राज्यसभा: यह तय करें कि भविष्य में फिर ऐसा तमाशा न हो
पूरे देश ने गुरुवार को राज्यसभा में हुए हंगामे की उस तस्वीर को देखा जो बेहद शर्मनाक है। सदन के अंदर सांसद पुरुष और महिला मार्शलों के साथ धक्का-मुक्की और हाथापाई करते नजर आए। सदन के अंदर हुई धक्का-मुक्की और हाथापाई के लिए सरकार और विपक्ष दोनों ने एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराया।
विपक्षी सांसदों के साथ संसद भवन से विजय चौक तक मार्च करने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे और शिवसेना नेता संजय राउत ने आरोप लगाया कि राज्यसभा में विरोधी दलों के सांसदों को पिटवाने के लिए बाहर से गुंडे बुलाए गए थे और उन्हें मार्शल की ड्रेस पहनाकर संसद में तैनात किया गया था। पीयूष गोयल, अनुराग ठाकुर और प्रह्लाद जोशी सहित सरकार के आठ मंत्रियों ने इसे सरासर झूठ बताते हुए खारिज कर दिया। इन लोगों ने आरोप लगाया कि कुछ सांसदों ने हाथापाई के दौरान एक महिला मार्शल को घायल कर दिया था।
पीयूष गोयल ने इल्जाम लगाया कि कुछ सांसदों ने एक महिला मार्शल के साथ हाथापाई की और उसे खींचकर गिरा दिया। फिर राज्यसभा का वो वीडियो भी सामने आया जिसमें साफ दिख रहा है कि महिला मार्शल के साथ धक्कामुक्की हो रही है। इस पर विपक्ष के नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार ने सेलेक्टिव वीडियो जारी किया है। संजय राउत ने यहां तक कह दिया कि उन्हें ऐसा लगा कि वह हिंदुस्तान-पाकिस्तान की बॉर्डर पर हैं।
गुरुवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में मैंने हंगामे के समय सभी वीडियो क्लिप और सदन के अंदर मौजूद सभी सुरक्षा अधिकारियों (मार्शल) की लिस्ट दिखाई। मैंने विपक्ष के इस आरोप को जांचने के लिए 42 मार्शलों में से हर एक की पहचान की कि बाहरी लोगों को मार्शल की वर्दी में लाया गया था या नहीं। मैंने मार्शलों की मेडिकल रिपोर्ट भी दिखाई, जिन्हें चोटें आई हैं।
राहुल गांधी ने यह आरोप लगाते हुए कि बाहर से मार्शल की वर्दी पहनकर आए आरएसएस के लोगों ने सांसदों को पीटा, राज्यसभा के चेयरमैन की गरिमा और निष्पक्षता पर सवाल उठाए। ये बहुत गंभीर बात है। पूर्व में विपक्ष प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों के खिलाफ आरोप लगाता था लेकिन आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि चेयरमैन की निष्पक्षता पर सवाल उठाया गया हो। ये पहली बार हुआ है। विपक्ष ने राज्यसभा के सभापति वैंकेया नायडू पर संदेह की उंगली उठाकर उनके आंसुओं का मजाक उड़ाया है।
राहुल गांधी पिछले 17 साल से संसद के सदस्य हैं और देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके द्वारा लगाए गए इस तरह के गंभीर आरोप की विस्तार से जांच की जरूरत है।
अपने शो में मैंने आपको वह फुटेज दिखाया जो कैमरे में रिकॉर्ड तो हुए लेकिन प्रसारण के सख्त नियमों के कारण टीवी पर टेलीकास्ट नहीं हुए। शाम 6 बजकर 2 मिनट पर बीमा संशोधन विधेयक सदन के अंदर पेश किया जा रहा था उसी समय तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने अपनी पार्टी की सहयोगी डोला सेन की ओर इशारा किया। डोला सेन अपनी पार्टी की सांसद शांता छेत्री के गले में एक रस्सी जैसे कपड़े को बांधकर वेल में पहुंच गईं और नारे लगाने लगीं। इस दौरान विरोधी दलों के दूसरे सांसद अपनी सीटों पर खड़े होकर नारेबाजी कर रहे थे।
जैसे ही डोला सेन और शांता छेत्री चेयर की ओर बढ़ीं, मार्शल आगे बढ़े और चेयरमैन के आसन को घेर लिया। ऐसा लगा कि वो पूरे एरिया को चारों तरफ से सुरक्षित करना चाहते हैं। उस समय बीजू जनता दल के सस्मित पात्रा चेयर पर बतौर पीठासीन अधिकारी मौजूद थे।
शाम करीब छह बजकर पांच मिनट पर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना के सांसद वेल में पहुंच गए और नारेबाजी करने लगे। उन्होंने रिपोर्टर्स की मेज के चारों ओर एक घेरा बना लिया। 6 बजकर 22 मिनट पर डोला सेन ने पहले लीडर ऑफ द हाउस पीयूष गोयल को धक्का दिया और फिर संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी का रास्ता रोकने की कोशिश की। शाम 6 बजकर 26 मिनट पर कांग्रेस के व्हिप लीडर नासिर हुसैन, शिवसेना की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी और तृणमूल कांग्रेस की अर्पिता घोष ने चेयर की तरफ पेपर फाड़कर फेंके।
जब मैंने दूसरे कैमरों के फुटेज देखे तो ये देखकर हैरान रह गया कि तृणमूल कांग्रेस के सांसद जब वेल में हंगामा कर रहे थे उस वक्त तृणमूल कांग्रेस के एमपी सुखेन्दु शेखर रॉय इंश्योरेंस बिल पर भाषण दे रहे थे। इसके बाद बिल पर BJD और AIADMK के नेता भी बोले। ऐसा लगा कि सदन में कार्यवाही चलने लगी है। कुछ ही देर में जब विरोधी दलों के कुछ नेताओं को लगा कि सदन चलने लगा तो फिर वे एकदम एग्रेसिव हो गए, नारेबाजी करने लगे, धक्कामुक्की शुरू हुई, पेपर फाड़कर चेयर की तरफ फेंके गए और करीब 24 सांसद वेल में दाखिल हो गए।
इसके बाद वहां मार्शल ने रिपोर्टर्स की टेबल को घेर लिया था। महिला मार्शल को देखकर विरोधी दलों के नेताओं ने अपनी महिला सांसदों को आगे किया। छत्तीसगढ़ से कांग्रेस की सांसद फुलो देवी नेताम और छाया वर्मा रिपोर्टर्स की टेबल के सामने खड़ी लेडी मार्शल को हटाने की कोशिश करने लगीं। जिससे पुरूष सासदों के चेयर और रिपोर्टर्स की टेबल तक पहुंचने का रास्ता क्लीयर किया जा सके। इसके बाद फुलो देवी नेताम और छाया वर्मा ने पहले लेडी मार्शल से हाथापाई और फिर धक्कामुक्की की।
वीडियो फुटेज में इस बात के सबूत हैं कि फुलो देवी नेताम ने महिला मार्शल की गर्दन पकड़ रखी थी और अपने सिर से उसके चेहरे पर हमला करने की कोशिश भी की। जिस महिला के साथ ये बदसलूकी हुई उसका नाम अक्षिता भट्ट है। वह राज्यसभा में सुरक्षा सहायक हैं। उसकी गर्दन पर चोट के निशान थे और शरीर के कुछ हिस्सों में सूजन थी। मेरे पास सबूत के तौर पर उसकी मेडिकल रिपोर्ट है जो पार्लियामेंट हाउस के CGHS के सीएमओ की साइन की हुई है। अक्षिता के कंधे और छाती की एक्स-रे रिपोर्ट में गंभीर चोटें आई हैं।
अक्षिता भट्ट ने अपनी शिकायत में कांग्रेस के 2 सांसद फूलो देवी नेताम और छाया वर्मा पर मारपीट करने का आरोप लगाया है। उसने अपनी शिकायत में कहा, ‘मैंने संयम बनाए रखा और और पीछे नहीं हटी। इस वजह से मुझे कई जगह चोटें आई हैं।’ अक्षिता की बाईं कलाई और बाएं कंधे पर सूजन आ गई है।
सदन की कार्यवाही छह बजकर दस मिनट पर स्थगित की गई लेकिन फिर 15 मिनट के बाद राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई। कांग्रेस सांसद रिपुन बोरा चेयर की तरफ चढ़ने की कोशिश करते दिखाई दिए। इसके बाद रिपुन बोरा रिपोर्टर्स की टेबल पर चढ़कर चेयर की तरफ जाना चाह रहे थे। करीब 7 से 8 मिनट बाद वहां तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन आए। उनके हाथ में मोबाइल था और वे सारा हंगामा रिकॉर्ड कर रहे थे। टीएमसी की अर्पिता घोष, मौसम नूर और डोला सेन सदन की पहली कतार में बेंच पर खड़ी थीं। हैरानी की बात ये है कि एक तरफ विरोधी दलों के सांसद हंगामा कर रहे थे तो दूसरी तरफ इसी हंगामे के बीच आरजेडी के मनोज झा और आम आदमी पार्टी के सासंद सुशील कुमार गुप्ता चर्चा में हिस्सा ले रहे थे।
राज्यसभा में क्या हुआ, कैसे हुआ, किसने क्या किया, ये बताने की जरूरत नहीं है। बुधवार की शाम को सदन के अंदर जो हुआ उसकी 20 से अधिक तस्वीरें मेरे पास हैं।
कैमरे की फुटेज में कौन किसको मारा, यह बताने की जरूरत नहीं है। बुधवार की शाम को सदन के अंदर जो हुआ उसकी 20 से अधिक तस्वीरें मेरे पास हैं। बुधवार शाम जिस वक्त डोला सेन और शांता छेत्री ने कपड़े का फंदा बनाकर वेल में नारे लगाए, उसके कुछ देर बाद कांग्रेस सांसद फुलो देवी नेताम ने पेपर फाड़कर चेयर की तरफ फेंका, ये सारी तस्वीरें हैं। जिस वक्त लीडर ऑफ हाउस पीयूष गोयल और संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी चेयरमैन के चेंबर से सदन में दाखिल हो रहे थे तब डोला सेन ने दोनों का रास्ता रोका। इसके बाद कांग्रेस सांसद नासिर हुसैन ने शिवसेना के एमपी संजय राउत को सिक्योरिटी ऑफिशियल्स के आगे कर दिया जिससे टेबल ऑफ द हाउस को घेरा जा सके और फिर उन्हें वापस अपनी तरफ खींचा। उसी वक्त कुछ और सांसद ई करीम, रिपुन बोरा, बिनोय बिस्वम और अखिलेश प्रसाद सिंह वेल में आ गए। CPM के राज्यसभा सांसद ई. करीम ने एक मार्शल से धक्कामुक्की की और मार्शल का गला दबाया। इन्ही तस्वीरों में एक लेडी मार्शल को खींचने और घसीटने की भी तस्वीर है। वेल के अंदर उनके साथ मारपीट की गई। पूरी घटना कैमरे में रिकॉर्ड है।
राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि आरएसएस के बाहरी लोगों को बड़ी संख्या में मार्शल के रूप में विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए तैनात किया गया था। पीयूष गोयल राज्यसभा में नेता सदन हैं और उन्होंने बताया कि कल सदन में सिर्फ 30 मार्शल थे। उनमें 12 महिला मार्शल और 18 पुरुष मार्शल थे। गोयल ने कहा कि ये सदन में रिपोर्टर टेबल और चेयर की सुरक्षा के लिए जरूरी था।
राहुल गांधी ने जो आरोप लगाया वह बेहद गंभीर है। संसद के अंदर मार्शल की वर्दी में बाहरी लोगों को कैसे लाया जा सकता है? वह खुद राज्यसभा के सभापति से सवाल कर रहे हैं।
हमें पता होना चाहिए कि मार्शल सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया जाता है। मार्शल की नियुक्ति सदन के अध्यक्ष द्वारा की जाती है। जिस वक्त पिछड़े वर्ग से संबंधित बिल पर चर्चा हो रही थी उस वक्त हाउस में 14 मार्शल ही थे जिनमें दो लेडी मार्शल थी। जैसे ही विरोधी दलों के सासंदों ने नारेबाजी शुरू और हंगामे की आशंका बढ़ी तो एहतिहात के तौर पर कुल 42 मार्शल को तैनात किया गया। ज्यादातर मार्शल्स को रिपोर्टर्स टेबल के चारों तरफ खड़ा किया गया ताकि वो एक दीवार बना लें जिससे 10 अगस्त जैसी हरकत दोबारा न हो सके। कोई MP रिपोर्टर्स टेबल पर चढ़कर हंगामा न कर सके।
अपने शो में मैंने उन सभी 42 मार्शलों का नाम लिया जिन्हें उनके पदनाम के साथ सदन में तैनात किया गया था। उनका नेतृत्व राजीव शर्मा, विशेष निदेशक (सुरक्षा) कर रहे थे, जिसमें चार अतिरिक्त निदेशक, एक संयुक्त निदेशक, चार उपनिदेशक, आठ सहायक सुरक्षा अधिकारी और छह सुरक्षा सहायक शामिल थे। ये 24 मार्शल राज्यसभा सुरक्षा से हैं। बाकी लॉबी में तैनात सुरक्षा अधिकारी थे और उन्हें सपोर्ट के लिए बुलाया गया था। 42 मार्शलों में 31 पुरुष और 11 महिलाएं थीं। राज्यसभा में एक और सुरक्षा सहायक राकेश नेगी ने भी मारपीट की शिकायत दर्ज कराई है। राकेश नेगी राज्यसभा में सिक्योरिटी असिस्टेंट हैं । उन्होंने आरोप लगाया कि माकपा सांसद ई. करीम और शिवसेना सांसद अनिल देसाई ने उन पर हमला किया। करीम ने उनकी गर्दन पकड़ ली और घसीटने लगे जिसकी वजह से उनका दम घुटने लगा।
कई अनुभवी विपक्षी नेताओं ने इस धक्कामुक्की और हाथापाई की घटना को अपनी आंखों से देखा फिर भी वे सच्चाई को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। भले ही उन्हें सभी मार्शलों के नाम और सभी कैमरा फुटेज क्यों न दिखाए जाएं। उनकी अपनी मजबूरियां हो सकती हैं। लेकिन मामले की वजह क्या थी? आखिर क्या था विवाद?
