उद्धव ठाकरे अपनी राजनीतिक पराजय के लिए खुद ज़िम्मेदार हैं
बुधवार की रात को महाराष्ट्र में नौ दिन से चल रहे सियासी सस्पेंस पर पटाक्षेप हो गया जब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया । गुरुवार को एक नई गठबंधन सरकार बनेगी और बीजेपी ने शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे को सत्ता की बागडोर सौंपी है । एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। अन्य मंत्रियों का शपथ ग्रहण बाद में होगा ।
सुप्रीम कोर्ट में अपनी हार के कुछ ही मिनट बाद उद्धव ठाकरे ने रात को सोशल मीडिया के जरिए अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया । सुप्रीम कोर्ट की वैकेशन बेंच ने चार घंटे तक चली सुनवाई के बाद विधानसभा में शक्ति परीक्षण को लेकर दिए गए राज्यपाल के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया । अदालत ने कहा , ‘हम राज्यपाल के कल सुबह 11 बजे शक्ति परीक्षण के निर्देश पर रोक नहीं लगा रहे हैं, हालांकि फ्लोर टेस्ट का नतीजा (शिवसेना के चीफ व्हिप सुनील प्रभु की) याचिका के अंतिम परिणाम पर निर्भर करेगा ।’
इसके कुछ ही मिनट बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे फेसबुक लाइव पर आए और 15 मिनट के संबोधन में अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया। इस्तीफे के ऐलान से पहले उन्होंने कहा, ‘मैं संख्या बल के खेल में शामिल नहीं होना चाहता हूं। जिन लोगों को सेना प्रमुख (बालासाहेब ठाकरे) लेकर आए थे, वे इस बात की खुशी मना रहे हैं कि उन्होंने उनके बेटे को नीचे गिरा दिया। यह मेरी गलती है कि मैंने उन पर भरोसा किया । मैं नहीं चाहता कि मेरे शिवसैनिकों का खून सड़कों पर बहाया जाए । इसलिए मैं मुख्यमंत्री पद और विधान परिषद की सदस्यता से भी इस्तीफा दे रहा हूं ।’
उद्धव ठाकरे ने पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील की कि जब बागी विधायक महाराष्ट्र लौटें तो उनके खिलाफ प्रदर्शन न करें। उन्होंने कहा, ‘जिन लोगों को खाई में धकेले जाने की शंका थी, वे ही आखिरी वक्त तक मेरे साथ खड़े रहे, जबकि मेरे अपने मेरा साथ छोड़कर चले गए । मैं कांग्रेस और NCP के नेताओं को उनके सहयोग और समर्थन के लिए धन्यवाद देता हूं। कल लोकतंत्र के इतिहास का एक नया अध्याय लिखा जाएगा। उन्हें सरकार बनाने और शपथ लेने दें । मैं अपने शिवसैनिकों से अपील करता हूं कि वे उनके रास्ते में रुकावट न बनें ।’
उद्धव ठाकरे को पता था कि फ्लोर टेस्ट में उनकी हार निश्चित है क्योंकि उनके पास बहुमत साबित करने के लिए आवश्यक संख्या बल नहीं था। बुधवार को हुई कैबिनेट की अंतिम बैठक में उनके विश्वासपात्रों ने उन्हें दो विकल्प सुझाए थे। पहला, वह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नक्शेकदम पर चलकर विधानसभा में जाएं, विश्वास मत पर बहस में हिस्सा लें और फिर वोटिंग से पहले अपने इस्तीफे का ऐलान कर दें।
दूसरा विकल्प यह था कि वह फ्लोर टेस्ट का सामना करने से पहले ही इस्तीफा दे दें क्योंकि बहस के दौरान शिवसेना के बागी विधायक उद्धव और उनके बेटे आदित्य ठाकरे के बारे में कड़वी बातें बोलते, और बीजेपी के विधायक उस पर तालियां बजाते। इसलिए चर्चा से पहले ही इस्तीफा देकर वह इस फजीहत से बचें । उद्धव ने दूसरा विकल्प चुना। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश आने का इंतजार किया और फिर सोशल मीडिया पर अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया ।
उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा तो दे दिया, लेकिन उनके सामने अब इससे भी बड़ी चुनौती है, उन्हें शिवसेना पार्टी को बिखरने से बचाना की । महाराष्ट्र के ज्यादातर जिलों में शिवसेना के अधिकांश दिग्गजों ने उद्धव का साथ छोड़ दिया है और व्यावहारिक तौर पर देखें तो उनकी पार्टी सिर्फ मुंबई का संगठन बनकर रह गई है।
नौ दिनों तक चली इस खींचतान के दौरान उद्धव ने पहले तो बागी विधायकों को धमकाया, फिर घरवापसी के लिए उनसे मिन्नतें की और अंत में अपने इस्तीफे का ऐलान करते हुए कहा, ‘मेरे अपनों ने ही मेरी पीठ में छुरा घोंपा है।’ ये भावनात्मक शब्द हैं, लेकिन उद्धव इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि शिवसेना के 56 में से बमुश्किल 16 विधायक अब उनके साथ हैं। शिवसेना के 40 बागी विधायक और 10 निर्दलीय विधायक अब बीजेपी का समर्थन कर रहे हैं। ऐसे में बीजेपी के पास सदन में अब 166 विधायकों का समर्थन है, जबकि बहुमत के लिए सिर्फ 144 का आंकड़ा चाहिए।
फेसबुक लाइव पर इस्तीफे का ऐलान करते वक्त उद्धव के चेहरे पर निराशा थी। वहीं दूसरी तरफ, जैसे ही इस्तीफे का ऐलान हुआ, बीजेपी के खेमे में जश्न हुआ और पार्टी के नेता देवेंद्र फडणवीस का मुंह मीठा कराने लगे। गुवाहाटी से लौटकर गोवा आए शिवसेना के बागी खेमे में भी खुशी का माहौल था।
उद्धव ठाकरे को अब सोचना पड़ेगा कि आज यह नौबत क्यों आई कि उनके हाथ से सरकार फिसल गई। इस्तीफे से पहले अपने संबोधन में उद्धव ने कहा कि जिन बागियों को मैंने टिकट दिया, जिन्हें मैंने चुनाव जिताया, उन्होंने मुझे धोखा दिया।
ऐसे में सवाल पूछा जाएगा कि बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले उद्धव ठाकरे ने तीन साल पहले चुनाव के तुरंत बाद गठबंधन क्यों छोड़ दिया? उद्धव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा था, लेकिन गठबंधन के सत्ता में आने के बाद उन्होंने इससे किनारा कर लिया। क्या यह विश्वासघात नहीं था? क्या उन्होंने ऐसा सिर्फ मुख्यमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए किया था? उद्धव ठाकरे की NCP सुप्रीमो शरद पवार या कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से कोई पुरानी दोस्ती नहीं थी, फिर उन्होंने उनसे हाथ क्यों मिलाया? सिर्फ इसलिए कि वह मुख्यमंत्री बनना चाहते थे?
मुख्यमंत्री बनने के लिए उद्धव ने अपने उन भरोसेमंद साथियों को भी हाशिए पर छोड़ दिया जिनके साथ उनके कई दशकों से संबंध थे। इस चक्कर में वह ये बात भी भूल गए कि शिवसेना के विधायकों ने एनसीपी और कांग्रेस उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़कर जीत दर्ज की थी। हैरानी तो इस बात पर होनी चाहिए कि शिवसेना के विधायकों को अपने पार्टी अध्यक्ष के खिलाफ बगावत करने में ढाई साल क्यों लग गए।
दो हफ्ते पहले तक उद्धव ठाकरे के पास अपने नाराज विधायकों को मनाने का मौका था। वह उनसे कह सकते थे कि मैं ढाई साल मुख्यमंत्री रह चुका, अब बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाते हैं। ऐसा करने पर उद्धव की इज्जत भी रह जाती और 56 साल पुरानी उनकी पार्टी भी बच जाती, लेकिन उन्होंने वह सुनहरा मौका गंवा दिया। हिंदी में एक कहावत है: ‘दुविधा में दोऊ गए, माया मिली ना राम।’
How Uddhav Thackeray was responsible for his own downfall
The curtain has, at last, fallen on the nine-day-long suspense in Maharashtra politics, with Chief Minister Uddhav Thackeray handing over his resignation to the Governor late on Wednesday night. A new coalition government will be sworn in on Thursday evening with rebel Shiv Sena leader Eknath Shinde as chief minister. The swearing-in of other ministers of the new government will take place later.
On Wednesday night, Uddhav Thackeray announced his resignation through social media, minutes after the Supreme Court vacation bench, after a marathon four-hour-long hearing, refused to stay the assembly floor test ordered by the Governor. The bench said, “we are not inclined to stay the floor test ordered by the governor for tomorrow at 11 am…However the outcome of the floor test will be subject to the final decision in the petition (by SS chief whip Sunil Prabhu)”.
Minutes later, Chief Minister Uddhav Thackeray appeared on Facebook Live and in a 15-minute address announced his resignation, before saying, “I don’t want to play games. If those people who were brought by Sena chief want to rejoice in the fact that they pulled down his son, it is my mistake that I put my faith in them. I don’t want the blood of my Shiv Sainiks to be spilled on the streets. I am therefore stepping down from the chief minister’s post, as well as from the membership of Legislative Council”.
Uddhav Thackeray appealed to his party workers not to heckle the rebel MLAs when they return to Maharashtra. He said, “All those who were my own backstabbed me and those who were thought to betray me stayed with me. I thank the Congress and NCP leaders for their cooperation and support….A new chapter to the history of democracy will be written tomorrow. Let them dance their way to form the government and take oath. I appeal to my Shiv Sainiks not to come in their way.”
Uddhav Thackeray knew that his defeat in the floor test was a foregone conclusion as he lacked the numbers required to prove his majority. At the last cabinet meeting on Wednesday, he was given two options by his confidantes. One, he could follow the footsteps of former PM Atal Bihari Vajpayee, go to the assembly, take part in the debate and then announce his resignation before voting.
