बाढ़ से तबाह पाकिस्तान ने अगर मदद मांगी तो पीछे नहीं हटेंगे मोदी
पाकिस्तान में भारी बारिश की वजह से चारों तरफ तबाही का आलम है। बादल फटने की घटना, भूस्खलन और बाढ़ ने पाकिस्तान के एक तिहाई हिस्से में बड़ी तबाही मचाई है। इस प्राकृतिक आपदा में मरनेवालों की संख्या 1,100 के आंकड़े को पार कर गई है और 1,600 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। अभी देश के दुर्गम इलाकों से रिपोर्ट आना बाकी है।
बलूचिस्तान का एक बड़ा हिस्सा देश के बाकी इलाकों से पूरी तरह कट चुका है। 3.33 करोड़ से ज्यादा लोग इस प्राकृतिक आपदा से प्रभावित हुए हैं। मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र संघ ने बाढ़ पीड़ितों के लिए सभी देशों से मदद करने की अपील की। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इन बाढ़ पीड़ितों के लिए कम से कम 35 अरब अमेरिकी डॉलर की मदद मांगी है। बुधवार को अमेरिका ने 30 लाख डॉलर की मदद का ऐलान किया। यूके, कनाडा, तुर्की, ईरान, चीन और कई अन्य देशों ने भी मदद के लिए हाथ बढ़ाया है।
बाढ़ और भारी बारिश से 10 लाख से ज्यादा घर या तो क्षतिग्रस्त हो गए हैं या फिर पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं। करीब 7,35,000 पशुओं की भी मौत हो गई है। सिंध प्रांत जिसे पाकिस्तान का अन्नभंडार कहा जाता है, वहां सारी फसलें बाढ़ के कारण नष्ट हो चुकी हैं। भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है। फसलों के साथ-साथ घर, दुकानें, गांव और कस्बे बाढ़ में डूब गए हैं।
पाकिस्तान के वित्त मंत्री मिफ्ताह इस्माइल ने सब्जियों और खाने-पीने के सामानों के आयात के लिए भारत के साथ लगे बॉर्डर को खोलने का आह्वान थी लेकिन मंगलवार को प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस्लमाबाद में विदेशी मीडिया को संबोधित करते हुए भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार को फिर से शुरू करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि जब तक कश्मीर का मसला हल नहीं होता है, भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार शुरू नहीं होगा।
पाकिस्तान ने ईरान और अफगानिस्तान से प्याज- टमाटर और रूस से गेहूं आयात करने का फैसला किया है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का बयान उनके वित्त मंत्री द्वारा सोमवार को कही गई बात से बिल्कुल अलग है। मिफ्ताह इस्माइल ने कहा था-खड़ी फसलों के व्यापक नुकसान को देखते हुए पाकिस्तान की जनता की मदद के लिए भारत से सब्जियां और अन्य खाद्य पदार्थ आयात किए जा सकते हैं।
मिफ्ताह इस्माइल का बयान ठीक उसी दिन आया जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर पाकिस्तान में बाढ़ से हुई भारी तबाही पर दुख जताया था। उन्होंने ट्वीट किया, ‘पाकिस्तान में बाढ़ से हुई तबाही को देखकर दुखी हूं। हम पीड़ितों, घायलों और इस प्राकृतिक आपदा से प्रभावित सभी लोगों के परिवारों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं और जल्द ही सामान्य स्थिति बहाल होने की उम्मीद करते हैं।’
पाकिस्तान के हालात बेहद खराब हैं। जो लोग इस विभिषिका में जिंदा बच गए हैं उन्हें भोजन की कमी का सामना करना पड़ रहा हैं, क्योंकि खाने-पीने के सामानों और सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही हैं। यहां से दिल को दहलाने वाल दृश्य सामने आ रहे हैं । पहाड़ियों की चोटियों से तेज रफ्तार से निकल रहा लहरों का सौलाब घरों, होटलों और यहां तक कि बड़े-बड़े चट्टानों को अपने साथ बहा ले जा रहा है और चारों ओर तबाही मचा रहा है। सभी चार प्रांतों सिंध, पंजाब, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में बाढ़ और भूस्खलन से बड़ी तबाही हुई है।
पाकिस्तान की नेशनल डिसास्टर मैनेजमेंट एजेंसी के मुताबिक 3,500 किमी से ज्यादा लंबी सड़कें और 157 ब्रिज बाढ़ में बह गए। देश का करीब 50 प्रतिशत रेल नेटवर्क पानी में डूबा हुआ है। 20 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन बाढ़ के पानी में डूब चुकी है। सब्जियों का हाल ये है कि टमाटर और प्याज यहां 350 से 400 रुपये प्रतिकिलो की दर से बेचे जा रहे हैं।
पहले से ही महंगाई की मार झेल रही जनता अब खाने-पीने की चीजों और सब्जियों पर ज्यादा खर्च करने को मजबूर है। इसी संदर्भ में पाकिस्तान के वित्त मंत्री ने कहा कि देश को आपदा की इस घड़ी में पड़ोसी मुल्क भारत से मदद मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हमारा ध्यान लोगों को भोजन उपलब्ध कराने पर होना चाहिए। हमें भारत से सब्जियां चाहिए।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान की मदद करना चाहते हैं लेकिन अभी तक पड़ोसी मुल्क की ओर से कोई औपचारिक अनुरोध नहीं भेजा गया है। पाकिस्तान में बाढ़ का संकट इतना बड़ा है कि उसके सारे संसाधन जैसे फौज, सिविल एडमिनिस्ट्रेशन और एनजीओ मिलकर भी बाढ़ प्रभावितों की मदद नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि सारे रास्ते बंद हैं। एक करोड़ से ज़्यादा लोग सैलाब से इस तरह घिरे हैं कि उनके लिए कहीं आना-जाना नामुमकिन है। हालात इतने खराब हैं कि अब लाशें सड़ रही हैं, जिन लोगों की प्राकृतिक मौत हो रही है उन्हें दफन करने के लिए सूखी जमीन नहीं मिल रही है।
दस लाख से ज्यादा घर बह चुके हैं लेकिन सरकार ने अब तक सिर्फ पांच लाख लोगों को राहत शिविरों में शिफ्ट किया है। पाकिस्तान की आर्मी और एयरफोर्स राहत और बचाव के कामों में लगी है। ख़ुद पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल बाजवा भी बाढ़ प्रभावित इलाक़ों का दौरा कर रहे हैं। मंगलवार को राहत और बचाव कार्यों की निगरानी के लिए उन्होंने स्वात घाटी का दौरा किया। जनरल बाजवा ने कहा कि जो हालात हैं उन्हें देखकर लगता है कि उजड़े हुए लोगों को दोबारा बसाने में कम से कम एक दशक का वक्त लग जाएगा।
आम तौर पर एक फौजी इस तरह की बात नहीं कहता लेकिन अगर पाकिस्तान का जनरल यह बात कह रहा है तो समझ लीजिए कि यह आपदा कितनी बड़ी है। पाकिस्तान का करीब 40 प्रतिशत इन्फ्रास्ट्रक्चर बह गया, बर्बाद हो गया है। इस मुश्किल वक़्त में पाकिस्तान के नागरिक भी भारत की तरफ़ देख रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्वीट के बाद पाकिस्तान की जनता की उम्मीदें भारत से बहुत बढ़ गई हैं, लेकिन पाकिस्तान की सरकार अभी तक अपना मन नहीं बना पाई है।
फिलहाल पाकिस्तान में कम से कम साढ़े तीन करोड़ लोगों को मदद की जरूरत है। उन्हें दो वक्त की रोटी, सिर छुपाने के लिए टेंट, कपड़े और दवाओं की जरूरत है। लेकिन पाकिस्तान की सरकार के पास इतने संसाधन नहीं कि वे इन पीड़ितों की बुनियादी जरूरतें पूरी कर सके। तुर्की और चीन के मिलिट्री विमान राहत सामग्री लेकर आए तो हैं लेकिन यह राहत सामग्री ऊंट के मुंह में जीरा के समान हैं।
भारत, पाकिस्तान की मदद तो कर दे लेकिन, दिक्कत ये है कि पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति वहां की सरकार को भारत से व्यापार नहीं करने देती। भारत से सहायता मांगना वर्जित माना जाता है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान के राजनेता घरेलू राजनीति की दुविधा में फंस गए हैं। पाकिस्तान में बढ़ती महंगाई और ख़ाली ख़ज़ाने को देखकर पिछले साल इमरान ख़ान के वित्त मंत्री ने भी कहा था कि वो सड़क के रास्ते भारत से कारोबार फिर शुरू करेंगे। लेकिन, कुछ दिनों बाद ही इमरान ने इस वित्त मंत्री को ओहदे से हटा दिया था।अब शहबाज़ शरीफ़ के वित्त मंत्री मिफ़्ताह इस्माइल ने मुश्किल वक़्त में अपने मुल्क के लिए भारत से मदद मांगी है।
पाकिस्तान का ख़ज़ाना ख़ाली है और वह दिवालिया होने के कगार पर खड़ा है। पाकिस्तान को दिवालिया होने से बचाने के लिए उसके प्रधानमंत्री सऊदी अरब, यूएई , तुर्की और अन्य देशों के नेताओं को फोन कर रहे हैं। पाकिस्तान क़र्ज़ हासिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से भी बातचीत कर रहा है।आईएमएफ पाकिस्तान को 1.1 अरब डॉलर का कर्ज देने पर राजी हो गया है। हालांकि पाकिस्तान ने 10 अरब डॉलर की मांग की थी।
पाकिस्तान में हालात बहुत खऱाब हैं और इसमें कोई दो राय नहीं कि पाकिस्तानी अवाम अगर भारत से मदद की उम्मीद कर रही है तो इसमें कोई बुरी बात नहीं है। हिन्दुस्तान पाकिस्तान का सबसे करीबी पड़ोसी है, इसलिए भारत को पाकिस्तान की मदद करनी भी चाहिए। भारत ने इससे पहले कई मौकों पर पाकिस्तान की मदद की है। वर्ष 2005 में पाक अधिकृत कश्मीर में भूकंप आया था। उस वक्त भारत ने पाकिस्तान को राहत सामग्री के अलावा दो करोड़ डॉलर की मदद भेजी थी।
2010 में जब पाकिस्तान में बाढ़ आई थी उस वक्त भी भारत ने सबसे पहले मदद भेजी थी। भारत ने पाकिस्तान को ढ़ाई करोड़ डॉलर की मदद दी थी। उस वक्त हरदीप पुरी संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि थे। हरदीप पुरी ने ही न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव बान की मून की मौजूदगी में पाकिस्तान के विदेश मंत्री को दो करोड़ डॉलर का चेक सौंपा था।
अब फिर पाकिस्तान मुसीबत में है तो वहां के लोग भारत की तरफ देख रहे हैं। भारत को पाकिस्तान के लोगों की मदद करनी भी चाहिए। लेकिन, मुझे लगता है कि पाकिस्तान के हुक्मरानों और पाकिस्तान की फौज को भारत के प्रति अपना नजरिया और रवैया दोनों बदलने की जरूरत है। भारत अपने पड़ोसियों की हमेशा मदद करता है और इस मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत शानदार है।
पिछले साल जब अफगानिस्तान के तालिबान शासकों ने भारत से मदद की गुहार लगाई थी तो मोदी ने अफगानिस्तान को आपात स्थिति में मदद भेजी थी। उस समय पाकिस्तान ने राहत सामग्री के लिए रास्ता देने से इंकार कर दिया था। अब समय आ गया है कि पाकिस्तान को अपना रवैया बदलना चाहिए। पाकिस्तान के नेताओं को भारत सरकार से औपचारिक तौर पर बात करनी चाहिए। उन्हें यह बताना चाहिए कि किस तरह की और कितनी मदद चाहिए। मुझे पूरा यकीन है कि प्रधानमंत्री मोदी पड़ोसी की मदद करने में पीछे नहीं हटेंगे।
Pakistan floods: PM Modi will surely help, if request comes
Cloudbursts, landslides and floods have caused widespread havoc in nearly one-third of Pakistan, with the death toll crossing 1,100 and over 1,600 people injured. Reports are yet to come from areas that have become inaccessible due to floods.
A large portion of Balochistan has been cut off from the rest of the country. Over 3.33 crore people have been affected by this natural disaster. On Tuesday, the United Nations gave a flash appeal to all countries to donate at least 35 billion US dollars to help flood victims. On Wednesday, the United States announced $ 30 million in humanitarian aid, while UK, Canada, Turkey, Iran, China and several other countries have also announced assistance.
More than a million homes have been either damaged or destroyed by floods and heavy rains, and nearly 7,35,000 livestock have perished. Sindh province, said to be the granary of Pakistan, is staring at a bleak future with all its crops washed away in floods. Homes, shops, crops, villages and several towns have been submerged in floods.
Pakistan Finance Minister Miftah Ismail called for opening land border with India to import vegetables and foodgrains, but on Tuesday, Prime Minister Shehbaz Sharif, while addressing the foreign media in Islamabad, ruled out reopening of bilateral trade with India, till the Kashmir situation is not addressed.
Pakistan has decided to import onions and tomatoes from Iran and Afghanistan, and wheat from Russia.
Pakistan Prime Minister’s assertion is totally different from what his Finance Minister said on Monday. Miftah Ismail had said, vegetables and other edible items can be imported from India to help the Pakistani people in the wake of widespread destruction of standing crops.
Miftah Ismail’s remarks came on the same day Prime Minister Narendra Modi in his tweet expressed sadness over the devastation caused by floods in Pakistan. He tweeted: “Saddened to see the devastation caused by the floods in Pakistan. We extend our heartfelt condolences to the families of the victims, the injured and all those affected by this natural calamity and hope for an early restoration of normalcy.
The situation in Pakistan is extremely bleak. Those who have survived are facing shortage of food, as prices of food items and vegetables have skyrocketed. Visuals of huge waves of river currents from hill tops swept away homes, hotels and even large boulders leaving devastation in its wake. All the four provinces – Sindh, Punjab, Balochistan and Khyber Pakhtoonkhwa have witnessed devastation caused by floods and landslides.
According to Pakistan’s National Disaster Management Agency, more than 3,500 km long roads and 157 bridges were washed away, and nearly half the railway network is now under water. More than 20 lakh acres of land has been submerged in floods. Tomatoes and onions are being sold at Rs 350-400 per kg.
People, who were already bearing the onslaught of inflation, are now being forced to shell out more for food items and vegetables. It was in this context that the Pakistan Finance Minister said that the country should not hesitate from seeking help from neighbouring India in this hour of disaster. “Our focus should be on providing food to the people. We need vegetables from India”, he said.
Prime Minister Narendra Modi is willing to provide assistance to Pakistan, but till now, the neighbouring country has not sent any formal request to India. Army, civil administration and NGOs in Pakistan are unable to provide relief to the flood-hit people. More than one crore people are caught in floods and unable to move to safer places. Corpses are lying unattended at many places, and even burial ground is not available for those who have died.
More than 10 lakh homes have been destroyed, but the Pakistan government has managed to shift only five lakh people to relief camps. The Pakistani Army and Air Force are carrying out rescue operations. On Tuesday, Pakistan Army Chief Gen. Qamar Javed Bajwa visited Swat valley to oversee relief and rescue operations. He said, looking at the extent of devastation, it seems it will take at least one decade to rehabilitate the flood survivors.
Normally, these are words not spoken by an Army Chief, but his remarks underline the enormity of the crisis. Nearly 40 per cent infrastructure has been destroyed across Pakistan. The people of Pakistan are looking at India for help, but the Pakistani government is yet to make up its mind.
As of now, at least 3.5 crore people in Pakistan need food on a daily basis, apart from tents, clothes and medicines. But the government lacks the resources, both financial and material. Military planes from Turkey and China have landed carrying relief material, but these are mere drops in an ocean.