असल में विरोधी दलों ने मॉनसून सेशन की शुरुआत से ही ये तय कर रखा था कि सदन की कार्यवाही किसी कीमत पर नहीं चलने देनी है। चूंकि बुधवार सुबह सरकार के साथ विरोधी दलों की ये सहमति बन गई थी कि पिछडे़ वर्ग से जुड़े संविधान संसोधन बिल पर चर्चा होगी और विरोधी दल भी उसमें हिस्सा लेंगे। यहां तक तो ठीक था। लेकिन सरकार चाहती थी कि जो दो बिल और बचे हैं उन्हें भी पास कराने में विपक्ष सहयोग करे। विरोधी दलों के नेताओं ने कहा कि बाकी बिलों पर चर्चा तब होगी जब सरकार उनके मुद्दों पर चर्चा कराए। इस पर सरकार की तरफ से कहा गया कि अगर जरूरत पड़ी तो सरकार सोमवार तक सदन की कार्यवाही बढ़ा सकती है लेकिन विरोधी दल फिर भी तैयार नहीं हुए। बस यहीं से टकराव की शुरूआत हुई।
जिन मार्शल्स को तैनात किया गया था वे सब पार्लियामेंट के कर्मचारी थे। कोई बाहरी नहीं था। ये सारी बातें रिकॉर्ड पर हैं। वे राज्यसभा के कर्मचारी हैं। इन लोगों को माननीय सदस्य जानते हैं, रोज इनसे मिलते हैं। ये सही है कि ज्यादा संख्या में मार्शल्स की तैनाती थी। किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए बुधवार शाम को 42 मार्शल तैनात किए गए थे। यहां तक कि लोकसभा के सुरक्षा कर्मचारियों की भी मांग की गई थी। फिर भी, विपक्षी नेता यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उन्होंने हाथापाई की और मार्शलों को धक्का दिया। जब वीडियो फुटेज दिखा दिया तो ये कहने लगे कि वीडियो के साथ छेड़छाड़ हो सकती है। वे यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उनकी ही पार्टी के सहयोगियों ने वेल के अंदर धक्कामुक्की और हाथापाई की।
राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू का एक लंबा राजनीतिक अनुभव रहा है। उन्होंने हमेशा पद की गरिमा का ख्याल रखा है। उन्होंने विरोधी दलों के सम्मान की चिंता की है और सबको बोलने का मौका दिया है। उन्होंने किसी की आवाज दबाने की कोशिश नहीं की। लेकिन अगर कोई टेबल पर चढ़ जाए, रूल बुक फाड़ कर चेयर की ओर फेंके तो वह इसे नजरअंदाज कैसे कर सकते हैं। और सबसे बड़ी दुख की बात है कि आज देश संकट में है। लॉकडाउन की वजह से लोगों को रोजगार खोना पड़ रहा है। जब पूरा देश कोरोना जैसी महामारी से लड़ रहा है, पार्लियामेंट में सांसद बहस करने की बजाए हंगामा कर रहे हैं, सदन की कार्यवाही को बाधित कर रहे हैं और मार्शल से धक्कामुक्की कर रहे हैं।
इससे भी ज्यादा दुख की बात ये है कि इस पूरे घटनाक्रम को सियासी रंग देने की कोशिश की गई। विरोधी दलों के नेता बार-बार ये कहते रहे कि उन्हें बोलने नहीं दिया गया। वीडियो दिखाते हैं कि आरक्षण के बिल पर विपक्षी दलों के नेता बोले भी और उन्होंने सुना भी। ये कहना भी सरासर गलत है कि पहली बार मार्शल बुलाए गए, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।
मुझे याद है मणिराम बागड़ी और राजनारायण जैसे वरिष्ठ सांसदों को इंदिरा गांधी के शासन के दौरान कई बार मार्शलों ने हाउस से घसीटते हुए बाहर निकाला था। विपक्षी दलों का ये कहना था कि मार्शल्स ने उनके साथ हाथापाई की। महिला सांसदों की पिटाई की। वीडियो सामने आया तो कहा कि सरकार ने सेलेक्टेड वीडियो रिलीज किए हैं। वीडियो फुटेज से इससे साबित होता है कि विरोधी दलों के नेताओं ने हंगामा किया, मार्शल के साथ हाथापाई और मारपीट की।
विपक्ष का यह आरोप कि मार्शल की वर्दी में बाहरी लोगों को सदन के अंदर लाया गया, ये बिल्कुल झूठ और बेबुनियाद बात है। ये मार्शल राज्यसभा की सुरक्षा व्यवस्था का हिस्सा हैं, जो सालों से काम कर रहे हैं। इन लोगों को बाहर से आए गुंडे और आरएसएस का एजेंट करार देना, इन सिक्योरिटी अफसरों के साथ अन्याय है। सरकार और विरोधी दलों के टकराव में जिस तरह विरोधी दलों के नेताओं ने सुरक्षा कर्मचारियों को मोहरा बनाने की कोशिश की, उसे मैं ठीक नहीं मानता। हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि ये वही सुरक्षा कर्मचारी हैं जिन्होंने 13 दिसंबर, 2001 को संसद पर हुए आतंकवादी हमले के वक्त अपने सीने पर गोलियां खाई थी। अपनी जान पर खेलकर संसद को बचाया था।
सवाल संसद की गरिमा और लोकतंत्र की प्रतिष्ठा का है। मुझे लगता है कि राज्यसभा के चेयरमैन को इस मामले में सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। जो भी दोषी हो सजा देनी चाहिए। मैं एक और बात कहना चाहता हूं कि अब तक जितनी बातें सामने आई हैं उससे साफ है कि विरोधी दल पहले ही तय कर चुके थे कि वे संसद में हंगामा करेंगे। किसी भी कीमत पर संसद की कार्रवाई चलने नहीं देंगे। विपक्ष ने वही किया जो वो पहले से तय कर चुके थे लेकिन उन्होंने इसका सारा इल्जाम उल्टा सरकार पर डाल दिया। इसे किसी भी कीमत पर जायज नहीं ठहराया जा सकता। मैं तो यही उम्मीद करूंगा कि जो हंगामा इस सेशन में हुआ और जैसी तस्वीरें इस बार देखने को मिलीं, वे आगे देखने को न मिलें। इसके लिए जरुरी है कि सभी दलों के सांसद आपस में बैठें, चेयरमैन की सलाह लें और आपस में तय करें कि आगे से ऐसी घटना न हो ताकि संसद सुचारू रूप से चले।
Rajya Sabha: Ensure that ugly spectacle is not repeated
The entire nation watched on Thursday the ugly spectacle of MPs in Rajya Sabha wrestling with male and female marshals inside the well of the House. The incident had taken place on Wednesday evening when the Insurance Amendment Bill was being passed. Both the government and the opposition blamed each other for the jostling and shoving that took place inside the House.
Congress leaders Rahul Gandhi and Mallikarjun Kharge, and Shiv Sena leader Sanjay Raut, after marching from Parliament to Vijay Chowk with other opposition MPs, alleged that MPs were “beaten up” by “outsiders from RSS wearing the uniform of marshals”. This was promptly rejected as a “bunch of lies” by at least eight ministers of the government, including Piyush Goyal, Anurag Thakur and Pralhad Joshi, who alleged that some of the MPs injured a woman marshal during the melee.
Piyush Goyal alleged that some of the MPs beat up a woman marshal and she fell on the floor. Video of Rajya Sabha surfaced which clearly showed the woman marshal was being shoved by several MPs. The opposition alleged that only selective videos were being released by the government. Sanjay Raut said he felt as if he was standing at the India-Pakistan border.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Thursday night, I showed all the video clips and the list of all security officers (marshals) present inside the House at the time of commotion. I identified each of the 42 marshals by name to check whether the opposition’s charge that outsiders were brought in the uniform of marshals was valid or not. I also showed medical reports of marshals who suffered injuries.
By alleging that MPs were “beaten up” by outsiders from RSS wearing uniform of marshals, Rahul Gandhi has questioned the sanctity and impartiality of the Chair. This never happened before. In the past, the opposition used to level charges against the Prime Minister and other ministers, but never against the Chair. This was unprecedented. By raising the finger of suspicion at Rajya Sabha chairman, the opposition has made a mockery of the tears shed by Venkaiah Naidu inside the House on Wednesday.
Rahul Gandhi has been a member of Parliament for 17 years and has been the president of the oldest political party in India. Such a serious charge levelled by him requires detailed scrutiny.
In my show, I showed the footage inside the House taken on camera but not shown in the live telecast due to strict rules on telecast of proceedings. At 6.02 pm, when the insurance amendment bill was being moved inside the House, Trinamool Congress leader Derek O’Brien gestured towards his party colleague Dola Sen. The latter took another party colleague Shanta Chhetri with her, with a cotton like hanging rope coiled around Shanta’s neck, and Dola Sen holding the other end of the rope. Both of them stood inside the well of the House and were chanting slogans. Other opposition MPs were shouting slogans from their benches.
As Dola Sen and Shanta Chhetri proceeded towards the space beneath the Chair’s podium, marshals came and guarded the Chair. The marshals wanted to secure the entire well and space around the Chair. Sasmit Patra of Biju Janata Dal was then in the chair as presiding officer.
At around 6.05 pm, Congress, Trinamool Congress and Shiv Sena MPs entered the well and chanted slogans. They formed a ring around the reporters’ table. As per the video, at 6.22 pm, Dola Sen pushed the Leader of the House Piyush Goel and tried to obstruct Parliamentary Affairs Minister Pralhad Joshi. At 6.26 pm, Congress whip Naseer Hussain, TMC MP Arpita Ghosh and Shiv Sena MP Priyanka Chaturvedi, tore papers and threw the shreds towards the chair.
When I checked footage from other cameras, I was surprised to watch TMC MP Sukhendu Shekhar Roy speaking on the bill, even as his party colleagues were trying to disrupt the proceedings. Soon after BJD and AIADMK members also took part in the debate, and it appeared as if the proceedings have returned to normal. Within seconds, opposition MPs became aggressive, started sloganeering, tore papers and threw the shreds, and nearly 24 MPs entered the well.
By then, the marshals, including lady staff, had formed a cordon around the reporters’ table and then female MPs took charge. Two Congress MPs Phulo Devi Netam and Chhaya Verma tried to physically remove female marshals from their spot. Both the female MPs were seen jostling and shoving a lady marshal.
The video clearly showed that Phulo Devi Netam had caught hold of the neck of the lady marshal and was trying to hit her with her head. The name of the lady marshal is Akshita Bhatt. She is a Security Assistant in Rajya Sabha. She had injuries on her neck and swellings on some portions of her body. I have a medical report on her signed by the CMO of the CGHS dispensary in Parliament. Her shoulder and chest x-ray reports showed serious injuries.
In her complaint, Akshita Bhatt has named the two Congress MPs Netam and Chhaya Verma of holding her arms and beating her. In her complaint, she said, she tried to exercise utmost restraint and did not hit back. In the process, she had swellings on her left wrist and left shoulder.
The House was adjourned at 6.10 pm but when it resumed after 15 minutes, Congress Assam unit chief Ripun Bora tried to stand on the reporters’ table and wanted to go towards the Chair. Seven to eight minutes later, TMC leader Derek O’Brien came to the house. He was holding his cellphone and was recording the melee on his camera. His party colleagues, Arpita Ghosh, Mausam Noor and Dola Sen stood on the members’ bench. The surprising part was that, RJD MP Manoj Jha and AAP MP Sushil Kumar Gupta were taking part in debate even as the opposition members were trying to disrupt proceedings.
No need to say who hit whom after all that have appeared in the camera footage. I have more than 20 still images of what happened inside the House on Wednesday evening.
These images depict Dola Sen and Shanta Chhetri walking towards the well with a cotton hanging rope, Dola Sen trying to physically prevent two ministers Piyush Goyal and Pralhad Joshi who were entering the House from the passage leading towards the Chairman’s chamber. There are images of Congress MP Naseer Hussain asking Shiv Sena leader Sanjay Raut to move towards the reporters’ table. By that time, more MPs Ripun Bora, E. Kareem, Benoy Viswam and Akhilesh Pratap Singh had reached the well. There is the image of CPI(M) MP E. Kareem holding the neck of a marshal, there was another image of a lady marshal being dragged and beaten up.
Rahul Gandhi had alleged that a large number of outsiders from RSS posing as marshals were deployed to “stifle the voice” of the opposition. According to Piyush Goyal, only 30 marshals were present in the House, 12 female and 18 male. They were required to protect the Chair and the reporters’ table.
What Rahul has alleged is very serious. How can outsiders be brought in the uniform of marshals inside Parliament? He is questioning the Rajya Sabha Chairman himself.
Marshals, we should know, are not appointed by the government. Marshals are appointed by the chairman of the House. When the Constitution Amendment Bill was being debated a few hours ago inside Rajya Sabha, only 14 marshals, including two female, were present. But when the melee began, all the 42 marshals were deployed inside the House to prevent violence. Most of the marshals formed a cordon around the reporters’ table to prevent a repeat of what happened on August 10, when MPs stood on the table and threw papers and rule book at the Chair.
In my show, I named all the 42 marshals who were deployed in the house along with their designations. They were led by Rajeev Sharma, Special Director (Security), aided by four additional directors, one joint director, four deputy directors, eight Assistant Security Officers, and six Security Assistants. These 24 marshals are from Rajya Sabha security. The rest were security officers deployed in the lobbies and were called for support. Among the 42 marshals were 31 male and 11 females. There is another complaint from a security assistant Rakesh Negi, who alleged that CPI(M) MP E. Kareem and Shiv Sena MP Anil Desai attacked him. Kareem caught him by the scruff of his neck and caused him suffocation and injuries.
Several seasoned opposition leaders watched the melee with their own eyes, and yet they are not going to accept the truth, even if the names of all marshals and all the camera footages are shown to them. They may have their own compulsions. But what was the crux of the matter? What was the dispute all about?
It so happened, that the opposition after stalling proceedings from Day One, had agreed on Wednesday to get the OBC Constitution Amendment Bill passed peacefully. After the bill was passed unanimously, the government wanted two more pending bills to be passed, and that led to the opposition causing a melee.
It is a fact that the Hon’ble Rajya Sabha leaders, who have been alleging that outsiders had been brought in as marshals, know these marshals by name, because they interact with them on a daily basis. It is also true that 42 marshals were deployed on Wednesday evening to prevent any ugly recurrence. Even security staff from Lok Sabha were also requisitioned. And yet, the opposition leaders are unwilling to admit that they scuffled and shoved the marshals. They are unwilling to admit that these are raw camera footages from the Rajya Sabha archives. They are unwilling to admit that their own party colleagues instigated the shoving and jostling inside the well.
