Rajat Sharma

My Opinion

नेशनल हेराल्ड केस : मनी लॉन्ड्रिंग या राजनीतिक बदला ?

rajat-sir नेशनल हेराल्ड से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पिछले दो दिनों से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) कांग्रेस नेता राहुल गांधी से पूछताछ कर रहा है। सोमवार को ईडी ने राहुल गांधी से साढ़े 8 घंटे तक पूछताछ की। बीच में ब्रेक के दौरान राहुल गांधी दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में भर्ती अपनी बीमार मां सोनिया गांधी से मिलने गए। ईडी ने इस मामले में सोनिया गांधी को भी तलब किया है। हालांकि उन्होंने ईडी से समय मांगा हैं क्योंकि वे कोरोना से संक्रमित होने की वजह से इन दिनों अपना इलाज करा रही हैं। ईडी ने अब सोनिया गांधी को 23 जून को पूछताछ के लिए बुलाया है।

आलाकमान के निर्देश पर कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, अन्य सीनियर लीडर्स और कार्यकर्ता सोमवार से ही दिल्ली में जमा होने लगे। दिल्ली पुलिस ने इन नेताओं को ईडी दफ्तर तक मार्च निकालने से रोक दिया। सोमवार और मंगलवार दोनों दिन धारा 144 के उल्लंघन के आरोप में पुलिस ने कांग्रेस के कई नेताओं को हिरासत में ले लिया

कांग्रेस ने इस विरोध प्रदर्शन को सत्याग्रह का नाम दिया। पार्टी नेताओं का कहना है कि केंद्र द्वारा कांग्रेस के खिलाफ जांच एजेंसियों के दुरुपयोग को लेकर यह सत्याग्रह किया जा रहा है। वहीं बीजेपी का कहना है कि यह वित्तीय गड़बड़ियों का मामला है और कांग्रेस की ओर से अनावश्यक ड्रामेबाजी की जा रही है।

बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, ‘यह फर्जी गांधीवादियों का फर्जी सत्याग्रह है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों फिलहाल जमानत पर हैं लेकिन कांग्रेस बड़ा ड्रामा कर रही है।’ वहीं केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, ये विरोध गांधी परिवार की गलत कमाई को बचाने का एक नाटक है। उधर, कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ईडी की पूछताछ को राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत में अब ‘तानाशाही का राज है।’

सूत्रों के मुताबिक ईडी के दो सहायक निदेशकों ने राहुल गांधी से उनकी कंपनी यंग इंडिया लिमिटेड द्वारा नेशनल हेराल्ड में किए गए निवेश के संबंध में पूछताछ की। यंग इंडिया में उनकी हिस्सेदारी और अन्य शेयर होल्डर्स, देश और विदेशों में उनके व्यक्तिगत बैंक खातों, चल-अचल संपत्ति और अन्य मुद्दों को लेकर पूछताछ की गई। आपको बता दें कि नेशनल हेराल्ड की होल्डिंग कंपनी असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) है। पंडित जवाहरलाल नेहरू और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने 1937 में इसकी शुरुआत की थी। चूंकि एजेएल घाटे में चल ही थी इसलिए इसके न्यूज पेपर्स का प्रकाशन बंद कर दिया गया था। एजेएल ने कांग्रेस से 90 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था।

वर्ष 2010 में राहुल गांधी ने यंग इंडिया कंपनी बनाई। इस कंपनी में राहुल और उनकी मां सोनिया गांधी की 76 फीसदी हिस्सेदारी है। 24 फीसदी हिस्सेदारी तत्कालीन कांग्रेस कोषाध्यक्ष मोतीलाल बोरा और कांग्रेस नेता ऑस्कर फर्नांडिस (इन दोनों नेताओं की मौत हो चुकी है) के पास थी। यंग इंडियन ने 50 लाख का भुगतान कर एजेएल के शेयर खरीद लिए। यंग इंडियन एक गैर-लाभकारी (नॉट फॉर प्रॉफिट) कंपनी है और इसके मालिक कोई वेतन या भत्ता नहीं लेते हैं। अब आरोप यह लगा कि एजेएल के पास कई हजार करोड़ की संपत्ति थी जिसे यंग इंडियन ने कौड़ियों के दाम पर हासिल कर लिया। वर्ष 2012 में इस मामले को लेकर डॉ. सुब्रम्ण्यम स्वामी ने एक केस दर्ज कराया और उसी केस की जांच केंद्रीय एजेंसियों द्वारा की जा रही है।

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने आरोप लगाया कि राहुल और सोनिया गांधी कई करोड़ के घोटाले में शामिल थे और उन्होंने हवाला ऑपरेटर्स की मदद से कांग्रेस पार्टी द्वारा जमा किए गए चंदे का दुरुपयोग किया। स्मृति ईरानी ने आरोप लगाया कि ऐसा करके सोनिया और राहुल ने एजेएल की कई हजार करोड़ की संपत्ति पर कब्जा कर लिया।

वहीं कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, इस सौदे से न तो सोनिया गांधी को और न ही राहुल गांधी को एक पैसे का भी फायदा हुआ। उन्होंने कहा, एजेएल के पास नेशनल हेराल्ड न्यूज पेपर का मालिकाना हक था और वह अपने कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ था, ऐसे वक्त में सोनिया और राहुल गांधी की स्वामित्व वाली यंग इंडियन उसे बचाने के लिए आगे आई।

सुरजेवाला ने कहा-केंद्रीय एजेंसियां पिछले सात-आठ साल से इस मामले की जांच कर रही थीं तब तो उन्हें किसी तरह की विसंगति या कुछ अवैध नहीं मिला। उन्होंने कहा कि लोन को शेयरों में बदलकर भुगतान किया गया और इक्विटी शेयर से जमा पैसों से वहां काम करनेवाले लोगों का वेतन भुगतान किया गया था। उन्होंने दावा किया कि सभी लेनदेन पूरी तरह पारदर्शी थे।

हालांकि, ईडी ने केवल सोनिया और राहुल गांधी को तलब किया था लेकिन कांग्रेस पार्टी ने राजस्थान और छत्तीसढ़ के मुख्यमंत्रियों , कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश और केरल के सीनियर नेताओं और सांसदों को राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन करने के लिए बुलाया था।

कांग्रेस यह संदेश देना चाहती है कि मोदी सरकार कांग्रेस के सीनियर नेताओं को समन जारी कर उन्हें परेशान करने की कोशिश कर रही है। राहुल गांधी यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि न तो वे और न ही उनकी पार्टी नरेंद्र मोदी और जांच एजेंसियों से डरती है।

बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस और राहुल गांधी डरे हुए हैं और इसलिए पार्टी ने अपने सभी सीनियर नेताओं को दिल्ली भेज दिया और उन्हें सड़कों पर उतरने को कहा। सीधा सा सवाल है कि अगर सोनिया और राहुल गांधी ने कोई आर्थिक गड़बड़ी नहीं की है तो फिर इस तरह की ड्रामेबाजी और राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन क्यों? पार्टी के कार्यकर्ता गिरफ्तारी के लिए बाहर क्यों आ रहे हैं ? क्या ये मानना सही होगा कि यह प्रेशर पॉलिटिक्स की रणनीति का हिस्सा हो सकता है ?

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National Herald case : money laundering or political vendetta?

akbFor the last two consecutive days, Congress leader Rahul Gandhi has been questioned by Enforcement Directorate in a money-laundering probe linked to the National Herald case. On Monday, Rahul Gandhi was questioned by ED officials for eight and a half hours, with a break in between, when Rahul visited his ailing mother Sonia Gandhi in Delhi’s Gangaram Hospital. Party president Sonia Gandhi has also been summoned for questioning, but she has sought time, as she is presently recuperating from Covid. Sonia Gandhi has now been summoned by ED for questioning on June 23.

On instructions from high command, Congress chief ministers, senior leaders and workers have gathered in Delhi since Monday. Delhi Police prevented them from taking out march to the ED office. Several Congress leaders were taken into custody for violating Section 144 prohibitory orders, both on Monday and Tuesday.

The Congress has named its protest as ‘satyagraha’ against, what it called, ‘misuse of investigating agencies against the party’ by the Centre. The BJP said, it was a case of financial wrongdoing and there was unnecessary “theatrics and drama” on part of the Congress.

BJP spokesperson Sambit Patra said, “it is a fake satyagraha by fake Gandhis. Both Sonia Gandhi and her son Rahul Gandhi are presently on bail, but the Congress is making a huge drama out of it.” Union Minister Smriti Irani said, these protests are a drama to save the “ill-gotten wealth of Gandhi family”. The Congress spokesperson Randeep Surjewala described the ED questioning as “an act of political vendetta”. He alleged that “there is a reign of dictatorship” in India now.

According to sources, two assistant directors of ED questioned Rahul Gandhi about the investments made by his company Young Indian Ltd in National Herald. He was asked about his partnership in Young India, about other shareholders, his personal bank accounts in India and abroad, his movable and immovable assets, and other related issues. Associated Journals Ltd is the holding company of National Herald newspaper launched in 1937 by Pandit Jawaharlal Nehru and other freedom fighters. Since AJL was running in loss, the publication of its newspapers was discontinued. AJL had taken Rs 90 crore loan from Indian National Congress.

In 2010, Rahul Gandhi floated Young Indian Company, in which both he and his mother had 76 per cent shareholding, while the remaining 24 per cent shares were in the name of the then Congress treasurer Motilal Vora and Oscar Fernandes (both now deceased). Young Indian, a not-for-profit company, purchased AJL shares by paying Rs 50 lakhs. Its owners do not take any salaries or allowances. It is alleged that AJL owned properties worth several thousand crores of rupees, which Young Indian acquired for peanuts. In 2012, Dr Subramanian Swamy had filed a case, consequent to which the case is being investigated by central agencies.

Union Minister Smriti Irani alleged that Rahul and Sonia Gandhi were involved in a scam of several thousand crores, and that they took help from hawala operators and misused donations collected by Congress party. She alleged that by doing so, Sonia and Rahul Gandhi took possession of several thousand crores worth properties belonging to AJL.

Congress spokesperson Randeep Surjewala said, neither Rahul nor Sonia Gandhi gained a single rupee from this deal. He said, AJL which was the owner of National Herald newspaper, was unable to pay wages to its workers, and it was Young Indian owned by Sonia and Rahul Gandhi which came to its rescue.

Surjewala said, the agencies had been investigating this case for the last seven to eight years, and they have not found any discrepancy or illegal doings. He said, the loans were squared off by converting them into shares, and money collected by sharing equity were paid as wages to workers. He claimed that the entire transactions were transparent.

Though ED had summoned only Sonia and Rahul Gandhi, the Congress party had brought the chief ministers of Rajasthan and Chhattisgarh, and top leaders and MPs from Karnataka, Gujarat, Madhya Pradesh and Kerala to show its political might.

The Congress wants to convey the message that the Modi government is trying to harass senior party leaders by issuing summons and subjecting them to questioning. Rahul Gandhi has been trying to portray that neither he nor his party is afraid of Modi and the investigating agencies.

BJP says that the Congress and Rahul Gandhi are afraid and that it why the party has marshalled all its senior leaders to Delhi, and has asked them to come out on the streets. The simple question is: if Sonia and Rahul Gandhi have not committed any financial bungling, then why these theatrics and show of political might? Why are party workers coming out to court arrest? Can it be assumed that this could be part of pressure tactics?

