दो गाड़ियां और जिलेटिन विस्फोटक: आखिर सचिन वाज़े का मक़सद क्या था?
मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के बाहर गाड़ी में विस्फोटक रखने के मामले ने एक अलग मोड़ ले लिया है। इस पूरे प्लान में दो गाड़ियों का इस्तेमाल किया गया था। एक गाड़ी में जिलेटिन की छड़ें (विस्फोटक पदार्थ) रखी गईं और उसे मुकेश अंबानी के घर के बाहर पार्क किया गया जबकि दूसरी गाड़ी में पहली गाड़ी को पार्क करनेवाला शख्स बैठकर फरार हो गया। इत्तेफाक देखिए कि विस्फोटकों वाली गाड़ी मुकेश अंबानी के घर के पास पार्क किए जाने से पहले हफ्ते भर तक मुंबई पुलिस के असिस्टेंट इंस्पेक्टर सचिन वाज़े के घर के पास खड़ी रही और दूसरी वाजे़ के ऑफिस (क्राइम इंवेस्टीगेशन यूनिट) की गाड़ी निकली। मजेदार बात ये है कि इन दोनों गाड़ियों को पुलिस ढूंढ रही थी। एक को घटना से पहले और दूसरी को हादसे के बाद से पुलिस तलाश रही थी।
इस पूरे मामले में हैरानी की बात ये है कि क्या एक सहायक पुलिस इंस्पेक्टर को इतना साहस हो सकता है कि वह देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक से भरी गाड़ी रखने की हिमाक़त करे? और इतना ही नहीं वो इस मामले को अंजाम देने के लिए अपनी ही ऑफिस की इनोवा गाड़ी का इस्तेमाल कर रहा था। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की तफतीश के दौरान वाजे के खिलाफ सोमवार को जो नए तथ्य उभरकर सामने आए उसके बाद अब सवाल ये उठता है कि इस साजिश के पीछे सचिन वाज़े का मकसद क्या था?
अब तक जो भी सबूत और गवाहों की बातें सामने आई हैं उससे ये तो साबित हो गया है कि मुकेश अंबानी के 27 मंजिला घर एंटीलिया के पास बारूद से भरी स्कॉर्पियो पार्क करने में सचिन वाज़े का रोल था। उसने इसके लिए अपने व्यापारी दोस्त मनसुख हिरेन की गाड़ी का इस्तेमाल किया। मनसुख हिरेन का शव बाद में एक खाड़ी में पाया गया था।
क्या ये संभव है कि एक सहायक पुलिस इंस्पेक्टर 4 महीने तक अपने दोस्त की गाड़ी अपने पास रख ले और वापस लौटाने के कुछ ही दिन बाद गाड़ी चोरी हो जाए? चोरी के 10 दिन बाद गाड़ी मुकेश अंबानी के घर के पास मिले और उसमें बारूद भरा हो? इस बारूद से भरी गाड़ी के साथ जो इनोवा गाड़ी इस्तेमाल हुई हो वो क्राइम ब्रांच की हो जहां सचिन वाज़े तैनात हो?
सीसीटीवी फुटेज में भी इनोवा गाड़ी की पूरी तस्वीर कैद हुई है। गाड़ी मिलने के बाद सचिन वाज़े ने गाड़ी के मालिक मनसुख हिरेन से कहा कि वो जुर्म कबूल कर ले और वो उसे छुड़ा लेगा? ये आरोप मनसुख की पत्नी ने लगाया है। इतना ही नहीं, पूछताछ के दौरान ही वाज़े ने अपने वकील से मनसुख हिरेन की तरफ से चिट्ठी ड्राफ्ट करवाई और उसे पुलिस कमिश्नर, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री को भेजा जिसमें ये लिखा था कि उसकी जान को खतरा है। और इसके दो दिन के बाद मनसुख हिरेन की मौत हो गई?
क्या ये सब कुछ महज़ इत्तेफाक हो सकता है? बिल्कुल नहीं। सारे सबूत और गवाह, सचिन वाज़े की तरफ इशारा कर रहे हैं, लेकिन इसके बाद बड़ा सवाल ये उठा है कि एक सहायक पुलिस इंस्पेक्टर इतने बड़े और नाज़ुक मामले में शामिल होने का खतरा क्यों उठाएगा? क्या इतने सारे इत्तेफाक एक साथ हो सकते हैं?
जरा इन घटनाक्रमों पर ग़ौर फरमाएं।
1 मार्च को सचिन वाज़े से केस वापस ले लिया गया था। 2 मार्च को सचिन वाजे़ ने अपनी बिल्डिंग के डिजिटल वीडियो रिकॉर्डिंग (डीवीआर) हटवा दिए, उसे पुलिसवाले ले गए। 2 मार्च को ही वाज़े ने मनसुख की तरफ से चिट्ठी लिखवाई जिसमें जान का खतरा बताया गया। 3 मार्च को मुख्यमंत्री, गृह मंत्री और पुलिस कमिश्नर को यह चिट्ठी भेजी गई। 4 मार्च को मनसुख हिरेन गायब हुआ और 5 मार्च को मनसुख हिरेन की लाश मिली।
क्या ये सब महज इत्तेफाक है? सारे बयान और सबूत देखने के बाद इसमें तो कोई शक नहीं है कि सचिन वाजे इस केस में सीधे तौर पर शामिल है। उसके वकील कह सकते हैं कि ये इत्तेफाक है। पर इत्तेफाक बहुत सारे हैं, इतने इतेफाक एक साथ और एक ही पुलिस वाले सचिन वाज़े को लेकर, इस पर आसानी से विश्वास करना मुश्किल है।
यह आरोप लगाना कि एक पुलिस ऑफिसर अपराध कर सकता है, साजिश रच सकता है, सबूत नष्ट कर सकता है, कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। इससे भी बड़ी बात ये है कि सचिन वाज़े ने पूरी हिमाक़त दिखाते हुए ये सब किया और इस अपराध को अंजाम देने के लिए इतनी हिम्मत उसे कहां से मिली?
जैसे ही ये सवाल आता है तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए जवाब देना मुश्किल हो जाता है। मुख्यमंत्री इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि सचिन वाजे़ को 16 साल पहले सस्पेंड किया गया था, वो इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि सचिन वाजे़ ने शिवसेना की सदस्यता ली थी, सीएम इस बात को खारिज नहीं कर सकते कि 16 साल के बाद उनकी सरकार ने अचानक सचिन वाजे़ को बहाल कर दिया, और न सिर्फ बहाल किया बल्कि तमाम बड़े मामलों की जांच उसके हवाले कर दी। इसलिए अब मुकेश अंबानी से जुड़े केस में जब सचिन वाजे़ का रोल सामने आया तो शिवसेना और सहायोगी दलों, एनसीपी और कांग्रेस के लिए जवाब देना मुश्किल हो रहा है।
ये तो साफ है कि मुकेश अंबानी के घर के बाहर बारूद से भरी गाड़ी मिलना, फिर गाड़ी के मालिक की मौत होना, ये सब एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। इस साजिश का सूत्रधार सचिन वाजे़ है। लेकिन इसके बाद अब सवाल ये उठता है कि सचिन वाजे़ का मकसद क्या था? ऐसा करके सचिन वाज़े क्या हासिल करना चाहता था? इसका कोई निश्चित जबाव अभी तक नहीं मिला है।
हालांकि एक राय ये है कि सचिन वाज़े भले ही मुंबई पुलिस का एक अदना पुलिस अफसर था लेकिन उसके प्लान बड़े खतरनाक थे। वो मुकेश अंबानी को डराना चाहता था इसीलिए गाड़ी में जिलेटिन की छड़ें रखकर अंबानी के घर के पास खड़ी की गई और गाड़ी में चिट्ठी लिखकर रखी गई। यह चिट्ठी मुंबई इंडियंस के बैग में रखी गई और चिट्ठी में नीता अंबानी को ‘भाभी’ कह कर संबोधित किया गया। चिट्ठी में ये कहा गया कि ‘ये तो ट्रेलर है, सारी तैयारी हो चुकी है।’ मतलब साफ है, इरादा एक्सटॉर्शन (जबरन वसूली) का था, डराने का था।
जाहिर है एनआईए जांच और अदालत का फैसला आने के बाद ही कोई अन्तिम नतीजा निकल पाएगा। लेकिन इतना कहना जरूरी है कि मुंबई पुलिस का एक सहायक इंस्पेक्टर इस हद तक प्लान कर सकता है, इतनी हिमाक़त के साथ इतनी बड़ी साज़िश तैयार कर सकता है, देश के सबसे बड़े उद्योगपति के घर के बाहर विस्फोटक से भरी गाड़ी रख कर डराने की हिमाकत कर सकता है, ये सचमुच हैरानी की बात है।
Gelatin sticks, Two cars and Sachin Vajhe connection : What was the motive ?