Rajya Sabha chairman Venkaiah Naidu is a seasoned parliamentarian and politician. He knows how to stick to parliamentary ethics and rules for conduct of proceedings. He cares for the dignity and respect of Opposition members too. Throughout his tenure as Chairman, he always allowed opposition members to speak. He never tried to stifle anybody’s voice. But as a parliamentarian with conscience, he could not have remained silent watching a bunch of MPs standing on the reporters’ table, shouting slogans and throwing the rule book at the Chair.
The saddest part is that at a time when the entire nation is battling with a deadly pandemic, with people losing employment due to frequent lockdowns, our members of Parliament, instead of debating serious issues, tried to disrupt proceedings continuously for almost a month, and then resorted to an ugly duel with the security staff.
The sadder part is that this controversy was sought to be given a political motive. The opposition leaders alleged that they were not allowed to speak. The smooth debate on the OBC Constitution Amendment Bill clearly showed that the opposition not only listened, but also spoke. To allege that marshals were brought in for the first time inside the House is not true.
I have seen opposition leaders like Maniram Bagri and Raj Narain being dragged by marshals from inside the House during Indira Gandhi’s rule. The opposition has alleged that marshals beat up some MPs and misbehaved with some of their female colleagues. But the camera footage makes it clear that their allegation is a white lie. On the contrary, the footage clearly shows that some of the MPs jostled, shoved and beat up the marshals.
The opposition’s allegation that outsiders were brought inside the House in the uniforms of marshals does not hold water. These marshals are part of the Rajya Sabha security staff, who have been working since years. It is a sacrilege to use security staff as pawns in the political game that is being played. Remember, these are from the famous Rajya Sabha security staff, who took terrorists’ bullets on their chests to protect the lives of members during the infamous Parliament attack on December 13, 2001.
The ultimate question is of the dignity and decorum of Parliament. It relates to the prestige of Indian democracy. I would request the Rajya Sabha Chairman to take up this matter seriously and ensure that stringent punishment is given to the offenders. Let us hope that such scenes are not repeated in future. Let the leaders of all parties sit together, let them take the Chairman’s advice and ensure that Parliament is run smoothly, in future.
संसद का काम रोक कर लोकतंत्र का गला न घोंटें
संसद में बुधवार को परंपरा हार गई और हंगामा जीत गया। विपक्ष के लगातार हंगामे के कारण संसद का पूरा मानसून सत्र बर्बाद हो गया। राज्यसभा और लोकसभा, दोनों सदनों की कार्यवाही को निर्धारित समय से दो दिन पहले अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करना पड़ा। हालांकि मानसून सत्र 13 अगस्त तक चलना था लेकिन जिस तरह से संसद चल रही थी उसे चलना नहीं कहा जा सकता। वो बस दिखावे की कार्यवाही रह गई थी। विपक्षी दलों के पास अपने तरीके थे और जो वे चाहते थे, वो करवा लिया। उन्होंने संसद में न तो चर्चा और न ही कोई सामान्य कार्यवाही होने दी।
इस मुद्दे पर मानसून सत्र के पहले दिन यानी 19 जुलाई से ही सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट थीं। लेकिन मंगलवार को राज्यसभा के अंदर जिस तरह का उपद्रव हुआ कोई नहीं चाहता कि वैसी घटना दोबारा हो। सदन स्थगित होने के बाद कुछ सदस्य रिपोर्टर्स टेबल पर चढ़ गए और रूल बुक को चेयर की ओर फेंक दिया।
इसे विरोधी दल अपनी ‘जीत’ मान सकते हैं लेकिन यह लोकतान्त्रिक मर्यादाओं और परंपराओं की बड़ी ‘हार’ है। विपक्ष ने संसद की पवित्रता को भंग कर दिया।राज्य सभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू सदन की कार्यवाही शुरू होते ही राज्यसभा में हुए हंगामे पर अपनी बात कहते-कहते रो पड़े। वेंकैया ने कहा कि विपक्ष के सांसदों ने जो किया उससे वे मंगलवार की रात सो नहीं पाए।
उन्होंने कहा कि संसद लोकतंत्र का सर्वोच्च मंदिर होता है और इसकी पवित्रता पर आंच नहीं आने देना चाहिए। उन्होंने कहा कि आधिकारियों की मेज और उसके आसपास का हिस्सा सदन के पवित्र गर्भ गृह की तरह है। उन्होंने कहा-‘जिस तरह कल सदन की पवित्रता भंग की गई, उससे मैं बेहद दुखी और आहत हूं। कुछ सदस्य सदन की आधिकारिक मेज पर चढ़ गए, कुछ मेज पर बैठ गए, शायद वो अपनी इस बेअदबी हरकतों को ज्यादा ज्यादा दिखाना चाहते हों… मेरे पास अपनी पीड़ा जाहिर करने और कल की घटना की निंदा करने के लिए शब्द नहीं हैं। मैं पिछली रात सो नहीं पाया।’
इसके बाद नायडू की आंखों से आंसू निकल पड़े। लंबी चुप्पी के बाद उन्होंने कहा, मुझे पता नहीं चल रहा कि प्रतिष्ठित उच्च सदन की गरिमा को इस तरह से चोट पहुंचाने की वजह क्या है। मैं वजह जानने के लिए काफी कोशिस कर रहा हूं। उन्होंने कहा कि हमारे मंदिरों में जब श्रद्धालु जाते हैं तो उन्हें एक निश्चित स्थान तक जाने की अनुमति होती है, गर्भगृह से आगे वे नहीं जा सकते। उन्होंने कहा कि सदन के बीचों-बीच आना या इसके गर्भगृह में प्रवेश करना इसकी पवित्रता को भंग करने जैसा है और पिछले कुछ वर्षों से ऐसा अक्सर हो रहा है।
राज्यसभा के चैयरमैन वेंकैया नायडू को मैं बहुत बरसों से जानता हूं। वे बहुत सरल, सहज और भावुक व्यक्ति हैं। वे हमेशा परंपराओं, संस्कृति और सार्वजनिक जीवन में गरिमा के हिमायती रहे हैं। उनकी आंखों में आंसू देखकर दुख हुआ। वेंकैया नायडू ने सदन को हमेशा गरिमा और संयम से चलाया। नायडू ने सबको साथ लेकर चलने की कोशिश की लेकिन जिस तरह विरोधी दलों के नेता टेबल पर चढ़कर शोर मचाते रहे, कागज फाड़ते रहे, रूल बुक फेंकी, ये संसद की परंपरा और इसके शिष्टाचार के अनुरुप तो नहीं है।
संसद में विरोध के कई तरीके हैं। एक-दो दिन हंगामा भी होता है। कभी-कभार पोस्टर भी लहराए जाते हैं। लेकिन शुरुआती हंगामे के बाद अक्सर पूरा सदन बैठता है और विस्तार से बहस और चर्चा होती है। लेकिन पूरा का पूरा सत्र हंगामे और शोर-शराबे की भेंट चढ़ जाए तो इसे जस्टिफाई कैसे किया जा सकता है। ऐसा पहली बार हुआ है जब पूरा का पूरा सत्र कुछ राजनीतिक दलों की सनक के चलते बाधित हुआ है। इस तरह के काम को कोई भी सही नहीं ठहरा सकता। मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि विपक्ष ने पूरे सत्र को बाधित करके बहुत बड़ी गलती की है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हुई मौतें, किसानों और पैगसस के मुद्दे पर सरकार को घेरा जा सकता था।
विपक्ष की तरफ से सरकार से मुश्किल सवाल पूछे जा सकते थे। ये सारे के सारे मुद्दे ऐसे हैं जिस पर सरकार को तर्कों से घेरे जाने की जरुरत थी। किसी भी सरकार के मंत्रियों के लिए संसद का सत्र इम्तिहान की तरह होता है। इस दौरान मंत्री के धैर्य और प्रतिभा की भी रोज परीक्षा होती है। क्योंकि उन्हें तथ्यों और तर्कों से लैस होकर सदन में जवाब देना पड़ता है। पूरी तैयारी करनी पड़ती है। लेकिन पूरे मानसून के दौरान विपक्ष ने तो कुछ पूछा ही नहीं। किसी बात पर बहस नहीं की तो मंत्रियों के लिए तो ये एक तरह से अच्छा हो गया लेकिन सवाल यह है कि क्या ये हमारे लोकतंत्र के लिए अच्छा है? इससे तो देश की जनता का नुकसान हुआ।
एक जमाना था जब अटल बिहारी वाजपेयी, राम मनोहर लोहिया, मधु लिमये जैसे नेता थे जो सरकार से तीखे सवाल पूछते थे। ठोस तथ्यों और तर्कों के साथ संसद में आते थे। बाद के दिनों में अरुण जेटली और सुषमा स्वराज जैसे नेता अपने तर्कों के तीरों से सरकार को आहत कर देते थे। अपने भाषणों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे। इनके तर्कों से सरकार को डिफेंसिव होना पड़ता था। अगर विपक्ष इस तरह ही परंपराओं को आगे बढ़ाता तो अच्छा होता और देश की जनता भी इसका स्वागत करती। लेकिन संसद सत्र के दौरान जो हुआ वो लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।
राज्यसभा में हंगामा हुआ ये पूरे देश ने देखा। मंत्री के हाथ से बयान की कॉपी लेकर किसने फाड़ी ये भी सबने देखा। लोगों ने देखा किसने चेयरमैन की तरफ कागज किसने फेंके। टेबल पर चढ़कर नारेबाजी किसने की और रूलबुक चेयरमैन की तरफ किसने फेंकी। ये सारी बात देश की जनता जानती है कि किस सांसद ने क्या किया क्योंकि इसे पूरे देश ने देखा है। लेकिन बुधवार को विरोधी दलों ने खुद को विक्टिम की तरह पेश किया और यह सवाल किया कि महिला सांसदों के सामने पुरुष मार्शल को क्यों रखा गया और पुरुषों के सामने महिला मर्शलों को क्यों रखा गया।
बुधवार शाम करीब 7 बजे जब राज्यसभा की बैठक हुई तो विपक्षी सांसदों ने जोर-जोर से सीटी बजानी शुरू कर दी। विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि पुरुष मार्शलों ने महिला सांसदों के साथ मारपीट की, जिससे सदन के अंदर गड़बड़ी हुई। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इसका जोरदार विरोध किया।
हैरानी की बात यह है कि खड़गे की तरफ से इस मुद्दे को उठाने के आधे घंटे पहले ही टीएमसी सदस्य ओ’ब्रायन ने ट्वीट कर कहा था: ‘राज्यसभा टीवी की सेंसरशिप बद से बदतर। मोदी-शाह की क्रूर सरकार अब राज्यसभा के अंदर सांसदों के विरोध को नाकाम करने के लिए ‘जेंडर शील्ड्स’ का इस्तेमाल कर रही है। महिला सांसदों के लिए पुरुष मार्शल। पुरुष सांसदों के सामने तैनात महिला मार्शल। (कुछ विपक्षी सांसद सबूत के लिए वीडियो शूट कर रहे हैं)।
अगर विरोधी दलों के नेताओं को ये लगता है कि उनके आरोप सही हैं तो चेयरमैन को कमेटी बनाकर सारे आरोपों की जांच करा लेनी चाहिए। किसने हंगामा किया, किसने गड़बड़ की, कौन टेबल पर चढ़ा, किसने कागज फेंके और मार्शल ने क्या किया उसकी भी जांच होनी चाहिए। अगर अगले सत्र से पहले जांच की रिपोर्ट आ जाए तो जो भी दोषी हो उसे सख्त सजा दी जाए। क्योंकि कम से कम इस तरह का असभ्य व्यवहार राज्यसभा में दोबारा देखने को नहीं मिले।
इस पूरे मामले में सबसे दुखद बात ये है कि विपक्ष ने यह सब एक सुनियोजित रणनीति के तहत किया। विपक्ष पहले से ही कह रहा था कि वह संसद को तबतक नहीं चलने देगा जबतक तीनों कृषि कानून वापस नहीं लिए जाते हैं। लेकिन यही विपक्ष उस संविधान संशोधन विधेयक पर बहस में हिस्सा लेता है जो राज्यों को अन्य पिछड़ा वर्ग सूची में जातियों को शामिल करने का अधिकार देता है। विपक्षी दलों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे अपने वोट बैंक पर कोई भी असर नहीं पड़ने देना चाहते। कोई भी दल पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण का विरोध नहीं कर सकता।
दिलचस्प बात यह है कि जहां सभी दलों ने एकजुट होकर इस बिल का समर्थन किया, वहीं कुछ इस पर राजनीति करने लगे। तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने इस विधेयक की टाइमिंग पर सवाल उठाया और सरकार की मंशा पर संदेह जताया। टीएमसी सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, सरकार विधेयक लाती है और इसे जल्दबाजी में पारित करवाती है, और फिर गलतियों को सुधारने के लिए संशोधन लाने की कोशिश करती है। उन्होंने कहा, बिल पास हो सकता है लेकिन पिछड़े वर्गों को अभी-भी इसका लाभ नहीं मिलेगा।’
ओबीसी बिल पास होने के तुरंत बाद सदन की अन्य कार्यवाही जैसे ही शुरू हुई, विपक्ष के सदस्य सदन के वेल में आ गए। इस दौरान हंगामा कर रहे विपक्ष के सांसदों ने कागज फाड़कर उछाल दिया। हंगामे के बीच बीमा व्यवसाय संशोधन विधेयक पारित करने के बाद सदन को स्थगित करना पड़ा।
सबसे बड़ा सवाल ये है कि पार्लियामेंट में हंगामे से किसका फायदा है? सरकार को तो कोई फायदा नहीं है। विपक्ष नारेबाजी करता है लेकिन अपनी बात जनता तक नहीं पहुंचा पाता इसलिए फायदा विपक्ष का भी नहीं है। फायदा मतदाताओं का भी नहीं है क्योंकि संसद में जनता के हित के मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पाती। अब ऐसे में सवाल ये है कि नुकसान किसका होता है?