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शुक्रवार की हिंसा: अपराधियों की पहचान करें और उनके खिलाफ कार्रवाई हो

akb fullपैगंबर मोहम्मद के खिलाफ आपत्तिजनक बयानों को लेकर शुक्रवार दोपहर जुमे की नमाज के बाद देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए। हालांकि आपत्तिजनक बयान देनेवाले बीजेपी के दोनों नेताओं को पार्टी ने निलंबित कर दिया है, लेकिन विरोध का सिलसिला थम नहीं रहा है। शुक्रवार को रांची और प्रयागराज में विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया। रांची में पथराव और आगजनी की घटनाओं में दो लोगों की मौत हो गई। यहां हिंसा प्रभावित इलाके में कर्फ्यू लगा दिया गया है। वहीं शनिवार को भी इस मामले को लेकर पश्चिम बंगाल के हावड़ा में प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शनकारियों की ओर से पथराव किए गए। यहां भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस को आंसू गैस के गोले दागने पड़े।

तेलंगाना में प्रदर्शन के दौरान तिरंगे का अपमान किया गया जबकि रांची में एसएसपी घायल हो गए वहीं एसएचओ के सिर में चोटें आई हैं। शुक्रवार को एक नया ट्रेंड ये देखा गया कि प्रदर्शनकारियों ने बच्चों के हाथों में भी पत्थर थमा दिए। ये बच्चे भी पुलिस पर पथराव कर रहे थे। पुलिस की कार्रवाई से बचने के लिए प्रदर्शनकारियों ने मानव ढाल के तौर पर इन बच्चों का इस्तेमाल किया।

कर्नाटक में मुस्लिम महिलाएं बुर्का पहनकर प्रदर्शन के लिए बाहर निकलीं। ज्यादातर जगहों पर प्रदर्शनकारी पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ आपत्तिजनक बयान के लिए बीजेपी प्रवक्ता नुपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे।

शुक्रवार को दिल्ली, मुरादाबाद, सहारनपुर, प्रयागराज, भोपाल, हावड़ा, रांची, अहमदनगर, बेलगावी, हैदराबाद और महबूबनगर में विरोध प्रदर्शन हुए। सबसे हैरान करने वाला दृश्य प्रयागराज का था। यहां जुमे की नमाज के तुरंत बाद अटाला मोहल्ले की गलियों से छोटे-छोटे बच्चे बाहर निकले और पुलिस पर पथराव करने लगे। बच्चे खुद पत्थर लेकर नहीं निकले थे बल्कि दंगाइयों ने पुलिसकर्मियों को निशाना बनाने के लिए जानबूझकर इन बच्चों के हाथ में पत्थर थमा दिया था।

नमाज के बाद अचानक खुल्दाबाद चौराहे पर भारी भीड़ जमा हो गई और छतों से पुलिस पर पथराव शुरू हो गया। हालात पर काबू पाने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले भी दागे। लेकिन उसका भी ज़्यादा असर नही हुआ। करीब आधे घंटे तक पथराव होता रहा। इससे पहले गुरुवार और शुक्रवार को पुलिस अधिकारियों ने स्थानीय मुस्लिम नेताओं के साथ शांति बैठक भी की थी लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। कई गाड़ियों में आग लगा दी गई। पथराव में आईजी, डीएम और एससपी समेत कई अधिकारी भी घायल हो गए।

इसी तरह के विरोध प्रदर्शन मोरादाबाद और सहारनपुर में भी हुए। हालांकि इससे पहले यहां मौलानाओं और बुजुर्गों ने जुमे की नमाज के बाद किसी तरह का हंगामा न करने की अपील की थी साथ ही इसी तरह का वादा पुलिस से भी किया था कि किसी तरह का विरोध प्रदर्शन नहीं होगा। लेकिन इसके बाद भी ऐसा हुआ। यूपी पुलिस के एक सीनियर अधिकारी ने कहा, शुक्रवार के विरोध प्रदर्शन के बाद 6 जिलों से करीब 140 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। अधिकारी ने बताया कि प्रयागराज, सहारनपुर, हाथरस, अंबेडकर नगर, मुरादाबाद और फिरोजाबाद से ये गिरफ्तारियां हुई हैं।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार देर रात शीर्ष अधिकारियों के साथ मीटिंग की। उन्होंने पथराव और आगजनी करनेवाले उपद्रवियों को सबक सिखाने का निर्देश दिया। उन्होंने अफसरों को साफ-साफ निर्देश दिया है कि बेगुनाह को परेशान ना किया जाए और गड़बड़ी करने वालों को ऐसा सबक सिखाया जाए कि वो जिंदगी भर याद रखें। अगर बच्चों को पुलिस पर पत्थर फेंकने के लिए ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है तो ऐसा करनेवाले मास्टरमाइंड कुछ और नहीं बल्कि देशद्रोही हैं। इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

मुझे लगता है कि यूपी पुलिस ने जितनी तेजी से एक्शन लिया और दंगे की साजिश को नाकाम किया वो काबिले तारीफ है। यह सीएम योगी आदित्यनाथ की सतर्कता और सख्ती का ही नतीजा है कि हालात काबू में हैं वरना हालात को खराब करने की साजिश तो गहरी थी। अब दंगा करने वाले पकड़े जाएंगे, जो फरार हैं उनके पोस्टर छपेंगे। सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की वसूली होगी और जो अवैध संपत्ति मिलेगी उस पर बुलडोजर चलेगा।

अब कुछ लोग ऐसे है कि इस एक्शन पर हंगामा खड़ा करेंगे। बहुत से बयान बहादुर सामने आएंगे। पत्थरबाजों के लिए घड़ियाली आंसू बहाएंगे । उन्हें मजलूम बताएंगे। यह दिखाने की कोशिश करेंगे कि सरकार बेगुनाहों को परेशान कर रही है। लेकिन अच्छी बात यह है कि योगी इस तरह की बातों की परवाह नहीं करते। मुझे लगता है कि दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी योगी आदित्यनाथ से यह बात सीखनी चाहिए। कानून तोड़ने वालों के खिलाफ सख्त एक्शन लेने की हिम्मत दिखानी चाहिए।

कम से कम झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को तो योगी आदित्यनाथ से सीख जरूर लेनी चाहिए। क्योंकि जुमे की नमाज के बाद पत्थरबाजी की सबसे ज्यादा परेशान करने वाली तस्वीरें रांची आई हैं। यहां शुक्रवार को प्रदर्शनकारियों ने न सिर्फ पथराव और आगजनी की बल्कि रास्ते में एक हनुमान मंदिर को भी नुकसान पहुंचाया। यहां प्रदर्शनकारियों की तादाद बहुत ज्यादा थी जबकि पुलिसकर्मी कम संख्या में मौजूद थे।

रांची के एसपी अंशुमन कुमार ने बताया कि मुस्लिम समाज के लोगों से बात हुई थी और उन्होंने शांतिपूर्ण प्रदर्शन की बात कही थी लेकिन नमाज के बाद अचानक प्रदर्शन हिंसक हो गया। प्रदर्शनकारियों ने रांची के अलबर्ट एक्का चौक पर स्थित एक हनुमान मंदिर को निशाना बनाया। पहले मंदिर पर पत्थर फेंके गए और फिर कुछ लोगों ने मंदिर के अंदर जाकर तोड़फोड़ की। जिस वक्त मंदिर पर हमला हुआ उस वक्त वहां 3-4 पुजारी मौजूद थे लेकिन वो भीड़ के डर से अपनी जान बचाकर भाग गए।

हैरानी इस बात को लेकर है कि रांची में इतना हंगामा होने और धारा 144 लगने के बावजूद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के तेवरों में जो सख्ती दिखनी चाहिए थी, वो नहीं दिख रही है। हेमंत सोरेन कह रहे हैं कि हमें सिर्फ हिंसा की बात नहीं करनी चाहिए, हिंसा क्यों हुई..इस पर भी ध्यान देना चाहिए। मुख्यमंत्री का काम लेक्चर देना नहीं होता, उनका काम कानून का राज स्थापित करना होता है। अगर अपने राज्य के पुलिस वाले का रोना सुनकर भी हेमंत सोरेन की नींद नहीं टूटती, अगर उन्मादी भीड़ के खिलाफ एक्शन लेने का आदेश देने की हिम्मत हेमंत सोरेन नहीं जुटा पाते तो फिर ऐसे मुख्यमंत्री का क्या काम ? जो लोग अल्लाह और पैगंबर के नाम पर हंगामा, खून-खराबा, आगजनी और मंदिरों पर हमला करें, उनके लिए सही जगह जेल ही है। अगर हेमंत सोरेन इन दंगाइयों को जेल में डालने की हिम्मत नहीं दिखाते तो ये शर्मानक होगा।

रांची में जो हुआ वो कोई हिन्दुस्तानी बर्दाश्त नहीं करेगा। हेमंत सोरेन को इन लोगों के साथ सख्ती बरतनी चाहिए। एक बात तो साफ है कि ये सब स्वत:स्फूर्त नहीं था। जुमे के दिन देशभर में प्रदर्शन का पैन इंडिया प्लान था। हैदराबाद में कई मस्जिदों के बाहर हंगामा हुआ। भारत दौरे पर आए ईरान के विदेश मंत्री शुक्रवार को हैदराबाद में थे और उन्होंने जुमे की नमाज़ हैदराबाद की ऐतिहासिक मक्का मस्जिद में पढ़ी। लेकिन, प्रदर्शन करने वालों ने विदेशी मेहमान का भी लिहाज़ नहीं किया। मक्का मस्जिद के बाहर नारेबाज़ी हुई और पुलिस पर पथराव हुआ।

तेलंगाना के महबूबनगर में तो विरोध के नाम पर हद ही पार कर दी गई। पैग़ंबर के अपमान का आरोप लगाकर प्रदर्शनकारी तिरंगा लेकर सड़कों पर उतरे थे लेकिन उन्होंने तिरंगे में अशोक चक्र की जगह कलमा लिख दिया था। पता नहीं, ऐसा करके प्रदर्शनकारी क्या मैसेज देना चाहते थे ? लेकिन, ये तो राष्ट्रीय ध्वज का अपमान है। इस तरह के प्रदर्शन की इजाज़त बिल्कुल भी नहीं दी जा सकती है। देश के हर नागरिक को विरोध करने का लोकतांत्रिक अधिकार है लेकिन तिरंगे पर कलमा लिखना राष्ट्रीय ध्वज का सरासर अपमान है। किसी राजनीतिक दल से नाराज़गी हो सकती है लेकिन तिरंगा राष्ट्र गौरव है और तिरंगे का अपमान करने का अधिकार किसी को नहीं है।

नुपुर शर्मा के बयान की हम सबने निंदा की है। लेकिन गला काटने औऱ रेप करने की बात करने का हक किसी को नहीं है। जो लोग मजहब की आड़ में शक्ति प्रदर्शन करना चाहते हैं उन्हें ये समझना पड़ेगा कि देश में कानून का राज चलेगा। मैं मानता हूं कि ज्यादातर मुसलमान अमन पसंद हैं उनके बीच में कुछ तत्व ऐसे हैं जो लोगों की भावनाओं को भड़काते हैं उनकी पहचान करके उन्हें आइसोलेट करने की जरूरत है क्योंकि ऐसे मुट्ठीभर लोगों की वजह से पूरी कौम बदनाम होती है। शुक्रवार की घटनाओं को देखने के बाद एक बात तो साफ है कि जहां-जहां पथराव और आगजनी हुई, वो पूरी प्लानिंग के तहत हुई।

आगजनी, पत्थरबाजी और हंगामे को लेकर तीन तरह के तर्क सामने आए हैं। एक, तो ये कि नुपुर शर्मा के बयान से लोगों की भावनाएं भड़की हैं। इस मामले में जो एक्शन हुआ उसे ये लोग नाकाफी मानते हैं इसलिए लोगों ने गुस्सा ज़ाहिर किया। पुलिस ने लाठी चलाई और विरोध करने से रोका इसलिए पत्थरबाजी और हिंसा हुई। यानी जो कुछ हुआ उसके लिए पुलिस दिम्मेदार है। दूसरा तर्क ये दिया जा रहा है कि मौलानाओं और इमामों ने लोगों को इकट्ठा होने के लिए मना किया था। विरोध प्रदर्शन करने वाले बाहर से बड़ी तादाद में आए इसलिए दंगा हुआ। ये लोग कौन थे ? कहां से आए ? ये पुलिस बताए। पुलिस की इंटेलिजेंस फेल हो गई। यानी इसके मुताबिक भी पुलिस जिम्मेदार है। वहीं एक तीसरे ग्रुप का तर्क ये है कि मुसलमानों को बदनाम करने के लिए पुलिस ने पथराव करवाया। तीनों मामलों में सारी जिम्मेदारी पुलिस पर डाल दी गई। लेकिन मुझे नहीं लगता कि ऐसी बातों पर कोई यकीन करेगा।

सच तो ये है कि पुलिस ने संयम बरता। हर राज्य में पुलिस ने कम से कम फोर्स का इस्तेमाल किया। पुलिस की बेबसी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कई जगह बच्चों को ढाल बनाया गया। आप सोच सकते हैं कि अगर पुलिस की लाठी से कहीं एक बच्चे की भी मौत हो जाती तो कितना बड़ा मुद्दा बनता। सच तो ये है कि पत्थर चले, बड़ी संख्या में पुलिसवालों को चोट लगी, तिरंगे का अपमान हुआ और इस सबके पीछे सोशल मीडिया में चला कैम्पेन था। लोगों को भड़काने के लिए व्हाट्सऐप मैसेज भेजे गए। अब जरूरत इस बात की है कि ऐसे सभी लोगों की पहचान करके सबक सिखाया जाए। इस बात का भी ध्यान रखने की जरूरत है कि कोई बेकसूर, कोई बेगुनाह इसका शिकार ना हो।

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Friday violence: Identify perpetrators and bring them to book

rajat-sirProtests took place in several parts of India after Friday afternoon prayers over objectionable remarks made by two suspended BJP leaders against Prophet Mohammad. In Ranchi and Prayagraj, the protests escalated into stoning and arson, with two persons dying of injuries in Ranchi. Curfew has been clamped in the violence-hit areas of Ranchi. On Saturday too, West Bengal Police had to fire tear gas shells to quell protesters who had resorted to stoning in Howrah.

