किसान आंदोलन: एक बड़ी राजनीति का हिस्सा
नए कृषि कानूनों के विरोध में पिछले नौ महीनों से चल रहा किसान आंदोलन गुरुवार को दिल्ली बॉर्डर से जंतर-मंतर शिफ्ट हो गया। दिल्ली पुलिस ने 200 किसानों को कड़ी सुरक्षा के बीच बसों में बिठाकर जंतर-मंतर आने दिया और ‘किसान संसद’ आयोजित करने की इजाजत दी। उधर, संसद परिसर के अंदर राहुल गांधी ने अपनी पार्टी के नेताओं के साथ गांधी मूर्ति के सामने विरोध प्रदर्शन किया। शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी के सांसदों ने भी कृषि कानूनों को खत्म करने की मांग को लेकर संसद परिसर के अंदर विरोध-प्रदर्शन किया। चूंकि पंजाब विधानसभा चुनाव अगले साल की शुरुआत में होनेवाले हैं, इनलिए इन तीनों पार्टियों में खुद को किसानों के हितैषी के तौर पर पेश करने की होड़ मची है।
दो सौ किसानों को दिल्ली पुलिस कड़ी सुरक्षा के बीच दो बसों में लेकर जंतर-मंतर पहुंची। इस दौरान कई लेयर की बैरिकेडिंग की गई थी और एक्स्ट्रा सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे। केवल उन्हीं किसानों को जंतर-मंतर जाने की इजाजत थी जिनके पास संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी पहचान पत्र था। अब 9 अगस्त तक रोजाना ‘किसान संसद’ चलेगी। भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख राकेश टिकैत ने कहा कि दिल्ली बॉर्डर पर किसान अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे। उन्होंने दावा किया, ’25 लाख किसान 26 जनवरी को चार लाख ट्रैक्टर के साथ दिल्ली पहुंचे थे और वे अभी भी यहीं हैं। इन कानूनों को खत्म करने की हमारी मांग केंद्र को मानना होगा। अब शर्तों के साथ कोई बातचीत नहीं होगी।’
मौजूदा गतिरोध इस बात को लेकर है कि किसान संगठन कृषि कानूनों को पूरी तरह से खत्म करने की मांग कर रहे हैं जबकि केंद्र का कहना है कि किसान नेता कानून के उन प्रावधानों को बताएं जिन्हें हटाने या बदलने की जरूरत है, बस यही समस्या की जड़ है जिसकी वजह से गतिरोध बना हुआ है।
संसद भवन से महज 2 किमी दूर जंतर-मंतर पर ‘किसान संसद’ का आयोजन किया गया। 200 किसानों ने ‘किसान संसद’ चलाने के लिए स्पीकर- डिप्टी स्पीकर का चुनाव किया और खुद ही संचालन किया। किसान संसद की कार्यवाही उस वक्त मुख्य मुद्दे से अलग मुड़ गई जब मीनाक्षी लेखी की बात किसान नेताओं तक पहुंची। किसानों ने मीनाक्षी लेखी के बयान की जमकर निंदा की। असल में बीजेपी दफ्तर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान किसान आंदोलन को लेकर मीनाक्षी लेखी से एक सवाल पूछा गया था और जबाब देने के बजाय मीनाक्षी लेखी ने आंदोलनकारी किसानों को ‘मवाली’ कह दिया। मीनाक्षी लेखी ने कहा-‘आप (मीडिया) उन्हें किसान कह रहे हैं। वे मवाली हैं।’ मीनाक्षी लेखी ने यह टिप्पणी तब की जब कुछ मीडियाकर्मियों ने उन्हें जंतर-मंतर की उस घटना के बारे में बताया जब एक किसान समर्थक स्वतंत्र पत्रकार ने एक न्यूज चैनल के कैमरापर्सन पर हमला किया और महिला पत्रकार को गाली दी।
हालांकि बाद में ट्विटर पर मीनाक्षी लेखी ने एक पोस्ट डालकर अपने इस बयान को वापस ले लिया, उन्होंने लिखा-‘मेरे बयान को तोड़ा-मरोड़ा गया है अगर इससे किसी को ठेस पहुंची है तो मैं अपने शब्द वापस लेती हूं ।
अच्छा किया कि मीनाक्षी लेखी ने अपनी बात को क्लेरिफाई कर दिया। लेकिन मैं कहूंगा कि दोनों तरफ के पक्षों से इस तरह की भाषा का इस्तेमाल ना हो तो बेहतर है। इस पूरे मामले की गरिमा बनाए रखना भी जरूरी है। इन्हें ‘मवाली’ या ‘जानवर’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
किसान नेताओं की मुख्य समस्या ये है कि उन्होंने तीनों कानूनों की वापसी को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। उन्हें लगता है कि तीनों कानून वापस नहीं हुए तो उनकी बेईज्जती हो जाएगी, अपमान हो जाएगा, सात-आठ महीने से धरने पर बैठे हैं और अगर कानून वापस नहीं हुए तो अपने समर्थकों के बीच क्या मुंह लेकर वापस जाएंगे। इसीलिए किसान नेता दबाव बनाने का हर तरीका इस्तेमाल कर रहे हैं। सरकार के लिए भी ये प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया है। सरकार को लगता है कि कानून पार्लियामेंट में बने हैं। संसद की दोनों सदनों ने इसे पास किया है, फिर ये कानून सड़क पर वापस कैसे हो सकते हैं। ये बात सही भी है कि अगर कानून को धरने-प्रदर्शन से दबाव में आकर वापस ले लिया जाएगा तो इतना बड़ा देश है कि हर कानून के खिलाफ कोई न कोई सड़क पर उतरेगा। लिहाजा किसान और सरकार दोनों अपनी पोजिशन से पीछे हटने को तैयार नहीं है।
दूसरी बात ये है कि मोदी विरोधी चाहे राजनीतिक नेता हों या गैर राजनीतिक लोग, वे कभी नहीं चाहेंगे कि किसानों और सरकार के बीच का टकराव खत्म हो। जो लोग अपनी कोशिशों से या वोट के दम पर मोदी को हरा नहीं पाए, सत्ता से बेदखल करने में नाकाम रहे, वे अब किसानों के कंधे पर रखकर बंदूक चला रहे हैं। उन्हें लगता है कि किसान अगर मोदी से नाराज हो गए तो फिर मोदी को घेरना आसान होगा। कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि ये एक बड़ी राजनीति का हिस्सा है।
Farmers’ protest : a larger political game plan
The ongoing nine-month-long farmers’ protest against the new farm laws shifted from Delhi borders to Jantar Mantar on Thursday, when police allowed 200 farmers to come in buses, amidst tight security, and hold their “Kisan Sansad”. Inside Parliament, Congress leader Rahul Gandhi along with his party MPs, staged protest in front of Gandhi statue. MPs from Shiromani Akali Dal and Aam Aadmi Party also staged protest inside Parliament demanding repeal of the farm laws.
Since, Punjab assembly elections are going to be held early next year, all these three parties are in a race to project themselves as friends of farmers.
The 200 farmers were brought in two buses by Delhi Police to Jantar Mantar amidst tight security. There were several layers of barricading and extra CCTV cameras had been installed. Only those farmers were allowed inside, who were holding identity cards issued by Sanyukta Kisan Morcha. The ‘Kisan Sansad’ will continue daily till August 9. Bhartiya Kisan Union chief Rakesh Tikait said farmers would continue their protests at Delhi border. He claimed, “25 lakh farmers had come to Delhi on January 26 with four lakh tractors, and they are still there. The Centre will have to accept our demand for repeal of laws. There will be no conditional talks anymore.”
The present deadlock is over farmers’ organization demanding outright repeal of farm laws, while the Centre wants the farmer leaders to point out the provisions in laws which need to be removed or altered. There lies the crux of the problem.
At the ‘Kisan Sansad’ that was held at Jantar Mantar, only two km away from Parliament, the 200 farmers selected ‘Speaker’ and ‘Deputy Speaker’ among themselves to run the ‘sansad’. The main issue was diverted when some farmer leaders denounced Minister of State Meenakshi Lekhi for her remark ‘mawaali’ (hooligans) that she had used for farmers. While addressing a press conference in BJP office, Lekhi had said, “You (media) are calling them farmers. They are mawaalis.” She made this remark, when some mediapersons told her about an incident at Jantar Mantar, where a pro-farmer freelance journalist attacked a cameraperson of a news channel and abused a female journalist.
Later, on Twitter, Meenakshi Lekhi withdrew her remark by posting: “My statement has been misrepresented. Nonetheless, if my contents that are being linked with farmers have hurt anyone, then I take my words back.”
By withdrawing her remark, Meenakshi Lekhi did the right thing. I would prefer both sides to maintain decorum and refrain from using such abuses like ‘mawaali’ or ‘jaanvar’ . The problem with farmer leaders is that they have made the repeal of the new farm laws an issue of prestige. These leaders feel that if the three laws are not repealed, they will have no face to show to their supporters. The Centre’s stand is that since these three laws were passed by both Houses of Parliament, they cannot be repealed because of street protests. If such a precedent is set, there will be street protests against other laws too, in a big country like India. Both the farmer leaders and the government are unwilling to budge from their respective stands.
Secondly, critics of Modi, whether in political parties or outside, will never want the confrontation between farmers and the Centre to end. Those who failed to dislodge Modi from power through ballot, are now using the shoulders of farmers to train their guns at him. Their end game is that if farmers start opposing the government, it would be easy to corner Modi. Overall, it seems to be part of a larger political game plan.
राज्य सरकारों ने क्यों कहा, ‘ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई’?
आज मैं एक बेहद संवेदनशील मुद्दे पर लिखना चाहता हूं। अप्रैल और मई के महीनों में, जब पूरा भारत महामारी की दूसरी लहर की चपेट में था, कई लाख लोगों ने कोरोना की वजह से दम तोड़ दिया था। इनमें से ज्यादातर मरीजों की मौत ऑक्सीजन, अस्पताल में बिस्तरों और ICU वेंटिलेटर की कमी के कारण हुई। केंद्र सरकार ने मंगलवार को एक लिखित जवाब में संसद को बताया कि ‘ऑक्सीजन की कमी के कारण किसी भी मौत की सूचना राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों ने नहीं भेजी है।’ सरकार के इस जवाब का सोशल मीडिया में मखौल हुआ और राजनीतिक हलकों में कोहराम मच गया। केंद्र सरकार ने ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि राज्य सरकारों ने जो जानकारी भेजी, उसमें कहा गया था कि ‘ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई ’.
क्या अप्रैल और मई के महीनों में एक-एक सांस के लिए तड़पते लोगों की तस्वीरें झूठी थीं? क्या ऑक्सीजन सिलेंडर रिफिल कराने के लिए रात-दिन लाइनों में लगे लोगों की तस्वीरें काल्पनिक थीं? क्या एक-एक सिलेंडर के लिए लाखों रुपये लेकर घूमते लोग, हाथ जोड़कर रोते हुए डॉक्टर नाटक कर रहे थे? क्या कार में मां को लिटाकर खाली ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर भागते बेटे का वीडियो फर्जी था? क्या ऑटो में अपने मृतप्राय पति के मुंह से अपना मुंह लगा कर सांस देने की कोशिश करती महिला की दिल दहलाने वाली तस्वीर ड्रामा थीं? क्या अस्पतालों के बाहर एम्बुलेंस की कतार में ऑक्सीजन के लिए तड़पते लोगों और अस्पतालों के अंदर ऑक्सीजन के इंतजार में उखड़ती सांसों की तस्वींरें झूठी थीं या ये सब एक भ्रम था?
अगर तस्वीरें सच्ची थीं तो राज्य सरकारों ने झूठ क्यों बोला?
