क्या ज्ञानवापी मस्जिद बनने से पहले मंदिर था ?
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ज्ञानवापी का मामला सिविल जज (सीनियर डिवीजन) से वाराणसी के जिला जज को ट्रांसफर कर दिया। अपने अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वाराणसी के जिला जज सबसे पहले इस मुद्दे पर फैसला सुनाएंगे कि मस्जिद में श्रृंगार गौरी की पूजा करने के लिए पांच हिन्दू महिलाओं ने जो याचिका दी थी, क्या वह ग्रहणयोग्य है या नहीं। उच्चतम न्यायालय ने कहा, ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग क्षेत्र की सुरक्षा के लिए 17 मई का उसका अंतरिम आदेश जारी रहेगा।
जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पी.एस नरसिम्हा की पीठ ने कहा-‘इस मामले की सुनवाई कुछ ज्यादा अनुभवी और परिपक्व हाथों से होनी चाहिए’। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम ट्रायल जज को कोई दोष नहीं दे रहे हैं, लेकिन यदि एक अधिक अनुभवी और परिपक्व हाथ इस केस को संभालता है तो इससे सभी पक्षों को फायदा होगा।’
उच्चतम न्यायालय ने जिलाधिकारी को नमाजियों के लिए वजू का इंतजाम कराने और नमाज को जारी रखने की इजाजत देने का आदेश दिया। इसके साथ ही जिला अदालत को मुस्लिम पक्ष की दलीलों पर तेजी से सुनवाई करने का भी निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुरक्षा बल वजूखाना में पाए गए शिवलिंग जैसे काले पत्थर की सुरक्षा करते रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश अगले आठ सप्ताह तक प्रभावी रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा, यह उसके लिए ‘देश में एकता की भावना को बनाए रखने का एक साझा मिशन है। एक बार आयोग की रिपोर्ट आ जाने के बाद उससे कुछ गिनी-चुनी चीजें लीक नहीं हो सकती। प्रेस को ये चीजें लीक न करें। केवल जज ही रिपोर्ट को खोल कर पढें।’ पीठ ने यह भी कहा, ‘हम एक जिला जज को गाइड नहीं कर सकते। यह मामला उन्हें संभालने दें। उनके पास पर्याप्त अनुभव है। हम उन्हें यह आदेश नहीं दे सकते कि वे इस केस को इस तरह या उस तरह सुनें। ‘ सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की जब अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद समिति के वकील हुजैफा अहमदी ने अदालत को बताया कि शुरू से (सिविल कोर्ट द्वारा) पारित सभी आदेशों से समाज को एक बड़ा नुकसान हो सकता है। यह संसद द्वारा पारित कानून के बावजूद हो रहा है।’
हिंदू पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने कहा, ‘आज की विशेष अनुमति याचिका निष्प्रभावी है क्योंकि तीनों आदेशों का पहले ही पालन किया जा चुका है। अब ज्ञानवापी मस्जिद का धार्मिक चरित्र तय करना होगा। आयोग की रिपोर्ट अदालत को देखना होगा।’ बेंच ने उनके इस तर्क का जवाब देते हुए कहाः ‘हमने आपकी बात मान ली, इसलिए हम इसे जिला जज को सौंप रहे हैं।‘
ज्ञानवापी मस्जिद में शुक्रवार को जुमे की नमाज शांतिपूर्वक अदा की गई। बड़ी संख्या में नमाजी ज्ञानवापी मस्जिद पहुंचे। अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद कमेटी ने कुछ प्रतिबंधों की वजह से सीमित संख्या में लोगों से आने की अपील की थी लेकिन नमाजियों की एक बड़ी भीड़ मस्जिद में जमा हो गई। विश्वनाथ धाम के गेट नंबर 4 के बंद होने के कारण कई नमाजियों को वापस लौटना पड़ा। बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों की तैनाती की गई थी। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने अपनी अपील में कहा था कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सुरक्षा बलों ने वजूखाना सील कर दिया है, इसलिए नमाजियों से बहुत कम संख्या में आने की अपील की जाएगी। जिला प्रशासन द्वारा वजूखाना और शौचालय दोनों को सील कर दिया गया है।
वहीं निचली अदालत द्वारा नियुक्त कमिश्नरों द्वारा गुरुवार को सर्वे रिपोर्ट पेश की गई जो इंगित करती है कि जहां ज्ञानवापी मस्जिद है वहां एक शिव मंदिर हो सकता है। हिंदू पक्ष का दावा है कि उस जगह पर 450 साल पुराना बाबा विश्वनाथ मंदिर मौजूद था।
हिंदू पक्ष का दावा है कि मंदिर के कुछ हिस्से ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर छिपे हुए हैं। इस परिसर में भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं को दर्शाने वाले कई धार्मिक चिन्ह पाए गए हैं। सर्वे टीम को ज्ञानवापी परिसर जो आकृतियां मिलीं उनमें त्रिशूल, डमरू, कमल के फूल, के साथ ही दीवारों पर शंख और स्वास्तिक, घंटियां और पान के पत्ते के निशान हैं। अनुष्ठान के लिए मंडप प्राचीन मंदिर के अस्तित्व की तरफ इशारा करते हैं।
तीन सीलबंद बक्सों में 15 पेज की रिपोर्ट के साथ 32 जीबी की वीडियो फुटेज, नक्शों का पुलिंदा और तस्वीरें सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर को सौंपी गई हैं। सोमवार (23 मई) को जब अदालत इस मामले की सुनवाई करेगी तब आधिकारिक तौर पर इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाएगा।
हिंदू पक्ष का दावा है कि तीन दिनों के सर्वे के दौरान मस्जिद के आंतरिक हिस्से में कई ऐसी चीजें पाई गईं जो पुराने हिंदू मंदिर के वास्तुकला के कुछ हिस्सों को दर्शाती हैं। हिंदू पक्ष ने वजूखाने में मिले काले पत्थर को एक पुराना शिवलिंग होने का दावा किया । यह बेलनाकार संरचना वजूखाने के बीच में मिली है। वहीं मस्जिद प्रबंधन का दावा है कि यह शिवलिंग नहीं बल्कि फव्वारा है। जब वजूखाने का पानी निकला गया तो यह शिवलिंग जैसी संचरना नजर आ रही थी। सूत्रों के मुताबिक सर्वे टीम में शामिल ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन के मुंशी एजाज मोहम्मद से जब स्पेशल कमिश्नर ने इस तथाकथित फव्वारे के बारे में पूछा, तब उन्होंने जवाब दिया कि फव्वारा लंबे समय से काम नहीं कर रहा है, लेकिन उन्हें यह याद नहीं है कि किस वर्ष इसने काम करना बंद कर दिया। फिर कहा 20 साल से बंद है और बाद में बोले कि 12 साल से बंद है। सूत्रों के मुताबिक जब हिंदू पक्ष के वकीलों ने मस्जिद कमेटी के मुंशी से कहा कि वो इस फव्वारे को चलाकर दिखाएं तो उन्होंने इंकार कर दिया।
दोनों पक्ष भले ही अपने-अपने दावे कर रहे हों, लेकिन अब तक जो हिंदू धर्म से जुड़े प्रतीकों के प्रमाण मिले हैं, उनसे साफ पता चलता है कि जहां मस्जिद है, वहां 450 साल पुराना बाबा विश्वनाथ मंदिर था।
जिस समय सर्वे चल रहा था उस समय ज्ञानवापी परिसर के अंदर कुल 52 लोग थे, जिनमें दोनों पक्षों के वकील भी शामिल थे। इस सर्वे रिपोर्ट को एकतरफा नहीं कहा जा सकता। उत्तरी भारत के अधिकांश मंदिरों में शंख के आकार के शिखर हैं। इस वक्त जो काशी विश्वनाथ मंदिर बना है उसका शिखर भी शंकुआकार के ही है। सबसे अहम बात यह है कि शंख के आकार की संरचना न केवल उत्तरी गुंबद के अंदर बल्कि तीनों गुंबदों में है। इतना ही नहीं इस शिखरनुमा आकृति में फूल, पान के पत्ते और कमल के फूल की आकृतियां भी मिली हैं।
इंडिया टीवी संवाददाता भास्कर मिश्रा ने अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव एस.एम. यासीन से ज्ञानवापी परिसर में मिले स्वास्तिक, कमल, श्लोक जैसे हिंदू प्रतीकों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा ज्ञानवापी में मस्जिद वहां उपलब्ध स्थानीय मैटेरियल से बनाई गई थी और कारीगर भी स्थानीय थे। उन्होंने कहा, ‘हो सकता है कि जब मस्जिद बन रही होगी तब हिंदू प्रतीकों को जोड़ा गया होगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। स्वास्तिक के निशान से कोई मस्जिद, मंदिर नहीं बन जाती’।
अब सवाल यह है कि दुनिया की किस मस्जिद में स्वास्तिक के निशान हैं ? किस मस्जिद में कमल के फूल, त्रिशूल और घंटियां खुदी हैं। किस मुस्लिम घर की दीवारों पर राम का नाम खुदा है ? अंजुमन इंतजामिया मस्जिद के वकील कह रहे हैं कि चूंकि कारीगर हिन्दुस्तान के थे इसलिए औरंगजेब के उस जमाने में मस्जिद की दीवारों पर त्रिशूल, कमल, स्वास्तिक और घंटियां बना दी। मुझे तो हैरानी इस बात की है कि उन्होंने ये नहीं कहा कि गुंबदों से बारिश का पानी नीचे न टपके इसलिए गुंबदों के नीचे मंदिर के शिखर बना दिए।
जब सर्वे रिपोर्ट का विवरण मीडिया के माध्यम से सामने आया तो एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी एक अलग तर्क के साथ सामने आए। उन्होंने सर्वे रिपोर्ट तैयार करने वाली अदालत द्वारा नियुक्त कमिश्नरों पर सवाल उठा दिया। ओवैसी ने कि कहा रिपोर्ट बनाने वाले ही निष्पक्ष नहीं थे। मुस्लिम पक्ष ने जिन्हें कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने पर आपत्ति जताई थी और जिनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे, लोअर कोर्ट ने उन्हीं को मुंसिफ बना दिया तो ऐसी ही रिपोर्ट आएगी। आप और क्या उम्मीद कर सकते हैं?
ओवैसी की ये बात सही है कि फैसला सुप्रीम कोर्ट ही करेगा। दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद सबूतों के आधार पर करेगा ही फैसला होगा। लेकिन ये बात गलत है कि अगर रिपोर्ट आपके मनमाफिक नहीं है तो सर्वे करने वालों की ईमानदारी, निष्पक्षता और निष्ठा पर ही सवाल उठा दिए जाएं। ये निचली अदालत की तौहीन है। ओवैसी ने तो एक लाइन में कह दिया कि कोर्ट कमिश्नर निष्पक्ष नहीं थे लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि मुस्लिम पक्ष इसी तरह कोर्ट में हर बार कोर्ट कमिश्रर का विरोध करके मामले को लटकाता रहा है। मुस्लिम पक्ष की मांग पर पहले भी दो बार कोर्ट कमिश्नर बदले जा चुके थे। इसके बाद भी अगर कोई निचली अदालत की निष्पक्षता पर सवाल उठाए तो मुझे लगता है कि उसकी नीयत में खोट है।
दूसरी बात, ओवैसी ये कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस केस को खारिज कर दे। इसे बैलेंस करने की जरूरत नहीं है। वो कह रहे हैं कि सबको किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए। लेकिन ओवैसी उन मुस्लिम नेताओं और मौलानाओं को नहीं समझाते जो खुद सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने को तैयार नहीं है। जो अभी से धमकी दे रहे हैं। रज़ा अकेडमी के सचिव मौलाना खलील उर रहमान ने धमकी भरे अंदाज में कहा, ‘मुसलमानों के सब्र का बांध टूट रहा है, उनसे एक-एक कर मस्जिदें छीनी जा रही हैं। बीजेपी एक बार में ही बता दे कि उसे कौन-कौन सी मस्जिदें चाहिए जिससे मुसलमानों को सड़कों पर उतर आने में आसानी हो।’ समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर रहमान बर्क ने कहा, ‘ज्ञानवापी मस्जिद को बचाने के लिए मुसलमान अपनी जान की कुर्बानी देंगे।’ एक अन्य मौलवी मुफ्ती सलमान अज़हरी ने कहा, बर्क साहब को अपना बलिदान देने के लिए पहले आना चाहिए, क्योंकि मुसलमानों ने उन्हें वोट दिया था। उन्होंने यह भी कहा, “हमने बाबरी मस्जिद खो दी है, हम किसी भी कीमत पर ज्ञानवापी मस्जिद को छीनने नहीं देंगे।”
मुझे लगता है कि मामला कोर्ट कचहरी से नहीं बिगड़ता, मामला बयानबाजी से बिगड़ता है। कोर्ट के आदेश पर सर्वे हुआ और सिर्फ कोर्ट कमिश्नर्स ने सर्वे नहीं किया। इसमें दोनों पक्षों के वकील और पैरोकार थे। पचास से ज्यादा लोगों की मौजदूगी में सर्वे हुआ। इसलिए कोई ये तो नहीं कह सकता कि सर्वे करने वाले झूठ लिख देंगे।
हैरानी की बात ये है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी कह रहे हैं कि हमारे यहां तो कोई कहीं भी पत्थर रख दे, टीका लगा दे, झंडा लगा दे वहीं मंदिर हो जाता है। अगर अखिलेश यादव की यह बात मान भी ली जाए कि कहीं भी पत्थर और लाल झंडा लगा दो तो वो मंदिर हो जाता है तो उन्हें ये बताना पड़ेगा कि जहां शिवलिंग, त्रिशूल, डमरू और स्वास्तिक के निशान मिले वो शिवजी का मंदिर होगा या नहीं। अगर शफीकुर रहमान बर्क ये कहते हैं कि हम इबादतगाह की हिफाजत करेंगे तो वो हिंदुओं को ये कहने से कैसे रोक सकते हैं कि वो अपने मंदिरों की सुरक्षा करेंगे।
अगर मौलाना रहमान कहते हैं कि मुसलमानों से एक-एक करके मस्जिद छीनी जा रही है तो उन्हें ये बताना होगा किसने मस्जिद छीनी। कौन सी मस्जिद छीनी। फिर हिंदू समाज के लोग उनसे पूछेंगे कि जब कश्मीर में मंदिर तोड़े गए तो ये लोग कहां थे ? ये तो ऐतिहासिक तथ्य है कि औरंगजेब ने मंदिरों को तोड़ा और उनकी जगह पर मस्जिदें बनाई। इसीलिए ये विवाद बार-बार खड़े होते हैं। मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर भी इसी तरह का विवाद है।
अब जबकि मामला वाराणसी की जिला अदालत में है, सबकी निगाहें इस बात पर रहेंगी कि ज्ञानवापी मामले में जिला जज आगे क्या कदम उठाते हैं।
Was there was a temple before Gyanvapi mosque was built?