In Telangana, the national tricolour was defaced and insulted, while in Ranchi, the SSP was injured and an SHO suffered head injuries. In a new trend that was noticed on Friday, young Muslim kids were given stones to throw at police in Prayagraj and they were used as human shields by protesters against police action.

In Karnataka, Muslim women in burqa came out to march in protests. In most of the places, the protesters were demanding immediate arrest of former BJP spokespersons Nupur Sharma and Navin Kumar Jindal for making objectionable remarks against the Prophet.

Friday protests took place in Delhi, Moradabad, Saharanpur, Prayagraj, Bhopal, Howrah, Ranchi, Ahmednagar, Belgavi, Hyderabad and Mahboobnagar. The most surprising visuals came from Prayagraj, where soon after Friday prayers, kids came out of lanes and streets of Atala locality and started stoning policemen. These children were deliberately given stones by rioters to throw at police.

Suddenly, a huge crowd assembled at Khuldabad Chowk, and stoning began from rooftops at police. Stoning continued for nearly half an hour during which police used tear gas shells. Police officials had held peace meetings with local Muslim leaders on Thursday and Friday, but this was of no avail. Several vehicles were set on fire. Senior officials like the IG, SSP and DM were injured in stoning.

Similar protests took place in Moradabad and Saharanpur despite promises made to the police earlier by Islamic clerics there would be no protests. A senior UP Police official said, nearly 140 persons have been arrested from six districts after Friday protests. The districts are: Prayagraj, Saharanpur, Hathras, Ambedkar Nagar, Moradabad and Firzabad.

UP chief minister Yogi Adityanath held a late Friday night meeting with top officials and instructed them to teach a lesson to protests who indulged in stoning and arson. He however told them not to harass innocent people, but ensure that nobody should have the gumption to take law in his own hands. If children are used as tools for throwing stones at police, such masterminds are nothing but anti-nationals. Strict action must be taken against them.

The promptness with which UP police took action after Friday protests is commendable. It is because of Yogi’s alertness and speed that the overall situation in the state is under control. The conspirators had planned a major conflagration, but their ploy did not succeed. Rioters will be put behind bars, those absconding will have their names published on posters, and fines will be collected for public properties that were damaged. Illegal properties will be bulldozed.

There are people who will shed crocodile tears for these stone throwers, and show that the UP government is harassing innocent people. Yogi Adityanath does not care for such statements. I feel, other chief ministers should take a cue from Yogi and take stern action against stone throwers and rioters. They must show courage by taking action against law breakers.

Jharkhand CM Hemant Soren is one, who should take a cue from Yogi. In Ranchi, on Friday, protesters not only indulged in stoning and arson, they also damaged a Hanuman temple on the way. There were thousands of protesters and the police force was outnumbered.

Ranchi SP Anshuman Kumar said, Muslim leaders had promised a peaceful protest, but son after namaaz, the protest turned violent. The protesters attacked Hindu devotees coming out of a Hanuman temple on Albert Ekka Chowk. Protesters ransacked the temple and broke idols of gods and goddesses. The priests fled for their safety.

I am surprised over CM Hemant Soren’s reaction. He said, we should also take note of why this protest took place. A chief minister’s task is not lecturing, but to ensure that the rule of law prevails. His police personnel were desperately seeking help, but the chief minister was talking about the genesis of the problem. It will be a travesty of justice if Soren fails to put the stone throwers and rioters behind bars.

The people of India will never tolerate such intransigence. Chief Minister Soren must act with firmness and find out who insulted our national flag. One thing is clear. Friday protests were not spontaneous, it was a pan-India plan. There were protests outside several mosques in Hyderabad. The Foreign Minister of Iran was present inside the historic Mecca Masjid in Hyderabad on Friday, but the protests did not show respect, and continued with their sloganeering, and threw stones at police.

The stupidity of some protests in Mahboobnagar was at its nadir. Some of them came out with national tricolour flag, but the charkha in the middle was replaced with Arabic kalma. This was sheer insult of our national symbol. Such protests can never be allowed. Every India citizen has the democratic right to protest, but superimposing kalma on our national wheel symbol, is an outright insult to our national flag. Protesters may have their grouse against a political party, but, in the name of protest, they cannot insult our national pride.

All of us have condemned Nupur Sharma’s remarks about the Prophet, but no one has the right to give a call to behead her or rape her. Those lumpens trying to flex their muscle power in the name of religion must understand that the rule of law shall prevail in India. I know most of the Muslims are peace loving people, but there are elements in their midst who incite passions. They should be identified and isolated. Because of the depraved acts of a few, the entire community is defamed. To me, it is clear as daylight that the Friday protests, stoning and arson were part of a planned conspiracy.

Three types of arguments are being given: One, the Muslim community is hurt over the objectionable remarks made against the Prophet by Nupur Sharma, and action taken so far against her is inadequate, that she and Naveen Kumar Jindal must be arrested and put behind bars. This group says, Muslims came out to protest, police stopped them with lathis and in retaliation, they threw stones. It means, police was responsible for the clashes.

The second group says, Maulanas had appealed to people not to protest, and those who protested came from outside. So, the onus is on police to find out who were the outsiders. They say, police intelligence failed. The third group says, it was the police which ‘arranged’ stoning in order to defame Muslim community.

All the three groups put the blame on police, but I do not think, nobody will believe such hogwash. On the contrary, police acted with maximum restraint, used minimum force. Police was helpless when children were used by rioters as protective shield.

Imagine the outrage that could have taken place if a kid had died in police lathicharge. The truth is that there was stoning, a large number of policemen were injured, our national tricolour was insulted, and the masterminds were directing all these through social media campaigns. Hate messages were forwarded through WhatsApp. The need of the hour is to identify the masterminds and teach them a lesson, and, at the same time, ensure that no innocent person is harassed.

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क्या पुलिस की FIR नफरत फैलाने वालों पर लगाम लगा पाएगी?

AKBआज दिल्ली, रांची, कोलकाता, प्रयागराज, मुरादाबाद, लखनऊ, सहारनपुर, मुम्बई और हैदराबाद में जुमे की नमाज के बाद नमाजियों ने बीजेपी की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। प्रयागराज और रांची में प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव और गाड़ियों में आग लगाई. रांची के कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया है।

इस बीच सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी, विवादित पुजारी यति नरसिंहानंद सहित 31 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की । इसके अलावा बीजेपी की निलंबित प्रवक्ता नुपुर शर्मा और पार्टी से निष्कासित प्रवक्ता नवीन कुमार जिंदल के खिलाफ अलग से FIR दर्ज की गई है।

दोनों ही मामलों में इन लोगों के खिलाफ सामाजिक सदभाव बिगाड़ने, माहौल खराब करने, लोगों को भड़काने, जानबूझकर किसी धर्म या मजहब का अपमान करने, और सोशल मीडिया के जरिए उन्माद फैलाने की कोशिश करने जैसे गंभीर आरोपों में मुकदमा दर्ज किया गया है। दिल्ली पुलिस ने कहा, स्पेशल सेल की IFSO (Intelligence Fusion and Strategic Operations) यूनिट द्वारा सोशल मीडिया का विश्लेषण करने के बाद मामले दर्ज किए गए हैं।

FIR में कहा गया है कि आरोपी ‘जानबूझकर नफरत की भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे ये जानते हुए कि इस प्रकार की भाषा के इस्तेमाल से अलग अलग मज़हब में विश्वास रखने वालों के बीच शत्रुता की स्थिति पैदा होगी। यह निश्चित रूप से सार्वजनिक शांति और व्यवस्था के लिये एक गंभीर खतरा होगा ।’

FIR में लिखा है, ‘ऐसी भाषा का प्रसारण और प्रकाशन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से किया गया है, और जो व्यक्ति इसे देखेगा या सुनेगा, उसे गुमराह करने के लिए पर्याप्त है।’

दिल्ली पुलिस ने ट्वीट किया, ‘हमने सोशल मीडिया विश्लेषण के आधार पर सार्वजनिक शांति भंग करने और लोगों को उकसाने की कोशिश करने के आरोप में उचित धाराओं के तहत 2 FIRs दर्ज की हैं। एक FIR नुपुर शर्मा तथा दूसरी सोशल मीडिया पर सक्रिय कई अन्य लोगों के खिलाफ है। इन सोशल मीडिया अकाउंट के लिये जिम्मेदार लोगों के बारे में सूचनाएं एकत्रित करने के लिए सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स को नोटिस भेजे जा रहे हैं। दिल्ली पुलिस सभी से अपील करती है कि वे ऐसे संदेश पोस्ट करने से बचें, जो सामाजिक और साम्प्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ते हों।’

आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (दंगा भड़काने के इरादे से जानबूझकर उकसाना), 295 (किसी भी धर्म के अपमान के इरादे से प्रार्थना स्थलों का अपमान करना) और 505 (सार्वजनिक शरारत वाले बयान देना) के तहत मामले दर्ज किए गए हैं। दिल्ली पुलिस ने जिन धाराओं में केस दर्ज किया है, उनमें पुलिस स्टेशन से जमानत नहीं मिलेगी, कोर्ट ही जाना पड़ेगा। और अगर जुर्म साबित हो गया तो एक साल से लेकर 6 साल तक की कैद हो सकती है। दिलचस्प बात यह है कि जो लोग नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे, वे गुरुवार को अचानक खामोश हो गए। कुछ को इस बात पर आपत्ति है कि FIR में मुसलमानों के नाम क्यों हैं।

AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी इसे लेकर काफी ज्यादा नाराज दिखे। एक के बाद एक कई ट्वीट्स में उन्होंने पूछा, ‘मुझे पता नहीं, मेरे किस बयान की वजह से FIR दर्ज की गई है। ऐसा लगता है कि दिल्ली पुलिस में यति, नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल आदि के खिलाफ मामला चलाने की हिम्मत नहीं है। इसीलिए देर से यह कमजोर कदम उठाया गया है। असल में यति ने मुसलमानों के नरसंहार की बात की थी और इस्लाम का अपमान करके वह अपनी जमानत शर्तों का बार-बार उल्लंघन कर चुके है। दिल्ली पुलिस शायद कट्टर हिदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाए बगैर FIR दर्ज करने का तरीका सोच रही थी। दिल्ली पुलिस ‘द्विपक्षवाद’ और ‘संतुलनवाद’ से ग्रस्त है। एक पक्ष ने खुलेआम हमारे पैगंबर की शान में गुस्ताखी की है जबकि दूसरे पक्ष के लोगों को इसलिए नामजद किया गया ताकि बीजेपी समर्थकों को चुष्ट किया जा सके, य़े कह कर कि दोनों पक्षों की ओर से नफरत भरी बातें कही गयी थी।’

आमतौर पर पुलिस मजहबी उन्माद फैलाने वालों के खिलाफ व्यक्तिगत तौर पर कार्रवाई करती रहती है, लेकिन इस बार एक साथ ऐक्शन हुआ है, और पहली बार एक साथ 33 लोगों के खिलाफ 2 FIR दर्ज हुई हैं। FIRs में पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ विवादित बयान देने के बाद बीजेपी से सस्पेंड की गईं नूपुर शर्मा, इसी तरह का बयान देने के आरोप में बीजेपी से निकाले गए नवीन कुमार जिंदल, भगवा वस्त्र पहनने वाले, खुद को साधु बताने वाले, अक्सर विवादित बयान देने वाले और फिलहाल जमानत पर बाहर यती नरसिंहानंद, और महात्मा गांधी की तस्वीर पर बंदूक तानकर फोटो खिंचवाने वाली हिंदू महासभा की पूजा शकुन पांडे के नाम शामिल हैं।