The Antilia explosive case has taken a most curious turn. Two vehicles were used, one vehicle filled with gelatin sticks was parked outside Mukesh Ambani’s residence Antilia, and the other vehicle was used as a getaway car. The most surprising part of this was that the vehicle that was found filled with explosives near Antilia, was parked near Mumbai Police assistant inspector Sachin Vaze’s residence for one whole week. The other getaway car belonged to Sachin Vaze’s Crime Investigation Unit.
And the funniest part was that Mumbai Police was on the lookout for these two vehicles, one before the incident, and the other after the incident.
I think, the strangest part in the Sachin Waze case is how an assistant police inspector could muster the courage to park a vehicle filled with explosive gelatin sticks outside India’s top industrialist Mukesh Ambani’s residence Antilia in Mumbai. And use his own office car for cover up operation.
As more and more facts tumbled out on Monday against Waze during the probe by National Investigation Agency, the question that arises is: What was Sachin Waze’s motive?
Most of the circumstantial evidences and eyewitness accounts point to Waze’s involvement in getting the Scorpio vehicle laden with explosives outside Antilia, the 27-storey residence of Mukesh Ambani. It was he who used the vehicle belonging to Mansukh Hiren, his businessman friend, who was found killed in a creek.
The key pointers: an assistant police inspector keeps his friend’s vehicle with him for four months and within days of returning the vehicle, it gets stolen mysteriously and is then found parked outside Antilia loaded with explosives; the Innova vehicle that was spotted on CCTV as the getaway care, belonged to the Crime Investigation Unit of Mumbai Police, where Vaze was posted; Mansukh’s widow alleging that it was Vaze who was persuading his friend to admit that he parked the Scorpio outside Antilia; when Mansukh is interrogated, the API asks his lawyer friend to draft a letter on behalf of Mansukh addressed to the Police Commissioner, Chief Minister and Home Minister fearing threat to his life; two days later Mansukh’s body is found drowned inside a creek.
Can all these be mere coincidences? Of course, not. Then the most important question arises: Why would an assistant police inspector risk his career and life, and muster the courage to park explosives outside an industrialist’s house?
Note down some of the developments: On March 1, the Antilia case investigation was taken away from Sachin Vaze, on March 2, Vaze made the digital video recordings in his housing society taken away by some policemen, the same day Vaze got a letter written on behalf of Mansukh fearing his life, on March 3, the letter was sent to the Police Commissioner, CM and Home Minister, on March 4 Mansukh went missing, and on March 5, his dead body was found in a creek. Can all these be mere coincidences?
After going through all evidences and statements, there is not an iota of doubt that Sachin Vaze was deeply involved in the Antilia explosives and Mansukh murder cases. His lawyer can say all these could be coincidences, but the fact is that all these coincidences point towards one man: Sachin Vaze.
To allege that a police officer can hatch a conspiracy, commit a crime, and make evidences disappear, is not a big deal. These can happen. But from where did he gather so much confidence and courage to carry out these crimes? It would be difficult for Chief Minister Uddhav Thackeray to give a well-reasoned reply in defence of Sachin Vaze. The CM cannot deny that Vaze was suspended from service 16 years ago, he cannot deny that Vaze joined the Shiv Sena, the CM cannot deny that it was his government which reinstated Vaze in service after 16 years, he cannot deny that not only was Vaze reinstated but investigation of many important cases was handed over to him. So now that Vaze’s name has cropped up in the Antilia explosives case, it has become difficult not only for Shiv Sena, but also its allies NCP and Congress to give a cogent reply.
There is no doubt that the parking of explosives outside Mukesh Ambani’s house and the death of Vaze’s businessman friend linked to this case are part of a big conspiracy hatched by none other than the assistant police inspector Sachin Vaze. But the motive is still unclear. What did Sachin Vaze wanted to achieve?
There is no definite answer to this question, but one view is that a small-time police officer had indeed big plans. He wanted to intimidate India’s richest man Mukesh Ambani. That is why the vehicle was parked outside Ambani’s house filled with gelatin sticks, and a letter was kept inside a Mumbai Indians bag, addressed to Neeta Ambani as ‘Bhabhi’. In the letter, the threat that was made was very clear. The letter said, this is only a trailer, all other arrangements are ready. So the motive behind this was: extortion, preceded by threat ?
But the strangest part is still unanswered: How did a small-time police officer gather the courage to intimidate India’s top industrialist by planting explosives outside his house?
बंगाल में ममता के पक्ष में सहानुभूति की लहर को कैसे थामेगी बीजेपी?
बंगाल में सियासी जंग की बिसात अब बिछ चुकी है। तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी जहां 15 मार्च को पुरुलिया में चुनावी रैली को संबोधित करेंगी, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 18 मार्च से अपना कैंपेन शुरू करने जा रहे हैं।
ममता बनर्जी को 48 घंटे तक ऑब्जर्वेशन में रखने के बाद शुक्रवार की शाम SSKM अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। वह जब अस्पताल से बाहर निकलीं तो उनके बाएं पैर में प्लास्टर लगा था, और वह व्हीलचेयर पर बैठी थीं। ममता की यह तस्वीर अब बंगाल की चुनावी सियासत का सबसे खास पोस्टर बनेगी। डॉक्टरों ने उन्हें पूरी तरह आराम करने की सलाह दी है और कहा है कि अब एक हफ्ते बाद उनके पैर की जांच की जाएगी। लेकिन मुख्यमंत्री और पार्टी में उनके सहयोगियों ने फैसला किया है कि वह अपने चुनाव अभियान को फिर से शुरू करेंगी।
शुक्रवार को अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद जब ममता हॉस्पिटल से बाहर आईं तो उनके चेहरे पर चोट का दर्द साफ दिख रहा था, और वह कमजोर भी लग रही थीं। वह अपनी व्हीलचेयर से उठ भी नहीं पा रही थीं। ममता के सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें सहारा देकर गाड़ी की फ्रंट सीट पर बैठाया। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद ममता ने मीडिया से बात नहीं की, लेकिन यह लगभग तय है कि अब वह व्हीलचेयर पर बैठकर ही अपनी अधिकांश रैलियों को संबोधित करेंगी। रविवार (14 मार्च) को वह अपनी पार्टी का चुनावी घोषणापत्र कोलकाता में जारी करेंगी।
अब जबकि ममता की चोट बंगाल के आम मतदाताओं के बीच चर्चा का विषय बन गई है, तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को उम्मीद है कि इससे उनकी नेता के पक्ष में सहानुभूति की लहर पैदा होगी। तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी, दोनों ही पार्टियों ने नंदीग्राम में हुई उस घटना की जांच की मांग की है जिसमें ममता घायल हुई थीं। जांच का नतीजा चाहे जो हो, एक मुख्यमंत्री द्वारा व्हीलचेयर पर बैठकर रैलियों को संबोधित करने का दृश्य निश्चित तौर पर जनता को अपनी तरफ खींचेगा।
सौगत राय जैसे तृणमूल के वरिष्ठ नेता ने घटनाओं के लिंक जोड़ने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि पहला लिंक तो यह है कि बीजेपी के नेताओं दिलीप घोष और सौमित्र खान ने पहले ही बता दिया कि नंदीग्राम में कुछ होने वाला है, दूसरा, प्रधानमंत्री ने खुद ब्रिगेड परेड ग्राउंड में कहा था कि क्या होता यदि नंदीग्राम में ममता की स्कूटी पलट जाती, और तीसरा, अचानक राज्य पुलिस के DGP और ADG (लॉ एंड ऑर्डर) को हटा दिया गया।
यह सच है कि मोदी ने कहा था कि यदि नंदीग्राम में ममता की स्कूटी फिसल गई तो क्या होगा, लेकिन इसे मुख्यमंत्री के साथ हुए हादसे से जोड़ना कुछ ज्यादा ही हो जाएगा। पीएम का मतलब था कि यदि ममता नंदीग्राम की चुनावी लड़ाई हार गईं तो क्या होगा, लेकिन उनके बयान को सौगत रॉय जैसे वरिष्ठ नेता ने तोड़-मरोड़कर पेश किया। शुक्रवार को तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने अपने नेता पर हुए ‘हमले’ की निंदा के लिए साइलेंट प्रोटेस्ट मार्च निकाला। बुधवार तक तृणमूल कई नेताओं द्वारा पार्टी छोड़े जाने के बाद डिफेंसिव मोड में थी, लेकिन ममता की चोट ने अब उनके उम्मीदवारों और समर्थकों में जोश भर दिया है।
स्वाभाविक तौर पर बीजेपी नेतृत्व परेशान है और उनकी चुनावी गणित गड़बड़ा गई है। बीजेपी नहीं चाहती कि ममता बनर्जी की चोट इस चुनाव में बड़ा इश्यू बने, क्योंकि यदि ऐसा होता है तो यह निश्चित तौर पर तृणमूल कांग्रेस के लिए एडवांटेज प्वाइंट हो सकता है। ममता को चोट तो लगी है, फ्रैक्चर भी है, प्लास्टर भी चढ़ा है। उनका कैम्पेन अब व्हीलचेयर पर बैठकर होगा और सहानुभूति उनके साथ होगी। खास तौर पर महिला वोटर्स पर इसका बड़ा असर पड़ सकता है।