सरकार तो हंगामे के बीच भी अपने बिल पास करवा लेती है इसलिए सरकार को तो खास फर्क नहीं पड़ता। सदन की कार्यवाही में बाधा डालने के बावजूद विपक्ष के सासंदों की हाजिरी बन जाती है। उन्हें हंगामा करने पर भी उतना ही भत्ता मिलता है इसलिए नुकसान उनका भी नहीं है। इसमें सबसे बड़ा नुकसान देश का और इसकी जनता का है।
संसद की एक मिनट की कार्यवाही का औसतन खर्च करीब ढ़ाई लाख रुपए आता है। हर घंटे की कार्यवाही पर 1.5 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। इस तरह से देखें तो विपक्ष के हंगामे के कारण सवा सौ करोड़ रुपए से ज्यादा बर्बाद हो गए। यह नुकसान केवल आर्थिक नहीं है बल्कि इससे हमारी लोकतांत्रिक छवि और परंपराओं को भी नुकसान पहुंचा है।
संसद हंगामे के लिए नहीं होती है बल्कि यह चर्चा के लिए है। अगर चर्चा की जगह हंगामा होगा तो ये लोकतन्त्र का गला घोंटने जैसा है। ये किसी कीमत पर नहीं होना चाहिए। इसके लिए ये तर्क भी जायज नहीं है कि पहले उन्होंने ऐसा किया था इसलिए अब हम ऐसा कर रहे हैं। अब लोकसभा के स्पीकर और राज्यसभा के चेयरमैन को कड़े नियम बनाने चाहिए और सख्ती से उनका पालन करवाना चाहिए। जो सांसद नियमों का पालन न करें, हंगामा करें तो उनके खिलाफ एक्शन भी होना चाहिए। क्योंकि हंगामे का ये सिलसिला रूकना जरूरी है।
Do not throttle democracy by disrupting Parliament
On Wednesday in Parliament, tradition lost and unruly behaviour won. In the face of continued disruptions from opposition, the entire monsoon session of Parliament was a washout, and both the houses had to be adjourned sine die two days before schedule. The session was to continue till August 13, but the way proceedings were going on, it was a sham to call it a proceeding. The opposition parties had their way, they did not allow debates and normal proceedings to take place, and they did.
All the opposition parties were united on this issue right from Day One, that is July 19, when the monsoon session began. Nobody wanted a recurrence of the hooliganism that took place inside Rajya Sabha on Tuesday, when some members stood on the reporters’ table and threw rule book at the chair after the House had been adjourned.
The Opposition can consider this as their ‘victory’, but it was a big ‘defeat’ for our hoary democratic traditions. The Opposition committed sacrilege inside the temple of democracy. The Chairman of Rajya Sabha M. Venkaiah Naidu broke down while reading out his statement condemning the act of sacrilege. Naidu said, he could not sleep on Tuesday night because of what the Opposition MPs did.
Naidu described Parliament as the temple of democracy and the well of the House as its ‘sanctum sanctorum’. He said, “I am distressed by the way the sacredness was destroyed yesterday. When some members sat on the table, some members climbed on the table of the House, perhaps to be more visible with such acts of sacrilege. …I have no words to convey my anguish and to condemn such acts as I spent a sleepless night, last night.”
Naidu then broke down. After a long pause, he continued, “ I struggle to find out the reason or provocation for forcing this august House to hit such a low yesterday….In our temples, devotees are allowed only up to the sanctum sanctorum and not beyond. Entering this sanctum sanctorum of the House in itself is an act of sacrilege and it has been happening as routine over the years.”
I know Venkaiah Naidu since decades. He is a simple, emotional person. He has always been in favour of upholding the dignity of Parliamentary democracy in line with our culture, traditions and public life. He had been conducting the proceedings of the Upper House with dignity and restraint. I felt said when I watched him with tears in his eyes.
Naidu tried his best to accommodate the wishes of the opposition, but the manner in which some of the MPs stood on the table, threw the rule book and shouted slogans, was demeaning. This is not parliamentary etiquette. Pandemonium did took place in Parliament in the past for a day or two, posters were shown, but after the initial uproar, the House always sat for detailed discussion and debate.
This was the first time that an entire session was disrupted and sacrificed at the altar of the whims of some political parties. Nobody can justify such an act. I personally think the opposition made a big mistake by disrupting the entire session. It could have utilized the time for cornering the government on issues like Covid deaths during the second wave, Pegasus and farmers’ demands.
The opposition could have put probing questions, arguments and facts to corner the treasury benches. For ministers, taking part in Parliament proceedings, armed with facts and arguments, is a daily test of their patience and talent. Since there were no debates, the ministers heaved a sigh of relief, but is it good for the health of our democracy? The nation is the loser.
In earlier days, stalwarts like Atal Bihari Vajpayee, Ram Manohar Lohia, Madhu Limaye used to come to Parliament armed with facts and cogent arguments, and put the government of the day on the mat. In later years, parliamentarians like Arun Jaitley and Sushma Swaraj used to enthral listeners with their speeches, hitting out at governments with their pointed arguments. If the opposition had carried on with this great tradition, it would have been welcomed by the people of India. Whatever happened inside Parliament during this session does not bode well for our democracy.
The entire nation witnessed who snatched away the written reply from the minister’s hands and tore it up. People watched who threw the torn papers towards the Chairman, who stood up on reporters’ table, shouted slogans and threw the rule book at the Chair. People know which MP did what. But on Wednesday, many of these MPs posed themselves as victims and questioned why male marshals have been placed in front of women MPs and female marshals placed in front of male MPs.
At around 7 pm on Wednesday, when the Rajya Sabha reconvened, opposition MPs started whistling loudly, and the Leader of Opposition Mallikarjun Kharge alleged that male marshals had ‘manhandled’ women MPs leading to disturbance inside the House. This was hotly contested by Parliamentary Affairs Minister Pralhad Joshi.
Surprisingly, half an hour before Kharge could raise the issue, TMC member O’Brien had already tweeted saying: “CENSORSHIP RSTV Bad to worse. Modi-Shah’s brutal government now using ‘GENDER SHIELDS’ to foil MP protests inside Rajya Sabha. Male marshals for women MPs. Female marshals posted in front of male MPs. (Few oppn MPs shooting videos for proof)”.
If the opposition leaders think their allegation is true, the Chairman should constitute a committee to go into these allegations and decide what provoked the members to cause disturbance. The committee should also go into who stood on the table, who threw the papers and rule book at the Chair, and who shouted slogans. Those found guilty must be punished. At least, the nation wants that such a crude form of protest should never be repeated in Parliament.
The saddest part in the entire episode is that the opposition did all this as part of a well-planned strategy. The opposition which had been saying that it would not allow Parliament to function unless the three farm bills are repealed, sat silent and even took part in a debate on the Constitution Amendment Bill which provides for states to include castes in Other Backward Classes List. The opposition parties did this only because they would never allow their vote banks to be affected adversely. No party can oppose reservation for backward classes.
The interesting part is that while all the parties unanimously supported the bill, some of them indulged in politicizing it. Trinamool Congress, Shiv Sena, Congress, and Samajwadi Party raised doubts about the motives of the government in bringing this bill now. TMC member Derek O’Brien said, government brings bill and gets it passed in haste, and then tries to bring amendments to rectify errors. He said, the bill may be passed but backward classes will still not get the benefits.
Soon after the OBC bill was passed, and other business taken up, opposition members again entered the well of the House, tore and threw away papers, and the House, after passing the Insurance Business amendment bill amidst pandemonium, had to be adjourned.
The moot question is: Who benefits from the disruptions in Parliament? The government does not benefit, the opposition shouts slogans, but fails to convey its feelings to the people, the voters do not benefit because issues of public interest and welfare are not debated. Then who is the ultimate loser?
The government manages to get its bills passed during uproar, the opposition members, despite disrupting the proceedings, get their daily allowances for attendance, they are not the losers too, the ultimate loser is the nation and the people.
One minute of proceedings in Parliament costs Rs 2.5 lakhs on average, every hour of proceedings cost Rs 1.5 crore. Thus nearly Rs 125 crore was lost due to disruptions inside Parliament. The loss is not only financial. The loss accrues to the image of our parliament, our democratic traditions.
Parliament is not a place for display of rowdy tactics. If there are disruptions and no debates, it will amount to throttling our democracy. This must not be allowed to happen, at any cost. Even the argument that the present ruling party had done the same earlier when it was in opposition, does not justify what is being done now.
The Lok Sabha Speaker and the Rajya Sabha Chairman must ensure that strict rules are framed, and applied stringently, irrespective of party or affiliation. Those who do not follow rules of the House must face the most stringent punishment. Such sacrileges must end.
सांप्रदायिक नफरत फैलाने वालों को गिरफ्तार कर दिल्ली पुलिस ने उठाया सही कदम
मंगलवार को एक अच्छी खबर आई जब दिल्ली पुलिस ने रविवार को जंतर-मंतर पर भड़काऊ और सांप्रदायिक नफरत फैलानेवाले नारे लगाने के आरोप में कार्यक्रम के आयोजक अश्विनी उपाध्याय सहित 6 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। हिंदुत्व समर्थक कार्यकर्ताओं द्वारा मुसलमानों के खिलाफ आपत्तिजनक नारे लगाने का वीडियो सामने आने के बाद लोगों में जबरदस्त आक्रोश पैदा हो गया था। दिल्ली पुलिस का कहना है कि इस मामले में और भी संदिग्धों की गिरफ्तारी की संभावना है। बीजेपी के पूर्व प्रवक्ता और वकील अश्विनी उपाध्याय को मंगलवार को उनके घर से गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी से पहले इन सभी 6 लोगों से पुलिस ने 6 घंटे से ज्यादा समय तक पूछताछ की।
पुलिस ने उनके मोबाइल फोन जब्त कर लिए और अब नारे लगाने वालों की वीडियो क्लिप खंगाल रही है। इसके साथ ही इनके मीडिया प्रोफाइल की भी जांच कर रही है क्योंकि ऐसी खबरें थीं कि उनमें से कुछ लोग नारेबाजी के दौरान फेसबुक लाइव कर रहे थे। पुलिस अब हिंदू रक्षक दल की पिंकी चौधरी और एक अन्य कार्यकर्ता उत्तम मलिक को गिरफ्तार करने के लिए छापे मार रही है।
सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में मैंने जंतर-मंतर पर हुए विरोध-प्रदर्शन की तस्वीरें दिखाई थीं। इस प्रदर्शन में ऐसे नारे लगे थे जिन्हें हम आपको सुना भी नहीं सकते। मैंने कहा था कि इस तरह के नारे लगाने वाले लोगों और मजहबी उन्माद फैलाने वालों के खिलाफ सख्त एक्शन होना चाहिए। अच्छी बात ये है कि दिल्ली पुलिस ने एक्शन लिया क्योंकि सांप्रदायिक नफरत फैलानेवाले तत्वों को लोकतंत्र में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
अश्विनी उपाध्याय के अलावा गिरफ्तार लोगों में प्रीत सिंह, दीपक सिंह, दीपक कुमार, विनोद शर्मा और विनीत वाजपेयी शामिल हैं। इन लोगों की गिरफ्तारी की खबर फैलते ही हिंदुत्व समर्थक कार्यकर्ता संसद मार्ग थाने के बाहर जमा हो गए और उनकी रिहाई की मांग करने लगे। दीपक सिंह हिंदू फोर्स नाम का एक संगठन चलाता है और विनोद शर्मा सुदर्शन वाहिनी का प्रमुख है। थाने के बाहर प्रदर्शन करने वाले लोग इन हिंदुत्ववादी संगठनों के समर्थक थे। इन लोगों ने पुलिस के खिलाफ नारेबाजी की। कुछ महिलाएं तो थाने के अंदर तक पहुंचने की कोशिश कर रही थीं लेकिन किसी तरह उन्हें पुलिस स्टेशन के बाहर रोका गया। हालात ऐसे थे कि इनलोगों को रोकने के लिए पैरामिलिट्री फोर्स तक बुलानी पड़ गई।
दिल्ली पुलिस के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने ठोस वीडियो सबूतों के आधार पर छह लोगों को गिरफ्तार किया है। मुझे इस बात में कोई शक नहीं है कि जिन लोगों ने जंतर-मंतर पर उल्टे-सीधे नारे लगाए और हिंदूवादी होने का दावा करते हैं, इन लोगों का हिंदू समाज से कोई लेना-देना नहीं है।
ये ऐसे छुटभैय्ये नेता हैं जो अपनी लीडरी चमका कर अपनी दुकान चलाना चाहते हैं। ये हिंदुओं और मुसलमानों की भावनाएं भड़काकर पब्लिसिटी पाना चाहते हैं। हिंदुत्व नफरत नहीं सिखाता। हिंदुत्व आपस में नहीं लड़ाता। हिंदू समाज तो ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के संदेश को मानता है। पूरी धरती पर रहने वाले लोगों को अपना परिवार मानता है इसीलिए जिस तरह के नारे लगाए गए और मुसलमानों के बारे में जिस तरह की अशोभनीय बातें कही गईं वो सिर्फ कानून की नज़रों में ही नहीं बल्कि एक सच्चे हिन्दू की दृष्टि से भी अपराध है।
मुझे खुशी है कि जब मैंने इस मुद्दे को उठाया तो आप सबने समर्थन किया और पुलिस ने एक्शन लिया। मुझे यकीन है कि दिल्ली पुलिस की पूछताछ में सारा सच सामने आएगा। नफरत फैलाने वाला कोई भी हो, चाहे वो किसी भी मजहब का सहारा ले, उसके खिलाफ एक्शन तो होना ही चाहिए क्योंकि कहीं तो लाइन खींचनी पड़ेगी। कहीं तो नफरत फैलाने वालों को रोकना पड़ेगा। अगर देश को बड़ा बनाना है तो समाज में भाईचारा, सद्भाव सबसे पहली जरूरत है। इसके बिना कैसे आगे बढ़ेंगे।
Delhi Police has taken a right step in arresting those spreading communal hate
There was good news on Tuesday when Delhi Police arrested six persons, including the organizer of the protest, Ashwini Upadhyay, on charges of communal sloganeering at Jantar Mantar on Sunday. Videos of pro-Hindutva activists shouting offensive slogans against Muslims caused tremendous outrage in the media. More suspects are likely to be arrested, Delhi police said. Upadhyay, a former BJP spokesperson and lawyer, was arrested from his home on Tuesday. The six persons were questioned for over six hours by police before they were placed under arrest.
Police have seized their mobile phones and are scanning video clips of the sloganeers. They are also scanning their media profiles because there were reports that some of them were chanting slogans live on Facebook. Police is now conducting raids to nab Pinki Chaudhary of Hindu Rakshak Dal and another activist Uttam Malik.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Monday night I had shown the video of these activists shouting hateful slogans and I had asked for immediate action against such persons on charge of inciting communal tension. The activists were shouting offensive slogans which cannot be shown to viewers. I am happy to note that Delhi Police took action because such incitement to communal hate must not be tolerated in a democracy.
Among those arrested apart from Upadhyay, are Preet Singh, Deepak Singh, Deepak Kumar, Vinod Sharma and Vineet Bajpai. Soon after news of their arrests spread, pro-Hindutva activists gathered outside Parliament Street police station and demanded their release. Deepak Singh runs an outfit called Hindu Force, and Vinod Sharma is the chief of Sudarshan Vahini. Those protesting outside the police station were supporters of these pro-Hindutva outfits. Police had to call in paramilitary force to stop these activists from forcibly entering the police station.