Two, he was told to resign before going to face the floor test, because rebel Shiv Sena MLAs could make caustic remarks during the debate against him and his son, Aditya Thackeray, and BJP legislators would thump their desks. He could resign before facing the debate to avoid insults in public. Uddhav chose the second option, waited for the Supreme Court order to come, and then went live on social media to announce his resignation.
Uddhav Thackeray may have resigned as CM, but a bigger challenge awaits him. He has to keep the Shiv Sena party from disintegrating. Most of the party stalwarts from the districts have abandoned his ship, and his party has practically become a Mumbai outfit only.
During the nine-day-long tussle, Uddhav first threatened the rebels, then cajoled them by asking them to return, and, in the end, while announcing his resignation, he said, “my own people have stabbed me in the back”. These are emotional words, but Uddhav cannot deny the fact that hardly 16 out of 56 Shiv Sena MLAs are now left with him. Forty rebel Shiv Sena MLAs and 10 independent legislators are now supporting the BJP, which now commands the support of 166 MLAs in the House, though the magic figure is only 144.
While watching Uddhav announcing his resignation on Facebook Live, I noted that he was looking completely disheartened and sad. On the other hand, soon after the resignation was announced, there was jubilation in the BJP camp and party leaders offered sweets to Devendra Fadnavis. There was elation in the rebel Shiv Sena camp in Goa too, where the MLAs had returned from Guwahati.
Uddhav Thackeray must introspect why this sorry situation came about, and why he lost control of his government. In his resignation speech, Uddhav said, I gave tickets to the rebels, and helped them win election, and yet they betrayed me.
Questions will then be asked, why Uddhav Thackeray who had contested the elections in alliance with BJP, ditched the alliance soon after the elections three years ago? Uddhav had fought the elections in the name of Prime Minister Narendra Modi, but after the alliance swept to power, he ditched the alliance. Was it not betrayal? Was it only because of his personal ambition to occupy the post of chief minister? Uddhav Thackeray had no personal friendship with either NCP chief Sharad Pawar or Congress president Sonia Gandhi, then why did he joined hands with their parties? Only to become the chief minister?
In order to become the CM, Uddhav ditched his own trusted colleagues with whom he had relationships spanning several decades. By doing this, he forgot the fact that his Shiv Sena legislators had won the elections by contesting against NCP and Congress candidates. It is really a matter of surprise, why it took two and a half years for the Shiv Sena legislators to rebel against their party chief.
Two weeks ago, Uddhav had the opportunity to persuade and convince his rebel MLAs. He could have told them that now that I have been the CM for two and a half years, we should now form a coalition government with the BJP. The rebels could have agreed to his offer. Uddhav could have saved his prestige and his 56-year-old Shiv Sena. But he lost that golden opportunity. In Hindi, there is a proverb: “Duvidha Mein Dou Gaye, Maya Mili Na Ram” (A bird in hand is worth two in the bush).
उदयपुर के बर्बर हत्याकांड से सीधे तौर पर पाकिस्तान के तार जुड़े हुए हैं
उदयपुर में ग्राहक बनकर आए दो ‘जिहादी’ हत्यारों ने एक दर्जी का सिर कलम कर दिया। अब इस क्रूर और पाशविक घटना के सूत्र सीमापार से जुड़ गए हैं। राजस्थान पुलिस के महानिदेशक एमएल लाठेर ने बुधवार को कहा कि हत्यारों में से एक, गौस मोहम्मद 45 दिन तक पाकिस्तान में रह चुका था । उन्होंने कहा कि वह 2013 में 30 अन्य भारतीयों के साथ कराची गया था। वह 2013 और 2019 में सऊदी अरब और 2017-2018 में नेपाल भी जा चुका था।
NIA और पुलिस अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि इन यात्राओं के दौरान उसकी मुलाकात किन लोगों से हुई थी। पूछताछ के दौरान गौस मोहम्मद ने पुलिस को बताया कि दावत-ए-इस्लाम पाकिस्तान के कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन तहरीक-ए-लब्बैक से जुड़ा है। उसने बताया कि वह सलमान भाई और अबू इब्राहिम के लगातार संपर्क में था। ये दोनों कराची में दावत-ए-इस्लाम के हैंडलर्स हैं।
डीजीपी ने कहा, गौस मोहम्मद उदयपुर के रहने वाले रियासत हुसैन और अब्दुल रजाक के जरिए दावत-ए-इस्लाम में शामिल हुआ था। उन्होंने कहा, गौस मोहम्मद ने अपने 45 दिनों के प्रवास के दौरान कराची में आतंकी ट्रेनिंग ली थी। राजस्थान पुलिस ने तीन संदिग्धों को हिरासत में लिया है और केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने जांच अपने हाथ में ले ली है। दोनों हत्यारों, गौस मोहम्मद और मोहम्मद रियाज अख्तरी को पुलिस ने हत्या के कुछ ही घंटों के अन्दर उदयपुर से 61 किलोमीटर दूर राजसमंद से गिरफ्तार कर लिया था। पुलिस ने कहा कि वे अजमेर शरीफ में जियारत के लिए जा रहे थे।
डीजीपी ने स्वीकार किया कि कन्हैयालाल के परिवार ने पुलिस से यह शिकायत की थी कि नूपुर शर्मा का समर्थन करने पर उसे ‘जिहादियों’ की तरफ से जान से मारने की धमकी मिल रही थी, लेकिन पुलिस ने उसकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया। इस सिलसिले में एक असिस्टैंट सब-इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर दिया गया है।
यह जघन्य हत्याकांड मंगलवार को उस समय हुआ जब दोनों हत्यारे कन्हैयालाल की टेलरिंग शॉप में घुसे और उनसे कपड़े सिलने के लिए नाप लेने को कहा। जैसे ही कन्हैयालाल ने नाप लेना शुरू किया, हत्यारों में से एक ने चाकू से हमला कर दिया, जबकि दूसरे ने इस खौफनाक वारदात का वीडियो बनाया। कन्हैयालाल के शरीर पर 26 जगहों पर ज़ख्म के निशान थे, जिनमें से ज्यादातर उनके गले में थे। इसके बाद दोनों हत्यारों ने इस वीभत्स वीडियो को सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया जिसमें दोनों खून से सने छुरे पकड़े हुए मुस्कुरा रहे थे।
कन्हैयालाल ने बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा का समर्थन किया था, जिन्होंने पैगंबर मोहम्मद के बारे में आपत्तिजनक बयान दिया था। इस वीभत्स घटना ने पूरी दुनिया के सामने भारत का सिर शर्म से झुका दिया। यह कहीं से भी इंसानियत की हत्या से कम नहीं है।
वीडियो में इन दरिंदों ने यहां तक कहा कि उनका छुरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गर्दन तक भी पहुंचेगा। यह पूरे देश और इसकी कानून व्यवस्था को चुनौती है। यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या का मामला नहीं है, बल्कि कानून की धज्जियां उड़ाने की वारदात है। उन्होंने इस हत्या की प्लानिंग पहले ही कर ली थी और इस पूरी घटना का वीडियो बनाने का फैसला किया था। वीडियो में, हत्यारों में से एक, मोहम्मद रियाज अख्तरी यह कहते हुए दिखाई दे रहा है कि ‘हमने पैगंबर की बेअदबी के लिए इसका सिर कलम किया है। यह चाकू एक दिन नरेंद्र मोदी की गर्दन तक भी पहुंचेगा।’
इन दरिंदों का वीडियो देखने के बाद मेरे मन में यही ख्याल आया कि कोई मजहब के नाम पर, खुदा के नाम पर, नबी के नाम पर इंसानियत का कत्ल कैसे कर सकता है? ऐसे लोगों को समाज में जिंदा रहने का हक ही नहीं है।
हत्या का वीडियो सामने आने के बाद राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत के बयान पर मुझे हैरानी और थोड़ी निराशा हुई। गहलोत ने पहले तो इस नृशंस हत्या की निंदा की और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की, लेकिन उसी सांस में उन्होंने इसे सियासी रंग भी दे दिया। गहलोत ने कहा, ‘देश में माहौल पहले से ही खराब है, प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को आगे आना चाहिए और लोगों से सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने की अपील करनी चाहिए।’
सीएम गहलोत ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की और उनसे अनुरोध किया कि वे इस जघन्य हत्याकांड का वीडियो साझा न करें।
उदयपुर में मंगलवार को मौके पर जमा हुए लोगों ने विरोध प्रदर्शन और नारेबाजी की। राज्य प्रशासन ने अफवाहों को रोकने के लिए पूरे राजस्थान में 24 घंटे के लिए मोबाइल इंटरनेट सर्विस को सस्पेंड कर दिया और हिंसा पर काबू पाने के लिए उदयपुर के 7 थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा दिया। धान मंडी, घंटा घर, अंबामाता, सूरजपोल, भोपालपुरा, हाथीपोल और सवीना इलाकों में कर्फ्यू लगा हुआ है। पूरे राजस्थान में धारा 144 लागू कर दी गई है।
जो राक्षस किसी की गर्दन काटने के बाद हंस सकते हैं, निहत्थे बेकसूर इंसान पर चुपके से वार करके अपनी बहादुरी दिखा सकते हैं, वे न तो सच्चे मुसलमान हो सकते हैं और न ही नबी को मानने वाले। इन दरिंदों का कोई दीन-ईमान नहीं है। ये सिर्फ इस्लाम को बदनाम करना चाहते हैं और देश की गंगा-जमुनी तहजीब पर दाग लगाना चाहते हैं। जब कन्हैयालाल को चाकू मारा जा रहा था, तो वह चीखता रहा, चिल्लाता रहा, लेकिन इन दोनों जल्लादों को जरा भी रहम नहीं आया। गौस मोहम्मद घटना का वीडियो बना रहा था जबकि मोहम्मद रियाज कन्हैयालाल को चाकू मार रहा था। घटना को अंजाम देने के बाद दोनों जल्लाद वहां से भाग गए। फिर इन दोनों ने खून से सने चाकुओं के साथ वीडियो बनाया, और बड़ी शान से ऐलान किया कि उन्होंने एक शख्स की हत्या कर दी है।
यह एक निर्मम हत्या है। इसे सोच-समझकर प्लानिंग के साथ, बकायदा शूट करके, खौफ कायम करने के इरादे से और दंगा भड़काने की नीयत से अंजाम दिया गया है। मोहम्मद रियाज ने 11 दिन पहले ही यानी 17 जून को तय कर लिया था कि मौका मिलते ही वह कन्हैयालाल की हत्या कर देगा। उसने उसी वक्त एक वीडियो बनाया, लेकिन पोस्ट नहीं किया क्योंकि उसे पता था कि यदि वह वीडियो जारी कर देगा तो उसका प्लान फेल हो सकता है। वीडियो में रियाज साफ-साफ कह रहा है, ‘यह वीडियो मैं जुमे के दिन 17 तारीख को बना रहा हूं। जिस दिन मैं पैगंबर साहब की शान में गुस्ताखी करने वाले का सिर कलम करूंगा, उस दिन यह वीडियो वायरल होगी। गुस्ताख-ए-नबी की एक ही सजा, सिर तन से जुदा।’
