साल 24 फरवरी को हमला किया था। उस वक्त पुतिन ने कहा था कि 7 दिन में फैसला हो जाएगा, और यूक्रेन को रूस फतह कर लेगा। 7 महीने बीत चुके हैं, और यूक्रेन के कई इलाकों में अब रूस की सेना को पीछे हटना पड़ रहा है। रूस का दांव उल्टा पड़ गया है। युद्ध की बजह से यूक्रेन तो पूरी तरह बर्बाद हो गया है, लेकिन रूस के हालात भी अच्छे नहीं हैं। रूस में बेरोजगारी और मंहगाई बढ़ रही है, और इसका असर पूरी दुनिया पर हो रहा है।

क्रूड ऑयल और प्राकृतिक गैस की कीमतें बढ़ गई हैं। यूक्रेन और रूस मिलकर दुनिया भर में फर्टिलाइजर्स (उर्वरक) की सप्लाई करते हैं। भारत भी यूक्रेन से फर्टिलाइजर मंगवाता है, लेकिन युद्ध के कारण यूरिया की सप्लाई बंद है। खाद की किल्लत हो रही है और गेहूं की पैदावार पर भी इसका असर पड़ा है। कुल मिलाकर यूक्रेन और रूस के बीच चल रही जंग न यूक्रेन के लिए अच्छी है, न रूस के लिए और न पूरी दुनिया के लिए। दिक्कत की बात यह है कि रूस इतना आगे बढ़ चुका है कि पुतिन के लिए अपनी फौज को वापस लौटने का आदेश देना मुश्किल है। यूक्रेन भी अब बातचीत के मूड में नहीं हैं। इसीलिए मोदी ने पुतिन को इशारा दिया कि जिद से कुछ नहीं होगा। उन्होंने पुतिन से कहा कि डिप्लोमेसी और डायलॉग से ही रास्ता निकल सकता है।

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में मोदी ने बताया कि कैसे भारत ने वैक्सीन और दवाएं भेजकर दुनिया के बाकी देशों की मदद की। उन्होंने कहा कि भारत अब स्टार्टअप का हब बन रहा है, लेकिन कुछ देश तरक्की में रुकावट पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। मोदी का इशारा पाकिस्तान की तरफ था, जिसने भारत को मध्य एशिया को ‘ट्रांजिट राइट्स’ यानी अपने यहां से सामान गुजरने देने की इजाजत देने से इनकार कर दिया है। भारत का प्लान ताजिकिस्तान से अफगानिस्तान और पाकिस्तान होते हुए गैस पाइपलाइन बिछाने का है, लेकिन पाकिस्तान के रवैये के कारण यह प्रोजेक्ट बरसों से लटका है। शिखर सम्मेलन में मोदी ने मांग की कि सभी देशों को बेहतर कनेक्टिविटी के लिए ‘ट्रांजिट राइट्स’ मिलने चाहिए।

भारत ने भूख से तड़प रहे अफगानिस्तान के लोगों की मदद की कोशिश की थी, लेकिन पाकिस्तान ने गंहूं से भरे ट्रकों को रास्ता देने में बहुत आनाकानी की। मोदी की स्पीच को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने सुना, और एक अलग ही रास्ता पकड़ लिया। उन्होंने अफगानिस्तान को SCO में शामिल करने का आह्वान किया। शिखर सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो मौजूद थे। भुट्टो ने माना कि शहबाज शरीफ और नरेंद्र मोदी के बीच ‘हार्ड टॉक’ हुई थी। जब भुट्टो से पूछा गया कि क्या पाकिस्तान अगले साल भारत में होने वाले SCO शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेगा, तो उन्होंने जवाब दिया कि पाकिस्तान ने अभी इस बारे में फैसला नहीं किया है।

पुतिन ने मोदी को यह कहकर आश्चर्यचकित कर दिया कि मुझे पता है कि शनिवार को आप अपना जन्मदिन मनाने वाले हैं। पुतिन ने कहा कि रूसी परंपरा के मुताबिक हम कभी एडवांस में बधाई नहीं देते, क्योंकि यह शुभ नहीं माना जाता। पुतिन ने कहा, ‘लेकिन मैं आपको ये जरूर बताना चाहूंगा कि हमें आपके जन्मदिन की जानकारी है। रूसी परंपरा के मुताबिक, मैं आपको एडवांस में बधाई नहीं दे सकता। मैं आपको शुभकामनाएं देता हूं। मैं रूस के दोस्त भारत को भी शुभकामनाएं देता हूं।’

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Why Modi asked Putin to call off the Ukraine war

AKBPrime Minister Narendra Modi minced no words when he clearly told Russian President Vladimir Putin that “this is not the era of war”. He said this during a bilateral meeting on the sidelines of SCO Summit in Samarkand, Uzbekistan, on Friday. Modi underlined the significance of “democracy, dialogue and diplomacy” when he spoke about the Russia-Ukraine conflict.

Modi also urged Putin to take the initiative in addressing the problems faced by other countries in the form of foodgrains, fuel and fertiliser scarcity, due to the Ukraine war. Putin spoke before Modi. He acknowledged India’s position on the Russia-Ukraine conflict and said his country will do its best to stop the conflict as soon as possible.