दिल्ली पुलिस ने सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वालों के खिलाफ FIR दर्ज करते समय कोई फर्क नहीं किया। आरोपियों में AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी का नाम भी है जो एक अनुभवी बैरिस्टर और सियासत के पुराने खिलाड़ी हैं। उनकी पार्टी तेलंगाना से लेकर महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश तक फैली हुई है। विरोधी पार्टियां ओवैसी को ‘बीजेपी का एजेंट’ बताती हैं, लेकिन बीजेपी की सरकार ने ओवैसी का नाम जहर उगलने वालों के लिस्ट में डाल दिया। FIR में पीस पार्टी की ओर से टीवी डिबेट में हिस्सा लेने वाले शादाब चौहान, सोशल मीडिया पर अनाप-शनाप, आपत्तिजनक बातें लिखने वाले राजस्थान के इस्लामिक विद्वान इलियास शराफुद्दीन और मौलाना मुफ्ती नदीम के भी नाम हैं। मौलाना शराफुद्दीन ने शिवलिंग पर विवादित बयान दिया था। FIR में AIMIM के दानिश कुरैशी का भी नाम है, जिन्हें भड़काऊ बयान देने पर गुजरात में गिरफ्तार किया गया था।

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल में एक आधुनिक इंटेलिजेंस फ्यूजन और स्ट्रैटेजिक ऑपरेशंस यूनिट (Intelligence Fusion and Strategic Operations Unit) है जो WhatsApp, Facebook, YouTube और Twitter पर पोस्ट की गई ऐसी बातों पर पूरी मुस्तैदी से नजर रखती है जिनसे माहौल खराब हो सकता है। यह यूनिट ट्रेंडिंग टॉपिक्स पर भी खास नजर रखती है और फिर ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया अकाउंट पर किए गए कॉमेंट्स की जांच करती है। इसमें एक मॉनिटरिंग रूम भी है जहां लगातार ट्वीट्स, वॉट्सऐप फॉरवर्ड, फेसबुक और यूट्यूब पोस्ट पर नजर रखी जाती है।

ओवैसी के खिलाफ FIR दर्ज होने के तुरंत बाद AIMIM कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया, लेकिन दिल्ली पुलिस ने उन्हें तुरंत हिरासत में ले लिया। इनमें से कइयों को तीन दिन के लिए जेल भेजा गया है। समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर रहमान बर्क ने सवाल दागा, ‘नूपुर शर्मा और जिंदल के खिलाफ पुलिस कार्रवाई जायज थी, लेकिन पुलिस मुसलमानों के खिलाफ केस क्यों दर्ज कर रही है? मुसलमानों के खिलाफ नफरत का माहौल बनाया जा रहा है और यह हमारे देश के लिए अच्छा नहीं है।’

तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट किया, ‘मैं दृढ़ता से चाहती हूं कि बीजेपी के आरोपी नेताओं को तुरंत गिरफ्तार किया जाए ताकि देश की एकता भंग न हो और लोगों को मानसिक पीड़ा का सामना न करना पड़े।’ बाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि बीजेपी देश को बांटने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा, ‘सिर्फ FIR दर्ज करने से काम नहीं चलेगा। नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल को गिरफ्तार किया जाना चाहिए।’

चाहे पुलिस ने किसी के दबाव में आकर इन 33 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की हो, या किसी के कहने से की हो, यह कोई मसला नहीं है। अच्छी बात यह है कि दिल्ली पुलिस ने FIR दर्ज की है। मुझे उम्मीद है कि यह उन नेताओं पर रोक लगाएगा जो टीवी डिबेट के दौरान खुलेआम सांप्रदायिक जहर उगलते हैं और टीवी चैनलों को बदनाम करते हैं।

इन दो FIR के दर्ज होने से नेता हों या मौलाना, अब नफरत फैलाने से पहले दो बार सोचेंगे। अब उल्टे-सीधे बयान देने वालों को इस बात का एहसास होगा कि बोलने की आजादी किसी मजहब को गाली देने के लिए नहीं होती। नफरत फैलाने के लिए दोनों धर्मों के लोग जिम्मेदार हैं। वे नफरत फैलाने और लोगों को भड़काने के लिए सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स का दुरुपयोग करते हैं। सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स को नियंत्रित करना मुश्किल है, क्योंकि जो मैसेज जितना निगेटिव होता है, वह यहां उतनी ही तेजी से वायरल होता है। इसका फायदा सबसे ज़्यादा वो लोग उठाते हैं जिनकी समाज में अपनी कोई स्टैंडिंग नहीं हैं, जिन्हें हम ‘फ्रिंज एलिमेंट’ (सिरफिरा तत्व) के नाम से जानते हैं। दिल्ली पुलिस ने इस दिशा में एक उदाहरण पेश किया है।

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Will filing of FIRs by Police put a brake on hate spreaders ?

rajat-sir There were protests after Friday prayers in Delhi, Kolkata, Prayagraj, Moradabad, Lucknow, Saharanpur, Hyderabad with Muslim devotees demanding arrest of suspended BJP spokesperson Nupur Sharma. At some places, protesters pelted stones at police and other vehicles.

Meanwhile, in a stern action against spreaders of hate on social media, Delhi Police on Thursday registered FIR against 31 persons, including AIMIM chief Asaduddin Owaisi, hate preacher Yati Narsinghanand, while a separate FIR was filed against suspended BJP spokesperson Nupur Sharma and expelled BJP spokesperson Navin Kumar Jindal.

In both the cases, the accused were charged with spreading hate, inciting people and deliberately hurting religious sentiments. Delhi Police said, the cases were registered after analysis of social media by IFSO (Intelligence Fusion and Strategic Operations) unit of Special Cell. In the FIRs, the accused were charged of “using hate-worthy languages intentionally or having complete knowledge that use of such type of language, claim and assertion is not only discriminatory but more than sufficient to create a situation of animosity amongst different groups of persons having faith in different religions…This will certainly be a serious threat to public tranquillity and maintenance of public order in our country wherein people have been living peacefully.”

In the FIRs, it was stated, “transmission and publication of such language has been done through electronic media which are filthy in nature and appeals to prurient interest and sufficient to deprave and corrupt any person who sees it or hears the objectionable words.”

Delhi Police tweeted, “we have registered two FIRs under appropriate sections on the basis of social media analysis against those trying to disrupt public tranquillity and inciting people on divisive lines. One pertains to Ms Nupur Sharma and other against multiple social media entities.. Even as notices are being sent to social media intermediaries for details of those behind these accounts/entities, Delhi Police appeals to everyone to desist from posting anything that may disrupt social and communal harmony”.

Accused charged under sections 153(inciting communal violence), 295(insulting a religion) and 505(disturbing communal harmony) of Indian Penal Code in these FIRs cannot get bail from police stations, and they will have to go to courts. If the offence is proved, they may undergo imprisonment from one year to six years. The interesting part is that those who had been demanding arrest of Nupur Sharma, suddenly fell silent on Thursday, while some questioned why names of Muslims have been included in the FIR.

AIMIM chief Asaduddin Owaisi was more blunt. In a long series of tweets, he asked: “I do not know which specific remarks of mine have attracted the FIR ….It appears that Delhi Police lacks the courage to pursue cases against Yati, Nupur Sharma and Naveen Jindal, etc. This is why the delayed and weak response. In fact, Yati has violated his bail conditions repeatedly by inciting genocide against Muslims and insulting Islam. Delhi Police were probably trying to think of a way of registering an FIR against these people without offending Hindutvavadi fanboys/girls. Delhi Police is suffering from “both-sideism” of “balance-waad” syndromes. One side has openly insulted our Prophetwhile the other side has been named to assuage BJP supporters and make it look like there was hate speech on both sides.”

Normally, police files FIR against individual person for spreading hate and disturbing harmony, but this time two FIRs have been filed against 33 persons. These include Nupur Sharma, who has been suspended from BJP for making hate comments against Prophet Mohammad, Naveen Kumar Jindal, who has been expelled from BJP for similar charge, Yati Narsinghanand, a habitual hate preacher, already out on bail and poses as a sadhu, and Pooja Shakun Pandey of Hindu Mahasabha, who had posed with a gun pointed at Mahatma Gandhi’s photo.

Delhi Police did not differentiate while filing FIR against spreaders of hate on social media. Among those accused is AIMIM chief Asaduddin Owaisi, an experienced barrister and politician, whose party has spread its wings from Telangana to Maharashtra, Bihar and UP. Some opposition leaders call him a ‘BJP agent’, but the BJP government has put his name in the list of hate spreaders. In the FIR are names of Shadab Chauhan, who takes part in TV debates on behalf of Peace Party, Islamic cleric Ilyas Sharafuuddin, Maulana Mufti Nadeem from Rajasthan, who write objectionable, hateful comments on social media. Maulana Sharafuddin had made objectionable comment on Shivling. The FIR also names Danish Qureshi of AIMIM, who had been arrested in Gujarat for spreading hate.

Delhi Police Special Cell has a modernized Intelligence Fusion and Strategic Operations Unit that keeps a tab on all hateful comments made through WhatsApp, Facebook, YouTube and Twitter. This unit keeps watch on trending topics and then goes through comments made on Twitter and other social media accounts. It has a monitoring room where constant watch is kept on tweets, WhatsApp forwards, Facebook and YouTube posts.

Soon after the FIR was filed against Owaisi, AIMIM workers staged protests, but were immediately rounded up by Delhi Police. Samajwadi Party MP Shafiqur Rahman Barq asked, “police action against Nupur Sharma and Jindal was justified, but why is the police filing cases against Muslims? An atmosphere of hate is being created against Muslims and this is not good for our country.” Trinamool Congress chief and West Bengal chief minister Mamata Banerjee tweeted: “I strongly seek that the accused leaders of BJP be arrested immediately so that the unity of the country is not disturbed and people at large do not face mental agony.” Later, at a press conference, Banerjee alleged that BJP was trying to divide the country. “Only filing of FIRs will not do. Nupur Sharma and Naveen Jindal must be arrested.

The issue is not whether Delhi Police filed FIRs against 33 persons, both Hindus and Muslims, under pressure or at anybody’s instance. The good part is that Delhi Police has filed FIRs. I hope this will put a stop to leaders who openly spout communal venom during TV debates bringing disrepute to TV channels.

With the filing of the two FIRs, leaders or clerics will now think twice before spreading hate. They will realize that freedom of expression does not mean the freedom to slander any religion or any religious figure. People from both religions are responsible for spreading hate. They misuse social media platforms to spread hate and incite people. It is difficult to control social media platforms, where hate messages spread rapidly and become viral. The beneficiaries are those who do not have standing in society, such people are what we call ‘fringe elements’. Delhi Police has set an example in this direction.