बीजेपी को अब यह देखना होगा कि इस सियासी नुकसान को कितना काम किया जा सकता है। इस सप्ताह के मध्य तक मुस्लिम अपीजमेंट के सवाल पर, हिंदुओं के सवाल पर, राजनीतिक हत्याओं के सवाल पर और अपने कार्यकर्ताओं की मौत के सवाल पर बीजेपी ऑफेंसिव मोड में थी। लेकिन अब लगता है कि बाजी पलट चुकी है।
अब ममता अटैकिंग मोड में होंगी, व्हीलचेयर में बैठकर अपने ऊपर हुए हमले का इल्जाम लगाएंगी और यह बंगाल के मतदाताओं के मन पर जरूर असर डालेगा। वह जनता को अपने पैरों में लगी चोट दिखाएंगी और इस पर बीजेपी को डिफेंसिव होना पड़ेगा। भारतीय जनता पार्टी सिर्फ इतना कह पाएगी कि जब उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा के काफिले पर डायमंड हार्बर में हमला हुआ था उस समय ममता क्यों खामोश थीं।
बीजेपी के लिए राहत की बात सिर्फ ये है कि अब पार्टी में कई ऐसे नेता हैं, जो कई बरसों तक ममता के साथ जुड़े रहे। वे अच्छी तरह जानते हैं कि पहले भी ममता ने मतदाताओं को लुभाने के लिए कैसे अपनी चोटों का इस्तेमाल किया है। ये नेता अपने वोटर्स से ये जरूर कहेंगे कि ममता की चोट एक ’राजनीतिक ड्रामा’ है। इन नेताओं में सबसे आगे शुभेंदु अधिकारी हैं, जिन्होंने शुक्रवार को ममता के खिलाफ नंदीग्राम से अपना नामांकन दाखिल किया। इस मामले पर अब शुभेंदु अधिकारी ही चुनौती देंगे।
How BJP is going to counter Mamata’s sympathy factor in Bengal polls
The political battlelines in Bengal have now been drawn with Trinamool Congress supremo Mamata Banerjee deciding to address her election rally in Purulia on March 15, and Prime Minister Narendra Modi launching his campaign from March 18.
On Friday evening, Mamata Banerjee was discharged from SSKM Hospital in Kolkata after 48 hours of observation. Visuals of Mamata sitting in a wheel chair with her left leg cast in plaster, have now become the key poster for Bengal elections. The doctors had advised her complete rest and had said that her leg would be examined after a week. But the chief minister and her aides have now decided that she would resume her poll campaign.
On Friday after her discharge from hospital, Mamata looked weak and in pain. She was unable to stand up from her wheel chair. Her security personnel helped her by moving the leader to the front seat of the vehicle. Mamata did not speak to the media after being discharged, but it is now almost certain that she will be addressing most of her rallies sitting in a wheel chair. On Sunday (March 14), she will release her party election manifesto in Kolkata.
Now that her injury has become the talking point among common voters in Bengal, the Trinamool Congress leaders are expecting a huge sympathy wave in favour of their leader. Both the Trinamool Congress and the BJP have demanded probe into the incident in Nandigram in which Mamata was injured. Whatever may be the outcome of the probe, the sight of the chief minister addressing rallies sitting in a wheel chair is sure to become a big draw among the crowds.
A senior Trinamool leader like Saugata Roy tried to link three points. He said, one, state BJP leaders Dilip Ghosh and Saumitra Khan had already predicted that something was going to happen in Nandigram, two, the Prime Minister in his Brigade Parade ground speech had asked, what if Mamata’s scooty slipped in Nandigram, and three, the DGP and ADG(Law and Order) of state police were suddenly removed.
It is true Modi had asked what if Mamata’s scooty slipped in Nandigram, but it was a figurative remark. He was wondering whether Mamta would lose the Nandigram poll, but the PM’s remark was torn out of context by a senior leader like Saugata Roy. On Friday, Trinamool workers took out silent protest marches to condemn what they said ‘attack on our leader’. Till Wednesday, Mamata’s party was on the defensive with several leaders deserting the party, but Mamata’s injury has now kindled enthusiasm among her candidates and supporters.
Naturally, the BJP leadership is worried and their poll calculations have gone awry. If Mamata’s injury becomes the main political issue, it will surely act as an advantage point for Trinamool Congress. With Mamata campaigning in a wheel chair, the message to the voters will go out loud and clear. The ‘daughter of Bengal’ is sure to gain sympathy, particularly among women voters.
The BJP leadership will now have to calculate how to minimize the political damage that this incident has caused. Till the middle of this week, BJP was on the offensive, on issues like minorities appeasement, Hindu issues, political killings, and death of BJP supporters. But now, the table seems to have been turned.
A Mamata, sitting in a wheel chair, and levelling allegations about how she was attacked, is sure to go down deep into the psyche of the common Bengali voters. The visuals of Mamata’s left leg cast in plaster are surely going to put the BJP on the defensive. BJP leaders may question, why Mamata was silent when BJP President J P Nadda’s convoy was attacked in Diamond Harbour.
The only consolation for the BJP is that there are now many leaders now in the party, who were earlier associated with Mamata Banerjee. They know very well how Mamata, in the past, used her injuries to sway voters. These leaders are surely going to tell the voters that Mamata’s injury was a ‘political drama’. The most prominent of these leaders is Suvendu Adhikari, who, on Friday, filed his nomination from Nandigram against Mamata. It is Suvendu Adhikari who is now going to call the bluff.
Rahul must not challenge popular mandates by dubbing them as “electoral autocracy”
On Thursday, Congress leader Rahul Gandhi, while quoting a Swedish institute’s report, tweeted: ‘India is no longer a democratic country’. He quoted a Swedish institute V-Dem (Varieties of Democracy). V-Dem claims, it works with more than 3,500 country experts and it has a global advisory board.
Members of the board include Pakistan People’s Party leader Aitzaz Ahsan, India’s Centre for Policy Research chief Pratap Bhanu Mehta and JNU Professor Nirja Gopal Jayal. The institute has been set up the Department of Political Sciences of the University of Gothenburg, Sweden.
In ‘Democracy Report 2021’, V-Dem has downgraded India from ‘world’s largest democracy’ to an ‘electoral autocracy’. The report says: “Narendra Modi led the BJP to victory in India’s 2014 elections ..and most of the decline occurred following BJP’s victory and their promotion of a Hindu-nationalist agenda.”
The report further says, “In general, the Modi-led government in India has used laws on sedition, defamation, and counterterrorism to silence critics. For example, over 7,000 people have been charged with sedition after the BJP assumed power and most of the accused are critics of the ruling party. The laws of defamation, upheld in India’s Supreme Court in May 2016, have been used frequently to silence journalists and news outlets that take exception to policies of the BJP government.”
I do not know from where the V-Dem got its figures, but if laws of defamation have been used to silence Modi’s critics, Rahul Gandhi should come forward and disclose whether he or his party men have been framed in any defamation case for making allegations against Modi for putting Rs 30,000 crore in Ambani’s pockets in the Rafale deal.
Rahul Gandhi should know how more than 1,40,000 people were arrested and put in jail without trial during 20 months of Emergency imposed by his grandmother Indira Gandhi in 1975. This figure is from Amnesty International report, the organisation, which Rahul and his aides love to quote nowadays.
Nearly 27 lakh people in 1975 and 83 lakh people in 1976 were forcibly sterilized during the Emergency, according to Population Bulletin. The entire opposition was thrown into jail for 19 months. Right to Life and Liberty, as enshrined in the Indian Constitution, was abrogated and four out of five judges on the Supreme Court bench were forced to give judgement supporting the government’s power to abrogate this right. The only brave judge who wrote in dissent was Justice H R Khanna. It was he who wrote “detention without trial is anathema to all those who love personal liberty”. This dissenting judgement later cost Justice Khanna the post of the Chief Justice of India.
If Rahul Gandhi says there is no democracy in India now, he must come up with facts and figures to show whether censorship has been imposed on the media, or whether journalists have been thrown into jails for writing against the government, as his grandmother did during the Emergency. Rahul Gandhi alleges that the voice of the opposition has been muzzled. Right from 2014, Rahul and his party men had been levelling baseless allegations against Narendra Modi. Were they ever prevented from voicing their allegations? Rahul had alleged in 2019 that Modi had favoured Anil Ambani to the tune of Rs 30,000 crore in the Rafale deal. Did anybody try to muzzle Rahul’s voice?
