देशद्रोह कानून को हमेशा के लिए खत्म कर देना चाहिए
152 साल के बाद भारत में देशद्रोह कानून के खात्मे की शुरुआत हो गई है। सरकार की सहमति के बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन. वी. रमण, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हेमा कोहली की बेंच ने अपने आदेश में उम्मीद जताई है कि जब तक सरकार इस कानून के बारे में अंतिम फैसला नहीं करती, तब तक124-A के तहत राजद्रोह के केस दर्ज नहीं होंगे।
सीधे तौर पर कहें तो भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के तहत अब देश में राजद्रोह का कोई नया मामला दर्ज नहीं किया जाएगा। जिन लोगों पर इस कानून के तहत पहले से केस दर्ज हैं, वे भी अदालतों से राहत की गुहार लगा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, ‘यदि धारा 124ए के तहत कोई नया मामला दर्ज किया जाता है, तो प्रभावित पक्ष उचित राहत के लिए संबंधित अदालतों का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं।’
सुप्रीम कोर्ट का आदेश ऐतिहासिक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करके कहा था कि प्रधानमंत्री का दृढ़ विचार है कि औपनिवेशिक युग के कानूनों के बोझ को, जिनकी अब कोई उपयोगिता नहीं रह गई है, ऐसे समय में समाप्त कर दिया जाना चाहिए जब राष्ट्र अपनी आजादी का 75वां वर्ष मना रहा है। हलफनामे में कहा गया था, ‘भारत सरकार ने, राजद्रोह के विषय पर व्यक्त किए जा रहे विभिन्न विचारों से पूरी तरह से अवगत होने के साथ-साथ नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की चिंताओं पर विचार करते हुए, इस महान राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने और संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध रहते हुए, भारतीय दंड संहिता की धारा 124A के प्रावधानों की पुन: जांच और पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है जो केवल सक्षम मंच के समक्ष किया जा सकता है।’
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को राजद्रोह कानून पर फिर से विचार करने के लिए समय देते हुए धारा 124ए की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई जुलाई के तीसरे सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दी। सीधे शब्दों में कहें तो सरकार को देशद्रोह कानून पर फिर से विचार करने के लिए करीब 2 महीने का समय मिला है।
अब सरकार इस कानून को रिपील करने की दिशा में कदम उटाएगी, इसे संशोधित करेगी, या इसकी जगह कोई दूसरा कानून लाएगी लेकिन इतना तय है कि धारा 124A अब नहीं रहेगी। इस सुनवाई के दौरान जो सबसे ज्यादा हैरानी की बात सामने आई है, वह यह है कि आजादी के बाद पिछले 75 वर्षों में भारत की किसी भी सरकार ने राजद्रोह कानून को खत्म करने की कोशिश नहीं की। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू इस कानून को खत्म करने के हिमायती थे, लेकिन यह IPC में बना रहा। आज सारी पार्टियां कह रही हैं कि यह काला कानून है, इसे खत्म होना चाहिए। सवाल यह है कि इसके बावजूद इस कानून को आजादी मिलने के तुरंत बाद खत्म क्यों नहीं किया गया?
सुप्रीम कोर्ट ने भी 1962 में अपने ऐतिहासिक केदार नाथ सिंह फैसले में देशद्रोह कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई थी। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने धारा 124A को बरकरार रखते हुए देशद्रोह की सीमा तय की थी। इसने तब कहा था कि इस प्रावधान का इस्तेमाल सिर्फ तभी किया जा सकता है जब हिंसा के लिए वास्तविक रूप से उकसाया जाए या सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित किया जाए, लेकिन सिर्फ सरकार की आलोचना करना देशद्रोह नहीं है।
हाल के दिनों में हमने देखा कि मुख्यमंत्री के आवास के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने के ऐलान पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हो गया। सोशल मीडिया पर कमेंट करने पर, ममता बनर्जी का कार्टून बनाने पर देशद्रोह लग गया। यहां तक कि सरकार के खिलाफ रिपोर्टिंग करने पर भी देशद्रोह लग गया, लेकिन उम्मीद है कि अब ऐसा नहीं होगा।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने 152 साल पुराने, राजद्रोह के कानून के खिलाफ मोदी सरकार के रुख को सही ठहराया। बेंच ने कहा, ‘यह अदालत एक तरफ देश के सुरक्षा हितों और अखंडता से अवगत है, तो दूसरी तरफ उसे नागरिक स्वतंत्रताओं और नागरिकों का भी ध्यान है। दोनों के बीच संतुलन की जरूरत है जो कठिन काम है। याचिकाकर्ताओं का पक्ष है कि कानून का यह प्रावधान संविधान की रचना से पहले का है और इसका दुरुपयोग किया जा रहा है। अटॉर्नी जनरल ने भी, सुनवाई की पिछली तारीख को, इस प्रावधान के स्पष्ट दुरुपयोग के कुछ उदाहरण दिए थे, जैसे कि हनुमान चालीसा के पाठ के मामले में।’
देशद्रोह के मामले दर्ज करने पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कानून के जानकारों ने स्वागत किया है। वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा ने कहा, ‘देशद्रोह का कानून अंग्रेजों ने बनाया था। नेहरू जी इस कानून को खत्म करना चाहते थे, कर नहीं पाए। इसके बाद इंदिरा गांधी ने इसे और कठोर बना दिया, कॉग्निजेबल ऑफेंस बना दिया। सियासी विरोधियों का मुंह बंद करने के लिए 124 A के दुरुपयोग खूब हुआ। अभी हाल ही में निर्दलीय सांसद नवनीत राणा के ऊपर महाराष्ट्र की सरकार ने राजद्रोह का केस लगाया था क्योंकि वह मुख्यमंत्री आवास के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहती थीं। सुप्रीम कोर्ट में कानून की इस धारा को रद्द करने के लिए कई पिटीशन डाली गई थीं, और यह अच्छा है कि अब सरकार के पॉजिटिव रुख के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है। सरकारें देशद्रोह कानून को विरोधियों को चुप कराने का हथियार बना रही थीं, अब यह बंद हो जाएगा।’
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, ‘हम आशा और अपेक्षा करते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें आईपीसी की धारा 124A के तहत प्राथमिकी दर्ज कराने, देशभर में राजद्रोह संबंधी कानून के तहत चल रही जांचों को जारी रखने, लंबित मुकदमों और अन्य सभी कार्यवाहियों से तब तक बचेंगी जब तक कि कानून का उक्त प्रावधान विचाराधीन है।’ इसका मतलब है कि जुलाई के तीसरे सप्ताह तक भारत में कहीं भी देशद्रोह का कोई नया मामला तब तक दर्ज नहीं किया जा सकता, जब तक कि यह पूरी तरह से न्यायोचित न हो।
सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला द्वारा साइन की हुई एक ड्राप्ट गाइडलाइन पेश की, जिसमें लिखा था, ‘…निम्नलिखित निर्देश जारी किए जाते हैं: (a) विनोद दुआ जजमेंट, 2021 में सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या का ईमानदारी से पालन किया जाना चाहिए (b) धारा 124A से संबंधित एक प्राथमिकी केवल तभी दर्ज की जाएगी जब कोई अधिकारी जो पुलिस अधीक्षक के पद से नीचे का न हो, संतुष्ट हो और लिखित रूप में अपनी संतुष्टि दर्ज करता है कि कथित अपराध में धारा 124A शामिल है, जैसा कि फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा विश्लेषण किया गया है।’
केंद्रीय गृह सचिव द्वारा राज्य सरकारों के सभी मुख्य सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों, सभी राज्यों के DGPs को भेजे गए दिशा-निर्देश स्पष्ट रूप से कहते हैं, ‘भारत संघ उन मामलों में देश के नागरिकों के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज करने के मामलों के बारे में चिंतित है, जब तथ्य आईपीसी की धारा 124A के तहत उक्त प्रावधान के रजिस्ट्रेशन और इन्वोकेशन को उचित नहीं ठहराते हैं।’
अब आपको देशद्रोह कानून का इतिहास बताता हूं। अंग्रेजों ने 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 3 साल बाद 1860 में भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code या IPC) लागू की। राजद्रोह की दफा IPC 124A 1870 में जोड़ी गई। इसका मकसद अग्रेजों की हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाने वाले, आजादी की मांग करने वाले लोगों को चुप कराना था। अंग्रेजों ने इस कानून का दुरुपयोग करते हुए बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, भगत सिंह, सरदार पटेल, पंडित नेहरू समेत हजारों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को कई सालों तक जेल में रखा।
इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 124A को ही बोलचाल की भाषा में राजद्रोह के खिलाफ कानून कहते है। इस कानून के मुताबिक, ‘जब कोई व्यक्ति बोलकर या लिखकर, इशारों, तस्वीरों, वीडियो, कार्टून या किसी और तरीके से लोगों के बीच नफरत फैलाता है, सरकार की अवमानना करने या उसके खिलाफ उकसाने की कोशिश करता है, भारत में कानूनी तरीके से स्थापित सरकार के प्रति असंतोष भड़काने का प्रयास करता है, तो वह राजद्रोह का अभियुक्त माना जाता है। राजद्रोह एक गैर-जमानती अपराध है। इसमें 3 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।’
बाल गंगाधर तिलक पहले स्वतंत्रता सेनानी थे जिन पर 1897 में अपने अखबार ‘केसरी’ में लिखे एक लेख के लिए देशद्रोह का केस दर्ज किया गया था। उन्हें एक साल जेल की सजा सुनाई गई थी। 1908 में बंगाल के क्रांतिकारियों के समर्थन में लिखने के लिए उन्हें 6 साल कैद की सजा सुनाई गई और बर्मा (म्यांमार) की मांडले जेल भेज दिया गया। 1916 में उन्हें फिर से देशद्रोह के आरोप का सामना करना पड़ा। इसी तरह, मुंबई में सरकार विरोधी प्रदर्शन में भाग लेने के लिए महात्मा गांधी पर 1922 में देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया और 6 साल जेल की सजा सुनाई गई। इलाहाबाद में किसानों को संबोधित करने के लिए 1930 में पंडित नेहरू पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ और उन्होंने 2 साल जेल में बिताए। बंगाल में भाषण देने के लिए 1934 में उन पर फिर से राजद्रोह का केस दर्ज हुआ और 2 साल की कैद हुई।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 1951 में पंजाब हाई कोर्ट और 1959 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने IPC की धारा 124A (देशद्रोह) को असंवैधानिक करार दिया था, लेकिन 1962 में बिहार सरकार बनाम केदारनाथ सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने धारा को संवैधानिक रूप से सही ठहराया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के कानून का बेजा इस्तेमाल रोकने के लिए कई शर्तें जोड़ीं। लेकिन बाद के वर्षों में, मुख्य रूप से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन के दौरान, सुप्रीम कोर्ट की भावना का ख्याल नहीं रखा गया और इस कानून का जमकर बेजा इस्तेमाल हुआ।
सुप्रीम कोर्ट के बुधवार के आदेश पर पूर्व एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि मोदी सरकार ने वह बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाया है, जिसे 75 साल पहले उठना चाहिए था। मुकुल रोहतगी ने पूछा, ‘आजाद भारत में अंग्रेजों की गुलामी वाले कानून की क्या जरूरत है?’ यहां तक कि ब्रिटेन ने यह कानून 2009 में ही खत्म कर दिया था। अमेरिका में राजद्रोह का कानून है, लेकिन वहां इसका इस्तेमाल शायद ही कभी होता है। ऑस्ट्रेलिया ने भी 2010 में कानून से राजद्रोह शब्द हटा दिया है। न्यूजीलैंड और सिंगापुर जैसे छोटे देशों ने इसे खत्म कर दिया है। लेकिन यह कानून अब तक हमारे देश में लागू है, और सिर्फ लागू ही नहीं है, बल्कि इसका दुरुपयोग भी खूब खुलकर हो रहा है।
मैं आपके सामने कुछ आंकड़े रखता हूं। आंकड़ों के मुताबिक, फिलहाल 124 A के तहत 800 से ज्यादा मामलों में देशभर में 13,306 लोग जेलों में बंद हैं। 2010 से 2021 के बीच सिर्फ 13 आरोपियों के खिलाफ आरोप साबित हुए। इस कानून के तहत कन्विक्शन रेट 0.1 फीसदी से भी कम है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़े के मुताबिक, 2014 से 2019 के बीच देश भर में 548 लोगों को राजद्रोह के तहत गिरफ्तार किया गया, लेकिन इनमें से सिर्फ 6 आरोपी ही दोषी साबित किए जा सके।
सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक आदेश के तुरंत बाद कांग्रेस ने इसका श्रेय लेने की कोशिश की। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘सच बोलना देशभक्ति है, देशद्रोह नहीं। सच कहना देश प्रेम है, देशद्रोह नहीं। सच सुनना राजधर्म है, सच कुचलना राजहठ है। डरो मत!।’
कांग्रेस को कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने तीखा जबाव दिय। रिजिजू ने ट्वीट किया, ‘राहुल गांधी के शब्द खोखले हैं। यदि कोई पार्टी आजादी, लोकतंत्र और संस्थाओं के सम्मान की विरोधी है तो वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस है। यह पार्टी हमेशा भारत को तोड़ने वाली ताकतों के साथ खड़ी रही है और देश को बांटने का कोई मौका नहीं छोड़ती। और पहला संशोधन कौन लाया था? यह पंडित जवाहरलाल नेहरू थे! लेकिन श्यामा प्रसाद मुखर्जी और जनसंघ अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने वाले इस कदम के विरुद्ध खड़े रहे। नेहरूजी ने लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित केरल की सरकार को भी बर्खास्त कर दिया था। और बोलने की आजादी को कुचलने की बात करें तो श्रीमती इंदिरा गांधी इस मामले में स्वर्ण पदक विजेता रहीं। हम सभी आपातकाल के बारे में जानते हैं, लेकिन क्या आपको यह भी पता है कि उन्होंने अनुच्छेद 356 को 50 से ज्यादा बार लागू किया। वह हमारे तीसरे स्तंभ न्यायपालिका को कमजोर करने के लिए एक ‘प्रतिबद्ध न्यायपालिका’ के विचार के साथ आईं थीं।’
इसमें कोई शक नहीं कि इस कानून में बदलाव की जरूरत है। इस कानून का किस कदर बेजा इस्तेमाल होता है इसके 2 उदाहरण आपको बताता हूं। छत्तीसगढ़ के कांग्रेस विधायक शैलेश पांडे ने विलासपुर के कलेक्टर के खिलाफ देशद्रोह के कानून में केस दर्ज करने की मांग की। वजह ये थी कि कलेक्टर साहब ने जिले में आयोजित छत्तीसगढ़ दिवस समारोह का न्योता विधायक को नहीं दिया था। दूसरा दिलचस्प मामला दिल्ली का है। एक शख्स की ट्रेन छूट रही थी, और उसने ट्रेन को लेट कराने के लिए बम की झूठी कॉल कर दी। ट्रेन लेट हो गई। पुलिस ने उस शख्स को पकड़ लिया और उसके खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज कर दिया। ऐसे सैकड़ों मामले हैं। इसलिए इस कानून को बदलने की जरूरत तो है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जो ऑर्डर दिया है, उसके बारे में कुछ बातें समझने की जरूरत है। पहली बात तो यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 124A के तहत मुकदमा दर्ज करने पर रोक नहीं लगाई है। कोर्ट ने सिर्फ इतना कहा है कि उसे उम्मीद है कि जब तक केंद्र सरकार देशद्रोह कानून की समीक्षा न कर ले तब तक कोई सरकार धारा 124A का इस्तेमाल नहीं करेगी। केन्द्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल ने सुझाव दिया था कि अगर कोई नई FIR दर्ज होती है, जहां दूसरे गंभीर आरोपों के साथ देशद्रोह का केस भी बनता है तो उसे इजाजत दी जाए। यह सुझाव कोर्ट ने मान लिया।
दूसरी बात यह कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में औपनिवेशिक कानून के खिलाफ सरकार के हलफनामे का कई जगह जिक्र किया। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राय दिखाई दी। मोदी ने कहा था कि देशद्रोह का कानून ‘कॉलोनियल बैगेज’ है, अंग्रेजों के जमाने का बोझ है, जिसे खत्म किया जाना चाहिए। सरकार की तरफ से एटॉर्नी जनरल ने नवनीत राणा के केस का उदाहरण दिया था, जहां मुख्यमंत्री आवास के बाहर हनुमान चालीसा के पाठ का ऐलान करने लिए राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था। अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का भी जिक्र किया। और एक बार तो कोर्ट ने कपिल सिब्बल से यह भी कहा कि वह हवा में बहस न करें।
देशद्रोह के कानून को एक दिन में खत्म नहीं किया जा सकता। इतिहास गवाह है कि जवाहरलाल नेहरू ने 1951 में देशद्रोह के कानून के खिलाफ एक भाषण दिया था। इंदिरा गांधी ने इस कानून को और सख्त बनाया था। लेकिन मोदी ने इस कानून पर पुनर्विचार और समीक्षा करने की बात की। इसे आप मोदी का मास्टरस्ट्रोक कह सकते हैं। मोदी सरकार ने इस कानून के दुरुपयोग पर जो सवाल उठाए, उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने माना। यह अब मोदी सरकार की जिम्मेदारी है कि राजद्रोह के इस कानून की जब समीक्षा हो, जब इस पर फिर से विचार हो, तो यह सुनिश्चित किया जाए कि अग्रेजों का बनाया ये काला कानून खत्म हो। इसके साथ ही नया कानून ऐसा हो कि कोई भी सरकार अपने विरोधियों के खिलाफ राजद्रोह के कानून का बेजा इस्तेमाल न कर सके।
Sedition law : Baggage of colonial era must be scrapped, once and for all
The process for bringing an end to the 152-year-old anti-sedition law has begun. With the consent of the Centre, the Supreme Court bench of Chief Justice N V Ramana and Justices Surya Kant and Hima Kohli in their order expressed this hope: “We expect that, till the re-examination of the provision is complete, it will be appropriate not to continue the usage of the aforesaid provision of law by the governments.’