The Supreme Court on Friday transferred the Gyanvapi case from Civil Judge (senior division) to District Judge in Varanasi. In its interim order, the apex court said, the district judge of Varanasi shall first decide maintainability of civil suits filed by Hindu plaintiffs upon transfer of prayers. The court said, its interim order of May 17 for protection of Shivling area in Gyanvapi complex will continue and arrangement for ‘wazu’ (ablution) will be done.
The bench of Justices D Y Chandrachud, Surya Kant and P. S. Narasimha, said, “a slightly more seasoned and mature hand should hear this case”. The bench, however added, “we are not making aspersion on trial judge but if a more seasoned hand handles this case, it will benefit all parties”.
The apex court also directed the district magistrate to make arrangements for ‘wazu’(ablution) for devotees and allow ‘namaaz’ to continue. It also directed the district court to hear the pleas of Muslim side speedily. The apex court said security forces shall continue to protect the ‘Shivling-like’ structure found in the ‘wazukhana’. The interim order of Supreme Court shall be in force for next eight weeks.
The apex court bench said, it is on “a joint mission to preserve a sense of unification in the country. Once a commission report is there, there cannot be selective leaks. Do not leak things to the press. Only the judge opens the report”. The bench also said, “we cannot guide a District Judge. Let them handle it. They have enough experience at the bench. We cannot command him to hear it this way or that way”. The apex court made this observation when the advocate for Anjuman Intezamia Masajid Committee Huzaifa Ahmadi told the court that all the orders passed from beginning (by civil court) are capable of creating great public mischief. It is in the teeth of an injunction passed by Parliament”.
Senior Advocate C S Vaidyanathan, representing the Hindu side, said, ‘the special leave petition today is infructuous since all the three orders have been complied with. Religious character of the mosque has to be decided. The commission report has to be seen by the court”. Replying to this, the bench said, “we took your point, that is why we are entrusting it to a district judge.”
Meanwhile, Friday ‘namaaz’ was offered peacefully by a large number of Muslim devotees at the controversial Gyanvapi Masjid in Varanasi. The Anjuman Intezamia Masajid Committee had appealed to Muslims to come in limited numbers because of certain restrictions, but a large crowd of devotees assembled at the mosque for ‘namaaz’ prayers. Many of the devotees were turned away from Gate No. 4 of Vishwanath Dham, as the gate was closed. There was heavy deployment of security forces to ensure law and order. The Anjuman Intezamia Masajid Committee had in its appeal said that since the ‘wazukhana’ (ablution pond) has been sealed by security forces on order of Supreme Court, it would be advisable for lesser number of devotees to come for prayers. Both the ‘wazukhana’ and toilet have been sealed by the district administration.
The survey report was submitted by the court-appointed commissioners on Thursday, which indicates that there could be a Shiva temple where the Gyanvapi mosque stands. The Hindu side claims that the 450-year-old Baba Vishwanath temple existed on that spot.
The Hindu side claims that portions of the temple lie hidden within the Gyanvapi mosque. Several religious signs depicting Lord Shiva and other gods and goddesses have been found. Symbols resembling a conch shell (shankh), considered holy in Hinduism, a Swastik sign, bells and betel leaves, trishul, damroo, designated places to keep diyas and idols, and mandaps for performing rituals have been found by the survey team.
The 15-page report along with 32 GB of video footage, sheaf of maps and photographs has been submitted in three sealed boxes to Civil Judge (Senior Division) Ravi Kumar Diwakar. Officially, the report will be made public when the court will take up the case for hearing on Monday(May 23).
The Hindu side claims that several objects which indicate parts of old Hindu temple architecture, have been found in the inner sanctum of the mosque during the three-day survey.
The Hindu side claimed that on the black stone claimed to be an old Shivling, a cylindrical structure carved out of black stone in the middle of ‘wazukhana’ “resembles a Shivling” rather than a portion of a fountain, as claimed the mosque management. Once the water of the ‘wazukhana’ was drained out, the black cylinder structure was visible. According to sources, Aijaz Mohammed, the munshi of the Gyanvapi mosque management, who was part of the survey team, was asked by the Special Court Commissioner about this so-called foundation. He replied that the fountain has been non-functional for a long time, but he could not recollect in which year it stopped working. The masjid munshi first said, 20 years, and later changed it to 12 years. The lawyers for Hindu side challenged him to show that the fountain could work, but the munshi refused, sources said.
Both sides may be making their respective claims, but the evidences of Hindu religious symbols that have been found till now clearly indicates that there existed a 450-year-old Baba Vishwanath temple, where the mosque is located.
At the time of survey, there were a total of 52 people inside, which included lawyers from both sides. One cannot describe this survey report as one-sided. Most of the temple in northern India have ‘conch-shell’ shaped spires. The present Kashi Vishwanath temple also has a similar spire. The most important thing is that the conical shape structure is not only inside the northern dome but in all the three domes. These bear the symbols of flower, betel leaves and lotus flower.
India TV reporter Bhaskar Mishra asked S. M. Yaseen, joint secretary of Anjuman Intezamia Masajid Committee, about Hindu symbols like swastika, lotus, ‘shlokas’ found in the Gyanvapi complex. He replied that the mosque in Gyanvapi was built with locally available material, and the artisans were also local. “It could be that Hindu symbols must have been added when the mosque was being built. Discovery of Swastik symbol does not make a mosque, a temple”, he said.
The question is: in which mosque of the world can one find the ‘swastik’, lotus, trishul or bell symbols. Which Muslim home has the name ‘Ram’ carved on the walls? Lawyers for Anjuman Intezamia Masajid Committee say that the artisans were from India, and in the age of Mughal emperor Aurangzeb they added trishul, lotus, swastika symbols while building the walls of the mosque. I am surprised why they did not say that they put Hindu temple spires beneath the domes of mosque to prevent leaking of rain water during monsoon.
When details of the survey report became public through media, AIMIM chief Asaduddin Owaisi came with a different argument. He questioned the capability of the court-appointed commissioners who prepared the survey report. Owaisi said, the Muslim side had questioned the impartiality of the advocate who was appointed as commissioner, but the lower court made him the arbitrator. “What else can you expect”, Owaisi asked.
Owaisi is right when he says that it is the Supreme Court which will decide on this matter, based on real evidences. But it is unjustified, when you start blaming the survey commissioners for preparing a report which does not suit one side. To question the impartiality and honesty of the advocate commissioners, who conducted the survey, is indirectly casting aspersions on the lower court. Owaisi did not disclose the fact that the lower court had to change commissioners twice, when Muslim side questioned their impartiality. I think the intentions are not bonafide.
Secondly, Owaisi is demanding that the Supreme Court should reject this survey order outright, and no ‘balance’ is required. Owaisi may wait for the Supreme Court verdict, but what about other maulanas who are unwilling to wait for the apex court to decide. Maulana Khalilur Rahman, secretary of Raza Academy, on Thursday menacingly said, “Muslims have started losing their patience. One by one, mosques are being taken away from their possession. Let BJP give the list of mosques which they want, so that it could be easier for Muslims to come on the streets.” Samajwadi Party MP Shafiqur Rahman Barq said, “Muslims will sacrifice their lives to save Gyanvapi mosque.” Another cleric Mufti Salman Azhari said, Barq saheb should come first to offer his sacrifice, because Muslims voted for him. He also said, “We have lost Babri mosque, we will not allow Gyanvapi mosque to be taken away, at any cost.”
I think, matters do not take an ugly turn because of courts. They take an ugly turn because of irresponsible remarks that leaders and clerics made. Let us be clear. The survey was done on the orders of local court. The team consisted of not only court-appointed commissioners, but also lawyers and plaintiffs from both sides. The survey was done in the presence of more than 50 people. Nobody can allege that the survey commissioners have written lies in their report. The report that has been submitted is a clear narration of what the commissioners saw.
I am also surprised over Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav’s remark. He said, in India, a temple is built whenever I somebody installs a stone, puts vermillion mark on the stone, and hoists a saffron flag. It becomes a temple. Akhilesh Yadav should clearly say whether the spot from where the Shivling was found and symbols like swastika, lotus, damroo and trishul were found, had a Shiv temple or not. If his party MP Shafiqur Rahaman Barq can say that Muslims will offer sacrifice to protect the mosque, then how can they stop Hindus from saying that they will also sacrifice to regain their temples.
If Maulana Khalilur Rahman says that mosques are being taken away, one by one, from Muslims, then he must explain which are those mosques that have been forcibly taken away. In that case, those from Hindu society will ask where were they when Hindu temples were destroyed in Kashmir. It is an accepted historic fact that Emperor Aurangzeb issued order for demolishing Kashi Vishwanath temple and built mosques in their places. He also ordered demolition of Keshav Dev temple in Mathura. The Eidgah built on Shri Krishna Janmabhoomi in Mathura is a glaring example.
Now that the ball is in the district court of Varanasi, all eyes will now be on what next steps the District Judge takes in the Gyanvapi issue.
ज्ञानवापी आस्था का मुद्दा है, प्यार-मुहब्बत से सुलझ जाए तो बेहतर
ज्ञानवापी मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा दखल देते हुए वाराणसी की निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह इस मामले में तब तक कार्यवाही को आगे न बढ़ाए, जब तक इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में नहीं हो जाती है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई होगी। जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने ज्ञानवापी मामले में जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगने वाली हिंदू पक्ष की अर्जी के बाद यह आदेश दिया।
आदेश में कहा गया है: ‘हम निचली अदालत को निर्देश देते हैं कि वह उपरोक्त व्यवस्था के संदर्भ में सख्ती से कार्रवाई करें और पक्षों के बीच बनी सहमति के मद्देनजर मुकदमे में आगे की कार्यवाही करने से बचें।’ सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में शुक्रवार की सुनवाई के लिए तीन बजे का समय तय किया है । कोर्ट ने रजिस्ट्री से कहा कि वह भारत के मुख्य न्यायाधीश से पीठ के गठन के लिए प्रशासनिक निर्देश लें।
सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने बेंच से कहा कि हिंदू पक्ष के मुख्य वकील हरिशंकर जैन अस्वस्थ हैं, उन्हें बुधवार को अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया है। उन्होने सुनवाई को शुक्रवार तक स्थगित करने का अनुरोध किया। अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट हुज़ेफ़ा अहमदी ने बेंच को बताया कि विभिन्न मस्जिदों को सील करने के लिए देश भर में कई अर्जियां दाखिल की गई हैं और ज्ञानवापी मामले में वज़ूखाना के चारों ओर की दीवार को गिराने के लिए भी एक अर्जी दी गई है। अहमदी ने कहा कि इस संबंध में हिन्दू पक्ष के वकील एक हलफनामा दें कि वे निचली अदालत की कार्यवाही को आगे नहीं बढ़ाएंगे।
उधर गुरुवार को वाराणसी के सिविल कोर्ट में सिविल जज (सीनियर डिवीजन) द्वारा नियुक्त कमिश्नर ने ज्ञानवापी परिसर में किए गए सर्वे के दस्तावेज, वीडियो और फोटो के साथ अपनी रिपोर्ट दाखिल कर दी। स्पेशल एडवोकेट कमिश्नर विशाल सिंह ने सर्वे रिपोर्ट का खुलासा करने से इनकार कर दिया। विशाल सिंह ने कहा-‘मेरी तरफ से, यह अंतिम रिपोर्ट है। अगर अदालत को लगता है कि यह पर्याप्त है, तो ठीक है, अन्यथा हम अदालत के निर्देशों का पालन करेंगे।’
इस बीच, हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों ने इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से अपनी-अपनी बात रखी और अपने-अपने तर्क दिए। हिंदू पक्ष के वकीलों ने दावा किया कि जो काला पत्थर मिला है वह एक पुराना शिवलिंग है, जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि वह शिवलिंग नहीं एक फव्वारा है। इस पर हिन्दू पक्ष का कहना है कि अगर फव्वारा है तो फिर चला कर दिखाओ। फव्वारे के साथ कोई पाइप, कहीं कोई कनेक्शन हो तो दिखाओ। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि अगर औरंगजेब इतना बड़ा काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त कर सकता था तो फिर शिवलिंग कैसे बचा रह गया। वह शिवलिंग को भी नहीं छोड़ता। इसके जबाव में हिन्दू पक्ष शिव महापुराण का हवाला देकर बता रहा है कि कई मामलों में जब मंदिरों को नष्ट कर दिया गया फिर भी शिवलिंग बरकरार रहा।
इस बीच बुधवार को वजूखाने का एक नया वीडियो सामने आया। इस वीडियो में सबसे पहले नंदी दिखाई दे रहे हैं। यह ज्ञानवापी की पूर्वी दीवार के ठीक सामने की तस्वीर है। ग्रिल के पीछे बाहर की तरफ नंदी की मूर्ति है जिसका मुंह ज्ञानवापी की तरफ है। नंदी के ठीक सामने 83 फीट की दूरी पर वजूखाना है। तस्वीर में दिख रहा है कि वजूखाने के चारों तरफ जालियां लगी हैं और इस वजूखाने के बीचों-बीच शिवलिंग है। वीडियो में शिवलिंग को चारों ओर से एक गोल ईंट की दीवार से ढका हुआ दिखाया गया है जिसे मुस्लिम पक्ष फव्वारा बता रहा है।
सर्वे टीम के पूर्व सदस्य आर.पी. सिंह को पूरा यकीन है कि ये शिवलिंग ही है। लेकिन मुस्लिम पक्ष का दावा है कि अगर शिवलिंग है तो ये जमीन पर होना चाहिए। जिसे हिन्दू पक्ष शिवलिंग कह रहे हैं वो तो तहखाने की छत पर है, वजूखाना तहखाने की छत पर बनाया गया है। इसके बीच में शिवलिंग कैसे हो सकता है ? इसके जबाव में हिन्दू पक्ष का कहना है कि शिवलिंग तो अपनी जगह पर है लेकिन इसका बाकी हिस्सा तहखाने में जमीन तक गया है इसीलिए वजूखाने के नीचे तहखाने को खोलकर सर्वे कराने की मांग अदालत से की गई है। आर. पी. सिंह ने काशी विश्वनाथ मंदिर की नींव दिखाने के लिए एक पुराना नक्शा भी दिखाया।
इस मामले के एक और वादी सोहन लाल आर्य ने कहा कि सिर्फ वजूखाने के तहखाने की ही नहीं बल्कि श्रृंगार-गौरी के सामने पश्चिमी दीवार के पास जो मलबा पड़ा है, उसे हटाकर उसके नीचे भी खुदाई होनी चाहिए। एतिहासिक और पौराणिक मंदिर के सारे जवाब मिल जाएंगे। सोहनलाल आर्य ने कहा कि 72 फीट लंबे, 30 फीट चौड़े और 15 फीट ऊंचे मलबे को हटाने से जो सबूत मिलेंगे, वही सबूत बाबा विश्वनाथ के उद्धार की वजह बनेंगे। इसे लेकर वह पहले ही सिविल कोर्ट में याचिका दायर कर चुके हैं।
इस बीच ज्ञानवापी मामले में एक नया मोड़ आया। अब ज्ञानवापी का केस अंजुमन इंताजमिया मसाजिद अकेले नहीं लड़ेगी। ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी इस मामले को अपने हाथ में लेगा। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कानूनी टीम भी वाराणसी की निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इस मामले की पैरवी करेगी। इस बात की जानकारी दारुल उलूम फिरंगी महल के प्रवक्ता सुफियान निजामी ने दी।
उधर, असद्दुदीन ओवैसी ने इंडिया टीवी से कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद केस में अपना फैसला सुनाया तो कई लोगों ने कहा कि मुसलमानों को बड़ा दिल दिखाना चाहिए और अदालत के फैसले को मानना चाहिए। उन्होंने कहा-‘लेकिन अब वे ज्ञानवापी मस्जिद और अन्य मस्जिदों पर कब्जा करना चाहते हैं। हम अपना दिल कितना बड़ा दिखा सकते हैं?’ ओवैसी ने कहा,’अगर आप 450 साल पुरानी मस्जिदों की खुदाई करना चाहते हैं, तो 1,000 से 2,000 साल पुराने मंदिरों की खुदाई क्यों नहीं करते? आपको पुराने जैन मंदिरों और बौद्ध स्तूपों के पुराने अवशेष मिल सकते हैं?”