Modi’s appeal to Putin was the frontpage lead story on the web pages of Washington Post and New York Times. It was widely carried in American mainstream media. The Washington Post story was headlined, ‘Modi rebukes Putin over war in Ukraine’.

The report said, “In a stunning public rebuke, Modi told Putin: Today is not the era of war, and I have spoken to you on the phone about this”. The report said, “Putin said, ‘I know your position on the conflict in Ukraine, about the concerns that you constantly express. We will do our best to stop this as soon as possible. Unfortunately, the opposing side, the leadership of Ukraine, announced it was abandoning the negotiation process, and declared that it wants to achieve its goals by military means., as they say, on the battlefield. Nevertheless, we will keep you informed of what is happening there.’ ”

The New York Times headlined its story, “India’s leader tells Putin that now is not an era for war”. The report said, “Mr Modi’s comments came a day after President Xi Jinping of China – in his ffirst face-to-face meeting with Mr Putin since the invasion began – struck a far more subdued tone than the Russian president, and steered clear in his public comments of any mention of Ukraine.”

During his meeting with Putin, Modi was very careful while raising the Ukraine issue. He first thanked both Ukraine and Russia for the save evacuation of Indian students, expressed his gratitude and in the same breath, told Putin that war will not help either side. Modi said, war is not a solution, it is a problem.

Russia invaded Ukraine on February 24 this year. At that time, Putin had said, the picture would be clear in seven days, and Russia will take control of Ukraine. Seven months have passed, and now Russian army units had to withdraw from several areas of occupied Ukraine. The economy of Ukraine has suffered huge damage, while the condition of Russian economy is no better. There is unemployment and pricerise in Russia, and this has resulted in consequences for the rest of the world.

Prices of crude and natural gas have risen. Russia and Ukraine are the major exporters of fertilisers. India imports fertilisers from Ukraine, but its supply lines have been cut due to the war. Lack of fertilisers has affected wheat cultivation. Overall, the war between Ukraine and Russia is neither help both, nor will it help the world. The problem is that Russia is no much neck deep in conflict, that it may become difficult for it to withdraw. Ukraine too is not in the mood for dialogue. It was in this context that Prime Minister Modi indicated to Putin indirectly that a stubborn policy will not help. The way out can be found only through diplomacy and dialogue, Modi told Putin.

At the Shanghai Cooperation Organisation (SCO) summit, Modi recounted how India helped other countries of the world by sending vaccines and medicines. He pointed out that India has now become a big hub for startups, but some countries are trying to create obstacles. He was indirectly referring to Pakistan which has refused to give India transit rights to Central Asia. India’s gas pipeline project from Tajikisatan via Afghanistan and Pakistan, is hanging fire due to Pakistan’s intransigence. At the Summit, Modi demanded that all countries must get transit rights for better connectivity.

India wanted to help the starving people of Afghanistan by sending truckloads of foodgrains, but Pakistan objected. Modi’s speech was heard by Pakistan Prime Minister Shehbaz Sharif, who went on a different tangent. He called for inclusion of Afghanistan in SCO. Pakistan Foreign Minister Bilawal Bhutto was present during the Summit. Bhutto admitted that there was hard talk between Shehbaz Sharif and Narendra Modi. He was asked whether Pakistan would attend SCO summit next year in India. Bhutto replied, Pakistan has not yet decided.

The icing on the cake was when Putin told Modi that he knew the Indian PM would be celebrating his birthday on Saturday, but, he said, in Russian tradition, it is not considered auspicious to wish anybody on his birthday before hand. “But I want to tell you, my friend, that you are going to celebrate your birthday tomorrow. Because of Russian tradition, I cannot wish you in advance. I offer my good wishes to you and Indian, which is Russia’s friend”, Putin said.

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मोदी रच रहे हैं इतिहास: भारत की सरज़मीं पर 70 साल बाद दौड़ेंगे चीते

AKB17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन है। इस साल अपने जन्मदिन के मौके पर वह देश को एक बेहतरीन तोहफा देने वाले हैं। वह मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में अफ्रीकी मुल्क नामीबिया से लाये गये 4 से 6 साल की उम्र के 8 जंगली चीते छोड़ेंगे। यहां इन चीतों को सबसे पहले 500 हेक्टेअर के इलाके में क्वारंटीन वाले बाड़े में रखा जाएगा।

इन चीतों को, जिनमें 3 नर और 5 मादा हैं, नामीबिया की राजधानी विंडहोक से ग्वालियर तक एक विशेष विमान में लाया जाएगा। यह विमान 10 घंटे की उड़ान के दौरान अफ्रीकी महाद्वीप से भारत तक 8 हजार किलोमीटर की दूरी तय करेगा। इसके बाद इन चीतों को हेलीकॉप्टर से कुनो नेशनल पार्क ले जाया जाएगा। यात्रा के 2 दिन पहले इन चीतों को नामीबिया में भोजन दिया गया है और फ्लाइट में 3 पशु चिकित्सक उनके साथ रहेंगे। पूरे सफर के दौरान इन्हें बेहोश नहीं किया जाएगा। 3 महीने तक चीतों के व्यवहार में हुए बदलावों पर नजर रखने के बाद इन्हें 75,000 हेक्टेयर में फैले राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा जाएगा।