इस मामले में उदयपुर पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। कन्हैयालाल को लगातार फोन पर जान से मारने की धमकी मिल रही थी। वह इतना डर गए थे कि उन्होंने अपनी सिलाई की दुकान 6 दिन तक बंद रखी। उन्होंने आसपास के दुकानदारों को हत्या की धमकी के बारे में बताया, पड़ोसियों से कहा, और पुलिस के पास भी गए। उन्होंने पुलिस को वह फोन नंबर भी दिया जिससे धमकी मिल रही थी, लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया। कन्हैयालाला एक लोवर मिडिल क्लास फैमिली से आते थे, दर्जी थे, आखिर कितने दिन तक दुकान बंद रखते। परिवार पालने के लिए दुकान खोलना जरूरी था, और कातिल दुकान खुलने का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही दुकान खुली, कातिलों ने कन्हैयालाल की जिंदगी खत्म कर दी। स्थानीय लोग और दुकानदार हत्या के तुरंत बाद विरोध प्रदर्शन करने लगे। उनका कहना था कि जब पुलिस को पता था कि कन्हैयालाल को धमकी दी जा रही है, धमकी देने वालों के फोन नंबर मालूम थे, तो ऐक्शन क्यों नहीं लिया।
दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही ईमाम, AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी और सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने इस जघन्य हत्याकांड की निंदा की है और ‘जिहादी’ हत्यारों के लिए कड़ी सजा की मांग की है। यह अच्छी बात है कि मुस्लिम स्कॉलर्स ने भी इस नृशंस हत्या की निंदा की है और इसे इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ बताया है।
मैं जानता हूं कि हिंदू समुदाय के लोग इस जघन्य हत्याकांड को लेकर आक्रोशित होंगे, लेकिन मेरी सबसे हाथ जोड़कर अपील है कि शांति बनाए रखें। इस गुनाह को 2 सिरफिरों ने अंजाम दिया है। इसे न तो किसी मजहब से जोड़कर देखें, न किसी एक समुदाय के सारे लोगों को इसका दोष दें। मुझे यह देखकर दुख हुआ कि अशोक गहलोत ने इस दर्दनाक घटना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम घसीटने की कोशिश की। कन्हैयालाल की जान बचाने की गुहार की अनदेखी करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
Udaipur killing clearly points towards a Pakistan connection
The brutal beheading of a tailor by two ‘jihadi’ killers, masquerading as customers, in a shop in Udaipur has now assumed cross-border implications. The director general of Rajasthan Police, M L Lather, on Wednesday said, one of the killers Ghaus Mohammed had stayed in Pakistan for 45 days when he visited Karachi in 2013, along with 30 others from India. He had also visited Saudi Arabia in 2013 and 2019, and also Nepal in 2017-2018.
National Investigation Agency and Rajasthan Police are now trying to find out details of whom he met during these visits. During interrogation, Ghaus Mohammed told police that Daawat-e-Islam is connected to Tehrik-e-Labbaiq, Pakistan’s fundamentalist Islamic group. He said, he was in constant touch with Salman Bhai and Abu Ibrahim, both of whom are Daawat-e-Islam handlers in Karachi.
The DGP said, Ghous Mohammed had joined an Islamic extremist group Daawat-e-Islam through Riyasat Husain and Abdul Razak, both residents of Udaipur. He said, Ghous Mohammed had taken terror training in Karachi during his 45 days’ stay.
Three suspects have been taken into custody by Rajasthan Police, and under instructions from the Union Home Ministry, the NIA has taken over the probe. Both the killers, Ghaus Mohammed and Mohammed Riyaz Akhtari were arrested within hours of the crime by police from Rajsamand, nearly 61 km away from Udaipur. Police said, the two killers were proceeding to Ajmer Sharif to offer prayers.
The DGP admitted that Kanhaiyalal’s family had complained to local police that he was getting death threats from ‘jihadis’ for supporting Nupur Sharma, but police did not take the complaint seriously. An assistant sub-inspector has been suspended in this connection.
The gruesome murder took place on Tuesday when the two killers walked into Kanhaiyalal’s tailoring shop and asked him to take measurements for stitching clothes. As Kanhaiyalal started taking measurements, one of the killers started stabbing him with a knife, with the other making a video of the macabre murder. There were 26 cuts on Kahnhaiyalal’s body, mostly around his neck. The two killers then posted the gruesome video on social media, and were seen smilingly holding two blood-stained cleavers.
Kanhaiyalal had supported former BJP spokesperson Nupur Sharma, who had made a blasphemous remark about Prophet Mohammed.
This gruesome beheading incident has brought shame to India. It is nothing short of murdering the very sense of humanity. In the video, the killers also threatened to commit a similar act against Prime Minister Narendra Modi. This is nothing short of challenging the Indian state and its legal system.
The two killers have openly challenged the process of law, they planned this murder in advance and had already decided to make a video of their grotesque act. In the video, one of the killers, Mohammed Riyaz Akhtari is seen as saying “ we have beheaded the victim because the Prophet has been insulted. ..This knife will one day reach Narendra Modi.”
Seeing the gruesome video, I thought how can people commit such a gruesome murder in the name of Islam, Prophet or Allah? How can they murder humanity? Such killers do not have the right to stay alive in a civil society.
I was also a little disappointed over Rajasthan CM Ashok Gehlot’s initial remarks, in which he first condemned the brutal killing and appealed to people to maintain peace, but in the same breath, he injected politics into it. Gehlot said, “the atmosphere in the country is already getting worse, and Prime Minister Modi and Home Minister Amit Shah should come forward and appeal to the people to maintain communal harmony.” Chief Minister Gehlot appealed to people to remain calm and requested them not to share the video of the macabre murder.
There were protests in Udaipur on Tuesday, as people gathered at the spot and chanted slogans. The state administration suspended mobile internet services across Rajasthan for 24 hours to stop rumours, and curfew was clamped in seven police station areas of Udaipur to prevent violence. Dhan Mandi, Ghanta Ghar, Ambamata, Surajpole, Bhupalpura, Hathipole and Savina localities are under curfew. Sec 144 prohibitory orders have been clamped across Rajasthan.
A fiend, who can smile and laugh after beheading an innocent, unarmed man by sneakingly stabbing him, cannot be called a brave man, nor can he be a true Muslim, nor a true follower of Prophet Mohammed. Such killers do not have any religion. They are only defaming Islam, and bringing India’s famed ‘Ganga-Jamuni tehzeeb’ (secular tradition) to disrepute.
The victim, when stabbed, was shrieking and weeping, but the two killers did not show any mercy. Ghaus Mohammed was shooting the video, when Mohammed Riyaz was stabbing Kanhaiyalal. When the victim fell to the ground, the two brutal killers beheaded him. The two killers fled from the spot, and then made a video holding two blood-stained cleavers and then proudly announced to the world that they have beheaded a man.
This was a cold-blooded murder executed after proper planning, in order to strike terror and instigate communal riots. Mohammed Riyaz had decided 11 days ago, on June 17, to kill Kanhaiyalal. He soon made a video announcing his intent, but did not post it because he knew that his planning would fail, if he posted it in advance.
The video clearly shows Riyaz saying, “I am making this video on Friday June 17, and I will make it viral, the day I will behead those who insulted our Prophet. Gustakh-e-Nabi ki ek hi sazaa, Sir tan se juda (the only punishment for insulting our Prophet is behead the person).”
The role of Udaipur police is being questioned. Kanhaiyalal was constantly getting death threats on his phone. He was so much afraid that he kept his tailoring shop closed for six days. He told neighbours and shopkeepers about the threats and even went to police. He even shared the phone number of the person who was giving him death threat, but police did nothing.
Since the tailor came from a lower middle class family, he needed to reopen his tailoring shop, to fend for his family. That was when the killers decided to strike. They walked into the shop and committed the bestial murder. Local residents and shopkeepers staged protests soon after the killing, and questioned why police did not act when the victim had approached them with the phone number of those who were giving him death threats.
The Shahi Iman of Delhi Jama Masjid, AIMIM chief Asaduddin Owaisi, and political leaders across the spectrum have condemned the brutal murder and have demanded exemplary punishment to the ‘jihadi’ killers. It is a good sign that Islamic scholars have condemned this brutal killing and said, it goes against the tenets of Islam.
I know, people across India are outraged over this crime, but I appeal to all, with folded hands, to keep calm and maintain peace. This is a criminal act by two deranged killers. This crime should not be seen in the light of any religion or community. We should not blame the community for the deranged act of two killers. I was sad when I saw Chief Minister Ashok Gehlot trying to bring Prime Minister Narendra Modi’s name into this matter. Strong action must be taken against police officials who ignored Kanhaiyalal’s appeal for protection to his life.