इसमें कोई शक नहीं है कि अप्रैल और मई के दौरान पूरे भारत के अस्पतालों में ऑक्सीजन की भारी कमी थी। केंद्र ने देश के कोने-कोने में ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए अपनी नौसेना, वायु सेना, रेलवे और स्टील प्लांट्स को तैयार किया था। रेलवे ने करोड़ों टन ऑक्सीजन को देश के अलग-अलग शहरों तक पहुंचाने के लिए ऑक्सीजन एक्सप्रेस ट्रेनें चलाई थीं। आपने टीवी और मल्टीमीडिया पर वीडियो देखा होगा। फिर सरकार ने संसद को पूरे कॉन्फिडेंस के साथ क्यों बताया कि ‘ऑक्सीजन की कमी के कारण किसी भी मौत की सूचना राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा नहीं दी गई है?’
मैंने दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, भोपाल, इंदौर, आगरा, पटना, जयपुर, मुंबई, चंडीगढ़, मोहाली, अहमदाबाद और गांधीनगर के अपने संवाददाताओं को उन अस्पतालों के डॉक्टरों से बात करने के लिए कहा जिन्होंने ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए डिस्ट्रेस कॉल किए थे। हमारे संवाददाताओं ने उन डॉक्टरों से बात की जिन्होंने आक्सीजन की कमी के कारण कोरोना के मरीजों की मौत की बात कही थी। इन डॉक्टरों से खासतौर पर पूछा गया कि क्या उन्होंने उस समय जो कहा था वह झूठ था, और यदि उनकी बात सच थी तो क्या उनके अस्पताल ने ऑक्सीजन की कमी से हुई मौत का आंकड़ा सरकार के साथ शेयर किया था?
हमारे संवाददाताओं ने दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, गोवा, महाराष्ट्र, बिहार और छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्रियों से बात की और उनसे पूछा कि उनके राज्य में ऑक्सीजन की कमी से कोरोना के कितने मरीजों की मौत हुई, और केंद्र सरकार को राज्य सरकारों ने क्या जानकारी दी है।
मेरा पहला सवाल केंद्र सरकार से था। हमने बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा से पूछा कि इस तरह का जवाब क्यों दिया गया। उन्होंने कहा, सरकार द्वारा दिया गया जवाब राज्य सरकारों से मिले आंकड़ों का संकलन था। उन्होंने कहा कि सवाल राज्य सरकारों से पूछा जाना चाहिए। उन्होंने लिखित जवाब के पहले भाग की ओर इशारा किया: ‘हालांकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है, सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश नियमित रूप से केंद्र सरकार को कोविड के मामलों, और मौतों की रिपोर्टिंग के लिए दिशानिर्देशों के मुताबिक मौतों की संख्या के बारे में सूचना देते हैं।’
संबित पात्रा ने दिल्ली का उदाहरण दिया, जहां हजारों लोगों को अपने ऑक्सीजन सिलेंडर रिफिल करवाने के लिए लाइनों में खड़े होना पड़ा था। पूरी दुनिया में दिल्ली में अस्पतालों के बाहर तड़प रहे मरीजों की तस्वीरें दिखाई जा रही थीं। हालात को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा और उसने केंद्र सरकार से दिल्ली में ऑक्सीजन की सप्लाई तुरंत बहाल करने का आदेश दिया था। इसके बावजूद दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत रिपोर्ट नहीं हुई, यह बात हैरान करने वाली है। संबित पात्रा ने इल्जाम लगाया कि दिल्ली के जयपुर गोल्डन अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से दर्जनों मरीजों की मौत हुई थी, लेकिन दिल्ली सरकार की रिपोर्ट कहती है कि ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा।
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, उनकी सरकार के पास ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों का कोई डेटा नहीं है क्योंकि केंद्र ने उनकी सरकार को कोविड रोगियों की मौतों के कारणों की जांच के लिए ऑडिट कमेटी बनाने की इजाजत नहीं दी। उन्होंने कहा, उपराज्यपाल ने ऑडिट कमेटी को भंग कर दिया। सिसोदिया ने आरोप लगाया कि केंद्र कुप्रबंधन के बारे में सच्चाई छिपाना चाहता है, और नहीं चाहता कि आंकड़े सामने आए।
ये सारे जबाव सियासी हैं, एक दूसरे पर तोहमत लगाने वाले हैं और जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने वाले हैं। आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी, दोनों दलों के नेताओं ने अप्रैल और मई में ऑक्सीजन के लिए हांफते हुए हजारों मरीजों और सिलेंडर भरने के लिए कतारों में खड़े उनके रिश्तेदारों की तस्वीरें देखी थीं।
हमारे संवाददाता अस्पतालों में गए और डॉक्टरों से बात की। दिल्ली के जयपुर गोल्डन अस्पताल में 23 अप्रैल की रात ऑक्सीजन की कमी के कारण 22 मरीजों की मौत हो गई थी, और अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर ने अगले दिन इंडिया टीवी पर एक लाइव इंटरव्यू में इसकी पुष्टि की थी। क्या इन मौतों के बारे में केंद्र को बताने के लिए दिल्ली सरकार को ऑडिट कमेटी की जरूरत है? दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने बुधवार को कहा कि ऑक्सीजन की कमी के कारण मरीजों की कई मौतें हुईं, लेकिन उनकी ही सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट को दिए हलफनामे में कहा था कि ऑक्सीजन की कमी के कारण कोई मौत नहीं हुई।
इंडिया टीवी की रिपोर्टर गोनिका अरोड़ा ने 23 अप्रैल की रात ऑक्सीजन की कमी के कारण मरने वालों के परिजनों से मुलाकात की। इन परिवारों ने मेडिकल डेथ सर्टिफिकेट दिखाया जिसमें मौत का कारण फेफड़े का फेल होना या हार्ट फेल होना दिखाया गया, लेकिन ऑक्सीजन की सप्लाई में कमी का कहीं जिक्र नहीं था। जब इसके बारे में जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल के डायरेक्टर से पूछा गया तो उन्होंने कहा, ऑक्सीजन की कमी होने पर दिल, फेफड़े और शरीर के अन्य अंग फेल हो जाते हैं, लेकिन चूंकि मेडिकल सर्टिफिकेट में मौत का प्राथमिक कारण लिखा होता है, इसलिए यह कभी नहीं लिखा जाता कि दिल या फेफड़े ने काम करना क्यों बंद किया। इसलिए डेथ सर्टिफिकेट पर ऑक्सीजन की कमी को मौत का कारण नहीं बताया जाता।
दिल्ली के अस्पतालों द्वारा जारी एक भी मेडिकल डेथ रिपोर्ट में ऑक्सीजन की कमी को मौत का प्राथमिक कारण नहीं बताया गया है। 1 मई को दिल्ली के बत्रा अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से एक डॉक्टर समेत 12 मरीजों की मौत हो गई थी। अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर एस.सी.एल. गुप्ता अपने साथी की मौत के बारे में बात करते-करते कैमरे के सामने रोने लगे थे। मुझे आज भी वह वीडियो याद है जो काफी तेजी से वायरल हो गया था। फिर भी आधिकारिक तौर पर मृत्यु का प्राथमिक कारण ऑक्सीजन की कमी होने के बारे में कोई सर्टिफिकेट जारी नहीं किया गया।
अप्रैल और मई के दौरान दिल्ली के अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन की भारी कमी थी। यहां तक कि दिल्ली सरकार ने भी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए यह बात मानी थी। बत्रा और जयपुर गोल्डन अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की मौत के मामलों के बारे में सभी को पता है। मुझे अभी भी मैक्स और शांति मुकुंद अस्पतालों के वे ट्वीट याद हैं जिनमें ऑक्सीजन की तुरंत सप्लाई की मांग की गई थी। दिल्लीवासियों के हजारों ट्वीट और वॉट्सऐप मैसेज हैं जिनमें वे अपने प्रियजनों के लिए ऑक्सीजन की मांग कर रहे थे।
क्या सरकार को यह पता लगाने के लिए ऑडिट कमेटी की जरूरत है कि ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों की मौत हुई या नहीं? दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट से क्यों कहा कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई? तड़पते हुए मरीजों, ऑक्सीजन के लिए दौड़ते-भागते परिवारों को सबने देखा था, मौत पर मातम सबने किया था, सहानुभूति सबने जताई थी। लगभग सभी लोगों ने कहा था कि ये मौतें ऑक्सीजन की कमी से हुई हैं, लेकिन कागज पर किसी ने नहीं लिखा। न अस्पताल ने और न दिल्ली सरकार ने लिखित में दिया कि ऑक्सीजन की कमी की वजह से कोरोना के मरीजों की मौत हुई। क्यों? क्योंकि लाशों का बोझ कोई नहीं उठाना चाहता, मौत की जिम्मेदारी कोई नहीं लेना चाहता। और ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ दिल्ली में हुआ, बल्कि ज्यादातर राज्यों का यही हाल था।
26 अप्रैल को ठाणे के वेंदात हॉस्पिटल में ऑक्सीजन की कमी से कम से कम 5 मरीजों की मौत हो गई थी। इसके बाद परिवार के लोगों ने अस्पताल के बाहर हंगामा भी किया था। नाशिक में तो एक मरीज ने ऑक्सीजन के इंतजार में कोविड सेंटर के बाहर दम तोड़ दिया था। इसकी तस्वीरें खूब वायरल हुई थीं जिन्हें लाखों लोगों ने देखा था। लेकिन महाराष्ट्र सरकार यह बात मानने को तैयार नहीं कि सूबे में ऑक्सीजन की कमी से किसी कोविड मरीज की मौत हुई। विडंबना यह है कि सत्तारूढ़ शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा कि वह केंद्र सरकार के लिखित जवाब को पढ़कर नि:शब्द हो गए थे। राउत ने कहा, जिन परिवारों ने ऑक्सीजन की कमी के कारण अपनों को खो दिया है, वे सरकार के खिलाफ केस दर्ज करें। विडंबना यह है कि उनकी ही पार्टी की गठबंधन सरकार ने ही केंद्र को यह रिपोर्ट भेजी थी कि महाराष्ट्र में ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई है।
इसी तरह, कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ऑक्सीजन की कमी के कारण हजारों कोविड मरीजों की मौत हो गई, और फिर भी, इन राज्य सरकारों ने केंद्र को बताया कि ऑक्सीजन की कमी के कारण किसी की मौत नहीं हुई। बुधवार को राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने स्वीकार किया कि उनके राज्य में ऑक्सीजन की कमी के कारण हजारों लोगों की मौत हुई है। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि उनके विभाग ने केंद्र को ये रिपोर्ट क्यों भेजी कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की जान नहीं गई, तो शर्मा ने इसे हंसी में उड़ाकर कहा, ‘आंकड़ों के मायाजाल में क्या फंसना, जो हकीकत है, वह सबके सामने है।’
उत्तर प्रदेश में भी ऑक्सीजन की कमी से सैकड़ों कोविड मरीजों की मौत हो गई थी। लखनऊ, मुरादाबाद, मेरठ और आगरा में हजारों लोग अपने ऑक्सीजन सिलेंडर को रिफिल करवाने के लिए रात भर लाइनों में खड़ा होना पड़ा और अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी के कारण सैकड़ों मरीजों की जान चली गई। आगरा की एक तस्वीर खूब वायरल हुई थी जिसमें एक महिला अपने पति की लाश में जान फूंकने की कोशिश कर रही है। वह पति को अपने मुंह से सांस देने की नाकाम कोशिश करती दिख रही थी। 26 अप्रैल को मेरठ के 3 बड़े अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से कम से कम 21 कोविड मरीजों की मौत हो गई थी। लखनऊ के बख्शी का तालाब में ऑक्सीजन की कमी के कारण एक परिवार के 7 लोगों की जान चली गई थी। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक, आज तक एक भी मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई है। यह चमत्कार कैसे हुआ?