चीतों को खास तौर से परिवर्तित बोइंग-747 विमान में नामीबिया से ग्वालियर लाया जा रहा है। विमान के अगले हिस्से पर बाघ का चेहरा पेंट किया गया है। ग्वालियर से इन्हें भारतीय वायुसेना के 2 चिनूक हैवीलिफ्ट हेलीकॉप्टरों से मध्य प्रदेश में श्योपुर के पास कुनो नेशनल पार्क लाया जाएगा। भारतीय वायुसेना के जवान इस ऑपरेशन को एक घंटे के अंदर पूरा कर लेंगे।

नामीबिया के अलावा अगले महीने साउथ अफ्रीका से 12 और चीते लाए जाने वाले हैं। भारत में African Cheetah Introduction Project की कल्पना 2009 में की गई थी। सत्तर के दशक में गुजरात के गीर जंगल से एशियाई शेरों के बदले ईरान से चीतों को लाने का प्रस्ताव था, लेकिन यह कोशिश नाकाम रही। 2009 में नए प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद 2010 और 2012 के बीच भारत में 10 स्थानों पर नए सिरे से सर्वे कराया गया और अंत में कुनो नेशनल पार्क को चुना गया। जनवरी 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नामीबिया और साउथ अफ्रीका से चीतों को लाने की इजाजत दे दी। चीतों को भारत लाने के लिए इस साल जुलाई में नामीबिया के साथ एक समझौते पर दस्तखत किए गए थे।

पिछले साल नवंबर में इन चीतों के भारत आने की उम्मीद थी, लेकिन कोविड महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था। इस प्रोजेक्ट पर 70 करोड़ रुपये खर्च होंगे, जिसमें से 50 करोड़ रुपये इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन द्वारा वहन किए जाएंगे। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने इंडियी ऑयल के साथ इस आशय के एक MoU पर दस्तखत किया है। चीतों के गले में हाई फ्रीक्वेंसी वाले सैटेलाइट रेडियो कॉलर पहनाये जाएंगे, और इन्हें शिकार के लिए बाड़ों के अंदर चीतल हिरण छोड़े जाएंगे।

चीता कंजर्वेशन फंड की एक स्टडी के मुताबिक, 1965 और 2010 के बीच पूरे अफ्रीकी महाद्वीप में 727 चीतों को 64 जगहों पर फिर से बसाया गया था, लेकिन जन्म के मुकाबले मृत्यु दर के अनुपात के आधार पर यह कवायद 64 में से सिर्फ 6 जगहों पर ही कामयाब रही थी।

भारत की सरज़मीं पर एक बार फिर इन चीतों के आने से इनके संरक्षण के एक नए युग का सूत्रपात होगा। चीता दुनिया का सबसे तेज़ जानवर है जो 80 से 128 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने में सक्षम है। चीते का बदन हल्का है, उसकी टांगें लम्बी और पतली हैं, इसके कारण जब वह दौड़ता है, तो उसकी रफ्तार देखते बनती है। मध्ययुगीन भारत में हजारों चीते थे, लेकिन बेतहाशा शिकार किए जाने की वजह से वे विलुप्ति की कगार पर पहुंच गए।

भारत में चीते तटीय क्षेत्रों, ऊंचे पहाड़ी इलाकों और उत्तर-पूर्व में पाए जाते थे। भोपाल और गांधीनगर के पास नवपाषाण युग के गुफा चित्रों में चीतों के चित्र हैं। बीसवीं सदी की शुरुआती में इनकी संख्या में तेजी से गिरावट आई। 1918 और 1945 के बीच, लगभग 200 चीतों को भारत लाया गया था, लेकिन फिर भी उनकी संख्या घटती गई। अंतिम तीन चीतों का शिकार छत्तीसगढ़ के कोरिया के स्थानीय शासक राजा रामानुज प्रताप सिंह ने 1947 में किया था। 1952 में सरकार ने चीतों के भारत से विलुप्त होने की घोषणा कर दी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की सरज़मीं पर चीतों को फिर से लाकर एक बड़ा कदम उठाया है। इन चीतों को अफ्रीका से भारत लाने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए उनकी जितनी सराहना की जाय, कम है।

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Modi scripts history: Cheetahs will land in India after 70 years

AKB30 On his birthday (September 17), Prime Minister Narendra Modi will be giving a special gift to the nation. He will release eight wild cheetahs, aged between four and six years, into quarantine enclosures, spread over 500 hectares at Kuno National Park in Madhya Pradesh.

These cheetahs, three males and five females, will be brought in a special plane from Namibian capital Windhoek via Gwalior, during a ten-hour-long flight covering eight thousand kilometres from African continent to India. They will then be taken in helicopters to Kuno National Park. The cheetahs have been fed in Namibia two days before their journey and three veterinary doctors will accompany them during the flight. The wild animals will not be tranquilized during the flight.