In plain words, no fresh sedition case will be registered in India any more under Section 124-A of Indian Penal code. Those who have been charged under this law can seek relief from courts. The apex court bench said, “if any fresh case is registered under Sec 124A, the affected parties are at liberty to approach the concerned courts for appropriate relief.”
The Supreme Court order is historic. Prime Minister Narendra Modi’s government in its affidavit filed before the Supreme Court had said that the Prime Minister is of the firm view that the baggage of colonial era laws, which outlived their utility must be scrapped at a time when the nation is celebrating 75th year of Independence. The affidavit had said, “The Government of India, being fully cognizant of various views being expressed on the subject of sedition and also having considered the concerns of civil liberties and human rights, while committed to maintain and protect the sovereignty and integrity of this great nation, has decided to re-examine and reconsider the provisions of Section 124A of the Indian Penal Code which can be done only before the competent forum”.
The apex court, while giving time to the Centre to re-examine the sedition law, posted further hearing of petitions challenging validity of Sec 124A to the third week of July. In plain words, the Centre will get nearly two months to re-examine the sedition law.
The moot point is that Section 124A dealing with sedition will no more be there, and there could be some other provision which can replace this section. The most surprising part that has come out of this hearing is that successive governments in India during the last 75 years of independence never tried to scrap the sedition law. India’s first prime minister Pandit Jawaharlal Nehru wanted the sedition law to go, but it continued to remain in IPC. Now that all major mainstream parties want this provision to go, the question is: why was this provision not scrapped soon after independence?
Even the Supreme Court in 1962 has expressed concerns over the misuse of sedition law, while giving its landmark Kedar Nath Singh judgement. In that judgement, a five-judge Constitution Bench of Supreme court, while upholding Section 124A, had defined the limits of sedition. It had then said that this provision can only be used when there is an actual incitement to violence or disruption of public order, but mere criticism of the government does not amount to sedition.
In recent weeks we have seen sedition law used against those who wanted to recite Hanuman Chalisa outside a chief minister’s residence, it was used against people who posted caustic comments on social media, against those who drew cartoons caricaturing Chief Minister Mamata Banerjee, and against those who carried out reporting against the government. But, hopefully, this shall not happen anymore.
On Wednesday, the Supreme Court gave a green signal to the Centre’s move to re-examine the law. The bench said, “There is a requirement to balance both sets of considerations (security interests and civil liberties), a difficult exercise. The case of the petitioners is that this provision of law dates back to 1898, pre-dating the Constitution itself, and is being misused. The attorney general had also, on an earlier date of hearing, given some instances of glaring misuse of this provision, like in the case of recital of Hanuman Chalisa”.
Senior legal experts welcomed the Supreme Court’s order restraining filing of sedition cases. Senior Advocate Geeta Luthra said, “sedition law was enforced by the British rulers, Nehru wanted to scrap this law, but could not do so, and Indira Gandhi made it more stringent by making it a cognisable offence. Sec 124A was widely misused in order to muzzle the voice of critics, only recently independent MP Navneet Rana was slapped with a sedition case by Maharashtra government because she wanted to recite Hanuman Chalisa outside the chief minister’s residence. Several petitions were filed in Supreme Court seeking scrapping of this provision, and it is good that Supreme Court has now stayed its operation following a positive attitude from the Centre. Governments were using this provision as a tool to silence critics, this will now stop”.
The apex court bench has said, “we hope and expect that the state and central governments will restrain from registering any FIR, continuing any investigation or taking any coercive measures by invoking Section 124A of IPC while the aforesaid provision of law is under consideration”. This means, till the third week of July, no fresh sedition case can be filed anywhere in India, until it is absolutely justified.
In the Supreme Court, Solicitor General Tushar Mehta placed a draft guideline, signed by Union Home Secretary Ajay Bhalla, which said, “…the following directions are issued: (a) The interpretation of Supreme Court in the Vinod Dua judgement, 2021, ought to be scrupulously followed and adhered to, (b) An FIR involving Section 124A will be registered only if an officer not below the rank of Superintendent of Police is satisfied and records his satisfaction in writing that the offence alleged involves Section 124A as analysed by the Supreme Court in the captioned judgement.”
The guidelines sent by the Union Home Secretary to all chief secretaries of state governments and administrators of union territories, all state police DGPs, clearly says, “The Union of India is concerned about the instances of registration of sedition case against citizens of the country in cases when the facts do not justify the registration and invocation of said provision under Section 124A of IPC”.
Let me go into the history of sedition law. In 1860, three years after India’s First War of Independence in 1857, the British brought the Indian Penal Code. In 1870, the colonial rulers, in order to crush revolts in different parts of India, inserted Section 124A in IPC. This sedition provision was widely misused by the British rulers to imprison freedom fighters like Bal Gangadhar Tilak, Mahatma Gandhi, Bhagat Singh, Sardar Patel, Pandit Nehru and thousands of others.
Sedition under Section 124A of IPC has been defined as under: “Whoever by words, spoken or written, or by signs, or by visible representation, or otherwise, brings or attempts to bring into hatred or contempt, or excites or attempts to excite disaffection towards, the Government established by law in India, shall be punished with imprisonment for life, to which fine may be added, or with imprisonment which may extend to three years, to which fine may be added, or with fine.”
Bal Gangadhar Tilak was the first freedom fighter who was charged with sedition in 1897 for an article he wrote in his newspaper ‘Kesari’. He was sentenced to one year in jail. In 1908, he was sentenced to six years’ imprisonment and sent to Mandalay jail in Burma (Myanmar) for writing in support of Bengal revolutionaries. He again faced charge of sedition in 1916. Similarly, Mahatma Gandhi was charged with sedition in 1922 and sentenced to six years in jail for taking part in anti-government protest in Mumbai. Pandit Nehru was charged with sedition in 1930 for addressing farmers in Allahabad, and spent two years in jail. In 1934, he was again charged with sedition for giving speeches in Bengal and was imprisoned for two years.
You will be surprised to know, Punjab High Court in 1951 and Allahabad High Court in 1959 held Section 124A (sedition) as unconstitutional, but in the Kedarnath Singh case in 1962, the Constitution Bench of Supreme Court laid several conditions to prevent misuse of this provision. The basic idea of the apex court bench was flouted more in practice in subsequent years, mainly during the regime of former PM Indira Gandhi.
On Wednesday, former Attorney General Mukul Rohatgi, commenting on the Supreme Court order, said that Modi government has taken a big, historic step, which should have been taken 75 years ago. Rohtagi said, “In independent India, why should we bear the burden of a law framed by the British to enforce slavery?” Even Britain has scrapped its sedition law in 2009. USA has a sedition law, but it is rarely used. The word ‘sedition’ has been removed from Australian laws. Small countries like New Zealand and Singapore also scrapped sedition laws, but it is not only being enforced, but widely misused in India.
Let me state some facts here. There are presently 13,306 persons in jails across India charged under Section 124A, in more than 800 cases. Between 2010 and 2021, sedition charges were proved only against 13 accused. The conviction rate was less than 0.1 per cent. According to National Crime Records Bureau, 548 people were arrested for sedition in India from 2014 till 2019, but charges could be proved only against six persons.
Soon after the Supreme Court gave its historic order, the Congress tried to take credit by taking a moral stand. Congress leader Rahul Gandhi tweeted: “Speaking the truth is patriotism, not treason, Speaking the truth is love for the nation, not treason. To listen to truth is ‘rajdharma’, and crushing the truth is ‘raj-hath’(arrogance). Do not fear.”
Law Minister Kiren Rijiju gave a stinging reply to Rahul Gandhi’s jibe. Rijiju tweeted: “Empty words by Rahul Gandhi. If there is one party that is the anti-thesis of freedom, democracy and respect for institutions, it is the Indian National Congress. This Party has always stood with Breaking India forces and left no opportunity to divide India”. And who brought in the First Amendment? None other than Pandit Jawaharlal Nehru! It was S. P. Mookerjee and the Jana Sangh which stood in opposition to this measure aimed at curtailing freedom of expression. Nehruji also dismissed the democratically elected government in Kerala. And when it comes to trampling over free speech, Mrs Indira Gandhi Ji is a Gold Medal winner! We all know about the Emergency, but do you also know she imposed Article 356 over 50 times. She came up with the idea of a ‘committed judiciary’ to weaken the Judiciary, our 3rd pillar.”
There is no doubt that the law for sedition needs to be changed. I can cite two glaring examples of how this provision is being misused. A Congress MLA Shailesh Pandey in Chhattisgarh demanded that a sedition case be slapped against the Collector of Bilaspur, because the Collector did not send him the official invitation to the Chhattisgarh Day celebrations. In Delhi, a passenger was going to miss his train and he made a fake bomb call to the police in order to delay the departure of his train. Police nabbed the man and slapped sedition charge against him. There are hundreds of such frivolous cases. That is why there is the need to change this law.
While going through the Supreme Court order, one must understand that the Supreme Court has not put a brake on filing of sedition cases under Section 124A of IPC. The apex court has only said, that it “expects” that no state or central government will file case under Sec 124A till the time the Centre completes re-examining the sedition law. The Solicitor General had suggested on behalf of the Centre, fresh FIR can be filed only if a serious offence is clubbed with the sedition charge. The apex court agreed to this suggestion.
Secondly, the Supreme Court in its order quoted at several points, the Centre’s affidavit against the ‘baggage of colonial laws’. This reflect Prime Minister Narendra Modi’s views. Modi had been saying that sedition law is a colonial baggage since British rule and it must end. On behalf of the government, the Attorney General had cited the case of independent MP Navneet Rana, who faced sedition charge, when she announced her intention to recite Hanuman Chalisa outside the chief minister’s residence. The apex court mentioned this case in its order too. At one point, the apex court had to tell lawyer Kapil Sibal not to put forth arguments in air.
A sedition law cannot be struck down in a day. History is witness to what Jawaharlal Nehru said in his speech in 1951 on sedition law. Indira Gandhi made it a cognisable offence. But Modi has offered to re-examine and review the sedition law. You can say this is Modi’s masterstroke. Supreme Court has accepted Modi government’s contention about misuse of this law. It is now Modi government’s responsibility to ensure that British period law is scrapped whenever it is re-examined. The new law must provide strict safeguards so that it cannot be misused as a tool by any government to crush opposition and dissent.