Delhi Police officials say they have arrested the six persons on the basis of concrete video evidences. I do not have an iota of doubt that those who claimed to be Hindutva activists and shouted slogans calling for death to Muslims, have nothing to do with Hindu society.
They are petty leaders trying to incite the feelings of both Hindus and Muslims, and thus gain a few minutes of fame in media. Hindutva does not propagate hate towards any religion. It calls for universal brotherhood through ‘Vasudhaiv Kutumbakam’ (the world is my family). Those who shouted hate slogans against Muslims not only committed a crime in the eyes of law, but also committed a sin against Hindu dharma.
I am confident that Delhi Police will bring out the truth after interrogating all these activists. Action must be taken against people who spread hate, whichever religion they belong to. We must draw a line somewhere and those spreading hate must be stopped. If we aspire to make India great, then fostering of brotherhood in our society is essential. We cannot progress unless we promote equality among people of different religions who live in India.
ओलंपिक: शाबाश भारत!
टोक्यो ओलंपिक में मेडल जीतकर इतिहास रचनेवाले खिलाड़ी सोमवार को जब देश वापस लौटे तो दिल्ली में उनका भव्य स्वागत हुआ। इन खिलाड़ियों को सरकार की ओर से अशोक होटल में आयोजित एक भव्य समारोह में सम्मानित किया गया। तीन केंद्रीय मंत्रियों किरेन रिजिजू, अनुराग ठाकुर और निसिथ प्रामाणिक ने इन खिलाड़ियों को बधाई दी और इन्हें सम्मानित किया।
इस अवसर पर खेल और सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा, ‘ओलंपिक के इन नायकों की यात्रा उनके आत्म-अनुशासन और खेल उत्कृष्टता की अविश्वसनीय कहानी है।.. टोक्यो 2020 में भारत ने पहली बार कई अभूतपूर्व सफलताएं अर्जित की। ओलंपिक में ‘टीम इंडिया’ की सफलता इस बात को दर्शाती है कि कैसे नया भारत दुनिया पर हावी होने की इच्छा और आकांक्षा रखता है, यहां तक कि खेल में भी। … ओलंपिक खेलों ने हमें दिखाया कि आत्म-अनुशासन और समर्पण के बल पर हम चैंपियन बन सकते हैं। खेल हमें एकजुट रखने का एक बड़ा माध्यम है, क्योंकि हमारे एथलीट देश के विभिन्न इलाकों से आते हैं, चाहे उत्तर हो या दक्षिण, पूरब हो या पश्चिम, चाहे गांव हो या शहर । “
इस समारोह में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली पुरुष हॉकी टीम के साथ ही चौथे स्थान पर रही महिला हॉकी टीम की खिलाड़ियों ने भी केक काटकर जश्न मनाया। पुरुष हॉकी टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह ने कहा- ‘बहुत अच्छा लगता है, मैं सरकार, स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI)और इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन (IOA) को हमारे क्वारंटीन के दौरान मदद करने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं। उन्होंने हमें पूरा सहयोग दिया।’
ओलंपिक के जैवलिन थ्रो (भाला फेंक स्पर्धा) में गोल्ड मेडल जीतनेवाले नीरज चोपड़ा इस पूरे समारोह में आकर्षण का केंद्र रहे। सभी की निगाहें नीरज चोपड़ा की ओर थीं। नीरज समेत अन्य मेडल विजेताओं और एथलीट्स को दिल्ली एयरपोर्ट से बाहर निकलने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। एयरपोर्ट के बाहर बड़ी तादाद में लोग अपन नायकों की एक झलक पाने को बेताब थे। एयरपोर्ट के अंदर और बाहर प्रशंसकों की भारी भीड़ के बीच से रास्ता बनाकर इन खिलाड़ियों को बाहर निकला गया। इस दौरान उत्साह से भरे प्रशंसकों ने जोर-जोर से नारे लगाए। कुछ लोग ढोल बाजे के साथ नाच रहे थे। एथलीट्स को बसों से होटल ले जाया गया जहां इनके लिए सम्मान समारोह का आयोजन किया गया था।
टोक्यो ओलंपिक में भारत के प्रदर्शन पर जश्न मनाना जायज़ है क्योंकि पहली बार देश ने ट्रैक और फील्ड में गोल्ड मेडल जीता। इतना ही नहीं इस ओलंपिक में अबतक सबसे ज्यादा मेडल बटोरकर लाने का रिकॉर्ड भी बनाया। खिलाड़ियों ने एक गोल्ड, दो सिल्वर और चार ब्रॉन्ज मेडल जीते। 41 साल के सूखे के बाद पुरुष हॉकी टीम को ओलंपिक में मेडल जीतने में सफलता मिली। नीरज चोपड़ा ने जैवलिन थ्रो (भाला फेंक) में गोल्ड, रवि कुमार दहिया ने कुश्ती और मीराबाई चानू ने वेटलिफ्टिंग में सिल्वर मेडल जीता जबकि लवलीना बोरगोहेन (बॉक्सिंग), बजरंग पुनिया (कुश्ती), पीवी सिंधु (बैडमिंटन) और पुरुष हॉकी टीम ने ब्रॉन्ज मेडल जीता।
गोल्ड मेडल विजेता नीरज चोपड़ा ने कहा कि जैवलिन थ्रो के बाद उस दिन उनके शरीर में बहुत दर्द था लेकिन जब भी वह गोल्ड मेडल को देखते तो अपना हर दर्द भूल जाते थे। नीरज ने कहा-‘हम सभी खिलाड़ी मध्यमवर्गीय परिवारों से आते हैं और हमारी तैयारियों के दौरान परिवारों का सपोर्ट जरूरी है।’ कांस्य पदक विजेता बॉक्सर और असम की रहनेवाली लवलीना बोरगोहेन ने कहा-‘मैं जानतीं हूं कि भारत के लोग बहुत खुश हैं लेकिन यहां वापस आने के बाद पहली बार इतना प्यार पाकर बहुत अच्छा लग रहा है। इस तरह के और मेडल जीतने की मैं पूरी कोशिश करूंगी।’
ओलंपिक में इस बार हम पहले से ज्यादा मेडल्स जीते। हमारे खिलाड़ियों ने पहले से बेहतर प्रदर्शन किया। मैं समझता हूं इसका सबसे बड़ा श्रेय खिलाडि़यों की प्रतिभा, मेहनत, उनका हौसला और उनके परिवार के त्याग को दिया जाना चाहिए। इस बार ओलंपिक में सात मेडल जीतकर हमारे खिलाड़ियों ने एथलेटिक्स, कुश्ती, हॉकी, बॉक्सिंग को एक नया जीवन दिया है। लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से इन खिलाड़ियों को जो सपोर्ट दिया गया उसे भी नहीं भूलना चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी ने हर खिलाड़ी के प्रदर्शन में व्यक्तिगत रुचि ली और उनकी हौसलाअफजाई की। लगातार खिलाड़ियों का ध्यान रखा। उनकी ट्रेनिंग का लगातार अपडेट लिया। पीएम मोदी ने टोक्यो रवाना से पहले हर खिलाड़ी से बात की। ओलंपिक के कठिन मुकाबलों के बाद फिर खिलाड़ियों से बात की और उनका हौसला बढ़ाया। इस बात का भी पूरा ख्याल रखा कि एक भी खिलाड़ी कोरोना वायरस से संक्रमित न हों। मैं ऐसे खिलाड़ियों को जानता हूं जिनकी ट्रेनिंग, इक्विपमेंट के लिए एक-एक खिलाड़ी पर दो करोड़ से पांच करोड़ रुपये खर्च किए गए।
एक ज़माना था जब हमारे खिलाड़ी शिकायत करते थे कि उन्हें रेलवे स्टेशन पर खड़ी कोच में ठहराया गया था। बड़ा दुख होता था जब खिलाडियों की तकफ से कभी खाने की शिकायत होती थी, कभी कोचिंग न होने की, तो कभी स्टेडियम उपलब्ध न होने की । लेकिन इस बार एक भी खिलाड़ी ने ऐसी कोई शिकायत नहीं की। चाहे कोचिंग हो, ट्रेनिंग, ट्रैवल या फिर भोजन, कम से कम इन बातों को लेकर खिलाड़ियों को कोई कमी महसूस नहीं होने दी गई। सरकार ने मदद की, सिस्टम ने हौसला दिया और इसका असर हुआ। हमारे खिलाड़ियों ने गजब कर दिया।
छोटे-छोटे कस्बों और दूर-दराज के गांवों से निकलकर आईं गरीब घरों की लड़कियां ओलंपिक में मेडल जीत कर लौटीं। छोटे-छोटे शहरों से और गांवों से आए खिलाड़ियों ने मेडल जीते। इसका सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि मेडल जीतने वाले खिलाड़ी दूसरों को प्रोत्साहित करेंगे, मौजूदा और आनेवाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेंगे। अब हर राज्य, हर शहर और हर गांव से खिलाड़ी निकलेंगे। अब तक सिर्फ क्रिकेट का ग्लैमर था लेकिन अब बॉक्सिंग, हॉकी, कुश्ती का ग्लैमर होगा और एथलेटिक्स में लोग आगे आएंगे। क्योंकि 135 करोड़ का देश सिर्फ सात मेडल से संतोष नहीं कर सकता। मुझे उम्मीद है कि 2024 के पेरिस ओलंपिक में हमारा प्रदर्शन और भी बेहतर होगा।
Olympic: Well Done India !
It was heartening to watch our Olympic medal winners returning home triumphantly to a warm welcome in Delhi on Monday. All these medal winners were felicitated by the government at a grand ceremony in Ashoka Hotel. Three central ministers Kiren Rijiju, Anurag Thakur and Nishith Pramanik greeted the Olympic players at the ceremony.
Sports and Information & Broadcasting Minister Anurag Thakur said, the journey of these Olympic heroes is an “incredible story of resilience and sporting excellence”. Thakur said, “Tokyo 2020 was an Olympic Games of many firsts for India. The success of Team India at the Olympics is a reflection of how New India desires and aspires to dominate the world, even in sports. Sports is a great unifier as our athletes come from villages and cities, north to south, from east to west.”
Players of both men’s hockey team, that won the Olympic bronze, and the women’s hockey team, that stood fourth, cut cakes before the ceremony as part of celebrations. Manpreet Singh, the men’s hockey team captain, said, “It feels great, I would like to thank the government, Sports Authority of India and Indian Olympic Association for helping us during our quarantine time. They provided us all the support.”
The cynosure of all eyes was Neeraj Chopra, who won the Olympic gold in javelin throw. He, along with other medal winners and athletes, had a tough time coming out of Delhi airport. Supporters jostled to have a glimpse of their medal-winning heroes. The fans, many of them euphoric, cheered loudly as the players made their way through a huge crowd, both inside and outside the airport. Many of them danced, sang and screamed while welcoming the Olympic heroes. The athletes were then whisked away in buses to the hotel, where the felicitation ceremony was held.
India’s performance in Tokyo Olympics called for a celebration because for the first time, our country won a gold medal in track and field, and it won the highest tally of one gold, two silver and four bronze medals in Olympics. Our hockey team won an Olympic medal after a drought of 41 years. While Neeraj Chopra won the gold in javelin, Ravi Kumar Dahiya and Mirabai Chanu won silver medals in wrestling and weightlifting respectively, Lovlina Borgohain (boxing), Bajrang Punia (wrestling), P V Sindhu (badminton) and men’s hockey team won bronze medals.
Gold medallist Neeraj Chopra said, he endured immense pain after the tough javelin throw contest but he forgets his pain whenever he looks at his gold medal. “We all come from middle class families and for us, during preparations, support of our families is essential”, said Chopra at the ceremony. Lovlina Borgohain, the bronze winning boxer from Assam, said, “I know India is very happy, but after returning here, to get this sort of love first hand, it feels really nice. I will try to do my best to win more such medals.”
We have won the highest tally of Olympic medals this time, and the entire credit goes to the talent, labour and dedication of each players, and of course, the sacrifices done by their families. By winning Olympic medals, our players have given a new life filled with fresh hopes and inspirations to hockey, boxing, wrestling, weightlifting and athletics. We should not forget the support provided by the governments, both at the Centre and states, to these players.
Prime Minister Narendra Modi took personal interest in the performance of each player. He spoke to each of them, when they had left for Tokyo, and spoke to them again after the tough contests. He took care to ensure that not a single player was infected with Coronavirus, and he took regular updates about their training. I know of players on whom the government spent Rs two to five crores on their coaching, training and equipment.
There was a time when our players used to complain that they were accommodated in railway coaches at station sidings. They used to complain about improper diet, lack of coaches, and availability of stadiums. This time, there was not a single complaint from any player about diet, training, accommodation, coaching or travel. The government did its part, the system provided all assistance, and the players did wonders.
Girls hailing from poor families in far-off villages returned with Olympic medals, boys and girls from small towns, hailing from middle class families, brought medals. Their victories will inspire present and future generations to achieve more laurels. Meritorious players will now emerge from every state, every town and village to bring fame for India.
Till now, only cricket was the glamour that attracted youths, but now sports like hockey, boxing and wrestling will inspire youths to show their might. A nation of 1.35 billion Indians cannot remain content with only seven medals. I look forward to an amazing performance in 2024 Paris Olympics.