After observation of changes in their behaviour for three months, these cheetahs will be released into the National Park spread over 75,000 hectares.

A specially modified Boeing-747 plane, with its nose painted with the face of a tiger, will bring the eight cheetahs from Namibia to Gwalior. From there, there will be flown in two IAF Chinook heavy-lift helicopters to the Kuno National Park near Sheopur in Madhya Pradesh. Indian Air Force personnel will complete this operation within one hour.

Apart from these eight cheetahs from Namibia, 12 more cheetahs may be brought next month from South Africa. The African Cheetah Introduction Project in India was conceived way back in 2009. During the Seventies, there was a proposal to bring cheetahs from Iran in exchange for Asiatic Lions from Gir forest, but the move failed. After the new project was launched in 2009, fresh surveys were conducted at 10 locations in India between 2010 and 2012, and finally Kuno National Park was selected. In January, 2020, the Supreme Court allowed the government to bring cheetahs from Namibia and South Africa. An agreement with Namibia was signed in July this year for translocation of cheetahs.

The cheetahs were expected to come to India by November last year, but it was postponed due to Covid pandemic. Rs 70 crore will be spent on this project, out of which Rs 50 crore will be borne by Indian Oil Corporation, as per an MOU signed with National Tiger Conservation Project (NTCA). The cheetahs will wear high frequency satellite radio collars, and they will be provided ‘cheetal’ (spotted deer) to hunt inside the enclosures.

According to a study by Cheetah Conservation Fund, 727 cheetahs were translocated to 64 sites across the African continent between 1965 and 2010, but only six out of the 64 sites proved successful, based on births to mortality ratio.

The reintroduction of cheetahs on Indian soil will mark a new era in wild animal conservation. Cheetah is the fastest land animal that is capable of running from 80 to 128 kilometre per hour, as they are lightly built, have long, thin legs and a long tail. During the Middle Ages, there were thousands of cheetahs across India, but their numbers gradually shrunk because of excessive hunting.

Cheetahs were found in coastal, higher hilly areas and in the north-east. There are images of cheetahs in the cave paintings of Neolithic Age near Bhopal and Gandhinagar. Their numbers fell fast during the early part of 20th century. Between 1918 and 1945, nearly 200 cheetahs were imported, but their numbers continued to dwindle. The last three cheetahs were hunted and killed by the local ruler of Korea in Chhattisgarh, Raja Ramanuj Pratap Singh in 1947. Finally, in 1952, the government declared that cheetahs have become extinct in India.

Prime Minister Narendra Modi has taken a pathbreaking step by reintroducing cheetahs on Indian soil. He deserves accolades for speeding up the process of bringing the cheetahs from African soil to India.

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नीतीश को योगी से सीखना चाहिए कि अपराधियों से कैसे निपटें

AKBबिहार तेज़ी से ‘जंगलराज’ की तरफ लौट रहा है और क्राइम का ग्राफ चढ़ता ही जा रहा है। बेगूसराय जिले में सोमवार की शाम मोटरसाइकिलों पर सवार बदमाशों ने नेशनल हाईवे पर 30 किलोमीटर तक फर्राटा भर कर गोलियां बरसाईं। एक राहगीर की मौत हो गई जबकि 9 अन्य घायल हो गए।

बिहार पुलिस लापरवाह दिखी और बदमाशों का पकड़ा जाना अभी बाकी है। पेट्रोलिंग टीम को लीड करने वाले 7 सब-इंस्पेक्टर्स को ड्यूटी में लापरवाही बरतने के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया है। बदमाश उन इलाकों से भी गुजरे थे जहां इन पेट्रोलिंग टीमों की ड्यूटी लगी थी। इंडिया टीवी के रिपोर्टर ने बाद में पाया कि पुलिस की एक गाड़ी में वायरलेस सेट काम ही नहीं कर रह था। पुलिस ने पहले बताया कि एक बाइक पर 2 बदमाश सवार थे, लेकिन बाद में CCTV फुटेज की जांच में पता चला कि 2 मोटरसाइकिलों पर सवार 4 बदमाशों ने घटना को अंजाम दिया।

शाम करीब 4 बजे मोटरसाइकिल सवार बदमाश बेगूसराय कस्बे के मल्हीपुर चौक पहुंचे और इस व्यस्त इलाके में कई दुकानों की तरफ फायरिंग की। दहशत में लोग खुद को बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे और कई दुकानदार तो अपनी दुकानें खुली छोड़कर भागे । बदमाशों ने बछवाड़ा से चकिया तक 30 किलोमीटर की दूरी तय की और इस दौरान 4 थाना क्षेत्रों को पार किया।

फायरिंग की पहली घटना बछवाड़ा में हुई, जहां एक फाइनेंस कंपनी के 26 वर्षीय कर्मचारी विशाल कुमार को गोली मारी गई। तेघड़ा में 30 वर्षीय गौतम कुमार गोलीबारी के दूसरे शिकार थे। तीसरी फायरिंग फुलवड़िया मोती चौक में हुई, जहां एक युवक दीपक कुमार की पीठ में गोली मारी गई। फायरिंग की चौथी घटना चकिया में हुई।

