सियासी हलचल: विपक्ष का नेतृत्व और यूपी, बिहार में जाति की राजनीति
संसद का मॉनसून सत्र चल रहा है लेकिन अब तक संसद नहीं चल पाई है। संसद ठप होने के लिए केंद्र और विपक्ष दोनों एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के बड़े-बड़े नेता दिल्ली में हैं, सांसद भी रोजाना संसद जाते हैं लेकिन दोनों में से किसी भी सदन में चर्चा नहीं हो रही है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि सियासी गलियारों में आखिर हो क्या रहा है? असल में अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब समेत कुल 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए नेता इस वक्त का इस्तेमाल दिल्ली में बैठकर चुनावों की रणनीति बनाने में कर रहे हैं।
ममता ने शरद पवार से मुलाकात क्यों नहीं की?
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी 5 दिनों के लिए दिल्ली में थीं। उन्होंने विभिन्न दलों के सभी बड़े नेताओं से मुलाकात की। वह शुक्रवार को वापस कोलकाता लौट गईं लेकिन दिल्ली में मौजूद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार से उनकी मुलाकात नहीं हुई। बनर्जी ने एक राष्ट्रव्यापी बीजेपी विरोधी मोर्चा बनाने की नींव रखने की कोशिश की। उन्होंने इस बात का आकलन करने की कोशिश की कि मोदी विरोध के नाम पर किन पार्टियों को इकट्ठा किया जा सकता है और कौन सी पार्टियां खेल खराब कर सकती हैं।
ममता बनर्जी ने सार्वजनिक तौर पर साफ किया था कि उनका उद्देश्य नरेंद्र मोदी और बीजेपी को हराना है। चूंकि कांग्रेस पूरे भारत में फैली है और विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है, इसलिए उन्होंने सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल से उनके आवास पर मुलाकात की। सूत्रों के मुताबिक, ममता ने सोनिया से कहा कि वह इस बात पर विचार करें कि कांग्रेस सिर्फ उन्हीं सीटों से चुनाव लड़े जहां वह बीजेपी से लड़ने में सक्षम है, और बाकी की सीटों को अन्य पार्टियों के लिए छोड़ दे। हालांकि अभी यह एक दूर की कौड़ी है, और इस समय चर्चा इस बात की हो रही है कि ममता ने मराठा क्षत्रप शरद पवार से मुलाकात से परहेज क्यों किया।
अगर सभी मोदी विरोधी पार्टियों को एक मंच पर लाना है तो शरद पवार को अहम भूमिका निभानी होगी। पवार इस हफ्ते दिल्ली में मौजूद थे, उन्होंने ममता बनर्जी से मुलाकात नहीं की और शुक्रवार को मुंबई लौट आए। ऐसी अटकलें थीं कि पवार खुद को मोदी विरोधी मोर्चे के नेता के रूप में पेश करने के ममता के कदम से नाखुश हैं।
शुक्रवार को कोलकाता लौटने से पहले ममता बनर्जी ने सफाई देते हुए कहा कि वह पवार से मिल नहीं सकीं, लेकिन उनसे उनकी फोन पर बात हुई है। ममता ने कहा कि वह अपनी अगली दिल्ली यात्रा के दौरान उनसे मिलेंगी। तृणमूल सुप्रीमो ने कहा कि विपक्ष की रणनीति साफ है, मुद्दे स्पष्ट हैं और सारा विपक्ष एकजुट है। उन्होंने कहा, “भारत को बचाने के लिए हमें बीजेपी को हराना है। हमारा नारा होगा ‘लोकतंत्र बचाओ, भारत बचाओ’।” उन्होंने कहा कि वह हर 2 महीने में दिल्ली का चक्कर लगाएंगी।
ममता बनर्जी भले ही दावा कर रही हों कि अगले चुनावों का नारा सेट है, मुद्दे सेट हैं, लेकिन अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि कौन सी पार्टियां मोदी विरोधी आंदोलन में शामिल होंगी। हो सकता है कि वह मोर्चे की लीडरशिप के बारे में अंदाजा लगाने के बाद ही अपना अगला कदम उठाएं। फिलहाल वह सिर्फ ये कहकर नेतृत्व के सवाल से बच रही हैं कि इस पर चुनाव के बाद फैसला होगा।
उन्होंने कहा, अभी देश के सामने महंगाई, बेरोजगारी, कोविड महामारी और किसान आंदोलन जैसे मुद्दे हैं। बनर्जी को किसानों के धरना स्थल पर जाकर किसान नेताओं से मुलाकात करनी थी, लेकिन वह नहीं गईं। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा, उनके दौरे की बात हुई थी, लेकिन कोई पुष्टि नहीं हुई। उन्होंने कहा, अगर ममता यहां नहीं आती हैं तो भी किसानों के बारे में उनका रुख स्पष्ट है और उन्हें विपक्षी एकता बनाने की कोशिश जारी रखनी चाहिए।
अगर दिल्ली में बैठे राजनीतिक पंडित यह दावा करें कि ममता बनर्जी खुद को 2024 की तैयारी कर रही हैं और अब वह प्रधानमंत्री पद की दावेदारी करेंगी, तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा। चूंकि विपक्ष के पास एक नरेंद्र मोदी जैसा दमखम वाला कोई नेता नहीं है, इसीलिए धूम मची रहती है और अटकलें लगती रहती हैं।
मुझे याद है कि एक जमाने में जब लालू यादव बिहार विधानसभा का चुनाव 3 बार जीत गए थे तो लोगों ने कहा था कि अब वह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। टीडीपी सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू के बारे में भी यह कहा जाने लगा था कि वह सबको जोड़-तोड़ कर प्रधानमंत्री बन जाएंगे।
आज सब जानते हैं कि विरोधी दलों में एक भी ऐसी पार्टी नहीं है जो बीजेपी को अकेले चुनौती दे सकती है। एकमात्र संभावना यह है कि कई दलों की मिलीजुली सरकार बने। जब भी ऐसी बातें चलती हैं तो इन कयासों को बल मिलने लगता है कि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा। इसके बाद नेता प्रधानमंत्री पद के सपने देखने लगते हैं।
मेरी जानकारी में इस मामले में एकमात्र अपवाद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता ज्योति बसु थे। वह एक अनुभवी राजनेता थे और उन्हें पता था कि राष्ट्रीय राजनीति की पेचीदगियों को समझना मुश्किल है। उन्होंने खुद को ऐसी महत्वाकांक्षाओं से दूर रखा। जहां तक ममता बनर्जी का सवाल है, यह सच है कि उन्होंने लगातार 3 बार पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव जीता है, लेकिन राज्य के बार उनकी पार्टी का कोई संगठन नहीं है। इसके अलावा, वह देश के बाकी राज्यों में उतनी लोकप्रिय भी नहीं है जितनी कि वह पश्चिम बंगाल में है।
ममता बनर्जी अपनी सीमाओं को अच्छी तकर समझती हैं और इस समय उनके लिए ‘दिल्ली दूर अस्त’ (दिल्ली दूर है) वाली बात हो सकती है। इस समय ममता का फोकस सिर्फ इस बात पर है कि मोदी और बीजेपी को मुद्दों पर कैसे परेशान किया जाए। ममता इसका कोई मौका छोड़ना नहीं चाहतीं और इसीलिए उन्होंने हर 2 महीने पर दिल्ली का चक्कर लगान का फैसला किया है।
मायावती का ब्राह्मण दांव
इस बीच उत्तर प्रदेश में सभी बड़ी पार्टियां अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए रणनीति बनाने में जुटी हुई हैं। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी जहां OBC और मुस्लिम समुदायों से ताल्लुक रखने वाले अपने समर्थकों को जुटाने में लगी है, वहीं मायावती की बहुजन समाज पार्टी दलित-ब्राह्मण गठबंजोड़ का लक्ष्य लेकर चल रही है। प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में कांग्रेस एक अलग ही रुख अपनाए हुए है।
ये तीनों पार्टियां विधानसभा चुनावों को अलग-अलग लड़ने की तैयारी में लगी हुई हैं। तीनों ही पार्टियां ब्राह्मण वोटों को लुभाने की कोशिश कर रही हैं। अखिलेश यादव ने 5 अगस्त से राज्य भर में ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित करने का फैसला किया है, जबकि बहुजन समाज पार्टी पहले से ही ब्राह्मण सम्मेलन कर रही है। चूंकि चुनाव आयोग एक विशेष जाति के नाम पर वोट मांगने के लिए नोटिस जारी कर सकता है, इसलिए बीएसपी ने इसका नाम बदलकर ‘प्रबुद्ध सम्मेलन’ कर दिया है।
अमेठी में हुए एक ब्राह्मण सम्मेलन में बीएसपी नेता सतीश चंद्र मिश्रा ने मृत गैंगस्टर विकास दुबे के प्रति सहानुभूति जताई। मिश्रा ने कहा, ‘योगी सरकार ब्राह्मणों की हत्यारी है। यूपी में ब्राह्मणों की गाड़ी पलटवा कर हत्या करवाई गई। बीजेपी सरकार ब्राह्मणों को चुन-चुनकर निशाना बना रही है। सरकार ने पुलिस को आदेश दिया है, रोको, नाम पूछो और ठोको।’
यह देश का दुर्भाग्य नहीं है तो क्या है कि चुनाव जीतने के लिए जाने-माने नेता खूंखार अपराधियों का महिमामंडन करने लगे हैं। कौन नहीं जानता कि विकास दुबे घोर अपराधी था। कोई कैसे भूल सकता है कि उसने और उसके लोगों ने पिछले साल 2 जुलाई की रात को बिकरू गांव में उसे गिरफ्तार करने के लिए उसके घर गए पुलिसवालों पर गोलियां चलाईं। उस घटना में 8 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी। विकास दुबे को उज्जैन में पकड़ लिया गया, और जब उसे यूपी लाया जा रहा था तभी उसकी कार पलट गई और भागते समय एसटीएफ ने उसे ढेर कर दिया।
ऐसे गैंगस्टर को ब्राह्मणों का नायक बताना और उसका महिमामंडन करना किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता। सतीश चंद्र मिश्रा एक जाने माने वकील हैं। वह जानते हैं कि विकास दुबे ने जघन्य अपराध किए हैं। यह देखकर दुख होता है कि उनके जैसे वकील भी जाति के नाम पर विकास दुबे और उसके साथियों के प्रति सहानुभूति दिखा रहे हैं।
और सिर्फ ब्राह्मण ही क्यों? कुछ दिन पहले ही कुछ लोगों ने पूर्व डकैत फूलन देवी के नाम पर सियासत करने, और उनकी जाति को लोगों से सहानुभूति बटोरने की कोशिश की थी। लेकिन मुझे लगता है कि अब जमाना बदल गया है। जनता अब नेताओं की ऐसी सब चालों को पहचानाती है। आज गांव-गांव में लोगों के पास वॉट्सऐप के जरिए सूचनाएं पहुंचती हैं। जनता जानती है कि अपराधी कौन है, किसका क्या बैकग्राउंड है और जनता यह भी समझती है कि नेता ऐसे अपराधियों के साथ सहानुभूति क्यों जता रहे हैं। दूसरी तरफ बीजेपी के नेताओं का कहना है कि बीएसपी जितना ज्यादा विकास दुबे जैसे गैंगस्टर का महिमामंडन करेगी, गैंगस्टरों के खिलाफ सख्त रुख के कारण लोग उतना ही ज्यादा पार्टी का समर्थन करेंगे। क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ-साफ कहा है कि ‘अपराधी किसी भी जाति के हों, बख्शे नहीं जाएंगे।’ उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में यही बीजेपी का मुख्य फोकस होगा।
यह सच है कि भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस और लगभग सभी पार्टियां यूपी चुनावों में जाति के नाम पर वोट मांगती हैं। पार्टियों द्वारा जाति के आधार पर उम्मीदवार खड़े किए जाते हैं। तमाम राजनीतिक दल जातियों के आंकड़े भी अपने-अपने हिसाब से देते हैं। को कहता है कि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण 9 पर्सेंट हैं, कोई कहता है कि 16 पर्सेंट हैं तो किसी का कहना है कि सूबे में इनकी आबादी 12 प्रतिशत है। इसी तरह कोई पार्टी यादवों की आबादी 7 पर्सेंट बताती है तो कोई 13 प्रतिशत। दलितों की आबादी को लेकर भी अलग-अलग आंकड़े दिए जाते हैं। कोई कहता है कि यूपी में 19 प्रतिशत दलित हैं, तो कोई इनकी संख्या 22 फीसदी बताता है।
मैं आपको बता दूं कि किसी के पास भी जातियों की आबादी का कोई प्रामाणिक आंकड़ा नहीं है। किसी को नहीं पता कि देश में किस जाति के कितने लोग हैं, क्योंकि भारत में कभी भी जाति आधारित जनगणना हुई ही नहीं है। देश में जातियों की जनगणना आखिरी बार अंग्रेजों के जमाने में 1933 में हुई थी। आज जो भी अनुमान लगाए जाते हैं वे 98 साल पहले हुई उसी जनगणना के आधार पर लगाए जाते हैं। तब से गंगा नदी में बहुत पानी बह चुका है। भारत की जनसंख्या 35 करोड़ से बढ़कर 135 करोड़ हो चुकी है। इसलिए कोई ये नहीं बता सकता कि देश में किस जाति की आबादी कितनी है।
भारत में 2011 में जातिगत जनगणना शुरू हुई थी जो 2016 तक चली, लेकिन उसके नतीजे जारी नहीं किए गए। हां, ये बात तय है कि इस अनुपात के हिसाब से देखें तो पिछड़े सबसे ज्यादा हैं, फिर दलित हैं और सबसे कम आबादी सवर्णों की है। इसलिए जाति आधारित जनगणना के आंकड़े जारी करने की मांग बढ़ रही है।
बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े क्यों मांग रही है आरजेडी?
बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव शुक्रवार को कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के नेताओं के साथ जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करने की मां को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने पहुंच गए। उन्होंने कहा कि बिहार विधानसभा ने जाति आधारित जनगणना के आंकड़े जारी करने की मांग को लेकर 2 बार प्रस्ताव पारित किए हैं, लेकिन केंद्र ने अभी तक कार्रवाई नहीं की है। तेजस्वी ने नीतीश कुमार से कहा कि वह बिहार विधानसभा से पास किए गए प्रस्ताव को केंद्र सरकार के पास भेजें और यह मांग करें कि केंद्र सरकार जल्दी से जल्दी बिहार की जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करे।
नीतीश ने इस मुद्दे पर तेजस्वी को सहयोग का वादा किया। तेजस्वी ने दावा कि मुख्यमंत्री ने कहा है कि वह इस मामले में सारे तथ्य जुटा कर जल्दी ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखेंगे। हालांकि तेजस्वी ने इससे आगे एक और बात कही। उन्होंने कहा कि अगर केंद्र सरकार जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी नहीं करती तो बिहार सरकार को अपने खर्च से जाति आधारित जनगणना करानी चाहिए।
जातिगत राजनीति का बड़ा आयाम यह है कि सारे नेता जाति की राजनीति करते हैं लेकिन कोई कहता नहीं, मानता नहीं। आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने कभी ये नहीं कहा कि वह जाति की राजनीति करते हैं। क्या अखिलेश यादव कभी कहेंगे कि वह मुसलमानों और यादवों की सियासत करते हैं? लेकिन एमवाई समीकरण क्या है, सब जानते हैं। एक मायावती हैं जो खुलकर कहती हैं कि वह दलितों की नेता हैं, लेकिन आजकल वह भी दलित-ब्राह्मण समीकरण बनाने में जुटी हैं। बीजेपी इस बार ओबीसी को पूरा भाव दे रही है। बार-बार गिनाती है कि कितने ओबीसी केंद्र सरकार में मंत्री हैं।
कुल मिलाकर सारे नेता यह तर्क दे रहे हैं कि अगर यह पता होगा कि किस जाति की कितनी आबादी है तो उनके लिए सरकारी योजनाएं बनाने में आसानी होगी। लेकिन अगर जातिगत जनगणना हो गई तो सबसे पहले नारा लगेगा जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी। ज्यादातर विरोधी दलों के नेता जाति के आधार पर जनगणना की मांग कर रहे हैं तो एनडीए के कुछ सहयोगी दल भी इसके पक्ष में हैं। लेकिन मैं आपको बता दूं कि जातिगत जनगणना अब दोबारा नहीं होगी।
एक हफ्ते पहले ही 20 जुलाई को एक सवाल के जबाव में गृह मंत्रालय ने यह संसद में साफ कर दिया था कि अगले साल (2022 में) जब जनगणना की प्रक्रिया शुरू होगी, तो सरकार अनुसूचित जाति/जनजाति के अलावा किसी भी जाति के आंकड़े इकठ्ठा नहीं करेगी। सरकार ने यह भी कहा कि जाति के आधार पर हुए 2011 की जनगणना के आंकड़े भी जारी नहीं किए जाएंगे। इसका मतलब यह हुआ कि जातिगत जनगणना के मुद्दे पर सियासत अभी लंबे वक्त तक चलेगी।
Political cauldron: Tussle for leadership of opposition and caste politics in UP, Bihar
The monsoon session of Parliament has been a complete washout till now. Both the Centre and opposition are blaming each other for the ongoing deadlock. Senior leaders of all national and regional parties are in Delhi, the MPs visit Parliament daily but work inside both the Houses continues to remain disrupted.
What is, after all, happening in political circles? Assembly elections are due in Uttar Pradesh, Uttarakhand, Punjab and two other states, and the leaders are busy charting out strategies. UP chief minister Yogi Adityanath was in Delhi for two days and returned to Lucknow on Friday. He had a marathon discussion with party MPs from his state on how to go ahead with assembly elections. All MPs from UP will return to their constituencies once the monsoon session is over and start their party’s campaign.
Why Mamata did not meet Sharad Pawar?
West Bengal CM Mamata Banerjee was in Delhi for five days. She was busy meeting all top leaders of different parties. She returned to Kolkata on Friday, but she did not meet Nationalist Congress Party supremo Sharad Pawar, who was present in Delhi. Banerjee tried to lay the groundwork for forging a nationwide anti-BJP front. She made her own assessment about which parties to be brought together on a broad anti-Modi front, and about which parties can spoil the show.
In public, Mamata Banerjee made clear her aim was to defeat Narendra Modi and the BJP at the hustings. Since Congress is the largest pan-India party, she met Sonia Gandhi and her son, Rahul at their residence. According to sources, she told Sonia to ponder over whether Congress should contest only from those constituencies, where it is in a stronger position, and leave the rest to other parties. Though this is a far-fetched advice at this moment, the moot point was why Mamata avoided meeting Maratha strongman Sharad Pawar.
If all anti-Modi parties are to be brought on a single platform, Sharad Pawar will have to play a key role. Pawar was present in Delhi this week, he did not meet Mamata Banerjee and returned to Mumbai on Friday. There were speculations that Pawar is unhappy with Mamata’s move to project herself as the leader of anti-Modi front.
Before returning to Kolkata on Friday, Mamata Banerjee clarified that though she could not meet Pawar, she had a telephonic talk with him. She said, she would meet him during her next Delhi visit. The TMC supremo said, the opposition’s strategy is clear, the issues are clear, and the opposition is united. “To save India, we have to defeat the BJP, our slogan will be ‘Same Democracy, Save India’ ”, she said. She promised to visit Delhi every two months.
Though Mamata Banerjee may claim that the issues and slogans are clear, it is still unclear which parties will join the anti-Modi bandwagon. Maybe she would take her next step after making an assessment about the leadership. For the moment, she is evading the leadership question by saying this would be decided after the elections.
She said, issues confronting the nation now are price rise, unemployment, Covid pandemic and farmers’ protests. Banerjee was supposed to meet farmer leaders at their protest venue, but did not go. Farmer leader Rakesh Tikait said, there was talk about her visit, but there was no confirmation. He said, even if Mamata does not come here, her stand about farmers is clear and she should continue her efforts to forge opposition unity.
If political pundits sitting in Delhi claim that Mamata Banerjee is preparing herself to project as prime ministerial candidate for 2024, I will not be surprised. Since the opposition lacks a leader who has the same stamina and aura of Narendra Modi, such speculations are bound to figure.
I remember, when Lalu Yadav won Bihar assembly elections thrice, there were speculations that he could project himself as PM candidate. The same was said about TDP supremo N. Chandrababu Naidu. Some leaders do get carried away because of such speculations.
It is an acknowledged fact that there is not a single party in India which can mount a solo challenge against BJP. The only possibility is about forging a ragtag coalition government consisting of different parties. This possibility gives rise to speculations about who can be the PM candidate. Leaders then start dreaming about their prime ministerial ambitions.
The only exception, to my knowledge, was CPI(M) leader Jyoti Basu. He was an experienced politician and he knew it was difficult to understand the intricacies of national politics. He kept himself away from such ambitions. As far as Mamata Banerjee is concerned, it is a fact that she won Bengal assembly elections thrice in a row, but her party lacks organization outside West Bengal. Moreover, she is not as popular in the rest of India as she is in West Bengal.
Mamata Banerjee understands her limitations and at this moment, it could be “Delhi door ast” (Delhi is far away) for her. Her only focus at this moment is how to embarrass Modi and the BJP on issues. She does not want to leave the field wide, and that is why, she has decided to visit Delhi after every two months.
Mayawati’s Brahmin gambit
Meanwhile, major political parties in Uttar Pradesh are busy drawing the battle lines for next year’s Assembly polls. While Akhilesh Yadav’s Samajwadi Party is busy mobilizing its supporters among OBC and Muslim communities, Mayawati’s Bahujan Samaj Party is aiming at forging a Dalit-Brahmin combine. The Congress, led by Priyanka Gandhi Vadra, is on a different plane.
All these three parties are planning to contest assembly polls separately. All three parties are trying to woo Brahmin votes. Akhilesh Yadav has decided to organize Brahmin Sammelans across the state from August 5, while the BSP is already holding Brahmin Sammelan. Since the Election Commission can issue notice for seeking votes in the name of a particular caste, BSP has renamed these as ‘Prabuddha Sammelan’ (Conference of the Enlightened).
At a Brahmin Sammelan in Amethi, BSP leader Satish Chandra Mishra praised dead gangster Vikas Dubey. Mishra said, “Yogi government is murdering Brahmins, they are being killed by overturning their vehicles, state government is selectively trying to eliminate Brahmins, and police have been asked to “roko, naam poocho aur thoko” (stop, ask names and eliminate).
Nothing can be more unfortunate than glorifying gangsters for votes, because of their castes. Vikas Dubey was a dreaded gangster of Kanpur. He and his men fired at UP policemen, who had gone to his home to arrest him in Bikaru village on July 2 night last year. Eight policemen were killed in that incident. Vikas Dubey was caught in Ujjain, and while he was being brought to UP, his car overturned and he was killed by STF while fleeing.
To glorify such a gangster by describing him as a Brahmin hero, is questionable. Satish Chandra Mishra is a reputed lawyer. He knows Vikas Dubey committed heinous crimes. It is sad that a lawyer like him is now expressing sympathy for him and his associates in the name of caste.
Any why Brahmins only? A few days ago, some political outfit tried to garner sympathy from the backward caste to which former dacoit Phoolan Devi belonged. I think, times have now changed. Voters now know the real motives of politicians. Voters nowadays get detailed information on WhatsApp about criminals and their backgrounds, and also about politicians who back them. State BJP leaders say, the more BSP glorifies a gangster like Vikas Dubey, the more people will support the party because of its tough stand against gangsters. UP chief minister Yogi Adityanath has already said ‘no criminal will be spared, whichever caste he belongs to’. This will be the main focus of BJP during UP polls.
It is a fact that BJP, SP, BSP, Congress and almost all parties seek votes in UP polls in the name of caste. Candidates are fielded by parties on the basis of caste. Parties give different data about castes too. Some say there are 9 per cent, some say 12 pc and others say, there are 16 per cent Brahmins in UP. Similarly, some parties say there are 7 per cent, and some say there are 13 per cent Yadav voters in UP. The Dalit data too vary. Some say it is 19 pc, while some say it is 22 per cent in UP.