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नए ज़माने की आर्मी, नेवी, एयरफोर्स की तैयारी

akb fullआज आपको एक अच्छी खबर बताता हूं, खासकर उन नौजवानों को, जो फौज में भर्ती होकर मातृभूमि की सेवा करना चाहते हैं। अब देश के सवा लाख नौजवानों को जल्दी ही आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में नौकरी मिलेगी। केंद्र सरकार जल्दी ही नई नीति का ऐलान करने वाली है, जिसका नाम रखा गया है, ‘Tour of Duty’ या हिंदी में अग्निपथ । इस नीति के लागू होने के बाद सेना में भर्ती और रिटायरमेंट की शर्तें बदल जाएंगी, और सेना में खाली पड़े सवा लाख पदों को भरने का रास्ता निकलेगा।

नई नीति ‘Tour of Duty’ या ‘अग्निपथ’ के मुताबिक, अब सेना में किसी जवान को रिटायरमेंट के के लिए 20 साल की नौकरी जरूरी नहीं होगी। नई नीति के तहत, अफसर से नीचे वाले कार्मिकों (Personnel Below Officer Rank or PBOR) की 4 साल के लिए भर्तियां होंगी, और इसमें 6 महीने ट्रेनिंग की अवधि भी शामिल होगी।

‘Tour of Duty’ के तहत भर्ती होने वाले सैनिकों का 4 साल के बाद कंपल्सरी रिटायरमेंट होगा। इस नई नीति के तहत 4 साल पूरे होने के बाद चुने 75 प्रतिशत जवान रिटायर हो जाएंगे, और बाकी के 25 प्रतिशत जवानों को एक महीने बाद दोबारा भर्ती किया जाएगा। जिन 25 फीसदी जवानों को दूसरा मौका मिलेगा, उनका चुनाव भी एग्जाम के रिजल्ट के आधार पर होगा। 4 साल की सर्विस के बाद ‘अग्निवीर’ नाम के इन जवानों को करीब 10 लाख रुपये की सेवा निधि दी जाएगी, लेकिन वे पेंशन के हकदार नहीं होंगे। बाकी के 25 फीसदी सैनिक अगले 15 सालों तक सेवा देंगे, और उन्हें रिटायरमेंट के सभी लाभ मिलेंगे।

नई नीति पर पिछले 3 साल से काम हो रहा है। यह विचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है। मोदी की सोच यह है कि देश के हर नौजवान को आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में काम करने का मौका मिलना चाहिए। जो युवा फौज में काम करना चाहते हैं, उन्हें अवसर देना जरूरी है, लेकिन मुश्किल यह है कि हमारी फौज में जवानों और अफसरों की संख्या कुल मिलाकर 12 लाख तक हो सकती है। एक बार जब किसी जवान की भर्ती हो जाती है, तो वह कम से कम 20 साल तक नौकरी में रहता है। ऐसे में इस दौरान उस पद के लिए दूसरी भर्ती नहीं हो सकती।

नए फॉर्मूले के तहत फौज में नौकरी सिर्फ 4 साल की होगी। इस नीति के लागू होने के बाद जब भर्तियां शुरू होंगी, उसके 4 साल के बाद हर साल कम से कम एक लाख नौजवानों को आर्मी, एयरफोर्स और नेवी में भर्ती होने का मौका मिलेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि इस तरह की भर्ती में हर वर्ग के नौजवानों को समान मौका मिलेगा। यानी जो एग्जाम और फिजिकल टेस्ट पास करेगा, उसे मौका मिलेगा। इस वक्त सेना में राजपूताना राइफल्स, सिख रेजीमेंट, गोरखा रेजीमेंट, महार रेजीमेंट में दूसरी जाति या वर्ग के लोगों को एंट्री नहीं मिलती। नई भर्तियों में ऐसा नहीं होगा। जहां जगह होगी, जहां जरूरत होगी, उन सभी रेजीमेंट्स में अग्निवीरों को तैनात किया जाएगा।

तीनों सेनाओं में जवानों की भर्ती के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 17 साल 6 महीने और अधिकतम उम्र सीमा 21 साल होगी। यानी साढे सत्रह साल से 21 साल तक के नौजवान फौज में भर्ती होने के लिए अप्लाई कर सकेंगे। भर्ती में चुने गए रंगरूटों को 6 महीने की ट्रेनिंग दी जाएगी, उसके बाद उन्हें रेजिमेंट या यूनिट में ट्रांसफर किया जाएगा, जहां वे अगले करीब 3.5 साल तक अपनी सेवाएं देंगे। 4 साल पूरे होने के बाद 75 फीसदी जवान रिटायर हो जाएंगे, और बाकी 25 फीसदी जवानों को एक महीने बाद एग्जाम के जरिए सिलेक्शन किया जाएगा।

इस नीति का उद्देश्य पिछले 2 वर्षों से कोरोना के कारण भर्तियों पर रोक की वजह से खाली पड़े पदों को भरना है। जब जवान 4 साल बाद रिटायर होंगे, तो सेना के आकार में कोई बड़ी कमी नहीं आएगी। इस तरह आर्मी ‘लीन ऐंड मीन’ (छोटी लेकिन दुरुस्त) मशीन में तब्दील होगी, और मॉडर्न वॉरफेयर के लिए तैयार होगी। तमाम एक्सपर्ट्स का मानना है कि 21वीं सदी में हमारे सशस्त्र बलों को चुस्त और जंग के लिए तैयार रहने की जरूरत है। ‘अग्निपथ’ नीति से यह मकसद भी पूरा होगा।

‘अग्निपथ’ नीति के तहत जवानों की कुल तनख्वाह 30 से 40 हजार रुपये होगी। इसका 70 फीसदी सैलरी के तौर पर हर महीने मिलेगा, बाकी 30 फीसदी रकम सेवा निधि खाते में जमा की जाएगी। सरकार अपनी तरफ से भी इतनी ही रकम खाते में जमा करेगी। मतलब यह कि अगर जवान की सैलरी 40 हजार रुपये है तो हर महीने जवान के अकाउंट में 28 हजार रुपये आएंगे, बाकी 12 हजार रुपये और सरकार की तरफ के 12 हजार रुपये, यानी 24 हजार रुपये हर महीने सेवा निधि खाते में डाले जाएंगेष जब 4 साल की सर्विस के बाद जवान रिटायर होंगे, तो उन्हें सेवा निधि में जमा 10 से 12 लाख रुपये मिलेंगे। यह रकम टैक्स फ्री होगी।

सेना में नौकरी के दौरान जवानों का 48 लाख रुपये का बीमा होगा, जो कि किसी जवान के ऑपरेशन के दौरान शहीद होने पर उसके परिवार को मिलेगी। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार की यह नई नीति एक क्रांतिकारी फैसला है। इससे आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के चरित्र में आमूलचूल परिवर्तन होगा। ब्रिटिश राज के दौर से चली आ रही सेना की कई परंपराएं बदल जाएंगी।

पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल एम. एम. नरवणे ने Tour of Duty या अग्निपथ नीति के बारे में 2 साल पहले संकेत दिए थे। उन्होंने कहा था कि आर्मी अफसर जब भी कॉलेज या किसी इंस्टीट्यूट में जाते थे, तो युवाओं का अक्सर यह सवाल होता था कि आखिर आर्मी लाइफ होती कैसी है? कुछ लोग पूरी जिंदगी सेना में नहीं बिताना चाहते। नई नीति ऐसे ही युवाओं की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की कोशिश करेगी, जो 4 साल तक सेना में सेवा कर सकते हैं और उसके बाद आम जिंदगी में लौट सकते हैं।

बहुत से लोगों के मन में यह सवाल है कि 4 साल की सर्विस के बाद जवान क्या करेंगे ? अग्निपथ नीति के तहत जो युवा फौज में नौकरी करेंगे, उन्हें इसका डिप्लोमा मिलेगा और क्रेडिट स्कोर भी दिया जा सकता है। अगर कोई आगे की पढ़ाई करना चाहता है तो आर्मी में सर्विस का डिप्लोमा या क्रेडिट स्कोर उसके बहुत काम आएगा। आर्मी से रिटायरमेंट के बाद सरकार भी उन्हें नया रोजगार तलाशने में मदद देगी। सरकार का कौशल विकास मंत्रालय उन्हें नए हुनर सिखाएगा। रिटायरमेंट के बाद ये जवान, पुलिस या सेंट्रल पैरामिलिट्री फोर्सेंज में भी नौकरी हासिल कर सकते हैं। इससे पुलिस फोर्स को भी प्रशिक्षित जवान मिलेंगे। कॉरपोरेट सेक्टर ने भी अग्निपथ नीति में काफी दिलचस्पी दिखाई है। सेना से प्रशिक्षित ये जवान रिटायर होने के बाद कंपनियों का भी हिस्सा बन सकेंगे।

नई नीति से सिर्फ नौजवानों को सेना में सेवा करने का मौका नहीं मिलेगा, बल्कि इससे सरकार को भी फायदा होगा। इस नीति से हजारों करोड़ रुपये बचेंगे, और यह रकम तीनों सेनाओं के आधुनिकीकरण में काम आएगी, इससे नए हथियार खरीदे जा सकेंगे। 2021 में तीनों सेनाओं के रक्षा बजट का लगभग 60 फीसदी हिस्सा सैलरी और पेंशन देने में ही खर्च हो गया था। उसके बाद आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के पास नए और आधुनिक हथियार खरीदने के लिए ज्यादा पैसे ही नहीं बचे। मौजूदा समय में 10 साल की सर्विस देने वाले जवान पर सरकार 5 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करती है, जबकि 14 साल की नौकरी करने वालों पर करीब 6.25 करोड़ रुपये का खर्च आता है। नई नीति के तहत 4 साल तक सेवाएं देने वाले एक जवान पर सरकार के महज 80-85 लाख रुपये खर्च होंगे। अग्निपथ नीति के तहत करीब 11 हजार करोड़ रुपये की बचत होगी।

चीन अपने रक्षा बजट का लगभग 30 फीसदी वेतन और पेंशन पर खर्च करता है, जबकि बाकी 70 फीसदी बजट से सेना के लिए नए हथियार खरीदे जाते हैं। ‘अग्निपथ’ नीति इसी दिशा में एक कदम है। हालांकि ऐसा नहीं है कि सभी रक्षा विशेषज्ञ सरकार की इस नीति को अच्छा बता रहे हैं। कुछ विशेषज्ञ ऐसे भी हैं जो इस नीति के खिलाफ हैं। कुछ सियासी दल भी इसके खिलाफ हैं। सेना में डायरेक्टर जनरल ऑफ़ मिलिट्री ऑपरेशंस रहे रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया का कहना है कि इससे आर्मी के स्लोगन, ‘नाम, नमक और निशान’ का जज्बा कमजोर होगा।

लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) हरवंत सिंह पूछते हैं, ‘केवल 4 साल के लिए भर्ती किए गए जवान को हम कैसे प्रेरित करेंगे कि वह जंग के मैदान में अपनी जान देने के लिए तैयार हो जाए? क्या वे उस रेजिमेंटल स्पिरिट और यूनिट के युद्धघोष को आत्मसात करेंगे जो उन्हें गोलियों की बौछार के बीच भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है?’ एक अन्य मेजर जनरल (रिटायर्ड) संजय मेस्टन ने कहा कि इससे सेना का राजनीतिकरण होगा क्योंकि भर्ती के वक्त नेता पैरवी करेंगे और 4 साल की सेवा के बाद जिन 25 फीसदी जवानों को रिटेन करना है, उन्हें लेकर दखलंदाजी बढ़ेगी।

किसी भी योजना को देखने के दो तरीके होते है, एक सकारात्मक, दूसरा नकारात्मक । अभी सरकार ने नीति का ऐलान नहीं किया है, हालांकि योजना फाइनल हो गई है। हो सकता है सरकार आखिरी वक्त में कुछ और बदलाव करे, लेकिन मुझे लगता है कि यह नरेंद्र मोदी का क्रांतिकारी विचार है। यह सही है कि इस तरह की योजना से सेना के बजट का बड़ा हिस्सा बचेगा, पेंशन का बोझ सरकारी खजाने पर नहीं होगा, और जो पैसा बचेगा उससे सेना को आधुनिक और ताकतवर बनाने में मदद मिलेगी। यह पैसा आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के आधुनिकीकरण पर खर्च होगा। इसमें बुरी बात क्या है?

दूसरी बात इस तरह की नीति से देश के उन नौजवानों को सेना में काम करने का मौका मिलेगा जो सेना में जाने के सपने देखते हैं। उन्हें आर्मी की ट्रेनिंग मिलेगी, और वे 4 साल तक सेना के अनुशासन में रहेंगे। इसलिए जब ये सेना से रिटायर होकर आम जीवन में लौटेंगे तो अनुशासित नागरिक होंगे। चूंकि वे प्रशिक्षित भी होंगे, इसलिए पुलिस और अर्धसैनिक बलों के लिए अनुभवी लोग आसानी से मिल सकेंगे। रूस, इजरायल, तुर्की, कोरिया, ब्राजील जैसे करीब 85 मुल्कों में हर नौजवान के लिए सेना में काम करना अनिवार्य है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह अनिवार्यता थोपी नहीं है, बल्कि लाखों नौजवानों को सेना में शामिल होने का स्वर्णिम अवसर दिया है। इस नीति का फायदा हमारे देश और हमारी फौज को होगा। इसका फायदा हमारे देश के नौजवानों को भी होगा। इसलिए ‘Tour of Duty’, अग्निपथ नीति का स्वागत होना चाहिए।

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Preparing for a modern day Army, Navy and Air Force

AKBToday a piece of good news, particularly for those youths who want to join the armed forces and serve our motherland. Very soon, nearly 1.25 lakh youths will be recruited in the army, navy and air force. A new recruitment policy called Tour of Duty, or Agnipath in Hindi, is on the anvil. Under this policy, recruitment policy and retirement conditions will now be changed, to fill up nearly 1.25 lakh posts vacant in our armed forces.