This macabre murder clearly displays the mentality of ISIS and Talibani extremists. It is time for all top Islamic scholars and ulema to come out and convince people not to take law into their own hands and do not make it a communal issue.
क्या उद्धव सेना शिंदे सेना के सामने समर्पण करेगी ?
महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट का यह दूसरा हफ्ता है। राजनीतिक गहमागहमी ज़ोरों पर है। मंगलवार को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने गुवाहाटी में बैठे बाग़ी शिवसेना विधायकों के नाम खुली अपील जारी की।
अपनी अपील में उद्धव ठाकरे ने बागी विधायकों से कहा, “आप पिछले कुछ दिनों से गुवाहाटी में फंसे हुए हैं। आपके बारे में रोज नई जानकारी सामने आ रही है, आप में से कई लोग संपर्क में भी हैं । आप अभी भी दिल से शिवसेना में हैं । आप में से कुछ विधायकों के परिवार के सदस्यों ने भी मुझसे संपर्क किया है और मुझे अपनी भावनाओं से अवगत कराया है। शिवसेना के परिवार के मुखिया के रूप में मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूं। भ्रम से छुटकारा पाएं, इसका एक निश्चित रास्ता होगा, हम बैठेंगे एक साथ और इससे बाहर निकलने का रास्ता खोजें”
अपनी अपील में उद्धव ने आगे लिखा, “ किसी के गलत झांसे में न आएं, शिवसेना द्वारा दिया गया सम्मान कहीं नहीं मिल सकता, आगे आकर बोलेंगे तो मार्ग प्रशस्त होगा। शिवसेना पार्टी प्रमुख और परिवार के मुखिया के रूप में, मुझे अभी भी आपकी चिंता है”
उद्धव ठाकरे की अपील का बागी विधायकों पर कितना असर पड़ेगा, कहना मुश्किल है। पर ये सच्चाई है कि बागी खेमा विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराने और बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार बनाने की संभावनाओं को लेकर पूरा जोर लगा रहा है। उद्धव ठाकरे एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं।
इस बीच, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मंगलवार को दिल्ली पहुंचे जहां वे गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी जेपी नड्डा के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे। फडणवीस ऐसे समय दिल्ली पहुंचे हैं जब इस बात की चर्चा है कि राज्यपाल महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार को इस सप्ताह के अंत तक विधानसभा में बहुमत साबित करने का निर्देश दे सकते हैं।
इससे पहले सोमवार को एमवीए सरकार को उस समय करारा झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में शिवसेना के सभी बागी विधायकों को 11 जुलाई शाम 5.30 बजे तक अयोग्य ठहराने पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने एमवीए सरकार को निर्देश दिया कि वह महाराष्ट्र में बागी विधायकों और उनके परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारडीवाला की अवकाशकालीन पीठ ने शिवसेना के उस आग्रह को ठुकरा दिया, जिसमें बागी विधायकों को विधानसभा में फ्लोर टेस्ट की मांग करने से रोकने का अनुरोध किया गया था। एमवीए गठबंधन और डिप्टी स्पीकर के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ को शिवसेना के 15 बागी विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही में दखल नहीं देने के लिए अपनी दलीलों के जरिए मनाने की पूरी कोशिश की। इन वकीलों ने यह भी तर्क सामने रखा कि सुप्रीम कोर्ट को विधानसभा स्पीकर की कार्रवाई में दख़ल देने का अधिकार नहीं है।
साफ है, सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे गुट की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। उद्धव ठाकरे की सरकार चाहती थी कि अदालत से शिंदे गुट को कोई राहत न मिले। लेकिन अदालत से बागियों को और मोहलत मिल गई। साथ ही बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने की कोशिशों पर भी ब्रेक लग गया है। वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल बीजेपी और शिवसेना का बागी खेमा अब जल्द फ्लोर टेस्ट का दबाव बनाने की तैयारियों में जुट गया है।
उधर, एक अन्य घटनाक्रम में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सभी 9 बागी मंत्रियों को कैबिनेट से हटाने के बजाए उनके विभाग छीन लिए। अब सवाल ये है कि जब एकनाथ शिंदे के साथ उद्धव ठाकरे के नौ मंत्री खुली वगावत कर रहे हैं और सरकार से समर्थन वापस लेने की बात कह रहे हैं तो फिर उद्धव ने इन मंत्रियों को हटाया क्यों नहीं ? उनके विभाग क्यों बदले ? क्या उद्धव को अब भी उम्मीद है कि विधायक वापस आ जाएंगे या कोई रास्ता निकल आएगा ? अब सभी की निगाहें राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर टिकी हैं, जिन्होंने मुख्य सचिव से 22 से 24 जून के बीच एमवीए सरकार द्वारा पारित सभी सरकारी प्रस्तावों का ब्यौरा मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बागी खेमे का मनोबल ऊंचा हो गया है। बागी विधायकों की अगुवाई कर रहे शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने ट्वीट कर कहा कि यह हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे और धर्मवीर आनंद दिघे (एकनाथ के राजनीतिक गुरु) की जीत है। वहीं दूसरी ओर, शिवसेना के वरिष्ठ नेता अनिल देसाई ने दावा किया कि गुवाहाटी में मौजूद 39 बागी विधायकों में से 20 ने फ्लोर टेस्ट के दौरान उद्धव ठाकरे का समर्थन करने का वादा किया है।
अनिल देसाई, संजय राउत, आदित्य ठाकरे और शिवसेना के दूसरे नेता भी जानते हैं कि ये सपने खोखले हैं। अगर उन्हें इन बागी विधायकों ने समर्थन का वादा किया होता तो ठाकरे खेमा बहुमत साबित करने के लिए विधानसभा सत्र बुलाने में देरी नहीं करता। बागवत के इस तूफान का मुकाबला करने और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए ठाकरे खेमा जिला स्तर पर और कस्बों में जनसभाएं कर रहा है।
बागी विधायकों की सबसे ज्यादा नाराजगी संजय राउत से है। संजय राउत पर आरोप है कि उन्होंने विधायकों और स्थानीय नेताओं को कभी उद्धव ठाकरे से मिलने नहीं दिया। बागी विधायकों का यह भी आरोप है कि संजय राउत सुलह की सभी कोशिशों को रोक रहे हैं। बागी विधायक दीपक केसरकर ने कहा कि संजय राउत बागियों के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे, जिसका इस्तेमाल कांग्रेस या एनसीपी जैसे नेताओं ने भी पहले कभी नहीं किया।
उधर, बीजेपी भी इस पूरे मामले पर फूंक-फूंक कर कदम रख रही है और अभी अपने पत्ते नहीं खोल रही है। सोमवार को महाराष्ट्र बीजेपी कोर कमेटी की बैठक हुई और फैसला किया गया कि वह ‘वेट एंड वॉच’ की नीति अपनाएगी। पार्टी नेतृत्व ने एमवीए सरकार को नहीं गिराने का फैसला किया है। बीजेपी का मानना है कि महाविकास आघाड़ी गठबंधन अपने ही अंतर्विरोधों के भार से गिर जाएगी।
अब ऐसे में दो बातें स्पष्ट हैं। पहला ये कि उद्धव ठाकरे अब हर रिस्क लेने को तैयार हैं, लेकिन बीजेपी कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती। उद्धव ठाकरे इस्तीफा भी दे सकते हैं, नाराज विधायकों के नेता एकनाथ शिन्दे को मुख्यमंत्री बनाने का ऑफऱ भी दे सकते हैं या फिर एनसीपी और कांग्रेस का साथ भी छोड़ सकते हैं। लेकिन ऐसे माहौल में फ्लोर टेस्ट करने को तैयार नहीं हो सकते।
आमतौर पर होता ये है कि इस्तीफे की मांग करने वाले फ्लोर टेस्ट से भागते हैं और सरकार सदन में बहुमत का फैसला करने की चुनौती देती है। लेकिन महाराष्ट्र में उल्टा हो रहा है। एकनाथ शिंदे फ्लोर टेस्ट की मांग कर रहे हैं और सरकार फ्लोर टेस्ट से बच रही है।
बीजेपी जानती है कि उद्धव ठाकरे में वो राजनीतिक कौशल नहीं है कि सरकार बचा लें। लेकिन एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार की पावर और उनकी राजनीतिक चतुराई का लोहा बीजेपी के नेता भी मानते हैं। पवार क्या कर सकते हैं, ये फडणवीस और दूसरे बीजेपी नेता अजीत पवार के साथ सरकार बनाकर देख चुके हैं। इसीलिए बीजेपी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।
बीजेपी चाहती है कि या तो एकनाथ शिन्दे यह मांग करें कि सरकार विधानसभा में बहुमत साबित करे या फिर राज्यपाल खुद हालात को ध्यान में रखते हुए सरकार को बहुमत साबित करने का निर्देश दें। बीजेपी सरकार तो बनाना चाहती है लेकिन जल्दबाजी नहीं करना चाहती।
बीजेपी के नेता जानते हैं कि रायता इतना फैल चुका है कि उसे समेटना उद्धव के बस की बात नहीं है। इसीलिए अब सबकी नजर शरद पवार की ओर है। लेकिन शरद पवार कोई संकेत नहीं दे रहे हैं। वे चतुर राजनेता हैं और अपने अगले कदम के बारे में पहले से कोई संकेत नहीं देते। सोमवार को वे दिल्ली में थे और विपक्ष की तरफ से राष्ट्रपति उम्मीदवार यशवन्त सिन्हा का नामांकन दाखिल करने के लिए अन्य विपक्षी नेताओं के साथ व्यस्त थे।
Will Uddhav Sena surrender before Shinde Sena?