Let me tell you, there are no authentic figures of population based on castes. No caste based census was ever carried out by the Centre across India. The last caste census was done in India during British rule in 1933. All present figures flow from that last census carried out 98 years ago. Much water has flowed down the river Ganga since then. India’s population jumped from 35 crore to 135 crore. Nobody knows the actual caste composition of our population.
Caste based data were collected during the 2011 census across India. This work continued till 2016, but the data were not published. Proportion wise, one can say, Other Backward Classes (OBC) are the largest, followed by Dalits and then by upper castes. That is why the demand for release of caste based census data is growing.
Why is RJD demanding caste census data in Bihar?
In Bihar, RJD leader Tejashwi Yadav, along with Congress and Left leaders met Bihar chief minister Nitish Kumar on Friday to demand release of caste census data in the state. He pointed out that the Bihar assembly has twice passed motions demanding release of caste census data but the Centre is yet to take action. He asked the CM to put pressure on the Centre to release caste census data collected so far in Bihar.
The Bihar CM promised the leaders that he would write a letter to the Prime Minister. Tejashwi Yadav said, if the Centre declined, the state government should carry out a state-wide caste census on its own, and release data.
The biggest conundrum of caste based politics is that while almost all parties seek votes in the name of castes, not a single party is ready to accept this in public. RJD supremo Lalu Prasad never acknowledged that he indulged in caste politics. Similarly, Akhilesh Yadav will never admit that his party believes in Yadav-Muslim combination. BSP supremo Mayawati, who projects herself as the messiah of Dalits, is now wooing Brahmin caste because of their votes. BJP has started wooing OBC castes in UP on a large scale. During the recent cabinet reshuffle at the Centre, the BJP took pains to describe how many OBCs, Dalits, and tribals were made ministers.
Politicians argue that they can frame better policies if they are given authentic caste based data. Once these data are made public, the next demand will be: Give reservation to all castes based on their proportions. Even some NDA constituents are in favour of caste census. But, I can tell you, caste based census will not be done again.
In a written reply to Parliament on July 20, the Ministry of Home Affairs said, when census operations will begin next year (2022), no caste based data will be collected, except for scheduled castes and tribes. Data on caste census collected in 2011 will not be released. This firm stand by the Centre is surely going to open a floodgate of demands from parties indulging in caste politics very soon.
क्या अफगानिस्तान में तालिबान की मदद कर रहे हैं चीन और पाकिस्तान?
अफगानिस्तान जंग का मैदान बना हुआ है। यहां तालिबान और अफगानी फौज के बीच लड़ाई छिड़ी हुई है। तालिबान ने लगभग आधे बॉर्डर पोस्ट और 407 जिलों में से 194 पर कब्जा कर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया है। अमेरिका की फौज अफगानिस्तान से चली गई है लेकिन अपने पीछे वो उथल-पुथल से भरा वॉर जोन छोड़ गई है। तालिबान देश के अधिकांश हिस्सों पर कब्जा करता हुआ अब धीरे-धीरे उन शहरों की ओर बढ़ रहा है जो अफगानी फौज के नियंत्रण में हैं।
इंडिया टीवी के डिफेंस एडिटर मनीष प्रसाद और कैमरामैन बलराम यादव काबुल पहुंचे और गुरुवार की रात मेरे प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में उन्होंने वहां की जमीनी हकीकत के बारे में विस्तार से बताया। भारत के लिए तालिबान की जीत या हार महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि अफगनिस्तान में भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा है। पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान को दोबारा अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए भारत ने वहां 21 हजार करोड़ से ज्यादा का निवेश किया है। अफगानिस्तान में भारत सरकार 400 बड़ी-बड़ी परियोजनाएं चला रही है। अगर अफगानिस्तान में इसी तरह मारकाट मची रही तो इस इनवेस्टमेंट का क्या होगा? वैसे भी अफगानिस्तान में जो कुछ होता है उसका असर भारत-पाकिस्तान के साथ ही भारत और चीन के संबंधों पर पड़ता है। इसलिए अफगानिस्तान में शान्ति औऱ स्थिरता भारत के लिए जरूरी है, लेकिन फिलहाल इसके आसार कम दिखाई देते हैं। मनीष प्रसाद के मुताबिक अफगानिस्तान के ज्यादातर इलाकों में अभी हालात खतरनाक हैं। तालिबान और अफगान आर्मी के बीच पिछले तीन हफ्ते से युद्ध हो रहा है। रॉकेट और बम चल रहे हैं, गोलियां बरस रही हैं। गुरुवार को अफगानिस्तान की सेना ने कपिसा प्रांत के नेजराब इलाके में हवाई हमले किए। इस हमले में कई तालिबानियों के मारे जाने की खबर है। इसके साथ-साथ कुनार..लोगर और पकतिया जैसे इलाके में भी अफगानिस्तान की सेना को जबरदस्त कामयाबी मिली है। अफगानिस्तान की सेना पूरी ताकत से तालिबान को खदेड़ रही हैं। मजार ए शरीफ, गजनी और कंधार में अफगानिस्तान की सेना एडवांसिंग पोजिशन पर है पर हेरात में यह मजबूत पोजिशन में है।
उधर,तालिबान का दावा है कि उसने उन सभी ठिकानों पर कब्जा कर लिया है जो अमेरिकी फौज छोड़कर गई है। 2 जुलाई को अचानक अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से वापस चली गई थी। किसी को इसकी कानोंकान खबर नहीं हुई। लेकिन जैसे ही ये पता लगा कि अमेरिकी फौज वापस जा चुकी है तो 2 जुलाई की रात को ही तालिबान ने कई इलाकों पर हमला बोल दिया और ज्यादातर इलाकों पर कब्जा कर लिया। पहले तालिबान के कब्जे में 73 जिले थे लेकिन अब तालिबान का दावा है कि उसने 194 से ज्यादा जिलों से अफगान सेना को भगा दिया और अपना कब्जा जमा लिया है। करीब बीस जिलों में तालिबान और अफगान सेना के बीच जबरदस्त जंग चल रही है।
हालांकि हमारे डिफेंस एडिटर मनीष प्रसाद ने बताया कि ऐसा बिल्कुल नहीं हैं कि अफगान सेना कमजोर पड़ रही है। पहले दो हफ्ते तक तालिबानियों का पलड़ा भारी था लेकिन अफगान कमांडरों के मुताबिक अब उनकी सेना ने जबरदस्त वापसी की है। जाबुल प्रांत में अफगान सेना ने तालिबान को करारी शिकस्त दी। खुद को तालिबान का कृषि मंत्री बताने वाला अब्दुल रहमान घायल हो गया और उसे इलाज के लिए सीमा पार पाकिस्तान ले जाया गया। इस जंग में 26 तालिबानी ढेर हुए हैं। इसी तरह कंधार, हेरात, जोवजान और हेलमांड में भी अफगान सेना ने ऑपरेशंस किए। इनमें 200 से ज्यादा तालिबानी हमलावर मारे गए। इसी तरह जैनखेल जिले में भी कम से कम आधा दर्जन तालिबानी लड़ाके मारे गए।
मनीष के मुताबिक तालिबान कमांडरों ने अब अपनी रणनीति बदल ली है और वे रॉकेट हमलों और हवाई हमलों से बचने के लिए बच्चों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। अफगान सुरक्षा बल अब अलर्ट और एक्टिव है। अमेरिकी सेना से मिले दो दशकों की ट्रेनिंग का लाभ मिल रहा है। हालात का कैसे मुकाबला करना है ये उन्हें अच्छी तरह आता है। वे युद्ध के मैदान से भागने के बजाय हर स्थिति का मुकाबला करना जानते हैं।
अब सवाल है कि अफगानिस्तान के खिलाफ तालिबान को इतनी ताकत कहां से मिल रही है? तालिबान को हथियार और गोला बारूद कौन डिलीवर करता है? इसका जवाब तो खुद अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी पूरी दुनिया के सामने दे चुके हैं। आपको याद होगा 16 जुलाई को अफगानिस्तान को लेकर साउथ ईस्ट-एशिया कॉन्फ्रेंस ताशकंद में हुई थी। इसमें पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम इमरान खान के साथ ही भारत, चीन और रूस के विदेश मंत्री भी मौजूद थे। तब अशरफ गनी ने कहा था कि इस वक्त अफगानिस्तान की जो हालत है उसके लिए सिर्फऔर सिर्फ पाकिस्तान जिम्मेदार है। अशरफ गनी ने आरोप लगाया कि पिछले एक महीने में 10,000 से ज्यादा ‘जिहादी’ लड़ाके पाकिस्तान से अफगानिस्तान में दाखिल हुए हैं। पाकिस्तान की शह पर तालिबान के लड़ाके अफगानिस्तान में खून-खराबा करते हैं, सत्ता हथियाने की कोशिश कर रहे हैं और पाकिस्तान को इसमें कोई बुराई भी नजर नहीं आती। उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तानी पीएम और उनके जनरलों के बार-बार आश्वासन के विपरीत, तालिबान का समर्थन करने वाले संगठन खुले तौर पर अफगानिस्तान की जनता और वहां की सरकार की संपत्ति और क्षमताओं के विनाश का जश्न मना रहे हैं’।
मनीष के अनुसार फिलहाल अफगानिस्तान के लगभग सभी बड़े शहरों में रात का कर्फ्यू लागू है और अफगान सेना की यूनिट को उन शहरों की ओर मूव कर दिया गया है जिन पर तालिबान के कब्जे का खतरा है। आत्मरक्षा के लिए आम जनता को आर्म्स दिए जा रहे हैं। अफगानिस्तान का बॉर्डर ईरान, पाकिस्तान, तजीकिस्तान, उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान जैसे देशों से लगता है। कुल मिलाकर 12 बॉर्डर पोस्ट है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इन 12 पोस्ट्स में से कम से कम 6 पोस्ट तालिबान के कब्जे में आ चुकी हैं यानी तालिबान अब अफगानिस्तान के आधे बॉर्डर को कंट्रोल कर रहा है। लेकिन अब भी जो शहरी इलाके हैं और जहां बड़ी आबादी है, जैसे मजार-ए-शरीफ, कुंदूज, जलालाबाद, काबुल, कंधार ये सारे इलाके अफगान सेना के कंट्रोल में हैं और तालिबान इन इलाकों तक ना पहुंच पाए इसलिए उन्हें पहले ही रोकने की तैयारी भी हो रही है।
चीन इस पूरे मामले का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है। बुधवार को चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने तालिबान के दूसरे सबसे बड़े नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के नेतृत्व में आए एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। चीन पहुंचे इस प्रतिनिधिमंडल में तालिबान के 9 प्रतिनिधि थे। इस मुलाकात से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद चीन और तालिबान के बीच बेहतर संबंधों का संकेत मिलता है। बीजिंग में इस मुलाकात के बाद ये चर्चा शुरू हो गई कि अगर अफगानिस्तान पर तालिबान का कंट्रोल हो जाता है तो चीन तालिबान की सरकार को मान्यता दे देगा। ये इस बात का संकेत है कि चीन, तालिबान को कितनी अहमियत दे रहा है। इसकी वजह भी है। चीनी विदेश मंत्री ने कहा, उन्हें उम्मीद है कि तालिबान अलगाववादी पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट पर नकेल कसेगा, क्योंकि यह शिनजियांग क्षेत्र में चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सीधा खतरा है।
चीन और अफगानिस्तान के बॉर्डर जुड़े हुए हैं। चीन का शिनजियांग प्रांत अफगानिस्तान से लगता है। चीन को डर है कि उइगर मुस्लिम आतंकवादी चीनी सेना पर हमले के लिए अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल कर सकते हैं। शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिम अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। उइगर मुसलमानों पर चीन जुल्म कर रहा है। कई मस्जिदें तोड़ दी गई हैं। नमाज पर पाबंदी है। इस इलाके के मुसलमान दाढ़ी नहीं रख सकते। चार लाख से ज्यादा उइगर मुस्लिमों को ‘सुधार गृह’ में बंद कर दिया गया है।
तालिबान के नेताओं ने चीन के विदेश मंत्री को भरोसा दिया कि वे अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल चीन के खिलाफ नहीं होने देंगे। चीन के विदेश मंत्री ने भी अफगानिस्तान की सहायता जारी रखने और उसके आंतरिक मसलों में दखल न देने की बात कही है। पाकिस्तान ने ही चीन के विदेश मंत्री और तालिबान के प्रतिनिधिमंडल के बीच बातचीत की मध्यस्थता की थी। इन दोनों की वार्ता से पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी बीजिंग में थे। एक तरफ कुरैशी ने बीजिंग से इस्लामाबाद की फ्लाइट पकड़ी और दूसरी तरफ तालिबान नेताओं की फ्लाइट बीजिंग में लैंड हो गई।