हमारे रिपोर्टर ने यूपी के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह से बात की। उनका जवाब दिलचस्प था। उन्होंने कहा, ‘हमारी सरकार ने कोरोना से हुई प्रत्येक मौत का ऑडिट किया, लेकिन चूंकि केंद्र द्वारा विकसित CoWin पोर्टल में मृत्यु के कारण का उल्लेख करने का कोई विकल्प नहीं था, इसलिए यह कहना गलत होगा कि यूपी सरकार ने सच्चाई छिपाई।’
जद(यू)-भाजपा गठबंधन सरकार के शासन वाले बिहार में जनवरी से मई तक कोरोना से 8,500 से ज्यादा लोगों की मौत हुई, लेकिन राज्य सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि उनमें से किसी की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई। बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने इंडिया टीवी को दिलचस्प जवाब देते हुए कहा, ‘अस्पतालों में अप्रैल और मई के दौरान ऑक्सीजन की मांग 14 गुना बढ़ी, लेकिन ऑक्सीजन की कमी से एक भी मरीज की मौत नहीं हुई। हमने अस्पतालों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति की थी। ऐसे हो सकता है कि मरीज अस्पतालों तक नहीं पहुंच पाए और रास्ते में ही ऑक्सीजन की कमी से उनकी मौत हो गई, लेकिन हमारी सरकार के पास उनकी मौत के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है।’ मंगल पांडे को यह कौन समझाएगा कि ऑक्सीजन के लिए तड़प रहे मरीजों के लिए अस्पतालों में बिस्तर उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेवारी है ?
दुख की बात यह है कि ज्यादातर राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों ने ऐसे ही जबाव दिए। मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी ने दावा किया कि अस्पतालों को ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति की गई थी। जब हमारे संवाददाता ने बताया कि अस्पतालों के बाहर तो मरीजों के परिवार वाले ऑक्सीजन की कमी की शिकायत कर रहे थे, तो उन्होंने जवाब दिया, ‘मुझे अस्पतालों के बाहर क्या हुआ, इसकी कोई जानकारी नहीं है। मैं इतना ही कह सकता हूं कि अस्पतालों के अंदर ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई।’
केंद्र ने संसद में जो कुछ भी कहा वह गलत सूचना हो सकती है, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व खुद अपने स्वास्थ्य मंत्रियों से क्यों नहीं पूछ रहा कि वे क्यों ऐसा कह रहे हैं? राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने ट्वीट में ऑक्सीजन की समस्या से हुई मौतों पर तीखी टिप्पणी की । यह कांग्रेस बनाम बीजेपी का मुद्दा नहीं है, न ही यह केंद्र बनाम राज्य का मुद्दा है। वैसे कुछ राज्य हो सकते हैं जहां मेडिकल ऑक्सीजन की कमी न हुई हो, लेकिन सभी राज्यों के बारे में ये बात नहीं कही जा सकती।
ऑक्सीजन से मरने वालों की संख्या को लेकर नेताओं की तरफ से जिस तरह बयानबाजी हुई, जिस तरह की सियासत हुई, उसे देखकर मुझे दुख और हैरानी हुई। राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के इस बयान का मजाक उड़ाया कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई। उन्होंने ट्वीट किया, ‘सिर्फ ऑक्सीजन की ही कमी नहीं थी। संवेदनशीलता व सत्य की भारी कमी तब भी थी, आज भी है।’ मैं मानता हूं कि यह कहना कि ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा, असत्य है, संवेदनहीन है लेकिन कांग्रेस के बड़े नेताओं को राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकारों से भी पूछना चाहिए था कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई। क्या उनके अपने स्वास्थ्य मंत्री संवेदनहीन हैं या वे झूठ बोल रहे हैं? महाराष्ट्र में भी कांग्रेस की भागीदारी वाली सरकार है जिसमें शिवसेना और एनसीपी उसके पार्टनर हैं। वहां की सरकार ने तो बॉम्बे हाईकोर्ट में एफिडेविट फाइल करके कहा कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने भी यही काम किया।
सबसे ज्यादा दुख की बात तो यह है कि हमारा सिस्टम ही ऐसा है। सरकार बीजेपी की हो, कांग्रेस की हो या किसी और पार्टी की, कागज पर कुछ और होता है और सियासी जबान पर कुछ और। अस्पतालों ने डेथ सर्टिफिकेट में लिख दिया मौत की वजह ऑक्सीजन की कमी नहीं, हार्ट या फेफड़ों का फेल होना है। अस्पतालों ने मौत के प्राथमिक कारण के रूप में ऑक्सीजन की कमी का जिक्र नहीं किया। राज्य सरकारों ने आंख बंद करके इसे मान लिया। इसके बाद यही रिकॉर्ड राज्य सरकारों ने केंद्र को भेज दिया और केंद्र सरकार ने संसद को दिए जवाब में कह दिया कि देश में ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई।
जरा सोचिए। भारत में कौन ऐसा है जो इस सच को नहीं जानता कि बड़ी संख्या में लोग ऑक्सीजन की कमी से तड़प-तड़प कर मर गए? सच सब जानते हैं, मौतों का दुख सबको है, संवेदना भी है, पर सिस्टम ऐसा है कि सच को सामने आने नहीं देता। लेकिन भारत की जनता, देश की भाग्य विधाता तो सब जानती है। उसने अपनी आंखों से मरीजों की उखड़ती सांसें देखी हैं, ऑक्सीजन की कमी से उन्हें दम तोड़ते देखा है।
Why did state govts say ‘no one died due to lack of oxygen’?
Today I want to write on a sensitive issue. Several lakhs of people in India died of Covid during the second wave of pandemic that swept through the country in the months of April and May. Most of them died due to lack of oxygen, hospital beds and ICU ventilators. On Tuesday, the Centre told Parliament in a written reply that “no death due to lack of oxygen have been specifically reported by states/UTs”. This caused a furore in social media and political circles. The central govt said this because information sent by state governments said “no one died of lack of oxygen?”
Were the images of people gasping for breath due to lack of oxygen fake? Were the images of thousands of people waiting in queues for refill of oxygen cylinders imaginary? Were the videos of doctors and hospital owners weeping with folded hands seeking oxygen supply mere drama? Was the video of a son rushing out to get cylinder leaving his mother gasping for breath inside car fake? Was the image of a lady trying to pass on her breath to her dying husband on his mouth imaginary? Were the long queues of ambulance outside hospitals with patients gasping for breath inside fake? Were all these images and videos fake and illusory?
If the images were authentic then why did the state governments tell a lie?
There can be not an iota of doubt that there was acute scarcity of oxygen in hospitals across India during April and May. The Centre marshalled its Navy and Air Force, Railway and steel plants, to transport oxygen to the nook and corners of the country. Oxygen Express trains were run by the Railways transporting millions of tonnes of oxygen to different cities. You may have seen those videos on TV and multi-media. Then why did the government tell Parliament with confidence that “no death due to lack of oxygen have been specifically reported by states/UTs”?
I asked my reporters in Delhi, Noida, Ghaziabad, Meerut, Bhopal, Indore, Agra, Patna, Jaipur, Mumbai, Chandigarh, Mohali, Ahmedabad and Gandhinagar to speak to doctors of those hospitals, who had given distress calls for oxygen supply. They spoke to doctors who had said that Covid patients have died due to lack of oxygen supply. These doctors were specifically asked whether what they had said at that time was a lie, and if what whatever they had then said was true, did their hospitals share these informations, with the state governments?
Our reporters spoke to the state health ministers of Delhi, Rajasthan, UP, MP, Gujarat, Goa, Maharashtra, Bihar and Chhattisgarh and asked how many Covid patients died due to lack of oxygen, and what information did the state governments share with the Centre.
My first question was to the Centre. We asked BJP spokesperson Sambit Patra why such a reply was given. He said, the reply was a compilation of all information collected from state governments. The question should be posed to state governments, he said. He pointed out the first part of the written reply: “Although health is a state subject, all states report cases and deaths to the ministry on a regular basis, as per guidelines for reporting deaths.”
Sambit Patra gave the example of Delhi, where thousands of people queued for refill of their oxygen cylinders and there were images of patients gasping for breath in Delhi hospitals. The Supreme Court had to intervene and the Centre ordered immediate supply of medical oxygen to Delhi, and yet, not a single death due to lack of oxygen was reported by Delhi government. Patra pointed out that several dozen patients had died in Delhi’s Jaipur Golden Hospital, and yet not one statistic of death due to lack of oxygen figured in the Delhi government’s records.
Delhi’s deputy chief minister Manish Sisodia said, his government did not have any data on deaths due to lack of oxygen because the Centre did not let his government form an audit committee to look into the cause of deaths of Covid patients. He said, the Lt. Governor disbanded the audit committee. Sisodia alleged, the Centre wants to hide the truth about mismanagement, and does not want the figures to come out.
All such accusations and counter accusations are of a political nature, they are obfuscating and are meant to wriggle out of accountability. Both AAP and BJP leaders had in April and May seen images of thousands of patients gasping for oxygen, and their relatives standing in queues for refilling cylinders.
Our reporters went to hospitals and spoke to doctors. 22 patients died due to lack of oxygen supply on April 23 night in Delhi’s Jaipur Golden hospital, and the hospital’s medical director had confirmed the same in a live interview on India TV the next day. Does it require an audit committee for the Delhi government to tell the Centre about these deaths? On Wednesday, Delhi Health Minister Satyendar Jain said there were many deaths of patients due to lack of oxygen, but it was his government which had told the Delhi High Court on affidavit that there was no death due to lack of oxygen.
India TV reporter Gonika Arora met relatives of those who died due to lack of oxygen on April 23 night. These families showed medical death certificates in which the cause of death was shown as lung failure or heart failure, but there was no mention of lack of oxygen supply. When our reporter asked the director of Jaipur Golden Hospital, he said, heart, lungs and other organs of the body fail when there is lack of oxygen, but since the primary cause of death is written in the medical certificates, it is never written why the heart or the lungs failed to work, that is why lack of oxygen was not mentioned as the cause of death.
Not a single medical death report issued by Delhi hospitals mentioned lack of oxygen as the primary reason. On May 1, twelve patients including a doctor, died in Delhi’s Batra Hospital due to lack of oxygen. The hospital medical director S.C.L. Gupta was weeping in front of the camera while narrating the death of his colleague. I still remember that video which soon went viral. Yet, officially no certificate was issued about lack of oxygen being the primary cause of death.
There was acute shortage of medical oxygen in Delhi hospitals during April and May. Even Delhi government admitted it while filing petitions in High Court and Supreme Court. Cases of death of patients due to lack of oxygen in Batra and Jaipur Golden hospitals are in public domain. I still remember those tweets from Max and Shanti Mukund hospitals seeking urgent supply of oxygen. There are thousands of tweets and WhatsApp messages from Delhites desperately seeking oxygen for their near and dear ones.
Does a government require an audit committee to check whether people died due to lack of oxygen or not? Why did Delhi government tell the high court that there was no death due to lack of oxygen? People have seen hundreds of relatives weeping over the death of their near and dear ones, many of them expressed sympathy, almost all of them said people were dying due to lack of oxygen, and yet, neither the hospitals, nor Delhi government, gave it in writing that Covid patients died due to lack of oxygen. Why? Because nobody wants to carry the weight of dead bodies on shoulders. This happened in other states too.
Five Covid patients died on April 26 in Vedanta Hospital in Thane, and their relatives staged a violent protest. There was the viral image of a Covid patient collapsing to death, due to lack of oxygen, outside a Covid centre in Nashik, Maharashtra. The video and images were seen by millions of people and yet Maharashtra government is unwilling to admit that any Covid patient died due to lack of oxygen in the state. The irony is that ruling Shiv Sena leader Sanjay Raut said he was speechless on reading the Centre’s written reply. Raut said, families who lost their near and dear ones due to lack of oxygen should file cases against the government. Ironically, it is his party’s coalition government which had sent the information to the Centre that nobody died due to lack of oxygen in Maharashtra.