हॉकी में ब्रॉन्ज से चूकने वाली बेटियों को पीएम मोदी ने कैसे दिया दिलासा
इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया पर लोगों ने शुक्रवार को पीएम मोदी का एक ऐसा जेस्चर देखा जिसकी उम्मीद एक स्टेटसमैन से की जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस जेस्चर से पता चलता है कि वह वास्तव में बाकी लोगों से अलग हैं। टोक्यो ओलंपिक में भारत और ब्रिटेन के बीच महिला हॉकी में ब्रॉन्ज मेडल के लिए मुकाबला हो रहा था। पूरे देश को लड़कियों से ब्रॉन्ज मेडल जीतने की उम्मीद थी। हमारी टीम ने आखिरी मिनट तक बहुत बढ़िया खेला लेकिन वह 3-4 के अंतर से ब्रॉन्ज मेडल से चूक गई। हमारी टीम भले ही यह मुकाबला नहीं जीत सकी और मेडल हासिल नहीं कर पाई, लेकिन इस टीम ने पूरे देश का दिल जीत लिया।
मैच खत्म होने के बाद हार से निराश होकर वे टर्फ पर ही बैठकर रोने लगीं। इसके तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फोन आ गया। यह वीडियो कॉल थी और सामने पीएम मोदी थे। इन लड़कियों के पास शब्द नहीं थे। प्रधानमंत्री मोदी जब फोन पर उनके प्रदर्शन की तारीफ कर उनका हौंसला बढ़ा रहे थे, उस वक्त भी ज्यादतर लड़कियां रो रही थीं। प्रधानमंत्री ने कहा, आप सब निराश क्यों हैं? आपलोग रोना बंद कीजिए। पूरे देश को आप पर गर्व है। इतने वर्षों के बाद भारत के खेलों की पहचान हॉकी का पुनर्जन्म हुआ है।’
प्रधानमंत्री मोदी इन बेटियों के साथ बिल्कुल एक पिता की तरह बात कर रहे थे। प्रधानमंत्री का ये रुख देखकर इन खिलाड़ियों की आंखों में आंसू आ गए और गला रूंधने लगा। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘चिंता मत करिए, पूरा देश आपके साथ खड़ा है। आपने जो मेहनत की है, जो पसीना बहाया है, भले ही मेडल ना ला सका हो.. लेकिन ये मेहनत और आपका जज्बा देश की करोड़ों बेटियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है।’ देखते ही देखते ये वीडियो पूरे देश में वायरल हो गया।
मैं चाहूंगा कि प्रधानमंत्री मोदी और महिला हॉकी टीम की खिलाड़ियों की ये पूरी बातचीत पूरे देश को सुननी चाहिए। मुझे पूरा विश्वास है कि टोक्यो ओलंपिक में महिला हॉकी खिलाड़ियों का शानदार प्रदर्शन हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक नजीर बनेगा। किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि हमारी लड़कियां क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया जैसी विश्वस्तरीय टीम को हरा देंगी, लेकिन इन लड़कियों ने वो कर दिखाया जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। ओलंपिक इतिहास में पहली बार भारत की महिला हॉकी टीम सेमीफाइनल में पहुंची। भले ही इन्हें मेडल जीतने में कामयाबी नहीं मिली लेकिन इनकी यह कोशिश आनेवाले समय में हमारे युवाओं को प्रेरित करती रहेंगी।
टीम की खिलाड़ियों से बात करते हुए पीएम मोदी ने नवनीत की आंख के ऊपर चोट के बारे में पूछा। उन्होंने पूछा कि नवनीत को ज्यादा चोट तो नहीं लगी। किसी ने उम्मीद नहीं की थी कि कोई प्रधानमंत्री खिलाड़ियों की इतनी परवाह करेगा। मोदी ने यह भी नोट किया कि कैसे सलीमा टेटे मैच के दौरान गेंद लेकर तेजी से दौड़ रही थीं। वंदना ने कितनी मेहनत की, ये भी उन्हें पता था। सबसे बड़ी बात ये है कि हारी हुई टीम से कौन बात करता है? ये बदले हुए भारत की तस्वीर है जहां हार जीत का नहीं, प्रतिभा का सम्मान किया जाता है। एथलीटों के परिश्रम का सम्मान किया जाता है। मोदी ने एक मिसाल कायम की है। सिर्फ मोदी ने नहीं बल्कि उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी महिला हॉकी टीम से बात की। ओडिशा सरकार ने पुरुष और महिला दोनों हॉकी टीमों को स्पॉन्सर किया था और सभी खिलाड़ियों के भोजन, प्रशिक्षण और अन्य खर्चे उठाए। इसलिए जब नवीन पटनायक ने फोन किया तो सभी खिलाड़ियों ने उन्हें धन्यवाद कहा।
अफगानिस्तान में जंग
जिस समय प्रधानमंत्री मोदी हमारे हॉकी खिलाड़ियों से बात कर रहे थे, अफगानिस्तान से तालिबान और अफगान डिफेंस फोर्स के बीच भीषण लड़ाई की खबरें आ रही थीं। तालिबान ने ईरान की सीमा से लगे निमरोज की प्रांतीय राजधानी जरांज पर कब्जा कर लिया है। भारत के सीमा सड़क संगठन (BRO) ने 150 मिलियन डॉलर (लगभग 1117 करोड़ रुपये) की लागत से अफगानिस्तान में 218 किलोमीटर लंबे जरांज-डेलाराम हाईवे का निर्माण किया था। यह हाईवे एक ऐसे हाईवे में जाकर मिला है जो दक्षिण में कंधार, पूर्व में गजनी और काबुल, उत्तर में मजार-ए-शरीफ और पश्चिम में हेरात को जोड़ता है। रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण यह हाईवे ईरान के चाबहार बंदरगाह से भी जुड़ा है, जहां से भारत के पास एक ऐसा वैकल्पिक सड़क मार्ग था जिसके जरिए पाकिस्तान की सीमा में दाखिल हुए बिना अफगानिस्तान तक पहुंच सकता था। भारत ने कोविड महामारी के दौरान चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान में 75,000 टन गेहूं भेजा था।
अफगानिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत ने शुक्रवार को कहा कि पिछले एक महीने के दौरान तालिबान द्वारा 1,000 से अधिक नागरिकों की हत्या के साथ ही जंग अब एक बेहद ही खतरनाक दौर में चली गई है। शुक्रवार को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में एक हाई-प्रोफाइल मर्डर हुआ। तालिबान के लड़ाकों ने अफगान सरकार के शीर्ष मीडिया प्रवक्ता दावा खान मेनापाल को काबुल के पास उनकी कार के अंदर गोली मार दी। मेनापाल उस समय नमाज़ अदा करने के लिए मस्जिद जा रहे थे।
शुक्रवार को इंडिया टीवी के डिफेंस एडिटर मनीष प्रसाद कैमरामैन बलराम यादव के साथ अफगान एयरफोर्स के हेलीकॉप्टर से मजार-ए-शरीफ पहुंचे। उतरते ही उन्होंने देखा कि वहां फायरिंग हो रही है। मजार-ए-शरीफ, अफगानिस्तान का चौथा सबसे बड़ा शहर है और उज्बेकिस्तान बॉर्डर से केवल 55 किमी दूर है। यह ताजिकिस्तान की सीमा के भी करीब है। अफगान सेना के कमांडरों ने मनीष को बताया कि जिस जगह पर जंग हो रही है वह स्ट्रैटजिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण जगह है और अगर वहां तालिबान का कब्जा हो गया तो वह मज़ार-ए-शरीफ पर पहुंच जाएगा। मजार-ए-शरीफ पर कब्जा करने के बाद तालिबान आसानी से काबुल तक पहुंच सकता है।
जब मनीष कैमरे पर रिपोर्टिंग कर रहे थे तो दूर से फायरिंग की आवाजें भी आ रही थीं। मैं मनीष और बलराम की हिम्मत की तारीफ करना चाहता हूं, जो युद्ध क्षेत्र से पल-पल की अपडेट भेजते रहे हैं। मैं उनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना करता हूं और मैंने उनसे कहा है कि रिपोर्टिंग के दौरान अनावश्यक जोखिम न लें। तालिबान की नीति और नीयत ठीक नहीं है। उन्होंने पिछले एक महीने में कई सोशल मीडिया ऐक्टिविस्ट्स, फोटोग्राफरों और रिपोर्टरों की जान ली है और बेशर्मी ने इन हत्याओं का श्रेय लिया है। जब तक मनीष और बलराम युद्ध क्षेत्र में हैं, मैं आपको उनके द्वारा भेजे गए पल-पल के अपडेट दिखाता रहूंगा।
इस बीच हेलमंड प्रोविंस की गलियों तक में गोलियां चल रही हैं और भीषण जंग जारी है। तालिबान ने यहां के 10 में से 9 जिलों पर कब्जा कर लिया है। शहर अभी भी अफगान सेना के नियंत्रण में है और पिछले 8 दिनों से जंग जारी है। सैकड़ों महिलाएं अपने बच्चों को लेकर हेलमंड से कंधार की ओर भाग गई हैं और तालिबान के हमलों से खुद को बचाने के लिए गांवों में छिपने को मजबूर हैं। यहां चल रही जंग में अब तक तालिबान के 100 से ज्यादा लड़ाके मारे जा चुके हैं।
गोगरा हाईट्स से पीछे हटे भारत और चीन
शुक्रवार को लद्दाख से एक अच्छी खबर आई। दोनों सेनाओं के कोर कमांडरों के बीच 12 दौर की बातचीत के बाद अंतत: भारत और चीन दोनों की फौज 4 और 5 अगस्त को गोगरा हाइट्स से शांतिपूर्वक वापस अपनी पुरानी पोजिशन पर लौट आई। इस संबंध में एक बयान जारी किया गया। असल में सेना के पीछे हटने के कारण लगभग 5 किलोमीटर लंबे नो-पेट्रोलिंग बफर जोन का निर्माण हुआ है। दोनों तरफ के अस्थायी ढांचे को ध्वस्त कर दिया गया है और दोनों तरफ के सैनिक अपनी पुरानी पोस्ट पर लौट आए हैं। इस बार पेट्रोलिंग प्वाइंट 17A यानी ईस्टर्न लद्दाख की गोगरा पोस्ट से चीन की सेना के जवान पीछे हटे हैं।भारत की फौज ने ग्राउंड पर इसकी पुष्टि कर ली है। फरवरी के बाद दोनों देशों के सैनिकों के पीछे हटने की ये दूसरी घटना है। फरवरी में पैंगोंग लेक के उत्तरी और दक्षिणी किनारों पर दोनों देशों की सेना पीछे हटी थी।
आपको बता दूं कि इस वक्त भी गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स और डेपसांग में अभी भी दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। इस मुद्दे पर आगे के दौर में बातचीत होगी। ईस्टर्न लद्दाख में और LAC के वेस्टर्न सेक्टर में फिलहाल भारत और चीन के 50 हजार से 60 हजार जवान मौजूद हैं। गलवान घाटी में जहां पिछले साल हिंसक झड़प हुई थी वहां अब दोनों देशों की तरफ से केवल 30 सैनिकों को तैनात रखा गया है। वहीं दूसरी लेयर में दोनों तरफ से 50 जवान तैनात हैं।
गोगरा हाइट्स से सैनिकों को पीछे हटाना एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन हमें अपनी आंखें खुली रखनी होंगी। लेकिन ये सिलसिला अभी लंबा चलेगा। चीन की हमेशा से आदत रही है कि वो अपने दोस्तों और दुश्मनों के धैर्य की परीक्षा लेता रहता है। अगर कोई डर जाए तो उसे और आंखें दिखाता है और कोई उसे आंखें दिखाए तो पीछे भी हट जाता है। पिछले दो वर्षों के दौरान चीन के साथ सीमा पर टकराव में भारत एक पल के लिए भी नहीं झुका। सरहद पर फौज की तैनाती और मजबूत की, टैंकों और लड़ाकू विमानों को तैनात किया। इस दौरान भारत ने लद्दाख में अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को और मजबूत किया। सरहद पर हमारी फौज की तैयारी और ताकत चीन से जरा भी कम नहीं है।
चीन गोगरा में पीछे हटने को तैयार हुआ है तो इसके लिए कई लेवल पर काम हुआ। चीन से डिप्लोमेटिक चैनल के जरिए भी बात हुई। हाल ही में ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में SCO (शंघाई सहयोग संगठन) की बैठक में भारत और चीन दोनों के रक्षा मंत्री मौजूद थे। इस बातचीत से इतर दोनों देशों के बीच लद्दाख पर भी चर्चा हुई। इस बातचीत का असर कोर कमांडर्स की मीटिंग में दिखाई दिया। लेकिन ये मानकर चलना चाहिए कि चीन से झगड़े आसानी से या जल्दी नहीं सुलझते हैं। चीन का भारत ही नहीं, बल्कि कई एशियाई देशों के साथ सीमा विवाद हैं और सब जगह ये झगड़े लंबे चलते हैं। भारत के साथ भी चीन का टकराव कोई नई बात नहीं है, काफी वक्त से चल रहा है। चीन से डील करते वक्त हर कदम संभालकर रखना पड़ता है। एक पुरानी कहावत है कि दूध का जला छांछ को भी फूंक-फूंककर पीता है।
How Modi consoled the girls who narrowly missed the hockey bronze
Viewers of electronic and social media on Friday witnessed a gesture that was expected from a statesman. Such a gesture from Prime Minister Narendra Modi shows he is indeed different from the rest. The entire nation of 1.3 billion was glued to TV sets watching the Olympic hockey bronze play-off match between India and Britain and people were expecting our brave girls to win. Our team played very well till the last minute but they narrowly missed out on the medal losing 3-4. They may have lost the medal, but they have won the heart of every Indian.
The crestfallen girls sat on the turf weeping after the match was over. Soon afterwards, the Prime Minister of India was on the phone with a video call. The girls were at a loss for words. Most of them were weeping, even when Modi was praising their performance on the phone. “Why are you all disheartened? Please, everyone, stop crying. The entire country is proud of you. After so many years, hockey, which had been India’s identity in sports, has been reborn”, said the Prime Minister.
Modi was behaving like a doting father trying to console his daughters. He told them, “Do not worry, the entire nation is with you. They support you. You have shed your sweat, you toiled very hard, even if you may have not won the medal, your toil and dedication will inspire millions of daughters.” Soon, the video went viral throughout India like a raging fire.
I would like every Indian to watch this video and hear what the PM told the hockey players. I am fully confident that the sterling performance of our women hockey players at Tokyo Olympics will set an example for our future generations. Nobody expected our girls to beat a world class team like Australia in the quarter-final, but they did the unthinkable. For the first time in Olympic history, Indian women reached the semi-final. They may not have won the medal, but their efforts will inspire our youngsters in the years to come.
While speaking to the girls, Modi noticed a bruise above Navneet’s eye. He inquired about the injury in details. Nobody expected a Prime Minister to take such a minute care about the players. Modi also noted how Salima Tete sped fast with the ball during the match. He knew how much toil Vandana put in while guarding the goal post. Who, after all, speaks to players when they lose? This is a picture of a changing India, where the toil of athletes is respected, and not wins or losses. Modi has set an example. Odisha chief minister Naveen Patnaik also spoke to the players. Odisha government had sponsored both the men and women hockey teams and had borne the cost of food, training and accommodation of all players. All the hockey players thanked Patnaik for his help.
War in Afghanistan
At a time when our prime minister was busy speaking to our hockey players, reports were coming in from Afghanistan about fierce fighting going on between Taliban and the Afghan defence force. Taliban has occupied Zaranj, the provincial capital of Nimroz, bordering Iran. It was India’s Border Roads Organization, that built the 218 kilometre long Zaranj-Delaram highway in Afghanistan at a cost of $150 million. This highway connects to a garland highway that connects Kandahar in the south, Ghazni and Kabul in the east, Mazar-i-Sharif in the north and Herat in the west. This strategic highway is also connected to Iran’s Chabahar port, from where India had an alternative land route to Afghanistan bypassing Pakistan. India had sent 75,000 tonnes of wheat to Afghanistan from Chabahar port during the Covid pandemic.