इस समय अफगानिस्तान पर पूरी दुनिया की नजर है। अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद रूस ने अफगान मामलों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई है। भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, जो हाल ही में दिल्ली में थे, ने साफ कहा है कि अमेरिका और भारत दोनों चाहते हैं कि अफगानिस्तान में कोई हिंसा न हो। भारत और अमेरिका दोनों चाहते हैं कि अफगानिस्तान में खून खराबा न हो, वहां के लोग चैन से रहें, महिलाओं को शिक्षा एवं आजादी मिले, चुनी हुई सरकार देश को चलाए और तालिबान का कब्जा वहां न हो पाए।
अफगानिस्तान के लोग भी नहीं चाहते कि दो दशक बाद तालिबान शासन की वापसी हो। तालिबान जब सत्ता में था तब पुरुषों को अपनी दाढ़ी काटने से मना कर दिया गया था, महिलाओं को सार्वजनिक रूप से बुर्का पहनने के लिए मजबूर किया गया था, घर के पुरुष के साथ न होने पर महिलाओं को चौखट से बाहर कदम रखने की सख्त मनाही थी, और टीवी देखने एवं रेडियो सुनने पर पाबंदी लग गई थी। जहां भारत और अमेरिका चाहते हैं कि अफगानिस्तान में एक लोकतांत्रिक सरकार सत्ता में बनी रहे, वहीं पाकिस्तान और चीन वहां की सत्ता में तालिबान को लाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने तालिबान के लड़ाकों को ‘अच्छे नागरिक’ और ‘सिविलियंस’ बताया, और कहा कि वे खून खराबा करने वाले लोग नहीं हैं। चीन ने तो दो कदम आगे बढ़ते हुए तालिबान के सबसे बड़े कमांडर्स को बीजिंग बुलाया और ऐसे तवज्जों दी जो आमतौर पर किसी देश के चुने हुए नेताओं को दी जाती है।
अफगानिस्तान को लेकर भारत का रुख बिल्कुल साफ। भारत-अफगान संबंध कई दशकों से चले आ रहे हैं और भारत हमेशा अफगानिस्तान के साथ खड़ा रहा है। हालांकि, भारत इस मामले में दखल नहीं देना चाहता कि काबुल में किसकी सरकार होगी और वहां कौन राज करेगा। मुझे लगता है कि मौजूदा हालात को देखते हुए भारत सरकार को भी तालिबान से बात करनी चाहिए। यदि भारत तालिबान और अन्य अफगान नेताओं को बातचीत के लिए तैयार कर पाता है तो यह सबसे अच्छी बात होगी।
समय की मांग है कि अफगानिस्तान में सबकी सहमति से एक सर्वमान्य सरकार बने। इसमें सबसे ज्यादा फायदा अफगानिस्तान की आवाम का होगा। यदि अफगानिस्तान में शांति से सत्ता परिवर्तन होता है, तो वहां चल रहीं भारत की परियोजनाएं वक्त पर पूरी होंगी और अफगानिस्तान के लोगों को उनका फायदा मिलेगा। साथ ही अफगानिस्तान में शांति होने की सूरत में पाकिस्तान और चीन को अफगान मामलों में हस्तक्षेप करने का मौका नहीं मिलेगा। लेकिन ये सब बातें बहुत दूर की हैं, क्योंकि इस वक्त तो हालात ये हैं कि कई जिलों में अफगान सेना और तालिबान के बीच भीषण लड़ाई चल रही है। इंडिया टीवी की टीम इस समय वॉर जोन में मौजूद है और पल-पल की अपडेट भेज रही है। हम सबको आशा करनी चाहिए कि वहां जल्द शांति कायम हो।
Are China, Pakistan helping Taliban in Afghanistan ?
The war situation in Afghanistan at the moment appears to be precarious with Taliban controlling nearly half the border outposts and capturing 194 out of 407 districts of the country. American forces have left Afghanistan leaving behind a war zone in turmoil. Taliban forces are capturing more areas in the country side and are gradually moving towards cities which are under the control of Afghan defence forces.
India TV Defence Editor Manish Prasad, along with cameraman Balram Yadav, has reached Kabul and on Thursday night in my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ he gave a broad outline of the ground realities. For India, the victory or defeat of Taliban is important because India has, over the last two decades, invested nearly Rs 21,000 crore in more than 400 projects in Afghanistan. If the war continues, progress on all these projects may be stalled.
Much is at stake because the consequences of a Taliban victory will have bearings on India-Pakistan and India-China relations too. At the moment, bombs, mortars, missiles and bullets are flying in war zone and according to Manish, the situation seems critical. Battles are going on between the Afghan Army and Taliban for the last three weeks. Afghan forces carried out bombardment from air in Nejrab in Kapisa province on Thursday inflicting casualties on Taliban. The Afghan army has also made progress in Kunar, Logar and Paktia, pushing away the advancing Taliban forces. In Mazaar-e-Sharif, Ghazni and Kandahar, the Afghan army is in an advancing position, while in Herat, it is in a strong position.
On its part, Taliban has claimed that it has occupied almost all the bases from which US army withdrew. The US armed forces’ withdrawal on July 2 was secret and abrupt, with the local population caught unawares. On the same night, the Taliban attacked all these bases and captured most of them. At that time, Taliban had occupied 73 districts, but now it has occupied 194 districts, with heavy fighting going on in 20 districts.
Our Defence Editor Manish Prasad says, it will be incorrect to assume that the Afghan army is in a weaker position. In the first two weeks, Taliban had made a strong push forward, but now, according to Afghan commanders, their army has made a big comeback. In Zabul province, the Afghan army inflicted a heavy defeat on Taliban. Abdul Rehman, the self-styled ‘Agriculture Minister’ of Taliban was critically injured and was taken across the border to Pakistan for treatment. Twenty six Taliban fighters were killed. The Afghan army also attacked Taliban in Kandahar, Herat, Jowzjan and Helmand, more than 200 Taliban were killed in attacks by Afghan army. In Jani Khel offensive, six Taliban fighters were killed.
According to Manish, Taliban commanders have now changed their strategy and they are using children as human shields to avoid rocket attacks and air strikes. Afghan security forces are now alert and active, and their two decades of training under US army officers is now paying dividends. They know how to counter each situation instead of fleeing battle fields.
From where are the Taliban getting arms and ammunitions? It is an open secret. On July 16, while addressing a regional Central and South Asia conference in Tashkent, Afghanistan President Ashraf Ghani blamed Pakistan for the influx of Taliban terrorists inside Afghanistan and for not doing enough to influence Taliban to join peaceful dialogue. He said this in the presence of Pakistan PM Imran Khan, and the Indian, Chinese and Russian foreign ministers. Ashraf Ghani alleged that over 10,000 ‘jihadi’ fighters have entered Afghanistan from Pakistan in the last one month. He said, “contrary to repeated assurances from the Pakistani PM and his generals, outfits supporting the Taliban are openly celebrating destruction of assets and capabilities of Afghan people and government”.
At the moment, according to Manish, night curfew is in force in almost all big cities of Afghanistan, and Afghan army units have been moved to those cities which are in danger of being captured by Taliban. Firearms are being distributed among Afghans for self-defence. Afghanistan has 12 border check posts with Pakistan, Iran, Turkmenistan, Tajikistan and Uzbekistan, and out of these six border check posts have been captured by Taliban. In plain words, Taliban is controlling almost half the border of Afghanistan. However, most of the major cities like Jalalabad, Mazar-e-Sharif, Kunduz, Kabul and Kandahar are present under control of Afghan forces.
China is trying to fish in troubled waters. On Wednesday, in China, Chinese Foreign Minister Wang Yi met a top Taliban delegation led by Mullah Abdul Ghani Baradar signalling warm ties with Taliban after the withdrawal of US forces. There were nine Taliban representatives in the delegation, with indications that China may give recognition to a Taliban government if it comes to power in Kabul. There are reasons behind this. The Chinese foreign minister said, he hoped Taliban will crack down on the separatist East Turkestan Islamic Movement, as it is a direct threat to China’s national security in Xinjiang region.
China fears that the Uyghur Muslim militants could use neighbouring Afghanistan as a staging ground to carry out attacks on Chinese army. Uyghur Muslims in Xinjiang are fighting for their basic human rights. Chinese authorities have prohibited Uyghur Muslims from growing beards, offering namaz in public and have destroyed several mosques. More than four lakh Uyghur Muslims have been imprisoned in “correction centres”.
The Taliban leaders have promised the Chinese foreign minister that they would now allow Afghan territory to be used against China. On its part, the Chinese FM has promised that his country will not intervene in the domestic affairs of Afghanistan. It was Pakistan which brokered the talks between the Chinese FM and the Taliban delegation. The Pakistani foreign minister Shah Mehmood Qureshi was in Beijing prior to these talks. When Qureshi took the return flight to Islamabad, the Taliban delegation took off for China.
The entire world is now keeping a close watch on Afghanistan. After the US troops withdrawal, Russia has not shown much interest in Afghan affairs. For India, much is at stake. The US Secretary of State Antony Blinken, who was in Delhi recently, clearly said that both US and India want there should be no violence in Afghanistan. Both India and the US want that an elected government remains in power in Afghanistan, women must continue to get equal rights and access to education and jobs, and Taliban must not come to power.
The people of Afghanistan also do no want the return of Taliban rule after two decades. During Taliban rule, men were prohibited from trimming their beards, women were forced to wear veils in public, women were prohibited to move in public in the absence of close male relatives, and TV and radio programmes were banned. While India and the US want a democratic government to remain in power, Pakistan and China are trying hard to install a Taliban government. The Pakistani PM Imran Khan is describing Taliban fighters as “good citizens” and “civilians”, who do not want bloodshed. China went two steps forward and invited the top Taliban delegation according them the respect that is normally accorded to representatives of a sovereign government.
India’s views about Afghanistan are clear. India-Afghan relations span several decades and India has always provided support to the Afghan people. However, India does not want to meddle in affairs relating to who shall form a government in Kabul. I feel, India should also carry out an initiative and start a dialogue with Taliban. If India helps in bringing Taliban and the other Afghan leaders to the negotiation table, it would be an ideal situation.
An inclusive Afghan government, acceptable to all, is the need of the hour. This will be in the best interests of the Afghan people. If there is peace, Indian projects can be completed within the stipulated deadlines, and China and Pakistan may not be able to meddle in Afghan affairs. This may be wishful thinking, because, on the ground, fierce fighting is going on between Afghan army and Taliban in several districts. India TV team is present in the war zone and is sending detailed updates. Let us all hope for the best. Let peace prevail.
क्या 2024 तक किसी एक नेता के नाम पर सहमत हो पाएंगे विपक्षी दल?