Hectic developments are going on in Maharashtra with the political crisis entering its second week. On Tuesday, Chief Minister Uddhav Thackeray issued an open appeal to rebel Shiv Sena MLAs, staying in Guwahati, asking them to come back to Maharashtra and meet him so that a way out can be found.
In his appeal, Uddhav Thackeray wrote, “Some of you are in touch with us. Shiv Sena is still in your hearts. Some of your family members also contacted me. As the head of Shiv Sena family, I respect your feelings. Leave aside your confusions, a definite way will be found out when we will sit together. Do not be fooled by others. You will never get back the respect that you got in Shiv Sena. As the head of Shiv Sena family, I care for all of you.”
It is yet to be seen what effect Uddhav’s appeal will have on the rebels, but already, there are efforts by the rebel Shiv Sena MLAs to seek a floor test in the state assembly. They are already exploring the possibility of forming a coalition government with the BJP.
Meanwhile, BJP leader and former CM Devendra Fadnavis reached Delhi on Tuesday to discuss the issue with Home Minister Amit Shah and BJP president J P Nadda, amid reports that the Governor may direct the Maha Vikas Aghadi government to prove its majority inside the Assembly by this weekend.
On Monday, the MVA government suffered a severe jolt when the Supreme Court, in its order, gave protection to all rebel Shiv Sena MLAs from disqualification till July 11 at 5.30 pm. The apex court directed the coalition government to ensure the safety of the rebel MLAs and their families in Maharashtra.
The vacation bench of Justices Surya Kant and J B Pardiwala declined Shiv Sena’s request to stop the rebel MLAs from demanding a floor test in the assembly. Lawyers for the MVA and Deputy Speaker tried their best to persuade the bench not to interfere in the disqualification proceedings against 15 rebel Shiv Sena MLAs, saying it fell in the exclusive domain of the speaker.
Clearly, the Supreme Court order has put a dampener on the hopes of Uddhav Thackeray camp, as the apex court has put a brake on the efforts to disqualifying the rebel MLAs. On the other hand, the opposition BJP and the rebel Shiv Sena camp is now going to press for an early floor test to decide who commands majority in the House.
In another development, Chief Minister Uddhav Thackeray has taken away all the portfolios from the nine rebel ministers, but has not recommended their dismissal. The Thackeray camp is still nurturing hopes that some of the rebel MLAs will return to the party fold. All eyes are now on Governor Bhagat Singh Koshyari, who has sought from the Chief Secretary, details of all government resolutions passed between June 22 and 24 by the MVA government.
After the Supreme Court gave its order, the rebel camp’s morale is high. Rebel Shiv Sena leader Eknath Shinde tweeted to say that this is a victory for Hindu Hriday Samrat Balasaheb Thackeray and Dharmaveer Anand Dighe (Eknath’s political guru). On the other hand, senior Shiv Sena leader Anil Desai claimed that 20 out of the 39 rebel MLAs present in Guwahati have promised to support Uddhav Thackeray during the floor test.
Both Desai and other Shiv Sena leaders like Sanjay Raut and Aditya Thackeray know that these dreams are hollow. Had these rebel MLAs promised support, the Thackeray camp would not have delayed in calling the Assembly session to prove its majority. To counter the tide of rebellion, the Thackeray camp is holding public meetings of party supporters and workers in districts and towns, in order to boost the morale of its cadre.
The rebel MLAs are unhappy with Sanjay Raut, who, they allege, never allowed the MLAs and local leaders to meet Uddhav Thackeray. They allege that it is Sanjay Raut who has been preventing all efforts for a patch-up. Rebel MLA Deepak Kesarkar said that Sanjay Raut had been using abusive language against the rebels, which even the Congress or NCP leaders never used in the past.
The BJP camp is keeping its cards close to its chest. On Monday, the state BJP core committee met and decided that it would follow a ‘wait and watch’ policy. The party leadership has decided not to topple the MVA government, but let it fall under its own weight of contradictions.
Two possibilities are clear. One, Uddhav Thackeray is ready to take all risks, but the BJP is not going to take risks. For Uddhav Thackeray, the options are, either to resign, or offer rebel leader Eknath Shinde to take over as the new CM, or quit the MVA alliance with NCP and Congress. But a floor test cannot be held in such an atmosphere.
Normally, in political parlance, the camp seeking the resignation of a government demands a floor test and the government, on its part, takes up the opposition’s challenge to prove its majority. What is happening in Maharashtra, is completely the opposite. Eknath Shinde is demanding a floor test, and the MVA government is shying away from facing a floor test.
BJP leaders know that Uddhav Thackeray lacks the leadership and acumen to save his government, but BJP leaders acknowledge the shrewd political capability of NCP supremo Sharad Pawar. Devendra Fadnavis and other BJP leaders know what Sharad Pawar can do, when the last time, they hurriedly formed a coalition with his nephew Ajit Pawar. The BJP leadership is, therefore, taking its steps carefully. Once bitten, twice shy.
BJP leaders want, either Eknath Shinde demand that the MVA government should prove its majority on the floor of the House, or the Governor, taking cognizance of the evolving situation, direct the Uddhav government to prove its majority. BJP wants to form its government, but it is not in a hurry.
BJP leaders know that Uddhav Thackeray simply does not have the capability to put down the flames of rebellion that have engulfed the Shiv Sena. All eyes are now on Sharad Pawar. A wily politician he is, Sharad Pawar never gives any indication about his next step in advance. He was in Delhi on Monday, but was busy with other opposition leaders for the filing of nomination of Yashwant Sinha.
मोदी को सुप्रीम कोर्ट की क्लीन चिट : असली ‘मौत के सौदागर’ कौन थे ?
महाराष्ट्र में जारी नॉन स्टॉप सियासी ड्रामे के बीच शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ी एक अच्छी खबर आई। सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी की उस जांच रिपोर्ट को सही माना है जिसमें नरेंद्र मोदी को 2002 के गुजरात दंगे में क्लीन चिट दी गई थी। कोर्ट ने एसआईटी की रिपोर्ट को चुनौती देनेवाली याचिका खारिज कर दी।
जस्टिस ए. एम. खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सी. टी. रविकुमार ने दंगे में मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी ज़किया जाफरी और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि इस याचिका में कोई मेरिट नहीं है, कोई दम नहीं है। दरअसल, इस याचिका में गुजरात दंगों के पीछे एक ‘बड़े स्तर पर साजिश’ की जांच की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य अधिकारियों के खिलाफ सभी आरोपों का अध्ययन किया। सीबीआई के पूर्व निदेशक आर. के. राघवन की अगुवाई वाली एसआईटी की जांच रिपोर्ट का भी अध्ययन किया और इसके बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची कि इस बात के कोई सबूत नही हैं कि 2002 में दंगे भड़काने के लिए ‘बड़े स्तर पर’ कोई साजिश रची गई।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा-‘संक्षेप में हमारा विचार है कि एसआईटी की इस जांच में कोई दोष नहीं पाया जा सकता। इस मामले को बंद करने से जुड़ी आठ फरवरी 2012 की एसआईटी रिपोर्ट पूरी तरह से तथ्यों और मजबूत तर्कों पर आधारित है। साथ ही उस अवधि में अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ आपराधिक साजिश (बड़े स्तर पर) के आरोपों को खारिज करने के लिए यह रिपोर्ट हर तरह से पर्याप्त है।
सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी और अन्य लोगों पर आरोप लगाकर इस मुद्दे को सनसनीखेज बनाने और झूठी गवाही देने के लिए दो पूर्व आईपीएस अधिकारियों आर. बी. श्रीकुमार और संजीव भट्ट को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने यह सुझाव दिया कि पिछले 16 साल से इस मुद्दे को गरमाए रखने के पीछे जो लोग शामिल हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। कोर्ट ने इन लोगों को ‘असंतुष्ट’ करार दिया।
बड़े स्तर पर जांच कराने की ज़किया जाफरी की याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एसआईटी ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में पूरी जांच की और उस रिपोर्ट पर सवाल उठाना न्याय का मजाक है। यह अदालत की बुद्धिमत्ता पर संदेह करने जैसा होगा।
नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तारीफ करते हुए बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा-‘आज मैं कांग्रेस, वामपंथियों और अन्य लोगों से पूछना चाहता हूं, आपकी पूरी दुकान पिछले 20 साल से नरेंद्र मोदी के खिलाफ अभियान के दम पर चल रही थी। अब और कितने दिन आप इस तरह अपनी दुकान को चलाओगे? उन्होंने कहा कि आज जब राहुल गांधी से ईडी पूछताछ करती है तो कांग्रेस कार्यकर्ता आसमान सिर पर उठा लेते हैं। जब गुजरात दंगे की एसआईडी जांच हो रही थी, तो उस वक्त नरेंद्र मोदी ने पूरी मजबूती से जांच का सामना किया और सच्चाई सामने आ गई है।
गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘सत्य सोने की तरह चमकता बाहर आया है। मोदी जी ने पिछले 18-19 साल से बड़ी खामोशी के साथ इस दर्द को सहा है। देश का इतना बड़ा नेता एक शब्द बोले बगैर सभी दुखों को भगवान शंकर के विषपान की तरह गले में उतारकर सहन करता रहा। ‘
अमित शाह ने कहा, ‘मैंने मोदी जी को नजदीक से इस दर्द को झेलते हुए देखा है। क्योंकि न्यायिक प्रक्रिया चल रही थी इसलिए सत्य के साथ होने के बावजूद उन्होंने इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोला। बहुत मजबूत मन का आदमी ही ऐसा कर सकता है। उन्होंने यह दर्द चुपचाप सहा।
मुझे लगता है कि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने जो सबसे चौंकाने वाली बात कही वो ये कि इस केस की को-पेटिशनर तीस्ता सीतलवाड़ ने ज़किया जाफरी की भावनाओं का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए किया। किसी के दर्द से खेलना, किसी की पति की मौत का फायदा उठाना एक बड़ा अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को देखा, समझा और माना कि तीस्ता सीतलवाड़ ने नरेन्द्र मोदी को बदनाम करने के लिए ज़किया जाफरी के दुख-दर्द का फायदा उठाया।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की भी जांच करवाने की जरूरत है। कोर्ट ने कहा- ‘अंत में हमें ऐसा लगता है कि राज्य के कुछ असंतुष्ट अधिकारियों और अन्य लोगों ने सनसनी फैलाने के लिए संयुक्त रूप से कुछ खुलासा करना चाहते थे जो खुद उनकी नजर में भी झूठ था। एसआईटी ने उनके दावों के झूठ को पूरी तरह से उजागर कर दिया था।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो प्रक्रिया का इस तरह से गलत इस्तेमाल करते हैं, उन्हें कटघरे में खड़ा करके उनके खिलाफ कानून के दायरे में कार्रवाई की जानी चाहिए।’
मेरे ख्याल से अब गुजरात दंगों को लेकर नरेन्द्र मोदी का चैप्टर क्लोज़ होना चाहिए और तीस्ता सीतलवाड़ जैसी सामाजिक कार्यकर्ता की फाइल खोलनी चाहिए। अगर हम सुप्रीम कोर्ट की भावनाओं का सम्मान करते हैं तो गुजरात दंगों को लेकर नरेन्द्र मोदी को बदनाम करने का खेल बंद होना चाहिए। जिन लोगों ने इन दंगों या दंगा पीड़ितों का इस्तेमाल अपनी सियासत चमकाने के लिए किया अब उनका नंबर आना चाहिए। देश की जनता को जानने का हक है कि असल में ‘मौत के सौदागर’ कौन थे।
SC clean chit to Modi: Let people know who were the real ‘Maut Ke Saudagar’
In the midst of the ongoing non-stop political potboiler going on in Maharashtra, came good news for Prime Minister Narendra Modi on Friday, when a division bench of Supreme Court upheld the findings of the Special Investigation Team, which had given a clean chit to Modi in the 2002 Gujarat riots case.