Pakistani politicians are caught in the dilemma of domestic politics, where seeking aid from India is considered taboo. Last year, the then PM Imran Khan sacked his Finance Minister when he hinted at restarting border trade with India. And now, PM Shehbaz Sharif’s Finance Minister has done the same.
Pakistan is staring at financial bankruptcy. Its PM has been dialling up the leaders of UAE, Saudi Arabia, Turkey and other countries for help. The International Monetary Fund has agreed to release $1.1 billion loan to Pakistan, though the latter had sought $10 billion.
With the situation turning precarious, most of the people in Pakistan are looking towards humanitarian help from India, because it is its biggest neighbour. India should help Pakistan in its hour of crisis. It has held Pakistan during crises in the past too. During the 2005 earthquake in Pak Occupied Kashmir, India had sent relief items and had provided two crore dollars to Pakistan.
During the floods in 2010, India was the first to send relief items and had given 2.5 crore dollars to Pakistan. Union Minister Hardip Singh Puri, who was then India’s Representative in UN, had handed over $2 crore cheque to the Pakistani Foreign Minister in New York in the presence of then UN secretary general Ban Ki-Moon.
While the people of Pakistan are looking towards India, I personally feel, the government and Army establishment in Pakistan should change its mindset towards India in this hour of crisis. Prime Minister Narendra Modi’s track record during natural disasters has been exemplary.
Last year, when the Taliban rulers in Afghanistan appealed for help, Modi sent relief materials on an emergency basis. At that time, Pakistan refused to open its land route for supply of Indian relief material to Afghanistan. It is now time that the Pakistan government should change its outlook and send a formal request to India for humanitarian assistance. I fully believe, Prime Minister Modi will not hesitate in accepting the request.
अंकिता हत्याकांड: हमारा सिस्टम किस हद तक संवेदनहीन हो चुका है
झारखंड के दुमका में एक दिल दहला देने वाली घटना हुई। इसमें एक 17 साल की लड़की अंकिता को शाहरुख नाम के एक शोहदे ने पेट्रोल छिड़कने के बाद जलाकर मार डाला। इस घटना के बाद से पूरे देश में उबाल है। 23 अगस्त की रात अंकिता जब अपने घर में सो रही थी, तब उसने उस पर पेट्रोल डाला और आग लगा दी। पांच दिनों तक जिंदगी की जंग लड़ने के बाद रविवार को अंकिता ने दम तोड़ दिया। शाहरुख और उसके दोस्त छोटू उर्फ नईम को गिरफ्तार कर लिया गया है।
अपनी मौत से पहले अंकिता ने अपने पिता से बार-बार कहा कि शाहरुख को कड़ी से कड़ी सजा जरूर दिलवाएं। जब भी वह अपने घर से स्कूल या ट्यूशन क्लास जाने के लिए बाहर जाती थी, शाहरुख उसे परेशान करता था।
मैं इसे सिर्फ कोई वारदात या अपराध नहीं कहूंगा। यह हमारे पूरे समाज पर एक कलंक है। यह वारदात झारखंड की सरकार पर एक बदनुमा दाग है जो फौरी तौर पर कार्रवाई करके लड़की की जान बचा सकती थी।
यह घटना दुमका में हुई जो झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खानदान के प्रभाव वाला इलाका है। इस इलाके से हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन विधायक हैं। फिर भी पांच दिन तक पूरा सिस्टम खामोश रहा और जब अंकिता की दर्दनाक मौत हो गई, तो उसकी मौत के विरोध में लोग सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करने लगे। तब जाकर राज्य सरकार को होश आया और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि ‘हमें इस तरह की सामाजिक बुराइयों को खत्म करना होगा।’
जिस समय मुख्यमंत्री ज्ञान दे रहे थे, उस समय पुलिस की गिरफ्त में हत्यारा शाहरुख कैमरे के सामने मुस्कुरा रहा था। यह मुस्कान हमारे सिस्टम और हमारे समाज को चिढ़ाती हुई सी लग रही थी। आप अगर मौत से पहले मैजिस्ट्रेट को दिया गया अंकिता का बयान सुनेंगे, और हत्यारे शाहरुख को हंसता हुआ देखेंगे, तो आपका खून खौल उठेगा। अंकिता ने बताया कैसे शाहरुख उसे परेशान कर रहा था, उसका पीछा कर रहा था, उसे धमकी दे रहा था कि या तो इस्लाम कबूल कर उससे शादी कर ले या मरने के लिए तैयार हो जाए। अपने पिता से कहे उसके अंतिम शब्द थे, ‘पापा, शाहरुख को मत छोड़ना। उसको सजा जरूर दिलवाना।’
अंकिता का गुनाह यह था कि उसने शाहरुख की बात नहीं मानी और आखिरकार उसे इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। वह 90 फीसदी से भी ज्यादा जल चुकी थी और इसके बचने की संभावना बहुत कम थी। हालांकि अंकिता बड़ी बहादुरी के साथ मौत से लड़ी, लेकिन हमारे सिस्टम के कारण वह हार गई। वह एक छोटे से शहर दुमका में थी और उसे एक बड़े अस्पताल में बहुत अच्छे इलाज की जरूरत थी। उसके परिवार को उसे रांची के रिम्स (राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) में भर्ती कराने में भी जद्दोजहद करनी पड़ी, लेकिन रिम्स में भी जले हुए मरीजों के इलाज की सुविधा नहीं थी।
अंकिता के केस के बाद अब शाहरुख हुसैन की अपराधों की हिस्ट्री सामने आ रही है। शाहरुख का घर अंकिता के घर से कुछ ही मीटर की दूरी पर है। उसने दिन में अंकिता को जान से मारने की धमकी दी और अगली सुबह उसे जला कर मार डाला। अंकिता ने अपने पिता को बताया कि रात के अंधेरे में शाहरुख उसके बेडरूम की खिड़की के पास आया, उस पर पेट्रोल डाला, माचिस जलाई और भाग गया। उसके दोस्त छोटू उर्फ नईम ने इस दरिंदगी को अंजाम देने के लिए पेट्रोल का इंतजाम किया था।
झारंखड सरकार ने इस केस की जांच अब अतिरिक्त महानिदेशक रैंक के अधिकारी से कराने का फैसला किया है। पुलिस हेडक्वॉर्टर में ADG एमएल मीणा ने इसकी जांच भी शुरू कर दी है। सोमवार को मीणा अपनी टीम के साथ दुमका गए और क्राइम सीन रिक्रिएट करवाया। बाहर सड़कों पर विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने अंकिता के लिए इंसाफ की मांग करते हुए प्रोटेस्ट मार्च निकाला और सीएम हेमंत सोरेन का पुतला फूंका। सिर्फ दुमका ही नहीं, जमशेदपुर, रांची और गोड्डा में भी विरोध प्रदर्शन हुए। जगह-जगह प्रदर्शनकारियों ने शाहरुख को फांसी पर लटकाने की मांग की।
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने सोरेन सरकार पर मुस्लिम तुष्टिकरण के चक्कर में हिंदुओं के साथ भेदभाव का इल्जाम लगाया। गिरिराज सिंह ने कहा कि अंकिता की मौत ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ की नीति का नतीजा है। उन्होंने कहा कि अगर मरने वाली लड़की मुसलमान होती तो कांग्रेस और दूसरी पार्टियों के नेता आसमान सिर पर उठा लिए होते लेकिन अंकिता के मामले में झारखंड सरकार ने उसके लिए सही इलाज तक की व्यवस्था नहीं की।
बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास ने आरोप लगाया कि जिस वक्त अंकिता अपनी जिंदगी की जंग लड़ रही थी, उस वक्त मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी सरकार के मंत्रियों और विधायकों के साथ झारखंड के अलग-अलग पिकनिक स्पॉट पर घूम रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ ताकतें दुमका और संथाल परगना इलाके में ‘लव जिहाद’ के जरिए वहां की डेमोग्राफी बदलने की कोशिश कर रही हैं। रघुबर दास ने कहा कि अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमान स्थानीय आदिवासी लड़कियों से शादी करके उनकी जमीन पर कब्जा कर रहे हैं और हेमंत सोरेन सरकार तमाशा देख रही है।
इस मसले पर AIMIM सुप्रीमो असद्दुदीन ओवैसी ने सीधी और साफ बात की। आम तौर पर मुसलमानों का पक्ष लेने वाले ओवैसी ने कहा कि जिस लड़के ने यह दारिंदगी की, उसे ‘जल्द से जल्द सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘इस तरह का घिनौना काम करने वालों को समाज के भीतर रहने का हक ही नहीं हैं। इस जघन्य अपराध के बारे में बोलने के लिए शब्द ही नहीं हैं। शाहरुख को उसके गुनाह की कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।’
ओवैसी ने भी जिस शख्स की हिमायत नहीं की, जिस मुद्दे पर हिन्दू-मुसलमान नहीं देखा, उस मुद्दे पर भी हेमंत सोरेन सीधी और साफ बात नहीं कह पाए। जब अंकिता मौत से लड़ रही थी उस वक्त तो खामोश रहे, उसकी मौत के बाद बोले भी तो साफ नहीं बोल पाए। पहले हेमंत सोरेन ने ट्वीट किया, ‘अंकिता बिटिया को भावभीनी श्रद्धांजलि। अंकिता के परिजनों को 10 लाख रुपये की सहायता राशि के साथ इस घृणित घटना का फास्ट ट्रैक से निष्पादन हेतु निर्देश दिया है। पुलिस महानिदेशक को भी उक्त मामले में एडीजी रैंक अधिकारी द्वारा अनुसंधान की प्रगति पर शीघ्र रिपोर्ट देने हेतु निर्देश दिया है।’ वहीं, कैमरे के सामने पत्रकारों से बात करते हुए सोरेन ने कहा, ‘ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। सभी घटनाओं पर सरकार की नजर है। यदि आपके पास ठोस जानकारी नहीं है तो कृपया भ्रम न फैलाएं।’
हेमंत सोरेन के बयानों में उनकी संवेदनहीनता साफ झलक रही थी। सोमवार को अंकिता के अंतिम संस्कार पर ग़मगीन नजारा देखने को मिला। सबसे बुरा हाल अंकिता के दादा जी का था। उन्होंने कहा, ‘अंकिता तड़प-तड़प कर मरी है। पूरे शरीर की स्किन जल गई थी। जैसी मौत अंकिता को मिली, वैसी ही अपराधी को मिलनी चाहिए।’ उसकी बहन ने कहा, ‘हमारी मां की मौत 3 साल पहले हो चुकी थी। शाहरूख उसे कई दिन से परेशान कर रहा था, लेकिन वह अपना दर्द किसी को बता नहीं पाई। अगर उसने हमें शाहरूख की हरकतों के बारे में बता दिया होता, तो हम सभी को अलर्ट कर सकते थे। उसने अपने भाई को इस बारे में 22 अगस्त को ही बताया, और अगले दिन शाहरुख ने उसे जला दिया।
अंकिता के परिवार वालों का इल्जाम है कि इलाके के डीएसपी नूर मुस्तफा ने इस केस को ‘कमजोर करने की कोशिश’ की। बीजेपी ने अब इसे बड़ा मुद्दा बना दिया है। झारखंड बीजेपी के अध्यक्ष बीजेपी दीपक प्रकाश ने कहा कि कि अंकिता की उम्र 17 साल है, लेकिन केस कमजोर करने के लिए डीएसपी नूर मुस्तफा ने FIR में अंकिता को बालिग दिखा दिया। पुलिस ने शाहरूख के खिलाफ पॉक्सो ऐक्ट भी नहीं लगाया। दीपक प्रकाश ने कहा कि डीएसपी नूर मुस्तफा पुलिस अफसर के तौर पर नहीं बल्कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता की तरह बर्ताव करते हैं। उन्होंने मांग की, ‘उनके खिलाफ भी ऐक्शन होना चाहिए।’
बीजेपी लीडर और झारखंड विधानसभा में विपक्ष के नेता बाबू लाल मरांडी ने भी डीएसपी नूर मुस्तफा अपने मजहब के अपराधियों को बचाने का आरोप लगाया है। डीएसपी को लेकर मरांडी ने कई ट्वीट किए और उन्हें दलितों और आदिवासियों का शोषक कहा। मरांडी ने कहा कि जुल्फिकार नाम के आरोपी पर एससी-एसपी एक्ट में केस दर्ज हुआ था लेकिन डीएसपी नूर मुस्तफा ने 90 दिन की समयसीमा के अंदर उसके खिलाफ चार्जशीट फाइल नहीं की, जिसके आधार पर जुल्फिकार को जमानत मिल गई। झारखंड पुलिस के आईजी ऑपरेशंस ने कहा कि डीएसपी नूर मुस्तफा को लेकर कुछ शिकायतें आई हैं, और उनकी जांच की जा रही है।
बड़ी बात यह है कि जब भी ऐसी घटना होती है तो सारी व्यवस्था, सारा सिस्टम एक्सपोज हो जाता है। एक अपराधी की इतनी हिम्मत हो कि वह सरेआम एक लड़की के घर में पेट्रोल छिड़ककर उसे मार डाले, पुलिस के किसी अफसर की इतनी हिमाकत हो कि ऐसे केस में भी अभियुक्त को बचाने की कोशिश करे, पुलिस की इतनी लापरवाही हो कि 4-5 दिन तक इस केस को गंभीरता से न लिया जाए, अस्पताल का इतना बुरा हाल हो कि वहां जले हुए मरीज के लिए पैरासिटामोल और सीरिंज जैसी चीजों का इंतजाम भी न हो, वह अपराधी कैमरे के सामने हंसता रहे और मरने वाली बेटी का परिवार रोता रहे, इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है।
अगर लोग सड़कों पर न उतरते तो यह मामला भी एक लड़की के खिलाफ हुए अपराध के रूप में दर्ज होता और आगे चलकर दब जाता। अगर मीडिया इस केस को प्रमुखता से नहीं उठाता तो मुख्यमंत्री भी प्रतिक्रिया देने के लिए मजबूर नहीं होते, और मामला धीरे-धीरे ठंडा पड़ जाता।
कुछ लोग कह सकते हैं कि पुलिस का काम अपराधियों को गिरफ्तार करना है, जो कि उसने कर दिया, अब हत्यारों को सजा देना कानून का काम है। सरकार का काम है मुआवजा देना, वह दे दिया, विपक्ष का काम है सरकार को घेरना, वह घेर रहा है। कुल मिलाकर एक बेटी की मौत पर हर कोई अपने-अपने हिस्से की रस्म अदायगी कर रहा है।
जब तक यह रस्म अदायगी होती रहेगी और हर कोई अपने-अपने हिस्से की सिर्फ रस्म अदायगी करता रहेगा, तब तक हमारी बेटियां सुरक्षित नहीं रहेंगी। जब तक हर घर की बेटी को हम अपनी बेटी नहीं समझेंगे, तब तक इस तरह की जघन्य वारदातें होती रहेंगी, और ऐसे मामले एक और क्राइम केस बनकर इतिहास के पन्नों में दफन होते रहेंगे।
Ankita’s murder: How our system has become insensitive
In a horrific incident in Dumka, Jharkhand, that has caused nationwide outrage, a 17-year-old girl Ankita was burnt to death by a stalker named Shahrukh. He poured petrol on her while she was sleeping in her home at night on August 23 and set her on fire. After battling for life for five days, Ankita succumbed to her injuries on Sunday. Shahrukh and his friend Chhota Khan alias Naeem have been arrested.
Before her death, Ankita implored her father to ensure that Shahrukh, the stalker, gets the harshest punishment. Shahrukh has been tormenting her, whenever she went out of her home to attend school and tuition classes.
I will not call this a mere incident, or a crime. It is a dark blot on our society. It is also a dark blot on Jharkhand government, which could have saved her life by taking timely action.
Dumka is an area which is under the influence of Chief Minister Hemant Soren and his family. His brother Basant Soren is the MLA from the area. For five days, when Ankita was battling for life, the state government remained silent, and when she succumbed to her injuries, people came out in the streets to protest. It was then that Chief Minister Hemant Soren broke his silence and said that ‘we should get rid of all such social evils from society’.