पैगसस विवाद की जांच की मांग को लेकर विपक्षी दल कार्यवाही में लगातार व्यवधान डाल रहे हैं, जिसके कारण संसद का मॉनसून सत्र पिछले 10 दिनों से ठप है। गुरुवार को राज्यसभा में विपक्षी सदस्यों ने कार्यवाही बाधित करने के लिए जोर-जोर से तालियां बजाईं, तो लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के सांसदों ने पर्चे फाड़कर उन्हें हवा में उछाल दिया।
जहां सरकार दावा कर रही है कि वह सदन के अंदर सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार है, वहीं विरोधी दल भी कह रहे हैं कि वे सभी मुद्दों पर चर्चा करना चाहते हैं। फिर चर्चा क्यों नहीं हो रही? यह गतिरोध क्यों है? विपक्ष के सांसद क्यों जोर-जोर से ताली बजा रहे हैं, कागज फाड़ रहे हैं, मंत्री से आंसर शीट छीन रहे हैं और हंगामा कर रहे हैं।
मकसद साफ है: विपक्ष पैगसस स्पाइवेयर के मुद्दे पर सरकार को घेरना चाहता है, लेकिन विरोधी दल अलग-अलग स्वरों में बात कर रहे हैं। एक पक्ष सदन के अंदर बहस चाहता है, दूसरा चाहता है कि एक संयुक्त संसदीय समिति जांच करे, और तीसरा सुप्रीम कोर्ट के जज की निगरानी में जांच चाहता है। वहीं, केंद्र अपने रुख को लेकर स्पष्ट है। वहीं, केंद्र अपने रुख को लेकर स्पष्ट है। वह चाहता है कि विपक्ष ठोस सबूत पेश करे क्योंकि अफवाह के आधार पर जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।
बुधवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संसद में विपक्षी नेताओं की बैठक बुलाकर लीड लेने की कोशिश की। बैठक में कांग्रेस, शिवसेना, एनसीपी, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, आम आदमी पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भाग लिया। इसमें तृणमूल कांग्रेस के नेता शामिल नहीं हुए। बैठक के तुरंत बाद विपक्षी सदस्यों ने लोकसभा के अंदर पर्चे फाड़े और उन्हें हवा में उछाल दिया। तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने सदन के अंदर ‘खेला होबे’ के नारे लगाए। सदन स्थगित होने के बाद विपक्षी सांसदों ने संसद से विजय चौक तक मार्च किया और फिर मीडिया को संबोधित किया। इस दौरान राहुल गांधी के साथ शिवसेना नेता संजय राउत, एनसीपी नेता सुप्रिया सुले, समाजावदी पार्टी नेता रामगोपाल यादव और डीएमके एवं आरजेडी के नेता मौजूद थे। राहुल गांधी ने कहा कि वह सरकार से सिर्फ 2 सवालों के जवाब चाहते हैं। एक, सरकार ने इजरायल से पैगसस स्पाइवेयर खरीदा या नहीं, और दूसरा, सरकार ने पैगसस के जरिए भारत के लोगों की जासूसी की या नहीं?
लगभग उसी समय, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने मोदी सरकार का मुकाबला करने की रणनीति तैयार करने के लिए अपनी पार्टी के सांसदों की बैठक बुलाई थी। बाद में टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने साफ कहा कि मोदी के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व सिर्फ ममता बनर्जी ही कर सकती हैं। उन्होंने कहा, मोदी का कोई विकल्प है तो वह ममता बनर्जी हैं, क्योंकि ‘वह लीडर नंबर 1’ हैं। इसके तुरंत बाद ममता बनर्जी ने अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से उनके आवास 10 जनपथ पर मुलाकात की। 45 मिनट तक चली इस मीटिंग में राहुल गांधी भी शामिल हुए। मीडिया को संबोधित करते हुए तृणमूल सुप्रीमो ने कहा, सभी विपक्षी दलों को हाथ मिलाना होगा और मिलकर काम करना होगा। हालांकि उन्होंने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया कि क्या वह विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं।
फिलहाल विपक्ष का नेतृत्व करने की दौड़ में 3 दावेदार दिखाई दे रहे हैं: राहुल गांधी, ममता बनर्जी और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार। दिलचस्प बात यह है कि ये तीनों नेता अपनी अलग-अलग रणनीति बना रहे हैं। पवार समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव के साथ लेकर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का हालचाल लेने पहुंच गए। विपक्षी नेताओं में पवार सबसे अनुभवी और सक्रिय नेता हैं। उन्हें पता है कि लालू यादव भले ही बीमार हों और पिछले कई सालों से सक्रिय राजनीति से दूर हों, लेकिन उन्हें कमजोर नेता नहीं समझना चाहिए। अगर लालू की बेटी मीसा भारती ने इस मुलाकात के बारे में ट्वीट नहीं किया होता तो यह सीक्रेट ही रहती।
राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए 2 बातें साफ हैं। एक तो यह कि विपक्ष जल्दी शांत होने वाला नहीं है और संसद की कार्यवाही में बाधा डालता रहेगा। न ही सरकार विपक्ष की मांगों के आगे झुकने को तैयार है। आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के हाथों से पर्चा छीनकर फाड़ने वाले तृणमूल सांसद शांतनु सेन को पूरे सेशन के लिए सस्पेंड कर दिया गया, लेकिन लोकसभा में बुधवार को सदन के अंदर पर्चे फाड़कर स्पीकर की चेयर की तरफ फेंकने वाले सांसदों पर फिलहाल कोई ऐक्शन नहीं हुआ है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला पहले ही विपक्षी नेताओं को बुलाकर चेतावनी दे चुके हैं कि वह गलती करने वाले सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। सरकार ने फैसला किया है कि सभी विधेयकों को संसद में पारित करवाया जाएगा, भले ही विपक्षी सदस्य शोर-शराबा करें या व्यवधान पैदा करें।
दूसरी बात ये कि अब लगभग तय है कि 13 अगस्त तक मॉनसून सेशन के दौरान संसद में हंगामा भी होगा, और सरकारी काम भी होगा, सिर्फ चर्चा नहीं होगी। विपक्ष इसके लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराएगा और सरकार कहेगी कि विरोधी दल ही चर्चा नहीं चाहता। इसके अलावा कांग्रेस के नेता इस बात को लेकर परेशान हैं कि ममता बनर्जी, जो कि अभी दिल्ली में हैं, लीड लेने की कोशिश कर सकती हैं और इसीलिए पिछले कुछ दिनों में राहुल गांधी की ऐक्टिविटी और विजिबिलिटी बढ़ गई है। एक दिन वह किसानों के मुद्दे को उजागर करने के लिए पार्टी के सांसदों के साथ संसद में ट्रैक्टर पर सवार होकर आए तो बुधवार को उन्होंने विजय चौक तक मार्च में विपक्षी सांसदों का नेतृत्व किया। कांग्रेस नेता नहीं चाहते कि ममता एकजुट विपक्ष के प्रतीक के रूप में उभरें।
दूसरी तरफ तृणमूल सांसद चाहते हैं कि ममता निर्विवाद रूप से विपक्ष की नेता के रूप में उभरें। यह सच है कि ममता ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी की चुनावी मशीन को कड़ी टक्कर दी और उसे करारी हार का सामना करना पड़ा। ममता बनर्जी बंगाल में मिली अपनी जीत का इस्तेमाल राष्ट्रीय स्तर पर मोदी के खिलाफ हवा बनाने में करना चाहती हैं। कुछ लोग कहेंगे कि 2024 के आम चुनावों में अभी 3 साल बाकी हैं, लेकिन ममता ने खुद इसका जवाब दिया और कहा कि बीजेपी को हराने के लिए विपक्षी दलों को अभी से तैयारी करनी होगी। यह भी सही है कि ममता विरोधी दलों के मोर्चे से कांग्रेस को अलग भी नहीं रखना चाहती हैं। इसीलिए उन्होंने 10 जनपथ पर सोनिया और राहुल गांधी से मुलाकात को खास तरजीह दी।
इस समय चल रहे सियासी खेल के एक और बड़े खिलाड़ी शरद पवार हैं। वह विपक्षी नेताओं में सबसे अनुभवी हैं और उनकी काबिलियत के बारे में नरेंद्र मोदी भी जानते हैं और ममता बनर्जी भी। अपने लंबे राजनीतिक जीवन में पवार को प्रधानमंत्री बनने के कई मौके मिले, लेकिन वह हर बार चूक गए। 2 बातें उनके खिलाफ जाती हैं: एक तो उनकी उम्र काफी हो गई है और दूसरी उनकी पार्टी एनसीपी काफी हद तक सिर्फ महाराष्ट्र तक ही सीमित है। लेकिन हमने पहले भी देखा है कि जब विपक्षी दलों के मोर्चे बनते हैं तो उनमें न किसी नेता की उम्र देखी जाती है और न ये देखा जाता है कि पार्टी छोटी है या बड़ी। ऐसे में सिर्फ यह देखा जाता है कि किसके नाम पर सब लोग सहमत होते हैं।
चाहे शरद पवार हों या ममता बनर्जी, दोनों इस बात को समझते हैं कि नेतृत्व के मुद्दे पर सभी विपक्षी नेताओं को एक ही नाम पर सहमत करना टेढ़ी खीर है। दूसरे, नरेंद्र मोदी से मुकाबला करना आसान नहीं है। मोदी एक मजबूत नेता हैं और उनके पास एक दमदार पार्टी संगठन है जो भारत के हर राज्य में फैल चुका है। मोदी को चुनाव लड़ने की कला में महारत हासिल है। उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत के दम पर ही अपनी ताकत बढ़ाई है। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में मिली हार जरूर एक झटका थी, लेकिन मोदी एक ऐसे नेता हैं जो हार से कभी निराश नहीं होते। न ही वह सभी विरोधी दलों के हाथ मिलाने की बात से परेशान नजर आते हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव अभी 3 साल दूर हैं। ऐसे में कहा नहीं जा सकता कि तब तक कितने विपक्षी दल साथ रह पाएंगे, और क्या वे सभी किसी एक को अपना नेता मानेंगे। इसका अंदाजा लगाना अभी मुश्किल है।
Will opposition parties agree on a single leader till 2024?
The monsoon session of Parliament has been paralyzed for the last ten days due to continuous disruption of proceedings by the opposition parties demanding a probe into the Pegasus controversy. On Thursday, opposition members in Rajya Sabha resorted to loud clapping (thalis) in order to disrupt the proceedings, while in the Lok Sabha, Trinamool and Congress MPs tore the business papers and threw them in the air.
Both Houses of Parliament are being adjourned frequently due to disruptions. While the government says it is ready for debates on all issues inside the house, the opposition too has been saying it wants debate. Then why this deadlock? Why are opposition MPs clapping loudly, tearing up papers, snatching answer sheet from the minister and causing pandemonium?
The motive is clear: the opposition wants to corner the government on the Pegasus spyware issue, but the parties are speaking in different tunes. One party wants debate inside the House, the other wants a Joint Parliamentary Committee to probe, and a third wants a probe by a Supreme Court judge. On its part, the Centre is clear about its stand. It wants the opposition to come forward with concrete evidence because probe cannot be ordered on the basis of hearsay.
On Wednesday, Congress leader Rahul Gandhi tried to take a lead by convening a meeting of opposition leaders in Parliament. The meeting was attended by Congress, Shiv Sena, NCP, Samajwadi Party, RJD, AAP, CPI(M), CPI and National Conference. Trinamool Congress leaders did not attend. Soon after the meeting, opposition members tore up business papers and threw them in the air inside Lok Sabha. TMC MPs shouted slogans like ‘Khela Habey” inside the House. After the House was adjourned, opposition MPs marched from Parliament to Vijay Chowk where they addressed the media. Rahul Gandhi was joined by Shiv Sena leader Sanjay Rout, NCP leader Supriya Sule, SP leader Ramgopal Yadav and leaders from DMK and RJD. Rahul Gandhi said, he wanted replies to only two questions. One, whether Pegasus spyware was purchased by the government from Israel, and Two, whether the government mounted surveillance on people inside India?
At almost the same time, West Bengal chief minister and TMC supremo Mamata Banerjee had called a meeting of TMC MPs to prepare a strategy to counter Modi government. Later, TMC MP Kalyan Banerjee clearly said that only Mamata Banerjee can lead the opposition against Modi. He said, Mamata was the only alternative to Modi, since “she is Leader No.1”. Soon after, Mamata Banerjee called on interim Congress chief Sonia Gandhi at the latter’s residence 10, Janpath. The 45-minute long meeting was also attended by Rahul Gandhi. Addressing the media, the TMC supremo said, all opposition parties will have to join hands and work together. She however avoided any reply to the question whether she was ready to lead the opposition.
At the moment there appear to be three candidates in the race to lead the opposition: Rahul Gandhi, Mamata Banerjee and NCP supremo Sharad Pawar. Interestingly, all these three leaders are preparing their strategies separately. Pawar, took SP leader Ramgopal Yadav with him to call on RJD chief Lalu Prasad to inquire about his health. Among the opposition leaders, Pawar is the most experienced and active leader. He knows even if Lalu Yadav is ailing and had been away from active politics for last several years, he should not be considered a weak leader. The meeting would have remained a secret, had not Lalu’s daughter Misa Bharati not tweeted about it.