Justice A M Khanwilkar, Justice Dinesh Maheshwari and Justice C T Ravikumar rejected the petition of Zakia Jafri, widow of former Congress MP Ehsan Jafri, who was killed by rioters, and activist Teesta Setalvad, seeking a probe into the “larger conspiracy” behind the Gujarat riots. The bench, after going through all allegations against the then CM Narendra Modi and other officials, and perusing the findings of the SIT headed by R K Raghavan, ex-CBI chief, came to the conclusion that there was no evidence to prove that the Gujarat riots of 2002 were the result of a criminal conspiracy hatched at the highest level, when Modi was chief minister.
The bench said: “To sum up, we are of the considered opinion that no fault can be found with the approach of the SIT in submitting final report dated 8.2.2012, which is backed by firm logic, expositing analytical mind and dealing with all aspects objectively for discarding the allegations regarding larger criminal conspiracy (at the highest level) for causing and precipitating mass violence across the state against the minority community during the relevant period.”
The Supreme Court took to task two former IPS officers R B Sreekumar and Sanjiv Bhatt for giving false testimonies to sensationalize the issue by incriminating Modi and others. The apex court suggested that those behind the ulterior deign for keeping the issue boiling for the last 16 years must be brought to book. The court termed them as ‘disgruntled’.
While rejecting Zakia Jafri’s plea for a larger probe, the apex court said that the SIT had conducted a thorough probe under the supervision of Supreme Court and questioning the findings of the report would amount to travesty of justice and doubting the wisdom of this court which had supervised/monitored the probe.
Hailing the SC verdict which has drawn a curtain over all allegations against Modi, BJP leader Ravi Shankar Prasad said: “Today I want to ask Congress, Left and others, your entire shop was running on the campaign against Narendra Modi for the last 20 years, how many more days will you run this shop now?”
Home Minister Amit Shah, in an interview to a news agency on Saturday, said, “the truth has come out shining like gold. Modi ji had silently endured pain for the last 19 years, like Lord Shiva who swallowed poison and held it in his throat….It was a battle for 19 years, and a great leader like Narendra Modi endured the pain like Lord Shiva.”
Amit Shah said, “I have closely seen Modiji enduring the pain, facing allegations despite being on the side of truth, and since the matter was in court, he never spoke on this issue. Only a man with a strong heart can do this….He endured it all silently.”
The most notable part of Friday’s Supreme Court verdict was that the bench said, co-petitioner Teesta Setalvad used the emotions of Zakia Jafri for her benefit. To play with the emotions and pain over the death of a lady’s husband is nothing short of crime. The Supreme Court clearly went through all the findings and evidences and found that Teesta Setalbad exploited Zakia Jafri’s pain to tarnish Narendra Modi’s image.
That is why the apex court has said, “At the end of the day, it appears to us that a coalesced effort of the disgruntled officials of the state, along with others, was to create sensation by making revelations which were false to their own knowledge. The falsity of their claims had been fully exposed by the SIT…All those involved in such abuse of process, need to be in the dock and proceeded with, in accordance with the law.”
In my opinion, enough is enough. The entire chapter relating to Narendra Modi and Gujarat riots must now be closed, and the file about the role of activists like Teesta Setalvad should be opened. If we truly respect the feelings of the Supreme Court, the game to defame Narendra Modi for Gujarat riots must now be brought to an end. Probe should begin against those who used the riots and the riot victims for their political vested interests. The people of India have the right to know who were the real ‘Maut Ke Saudagar’ (merchants of death).
उद्धव ठाकरे के हाथ से बाज़ी निकल चुकी हैं
महाराष्ट्र में सियासी संकट जारी है। शिवसेना के एक और विधायक दिलीप लांडे शुक्रवार को गुवाहाटी जाकर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले बागी गुट में शामिल हो गए। इसके साथ ही शिवसेना के बागी विधायकों की कुल संख्या 38 हो गई है। गुरुवार को शिवसेना के 3 विधायक शिंदे गुट में शामिल हुए। गुवाहाटी में 8 ऐसे निर्दलीय विधायक भी मौजूद हैं, जिन्होंने शिंदे गुट को अपना समर्थन दे रखा है।
शिवसेना के दो-तिहाई से ज्यादा विधायक अब बागी हो चुके हैं, और अगर पार्टी टूटती है तो ये भी बाग़ी विधायक संविधान की दसवीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) के तहत अयोग्य घोषित होने से बच जाएंगे।
इसी बीच शिवसेना ने डिप्टी स्पीकर को लिखे पत्र में शिंदे सहित 16 विधायकों को विधायक दल की बैठक में भाग लेने के लिए चीफ व्हिप का आदेश न मानने के लिए अयोग्य घोषित करने की मांग की है। विधानसभा सचिवालय ने शिवसेना को लिखे एक पत्र में एकनाथ शिंदे की जगह अजय चौधरी को शिवसेना विधायक दल का नेता नियुक्त किया है।
उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे शुक्रवार को पार्टी मुख्यालय में शिवसेना के जिला प्रमुखों के साथ एक मीटिंग में शामिल हुए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, शिवसेना शुक्रवार की शाम मुंबई के मरीन ड्राइव पर एक जनसभा कर सकती है।
शिवसेना नेता संजय राउत ने एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से मुलाकात कर मौजूदा मुश्किल से बाहर निकलने के तरीकों पर चर्चा की। इसके बाद संजय राउत ने दावा किया कि महा विकास अघाड़ी सदन के पटल पर बहुमत साबित करेगी, और ‘अगर यह लड़ाई सड़क पर लड़नी है, तो हम इसके लिए भी तैयार हैं।’ संजय राउत ने कहा, ‘मैं उन्हें (बागी विधायकों को) सदन के पटल पर आने की चुनौती देता हूं।’
तमाम दावों के उलट हक़ीक़त यही है कि उद्धव ठाकरे के खेमे में अब शिवसेना के सिर्फ 12 विधायक रह गए हैं, और एकनाथ शिंदे के पास वह संख्याबल है जिससे वह बीजेपी की मदद से महा विकास आघाड़ी सरकार गिरा सकते हैं। बीजेपी के पास 106 विधायक हैं और उसे 7 निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी हासिल है।
गुरुवार को एकनाथ शिंदे ने गुवाहाटी के एक होटल में अपने समर्थक विधायकों की परेड कराई और कहा कि हमारे पीछे एक ‘महाशक्ति’ खड़ी है। एकनाथ शिंदे के खेमे का मनोबल इस वक्त बहुत ऊंचा है, और अब बागियों के मुंबई वापस लौटने और राज्यपाल से मिलने में ज्यादा वक्त नहीं रह गया है। गुरुवार को बागी विधायकों ने शिंदे को अपना नेता घोषित कर ‘भारत माता की जय’ और ‘बालासाहेब ठाकरे की जय’ के नारे लगाए।
ठाकरे परिवार अब इस बात से भी परेशान है कि एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक 56 साल पहले 19 जून, 1966 को बालासाहेब ठाकरे द्वारा बनाई गई पार्टी पर भी कब्जा कर सकते हैं। शिंदे गुट इसके साथ ही चुनाव आयोग में भी याचिका दायर करके शिवसेना के चुनाव चिह्न ‘तीर और धनुष’ की मांग कर सकता है। एकनाथ शिंदे ने यह भी दावा किया है कि शिवसेना के 18 लोकसभा सांसदों में से कम से कम 14 सांसद उनके साथ हैं। शिंदे अपने गुट को असली शिवसेना बता रहे हैं।
उद्धव ठाकरे के सहयोगी शरद पवार और कांग्रेस अब मुश्किल में हैं। गुरुवार को, NCP सुप्रीमो शरद पवार ने कहा कि बहुमत का फैसला विधानसभा में होगा, और ‘विधायकों को पहले मुंबई वापस आना होगा।’
यह बात उद्धव ठाकरे और शरद पवार दोनों जानते हैं कि बाजी हाथ से निकल चुकी है। शिवसेना के 38 विधायक बागी नेता एकनाथ शिंदे के साथ दिखाई दे रहे हैं। अब इस बात का कोई मतलब नहीं है कि इन विधायकों को डरा-धमकाकर गुवाहाटी ले जाया गया। बागी विधायक पिछले 4 दिनों से गुवाहाटी में डेरा डाले हुए हैं, लोगों से खुलेआम मिलजुल रहे हैं और नई सरकार बनाने की तैयारी कर रहे हैं। ये विधायक अभी से जीत के जश्न की बात कर रहे हैं।
वहीं, दूसरी तरफ उद्धव और उनके साथी हथियार डाल चुके हैं और खुद ही अपनी हार के संकेत दे रहे हैं। उन्हें आभास हो गया है कि शिवसेना के बागी विधायकों के समर्थन से देवेंद्र फडणवीस की सत्ता में वापसी होने जा रही है।
ये सारी बातें मुझे देवेंद्र फडणवीस के उस शेर की याद दिलाती हैं जो उन्होंने उद्धव सरकार बनने के बाद 2019 में विधानसभा में कही थी। फडणवीस ने तब कहा था, ‘मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा।’ और अब फडणवीस वाकई में सत्ता में वापसी की तैयारी कर रहे हैं।
Uddhav Thackeray is fighting a losing battle
The political imbroglio in Maharashtra continues with one more Shiv Sena MLA Dilip Lande landing in Guwahati on Friday, to join the Eknath Shinde-led camp taking the total number of Shiv Sena MLAs in the rebel fold to 38. Three Shiv Sena MLAs had joined the Shinde camp on Thursday. There are also eight independent MLAs in Guwahati, who have extended support to Shinde.