At the time when the chief minister was mouthing inanities, Shahrukh, the culprit, was smiling in front of cameras, as he was being taken away by police. That smile appeared to be mocking our system and our society. It overshadows what Ankita told the magistrate on her death bed. She described how Shahrukh was tormenting and stalking her, was threatening her to either marry him and convert to Islam, or face death. Her last words to her father were, “Papa, do not spare Shahrukh, ensure that he is punished”.
Ankita’s crime was that she was resisting Shahrukh’s advances and had to ultimately give the supreme sacrifice. She had suffered more than 90 per cent burns and her chances of survival were slim. Yet, she did not lose courage. She lost to the vagaries of our system. She was in Dumka, a small town, and she needed better treatment in a top hospital. Her family managed to get her admitted to RIMS (Rajendra Institute of Medical Sciences) in Ranchi, but even RIMS did not have facilities to treat burn patients.
The Jharkhand government did not try to shift her to Delhi or any big metropolis. It was only after her death, when protests erupted, the government woke up from its slumber and arrested Shahrukh. The murderer looked unrepentant. He was smiling before the cameras, as if saying, nobody can harm me.
His case history shows he had been stalking other girls in the locality too. Shahrukh was a neighbour of Ankita. On the fateful day, he had threatened to kill Ankita. The latter told her father, and at the dead of night, Shahrukh sneaked into her bedroom, poured petrol on her, lit the matchstick and fled. His friend Chhotu alias Naeem had arranged petrol for committing this gruesome act.
Jharkhand government has now entrusted the probe to Additional DGP M.L.Meena. On Monday, he went to Ankita’s house with a team of experts and recreated the crime scene. Outside, on the streets, Vishwa Hindu Parishad, Bajrang Dal and BJP activists took out protest march and burnt the effigy of CM Hemant Soren, while demanding justice. Protests were held in Dumka, Jamshedpur, Ranchi and Godda. They demanded death punishment for Shahrukh.
As politicians stepped in, Union Minister Giriraj Singh alleged that Hindus in Jharkhand are being discriminated against because of ‘Muslim appeasement’ policy of JMM-led government. He said, Congress and other parties would have raised furore if the victim had been a Muslim girl, but in Ankita’s case, the Jharkhand government did not arrange proper treatment for her.
BJP leader and former CM Raghubar Das alleged that the chief minister, along with his ministers and MLAs, was busy visiting picnic spots, when Ankita was fighting for her life. He also alleged that fundamentalists are trying to change the demography of Dumka and Santhal Pargana region, by resorting to ‘love jihad’. Das alleged that infiltrators from Bangladesh and Rohingya Muslims are grabbing land by marrying local tribal girls, while the JMM government has become a silent spectator.
AIMIM chief Asaduddin Owaisi demanded the “sternest and speediest punishment” for the culprit who committed this heinous act. “Such a criminal has no right to live in a civil society”, he said. “There are no words to condemn this brutal act and Shahrukh must be punished”, Owaisi added.
Owaisi avoided any remark about Hindu-Muslim issue, and it is a welcome change. He minced no words in condemning the murderer. In contrast, Chief Minister Hemant Soren tried to obfuscate while speaking to the media. First, he tweeted saying: “My heartfelt tributes to daughter Ankita. I have directed that Rs 10 lakh ex-gratia be paid to Ankita’s family and this horrendous case be disposed on fast track. Have also directed DGP to submit early report on progress of probe by ADG-rank officer.” While speaking to reporters before cameras, Soren said, “such incidents do happen. Government keeps watch on all incidents. Please do not spread confusion if you do not have concrete information”.
The chief minister’s lack of sensitivity was clearly showing in his remarks. There were heart rending scenes at Ankita’s funeral on Monday. Her grandfather said, Ankita died a painful death as she had suffered severe burns. “Her murderer must be punished”, he said. Her sister said, “Since Ankita’s mother had passed away, she did not share her ordeal with others. If she had told us about how Shahrukh was tormenting her, we could have alerted all. She told her brother only on August 22, but the next day, Shahrukh poured petrol on her.”
Ankita’s family has alleged that the local DSP Noor Mustafa tried to “weaken the case”. BJP has now made it an issue. State BJP chief Deepak Prakash said, Ankita was 17 years old, but DSP Noor Mustafa showed that she was an adult in the FIR. Moreover, charges under POCSO Act were also not added in the FIR. The BJP leader alleged that the DSP was acting as if he was a JMM activist. “Action must be taken against him”, he demanded.
Leader of Opposition and BJP leader Babulal Marandi also alleged that DSP Noor Mustafa was shielding criminals. He alleged that a case under SC-ST Act was filed against an accused Zulfiqar, but the DSP did not file chargesheet within the 90 days’ time limit, and the accused came out on bail. Jharkhand Police IG Operations said that some complaints have been received against DSP Noor Mustafa and they are being investigated.
The moot point is: whenever such horrendous incident takes place, it exposes the fault lines in our system.
For a criminal to have the gumption to pour petrol on a girl inside her house,
for a police officer to try to shield criminals publicly,
for the police not taking Ankita’s case seriously for five days,
for a hospital that lacked basic requirements like Paracetamol tablets and syringes for a burns victim,
for a criminal laughing and smiling in front of cameras,
for the family members of the girl helplessly weeping in public,
I can only say, there can be no bigger tragedy that this.
If common people had not come out on the streets, this case would have been filed and forgotten as another crime against a girl. Had the media not highlighted Ankita’s case and forced the chief minister to react, the case could have died a gradual death.
Some may say that police had arrested the culprits, and it is for the judiciary to give punishment. The government’s duty is to give ex-gratia, and the opposition’s work is to take the ruling party to task. So, every arm of civil society did its work perfunctorily after the death of a daughter.
So long as lip service is given and work is done perfunctorily by different arms of society, our daughters will never remain safe. So long as we do not consider others’ daughters as our own daughters, such horrendous crimes will continue, and such cases of brutal crime shall remain buried, and later forgotten, in the pages of history.
गुलाम नबी आजाद ने 49 साल बाद कांग्रेस क्यों छोड़ी ?
कांग्रेस का एक और मज़बूत पिलर गिर गया। गुलाम नबी आज़ाद शुक्रवार को कांग्रेस से ‘आजाद’ हो गए। उन्होंने कांग्रेस से 49 साल पुराना रिश्ता खत्म करते हुए पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा देते हुए गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पांच पन्नों की चिट्ठी लिखी। इस चिट्ठी का लब्बो-लुबाब ये है कि राहुल गांधी के चक्कर में पार्टी की इतनी दुर्दशा हो गई है। उन्होंने सीधे-सीधे बिना किसी लाग लपेट के कहा कि राहुल ‘अपरिपक्व’ हैं, उनकी हरकतें ‘बचकानी’ है वे ‘अनुभवहीन चाटुकारों’ से घिरे हैं।
राहुल गांधी के व्यवहार को ‘बचाकाना’ बताते हुए आजाद ने लिखा.. ‘दुर्भाग्य से राहुल गांधी की राजनीति में एंट्री और खासतौर से जनवरी 2013 के बाद जब वे आपके द्वारा उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए, उन्होंने पार्टी में मौजूद सलाह-मशविरे के सिस्टम को खत्म कर दिया। सभी वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को साइडलाइन कर दिया गया और अनुभवहीन चाटुकारों की मंडली पार्टी को चलाने लगी।’
आजाद ने लिखा ‘इस अपरिपक्वता का सबसे बड़ा उदाहरण राहुल गांधी द्वारा मीडिया के सामने सरकार के अध्यादेश को फाड़ना था। उस अध्यादेश को चर्चा के बाद कांग्रेस कोर ग्रुप में शामिल किया गया था और बाद में देश के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केद्रीय मंत्रिमंडल ने सर्वसम्मति से उसे पास किया था। देश के राष्ट्रपति ने उस अध्यादेश पर मुहर लगाई थी। उनके इस ‘बचकाने’ व्यवहार ने प्रधानमंत्री और भारत सरकार के अधिकारों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था। 2014 में यूपीए की हार के लिए यह घटना सबसे ज्यादा जिम्मेदार थी। उस समय पार्टी दक्षिणपंथी ताकतों और कुछ बेईमान कॉरपोरेट् हितों द्वारा चलाए जा रहे बदनामी और आक्षेप के अभियान झेल रही थी।’
पार्टी की चुनावी हार के घावों पर नमक छिड़कते हुए आजाद ने लिखा-‘ 2014 से आपके नेतृत्व और बाद में राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस दो लोकसभा चुनावों में बुरी तरीके से पराजित हुई है। 2014 से 2022 के बीच हुए 49 विधानसभा चुनावों में से पार्टी को 39 में हार का सामना करना पड़ा है। केवल चार राज्यों में पार्टी चुनाव जीतने में सफल रही है और 6 बार गठबंधन की स्थिति में आने में सफल रही है। दुर्भाग्य से आज कांग्रेस केवल दो राज्यों में शासन कर रही है और दो अन्य राज्यों में गठबंधन सरकार में सहयोगी की भूमिका में है।
आजाद ने इस बात की ओर इशारा किया कि कैसे राहुल गांधी और उनकी चाटुकारों की मंडली पार्टी के पुराने लोगों को परेशान कर रही है। उन्होंने लिखा, ‘2019 के चुनावों के बाद से पार्टी की हालत खराब होती गई है। राहुल गांधी ने जल्दबाजी में अध्यक्ष का पद छोड़ दिया और विस्तारित कार्यसमिति की बैठक में पार्टी के लिए अपने प्राण देनेवाले पार्टी के सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों का अपमान होने से पहले आपने अंतरिम अध्यक्ष के रूप में पदभार ग्रहण किया । जिसे आप पिछले तीन साल से संभाले हुए हैं।’
उन्होंने लिखा कि कैसे राहुल की मंडली रिमोट कंट्रोल से कांग्रेस को चला रही है और फैसले उनके पीए और सुरक्षा गार्ड ले रहे हैं। आजाद ने लिखा, ‘इससे भी बुरी बात यह है कि जिस ‘रिमोट कंट्रोल मॉडल’ ने यूपीए सरकार की संस्थागत अखंडता को ध्वस्त किया अब वही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में लागू हो गया। जबकि पार्टी में आप सिर्फ एक नाममात्र की व्यक्ति रह गई हैं और सारे अहम फैसले राहुल गांधी या उनसे भी बदतर उनके सुरक्षा गार्ड और पीए द्वारा लिए जा रहे थे।
गुलाम नबी आजाद ने इस बात का उल्लेख किया कि कैसे ग्रुप-23 के उनके सहयोगियों और उन्हें राहुल गांधी के आसपास की मंडली द्वारा निशाना बनाया गया और उनकी निंदा की गई। आजाद ने लिखा, ‘2020 के अगस्त में जब मैंने और पूर्व केंद्रीय मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों सहित 22 अन्य वरिष्ठ सहयोगियों ने आपको पार्टी के अंदर आ रही गिरावट को लेकर चिट्ठी लिखी तो मंडली के लोगों ने अपने चाटुकारों को हम पर हमला करने के लिए भेज दिया। जितनी बुरी तरह से अपमानित किया जा सकता है, अपमानित किया गया। वास्तव में एआईसीसी चलाने वाली मंडली के निर्देश पर ही जम्मू में मेरा अर्थी जुलूस निकाला गया। जिन लोगों ने यह अनुशासनहीनता की उनका एआईसीसी के महासचिवों और राहुल गांधी ने दिल्ली में स्वागत किया था। इसके बाद उसी मंडली ने अपने गुंडों को कपिल सिब्बल के घर पर हमला करने के लिए उकसाया जो संयोग से आपका बचाव कर रहे थे। आपको और आपके परिजनों को चूक और कमीशन के कथित हमलों से बचा रहे थे।
आजाद ने लिखा’ 23 सीनियर नेताओं द्वारा एकमात्र किया गया अपराध यह था कि उन्होंने पार्टी की चिंता की। पार्टी के हित में आपको पार्टी की कमजोरियों की वजह और उसे दूर करने के उपाय, दोनों के बारे में बताया। दुर्भाग्य से उन पर रचानत्मक और सहयोगात्मक तरीके से विचार करने के बजाय विस्तारित सीडब्ल्यूसी की विशेष तौर बुलाई गई बैठक में हमारे साथ दुर्व्यवहार किया गया, हमें अपमानित किया गया, हमें अपशब्द कहे गए, शर्मिंदा किया गया।’
कांग्रेस में मौजूदा चुनाव प्रक्रिया को एक ‘तमाशा’ बताते हुए, आजाद ने लिखा, “दुर्भाग्य से, कांग्रेस पार्टी की हालत ऐसी हो गई है कि अब पार्टी का नेतृत्व संभालने के लिए प्रॉक्सी को सहारा दिया जा रहा है। इस तरह के प्रयोग का विफल होना निश्चित है क्योंकि पार्टी इतनी व्यापक रूप से नष्ट हो गई है जहां से वापसी नहीं हो सकती। इसके अलावा, जिसे चुना जाएगा वह एक तार पर लटके हुए कठपुतली से ज्यादा कुछ नहीं होगा।’
राहुल गांधी को एक अगंभीर शख्स बताते हुए आजाद ने लिखा,’बदकिस्मती से राष्ट्रीय स्तर पर हमने राजनीति की जगह बीजेपी के लिए और राज्यों में क्षेत्रीय दलों के लिए छोड़ दी है। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि पिछल 8 साल में नेतृत्व ने एक अगंभीर शख्स को पार्टी के शीर्ष स्थान पर थोपने की कोशिश की है। संगठन के अंदर चुनाव प्रक्रिया एक दिखावा है। देश में कहीं भी किसी भी स्तर पर संगठन के स्तर पर चुनाव नहीं हुए हैं।’
आजाद ने लिखा, ‘एआईसीसी के चुने हुए लेफ्टिनेंटों को 24 अकबर रोड पर बैठकर एआईसीसी चलाने वाली मंडली द्वारा तैयार की गई लिस्ट पर साइन करने के लिए मजबूर किया गया। किसी बूथ, ब्लॉक, जिले या राज्य में किसी भी जगह पर मतदाता सूची प्रकाशित नहीं की गई, न नामांकन आमंत्रित किए गए, न जांच की गई, न मतदान केंद्र बनाए गए और न चुनाव हुए। एआईसीसी नेतृत्व पार्टी के साथ बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी को अंजाम देने के लिए जम्मेदार है। पार्टी अतीत के खंडहर होते जा रहे इतिहास पर पकड़ बनाए रखे जो कभी एक राष्ट्रीय आंदोलन था, जिसने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी और आजादी दिलाई। क्या आजादी के 75 वें वर्ष में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस लायक है? यह एक ऐसा सवाल है जो एआईसीसी नेतृत्व को खुद से पूछना चाहिए।
अगर संक्षेप में कहें तो गुलाम नबी आजाद की यह चिट्ठी कांग्रेस के उस स्तर को उजागर करती है जिस स्तर तक पार्टी में गिरावट आई है। पहली बार कांग्रेस के किसी सीनियर नेता ने इस्तीफा देते हुए गांधी परिवार के कामकाज की पोल खोल दी है। यह चिट्ठी पार्टी की अंदर की उन बीमारियों की डिटेल रिपोर्ट प्रतीत होती है जिससे पार्टी बुरी तरह पीड़ित है। चूंकि लगाए गए आरोप बेहद गंभीर थे इसलिए राहुल गांधी और उनकी सोशल मीडिया टीम ने इस चिट्ठी के सार्वजनिक होने के कुछ ही मिनटों के भीतर आजाद पर तुरंत हमला कर दिया। जयराम रमेश से लेकर अशोक गहलोत और अजय माकन, भूपेश बघेल से लेकर पवन खेड़ा तक सबने आजाद को सत्ता चाहने वाला, देशद्रोही और कृतघ्न बताते हुए हमला किया। वहीं इसके विपरीत नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला ने कांग्रेस नेताओं को आत्ममंथन करने की सलाह दी कि आखिर क्यों आजाद जैसे वफादार नेता को इस्तीफा देना पड़ा। फारूक अब्दुल्ला ने कहा, आजाद को छोटा मत समझो, उन्हें वापस लौटने के लिए मनाने की कोशिश करो और अगर नेताओं का पलायन जारी रहा, तो कांग्रेस का अस्तित्व खत्म हो जाएगा।’