Two points are clear from the political developments. One, the opposition is not going to calm down soon and will continue to obstruct Parliament proceedings. Nor is the government ready to bow down to opposition’s demands. The TMC MP Shantanu Sen who snatched the papers from IT Minister Ashwini Vaishnav’s hands has been suspended for the session by Rajya Sabha. But the MPs in Lok Sabha who tore papers inside the House on Wednesday may, or may not be punished. Already, the Lok Sabha Speaker Om Birla has called opposition leaders and issued a warning that he may take action against erring members. The government has decided to get all the bills passed in Parliament even if opposition members shout and create obstacles.
Two, it is almost certain that the monsoon session will continue till August 13 in an acrimonious atmosphere, with opposition protesting loudly, and the government getting its official business done amidst pandemonium. Moreover, Congress leaders are worried that Mamata Banerjee, who is in Delhi, might try to steal the show, and that is why, Rahul Gandhi’s activity and visibility have increased in the past few days. One day, he rode a tractor to Parliament with party MPs to highlight farmers’ issue, and on Wednesday, he led opposition MPs on a march to Vijay Chowk. Congress leaders do not want Mamata to emerge as a symbol of united opposition.
On the other hand, Trinamool MPs want Mamata to emerge as the undisputed leader of opposition. It is true that Mamata gave a tough fight to the BJP election machine during the West Bengal assembly elections and inflicted a crushing defeat. Mamata Banerjee wants to encash the goodwill generated by her victory in order to corner Modi at the national level. Some might say that there are still three years left for the 2024 general elections, but Mamata replied by saying that in order to defeat BJP, opposition parties would require to prepare much in advance. It is also correct that Mamata does not want to keep Congress away from the conglomeration of opposition parties. That is why, she gave special preference to her meeting with Sonia and Rahul Gandhi at 10, Janpath.
The dark horse in the present political game of Russian roulette is Sharad Pawar. He is the most experienced of the lot among the opposition leaders and his acumen is recognized by leaders like Narendra Modi and Mamata Banerjee. In his long political career, Pawar got several chances to become the prime minister but missed them by a whisker. Two points go against him: One, he is aging, and Two, his party NCP is mostly confined to Maharashtra. But, in the past, we have seen, when opposition parties combine they do not look at age or the regional limitations of a leader. The only point that is taken up is: unanimity among opposition leaders.
Whether it is Sharad Pawar or Mamata Banerjee, both know that it would be a tough game to bring all opposition leaders to agree on a single name on the issue of leadership.
Secondly, the challenge from Modi and his vast party machine is gigantic. Modi is a strong leader and he has an effective party organization that has spread to each and every state of India. Modi has mastered the art of fighting elections. He has strengthened his clout only by dint of his tireless work. Of course, the electoral reverses in West Bengal were a setback, but Modi is a leader who never gets disheartened by defeat. He appears to be least bothered even if all opposition parties join hands.
The 2024 Lok Sabha elections are three years away. The moot point is whether opposition parties will manage to remain together till that time, and whether they would agree on the name of an undisputed leader. It is very difficult to hazard a guess at this moment.
असम-मिज़ोरम सीमा विवाद का स्थाई हल निकालें
असम और मिजोरम के पुलिसकर्मियों के बीच सोमवार को हुई हिंसक झड़प में असम के सात पुलिसकर्मियों की जान चली गई। इस घटना ने देशवासियों को काफी आहत किया है। दोनों राज्य हर देशवासी को प्रिय हैं और दोनों ही राज्यों में चुनी हुई सरकारें हैं। दुख की बात है कि दोनों राज्यों के पुलिसकर्मियों ने एक-दूसरे पर फायरिंग की।
असम और मिजोरम में चुनी हुई सरकारें हैं।असम में बीजेपी की सरकार है और मिजोरम में भी बीजेपी की मदद से चलनेवाली मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है। मिजो नेशनल फ्रंट एनडीए का हिस्सा है। असम पुलिस के जवान भी हिन्दुस्तान के बेटे हैं और मिजोरम में तैनात फोर्स भी हिन्दुस्तानी है। फिर भी जमीन के टुकड़े को लेकर एक-दूसरे का खून बहाया गया। इससे ज्यादा दुख और चिंता की बात और क्या हो सकती है कि अपनी ही धरती पर, अपने ही जवानों पर, अपने ही लोग गोलियां बरसा दें।
यह घटना देश, सरकार और सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के लिए चिंता की बात है। औऱ सबसे ज्यादा परेशानी की बात असम और मिजोरम के लोगों के लिए है। जब सोमवार की रात इस घटना की खबर आई तो इंडिया टीवी पर अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में मैंने आपको इसकी शुरुआती जानकारी दी थी और कुछ तस्वीरें दिखाई थी। लेकिन जब इस घटना की पूरी वीडियो फुटेज देखी तो रौंगटे खड़े हो गए। दोनों पक्षों के बीच लगातार हो रही गोलियों की बौछार का वीडियो देखकर बहुत दुख हुआ।
ये देखकर मेरे जेहन में सबसे पहले यही सवाल आया कि आखिर ऐसा क्या हो गया जिससे दो अलग-अलग राज्यों के पुलिसकर्मी एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए? मैंने अपने रिपोर्टर पवन नारा को तुरंत दिल्ली से गुवहाटी भेजा और वहां से असम- मिज़ोरम की सरहद पर जाकर ये समझने को कहा कि आखिर इस तरह की हिंसा की असली वजह क्या है। क्योंकि ये तो मैं चालीस साल से जानता हूं कि असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद है, लेकिन कभी एक-दूसरे पर गोलियां बरसाते नहीं देखा और न इस तरह की हिंसा की खबरें सुनीं। इसलिए ये जानना जरूरी है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जिसके कारण पहले लोग आमने-सामने आए, फिर पुलिस फोर्स में झड़प हुई, गोलियां चलीं और मौतें हुईं।
मंगलवार की रात ‘आज की बात’ में हमने जो फायरिंग की वीडियो फुटेज दिखाई उसे देखकर हर भारतीय का खून खौल उठेगा। जितनी तस्वीरें देखेंगे, उतना दुख होगा, उतना गुस्सा आएगा। दोनों तरफ से लगातार फायरिंग होती रही और दोनों तरफ से हमलावरों ने गाली-गलौज की। असम सरकार इस सारे खून-खराबे के लिए मिजोरम की सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है और मिजोरम की सरकार असम सरकार को कटघरे में खड़ा कर रही है। लेकिन सबसे बड़ा सच ये है कि जो जवान शहीद हुए वो हिन्दुस्तानी थे। असम सरकार का दावा है कि मिजोरम की तरफ से पहले अतिक्रमण की कोशिश हुई। लैलापुर इलाके में इनर लाइन रिजर्व फॉरेस्ट को नष्ट किया गया, सड़क और एक पुलिस पोस्ट भी बना ली गई। मिजोरम सरकार का आरोप है कि असम पुलिस ने बॉर्डर क्रॉस किया और कोलासिब में एक पुलिस चौकी पर कब्जा कर लिया। इसी पर विवाद हुआ और गोलियां चल गईं।
पुलिसकर्मियों की हत्या के विरोध में असम की बराक घाटी में बुधवार सुबह से शाम तक बंद का आह्मन किया गया है। मिजोरम के कोलासिब जिले के वैरेंगटे में सीआरपीएफ की पांच कंपनियां (500 जवान) तैनात की गई हैं। यह इलाका असम के कछार जिले के लैलापुर से सटा हुआ है।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें मिजोरम के पुलिसकर्मी और कुछ ‘गुंडे’ फायरिंग में असम के पुलिसकर्मियों की मौत का जश्न मना रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि मिजोरम के पुलिसकर्मियों द्वारा लाइट मशीनगनों का इस्तेमाल ‘हालात की गंभीरता को बताता है’।
वहीं दूसरी ओर मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथंगा ने दावा किया कि 24 जुलाई को शिलॉन्ग में असम के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री अमित शाह के साथ हुई मीटिंग में उन्होंने सीमा का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था कि जिस क्षेत्र का दावा असम के द्वारा किया जा रहा है उस क्षेत्र का इस्तेमाल मिजो के लोगों द्वारा 100 साल से ज्यादा समय से किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि बराक घाटी में आबादी बढ़ने के कारण असम ने इस इलाके पर अपना दावा करना शुरू कर दिया है।
हिमंत बिस्व सरमा मंगलवार को सिलचर अस्पताल गए और वहां भर्ती घायल पुलिसकर्मियों का हालचाल जाना। उन्होंने इस घटना में मारे गए प्रत्येक पुलिसकर्मी के परिजनों के लिए 50 लाख रुपये के मुआवजे का ऐलान किया। उन्होंने असम-मिजो सीमा पर तैनात सभी पुलिसकर्मियों को एक महीने का अतिरिक्त वेतन देने की भी घोषणा की।
हिमंत बिस्व सरमा ने कहा, असम सरकार जल्द ही असम- मिजोरम बॉर्डर पर तैनात करने के लिए कमांडोज की 3 नई बटालियन का गठन करेगी। इसमें 3000 जवानों को भर्ती किया जाएगा। इसके बाद हिमंत बिस्व सरमा ने आरोप लगाया कि उन्होंने सोमवार को मिजोरम के मुख्यमंत्री को 6 बार फोन किया और ये बताया कि असम और मिजोरम के बॉर्डर पर फायरिंग हो रही है। लेकिन मिजोरम के मुख्यमंत्री की तरफ से ‘सॉरी’ कहने के अलावा कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला। असम के मुख्यमंत्री ने कहा कि ये मसला कोई दो राज्यों के बीच का सीमा विवाद नहीं है। असल में झगड़ा फॉरेस्ट लैंड (जंगल की जमीन) का है। असम जंगल बचाना चाहता है और मिजोरम की सरकार जंगल को उजाड़ना चाहती है।
देश की आजादी से पहले मिजोरम को लुशाई हिल्स कहते थे। ये असम का हिस्सा था। 1950 में असम भारत का हिस्सा बना। इसके बाद असम के विभाजन से नॉर्थ-ईस्ट (पूर्वोत्तर) के सारे राज्य बने। 1986 में मिजोरम शांति समझौते पर साइन होने के बाद 1987 में मिजोरम एक अलग पूर्ण राज्य बन गया । उस समय राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। तत्कालीन केंद्र सरकार ने मिजोरम को राज्य बनाने के लिए 1933 के एग्रीमेंट को आधार माना लेकिन मिजो ट्राइब्स का दावा है कि समझौता 1875 के इनर लाइन रेगुलेशन यानि ILR के तहत हुआ था। यहीं से विवाद शुरू हो गया। यही झगड़े की जड़ है।
1995 के बाद कई दौर की बातचीत हुई, पर कोई नतीजा नहीं निकला। पिछले साल अक्टूबर में भी झड़प हुई थी, लेकिन ऐसी हिंसा कभी नहीं हुई। गोलियां कभी नहीं चलीं। किसी की जान कभी नहीं गई। लेकिन सोमवार को पहली बार गोलियां चलीं, खून बहा और लाशें गिरीं।
असम और मिजोरम के बॉर्डर पर जो हुआ वो भविष्य में अब कभी नहीं होना चाहिए। जो भी विवाद हैं, वो सब मिल बैठकर सुलझाए जा सकते हैं। अच्छी बात ये है कि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री यही बात कह रहे हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने दोनों मुख्यमंत्रियों से बात की है, गृह सचिव दोनों राज्यों के पुलिस प्रमुखों से मिल रहे हैं। अफसरों को उनकी जिम्मेदारी का एहसास कराया जाएगा। हर कीमत पर हिंसा से बचने के लिए साफ तौर पर कहा जाएगा। इस कवायद ये असर होगा कि अब गोलियां नहीं चलेंगी, खून नहीं बहेगा, असम और मिजोरम के बॉर्डर पर शान्ति होगी। लेकिन इसका स्थाई समाधान निकालना होगा।
मुझे लगता है कि भले ही अब से पहले की सरकारों ने इस मामले को दशकों से लटका कर रखा हो, राज्यों के बीच चल रहे सीमा विवादों को तवज्जो नहीं दी हो, लेकिन नरेन्द्र मोदी की सरकार को इन विवादों का जल्द स्थाई समाधान निकालना चाहिए जिससे इस तरह की घटनाओं की संभावना हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाए। पिछले सात वर्षों में पीएम नरेन्द्र मोदी ने नॉर्थ ईस्ट को काफी तवज्जो दी है। मोदी ने नॉर्थ ईस्ट के लिए अलग नीति बनाई। सीनियर मंत्रियों को नॉर्थ ईस्ट के विकास की जिम्मेदारी दी। इन्फ्रास्ट्रक्चर की परियोजनाओं पर काम चल रहा है। लेकिन अगर इस तरह के झगड़े होंगे तो विकास की बात पीछे रह जाएगी। इसलिए अब सरकार को सबसे पहले सीमा विवाद सुलझाना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि केंद्र सरकार इस समस्या का स्थाई समाधान निकालने की कोशिश जरूर करेगी।
Assam-Mizoram border dispute: Centre must find out a permanent solution
The deadliest clash that took place between Assam and Mizoram policemen on Monday, resulted in the death of seven Assam policemen. This incident has hurt every Indian citizen. Both the states are dearer to every Indian citizen and there are elected governments in both the states. It is sad that policemen of both the states had to resort to firing at each other.