मोहाली हमला: पंजाब के सीएम केन्द्र के साथ मिल कर पाकिस्तान की साजिश नाकाम करें
पंजाब पुलिस ने सोमवार की रात रूस में निर्मित एक रॉकेट लॉन्चर बरामद किया। इस रॉकेट लॉन्चर का इस्तेमाल कथित तौर पर मोहाली में स्थित पंजाब पुलिस के इंटेलिजेंस विंग के हेडक्वॉर्टर पर रॉकेट-प्रोपेल्ड ग्रेनेड से हमला करने के लिए किया गया था। इस बीच पुलिस को एक CCTV फुटेज मिली है जिसमें RPG के लॉन्च होने से ठीक पहले 2 हमलावर एक गाड़ी में बैठे नजर आ रहे हैं।
सूत्रों ने बताया कि खेतों में काम कर रही एक महिला मजदूर को यह रॉकेट लॉन्चर मिला था। यह घटनास्थल से एक किमी से भी कम दूरी पर स्थित ओल्ड सोहना रोड पर एक प्लॉट से बरामद हुआ। हमलावरों की पहचान अभी तक नहीं हो पाई है। पुलिस अफसरों को शक है कि इस हमले का मास्टरमाइंड हरविंदर सिंह रिंडा है, जो पाकिस्तान में रहता है। रिंडा पहले गैंगस्टर था और अब आतंकी वारदातों को अंजाम देता है। एक पुलिस अफसर ने कहा कि रिंडा ड्रग्स और हथियारों के तस्करों के अपने नेटवर्क का इस्तेमाल कर रहा है। ये तस्कर सीमा पार से ड्रग्स और हथियारों लाने-ले जाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करते हैं। अब तक पंजाब में अलग-अलग जगहों से करीब 10 किलो RDX विस्फोटक बरामद किया गया है।
पंजाब के पुलिस चीफ वी. के. भवरा ने कहा, ग्रेनेड हमले में TNT (ट्रिनिट्रोटोल्यूइन) विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया था। उन्होंने मंगलवार को कहा, ‘हमें कुछ अहम सुराग मिले हैं और हम जल्द ही इस मामले को सुलझा लेंगे।’ इस बीच पुलिस ने अब तक 2 लोगों को हिरासत में लिया है। इनमें तरणतारन जिले की पट्टी तहसील का रहने वाला निशांत सिंह भी शामिल है, जो शादी के बाद इस समय अमृतसर में रह रहा है। उसे फरीदकोट पुलिस ने हिरासत में ले लिया है।
एक पुलिस अधिकारी ने हमले के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि ग्रेनेड को सड़क से फायर किया गया और यह ऑफिस बिल्डिंग के तीसरे फ्लोर से टकराया, जिससे खिड़की के शीशों, कांच के दरवाजों, फर्नीचर और कंप्यूटर को नुकसान पहुंचा। उन्होंने कहा कि हमलावर सफेद रंग की कार से आए और सड़क के पार से रॉकेट लॉन्चर के जरिए ग्रेनेड को दागा, लेकिन उसमें ब्लास्ट नहीं हुआ। ग्रेनेड खिड़की के शीशे, फर्नीचर और कंप्यूटर से टकराया, लेकिन कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। इसके तुरंत बाद हमलावर कार में सवार होकर एयरपोर्ट रोड की ओर भागे, और दप्पर टोल प्लाजा को पार कर हरियाणा के अंबाला पहुंच गए। पंजाब और हरियाणा पुलिस मिलकर हमलावरों को ढूंढ़ रही है। अंबाला में एक शख्स को हिरासत में लिया गया है।
मोहाली ग्रेनेड हमला भविष्य में किसी बड़े आतंकी हमले का संकेत हो सकता है। हालांकि हमले में एक भी व्यक्ति घायल नहीं हुआ, लेकिन इसमें रॉकेट लॉन्चर का इस्तेमाल चिंता की बात है। रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड का इस्तेमाल पाकिस्तान की आर्मी करती है। अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान ने पाकिस्तान की आर्मी को RPG की सप्लाई की थी। जम्मू और कश्मीर में भी कुछ मामलों में आतंकवादियों द्वारा RPG के इस्तेमाल की बात सामने आई थी लेकिन राष्ट्र विरोधी ताकतों द्वारा पंजाब में इसका इस्तेमाल पहली बार किया गया है।
पंजाब पुलिस अभी तक 50 से भी ज्यादा CCTV कैमरों से फुटेज इकट्ठा कर चुकी है। उस इलाके से 3000 से ज्यादा मोबाइल फोन का डेटा खंगाला जा रहा है और इस हमले की पहेली को सुलझाने की कोशिश हो रही है।
आमतौर पर रॉकेट लॉन्चर का इस्तेमाल 300 से 800 मीटर की दूरी तक ग्रेनेड दागने के लिए किया जाता है, लेकिन मोहाली में इंटेलिजेंस यूनिट के हेडक्वार्टर पर इसे 80 मीटर की दूरी से ही फायर किया गया था। पंजाब पुलिस हमलावरों पर शिकंजा कसने के लिए मिलिट्री इंटेलिजेंस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी की मदद ले रही है। NIA ने आधिकारिक तौर पर इस मामले की जांच शुरू नहीं की है।
पंजाब में पिछले साल अगस्त से लेकर अब तक 7 आतंकी हमले हुए हैं। पिछले साल दिसंबर में लुधियाना जिला सत्र अदालत के वॉशरूम में बम असेंबल करने की कोशिश कर रहे पंजाब पुलिस के बर्खास्त कांस्टेबल गगनदीप सिंह की मौत हो गई थी और 6 अन्य घायल हो गए थे।
पिछले साल नवंबर में पठानकोट में सेना के एक कैंप के पास एक ग्रेनेड ब्लास्ट किया गया था और उसी महीने एसबीएस नगर के CIA के एक पुलिस स्टेशन में भी इसी तरह का ग्रेनेड हमला हुआ था। इस साल 9 मार्च को राज्य की विधानसभा चुनाव से ठीक पहले रूपनगर में एक पुलिस चौकी पर ग्रेनेड से हमला किया गया था।
पिछले साल सितंबर में फाजिल्का के जलालाबाद में मोटरबाइक ब्लास्ट हुआ था, जबकि फिरोजपुर में टिफिन बम मिला था। 23 अप्रैल को चंडीगढ़ में बुड़ैल जेल के बाहर टिफिन बम मिला, जिसमें करीब डेढ़ किलो RDX भरा हुआ था। 5 मई को हरियाणा पुलिस ने 4 खालिस्तानी आतंकियों को करनाल से गिरफ्तार किया था। ये आतंकी 4 किलो RDX लेकर कार से तेलंगाना जा रहे थे। उनके पास से 3 इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED), एक पिस्तौल, 31 कारतूस, 6 मोबाइल फोन और 1.3 लाख रुपये कैश बरामद किया गया था।
करनाल में पकड़े गए आतंकियों ने खुलासा किया कि उन्हें ये हथियार फिरोजपुर में मिले थे जिन्हें पाकिस्तान में रहने वाले हरविंदर सिंह रिंडा ने बॉर्डर पार से ड्रोन के जरिए भेजा था। रिंडा ने एक ऐप का इस्तेमाल कर ये हथियार भेजे थे, जिसमें इसकी लोकेशन आदिलाबाद बताई गई थी। रविवार (8 मई) को तरणतारन में एक खंडहर में छिपाया गया 3.5 किलो RDX बरामद हुआ था।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने मंगलवार को कहा कि देश के दुश्मन हिंसा फैलाने और भाईचारा खत्म करने की साजिश रच रहे हैं। उन्होंने हमले के दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का वादा किया। अगर मोहाली हमले के मामले की जांच एनआईए अपने हाथ में ले लेती है तो यह पंजाब की AAP सरकार के लिए काफी शर्मिंदगी की बात होगी। पंजाब पुलिस के अधिकारियों का कहना है कि खालिस्तानी संगठनों के स्लीपर सेल अब सक्रिय हो गए हैं और यह पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान समेत सिर्फ 12 देश ऐसे हैं, जहां ग्रेनेड फायर करने के लिए रॉकेट लॉन्चर का इस्तेमाल किया जाता है।
पंजाब पुलिस की इंटेलिजेंस विंग का हेडक्वॉर्टर मोहाली के सेक्टर 77 में स्थित है, जिसे अभी विकसित किया जा रहा है। बिल्डिंग के आसपास खुला इलाका है, और वहां कुछ सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। इसी चीज का फायदा उठाकर हमलावर फरार हो गए। हमलावर एक स्विफ्ट डिजायर कार में थे और वे हमले के बाद अंबाला की ओर भाग गए।
आतंकवाद से जुड़ी घटनाएं इस ओर इशारा करती हैं कि राष्ट्र विरोधी ताकतें पंजाब में फिर से खलबली मचाने के लिए इकट्ठा हो रही हैं। पाकिस्तान के ISI हेडक्वॉर्टर में ‘के2 डेस्क’ के ऐक्टिव होने की खबरें हैं। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि K2 डेस्क ने खालिस्तानी और कश्मीरी आतंकवादियों का ‘लश्कर-ए-खालसा’ नाम से एक संगठन बनाया है। इस संगठन में अफगान आतंकियों को भी शामिल किया गया है, क्योंकि उन्हें RPG चलाना आता है। इनका प्लान है कि सोशल मीडिया के जरिए युवाओं की भर्ती की जाए। फेसबुक डेटा को खंगालने पर भारतीय खुफिया अधिकारियों को ‘अमर खालिस्तानी’ नाम की एक फर्जी आईडी मिली, जो असंतुष्ट युवाओं को अपनी तरफ खींचने के लिए ‘Azad Kashmir and Khalistan’ जैसे पेज चला रही थी।
कांग्रेस और बीजेपी जैसे विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि भगवंत मान के नेतृत्व वाली AAP सरकार सीमा पार से आतंकवाद की चुनौती का मुकाबला करने में असमर्थ है। कांग्रेस नेता जयवीर शेरगिल ने गृह मंत्री अमित शाह से अपील की है कि मोहाली हमले की जांच एनआईए से कराएं। बीजेपी नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि मुख्यमंत्री भगवंत मान को कानून व्यवस्था में सुधार पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर मुख्यमंत्री भगवंत मान को पूरा सपोर्ट करते हैं।
इसमें तो कोई शक नहीं है कि सीमा पार के दुश्मन पंजाब को फिर से सुलगाने की कोशिश कर रहे हैं। जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान की सारी साजिशें नाकाम हो रही है, इसलिए अब उसने पंजाब में नया मोर्चा खोला है। चूंकि इंटरनेशनल बॉर्डर से घुसपैठ अब मुश्किल है, इसलिए ड्रोन की मदद से हथियार और ड्रग्स भेजने की कोशिश हो रही है।
सोमवार की रात ही इंटरनेशनल बॉर्डर पर 10 किलोग्राम हेरोइन ड्रोन के जरिए भेजी गई। BSF ने इस ड्रोन को मार गिराया। पिछले कुछ वक्त में ड्रोन के जरिए 70 पिस्तौलें, एक सब मशीन गन, एक फॉल राइफल, एक AKM राइफल, एक 7.5 सेगा राइफल, एक PMG एमके राइफल और 98 मैगजीन पाकिस्तान की तरफ से पंजाब में गिराई गईं। इन सभी हथियारों को भारतीय सुरक्षा बलों ने जब्त कर लिया था।
जो ड्रोन पाकिस्तान की तरफ से भेजे जाते हैं, वे आमतौर पर 10 से 20 किलो तक का भार ले जाने में सक्षम होते हैं। जिस RPG से मोहाली में हमला हुआ, उसका वजन करीब 7 किलो होता है। इसीलिए एजेंसियों को लग रहा है कि इसे ड्रोन के जरिए पाकिस्तान से भेजा गया होगा। पाकिस्तान विदेशों में बैठे स्वयंभू खालिस्तानी आतंकवादियों के साथ मिलकर एक बार फिर पंजाब में माहौल खराब करना चाहता है।
हमें इस पूरे मामले को गंभीरता से लेने की जरूरत है। हो सकता है पाकिस्तान को लगता हो कि पंजाब में एक ऐसी सरकार है जिसके पास प्रशासन का अनुभव नहीं है, एक ऐसा मुख्यमंत्री है जिसने कभी आतंकवाद के मामलों से डील नहीं किया। पाकिस्तान इस मौके का फायदा उठाने की फिराक में है।
वक्त की मांग यह है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान को केंद्रीय एजेंसियों के साथ करीबी तालमेल बिठाना चाहिए और पाकिस्तान में रची जा रही शैतानी साजिश को नाकाम करना चाहिए। यह मामला पंजाब के लोगों की सुरक्षा से जुड़ा है। पंजाब में हर कीमत पर शांति बनी रहनी चाहिए।
Mohali attack: Punjab CM must closely coordinate with Centre to foil Pak plot
Punjab Police have recovered a Russian-made rocket launcher allegedly used for firing a rocket-propelled grenade at the state police intelligence wing HQ in Mohali on Monday night. Meanwhile, CCTV footage has been obtained by police showing two attackers sitting inside a vehicle before the RPG was launched.
A female labourer working in the fields found the rocket launcher, sources said. It was found from a plot of land on Old Sohna road, less than one km from the blast site. The identities of attackers are still shrouded in mystery. Police officials suspect the hand of Pakistan-based gangster-turned-terrorist Harvinder Singh Rinda as the possible mastermind behind this attack. A police official said, Rinda has been using his network of smugglers dealing in narcotics and weapons. These smugglers use drones from across the border to ferry narcotics and weapons. Till now, nearly 10 kg of RDX explosives have been seized from different locations in Punjab.
Punjab Police chief V. K. Bhawra said, TNT (trinitrotoluene) explosive was used in the grenade attack. “We have got some strong clues and we will crack this case soon”, he said on Tuesday. Meanwhile, police have detained two persons so far. Among them is one Nishant Singh, a resident of Patti tehsil of Taran Taran district, presently living in Amritsar after his marriage, has been taken into custody by Faridkot police.
Describing the sequence of attack, a police official said, the grenade was fired from the road, and it hit the third floor of the office building, damaging windowpanes, glass doors, furniture and computers. He said, the attackers travelled in a white-coloured car, the grenade was fired from a rocket launcher from across the road but it did not explode. The grenade hit the window glass panes and some furniture and computers, but did not cause big damage. Soon after, the attackers fled in the car towards Airport Road, reached Ambala in Haryana after crossing Dappar toll plaza. Punjab and Haryana Police are now closely coordinating in tracking the attackers. One person has already been detained in Ambala.
The Mohali grenade firing could be the indication of a bigger terror attack in future. Though not a single person was injured, but the use of a rocket launched raises serious concerns. Rocket-propelled-grenades are used by Pakistan army. The Taliban in Afghanistan had supplied RPGs to the Pakistan army. In Jammu and Kashmir, there were some instances where terrorists used RPGs, but this is the first time that RPG has been used by anti-national forces in Punjab.
Till now, Punjab Police has assembled footage from more than 50 CCTV cameras. More than 3,000 cellphone data from that locality have been collected and sleuths are poring through them to link the missing pieces in the puzzle.
Normally, rocket launchers are used to fire grenades up to a distance of 300 to 800 metres, but in Mohali, it was used to fire from a distance of 80 metres. Punjab Police is taking help from Military Intelligence and National Investigation Agency to zero in on the attackers. NIA has not officially started its probe.
Punjab has witnessed seven terror attacks since August last year. In December last year, a dismissed Punjab Police constable Gagandeep Singh was killed and six others were injured when he was trying to assemble a bomb inside the washroom of Ludhiana district sessions court.
In November last year, a grenade blast was carried out near an army camp in Pathankot and a similar grenade attack took place the same month at a CIA police station in SBS Nagar. On March 9 this year, there was a grenade attack on a police post in Rupnagar, just ahead of state assembly elections.
In September last year, there was a motorbike blast in Jalalabad, Fazilka, while a tiffin bomb was found in Ferozepur. On April 23, a tiffin bomb containing 1.5 kg RDX explosive was found near Burail jail near Chandigarh. On May 5, four Khalistani terrorists were arrested by Haryana Police from Karnal. They were intercepted while carrying four kg RDX explosive, and were on their way to Telangana. Three improvised explosive devices (IEDs), a pistol, 31 cartridges, six cell phones and Rs 1,30,000 cash were seized from them. These terrorists disclosed that they got these weapons in Ferozepur from across the border with the help of drones, sent by Harvinder Singh Rinda, based in Pakistan. Rinda had sent this consignment using an app, which showed its location as Adilabad. On Sunday (May 8), 3.5 kg RDX was found hidden inside a dilapidated building in Taran Taran.