कांग्रेस नेता इसके बाद भी बेफिक्र रहे। जयराम रमेश ने ट्वीट किया,’ एक शख्स जिसके साथ कांग्रेस नेतृत्व द्वारा सबसे ज्यादा सम्मान के साथ व्यवहार किया गया है उसने अपने शातिर व्यक्तिगत हमलों से धोखा दिया है जो उसके असली चरित्र को उजाकर करता है। जीएनए (गुलाम नबी आजाद) का डीएनए ‘मोडी-फाइड’ है।’
फिलहाल सोनिया गांधी , राहुल और प्रियंका गांधी विदेश में हैं, लेकिन राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों और कांग्रेस के अन्य नेताओं की प्रतिक्रियाओं से साफ है कि पार्टी नेतृत्व आजाद को मनाने के मूड में नहीं है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदाई भाषण के दौरान राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद की तारीफ की और भावुक हो गए, तो कांग्रेस नेताओं ने आजाद पर ‘बीजेपी का एजेंट’ होने का आरोप लगाया। पार्टी ने उन्हें राज्यसभा का टिकट देने से इनकार कर दिया और उनके बजाय इमरान प्रतापगढ़ी को राज्यसभा में भेज दिया। मोदी ने एक काबिल मुख्यमंत्री के तौर पर आजाद की तारीफ की थी, लेकिन राहुल गांधी और उनकी मंडली को मोदी की यह तारीफ पसंद नहीं आई।
कांग्रेस नेताओं को यह समझना चाहिए कि क्यों शुक्रवार को फारूक अब्दुल्ला ने गुलाम नबी आजाद की तारीफ की। फारूक अब्दुल्ला सियासत और उम्र में गुलाम नबी आजाद से सीनियर हैं। दोनों अलग-अलग पार्टियों में हैं। फिर भी वो ग़ुलाम नबी की इज्जत करते हैं। गुलाम नबी जब 24 साल के थे तब कांग्रेस में आए थे। अब 73 साल के हैं। उन्होंने पूरी जिंदगी कांग्रेस में निकाल दी। ब्लॉक में यूथ कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ता से लेकर CWC तक, हर स्तर पर काम किया। ये सही है कि वो मंत्री रहे, मुख्यमंत्री रहे, राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे, कांग्रेस के महासचिव रहे। ये पद कांग्रेस ने उन्हें उनकी काबिलियत के आधार पर दिए। प्रशासनिक और राजनीतिक अनुभव के कारण वे इन पदों के हकदार थे।
गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे पर कांग्रेस के नेताओं ने जिस तरह की प्रतिक्रिया दी और जो बातें कहीं उनसे गुलाम नबी आजाद की चिट्ठी में लिखी एक-एक बात सही साबित होती है। उसी से पता चलता है कि कांग्रेस की हालत इतनी बुरी क्यों हो गई। कांग्रेस के किसी नेता ने उन मुद्दों पर विचार करने की जरूरत नहीं समझी जो गुलाम नबी आजाद और उनके G-23 के सहयोगियों ने उठाए थे। इसके बजाय कांग्रेस के नेता तो इस्तीफे की टाइमिंग पर सवाल उठाने लगे। ऐसे समय में जब सोनिया, राहुल और प्रियंका विदेश तब इस्तीफा क्यों दिया? कुछ नेता गुलाम नबी आजाद की नीयत पर शक करने लगे। कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं ने गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे को नरेंद्र मोदी से जोड़ने की कोशिश की और इसे बीजेपी की साजिश करार दिया।
किसी ने कहा कि मोदी के आंसुओं का कर्ज चुका रहे हैं। किसी ने कहा कि मोदी ने पद्मविभूषण दे दिया और गुलाब नबी आज़ाद का सरकारी आवास कॉन्टिन्यू कर दिया, इसलिए गुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस छोड़ दी। गुलाम नबी आजाद के लिए ये सब बहुत छोटी बातें हैं और ऐसी बातें छोटी सोच वाले ही कर सकते हैं। उनके बारे में ये कहना कि वो कांग्रेस में रहकर मोदी के एजेंट की तरह काम कर रहे थे। इस बात को साबित करता है कि कांग्रेस के नेता, मोदी के अलावा कुछ देख ही नहीं पाते। कुछ लोगों ने ये कहा कि गुलाम नबी आजाद को ऐसे वक्त पर सवाल नहीं उठाने चाहिए थे जब सोनिया गांधी बीमार हैं और राहुल गांधी देश से बाहर हैं।
मेरा कहना है कि कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत संगठन में अनुभवी नेताओं की मौजूदगी रही है। गुलाम नबी आज़ाद जैसे लोग जिन्होंने कई साल सरकारें आते-जाते देखी हैं, हार को जीत में बदलते देखा है। अगर आज वाकई में कांग्रेस मोदी से लड़ना चाहती है तो उसे ऐसे तजुर्बेकार नेताओं की जरूरत है। गुलाम नबी आज़ाद ने अपनी ज़िंदगी के 49 साल पार्टी को दिए हैं। इसका जिक्र उन्होंने सोनिया गांधी को लिखे अपने पांच पन्नों चिट्ठी में विस्तार से किया है।
गुलाम नबी आज़ाद इंदिरा गांधी, राजीव गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक सभी सरकारों में मंत्री रहे। उन पर कभी उंगली नहीं उठी। इसलिए आज ये कहना ठीक नहीं है कि वह एहसान-फरामोश हैं। पार्टी को उनकी जरूरत नहीं है। कांग्रेस को कोई फायदा नही है। इस समय तो कांग्रेस को जरूरत है कि वो अपने सारे नेताओं को संभालकर रखे। चाहे वो अनुभवी नेता हों या फिर नए ज़माने के लीडर हों। अगर कांग्रेस गुलाम नबी आज़ाद के योगदान को नहीं पहचानती, उनका सम्मान नहीं कर सकती तो इसे पार्टी का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।
वैसे राष्ट्रीय स्तर पर गुलाम नबी आजाद के जाने का कांग्रेस पर क्या असर होगा ये तो वक्त के साथ कांग्रेस के लोगों को पता लगेगा लेकिन जम्मू कश्मीर में कांग्रेस के खात्मे की शुरूआत हो गई। जम्मू कश्मीर में कांग्रेस के कुल छह विधायक थे लेकिन शुक्रवार को गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के पांच विधायकों ने भी पार्टी छोड़ दी। आजाद पहले ही संकेत दे चुके हैं कि वह जम्मू-कश्मीर में एक पार्टी बनाएंगे। गुलाम नबी के इस कदम का पहला असर जम्मू कश्मीर की सियासत पर पड़ेगा। जम्मू कश्मीर में पिछले चुनाव 2014 में हुए थे। उस वक्त कांग्रेस ने 12 सीटें जीतीं थी। उनमें से तीन सीटें अब लेह लद्दाख में चली गईं। कांग्रेस के जो नौ विधायक बचे थे उनमें से तीन पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं। अब बचे हुए छह में से पांच भी पार्टी छोड़ गए। जो एक विधायक कांग्रेस के साथ रह गया है वो इसलिए क्योंकि राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले उसे जम्मू-कश्मीर कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था।
गुलाम नबी आज़ाद जम्मू कश्मीर के ऐसे अकेले नेता हैं जिनकी पकड़ घाटी के साथ जम्मू रीजन में भी है। जम्मू की 12 विधानसभा सीटों पर ग़ुलाम नबी आज़ाद का अच्छा असर है। इसीलिए जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के बड़े नेता गुलाम नबी के जाने से परेशान हैं। गुलाम नबी आजाद पक्के कश्मीरी हैं। इंसानियत और ईमानदारी उनमें कूट-कूटकर भरी है। मैं आज़ाद साहब को तब से जानता हूं जब वो यूथ कांग्रेस के लीडर थे। उनकी रग-रग में कांग्रेस बसी है। वो इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के सिपाही रहे हैं। मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि वो कभी कांग्रेस छोड़ेंगे, क्योंकि मैं इतने साल से उन्हें बहुत करीब से जानता हूं।
उन्होंने कभी भी कांग्रेस और उसकी लीडरशिप के बारे में आलोचना का एक लफ्ज नहीं कहा। इसीलिए जब शुक्रवार को उन्होंने इस्तीफा दिया तो मुझे वो शेर याद आ गया ‘कुछ तो मजबूरियां रही होंगी…यूं ही कोई बेवफा नहीं होता।’ आज़ाद साहब के इस कदम से कांग्रेस को जम्मू-कश्मीर में बहुत नुकसान होगा।
जब आजाद मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कश्मीर में वर्क कल्चर बदल दिया था। विकास के बहुत सारे काम किए थे। कश्मीर घाटी और जम्मू दोनों जगह आज भी लोग उनके काम को याद करते हैं और आज़ाद साहब की बहुत इज्जत करते हैं। कश्मीर में चुनाव होने वाले हैं। अगर गुलाम नबी आज़ाद अपनी अलग पार्टी बनाते हैं तो वो कश्मीर में चुनाव के सारे समीकरण बदल सकते हैं। आज के वक्त में वह कश्मीर के अवाम की उम्मीदों का एक चेहरा बन सकते हैं।
Why did Ghulam Nabi Azad leave Congress after 49 years?
The exit of senior leader Ghulam Nabi Azad from the Congress party marks the fall of another strong pillar of the Grand Old Party. True to his name, he made himself ‘azaad’(free) from the party with which he had been associated for 49 long years.
While resigning from the primary membership and all other posts of the party, Azad wrote a five-page stinging, no-holds-barred, letter to the party interim president Sonia Gandhi, and told her in plain words that her son Rahul was ‘immature’, ‘childish’ and ‘surrounded by inexperienced sycophants’.
Describing Rahul Gandhi’s behaviour as ‘childish’, Azad wrote: “…unfortunately after the entry of Shri Rahul Gandhi into politics, and particularly after January 2013, when he was appointed as Vice President by you, the entire consultative mechanism which existed earlier was demolished by him. All senior and experienced leaders were sidelined and a new coterie of inexperienced sycophants started running the affairs of the Party.”
“One of the most glaring examples of this immaturity was the tearing up of a government ordinance in the full glare of the media by Shri Rahul Gandhi. The said ordinance was incubated in the Congress Core Group and subsequently unanimously approved by the Union Cabinet presided over by the Prime Minister of India and duly approved even by the President of India. ‘This childish’ behaviour completely subverted the authority of the Prime Minister and Government of India. This one single action more than anything else contributed significantly to the defeat of the UPA Government in 2014 which was at the receiving end of a campaign of calumny and insinuation from a combination of the forces of the right-wing and certain unscrupulous corporate interests. “
Rubbing salt into the wounds on the party’s electoral debacles, Azad wrote: “Under your stewardship since 2014 and subsequently that of Shri Rahul Gandhi, the INC has lost two Lok Sabha elections in a humiliating manner. It has lost 39 out of the 49 assembly elections held between 2014-2022. The Party only won four state elections and was able to get into a coalition situation in six instances. Unfortunately, today, the INC is ruling in only two states and is a very marginal coalition partner in two other states.”
Azad pointed out to Sonia Gandhi how Rahul Gandhi and his ‘coterie of sycophants’ were hounding old timers in the party. He wrote: “Since the 2019 elections, the situation in the party has only worsened. After Sh. Rahul Gandhi stepped down in a huff and not before insulting all the senior Party functionaries who have given their lives to the party, in a meeting of the extended Working Committee, you took over as interim President. A position that you continue to hold even today for the past three years.”
He wrote how Rahul’s coterie is running the Congress through remote control and decisions are being taken by his PAs and security guards. Azad wrote: “ Worse still, the ‘remote control model’ that demolished the institutional integrity of the UPA government now got applied to the Indian National Congress. While you are just a nominal figurehead, all the important decision were being taken by Shri Rahul Gandhi or rather worse, his security guards and PAs. “
The senior Congress leader mentioned how he and his colleagues in the Group of 23 were targeted and vilified by the coterie around Rahul Gandhi. Azad wrote: “In the August of 2020, when I and 22 other senior colleagues, including former Union Ministers and Chief ministers wrote to you to flag the abysmal drift in the Party, coterie chose to unleash its sycophants on us and got us attacked, villified and humiliated in the most crude manner possible. In fact on the directions of the coterie that runs the AICC today my mock funeral procession was taken out in Jammu. Those who committed this indiscipline were feted in Delhi by the General Secretaries of the AICC and Shri Rahul Gandhi personally. Subsequently, the same coterie unleashed its goondas to physically attack the residence of a former Ministerial Colleague Sh. Kapil Sibal , who incidentally was defending you and your kin in the courts of law for your alleged attacks of omission and commission.”
“ The only crime committed by the 23 senior leaders who wrote that letter out of concern for the Party is that they pointed out both the reasons for the weaknesses in the Party and the remedies thereof. Unfortunately, instead of taking those views on board in a constructive and cooperative manner, we were abused, humiliated, insulted and vilified in a specially summoned meeting of the extended CWC meeting.”, Azad wrote.
Describing the current election process in the Congress as a ‘farce’, Azad wrote: “Unfortunately, the situation in the Congress party has reached such a point of no return that now proxies are being propped up to take over the leadership of the Party. This experiment is doomed to fail because the Party has been so comprehensively destroyed that the situation has become irretrievable. Moreover, the chosen one would be nothing more than a puppet on a string. “
Describing Rahul Gandhi as ‘a non-serious individual’, Azad wrote: “ Unfortunately, at the national level we have conceded the political space available to us to the BJP and state-level space to regional parties. This all happened because the leadership in the past 08 years has tried to foist a non-serious individual at the helm of the Party. The entire organisational election process is a farce and a sham. At no place anywhere in the country have elections been held at any level of the organisation.”
“ Handpicked lieutenants of the AICC have been coerced to sgn on lists prepared by the coterie that runs the AICC sitting at 24 Akbar Road. At no place in a booth, block, district or state was an electoral roll published, nominations invited, scrutinized, polling booths set up and elections held. The AICC leadership is squarely responsible for perpetrating a giant fraud on the party to perpetuate its hold on the ruins of what once was a national movement that ought for and attained the Independence of India. Does the Indian National Congress deserve this in the 75th year of India’s independence is a question that the AICC leadership must ask itself.”
The letter, in a nutshell, exposes the abysmal levels to which the Congress party has descended. For the first time, a senior Congress leader, while resigning, has exposed the working of the Gandhi family. The letter seems to be a detailed report about the diseases that have afflicted the party. Since the allegations made were serious, Rahul Gandhi and his social media team immediately attacked Azad within minutes of this letter appearing in public domain. From Jairam Ramesh to Ashok Gehlot and Ajay Maken, Bhupesh Baghel to Pawan Khera, every pro-establishment leader in the Congress attacked Azad describing him as a power seeker, traitor and ungrateful man. On the contrary, National Conference leader Farooq Abdullah advised the Congress leaders to introspect why a loyal leader like Azad had to resign. “Do not consider Azad a small fry, try to persuade him to return, and if the exodus of leaders continues, Congress will cease to exist”, Farooq Abdullah said.
Congress leaders remained unfazed. Jairam Ramesh tweeted: “A man who has been treated with the greatest respect by the Congress leadership has betrayed it by his vicious personal attacks which reveals his true character. GNA’s DNA has been modi-fied.”