ज्ञानवापी मुद्दे पर अदालत दोनों तरफ के दावों को सुनकर, सबूत और तथ्य देखकर फैसला करेगी। लेकिन यह मामला ऐसा है जिस पर बहस को नहीं रोका जा सकता। दोनों तरफ से अपने-अपने जो तर्क दिए जा रहे हैं, उन्हें नहीं रोका जा सकता। जैसे मुस्लिम नेता और उलेमा बार-बार कह रहे हैं कि जब मुगल आक्रमणकारियों ने मंदिर ध्वस्त कर दिया तो शिवलिंग को क्यों नहीं तोड़ा? शिवलिंग को इस जगह से क्यों नहीं हटाया ?
इसके जवाब में काशी के विद्वान शिवमहापुराण के श्लोकों का हवाला देते हैं। विद्वानों का कहना है कि शिवमहापुराण के 22वें अध्याय का 21वां श्लोक है, ‘अविमुक्तं स्वयं लिंग स्थापितं परमात्मना। न कदाचित्वया त्याज्यामिंद क्षेत्रं ममांशकम्…’ इसका मतलब है ये स्वंयम्भू शिवलिंग काशी से बाहर की दुनिया में कहीं नहीं जा सकता क्योंकि स्वयं शिव ने अविमुक्त नामक शिवलिंग की स्थापना की। शिव ने आदेश दिया कि मेरे अंश वाले ज्योतिर्लिंग तुम इस क्षेत्र को कभी मत छोड़ना।
काशी के लोगों की मान्यता है कि काशी बाबा विश्वनाथ की नगरी है। बाबा के भक्तों का कहना है कि आक्रांता मंदिर तोड़ सकते हैं लेकिन बाबा को काशी से दूर कोई नहीं कर सकता। कुतुबुद्दीन ऐबक, रजिया सुल्तान, सिंकदर लोदी और औरंगजेब जैसे तमाम शासकों ने काशी को अपवित्र करने की कोशिश की, बाबा विश्वनाथ के मंदिर को उजाड़ने की कोशिश की और शिवलिंग को काशी से दूर ले जाने की कोशिश की लेकिन सब नाकाम हुए। लोगों का कहना है कि ये आस्था का मसला है और हिन्दू पक्ष मस्जिद नहीं मांग रहा। वो सिर्फ भजन-पूजन का अधिकार मांग रहा है। लेकिन मेरा कहना ये है कि यह मामला लोगों के विश्वास से जुड़ा है इसलिए प्यार-मुहब्बत से सुलझ जाए तो बेहतर होगा।
दिलचस्प बात ये है कि कुछ मुस्लिम लोग भी कह रहे हैं कि अगर शिवलिंग मिला है, अगर मंदिर तोड़कर मस्जिद बनी है तो फिर मुसलमानों को यह स्थान तुरंत हिन्दुओं के सुपुर्द कर देना चाहिए। समाजवादी पार्टी की नेता रूबीना खान का कहना है कि किसी दूसरे की जगह पर कब्जा करके मस्जिद बनाने की इजाजत इस्लाम नहीं देता। उन्होंने कहा-‘अगर ज्ञानवापी मस्जिद, मंदिर को तोड़कर बनाई गई है तो वहां पढ़ी गई नमाज कबूल ही नहीं होगी, इसलिए जिद करने का क्या फायदा। मुस्लिम धर्मगुरुओं को खुद ही ये मस्जिद हिंदू समाज को सौंप देनी चाहिए।’
हमारे देश में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर रूबीना खान जैसी बात कहने वाले लोग बहुत कम हैं । ज्यादातर मौलाना कह रहे हैं कि चाहे जमीन कब्जा करके मस्जिद बनाई गई हो, चाहे मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई हो, अगर मस्जिद है तो मस्जिद ही रहेगी। अब मुसलमान एक भी मस्जिद नहीं छोड़ेंगे।
लेकिन हैरत की बात है कि पाकिस्तान में ऐसे कई मौलाना मुस्लिम नेता और विद्वान हैं जो ज्ञानवापी मस्जिद के संदर्भ में कह रहे हैं कि इस्लाम किसी दूसरे की जमीन पर कब्जा करके मस्जिद बनने की इजाजत नहीं देता। पाकिस्तान में मौलाना कहते हैं कि जिस जगह पर मंदिर हो, जहां पूजा हो रही हो, अगर उस जगह को तोड़कर मस्जिद बनाई जाए और नमाज पढ़ी जाए तो नमाज कबूल नहीं होती है। इसलिए इस तरह की विवादित जगह मुसलमानों को छोड़ देनी चाहिए और हिंदुओं को सौंप देनी चाहिए।
मैंने पाकिस्तानी न्यूज़ चैनलों पर कई टीवी डिबेट देखे हैं जहां इन विद्वानों ने ऐसा कहा है। हालांकि ये सिर्फ कहने की बातें हैं। न कोई मस्जिद मांग रहा है और न कोई मंदिर बनाकर दे रहा है।
एक लड़ाई अदालत में चलेगी और दूसरी जंग सियासी मैदान में होगी। दोनों लड़ाई लंबी चलेगी। क्योंकि अब तक ज्ञानवापी का मसला पांच महिलाओं और अंजुमन इंतजामिया मस्जिद के बीच का कानूनी झगड़ा था। लेकिन अब ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस ममले में दखल देकर इसे हिन्दू-मुस्लिम का मुद्दा बना दिया है।
Gyanvapi is an issue of faith, settle it amicably through love
In a major intervention, the Supreme Court on Thursday directed the lower court in Varanasi not to proceed with the hearing in the Gyanvapi case till the matter is heard in the apex court on Friday. The bench of Justices D Y Chandrachud, P S Narasimha and Surya Kant, while hearing an application from the counsel for Hindu plaintiff seeking time to file reply, gave this order.
The order says: “We, accordingly, direct the trial court to strictly act in terms of the above arrangement and to desist from taking up further proceedings in the suit in view of the consensus which has been arrived at between the parties.” The bench fixed 3 pm as the time for Friday’s hearing in this case. It also asked the Registry to seek administrative directions of the Chief Justice of India so that the Bench may be constituted.
In the apex court on Thursday, advocate Vishnu Shankar Jain told the bench that lead counsel for Hindu plaintiffs, Hari Shankar Jain was indisposed as he was discharged form hospital on Wednesday. He urged the court to post the matter for Friday. Senior Advocate Huzefa Ahmadi, appearing for Anjuman Intezamia Masjid, told the bench that several applications have been filed across the country to “seal” various mosques, and in Gyanvapi case, an application has been filed to demolish the wall around the ‘wazukhana’ (ablution pond). Ahmadi said, an undertaking should be given that Hindu devotees will not proceed with the civil court proceedings.
Meanwhile, in the civil court in Varanasi on Thursday, the commission appointed by the Civil Judge (Senior Division) filed its report on the survey conducted in Gyanvapi complex, along with documents, videos and photographs. Special Advocate Commissioner Vishal Singh declined to divulge the contents of the survey report. “From my side, this is the final report. If the court feels it is adequate, it is fine, otherwise we will go by the directions of the court”, Vishal Singh said.
Meanwhile, both the Hindu and Muslim sides continued with their arguments and counter-arguments in public. While the Hindu side lawyers claimed that the black stone found was an old Shivling, the Muslim side said it was a fountain. The Hindu side challenged the Muslim side to show to the public whether the fountain was working, since there was no pipe or water connection. The Muslim side claimed that Mughal emperor Aurangzeb would not have left the Shivling untouched when he demolished the Kashi Vishwanath temple. The Hindu side quoted ‘Shiva Mahapuran’ to say that in many cases, when the temples were destroyed, the Shivling remained intact.
A new video of the ‘wazukhana’ emerged on Wednesday which shows the Nandi idol facing the eastern wall of Gyanvapi from outside the grill, and the ‘wazukhana’ located 83 feet away. The video showed the Shivling covered from all sides by a round brick wall, and an unsuccessful attempt was made to give it the shape of a fountain. One of the survey team ex-members, R P Singh, was fully confident that it was an original Shivling, but the Muslim side countered by saying that the so-called Shivling was located above the roof of the basement. Normally, there must be no room under a Shivling. The Hindu side claimed that the doors of the basement must be opened to check whether the remaining portion of the Shivling was inside the basement. R P Singh showed an old map to show the foundations of the original Kashi Vishwanath temple.
Another petitioner Sohan Lal Arya demanded that apart from opening the doors of the ‘wazukhana’ basement, the mound of rubble near the western wall facing Shringar-Gauri must be excavated as it would yield major clues about an ancient temple. The mound of rubble is 72 feet long, 30 feet wide and 15 feet high, he said. He has already filed a petition on this in the civil court.
Meanwhile, the All India Muslim Personal Law Board has entered the fray, and has said that the Gyanvapi case will be fought no only by Anjuman Intezamia Masjid, but also by AIMPLB, which will send its legal team, said Sufian Nizami, spokesperson of Darul Uloom Firangi Mahal. AIMIM chief Asaduddin Owaisi has supported the AIMPLB decision, saying that now that a series of demands about mosques are being made, the board should assign the work to its legal team.
Owaisi told India TV that when the Supreme Court gave its verdict in the Ayodhya Ram Janmabhoomi Babri Masjid case, several people said that Muslims should show a large heart and accept the verdict. “But now they want to occupy Gyanvapi mosque and other mosques. How large can we show our heart?”, he asked. “if you want to excavate 450-year-old mosques, then why not excavate 1,000 to 2,000 years old temples? You may find old remnants of old Jain temples and Buddhist stupas?”, Owaisi argued. Maulana Hakimuddin Qasmi, general secretary of Jamiatul Ulema-e-Hind, on behalf of AIMPLB appealed to all Muslim not to take the issue to the streets and keep it confined to law courts. He said, the Jamiat will help the Anjuman Intezamia Masjid committee in courts.
It is up to the courts to decide on Gyanvapi issue, based on evidences and facts, but this is an issue on which debates cannot be stopped. Nobody can stop people putting forth arguments from both sides. The Hindu side has quoted 21st ‘shloka’ from 22nd chapter of Shiv Mahapuran, which says, “अविमुक्तं स्वयं लिंग स्थापितं परमात्मना। न कदाचित्वया त्याज्यामिंद क्षेत्रं ममांशकम्..” It means this self-made Shivling cannot go anwhere in the world outside Kashi, because it was Lord Shiva who had installed this Shivling named “Avimukta”. Lord Shiva has directed directed that this Jyotirling carrying my parts shall not leave Kashi”.
The people of Kashi consider the holy city as the town of Baba Vaishwanath (Lord Shiva). Invaders can break temples, but nobody can take away Baba from Kashi, say the devotees of Lord Shiva. Invaders like Qutbuddin Aibak, Razia Sultan, Sikandar Lodhi and Aurangazeb tried to defile Kashi and demolish Kashi Vishwanath temple, they tried to take away the Shivling away from Kashi, but failed, say the devotees. They say, this is a matter of supreme faith. The Hindu devotees are not demanding the Masjid back, they are only seeking permission to pray at the Shivling that has been found. My personal opinion is that since this matter relates to faith, it would be better if it is resolved amicably and peacefully.
Here I would like to quote a Samajwadi Party leader Rubina Khan, who said, Islam does not permit building mosques by demolishing temples. “If Gyanvapi Masjid was built by demolishing a temple, then the prayers (namaaz) of Muslim devotees will never by accepted by Allah. Muslim side should not be adamant, and our ulema should hand over this mosque to the Hindus”, she said.
There are few people in our country who can speak out frankly like Rubina Khan. Most of the maulanas have said, whether a mosque was built on a land occupied, or by demolishing a temple, if it is a mosque, it must remain so, and Muslims will not hand over their mosque.
Surprisingly, there are several maulanas and Islamic scholars in Pakistan who say that Islam does not permit building mosques on land occupied from others. They say that prayers (namaaz) are not accepted in mosques built by demolishing temples or other shrines. They say, Muslims should leave the mosque and hand it over to the Hindus.
I have seen several TV debates on Pakistani news channels where these scholars have said so. All these could be mere statements. The legal battle will continue in courts and the other battle will be fought politically. Till now, it was a dispute between five female Hindu devotees and Anjuman Intezamia Masjid, but with the entry of All India Muslim Personal Law Board into the scene, it has now become a Hindu-Muslim issue.
ज्ञानवापी में शिवलिंग मिला या फव्वारा ?
वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में वज़ूखाने से शिवलिंग मिलने के दावे के बाद उस स्थान पर सीआरपीएफ की टुकड़ी तैनात कर दी गई है। सीआरपीएफ के जवान चौबीसों घंटे इस जगह की चौकीदारी करेंगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सीआरपीएफ की तैनाती की गई है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को आदेश दिया था कि वह ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी परिसर में उस इलाके की सुरक्षा का प्रबंध करें, जहां स्थानीय अदालत द्वारा नियुक्त कमिश्नरों के सर्वे के दौरान शिवलिंग पाने का दावा किया गया था।
जस्टिस डी. वाई. चन्द्रचूड़ और जस्टिस पी. एस. नरसिंम्हा की पीठ ने वाराणसी के निचले कोर्ट में चल रही कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद, जो कि ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करता है, ने अपनी अर्जी में यह आरोप लगाया था कि सिविल जज ने एक के बाद एक कई आदेश जारी किए, जो असंवैधानिक हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अजुनम इंतेजामिया की इस अर्जी को खारिज कर दया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मस्जिद में पहले की तरह नमाज अदा होती रहेगी। लेकिन वजूखाने के जिस इलाके को निचली अदालत ने सील करने का आदेश दिया है, वह सील रहेगा। सील किए गए इलाके में किसी के भी जाने पर पाबंदी रहेगी। अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुज़ैफ़ा अहमदी ने कहा कि बिना वजू किए नमाज पढ़ने का इस्लाम में कोई मतलब नहीं रह जाता।
लेकिन यूपी सरकार की ओर से पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि चूंकि जिस जगह पर शिवलिंग पाया गया है, उस जगह पर मुसलमान वजू करते हैं, ऐसे में शिवलिंग को कोई नुकसान भी पहुंचा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो फिर कानून और व्यवस्था की समस्या खड़ी हो जाएगी। तुषार मेहता ने अदालत से कहा, ‘अगर जरूरी हो तो वे कहीं और वजू कर सकते हैं, लेकिन जिस जगह पर शिवलिंग पाया गया है उसकी सुरक्षा जरूरी है।’
मुस्लिम पक्ष के वकील हुज़ैफ़ा अहमदी ने आरोप लगाया कि कोर्ट की कार्यवाही की आड़ में मस्जिद की यथास्थिति को बदलने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा कि निचली अदालत के आदेशों पर रोक लगाई जाए, कमिश्नरों द्वारा किये गये सर्वे पर रोक लगाई जाए और यथास्थिति बहाल की जाए। उन्होंने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 और इसकी धारा 4 का जिक्र किया जिसमें साफ कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को पूरे भारत में किसी भी पूजा स्थल की यथास्थिति को बदलने के लिए न तो कोई मुकदमा मान्य होगा और न ही कोई नयी कानूनी कार्यवाही मान्य होगी।
बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद की याचिका को गुरुवार (19 मई) को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया और इस मामले में हिंदू पक्ष को नोटिस जारी कर दिया।
इस बीच मंगलवार को एक नए घटनाक्रम में सिविल जज रवि कुमार दिवाकर ने एडवोकेट कमिश्नर अजय मिश्रा को उनके पद से हटा दिया। उनपर अपने कर्तव्यों के निर्वहन के प्रति गैर जिम्मेदाराना व्यवहार का आरोप लगा। साथ ही अदालत ने ज्ञानवापी परिसर की सर्वे रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कमिश्नरों को दो दिनों की मोहलत दे दी। सिविल जज ने अपने आदेश में कहा, जब कोई अदालत एक वकील को कमिश्नर के तौर पर नियुक्त करती है तो उसकी स्थिति एक पब्लिक सर्वेंट जैसी होती है और उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करे और गैर-जिम्मेदाराना बयान न दे।
सिविल जज ने यह आदेश तब दिया जब स्पेशल एडवोकेट कमिश्नर विशाल सिंह ने कोर्ट को बताया कि अजय मिश्रा ने एक प्राइवेट कैमरामैन आरपी सिंह को तैनात किया था जो नियमित तौर पर मीडिया में गलत बयान दे रहा था। शाम तक अजय मिश्रा की प्रतिक्रिया आई। अजय मिश्रा ने कहा कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया और उनके साथी वकील विशाल सिंह ने उन्हें धोखा दिया है। मिश्रा ने कहा, ‘उन्होंने दूसरों पर भरोसा करने की मेरा आदत का बेजा फायदा उठाया।’
ज्ञानवापी विवाद में इस वक्त सबसे अहम मुद्दा ये है कि सोमवार को जो पत्थर पाया गया वो शिवलिंग है या फव्वारा। मुस्लिम पक्ष इसे फव्वारा बता रहा है। हिंदू पक्ष के वकीलों का दावा है कि यह सैकड़ों साल पुराना शिवलिंग है जो पहले से मौजूद नंदी की मूर्ति के ठीक सामने है। मुस्लिम पक्ष का दावा है कि जिस पत्थर के बारे में यह दावा किया जा रहा है कि यह 450 साल पुराना शिवलिंग है, वह वजूखाने के बीच में बना एक फव्वारा है। मंगलवार को हिंदू पक्ष ने अपने दावे के समर्थन में कई सबूत पेश किए।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार के बाद पहली प्रतिक्रिया एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की ओर से आई। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने वजू पर रोक नहीं लगाई है। अदालत ने मुसलमानों को ज्ञानवापी मस्जिद में अपनी मजहबी रस्में अदा करने की इजाजत दी है और वजू एक महजबी रस्म है। लेकिन ओवैसी ने साफ-साफ कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से निराशा हुई है। ओवैसी ने यह आरोप लगा दिया कि ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में वाराणसी की निचली अदालत में जो हो रहा है वह कानून के साथ मजाक है। ओवैसी के मुताबिक जिस तरह मुस्लिम पक्ष को सुने बगैर निचली अदालत आदेश पर आदेश जारी कर रही है, उससे भानुमती का पिटारा खुल गया है । तमाम मस्जिदों को लेकर विवाद पैदा किए जा रहे हैं और ये ठीक नहीं है।
जबसे निचली अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया है तब से ओवैसी बेहद नाराज और खफा है। चूंकि सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली इसलिए उनकी नाराजगी और बढ़ गई। ओवैसी ने कहा कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो देश में एक बार फिर चालीस साल पहले जैसे हालात हो जाएंगे, जब सांप्रदायिक तनाव आम बात थी। ओवैसी ने यह भी साबित करने की कोशिश की कि ज्ञानवापी परिसर में जो रहा है वो सब साजिश का हिस्सा है और सबकुछ सोच समझ कर साजिश के तहत किया जा रहा है।
ओवैसी ने तीन सवाल उठाए। सबसे पहले उन्होंने निचली अदालत के फैसले को गलत, गैरकानूनी और न्याय के खिलाफ बताया। इसके बाद उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी का मुद्दा उठाकर प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 (पूजा स्थल अधिनियम 1991) का उल्लघंन हो रहा है। फिर उन्होंने सबसे बड़ा इल्जाम लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब काशी विश्वनाथ कॉरीडोर का शिलान्यास किया था उसी वक्त ज्ञानवापी मस्जिद में एक नंदी को दफनाने की कोशिश हुई थी। इसका मतलब ओवैसी ये कह रहे हैं कि जो हो रहा है वो कानूनी तरीके से नहीं हो रहा है। निचली अदालत में कानूनी प्रक्रिया और न्यायिक निष्पक्षता का पालन नहीं किया जा रहा है। मैंने ओवैसी के इल्जामात के बारे में कई कानूनी विशेषज्ञों से बात की और जो जवाब मिले उसके बारे में आपको बताता हूं।
पहला इल्जाम, ज्ञानवापी के वजूखाने में जो शिवलिंग मिला क्या वो फव्वारा है ? असल में सर्वे करने वाली टीम के सदस्य जिसे शिवलिंग बता रहे हैं उसे मुस्लिम पक्ष फव्वारा साबित करने की कोशिश कर रहा है। सोमवार देर रात मोहम्मद असद हयात नाम के वकील ने एक वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया जिसे असद्दुदीन ओवैसी ने भी रीट्वीट किया। यह वीडियो कब का है ये तो कोई नहीं जानता लेकिन यह दावा किया गया है कि जिसे शिवलिंग बताया जा रहा है उसे पानी में नहीं छुपाया गया था। जब-जब वजूखाने की सफाई होती थी तब ये दिखता था।
मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यह शिवलिंग नहीं फव्वारा है और इसके ऊपर फव्वारे जैसा सुऱाख भी है। इसलिए इसे शिवलिंग कहना गलत है। लेकिन तस्वीरों में यह साफ दिख रहा है कि शिवलिंग के ऊपर अलग से कुछ पत्थर लगाकर इसे फव्वारे की शक्ल देने की कोशिश की गई है। दूसरी बात यह कि वजू के छोटे से हौज में इतने चौड़े पत्थर के फव्वारे की क्या जरूरत ? तीसरी बात यह कि अगर फव्वारा था तो चलता क्यों नहीं ? चौथी बात, सर्वे टीम का दावा है कि इस वजूखाने के पास नीचे जाने के लिए एक रास्ता भी है जो बंद है। इसके नीचे शिवलिंग का बाकी हिस्सा है।
सवाल यह पूछा जा रहा है कि काले पत्थर का चार फुट चौड़ा फव्वारा क्या दुनिया के किसी औऱ मस्जिद के वजूखाने में भी लगा है ? इसके बारे में किसी के पास कोई जानकारी नहीं है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि फव्वारे के लिए एक छोटा पाइप काफी होता है। उसके चारों तरफ डिजाइन हो सकता है। लेकिन अगर ये डिजाइन था तो उसे ईंट की 9 ईंच चौड़ी दीवार से छुपाने की क्या जरूरत थी ? लेकिन फिर भी अगर दावा ये है कि ये शिवलिंग नहीं फव्वारा है तो जांच का इंतजार करना चाहिए। जब वजूखाने के नीचे बने तहखाने में कैमरा जाएगा तो इसकी सच्चाई भी सामने आ जाएगी।
ओवैसी ने एक औऱ बात कही। उन्होंने कहा कि जब मोदी काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की नींव रखने आए तो उसी वक्त ज्ञानवापी परिसर में नंदी की मूर्ति को दफनाने की कोशिश की गई। उनका इल्जाम है कि ये सब साजिश है। पूरी तैयारी और प्लानिंग के साथ किया जा रहा है। इसका हिंदुओं की आस्था से कोई लेना-देना नहीं है। ओवैसी बैरिस्टर हैं लेकिन साथ-साथ वो एक चतुर राजनेता भी हैं। ओवैसी जानते हैं कि कहां कब क्या कहना है। नंदी की मूर्ति को दफननाने का इल्जाम ओवैसी एक मैगजीन में छपी रिपोर्ट के आधार पर लगा रहे हैं । लेकिन ओवैसी ने उन रिपोर्टस को नजरअंदाज कर दिया जो लाइव कैमरे दिखा रहे हैं।
वाराणसी में इस जगह आनेवाले किसी भी शख्स को यह साफ दिखता है कि काशी में ज्ञानवापी मस्जिद के पश्चिमी गेट के सामने नंदी की विशाल प्रतिमा है जिसका मुंह ज्ञानवापी के वजूखाने की तरफ है। इसी नंदी की प्रतिमा की सीध में 83 फीट की दूरी पर वजूखाने में शिवलिंग मिला है। जब इतनी भारीभरकम नंदी की प्रतिमा सैकड़ों साल से सामने खड़ी हो तो फिर जमीन में नंदी की छोटी सी मूर्ति दफनाने का क्या फायदा और क्या मतलब ?
ऐसा नहीं है कि नंदी की ये मूर्ति नई है। सोशल मीडिया पर बहुत सारे लोगों ने ज्ञानवापी परिसर के सामने नंदी की पुरानी तस्वीरें भी पोस्ट की हैं। इनमें से एक तस्वीर कम से कम 140 साल पहले 1880 में ली गई थी। इस फोटो को इस्कॉन के वाइस प्रेसीडेंट और प्रवक्ता राधारमण दास ने शेयर किया। इस तस्वीर के साथ उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब के उस फरमान की फोटो भी डाली जिसमें उसने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का हुक्म जारी किया था।
नंदी की मूर्ति की एक और तस्वीर है जिसे सुप्रीम कोर्ट के वकील शशांक शेखर झा ने ट्विटर पर शेयर किया है। इसके साथ कैप्शन लगाया है कि नंदी महाराज 400 साल से इंतजार कर रहे हैं । ज्ञानवापी विवाद में नंदी महाराज को भी अहम सबूत माना जा रहा है। इस तस्वीर को वर्ष 1890 में लिया गया था। इस तस्वीर में भी नंदी महाराज उसी जगह पर हैं। आसपास की चीजें वक्त के हिसाब से बदली हैं। पहले नंदी के ऊपर कोई छत नहीं थी फिर बाद में घासफूस की छत दिखी और उसके बाद एक स्ट्रक्चर भी बन गया था।
ओवैसी ने जोर देकर कहा था, हमेशा से ज्ञानवापी मस्जिद थी.. है..और कयामत तक रहेगी। यानि ओवैसी ये कह रहे हैं कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई। लेकिन पुराने ऐतिहासिक आंकड़े ब्रिटिश शासकों द्वारा तैयार किए गए सरकारी गजट में दर्ज हैं। ओवैसी को इसे पढ़ना चाहिए। पेज नंबर 25 से पेज नंबर 75 तक काशी का प्रमाणिक इतिहास इसमें दर्ज है। गजेटियर में कहा गया है कि 9 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने काशी के फौजदार को काशी के दो मंदिरों विश्वनाथ और बिंदु माधव मंदिर को तोड़ने का फरमान जारी किया था। अब ये गजेटियर तो अभी नहीं लिखा गया।
वैसे इस बात पर तो विवाद ही बेकार है कि काशी विश्वनाथ का मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई या नहीं। कुछ मुस्लिम नेता यह तर्क दे रहे हैं कि अगर औरंगजेब इतना विशाल मंदिर तोड़ सकता था तो उसने शिवलिंग क्यों छोड़ दिया ? उसे क्यों नहीं तोड़ा ? हिन्दुओं का जबाव है कि ज्ञानवापी मस्जिद के गुंबद मंदिर की दीवारों पर बने हैं। नंदी की मूर्ति मस्जिद के सामने है। शिवलिंग वजूखाने में है। ये सब उस वक्त के आक्रांताओं ने हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए किया।
हालांकि इन बातों का कानूनी विवाद से कोई लेना देना नहीं है। ये भावना और आस्था की बात है। जहां तक तथ्यों की बात है तो इतिहास की किताबें और दस्तावेज तो ये कहते हैं कि औरंगजेब ने 1645 में अहमदाबाद के चिंतामणि पार्शवनाथ मंदिर को तोड़ा। इसके बाद 1664 में ग्वालियर के सिद्धग्वाली मंदिर को तोड़ा। 1665 में उसने सोमनाथ मंदिर पर बुरी नजर डाली। 1666 में हरियाणा के पिजर में भीमादेवी मंदिर को तोड़ा फिर 1669 में काशी विश्वनाथ का ध्वंस किया। औरंगजेब ने 1670 में बृंदावन का गोविन्द देव मंदिर और मथुरा के केशव राज मंदिर को तोड़ा। 1685 में मध्य प्रदेश के मुरैना में चौसठ योगिनी मंदिर को भी औरंगजेब के द्वारा तोड़ने की बात इतिहास में दर्ज है। यह बहुत लंबी फेहरिस्त है।
चूंकि ओवैसी कह रहे हैं कि ऐसे अगर लिस्ट निकालने बैठें तो आरएसएस तो तीस हजार मस्जिदों की लिस्ट लिए बैठा है। कहां तक मस्जिदों को खोएंगे। इसीलिए आगे की रणनीति बनाने के लिए अब ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने इमरजेंसी मीटिंग बुलाई है। हालांकि ज्ञानवापी के मामले में मुस्लिम पक्ष का दावा कमजोर है।
जो लोग ये कह रहे हैं कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के तहत यह विवाद कानूनी तौर पर नहीं टिकेगा क्योंकि इस कानून के मुताबिक 1947 के वक्त जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था, वैसा ही रहेगा.. उसका स्ट्रक्चर और नेचर नहीं बदला जा सकता। इन लोगों को पांचों हिंदू महिलाओं द्वारा दाखिल की गई याचिका को पढ़ना चाहिए। वाराणसी कोर्ट में इन महिलाओं द्वारा जो अपील की गई है उसमें यही कहा गया कि 1947 से 1991 तक ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार-गौरी की पूजा होती थी। अब फिर से रोज पूजा की इजाजत दी जाए। यह मांग कानून के हिसाब से गलत नहीं है। मुश्किल यह है कि एक विवाद खत्म नहीं होता कि दूसरा शुरू हो जाता है। मथुरा में भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि स्थान और ईदगाह मस्जिद का विवाद है तो मध्यप्रदेश के धार में भोजशाला विवाद है। ऐसे विवादों की श्रृंखला काफी लंबी है।
Gyanvapi discovery: Is it a Shivling or fountain?