फायरिंग की घटनाओं में घायल हुए 9 लोगों के नाम हैं: रोहित कुमार, रंजीत कुमार, विशाल कुमार, प्रशांत कुमार रजक, गौरव कुमार, दीपक चौधरी, भरत यादव, अमरजीत दास और अमरजीत कुमार उर्फ जीतू। घायलों में एक एलपीजी एजेंसी का ड्राइवर, एक आइसक्रीम विक्रेता, एक पान बेचने वाला, एक चरवाहा और एक पंचायत सदस्य शामिल है।

बेगूसराय के एसपी योगेंद्र कुमार ने कहा कि गुंडों की गिरफ्तारी के लिए 4 स्पेशल टीमों का गठन किया गया है। 5 लोगों को हिरासत में लिया गया है और जिले की सीमाओं को सील कर दिया गया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पुलिस महानिदेशक एसके सिंघल को अपने आवास पर तलब किया और निर्देश दिया कि गुंडों को तुरंत पकड़ा जाए।

रास्ते में 4 पुलिस थाने थे और एक जगह तो पुलिस थाने से सिर्फ 500 मीटर की दूरी पर गोलियां चलाई गईं। बदमाशों ने अपने चेहरे को नहीं ढंका था और पुलिस की टीमें तस्वीरों की मदद से उनका पता लगाने की कोशिश कर रही हैं। वरिष्ठ अफसरों ने दावा किया कि जब फायरिंग शुरू हुई तब वायरलेस नेटवर्क पर अलर्ट दिया गया, लेकिन पुलिस की तरफ से कोई ऐक्शन नहीं हुआ।

बछवाड़ा टोल प्लाजा के सीसीटीवी फुटेज में मोटरसाइकिल पर बैठे बंदूकधारियों को बिना किसी डर के गाड़ी चलाते और पैदल चलने वालों पर फायरिंग करते हुए देखा जा सकता है। करीब 40 मिनट तक फायरिंग होती रही लेकिन पुलिस उन्हें कहीं भी नहीं रोक पाई। आखिरी फुटेज में बदमाशों को NTPC चौक से पटना की ओर जाने वाली सड़क की तरफ भागते हुए देखा गया।

हैरानी की बात यह है कि 40 मिनट तक गोलीबारी होती रही और पुलिस की तरफ से कोई ऐक्शन नहीं लिया गया। गोलीबारी के शिकार लोगों को उनके हाथ, पैर, पेट और शरीर के निचले हिस्सों में गोलियां लगीं। घायल पीड़ित सड़क के किनारे पड़े तड़प रहे थे, कराह रहे थे। पुलिस ने कुछ घायलों को अस्पताल भेजा जबकि कुछ घायलों को आम लोगों ने ही ऑटोरिक्शा से हॉस्पिटल पहुंचाया।

चश्मदीदों का कहना है कि बाइक के पीछे बैठकर फायरिंग करने वाला शख्स शराब के नशे में दिख रहा था, जबकि कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि पुलिस की पट्रोलिंग पार्टी हाइवे पर तैनात थी और उन्होंने भी अपराधियों को देखा, इसके बावजूद उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की।

बेगूसराय के एसपी योगेंद्र कुमार ने माना कि बछवाड़ा, तेघड़ा, फुलवड़िया और बरौनी थाना क्षेत्रों में पुलिस की पट्रोलिंग टीमों ने ठीक से काम नहीं किया। उन्होंने कहा कि इसके अलावा FCI आउटपोस्ट, चकिया आउटपोस्ट और जीरो माइल आउटपोस्ट पर तैनात पुलिसवालों ने भी ड्यूटी में लापरवाही बरती।

बंदूकधारियों का पता लगाने के लिए पटना, समस्तीपुर, नालंदा, लखीसराय, खगड़िया और बेगूसराय में अलर्ट जारी किया गया है। बिहार पुलिस के ADG ने कहा, प्रथमदृष्टया ऐसा लगता है कि फायरिंग लूट, व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने या किसी को निशाना बनाने के लिए नहीं की गई थी। एडीजी ने कहा, पुलिस को सिर्फ 30 मिनट का ‘छोटा सा वक्त’ मिला था और इसलिए वह तुरंत जवाब नहीं दे सकी। यह बयान हैरान करने वाला है। चश्मदीदों के मुताबिक, उन्होंने हाईवे पर मौजूद पुलिसवालों से बदमाशों को रोकने के लिए कहा था, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।

इंडिया टीवी के रिपोर्टर नीतीश चंद्र ने तेघड़ा थाने के पुलिस सब-इंस्पेक्टर कृष्ण कुमार से मुलाकात की। उन्हें ड्यूटी में लापरवाही बरतने के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया है। कृष्ण कुमार ने हमारे रिपोर्टर को बताया कि जब वारदात हुई तब वह पट्रोलिंग की ड्यूटी पर नहीं बल्कि थाने में थे, और गश्त पर जाने के लिए गाड़ी का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उन्हें तो पता ही नहीं था कि गोलीबारी की कोई वारदात हुई है क्योंकि थाने में उस वक्त तक ऐसी कोई खबर नहीं आई थी।