Presently, Sonia, Rahul and Priyanka Gandhi are abroad, but the reactions from Rajasthan and Chhattisgarh chief ministers and other Congress leaders make it quite clear that the party leadership is in no mood to persuade Azad. When Prime Minister Narendra Modi praised Ghulam Nabi Azad in Rajya Sabha during the farewell speech, and became emotional, Congress leaders pounced upon Azad alleging that he was an “agent of BJP”. The party refused to give him nomination for Rajya Sabha, and instead, sent Imran Pratapgarhi to the Upper House. Modi had praised Azad as a capable chief minister, but Rahul Gandhi and his coterie did not like this praise from Modi.
Congress leaders should understand why Farooq Abdullah praised Azad on Friday. Farooq Abdullah respects Azad though they both belong to different parties. Azad was 24 years old when he joined the Congress. Today he is 73. He almost spent his entire life in the service of Congress party. Rising from the post of block president to the post of Indian Youth Congress Chief to senior positions in Congress Working Committee and government, Azad had been a trouble shooter for the party leadership. He was the Leader of Opposition in Rajya Sabha. He deserved these positions because of his vast administrative and political experience.
The manner in which pro-establishment Congress leaders reacted substantiates the allegations made by Azad in his letter to Sonia Gandhi. The party leaders are unwilling to think about the core issues that Azad and his colleagues in Group of 23 had raised. Instead, they questioned the timing of his resignation, at a time when Sonia, Rahul and Priyanka have gone abroad. They tried to link Azad’s connections with Narendra Modi, doubted his intentions and alleged that he was part of a conspiracy hatched by the BJP.
Some alleged that Azad was repaying his debts for Modi’s tears, some pointed out how Modi government gave him the Padma Vibhushan and allowed Azad to continue to stay in his government bungalow. For Azad, such allegations are petty and beneath his dignity to react. This shows the petty thinking of some Congress leaders. Some of them said that Azad should not have resigned at a time when the Gandhi family had gone abroad for Sonia’s treatment.
My opinion is that the biggest strength of Congress party had been the presence of experienced leaders in the organisation. Leaders like Azad, through the years, have seen many governments rise and fall. If the Congress is really serious to pose a challenge to Narendra Modi, it badly needs leaders with experience and acumen. Ghulam Nabi Azad gave 49 years of his life in the service of Congress. He mentioned this in detail in his five-page letter to Sonia Gandhi.
From Indira Gandhi to Rajiv Gandhi to Dr Manmohan Singh, he had been minister in all the Congress governments at the Centre. There was never any charge of corruption against him. To say that he is an ungrateful man and the party does not need his service any more, smacks of immaturity. Congress, at this moment of existential crisis, should keep its flock of old timers and young leaders together. If Congress refuses to realize the contribution of Ghulam Nabi Azad, and unwilling to give him respect, I can only say, that it is the party’s misfortune.
The loss of Azad for Congress at the national level will be realized at the right time. Already, Azad has indicated that he would float a party in Jammu and Kashmir, and five Congress MLAs in that state resigned on Friday to join his camp. In the 2014 elections in J&K, Congress had won 12 seats, out of which three seats have now gone to the union territory of Ladakh. Out of the nine Congress MLAs, three have already left the party, and out of the remaining six, five left on Friday. The lone MLA left is the one who was made the J&K Congress chief by Rahul Gandhi a few days ago.
Azad is the only leader from the Valley who has influence in the Jammu region which accounts for 12 assembly seats. Ghulam Nabi Azad is a true Kashmiri, and he is known for his honesty and humane behaviour. My acquaintance with Azad had been since the time when he was Indian Youth Congress president. He has the ‘true Congress blood’ running in his veins. He had been a soldier of Indira and Rajiv Gandhi. I could never dream that he would ever leave the Congress, because I knew him closely over the last several decades.
He never uttered a word against the Congress leadership throughout his life, but after I read his resignation letter on Friday, I was reminded of the Urdu couplet: “Kuch Toh Majbooriyan Rahi Hongi, Yoon Hi Koi Bewafaa Nahin Hota”. Azad’s exit will cause a huge loss to Congress in Jammu and Kashmir.
When he became the chief minister, he changed the work culture in Kashmir, and started work on several developmental projects. People in the Valley and Jammu region remember his work even today. They respect Azad Saheb. Elections are due in Kashmir, and Azad can change several political equations in the state. In the situation that prevails today, Azad can become the face of the aspirations of the people of Kashmir.
हैदराबाद के हिंदू, मुसलमान नफरत के सियासी जाल में न फंसें
जुमे की नमाज़ आज पुराने हैदराबाद में, खासकर मक्का मस्जिद इलाके में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच शांतिपूर्ण ढंग से हुई। सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाकों में 4,000 से ज्यादा पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था। मुट्ठी भर मुसलिम नौजवानों ने मक्का मस्जिद के बाहर नारेबाजी जरूर की, लेकिन वे तुरंत तितर-बितर हो गए। किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए रैपिड ऐक्शन फोर्स की टीमों को तैनात किया गया था।
इस बीच, पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करके सांप्रदायिक तनाव भड़काने वाले बीजेपी विधायक टी. राजा सिंह को गुरुवार को पुलिस ने प्रिवेंटिव डिटेंशन एक्ट के तहत हिरासत में ले लिया। राजा सिंह को हिरासत में लिए जाने के बाद गोशामहल, टप्पाचबूतरा, हबीबनगर, मंगलहाट और जुमेरात बाजार इलाकों में सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए।
राजा सिंह तो गुरुवार को एक बार फिर सलाखों के पीछे पहुंच गए, लेकिन दूसरी तरफ सैयद अब्दाहू कशफ नाम का एक स्थानीय मुस्लिम कार्यकर्ता, जिसे राजा सिंह के खिलाफ ‘सिर तन से जुदा’ नारे का समर्थन करने के लिए गिरफ्तार किया गया था, गुरुवार की शाम को जमानत पर रिहा कर दिया गया। कशफ ने सोशल मीडिया पर ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगाते हुए एक वीडियो पोस्ट किया था और मुसलमानों से स्थानीय DCP के दफ्तर के बाहर विरोध करने का आग्रह किया था।
वीडियो में कशफ ने कहा, ‘हैदराबाद पूरी तरह से हमारे कंट्रोल में है। मैं चाहता हूं कि जिस शख्स ने हमारे पैगंबर की शान में गुस्ताखी की है, सजा के तौर पर उसका सिर कलम किया जाए, क्योंकि यह मेरा मजहबी यकीन है।’ निचली अदालत ने कशफ को 10 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था, लेकिन गुरुवार शाम को एक उपरी अदालत ने उसे जमानत दे दी।
प्रिवेंटिव डिटेंशन ऐक्ट के तहत गिरफ्तार किए गए बीजेपी विधायक राजा सिंह को करीब एक साल तक जेल में रहना पड़ सकता है। गौर करने वाली बात यह है कि AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने, जो कि एक बैरिस्टर भी हैं, बुधवार को मांग की थी कि राजा सिंह को हैदराबाद पुलिस एक मजबूत कानून के तहत गिरफ्तार करे, और अगले दिन पुलिस ने ऐसा ही किया।
वहीं दूसरी तरफ, पुलिस ने बुधवार की रात हंगामा कर रहे, ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगा रहे करीब 90 मुस्लिम नौजवानों को पकड़ा था, लेकिन ओवैसी ने एक फोन किया, अपनी पार्टी के नेताओं को थाने भेजा और पुलिस ने अगले दिन सारे लोगों को छोड़ दिया। इसीलिए बीजेपी ने इल्जाम लगाया कि तेलंगाना की TRS सरकार ओवैसी के इशारे पर काम कर रही है। बीजेपी के सोशल मीडिया इंचार्ज अमित मालवीय ने ट्वीट किया, ‘KCR आग से खेल रहे हैं। उन्होंने हैदराबाद में सांप्रदायिक आग भड़का रहे AIMIM और असदुद्दीन ओवैसी के सामने पूरी तरह से सरेंडर कर दिया है। एक तरफ ओवैसी पीड़ित की भूमिका निभा रहे हैं तो दूसरी तरफ भीड़ को उकसा रहे हैं।’
गुरुवार को टी. राजा सिंह को प्रिवेंटिव डिटेंशन एक्ट के तहत गिरफ्तार करने से पहले पुलिस अधिकारियों ने उन्हें उन पर लगे आरोप पढ़कर सुनाए। पुलिस ने कहा, (1) आपने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की है (2) श्रीराम जयंती पर आपके खिलाफ पहले से ही एक मामला है और (3) आपने यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान भी भड़काऊ बयान दिया था। पुलिस जब राजा सिंह को हिरासत में लेकर निकली तो दर्जनों गाड़ियां उन्हें एस्कॉर्ट कर रही थीं।
राजा सिंह को अपनी गिरफ्तारी का पहले से ही अंदाजा लग गया था, इसलिए उन्होंने एक वीडियो बनाया जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने उनकी गिरफ्तारी को ‘इगो का मुद्दा’ बना लिया है। राजा सिंह ने अपने वीडियो में कहा, ‘मैं डरने वाला नहीं है, और मैंने जो किया वह ‘धर्मयुद्ध’ का हिस्सा था। मैंने हिंदू स्वाभिमान का मुद्दा उठाने की कोशिश की और मेरा मानना है कि इस धर्मयुद्ध में हर हिंदू मेरे साथ है।’
राजा सिंह ने आरोप लगाया कि इस विवाद की जड़ में केसीआर के बेटे और राज्य के शहरी विकास मंत्री के. टी. रामा राव (KTR) हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि KTR ने ही कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी को हिंदू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाने के लिए हैदराबाद में अपना शो करने की इजाजत दी थी। राजा सिंह ने कहा, ‘अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया होता, तो शहर में शांति होती।’
राजा सिंह ने पैगंबर के बारे में जो कहा उसे न तो जस्टिफाई किया जा सकता है और न ही कोई उस बात का समर्थन कर सकता है। राजा सिंह को अगर मुनव्वर फारूकी के शो पर एतराज था तो पुलिस से शिकायत करते या कोर्ट जाते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। पैगंबर के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल स्वीकार्य नहीं हो सकता।
एक तरफ तो राजा सिंह फिर से जेल पहुंच गए, लेकिन हिंसा करने वाले, हंगामा करने वाले, ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगाने वाले लोग आजाद घूम रहे हैं। ऐसे कई प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी के कहने पर रिहा किया था।
बुधवार की रात, प्रदर्शनकारियों ने शालीबंडा और आशा टॉकीज इलाकों में आगजनी और पथराव किया जिसके बाद पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। पुलिस ने हंगामा, आगजनी और पत्थरबाजी के आरोप में करीब 90 लोगों को हिरासत में लिया, लेकिन ओवैसी के हस्तक्षेप के बाद हंगामा करने वाले सभी मुस्लिम नौजवानों को छोड़ दिया गया। ओवैसी ने प्रदर्शनकारियों को छुड़ाने के बाद उनसे फोन पर खुलकर कहा कि वे टेंशन न लें, रात बहुत हो गई है, घर जाकर आराम करें।
सैयद अब्दाहु कशफ पहले असदुद्दीन ओवैसी की मीडिया टीम में था, लेकिन अब वह खुद को सोशल मीडिया इनफ्लूएंसर कहता है। सैयद कशफ ही वह पहला शख्स था जिसने राजा सिंह का वीडियो सोशल मीडिया पर आने के बाद सबसे पहले पुलिस स्टेशन का घेराव किया था और ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगाए थे।
बीजेपी नेता और केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने आरोप लगाया कि ‘ओवैसी डबल गेम खेल रहे हैं। एक तरफ तो दंगे भड़काने वालों को छुड़वा रहे हैं, और दूसरी तरफ शांति की बात कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि जैसे तेलंगाना में TRS की नहीं बल्कि ओवैसी की सरकार चल रही हो।’
इस बीच हैदराबाद में बीजेपी नेताओं को धमकियां मिलने लगी हैं। हैदराबाद में बीजेपी के युवा नेता लड्डू यादव ने आरोप लगाया कि AIMIM के करीब 150 समर्थक उनके घर आए और उन्हें जान से मारने की धमकी दी। सोशल मीडिया पर राजा सिंह और लड्डू यादव को जान से मारने की धमकी देने वाले वीडियो अपलोड किए गए हैं।
यहां तक कि राजा सिंह के वकील करुणा सागर काशिमशेट्टी को भी 7 फोन आए जिसमें उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई। उन्होंने कहा, ‘पांच कॉल लोकल थे और दो कॉल सऊदी अरब से आए थे। फोन करने वालों में से एक ने मुझसे कहा कि राजा सिंह को जमानत दिलवाई तो सिर कलम कर दिया जाएगा।’ वकील ने यह भी कहा, CRPC 41 A के तहत राजा सिंह को दी गई नोटिस का कोई कानूनी आधार नहीं है, क्योंकि इस तरह के नोटिस केस दर्ज होने के दो हफ्ते के भीतर देने होते हैं, जबकि ज्यादातर मामले 4 से 6 महीने पुराने हैं। उन्होंने कहा कि अदालत में प्रॉसिक्यूशन की दलीलें नहीं टिकेंगी।
राजा सिंह ने जो कहा उसकी सजा कानून उन्हें देगा। उन्हें सजा देने का काम अदालत का है। इसलिए जो लोग राजा सिंह या उनके समर्थकों को जान से मारने की धमकी दे रहे हैं, उनका रास्ता भी गलत है। किसी को भी कानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती। इससे किसी का फायदा नहीं होता। सड़कों पर ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगने से दुनिया में भारत का नाम बदनाम होता है। यह हमारे देश की संस्कृति नहीं है। जो लोग सड़कों पर निकल रहे हैं, नारेबाजी कर रहे हैं, उन्हें इसके पीछे की सियासत समझनी चाहिए।
राजा सिंह हिंदुओं के वोट मिलने की उम्मीद में जहरीले बयान दे रहे हैं। वहीं, ओवैसी हिरासत में लिए गए मुस्लिम नौजवानों को छुड़वाकर मुसलमानों के वोट जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव और उनकी पार्टी टीआरएस चुप्पी साधे हुए है। टीआरएस के नेता जानते है कि इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने में नुकसान है। अगर वे राजा सिंह के खिलाफ बोलेंगे तो हिन्दुओं के वोट जा सकते हैं, और अगर राजा सिंह से हमदर्दी दिखाएंगे तो मुसलमान नाराज हो सकते हैं।
यही वजह है कि सरकार खामोश है, और केसीआर ने इस मामले से निपटने के लिए पुलिस को आगे कर दिया है। इसलिए मेरी हैदराबाद के हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों से अपील है कि वे सियासत के चक्कर में सदियों पुरानी भाईचारे की अपनी परंपरा को न भूलें। वे अब तक एक दूसरे को गले लगाते आए हैं, वही करें, और एक दूसरे का गला काटने की बातें तो बिल्कुल न करें। इसमें सबका नुकसान है।
Hindus, Muslims of Hyderabad must not fall into the political trap of hate
Friday prayers passed off peacefully in Old Hyderabad, particularly in Mecca Masjid, amidst tight security arrangements. Over 4,000 policemen were deployed in the communally-sensitive localities. A handful of young men chanted slogans outside the Mecca Masjid, but they dispersed immediately. Rapid Action Force teams were deployed to prevent any untoward incident.
Meanwhile, BJP MLA T. Raja Singh, who had provoked communal tension by making derogatory comments against Prophet Mohammed, was taken into custody on Thursday by police under Preventive Detention Act. Tight security arrangements were made in the localities of Goshamahal, Tappachabutara, Habeebnagar, Mangalhat and Jummerat Bazar after he was detained.
On one hand, Raja Singh was detained, but, on the other hand, a local Muslim activist Syed Abdahu Kashaf, who was arrested for supporting ‘Sar Tan Se Juda’ (beheading) remarks against Raja Singh, was released on bail on Thursday evening. Kashaf had posted a video on social media raising ‘Sar Tan Se Juda’ slogan and had urged Muslims to protest outside the local DCP’s office.