Central Reserve Police Force (CRPF) personnel have been deployed at the Gyanvapi complex, where the ‘Shivling’ is said to have been found from the ‘wazukhana’ (ablution pond), and CRPF personnel will guard the area round-the-clock. This follows an interim order by the Supreme Court, which directed the District Magistrate of Varanasi to ‘ensure the protection of the area’ in Gyanvapi-shringar Gauri complex, where the ‘Shivling’ was found during the survey by court-appointed commissioners on Monday.
The bench of Justice D Y Chandrachud and Justice P S Narasimha, however, refused to stay the proceedings on Gyanvapi controversy going on before the court of Civil Judge (Senior Division) in Varanasi. The apex court was hearing an application by Anjuman Intezamia Masjid, which looks after the management of Gyanvapi mosque, seeking stay on the proceedings in local court, alleging that the Civil Judge had issued a series of orders which are unconstitutional. This plea for stay was however rejected by the bench.
The apex court however allowed Muslim devotees to offer namaaz at the mosque and perform religious observances even when the area ‘wazukhana’ (ablution pond) is secured by security forces. Senior advocate Huzefa Ahmadi, while appearing for Anjuman Intezamia Masjid, told the bench that without ‘wazu’ by Muslim devotees, offering namaaz would have no meaning in Islam.
However, Solicitor General Tushar Mehta, appearing for UP government, told the bench that since the place where ‘Shivling’ was said to have been found is the one where Muslims perform ‘wazu’ (ablution), any damage to the Shivling may create a law and order problem. “They can perform wazu somewhere else if it is necessary, but the area where the Shivling was said to have been found needs protection”, Tushar Mehta told the court.
Huzefa Ahmadi, the lawyer for the Muslim side, alleged that “under the garb of proceedings, the status quo of the mosque is sought to be altered. These orders of the civil court should be stayed, the commissioner (for survey) should be stayed and status quo prior to the proceedings should be restored.” He referred to Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991 and its Section 4 which bars filing of any suit or initiating any other legal proceeding for a conversion of the religious character of any place of worship, as existing on August 15, 1947.
The apex court however posted the plea of Anjuman Intezamia Masjid for hearing on Thursday (May 19) and issued notices to the Hindu plaintiffs in this case.
Meanwhile, in a simultaneous development on Tuesday, the Civil Judge Ravi Kumar Diwakar removed the advocate commissioner Ajay Mishra for showing ‘irresponsible behaviour towards the discharge of his duties’. The court allowed the commissioners to file their survey report on Gyanvapi complex within two days. The Civil Judge, in his order, said, when a court appoints an advocate as commissioner, his position is that of a public servant and it was expected of him to discharge his duties with honesty and impartiality, and shall not give an irresponsible statement.
The Civil Judge gave this order after Special Advocate Commissioner Vishal Singh told the court that Ajay Mishra had deployed a personal cameraman R. P. Singh who was giving “wrong bytes in the media on a regular basis”. By evening, Mishra however clarified that he had done nothing wrong and he was betrayed by his fellow advocate Vishal Singh. “He took advantage of my trusting nature”, Mishra said.
The core issue of the Gyanvapi dispute is whether the stone found on Monday was a Shivling or a fountain, as the Muslim side claims. Lawyers for Hindu side claim that it is a several hundred years old Shivling which directly faces the Nandi (bull) idol that already exists. The Muslim side claims that the stone which is claimed to 450-year-old Shivling of ‘Baba’ (Lord Shiva), is actually a fountain in the middle of ‘wazukhana’. The Hindu side, on Tuesday, placed several evidences in support of its claim.
The first reaction on Supreme Court’s refusal to stay the civil court proceedings came from AIMIM chief Asaduddin Owaisi. He said, the apex court has not barred ‘wazu’ (ablution) since it is a religious practice, but he was dissatisfied with the apex court order. Owaisi had expected the apex court to stay the civil court proceedings, but it did not happen. He went on to allege that the current proceedings going on in the civil court was a ‘mockery of law’. He also alleged that the manner in which the civil court was issuing series of orders without hearing the pleas of the Muslim side, can open up a Pandora’s Box, as fresh disputes are being raised about other mosques.
Owaisi is angry since the time the civil court ordered survey of Gyanpavi mosque, and he did not get the relief that he expected from the apex court. Owaisi threatened that if things continued in this manner, the nation will be put back by 40 years, when communal tension prevailed across the country. Owaisi also tried to prove that the developments taking place in Gyanvapi complex was part of a well-planned ‘conspiracy’.
Owaisi raised three questions. First, he described the lower court’s orders as illegal and against law. Second, he alleged that by raking up the Gyanvapi issue, the Places of Worship Act of 1991 was being violated. Third, he made a new allegation that an idol of Nandi was brought to Gyanvapi complex and buried when Prime Minister Narendra Modi came to lay the foundation of Kashi Vishwanath corridor. In short, Owaisi is saying that whatever that is happening in the court is against legal process and judicial impartiality was not being followed. I spoke to several legal experts about Owaisi’s charges and this is what emerged.
First, a member of the survey team claimed that the stone found was that of a Shivling, while the Muslim side is trying to prove that it is a fountain. A Lawyer, Mohammed Asad Hayat posted a video on social media on Monday night, that was retweeted by Owaisi. Nobody knows the date when this video was recorded. It claimed that the stone said to be the Shivling was not hidden in water, but wsa clearly visible, when the ‘wazukhana’ was being cleaned with water.
The Muslim side, claims there is a hole in the fountain, and it will be incorrect to say it is a Shivling. But the video clearly shows that some stones were added to the Shivling to give it the shape of a fountain. Secondly, why is such a wide stone required for a small ablution pond (wazukhana)? Thirdly, if there was a fountain, why was it not in use? Fourthly, the survey team claims that there is a path near the ‘wazukhana’ that leads further underground, which is now closed. It could be that the remaining part of Shivling is hidden there.
It is also being asked whether a four feet wide black stone ‘fountain’ has ever been installed in any mosque across the world? Nobody can say about this definitely. Experts said, a small pipe is sufficient for running a fountain, there could be design from all four sides, but if it was a structural design, then what was the necessity of hiding it by erecting a nine-inch-wide wall around it? Even if it is claimed that is actually a fountain, let us wait for a proper investigation of the stone. Let a camera go to the underground ‘tehkhana’ (basement below the ‘wazukhana’. The truth, naturally, will be out for all to see.
Owaisi said one more thing. He said, a ‘Nandi’ (bull) idol was buried in Gyanvapi complex when Modi came to lay the foundation of Kashi Vishwanath corridor. He alleged this was part of a conspiracy and was done after preparations and planning. It has nothing to do with the belief of Hindus. Owaisi is a barrister, but at the same time, he is also a clever politician. He knows what to say, and when. Owaisi made this allegation based on a report published in a magazine. But he ignored those reports which the live camera showed.
For any visitor to Varanasi, it is clearly visible that there is a huge Nandi idol installed in front of the western gate of Gyanvapi mosque. Lakhs of devotees have seen this Nandi idol. The Nandi idol faces the ‘wazukhana’, which is 83 feet away, and from where the Shivling has been found. This Nandi idol was installed several hundred years ago. Then, where was the need to bury a small Nandi idol at Gyanvapi complex? What could have been the advantage.
There are hundreds of images in social media about the huge Nandi idol that faces the Gyanvapi complex. One of the picture was taken in the year 1880, at least 140 years ago. This image was shared by Radharaman Das, the vice-president and spokesperson of ISKCON. Along with this picture, he had posted the image of a royal ‘firman’(order) issued by Mughal emperor Aurangzeb ordering demolition of Kashi Vishwanath temple.
There is another photo of Nandi idol, which was shared by Supreme Court lawyer Shashank Shekhar Jha on Twitter with the caption saying Nandi Maharaj has been waiting for 400 years. Nandi Maharaj is also being taken as an importance evidence in the Gyanvapi dispute. The picture was taken in the year 1890. Earlier there was no roof over Nandi idol, later straws were used as cover, and much later, a structure was erected.
Owaisi had said emphatically, “Gyanvapi Masjid was there in Varanasi, is there, and shall remain there till the Day of Judgement (Qayamat). In plain words, Owaisi claims that the Masjid was built without demolishing any temple, the old historical data lie in the Official Gazette prepared by British rulers. Owaisi should read the Gazette. From pages 25 to 75, the authentic history of Kashi is narrated. It says, on April 9, 1669, Aurangzeb issued a ‘firman’ (order) to the Fauzdar of Kashi to destroy two temples – Vishwanath and Madhav mandir. Owaisi cannot say, this Gazette was written by the current dispensation.
The main point is: It is unnecessary to question whether a mosque was built after razing the Kashi Vishwanath temple. Some Muslim leaders gave this argument that if Aurangzeb could raze a huge temple like Kashi Vishwanath, why should he have left the Shivling? Hindu leaders reply that the dome of Gyanvapi Masjid was made with the help of the walls of the temple. The Nandi idol faces the mosque, the Shivling was found from ‘wzukhana’. The invaders of that period had done this to insult the Hindu society.
These matters have nothing to do with legal or judicial issues. It is a matter of faith. As far as facts are concerned, history books and documents clearly say that Emperor Aurangzeb destroyed Chintamani Prashvanath temple in 1645, Siddhgwali temple in Gwalior in 1664, tried to demolish Somnath temple in Gujart in 1665, destroyed Bhimadevi temple in Pinjar, Haryana, razed Kashi Vishwanath temple in 1669, demolished Govind Dev temple in Vrinadavan and Keshav Raj temple in Mathura in 1670, and also destroyed Chausath Yogini temple in Morena, MP in 1685. The list is too long.
Owaisi says, if one starts preparing a list, the RSS can come up with a list of 30,000 such mosques. How many mosques will you hunt for, asks Owaisi. Already, All India Muslim Personal Law Board has called an emergency meeting. In the Gyanvapi case, the Muslim side’s claim appears to be weak.
Those who say that the Gyanvapi issue cannot be taken up in court because of Places of Worship Act, 1991 promises status quo for all religious places prior to 1947, must read the petition filed in Civil Judge’s court by the five Hindu female plaintiffs. It says that there used to be daily prayers from 1947 till 1991 in Shringar Gauri temple adjoining Gyanvapi mosque, and permission must be given for daily prayers again. This prayer is not legally weak. There are other disputes in the pipeline, the Shri Krishna Janmasthan Eidgah in Mathura, the Bhoj Shala in Dhar, MP and several others.