While BJP rules Assam, the Mizo National Front, that is part of BJP-led NDA is in power in Mizoram. Policemen of both Assam and Mizoram are Indians, but for a piece of land, both sides fired at each other heavily, resulting in losses of lives. Nothing could be more worrying when our own policemen fire upon their brethren from another state.
This is an issue that should worry both the Centre and all national and regional parties. It should be a worrisome issue for the people of both Assam and Mizoram. When news came about the death of five Assam policemen on Monday night, I had briefly broken the news in my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on India TV, but when I saw video footage of the constant gunfiring that went on between both the police forces, I became sad.
The first question that cropped up in my mind was how could this happen in our country, where policemen of two different states start killing one another? I rushed our reporter Pawan Nara to Guwahati, and from there to the Assam-Mizoram border to get a feel about the ground situation. I knew that this land dispute had been festering for the last four decades, but I never imagined the situation would come to such a breaking point.
The blood of every Indian will boil on seeing the video footage of firing that we showed in ‘Aaj Ki Baat’ on Tuesday night. The firing from both sides went on continuously, with shouts and abuses by attackers from both sides. Both the Assam and Mizoram governments are blaming each other for this, but the cruel fact is that all the five policemen killed were Indians. While Assam government alleged that it was Mizoram which encroached into its territory, built a road and set up an armed camp inside the inner line reserve forest in Lailapur, the Mizoram government alleged that it was Assam police which crossed the border and overran a police post at Kolasib.
A dawn-to-dusk bandh was called on Wednesday in Assam’s Barak valley to protest over the killing of policemen. Five companies (500 troops) of CRPF have been deployed at Vairengte in Kolasib district of Mizoram, that is adjacent to Lailapur of Assam’s Cachar district.
Assam chief minister Himanta Biswa Sarma posted video of Mizoram policemen and some ‘goons’ celebrating the death of Assam policemen in the firing. He alleged that the use of light machine guns by Mizoram policemen “speaks volumes about the intensity and gravity of the situation”.
On the other hand, Mizoram Chief Minister Zoramthanga claimed that on July 24 during a meeting with Sarma and Union Home Minister Amit Shah in Shillong, he had raised the border issue by saying that the territory being claimed by Assam was being used by Mizos for more than a hundred years. He alleged that Assam started to claim this area as its own because of population growth in Barak valley.
On Tuesday, Himanta Biswa Sarma went to Silchar hospital and visited the injured policemen. He announced Rs 50 lakh ex-gratia to the families of each policeman killed. He also announced one month additional salary to all policemen posted on the Assam-Mizo border.
Sarma said, Assam government will soon raise three battalions (3,000 men) to man the disputed border. He alleged that on Monday, he rang up Zoramthanga six times expressing concern over firing, but the Mizoram chief minister only said ‘sorry’. There was no other response from him, said Sarma. He pointed out that the dispute was over forest land, while Assam wants to protect forests, Mizoram government wants to destroy the forests.
Before independence, Lushai Hills (which later became Mizoram) was part of Assam. In 1950, Assam became part of the Indian Union. Almost all the states of north-east were created from Assam. In 1986, the Mizoram peace accord was signed, after which Mizoram became a full-fledged state in 1987. At that time, during Rajiv Gandhi’s rule, the Centre accepted the 1933 as the basis for carving out the state of Mizoram. But Mizo organizations claim that the 1875 Inner Line Regulation was the basis for creating the state.
This was the genesis of the long standing dispute. After 1995, there were several rounds of talks, but nothing conclusive came out. There was a clash in October last year, but this was the first time when firings took place from both sides and lives of policemen were lost.
The territorial dispute that caused unprecedented violence between the police of both states can be solved at the negotiation table. Both the chief ministers are willing to discuss and this is a positive sign. Home Minister Amit Shah has spoken to both the chief ministers and the Union Home Secretary is meeting the police chiefs of both states on Wednesday. The police chiefs will be told unequivocally to avoid violence at all costs. From now on, no shots will be fired, nor blood will flow and there will be peace. But a permanent solution needs to be found out.
Though previous governments had put the issue on the back burner for decades now, I believe Modi government will try to work out at permanent solution at the earliest. For the last seven years, Prime Minister Modi has laid stress on development of North-East, prepared special policies for north-east region, and has entrusted responsibility for development of North-East to senior ministers. Work is going on major infrastructure projects, but if inter-state disputes crop up, it can hamper progress. The border dispute has to be resolved soon and I am hopeful the Centre will try to find out a permanent solution.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने क्यों इस्तीफा दिया ?
कर्नाटक की सियासत में सोमवार को एक बड़ा बदलाव हुआ। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा ने अपने इस्तीफे का ऐलान करते हुए पिछले कुछ हफ्तों से अपनी सरकार को लेकर चल रही अटकलों को विराम दे दिया। इंडिया टीवी के रिपोर्टर देवेंद्र पराशर ने 17 जुलाई को ही ये खबर दी थी कि 26 जुलाई को मुख्यमंत्री येदियुरप्पा अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। सोमवार सुबह तक येदियुरप्पा सार्वजनिक तौर पर यही कह रहे थे उन्हें पद छोड़ने के लिए पार्टी हाईकमान की ओर से किसी तरह का कोई निर्देश नहीं मिला है। अगर पार्टी हाईकमान से आदेश मिलेगा तो वे पद छोड़ने में एक मिनट की भी देरी नहीं करेंगे। लेकिन ये सब महज कहने की बात थी। सबकुछ पहले से तय था।
येदियुरप्पा ने अपने इस्तीफे का ऐलान कर्नाटक विधानसभा परिसर में आयोजित एक कार्यक्रम में किया। सोमवार को ही उनकी सरकार के दो साल पूरे हुए। इस मौके पर येदियुरप्पा ने विधानसभा में बड़ा कार्यक्रम रखा था। इसी कार्यक्रम में 78 साल के येदियुरप्पा ने भावुक भाषण दिया। अपने भाषण के दौरान येदियुरप्पा कई बार रो पड़े। इसके बाद उन्होंने ऐलान किया कि वो लंच के बाद अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। इसके बाद येदियुरप्पा राजभवन गए जहां उन्होंने राज्यपाल थावरचंद गहलोत को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
येदियुरप्पा ने कहा, ‘मैं दुखी होकर नहीं, बल्कि खुशी से इस्तीफा दे रहा हूं..प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा ने मुझे बहुत प्यार और सम्मान दिया। मैं पार्टी में अकेला व्यक्ति था जो 75 साल से ज्यादा उम्र होने के बावजूद पद पर बना हुआ था। इस नियम का मैं अपवाद था। क्योंकि पार्टी में यह नियम है कि 75 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को कोई पद नहीं दिया जाता।’
उन्होंने ये भी कहा, मुझे (इस सरकार के) पहले दिन से हर कदम पर अग्निपरीक्षा का सामना करना पड़ा। हमारे राष्ट्रीय नेताओं ने मुझे दो महीने के लिए अपने कैबिनेट का विस्तार करने की अनुमति नहीं दी।.. न तो मैं राज्यपाल के पद के लिए इच्छुक हूं और न ही इस तरह की किसी पेशकश को स्वीकार करूंगा। मैं सक्रिय राजनीति से भी संन्यास नहीं ले रहा हूं।’
येदियुरप्पा को इस्तीफा देना है ये तो दो हफ्ते पहले ही तय हो गया था। सोमवार को तो सिर्फ औपचारिकता पूरी की गई। 10 जुलाई को येदियुरप्पा ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर बताया था कि अब उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती। उन्होंने लिखा था कि बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण वो अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारी के साथ न्याय नहीं कर पा रहे। उन्होंने कहा था कि वो मुख्यमंत्री पद से मुक्त होना चाहते हैं।
असल में येदियुरप्पा मधुमेह (Highly Diabetic) से ग्रसित हैं जिसकी वजह से कई और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं। वे 78 साल के हो चुके हैं इसलिए उम्र का तकाजा भी है। उनकी याद्दाश्त कमजोर पड़ने लगी है और वो कई बार चीजें भूल जाते हैं। उन्हें जल्दी थकान हो जाती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन्हें सम्मानजनक तरीके से विदाई देना चाहते थे। इसलिए जब येदियुरप्पा ने जब कहा कि 26 जुलाई को उनके 2 साल पूरे हो जाएंगे तो उन्हें इस्तीफे का ऐलान करने दिया जाए। पीएम मोदी ने उनकी बात मान ली। येदियुरप्पा ने कर्नाटक में बीजेपी को खड़ा करने में बड़ी भूमिका अदा की है। आज भी उनकी जबरद्स्त फॉलोइंग है और वे कर्नाटक के प्रभावशाली लिंगायत समाज के बड़े नेता हैं। अब बीजेपी येदियुरप्पा के अनुभवों का इस्तेमाल राष्ट्रीय स्तर पर करेगी।
Why Karnataka CM Yediyurappa resigned?
A major change took place in Karnataka politics on Monday, silently. Karnataka chief minister B. S. Yediyurappa on Monday announced his resignation ending weeks of speculation about his government. India TV reporter Devender Parashar had already reported on July 17 that the CM would resign on July 26. Till Monday morning, Yediyurappa was saying that he had not received any direction from the party high command to quit, and once the direction is received, he would not take even a minute to resign. This was for public consumption, because the timeline to quit had been set in advance.
In an emotional speech at a function in state assembly premises, to mark completion of two years of his government, during which he broke down several times, the 78-year-old leader announced that he would resign. By late afternoon, he submitted his resignation to Governor Thawar Chand Gehlot.
Yediyurappa said, “I am resigning not out of grief, but out of happiness..Prime Minister Narendra Modi, Amit Shah and J P Nadda showed me lots of love and respect. I was the only person in the party who was an exception to the rule about not giving post to leaders above 75 years”.
He also said, “I had to face agni pariksha (test by fire) at every step from day one(of this government). I was not allowed by our national leaders to expand my cabinet for two months. ..Neither am I aspiring for governor’s post nor will I accept if offered. I am also not retiring from active politics.”
Yediyurappa’s exit was decided two weeks ago and what happened on Monday was only a mere formality. On July 10, Yediyurappa had written a letter to the Prime Minister seeking to resign on health grounds. “..With my prevailing health situation, I have not been able to do complete justice in the administration. Hence I am requesting you to relieve me from my position as Chief Minister of Karnataka”, he wrote in his letter.
Yediyurappa is a diabetic and he is having several related health problems. At the age of 78, he is also suffering from lapse of memory and gets exhausted easily. Prime Minister Modi wanted to give him an honourable exit. When Yediyurappa told him that when his government will complete two years of rule on July 26, he should be allowed to resign. Modi agreed to his request. Yediyurappa played a stellar role in building the party from humble grassroots in Karnataka. He has a huge following and is considered one of the big leaders of Karnataka’s influential Lingayat community. Now, BJP is likely to use his vast experience on the national level.