“Hyderabad is totally controlled by us. My intention is that the person who abused our Prophet must suffer the beheading punishment, because this is my religious belief”, Kashaf said in the video. Kashaf was sent to 10 days’ judicial custody by a lower court, but on Thursday evening, a higher court granted him bail.
BJP MLA Raja Singh, who has been arrested under Preventive Detention Act, may have to remain in jail for nearly a year. One point to note is that AIMIM chief Asaduddin Owaisi, a barrister, had demanded on Wednesday that Hyderabad Police should arrest him under a stronger law, and this was done by police the next day.
On the contrary, 90 Muslim youths who had chanted ‘beheading slogans’ on Wednesday night were arrested, but were released by police the next day. BJP leaders alleged that TRS government in Telangana has completely surrendered to Owaisi’s party. BJP social media in-charge Amit Malviya tweeted: “KCR is playing with fire. He has completely surrendered to AIMIM and Asaduddin Owaisi, who are stoking communal fire in Hyderabad. On the one hand, Owaisi is playing the victim, on the other instigating mobs.”
On Thursday, before arresting him under Preventive Detention Act, police officers read out the charges to T. Raja Singh. They said, (1) you have made derogatory comments against Prophet Mohammed (2) there is already a case against you on Sriram Jayanti and (3) you had also given a provocative statement during UP assembly elections. A large cavalcade of police vehicles accompanied as police took Raja Singh into custody.
Anticipating his arrest, Raja Singh circulated a video in which he alleged that Chief Minister K. Chandrashekhar Rao has now “made it an ego issue”. “I am not going to be afraid, and what I did, was part of ‘dharm yuddh’ (religious war). I tried to raise the issue fo Hindu pride and I believe, every Hindu is with me in this battle”, Raja Singh said in his video.
Raja Singh alleged that it was KCR’s son Urban Development Minister K. T. Rama Rao (KTR) who is at the root of this controversy. He alleged that it was KTR who allowed comedian Munawar Faruqui to do his show in Hyderabad to deride Hindu gods and goddesses. “Had he not done this, there would have been peace in the city”, Raja Singh said.
Whatever Raja Singh said about the Prophet can never be justified or supported. If he had objection to Faruqui’s show, he could have complained to police, which he did not do. The use of abusive language against the Prophet cannot be accepted.
On one hand, Raja Singh has been sent to jail, but those protesters who were chanting slogans to behead him, are moving around freely. Several such protesters were released by police at the request of AIMIM chief Asaduddin Owaisi.
On Wednesday night, protesters indulged in arson and stoning in Shalibanda and Asha Talkies localities, and police had to resort to lathicharge. Ninety people were arrested, but were released after Owaisi intervened with police. Owaisi openly told the protesters over cellphone, not to create tension and go home and take rest.
Sued Abdahu Kashaf was part of Owaisi’s media team. He calls himself a social influencer. He was the first among those who gheraoed the police station after Raja Singh’s abusive video was circulated on social media.
BJP leader and Union Rural Development Minister Giriraj Singh alleged that “Owaisi is playing a double game. On one hand, he is appealing for peace, and on the other, he is getting the protesters released. It appears as if it is not TRS, but Owaisi who is ruling Telangana.”
Meanwhile, BJP leaders in Hyderabad have started getting threats. Laddu Yadav, a BJP youth leader in Hyderabad, alleged that nearly 150 AIMIM supporters came to his home and threatened to kill him. Videos have been uploaded on social media threatening to kill Raja Singh and Laddu Yadav.
Even Raja Singh’s lawyer Karuna Sagar Kashimshetty got seven phone calls in which he was threatened. “Five calls were local and two calls came from Saudi Arabia. One of the callers threatened to behead me for procuring bail for Raja Singh”, he said. The lawyer also said, the notice served on Raja Singh under Section 41A of Criminal Procedure Code has no legal standing, because such notices have to be given within two weeks, whereas most of the cases are four to six months old, and the arguments by prosecution cannot stand in court.
It is up to the courts to give punishment to Raja Singh for his abusive and derogatory remarks. This is the work of judiciary. Those who are giving threats of beheading Raja Singh are also committing a crime. Nobody can be allowed to take law in his own hands. Chanting of slogans like “Sar Tan Se Juda” lowers India’s prestige abroad. This is also not part of Indian culture. There is shrewd politics at work behind those who are out in the streets chanting such slogans.
While Raja Singh wants to consolidate Hindu votes by making abusive remarks, it is Owaisi, who is trying to consolidate his Muslim base by getting the protesters released. Chief Minister K. Chandrashekhar Rao and his party, TRS, is maintaining a stony silence. TRS leaders know that making any comment on the issue can backfire. If they speak out against Raja Singh, the party may lose Hindu votes, and if they show sympathy towards him, Muslims will turn against TRS.
The state government is silent, and KCR has left it to the police to deal with the issue. I would therefore like to appeal to both Hindus and Muslims of Hyderabad, not to get embroiled in politics and not forget the centuries-old brotherhood between both communities. They had been hugging one another for centuries, and must desist from beheading one another. This can only cause a big loss to both communities.
झारखंड के घोटालों की सियासी आग हेमंत सोरेन तक पहुंच सकती है
झारखंड में एक बड़े पावर ब्रोकर और कारोबारी पर ED की छापेमारी के एक दिन बाद ये खबर आई है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को चुनाव आयोग अयोग्य ठहरा सकता है। इससे वहां की राजनीति में अचानक उबाल आ गया है।
चुनाव आयोग से राजभवन को एक सीलबंद लिफाफा मिला है जिसके बाद राज्यपाल रमेश बैस गुरुवार को दिल्ली से अचनाक रांची पहुंच गये। पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास और विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में BJP के एक प्रतिनिधिमंडल ने 11 फरवरी को राज्यपाल को ज्ञापन देकर मांग की थी कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1952 की धारा 9 ए के तहत अयोग्य ठहराया जाए और उन्हें पद से हटाया जाए। राज्यपाल ने इस मसले पर चुनाव आयोग की राय मांगी थी।
हेमंत सोरेन पर आरोप है कि उन्होने मुख्यमंत्री रहते खुद के नाम एक खनन पट्टा आवंटित करा दिया जो कि Office of Profit के प्रावधान का उल्लंघन है। मीडिया की खबरों में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन को चुनावी कानून के तहत अयोग्य ठहराने की सिफारिश की है।
झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा में JMM के 30 विधायक हैं, जबकि सहयोगी दल कांग्रेस के 17 और RJD का एक विधायक है। मुख्य विपक्षी दल BJP के सदन में 26 विधायक हैं।
झारखंड के संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि जेएमएम के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को कोई खतरा नहीं है। उन्होंने कहा कि लाभ के पद के इस मामले में हेमंत सोरेन को अयोग्य ठहराए जाने की सूरत में भी सरकार को कोई खतरा नहीं है। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने मध्यावधि चुनाव की मांग की है।
इस बीच, ED ने झारखंड के खनन और मनरेगा घोटालों के सरगना प्रेम प्रकाश को मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत बुधवार की रात को गिरफ्तार कर लिया। ED ने उसके आवास से 2 एके-47 राइफलें और 60 कारतूस जब्त किए थे।
ED ने बुधवार को 100 करोड़ रुपये के खनन घोटाले के सिलसिले में झारखंड, बिहार, तमिलनाडु, दिल्ली और एनसीआर में 17 जगहों पर छापेमारी की थी। रांची में 11 ठिकानों पर छापेमारी की गई, जिसमें वसुंधरा अपार्टमेंट में प्रेम प्रकाश का फ्लैट, हरमू चौक के पास उसका घर ‘शैलोदय’, हरमू में उसका दफ्तर, अशोक नगर और मोरहाबादी में चार्टर्ड एकाउंटेंट जयशंकर जयपुरिया के मकान, लालपुर में एक अन्य चार्टर्ड अकाउंटेंट अनीता कुमारी का घर और अरगोड़ा चौक के पास एक कोयला व्यापारी एम. के. झा का घर शामिल हैं। बिहार के सासाराम में प्रेम प्रकाश के मामा रतन श्रीवास्तव के घर की भी तलाशी ली गई।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नाम प्रेम प्रकाश से जोड़ने और ईडी की छापेमारी को लेकर बुधवार शाम मुख्यमंत्री कार्यालय ने मीडिया को चेतावनी जारी की। एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘जिस तरह से कुछ मीडिया प्लेटफॉर्म रांची और अन्य स्थानों पर एक निजी व्यक्ति और उसकी संपत्तियों पर चल रही ईडी की छापेमारी की खबरें दे रहे हैं, मुख्यमंत्री कार्यालय उस तरीके पर कड़ी आपत्ति दर्ज करता है। यदि झारखण्ड सरकार को दुर्भावनापूर्ण रिपोर्ट और ट्वीट/डिजिटल पोस्ट डालने के और मामले का पता चलता है, तो उचित कानूनी प्रावधानों के अनुरूप कदम उठाए जायेंगे।’
ईडी की छापेमारी की सबसे मजेदार बात यह थी कि जब इसकी टीम प्रेम प्रकाश के घर पर गई तो उसे उम्मीद थी कि नोटों के ढेर मिलेंगे, लेकिन इसकी बजाय उन्हें एक आलमारी के अंदर से 2 एके-47 राइफलें और 60 जिंदा कारतूस मिले। जल्द ही ED के संयुक्त निदेशक उसके घर पहुंच गए, और जैसे ही एके-47 राइफलों की जब्ती की खबर सामने आई, अरगड़ा के थाना प्रभारी विनोद कुमार मौके पर पहुंच गए और दावा किया कि ये हथियार अवैध नहीं थे, बल्कि प्रेम प्रकाश के आवास पर तैनात पुलिसकर्मियों के थे।
रांची पुलिस ने बताया कि दोनों पुलिसकर्मी मंगलवार की रात अपनी ड्यूटी कर घर लौट रहे थे, तभी तेज बारिश होने लगी और वे दोनों अपनी रायफलें आलमारी में रख कर घर चले गए। बुधवार को जब वे अपने हथियार वापस लेने के लिए लौटे तो उन्होंने पाया कि ED के अफसर घर की तलाशी ले रहे हैं। रांची पुलिस ने बताया कि दोनों पुलिसकर्मियों को ड्यूटी में लापरवाही बरतने के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया है। पुलिस ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि इन दोनों पुलिसकर्मियों की बतौर सुरक्षाकर्मी तैनाती किसके यहां थी।
कौन है प्रेम प्रकाश? वह रांची के राजनीतिक हलकों में सत्ता के गलियारों का बड़ा चलता-फिरता पुर्जा है, और IAS अधिकारी एवं पूर्व खनन सचिव पूजा सिंघल का करीबी है, जो पहले से ही हिरासत में हैं। वह कुछ साल पहले तक एक छोटा-मोटा कारोबारी था और मिड-डे मील के लिए स्कूलों में अंडों की सप्लाई करता था।
प्रेम प्रकाश बिहार के सासाराम जिले का रहने वाला है। जानकारों ने बताया कि प्रेम प्रकाश एक वक्त में लालू यादव के घर के चक्कर काटा करता था। उसके ऊपर लालू के घर से मोबाइल फोन चोरी करने का भी इल्जाम लगा था और पकड़े जाने पर उसकी पिटाई भी हुई थी। झारखंड के सत्ता के गलियारों में प्रेम प्रकाश की एंट्री 2015-16 में हुई। प्रेम प्रकाश को मिड डे मील स्कीम के लिए स्कूलों में अंडे सप्लाई करने का ठेका मिला था। वह रांची के बरियातू थाने के पीछे के एक अपार्टमेंट के पेंट हाउस में रहता था। वहां होने वाली पार्टियों में तमाम नेता और अधिकारी पहुंचते थे। उसने रांची के पॉश इलाके हरमू कॉलोनी में क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के घर के बगल में जमीन खरीदी है और एक आलीशान बंगला बनवा रहा है। प्रेम प्रकाश के पास 2 लग्जरी गाड़ियां हैं जिनका एक ही नंबर है 007 है। बीजेपी सांसद निशिकांत दूबे ने कहा, ‘अभी तो तालाब की छोटी मछली सामने आई है। देखते जाइए, बड़ी-बड़ी मछलियां भी सामने आएंगी।’
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ईडी की छापेमारी के बारे में सीधे-सीधे तो कुछ नहीं बोले, लेकिन इतना जरूर कहा, ‘कुछ लोग नहीं चाहते कि झारखंड आगे बढ़े। झारखंड बनने के 20 साल बाद सूबे के विकास का काम शुरू हुआ है, और यह बात कुछ लोगों को पसंद नहीं आ रही है।’
सियासी नजर से देखें तो झारखंड में पड़े ED के छापों की आंच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक पहुंच सकती है। हालांकि हेमंत सोरेन ने इन छापों के साथ अपना नाम जोड़ने वालों को चेतावनी दी है। सोरेन, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह कह रहे हैं कि केंद्र ED और CBI का इस्तेमाल इसलिए कर रहा है क्योंकि वह झारखंड की तरक्की से डर गई है। लेकिन सोरेन इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि खनन घोटाले के सिलसिले में उनकी पूर्व खनन सचिव पूजा सिंघल पिछले कई महीनों से जेल में हैं। अब तक उन्हें अदालत से भी राहत नहीं मिली है। प्रेम प्रकाश को पूजा सिंघल का करीबी बताया जाता है और ED की छापेमारी को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह तेजी से सियासी मसला बनता जा रहा है। यहां तक कि RJD और कांग्रेस ने भी झारखंड में ED के छापे पर कुछ बोलने से इनकार कर दिया।
बिहार
RJD बिहार में एक और लड़ाई लड़ रही है। 2008-09 में लालू के रेल मंत्री रहने के दौरान रेलवे में नौकरी देने के बदले जमीन लेने के मामले में CBI ने बुधवार को RJD नेताओं से जुड़े 25 स्थानों पर छापेमारी की। पटना, वैशाली, मधुबनी, कटिहार और दानापुर में कई जगहों पर करीब 10 घंटे तक तलाशी ली गई।
ये छापेमारी RJD के 2 राज्यसभा सांसदों अशफाक करीम और फैयाज अहमद, लालू प्रसाद और राबड़ी के करीबी बताए जा रहे MLC सुनील सिंह, पूर्व MLC सुबोध राय और पूर्व विधायक अबू दुजाना के ठिकानों पर की गई। इन नेताओं को RJD के लिए फंड का जुगाड़ करने वाला माना जाता है। दिल्ली और गुरुग्राम में भी तलाशी ली गई। पटना में सुनील सिंह के समर्थक उनके घर के बाहर धरने पर बैठ गए और बीजेपी विरोधी नारे लगाने लगे, जबकि अंदर सीबीआई तलाशी ले रही थी। सुनील सिंह ने कहा कि सीबीआई के अधिकारियों ने उनसे जबरदस्ती कुछ कागजात पर दस्तखत कराने की कोशिश की।
RJD सांसद अशफाक करीम कटिहार में एक मेडिकल कॉलेज चलाते हैं। एक अन्य सांसद फैयाज अहमद, जो कि दो बार विधायक रह चुके हैं, भी एक मेडिकल कॉलेज चलाते हैं। ये दोनों नेता लालू परिवार के करीबी बताए जाते हैं। बुधवार को पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने कहा कि ये छापेमारी उनकी पार्टी के लोगों को डराने के लिए की जा रही है, लेकिन RJD डरने वाली नहीं है। CBI मेडिकल कॉलेजों में तलाशी के लिए CRPF कर्मियों को ले गई थी।
बीजेपी नेता और पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने कहा, ‘लालू परिवार तो आदतन भ्रष्ट है। इन्हें CBI के छापों की भी आदत है।’ सीबीआई ने इस मामले में पिछले साल जांच शुरू की थी और इस साल मई में लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और उनकी बेटी मीसा भारती के ठिकानों पर छापेमारी की थी।
बिहार विधानसभा में डिप्टी सीएम और RJD नेता तेजस्वी यादव ने बीजेपी पर हमला किया और आरोप लगाया कि केंद्र विरोधियों को डराने के लिए ED और CBI का दुरुपयोग कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘बिहार की जनता सब देख रही है और वह जवाब देगी।’ उन्होंने विधानसभा को बताया कि CBI ने गुरुग्राम के सेक्टर 71 में अर्बन क्यूब मॉल में तलाशी ली। तेजस्वी ने कहा, ‘इस मॉल को व्हाइटलैंड कॉर्पोरेशन बना रहा है और हमारे परिवार का इस मॉल से कोई लेना-देना नहीं है।’ सीबीआई ने 2017 में तेजस्वी यादव के खिलाफ केस दर्ज किया था। इसकी चार्जशीट भी दाखिल की जा चुकी है और वह 2019 से जमानत पर हैं।
तेजस्वी यादव के लिए CBI के केस, ED के रेड कोई नई बात नहीं है। पिछले 15 साल से उनके परिवार और पार्टी के लोगों के खिलाफ कई केस दर्ज हुए हैं। लालू यादव तो चारा घोटाले में दोषी करार दिए जाने के बाद कई साल जेल में रहना पड़ा है। लालू परिवार पहले इन मामलों के लिए नीतीश कुमार को जिम्मेदार ठहराता था, लेकिन अब नीतीश के RJD कैंप में शामिल होने के बाद वह नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहरा रहा है।
नीतीश कुमार की पार्टी जब बीजेपी के साथ थी, तब वह बड़ी चतुराई से भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाते थे। उन्होंने लालू यादव और तेजस्वी यादव को भ्रष्टाचार की गंगोत्री बताया था, लेकिन बुधवार को विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पर बहस का जवाब देते हुए नीतीश कुमार ने कोई अलग ही राग छेड़ा था।
नीतीश कुमार ने क्लीन चिट देते हुए कहा, 2017 में तेजस्वी यादव के खिलाफ मामले दर्ज किए गए, लेकिन कुछ भी सामने नहीं आया। बीजेपी नेताओं की तरफ इशारा करते हुए नीतीश कुमार ने कहा, ‘बीजेपी में ईमानदार और सीधे-सादे नेताओं को कुछ नहीं मिलता। 2024 के चुनाव के लिए मेरी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है। मेरा एकमात्र उद्देश्य विपक्ष को एकजुट करना है।’
Political fire over Jharkhand scams can singe Hemant Soren
A day after the Enforcement Directorate raided a key power broker-cum-businessman in Jharkhand and seized 2 AK-47 rifles from his home, reports have come in about the Election Commission’s opinion on a plea seeking disqualification of Chief Minister Hemant Soren as an MLA for violating electoral law.