ज्ञानवापी मस्जिद : वजूखाने के अंदर कैसे मिला शिवलिंग
काशी में बाबा विश्वनाथ का सैकड़ों साल पुराना शिवलिंग मिल गया। मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा बनाई गई ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाना से सदियों पुराना शिवलिंग जैसा विशाल पत्थर मिलने से शिवभक्तों में जबरदस्त उत्साह है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन सोमवार को वाराणसी में ‘हर-हर महादेव’ के नारे लगाने वाले भक्तों के साथ हिंदू समुदाय में खुशी का माहौल है। ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग की मौजूदगी से इस सर्वे में एक बड़ा ट्विस्ट आ गया है।
हिंदू पक्ष के वकीलों का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग पानी में डूबा हुआ था। उसके चारों तरफ एक नौ इंच की दीवार बनाई गई थी। दीवार दिखने में ऐसी थी जैसे वजू के लिए बने तालाब में फव्वारा लगा हो। लेकिन ये फव्वारा नहीं था । यह शिवलिंग को कवर करने के लिए या छुपाने के लिए दीवार बनाई गई थी और फिर इसमें पानी भर दिया गया। वर्षों से कोई तालाब के बीच में कभी गया नहीं इसलिए शिवलिंग के अस्तित्व का पता नहीं चला। लेकिन अदालत के आदेश पर कोर्ट कमिश्नर्स की मौजूदगी में शिवलिंग एक बार फिर दुनिया के सामने आ गया। इस पूरी घटना की वीडियो रिकॉर्डिंग हुई।
जिस वक्त यह शिवलिंग मिला उस वक्त अदालत में याचिका दाखिल करने वाली पांचों महिलाएं, उनके वकील, अंजुमन इंतजामिया मस्जिद के नुमाइंदें, मुस्लिम पक्ष के वकील और वाराणसी के बड़े अफसर वहां मौजूद थे। हालांकि मुस्लिम पक्ष के लोग इस दावे को गलत बता रहे हैं। लेकिन जब सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर को इस बात की जानकारी दी गई तब उन्होंने तुरंत ज्ञानवापी परिसर के उस क्षेत्र को सील करने का आदेश दिया और कहा कि वहां किसी को जाने की इजाजत न दी जाए ।
मंगलवार को भारी पुलिस बल के बीच स्थानीय मुस्लिमों ने इस मस्जिद के अंदर शांतिपूर्वक नमाज अदा की। वहीं कोर्ट के द्वारा नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर ने सर्वे रिपोर्ट दाखिल करने के लिए दो दिनों का समय मांगा है। इस मामले के प्रतिवादियों में से एक अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद (एआईएम) के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ने याचिकाकर्ता राखी सिंह के वकील हरिशंकर जैन पर तालाब के अंदर एक फव्वारे के एक हिस्से को ‘शिवलिंग’ के रूप में पारित कराने का आरोप लगाया। मस्जिद कमिटी के वकील अभयनाथ यादव ने कहा- ‘मैं यह देखकर हैरान हूं कि याचिकाकर्ताओं के वकील दावा कर रहे हैं कि ज्ञानवापी परिसर के अंदर एक शिवलिंग पाया गया जबकि सच्चाई यह है कि कोर्ट द्वारा नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर ने अभी तक अपनी रिपोर्ट जमा भी नहीं की है।’
सोमवार को हिंदू भक्तों में खुशी का माहौल रहा। याचिकाकर्ता राखी सिंह के वकील हरिशंकर जैन ने ‘शिवलिंग’ मिलने को एक बहुत अहम सबूत बताया और कोर्ट से इसकी सुरक्षा के लिए पूरे क्षेत्र को सील करने का अनुरोध किया। उन्होंने उस परिसर में मुसलमानों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने और नमाजियों की संख्या को एक बार में 20 तक सीमित करने की भी मांग की। हिंदू पक्ष के वकीलों में से एक डॉ. सोहन लाल आर्य ने कहा, ‘बाबा मिल गए। जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ..इशारों में पूरी बात समझ लीजिए’।
वाराणसी के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट कौशल राज शर्मा ने कहा कि चूंकि वजूखाना में पहले से ही स्टील एंगल और जाली की बाड़ लगी है और तीन जगहों से एंट्री प्वाइंट बने हुए हैं, इसलिए स्थानीय प्रशासन को इस एरिया को सील करने के लिए किसी तरह के अतिरिक्त प्रयास में कोई समस्या नहीं है। उन्होंने कहा कि पास ही में सीआरपीएफ का वॉच टावर लगाया गया है।
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वे का आदेश स्थानीय अदालत ने तब दिया था जब पांच हिंदू महिला याचिकाकर्ताओं ने ज्ञानवापी परिसर की बाहरी दीवार के साथ देवी श्रृंगार गौरी और अन्य देवताओं की रोजाना पूजा करने का अधिकार मांगा था। हिंदू पक्ष के वकील डॉ. सोहन लाल आर्य ने कहा, ‘हमें हमारे बाबा मिल गए. जिनका इंतजार नंदी महाराज सैकड़ों साल से कर रहे थे’।
यह कहे जाने पर कि मुस्लिम पक्ष इस दावे को काल्पनिक बता रहा है, उन्होंने कहा, ‘अब सब कुछ पता चल गया है। जितनी उम्मीद की थी, उससे कहीं ज्यादा सबूत हमारे पास हैं…आज का दिन हमारे लिए बड़ा है। शिवलिंग मिलते ही पूरा परिसर ‘हर-हर महादेव’ से गूंज उठा। लोग नाचने लगे… अब हम 75 फीट लंबी और 30 फीट चौड़ी जो पश्चिमी दीवार है और श्रृंगार गौरी के सामने 15 फीट ऊंचे मलबे की जांच के लिए एक आयोग की मांग करेंगे। उस मलबे में निश्चित तौर पर हमें शिलाखंड, देवी-देवताओं की प्रतिमा का जो है ध्वंस है..वो सब का सब मिलेगा।’
जैसे ही वकीलों का यह दावा सामने आया तो देश भर में करीब 450 साल पहले औरंगजेब के शासन के दौरान जो हुआ था, उसे लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जाने लगीं। साढ़े चार सौ साल पहले का इतिहास एक बार फिर सामने आ गया। दावा किया गया कि चार फीट व्यास का शिवलिंग खोज लिया गया है, लेकिन जमीन के अंदर यह कितना दब गया है, इसका फिलहाल कोई अंदाजा नहीं है।
लेकिन इतना तो तय है कि वजूखाने के बीचों-बीच पानी के अंदर कीचड़ में धंसा शिवलिंग मिला है। सर्वे टीम के एक अन्य सदस्य सदस्य विष्णु जैन ने बताया कि नमाज से पहले वजू के लिए आने वाले नमाजियों ने शिवलिंग को पानी में डूबा हुआ जरूर देखा होगा क्योंकि पानी का लेवल कभी-कभार नीचे चला जाता है। कोर्ट की तरफ से नियुक्त कमिश्नरों ने करीब 250 जीबी की वीडियोग्राफी पूरी कर ली है।
जब आप सर्वे टीम के सदस्य आरपी सिंह की बात सुनेंगे तो सारी तस्वीर बिल्कुल साफ हो जाएगी। हिन्दू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी परिसर के बाहर जो नंदी की मूर्ति है उसके ठीक सामने काशी विश्वनाथ का प्राचीन शिवलिंग था। कल जो शिवलिंग मिला है वह बिल्कुल नंदी के ठीक सामने 83 फीट की दूरी पर मिला है और इस जगह पर फिलहाल मस्जिद का वजूखाना है। आमतौर पर शिव मंदिरों में शिवलिंग से इतनी ही दूरी पर नंदी की मूर्ति होती है। जहां तक फव्वारे की बात कही जा रही है तो आरपी सिंह ने बताया कि वह शिवलिंग ही है। उन्होंने कहा कि पहले सर्वे टीम को भी यही लगा था कि ये फव्वारा है लेकिन फव्वारे का कहीं कोई पानी से कनेक्शन नहीं था। शिवलिंग छिपाने के लिए फव्वारे जैसी दीवार को बनाया गया था।
दो दिनों के बाद अदालत में पेश की जानेवाली सर्वे रिपोर्ट से उन सबूतों का भी पता चलेगा जो तहखाने में पाए गए। एक अन्य वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने कहा कि जब वजूखाने से पानी को निकाला गया तब वहां दरवाजे जैसी चीज नजर आ रहा थी..लेकिन सर्वे कमीशन को तोड़फोड़ करने की इजाजत नहीं होती इसलिए फिलहाल उस जगह को छोड़ दिया गया है।
एतिहासिक तथ्य तो ये है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मजिस्द बनवाई गई। काशी विश्वनाथ की पौराणिकता इतिहास की किताबों से भी पुरानी है। स्कन्द पुराण और शिवपुराण में इसका वर्णन है। आधुनिक इतिहासकारों के पास भी एक हजार साल पुराना अभिलेख है जिसके आधार पर दावा किया जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के मूल स्वरूप को 1194 में मोहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने तुड़वा दिया था। इसके बाद 1230 में गुजरात के एक व्यापारी ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। इसके बाद कई बार इस मंदिर को तोड़ा गया और कई बार इसे फिर से बनवाया गया।
हालांकि ज्ञानवापी मस्जिद किसने बनवाई इसको लेकर इतिहासकारों के मत अलग-अलग हैं।लेकिन इस बात को सब मानते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर के मौजूदा स्वरूप का निर्माण 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था। मंदिर में सोने के जो 3 गुंबद हैं, वो 1839 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने लगवाए थे। आज भी ज्ञानवापी मस्जिद को देखने के बाद कोई भी यही कहेगा कि मंदिर तोड़कर इसे बनाया गया है।
यही वजह है कि कोई भी मुस्लिम नेता या पैरोकार यह नहीं कह रहा है कि वहां मदिर नहीं था। सब यह कह रहे हैं कि वहां क्या था इससे मतलब नहीं है, मतलब इस बात से है कि आज वहां क्या है। ज्यादातर मुस्लिम नेता 1991 के धार्मिक पूजा स्थल अधिनियम (Religious Worship Act) का हवाला दे रहे हैं। इसमें कहा गया है कि अयोध्या को छोड़कर आजादी के वक्त जहां जो धार्मिक स्थल जैसा था, वो वैसा रहेगा। अब उसमें किसी तरह का बदलाव नहीं होगा और उसे कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जाएगा।
ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग मिलने के तुरंद बाद एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया: ‘दिसंबर1949 में बाबरी मस्जिद में जो हुआ था, यह उस अध्याय की पुनरावृति है। यह आदेश अपने आप में मस्जिद के धार्मिक स्वरूप को बदल देता है। यह 1991 के एक्ट का उल्लंघन है। ऐसी मेरी आशंका थी और यह सच हो गया।’ उन्होंने कहा-‘ज्ञानवापी मस्जिद थी…है.. और कयामत तक रहेगी’। ओवैसी ने अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद के इस दावे को दोहराया कि परिसर से शिवलिंग नहीं मिला है बल्कि यह फव्वारे का हिस्सा है। जम्मू-कश्मीर पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा, ‘वे अब मस्जिदों में भगवान ढूंढ रहे हैं, इसलिए वे हमारी मस्जिदों के पीछे पड़े हुए हैं। पहले उन्होंने अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई और अब ज्ञानवापी। वे हमें उन सभी मस्जिदों की सूची दें, जिन्हें वे ध्वस्त करना चाहते हैं।’
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने औवैसी और महबूबा मुफ्ती को जवाब दिया। हालांकि गिरिराज ने कहा कि मैं ज्यादा ना बोलूं तभी ठीक रहेगा। अगर बोला तो ओबैसी और महबूबा की जुबान बंद हो जाएगी। गिरिराज सिंह ने कहा कि जब मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं तो भगवान मस्जिदों में ही मिलेंगे। लेकिन अब एक बार फिर कानून का राज है और हिन्दुओं को न्याय मिल रहा है।
असदुद्दीन ओवैसी और महबूबा मुफ्ती ने जो कहा वो उनकी पॉलिटिकल लाइन है लेकिन वो जो कह रहे हैं वो एक जनरल बात है। उनका आरोप है कि बीजेपी के लोग जानबूझ कर मस्जिदों को लेकर विवाद खड़े कर रहे हैं, वो मस्जिदों के पीछे पड़ गए हैं। लेकिन अगर खासतौर पर ज्ञानवापी केस की बात करें तो ये सियासी तर्क कमजोर दिखाई देते हैं। ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में सर्वे कराने का फैसला कोर्ट का है। अदालत के आदेश पर सर्वे हुआ, किसी सरकार या बीजेपी के कहने पर नहीं।
औवेसी ने 1991 में बने कानून का भी जिक्र किया जिसके मुताबिक 1947 से पहले जो धार्मिक स्ट्रक्चर जैसा था वैसा ही रहेगा। उसके नेचर में कोई बदलाव नहीं होगा। इसमें दो बातें हैं। पहली बात ये है कि 1991 से पहले यानि 1947 से लेकर 1991 तक ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी की रोज पूजा होती थी। 1991 में इस पर पाबंदी लगी। फिर बाद में एक दिन पूजा की इजाजत मिली। अगर इसे कानून के लिहाज से देखा जाए तो 1947 के बाद की स्थिति बहाल रहनी चाहिए, यानि वहां रोज श्रृंगार गौरी की पूजा होनी चाहिए।
दूसरी बात ये है कि ओवैसी कानून को लेकर भी आधी बात बता रहे हैं। उनकी बात आधी सही है। बीजेपी के नेताओं ने कहा कि औवैसी ये बताना भूल गए कि इसी कानून में कुछ छूट भी (Exemptions) है। वो छूट ये है कि अगर कोई स्ट्रक्चर 100 साल से भी ज्यादा पुराना है तो वो इस कानून के दायरे से बाहर होगा। ज्ञानवापी मस्जिद में जो शिवलिंग मिला है उसके बारे में दावा है कि साढ़े चार सौ साल पुराना है। अगर ये बात साबित हो जाती है तो फिर यह स्ट्रक्चर 1991 के कानून के दायरे से बाहर होगा। लेकिन मुझे लगता है कि इस मामले में सियासत तो होगी। उसे कोई नहीं रोक सकता।
Gyanvapi Mosque: How Shivling was found inside wazukhana (ablution pond)
The recovery of a huge single stone, said to be a several centuries-old Shivling, from the ‘wazukhana’ (ablution pond) of Gyanvapi mosque, built by Mughal emperor Aurangzeb, has not only given a big twist to the ongoing survey, but has caused jubilation among the Hindu community, with devotees shouting slogans ‘Har Har Mahadev’ in Varanasi on Monday, which happened to be Buddh Purnima.
Lawyers for Hindu petitioners claimed that the Shivling was found submerged in the water of ‘wazukhana’, and it was covered from four sides by a nine-inch wall. The wall, according to lawyers, was erected around the so-calledfountain for the benefit of Muslim devotees who come to the mosque for ‘namaaz’ prayers. But it was not a fountain. The wall was erected to hide the Shivling and then water was poured into the huge cavity. Since nobody had entered the pond for several centuries, the Shivling lay submerged in water. But in the presence of advocate commissioners appointed by a local court, the Shivling was discovered and the entire process was videographed.
When the Shivling was found, the five female petitioners along with their lawyers, and lawyers from Anjuman Intejamia Masjid, along with senior local officials were present at the spot. The Muslim side rejected the theory of the ‘Shivling’ having been found, and claimed that it was a fountain. When the Civil Judge(Senior Division) Ravi Kumar Diwakar was informed about this discovery, he immediately ordered that the entire area be sealed forthwith and nobody should be allowed to go the spot.
On Tuesday, in the presence of a large police force, local Muslims offered ‘namaaz’ inside the mosque peacefully, while the court-appointed commissioners sought two days’ time for submitting the survey report. S. M. Yasin, joint secretary of the Anjuman Intejamia Masjid (AIM), which is one of the respondents in the case, accused plaintiff Rakhi Singh’s lawyer Harishankar Jain of passing off a portion of a fountain inside the pond as the ‘Shivling’. The mosque committee’s counsel Abhay Nath Yadav said, “I am shocked to see that lawyers of plaintiffs are making claims that a Shivling was found inside the Gyanvapi premises, but the fact is that the court-appointed commissioners are yet to submit their report”.
There was jubilation among the Hindu devotees on Monday. Plaintiff Rakhi Singh’s lawyer Harishankar Jain described the discovery of the ‘Shivling’ as “a very important piece of evidence” and pleaded before the court to get the entire area sealed for its safety. He also demanded a ban on entry of Muslims into the complex, and restrict the number of devotees offering namaaz to 20 at a time. One of the lawyers for the Hindu plaintiffs, Dr Sohan Lal Arya, said, “Baba mil gaye. Jin khoja tin paiyaan, gahre paani paith..isharon me puri baat samajh lijiye” (We found Lord Shiva. After entering deep in water, we found what we wanted. Please try to understand my message in full)
The District Magistrate of Varanasi, Kaushal Raj Sharma, said, since the ablution pond (wazu khana) already had a fence made of steel angles and netting with three entry points, the local administration had no problems in putting extra efforts while sealing the area. A CRPF watchtower has been set up in the vicinity, he said.
The survey of Gyanvapi Mosque premises was ordered by the local court after five Hindu women plaintiffs sought the right to unhindered daily worship of Goddess Shringar Gauri and other deities along the outer wall of the Gyanvapi complex. Dr Sohan Lal Arya, the lawyer for Hindu plaintiff, said, “We have got our Baba, for which Nandi (Shiva’s bull) had been waiting”.
On being told that the Muslim side is describing the claim as fictitious, he replied, “Everything is now known. We have got more evidences than what he had expected…Today is a big day for us. The moment the Shivling was found, the entire complex resounded with ‘Har Har Mahadev’. People started dancing….Now we will demand an inquiry commission to probe the wetern wall which is 75 feet long and 30 feet wide, and the 15 feet high ‘malba’ (debris), which faces Shringar Gauri. We will surely find the broken idols of our gods and goddesses from the 15 feet high debris full of stones.”