It’s time Rahul should come forward and clarify what type of democracy he wants. Does he want a democracy where a family controls the running of a government for 10 years by using remote control? Does he want an ‘Accidental Prime Minister’ like Dr Manmohan Singh, whose cabinet approved an ordinance, but had to stall it, after Rahul tore up the copy of the ordinance in public at a press conference?
Rahul and his aides must understand that the people of India have twice given clear mandates to Narendra Modi. The people of India have rejected the concept of rule by a single dynasty. In elections after elections, the Congress has lost the states where it once used to rule. To label the people’s mandate as “electoral autocracy” by quoting a report written by two professors sitting in a Swedish university, is like being an ostrich hiding its head in the sand. Rahul should wake up and try to mobilize his partymen in order to build a strong opposition instead of relying on reports prepared in foreign land.
लोकतंत्र का मतलब तुम क्या जानो, मोदी बाबू !
राहुल गांधी ने ठीक तो कहा, हमारे देश में लोकतन्त्र मर चुका है। लोकतन्त्र का मतलब होता है वो शासन जिसमें पता ही न चले कि सरकार कौन चला रहा है। दस साल तक लोग सोचते रहे मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री है पर मनमोहन सिंह को कभी नहीं लगा कि वो प्रधानमंत्री हैं, हमने लगने ही नहीं दिया। ये मोदी भी कोई प्रधानमंत्री हैं जो अपने बलबूते पर सरकार चलाता है। ये कैसा लोकतन्त्र है, जिसमें मोदी की पार्टी के नेता उनका अपमान तक नहीं कर सकते। लोकतन्त्र तो उन दस सालों में था, जब कांग्रेस की सरकार थी, राहुल गांधी ने आर्डिनेंस फाड़ कर कूड़े के डिब्बे में डाल दिया था। सरेआम प्रधानमंत्री का अपमान किया था और मनमोहन सिंह ने चूं तक नहीं की। ये होता है लोकतन्त्र !
जैसे आजकल पाकिस्तान में लोकतन्त्र है। इमरान खान को वज़ीरे आज़म कहा जाता है लेकिन सब जानते हैं कि सरकार कौन चलाता है। चुनाव भी फौज कराती है, किसे जिताना. किसे हराना है, ये भी फौज तय करती है। इसे कहते हैं जम्हूरियत-ए-फौज। यहां फौज सरकार और विरोधी दलों, दोनों का बड़ा ख्याल रखती है। लोग इसे ख्वामख्वाह तानाशाही कहते हैं।
हमारे मुल्क में हमने इसी तरह की जम्हूरियत देखी है। इमरजेंसी के ज़माने में राहुल की दादी की सरकार ने विरोधी दलों का पूरा ख्याल ऱखा। सारे नेताओं के लिए 19 महीने मुफ्त में रहने और खाने का इंतजाम किया, किसी का गला खराब न हो, इसलिए बोलने से मना कर दिया। लेकिन आजकल न जाने क्यों कुछ लोग इंदिरा जी की इस दरियादिली के लिए माफी मांगते हैं। उस ज़माने में सारी दुनिया ने देखा था कि जो अखबार वाले खबरों के लिए दिन-रात दौड़ते थे, उन्हें आराम दिया गया। लोकतन्त्र के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि बनी-बनाई खबरें, लिखी-लिखाई स्क्रिप्ट अखबारों तक पहुंचा दी जाती थी। अखबार वाले बड़े नाशुक्रे हैं कि अहसान तक नहीं मानते ।
इमरजेंसी के उस ज़माने में ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ सिर्फ नारा नहीं था, सरकार की योजनाओं का लाभ सबको बराबर मिलता था। जैसे जब जबरन नसबंदी हुई तो हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों की हुई। अब ये बीजेपी वाले क्या जानें, ये तो जेलों में मुफ्त का खाना उड़ा रहे थे। लोकतन्त्र की ज़डें उस ज़माने में कैसे मजबूत हुई इन्हें क्या पता ? जिनकी नसबंदी हुई उन से पूछ कर देख लो ।
राहुल जी ठीक कहते हैं कि आजकल उन्हें छोड़कर सब मोदी से डरते हैं। जब दादी का राज था तो कोई मोदी से नहीं डरता था बल्कि मोदी डरते थे, वो तो सिख का भेष बनाकर इधर उधऱ भागते फिरते थे, इसीलिए राहुल को पांच साल की उम्र से पता है कि मोदी डरपोक है।
राहुल गांधी ठीक कहते हैं कि पिछले छह साल में लोकतन्त्र मर गया है । अगर लोकतन्त्र जिंदा होता तो उन्हे चुप रहने के लिए मजबूर न होना पड़ता। वो सारी बातें कह पाते जो उऩके दिल में है। वो कह पाते कि मोदी कायर है, चोर है, उद्योगपतियों के इशारे पर चलता है, गरीबों का दुश्मन है, किसानों का शत्रु है लेकिन लोकतन्त्र नहीं है तो राहुल मन मसोस कर रह जाते हैं। राहुल और उनकी कांग्रेस मोदी को कहना तो बहुत कुछ चाहते हैं, हिटलर, खून का सौदागर भस्मासुर, वायरस, नाली का कीड़ा और न जाने क्या-क्या, लेकिन क्या करें, बोलने की आजादी नहीं है। कभी कह ही नहीं पाए। आज़ादी होती तो कहते मोदी ने राफेल डील में तीस हजार करोड़ अंबानी की जेब में डाल दिए, आजादी होती तो एयर स्ट्राइक के सबूत मांगते, आजादी होती तो कह पाते कि मोदी ने भारत की ज़मीन चीन को दे दी, लेकिन क्या करें, कोई बोलने ही नहीं देता। दस मिनट बोलने देते तो भूकंप आ जाता पर मोदी की तानाशाही ने भूकंप पर भी पाबंदी लगी दी, आया ही नहीं।
ये याद रखना चाहिए कि देश में लोकतन्त्र को जिंदा रखने के लिए कांग्रेस ने कैसे कैसे बलिदान दिए हैं। वो कई बार जानबूझ कर चुनाव हारी ताकि कभी कभार विरोधी दल की सरकार बन सके। दुनिया को पता चले कि यहां लोकतन्त्र मजबूत है लेकिन वो सब सरकारें दो चार साल, बहुत हुआ तो पांच साल के लिए चलवाते थे। लोकतन्त्र कायम रहे इसके लिए मोदी को भी थोड़े दिन के लिए बनवाया था। मोदी को एक बार जिताने के लिए कांग्रेस ने क्या-क्या नहीं किया? अपने ऊपर 2जी और कॉमनवैल्थ गेम्स में हेराफेरी जैसे इल्जाम लगवाए, जीजा जी को भी बलि चढ़ा दिया । लेकिन नरेन्द्र मोदी बहुत एहसान फरामोश निकला । खैरात में मिली कुर्सी पर जमकर बैठ गया।
क्या ये कोई लोकतन्त्र है कि एक आदमी अठारह से बीस घंटे काम करे, कोई छुट्टी न ले। दुनिया के बड़े बड़े लोकतन्त्र देख लीजिए, कोई ऐसा नहीं करता। सब छुट्टी पर जाते हैं। सब सोते हैं और दूसरों को सोने देते हैं, सब खाते हैं और दूसरों को खाने देते है । लोकतन्त्र का तकाज़ा है कि सब वापस पहले की तरह चलना चाहिए , जिसके बाप की जो जगह है वो उसको वापस मिलनी चाहिए। ये तानाशाही नहीं तो और क्या है कि हर चुनाव में ये कांग्रेस को हरा देते हैं?
आज हाल ये हो गया है कि इस देश की जनता भी तानाशाह हो गई है। इसकी नासमझी पर गौर फरमाइए इस जनता ने विरोधी दलों को इतना कमजोर कर दिया कि वो करें तो क्या करें । अब देखिए, बंगाल में चुनाव हो रहे है और कांग्रेस को लोगों ने अभी से रेस से बाहर कर दिया। मोदी ने भी ब्रिगेड मैदान की रैली में कांग्रेस को ज़रा भी नहीं कोसा । कांग्रेस का ये अपमान, नहीं सहेगा हिंदुस्तान! ब्रिगेड परेड मैदान में मोदी के लिए इतनी भीड़ आ गई, सारे लोग ‘मोदी मोदी’ चिल्लाने लगे, क्यों? अगर सारी जनता मोदी के पीछे भागेंगी तो क्या दुनिया में भारत की बदनामी नहीं होगी ? भला कौन इसे लोकतन्त्र मानेगा ?