Similarly, thousands of Covid patients died due to lack of oxygen in Congress-ruled Chhattisgarh and Rajasthan, and yet, these state governments told the Centre nobody died due to lack of oxygen. On Wednesday, Rajasthan health minister Raghu Sharma admitted that thousands had died due to lack of oxygen in his state, but when he was asked why his department sent the information to the Centre that nobody died due to lack of oxygen, Sharma laughed it off by saying “aankadon ke maaya jaal me kya fansna, jo haqeeqat hai, who sabke saamne hai” (why entangle yourself in statistics, the truth is there for all to see).
Hundreds of Covid patients died due to lack of oxygen in Uttar Pradesh too. In Lucknow, Moradabad, Meerut, and Agra, thousands stood in queues throughout the night to get their oxygen cylinders refilled and hundreds of patients died due to lack of oxygen in hospitals. There was this famous video of a woman trying to give life to her husband by blowing air into his mouth unsuccessfully in Agra. At least 21 Covid patients died due to lack of oxygen in three top hospitals of Meerut on April 26, while seven members of a family died due to lack of oxygen in Bakshi Ka Talao in Lucknow. But in the official records of UP government, there is not a single death due to lack of oxygen till date. How did this miracle happen?
Our reporter spoke to UP health minister Jai Pratap Singh. His reply was interesting. He said, “our government carried out audit of each Covid death, but since there was no option to mention cause of death in the CoWin portal developed by the Centre, it will be incorrect to say that the UP government hid the truth.”
In Bihar, ruled by JD(U)-BJP coalition government, more than 8,500 people died of Covid from January till May, but the state government is unwilling to admit that any of them died due to lack of oxygen. Bihar health minister Mangal Pandey gave an interesting reply to India TV, “Demand for oxygen rose 14 times during April and May in hospitals, but not a single patient died due to lack of oxygen. We supplied adequate quantity of oxygen to hospitals. There could be instances of patients trying to reach hospitals but died on the way, but our government does not have any official information about their deaths.” How can anybody try to convince Mangal Pandey that it was his department’s responsibility to ensure that those gasping for oxygen are provided beds in hospitals?
The saddest part is that most of the state health ministers gave similar replies. Madhya Pradesh health minister Prabhuram Chaudhary claimed that adequate oxygen was supplied to the hospitals. When our reporter pointed out that hundreds of patients were in need of oxygen outside hospitals, he replied, “I have no information about what happened outside hospitals, I can only say this much that nobody died due to lack of oxygen inside hospitals.”
Whatever the Centre said in Parliament may be misinformation, but why is the Congress leadership not speaking about what their own health ministers are saying? Rahul Gandhi and Priyanka Gandhi Vadra made acerbic comments in their tweets over the death due to oxygen issue. This is not a Congress vs BJP issue, nor is it a Centre vs State issue. There may be some states where there was no scarcity of medical oxygen, but the same cannot be said about all.
I was sad and shocked over the manner in which politicians commented on this issue. Rahul Gandhi mocked the Centre by tweeting, “There was not only lack of oxygen, there was also lack of sensitivity and truth”. I agree it is a lie to say that nobody died due to lack of oxygen, but top Congress leaders should ask their state governments in Chhattisgarh and Rajasthan why they said nobody died due to lack of oxygen. Were their own health ministers lying or being insensitive? Congress is part of the Shiv Sena-NCP coalition government in Maharashtra. The state government filed an affidavit in Bombay High Court to claim that no one died due to lack of oxygen in the state. The AAP government in Delhi did the same.
The saddest part is that this is how our system works. Whether the government belongs to BJP, or Congress, or AAP or some other party, the information that appears on paper is quite different from ground realities. One thing is mentioned on paper, and a completely different thing comes out of politicians’ tongues. The hospitals wrote in medical death certificates that death was due to lung or heart failure. The hospitals did not mention lack of oxygen as the primary cause. The state governments took this info with their eyes shut. When the Centre sought info, the state governments dished out these fake info to Delhi, and Parliament was told that there was no death due to loss of oxygen.
Just imagine. Who in India does not know that a large number of people breathed their last while gasping for oxygen? Everybody knows the truth, the pain of death was felt by all, there was sensitivity among people over such deaths, but our system is such that it does not allow the ugly truth to come out. But the people of India, the final arbiters of the nation’s destiny, know what is the truth. They have seen with their own eyes how people died while gasping for breath.
आखिरकार कोरोना को लेकर दिखी उम्मीद की किरण, लेकिन लापरवाही न बरतें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को जब विपक्षी दलों के नेताओं के साथ कोरोना पर चर्चा कर रहे थे तो उसी दौरान एक अच्छी खबर आई। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा जारी किए गए ने चौथे नेशनल सीरो सर्वे में यह पाया गया कि 67.6 प्रतिशत भारतीयों में SARS-CoV2 वायरस यानी कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी डेवलप हो चुकी है जबकि कम से कम एक तिहाई आबादी पर अभी-भी संक्रमण का खतरा है।
हालांकि, आईसीएमआर प्रमुख डॉक्टर बलराम भार्गव ने आगाह किया कि हमें तुरंत किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए क्योंकि देश में कई जिले ऐसे हैं जहां पॉजिटिविटी रेट अभी भी ज्यादा है। उन्होंने कहा-ये निष्कर्ष एक आशा की एक किरण हैं, लेकिन ढिलाई की कोई गु्ंजाइश नहीं होनी चाहिए। हमें कोविड गाइलाइंस का पालन करते रहना होगा।’
आईसीएमआर के नतीजों के मुताबिक 45 से 60 साल के आयु वर्ग लोगों के बीच सबसे ज्यादा सीरो पॉजिटिविटी (77.6 प्रतिशत) पाई गई वहीं सबसे ज्यादा गतिशील रहनेवाले 18 से 44 साल के आयु वर्ग में सीरो पॉजिटिविटी कम पाई गई है। इस सर्वे में यह भी पाया गया कि अन्य उम्र के लोगों की तुलना में बच्चों में कोविड से संक्रमित होने का जोखिम कम है। इस रिपोर्ट ने पॉलिसी बनानेवाले लोगों और स्वास्थ्यकर्मियों के मन में एक भरोसा पैदा किया है। उनके विश्वास को जगा दिया है।
उधर, सर्वदलीय बैठक में पीएम मोदी ने कोरोना प्रबंधन पर विस्तार से प्रजेंटेशन दिया। इस बैठक में डीएमके, शिवसेना, तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल, टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस, बीएसपी और अन्य दलों ने हिस्सा लिया लेकिन कांग्रेस, अकाली दल, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, आरजेडी और वामपंथी दलों ने बहिष्कार किया। जिन विरोधी दलों के नेता कई दिनों से कह रहे थे कि संसद में सरकार के कोरोना कुप्रबंधन का मुद्दा उठाएंगे, उन्हीं दलों ने सर्वदलीय बैठक का बहिष्कार कर दिया।
पीएम मोदी ने विपक्ष के नेताओं के साथ चर्चा में कोरोना महामारी की संभावित तीसरी लहर का मुकाबला करने के लिए किए गए इंतजामों के बारे में भी बात की। उन्होंने वैक्सीनेशन अभियान को गति देने के लिए वैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाने के प्रयासों के बारे में भी बताया।
प्रधानमंत्री ने देश के हर जिले में कम से कम एक ऑक्सीजन प्लांट स्थापित करने के केंद्र सरकार के लक्ष्य के बारे में भी बताया। उन्होंने सभी राज्य सरकारों से जिला स्तर पर योजनाबद्ध तरीके से वैक्सीनेशन अभियान चलाने के लिए कहा। मोदी ने कहा कि वैक्सीनेशन अभियान शुरू होने के 6 महीने बाद भी बड़ी संख्या में स्वास्थ्यकर्मी और फ्रंट लाइन वर्कर्स को अभी वैक्सीन लगनी बाकी है।
उधर, राज्यसभा में कोरोना के मुद्दे पर बहस हुई जिसमें 23 दलों के 26 सदस्यों ने हिस्सा लिया। ज्यादातर सांसदों ने कोरोना की विनाशकारी दूसरी लहर को लेकर अपनी बात रखी और लाखों लोगों की मौत की बात कही। इन सांसदों ने सरकार से तीसरी लहर का मुकाबला करने के लिए तैयारी करने को कहा। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने चर्चा की शुरुआत की। खड़गे ने सरकार पर कोरोना से हुई मौत के गलत आंकड़े पेश करने का इल्जाम लगाया। उन्होंने कोरोना से हुई मौत के आधिकारिक आंकड़ों पर सवाल उठाते हुए पूछा-क्या कोरोना से हुई मौतों की संख्या हमेशा के लिए एक रहस्य बनी रहेगी?’ उन्होंने आरोप लगाया कि देश के 6 लाख से ज्यादा गांवों में ही 30 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और सरकार कोरोना से सिर्फ चार लाख लोगों की मौत का आंकड़ा दे रही है।
बहस के दौरान ज्यादातर सदस्यों ने वैक्सीन की कमी का मुद्दा उठाया जबकि कई सदस्यों ने गंगा में तैरती लाशें, मजदूरों का पलायन, ऑक्सीजन की कमी से बड़े पैमाने पर मौत का मुद्दा उठाया। स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर पहली बार इस बहस में हस्तक्षेप करते हुए मनसुख मंडाविया ने सभी से अपील की कि वे कोरोना महामारी के मुद्दे का राजनीतिकरण न करें क्योंकि तीसरी लहर का मुकाबला करने के लिए समाज के सभी वर्गों के सहयोग की जरूरत है।
मंडाविया ने बेहद स्पष्ट और प्रभावी तरीके से अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, वैक्सीन की आपूर्ति में सुधार हो रहा है और जो लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं उन्हें पूरा किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कोविशील्ड, कोवैक्सिन और स्पुतनिक वी बनाने वाली कंपनियों ने उत्पादन और वितरण की अपनी कोशिशों को बढ़ाया है और बहुत जल्द वैक्सीन की कमी खत्म हो जाएगी। उन्होंने कहा कि भारत डीएनए आधारित वैक्सीन विकसित करने वाला दुनिया का पहला देश बन सकता है। इसे जाइडस कैडिला द्वारा तैयार किया जा है। इसके ट्रायल का तीसरा चरण पूरा हो चुका है और ड्रग्स कंट्रोलर ऑफ इंडिया से इसके इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत मांगी गई है। मंडाविया ने कहा कि अगर उत्पादन शुरू होता है तो यह भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित पहली डीएनए वैक्सीन होगी। उन्होंने यह भी कहा कि यह कहना उचित नहीं होगा कि कोरोना की तीसरी लहर बच्चों पर ज्यादा असर डालेगी। उन्होंने अपने दावे की पुष्टि के लिए कोरोना की पहली और दूसरी लहर के आंकड़ों का हवाला दिया।
मैं मनसुख मांडविया की प्रशंसा करूंगा। वो नए-नए मंत्री बने हैं। दो हफ्ते पहले ही स्वास्थ्य मंत्री का कामकाज संभाला है, लेकिन उन्होंने पूरे कॉन्फिडेंस के साथ सारे सवालों के जवाब दिए। किसी सवाल को टालने की कोशिश नहीं की। जैसे अब तक तो सिर्फ ये दावा किया जाता था कि वैक्सीन उपलब्ध है और जब लोगों को वैक्सीन नहीं मिलती थी और लोग वैक्सीनेशन सेंटर से खाली हाथ घर लौटते थे तो अविश्वास का वातावरण पैदा होता था। मनसुख मांडविया ने ये माना कि वैक्सीन की कमी है। विभिन्न राज्यों को जितनी जरूरत है उसके हिसाब से उत्पादन नहीं हो रहा है और उन्होंने ये भी समझाया कि वैक्सीन की कमी क्यों है। मुझे लगता है कि अब देश में वैक्सीन को लेकर लोगों के बीच झिझक लगभग कम हो गई है लिहाजा इसकी मांग बढ़ गई है।
पूरी दुनिया से ये रिपोर्ट्स मिल रही है कि जिन देशों में 50 प्रतिशत से ज्यादा आबादी को वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी है वहां लोगों को कोरोना से संक्रमित होने के बाद अस्पातलों में नहीं जाना पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि सारी ताकत इस बात पर लगाई जाए कि हमारे यहां वैक्सीन का उत्पादन तेजी से बढ़े और जहां से भी, जैसे भी इंपोर्ट की जा सकती है, उसे हासिल किया जाए। कई सांसदों ने केंद्र से कहा कि वह स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से जल्द से जल्द मान्यता दिलाए।
स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया की बात सुनकर इस बात का भरोसा हुआ कि सरकार सही दिशा में काम कर रही है और हम तीसरी लहर का मुकाबला करने की तैयारी कर रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री की तरफ से बताया गया कि वैक्सीन के मामले में सरकार क्या-क्या कदम उठा रही है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी सर्वदलीय बैठक में सभी राजनीतिक दलों और सभी राज्य सरकारों से केन्द्र सरकार के साथ मिलकर काम करने की अपील की। मोदी ने कहा कि मिलकर लड़ेंगे तो कोरोना को जल्दी हरा पाएंगे। इस मामले में सियासत की कोई गुंजाइश नहीं है। 68 प्रतिशत भारतीयों में कोविड एंटीबॉडी होने की आईसीएमआर की रिपोर्ट से राहत और उम्मीद की एक किरण नजर आई है, लेकिन ढिलाई की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। आइए, हम सब साथ मिलकर इस जंग को लड़ें और जीत हासिल करें।
At last, a ray of hope from Covid front, but no room for complacency
On Tuesday, when the Prime Minister Narendra Modi was interacting with floor leaders of opposition parties on the Covid issue, came a good news. The fourth national sero survey findings released by Indian Council of Medical Research, show that 67.6 per cent Indians have antibodies against the SARS-CoV2 virus, while at least one third of the population is still vulnerable.