Punjab chief minister Bhagwant Mann on Tuesday said that enemies of the nation are conspiring to spread violence and spoil brotherhood. He promised to take stern action against those found guilty. If the NIA takes over the probe into Mohali attack case, it could be a big embarrassment for the AAP government in Punjab. Punjab Police officials say that sleeper cells of Khalistani outfits have now become active and this could pose a big challenge to the police force. There are only 12 countries, including Pakistan and Afghanistan, where rocket launchers are used to fire grenades.
The Punjab Police intelligence wing headquarter is located in Sector 77 of Mohali, which is still being developed. There are open areas around the building, and few CCTV cameras have been installed. The attackers took advantage of this and fled. The attackers were in a Swift Dzire car and they fled towards Ambala after the attack.
Terror-related incidents point towards anti-national forces ganging up to cause turmoil in Punjab again. There are reports of the ‘K2 desk’ becoming active in Pakistan’s ISI headquarters. Reports say, the K2 desk has set up a ‘Lashkar-e-Khalsa’, an amalgam of Khalistani and Kashmiri terrorists. Afghan militants have also been inducted into this outfit, as they have experience in firing RPGs. This outfit plans to recruit youths through social media. While going through Facebook data, Indian intelligence sleuths stumbled upon a fake ID named ‘Amar Khalistani’ that was running pages like ‘Azad Kashmir and Khalistan’ to attract disgruntled youths.
Opposition parties like Congress and BJP have alleged that the AAP government led by Bhagwant Mann is unable to counter the terror challenge from across the border. Congress leader Jaiveer Shergill appealed to Home Minister Amit Shah to get the Mohali attack probed by NIA. BJP leader manjinder Singh Sirsa said, chief minister Bhagwant Mann should concentrate more on improving law and order. On national security issue, he said, we would like to give full support to the chief minister.
There is not an iota of doubt that the enemies from across the border are trying to create disturbance in Punjab. Pakistan has failed in fomenting violence in Kashmir Valley, and now it has opened up a new front in Punjab. Drones are being used to smuggle weapons and narcotics.
On Monday night, 10 kg heroin that was being smuggled by drone from Pakistan was shot down by BSF on the international border. In recent weeks, 70 pistols, a sub-machinegun, a light automatic FAL rifle, an AKM rifle, one 7.5 Saiga rifle, a PGM MK rifle, and 98 magazines were airdropped from Pakistan in Punjab. All these weapons were confiscated by Indian security forces.
Drones sent from Pakistan can normally carry a load from 10 to 20 kg. The rocket launcher and grenade used in Mohali weighs nearly 7 kg, and from all accounts, it appears that it has been sent from Pakistan. Pakistan wants to create turmoil in Punjab by using self-styled Khalistani terrorists.
We should view the entire issue seriously. It could be that Pakistani handlers sitting across the border are nurturing a false hope that the present state government in Punjab lacks administrative experience, and the state now has a chief minister, who never dealt with terror-related cases. Pakistan is trying to encash this opportunity.
The need of the hour is: Chief Minister Bhagwant Mann must coordinate closely with the central agencies, and foil the diabolical plan being prepared in Pakistan. This issue concerns the security of the people of Punjab. There must be peace in Punjab, at any cost.
चार धाम यात्रा पर जा रहे श्रद्धालु सतर्कता बरतें
उत्तराखंड में चार धाम यात्रा के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। पिछले 8 दिनों से केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिरों के रास्तों पर गाड़ियों की कई किलोमीटर लंबी लाइनें देखने को मिल रही हैं। इसकी वजह से श्रद्धालुओं को टेंट, बिजली, भोजन, पानी और मेडिकल सहायता जैसी बुनियादी सुविधाएं भी मुश्किल से मिल रही हैं।
3 मई (अक्षय तृतीया) को भक्तों के लिए गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिरों के कपाट खुलने के साथ ही चार धाम यात्रा की शुरुआत हो गई थी। केदारनाथ धाम के कपाट 6 मई को खोले गए। इसके बाद 8 मई को बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले गए। गंगोत्री में रोजाना 7,000, यमुनोत्री में 4,000, केदारनाथ में 12,000 और बद्रीनाथ में 15,000 तीर्थयात्रियों के लायक इंतजाम हैं। कुल मिलाकर 4 धाम यात्रा के लिए रोजाना 38,000 तीर्थयात्रियों की इजाजत है। इन चारों तीर्थस्थलों में तीर्थयात्रियों के लिए सीमित आवास उपलब्ध होने की वजह से ऐसा किया गया है।
2019 के बाद यह पहली बार है जब बिना किसी कोविड पाबंदी के यात्रा की इजाजत दी गई है, और यही वजह है कि इस साल तीर्थयात्रियों की संख्या में भारी वृद्धि दर्ज की गई है। इस साल चार धाम यात्रा के लिए एक लाख से भी ज्यादा तीर्थयात्रियों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है। उत्तराखंड पर्यटन विभाग ने सभी तीर्थयात्रियों की सुरक्षा और उनके हितों का ध्यान रखते हुए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया है। लेकिन जमीनी हालात की बात की जाए तो 1.5 लाख तीर्थयात्री पहले ही पहुंच चुके हैं जिनमें से अधिकांश बिना रजिस्ट्रेशन के आए हैं।
सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया था कि किस तरह तीर्थयात्री एक तरफ गहरी खाईं और दूसरी तरफ ऊंची चट्टानों के बीच मुश्किल पहाड़ी रास्तों पर आगे बढ़ रहे हैं। कुछ मंजर तो दिल दहला देने वाले हैं। मैं इस साल चार धाम यात्रा करने की प्लानिंग करने वाले सभी तीर्थयात्रियों को बेहद सतर्क रहने की सलाह दूंगा।
पिछले 8 दिनों में यात्रा पर आए 20 तीर्थयात्रियों की मौत हो चुकी है। इनमें से ज्यादातर तीर्थयात्रियों की मौत ज्यादा ऊंचाई पर यात्रा करने से होने वाली वाली हृदय संबंधी समस्याओं के कारण हुई है। कोरोना काल से पहले चार धाम यात्रा पर आने वाले यात्रियों से फिटनेस सर्टिफिकेट मांगा जाता था, लेकिन इस बार सरकार ने यह नियम खत्म कर दिया है। सबसे ज्यादा मौतें यमुनोत्री में हुई हैं।
उत्तराखंड सरकार की स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ शैलजा भट्ट ने तीर्थयात्रियों से अपील की है कि डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, सांस लेने और हृदय संबंधी समस्याओं पीड़ित तीर्थयात्री चार धाम यात्रा से परहेज करें। स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के कारण सोमवार को 4 और तीर्थयात्रियों की मौत हो गई जिससे मरने वालों की संख्या बढ़कर 20 हो गई है। जान गंवाने वाले तीर्थयात्रियों में ज्यादातर महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश के थे।
भीड़ इतनी ज्यादा है कि कई तीर्थयात्रियों को टेंट तक नसीब नहीं हो रहा है और उन्हें खुले में रात बितानी पड़ रही है। डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी है। हजारों तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ में बीमार और बुजुर्ग भक्तों को लादकर चल रहे खच्चरों की लाइन लगी हुई है।
इनमें से कई तीर्थयात्री तो आवास और चिकित्सा सहायता की कमी के बावजूद अपनी अटूट श्रद्धा की वजह से मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। केदारनाथ धाम से 2 किलोमीटर दूर तक पूरा रास्ता तीर्थयात्रियों की वजह से जाम है। इसके पीछे भी कई किलोमीटर तक जाम की स्थिति है। तस्वीरों में नजर आ रहा है कि ज्यादा भीड़ होने की वजह से तीर्थयात्री चल भी नहीं पा रहे हैं, बल्कि रेंग रहे हैं। केदारनाथ धाम तक पहुंचने के लिए 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। गौरी कुंड से केदारनाथ धाम तक पूरे रास्ते में भीड़भाड़ रहती है। श्रद्धालुओं की इस भीड़ में बुजुर्ग भी हैं और कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो अपने बच्चों को गोदी में उठाकर जा रहे हैं।
भगवान न करें लेकिन इन हालत में अगर मौसम खराब हो जाए, बारिश या लैंडस्लाइड हो जाए तो सोचिए तीर्थयात्री कितनी बड़ी मुसीबत में फंस सकते हैं। इस समय इस रास्ते पर रोजाना 25 से 30,000 श्रद्धालुओं की भीड़ आ रही है। राज्य सरकार के अधिकारियों के मुताबिक, केदारनाथ मंदिर में रोजाना केवल 12,000 तीर्थयात्रियों के लायक ही इंतजाम हैं, लेकिन 6 मई को मंदिर के कपाट खुलने के बाद एक ही दिन में 30,000 भक्तों ने दर्शन किए, और फिर 7 एवं 8 मई को भी यह सिलसिला जारी रहा। बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए हजारों तीर्थयात्री रास्तों पर 24 घंटे से भी ज्यादा समय तक इंतजार कर रहे हैं।
तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ की वजह से होटल के कमरों की मांग बढ़ गई है। होटल मालिकों ने अपने कमरों के दाम बढ़ा दिए हैं। कुछ तीर्थयात्रियों ने तो होटल में एक रात बिताने के लिए 10 से 12 हजार रुपये तक चुकाए। उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार ने भी माना कि तीर्थयात्रियों की भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिस को मुश्किल हो रही है।
केदारनाथ में 3 हेलीपैड हैं, जहां से 9 कंपनियों के हेलीकॉप्टर एक दिन में 130 उड़ानें भरते हैं। हेलीकॉप्टर का किराया 7000-8500 रुपये प्रति व्यक्ति के बीच है और सारे के सारे हेलीकॉप्टर जून तक बुक हैं। मैं समझ सकता हूं कि तीर्थयात्री यात्रा के लिए मई और जून के महीनों की गर्मी की छुट्टियां इसलिए पसंद कर रहे हैं क्योंकि मॉनसून की शुरुआत के बाद खराब मौसम के कारण जुलाई से सितंबर तक इन तीर्थस्थलों तक पहुंचना खासा मुश्किल हो सकता है। इस दौरान यहां लैंडस्लाइड और सड़क के ब्लॉक होने का खतरा बना रहता है।
हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं के कारों में आने से हालात और खराब हो गए हैं। बद्रीनाथ के रूट पर सड़क के दोनों ओर गाड़ियां खड़ी दिख रही हैं, जिससे जाम की स्थिति पैदा हो गई है। टूरिस्ट बसें बड़ी संख्या में पहुंचने लगी हैं। बद्रीनाथ-केदारनाथ श्राइन कमेटी के CEO का कहना है कि मई के मध्य से जून के अंत तक तीर्थयात्रियों की भीड़ बढ़ने की उम्मीद है। यह एक चिंता की बात है क्योंकि क्योंकि स्वास्थ्य संबंधी कारणों से अब तक 20 तीर्थयात्रियों की मौत हो चुकी है। अधिकतर मौतें 10-12,000 फीट की ऊंचाई पर ज्यादा ऊंचाई और कम ऑक्सीजन की वजह से हुए कार्डियक अरेस्ट के कारण हुई हैं।
हिन्दुओं के लिए चार धाम की यात्रा का बहुत महत्व है। हर हिन्दू जीवन में कम से कम एक बार चार धाम की यात्रा करना चाहता है। यह आस्था का मामला है और आस्था में शक्ति होती है, जो हर मुसीबत से मुकाबला करने की, जूझने की ताकत देती है। लेकिन परेशानी को भी समझना होगा।
अगर किसी तीर्थस्थल पर रोजाना 12 से 15 हजार भक्तों के दर्शन करने, रुकने, ठहरने का इंतजाम है और 30,000 से ज्यादा तीर्थयात्री एक साथ पहुंच जाएं तो क्या होगा? इससे तो भक्तों को मुसीबत ही होगी, और भगवान कभी नहीं चाहते कि उनके भक्तों को तकलीफ हो। इसलिए मेरा तो कहना है कि जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है। ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की सुविधा उपलब्ध है, रजिस्ट्रेशन करवाइए, अपनी बारी का इंतजार कीजिए और आराम से भगवान के दर्शन कीजिए।
चार धाम की यात्रा तो सैकड़ों सालों से होती आई है, लेकिन अब भीड़ ज्यादा होने लगी है। अच्छी सड़कें बन गई हैं, रूकने ठहरने के बेहतर इंतजाम है। और सबसे बड़ी बात यह है कि बद्रीनाथ और केदारनाथ का विकास इस तरह से हुआ है कि लोग एक बार वहां घूमने के लिए भी जाना चाहते हैं।
पिछले साल ही प्रधानमंत्री मोदी ने आदि शंकराचार्य के समाधिस्थल का उद्घाटन किया था, और केदारनाथ धाम के पास बनी आदि शंकराचार्य की विशाल प्रतिमा का अनावरण किया था। यह स्थान भी दिव्य है, भव्य है। अब रास्ते में बहुत सारी टनल्स बन गई हैं। 50 किलोमीटर का सफर तो टिहरी झील के किनारे-किनारे होता है। जबरदस्त नजारा है, इसलिए वहां जाने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। आप भी जरूर जाइए, लेकिन पहले रजिस्ट्रेशन कराइए।
Char Dham Yatra: Pilgrims, be careful
With a huge influx of devotees for Char Dham Yatra in Uttarakhand, several kilometre long queues have been noticed on the routes to Kedarnath, Badrinath, Gangotri and Yamunotri shrines since the last eight days. This has taken a big toll on basic infrastructure like tents, electricity, food, water and medical assistance for the devotees.
The Char Dham Yatra began on May 3 (Akshay Tritiya) with the portals of Gangotri and Yamunotri shrines thrown open for devotees. The portals of Kedarnath shrine were opened on May 6. This was followed by Badrinath shrine, whose portals were opened on May 8. The daily limits of pilgrims have been earmarked as 7,000 for Gangotri, 4,000 for Yamunotri, 12,000 for Kedarnath and 15,000 for Badrinath. In all, 38,000 pilgrims are allowed daily for the Char Dham Yatra. This was done because there is limited accommodation available for pilgrims at each of the four main shrines.
This year the number of pilgrims has recorded a steep rise because it is for the first time since 2019 that the Yatra has been allowed without any Covid restrictions in force. More than one lakh pilgrims have registered their names for Char Dham Yatra this year. Uttarakhand tourism department has made registration mandatory for all pilgrims for their safety and well-being. But, on the ground, more than one and half lakh pilgrims have already arrived, many of them without registration.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Monday night, we showed visuals of thousands of pilgrims walking, riding ponies on the tricky hilly routes, with deep gorges on one side and huge walls of rock on the other. Some of the visuals are terrifying. I would advise all pilgrims planning to undertake Char Dham Yatra this year to be very careful.