When the lawyers’ claim came to light, lots of speculations arose, across the country about what had happened nearly 450 years ago during Aurangzeb’s rule. The claim being made is that four-feet diameter Shivling has been discovered, but there is no idea at the moment as to how much Shivling has been buried inside the ground.
One thing is certain. A Shivling has been found buried in mud and water right in the middle of the wazu khana (ablution pond). Another member of the survey team, Vishnu Jain said, Muslim devotees who come for ablution here before prayers, must have definitely seen the Shivling submerged in water, because water level occasionally goes down. Already the court-appointed commissioners have completed nearly 250 GB of videography.
Here, I want to mention what R. P. Singh, a member of the survey team said. He explained the complete process by which the survey team reached the Shivling. He said, even the survey team earlier though it was a fountain, but it had no water connection. Secondly, a wall had been erected to hide the foundation. The Shivling that was found on Monday, is located 83 feet away from the idol of Nandi, facing towards the Shivling, as it normally happens in every Shiva temple.
The survey report, expected to be submitted after two days, will also reveal the evidences that were found in the ‘tehkhana’ (basement). Another lawyer Subhash Nandan Chaturvedi said, that when water was drained from the ablution pound, a wooden cover resembling a door was noticed, but since the survey commissioners had no powers to break open doors, the area was left untouched.
Now, let’s go back to history. The world famous Kashi Vishwanath temple is older than the ancient Hindu puranas and scripts. The Skanda Purana and Shiva Purana mention Kashi Vishwanath. Modern historians have nearly 1,000 year old records, according to which, the original Kashi Vishwanath temple was destroyed in 1194 CE by Mohammed Ghori’s commander Qutbuddin Aibak. The temple was rebuilt by a Gujarat businessman in 1230. Later the temple was destroyed and rebuilt several times.
There are some contradictions among historians about Gyanvapi mosque. But historians agree that the Maharani of Indore Ahilyabai Holkar got the present Kashi Vishwanath temple built in 1780. The three gold-plated domes of the temple were donated by Sikh Maharaja Ranjit Singh in 1839. Anybody watching the Gyanvapi mosque can say for sure that it was built after demolishing a temple.
That is why, none of the Muslim leaders or advocates are saying that it was not a temple. They are banking on the 1991 Places of Religious Worship Act brought during Congress rule, which calls for ensuring status quo in all religious shrines, except the then disputed Ram Janmabhoomi-Babri Masjid complex.
Soon after the Shivling was discovered, AIMIM chief Asaduddin Owaisi tweeted: “this is a textbook repeat of December 1949 in Babri Masjid. This order itself changes the religious nature of the masjid. This is a violation of 1991 Act. This was my apprehension and it has come true. Gyanvapi Masjid was and will remain a masjid till judgement day, Inshallah.” Owaisi repeated the Anjuman Intejamia Masjid’s claim that it was a part of a fountain, and not a Shivling. Jammu & Kashmir PDP chief Mehbooba Mufti said, “they are now finding Bhagwan in mosques, that is why they are after our mosques. First, they demolished Babri mosque in Ayodhya, and now Gyanvapi. Let them give us a list of all mosques which they want to demolish.”
Union Rural Development Minister Giriraj Singh gave an acerbic reaction to these remarks. He said, “it will be better if I do not speak much. If I start speaking, Owaisi and Mehbooba will have nothing to reply. If temples were demolished to build mosques, naturally Bhagwan will be found inside mosques. Now there is again rule of law and Hindus are getting justice.”
Owaisi and Mehbooba are following their political lines, and these are general remarks. Their allegation is that BJP is deliberating trying to raise disputes over mosques, but if one goes through this specific case about Gyanvapi mosque, the political arguments appear to be weak. It was the local court’s order to carry out survey of Gyanvapi complex, and not the BJP government’s. The verdict will come from the court, and not from the government.
The 1991 Places of Religious Worship Act that Owaisi is referring to relates to all religious structures that existed prior to 1947. There cannot be changes in their nature.
I have to mention two points here . One: From 1947 till 1991, there used to be daily worship of Goddess Shringar Gauri in Gyanvapi complex, but this was prohibited in 1991. Later, one day pooja was permitted. From the legal point of view, post-1947 situation must prevail, that is daily uninterrupted prayer of Goddess Shringar Gauri must be allowed. The petition filed by five Hindu ladies seek permission for uninterrupted daily prayer of the goddess inside the Gyanvapi complex.
Two: Owaisi is speaking half-truths as far as this law is concerned. BJP leaders have pointed out that Owaisi failed to mention that there are some exemptions in this Act. One of the exemptions is, if the structure is more than 100 years old, the structure shall remain out of the purview of the Act. The Shivling found in Gyanvapi complex is reported to be 450 years old. If it is proved to be correct, then the Gyanvapi complex will remain out of the purview of 1991 Act. I think, this issue, at the moment, appears to be a fertile ground for political football and nobody can stop it.
दिल्ली का मुंडका अग्निकांड : एक ऐसा हादसा जिसे टाला जा सकता था
पश्चिमी दिल्ली के मुंडका में शुक्रवार शाम एक कमर्शियल बिल्डिंग में भीषण आग लगने से झुलसकर 27 लोगों की मौत हो गई। यह घटना देश की राजधानी में फायर सेफ्टी के लिए अपनाए जानेवाले उपायों पर गंभीर सवाल खड़े करती है। इस हादसे के बाद करीब 29 लोग लापता बताए जा रहे हैं जिनमें 24 महिलाएं और पांच पुरुष हैं। परिवारवाले और करीबी रिश्तेदार इनका पता लगाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। वहीं इस हादसे में जख्मी 12 लोग अस्पताल में जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं।
शाम साढ़े चार बजे के करीब बिल्डिंग की पहली मंजिल से आग शुरू हुई। संभवत : शॉर्ट सर्किट के चलते बिल्डिंग में आग लग गई। पहली मंजिल से शुरू हुई आग देखते ही देखते दूसरी और तीसरी मंजिल तक फैल गई। बाद में आग की लपटों ने पूरी चार मंजिला बिल्डिंग को अपनी चपेट में ले लिया। फायर ब्रिगेड की 28 गाड़ियां, दिल्ली पुलिस और एनडीआरएफ की टीमों की मदद से करीब साढ़े छह घंटे बाद आग पर काबू पाया जा सका। राहत और बचाव के कामों में जुटा प्रशासनिक अमला शनिवार सुबह तक घटनास्थल पर झुलसे शवों की तलाश में जुटा था।
लाल डोरा की जमीन पर बनी हुई इस बिल्डिंग का व्यावसायिक इस्तेमाल किया जा रहा था जबकि इसका उपयोग आवासीय बिल्डिंग के तौर पर होना चाहिए । बिल्डिंग मालिकों ने दिल्ली फायर सर्विसेज की ओर से कोई एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) नहीं ले रखी थी। इस बिल्डिंग में नीचे से ऊपरी मंजिल तक आने-जाने का केवल एक ही रास्ता था और वो भी एक संकरी सीढ़ी थी। बिल्डिंग में अग्निशामक यंत्र और फायर सेफ्टी अलार्म नहीं थे। इस बिल्डिंग का उपयोग दफ्तर, फैक्ट्री और गोदाम के तौर पर किया जा रहा था।
बिल्डिंग की पहली मंजिल पर सीसीटीवी कैमरे और वाईफाई राउटर पैकेजिंग यूनिट से उठी आग देखते ही देखते दूसरी मंजिल तक फैल गई जहां पर कंपनी के कर्मचारियों का मोटिवेशनल सेशन चल रहा था। आग लगते ही ग्राउंड फ्लोर पर मौजूद अधिकांश लोग बाहर निकलने में कामयाब रहे लेकिन पहली और दूसरी मंजिल पर बड़ी संख्या में लोग फंस गए। इन लोगों को स्थानीय लोगों द्वारा रस्सियों और सीढ़ी का इस्तेमाल कर बचाने की कोशिश की गई। वहीं बिल्डिंग में फंसे हुए कई लोगों ने नीचे छलांग लगा दी जिससे उन्हें गंभीर चोटें आईं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हादसे में मारे गए लोगों के परिजनों को 2-2 लाख रुपये और घायलों को 50-50 हजार रुपये मुआवजे का ऐलान किया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के साथ घटनास्थल का दौरा किया और कहा कि जो भी इस हादसे के लिए जम्मेदार होंगे उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा। उन्होंने हादसे में मारे गए लोगों के परिजनों को 10 लाख रुपये और घायलों को 50 हजार रुपये का मुआवजा देने का ऐलान किया। इस हादसे में मरने वालों में ज्यादातर पैकेजिंग यूनिट की महिला कर्मचारी थीं। जिला पुलिस प्रमुख ने कहा कि हादसे में मारे गए लोगों की पहचान के लिए फोरेंसिक कर्मचारियों की मदद से डीएनए टेस्ट कराया जाएगा।
मुंडका का हादसा दिल्ली में हाल के दिनों में हुए बड़े अग्निकांडों में से एक है। इससे पहले 1997 के उपहार सिनेमा अग्निकांड में 59 लोगों की मौत हो गई थी। 1999 में लाल कुआं अग्निकांड हुआ था। इस अग्निकांड में केमिकल मार्केट में आग लग गई थी और 57 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं 2018 में बवाना में पटाखा की फैक्ट्री में आग लगने से 17 लोगों की मौत हुई थी। 2019 में अनाज मंडी पेपर फैक्ट्री अग्निकांड में 45 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं उसी साल करोल बाग के होटल में आग लगने से 17 लोगों की मौत हुई थी।
उधर, शुक्रवार की रात को ही सीसीटीवी कैमरा पैकेजिंग कंपनी के दोनों मालिक वरुण और हरीश गोयल को गिरफ्तार कर लिया गया था। वहीं बिल्डिंग का मालिक मनीष लाकड़ा फिलहाल फरार है । चूंकि पूरी इमारत धुएं और आग की लपटों में घिरी हुई थी इसलिए फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों को रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान बगल की बिल्डिंग की एक दीवार तोड़नी पड़ी।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हादसे की मजिस्ट्रियल जांच का आदेश दे दिया है, लेकिन जैसा कि आमतौर पर ऐसे मामलों में ये होता रहा है कि जांच रिपोर्ट और जांच आयोग की सिफारिशों को शायद ही जमीनी तौर पर लागू किया जाता है या उनपर अमल होता है। पूरी दिल्ली में कई लाख कमर्शियल (व्यावसायिक) बिल्डिंग्स हैं जिनमें फायर सेफ्टी के पर्याप्त उपाय नहीं हैं। ज्यादातर बिल्डिंग्स को दिल्ली फायर सर्विस की ओर से एनओसी नहीं दी गई है।
राजधानी में दिल्ली में कई तरह की अथॉरिटीज हैं। एमसीडी से लेकर डीएफएस से लेकर दिल्ली सरकार की एजेंसियों तक, यहां अथॉरिटीज की बहुलता है। ऐसे में कमर्शियल बिल्डिंग्स के मालिक नियमों और कानूनों को सुविधा के मुताबिक मोड़ने की पूरी कोशिश करते हैं। अब समय आ गया है कि जो लोग सत्ता में बैठें हैं वे इसका संज्ञान लें और फायर सेफ्टी से जुड़ी योजनाओं को सावधानी से लागू कराएं।
अगर बिल्डिंग में कई सीढ़ियां होतीं, फायर सेफ्टी के लिए बाहर से भी सीढ़ियां होतीं तो मुंडका की इस त्रासदी को आसानी से टाला जा सकता था। सीढ़ियां बनाने, फायर सेफ्टी अलार्म और अग्निशामक यंत्र जैसी चीजें आग के हादसों से बचाने के लिए न्यूनतम जरूरत होती है और कोई भी नियामक प्राधिकरण (रेग्यूलेटरी अथॉरिटी) इसकी सिफारिश कर सकता था। दिल्ली सरकार को अग्निशमन सेवाओं के साथ ऐसे सभी कमर्शियल और आवासीय भवनों का ऑडिट करना चाहिए और नियमों को सख्ती से लागू करना चाहिए।
Delhi Mundka fire: A tragedy that could have been avoided
The death of 27 people in a devastating blaze at a commercial building in Mundka, West Delhi on Friday evening raises serious questions about how fire safety measures are being implemented across the capital. Nearly 29 people, of them 24 women and five men, are still unaccounted for, with close relatives desperately trying to find clues about their near and dear ones. Twelve persons are in hospital fighting for their lives.
The fire started at around 4.30 pm, probably because of electrical short circuit on the first floor. It soon spread to the second and third floors, and later the flames engulfed the entire four storeyed building. More than 28 fire engines, helped by Delhi Police and NDRF teams were involved in the six and a half hour long firefighting operations, and till Saturday morning, officials were still searching for bodies that have been charred in the fire.
The building, built on Lal Dora land, was supposed to be residential, but was functioning as a commercial building. The owners had no NOC (No Objection Certificate) from Delhi Fire Services. There was only one narrow staircase that served as entry and exit from the ground to the top floors. Fire extinguishers and fire safety alarms were absent in the building, that was being used as a space for offices, factory and godowns.
The fire spread from a CCTV camera and WiFi routers packaging unit on the first floor and soon spread to the second floor, where a motivational session of company staff was going on. While most of the people escaped from the ground floor, those trapped on first and second floors had to be rescued by local residents, using ropes and ladders. Many of those trapped jumped to the ground and had to face critical injuries.
Prime Minister Narendra Modi announced an ex gratia assistance of Rs 2 lakh each to the next of kin of those who were killed, and Rs 50,000 to those injured. Delhi chief minister Arvind Kejriwal visited the spot on Saturday morning with Deputy CM Manish Sisodia and said that those found responsible for this tragedy would not be spared. He announced Rs 10 lakh ex gratia to the kin of those killed and Rs 50,000 to the injured people. Most of the people who died in the inferno were female workers of the packaging unit. The district police chief said, DNA tests will be conducted with the help of forensic staff to identify those who were killed in the blaze.
The Mundka tragedy is the latest in a line of similar ones that took place in Delhi in the recent past. Fifty nine people died in the 1997 Uphaar cinema fire tragedy, while 57 lives were lost in the 1999 Lal Kuan fire trgedy at a chemical market. Seventeen people died in a fire cracker factory blaze in 2018 in Bawana. 45 people died in the 2019 Anaj Mandi paper factory blaze. The same year, 17 people died in a hotel blaze in Karol Bagh.
Two owners of the CCTV camera packaging company, Varun and Harish Goel, were arrested on Friday night, while the owner of the building Manish Lakra is on the run. Since the entire building was engulfed in smoke and flames, fire personnel had to break one of the walls from an adjoining building to carry out rescue operations.