Governor Ramesh Bais air-dashed from Delhi to Ranchi on Thursday, after the Raj Bhavan received a sealed envelope from the Election Commission. The Governor had sought the EC’s opinion after a BJP delegation led by former CM Raghubar Das and legislature party leader Babulal Marandi, met him on February 11 seeking removal of Soren as chief minister, and disqualification under Section 9A of Representation of People’s Act, 1952.
This action deals with disqualification for government contracts, and it was alleged that the chief minister had allotted a mining lease to himself. Media reports said the EC has opined that Soren can be disqualified under the electoral law. The JMM has 30 MLAs in the 81-member Jharkhand Assembly, while Congress has 17 and the RD one MLA. The main opposition BJP has 26 MLAs in the House.
Parliamentary Affairs Minister Alamgir Alam said there was no threat to the ruling coalition government. “Even in the probability of Hemant Soren being disqualified in this office of profit case, there is no threat to the government”, he said. BJP MP Nishikant Dubey demanded that there should be a mid-term poll.
Meanwhile, ED has arrested Prem Prakash, the lynchpin in the Jharkhand mining and MNREGA scams, under Prevention of Money Laundering Act on Wednesday night, after two AK-47 rifles and 60 cartridges were seized from his residence.
On Wednesday, ED had conducted raids at 17 places in Jharkhand, Bihar, Tamil Nadu, Delhi and NCR in connection with the Rs 100 crore mining scam. The searches were conducted at 11 places in Ranchi, including Prem Prakash’s flat in Vasundhara Apartment, his residence ‘Shailodaya’ near Harmu Chowk, his office in Harmu, and residences of chartered accountant Jaishankar Jaipuria in Ashok Nagar and Morhabadi, and residence of another chartered accountant Anita Kumari in Lalpur and the house of a coal trade M K Jha near Argora Chowk. Searches were also conducted in the residence of Ratan Srivastava, maternal uncle of Prem Prakash in Sasaram, Bihar.
On Wednesday evening, the chief minister’s office issued a warning to media for linking Chief Minister Hemant Soren to Prem Prakash and ED raids. A press release said, “The Office of the CM takes strong objection to the manner in which certain media platforms have been reporting news of the ongoing ED raid on a private individual and his properties in Ranchi and other places…If the state government comes across any further malicious reports and tweets/digital posts, it will be dealt with as per due legal provisions”.
The most hilarious part of ED raids was that when their sleuths went to Prem Prakash’s residence, they expected to find wads of currency notes, but instead found two AK-47 rifles and 60 live cartridges kept inside an almirah. Soon, the joint director of ED reached his house, and as news about the seizure of AK-47 rifles was flashed, the police station in-charge of Argada Vinod Kumar reached the spot and claimed that these were not illegal weapons, but belonged to policemen who were deployed at his residence.
Police security given to Prem Prakash had been withdrawn by Hemant Soren government after his name figured as the kingpin in the mining scam. Ranchi Police said, the two policemen were returning home on Tuesday night after doing their duty, when it rained heavily. They kept both the rifles in the almirah and went home. On Wednesday, when they returned to take back their weapons, they found ED sleuths searching the residence. Ranchi Police said, both the policemen have been suspended for negligence in duty. The local police failed to give a proper reply to the question as to whom these two policemen were assigned as security personnel.
Who is Prem Prakash? He is known in Ranchi’s political circles as a power broker, and was close to IAS officer, former Mining Secretary Pooja Singhal, who is already in custody. He was a small-time businessman several years ago and used to supply eggs to schools for mid-day meal scheme.
A native of Bihar’s Sasaram district, he became close to RJD supremo Lalu Prasad several years ago, and was once beaten up on charge of stealing a cellphone. He made his entry into the power circles of Jharkhand in 2015-16. He supplied eggs to schools under Ready To Eat Food midday meal scheme. He owned a penthouse apartment in Bariatu locality of Ranchi, where political leaders and top bureaucrats used to attend parties. He bought a plot near cricketer M. S. Dhoni’s residence in Harmu colony to build a plush bungalow. He owned two luxury cars with the fancy number plate ending with 007. BJP MP Nishikant Dubey says, that “These are small fish. Wait for the big fish that will be caught soon.”
Chief Minister Hemant Soren did not comment on ED raids, but said, “some people do not want Jharkhand to progress. Development work has begun for the first time after 20 years, but some people do not like this.”
Politically, the flames of ED searches in Jharkhand could reach the Chief Minister, despite his office issuing a warning to media not to link his name with the kingpin. Soren, like Delhi chief minister Arvind Kejriwal, is saying that the Centre is using ED and CBI because it is afraid of development taking place. But Soren cannot deny that his ex-Mining Secretary Pooja Singhal is in jail for the last several months in connection with mining scam. Even the courts have not given her relief. Prem Prakash is said to be close to Pooja Singhal and the ED raids cannot be taken lightly. It is fast becoming a political issue. Even RJD and Congress refused to comment on the ED raids in Jharkhand.
BIHAR
RJD is fighting another battle in Bihar. On Wednesday, the CBI raided 25 places linked to RJD leaders in connection with the Jobs For Land scam dating back to 2008-9 when Lalu Prasad was the Railway Minister. The searches took place in Patna, Vaishali, Madhubani, Katihar and Danapur for nearly ten hours.
Raids were conducted at the locations of two RJD Rajya Sabha MPs Ashfaq Karim and Faiyaz Ahmed, MLC Sunil Singh, said to be close to Lalu Prasad and Rabri Devi, ex-MLC Subodh Rai and ex-MLA Abu Dujana. These leaders are considered fund raisers for RJD. Searches also took place in Delhi and Gurugram. In Patna, supporters of Sunil Singh sat on dharna outside his residence and shouted anti-BJP slogans even as CBI was carrying out searches inside. Sunil Singh said that CBI officers tried to force him to sign some documents.
RJD MP Ashfaq Karim runs a medical college in Katihar, while another MP Fayaz Ahmed, a former MLA, also runs a medical college. They are said to be close to Lalu Prasad’s family. On Wednesday, ex-CM Rabri Devi said, these raids are meant to intimidate her party men, but the party will not be intimidated. CBI sleuths took CRPF personnel for conducting searches in the medical colleges.
BJP leader and former deputy CM Sushil Modi said, “Lalu Prasad’s family is habitually corrupt and they are used to frequent CBI raids”. Last year, CBI had begun the probe and in May this year, there were raids at the location of Lalu Prasad, Rabri Devi and their daughter Misa Bharati.
Inside the Bihar assembly, Deputy CM and RJD chief Tejashwi Yadav lashed out at the BJP and alleged that the Centre is misusing ED and CBI to intimidate political rivals. “The people of Bihar are watching and they will reply”, he said. He told the Assembly that searches were conducted by CBI at Urban Cube mall in Sector 71 of Gurugram. “This mall is being built by Whiteland Corporation and our family has nothing to do with this mall”, he said. In 2017, CBI had filed a case against Tejashwi Yadav. The chargesheet has already been filed and he is on bail since 2019.
For Tejashwi Yadav, CBI and ED searches are nothing new. His family has been facing cases since last 15 years. Lalu Yadav is already serving imprisonment after being convicted in fodder scam. Earlier, Lalu’s family used to blame Nitish Kumar for these cases, but now that Nitish Kumar has walked over to the RJD camp, the family is now blaming Narendra Modi.
Nitish Kumar used to raise corruption issue when his party was aligned with BJP. He used to describe Lalu and Tejashwi Yadav as the ‘Gangotri’ (fountainhead) of corruption, but on Wednesday, while replying to the confidence motion debate in the Assembly, Nitish Kumar played a different tune.
Nitish Kumar, while giving a clean chit, said, cases were filed against Tejashwi Yadav in 2017, but nothing came out. Pointing towards the BJP benches, Nitish Kumar said, “in BJP, honest and simple leaders do not get anything…I have no ambition for 2024 elections. My only aim is to unite the opposition”.
पैगम्बर के खिलाफ राजा सिंह के वीडियो के पीछे का सियासी खेल
हैदराबाद में बढते साम्प्रदायिक तनाव को देखते हुए बुधवार को पुलिस ने शहर के कई इलाकों में फ्लैग मार्च किया। पुराने हैदराबाद के चारमीनार इलाके में मंगलवार की शाम को फिर से विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये थे। बीजेपी विधायक टी. राजा सिंह ने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ वीडियो जारी किया था, और इसके कारण उनका सिर कलम करने की मांग करते हुए पुराने शहर के इलाकों में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं।
अपने जहरीले वीडियो को राजा सिंह ने यूट्यूब पर पोस्ट किया किया और इसके फौरन बाद शहर के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। राजा सिंह को पुलिस ने मंगलवार की सुबह गिरफ्तार कर लिया, लेकिन शाम तक उन्हें तकनीकी आधार पर अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट ने जमानत पर रिहा कर दिया। उनके वकील ने अदालत को बताया कि हैदराबाद पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया जिसके तहत CrPC की धारा 41a के तहत आरोपी को गिरफ्तारी से पहले नोटिस दिया जाता है।
बीजेपी आलाकमान ने घटना को गंभीरता से लेते हुए राजा सिंह को प्राथमिक सदस्ता से सस्पेंड कर दिया। उन्हें भाजपा अनुशासन समिति के सदस्य ओम पाठक ने कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें उन्हें इस बात का जवाब देने के लिए 10 दिन का समय दिया गया कि उन्हें पार्टी से क्यों न निकाला जाये। ओम पाठक द्वारा जारी नोटिस में कहा गया : ‘आपने विभिन्न मामलों पर पार्टी की स्थिति के विपरीत विचार व्यक्त किए हैं, जो स्पष्ट रूप से बीजेपी के संविधान का उल्लंघन है। मुझे आपको यह बताने के लिए निर्देशित किया गया है कि आगे की जांच लंबित रहने तक, आपको तत्काल प्रभाव से पार्टी से और आपकी जिम्मेदारियों/कार्यों से, यदि कोई हैं, निलंबित किया जाता है।’
टी. राजा सिंह को अपने के पर कोई पछतावा नहीं था। उन्होंने कहा, ‘मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है और मैं हमेशा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का वफादार सिपाही रहूंगा। मेरे लिए पार्टी से ज्यादा, धर्म की रक्षा करना जरूरी है।’ उन्होंने वीडियो क्लिप- पार्ट 2 जारी करने की भी धमकी दी, जिसमें शायद उन्होंने इस्लाम और पैगंबर के खिलाफ इसी तरह की जहरीली बातें कही हैं।
बीजेपी विधायक ने जिस तरह से अपमानजनक वीडियो पोस्ट किया है, वह सोशल मीडिया का बेजा इस्तेमाल कर देश का माहौल खराब करने की साफ कोशिश है। उन्होंने जानबूझकर यह काम किया था। उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी की बातों का विरोध करते हुए पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ अमर्यादित भाषा और अपशब्दों का इस्तेमाल किया।
सोशल मीडिया पर राजा सिंह का 10 मिनट 27 सेकंड का वीडियो सामने आते ही हजारों मुसलमान सोमवार की रात हैदराबाद की सड़कों पर निकल आए और ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगाने लगे। मंगलवार सुबह मौलानाओं, AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी और स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने बीजेपी विधायक के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। राजा सिंह अपने घर में सो रहे थे, जबकि हजारों लोग हैदराबाद की सड़कों पर उनके खून के प्यासे हो रहे थे। उन्हें हैदराबाद पुलिस ने तुरंत गिरफ्तार भी कर लिया था, लेकिन एक स्थानीय अदालत ने शाम तक उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया।
सवाल यह है कि जब पैगंबर के खिलाफ नूपुर शर्मा की आपत्तिजनक टिप्पणी पर पहले से ही तनाव था तो बीजेपी विधायक ने यह वीडियो क्यों पोस्ट किया? उन्होंने यह शर्मनाक हरकत क्यों की? क्या यह एक सियासी कदम था? उनके जहरीले वीडियो के कारण हैदराबाद के चंचलगुडा, दबीरपुरा, भवानी नगर, रोडिन बाजार और मीर चौक इलाकों में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए। ये मुस्लिम बहुल इलाके थे जहां ओवैसी की पार्टी AIMIM काफी असर रखती है।
मंगलवार तड़के 2.30 बजे AIMIM विधायक अहमद बिन अब्दुल्ला बलाला जब दबीरपुरा थाने में शिकायत दर्ज करा रहे थे तो उस समय बाहर जुटी भीड़ नारेबाजी कर रही थी। टी. राजा सिंह गोशमहल से बीजेपी के विधायक हैं। वह इस विधानसभा क्षेत्र से 2 बार जीत चुके हैं। वह तेलंगाना विधानसभा में बीजेपी के चीफ व्हिप और राज्य में हिंदुत्व का एक जाना-माना चेहरा हैं। वह अक्सर अपने बयानों से विवादों में रहते हैं
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस तरह के जहरीले बयानों और हैदराबाद में माहौल को ‘खराब’ करने के लिए बीजेपी को दोषी ठहराया। ओवैसी ने आरोप लगाया कि बीजेपी मुसलमानों को ‘उकसा’ रही है। उन्होंने कहा, ऐसा लगता है कि मुसलमानों का अपमान करना बीजेपी की ‘आधिकारिक नीति’ बन गई है। ओवैसी ने मांग की कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मुद्दे पर बोलना चाहिए और नफरत भरे वीडियो की निंदा करनी चाहिए। AIMIM सुप्रीमो ने आरोप लगाया कि बीजेपी तेलंगाना में अपनी जड़ें जमाने के लिए सांप्रदायिक दंगे कराना चाहती है। यह पूछे जाने पर कि मुसलमान ‘सिर तन से जुदा’ के नारे क्यों लगा रहे हैं तो ओवैसी बचाव की मुद्रा में आ गए। उन्होंने कहा, ‘मैं ऐसे नारों की मजम्मत करता हूं। कानून अपने हाथ में लेने का हक किसी को नहीं है।’
ओवैसी सीनियर लीडर हैं, बैरिस्टर हैं। वह जानते हैं कि कब क्या बोलना है, कितना बोलना है, इसलिए संभलकर बोले। इस बीच स्थानीय कांग्रेस नेता राशिद खान भी थाने पहुंचे और बीजेपी विधायक के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। हैदराबाद के बड़े मौलवियों में से एक मौलाना जफर पाशा ने कहा कि राजा सिंह का बयान ‘बर्दाश्त के काबिल नहीं’ है।
राजा सिंह विधायक हैं, चुने हुए नेता हैं। मुनव्वर फारूकी के खिलाफ उनका विरोध जायज हो सकता है, उनके खिलाफ वह अपनी बात कह सकते हैं, लेकिन बात करने का एक तरीका होता है। जिस तरह से उसने फारूकी, इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ अपमानजनक बातें कही, उसे कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता। सीधी बात है उन्होंने बहुत बड़ी गलती की और इसलिए इसकी सजा तो मिलनी ही चाहिए। लेकिन यह बात भी याद रखना जरूरी है कि मुनव्वर फारूकी ने भी देवी-देवताओं का अपमान किया था, और हिन्दू संगठन उनके शो का विरोध कर रहे थे। उनके शो कर्नाटक में, महाराष्ट्र में और कई दूसरे राज्यों में रद्द कर दिए गए थे।
तेलंगाना में TRS सरकार ने फारूकी को हैदराबाद में एक शो करने की इजाजत दी। फारूकी ने हिंदू देवी-देवताओं के बारे में जो कहा था, उसके बारे में न तो TRS और न ही AIMIM बोल रही है। मंगलवार को इंडिया टीवी के रिपोर्टर टी. राघवन ने जब ओवैसी से का कि कुछ मुनव्वर फारूकी पर भी कहिए, तो AIMIM नेता ने जवाब दिया, ‘मैं एक कॉमिडियन के बारे में क्या बोलूं? उस सरकार से पूछिए जिसने उन्हें सुरक्षा दी और उन्हें यहां शो करने की इजाजत दी। अगर राजा सिंह को फारूकी से नाराजगी थी तो पुलिस में शिकायत कर सकते थे, या कोर्ट जा सकते थे। उन्होंने पैगंबर का अपमान क्यों किया, मुसलमानों को धमकी क्यों दी?’
