‘पुलिस को वसूली का आदेश’: महाराष्ट्र के गृह मंत्री की भूमिका की जांच हो
महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख पर मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर द्वारा लगाए गए ‘वसूली’ के आरोपों के बाद शुरू हुए राजनीतिक घटनाक्रम ने अब शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की गठबंधन सरकार का भविष्य दांव पर लगा दिया है।
NCP सुप्रीमो शरद पवार ने पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के आरोपों की जांच की बात कहने के बाद अब यू-टर्न ले लिया है और अपने गृह मंत्री को क्लीन चिट दे दी है। सोमवार को पूर्व पुलिस कमिश्नर ने अपने तबादले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और जबरन वसूली के मामले की CBI जांच की मांग की।
सत्तारूढ़ दल बीजेपी के सदस्यों ने CBI जांच की मांग करते हुए सोमवार को संसद के दोनों सदनों में जमकर हंगामा किया, लेकिन NCP सुप्रीमो शरद पवार पर इसका कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने गृह मंत्री के इस्तीफे की बात खारिज कर दी और दावा किया कि जिस समय उनके द्वारा पुलिस अफसरों को वसूली के लिए कहने की बात कही जा रही है, उस समय तो वह नागपुर में अपने घर पर पृथकवास में रह रहे थे। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ ने परमबीर सिंह को ‘बीजेपी की कठपुतली’ बताते हुए आरोप लगाया कि उनका इस्तेमाल गठबंधन सरकार को गिराने के लिए किया जा रहा है।
सोमवार को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में शरद पवार ने नागपुर के एक अस्पताल से जारी किया गया एक सर्टिफिकेट भी दिखाया, जिसमें लिखा था कि देशमुख 5 फरवरी से 15 फरवरी तक कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते वहां भर्ती थे और फिर 15 फरवरी से 27 फरवरी तक होम क्वॉरन्टीन में थे। पवार ने दावा किया कि ये आरोप गलत हैं कि देशमुख ने किसी मीटिंग में कथित तौर पर बार मालिकों से ‘100 करोड़ रुपये की वसूली करने’ की बात बात कही थी। NCP सुप्रीमो ने कहा, ‘उनके इस्तीफे का सवाल ही नहीं उठता।’
पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस सहित बीजेपी के कई नेताओं ने तुरंत पवार के दावे के खिलाफ ट्वीट किए। उन्होंने कहा कि देशमुख ने 15 फरवरी को मीडिया को संबोधित किया था। फडणवीस ने ट्वीट किया, ‘ऐसा लगता है कि शरद पवार जी को परमबीर सिंह के पत्र पर ठीक से जानकारी नहीं दी गई है। इस पत्र में, एसएमएस से पता चलता है कि मीटिंग की तारीख फरवरी के आखिर में थी। अब मुद्दे को कौन डायवर्ट कर रहा है?’ फडणवीस ने परमबीर और उनके अधिकारियों के बीच एसएमएस पर हुई बातचीत को भी ट्वीट में जोड़ा, और 15 फरवरी को ट्विटर पर अनिल देशमुख द्वारा पोस्ट किए गए वीडियो को भी रीट्वीट किया, जिसमें वह मीडिया को संबोधित करते दिख रहे थे।
अनिल देशमुख ने भी यह बात मानी कि उन्होंने 15 फरवरी को अस्पताल से बाहर आने के बाद मीडिया से बात की, और फिर मुंबई के लिए उड़ान भरी थी। पवार ने आरोप लगाया मुकेश अंबानी के आवास के बाहर विस्फोटक से भरे वाहन और उस वाहन के मालिक की कथित हत्या के ‘मुख्य मामले’ की जांच को भटकाने की कोशिश में अनिल देशमुख पर आरोप लगाए गए हैं। उन्होंने कहा, ‘कुछ ऐसे नाम हैं जिनकी जांच होनी चाहिए और ये कुछ लोगों को शायद पसंद न आए, और इसीलिए देशमुख के खिलाफ (जबरन वसूली के) आरोप लगाए गए। मैं नहीं चाहता कि जांच को अलग दिशा में मोड़ दिया जाए।’
सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी रिट याचिका में, परमबीर सिंह ने कहा है, ‘‘याचिकाकर्ता ने साक्ष्यों को नष्ट कर दिए जाने से पहले, महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख के कदाचार की पूर्वाग्रह रहित, अप्रभावित, निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच कराने का इस अदालत से अनुरोध किया है।’