Till now, 20 pilgrims have died during the last eight days, and most of them have died due to cardiac-related issues due to travel at a high altitude. Unlike pre-Covid period, the state government this time has not made carrying of health fitness certificate as mandatory. The maximum number of deaths were reported from Yamunotri. The director general of health of Uttarakhand government Dr Shailja Bhatt has appealed to pilgrims having co-morbidities like diabetes, hypertension, breathing and cardiac problems, to stay away from the Yatra. On Monday, four pilgrims died due to health-related complications taking the toll to 20. Most of the pilgrims who died came from Maharashtra, Karnataka and UP.
Because of the huge rush, many pilgrims are spending nights in the open, without tents. There is huge shortage of doctors and paramedical staff. Thousands of pilgrims are walking in big crowds along with a long line of ponies carrying sick and elderly devotees.
Many of these pilgrims are braving difficulties despite lack of accommodation and medical help, simply because of their undying devotion. Two kilometres away from Kedarnath shrine, the entire route is chock-a-block with pilgrims for several kilometres long. The visuals clearly show that many of the pilgrims are not even walking, they are crawling, taking small steps because of the crowd. A pilgrim has to cover 16 km by road to reach the shrine. From Gauri Kund to Kedarnath shrine, the entire route is crowded. Women and elderly people carrying infants in their arms are walking towards the shrine.
God forbid if the weather suddenly turns bad. It can cause havoc for the pilgrims. The daily footfall on this route presently is between 25 to 30,000. According to state government officials, Kedarnath shrine can accommodate only up to 12,000 pilgrims daily, but since May 6, when the portals of the temple opened, 30,000 devotees visited on a single day, and this pace continued on May 7 and 8. Pilgrims are waiting on the route for more than 24 hours only to have a glimpse of Baba Kedarnath.
Due to huge rush of pilgrims, the demand for hotel rooms has spiked. Hotel owners have hiked their room rates. Some pilgrims have even paid Rs 10 to Rs 12,000 for spending a night in the hotel. Uttarakhand DGP Ashok Kumar admitted that police is having a tough time controlling the rush of pilgrims.
Kedarnath has three helipads, from where helicopters of nine companies take off to complete 130 sorties a day. The helicopter fare is between Rs 7,000-8,500 per head, and all the helicopters are booked till June. I understand pilgrims are preferring the summer holidays in the months of May and June for the Yatra, because with the onset of monsoon and bad weather, it could be difficult to visit the shrines from July till September. There are risks of landslides and road blocks.
The situation has become worse with the arrival of thousands of tourists in cars. On the Badrinath route, cars have been parked on both sides of the roads causing traffic snarls. Tourist buses has started arriving in large numbers. The CEO of Badrinath-Kedarnath Shrine Committee says that the rush of pilgrims is expected to increase from mid-May till the end of June. This is cause for worry because already 20 pilgrims have died due to health-related issues. Most of the deaths are due to cardiac arrest cause by high altitude and less oxygen at an altitude of 10-12,000 feet.
Char Dham Yatra is an important pilgrimage for Hindus. Every devout Hindu has this dream of making this Yatra at least once in his life. Devotion to God gives strength and the ability to individuals to face difficulties, surmounting all challenges, whether related to health, altitude or accommodation. But one has to understand the problem.
If a shrine can provide arrangements for 12 to 15,000 devotees daily, what will happen if more than 30,000 pilgrims converge in one place? Almighty will never want devotees to suffer, but pilgrims must understand this and avoid haste. Online registration facility is available and they should get themselves registered, and wait before beginning their pilgrimage.
Char Dham Yatra has been going on for the last several centuries. With progress and technological advancements, the number of pilgrims has increased exponentially. The roads are now better, there are arrangements for accommodation. Badrinath and Kedarnath shrines have now been given a complete facelift.
Last year, Prime Minister Narendra Modi had opened the Samadhi Sthal of Adi Shankaracharya, and had unveiled the huge statue of Adi Shankara near Kedarnath shrine. Kedarnath is a beautiful shrine. Several tunnels have been built on the route. The 50 km long journey can be done on the banks of Tehri lake. The scenery is stupendous. People should visit Kedarnath and Badrinath shrines, but first of all, please get your name registered.
बग्गा : क्या पंजाब पुलिस का दुरुपयोग कर रहे हैं केजरीवाल?
शुक्रवार को पंजाब पुलिस ने ऐसा कारनामा किया जिसकी चर्चा पूरे देश में हुई। 9 घंटे तक चले लंबे ड्रामे में पंजाब पुलिस ने दिल्ली आकर बीजेपी के यूथ विंग के नेता तेजिंदर बग्गा को गिरफ्तार किया। बग्गा को दिल्ली के जनकपुरी स्थित उनके घर से उठा लिया गया और पुलिस का काफिला पंजाब की ओर निकल पड़ा। इसी बीच बग्गा के पिता थाने पहुंच गए और दिल्ली पुलिस में अपहरण का केस दर्ज करा दिया। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने मामले में हस्तक्षेप किया और इसकी खबर हरियाणा पुलिस को दी। हरियाणा पुलिस ने कुरुक्षेत्र में पंजाब पुलिस के काफिले को रोक दिया। फिर दिल्ली पुलिस की टीम कुरुक्षेत्र पहुंची और बग्गा को लेकर वापस दिल्ली लौटी।
इस पूरे नाटक का अधिकांश भाग कैमरे में कैद हो गया और देखते ही देखते सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा। इस नाटक में तीन राज्यों की पुलिस आमने-सामने थी। पंजाब पुलिस का दावा था कि बग्गा को मोहाली की अदालत में पेशी के लिए हिरासत में लिया गया है। बग्गा के खिलाफ आम आदमी पार्टी के एक नेता ने मामला दर्ज कराया था। बग्गा के मुताबिक उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ ट्वीट करते हुए कहा था कि अगर केजरीवाल ने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को फर्जी बताने के लिए माफी नहीं मांगी तो वह उन्हें नहीं छोड़ेंगे।
एक डीएसपी के नेतृत्व में पंजाब पुलिस की टीम ने बग्गा को उनके घर से सुबह 8.30 बजे के करीब उठा लिया। चूंकि गिरफ्तारी राजनीतिक आधार पर हुई थी इसलिए दिल्ली बीजेपी के नेता जल्द ही सक्रिय हो गए। बग्गा के पिता ने दिल्ली पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई और दिल्ली पुलिस ने पंजाब पुलिसकर्मियों के खिलाफ मारपीट और अपहरण का मामला दर्ज कर लिया। दिल्ली की एक कोर्ट ने तुरंत ही इस मामले में जनकपुरी एसएचओ को सर्च वारंट जारी कर दिया। इसके बाद दिल्ली पुलिस बग्गा की तलाश में जुट गई। तुरंत हरियाणा पुलिस को इसकी जानकारी दी गई। हरियाणा पुलिस ने कुरक्षेत्र के पास नेशनल हाईवे थानेसर पर गाड़ी को ट्रेस कर लिया। अंतत: शाम करीब 6 बजे बग्गा को हरियाणा पुलिस ने दिल्ली पुलिस को सौंप दिया। इस बीच पंजाब पुलिस हाईकोर्ट भी गई लेकिन उसे राहत नहीं मिली। इस पूरे घटनाक्रम के बीच दिल्ली में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री केजरीवाल के आवास के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने आरोप लगाया कि केजरीवाल अपने राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए पंजाब पुलिस का दुरुपयोग कर रहे हैं।
बग्गा के पिता प्रीतपाल सिंह ने आरोप लगाया कि बग्गा को हिरासत में लेने के दौरान पंजाब के पुलिसकर्मियों ने उनके साथ और बग्गा के साथ मारपीट की। उन्होंने कहा कि बग्गा को पगड़ी पहनने की भी इजाजत नहीं दी गई। जैसे ही दिल्ली पुलिस ने बग्गा के अपहरण का केस दर्ज किया तब पंजाब पुलिस भी एक्टिव हो गई। एक डीएसपी और सब-इंस्पेक्टर के नेतृत्व में पंजाब पुलिस की एक टीम यह बताने के लिए जनकपुरी पुलिस स्टेशन गई कि बग्गा को मोहाली की एक अदालत में पेश करने के लिए हिरासत में लिया गया है। लेकिन, तब तक अपहरण की एफआईआर दर्ज हो चुकी थी और कोर्ट ने सर्च वारंट जारी कर दिया था।
बग्गा को ले जा रहे पंजाब पुलिस के काफिले को जिस तरह से ट्रेस किया गया वह बेहद नाटकीय था। दिल्ली पुलिस ने हरियाणा पुलिस से संपर्क किया और कुरुक्षेत्र में पीपली टोल के पास बग्गा के काफिले का पता चला। हरियाणा पुलिस ने काफिले को रोक दिया और थानेसर सदर थाने ले आई।
दिल्ली पुलिस के वकील ने कहा कि बग्गा को हिरासत में लेने से पहले पंजाब पुलिस कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए दिल्ली पुलिस को इसकी सूचना दे सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। वहीं पंजाब पुलिस अब बचाव की मुद्रा में है और खुद को सही ठहराने की कोशिश कर रही है। मोहाली के एसपी ने दावा किया कि बग्गा को हिरासत में लेने की सूचना दिल्ली पुलिस के अधिकारी को दी गई थी। उन्हें मौखिक तौर पर फोन से इसकी जानकारी दी गई थी। लेकिन मोहाली एसपी को पता होना चाहिए कि एक राज्य की पुलिस को दूसरे राज्य से किसी शख्स को हिरासत में लेने से पहले उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होता है।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में पंजाब पुलिस ने दिल्ली पुलिस पर यह आरोप लगाया कि उसने अपहरण के आरोप में हमारे डीएसपी को अवैध रूप से हिरासत में लिया है। हालांकि हाईकोर्ट ने पंजाब पुलिस को तत्काल राहत देने से इनकार कर दिया और मामले की सुनवाई शनिवार को मुकर्रर कर दी। दरअसल, तेजिंदर सिंह बग्गा ने केजरीवाल के खिलाफ कई ट्वीट किया था और कहा था कि अगर कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को झूठा बताने को लेकर केजरीवाल माफी नहीं मांगेंगे तो वो केजरीवाल को छोड़ेंगे नहीं। केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में कहा था कि कश्मीरी पंडितों के नाम पर कुछ लोग करोड़ों रुपये कमा रहे हैं और बीजेपी के नेता ‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी झूठी फिल्म के पोस्टर लगा रहे हैं। केजरीवाल के खिलाफ बग्गा के ट्वीट के आधार पर पंजाब के मलेरकोटला जिले में असलम खान नाम के शख्स ने पुलिस से ये शिकायत की कि उसे कुछ लोगों ने धमकी दी है। धमकी देने वाले लोग फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ का पोस्टर लिए थे और तेजिंदर बग्गा का नाम ले रहे थे। इसके बाद पंजाब पुलिस ने बग्गा के खिलाफ माहौल को खराब करने का केस दर्ज कर लिया और इसकी जांच के लिए SIT बना दी। इसके बाद बग्गा को जांच के लिए पेश होने का नोटिस दिया गया था।
दिल्ली बीजेपी के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने आरोप लगाया कि केजरीवाल ने पहले ही कहा था कि अगर उनकी सरकार को दिल्ली पुलिस मिल जाती तो वे बीजेपी नेताओं को सबक सिखा देते। आपको बता दें कि दिल्ली पुलिस पर केंद्र का नियंत्रण है। सिरसा ने कहा, अब जबकि AAP पंजाब की सत्ता में है तो दिल्ली में अपने विरोधियों को धमकाने के लिए पंजाब पुलिस का दुरुपयोग कर रही है। बीजेपी के एक अन्य नेता कपिल मिश्रा ने शुक्रवार को हुए इस पूरे ड्रामे को सत्य की जीत करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि पंजाब पुलिस केजरीवाल के इशारे पर काम कर रही है और यह ‘पंजाब के लोगों का अपमान’ है।
AAP नेता आतिशी मार्लेना ने बीजेपी को ‘गुंडों और लंपटों की पार्टी’ बताया और यह आरोप लगाया कि बग्गा को बचाने के लिए पूरी मशीनरी का इस्तेमाल किया गया है। वहीं हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा, उनकी पुलिस ने कोर्ट के सर्च वारंट के आधार पर ही दिल्ली पुलिस की हेल्प की। हालांकि खट्टर ने बग्गा के खिलाफ पंजाब पुलिस की कार्रवाई को राजनीतिक बताया। उन्होंने कहा, अगर राजनीतिक टिप्पणियों के आधार पर इस तरह के कदम उठाए गए तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
पंजाब पुलिस ने जो किया मैं उसके तकनीकी पहलुओं में नहीं जाना चाहता। अगर ट्विटर पर बयानबाजी को लेकर लोगों को जेल में डालना होता तो अब तक हजारों लोग जेल में पड़े होते। ट्विटर पर तो इस तरह की बयानबाजी रोज होती है। असलियत तो यह है कि जिस अंदाज में पंजाब पुलिस ने चुपचाप दिल्ली आकर तेजिंदर बग्गा को गिरफ्तार किया, यह पॉलिटिकल एक्शन था। पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले बहुत से लोग कहते थे कि अगर अरविंद केजरीवाल के हाथ में पुलिस आ गई तो वो अपना विरोध करने वालों को ठिकाने लगाएंगे।
शुक्रवार को केजरीवाल का एक वीडियो भी सर्कुलेट हुआ जिसमें वह कुछ लोगों के बारे में कह रहे हैं कि अगर पुलिस होती तो वो इनको जेल भेज देते। जिस दिन पुलिस हाथ में आएगी ‘इन सबको ठीक कर देंगे’। और अब जबकि पंजाब पुलिस हाथ में आ गई है तब यह दिखाई भी दिया। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनते ही पंजाब पुलिस कुमार विश्वास के घऱ पहुंची थी, अलका लांबा के घर भी पहुंची थी और अब बग्गा को उठा ले गई। ये सब वो लोग है जो केजरीवाल के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं। इसीलिए आरोप लगा कि अब केजरीवाल पंजाब पुलिस का इस्तेमाल अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने पर कर रहे हैं। कवि कुमार विश्वास ने भी भगवंत मान के लिए ट्विटर पर लिखा- ‘पगड़ी संभाल जट्ट’।
Bagga: Is Kejriwal misusing Punjab Police?
In a nine-hour-long drama, the Punjab Police on Friday arrested BJP youth wing leader Tajnder Pal Singh Bagga from his home in Janakpuri, Delhi, whisked him away in a convoy of vehicles towards Punjab, but Delhi Police intervened and asked Haryana Police to stop the convoy near Kurukshetra. Delhi Police team went to Kuruskshetra and brought back Bagga to the capital.