The ICMR chief Dr Balram Bhargava however cautioned that we should not jump to quick conclusions because there are many districts across India where the positivity rate is still high. “The findings show there is a ray of hope, but there is no room for complacency. We have to maintain Covid-appropriate behaviour and community engagement”, he said.
According to the ICMR findings, the highest sero-positivity (77.6 per cent) was found in the age group between 45 and 60 years, but not in the 18-44 age group, which is very much mobile. Children showed the lowest exposure to Covid as compared to other age groups. This report has instilled confidence in the minds of policymakers and healthcare workers.
At the all-party meet, Prime Minister Modi gave a detailed presentation on Covid management. The meeting was attended by DMK, Shiv Sena, Trinamool Congress, Biju Janata Dal, TRS, YSR Congress, BSP and others, but boycotted by Congress, Akali Dal, Aam Aadmi Party, Samajwadi Party, RJD and Left parties. The parties which skipped the all-party meet had earlier promised to raise the Covid mismanagement issue in Parliament.
Modi, while interacting with floor leaders, spoke about the arrangements that have been made to counter a potential third wave of Covid pandemic. He also spoke about efforts to boost production of Covid vaccines in order to scale up the vaccination drive.
The Prime Minister spoke about the Centre’s aim to set up at least one oxygen plant in every district of India. He also asked all state governments to properly plan vaccination drives at the district level. Modi said, a large number of health care workers and frontline workers are yet to get the vaccine, even after six months since the vaccination drive started.
In the Rajya Sabha, there was a full-fledged debate on Covid issue, in which 26 members from 23 parties took part. Most of the MPs spoke about the devastating second wave that caused deaths of several lakhs of people, and asked the government to make preparations to counter the third wave. Congress leader Mallikarjun Khadge led the charge and questioned the official death toll asking “Will the number of deaths due to Covid remain a mystery forever?” Khadge alleged that more than 30 lakh people have died of Covid in nearly six lakh villages across India, whereas the official death toll is confined to only four lakhs.
During the debate, most of the members raised the issue of vaccine shortage, while other members raised questions about floating of bodies in river Ganga, migration of labourers and large scale deaths due to lack of oxygen. In his first intervention as Health Minister, Mansukh Mandaviya appealed to all sections not to politicize the Covid pandemic issue, because it required all-round cooperation from all sections of people to counter the danger of a third wave.
Mandaviya was emphatic and spoke to the point. He said, vaccine supplies were improving and goals will be met. He said, companies manufacturing Covishield, Covaxin and Sputnik V have boosted their efforts and very soon the shortage will be over. India, he said, may become the first country in the world to develop a DNA-based vaccine, being prepared by Zydus Cadila. The third phase of the trial has been completed and emergency use authorisation has been sought from the Drugs Controller General of India. If production starts, Mandaviya said, this will be the first DNA vaccine developed by Indian scientists. He also said, it will not be appropriate to say the third wave will hit children more. He cited data from the first and second waves to buttress his claim.
I appreciate the manner in which Mandaviya handled the debate and replied to queries from members with full confidence. He had taken charge of health ministry only two weeks ago, but he had facts ready at his fingertips. He did not try to duck questions even once.
Till now, the Centre had been claiming that adequate vaccine stocks were available, and when people returned empty handed from vaccination centres, a sort of mistrust grew in the minds of people. Mandaviya, on Tuesday, admitted that there was vaccine shortage and vaccines were not being manufactured on a scale required by different states. He also explained the reasons behind vaccine shortage. Now that vaccine hesitancy has almost declined among the people, the demand for vaccines has gone up.
There are reports from across the world about countries, where more than 50 per cent people who have taken both doses of vaccine, need not go to hospitals if they are infected with Covid. Hence the need to boost domestic production and procure more vaccines through import. Many of the MPs asked the Centre to get WHO recognition for Covaxin that has been indigenously developed in India.
After hearing Mandaviya speak, I am confident that we are now moving in the right direction on issues relating to vaccines and preparations to counter a third wave. The Prime Minister, too, at the all-party meeting appealed to all political parties and state governments to join hands in fighting the pandemic. There must be no scope for politicizing issues related to the pandemic. The ICMR report on 68 per cent of Indians having Covid antibodies has given a ray of hope and relief, but there must be no scope for complacency. Let us fight and win this war, together.
पैगसस स्पाइवेयर: सिर्फ आरोप लगाना काफी नहीं, निगरानी का सबूत भी जरूरी
राजनीतिक गलियारों में सोमवार को इस बात को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे कि क्या मोदी सरकार ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पॉलिटिकल स्ट्रैटजिस्ट प्रशांत किशोर और कुछ पत्रकारों की जासूसी तो नहीं की। पेरिस स्थित मीडिया नॉन-प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन फॉरबिडन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक, इजरायल के एनएसओ ग्रुप द्वारा बेचे जाने वाले स्पाइवेयर पैगसस का इस्तेमाल लगभग 300 भारतीयों पर निगरानी रखने के लिए किया गया था। आरोपों के मुताबिक इस लिस्ट में 3 विपक्षी नेता, 2 कैबिनेट मंत्री, एक पूर्व चुनाव आयुक्त, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, NGO ऐक्टिविस्ट, बिजनेसमैन और वकील शामिल हैं।
मीडिया वेबसाइट्स ने 40 पत्रकारों के नाम गिनाए जिनके बारे में दावा किया गया था कि उनकी निगरानी की जा रही थी। सोमवार को आई नामों की एक दूसरी लिस्ट ने विवाद को और हवा दे दी जिसमें राहुल गांधी, उनके कुछ दोस्तों और सहयोगियों, पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, वर्तमान कैबिनेट मंत्रियों अश्विनी वैष्णव एवं प्रह्लाद पटेल और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी की पैगसस स्पाइवेयर के जरिए निगरानी का आरोप लगाया गया था। संसद के दोनों सदनों में जमकर हंगामा हुआ क्योंकि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने नए मंत्रियों का परिचय कराने जा रहे थे तब विपक्ष ने व्यवधान पैदा किया।
सरकार ने तुरंत इन आरोपों को खारिज कर दिया और दावा किया कि ‘किसी तरह की अवैध निगरानी नहीं हुई है।’ हालांकि कांग्रेस ने अमित शाह के इस्तीफे और एक संयुक्त संसदीय जांच की मांग की, गृह मंत्री ने कहा, ‘ऑज मॉनसून सत्र शुरू हो गया है। देश के लोकतंत्र को बदनाम करने के लिए मॉनसून सत्र से ठीक पहले कल देर शाम एक रिपोर्ट आती है, जिसे कुछ वर्गों द्वारा केवल एक ही उद्देश्य के साथ फैलाया जाता है कि कैसे भारत की विकास यात्रा को पटरी से उतारा जाए और अपने पुराने ‘नैरेटिव’ के तहत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को अपमानित करने के लिए जो कुछ भी करना पड़े, किया जाए।’
अमित शाह ने कहा, ‘आज मैं गंभीरता से कहना चाहता हूं इस तथाकथित रिपोर्ट के लीक होने का समय और फिर संसद में ये व्यवधान, आप क्रोनोलॉजी समझिए। यह भारत के विकास में विघ्न डालने वालों की भारत के विकास के अवरोधकों के लिए एक रिपोर्ट है। कुछ विघटनकारी वैश्विक संगठन हैं, जो भारत की प्रगति को पसंद नहीं करते हैं। ये अवरोधक भारत के वो राजनीतिक षड्यंत्रकारी हैं जो नहीं चाहते कि भारत प्रगति कर आत्मनिर्भर बने। भारत की जनता इस ‘क्रोनोलोजी’ और रिश्ते को बहुत अच्छे से समझती है।’
सरकार द्वारा इन रिपोर्ट्स में लगाए गए आरोपों को खारिज करने के बाद पैगसस सॉफ्टवेयर के जरिए निगरानी से संबंधित रिपोर्टों की प्रामाणिकता पर सवाल उठने लगे। सबसे दिलचस्प बात यह है कि जिस मीडिया एजेंसी ने रिपोर्ट लीक की है, वह खुद कह रही है कि डेटाबेस में लोगों का नाम होने का मतलब ये नहीं है कि उन के फोन पैगसस स्पाइवेयर के द्वारा हैक किए गए हैं। सबसे बड़ी बात कि किसी ने इस बात के प्रमाण नहीं दिए कि इन लोगों के फोन की बातचीत को किसी ने सुना या किसी ने रिकॉर्ड किया।
इजरायली कंपनी NSO ने रिपोर्ट में किए गए दावों को खारिज करते हुए कहा, ‘हम एक टेक्नोलॉजी कंपनी हैं। हमारे पास न तो वे नंबर हैं और न ही हमारे पास वह डेटा है जो हमारी तकनीक खरीदने वाले क्लाइंट के पास रहता है। हमारे पास कोई सर्वर या कंप्यूटर नहीं है जहां अपना स्पाइवेयर लाइसेंस किसी ग्राहक को देते हुए उसका डेटा स्टोर किया जाता हो।’ कंपनी ने कहा कि ऐसा लगता है कि रिपोर्ट्स में पैगसस को जासूसी के लिए इस्तेमाल किए जाने को लेकर बढ़ा-चढ़ाकर दावे किए गए हैं। कंपनी ने फोन को हैक किए जाने को लेकर किए गए फॉरेंसिक जांच के दावों पर भी सवाल उठाए।
इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी अश्विनी वैष्णव ने कहा, ‘जब निगरानी की बात आती है तो भारत के पास एक स्थापित प्रोटोकॉल है। देश में स्थापित कानूनी प्रक्रियाएं यह सुनिश्चित करती हैं कि किसी भी प्रकार की गैरकानूनी निगरानी संभव नहीं है।’
पैगसस स्पाइवेयर क्या है? यह एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जिसे किसी शख्स की जानकारी के बिना उसके फोन की निगरानी करने लिए डिजाइन किया गया है। यह उसकी व्यक्तिगत जानकारी इकट्ठा करता है और उस शख्स के पास भेज देता है जो जासूसी के लिए इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रहा होता है। पैगसस की बहुत ज्यादा डिमांड है क्योंकि यह एंड्रॉयड पर काम करने वाले फोन के अलावा आईपैड और आईफोन को भी हैक कर सकता है। यह फोन के आस-पास की गतिविधि को कैप्चर करने के लिए फोन के कैमरे और माइक्रोफोन को भी चालू कर सकता है।
एनएसओ के प्रोडक्ट ब्रॉशर के मुताबिक, स्पाइवेयर फोन पर हो रही बातचीत को भी रिकॉर्ड कर सकता है और यूजर की जानकारी के बिना स्क्रीनशॉट भी ले सकता है। जब इस स्पाइवेयर का काम खत्म हो जाता है तो यह अपने आप खुद को खत्म भी कर लेता है। NSO का दावा है कि वह अपने स्पाइवेयर का लाइसेंस केवल सरकारों को बेचता है, किसी प्राइवेट कंपनी या शख्स को नहीं। कंपनी का दावा है कि स्पाइवेयर का इस्तेमाल केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में और आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए किया जाता है।