More than two-thirds of the Shiv Sena MLAs have now become rebels, and if a vertical split takes place, they will be saved from disqualification under the Tenth Schedule of the Constitution (anti-defection law).
In a related development, the Shiv Sena, in letters to the Deputy Speaker, has sought disqualification of 16 MLAs, including Shinde, for defying the Chief Whip’s order for attending legislative party meeting. The Assembly Secretariat has, in a letter to Shiv Sena, accepted the appointment of Ajay Choudhary as the leader of Shiv Sena legislative party replacing Eknath Shinde.
Uddhav Thackeray’s son Aditya Thackeray was huddled in a meeting with district Shiv Sena chiefs at a meeting in party headquarters on Friday. There are reports that a public meeting of Shiv Sena is planned Friday evening on Mumbai’s Marine Drive.
Shiv Sena leader Sanjay Raut met NCP supremo Sharad Pawar to discuss ways to come out of the present impasse. Later, Sanjay Raut claimed that the Maha Vikas Aghadi will prove majority on the floor of the House, and “if this battle is fought on the roads, we are ready for it too”. “I challenge them (rebel MLAs) to come to the floor of the House”, Sanjay Raut said.
Despite claims to the contrary, the fact remains that the Uddhav Thackeray camp is now left with only 12 Shiv Sena MLAs, and Eknath Shinde has the numbers to topple the MVA government, with BJP’s help. BJP has 106 MLAs and there are seven independents who are ready to support BJP.
On Thursday, Eknath Shinde paraded his supporter MLAs in a Guwahati hotel, and said that we have a ‘maha shakti’ which is behind us. The morale in Eknath Shinde’s camp now is very high, and it is just a matter of time before the rebels will return to Mumbai and meet the Governor. On Thursday, the rebel MLAs declared Shinde as their leader and chanted slogans ‘Bharat Mata Ki Jai’ and ‘Balasaheb Thackeray Ki Jai’.
The Thackeray family is now worried that Eknath Shinde and his supporters may also take control of the 56-year-old party, founded by Balasaheb Thackeray on June 19, 1966. Shinde group may also petition the Election Commission of India and seek the ‘bow and arrow’ election symbol of Shiv Sena. Eknath Shinde has also claimed that at least 14 out of 18 Shiv Sena MPs in Lok Sabha are in his camp. Shinde is going to declare his group as the real Shiv Sena.
Uddhav Thackeray’s allies, Sharad Pawar and Congress, are now in a fix. On Thursday, NCP supremo Sharad Pawar said that the majority will be decided on the floor of the House, and “let the MLAs first return to Mumbai”.
Both Uddhav Thackeray and Sharad Pawar know that they have lost the game, because 38 Shiv Sena MLAs are now with rebel leader Eknath Shinde. Nobody can say that these MLAs were intimidated and taken to Guwahati by force. The rebel MLAs have been camping in Guwahati for the last four days, freely mixing with people, and making preparations on how to instal a new government. These rebels are already in a celebratory mood.
On the other hand, Uddhav and his advisers are now fighting a losing battle with their back to the wall. They are already visualizing Devendra Fadnavis coming back to power with the support of rebel Shiv Sena MLAs.
It reminds me of the famous Urdu couplet (sher) that Fadnavis quoted in the Assembly in 2019, when the MVA government took over. Fadnavis had then said, “Mera paani utarta dekh, mere kinarey par ghar mat basa lena, Main samandar hoon, lout kar waapas aaoonga” (On seeing my water level recede, Do not build your home at my place, I am the sea, and I shall return). Fadnavis is ready to sweep back to power and make a grand comeback.
क्या अब ठाकरे मुक्त शिवसेना ?
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की महा विकास आघाड़ी सरकार अब अंतिम सांसें गिन रही है। विधायक एक-एक कर उनका साथ छोड़ते जा रहे हैं और उधर बागी नेता एकनाथ शिंदे का खेमा और मजबूत होता जा रहा है। उद्धव ठाकरे सरकार को जल्द इस्तीफा देना पड़ सकता है, क्योंकि ऐसा लग रहा है कि बागी विधायकों की शिवसेना में वापसी अब मुश्किल है। उनके वापस लौटने के संकेत नहीं के बराबर हैं। एकनाथ शिंदे का गुट गुवाहाटी के होटल में डेरा डाले हुए हैं जहां कुल 42 विधायक मौजूद हैं। इनमें निर्दलीय विधायकों की संख्या 8 है।
एकनाथ शिंदे गुट की ओर से गुरुवार दोपहर सोशल मीडिया पर उद्धव ठाकरे के नाम एक खुली चिट्ठी जारी की गई। इस चिट्ठी पर तारीख 22 जून लिखा है। यह चिट्ठी शिवसेना के बागी विधायक संजय शिरसाट के नाम से जारी की गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले ढाई साल से पार्टी विधायकों के लिए मुख्यमंत्री के सरकारी आवास ‘वर्षा’ के दरवाजे बंद कर दिए गए थे।
शिरसाट ने आरोप लगाया कि उद्धव ने अपने बेटे आदित्य ठाकरे को अयोध्या जाने की इजाजत दी लेकिन शिवसेना विधायकों को अयोध्या जाने से रोक दिया गया। शिरसाट ने अपनी चिट्ठी में आरोप लगाया, ‘जब पार्टी के लिए हिंदुत्व और राम मंदिर का मुद्दा महत्वपूर्ण है तो फिर पार्टी नेतृत्व ने हमें अयोध्या जाने से क्यों रोका ? विधायकों को बुला लिया और फिर उन्हें कहा गया कि वे आदित्य ठाकरे के साथ अयोध्या नहीं जाएं।’
शिवसेना के बागी विधायक ने अपनी चिट्ठी में यह भी आरोप लगाया कि ‘मुख्यमंत्री कभी सचिवालय नहीं गए और वह मातोश्री में रहा करते थे। हमें उनके आसपास के लोगों को कॉल करना होता था। वे कभी हमारा फोन नहीं उठाते थे। हम सब इन बातों से तंग आ चुके थे और एकनाथ शिंदे से यह कदम उठाने का आग्रह किया।’
एकनाथ शिंदे के खेमे में बागी विधायकों की संख्या बढ़ती जा रही है। शिंदे का साथ दे रहे विधायकों और बीजेपी एवम् अन्य एनडीए समर्थक दलों को मिला दें तो विधायकों की कुल संख्या 164 हो जाती है जो बहुमत के आंकड़ों से 20 ज्यादा है। वहीं महाविकास अघाड़ी गठबंधन का संख्या बल घट चुका है क्योंकि शिवसेना के पास अब केवल 13 विधायक बचे हैं। इस तरह महाविकास अघाड़ी में विधायकों की कुल संख्या 124 के आंकड़े तक ही पहुंचती है जो कि बहुमत से काफी कम है। एकनाथ शिंदे ने कहा है कि वह शिवसेना को बंटने नहीं देंगे बल्कि उद्धव ठाकरे को पद छोड़ने और शिवसेना का नेतृत्व अपने खेमे को सौंपने के लिए मनाएंगे। शिंदे पहले ही कह चुके हैं कि वे बीजेपी के साथ गठबंधन करना पसंद करेंगे।
इस बीच बुधवार रात उद्धव ठाकरे ने अपना आधिकारिक आवास ‘वर्षा’ खाली कर दिया और सामान के साथ अपने घर ‘मातोश्री’ में शिफ्ट हो गए। जिस वक्त उद्धव ‘मातोश्री’ जा रहे थे उस वक्त हजारों की तादाद में शिव सैनिक उमड़ पड़े और 9 किलोमीटर की यात्रा के दौरान उनके समर्थन में नारे लगाए। उद्धव ठाकरे ने अभी इस्तीफा नहीं दिया है लेकिन अपने आधिकारिक आवास को खाली कर अपने समर्थकों को एक संदेश देने की कोशिश की है।
वहीं दूसरी ओर बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस और उसके सहयोगी पूरे घटनाक्रम पर बारीक नजर रखे हुए हैं और सही समय का इंतजार कर रहे हैं ताकि नई सरकार सत्ता संभाल सके।
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बुधवार को अपने फेसबुक लाइव स्पीच में साफ तौर पर बचाव करते हुए नजर आए। वे डिफेंसिव थे। उन्होंने कई बार कहा कि वे इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं और (सीएम की) कुर्सी से चिपके रहना पसंद नहीं करेंगे। लेकिन उद्धव ने कहा कि जिन लोगों ने बगावत की है वे उनके पास आएं और उनके मुंह पर कहें कि वे चाहते हैं आप सीएम पद छोड़ दें। इससे साफ है कि उद्धव हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं।
अपने भाषण में उद्धव ने कहा कि वह एनसीपी या कांग्रेस नेताओं की तुलना में शिवसैनिकों को तरजीह देते थे। उन्होंने कहा, ‘अगर किसी शिवसेना विधायक या नेता को ऐसा लगता है कि मैं मुख्यमंत्री बने रहने के लायक नहीं हूं, तो उन्हें मुंबई आकर मेरे सामने यह बताना चाहिए। मैं तुरंत इस्तीफा दे दूंगा।’
उद्धव ठाकरे को यह दिन इसलिए देखना पड़ा क्योंकि उन्होंने यह मान लिया था कि उनका कद बाला साहेब ठाकरे की तरह बड़ा है। लेकिन शिवसेना नेताओं को उनमें कभी बाला साहेब की छवि नजर नहीं आई। दशकों से ठाकरे परिवार के प्रति वफादार रहे एकनाथ शिंदे जैसे नेताओं को उन्होंने लगातार दरकिनार किया। वे यह मान चुके थे कि शिंदे कहीं नहीं जाएंगे और उनकी सही कीमत नहीं पहचान सके।
उद्धव ने कभी-भी शिवसेना के सीनियर नेताओं को भी मिलने समय नहीं दिया और न ही उनके अनुरोध पर कोई विचार किया। उन्होंने इस झूठी धारणा को बरकरार रखा कि शिवसेना के नेताओं और कार्यकर्ताओं को उनके सिवा कहीं नहीं जाना है। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि शिवसेना के विधायक बगावत करेंगे।