Most of the drama was captured on camera and played out on visual and social media, with the three state police forces at loggerheads. Punjab Police claimed that Bagga was taken into custody for production before a Mohali court where an Aam Aadmi Party leader had filed a case against him. According to Bagga, he had tweeted against Delhi CM Arvind Kejriwal saying that if the latter did not apologize for describing the genocide of Kashmiri Pandits as fake, he would not leave him (chhodenge nahin).
Since the arrest was on political grounds, Delhi BJP leaders became active soon after a Punjab Police team led by a DSP picked up Bagga from his home at around 8.30 am. Bagga’s father filed a complaint at a Delhi police station and Delhi Police registered a case of assault and abduction against Punjab policemen. A Delhi court soon issued a search warrant to Janakpuri SHO and Delhi Police contacted their counterparts in Haryana. The convoy in which Bagga was taken was traced near Thanesar, Kurukshetra on the national highway. Ultimately, at around 6 pm, Bagga was handed over to Delhi Police by their Haryana counterparts. Punjab Police went to High Court on Friday, but failed to get relief. Meanwhile, in Delhi, BJP workers stage protests outside Chief Minister Kejriwal’s residence. They alleged that Kejriwal was misusing Punjab Police as a tool to harass his political opponents.
Bagga’s father Preetpal Singh alleged that Punjab policemen hit him and his son while taking Bagga into custody. He was not even allowed to wear his turban, he said. When Delhi Police filed a case of kidnapping, Punjab Police became active, and a team of Punjab Police led by a DSP and sub-inspector went to Janakpuri police station to convey that Bagga was taken into custody for production before a Mohali court. But, by then the kidnapping FIR had been registered and the court had issued search warrant.
The manner in which the Punjab police convoy carrying Bagga was traced was dramatic. Haryana Police was contacted and the vehicle was traced near Peepli toll in Kurukshetra. Haryana Police intercepted the convoy and brought it to Thanesar Sadar police station.
Delhi Police lawyer said, Punjab Police could have informed Delhi Police before taking Bagga into custody through due legal process, but this was not done.Punjab Police is now on the defensive and trying hard to justify its act. Mohali SP claimed that a Delhi Police official was verbally told on phone about taking Bagga into custody, but he should know that a state police taking a person into custody from another state must follow due legal process.
In its petition before Punjab and Haryana High Court, Punjab Police alleged that Delhi Police has illegally taken its DSP into custody on charge of abduction. The high court however declined to give immediate relief, and posted the matter for hearing on Saturday. The Mohali case was filed by one Aslam Khan, resident of Malerkotla, Punjab, who alleged that Tajinder Pal Bagga had threatened Kejriwal in one of his tweets over the chief minister’s speech in Delhi Assembly over ‘Kashmir Files’ movie. Punjab Police had registered a case of disturbing peace and harmony against Bagga, after which the court had asked him to appear.
Delhi BJP leader Manjinder Singh Sirsa alleged that Kejriwal had said in the past that he could teach a lesson to BJP leaders if his government gets charge of Delhi Police, which is presently under the control of Centre. Sirsa said, now that AAP is in power in Punjab, it is misusing Punjab Police to browbeat its opponents in Delhi. Another BJP leader Kapil Mishra described Friday’s drama as a victory of truth. He alleged that Punjab Police was working at the behest of Kejriwal, and it is “an insult to the people of Punjab”.
AAP leader Atishi Marlena described BJP as a ‘party of goondas and lumpen’ and alleged that the entire machinery was used to save Bagga. Haryana chief minister M L Khattar said, his police had only provided help to Delhi Police on the basis of court search warrant. Khattar however described the Punjab Police action against Bagga as political. He said, if such steps are taken based on political remarks, it could have serious repercussions in future.
I do not want to go into the technicalities of what was done by Punjab Police. If police has to arrest people based on comments made on Twitter, hundreds of thousands of people would have been behind bars by now. The fact is that Punjab Police sneaked into Delhi and arrested Bagga from his home. This was a political action. Several people had said during the Punjab assembly elections that if Kejriwal gets a state police under his control, he could use it as a tool to browbeat his political opponents.
A video was circulated on Friday in which Kejriwal was shown as saying that if he had police with him, he could send some people behind bars and make them toe his line (sabko theek kar denge). This is now evident from Punjab Police’s action. Soon after AAP took over power in Punjab, the state police went to the homes of Kumar Vishwas and Alka Lamba. And now, Bagga. All these three frequently give statements against Kejriwal. That is why, Kumar Vishwas on Friday retweeted a comment about Punjab CM Bhagwant Mann in which it was written ‘Pagdi Sambhaal Jatta’(Jaat, take care of your turban).
मुसलमानों के बीच कैसे ज़हर फैला रहे हैं PFI के नेता
मुस्लिम डिफेंस फोर्स 24*7 नाम के एक संगठन के सदस्यों ने कर्नाटक के दक्षिण कन्नडा जिले में मुस्लिम परिवारों को भेजे गए एक व्हाट्सएप ग्रुप संदेश में बगैर बुर्के के सड़कों पर दिखने वाली महिलाओं के खिलाफ कार्रवाई करने की धमकी दी है। कन्नड़ भाषा में भेजे गए मैसेज में कहा गया है, ‘एमडीएफ कार्यकर्ता किसी भी ‘गलत हरकत’ के लिए मैंगलोर में मुस्लिम लड़कियों पर नजर रख रहे हैं। यदि वे बिना बुर्के के नजर आएंगी, तो उनकी सरेआम पिटाई की जाएगी।’
इनमें से एक मैसेज में उन्होंने मुस्लिम लड़कियों के माता-पिता से कहा है कि जब उनके घरों की औरतें और बेटियां कहीं बाहर जाएं तो उन पर नजर रखें। मैंगलोर के पुलिस कमिश्नर शशि कुमार ने कहा है कि पुलिस सोशल मीडिया के जरिए इस तरह के धमकी भरे मैसेज भेजने वाले इस ग्रुप की हरकतों पर नजर रखे हुए है।
फिलहाल, पुलिस ने मुस्लिम महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए सेल्फी लेते समय सार्वजनिक रूप से बुर्का या हिजाब नहीं उतारने की सलाह दी है, क्योंकि इस ग्रुप के सदस्य उन पर हमला कर सकते हैं। पुलिस कमिश्नर ने कहा, ‘यह व्हाट्सएप ग्रुप मुसलमानों के अधिकारों का रक्षक होने का दावा करता है। उनका कहना है कि मुस्लिम महिलाएं सेल्फी लेते समय सार्वजनिक रूप से बुर्का या हिजाब ना उतारें, वर्ना उन पर हमला हो जाएगा। हम इस पर नजर रखे हुए हैं।’
यह अफसोसनाक खबर वाकई परेशान करने वाली है। ये मैसेज पाकिस्तान या तालिबान शासित अफगानिस्तान में नहीं, भारत में भेजे जा रहे हैं। मुस्लिम परिवारों के दिमाग में एक तरह का खौफ पैदा किया जा रहा है। पुलिस ने इन कट्टरपंथियों को पकड़ने के लिए एक स्पेशल टीम का गठन किया है, लेकिन दिक्कत यह है कि ये मैसेज भारत के बाहर के फोन नंबरों से भेजे गए हैं। कई जगहों पर इन मैसेज को इंटरनेट के जरिए भेजा गया है। वैसे तो यह एक छोटी-सी घटना है, लेकिन इसका संदेश बहुत बड़ा है। यह साफ तौर पर ऐसी भारत विरोधी ताकतों के काम पर लगने का केस है, जो भारतीय मुसलमानों के मन में डर पैदा करने की कोशिश कर रही हैं।
मैं आपको एक और उदाहरण देता हूं। कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) मुसलमानों के मन में नफरत का जहर फैलाने की कोशिश कर रहा है। गुरुवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में मैंने PFI के राष्ट्रीय सचिव मोहम्मद शाकिफ का वीडियो दिखाया, जो हिंदुओं और केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ जहर उगल रहे थे। PFI के इस नेता ने कहा कि भारत सरकार के इशारे पर, RSS की मदद से मुसलमानों को परेशान किया जा रह है, मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है, और यह भारतीय मुसलमानों के चुप बैठने का वक्त नहीं है।
अपने एक भाषण में मोहम्मद शाकिफ ने कहा कि इस साल रामनवमी के दौरान हुए दंगों की पहले से प्लानिंग की गई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि मुसलमानों को उकसाने के लिए विभिन्न कस्बों और शहरों के मुस्लिम बहुल इलाकों से रामनवमी के जुलूस जानबूझकर निकाले गए। PFI नेता ने कहा, ‘यह एक इजरायली फॉर्मूला है। अभी पानी सिर के ऊपर नहीं गया है। अभी भी हम इसे रोकने का काम नहीं करेंगे तो हम डूब जाएंगे।’
अपने भाषण में मोहम्मद शाकिफ कहते हैं, ‘RSS अब एक गैंगरीन बन गया है जो पूरे भारत में फैल गया है। अगर हम अपने देश को बचाना चाहते हैं तो हमें कुर्बानी देनी ही होगी। Without pain, there is no gain। हां, यह सच है कि अगर आप PFI या SDPI में शामिल होते हैं, तो पुलिस आपके खिलाफ केस दर्ज करेगी, ईडी आपके घरों पर छापा मारेगी, और आपको 2-5 साल जेल में भी बिताने पड़ सकते हैं। यदि आप इसके लिए तैयार नहीं हैं, तो गुलामी के लिए तैयार हो जाएं और अपने बच्चों को गुलाम बनता हुआ देखें। अल्लाह से यही दुआ मांगो कि वह हमको लड़ने की ताकत दे। मैदान छोड़कर नहीं भागना है। अमीर मुसलमानों के साथ दिक्कत यह है कि वे मैदान छोड़कर भाग जाते हैं। अगर आप लोग भाग जाएंगे तो क्या गरीब लड़ेगा? मालदार मुसलमान सबसे आगे आकर लड़े।’
मैसूर में 29 अप्रैल को PFI द्वारा आयोजित एक ‘इफ्तार’ कार्यक्रम के दौरान लिए गए वीडियो में शाकिफ कहते हैं, ‘अगर इस दौर में तुम पर कोई केस नहीं हुआ तो तुम नेता कहलाने के लायक नहीं हो। मुझे फख्र है कि मेरे ऊपर NRC/CAA/बाबरी मस्जिद आंदोलन के केस दर्ज हैं। मुझे फख्र है मेरे घर पुलिस आई। मुझे फख्र है कि एक न एक दिन मैं इस कौम के लिए जेल जाने वाला हूं।’
मोहम्मद शाकिफ ने आगे कहा, ‘यह बेंगलुरु और पूरे भारत में एक फैशन बन गया है कि इफ्तार पार्टी करो और उनके दिलों को जीतो। हिरण कितना भी उनके पैरों में जाकर पड़ेंगे, भेड़िये उन्हें नहीं बख्शेंगे। जो होने वाला है, वह हो जाएगा। ‘बद्र’ की पहली लड़ाई रमजान के दौरान हुई थी। रमजान के दौरान उन बच्चों के लिए दुआ करें, जो सीएए आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए जेलों में बंद हैं। उन्होंने ‘कौम’ के लिए कुर्बानी दी है। जब हमारी नागरिकता छीनने की कोशिश की जा रही थी, तो यही बच्चे आगे आए थे। PFI पहला संगठन था। हमारे हजारों बच्चे आतंकवाद के नाम पर जेल में हैं। हमें इन भेड़ियों से लड़ना है। वे आएंगे और तुम्हारी मस्जिदों को तोड़ेंगे। तुम्हें बाहर आना होगा और इन भेड़ियों को रोकना होगा, इनसे लड़ना होगा।’
यह जनाब, मोहम्मद शाकिफ कोई आम शहरी नहीं हैं। वह PFI के राष्ट्रीय सचिव हैं। उनका काम देश भर में घूम-घूमकर इसी तरह की तकरीरें करना, मुसलमानों को भड़काना है। मोहम्मद शाकिफ चिल्ला-चिल्लाकर कहते हैं कि सरकार मुसलमानों पर पत्थर फिंकवा रही है, सरकार मस्जिदों पर हमले करवा रही है। अब इनकी तकरीर सुन रहा आम मुसलमान यह पूछ सकता है कि आखिर सरकार ऐसा क्यों करेगी? सरकार तो सबकी है। तो PFI के नेता इसका जवाब तैयार रखते हैं। पूछने से पहले ही बता देते हैं कि अगर इस मुल्क में रहना है तो दूसरे दर्जे का शहरी बनकर रहना होगा। अगर आपने आवाज उठाई, तो आपको आपके मुहल्ले में, आपको घरों में घुस कर मारा जाएगा, आपके घर गिरा दिए जाएंगे।
पीएफआई नेता मोहम्मद शाकिफ सरेआम झूठ बोल रहे हैं। वह लोगों को गुमराह करने और भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। उनका आरोप है कि भारत में सत्ता प्रतिष्ठान के इशारे पर सारी हिंसक घटनाएं हो रही हैं।
अब मैं आपको उन घटनाओं की हकीकत बताता हूं जिनका जिक्र वह कर रहे थे। दिल्ली जहांगीरपुरी दंगों, खरगोन दंगों और जोधपुर दंगों के दौरान हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रभावित हुए थे। आरोप लगाया जा रहा है कि सिर्फ मुसलमानों के घरों को तोड़ा गया और सिर्फ उन्हें ही जेल भेजा गया। दिल्ली के जहांगीरपुरी में बुलडोजर की जद में जो पहली दुकान आई, वह हिंदू की थी।
कई सालों में हुए अतिक्रमण को हटाने के लिए एमसीडी के बुलडोजर वहां भेजे गए थे। इन बुलडोजरों की जद में हिंदुओं की दुकानें भी आईं। बुलडोजर ने मुसलमानों की दुकानों को भी तोड़ा। जहांगीरपुरी में मस्जिद के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं हुई। बुलडोजर ने बाहर के सिर्फ उस हिस्से को गिराया था जो अतिक्रमण करके बनाया गया था। बुलडोजर पास के एक मंदिर के भी अतिक्रमित हिस्से को गिराने वाला था, लेकिन शाम होते-होते मंदिर के मैनेजमेंट ने खुद ही अतिक्रमित हिस्से को हटा दिया।
जहां तक दिल्ली के जहांगीरपुरी दंगों का सवाल है, तो अगर अंसार, सलीम, जाहिद, शाहजाद, मोहम्मद अली, आमिर, नूर आलम और अकरम के नाम आरोपियों की लिस्ट में हैं, तो उसी लिस्ट में सौरभ, सूरज, नीरज, सुकेन, सुरेश और सुजीत सरकार के नाम भी हैं। PFI के नेता खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा रहनुमा बता रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि जोधपुर दंगों के दौरान PFI हिंदुओं के घरों और दुकानों पर हमले में शामिल था। PFI के रोल की जांच कांग्रेस सरकार के अधीन काम करने वाली पुलिस कर रही है।
जोधुपर हिंसा के मामले में पुलिस 211 लोगों को गिरफ्तार किया है, इसमें हिंदू भी हैं और मुसलमान भी हैं। यहां हिंदुओं के किसी जुलूस को लेकर झगड़ा नहीं हुआ। ईद के दिन, नमाज के बाद दंगाइयों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी। जोधपुर में जो दंगाई गिरफ्तार हुए हैं, उनमें से कई तो जोधपुर के रहने वाले ही नहीं थे। लोकल लोगों का कहना है कि हिंसा करने वालों को बाहर से बुलाया गया था। कुछ लोगों का कहना है कि इसके पीछे PFI का हाथ हो सकता है। जोधपुर का केस हो या खरगोन का, दोनों ही मामलों में PFI नेताओं के दावे झूठे हैं। PFI एक चरमपंथी इस्लामी संगठन है, और इसके नेता मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार के बारे में पूरी ताकत से झूठ फैला रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि मुस्लिम संगठन और मौलाना PFI की हरकतों से वाकिफ नहीं है या फिर उसको सपोर्ट करते हैं। उलमा इकराम लोगों को आगाह करते हैं, मुसलमानों को PFI से सावधान रहने को कहते हैं। लेकिन मुश्किल यह है कि PFI ने अपना नेटवर्क बढ़ा लिया है, और इसके लोग सोशल मीडिया और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं। वे जहरीली तकरीरों की वीडियो क्लिप बनाकर उसे व्हाट्सऐप ग्रुप में सर्कुलेट करते हैं। वे लाखों लोगों तक जहर फैला रहे हैं, मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथ की तरफ धकेल रहे हैं और उन्हें हथियार उठाने के लिए उकसा रहे हैं।
सूफी खानकाह एसोसिएशन ने PFI के नेताओं के भड़काऊ भाषणों की कॉपी भेजकर केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से इस संगठन पर बैन लगाने की मांग की है। सूफी खानकाह एसोसिएशन के अध्यक्ष कौसर हसन मजीदी का आरोप है कि PFI एक साजिश के तहत देश का माहौल बिगाड़ रहा है। मजीदी ने कहा, ‘इस साल 26 जनवरी को PFI ने भारत में ‘लोकतंत्र बचाओ’ आंदोलन शुरू करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था। दरअसल उनका वो लोकतंत्र बचाओ अभियान न होकर भारत को विखंडित करने का अभियान था। हमारा संगठन PFI के खिलाफ आवाज उठा रहा है और हमने केंद्र और राज्य सरकारों से इस संगठन पर पाबंदी लगाने को कहा है।’
लखनऊ के प्रतिष्ठित मुस्लिम संस्थान दारुल उलूम फिरंगी महल के प्रवक्ता सूफियान निजामी ने कहा है कि इस तरह के किसी भी संगठन को नफरत फैलाने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘आम मुसलमान PFI पर भरोसा नहीं करते और उन्हें इसके चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। इस देश में संविधान का राज है और हम सभी को इसका सम्मान करना चाहिए।’
इस साल फरवरी में PFI ने राजस्थान के कोटा में अपने कार्यकर्ताओं की एक परेड निकाली थी, जहां कई भड़काऊ भाषण दिए गए थे। PFI के राष्ट्रीय महासचिव अनीस अहमद ने RSS की तुलना अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट से कर दी थी। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने गुरुवार को इंडिया टीवी से बात करते हुए पटना में संकेत दिया कि सरकार PFI पर प्रतिबंध लगाने के विकल्प पर विचार कर रही है। गिरिराज सिंह ने कहा, ‘जो लोग बार-बार सेक्युलरिज्म पर बड़े-बड़े भाषण देते हैं, वे PFI के भाषणों पर चुप क्यों हैं?’