The new policy ‘Tour of Duty’ stipulates that a soldier recruited in the armed forces will not have to serve for 20 years, before retirement. In the new policy, Personnel Below Officer Rank (PBOR) will be inducted for short service for a period of four years, which will include six months of training.

Soldiers recruited under Tour of Duty, will be compulsorily retired from service after four years, though the new system has a provision of retaining 25 per cent of soldiers after another round of screening. After four years of service, these soldiers named ‘Agniveer’ may be given a severance package of nearly Rs 10 lakhs, but they will not be entitled for pension. Soldiers who will be retained will serve for another 15 years, and they will get all retirement benefits.

The new policy was on the anvil for the last three years. The ideation came from Prime Minister Narendra Modi, who wanted that most of our youths must get an opportunity to serve in the armed forces. They must be given opportunities, but the problem is that the entire strength of the armed forces, including officers and jawans, could go up to 12 lakhs. A jawan, once recruited, serves for 20 years, before they retire in their late 30s with a pension. So, for 20 years, these posts cannot become vacant. The new formula envisages a short service of four years. This would mean nearly one lakh youths will get jobs in the armed forces every year. Youths from all classes and communities will get a chance, once they pass the exam and physical tests. Presently, formations like Rajputana Rifles, Sikh Regiment, Gorkha Regiment, Mahar Regiment do not recruit youths from other castes or communities. The new policy will amalgamate all. Wherever vacancies are to be filled up, ‘Agniveers’ will be recruit to fill the gaps.

The minimum age limit for hiring will be 17 years six months and maximum age limit will be 21 years. In other words, youths between the age of seventeen and a half years to 21 years can apply. Those selected will undergo six months training, and will then be transferred to their regiments or units, where they will serve for nearly three and a half years. After completion of four years, 75 per cent of the jawans will be compulsorily retired, while remaining 25 per cent will be recruited again after a gap of one month, through exams. The aim behind this policy is to fill up the vacancies that have accrued for the last two years due to a freeze on recruitments due to Covid pandemic. When the recruits will leave the job after four years, the size of the armed forces will not suffer a big reduction. The army machine will become lean and thin, ready for modern warfare. Some experts believe that our armed forces need to become agile, and ready for battles in the 21st century. ‘Agnipath’ can help achieve these aims.

A soldier hired under Tour of Duty policy will get Rs 30-40,000 gross per month, out of which 70 per cent will be paid as salary every month, while remaining 30 per cent will remain deposited in Sewa Nidhi account. Government will contribute similar amount in that fund. In plain words, every month a new jawan will get Rs 28,000 as salary, while Rs 12,000 will be deposited in Sewa Nidhi account with matching amount of Rs 12,000 from the government. After four years, when the jawans will retire, they will get Rs 10 to 12 lakhs from this fund. This will be tax free. During service, the soldier will get a life cover of Rs 48 lakhs, which will be given to the martyr’s family, if he dies while fighting in service. Defence experts describe this as a revolutionary step. It will bring about a fundamental transformation in the army, navy and air force. Several hoary traditions that had continued since the British Raj will now change.

Former Army Chief Gen M M Narwane had hinted about this Tour of Duty policy two years ago. He used to say that whenever any senior army officer visited any college or institute, the main question from young students used to be: How is life in the army? Some youths did not want to spend their entire life in the army. The new policy will try to fulfil the ambitions of such youths, who can serve the armed forces for four years and then return to civilian life.

Questions are being raised about what will happen to the youths after they retire from service after four years. Under the Agnipath policy, such youths will get a Diploma along with credit score points. If they want to pursue higher education, this will help them, and if they want to seek new jobs, Ministry of Skill Development will impart new skills to them. These jawans, after retirement, can also serve the state police or central paramilitary forces. The corporate sector has also shown much interest in the Tour of Duty policy, since they require youths who are trained in the army.

This new policy will bring about huge savings to the public exchequer, and will work towards modernization of the armed forces, through purchase of new weapons. In 2021, nearly 60 per cent of the armed forces’ defence budget was spent on salaries and pensions, leaving few scope for purchase of new and modernized weapons. At present, the government spends more than Rs 5 crore on a jawan who works for ten years in the army, Rs 6.25 crore on those who work for 14 years. Under the new policy, the Centre will spend Rs 80-85 lakhs on a jawan who works for four years. Nearly Rs 11,000 crore can be saved under the Tour of Duty policy.

China spends nearly 30 per cent of its defence budget on salaries and pensions, while remaining 70 per cent is spent on acquiring new weapons for the Chinese army. ‘Agnipath’ policy is a step towards this direction. There are defence experts who are against this new policy. Some political parties have also raised their voices. Lt. Gen. (Retd) Vinod Bhatia, former DGMO (Director General of Military Operations) says, the new policy can weaken the two centuries-old traditions of the army regiments ‘Naam, Namak, Nishaan’ (Name, Loyalty, Symbol).

Asks Lt. Gen. (Retd) Harwant Singh, “Will these four-year tenure types have the essential motivation and willingness to lay down their lives when the call is made, while being aware that they are there for just four years? Will they imbibe that regimental spirit and unit’s battle cry which makes them carry on through a hail of bullets?” Another Maj. Gen. (Retd) Sanjay Meston said, this will lead to politicization of the armed forces, because leaders may try to push in their candidates at the time of hiring. These leaders may also intervene to retain the remaining 25 per cent.

There are two ways to look at a plan: positive and negative. The government is yet to announce its new policy, though it has been almost finalized. The Centre may make changes at the last moment, but I personally feel that this is Prime Minister Modi’s revolutionary idea. It is true that a huge amount of money in the defence budget can be saved as a result, and the government can save itself from mounting pension dues. The money saved by reducing pension dues will be used to acquire new weapons and machines to make our armed forces stronger. There should be no objections on this score.

Secondly, the new policy will open up huge avenues for millions of our youths yearning to join the armed forces. They will get training in the army during their four years of stay. When these youths return to civil society, they will return as disciplined citizens. Since they have been trained in the armed forces, they can easily be given jobs in the police and paramilitary forces. In 85 countries of the world, including Russia, Israel, Turkey, South Korea and Brazil, army service is compulsory for every youth.

Prime Minister Modi has not made it compulsory, but he has provided a golden opportunity to millions of youths to join the army. This policy will be beneficial for our country and our armed forces. It will also be beneficial for our youths. This policy ‘Tour of Duty’, ‘Agnipath’ must be welcomed.

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कानपुर शहर काज़ी जैसे मौलानाओं को भड़काऊ बयान देने से बचना चाहिए

AKBकई मौलानाओं ने मंगलवार को प्रशासन और पुलिस को स्पष्ट धमकी देते हुए कहा है कि अगर कानपुर में पथराव करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हुई तो इसके अंजाम भुगतने होंगे। कानपुर के शहर काज़ी अब्दुल कुद्दूस ने कहा कि अगर मुसलमानों के खिलाफ ऐक्शन जारी रहा तो हम सिर पर कफन बांधकर सड़क पर निकलेंगे।

काज़ी के पूरा बयान आपके सामने लाने से पहले मैं यह बता दूं कि वह कोई आम मुसलमान नहीं हैं और न ही उनके परिवार का कोई सदस्य पत्थरबाजी करते हुए पकड़ा गया है। यह बात अगर कोई आम आदमी कहता, जिसके खिलाफ पुलिस ने कार्रवाई की, या उसके परिवार का कोई शख्स कहता, तो उसे नाराजगी या गुस्सा मानकर नजरअंदाज किया जा सकता था। लेकिन अगर मुसलमानों के पारिवारिक मामलों को देखने वाले, शहर के काज़ी इस तरह का भड़काऊ बयान देते हैं, तो यह चिंता की बात है।

शहर काज़ी अब्दुल कद्दूस की तीन आपत्तियां हैं: पहली- बेकसूर मुस्लिम लड़कों को पकड़ा जा रहा है, दूसरी- सिर्फ मुसलमान लड़कों को ही जेल में डाला जा रहा है, पुलिस एकतरफा ऐक्शन कर रही है, और तीसरी- अगर आरोपियों की संपत्ति पर बुलडोजर चला, अगर सरकार ने आरोपियों की संपत्ति जब्त की, तो फिर मुसलमान कफन बांधकर निकलेगा। काजी ने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस 95 फीसदी कार्रवाई मुसलमानों के खिलाफ कर रही है जबकि 2 या 3 फीसदी हिंदुओं के खिलाफ ऐक्शन लिया जा रहा है। उन्होंने धमकी दी, ‘मुसलमान खामोश नहीं बैठेंगे।’

3 जून को जब राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल और मुख्यमंत्री कई कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए कानपुर के पास राष्ट्रपति के गांव गए थे, तो जुमे की नमाज के तुरंत बाद कुछ जिहादी तत्वों ने कानपुर शहर में हिंसा की आग भड़का दी। इन जिहादी तत्वों ने कुछ दिन पहले गुप्त बैठकें की थीं, और उन्होंने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ बीजेपी प्रवक्ता के आपत्तिजनक बयान के विरोध में दुकानों-बाज़ारों को बंद करने का आह्वान किया था।

इस हिंसा के कथित सूत्रधार हयात ज़फर हाशमी के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) और गैंगस्टर ऐक्ट के तहत 9 आपराधिक मामले पहले से दर्ज हैं। वह एक YouTube चैनल चलाता है जिसमें वह काफी ज़हरीली भाषा का इस्तेमाल करता है। दंगाइयों ने पत्थरों और ईंटों के बड़े-बड़े ढेर जमा कर रखे थे, जिनका इस्तेमाल हिंसा के दौरान खुल कर किया गया था।

CCTV वीडियो में साफ-साफ दिख रहा है कि इस हिंसा की प्लानिंग पहले से की गई थी और पथराव करने वालों को भड़काऊ नारे लगाकर उकसाया जा रहा था। हिंसा जल्द ही पांच थाना क्षेत्रों कोतवाली, कलेक्टरगंज, बेकनगंज, चमनगंज और बजरिया में फैल गई। पथराव करने वालों ने दुकानों, गाड़ियों, पुलिस और घरों को निशाना बनाया। अब तक 50 से ज्यादा आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं और पुलिस ने पूरे शहर में 40 आरोपियों के पोस्टर चिपका दिए हैं। मुख्य आरोपी हयात ज़फर हाशमी, जावेद अहमद खान, मोहम्मद सूफियान और मोहम्मद साहिल को गिरफ्तार कर लिया गया है। पुलिस के पोस्टर में जिनके नाम हैं उनमें से कई लोगों ने सरेंडर कर दिया है। स्थानीय प्रशासन ने कहा है कि वह दंगाइयों से जुर्माना वसूलेगा।

हमारे रिपोर्टर पवन नारा ने शहर काजी अब्दुल कुद्दूस से बात की और उनसे पूछा कि उन्होंने ऐसा भड़काऊ बयान क्यों दिया। काजी ने कहा कि उन्होंने जो भी बयान दिया है, ठीक दिया है और सोच-समझकर दिया है। उन्होंने कहा, ‘अगर सरकार घर तोड़ देगी, बुलडोजर चलाएगी, बेगुनाह लोगों को गिरफ्तार करेगी, तो फिर कफन बांधकर निकलने के अलावा रास्ता क्या है। अगर पुलिस ज्यादती करेगी तो बोलना ही पड़ेगा।’

अगर काजी खुद ही वकील बन जाएगे, खुद ही पैरवी करेंगे, खुद ही जज बनकर फैसला करेंगे तो फिर क्या कहा जा सकता है। कानुपर में 3 जून को जुमे की नमाज के बाद जो हुआ, वह छोटी बात नहीं थी। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री शहर में थे, इसके बावजूद दंगे की साजिश की गई। 6 मोबाइल फोन से 16 हजार मैसेज फॉरर्वर्ड किए गए थे। आग लगाने की पूरी तैयारी थी, और काजी साहब कह रहे हैं कि यह कोई इतनी बड़ी बात नहीं थी।

पुलिस बिना किसी सबूत के, बिना किसी गवाह के किसी को नहीं पकड़ रही है। CCTV वीडियो देखकर एक-एक आरोपी की पहचान हो रही है। फिर वीडियो से स्टिल इमेज निकाल कर बाकायदा शहर भर मे दंगा करने वालों के पोस्टर लगाए जा रहे हैं। जो लोग पत्थरबाजी करते हुए, आगजनी करते हुए दिख रहे हैं, उनकी पहचान जनता से करवाई जा रही है। गवाह ढूंढ़े जा रहे हैं और उसके बाद आरोपियों को पकड़ा जा रहा है।

इसलिए यह कहना कि पुलिस ज्यादती कर रही है, सिर्फ मुसलमानों को पकड़ रही है, ठीक नहीं है। क्या काजी चाहते हैं कि पुलिस हिंदुओं को झूठे आरोपों में गिरफ्तार करे, क्योंकि उन्होंने तो पत्थरबाजी की नहीं थी?