हमारे रिपोर्टर ने बरौनी थाने में तैनात संजय कुमार से भी मुलाकात की। संजय कुमार हाईवे ड्यूटी पर थे और जब फायरिंग हुई तब वह हाइवे पर ही मौजूद थे। बाइक पर सवार अपराधी उनके सामने से निकल गए। संजय कुमार का कहना है कि जब गुंडे उनके सामने से निकले तब तक उन्हें घटना के बारे में कोई सूचना ही नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘हम उन्हें कैसे पकड़ते? हाईवे से सैकड़ों बाइकें गुजरती हैं। किसी के माथे पर थोड़े लिखा होता है कि वह फायरिंग करके आ रहा है।’

सस्पेंड होने वालों में जीरो माइल आउटपोस्ट में तैनात सब-इंस्पेक्टर मुकरू हेम्ब्रम भी शामिल हैं। हेम्ब्रम ने कहा कि घटना के दिन वह हाइवे पर पट्रोलिंग कर रहे थे, लेकिन जब तक उन्हें फायरिंग की खबर मिली, तब तक तो भीड़ लग चुकी थी। हमारे रिपोर्टर से हेम्ब्रम ने कहा, ‘ये सब गलत बात है कि वायरलेस पर इस तरह की कोई सूचना फ्लैश हुई थी। मैंने कोई गलती नहीं की है। बड़े अफसर अपनी नौकरी बचाने के लिए छोटे लोगों को बलि का बकरा बना रहे हैं।’

फुलवड़िया थाने में इंडिया टीवी के रिपोर्टर नीतीश चंद्र को एक पट्रोलिंग जीप मिली। जब उन्होंने पूछा कि गाड़ी में लगा वायरलेस सेट काम कर रहा है तो जवाब में पुलिसवालों ने कहा कि सब दुरुस्त है। लेकिन जब हमारे रिपोर्टर ने पुलिसवालों से पूछा कि जरा बताइए वायरलेस सेट कैसे काम करता है, तो जीप में बैठे पुलिसकर्मी हड़बड़ा गए। वायरलेस सेट काम नहीं कर रहा था। उस पर कोई मैसेज नहीं आ रहा था। इसके बाद पुलिसकर्मी ने कहा कि वह तो ड्राइवर है, और सिर्फ ऑपरेटर ही वायरलेस सेट को चला सकता है।

पुलिस की गाड़ियों में लगे वायरलेस सेट काम नहीं कर रहे थे और यह भी एक वजह हो सकती है कि गुंडे हाइवे पर 30 किलोमीटर तक गोलियां बरसाते गए और पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पाई।

बेगूसराय में बुधवार को बीजेपी कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री और बेगूसराय से बीजेपी के सांसद गिरिराज सिंह जिले में पहुंचे और घटना में मारे गए नौजवान चंदन कुमार के अंतिम संस्कार में शामिल हुए। 32 साल के चंदन कुमार NTPC के कर्मचारी थे। वह शाम को ड्यूटी से लौट रहे थे कि तभी हाइवे पर उन्हें गोली लगी और मौके पर ही उनकी मौत हो गई। गिरिराज सिंह ने चंदन की अर्थी को कंधा दिया और कहा कि चंदन की सबसे बड़ी गलती यह थी कि वह बिहार में पैदा हुए।

गिरिराज सिंह पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बेगूसराय के महादेव चौक पर धरने पर बैठ गए। उन्होंने चंदन कुमार के परिवार के लिए एक करोड़ रुपये के मुआवजे और उनकी विधवा के लिए नौकरी की मांग की। उन्होंने घायलों के लिए भी 50 लाख रुपये के मुआवजे की मांग की। उन्होंने कहा, ‘आइसक्रीम बेचने वाले, पान वाले, एलपीजी एजेंसी के ड्राइवर की मदद कौन करेगा जिन्हें गोलियां मारी गईं?’

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा ने अस्पताल में घायलों से मुलाकात की। उन्होंने आरोप लगाया कि ‘बिहार में अपराध अब आतंकवाद का रूप ले रहा है। ऐसी घटनाएं पहले कभी नहीं हुईं।’ लेकिन घायलों से मुलाकात करने वाले RJD विधायक राजबंशी महतो ने कहा, ‘यह घटना सरकार को बदनाम करने के षड्यंत्र का हिस्सा हो सकती है।’

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी कहा, ‘बेगूसराय में जो कुछ भी हुआ वह पूर्व नियोजित और जानबूझकर किया गया। यह निश्चित तौर पर एक साजिश है। जहां फायरिंग की गई वहां एक तरफ मुसलमानों का इलाका है और दूसरी तरफ पिछड़े वर्ग के लोग रहते हैं।’ यानी मुख्यमंत्री आरोप लगा रहे थे कि बंदूकधारियों के निशाने पर मुसलमान और पिछड़े वर्ग के लोग थे।