बारिश, बाढ़ और लैंडस्लाइड से महाराष्ट्र पर मंडरा रहा मौत का साया
महाराष्ट्र के रायगड, रत्नागिरी और सतारा जिलों पर मौत का साया मंडरा रहा है। यहां पिछले 48 घंटों के दौरान लैंडस्लाइड (भूस्खलन) और बाढ़ से 129 लोगों की मौत हो चुकी है। वैस्टर्न घाट में लैंडस्लाइड से सड़कें और इमारतें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई हैं। बाढ़ का पानी कई गांवों, कस्बों और शहरों में कहर बरपा रहा है। पहाड़ों के खिसकने से पूरा का पूरा गांव पत्थर और कीचड़ में दब गया है। बिजली आपूर्ति ठप होने से लोगों के मोबाइल की बैटरी खत्म हो चुकी हैं और सारा कम्युनिकेशन सिस्टम ठप पड़ गया है। किसी से सपंर्क नहीं हो पा रहा है। मौसम विभाग का कहना है कि अगले तीन दिन तक बारिश होगी, यानि मुसीबत और बढ़ने वाली है। रेस्क्यू टीम को प्रभावित इलाकों तक पहुंचने में मुश्किल हो रही है। इंडिया टीवी के रिपोर्टर रायगड, रत्नागिरि और सतारा के उन इलाकों में पहुंचे जहां बारिश के कारण बहुत ज्यादा तबाही हुई है।
सबसे ज्यादा तबाही महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में हुई है। वैसे तो ये इलाका अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है लेकिन 48 घंटे की भयंकर बारिश और लैंडस्लाइड ने इस इलाके को तहस-नहस कर दिया है। रायगड के तलई इलाके में चट्टान खिसकने से 35 घर पहाड़ के मलबे में दब गए। इस हादसे में 49 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। अबतक 38 शव मलबे से निकाले जा चुके हैं। मलबे में 35 और लोगों के दबे होने की खबर है। रायगड के पोलादपुर इलाके में लैंडस्लाइड से 11 लोगों की मौत हो गई जबकि सतारा जिले में 13 लोगों की मौत हुई। महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजीत पवार ने राहत और बचाव के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से सेना के जवानों को भेजने का आग्रह किया है। नौसेना और वायुसेनाकर्मी भी रेस्क्यू में जुटे हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख रुपये और गंभीर रूप से घायल लोगों के लिए 50 हजार के मुआवजे का ऐलान किया है।
रेस्क्यू ऑपरेशन युद्धस्तर पर चल रहा है लेकिन मौसम खराब होने के कारण बार-बार इसमें बाधा आ रही है। चिपलून का पूरा कस्बा ही आठ से दस फीट पानी में डूबा हुआ है। हालांकि बारिश रुकने के बाद पानी कम होना शुरू हो गया है, लेकिन बाढ़ ने बड़े पैमाने पर तबाही मचा रखी है। इंडिया टीवी के रिपोर्टर राजेश सिंह शुक्रवार को चिपलून पहुंचे। वहां के हालात देखकर उन्हें भी यकीन नहीं हुआ कि ये वही शहर है जिसे देखने और घूमने के लिए दुनिया भर से सैलानी आते हैं। चिपलून शहर में सिर्फ तबाही के निशान हैं। बर्बादी का मंजर है। पूरे कस्बे में कारें उल्टी-पुल्टी पड़ी हैं। बाढ़ में बहे ट्रक और टैंपो नालों में प़ड़े हैं। पानी के बहाव के कारण गाड़ियां एक-दूसरे पर चढ़ी हुई हैं। हमारे रिपोर्टर को चिपलून तक पहुंचने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ा क्योंकि सड़कें टूटी हुई हैं, बिजली नहीं है और कम्युनिकेशन सिस्टम भी क्रैश हो चुका है। असल में चिपलून कोंकण क्षेत्र का कमर्शियल और बिजनेस हब है। ये बहुत ही विकसित इलाका है। यहां रोजाना सैकड़ों पर्यटक आते हैं। महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मणों का मूल स्थान चिपलून ही है। प्राकृतिक सुंदरता के चलते .चिपलून को महाराष्ट्र का गोवा भी कहा जाता है। अब यह कस्बा खंडहर में तब्दील हो चुका है। भारी बारिश, बाढ़ और लैंडस्लाइड से घाटों पर बने महलनुमा बंगले तबाह हो गए हैं।
कोंकण इलाके में बारिश होना कोई नई बात नहीं है। यहां हर साल खूब बारिश होती है। हालांकि कोंकण का इलाका महाराष्ट्र के कुल क्षेत्रफल का केवल 10 प्रतिशत है, लेकिन मानसून के दौरान यहां 46 प्रतिशत बारिश होती है। इस इलाके में छह बड़े बांध बनाए गए हैं, और चूंकि ये इलाका अरब सागर के किनारे है और सहयाद्री हिल्स में बसा है, इसलिए अरब सागर से उठा मानसून इस इलाके में जबरदस्त बारिश का कारण बनता है।
सवाल ये है कि इस साल ऐसा क्या हो गया कि ऐसी आपदा आ गई। इस सवाल का जवाब दिया रत्नागिरी के कलेक्टर बीएन पाटिल ने जिन्होंने15 दिन पहले ही काम संभाला है। बीएन पाटिल ने शहर में हुई तबाही के लिए भारी बारिश के साथ-साथ इंसानी लापरवाही को भी जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि ये मानव निर्मित आपदा भी है। दरअसल चिपलून शहर वशिष्ठ नदी के किनारे बसा है और पास में ही कोलकेवाड़ी डैम (बांध) भी है। लोगों ने वशिष्ठ नदी के रिवर बेड (नदी तल) पर अवैध निर्माण किया है इसकी वजह से नदी का रास्ता रुक गया है। भारी बारिश के बाद कोलकेवाड़ी डैम भर गया तो डैम के 4 गेट खोलकर पानी छोड़ना पड़ा। लेकिन वशिष्ठ नदी के रिवर बेड पर हुए अवैध निर्माण की वजह से पानी को निकलने का रास्ता नहीं मिला और पानी शहर में घुस गया। पाटिल का कहना है कि मौजूदा संकट खत्म होने के बाद वे रिवर बेड पर हुए अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। शुक्रवार को चिपलून के अस्पताल के अंदर कोरोना के 8 मरीजों की मौत की खबर आई। ये कोरोना मरीज वेंटिलेटर पर थे और बिजली नहीं थी। स्थानीय युवकों ने 12 कोविड मरीजों को दूसरे अस्पताल में शिफ्ट कर उन्हें बचा लिया।
रायगड की तरह सतारा और कोल्हापुर में भी लैंडस्लाइड हुआ और 14 लोगों की मौत हो गई। कई लोग लापता हैं और उनके मलबे में दबे होने की आशंका है। सतारा जिले के पाटन के पास अंबेघर में लैंडस्लाइड से कई इमारतें मलबे में तब्दील हो गईं। रास्ते में मलबा आने से एनडीआरएफ की टीम को रेस्क्यू के लिए मौके पर पहुंचने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। शुक्रवार को कोएना डैम के पास 640 मिलीमीटर तक बारिश दर्ज की गई।
कुल मिलाकर तबाही के ये दृश्य बेहद पीड़ादायक हैं। महाराष्ट्र के कम से कम 12 जिले भारी बारिश, बाढ़ और लैंडस्लाइड से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। चिंता की बात ये है कि अगले तीन दिन तक भारी बारिश की आशंका है। अगर बारिश जारी रही तो हालात और खराब हो सकते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद लगातार हालात पर नजर रख रहे हैं। पीएम मोदी ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से बात करके स्थिति की जानकारी ली है और हरसंभव मदद का भरोसा दिया है। चूंकि कई इलाकों के लोगों का सबकुछ बर्बाद हो गया है इसलिए फिलहाल सरकार सबसे पहले लोगों के लिए खाना और पीने के पानी का इंतजाम कर रही है। जिन इलाकों में लैंडस्लाइड या बाढ़ का खतरा है, वहां से लोगों को निकाला जा रहा है और सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया जा रहा है। सरकार तो महाराष्ट्र के लोगों की मदद की हरसंभव कोशिश कर रही है लेकिन इन पीड़ितों की मदद करना हमारा भी कर्तव्य है। हम सबको भी दुआ करनी चाहिए कि महाराष्ट्र के लोगों को जल्दी से जल्दी इस मुसीबत से मुक्ति मिले।
Shadow of death: Landslides, flood in Maharashtra
The shadow of death is hovering over Raigad, Ratnagiri and Satara districts of Maharashtra, where 129 people have died during the past 48 hours due to landslides and flood. Landslides in the Western ghats have badly damaged roads and buildings, flood water has swept through many villages, towns and cities causing havoc.
In several parts, entire villages have turned into rubble due to landslides from the hills. With power supply disconnected, there is complete breakdown of communication. The met department has predicted continuous rains for the next three days. Rescue teams are finding it difficult to reach the affected areas. India TV reporters have reached Ratnagiri, Raigad and Satara to report on the devastation caused due to nature’s fury.
The worst hit is Konkan region, the pride of Western Ghats because of its natural beauty. This region today is witnessing widespread devastation caused due to landslides and continuous rains for 48 hours. 35 houses were turned to rubble because of landslide in Talai village killing 49 people. Till now, 38 bodies have been recovered. Thirty five more are reported to be trapped in the rubble. In Poladpur area of Raigad, 11 people died due to landslide, while 13 died in Satara district. Maharashtra deputy chief minister Ajit Pawar requested Defence Minister Rajnath Singh to send army jawans for rescue and relief operations. Navy and Air Force personnel are also helping in rescue efforts. The Prime Minister Narendra Modi has announced release of ex gratia of Rs 2 lakh to families of those killed and Rs 50,000 to those seriously injured.
While rescue operations are going on a war footing, incessant rain is causing obstacles. The entire town of Chiplun has been submerged in eight to ten feet deep water. Though water has started receding after rains stopped, but the flood has caused large scale havoc in its wake. India TV reporter Rajesh Singh who visited Chiplun on Friday sent visuals of scores of cars lying upturned in water, and trucks and tempos stuck in drains. Many of the cars were lying one upon another. Our reporter had to walk several kilometres through the town because of broken roads, power cut and lack of communication. Chiplun is the commercial hub of Konkan region. It attracts hundreds of tourists daily. The original place of Maharashtra’s Chitpavan Brahmin community, this town is known as the Goa of Maharashtra for its scenic beauty. Now, the town lies in ruins. Palatial bungalows built on the Ghats have been devastated due to incessant rain, flood and landslides.
Konkan region is not new to rains. Though it is only 10 per cent of Maharashtra’s land area, it gets 46 per cent of rains during monsoon. Six big dams have been built in this region, and since the Sahyadri hills are closer to the Arabian sea, this region faces the full brunt when monsoon clouds descend from the sea.
B. N. Patil, who took over as Collector of Ratnagiri only 15 days ago, describes this as man made disaster. He said, the town of Chiplun is located on the banks of river Vashishta and there is Kolkewadi dam nearby. In their greed for money and real estate, people resorted to illegal constructions even on the river bed. As a result, the flow of Vashishta river was blocked at several points leading to flood inside the town. Due to heavy rains, the four gates of Kolkewadi dam had to be opened to release excess water causing more flood. Patil says, he would take action against illegal constructions on river bed once the present crisis is over. On Friday came news of the death of 8 Covid-19 patients inside a hospital in Chiplun. They were on ventilators and there was no electricity. Twelve Covid patients were saved by local youths.
Landslides also occurred in Satara and Kolhapur districts killing 14 people. Many were missing and are probably lying trapped under the rubble. Several buildings were turned to rubble when a major landslide occurred in Ambeghar near Patan in Satara district. NDRF rescue team had a tough time reaching the spots due to roads blocked by rubble. 640 mm rain was recorded near Koyna dam on Friday.
The overall scene is disheartening. Twelve districts of Maharashtra have been badly hit by rains, flood and landslides. If rains continues for the next three days, it will cause more havoc. Prime Minister Narendra Modi is keeping a close watch on the situation. On Friday, he spoke to chief minister Uddhav Thackeray about rescue and relief operations.
The government is trying its best to provide food and water for the victims who have been rendered homeless. People living in landslide prone areas are being evacuated to safer places. The Centre is rendering all help possible to provide relief to the people of Maharashtra. Let us pray that the people of the state are saved from this disaster. It is our duty to render all help to the victims of landslides and flood in Maharashtra.