मैंने यूपी पुलिस के कई बड़े अधिकारियों से बात की है और उनमें से ज्यादातर ने कहा कि पुलिस यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश कर रही है कि बेगुनाहों की गिरफ्तारी न हो। कानपुर पुलिस का कहना है कि अब तक गिरफ्तार किए गए सभी आरोपी CCTV वीडियो में पत्थरबाजी करते नजर आ रहे हैं। जब इंडिया टीवी के रिपोर्टर पवन नारा ने काजी को इसकी ओर इशारा किया, तो उन्होंने कहा, ‘यह कोई इतना बड़ा मसला तो नहीं था। लड़के हैं, लड़कों से गलतियां हो जाती हैं। उन्हें माफ कर देना चाहिए।’

हिंसा करने वालों, पत्थरबाजी करने वालों, दंगा करने वालों को नादान समझकर माफ नहीं किया जा सकता। वे सांप्रदायिक दंगा भड़काने की साजिश का हिस्सा थे। पुलिस के मुताबिक, कुछ दंगाइयों ने ‘बम’ बनाने के लिए स्थानीय पेट्रोल पंपों से पेट्रोल खरीदा था। ऐसे युवकों को शहर काजी नादान कैसे कह सकते हैं?

शहर काजी को मामला शायद इसलिए छोटा लग रहा है क्योंकि पुलिस ने वक्त पर कार्रवाई की और एक बड़े सांप्रदायिक टकराव को टाल दिया। इस घटना में कोई घायल नहीं हुआ, किसी की जान नहीं गई, ज्यादा नुकसान नहीं हुआ, वरना साजिश तो शहर को जलाने की थी। अगर पुलिस मुस्तैद न होती तो कानपुर में आग लग जाती, धुंआ उठ रहा होता, तब शहर काजी पुलिस को जिम्मेदार ठहराते।

काज़ी दावा कर रहे हैं कि वह तो शहर के लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हकीकत तो यह है कि उनके बयान मुसलमानों को भड़काने का काम कर रहे हैं। इसका असर गली मुहल्लों में दिख भी रहा है। पुलिस जब बजरिया थाना इलाके में एक आरोपी को गिरफ्तार करने गई तो स्थानीय मुसलमानों ने उसका जबरदस्त विरोध किया।

कानपुर रेंज के जॉइंट पुलिस कमिश्नर आनंद प्रकाश तिवारी ने कहा कि फील्ड में काम कर रहे पुलिस अफसरों को हिदायत दी गई है कि संयम से काम लेना है, और अगर आरोपी के परिवार वाले या इलाके के लोग कार्रवाई का विरोध करते हैं तो सख्ती करने के बजाए समझा-बुझाकर हालात को कंट्रोल करना है। कानपुर के पुलिस कमिश्नर विजय मीणा ने इंडिया टीवी के रिपोर्टर विशाल प्रताप सिंह को बताया कि सभी गिरफ्तारियां सबूतों के आधार पर ही हो रही हैं, और पुलिस कानून के हिसाब से काम कर रही है।

पुलिस बिना किसी भेदभाव के काम कर रही है। रोमा ग्राफिक प्रिंटिंग प्रेस के मालिक शंकर प्रसाद, जिन्हें दुकानों को बंद करने का आह्वान करने वाले पोस्टर छापने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है, एक हिंदू है। हयात जफर हाशमी ने बंद बुलाया था और उसके पोस्टर शंकर प्रसाद के प्रिंटिंग प्रेस में छपे थे। शंकर प्रसाद ने इसकी जानकारी पुलिस को नहीं दी थी, इसलिए अब हवालात की हवा खा रहे हैं। शंकर प्रसाद का कहना है कि वह निर्दोष हैं, उन्होंने केवल 10 पोस्टर छापे, और सिर्फ 200 रुपये का काम किया। उन्होंने कहा कि उनको इन पोस्टरों में बंद के आह्वान के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

काजी ने अपना भड़काऊ बयान इसलिए दिया होगा क्योंकि उन्हें डर था कि दंगाइयों की प्रॉपर्टी पर बुलडोजर चल सकता है। यूपी पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक (ADG) प्रशांत कुमार ने बताया कि स्थानीय प्रशासन दंगाइयों से जुर्माना वसूलने की तैयारी कर रहा है और उनकी अवैध संपत्तियों की पहचान की जा रही है। उन्होंने कहा कि अब तक उन आरोपियों की 147 अवैध संपत्तियों की पहचान की जा चुकी है और उनपर कानून का हथौड़ा चलेगा। उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री और बीजेपी के नेता सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि जो दंगा करेगा, उसकी संपत्ति पर बुलडोजर चलेगा। उन्होंने कहा कि शहर काजी को अमन-चैन की बात करनी चाहिए, पुलिस को धमकी देने की नहीं।

योगी का ट्रैक रिकॉर्ड बिल्कुल साफ है। उनकी कार्यशैली सबको पता है। बेगुनाह को छेड़ो मत, गुनहगार को छोड़ो मत, पुलिस को उनकी तरफ से यही निर्देश हैं। लखनऊ में CAA के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के दौरान इसी तरह का हंगामा हुआ था, पत्थरबाजी और आगजनी हुई थी। उसके बाद योगी सरकार ने आरोपियों के पोस्टर छापे, गिरफ्तारियां हुईं, संपत्ति जब्त हुई और अवैध संपत्तियों पर बुलडोजर चले। तबसे यह ट्रेंड बन गया है।

अब तमाम गैगस्टर्स के खिलाफ, दंगा करने वालों के खिलाफ इस तरह का सख्त ऐक्शन होता है। यही वजह है कि यूपी की कानून व्यवस्था में सुधार हुआ है। अगर पुलिस मुस्तैद है, अपराधियों को पकड़ रही है, दंगा फसाद करने वालों पर लगाम लगा रही है, तो यह पुलिस का काम है। अगर कानून वयवस्था अच्छी होगी, तो अपराधियों के हौसले पस्त होंगे। इससे हिंदू हों या मुसलमान, सबकी जिदंगी में अमन-चैन होगा, सब सुरक्षित रहेंगे।

इस तरह के मामलों को मजहबी रंग देना ठीक नहीं है। कम से कम मौलानाओं को, धर्मगुरुओं को इस तरह की बातें नहीं करनी चाहिए, जैसी कानपुर के शहर काजी ने कहीं। इस तरह के बयानों से असामाजिक तत्वों को ताकत मिलती है, उनके हौसले बढ़ते हैं। इस प्रवृत्ति पर खुद मजहब से जुड़े लोगों को अंकुश लगाना चाहिए।

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Clerics like Kanpur Qazi must refrain from making provocative remarks

rajat-sir Some Islamic clerics gave a clear warning to the administration and police on Tuesday warning of consequences if action is taken against stone pelters in Kanpur. The City Qazi of Kanpur Abdul Quddus warned that if actions continue against Muslims, then they will be forced to come out on streets for a ‘do-or-die’ battle (sar par kafan bandh kar nikalengey).

Before I go into his detailed statement, let me point out that he is not an ordinary Muslim or a family member of a stone pelter. Their anger could be justified or, at best, ignored, but if the City Qazi, who looks after the family matters of Muslims, makes such a provocative remark, then it is surely cause for concern.

The Qazi had objections on three points: One, he alleged that innocent Muslim youths are being arrested, Two, only Muslim youths are being sent to jail and the Kanpur police is taking one-sided action, and Three: if the administration uses bulldozer to raze the properties of rioters, then Muslims will come out on streets to fight do-or-die battles. The Qazi also alleged that 95 per cent action by police is being taken against Muslims, and only a minimal two or three per cent actions are being taken against Hindus. “Muslims will not sit and watch silently”, he warned.

On June 3, when the President and Prime Minister along with UP Governor and chief minister were visiting the President’s village near Kanpur to take part in some events, some pro-jihadi elements indulged in violence in Kanpur city soon after Friday prayers. These jihadi elements had secret meetings a few days ago, and they had given a call for closing down of shops, to condemn the remarks made by a BJP spokesperson against Prophet Mohammad.

Hayat Zafar Hashmi, said to be the mastermind behind this violence, has nine criminal cases against him under National Security Act and Gangsters Act. He runs a YouTube channel which peddles hate speeches and toxic content. The rioters had collected huge piles of stones and bricks, which were used during the violence.

CCTV videos clearly show there was planning behind this violence and the stone pelters were being instigated with provocative and vitriolic hate slogans. The violence soon spread to areas under five police stations, Kotwali, Collector Ganj, Becon Ganj, Chaman Ganj and Bajariya. The stone pelters targeted shops, vehicles, police and homes. Till now, more than 50 arrests have been made and the local police has pasted posters of 40 accused persons throughout the city. Main accused Zafar Hayat Hashmi, Javed Ahmed Khan, Mohammad Sufiyan, and Mohammed Sahil have been arrested. Several persons named in the police poster have surrendered and the local administration has said, it will collect fines from the rioters.

Our reporter Pawan Nara spoke to City Qazi Abdul Quddus and asked him why he made such an inciting remark. The Qazi said, he made this statement after thinking over all aspects. He said, “if government demolishes our homes by using bulldozers and arrests innocent people, there is no other way except to come out on the streets wearing ‘kafan’ (shroud). If police starts committing excesses, then we will have to voice our anger.”

By alleging that only Muslims are being targeted by police, the Qazi is himself becoming prosecutor and judge. The violence that took place in Kanpur on June 3 was not an isolated incident. The President and Prime Minister were in the city, and a conspiracy was hatched to foment violence. More than 16,000 toxic messages were forwarded to members of a particular community from six cell phones. There was a plot to spread communal fire across the city. But the Qazi says, it was only a stoning incident and not a major act of communal violence.

Kanpur Police is rounding up people based on their faces appearing in CCTV videos. Still images of accused have been taken out from these videos and the posters have been pasted by police across the city. Witnesses are being traced and accused persons are being rounded up.

To allege that only Muslims are being persecuted is false. Does the Qazi want the police to round up Hindus on false charges, because they did not take part in stoning?

I have spoken to top UP police officials and most of them said that the police is trying its best to ensure that innocents are not arrested. Kanpur police says, all those arrested till now were seen stoning in CCTV videos. When India TV reporter Pawan Nara pointed this out to the Qazi, he said, “they are after all young people, they may commit mistakes. Their acts should be pardoned.”

Stone pelters indulging in arson and violence cannot be pardoned. They were part of a conspiracy to foment communal riot. According to police, some of the rioters bought petrol from local petrol pumps to make ‘bombs’. How can the City Qazi say that these youths did not know what they were doing?

The Qazi may be saying this because Kanpur police took timely action and prevented a major communal conflagration. No one was killed or injured. But it cannot be ignored that the main conspiracy was to foment communal riots. Had there been communal violence, the Qazi would have blamed the police for not taking timely action.

The Qazi may claim that he is trying to persuade Muslims to calm down, but in reality, his remarks about ‘sar par kafan’ are nothing but provocative. In Bajariya locality, when local police went to a home to pick up an accused, there was strong protest from local Muslim residents.

Joint Police Commissioner of Kanpur Anand Prakash Tiwari said, police officers working in the field have been directed to exercise maximum restraint and not let the situation go out of control. The Police Commissioner of Kanpur Vijay Meena told India TV reporter Vishal Pratap Singh that all the arrests are being made only on the basis of evidence, and the police is following legal methods.

Police is acting impartially. The owner of Roma Graphic Printing Press, Shankar Prasad, who has been arrested for printing pamphlets calling for closure of shops, is a Hindu. The bandh call was given by Hayat Zafar Hashmi, and his bandh call posters were printed in Shankar Prasad’s printing press. The owner had not informed the police in advance, and he has been arrested because of this. Shankar Prasad says, he is innocent, he had taken Rs 200 to print only ten posters, and he had no idea about a bandh call being given on these posters.