2014 से लेकर 2 सप्ताह पहले तक इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रहे रविशंकर प्रसाद इन न्यूज रिपोर्ट्स में किए गए दावों को खारिज करने के लिए आगे आए। उन्होंने कहा कि जासूसी को लेकर एक भी ठोस सबूत अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है और चारों तरफ से केवल आरोप ही लगाए जा रहे हैं।
मैं इस पूरे विवाद में दो बुनियादी बिंदुओं पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं: पहली तो ये कि विपक्ष की निगरानी करना और उनके नेताओं की बातचीत पर नजर रखना लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है। पत्रकारों, राजनीतिक नेताओं और न्यायपालिका से जुड़े लोगों पर नजर रखना किसी भी तरह से जायज नहीं माना जा सकता। दूसरी बात ये कि आतंकवादियों, अपराधियों और देश के दुश्मनों की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए उन पर नजर रखने का सरकार को अधिकार है।
ये दो बुनियादी नियम हैं जिनका पालन करने की जरूरत है। जहां तक पैगसस प्रोजेक्ट की बात है तो इसमें लगभग 300 भारतीयों के नाम सामने आए थे, लेकिन इस बात का एक भी ठोस सबूत नहीं दिया गया जिससे पता चलता हो कि इन लोगों के फोन हैक किए गए थे और वह भी सरकार के द्वारा। जब मीडिया में इस तरह की खबरें आती हैं, तो स्वाभाविक रूप से विपक्ष हंगामा करता ही है। लेकिन यह पहली बार नहीं हुआ है जब भारत में जासूसी के इस तरह के आरोप लगे हैं।
अभी कुछ दिन पहले ही सचिन पायलट का समर्थन करने वाले कुछ विधायकों ने आरोप लगाया था कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनके फोन टैप करवाए थे। प्रणव मुखर्जी जब डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार में वित्त मंत्री थे तो उन्होंने शिकायत की थी कि नॉर्थ ब्लॉक के उनके दफ्तर में कुछ गड़बड़ी की गई थी। उनके ऑफिस के अंदर सीक्रेट माइक्रोफोन लगाए गए थे। 1990 में जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे तब कांग्रेस नेता राजीव गांधी ने आरोप लगाया था कि उनकी जासूसी के लिए उनके बंगले पर हरियाणा के पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है। इसी जासूसी की बात पर कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और चंद्रशेखर को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तब विपक्ष के तत्कालीन नेता लालकृष्ण आडवाणी ने खुलासा किया था कि कुछ पत्रकारों के फोन टैप किए जा रहे हैं। मैं अतीत से ऐसे बहुत सारे वाकये गिना सकता हूं।
यह आरोप लगाना बहुत आसान है कि जासूसी हो रही है, फोन की टैपिंग हो रही है, हैकिंग हो रही है, लेकिन ऐसे आरोपों के समर्थन में ठोस सबूत होने चाहिए। पहले की बात भूल जाइए। आज के डिजिटल जमानें में यह पता लगाना बहुत आसान है कि कोई फोन हैक किया गया है या उसकी जासूसी की गई है। इस तरह की जासूसी के सबूत मिटाना मुश्किल है और फॉरेंसिक जांच के दौरान इसका पता लगाया जा सकता है। इसलिए सिर्फ डेटाबेस के आधार पर, बिना किसी प्रूफ के आरोप लगेंगे तो कोई यकीन नहीं करेगा। जब तक जासूसी के ठोस सबूत जनता के सामने नहीं रखे जाते तब तक कोई भी इन बातों पर विश्वास नहीं करेगा।
Pegasus spyware: Making allegation is not enough, proof of surveillance is needed
There were lots of speculations in political circles on Monday about whether the Modi government snooped on Congress leader Rahul Gandhi, political strategist Prashant Kishor and some journalists. According to Paris-based media non-profit organization Forbidden Stories and Amnesty International, spyware Pegasus sold by Israeli NSO Group, was used to conduct surveillance on nearly 300 Indians. It was alleged, the list includes three opposition leaders, two cabinet ministers, a former election commissioner, government officials, scientists, NGO activists, businessmen and lawyers.
Media websites circulated the names of 40 journalists who, it claimed, were put under surveillance. On Monday, the controversy was fanned by a second list of names to allege that Rahul Gandhi, some of his friends and aides, former Election Commissioner Ashok Lavasa, presently cabinet ministers Ashwini Vaishnaw and Prahlad Patel, and Mamata Banerjee’s nephew Abhishek Banerjee were targeted for surveillance Pegasus spyware. There was pandemonium in both House of Parliament as opposition obstructed Prime Minister Narendra Modi from introducing his new ministers.
The government promptly rejected allegations and claimed that there was “no illegal surveillance”. While Congress demanded Amit Shah’s resignation and a joint parliamentary probe, the Home Minister said, ”Today the monsoon session has started. In what seemed like a perfect cue, late last evening we saw a report that has been amplified by a few sections with only one aim – to do whatever is possible and humiliate India at the world stage, peddle the same old narratives about our nation and derail India’s development trajectory”.
Amit Shah said, “Today I want to seriously say – the timing of the selective leaks, the disruptions (in Parliament) – Aap Chronology Samjhiye! This is a report by the disruptors for the obstructors. Disruptors are global organizations which do not like India to progress. Obstructors are political players in India, who do not want India to progress. People of India are very good at understanding this chronology and connection.”
After the government rejected the allegations made in the reports, questions began to be raised about the authenticity of the reports relating to Pegasus software surveillance. The most interesting part is that the media agency that has leaked the report is itself stating that the mere mention of names does not mean that the phones of the individuals have been compromised by Pegasus spyware. But at the end of the day, nobody could say with authority that the cell phones were put on surveillance or were hacked.
The Israeli company NSO rejected claims made in the reports saying, “we are a technology company, we neither have numbers, nor do we have data, that remains with the client that gets our technology. There is no server or computer with us where data is stored when our spyware licence is given to a customer.” The company said, the claims being made in reports about Pegasus being used for snooping appear to be exaggerated. The company also questioned claims of forensic examinations that showed a breach on the phones.
Electronics and Information Technology Minister Ashwini Vaishnaw said, “India has an established protocol when it comes to surveillance…Any form of illegal surveillance is not possible with the checks and balance in our laws and our robust institutions.”
What is Pegasus spyware? It is a software, you can call it a malicious malware, which is designed to gain access to your device, without your knowledge, gather personal information and rely them back to whoever is using the software to spy on an individual. Pegasus is widely sought because it can hack into iPads and iPhones apart from phones working on Android. It can also turn on a phone’s camera and microphone to capture activity in the phone’s vicinity.
According to NSO product brochure, the spyware can also record conversations on phone and take screenshots of the vicinity without the knowledge of the user. After the spyware’s work is over, it destroys itself on its own. NSO claims that it sells licence of its spyware only to governments, and not to any private buyers. NSO claims the spyware is used only in the interest of national security and to curb terrorism.
Ravi Shankar Prasad, who was Electronics and Information Technology Minister since 2014 till two weeks back, came forward to reject the claims made in news reports. He said, not a single shred of concrete evidence of snooping has been placed in public till now and only charges are being levelled from different directions.
I would like to draw people’s attention to two basic points in this entire controversy: One, to put opposition under surveillance and snoop on conversations of their leaders is against the basic postulate of democracy. To put journalists, political leaders and those from judiciary under surveillance cannot, by any stretch of imagination, be considered acceptable. Two, in order to put curbs on anti-national activities of terrorists, criminals and enemies of the nation, every government has the right to use the tool of surveillance against such elements.
These are the two basic rules which need to be followed. As far as the Pegasus project is concerned, though names of nearly 300 Indians were given, not a single concrete evidence has come out to show whether any cell phone was hacked or put under surveillance, and, that too, by the government. Naturally, when such reports appear in the media, the opposition is bound to raise a hue and cry. But this is not the first time that such allegations of snooping were made in India.
A few days ago, some MLAs supporting dissident leader Sachin Pilot alleged that their phones have been put under surveillance by Rajasthan chief minister Ashok Gehlot. When the late Pranab Mukherjee was Finance Minister in Dr Manmohan Singh’s government, he had complained that his office room in North Block was bugged. Secret microphones were found hidden inside his office. In 1990, when Chandrashekhar was Prime Minister, Congress leader Rajiv Gandhi had alleged that Haryana policemen were posted outside his bungalow for surveillance. The Congress withdrew support and Chandrashekhar had to resign. When Rajiv Gandhi was Prime Minister, the then opposition leader L K Advani had named journalists, whose telephones had been put under surveillance. I can quote some more examples from the past.
It is very easy to allege that phones of individuals are being snooped and conversations are being taped, but there must be concrete evidence to back such allegations. Forget the past. In today’s highly technological digital world, it is very easy to trace whether a phone has been hacked or snooped. Evidence of snooping is difficult to erase and it can be traced during forensic examination. Levelling charges of surveillance by mentioning phone numbers from database alone will not do. Nobody will believe until and unless concrete evidence of snooping is placed before the public.