मंगलवार को बेगूसराय की सड़कों पर जो दिखा वह फिल्मों में होता है। बाइक पर सवार गुंडे गोलियां चलाते हैं, लोगों को मारते हैं और जोर-जोर से सायरन बजाती पुलिस तब पहुंचती है जब गुंडे फरार हो चुके होते हैं। लेकिन जितना हैरान करने वाली यह वारदात थी, जितना परेशान करने वाला पुलिस का जवाब था, उससे ज्यादा हैरान परेशान करने वाला नीतीश कुमार का रिएक्शन था। नीतीश बाबू कह रहे थे कि कोई साजिश है क्योंकि वहां एक तरफ मुसलमान रहते हैं और दूसरी तरफ पिछड़े।

मैं नीतीश कुमार से एक आसान सवाल पूछना चाहता हूं: क्या 30 किलोमीटर सड़क पर बाइक दौड़ाते, गोलियां चलाते गुंडे ये देख रहे थे कि पिछड़ों को गोली मारनी है या मुसलमानों को? यह मजाक नहीं तो और क्या है? क्या बिहार में आजकल लोग अपनी जाति, अपने धर्म का टैग माथे पर लगा कर सड़कों पर उतरते हैं? अगर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोलीबारी की ऐसी वारदात को जाति और मजहब की नजर से देखेंगे तो जांच का क्या हाल होगा?

अगर मुख्यमंत्री यह कहेंगे कि फायरिंग करने वालों ने पिछड़ों और मुसलमानों को निशाना बनाने की कोशिश की, तो क्या पुलिस गुंडों की जाति पूछेगी, या मरने वालों का मजहब क्या था इसकी जांच करेगी? किसी भी सरकार के लिए यह शर्म की बात है कि एक हाइवे पर 30 किलोमीटर तक 40 मिनट फायरिंग होती रहे और 30 घंटे के बाद भी पुलिस अपराधियों को खोज न पाए।

बिहार में 17 साल सरकार चलाने के बाद क्या नीतीश कुमार को यह सीखना बाकी है कि अपराधियों का इलाज कैसे होता है? अगर नहीं मालूम तो उन्हें कुछ दिन योगी आदित्यनाथ के साथ अपने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में बिताने चाहिए। उन्हें वहां जाकर यह देखना चाहिए कि किस तरह योगी सरकार ने अपराधियों के दिल में कानून का खौफ पैदा किया है।

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Nitish should learn from Yogi on how to tackle criminals

akbBihar is fast returning to a state of lawlessness with the crime graph on the upside. On Monday evening, motorbike-borne goons travelled for 30 kilometres on the national highway after spraying bullets on pedestrians in Begusarai district. One pedestrian was killed and nine others were injured in the firing.

The state police was caught unawares and the goons are yet to be caught. Seven police sub-inspectors heading patrol teams were suspended on charge of dereliction of duty. The goons had passed through the areas where these patrol teams were supposed to be on duty. India TV reporter later found that the wireless set in one of the police vehicles was not working. Police earlier said, there were two gunmen on a bike, but later while checking CCTV footage, it was found there were four gunmen riding two motorbikes.

At around 4 pm, the gunmen on motorbikes arrived at Malhipur Chowk in Begusarai town and opened fire at several shops in the busy area. In panic, people ran helter-skelter to protect themselves, even as several shopkeepers fled, leaving their shops open. The goons travelled a distance of 30 km from Bachhwara to Chakia in Begusarai crossing four police station areas.

The first firing took place in Bachhwara, where Vishal Kumar, a 26-year-old employee of a finance company was shot at. The second to hit by a bullet was 30-year-old Gautam Kumar in Teghara. The third firing took place in Fulwaria Moti Chowk, where a young man, Deepak Kumar was shot in his back. The fourth firing incident took place in Chakia.

The names of the nine injured persons are: Rohit Kumar, Ranjit Kumar, Vishal Kumar, Prashant Kumar Rajak, Gaurav Kumar, Deepak Chaudhary, Bharat Yadav, Amarjit Das, and Amarjit Kumar alias Jitu. Among those injured was a driver of an LPG agency, an ice cream vendor, a ‘paan’ (betel) seller, a shepherd and a member of a panchayat.

Begusarai SP Yogendra Kumar said, four special teams have been set up to arrest the goons. Five persons have been detained and the district borders have been sealed. Bihar chief minister Nitish Kumar summoned Director General of Police S K Singhal to his residence and directed that the goons be caught immediately.

There were four police stations on the route, and one of the firing incidents took place at a spot 500 metres away from a police station. The goons were not hiding their faces, and police teams are trying to trace them with the help of photographs. Senior officials claimed that when the firing spree began, an alert was given on police wireless network, but police did not swing into action.

CCTV footage from Bachhwara toll plaza shows the gunmen sitting on motorbike driving without any fear, and firing at pedestrians. The firing spree went on for nearly 40 minutes, but police did not stop them at any single point. The last footage was that of the goons fleeing from NTPC Chowk towards the road leading to Patna.

It is really surprising that police did not act for nearly 40 minutes when the firing spree went on. The victims were hit by bullets in their arms, legs, stomach and lower parts of the body. The injured victims were lying near the road, groaning in agony. Police did send some of the injured to hospitals, while local residents took some of those injured in autorickshaws.