हैरानी की बात यह है कि राजा सिंह के आपत्तिजनक वीडियो पर TRS नेताओं ने चुप्पी साध रखी है। मुंबई में MNS चीफ राज ठाकरे ने कहा, ‘असद्दुदीन ओवैसी और उनके भाई अकबरूद्दीन ओवैसी हिन्दू देवी-देवताओं के बारे में उल्टा-सीधा बोलते हैं तब कोई नहीं बोलता, लेकिन नुपूर शर्मा ने कुछ कह दिया तो पूरे देश में हंगामा हो गया। यह कैसे चलेगा? जाकिर नाइक तो एक मुस्लिम उपदेशक है, जो भारत से फरार हो गया, वह इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन का संस्थापक है। उसने भी वही बात कही थी जो नुपुर शर्मा ने पैगंबर के बारे में कही। जाकिर नाइक के बारे में तो किसी ने कुछ नहीं कहा, क्यों?’
राज ठाकरे की अपनी सियासत है। राजा सिंह द्वारा आपत्तिजनक भाषा के इस्तेमाल के बारे में ओवैसी ने जो कहा, वह ठीक है। राजा सिंह ने जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया, जिस तरह की बात कही, उसे कोई सपोर्ट नहीं कर सकता। राजा सिंह को सजा मिलनी चाहिए। उन्होंने कोई पहली बार ऐसी गलती नहीं की है, वह विवादित बयानबाजी के आदतन अपराधी हैं। पहले भी उन्होंने ऐसे बयान दिए हैं। वह इसे अपनी USP समझते हैं। राजा सिंह को शायद लगता है कि इस तरह की बातें हैदराबाद जैसे शहर में, ओवैसी के गढ़ में अपना वजूद कायम रखने में मदद करती हैं।
इस बार भी राजा सिंह ने जो कहा उसके पीछे सियासत है, और इस सियासत में मुख्यमंत्री केसीआर भी शामिल हैं। असल में कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी के खिलाफ हिन्दू देवी-देवताओं के अपमान के इल्जाम पुराने हैं, और उन पर केस भी चल रहे हैं। मुनव्वर फारूकी इसके लिए जेल भी जा चुके हैं, इसके बाद भी केसीआर सरकार ने उन्हें हैदराबाद में बुलाकर शो करने की इजाजत दी। ऐसा मुसलमानों में यह संदेश भेजने के लिए किया गया कि केसीआर और उनकी पार्टी टीआरएस हिन्दूवादी संगठनों के दबाव में काम नहीं करते।
मुस्लिम वोटों पर सत्तारूढ़ पार्टी की नजर थी और इसीलिए मुनव्वर फारूकी को हैदराबाद में शो करने की इजाजत दी गई। प्रशासन ने राजा सिंह को नजरबंद रखा और वह और उनके समर्थक फारूकी को नहीं रोक सके। हिंदू समर्थकों को अपने साथ बनाए रखने के लिए राजा सिंह ने वीडियो जारी करके मुनव्वर फारूकी का नाम लिया। उन्होंने इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ जहर उगला। KCR और राजा सिंह की सियासत में ओवैसी को नुकसान हो रहा था, इसलिए उस नुकसान की भरपाई करने के लिए ओवैसी, उनके भाई और समर्थक पिछले 2 दिनों से लगातार सक्रिय हैं। AIMIM के समर्थक ‘सिर तन से जुदा’ का नारा लगाते हुए सड़क पर उतर गए।
मामला सिर्फ और सिर्फ सियासत का है। लेकिन वोट के चक्कर में पूरे देश का माहौल खराब हो रहा है। जरूरत तो इस बात की है कि राजा सिंह जैसे लोगों की जुबान पर ताला लगाया जाए, और कॉमेडी के नाम पर हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान करने वाले मुनव्वर फारूकी जैसे लोगों को भी सबक सिखाया जाए। हिंदू संत और जाने-माने मुस्लिम मौलवी भी इन सब चीजों की निंदा कर रहे हैं। उन्होंने दोनों समुदायों से एक-दूसरे के धर्मों और भावनाओं का सम्मान करने की अपील की है।
मोटी बात यह है कि अगर राजा सिंह को मुनव्वर फारूकी से शिकायत थी तो वह पुलिस में शिकायत कर सकते थे। इसी तरह जिन लोगों को राजा के बयान से चोट पहुंची उन्हें भी पुलिस से शिकायत करनी चाहिए। न तो राजा सिंह को पैगंबर मोहम्मद का अपमान करने का हक है, और न ही किसी को ‘सिर तन से जुदा’ जैसे इरादे जाहिर करने का हक है। लेकिन अब ऐसे लोग पुलिस के पास जाने के बजाय सोशल मीडिया पर जा रहे हैं।
लोग नफरत फैलाने के लिए सोशल मीडिया का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं। अक्सर यह देखा गया है कि चूंकि लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल बेरोकटोक कर सकते हैं, इसलिए वे नफरत से भरे वीडियो बनाते हैं और पोस्ट कर देते हैं। हैदराबाद में पिछले 2 दिनों में जो कुछ भी हुआ वह सोशल मीडिया के जरिए नफरत फैलाने का ही नतीजा है। हालांकि इस केस में सियासत भी एक बड़ी वजह है क्योंकि तेलंगाना में अगले साल दिसंबर तक विधानसभा चुनाव होने हैं और सारी पार्टियां अपनी पोजिशन ले रही हैं।
The political game behind Raja Singh’s offensive remarks against Islam
Hyderabad Police carried out a flag march in some localities of the city on Wednesday, as fresh protests erupted again on Tuesday evening in Charminar locality of Old Hyderabad. Nearly 1,000 protesters marched in Old City areas demanding ‘beheading’ of BJP MLA T. Raja Singh for his derogatory comments made against Prophet Mohammed.
The offensive and abusive video was posted by the BJP MLA on YouTube, and this triggered protests in several parts of the city. Raja Singh was arrested by police, but by Tuesday evening he was released on bail by the Additional Chief Metropolitan magistrate on technical grounds. His lawyer told the court that the Hyderabad Police did not follow Supreme Court guidelines under which notice is served before arrest to the accused under Section 41A of Criminal Procedure Code.
The BJP high command took a serious view of the incident and suspended Raja Singh. He was issued a show cause notice signed by BJP disciplinary committee member Om Pathak and was given ten days to explain why he should not be expelled from the party. The notice issued by Om Pathak to T. Raja Singh said: “You hve expressed views contrary to the party’s position on various matters, which is in clear violation of the BJP constitution. I have been directed to convey to you that pending further inquiry, you are suspended from the party and from your responsibilities/assignments, if any, with immediate effect.”
T. Raja Singh was however unrepentant. He said, “I have done nothing wrong and I will always remain a loyal soldier of Prime Minister Narendra Modi and Home Minister Amit Shah…More than the party, protecting dharma is important for me”. He threatened to release “part two” of the video clip that possibly contains more such derogatory remarks against Islam and its Prophet.
The manner in which the BJP MLA posted the insulting video is a clear attempt to poison the atmosphere in the country, by misusing social media. His action was deliberate. He used abuses and vile words against Prophet Mohammed, while opposing the remarks made by comedian Munawwar Farooqui against Hindu gods and goddesses.
Soon after his 10 minute 27 second video appeared on social media, thousands of Muslims came out on the streets of Hyderabad on Monday night, chanting slogans “Sar Tan Se Juda” (beheading for blasphemy). On Tuesday morning, Muslim clerics and politicians like AIMIM chief Asaduddin Owaisi and local Congress leaders reacted sharply against the BJP MLA. Raja Singh was sleeping in his home, even as thousands of people were baying for his blood on the streets of Hyderabad. He was immediately arrested by Hyderabad Police, but by evening, he was released on bail by a local court.
The question is: When there was already tension over Nupur Sharma’s offensive remarks against the Prophet, why did the BJP MLA post this video? Why did his commit this shameful act? Was it a political move? His hate video led to violent protests in Chanchalguda, Dabeerpura, Bhawani Nagar, Rdin Bazar and Meer Chowk localities of Hyderabad. These were Muslim-dominated localities where Owaisi’s AIMIM has a big influence.
By 2.30 am on early Tuesday, AIMIM MLA Ahmed bin Abdullah Balala filed complaint in Dabeerpura police station, and a big mob chanted slogans outside. T. Raja Singh is the BJP MLA from Goshamahal. He has won from this assembly constituency twice. He is the chief whip of BJP in Telangana assembly and a known Hindutva face in the state. Many of his remarks in the past have been controversial.
AIMIM chief Asaduddin Owaisi blamed the BJP for such hate speeches and for “spoiling” the atmosphere in Hyderabad. Owaisi alleged that BJP was “provoking” Muslims. He said, it appears as if insulting Muslims has become the “official policy” of BJP. Owaisi demanded that PM Narendra Modi must speak on the issue and condemn the hate video. The AIMIM chief alleged that BJP was planning to incite communal riots in order to spread its base in Telangana. Asked why Muslims were chanting “Sar tan Se Juda’ (beheading) slogans, Owaisi was on the defensive. He said, “I condemn such slogans. Nobody has the right to take law in his own hands.”
Owaisi is a leading barrister and an experienced politician. He knows what to speak and where and when. Meanwhile, local Congress leader Rashid Khan too reached a police station and demanded action against the BJP MLA. One of the leading clerics of Hyderabad Maulana Zafar Pasha said, Raja Singh’s offensive remarks “will not be tolerated”.
Raja Singh is an elected people’s representative. His opposition to comedian Munawar Faruqui may be justified, but the manner in which he hurled abuses and insults both against Faruqui, Islam and its Prophet, can never be justified. He has committed a serious mistake and he must be punished for this. But, one should also remember how the stand-up comedian Munawar Faruqui insulted Hindu gods and goddesses, and Hindu outfits had to stage protests. His shows were cancelled in Karnataka, Maharashtra and several other states.
In Telangana, the TRS government allowed Faruqui to do a show in Hyderabad. Neither the TRS, nor the AIMIM are speaking about what Faruqui said about Hindu gods and goddesses. On Tuesday, India TV correspondent T. Raghavan asked Owaisi to say at least something about Faruqui. Owaisi replied, “What should I speak about a comedian? Ask the government which gave him security and allowed him to do a show here. If Raja Singh was angry with Faruqui, he could have complained to the police, or he could have gone to court. Why did he insult the Prophet and threatened Muslims?”
The strangest part is that TRS leaders have kept a big silence over Raja Singh’s offensive video. In Mumbai, MNS chief Raj Thackeray said, “Nobody reacts when Asaduddin Owaisi and his brother Akbaruddin Owaisi speak against Hindu gods and goddesses, but when Nupur Sharma said something, there was a nationwide furore. Zakir Naik is a Muslim preacher, who absconded from India, he is the founder of Islamic Research Foundation. He said the same thing that Nupur Sharma said about the Prophet. Nobody said anything about Zakir Naik, Why?”
Raj Thackeray may be having his own political axe to grind. What Owaisi said about Raja Singh’s use of abusive language is justified. Nobody can support such abuses and filthy remarks. Raja Singh must be punished. He has not committed such acts for the first time. He had done it in the past too. He considers this his USP. He probably thinks such remarks would help him to bolster his presence in Hyderabad, dominated by Owaisi.
There is a political angle behind what Raja Singh did, and Chief Minister KCR is part of this political gambit. Comedian Munawar Faruqui has been facing cases for insulting Hindu gods and goddesses. He was sent to jail too, and yet, KCR’s government gave him permission to do a show in Hyderabad. This was done clearly to send a message to Muslims that TRS and KCR do not work under pressure from Hindu outfits.
Faruqui was permitted to do his show in Hyderabad because of the ruling party’s eye on Muslim vote. The administration kept Raja Singh under house arrest, and he and his supporters could not prevent Faruqui. In order to keep his support base intact, Raja Singh decided to record the offensive hate video and posted it on social media. He spewed poison against Islam and its Prophet. Owaisi’s party leaders noted that KCR and Raja Singh were now dominating Hyderabad politics, and this could be a loss to AIMIM. In order to consolidate his base, Owaisi, his brother and his supporters are now active for the last two days. AIMIM supporters have hit the streets, chanting ‘Sar Tan Se Juda’ slogans.
All in all, it’s a game of politics. But in their quest for garnering votes, they have poisoned the atmosphere in the country. The need of the hour is that people like T. Raja Singh must be prevented from spewing venom, and comedians like Munawar Faruqui must be taught a lesson for insulting Hindu gods and goddesses. Already Hindu saints and top Muslim clerics have denounced this trend. They have appealed to both communities to respect each other’s religions and feelings.
The moot point is that if Raja Singh had to take any step against Faruqui, he could have gone to the police and file a complaint. People, whose feelings were hurt because of abusive remarks by Raja Singh, should have gone to the police. Neither Raja Singh has the right to insult the Prophet, nor anybody has the right to chant the slogan “Sar Tan Se Juda”. But such elements are now going to social media instead of approaching the police.
Social media is being blatantly misused to spread the poison of hate. More often than not, it has been noticed that people create hate videos and post them on social media, since there are no curbs. Whatever happened in Hyderabad for the last two days is the result of peddling hate through social media. Assembly elections are due in Telangana by December next year and political parties are taking up positions.