The Qazi could have made his provocative remark because he was fearing that bulldozers may be used to demolish properties of rioters. Additional Director General of UP Police Prashant Kumar has said, the local administration is making preparations for collecting fines from rioters, and illegal properties of rioters are being identified. Till now, 147 illegal properties of those accused have been identified, and legal action will be taken, he said.

Former UP minister and BJP leader Siddharth Nath Singh said, properties of rioters should be demolished by using bulldozers. He said the City Qazi should speak about ensuring peace and not give threats to the police.

UP chief minister Yogi Adityanath’s track record is quite clear. People know his style of working. His directions to police is: do not harass innocent people, but at the same time, do not spare the guilty. Similar stoning and arson incidents had taken place during anti-CAA protests in Lucknow. Yogi’s government published posters of those guilty, arrests were made, properties seized and illegal properties were demolished with the help of bulldozers. Since then, it has become a trend.

Similar punitive action is taken against criminal mafia gangsters and rioters. This has brought about a sea change in the law and order situation in UP. Police is vigilant, criminals are being caught and rioters are being booked. If law is enforced with a strong hand, the criminals will lose their confidence. Both Hindus and Muslims can live a life of peace, and everybody will be safe.

To give a religious colour to such issues is not justified. At least religious figures like the City Qazi of Kanpur should exercise restraint before making such objectionable remark. Such remarks incite anti-social elements. This tendency should be curbed, by religious figures themselves.

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भारतीय मुसलमानों को लेकर घड़ियाली आंसू क्यों बहा रहा है पाकिस्तान?

AKBभारत ने सोमवार को दुनिया के सामने उसे बदनाम करने की चाल चलने के लिए पाकिस्तान को आड़े हाथों लिया। पाकिस्तान के नेताओं से लेकर फौजी हुक्मरान ने भारत को बदनाम करने की साजिश की थी। राष्ट्रपति आरिफ अल्वी, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान, विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी और पाकिस्तान की फौज ने ट्वीट और बयान जारी कर आरोप लगाया कि भारत में मुसलमानों को सताया जा रहा है।

ज़्यादातर पाकिस्तानी नेताओं में इस बात की होड़ मची हुई थी कि भारत के सत्तारुढ़ दल बीजेपी के 2 प्रवक्ताओं के बयान के बहाने कौन कितने ज्यादा तल्ख शब्दों में भारत पर निशाना साध सकता है। बीजेपी ने पहले ही पैगंबर मोहम्मद के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी करने के लिए अपनी प्रवक्ता नुपूर शर्मा को सस्पेंड कर दिया, और एक अन्य प्रवक्ता नवीन कुमार जिंदल को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। नुपूर शर्मा ने बाद में बिना शर्त अपना बयान वापस ले लिया और माफी भी मांग ली।

खाड़ी के देश, जिन्होंने बीजेपी प्रवक्ता के बयान पर नाराज़गी ज़ाहिर की थी, भारत सरकार की प्रतिक्रिया से संतुष्ट थे, लेकिन पाकिस्तान ने इसी मौके का फायदा उठाते हुए भारत में मुसलमानों के उत्पीड़न के बारे में झूठे आरोप लगा दिए । पाकिस्तान के राष्ट्रपति डॉ आरिफ अल्वी ने ट्वीट किया, ‘इन अपमानजनक और विवादित बयानों ने दुनियाभर के सभी मुसलमानों की भावनाओं को आहत किया है। मोदी की नफरत भरी हिंदुत्व की फिलॉसफी के तहत भारत अपने यहां के सभी अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता को रौंद रहा है और उनका उत्पीड़न कर रहा है।’

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने ट्वीट किया, ‘मैं अपने प्यारे नबी के बारे में भारत के बीजेपी नेताओं के आहत करने वाले बयानों की कड़े शब्दों में निंदा करता हूं। मैंने यह बार-बार कहा है कि भारत की मौजूदा सरकार धार्मिक स्वतंत्रता और विशेष रूप से मुसलमानों के अधिकारों को कुचल रही है। दुनिया को इस पर ध्यान देना चाहिए और भारत को कड़ी फटकार लगानी चाहिए। हम पैगंबर से सबसे ज्यादा मोहब्बत करते हैं। सभी मुसलमान अपने नबी की मोहब्बत और इज्जत के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर सकते हैं।’

पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने ट्वीट किया, ‘हम अपने प्यारे पैगंबर मोहम्मद के बारे में बीजेपी प्रवक्ताओं की अपमानजनक टिप्पणी की कड़ी निंदा करते हैं। दुनियाभर के करोड़ों मुसलमानों के जज़्बात को ठेस पहुंचाने को स्वीकार नहीं किया जा सकता। अब वक्त आ गया है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत में ‘हिंदुत्व’ से प्रेरित इस्लामोफोबिया को रोके।’

पाकिस्तानी सेना भी इस मामले में पीछे नहीं रही। सेना के प्रवक्ता ने ट्वीट किया, ‘पाकिस्तान की फौज भारतीय अधिकारियों के ईशनिंदा वाले बयानों की कड़ी निंदा करती है। इस अपमानजनक हरकत से गहरा आघात पहुंचा है और यह साफतौर पर भारत में मुसलमानों और अन्य धर्मों के खिलाफ अत्यधिक नफरत की ओर इशारा करती है।’

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने ट्वीट किया: ‘हमारे प्यारे नबी पर यह हमला मुसलमानों के लिए सबसे दर्दनाक चीज है, जो कि उनके प्रति बहुत प्रेम और श्रद्धा रखते हैं। OIC को चाहिए कि वह मोदी के भारत के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे क्योंकि दुख की बात है कि अब तक भारत को अपनी इस्लाम-विरोधी नीतियों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है।’

पाकिस्तानी नेताओं के इन शातिराना ट्वीट्स का भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने करारा जवाब दिया। उन्होंने कहा, ‘पूरी दुनिया इस बातकी गवाह रही है कि पाकिस्तान में हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, अहमदिया सहित अन्य अल्पसंख्यक समुदायों का सुनियोजित तरीके से उत्पीड़न हो रहा है। भारत सरकार सभी धर्मों के प्रति सर्वोच्च सम्मान का भाव रखती है, जबकि पाकिस्तान में कट्टरपंथियों की न सिर्फ सराहना की जाती है बल्कि उनके सम्मान में स्मारक बनाए जाते हैं। बजाय इसके कि पाकिस्तान डर पैदा करने वाले प्रॉपेगैंडा में शामिल हो और भारत में सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश करे, ये बेहतर होगा कि वह अपने यहां अल्पसंख्यकों की सुरक्षा एवं कुशलता पर ज़्यादा ध्यान दे।’

यह बात सही है कि नूपुर शर्मा के बयान से पाकिस्तान को एक बहाना मिल गया। नूपुर को हज़रत मोहम्मद साहब के बारे में इस तरह की बात नहीं कहनी चाहिए थी। लेकिन यह भी सही है कि बीजेपी ने तत्काल कार्रवाई की और नूपुर ने अपना बयान वापस ले लिया, खेद जताया। इसके बावजूद पाकिस्तान पिछले दो दिनों से मुस्लिम देशों में भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने में लगा है। पाकिस्तान को कभी-कभी ही ऐसा मौका मिलता है, इसलिए शहबाज शरीफ से लेकर इमरान खान तक सब मैदान में उतर गए।

हमारे विदेश मंत्रालय की यह बात सही है कि पाकिस्तान को अपने गिरेबान में झाकंकर देखना चाहिए। अगर मैं यह गिनाने लगूंगा कि पाकिस्तान में अकलियतों पर किस कदर जुर्म होते हैं, यह बताना शुरू करूंगा कि हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों और अहमदियों का हाल कितना बुरा है, तो घंटो लग जाएंगे।

वैसे भी पाकिस्तान के डबल स्टैंडर्ड को सारी दुनिया जानती है। अपने पड़ोस में चीन में उइगर मुसलमानों के साथ कैसा वहशियाना सलूक होता है, यह पाकिस्तान को दिखाई नहीं देता, या फिर वह सब कुछ देखकर भी अनजान बना रहता है। पाकिस्तान की परेशानी इस बात को लेकर भी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता बहुत से मुस्लिम मुल्कों में भी बढ़ी है, और हाल के वर्षों में मध्य पूर्व के देशों के साथ भारत के रिश्ते काफी बेहतर हुए हैं।

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Why Pakistan is shedding crocodile tears about Indian Muslims

rajat-sir India on Monday lashed out at Pakistan for trying to defame it before the world community. The entire Pakistani civilian and military leadership, right from President Arif Alvi, Prime Minister Shehbaz Sharif, former PM Imran Khan, Foreign Minister Bilawal Bhutto Zardari and the Pakistani Army issued tweets and statements alleging that Muslims in India are being persecuted.

Most of the Pakistani leaders vied with one another in condemning Indian government for the remarks made about Prophet Mohammed by two spokespersons of India’s ruling party. BJP has already issued a strong statement and suspended its spokesperson Nupur Sharma and expelled another spokesperson Navin Kumar Jindal for making objectionable remarks about the Prophet. Nupur Sharma has, since, unconditionally withdrawn her remarks and offered apology for the same.

While the Gulf countries who had raised objections to the remarks made by the BJP spokesperson were satisfied with the response of the Indian government, Pakistan tried to queer the pitch by raising false allegations about persecution of Muslims in India. Pakistan President Dr Arif Alvi tweeted, “the derogatory and controversial remarks have hurt the feelings of all Muslims around the world. India under Modi’s hateful Hindutva philosophy is trampling religious freedoms of all its minorities and persecuting them without any impunity.”

Pakistan Prime Minister Shehbaz Sharif was not behind. He tweeted: “I condemn in strongest possible words hurtful comments of India’s BJP leader about our beloved Prophet (PBUH). Have said it repeatedly India under Modi is trampling religious freedoms and persecuting Muslims. World should take note & severely reprimand India. Our love for the Holy Prophet (PBUH) is supreme. All Muslims can sacrifice their life for the Love & Respect of their Holy Prophet.”

Pakistan Foreign Minister Bilawal Bhutto Zardari tweeted: “We strongly condemn the completely repugnant and derogatory remarks by BJP officials about our beloved Prohpet Muhammad PBUH. Totally unacceptable; hurting sentiments of billions of Muslims around the world. Time for international community to stop the ‘Hindutva’ inspired Islamophobia in India.”

Pakistani Army was also not behind. The army spokesperson tweeted: “Pakistan Armed Forces strongly condemn blasphemous remarks by Indian officials. The outrageous act is deeply hurtful and clearly indicates extreme level of hate against Muslims and other religions in India.”

Former Pakistan PM Imran Khan tweeted: “This attack on our Holy Prophet PBUH is the most painful thing anyone can do to Muslims who feel an intense love and reverence for our Holy Prophet PBUH. OIC must take strong action against Modi’s India because sadly so far India has been allowed to get away with its Islamophobic policies.”

In response to these vicious tweets from Pakistani leaders, the spokesman of India’s Ministry of External Affairs gave a befitting reply. He said, “the world has been witness to the systemic persecution of minorities including Hindus, Sikhs, Christians and Ahmadiyas by Pakistan. The government of India accords the highest respect to all religions. This is quite unlike Pakistan where fanatics are eulogized and monuments built in their honour…Pakistan must focus more on the safety and security of its minority communities instead of engaging in alarmist propaganda and attempting to foment communal disharmony in India.”

There is no gainsaying the fact that Pakistan got an easy handle because of Nupur Sharma’s remarks about the Prophet. Nupur should not have made such objectionable remarks against Prophet Mohammad. But is also a fact that the BJP took immediate action and Nupur had to withdraw her remarks and apologize. For the last two days, Pakistan has been trying to stoke anti-India sentiments in Muslim countries. Pakistan seldom gets such a chance, and this is the reason, why all its leaders from Shehbaz Sharif to Imran Khan came out with anti-India remarks.

Our foreign ministry spokesperson is right when he said that Pakistan should look at its own backyard. There are innumerable examples of Hindus, Sikhs, Christians and Ahmadiyas being persecuted in Pakistan only because they are minorities. The world knows about Pakistan’s double standards. Pakistan has been turning a blind eye towards the persecution of Uyghur Muslims by Chinese authorities. Pakistan’s problem is that Prime Minister Narendra Modi has gained popularity in the Gulf countries, and India’s relations with West Asian countries have improved in recent years.

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