On Friday, the UN Special Envoy on Afghanistan said that the war has now entered a deadlier phase with more than 1,000 civilians killed by the Taliban during the last one month. In a high-profile assassination on Friday, the top media spokesperson of Afghan government Dawa Khan Menapal was shot by Taliban gunmen inside his car near Kabul, when he was going to a mosque to offer prayers.
On Friday, India TV defence editor Manish Prasad, along with cameraman Balram Yadav, reached Mazar-e-Sharif in an Afghan Air Force helicopter. Soon after they landed, they noticed firing going on. Mazar-e-Sharif, the fourth largest city of Afghanistan, in only 55 km away from Uzbekistan border. It is also close to the Tajikistan border. Afghan army commanders told Manish that fighting was going on at a strategic point, which, if captured by Taliban, may provide them easy access to Mazar-e-Sharif. Once Mazar-e-Sharif falls, the Taliban can easily march towards Kabul.
While Manish was reporting on camera, there were sounds of firing going on in the distance. I admire the courage of Manish and Balram, who have been sending regular updates from the war zone. I pray for their safety and I have asked them not to take unnecessary risks during reporting. The Taliban’s intentions are violent. They have killed many social media activists, photographers and reports in the past one month, and have shamelessly taken credit for these killings. Till the time Manish and Balram are there in the war zone, I will continue to show you their regular updates.
Meanwhile, fierce door-to-door fighting is also going on in Helmand province, where Taliban has captured nine out of ten districts. The Afghan army is in control of the city, and fighting is going on since last eight days. Hundreds of women with children have fled the city towards Kandahar and are hiding in villages to save themselves from Taliban attacks. More than 100 Taliban fighters have been killed in fighting that is still raging.
India, China disengagement in Gogra Heights
On Friday, a piece of good news came from Ladakh. After 12 rounds of talks between corps commanders of both armies, both India and China disengaged from Gogra Heights on August 4 and 5 quietly, and this was announced in a statement on Friday. In effect, this disengagement has led to the creation of a nearly 5 kilometre long no-patrolling buffer zone. Temporary structures on both sides have been dismantled and the troops on both sides have returned to their permanent posts. This physically verified pullback took place at patrolling point 17A, which is near India’s crucial Gogra post. This is the second disengagement of both troops since February, when they pulled back to their respective positions on the north and southern bank of Pangong lake.
The face-offs between both armies however continue at Gogra-Hot Springs and Depsang Bulge, about which talks will take place later. At present, 50 to 60 thousands troops from both sides have been deployed in Ladakh which falls in the western sector of Line of Actual Control. In Galwan Valley, which witnessed bloody conflict in May last year, only 30 soldiers from both sides have now been posted, to keep a watch. In the second layer, there are 50 soldiers each from both sides.
The disengagement at Gogra Heights is a welcome development, but we, in India, will have to keep our eyes open. The Chinese have this peculiar habit of testing the patience of both friends and enemies. If the other side is weak, they pile on the pressure, and if the other side flexes its muscles, the Chinese back out. In the border faceoff with China during the last two years, India never flinched for a moment, and promptly engaged in mirror deployment of troops, tanks and fighter planes. India developed its infrastructure in Ladakh during this period, and its vast troop and armour deployment matched the preparations made by China.
The disengagement at Gogra was the result of continuous diplomatic efforts that went on between both countries. The foreign ministers of India and China discussed Ladakh on the sidelines of SCO (Shanghai Cooperation Organization) meeting in Dushanbe, capital of Tazikistan. The back channel discussions showed results at the corps commander talks held in Moldo, Ladakh. But, one must take note: Conflicts with China are never solved speedily or easily. China has border disputes with not only India, but several Asian countries. While dealing with China, Indian diplomats and strategists try to be very, very careful. There is an old Hindi saying, “Doodh ka jalaa, chhaach phoonk phoonk kar peeta hai” (which literally means, If you burn your lips while sipping hot milk, you blow air even while drinking curd).
ओलंपिक में हॉकी का ब्रॉन्ज मेडल जीतने पर हमें जश्न क्यों मनाना चाहिए
शुक्रवार की सुबह 100 करोड़ से ज्यादा देशवासियों की नजरें टीवी पर गड़ी हुई थीं। ये लोग ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल के लिए भारतीय महिला हॉकी टीम और ग्रेट ब्रिटेन के मुकाबले को देख रहे थे। मैच की शुरुआत में 2 गोल से पिछड़ने के बाद देश की बेटियों ने शानदार वापसी करते हुए ब्रिटिश टीम पर 3-2 की बढ़त बना ली। लेकिन अंत में 3-4 से यह मैच उनके हाथों से फिसल गया और वे कांस्य पदक हासिल करने से चूक गईं।
अगर देश की इन बेटियों ने इस मैच को जीत लिया होता तो यह एक ऐतिहासिक क्षण होता जब देश की पुरुष और महिला, दोनों हॉकी टीमें ब्रॉन्ज मेडल के साथ स्वदेश लौटतीं। अफसोस की बात है कि ऐसा नहीं हुआ, लेकिन मैदान में इन बेटियों ने अपने धैर्य और दृढ़ संकल्प से 100 करोड़ से ज्यादा देशवासियों का दिल जीत लिया। वे मैच को बराबरी पर लाने के लिए आखिरी मिनट तक लड़ीं।
इससे पहले गुरुवार को टोक्यो ओलंपिक में 2-2 बार राष्ट्रगान की गूंज सुनाई दी। पहले, जब पुरुष हॉकी टीम ने जर्मनी को हराकर ब्रॉन्ज मेडल पदक जीता और दूसरी बार जब पहलवान रवि कुमार दहिया को अपने रूसी प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ कड़े मुकाबले में सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा। हॉकी में 41 साल से मेडल का इंतजार था। तिरंगे के फहराने का इंतजार था, लेकिन इस जीत से सीना गर्व से चौड़ा हो गया। 1980 के मॉस्को ओलंपिक में भारत को हॉकी का गोल्ड मेडल जीतते हुए देखनेवाले कई लोगों की आंखों में खुशी के आंसू थे।
एक जमाने में भारत दुनिया में हॉकी का बेताज बादशाह था। हमारे हॉकी खिलाड़ियों को दुनिया जादूगर कहती थी। मेजर ध्यानचंद जैसे खिलाड़ियों की हॉकी स्टिक में जैसे जादू हुआ करता था। लेकिन समय के साथ-साथ खेल के नियम भी बदल गए हैं। 2008 में भारतीय हॉकी टीम को राइट ऑफ कर दिया था क्योंकि तब हमारी टीम ओलंपिक के लिए क्वॉलीफाई नहीं कर पाई थी। 4 साल बाद 2012 में यह टीम बारहवें नंबर पर रही थी। 2016 में हम क्वॉर्टर फाइनल में हारे थे। तब ऐसा लगता था कि भारतीय हॉकी अब अपना खोया हुआ गौरव कभी हासिल नहीं कर पाएगी। लेकिन इस बार हमारी टीम ने हॉकी में जान फूंक दी। ग्रेट ब्रिटेन को हराकर टीम ने सेमीफाइनल में प्रवेश किया था। 2 दिन पहले सेमीफाइनल मैच हमें बेल्जियम से हार का सामना करना पड़ा। फिर भी हमने ब्रॉन्ज मेडल के लिए अपनी उम्मीदें नहीं छोड़ी थी।
मैच की शुरुआत में ही जर्मनी ने गोल कर दिया, थोड़ा झटका लगा लेकिन 10 मिनट के बाद भारत ने बराबरी कर ली। कुछ ही देर में जर्मनी ने 2 गोल और दाग दिए तो उम्मीद टूटती सी दिखीं, लेकिन हमारी टीम ने हार नहीं मानी। भारत ने बाउंसबैक करते हुए एक के बाद एक 4 गोल कर दिए और 5-3 से आगे हो गए। जर्मनी ने एक और गोल किया और स्कोर 5-4 हो गया। हम फिर भी आगे थे। लेकिन सांसें तब थम गईं जब आखिरी के 6 सेकेन्ड बचे थे और जर्मनी को पेनल्टी कॉर्नर मिल गया। जर्मन खिलाड़ियों ने हिट किया लेकिन बॉल और गोलपोस्ट के बीच गोलकीपर श्रीजेश आ गए और इतिहास रच दिया। 41 साल के बाद हॉकी की टीम को ओलंपिक के पोडियम पर खड़े होने का मौका मिला। इससे भारतीय हॉकी में एक नए स्वर्ण युग की वापसी की उम्मीद जाग गई है।
मैच के बाद का सबसे यादगार दृश्य वह था जिसमें श्रीजेश गोल पोस्ट के ऊपर बैठकर राहत की सांस लेते और मुस्कुराते हुए दिखाई दिए। फिर उन्होंने ट्वीट किया: ‘अब मुझे मुस्कुराने दीजिए।’ एक दूसरी तस्वीर में श्रीजेश ओलंपिक के ब्रॉन्ज मेडल को अपने दांतों से दबाते हुए दिख रहे हैं और उन्होंने ट्वीट किया: ‘हां, इसका स्वाद नमकीन है। हां, मुझे याद है यह पिछले 21 सालों का मेरा पसीना है।’ आप सोचकर देखिए कि यह हॉकी खिलाड़ी पिछले 21 सालों से ओलंपिक मेडल का इंतजार कर रहा था।
श्रीजेश ने गुरुवार को 130 करोड़ भारतीयों को मुस्कुराने का मौका दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया: ‘शाबाश श्रीजेश! आपके बचाव ने भारत के लिए पदक अर्जित करने में बड़ी भूमिका निभाई। आपको बधाई और शुभकामनाएं।’ उन्होंने जवाब दिया: ‘बहुत बहुत धन्यवाद सर।’
यह श्रीजेश का तीसरा ओलंपिक था। श्रीजेश ने अपने हॉकी करियर में करीब-करीब सारे मेडल जीते, लेकिन उनके घर में ओलंपिक मेडल की कमी थी। उनके जीवन की महत्वाकांक्षा अब पूरी हो गई है। वह घर पर बोलकर गए थे कि इस बार जान लगा देंगे, लेकिन मेडल जीतकर ही लौटेंगे, इसलिए परिवार को भी उम्मीदें थी। गुरुवर की सुबह केरल के एर्नाकुलम में श्रीजेश के घर में परिवार के सभी लोग नहा-धोकर, पूजा-पाठ करके टीवी के सामने बैठ गए थे। मैच के आखिरी पलों में टेंशन इतनी ज्यादा थी कि श्रीजेश की मां टीवी के सामने से उठ गईं। वह आखिरी 6 सेकंड का खेल नहीं देख पाईं जब जर्मनी को पेनल्टी कॉर्नर मिला था, लेकिन जैसे ही श्रीजेश ने गोल बचाया और भारत ने मैच जीता, परिवार में जीत का जश्न शुरू हो गया।
श्रीजेश भारतीय टीम के सबसे अनुभवी खिलाड़ी हैं। वह पिछले 15 साल से भारतीय टीम का हिस्सा हैं। 2011 में एशियन चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में भारत को जीत दिलाने वाले श्रीजेश ही थे। तब उन्होंने पाकिस्तान के 2 पेनल्टी स्ट्रोक्स रोके थे। 5 साल बाद 2016 में वह भारतीय हॉकी टीम के कैप्टन बने और उनकी लीडरशिप में टीम रियो ओलंपिक में क्वॉर्टर फाइनल तक पहुंची। 2016 में ही हॉकी टीम ने चैंपियंस ट्रॉफी में सिल्वर मेडल जीता। 2014 और 2018 की चैंपियंस ट्रॉफी में वह ‘गोलकीपर ऑफ द टूर्नामेंट’ रह चुके हैं। 2017 में उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा जा चुका है।
इस जीत के एक और हीरो सिमरनजीत सिंह रहे। सिमरनजीत के गोल से ही भारत मैच में जर्मनी की बराबरी पर आया। इसके बाद उन्होंने पांचवां गोल दागकर जर्मनी को 2 गोल से पीछे कर दिया। बेल्जियम के खिलाफ सेमीफाइनल में उन्हें रेस्ट दिया गया था। वह टीम इंडिया के फॉर्वर्ड हैं लेकिन गुरुवार को उन्हें मिलफील्डर के तौर पर उतारा गया। सिमरनजीत ने मैच के 17वें मिनट में भारत की तरफ से पहला गोल दागा और फिर 34वें मिनट में बॉल को दूसरी बार गोल पोस्ट में पहुंचा दिया।
गुरदासपुर जिले में सिमरनजीत के गांव में हर तरफ खुशी का माहौल था। उनके चचेरे भाई गुरजंत सिंह भी टीम में खेलते हैं। सिमरनजीत 2016 में जूनियर वर्ल्ड कप जीतने वाली हॉकी टीम का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने 2018 में चैंपियंस ट्रॉफी में भी खेला है। वह भारत के लिए अब तक 47 मैचों में 14 गोल कर चुके हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि शुरुआत में वह ओलंपिक में जाने वाली 16 सदस्यीय टीम में शामिल नहीं थे। लेकिन जब इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी ने कोविड-19 महामारी के कारण 2 वैकल्पिक खिलाड़ियों को शामिल करने की इजाजत दी, तो उनका नाम 18 सदस्यीय टीम में शामिल किया गया। शुरुआती 2 मैचों में सिमरनजीत को खेलने का मौका नहीं मिला, लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने भारत को जब 7-1 से हराया तो उन्हें प्लेइंग इलेवन में शामिल किया गया। उन्होंने स्पेन के खिलाफ अपने पहले ही मैच में गोल किया, इसके बाद बेल्जियम के खिलाफ सेमीफाइनल में नहीं खेले, लेकिन गुरुवार को सिमरनजीत की हॉकी ने मैदान में अपना कमाल दिखाया और उन्होंने टीम की जीत की बुनियाद रख दी।
आज की जीत के एक और हीरो जिनका मैं नाम लेना चाहूंगा, वह हैं रूपिंदर सिंह। उनके पिता एक हॉकी खिलाड़ी थे लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उन्होंने खेलना बंद कर दिया था। हालत यह थी जब घर चलाने और पैसे जोड़ने के लिए रूपिंदर की मां कपड़े सीने का काम करती थीं। रूपिंदर भी पैसे बचाने के लिए सिर्फ एक वक्त का खाना खाते थे। रूपिंदर और उनके बड़े भाई अमरवीर दोनों हॉकी खिलाड़ी बनना चाहते थे, लेकिन परिवार सिर्फ एक बच्चे को हॉकी स्टिक और इस खेल की ट्रेनिंग दिला सकता था। इसलिए बड़े भाई ने छोटे भाई के लिए मैदान छोड़ दिया। इसके बाद तो रूपिंदर आगे बढ़ते चले गए। पहले राज्य स्तर के खिलाड़ी के रूप में उभरे और फिर 2010 में भारतीय सीनियर टीम का हिस्सा बन गए। 8 साल तक टीम के मुख्य खिलाड़ियों में रहे। वह पहले ड्रैग फ्लिकर थे और अब डिफेंडर के तौर पर खेलते हैं। यह उनका दूसरा ओलंपिक था।
29 साल के मनप्रीत सिंह भारतीय हॉकी टीम के कप्तान हैं। वह 2012 और 2016 के बाद अपने तीसरे ओलंपिक में हिस्सा ले रहे थे। उन्होंने 19 साल की उम्र में भारत के लिए अपना पहला मैच खेला और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। पंजाब के जालंधर से आने वाले मनप्रीत को मिडफील्ड का जादूगर कहा जाता है। बॉल को मिडफील्ड से गोल पोजिशन तक पहुंचाने का काम मनप्रीत से बेहतर शायद ही कोई और खिलाड़ी कर पाए। गुरुवार को जर्मनी के खिलाफ हुए मैच में भी मनप्रीत के तमाम काफी सटीक थे और उन्होंने साथी खिलाड़ियों को कई बार गोल बनाने के मौके दिए। मनप्रीत सिंह 2017 में भारतीय हॉकी टीम के कप्तान बने और 2019 में उन्हें इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन की तरफ से ‘प्लेयर ऑफ द ईयर’ के सम्मान से नवाजा गया। इस बार टोक्यो ओलंपिक के उद्घाटन समारोह में वह मैरीकॉम के साथ भारत के ध्वजवाहक बने थे।