लोकतन्त्र का मतलब होता है, मिल-बांट कर खाना, कहीं तुम राज करो, कहीं हम राज करें। लोकतन्त्र की भलाई इसी में है कि अब बहुत हो गया। जिस के परिवार की कुर्सी ली थी उसे वापस कर दी जाए, फिर देखना ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ में हमारे लोकतन्त्र की मजबूती की खबरें छपेंगी । फिर किसी एजेंसी की हिम्मत नहीं होगी कि हमारे लोकतन्त्र पर सवाल उठाए। अगर मोदी ये सोचता है वोट लेकर, चुनाव जीत कर, वो लोकतंत्र को मजबूत कर सकता है तो वह बहुत गलतफहमी में है।
हे मोदी ! हमारी जायदाद वाली कुर्सी हमें लौटा दो। अब तो दाढ़ी भी बढ गई है, हिमालय पर चले जाओ और लोकतंत्र को बचाओ । अब बहुत हो गया, अब लौट जाओ।
ममता को चोट: ‘हमला’ या राजनीतिक ‘ड्रामा’
इस वक्त देश में सबसे ज्यादा चर्चा नंदीग्राम में ममता बनर्जी को लगी चोट को लेकर हो रही है। तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी का कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल में इलाज चल रहा है। बुधवार देर शाम चुनाव प्रचार के दौरान उनके बाएं पैर, एड़ी और कंधे में चोट लगी थी। ममता का इलाज कर रहे डॉक्टर्स का कहना है-‘उनकी बाईं एड़ी और टखने की हड्डी में गंभीर चोट आई है। उनके दायें कंधे और दाहिने हाथ में भी चोट लगी है।’
फिलहाल मुख्यमंत्री को मेडिकल ऑब्जर्वेशन में रखा गया है। अगले 48 घंटे तक उनके स्वास्थ्य पर नजर रखी जाएगी और कई तरह की मेडिकल जांच भी होगी। इस घटना की तस्वीर कुछ स्पष्ट नहीं है कि कैसे और किन परिस्थितियों में उन्हें चोट लगी। हालांकि ये जांच का विषय है कि इतनी सुरक्षा के बीच ममता बनर्जी को चोट लगी कैसे। घटना के बाद ममता ने रिपोर्टर्स से कहा कि उन पर हमला किया गया है। उनका अभिवादन करने के लिए जुटी भीड़ में मौजूद चार-पांच लोगों ने उन्हें धक्का दिया। उनकी गाड़ी का दरवाजा तेजी से बंद कर दिया। इस दौरान वो गिर पड़ी और उनका पैर बुरी तरह घायल हो गया। उन्होंने कहा कि उनका बायां पैर सूज गया है और वो फीवर महसूस कर रही हैं। ममता के काफिले के साथ चल रहे सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत उनके पैर पर बर्फ का टुकड़ा रखा। फिर उनके काफिले को ग्रीन कॉरीडोर बनाकर कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल तक लाना पड़ा।
इस घटना से कुछ घंटे पहले ही ममता ने नंदीग्राम विधानसभा सीट से नामांकन दाखिल किया था। लेकिन अचानक कोलकाता लौटने से ठीक पहले ये घटना हो गई और ममता बनर्जी ने जितनी तकलीफ और दर्द में अपनी बात पत्रकारों से कही उसे देखकर दुख हुआ। ममता ने दर्द से कराहते हुए पूरी घटना के बारे में बताया। चूंकि चुनाव का माहौल है इसलिए ममता का इल्जाम सनसनीखेज है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह एक ‘साजिश’ थी, भीड़ में केवल चार-पांच लोग थे जिन्होंने धक्का दिया। यह घटना नंदीग्राम के बिरुलिया बाजार में हुई।
ईश्वर से प्रार्थना है कि ममता जल्दी से जल्दी स्वस्थ हो जाएं। मैं जानता हूं कि वो फाइटर हैं और जल्द स्वस्थ होकर सामने आएंगी। एक बार फिर चुनावी मैदान में बीजेपी को ललकारेंगी। लेकिन अभी की स्थिति है कि ममता की चोट बंगाल की चुनाव सियासत का बड़ा मुद्दा बन गया है। बीजेपी और कांग्रेस का कहना है कि यह उनका ‘पॉलिटिकल ड्रामा’ है। एक नेता ने कहा कि ममता के साथ 300 पुलिसवाले रहते हैं। ऐसे में अटैक कैसे हो सकता है? इतने सुरक्षाकर्मियों के बीच चार से पांच लोग कैसे उनपर हमला कर सकते हैं? एक अन्य नेता ने कहा कि ये सिर्फ सहानुभूति लेने की कोशिश है और कुछ नहीं।
मेरा मानना है कि बीजेपी और कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने इस घटना पर रिएक्ट करने में थोड़ी जल्दबाजी की। इन नेताओं ने पूरी खबर आने का इंतजार भी नहीं किया। इन लोगों ने फैक्ट्स जानने की कोशिश नहीं की और ममता की चोट को नौटंकी करार दिया। मुझे लगता है कि पहले सच्चाई जानने की कोशिश करनी चाहिए थी। डॉक्टर्स की रिपोर्ट आने का इंतजार करना चाहिए था, फिर कुछ कमेंट करते तो ठीक रहता। लेकिन चुनाव का मौका है और इन नेताओं को डर था कि कहीं इस घटना से ममता बनर्जी को बंगाल के वोटर्स की सहानुभूति ना मिल जाए इसलिए उन्होंने तुरंत इसे नाटक बता दिया।
राजनीति कितनी निष्ठुर होती है ये बंगाल में दिखाई दिया। चुनाव हो तो सियासत और भी क्रूर हो जाती है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चोट लगी, दर्द उनके चेहरे पर दिखाई दे रहा था, वे हॉस्पिटल में हैं, इलाज हो रहा है लेकिन कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी इसे पाखंड कह रहे हैं। बीजेपी के सांसद अर्जुन सिंह इसे राजनीतिक नाटक बता रहे हैं।
इन नेताओं को यह याद रखना चाहिए कि ममता का भी अपना इतिहास है। पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे के शासन के दौरान उनपर हमले हुए। उन्होंने कई बार मार खायी और जनता उनके साथ खड़ी हुई। उस वक्त भी लोग ममता के सिर पर बंधी पट्टी को ड्रामा बताते थे। लेकिन परिणाम क्या हुआ यह सबके सामने है। बंगाल की जनता इस तरह की टिप्पणियों को हल्के में नहीं लेती है। किसी भी नेता के साथ अगर इस तरह की घटना होती है तो राजनीति से जुड़े लोगों को जल्दबाजी में, मनगढ़ंत या सच्चाई जाने बगैर बयान देने से बचना चाहिए।
Mamta’s injury: ‘Attack’ on her or political ‘drama’
Trinamool Congress supremo Mamata Banerjee is presently undergoing treatment in Kolkata’s SSKM Hospital, after she suffered injuries to her left leg and ankle and her shoulder, while campaigning in Nandigram on Wednesday. According to doctors, “presently she is traumatized. She has a severe injury in her left heel and ankle bone area. There are minor soft tissue and ligament injuries. There are also injuries on her right shoulder and right forearm as well.”
Presently, the chief minister is under medical observation for 48 hours and has undergone several tests. While the circumstances relating to the incident are not clear, Mamata herself told reporters soon after the incident that four or five people among the crowd that was present to greet her, suddenly tried to shut the door of her vehicle because of which she fell and suffered injuries. She said, her left leg was swollen and she was feeling feverish. Security personnel accompanying in other vehicles rushed to the spot, put icepacks on her leg, and she was whisked away in a convoy to Kolkata. A ‘green corridor’ was created for the CM to reach the hospital.
The incident hours after Mamata filed her nomination from Nandigram and made visits to several temples. Visuals of Mamata writhing in pain and speaking to reporters in a traumatic condition, surely brought sadness in the minds of people keenly watching her election campaign. Since it is election time, Mamata’s allegation is sensational because she alleged it was a “saazish” (conspiracy) and that there were only four or five people who pushed her from among the crowd. The incident occurred in Birulia Bazar in Nandigram.
Let us pray to God that she recovers at the earliest. I know Mamata is a fighter, she will recover early and take the electoral fight to the next level soon. All of a sudden, Mamata’s injury has become the hottest topic in the Bengal elections, with the BJP and the Congress alleging that this was only a “political drama”. One of the leaders said that Mamata always moved around with 300 security personnel, and it was hard to imagine four or five persons pouncing on her. Another leader alleged that this was Mamata’s style of garnering sympathy from the people.
I think local leaders of the BJP and Congress were in a hurry while reacting and they jumped to conclusions without first ascertaining facts. They could have at least waited for the medical report and, of course, the report from security personnel. One reason could be that they ae worried Mamata could gain sympathy from the voters of Bengal after this incident.