यूपी विधानसभा चुनाव के लिए योगी आदित्यनाथ की रणनीति
उत्तर प्रदेश का सियासी माहौल शुक्रवार को और गर्म हो गया जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ कर दिया कि आने वाले सात-आठ महीनों में उनकी सरकार का इरादा क्या है। उनकी सरकार कौन-कौन से काम करेगी। इसका उन्होंने व्यापक संकेत दिया। इसके साथ ही उन्होंने इस बात का भी संकेत दिया कि उनका चुनाव प्रचार किस दिशा में आगे बढ़ेगा।
योगी आदित्यनाथ समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव पर भी जमकर बरसे। उन्होंने उस बयान की निंदा की जिसमें अखिलेश ने कहा था कि ‘मैं यूपी पुलिस और राज्य में योगी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के कामों पर भरोसा नहीं कर सकता।’ दो दिन पहले अखिलेश यादव ने यह टिप्पणी काकोरी से अलकायदा समर्थक और अंसार गजवत-उल- हिंद से जुड़े दो संदिग्ध आतंकवादियों की एटीएस द्वारा गिरफ्तारी के बाद की थी। एटीएस अधिकारियों का कहना था कि ये लोग कई जगहों पर विस्फोट करने के लिए ‘मानव बम’ का इस्तेमाल करने की प्लानिंग रहे थे। इनकी गिरफ्तारी के बाद भारी मात्रा में विस्फोटक भी बरामद किया गया।
योगी ने आरोप लगाया कि आगरा में समाजवादी पार्टी के नेता द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन के दौरान ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए गए। उन्होंने कहा, ‘इससे पता चलता है कि ये लोग वोट बैंक की राजनीति के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को दांव पर लगा सकते हैं।’ मुख्यमंत्री योगी ने यूपी में हुए धर्मातंरण का भी जिक्र किया। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे ‘जिहादी तत्वों’ द्वारा बेरोजगार युवाओं और ऐसे बच्चों का धर्म बदल दिया गया जो न तो बोल सकते हैं और न ही सुन सकते हैं।
सीएम योगी ने कहा, कुछ तत्वों द्वारा अपनी पहचान बदलने और दिव्यांग बच्चों को ‘जिहादी उन्माद’ फैलाने की मुहिम में शामिल करने के हाल की घटनाओं ने साबित कर दिया है कि उनकी सरकार का धर्मांतरण विरोधी कानून लागू करने का कदम सही था। यूपी पुलिस ने समाजवादी पार्टी के नेता वाजिद निसार की रैली में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाने के मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। सपा नेता ने इस घटना से खुद को और अपनी पार्टी को यह कहते हुए दूर कर लिया है कि जिन लोगों ने यह नारा लगाया, वे सपा कार्यकर्ता नहीं थे।
यहां एक बात कहना जरूरी है। मुझे लगता है कि कोई भी हिन्दुस्तानी चाहे वो हिन्दू, मुसलमान, सिख या ईसाई हो, चाहे वह सरकार से कितना भी नाराज क्यों न हो, वो पाकिस्तान के समर्थन में नारे तो नहीं लगा सकता। भारत में कोई भी पार्टी या नेता अपनी रैलियों में पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाकर वोट पाने का सपना नहीं देख सकता। इसलिए मुझे लगता है कि इस वीडियो की जांच होनी चाहिए। यूपी पुलिस आवाज के नमूने ले और जांच करे कि क्या आगरा की उस रैली में प्रदर्शनकारियों द्वारा इस तरह के नारे लगाए गए थे। अगर वाकई में किसी सिरफिरे ने ऐसा नारा लगाया है तो उसके खिलाफ एक्शन होना चाहिए। अगर किसी शरारती व्यक्ति ने इस तरह के नारों का ऑडियो वीडियो में सुपरइंपोज किया है, तो अधिकारियों को उस पर कार्रवाई करनी चाहिए।
इस तरह की नारेबाजी के लिए अखिलेश यादव को या समाजवादी पार्टी को दोष देना ठीक नहीं होगा। इसलिए जब तक कुछ साबित ना हो जाए, इस तरह की बातों को राजनीति में ज्यादा तवज्जो नहीं देनी चाहिए। लेकिन चुनाव के वक्त में ऐसी बातें सब करते हैं। पाकिस्तान के समर्थन में नारेबाजी से वोट मिले ना मिले, इस तरह की घटनाओं पर विरोध की आवाज उठाकर राजनीतिक दल लोगों का समर्थन पाने की कोशिश कर सकते हैं।
इसीलिए जब सीएम योगी ने अपने भाषण में लव जिहाद की बात की तो फिर पाकिस्तान का जिक्र किया। योगी ने कहा जो पाकिस्तान का समर्थन करते हैं वही ‘लव जिहाद’ के भी समर्थक हैं। लेकिन अब ये यूपी में नहीं चलेगा। लव जिहाद के खिलाफ सख्त कानून बन गया है और उसका असर दिख रहा है। फर्जी पहचान का इस्तेमाल कर हिंदू लड़कियों के धर्मांतरण की कोशिश करने के मामले सामने आए हैं। योगी ने उन लोगों को भी जवाब दिया जो उनकी सरकार की कोरोना मैनेजमेंट पर सवाल उठा रहे हैं। योगी ने कहा कि ये विपक्षी नेता तब कहां थे जब यूपी के लोग महामारी की दूसरी लहर से लड़ रहे थे। उन्होंने कहा कि विरोधी दलों के नेता उस वक्त घर से नहीं निकले जब कोरोना घर-घर में था। जब वैक्सीन आई तब घर से निकले लेकिन घर से निकलकर वैक्सीन के बारे में अफवाह फैलाने लगे।
उधर, प्रियंका गांधी ने शुक्रवार को लखनऊ में गांधी मूर्ति के पास पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मौन विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने हाल में संपन्न ब्लॉक पंचायत चुनावों में ‘हिंसा और घोर अनियमितता’ का आरोप लगाया। प्रियंका ने खासतौर से महिलाओं के खिलाफ हिंसा का मुद्दा भी उठाया।
यूपी विधानसभा चुनाव में अभी वक्त है। बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों मेहनत कर रही हैं। दोनों ही पार्टियां चुनाव में जाने से पहले उम्मीदवारों के चयन और मुद्दों को लेकर पहले से ही तैयारी कर रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की प्रदर्शन ऐतिहासिक था। बीजेपी ने 403 में 312 सीटें जीती थी। बाकी सभी पार्टियां 91 सीटों पर सिमट गईं थीं। ये हाल तब था जब यूपी मे अखिलेश यादव और राहुल गांधी साथ-साथ थे। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन था। इसके बाद भी समाजवादी पार्टी 224 से सिमट कर 47 पर आ गई और कांग्रेस को सिर्फ 7 सीटें मिली। मायावती की बहुजन समाज पार्टी सभी सीटों पर लड़ी थी लेकिन उसे सिर्फ 19 सीटें मिलीं।
साढ़े चार साल सत्ता में रहने के बाद बीजेपी नेताओं को अब जनता को अपने काम का हिसाब-किताब देना होगा। बहुत सारे सवालों के जवाब देने होंगे। अधिकांश विपक्षी दल कोरोना प्रबंधन के मुद्दे पर योगी आदित्यनाथ को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। ये सही है कि आज उत्तर प्रदेश में कोरोना के मामले नियंत्रण में हैं। लेकिन अप्रैल-मई का समय ऐसा था जब अस्पतालों में जगह नहीं थी, ऑक्सीजन की कमी थी, श्मशानों में लाइनें लगी थीं और गंगा में लाशें तैरती नजर आईं थी, गंगा के किनारे रेत में दबे शवों के दृश्य सामने आए थे। चुनाव की तारीख करीब आते ही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के लोग बार-बार ये बातें लोगों को याद दिलाएंगे और जनता के बीच इस मुद्दे को उठाने की कोशिश करेंगे।
जहां तक प्रियंका गांधी की बात है तो उन्हें सक्रिय राजनीति में आए ढाई साल हुए हैं। ढाई साल पहले उन्हें यूपी की जिम्मेदारी मिली थी। वह अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए राज्य भर में घूम रही हैं। लेकिन यूपी में कांग्रेस का संगठन पूरी तरह बिखरा हुआ है। यहां हर स्तर पर गुटबाजी है। राहुल गांधी अमेठी हार चुके हैं और अब बीजेपी ने सोनिया गांधी के निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली पर भी शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। इसलिए यूपी में कांग्रेस को फाइट में लाना आसान काम नहीं है। लेकिन हालत कितनी भी खराब हो प्रियंका कम से कम ग्राउंड में एक्शन में दिखाई तो देती हैं। अब यह पार्टी नेताओं पर है कि वे उनकी मौजूदगी का अधिकतम लाभ कैसे उठाते हैं।
योगी का भाषण साफ तौर पर उस रणनीति की रूपरेखा है जिसे वह आनेवाले विधानसभा चुनावों के लिए तैयार कर रहे हैं। योगी धर्म परिवर्तन और आतंकवाद, दो ऐसा मुद्दा बनाना चाहते हैं जिस पर वह अपना प्रचार अभियान शुरू करेंगे। बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने भी राज्य पार्टी कार्यकारिणी को संबोधित किया और राज्य के नेताओं को योगी सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों द्वारा किए जा रहे दुष्प्रचार से निपटने की सलाह दी।
How Yogi is charting out his course for UP assembly polls
The political atmosphere in Uttar Pradesh hotted up on Friday with Chief Minister Yogi Adityanath giving broad hints of what he intends to do in the next seven to eight months in the run-up to the assembly elections. He indicated the direction in which his election campaign will proceed.
Yogi lashed out at Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav for the latter’s remark that “I can’t trust the actions of UP police and Yogi-led BJP government in the state”. Two days ago, Akhilesh Yadav had made this remark over the arrest by anti-terrorist squad of two suspected pro-Al-Qaeda terrorists belonging to Ansar Ghazwatul Hind from Kakori. ATS officials said, they were planning to send “human bombs” to carry out blasts in several places. Large amount of explosives were also seized after their arrest.
Yogi also alleged that ‘Pakistan Zindabad’ slogans were raised at a protest organized by an SP leader in Agra. He said, “this shows that these people can put national security at stake for the sake of vote bank politics”. The chief minister also alleged that unemployed youths and children with hearing disability are being converted into Islam by ‘jihadi elements’.
Yogi said, recent trends of certain elements changing their identities and using children with disability to spread “jihadi unmaad’ (jihadi frenzy) has proven that his government’s move to enforce anti-conversion law was right. UP police has arrested five persons in connection with chanting of ‘Pakistan Zindabad’ slogans at the rally of SP leader Wajid Nisar. The SP leader has distanced himself and his party from this incident saying that those who chanted this slogan were not SP workers.
I want to say here: no Indian, whether a Hindu, or Muslim, or Sikh or Christian, whatsoever grievance he or she may have against the government, will ever chant pro-Pakistan slogan. No party or leader in India can ever dream of getting votes by allowing pro-Pakistan slogans in rallies. I would like the UP police to take voice samples and check whether such slogans were indeed chanted by protesters at that rally in Agra. If some mischievous person has transposed the audio of such slogans on the video, he must be taken to task by authorities.
It will not be right to blame Akhilesh Yadav or Samajwadi Party for this sloganeering. Until and unless the probe is complete, one should not give much credence to such a video. Some dirty tricks do take place during election time. By raising such an issue of pro-Pakistan sloganeering, parties can try to corner people’s support by strongly opposing such incidents.
In his speech, Yogi said those who support Pakistan are also supporters of ‘love jihad’. Already a strict law against love jihad is in place in UP, and cases of people trying to convert Hindu girls by using fake identities have come to notice. Yogi also replied to those who are criticizing his government’s Covid management policy. He asked, where were those Opposition leaders, when people were fighting the second wave of pandemic.
On Friday, Congress leader Priyanka Gandhi staged a silent protest with party workers near the Gandhi statue in Lucknow over what she called “violence and gross irregularities” during the recent block panchayat elections. She also raised the issue of violence against women in particular.
There is much time left for the state assembly polls in UP. Already, BJP and Samajwadi Party are making hectic preparations for selection of candidates and issues before going to the polls. The last assembly polls in 2017 was historic for the BJP. It had won 312 seats in a House of 403, relegating all other parties to only 91 seats. During that election, Akhilesh Yadav and Rahul Gandhi had jointly campaigned, but it proved to be a disaster. The then ruling Samajwadi Party’s tally crumbled from 224 to 47, while the Congress tally was reduced to seven. Mayawati’s Bahujan Samaj Party contested all the seats, and faced a near rout winning only 19 seats.
After ruling for four and a half years, BJP leaders will now have to show their performance card to the electorate. Most of the opposition parties are trying to corner Yogi over Covid management issue. The pandemic may be under control in UP now, but during the months from April to June, there were shortage of hospital beds, oxygen cylinders and critical medicines. There were long queues of bodies outside crematoriums, and visuals of bodies floating in the river Ganga or buried in sand at the banks of Ganga were a sickening sight. Samajwadi Party and Congress leaders are trying to rake up such issues before the people as the dates for elections approach.
As far as Priyanka Gandhi is concerned, it is only two and a half years that she has been given charge of UP. She has been on the move across the state to shore up her party workers’ morale. The state organization is practically in shambles, dogged by infighting between different camps. Rahul Gandhi has already lost his Amethi constituency, and the BJP is now eyeing Sonia Gandhi’s Raebareli constituency. To bring back the Congress into political reckoning in UP will be an uphill task for Priyanka Gandhi. At least, she is now being seen moving around the state raising issues relating to common people. It is for the party leaders how to make the most of her presence.
Yogi’s speech clearly outlines the strategy that he is planning for the forthcoming assembly polls. He wants to make religious conversion and terrorism the twin issues on which he would launch his campaign.
BJP president J P Nadda who addressed the state party executive also advised state leaders how to deal with propaganda being made by opposition parties against Yogi’s government.