One eyewitness said the gunmen appeared to be drunk, while some others alleged that a police patrolling party was on the highway, the policemen saw the criminals, but did not try to stop them.
Begusarai SP Yogendra Kumar admitted that the patrolling teams in Bachhwara, Teghara, Fulwaria and Barauni police station areas did not respond immediately. He said, policemen at FCI outpost, Chakia outpost and Zero Mile outpost were also found negligent in their duty.

An alert has been issued to find out the whereabouts of the gunmen in Patna, Samastipur, Nalanda, Lakhisarai, Khagaria and Begusarai. The Additional DGP of Bihar Police said, prima facie there appears to be no apparent motive of robbery, personal enmity, or targeted firing. The ADG said, police got “a brief period” of 30 minutes and could not respond immediately. This remark is surprising. Eyewitnesses have said, they told the police team on the highway to stop the goons, but police did not take action.

India TV reporter Nitish Chandra met police sub-inspector Krishna Kumar of Teghara police station. He has been suspended for dereliction of duty. Krishna Kumar told our reporter that he was not on patrol duty during the crime, he was inside the police station, and was waiting for the police vehicle to go on patrol duty. He said, he had no knowledge about the firing spree, because no such info was passed on to his police station.
Our reporter also met Sanjay Kumar posted at Barauni police station. He was on highway duty, he was present on the highway when the firing spree took place, the goons sped away on their bike in his presence. Sanjay Kumar says, he had no information about the firing, when the goons sped away in his presence. “How can we catch them? There are hundreds of bikes that pass through? Is it written on anybody’s forehead that he has come after a firing spree?”, he said.

Sub-inspector Mukru Hembram, posted at Zero Mile outpost, and now suspended, says, he was patrolling on the highway, but he got news about the firing spree, only when a large crowd collected. Hembram told our reporter, “It is all rubbish that the info about the firing spree was given on wireless set. I have not committed any mistake. Senior officials, in order to save their jobs, are making us scapegoats”.

At Fulwaria police station, India TV reporter Nitish Chandra found a patrolling jeep. When he enquired whether the wireless set was working in the vehicle, the policeman first said, everything was alright, but when our reporter insisted on checking how the wireless set worked, the policemen sitting in the jeep, fumbled. The wireless set was not working. No messages were coming on the set. The policeman said, he was a driver, and only an operator can operate the set.

Wireless sets in police vehicles were not working, and this could be one of the reasons why police could not stop the goons from fleeing on a 30 kilometre stretch of national highway.

On Wednesday, BJP workers staged protests in Begusarai. The local BJP MP Giriraj Singh, who is also the Union Rural Development Minister, airdashed to the town, and joined the funeral of Chandan Kumar, the person who was slain. 32-year-old Chandan Kumar is an NTPC employee. He was returning from duty in the evening, when the bullet hit him. He died on the spot. In anguish, Giriraj Singh, the minister, said, ‘Chandan Kumar’s misfortune is that he was born in the state of Bihar”.

Giriraj Singh, along with party workers, sat on dharna at Mahadev Chowk in Begusarai. He demanded Rs 1 crore ex-gratia assistance for Chandan Kumar’s family and a job for his widow. He also demanded Rs 50 lakh assistance for those injured. “Who will help the ice cream vendor, the paanwallah, the LPG agency driver, who were hit by bullets?’, he said.

Leader of Opposition in Bihar Assembly Vijay Kumar Sinha met the injured people in hospital. He alleged that “crime is taking the form of terrorism in Bihar. Never did such incidents occur before”. But, RJD MLA Rajbanshi Mahto, who also met those injured, said, “This incident could be part of a conspiracy to defame the government.”

Chief Minister Nitish Kumar also said, “whatever happened in Begusarai was pre-planned and deliberate. It is definitely a conspiracy. The firing took place in a Muslim-dominated locality, where people of backward classes live.” In other words, the chief minister was alleging that Muslims and backward classes were the targets of the gunmen.

Whatever happened in Begusarai on Tuesday evening was a ‘filmy’ style crime. The gunmen were riding motorbikes, and spraying bullets on people, and the police vehicles with sirens screaming, reached the spots, only when the killers had fled.

The most surprising reaction was from Chief Minister Nitish Kumar. He said, it could be a conspiracy because it happened in a locality, where Muslims and backward class people lived.

I have a very simple question for Nitish Kumar: Can the gunmen speeding on motorbikes for 30 kilometres differentiate Muslims and backward class people from others among the crowds? Is this not a mockery? Are the people of Bihar moving around with their caste and religion tags on their heads? If the Chief Minister of a state looks at a criminal act from the angle of religion and caste, what will happen to the investigation?

If the Chief Minister raises issue of caste and religion, will the investigating police officers ask the goons about their religion and caste? It is nothing but a shame that goons went on firing on a 30-kilometre stretch for 40 minutes, and yet the police failed to catch them.

After running a government in Bihar for 17 years, does Nitish Kumar need lessons on how to deal with criminals? He could at least take a lesson of two from the chief minister of his neighbouring state, Uttar Pradesh, and spend some time there. He can find out how Yogi’s government has struck fear in the hearts of criminals.

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