Politics makes people cruel. This was seen in Bengal, when millions of viewers saw the chief minister groaning in pain and speaking to reporters with difficulty. She is in hospital, undergoing treatment, and yet, Congress leader Adhir Ranjan Chowdhury and BJP MP Arjun Singh described this incident as ‘political drama’.
These leaders should realize that Mamata has a long history of being attacked and beaten up during the Left Front rule, and the people of Bengal will never take such remarks lightly. Even at that time, people used to describe Mamata with her bandaged head as ‘drama’. The results are there for all to see. Politicians should be careful and circumspect before making such off-the-cuff remarks when a leader is injured.
क्यों सुरक्षित और असरदार है कोरोना की वैक्सीन
मैंने अपने घर के पास एक प्राइवेट क्लिनिक में मंगलवार को कोरोना वैक्सीन की पहली डोज ली है। मैंने कोवीशील्ड का इंजेक्शन लगवाया। अब 28 दिन बाद इसकी दूसरी डोज दी जाएगी। मेरे दोस्तों और परिचितों ने पूछा कि वैक्सीन लगवाया तो कैसा महसूस हुआ? मैंने उन्हें बताया कि असल में पता ही नहीं लगा कि कब इंजेक्शन लग गया। न कोई दर्द, न कोई फीलिंग, सबकुछ नॉर्मल।
मैं कहूंगा कि जो लोग भी 60 साल से ज्यादा उम्र के हैं वो कोरोना की वैक्सीनेशन (टीकाकरण) के लिए जाएं। सरकारी अस्पतालों में तो वैक्सीनेशन बिल्कुल मुफ्त है। न कोई दर्द होगा, न कोई साइड इफैक्ट और न कोई खतरा। कुछ लोगों ने पूछा कि कौन सी वैक्सीन लगवाएं, कोवैक्सीन या कोवीशील्ड? मेरा कहना है दोनों ठीक हैं और अच्छी तरह से जांच में परखे हुए हैं। दोनों वैक्सीन प्रभावी हैं। असर दोनों का एक जैसा ही है। एक सवाल ये आया कि वैक्सीन लगवाने के बाद क्या-क्या सावधानी बरतनी होगी? डॉक्टर्स का कहना है कि आप सामान्य जीवन और दिनचर्या का पालन करते रहें, इसके अलावा कोई सावधानी बरतने की जरूरत नहीं है। जैसे रहते हैं वैसे रहिए और वैसे ही खाना-पीना भी चलता रहेगा।
लोगों में सबसे बड़ी शंका ये है कि वैक्सीन का कोई साइड इफैक्ट तो नहीं होगा। मैंने ये बात डॉक्टर्स से पूछी। डॉक्टर्स ने कहा कि कुछ लोगों को हल्का बुखार हो सकता है जो कि सामान्य तौर पर हर बच्चे को टीका लगाने के बाद होता है। बुखार ज्यादा से ज्यादा 48 घंटे रहता है। डॉक्टर्स का कहना है कि वैक्सीन लगाने के बाद अगर बुखार हो तो पैरासिटामोल की एक गोली खा लें। घबराने या परेशान होने की बिल्कुल जरूरत नहीं हैं। अब सवाल ये है कि क्या वैक्सीन की डोज लगवाने के बाद कोरोना नहीं होगा? इसका जबाव ये है कि पहले आपको 28 दिन के बाद दूसरी डोज लगवाने का इंतजार करना पड़ेगा। 28 दिन के बाद दूसरी डोज लगेगी। दूसरी डोज लगने के 14 दिन के बाद एंटीबॉडीज बनकर तैयार होती है। यानि कोरोना वैक्सीन की पहली डोज लेने के 42 दिन के बाद शरीर में कोरोना वायरस से लड़ने की ताकत पैदा हो जाती है और इन 42 दिनों तक आपको पूरी सावधानी बरतनी होगी। आपको उसी तरह से ऐहतियात बरतनी होगी जैसे आप अभी बरत रहे हैं। मास्क लगाना है, एक-दूसरे से दूरी बनाए रखनी है, भीड़-भाड़ वाली जगहों पर नहीं जाना है और बार-बार हाथ धोना है। अब आप पूछेंगे कि क्या पहली और दूसरी, दोनों डोज लेने बाद आपको कोरोना नहीं हो सकता? इस पर डॉक्टर्स ने बताया कि कोरोना फिर भी हो सकता है। कोरोना होगा या नहीं ये इस बात पर निर्भर करता है कि आपके शरीर में कितनी एंटीबॉडीज डेवलप हुई है। चूंकि वैक्सीन आपके शरीर में संक्रमण से लड़ने की ताकत पैदा करती है और वायरस को पनपने नहीं देती। ऐसे में अगर संक्रमण हो भी गया तो आप बचकर निकल जाएंगे, जान का खतरा तो नहीं होगा। इसलिए मैं कहूंगा कि अगर आपकी उम्र 60 साल से ज्यादा है या फिर आप कोमोर्बिड कैटेगरी में आते हैं तो इंतजार मत कीजिए, डरिए मत, ज्यादा सोचिए मत। अपना रजिस्ट्रेशन करवाइए और जल्दी से जल्दी कोरोना वैक्सीन लगवाइए।
जिन लोगों को अभी भी शक है उन्हें मैं बताना चाहता हूं कि देश में 2 करोड़ 60 लाख से ज्यादा लोग कोरोना वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं। इनमें से 75 फीसदी लोगों ने ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराया है। मंगलवार तक 2 करोड़ 40 लाख लोगों को कोरोना की वैक्सीन दी जा चुकी है, इनमें से 82 फीसदी लोग ऐसे हैं जिन्हें अभी पहली डोज दी गई है। देशभर में 22,405 केंद्रों पर कोरोना की वैक्सीन दी जा रही है जिनमें 4,688 केंद्र प्राइवेट अस्पतालों में बनाए गए हैं। अभी तक एक भी केस ऐसा नहीं है जहां कोई गंभीर साइड इफेक्ट की खबर आई हो। मंगलवार को एक ही दिन में 20 लाख से ज्यादा लोगों को वैक्सीन दी गई इनमें 17 लाख से ज्यादा वो लोग थे, जिन्हें पहली बार टीका लगा और इनमें भी 10 लाख से ज्यादा संख्या बुजुर्गों (60 वर्ष से ऊपर )की थी।
इन सबके बाद भी देश में बहुत से लोग ऐसे हैं जो डर, अफवाह या फिर शक के कारण वैक्सीन नहीं लगवा रहे हैं। हमारे रिपोर्टर्स ने दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, पुणे, पटना, नागपुर, भोपाल, लखनऊ और चंडीगढ़ में ऐसे लोगों से बात की। किसी को वैक्सीन की विश्वसनीयता पर शक है तो किसी को वैक्सीन के प्रभावी होने को लेकर शंका। किसी का कहना है कि सरकारी सेंटर पर नहीं बल्कि प्राइवेट अस्पताल में ही वैक्सीन लगवाएंगे। कोई कहता है कि जो लोग लगवा रहे हैं, पहले उनपर वैक्सीन का असर देख लें, उसके बाद ही लगवाएंगे। इस तरह की तमाम शंकाएं निराधार अफवाहों की वजह से पैदा हुई हैं जो लगातार फैलाई जा रही हैं। इसके बाद भी 60 वर्ष की उम्र से ज्यादा के लोग बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं और वैक्सीन ले रहे हैं।
सोशल मीडिया पर आधारहीन अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि वैक्सीन लेने के बाद लोग मर रहे हैं, ऐसी भी अफवाहें फैलाई गईं कि वैक्सीन में केवल पानी है। वहीं कुछ राज्य सरकारें भी इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने की कोशिश कर रही हैं।
मंगलवार को राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने कहा कि राजस्थान सरकार को कोरोना वैक्सीनेशन अभियान बंद करना पड़ेगा क्योंकि उनके पास वैक्सीन नहीं बची है, सारी डोज खत्म होने वाली है। उन्होंने कहा राज्य सरकार के पास तीन दिनों के वैक्सीन की डोज ही बची हुई है। राजस्थान सरकार का कहना है कि उसे वैक्सीन की 29 लाख डोज मिली थी जिसमें से 22 लाख का इस्तेमाल हो गया और एक लाख डोज बर्बाद हो गई। वैक्सीन की दो लाख डोज सेना को दे दी गई और अब केवल चार लाख डोज बची है। वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि राजस्थान सरकार को कोरोना वैक्सीन की 37 लाख 61 हजार डोज दी गई थी और सोमवार रात तक राजस्थान सरकार की तरफ से जो अपडेट भेजा गया है, उसके मुताबिक अब तक वहां सिर्फ 24 लाख 28 हजार डोज का ही इस्तेमाल हुआ है। इसका मतलब ये हुआ कि राजस्थान सरकार के पास इस वक्त कम से कम 13 लाख डोज का स्टॉक होना चाहिए।
जाहिर है कि राज्यों से वैक्सीन की मांग हर रोज बढ़ रही है और यह एक पॉजिटिव संकेत है। इसके बाद भी लोगों में अभी-भी शंका और संदेह है। ऐसे लोगों को यह पता होना चाहिए कि करीब 2.5 करोड़ देशवासी अबतक इस वैक्सीन को ले चुके हैं। कम से कम अब तो भरोसा होना चाहिए। असल में लोगों के मन से ये शक और डर निकालने की जरूरत है। इस शक को मिटाने में डॉक्टर्स बहुत बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं। इसके साथ-साथ जो लोग पब्लिक लाइफ (सार्वजनिक जीवन) में हैं, जिन पर लोग भरोसा करते हैं, उन्हें भी वैक्सीनेशन को लेकर लोगों की शंका दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। मैं आपसे एक बार फिर कहना चाहता हूं कि दोनों वैक्सीन सुरक्षित और असरदार हैं। वैक्सीन लगाने से किसी तरह का कोई खतरा नहीं है। वैक्सीन लगवाना आज की तारीख में देश सेवा करने जैसा है। देश को कोरोना से बचाने का यही एकमात्र तरीका है।
Why Covid vaccines are safe and effective
On Tuesday, I took my first dose of Covid-19 vaccine at a private clinic near my house. I will have the second dose of Covishield after 28 days. Friends and acquaintances asked me how I felt after I got the jab. Actually I did not feel anything at all, when the vaccine was injected. There was no pain, no feeling, everything was normal.