मोदी ने कहा, यूपी में योगी बेस्ट हैं
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में अभी 7-8 महीने बाकी हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को अपने ‘मिशन यूपी’ कैंपेन की शुरुआत कर दी। वैसे तो मोदी अपने निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में 1,583 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का शुभारंभ करने गए थे, लेकिन वाराणसी में किए गए अपने कामों को गिनाते-गिनाते उन्होंने अप्रत्यक्ष तौर पर अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को चुनावों के लिए कमर कसने के लिए सचेत कर दिया।
प्रधानमंत्री ने अपने एक भाषण में कई बातें साफ कर दीं। पहली तो यह कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव योगी के नाम पर और योगी के काम पर लड़ा जाएगा। दूसरी बात यह कि योगी आदित्यनाथ ने पिछले साढ़े चार साल में बहुत मेहनत की है और यूपी के विकास के लिए इतने काम किए हैं कि गिनवाना मुश्किल है। नरेंद्र मोदी ने तीसरी बात यह कही कि योगी आदित्यनाथ ने आतंकवादियों, अपराधियों और माफिया गैंग्स के खिलाफ जो अभियान चलाया और जो सख्त कदम उठाए, उसे उनका पूरा सपोर्ट है। और चौथी बात यह कि योगी सरकार ने जिस तरह से कोरोना की दूसरी लहर पर काबू पाया, वह ‘अभूतपूर्व’ है।
ऐसा कहकर मोदी ने आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए योगी के नेतृत्व को लेकर बीजेपी की रणनीति के बारे में सभी बातें साफ कर दीं। मोदी ने इससे पहले कभी भी किसी मुख्यमंत्री की यह कहरकर सराहना नहीं की थी, ‘यूपी में योगी जी के नेतृत्व में विकास कार्यों की सूची इतनी लंबी है कि किसी के लिए भी यह मुश्किल होगा कि किसका नाम लें और किसे छोड़ें।’
प्रधानमंत्री ने कहा कि योगी जी ऊर्जा से भरपूर हैं, जमकर मेहनत करते हैं, एक-एक योजना पर नजर रखते हैं और संकट के समय आगे आकर नेतृत्व करते हैं। उन्होंने कहा कि इसीलिए अब यूपी में कानून का राज है, और आतंकवाद एवं माफियाराज पर लगाम कसी है। मोदी ने इस सफलता का कारण बताते हुए कहा कि ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि यूपी में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद नहीं, बल्कि ‘विकासवाद’ वाली सरकार चल रही है। मोदी ने अपने इस एक ही बयान से आगामी चुनावों में चुनौती पेश करने जा रहे दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों, सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती, पर निशाना साधा।
यूपी में ऐसा पहली बार हुआ है जब अपराधी एनकाउंटर के डर से गले में तख्ती लटकाकर, हाथ ऊपर करके खुद सरेंडर करने के लिए पुलिस स्टेशन में पहुंचे हों। यूपी में ऐसा भी पहले कभी नहीं हुआ कि माफिया सरगनाओं और गैंगस्टर्स के घरों, होटलों और बिल्डिंगों पर राज्य सरकार ने बुलडोजर चलवाया हो। मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे माफियाओं को पहले कभी भी यूपी आने में डर नहीं लगता था। इसलिए मोदी की यह बात तो सही है कि यूपी में ‘माफियाराज’ खत्म हो गया है। अपराधियों और गैंगस्टरों को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त न करने की योगी आदित्यनाथ की सीधी और सख्त नीति के कारण ऐसा हुआ।
मोदी ने यह भी सही कहा कि राज्य सरकार ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया है। योगी के पिछले साढ़े चार साल के शासन में ट्रांसफर, पोस्टिंग जैसे मुद्दों पर सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगा। योगी मेहनत के मामले में मोदी को टक्कर देते हैं। योगी हर प्रोजेक्ट पर नजर रखते हैं और उसके पूरा होने की डेडलाइन तय करते हैं। वह खुद हर प्रोजेक्ट की प्रोग्रेस रिपोर्ट देखते हैं। इसका असर दिख रहा है: परियोजनाओं को निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा किया जा रहा है। मोदी ने ठीक कहा कि योगी ‘ऊर्जावान मुख्यमंत्री’ हैं। यह परिवर्तन योगी के अथक परिश्रम के कारण ही संभव हुआ।
मोदी का वाराणसी दौरा सही समय पर हुआ है: महामारी की दूसरी लहर को कमोबेश काबू में कर लिया गया है। उनका दौरा काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि वह 225 दिनों के बाद अपने निर्वाचन क्षेत्र पहुंचे थे। हालांकि इस दौरान वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपने निर्वाचन क्षेत्र के नेताओं से जुड़े रहे, लेकिन महामारी की दूसरी लहर के थमने पर उन्होंने अब वाराणसी में एक जनसभा को संबोधित करने का फैसला किया।
मोदी ने वाराणसी में 78 परियोजनाओं का उद्घाटन किया और 205 परियोजनाओं की आधारशिला रखी। उन्होंने जापानी सहायता से निर्मित ‘रुद्राक्ष’ कन्वेंशन सेंटर, 14 ऑक्सीजन संयंत्र, बीएचयू परिसर में एक मल्टि-लेवल पार्किंग और 100 बिस्तरों के अस्पताल, वाराणसी को गाजीपुर से जोड़ने वाले 3 लेन के फ्लाईओवर और गंगा नदी में रो-रो सेवा का उद्घाटन किया। इन परियोजनाओं ने सबसे पुराने शहर वाराणसी का चेहरा बदलकर रख दिया है। यहां आने वाले लोगों को अब वह पुराना वाराणसी नहीं दिखेगा जिसे वे पिछले कई दशकों से देखा करते थे।
जहां तक मुझे याद है, मैंने कभी भी मोदी को सार्वजनिक रूप से किसी मुख्यमंत्री या पार्टी के नेता की उस अंदाज में खुलकर तारीफ करते नहीं देखा, जैसा उन्होंने गुरुवार को किया। ऐसा करके उन्होंने सोशल मीडिया में दोनों नेताओं के बीच किसी तरह के मनमुटाव को लेकर चल रही सभी अटकलों को खारिज कर दिया। योगी के भविष्य को लेकर कुछ लोग दावा कर रहे थे कि मोदी उनके महामारी से निपटने को लेकर खुश नहीं थे। मैंने कांग्रेस के कई नेताओं को यह कहते सुना कि मोदी योगी को हटाना चाहते हैं, और उन्होंने ट्विटर पर योगी को जन्मदिन की बधाई नहीं दी, लेकिन जब मोदी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की प्रशंसा शुरू की तो उन सभी अटकलों पर पानी फिर गया।
मैं नरेंद्र मोदी को पिछले कई दशकों से व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं। उनका व्यक्तित्व ऐसा नहीं है कि उनके दिल में कुछ और हो और जुबान पर कुछ और। मोदी जब किसी के काम की प्रशंसा करते हैं तो देखभाल कर और ठोक-बजाकर करते हैं। बुधवार को उन्होंने उत्तर प्रदेश की जनता को यही संदेश दिया कि योगी आदित्यनाथ ने अच्छा काम किया है और उनके नेतृत्व को नरेंद्र मोदी का पूरा सपोर्ट है। मोदी ने बिना नाम लिए समाजवादी पार्टी की आलोचना करते हुए कहा कि केंद्र से पैसा पहले भी आता था, लेकिन ज्यादातर पैसा डायवर्ट कर दिया जाता था। मोदी ने कहा कि योगी ने कड़ी मेहनत की और केंद्र द्वारा भेजे गए एक-एक पैसे का विकास कार्यों में इस्तेमाल किया।
तो अब कैंपेन शुरू हो गया है। यूपी में हमले की कमान मोदी और योगी संभालेंगे।
Modi on UP: Yogi is the best !
Assembly elections are due in the crucial state of Uttar Pradesh in seven to eight months from now. On Thursday, Prime Minister Narendra Modi virtually launched his Mission UP campaign. Modi had gone to his constituency Varanasi to launch projects worth Rs 1,583 crore, but while listing out his achievements in Varanasi, the Prime Minister indirectly alerted his party leaders and workers to gear up for the elections.
In a single speech, Modi clarified several points: One, the party will go in for UP polls under the leadership of Chief Minister Yogi Adityanath and will seek votes for his “outstanding” performance, Two, he elaborated on how Yogi Adityanath has been working hard for the last four and a half years and his list of achievements was too long, Three, he fully supported Yogi government’s campaign to root out terrorists, criminals and mafia gangs, Four, the manner in which Yogi’s government took control of the second wave of pandemic was “unpredented”.
By saying this, Modi cleared all doubts about Yogi’s leadership as part of BJP’s strategy for the forthcoming UP assembly elections. Never had Modi praised any chief minister by saying, “the list of development work in UP under Yogi Ji’s leadership is so long that anybody will find it difficult what to choose and what to leave out”.
The Prime Minister said, Yogi Ji is full of energy, he works very hard, keeps eye on each project and during crisis, leads from the front. That is why, he added, there is ‘kanoon ka raaj’ (rule of law) in UP, and terrorists and mafias have been kept on leash. Modi also gave the reason for this success: Corruption and nepotism (bhai-bhatijavad) have been given the go by, and the present government believes in ‘vikaasvad’ (pro-development). By making this single remark, Modi targeted SP chief Akhilesh Yadav and BSP supremo Mayawati, both former chief ministers, who are going to pose a challenge in the forthcoming polls.
For the first time in UP, gangsters and mafia criminals, out of fear of facing encounters, have surrendered to police by hanging posters around their necks. Never in the past did any state government used bulldozers to destroy opulent buildings, hotels and residences of mafia gangsters. Never in the past were mafia leaders like Atiq Ahmed and Mukhtar Ansari used to tremble at the prospects of entering UP. When Modi said that “mafia raj” has now ended in UP, he was right. It was due to the strong, no-nonsense policy of Yogi Adityanath not to tolerate criminals and gangsters at any cost.
When Modi said, corruption in state government has been curbed, he was right. In the last four and a half years of Yogi’s rule, there was not a single charge of corruption against the government over issues like, say transfer, postings. By working hard throughout the day, Yogi has followed Modi’s footsteps. Yogi keeps watch on each and every project, and fixes a deadline for completion. He himself vets the progress reports of each project. The results are there for all to see: projects are being completed within set deadlines. When Modi described Yogi as an ‘energetic chief minister’, he was, therefore, right.This transformation was possible only due to Yogi’s ceaseless work.
Modi’s visit to Varanasi was well timed: the second wave of pandemic has been controlled, more or less. His visit was significant because he was visiting his constituency after 225 days. Though he had been keeping in touch with his constituency leaders through video conferencing, since the second wave of pandemic has abated, he chose to address a public gathering.
Modi inaugurated 78 projects and laid foundation of 205 projects. He inaugurated ‘Rudraksh’ the swanky convention centre build with Japanese assistance, 14 oxygen plants, a multi-level parking and a 100-bed hospital in BHU campus, a three-lane flyover linking Varanasi to Ghazipur and a Ro-Ro service on river Ganga. These projects have transformed the face of the oldest city Varanasi. This is not the old Varanasi that one used to see during their visits to the city for the past several decades.
As far as my memory serves, I have never seen Modi publicly praising a chief minister or a party leader in the manner that he did on Thursday. By doing so, he scotched all speculations in the social media about a sort of estrangement between the two leaders. There were feverish speculations about Yogi’s future with some pundits claiming that Modi was unhappy with Yogi’s handling of the pandemic. I have heard several Congress leaders say that Modi wanted to remove Yogi and he did not congratulate Yogi on his birthday via Twitter, but all those speculations bit the dust when Modi started praising the chief minister.
I personally know Modi for the last several decades. He is not the sort of individual who speaks with a forked tongue. When Modi praises somebody, he does so after proper research and verification. On Wednesday, his message to the people of UP was clear: Yogi has done a good job and he extends his full support to his leadership. Modi indirectly criticized the Samajwadi Party by saying that money from the Centre used to come earlier too, but most of the money used to be diverted. Modi said, Yogi worked hard and used every paisa of the money sent by the Centre for development work.
So the campaign has been launched. It will be Modi and Yogi leading the assault in UP.