सोशल मीडिया की फितरत यह है कि जो बात जितनी जहरीली होती है, उतनी ही ज्यादा तेजी से फैलती है। जो मैसेज, जो तकरीर जितनी नेगेटिव होती है, उतनी तेजी से वायरल होती है। मैं तो आपसे कहूंगा कि ऐसे वायरल मैसेज पर भरोसा मत करिए और इन्हें दूसरों को फॉरवर्ड मत करिए। कई बार यह साबित हो चुका है कि इनका ओरिजिन पाकिस्तान से होता है, फिर दूसरे मुल्कों में फैलता है और भारत पहुंचता है। पाकिस्तान के ISI प्रोपेगैंडा सेल इन्हें ऑपरेट करते हैं।
जो लोग इस तरह के नफरत भरे संदेश फैला रहे हैं वे देशद्रोही हैं। वे भारत को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि पत्थर फेंकने वाला, तेजाब की बोतल चलाने वाला, लाठी-डंडे से हमले करने वाला न हिन्दू होता है, न मुसलमान। कोई मजहब खून-खराबा नहीं सिखाता। लेकिन कुछ लोग हैं जो मजहब का इस्तेमाल लोगों को लड़ाने के लिए करते हैं। ये लोग आधा सच और आधा झूठ फैलाते हैं। इसलिए हमें सतर्क रहना होगा।
How PFI leaders are spreading venom through lies, hate speeches
Members of a self-styled outfit called Muslim Defense Force 24*7 in a WhatsApp group message sent to Muslim families in South Canara district of Karnataka have threatened to take action against women who move around in streets without veil (burqa). The messages sent in Kannada language say, “MDF workers are monitoring Muslim girls in Mangalore for any ‘misbehaviour’. If they are not wearing burqa, they will be beaten up.”
In one of these messages, they have asked Muslim parents to keep watch on their womenfolk and daughters when they go to public places. Reacting to these messages, Mangalore Police Commissioner Shashi Kumar has said, police is monitoring the activity of this group who are sending such threatening messages through social media.
For the time being, police has advised Muslim women not to remove burqa or hijab in public while taking selfies, for their own safety, as they could be attacked by members of this group. The Police Commissioner said, “this WhatsApp group claims to be the protector of Muslim rights. They are saying Muslim women should not remove burqa or hijab in public while taking selfies, or they will be attacked. We are keeping a watch on this.”
This news is truly worrying. One must understand that such messages are not being circulated in Islamic countries like Pakistan or Taliban-ruled Afghanistan. They are being circulated in India to Muslim families, creating a fear psychosis. Police has set up a special team to round up these radicals, but the problem is that these messages originated from phone numbers outside India. In several places, these messages have been circulated through internet. It could be a minor issue, but the message is chilling. This is a clear case of anti-Indian forces at work, who are trying to strike fear in the minds of Indian Muslims.
I have another example to share here. People’s Front of India (PFI), a radical Muslim outfit, is trying to spread poison of hate in the minds of Muslims. In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Thursday night, I showed the video of Mohammed Shakif, national secretary of PFI, spewing venom against Hindus and the BJP government at the Centre. This PFI leader is alleging, Muslims in India are being harassed by RSS with the help of Indian government, Muslims are being made target, and this is not the time for Indian Muslims to remain silent.
In one of his speeches, Mohammed Shakif is saying, riots during Ramnavami this year were pre-planned. He alleged that Ramnavami processions were deliberately taken out in different towns and cities through Muslim localities, in order to incite Muslims. “This is an Israeli formula. Before we all sink, we must stop this, otherwise we are bound to sink”, says this PFI leader.
In his speech, Mohammed Shakif says, “RSS has now become a gangrene which has spread throughout India. We must sacrifice if we want to save our country. We have to give sacrifice. Without pain, there is no gain. Yes, it is true that if you join PFI or SDPI, police will file cases against you, ED will raid you homes, and you may have to spend two to five years in jail. If you are not ready to face this, then be prepared to become slaves, and see your children becoming slaves. Pray to Allah to give strength to all of us to fight. We must not flee from battle. The problem with rich Muslims is that they flee from battle. If you flee then how can the poor Muslims fight? Let rich Muslims come forward and join the battle.”
In the video taken on April 29 in Mysuru, during an ‘iftar’ event organised by PFI, this leader says, “If you do not have cases slapped against you, you don’t deserve to be called a leader. I am proud to have NRC/CAA/Babri mosque agitation cases filed against me. I am proud that police came to my house. I will have pride the day I go to jail for my ‘qaum’(race)”
Mohammed Shakif further says, “This has now become a fashion across Bengaluru and India, organize iftar parties and win their hearts. The more deer will throw themselves at their feet, the wolves will not spare them. Whatever may happen, is going to happen. The first battle of ‘Badr’ took place during Ramzan. Pray for those children during Ramzan, who are languishing in jails for taking part in CAA agitation. They sacrificed themselves for the ‘qaum’. They are children who came forward, when they tried to snatch away our citizenship. PFI was the first organization. Thousands of our children are in jail on charge of terrorism. …We have to fight these wolves. They will come and break your mosques. You must come out and stop them, fight these wolves”.
This man, Mohammed Shakif is no ordinary person. He is the national secretary of PFI. His work is to go around the country and deliver such hate speeches and incite Muslims. When he alleges in a loud voice that it is the government which is throwing stones, it is the government which is attacking mosques, the ordinary Muslim may ask, why should the government do this? This government belongs to all of us. PFI leaders are ready with their answers. They say, if you want to be in this country, you must live as second-class citizens, if you raise your voice, they will enter your homes and beat you, they will demolish your homes.
PFI leader Mohd. Shakif is lying. He is trying to mislead and incite people. He is alleging that all violent incidents are taking place at the behest of the establishment in India.
Let me state the facts about the incidents which he referred to. Both Hindus and Muslims were affected during the Delhi Jahangirpuri riots, Khargone riots and the Jodhpur riots. It is being alleged that only Muslim homes were demolished and Muslims are being sent to jails. The first bulldozer that demolished a shop in Delhi Jahangirpuri, belonged to a Hindu.
The MCD bulldozers were sent there to remove encroachments that had taken place over several years. Shops of several Hindus were demolished too. Shops of Muslims were also demolished. The mosque in Jahangirpuri was not demolished. Only the outer area which was extended through encroachment was demolished. The bulldozer was about to demolish the encroached portion of a nearby temple, but, by evening, the temple management itself removed those encroachments.
As far as people arrested in Delhi Jahangirpuri riots are concerned, their names are Ansar, Salim, Zahid, Shehzad, Mohd Ali, Aamir, Noor Alam and Akram, all Muslims, but the list of arrested also includes Saurabh, Suraj, Neeraj, Suken, Suresh and Sujit Sarkar, all Hindus. PFI leaders claim themselves to be the leaders of Muslims, but the real fact is that during the Jodhpur riots, PFI was involved in attack on Hindu homes and shops. Its role is being investigated by police, which is working under the Congress government.
In Jodhpur, police arrested 211 people, which includes both Hindus and Muslims. There was no fight over any Hindu procession. Those who took part in Eid ul-Fitr namaaz in Jodhpur, later started pelting stones. Among those arrested in Jodhpur, many of the Muslims were outsiders. They were brought from outside to foment violence. It is being alleged that PFI had a role in the Jodhpur violence. Whether it is Jodhpur or Khargone, allegations being made by PFI leaders are baseless. PFI is an extremist Islamic organization, and its leaders are going around spreading lies about atrocities on Muslims.
Other Muslim organizations and maualanas are aware about the activity of PFI leaders. The ulema (Muslim clerics) are advising people to be on alert against this outfit. PFI has already spread its network far and wide, using social media and technology. They prepare video of one hate speech and then start circulating in WhatsApp groups. They are spreading venom to millions of people, radicalizing Muslim youths and inciting them to take up arms.
Sufi Khanqah Association has sent copies of inciting speeches made by PFI leaders to the Centre and UP government, seeking a ban on this outfit. Qausar Hasan Majidi, the president of Sufi Khanqah Association, has alleged that PFI is trying to cause disturbance as part of a conspiracy. Majidi said, “on January 26 this year, PFI had passed a resolution to launch “Save Democray” movement in India, but in effect, it is not a ‘Save Democracy’ movement but a ‘Divide India’ movement. Our association is raising its voice against PFI, and we have asked the Centre and state governments to impose a ban on this outfit.”
Sufian Nizami, the spokesman of Darul Uloom Firangi Mahal, a renowned Muslim institution of Lucknow having millions of followers, has said that no such outfit must be allowed to spread hate. He said, “the common Muslims do not trust PFI, and they should remain vigilant. This country is being run according to the Constitution, and we should all respect it.”
In February this year, PFI had taken out a parade of its workers in Kota, Rajasthan, where several hate speeches were made. The national general secretary of PFI Anees Ahmed has compared RSS with the international terror outfit Islamic State. Union Rural Development Minister Giriraj Singh hinted in Patna, while speaking to India TV on Thursday, that the government is considering the option to ban PFI. Giriraj Singh said,” those who give lofty speeches on secularism are now silent, why?”
In social media, any comment, remark or speech which is venomous, spreads faster. Any message which seeks to create divisiveness and hatred, too spreads faster. My request to all is, please do not trust these messages and speeches, and do not forward them to others. In the past, it has been revealed that several such mischievous and hateful messages originate from Pakistan, spread to other countries through ISI propaganda cells active in Pakistan, and then reach India.
Those who are spreading such hate messages are anti-national. They want to hurt India. We must remember that the person who throws stones, acid bottles or attacks with swords and lathis is actually neither a Hindu nor a Muslim. No religion preaches violence. But there are people who are trying to pit one community against another, but spreading half-truths and mostly lies. We must remain alert.
सबसे बड़ा हिन्दुत्ववादी कौन है? राज या उद्धव ठाकरे?
राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने मस्जिदों और मंदिरों में लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल के खिलाफ अपना आंदोलन बुधवार को पूरे राज्य में शुरू कर दिया। पुलिस ने ऐसे कई MNS कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया जो मस्जिदों के बाहर लाउडस्पीकरों पर हनुमान चालीसा बजाने की कोशिश कर रहे थे। रविवार को हुई औरंगाबाद की रैली में अपने भाषण के लिए राज ठाकरे पर गिरफ्तारी की तलवार पहले ही लटकी हुई है।
महाराष्ट्र सरकार के गृह विभाग ने बुधवार को कहा कि मुंबई की 1135 मस्जिदों में से 135 मस्जिदों में 2005 के अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित डेसिबल सीमा से ज्यादा तेज आवाज में अजान हुई। गृह विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि करीब 1500 मस्जिदों और 1300 मंदिरों ने लाउडस्पीकर के इस्तेमाल के लिए राज्य सरकार से इजाजत मांगी है।
पिछले 24 घंटों में पुलिस ने 56 लोगों को कानून-व्यवस्था से जुड़ी समस्या पैदा करने के आरोप में गिरफ्तार किया है। इनमें से ज्यादातर MNS कार्यकर्ता थे। पुलिस ने 2300 लोगों के खिलाफ, जिनमें ज्यादातर MNS कार्यकर्ता हैं, प्रिवेंटिव ऐक्शन लिया है और लगभग 7000 लोगों को नोटिस जारी किया है।
राज ठाकरे ने एक बात साफ-साफ कही है कि उनकी पार्टी ऐसे सभी मंदिरों और मस्जिदों के खिलाफ आंदोलन करेगी जहां लाउडस्पीकर तय सीमा से ज्यादा डेसिबल से बजाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर शिवसेना के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने में नाकाम रहती है तो उनकी पार्टी अपना आंदोलन जारी रखेगी।
लाउडस्पीकर के मुद्दे पर सत्तारूढ़ शिवसेना ने बुधवार को पैंतरा बदल लिया। शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि राज ठाकरे के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन की वजह से महाराष्ट्र में शिरडी साईं बाबा मंदिर और त्र्यंबकेश्वर भगवान शिव मंदिर जैसे बड़े मंदिरों में लाउडस्पीकर पर सुबह की ‘काकड़ आरती’ नहीं हुई जिसके कारण भक्त इसका आनंद नहीं ले सके। राउत ने कहा, ‘महाराष्ट्र में आम जन उन लोगों पर गौर नहीं करते, जो ‘छद्म हिंदुत्ववादियों’ के समर्थन से शिवसेना के खिलाफ साजिश रचते हैं।’
संजय राउत ने कहा, ‘महाराष्ट्र में लाउडस्पीकर संबंधी सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है, और स्थिति उस स्तर तक नहीं पहुंची है, जहां मुंबई या महाराष्ट्र में किसी आंदोलन की जरूरत हो।’ राज ठाकरे ने शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे का एक पुराना वीडियो पोस्ट किया जिसमें वह कह रहे थे, ‘जिस दिन उनकी पार्टी सत्ता में आएगी, सड़कों पर नमाज बंद कर दी जाएगी और मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटा दिए जाएंगे।’
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए संजय राउत ने कहा, ‘हम इतने नीचे नहीं गिरे हैं। हम अब भी उनके सिद्धांतों पर चल रहे हैं। बाला साहेब ने लाउडस्पीकर और सड़क पर नमाज अदा करने को लेकर अपना रुख स्पष्ट किया था। सत्ता में आने के बाद उन्होंने इसे रोका भी। शिवसेना को कोई हिंदुत्व नहीं सिखाए।’ अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, ‘महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार है। भले ही राज्य में महा विकास अघाड़ी (गठबंधन) की सरकार हो, इसका नेतृत्व उद्धव ठाकरे कर रहे हैं। वह हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे के बेटे हैं, सेना प्रमुख हैं। इसलिए, उन्हें सड़कों पर नमाज पढ़ने और मस्जिदों में अवैध लाउडस्पीकर के बारे में सलाह की जरूरत नहीं है।’
संजय राउत शिवसेना सरकार के प्रवक्ता हैं, और उन्हें अपनी पार्टी को डिफेंड करने का पूरा अधिकार है। लेकिन उनकी बात तथ्यों के आधार पर गलत है। मंदिरों या मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने की जरूरत नहीं है। सरकार को लाउडस्पीकरों के वॉल्यूम को तय सीमा पर रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश को लागू करने की जरूरत है। राज्य सरकार ने धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के इस्लेमाल की इजाजत देने के लिए पहले से ही दिशानिर्देश तय कर रखे हैं। मुंबई में सिर्फ 24 मंदिरों और 922 मस्जिदों को लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत मिली है। राज्य सरकार को सभी लाउडस्पीकरों के डेसिबल स्तर को नियम के मुताबिक रखने की जरूरत है, लेकिन अब पूरे मामले का राजनीतिकरण कर दिया गया है।
अब जबकि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे आमने-सामने हैं, तो मुकाबला इस बात का है कि कौन बड़ा ‘हिंदुत्ववादी’ है और कौन बाल ठाकरे का असली अनुयायी है। राज ठाकरे यह साबित करने में लगे हैं कि बालासाहेब के बेटे उद्धव कुर्सी के लालच में अपने पिता की विचारधारा को भूल गए हैं, जबकि शिवसेना यह साबित करने में लगी है कि राज ठाकरे अपनी पार्टी के राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में बीजेपी के हाथों का मोहरा बन गए हैं। शिवसेना के नेता खुलेआम कह रहे हैं कि राज ठाकरे ने जिन बाल ठाकरे का साथ उनके जीते जी छोड़ दिया था और अपनी पार्टी बना ली थी, अब अपने उन्हीं चाचा के नाम का इस्तेमाल वह अपनी सियासत चमकाने के लिए कर रहे हैं।
राज ठाकरे लाउडस्पीकर के खिलाफ अपना आंदोलन 3 मई से शुरू करना चाहते थे, लेकिन चूंकि इस दिन ईद मनाई जा रही थी, इसलिए उन्होंने इसे एक दिन के लिए टाल दिया। बुधवार को महाराष्ट्र के अलग-अलग शहरों में MNS कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए और अजान के दौरान मस्जिदों के बाहर लाउडस्पीकरों पर हनुमान चालीसा बजाने की कोशिश की। इंडिया टीवी के रिपोर्टर मुंबई के मुस्लिम बहुल इलाके भिंडी बाजार की मीनारा मस्जिद गए, और पाया कि 8 लाउडस्पीकरों से ‘अजान’ की आवाज का डेसिबल लेवल बहुत ज्यादा था। मस्जिद से नमाज पढ़कर निकल रहे लोगों ने हमारे रिपोर्टर से कहा कि लाउडस्पीकर पर अजान हो या न हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि जो 5 वक्त के नमाजी हैं उन्हें अजान की जरूरत नहीं होती है। कुछ नमाजियों का यह भी कहना था कि लाउडस्पीकर पर 2 मिनट की अजान को इतना बड़ा मुद्दा बनाना गलत है।
बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में, हमने पुणे, नासिक, औरंगाबाद, उस्मानाबाद, सोलापुर और धुले के वीडियो दिखाए, जहां MNS कार्यकर्ता मस्जिदों के बाहर हनुमान चालीसा बजाने के लिए लाउडस्पीकर सिस्टम के साथ पहुंचे थे। पुणे के मारुति मंदिर में, जहां राज ठाकरे पिछले महीने ‘महाआरती’ करने आए थे, MNS कार्यकर्ताओं ने बुधवार को पूजा-अर्चना की। सोलापुर के मारुति मंदिर में, जब MNS कार्यकर्ताओं ने लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा बजाना शुरू किया, तो पुलिस ने उन्हें रोक दिया क्योंकि वहां से कुछ सौ मीटर की दूरी पर एक मस्जिद थी। MNS कार्यकर्ताओं ने तब ‘ढोलक’ और घंटियां बजाते हुए हनुमान चालीसा का पाठ किया।
धुले में, MNS कार्यकर्ताओं ने शिवतीर्थ चौक पर जय श्री राम और जय हनुमान के नारे लगाए और दोपहर की अजान के वक्त एक मस्जिद की ओर बढ़ने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उन्हें घेर लिया। नासिक में, MNS कार्यकर्ताओं ने ‘फज्र’ की नमाज (सुबह की नमाज) के दौरान एक मस्जिद के पास लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा बजाने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उनके लाउडस्पीकर और एम्पलीफायर को जब्त कर लिया और कई कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया।
असल में झगड़ा मंदिर, मस्जिद, अजान या हनुमान चालीसा का नहीं है। झगड़ा सत्ता का है। राज ठाकरे सियासी हैसियत वापस पाना चाहते हैं और उद्धव ठाकरे सत्ता कायम रखना चाहते हैं। दोनों के लिए जरिया एक ही है, प्रखर हिन्दुत्व। और इसके प्रतीक हैं बालासाहेब ठाकरे।
उद्धव ठाकरे को अपनी राजनीतिक मजबूरियों की वजह से फिलहाल प्रखर हिंदुत्व के बारे में बोलने से बचना होगा। वह अपने पिता बालासाहेब ठाकरे के टेप नहीं चला सकते, जो कि हिंदुत्व पर जोशीले भाषण दिया करते थे। उद्धव ने अपने पिता के पुराने टेप चलाने शुरू किए तो उनके मुख्य सहयोगी एनसीपी और कांग्रेस पावर कनेक्शन काट देंगे।
राज ठाकरे, उद्धव की मजबूरी को बखूबी समझ रहे हैं। इसीलिए वह लाउडस्पीकर लेकर निकले हैं और बाल ठाकरे के टेप जोर-जोर से बजा रहे हैं। मुकाबला इस बात का है कि कौन बड़ा हिन्दुत्ववादी है, और कौन बाल ठाकरे का असली अनुयायी है।
Who is the greater Hindutva proponent? Raj or Uddhav Thackeray?
Raj Thakeray’s Maharashtra Navnirman Sena began action on Wednesday against use of loudspeakers outside mosques and temples throughout the state. In response, police rounded up MNS workers who were trying to play Hanuman Chalisa on loudspeaker systems outside mosques. Already, the sword of arrest is hanging over Raj Thackeray for his speech in Aurangabad rally on Sunday.
The home department of Maharashtra government said on Wednesday that out of 1,135 mosques in Mumbai, there were 135 mosques where ‘azaan’(call to prayer) was being made over loudspeakers above the decibel limit set by the Supreme Court in its 2005 order. Nearly 1,500 mosques and 1,300 temples have sought permission from the state government for use of loudspeaker, a home department official said.
In the past 24 hours, 56 persons, mostly MNS workers, were arrested by police for creating law and order problems. Police have taken preventive action against 2,300 persons, mostly MNS workers, and have issued notices to nearly 7,000 people.
Raj Thackeray made one point clear: he said his party would take action against both mosques and temples where loudspeakers are being played above the permissible decibel limit. He said, his party would continue its agitation if the Shiv Sena-led MVA government failed to implement the SC order.
On the loudspeaker issue, the ruling Shiv Sena changed its stand on Wednesday. Shiv Sena leader Sanjay Raut said, because of Raj Thackeray-led agitation, big temples in Maharashtra like Shirdi Sai Baba shrine and Tryambakeshwar Lord Shiva shrine have been unable to play morning ‘ kaakad aarti’ (prayers) over loudspeakers for the devotees. Raut said, adding “common people in Maharashtra will take no cognizance of those who are supporting pseudo-Hindutva and conspiring against the Shiv Sena”.
Sanjay Raut said, “there is no violation of loudspeaker related SC guidelines in Maharashtra, and the situation has not reached such a level that an agitation is required in Mumbai or Maharashtra.” On Raj Thackeray posting an old video of Shiv Sena founder Bal Thackeray saying, “the day his party will come to power, offering namaaz on roads will be stopped and loudspeakers from mosques will be removed.”
Reacting to this, Sanjay Raut said, “We cannot stoop to such a low level. Our party still runs on the ideology of Balasaheb. He stopped offering of namaaz on roads, after coming to power. No one should teach Hindutva to the Shiv Sena.” Elaborating, he said, “Maharahstra has got a Thackeray government. Even if the state has a Maha Vikas Aghadi (coalition) government, it is led by Uddhav Thackeray. He is the Sena chief, son of Hindu Hriday Samrat Balasaheb Thackeray. So he doesn’t have to take advice on illegal loudspeakers in mosques or allowing people to pray on roads.”
Sanjay Raut is the spokesman of Shiv Sena government, and he has every right to defend his party. But he is incorrect on one point. There is no need to remove loudspeakers from temples or mosques. The government needs to implement the SC guideline on keeping the volume of loudspeakers at a permissible limit. The state government has already set guidelines for giving permission for use of loudspeakers at religious shrines. In Mumbai, only 24 temples and 922 mosques have got permission to use loudspeakers. The state government needs to keep the decibel level of all loudspeakers at a permissible limit, but the entire issue has now been politicized.
Now that Uddhav Thackeray and Raj Thackeray are ranged against each other, the battle is on who is a greater ‘Hindutvawadi’(pro-Hindutva) and who is a sincere disciple of Bal Thackeray. Raj Thackeray is busy proving that Balasaheb’s son Uddhav has forgotten his father’s ideology in his quest for power, while Shiv Sena is busy trying to prove that Raj Thackeray in a desperate action for his party’s political survival has become a pawn in the hands of BJP. Shiv Sena leaders are openly saying that Raj Thackeray left his uncle Balasaheb, when the latter was alive, and floated his own party, but now, he is using his uncle’s name to score political brownie points.
Raj Thackeray wanted to launch his agitation against loudspeakers from May 3, but since it was Eid ul-Fitr festival, he postponed it by a day. On Wednesday, MNS workers came out in different cities of Maharashtra, and tried to play Hanuman Chalisa on loudspeakers outside mosques during ‘azaan’ time. India TV reporter went to Minara Masjid in Bhindi Bazar, a Muslim-dominated locality of Mumbai, and found 8 loudspeakers blaring out ‘azaan’ at a very high decibel level. Devotees who came out of the mosque after prayers, told our reporter that use of loudspeakers for azaan call does not matter for those who offer namaaz five times a day, as prescribed in Islam. Some devotees said, it was wrong to make a two-minute azaan call on loudspeakers as a big issue.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Wednesday night, we showed visuals from Pune, Nashik, Aurangabad, Osmanabad, Solapur and Dhule, where MNS workers came up with loudspeaker systems to play Hanuman Chalisa outside mosques. At the Maruti temple in Pune, where Raj Thackeray had come last month to perform ‘maha-aarti’, MNS workers performed prayers on Wednesday. At the Maruti temple in Solapur, when MNS workers started playing Hanuman Chalisa on loudspeakers, they were prevented by police, because a mosque was located a few hundred metres away. MNS workers then used ‘dholaks’ and bells and recited Hanuman Chalisa.
In Dhule, MNS workers chanted Jai Shri Ram and Jai Hanuman slogans at Shivtirth Chowk and tried to proceed towards a mosque during afternoon ‘azaan’ time, but were rounded up by police. In Nashik, MNS workers tried to play Hanuman chalisa on loudspeaker near a mosque during ‘fazr’ namaaz (morning prayer), but police seized their loudspeaker and amplifier. Most of the MNS workers were arrested.
The entire issue is not related to temple, mosque, azaan, Hanuman Chalisa or loudspeakers. The issue relates to political power. Raj Thackeray wants to regain political weight in his state and Uddhav Thackeray wants to retain his political power. The tool is the same for both: radical Hindutva. And the symbol for both is: Balasaheb Thackeray.
Uddhav Thackeray has to refrain from speaking about radical Hindutva now, given his political compulsions. He cannot replay the tapes of his father Balasaheb Thackeray, who used to give fiery speeches on Hindutva. NCP and Congress, both his main allies, will switch off the power connection, once Uddhav starts playing his father’s old tapes.
Raj Thackeray realizes Uddhav’s compulsions, that is why he has raised the loudspeaker issue and is playing Balasaheb Thackeray’s tapes loudly. The contest is: Who is a greater Hindutvawadi? Who is the true follower of Balasaheb Thackeray?