I advise all Indians above 60 years of age to go ahead and get the Covid-19 vaccine. The vaccine is available free in government hospitals. There is no risk involved, nor are there any side effects. Some friends asked whether they should take the Covishield or Covaxin. I told them, both the vaccines are alright, as they are already tested and their efficacies are strong. Some asked what precautions one has to take after taking the vaccine. I told them they can lead a normal life, have a normal diet, there was nothing to worry.
I spoke to doctors about the vaccines. Most of them said, some people may get fever, as it normally happens after every child is inoculated, and this may last till 48 hours. A simple Paracetamol tablet is sufficient, if somebody feels feverish. After taking the second dose at an interval of 28 days, one has to wait for another 14 days for the antibodies to spread. In a layman’s words, one can gain the strength to counter Covid-19 virus only after 42 days. During these 42 days, one has to practise the same precautions like wearing masks, washing hands, avoiding crowded places and maintaining distance. Whether you get the Corona virus depends on the number of antibodies that are created inside your body. If you are above 60 or above 45 years with co-morbidities, do not worry, go ahead and get the vaccine.
For those still having doubts, let me state the facts. Till now, more than 2.6 crore Indians have registered for the vaccination, out of which 75 per cent were registered online. Till Tuesday, over 2.4 crore doses were administered in India, out of which 82 per cent were first doses. The vaccines were given at 22,405 centres across India, out of which 4,688 were private hospitals. There was not a single case where there was any serious side effect. On Tuesday alone, more than 20 lakh people got vaccinated, out of which nearly 17 lakh people were those who got their first dose. Out of them, more than 10 lakhs were people aged above 60 years.
There are still people in India who are refraining from getting the vaccine because of fear, rumour and doubts. Our reporters spoke to these people in Delhi, Mumbai, Kolkata, Pune, Patna, Nagpur, Bhopal, Lucknow and Chandigarh. They met people who said they doubted the efficacy of the vaccine, while some said they would prefer to take vaccine at private instead of government hospitals. Some said, they were waiting to know the effects on people who have already taken the vaccine. All such doubts are because of baseless rumours that are being circulated. Despite all such doubters, a large number of people in the age group above 60 years, are coming out, and getting themselves vaccinated.
Baseless rumours are being floated on social media that people are dying after taking vaccine, there are also rumours that the vaccines contain only water. Some state governments are also trying to politicize this issue.
On Tuesday, Rajasthan Health Minister Raghu Sharma alleged that vaccination may have to be halted because the state government has hardly three days’ stocks of vaccines left. He said, out of 29 lakh doses given to his state, 22 lakhs were administered, one lakh doses were wasted, two lakh doses were given to army and only four lakh doses were left. The Health Ministry immediately countered by saying that Rajasthan was given 37,61,000 doses, and till Monday, according to updates received from the state government, only 24,28,000 doses have been used. The state government has at least 13 lakh doses to administer.
Clearly, the demand for vaccine from states is rising daily, and it is a positive indicator. Yet, people still have nagging doubts. These doubters must know that nearly two and a half crore Indians have already taken the vaccine, and they should not fear. Doctors and health workers will have to play a major role in dispelling doubts from the minds of people. Similarly, those in public life must come out and tell people that they have taken vaccines that are safe and protective. I would again appeal to all: Get yourselves vaccinated, in the interest of the nation, because this is the only method to defeat the deadly Coronavirus.
हम सभी हर दिन महिला दिवस मनाएं
पूरे विश्व में हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस दिन भारत में लोग देश का मान बढ़ाने वाली महिलाओं को सम्मानित करते हैं। व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि महिला दिवस कम से कम अगले तीन या चार साल तक हर दिन मनाया जाना चाहिए। कारण, हम सभी इस बात से अवगत हैं कि भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की घटनाएं बढ़ रही है। हमें पता है कि घर से दूर रहने वाली महिलाएं किस हद तक असुरक्षित महसूस करती हैं । कैसे कुछ मनचले सड़कों पर, दफ्तरों में और यहां तक कि घरों में महिलाओं के साथ कैसा सलूक करते हैं। हमें हर दिन, हर वक्त महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के बारे में सोचना होगा। सिर्फ एक दिन महिला दिवस मना लेना ही काफी नहीं है।
एक तरफ तो हमारे प्राचीन ग्रंथों और सांस्कृतिक लोकाचार में महिलाओं को सम्मान दिया गया है, उनकी प्रशंसा की गई है तो दूसरी तरफ वास्तविक जीवन में महिलाओं को अपमान, उत्पीड़न और अत्याचार का सामना करना पड़ता है। हमारे प्राचीन ग्रंथ मनु स्मृति में कहा गया है, ‘जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं, और जहां स्त्रियों का सम्मान नहीं होता है, वहां किए गए समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं।’
भारत में हर मिनट घरेलू हिंसा की एक घटना दर्ज होती है। भारत में हर 16 मिनट में एक महिला के साथ बलात्कार होता है। हर घंटे सामूहिक बलात्कार की एक घटना होती है। हम सोच भी नहीं सकते कि हमारी माताओं और बेटियों को हर दिन क्या-क्या सहना पड़ता है।
जब कोई महिला काम के लिए घर से निकलती है तो उसे हर पल चौकन्ना रहना पड़ता है। रास्ते में, बस में, मेट्रो में, हर जगह सावधानी बरतनी पड़ती है। यहां तक कि दफ्तर पहुंचने के बाद भी उसे मनचलों से हर वक्त सावधान रहना पड़ता है। ये लोग कहीं से भी, कभी भी हमला कर सकते हैं।
नई टेक्नॉलजी के आने के बाद तो महिलाओं को दफ्तरों और किराए के मकानों में वॉशरूम का इस्तेमाल करते हुए भी चौकन्ना रहना पड़ता है। डिपार्टमेंटल स्टोर्स के चेंजिंग रूम्स में भी काफी सावधानी रखनी पड़ती है। कोई नहीं जानता कि कब कोई घात लगाए बैठा शख्स किसी महिला की तस्वीर को मॉर्फ करके उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देगा।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का मानना है कि महिलाओं के खिलाफ ज्यादातर अपराध या तो करीबी रिश्तेदारों, या जान-पहचान के लोगों द्वारा किए जाते हैं। लेकिन यह बात सिर्फ अपराध तक सीमित नहीं है। आप और हम जानते हैं कि चाहे सड़क हो या दफ्तर, हर जगह महिलाओं पर बुरी नजर रखने वाले लोग मौजूद हैं। दफ्तरों, घरों और सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को अपमान और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। सोमवार की रात हमारे प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमारे पत्रकारों ने उन महिलाओं से बात की जो पेट्रोल पंप पर काम करती हैं, सेना, वायुसेना एवं पुलिस में सेवारत हैं, और नर्सों के रूप में दिन-रात अस्पतालों में जुटी हुई हैं।
कई महिला कर्मचारियों ने बताया, कैसे कुछ लोग उनसे द्विअर्थी बातें करते हैं, भद्दे कमेंट्स करते हैं लेकिन उन्हें नजरअंदाज करना पड़ता है। उन महिलाओं की मानसिक पीड़ा के बारे में सोचें जिन्हें अश्लील टिप्पणियां झेलनी पड़ती हैं और इसके साथ ही अपना काम भी करते रहना पड़ता है, क्योंकि उन्हें अपने परिवार का पालन पोषण भी करना पड़ता है।
हमारे रिपोर्टरों ने महिला सिक्यॉरिटी गार्ड्स से भी बात की, जो छोटे-छोटे शहरों से काम की तलाश में बड़े शहरों में आती हैं। उनमें से कइयों ने बताया कि किस तरह पुरुष उन पर अश्लील और कामुक टिप्पणियां करते रहते हैं। कुछ पुरुष कस्टमर तो इन महिला सुरक्षा गार्ड्स से शारीरिक तलाशी लेने तक की बात कह देते हैं।
कल्पना करें, एक महिला डरते-डरते अपने घर से काम पर निकलती है, सड़कों पर और दफ्तरों में बदसलूकी का सामना करती है । ये एक दिन की बात नहीं बल्कि रोज़ की कहानी है। उस मानसिक पीड़ा के बारे में सोचिए जिससे उन्हें गुजरना पड़ता है। पुलिस की नौकरी करने वाली महिलाओं के ड्यूटी के घंटे तय नहीं होते, वे देर से घर लौटती हैं । कई बार तो बच्चों को लेकर थाने में ड्यूटी करने वाली महिला पुलिसकर्मियों की तस्वीरें भी हमने देखी हैं, क्योंकि उनके बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता है।