वहीं दूसरी तरफ शिवसेना के नेता और कार्यकर्ता यह देख रहे थे कि गठबंधन की मजबूरियों के चलते उद्धव एनसीपी और कांग्रेस के नेताओं को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। ऐसा लग रहा था कि जैसे उद्धव को शरद पवार और सोनिया गांधी से सर्टिफिकेट लेने में ज्यादा दिलचस्पी है। इसके बाद एकनाथ शिंदे जैसे पुराने और वफादार साथी ने यह फैसला लिया कि उद्धव का वक्त अब खत्म हो चुका है और उन्हें अपने समर्थकों के साथ विद्रोह करना चाहिए।
एकनाथ शिंदे अपनी पार्टी के विधायकों और समर्थकों से लगातार मिलते रहते थे। वे हिंदुत्व की विचारधारा के बारे में बोलते थे और तब शिवसेना के कार्यकर्ताओं को यह अहसास हुआ कि जब वे बीजेपी के साथ गठबंधन में थे तो उन्हें ज्यादा सम्मान मिलता था।
उद्धव मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में उन्होंने किंग मेकर शरद पवार को अपना बॉस मान लिया। एकनाथ शिंदे जैसे सीनियर नेताओं को जब ये दिखाई दिया कि उनके लिए आगे के रास्ते बंद हैं। उद्धव अपने बाद अपने बेटे आदित्य को सीएम बनाएंगे। किसी और को चांस मिलना मुश्किल है। शिवसैनिकों को लगा कि ये भी बाला साहेब के स्टाइल के खिलाफ है। इसीलिए उन्होंने तय किया कि अगर वो शिवसेना पर ही कब्जा कर लें और उद्धव को बाहर करके बीजेपी के साथ सरकार बना लें तो उनके अच्छे दिन वापस आ जाएंगे।
महाराष्ट्र में पिछला विधानसभा चुनाव बीजेपी और शिवसेना ने साथ मिलकर लड़ा था। शिवसेना के 99 फीसदी विधायक यह चाहते थे कि बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार बने लेकिन उद्धव और उनके बेटे आदित्य ठाकरे की उच्च व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के कारण शिवसेना के 99 फीसदी विधायकों की भावनाओं को खारिज कर दिया गया।
पिछले ढाई साल से चल रही महाविकास आघाड़ी सरकार के शासन के दौरान शिवसेना के ज्यादातर विधायकों और मंत्रियों ने देवेंद्र फडणवीस सरकार और एमवीए सरकार के अंतर को लगभग हर रोज महसूस किया। इन विधायकों को लगा कि इस शासन में उनकी कोई भूमिका ही नहीं है। उद्धव ठाकरे अपने विधायकों की भावनाओं को समझने में नाकाम रहे। वे शरद पवार और सोनिया गांधी को खुश रखने में व्यस्त रहे और यही उनके राजनीतिक पतन का कारण बना।
Is it going to be Thackeray-Mukt Shiv Sena now?
Maharashtra chief minister Uddhav Thackeray’s Maha Vikas Aghadi government is now on the brink, with more MLAs leaving his camp and joining rebel leader Eknath Shinde’s fast-increasing band of MLA supporters. Uddhav Thackeray’s government may have to resign soon, as there appears to be no sign of rebel MLAs walking back to the Shiv Sena fold. The Eknath Shinde camp has now 42 MLAs present at the hotel in Guwahati. These include 34 Shiv Sena and eight independent MLAs.
On Thursday afternoon, in an open letter addressed to Uddhav Thackeray dated June 22, and circulated on social media on Thursday by Shinde camp, a rebel Shiv Sena MLA Sanjay Shirsat alleged that the doors of the chief minister’s official residence ‘Varsha’ were closed to party MLAs for the last two and a half years.
Shirsat alleged, Uddhav allowed his son Aditya Thckeray to visit Ayodhya, but Shiv Sena MLAs were prevented from going to Ayodhya. “When Hindutva and Ram Mandir are crucial issues for the party, why did the party leadership prevented us from visiting Ayodhya? MLAs were called and were told not to accompany Aditya Thackeray to Ayodhya”, Shirsat alleged in his letter.
The rebel Shiv Sena MLA also alleged in his letter that “the Chief Minister never visited the Secretariat, and he used to be in Matoshri. We used to call people around him, but they never used to take our calls. We were fed up of all these things and requested Eknath Shinde to take this step.”
With the influx of more rebel MLAs, the Eknath Shinde camp, along with BJP, and other NDA supporters now claims to have the support of a total of 164 MLAs, 20 more than the required majority, while the MVA with a dwindled Shiv Sena camp of only 13 MLAs, has the support of only 124 MLAs. Eknath Shinde has said he would not split the Shiv Sena vertically, and would convince Uddhav Thackeray to quit and hand over the leadership to his camp. Shinde is already on record having said that he would prefer an alliance with the BJP.
Meanwhile, on Wednesday night Uddhav Thackeray vacated his official residence ‘Varsha’ and shifted with his bag and baggage to his own residence ‘Matoshri’, even as thousands of Shiv Sainiks chanted slogans in his support during his 9-km journey. Thackeray is yet to tender his resignation, but by vacating his official residence, he has sought to send a message to his supporters.
On the other hand, BJP leader Devendra Fadnavis and his associates are keenly watching the developments and are waiting for the right time to strike, so that a new government can take over.
In his Facebook Live speech on Wednesday, Chief Minister Uddhav Thackeray clearly was on the defensive. He said several times that he was ready to resign, and would not like to cling to the (CM’s) chair. But he said, those who have rebelled should come to him and tell him in his face that they wanted him to quit. Clearly, Uddhav is now fighting with his back to the wall.
In his speech, Uddhav said, he used to give preference to Shiv Sainiks compared to NCP or Congress leaders. “Even if any Shiv Sena MLA or leader feels that I am not capable of continuing as CM, they should come to Mumbai and tell this in front of me. I will immediately resign”, Uddhav said.
Uddhav Thackeray had to see this day because he assumed that he was as big in stature as the late Balasaheb Thackeray, but Shiv Sena leaders never saw the image of Balasaheb in him. Uddhav continuously sidelined leaders like Eknath Shinde, who were loyalist of Thackeray family for decades. He took them for granted.
Uddhav never gave appointments to even senior Shiv Sena leaders, never listened to their requests, and harboured the false assumption that Shiv Sena leaders and workers had nowhere to go except him. He never thought that Shiv Sena MLAs would revolt.
On the other hand, Shiv Sena leaders and workers were watching that Uddhav, because of ‘coalition compulsions’ was giving more preference to NCP and Congress leaders. It looked as if Uddhav was more interested in getting certificates from Sharad Pawar and Sonia Gandhi. It was then that old loyalist Eknath Shinde decided that Uddhav’s time was up and he must revolt with his supporters.
Eknath Shinde used to constantly meet his party MLAs and supporters. He used to speak about Hindutva ideology, and Shiv Sena workers then realized that they used to get more respect when they were in alliance with BJP.
Uddhav managed to become the chief minister, but in the process, he accepted Sharad Pawar, the king maker, as his boss. Leaders like Eknath Shinde saw that their political future was in jeopardy because Uddhav was anyhow going to anoint his son Aaditya Thackeray as the CM. That is when the rebels decided to take control of the party and force Uddhav to resign. They felt that their ‘acche din’ (good days) would come if they tied up in alliance with the BJP.
After the last assembly elections in Maharashtra, which the Shiv Sena fought in alliance with the BJP, 99 percent Shiv Sena MLAs wanted that a coalition government be formed with BJP, but because of high personal ambitions of Uddhav and his son Aaditya Thackeray, the feelings of 99 per cent Shiv Sena MLAs were overruled.
As the Maha Vikas Aghadi rule went on for two and a half years, most of the Shiv Sena MLAs and ministers felt almost everyday, the difference between the rule of MVA government and that of Devendra Fadnavis’ coalition government. These MLAs found that they had no say in governance. Uddhav Thackeray failed to gauge the sentiment of his MLAs. He was busy keeping Sharad Pawar and Sonia Gandhi happy, and that led to his political downfall.