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का विशेष धन्यवाद, जिन्होंने भारत की पुरुष और महिला हॉकी टीमों को प्रायोजित किया। ओडिशा सरकार ने इन खिलाड़ियों की ट्रेनिंग से लेकर उनके खाने-पीने और रहने तक सारी जरूरतों का ख्याल रखा। उन्होंने सुनिश्चित किया कि खिलाड़ियों की प्रैक्टिस में किसी तरह की रुकावट न हो। एक हॉकी स्टेडियम का निर्माण भुवनेश्वर में और एक अन्य स्टेडियम का निर्माण राउरकेला में किया जा रहा है।
मैं गुरुवार को भारत के लिए सिल्वर मेडल जीतने वाले पहलवान रवि कुमार दहिया की भी सराहना करना चाहूंगा। 57 किलोग्राम की फ्रीस्टाइल कैटिगरी में रवि दहिया का मुकाबला 2 बार के वर्ल्ड चैम्पियन रूस के पहलवान जायूर उगयेव से था। जब मैंने रजत पदक जीतने वाले दहिया की बात सुनी तो मन भर आया। इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने वाले रवि दहिया ने कहा कि देश को उनसे गोल्ड मेडल की उम्मीद थी, वह इसके लिए ही लड़ भी रहे थे लेकिन नाकाम रहे। उन्होंने कहा, ‘इस बार मैंने गलती की, लेकिन अगली बार गोल्ड ही जीतूंगा।’
तमाम बड़ी हस्तियों और नेताओं की तरफ से खिलाड़ियों पर बधाइयों की बारिश हो रही है, मैं कहना चाहता हूं कि: यह हमारे ऐथलीटों की लगन और मेहनत का श्रेय लेने का समय नहीं है। यह वक्त खिलाड़ियों का स्वागत करने का, भविष्य के मुकाबलों के लिए उनका हौसला बढ़ाने का और सारा का सारा श्रेय खुद खिलाड़ियों को देने का है। उनकी मेहनत और लगन की वजह से भारत का नाम उंचा हुआ है। स्टेडियम किसने बनवाए, खिलाड़ियों के लिए नीतियां किसने बनाईं, इस बारे में बात करने का कोई फायदा नहीं है। बात इस पर होनी चाहिए कि हमें और मेडल कैसे मिलें, कैसे रवि दहिया जैसे पहलवान अचानक युवाओं के लिए एक आदर्श बन गए, और हम अन्य राज्यों कई और रवि दहिया के उभरने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।
इसमें कोई शक नहीं है कि हमारी हॉकी टीम ने 41 साल के बाद ओलंपिक में मेडल जीता है और यह भी सही है कि ब्रॉन्ज मेडल जीता है। लेकिन ब्रॉन्ज मेडल जीतने पर खुशी जाहिर करने, अपने खिलाड़ियों को शाबासी देने की बजाए क्या हम उनसे यह पूछें कि उन्होंने गोल्ड मेडल क्यों नहीं जीता? यह कहना कि चूंकि वे गोल्ड मेडल नहीं ला पाए इसलिए यह जीत बेकार है, इन मेहनती खिलाड़ियों के साथ अन्याय के अलावा कुछ भी नहीं है।
कांग्रेस के सांसद शशि थरूर का ट्वीट पढ़कर मुझे दुख हुआ। उन्होंने लिखा, ‘हम भारत में कभी-कभार ओलंपिक का ब्रॉन्ज मेडल जीतने पर जश्न मनाते हैं, जबकि चीन के बड़े-बड़े राष्ट्रवादी सिल्वर मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों से भी सवाल पूछते हैं।’ मुझे लगता है ऐसी बात कहना स्पोर्ट्समैन स्पिरिट नहीं है। यह देश की भावना के खिलाफ है। हमारे खिलाड़ियो ने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की है और देश का मान बढ़ाया है। सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने मेडल जीतकर हमारे राष्ट्रीय खेल के प्रति गौरव करने का मौका दिया।
इसका फायदा ये होगा कि अब बड़ी संख्या में हॉकी के प्रति युवाओं की दिलचस्पी बढ़ेगी। एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों और ओलंपिक में मेडल जीतकर हरियाणा के पहलवानों ने पूरे भारत में यह संदेश दिया है कि अब उनका राज्य पहलवानों की नर्सरी बन चुका है। इसी तरह हॉकी में यह जीत केंद्र और राज्य सरकारों को हमारे हॉकी खिलाड़ियों के लिए और भी ज्यादा इन्फ्रास्ट्रक्चर और ट्रेनिंग सेंटर बनाने के लिए प्रोत्साहित करेगी, ताकि हम इस खेल में अपना खोया हुआ गौरव वापस पा सकें। इसका पूरा श्रेय हमारे हॉकी खिलाड़ियों को जाता है जिन्होंने निराशा को एक बड़ी उम्मीद में बदलकर रख दिया है।
Why we should celebrate India winning a bronze in Olympic hockey
On Friday morning, the eyes of more than a billion Indians were glued to TV sets watching the Indian women’s hockey team taking on Great Britain in the fight for an Olympic bronze. Down by two goals in the beginning, our girls made a resounding comeback and gained a 3-2 lead over the British team. In the end, they lost the match 3-4 and, in the process, failed to win the bronze medal.
Had our girls won the bronze, it would have been a historic moment with both the men’s and women’s hockey teams returning home with bronze medals. Sadly, this did not happen, but our girls won the hearts of more than a billion Indians by showing grit and determination. They fought to equalize till the last minute.
On Thursday, the Indian national anthem tune was played twice at the Tokyo Olympics. First, when our men’s hockey team won the bronze defeating Germany, and secondly, when wrestler Ravi Kumar Dahiya had to settle for a silver medal in a tough fight against his Russian opponent. Our heart was filled with pride because our hockey team had won an Olympic medal after a gap of 41 years. There were tears of joy in the eyes of many who had last watched India win the hockey gold in the 1980 Moscow Olympics.
There was a time when India was the uncrowned king of hockey across the world. Our players like Major Dhyan Chand wove magic with their hockey sticks, but times have changed along with the rules of the game. Team India was written off in 2008, when it could not qualify for Olympics. Four years later, in 2012, we were at twelfth position, and in 2016 we lost in the quarter-final. It appeared as if Indian hockey will never regain its lost glory. At Tokyo Olympics, our team defeated Great Britain to reach the semi-final. Two days ago, we lost the semi-final to Belgium, and yet our hopes for a bronze did not fade away.
The battle for the bronze was contested fiercely. Germany scored two goals in succession, but 10 minutes later, India made a comeback. The Germans scored two more goals, but our boys fought back, equalized and gained a 5-4 lead. It was a heart-stopping finish during the last six seconds, when goalkeeper Sreejesh stood like a rock and padded the German hit off a penalty corner. By ending the medal drought in Olympic hockey, our boys have brought a remarkable turnaround. It heralds the hope for the return of a new golden age in Indian hockey.
The most iconic visual after the match was Sreejesh sitting atop the goal post, heaving a sigh of relief, smiling. He then tweeted: ‘Let me smile now’. In another image, Sreejesh was seen having a nimble bite at the bronze Olympic medal and he tweeted: “Yeah..it’s taste salty. Yeah..I remember, it’s my sweat from last 21 years”. Imagine, a hockey player, waiting for an Olympic medal for the last 21 years.
Sreejesh gave 1.3 billion Indians a chance to smile on Thursday. Prime Minister Narendra Modi tweeted: “Bravo Srejesh! Your saves played a big part in earning the medal for India. Congratulations and best wishes to you.” He replied: “Thank you very much Sir”.
This was Sreejesh’s third Olympics. He has medals from almost all international hockey events at his home, except the Olympics. His life’s ambition is now fulfilled. On Thursday morning, all members of his family had their morning bath, performed pooja, and sat glued to the TV set, watching the match. The tension was so much that his mom, walked out of the room, unable to watch the last six critical seconds, when Germany was going to take its last penalty corner. The moment, Sreejesh saved and Indian won the match, the room erupted with shouts of joy and celebrations followed.
Sreejesh is Team India’s most senior player. He has been a part of the national team for the last 15 years. It was he who saved two penalty strokes from Pakistan to win the Asian Champions Trophy in 2011. Five years later, he became the captain. His team reached the quarter finals at Rio Olympics. The same year, in 2016, his team won the silver medal at Champions Trophy. He was adjudged Goalkeeper of the Tournament in 2014 and 2018 Champions Trophy. The nation honoured him with Padma Shri in 2017.
There is another hero, Simranjit Singh. It was he who scored to get the equalizer against Germany. He also scored the fifth goal to put India ahead. He was given rest during the match against Belgium, but was put as midfielder on Thursday. He scored the first goal in the 17th minute and his second goal in the 34th minute.
There was celebration in his village in Gurdaspur, Punjab. His cousin, Gurjant Singh, also plays in the team. Simranjit played in the 2016 Junior World Cup and in the 2018 Champions Trophy. Till date, he has played 47 international matches for India and has scored 14 goals. Simranjit was not included in the original team for Tokyo Olympics, but when the International Olympic Committee allowed inclusion of two alternate players due to Covid pandemic, his name was included in the 18-member team. Simranjit did not get to play in the two opening matches, but after the team got a 1-7 drubbing from Australia, he was included in the playing eleven. He scored in his very first match against Spain, did not play in the semi-final against Belgium, but on Thursday, he was playing like a livewire, and laid the foundation for India’s win.
Another hero I would like to name is Rupinder Singh. His father was a hockey player but stopped playing due to financial crunch. To earn and save money, his mom used to stitch clothes for neighbours, and Rupinder used to skip one meal daily. He and his elder brother Amarvir wanted to become hockey players, but the family had the means to support only one as a hockey player. The elder brother yielded, left hockey, and Rupinder emerged as a state level player. He joined the national team in 2010 and became the mainstay of the team, first as drag flicker and then as defender for eight years. This was Rupinder’s second Olympics.
Manpreet Singh, 29, is the captain of India’s men’s hockey team. This was his third Olympics. He had debut for India at the age of 19. Manpreet is considered a midfielder magician. He has the skill to send the ball from midfield towards the goal area. On Thursday, against the Germans, he created several golden opportunities for his colleagues. He was made captain of the national team in 2017, and in 2019, he got the Player of the Year award from Federation of International Hockey. Manpreet was the flag bearer with boxer M. C. Mary Kom at Tokyo Olympics.
Special thanks to Odisha chief minister Naveen Patnaik, who sponsored both the men’s and women’s hockey teams of India, and arranged food, accommodation and training for all of them. A hockey stadium has been built in Bhubaneswar and another stadium is being built in Rourkela.
I would also like to praise Ravi Kumar Dahiya, the wrestler who won a silver medal for India on Thursday. He was pitted against reigning world champion Russian athlete Zavur Uguev in the final of 57 kg freestyle wrestling. It was heartening to hear from Dahiya, who said, he was fighting for a gold medal for India, but failed. “I made a mistake this time, but next time, I will get the gold”, he promised.
As congratulations poured in from politicians, statesmen and eminent personalities, I would like to say this: This is not the time to take credit for the toil and sweat of our athletes. This is the time to welcome them, to inspire them for getting more laurels in future and to give all the credit to the players themselves. Their toil and perseverance have brought praise for India.
There is no need for nitpicking about who built the stadiums and who made the policies for sportspersons. We should spend time on finding out how we got the medals, how a wrestler like Ravi Dahiya suddenly became a role model for youths, and how we can expect more Ravi Dahiyas to emerge from other states too.
In hockey, our players brought the Olympic medal home after a gap of 41 years. Instead of expressing happiness over their bronze medal, should we waste our time asking them how they failed to get the gold? To say that they failed to bring the gold and hence, this win was not worth a praise, is nothing but injustice to these hard working athletes.
I was hurt when I read Congress MP Shashi Tharoor’s tweet “As we in India celebrate the occasional bronze meal at the Olympics, look at the Chinese ultranationalists denouncing their athletes for winning silvers”. I think, such a remark does not reflect a true sportsman spirit. It goes against the sentiments of the nation Our athletes have raised India’s prestige on the world stage. By winning a medal, they have regained India’s past glory in the field of hockey and have rekindled pride in our national sport.
This bronze medal win will spur more youths to join the sport of hockey. By winning medals in Asian Games, Commonwealth Games and Olympics, wrestlers from Haryana have sent message across India that their state is now a nursery for wrestlers. Similarly, in hockey, this win will encourage state governments and the Centre to build more infrastructure and training centres for our hockey players, so that we can regain our lost glory in the field of hockey. The entire credit goes to our hockey players who brought about this turnaround – from dejection to hope.