हमारी लाखों नर्सें और डॉक्टर पिछले एक साल से कोरोना वायरस से लड़ाई लड़ रहे हैं। जब हम सशस्त्र बलों, पुलिस और स्वास्थ्य सेवाओं में अपने देश की बहादुर महिलाओं के योगदान को देखते हैं, उनकी प्रेरणादायक कहानियां पढ़ते हैं तब हमे गर्व महसूस होता है, लेकिन जब हम दहेज के कारण होने वाली घरेलू हिंसा, बलात्कार और मौके-बेमौके महिलाओं के उत्पीड़न की खबरें पढ़ते हैं, तब यह गर्व हवा हो जाता है और हमारे सिर शर्म से झुक जाते हैं।
ऐसी लाखों महिलाएं कभी शिकायत नहीं करतीं। महिला चाहे गृहिणी हो या कामकाजी, उसे घर की जिम्मेदारी भी संभालनी पड़ती है। हम लाख बराबरी की बातें करते रहें पर सब मानकर बैठे हैं कि घर चलाना तो महिलाओं का काम है, भले ही वे दफ्तरों में भी काम करती हों। काम डबल है, जिम्मेदारी दोगुनी है, पर हक बराबरी का नहीं है। उन्हें फैसले लेने का अधिकार नहीं होता, और न ही पुरुषों की तुलना में समान सम्मान मिलता है।
अब सवाल है कि करें तो क्या करें? मुझे लगता है कि यह हम सब की जिम्मेदारी है कि शुरुआत अपने घर, अपने पड़ोस, अपने आस-पास से करें। महिलाओं को समानता दें, सम्मान दें, सुरक्षा दें। इसे महिलाओं पर अहसान नहीं, अपनी जिम्मेदारी समझें। अपने घरों में लड़कों को सिखाएं कि महिलाओं का आदर कितना जरूरी है और क्यों जरूरी है। अगर कभी लड़के किसी लड़की से बदसलूकी करें तो उन्हें इसकी सजा दें। यदि गुंडे बसों और ट्रेनों के अंदर महिला यात्रियों को परेशान करते हुए दिखें तो चुपचाप खड़े न रहें, बल्कि हस्तक्षेप करें। कल आपके परिवार की किसी महिला के साथ भी ऐसा हो सकता है।
जब हम उन महिलाओं की कहानियां सुनते हैं जिन्होंने शिक्षा हासिल करने के बाद आर्थिक आजादी पाई है तो हमें गर्व की अनुभूति होती है। यही उनकी वास्तविक ताकत है, उनकी ‘शक्ति’ है। ये महिलाएं इस ‘शक्ति’ को अपने दम पर हासिल कर रही हैं। लेकिन समाज इन्हें अपने हिसाब से चलाना चाहता है, इनके मन में डर बैठाने की कोशिश करता है।
अब वक्त आ गया है कि महिलाओं के पक्ष में मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों और गुरुद्वारों से आवाजें उठें, और समाज के दुश्मनों को चेतावनी दी जाए कि महिलाओं के खिलाफ बदसलूकी को कभी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऐसा करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा। ऐसा करने के बाद ही हम महिला दिवस मनाने के असली हकदार होंगे।
हमें समाज में जागरूकता पैदा करने और लोगों को शिक्षित करने के लिए अपने इस संकल्प को हर रोज़ दोहराना होगा। दूसरे शब्दों में कहें, तो हमें कम से कम अगले तीन -चार साल तक हर दिन महिला दिवस मनाना होगा।
Let us celebrate Women’s Day every day
Every year International Women’s Day is celebrated on March 8. In India, people felicitate women who have brought laurels for the country. Personally, I feel Women’s Day should be celebrated every day for at least three or four years. The reason: All of us are aware about crimes against women, how women who work away from home feel insecure, and how some male rogues behave with them on roads, in office and even in homes. We have to think ways of providing safety and respect to our women every day, every moment. Celebrating women for a day will not suffice.
On one hand, our ancient scripts and cultural ethos praise women, but the fact is, women are disrespected, harassed and tortured in real life. Our ancient scripture, Manu Smriti says, “Gods reside where women are worshipped, and where women are not respected, even the fruits of good work get frittered away”.
In India, there is one incident of domestic violence reported every minute. Every 16 minutes, a woman is raped in India. There is one gangrape case every hour. We cannot imagine what our mothers and daughters have to go through every day.
When a woman goes out to her workplace away from home, she has to be on her guard, whether walking on road, or while travelling in Metro or bus or train, and when she reaches her workplace, she has to be on the lookout for predators. They could be lurking anywhere, ready to pounce.
With the coming of latest technology, women have to be on guard even while using washrooms in offices and rented houses, and in change rooms at departmental stores. Nobody is sure when a predator will morph a woman’s photograph in the nude and post them on social media.
Senior police officers say, most of the crimes against women are committed by those who are either close relatives or are known to the victims. But this issue is not confined to crimes alone. In offices, homes and public places, women face disrespect and harassment. In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Monday night, our reporters talked to women working as attendants at petrol pumps, women working in the Army, Air Force and Police, and nurses who toil day and night in hospitals.
Several women employees said men make sexist remarks loaded with double entendre, which they chose to ignore. Think of the mental agony women go through when they have to listen to obscene remarks and yet carry on with their work, because they have to take care of their families.
Our reporters spoke to women security staff, who come from small towns to work in the metros. Many of them spoke how they have to listen to obscene and sexist remarks from men. Some of the male customers even go to the extent of asking these women security guards to frisk them physically.
Imagine, a woman leaves her home in fear, looks out for incidents of harassment either on the roads or in offices, which they have to face day in and day out. Think of the mental agony they have to go through. Women working in police have no fixed hours of duty, they return home late, and in some case, we have seen visuals of women constables bringing their kids to police stations, since they do not have anybody to look after the children.
Millions of our nurses and doctors are frontline health workers engaged in fighting Covid-19 for the last one year. When we read stories about our valiant women workforce bringing laurels in the armed forces, police and healthcare, we feel proud, but this pride gives away to sadness when we read stories about how women are subjected to domestic violence because of dowry and other issues, they are raped by miscreants and harassed by louts at every available opportunity.
Millions of such women never complain. A woman, whether a housewife or a working professional, has to look after her family too. We may harp on the need for gender equality but the fact remains that women have to do their house chores even if they work outside in offices. They have dual responsibilities, but they always fail to get equal respect compared to men.
What is the way out? I believe all of us should start giving respect to women, and this should begin from our homes, in our neighbourhoods, and in our localities. We must teach our young ones how to respect girls and women. If they ever harass girls or women, they must be given punishment. If we watch hooligans harassing women passengers inside buses and trains, we should not remain silent spectators, and must intervene. Tomorrow it could be any woman member from your family.
We feel pride when we hear stories about women, who after getting education have attained economic freedom. This is their real power, their ‘shakti’. These women are acquiring this ‘shakti’ of their own. But it is society which tries to subjugate them, instil fear in their minds.
It is now time that voices must come out from temples, mosques, churches and gurdwaras in favour of women, and the enemies of society must be warned that their acts of violence against women will never be tolerated. They will have to face social boycott. Only then will we feel ourselves proud when we celebrate Women’s Day.
We will have to renew our vow to accord respect to women every day, in other words, we must celebrate Women’s Day daily, at least for the next three to four years, to create social awareness and educate people.