Chief Minister Kejriwal has ordered a magisterial inquiry, but, as it normally happens in such cases, inquiry reports and recommendations are hardly implemented on the ground. There are several lakhs commercial buildings across the capital, which do not have adequate fire safety measures. Most of them have not been given NOC by Delhi Fire Services.
Due to multiplicity of authorities in the Capital, ranging from MCD to DFS to Delhi government agencies, owners of commercial buildings try their best to bend the laws and regulations to suit their own convenience. It is time that the powers-that-be must sit up, take notice and carefully implement plans for providing fire safety.
The tragedy that took place in Mundka could have been easily avoided, had there been several staircases, including a fire staircase from outside. Any regulatory authority could have recommended such measures, like installation of staircases, fire safety alarms and fire extinguishers, which are minimum requirements when such incident take place. Delhi government, along with Fire Services, must carry out a comprehensive audit of all such commercial and residential buildings and enforce regulations with a strong hand.
एक गरीब मुस्लिम लड़की से बात करते हुए क्यों भावुक हुए मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को गुजरात के भरूच से लाइव वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान डॉक्टर बनने की ख्वाहिश रखने वाली एक मुस्लिम लड़की को अपने पिता के कंधे पर सिर रखकर रोते हुए देखा तो भावुक हो गए। प्रधानमंत्री की आंखें उस वक्त नम हो गईं जब लड़की ने उनसे कहा कि वह आंखों की रोशनी खो चुके अपने गरीब पिता की मदद करने के लिए डॉक्टर बनना चाहती है।
मोदी दिल्ली से वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भरूच में हजारों लोगों के साथ ‘उत्कर्ष समारोह’ में गुजराती में बातचीत कर रहे थे। राज्य सरकार ने इस समारोह का आयोजन अपनी प्रमुख पहलों के 100 फीसदी सैचुरेशन के उपलक्ष्य में किया है। अपनी आंखों की रोशनी खो चुके मुस्लिम शख्स अयूब मोदी को बता रहे थे कि कैसे उनकी दोनों बेटियां सरकारी छात्रवृत्ति योजना की लाभार्थी बन गई हैं और वे स्कॉलरशिप के पैसे से अपनी पढ़ाई कर रही हैं।
अयूब ने बताया कि जिस दौरान वह सऊदी अरब में काम करते थे, उनकी आंखों की रोशनी ग्लूकोमा की वजह से जानी शुरू हो गई, लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी। उन्होंने बताया कि अब उनकी बेटी आलिया पढ़ रही है, और डॉक्टर बनने की ख्वाहिश रखती है। मोदी ने बीच में पूछ लिया कि क्या उनकी बेटी आलिया उनके साथ बैठी हैं। आलिया ने खड़ी होकर पीएम का स्वागत किया लेकिन तभी पिता के कंधे पर सिर रखकर रोने लगीं।
अयूब भाई ने मोदी से कहा कि उनकी बेटी भावुक होने की वजह से ज्यादा नहीं बोल पाएगी, लेकिन खामोश सिर्फ बेटी ही नहीं थी। काफी देर तक मोदी भी बोल नहीं पाए, आलिया की बात उन तक बिना अल्फाज के पहुंच गई थी। बेटी के आंसू देखकर मोदी भावुक हो गए। चारों तरफ सन्नाटा छा गया, क्योंकि मोदी की आंखों में भी आंसू आ गए।
यह प्रोग्राम टीवी पर लाइव चल रहा था। कैमरा प्रधानमंत्री और हजारों किलोमीटर दूर रो रही लड़की के एक-एक इमोशन को कैद कर रहा था। मोदी ने अपने आपको संभालने की कोशिश की और अयूब भाई से पूछा कि रमजान कैसे बीता, ईद कैसे मनाई। अयूब के जवाब के बाद बात खत्म करते-करते मोदी ने उनसे कहा, ‘बेटियों को पढ़ाना, खूब आगे बढ़ाना, उनके सपनों को पूरा करना। अगर कोई दिक्कत हो, किसी तरह की परेशानी हो, तो सीधा मुझे बताना।’
मोदी पिछले 20 सालों से उन लोगों के निशाने पर हैं जो उनसे नफरत करते हैं और अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले तमाम अत्याचारों के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री और एक गरीब गुजराती मुसलमान के बीच हुई यह सीधी बातचीत हमारे नए भारत को परिभाषित करती है।
कुछ सेकंड का सन्नाटा सारी सच्चाई बयां करने के लिए काफी है। मोदी की नीयत कैसी है, उनके इरादे क्या हैं, और वह कैसे काम करते हैं। यह सब कुछ इस लगभग 2 मिनट की बातचीत से साफ हो जाता है। मैं आपको मोदी और अयूब भाई के बीच हुई बातचीत के पारे में विस्तार से बताता हूं।
अयूब पटेल: जबसे आप आए हैं सरकार में, तब से स्कॉलरशिप मिल रही है।
प्रधानमंत्री: कितनी स्कॉलरशिप मिलती है?
अयूब: बड़ी लड़की को 10 हजार रुपये, और छोटी लड़की को 8 हजार रुपये।
प्रधानमंत्री: इन बेटियों ने क्या सोचा है? पढ़कर क्या करना चाहती हैं?
अयूब: बड़ी लड़की का अभी रिजल्ट आया है, अभी 10 बजे। 80 पर्सेंट नंबर आया है, और डॉक्टर बनना चाहती हैं।
प्रधानमंत्री: डॉक्टर बनना चाहती हैं, वहां हैं क्या? आपके साथ बैठी हैं क्या?
अयूब: हमारे साथ में बैठी हैं?
प्रधानमंत्री: बताओ बेटा क्या नाम है?
अयूब: आप उनको आशीर्वाद दीजिए सर जी।
प्रधानमंत्री: मेरा आशीर्वाद है। क्या नाम है बेटा?
आलिया: आलिया।
प्रधानमंत्री: बेटा बताइये, डॉक्टर बनने का विचार मन में क्यों आया?
आलिया: पापा की प्रॉब्लम को देखकर।
(आलिया रोने लगती हैं)
अयूब: उससे नहीं बोला जाएगा, सर जी। वह थोड़ा भावुक हो गई है।
प्रधानमंत्री: ऐसा है, अपनी बेटी को बताइए…
आलिया: नहीं बोल पाऊंगी..
प्रधानमंत्री: बेटी, तुम्हारी यह जो संवेदना है न, वही तुम्हारी ताकत है।
(इसके बाद सन्नाटा छा जाता है)
प्रधानमंत्री: इस बार ईद कैसे मनाई? रमजान कैसा रहा?
अयूब: बहुत अच्छी तरह से मनाया। सबसे मिलजुल कर मनाया।
प्रधानमंत्री: तो ईद में बेटियों को क्या दिया?
अयूब: ईद में उनको पैसा दिया, और कपड़े लाए। और जरूरत की चीजें लाए।
प्रधानमंत्री: देखिए, इन बेटियों का सपना पूरा करना। और कुछ कठिनाई हो तो मुझे बताना।
अयूब: ठीक है सर जी।
प्रधानमंत्री: आप अपनी शारीरिक पीड़ा को शक्ति में बदल रहे हैं। आपकी बेटी को डॉक्टर बनने की प्रेरणा आपसे मिली।
अयूब: सर, दिल्ली तो बहुत दूर है, कई सौ किलोमीटर। लेकिन वहां बैठे-बैठे आप हमारी चिंता करते हैं, इसके लिए आपका धन्यवाद। आप जिस तरह से देश के विकास के लिए दिन-रात लगे हुए हैं, उसके लिए मैं अंतरात्मा से आपका बहुत धन्यवाद करता हूं। आपने विकलांग शब्द खत्म करके दिव्यांग शब्द दिया, हमारा गौरव बढ़ाया, इसके लिए हम आपका धन्यवाद करते हैं।
अयूब भाई पटेल उन 13 हजार से ज्यादा लोगों में से हैं, जिन्हें सरकारी योजनाओं का फायदा मिला है। चूंकि ग्लूकोमा की वजह से उनकी आंखों की रोशनी चली गई, इसलिए वह तो मोदी के आंसू नहीं देख पाए, लेकिन फिर भी वह दिल ही दिल में जानते हैं कि मोदी की वजह से उनकी 3 बेटियों को वजीफा मिल रहा है, .उन्हें पेंशन मिल रही है, मुफ्त राशन मिल रहा है और रेलवे एवं सरकारी बस का पास मिला हुआ है। अयूब तो बस इतना जानते हैं कि अगर सरकार की मदद न मिलती, तो उनके परिवार की जिंदगी में अंधेरे के सिवा कुछ नहीं होता।
भरूच के जिला कलेक्टर ने बताया कि उत्कर्ष पहल के तहत जिला प्रशासन द्वारा 13,430 लाभार्थियों की पहचान की गई है, जहां 4 प्रमुख योजनाओं के लिए पात्र परिवारों को 100 पर्सेंट सैचुरेशन कवरेज दिया जाता है: (1) गंगा स्वरूप आर्थिक सहायता योजना, (2) इंदिरा गांधी वृद्ध सहाय योजना (3) निराधार वृद्ध आर्थिक सहायता योजना और (4) राष्ट्रीय कुटुम्ब सहाय योजना। कलेक्टर ने कहा कि आमतौर पर गरीब लोग इन 4 योजनाओं से अनजान होते हैं और प्रशासन ने इन लाभार्थियों की पहचान के लिए जनवरी से मार्च तक कैंप लगाए थे।
नरेंद्र मोदी ने आंखों की रोशनी खो चुके एक मजबूर पिता और अपने पापा के लिए डॉक्टर बनने का सपना देखने वाली बेटी का दर्द महसूस किया। यह दर्द सिर्फ वही महसूस कर सकता है जिसने गरीबी देखी हो। आलिया और उनके पापा से मोदी ने जो कहा, वह एक गरीब का बेटा ही कह सकता है। मेरी दुआ है कि आलिया डॉक्टर बनें, अपने पिता का इलाज करें और अपना सपना जरूर पूरा करें।
Why Modi became emotional while speaking to a poor Muslim girl
On Thursday, Prime Minister Narendra Modi became emotional when she watched a Muslim girl, aspiring to become a doctor, weeping on the shoulder of his father, during live video-conferencing from Bharuch, Gujarat. Tears welled up in the eyes of the Prime Minister as the girl told him that she wanted to become a doctor to help her poor father, who was visually impaired.
Modi was interacting in Gujarati with thousands of people through video-conferencing from Delhi to Bharuch, as part of ‘Utkarsh Samaroh’ marking 100 per cent saturation of key state government initiatives. A visually challenged Muslim man, Ayub Patel, was telling Modi how both his daughters have become beneficiaries of government scholarship scheme and they were studying because of scholarship money which they were getting.
Ayub told the PM how he started losing his vision due to glaucoma while working in Saudi Arabia, but he did not lose hope, and now his daughter Aalia was studying, and aspiring to become a doctor. Modi interrupted and asked whether his daughter Aalia was sitting with him. Aalia stood up, welcomed the PM but started weeping on the shoulder of his father.
Ayub Bhai told Modi that his daughter will not be able to speak as she was weeping, but her silence touched the strings of emotion in Modi’s heart. The Prime Minister became emotional. There was pin drop silence for a few minutes, as tears welled up in the eyes of Modi.
This programme was being telecast live on television. The cameras were recording the emotions of both the Prime Minister and the poor girl weeping several thousand kilometres away. Modi regained his composure and asked Ayub Bhai how he spent his Ramzan and Eid this time. After Ayub’s reply, Modi told him, “teach your daughters, fulfil their dreams. If you face any problems, tell me directly.”
For the last 20 years, Modi has been the target of those who hate him and hold him responsible for all the atrocities that minorities face. But this direct dialogue between the Prime Minister and a poor Gujarati Muslim defines our New India.
A few seconds of silence are enough to describe the truth, about Modi’s intentions and also about how he works. The two minute conversation between PM and Ayub Bhai clears up the entire picture. I would like to mention here the conversation that took place between Modi and Ayub Patel:
Ayub Patel: Since your government has come to power, we are getting scholarships.
PM: How much scholarship?
Ayub: The elder daughter gets Rs 10,000, and the younger daughter gets Rs 8,000.
PM: What have your daughters decided to do after completing education?
Ayub: The elder daughter has scored 80 per cent marks, result has just come, and she wants to become a doctor.
PM: Is she sitting with you right now?
Ayub: Yes, she is sitting with me.
PM: Beti, tell me your name.
Ayub: Sir Ji, please give her your blessings.
PM: My blessings, what’s your name Beta?
Aaalia: My name is Aalia.
PM: Beta, tell me why do you want to become a doctor?
Aalia: After seeing my father’s problem (weeps)
Ayub: She won’t be able to speak, Sir Ji. She has become emotional.
PM: Well, tell your daughter….
Aalia: I can’t speak.
PM: Beti, your emotion is your strength. (a long, pin-drop silence)
PM: How did you celebrate Eid, observed Ramzan this time?
Ayub: We celebrated together, happily.
PM: What Eid gift did you give to your daughters?
Ayub: I gave them money, bought clothes and other articles for them.
PM: Look, you must fulfil the dreams of your daughters..if you face any difficulty, do let me know.
Ayub: Theek Hai, Sir Ji.
PM: You are converting your physical pain into your strength. Your daughter got the inspiration from you to become a doctor.
Ayub: Sir, Delhi is several hundred kilometres away. Sitting there, you are thinking about us. Thank You, Sir. I thank you from the bottom of my heart for the manner in which you are working day and night for the nation’s progress. By changing the word ‘vikalang’ to ‘divyang’ (physically impaired), you have given us pride. We thank you for this.
Ayub Bhai Patel is among more than 13,000 people who have benefited from government schemes. Though he lost his vision due to glaucoma, and could not see tears welling up in the eyes of the Prime Minister, yet, in his heart of hearts, he knows, it is because of Modi that his daughters are getting scholarships, he is getting pension, free ration, and free railway and government bus travel passes. Ayub knows that his family life would now have been in a dark hole, if Modi’s schemes had not been implemented.
The district collector of Bharuch said, 13,430 beneficiaries were identified by the district administration as part of Utkarsh initiative, where 100 per cent saturation coverage is given to deserving families for four key schemes: (1) Ganga Swaroopa Arthik Sahay Yojana, (2) Indira Gandhi Vrudh Sahay Yojana (3) Niradhar Vrudh Arthik Sahay Yojana and (4) Rashtriya Kutumb Sahay Yojana. The collector said, normally poor people are unaware about these four schemes, and the administration organized camps from January till March to identify these beneficiaries.
Narendra Modi felt the pain of a daughter who was dreaming to become a doctor to help his poor father, who lost his eyesight. This pain can be felt by those who have seen poverty in life. Only the son of poor parents can speak in the manner in which Modi spoke to Aalia and her father on Thursday. I pray that Aalia becomes a doctor one day, treat her father and fulfil her dreams.