अपनी रिट याचिका में परमबीर सिंह ने कहा है कि ‘अनिल देशमुख विभिन्न जांचों में हस्तक्षेप कर रहे हैं और पुलिस अधिकारियों को निर्देश दे रहे थे कि वे एक विशेष तरीके से उनके द्वारा वांछित तरीके से आचरण करें। देशमुख द्वारा पद का दुरुपयोग करके इस तरह की सारी कार्रवाई करने के लिए उनके खिलाफ सीबीआई जांच जरूरी है।’
याचिका में परमबीर सिंह ने जिक्र किया है कि कैसे ‘देशमुख के भ्रष्ट आचरण को’ वह वरिष्ठ नेताओं और मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाए थे। सिंह ने कहा कि इस बारे में विश्वसनीय जानकारी है कि टेलीफोन बातचीत को सुनने के आधार पर पदस्थापना/तबादला में देशमुख के कदाचार को 24-25 अगस्त 2020 को राज्य खुफिया विभाग की खुफिया आयुक्त रश्मि शुक्ला ने पुलिस महानिदेशक के संज्ञान में लाया था, जिन्होंने इससे अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह विभाग, महाराष्ट्र सरकार को अवगत कराया था। सिंह ने कहा, ‘अनिल देशमुख के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई करने के बजाय उन्हें (रश्मि को) पद से हटा दिया गया।’
इस पूरे मामले ने अब राजनीतिक मोड़ ले लिया है। शरद पवार एक ‘महानायक’ के रूप में उभरते दिख रहे हैं, जबकि अनिल देशमुख ‘खलनायक’ और देवेंद्र फडणवीस ‘आक्रामक’ नजर आ रहे हैं।
शिवसेना और एनसीपी नेताओं का आरोप है कि एंटीलिया मामले का संदिग्ध सचिन वाजे पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह का ही आदमी है और वह उसकी सारी हरकतों के बारे में जानते थे। उनका आरोप है कि जब एंटीलिया की घटना के बाद जब वाजे का नाम सामने आया था तो परमबीर सिंह ने बजे को अपने घर बुलाया था। मेरे पास जानकारी है कि परमबीर सिंह ने सचिन वाजे से 2 घंटे तक पूछताछ की थी। उससे बार-बार पूछा था कि इस केस में उसका कोई रोल तो नहीं है, और सचिन वाजे ने हर बार यही कहा कि उसका इस केस से कोई लेना-देना नहीं है।
परमबीर सिंह ने दूसरी बार सचिन वाजे को तब बुलाया जब उसने अपने वॉट्सऐप स्टैटस पर दुनिया को अलविदा कहने की बात लिखी। परमबीर सिंह ने सचिन वाजे फिर बुलाया और समझाया कि वह ऐसा कोई कदम ना उठाए, आगे से कभी इस तरह की बात दिमाग में न लाए और सोशल मीडिया पर इस तरह की कोई बात न लिखे। उस वक्त सचिन वाजे के सिर में दर्द था तो परमबीर सिंह ने उसे डिस्प्रिन की एक टैबलेट भी दी थी। परमबीर सिंह के पास कई सीनियर अफसरों के फोन कॉल आए थे और सारे अफसरों ने परमबीर सिंह से कहा था कि आप खुद ही सचिन वाजे को समझाएं कि वह कोई ऐसा काम न करे।
मुझे पता चला है कि जब मुकेश अंबानी के घर के बाहर जिलेटिन से भरी गाड़ी पार्क करने के केस में सचिन वाजे गिरफ्तार हुआ, तो परमबीर सिंह ने अपने दोस्तों से कहा कि वाजे ने उनसे झूठ बोलकर उन्हें अंधेरे में रखा। उन्होंने यह बात कुछ पुलिस अफसरों से कही कि उन्हें सचिन वाजे पर पूरा भरोसा था। उन्हें उसकी बातचीत से, उसके रवैए से, उसके कॉन्फिडेंस से कभी ये लगा ही नहीं कि वह उनसे झूठ बोलेगा।
परमबीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में फाइल की गई अपनी रिट याचिका में लिखा है कि उन्हें इस पूरे एपिसोड में, इस पूरे केस में सिर्फ अटकलों और अनुमानों के आधार पर ही बलि का बकरा बनाया गया। अपनी याचिका में उन्होंने लिखा कि मुंबई पुलिस के ऑर्गनाइजेशनल स्ट्रक्चर के हिसाब से उनके और सचिन वाजे के बीच में 5 अफसर आते हैं। मुंबई पुलिस कमिश्नर के अंडर में 5 ज्वाइंट कमिश्नर हैं, और मुकेश अंबानी के घर के बाहर जिलेटिन से भरी गाड़ी पार्क करने के केस की जांच ज्वाइंट कमिश्नर क्राइम कर रहे थे। ज्वाइंट कमिश्नर को क्राइम ब्रांच का Additional CP असिस्ट करता है और ACP को IPS रैंक का ही DCP (डिटेक्शन) असिस्ट करता है। DCP के अंडर एक और Assistant CP मौजूद होता है, जो एक्सटॉर्शन, क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट, प्रॉपर्टी और चोरी जैसे मामलों की जांच करता है। इसी में से एक क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट का हेड सचिन वाजे था।
परमबीर सिंह ने अपनी याचिका में लिखा है कि गृह मंत्री 5 पुलिस अधिकारियों को दरकिनार करके सीधे वाजे को बुलाया करते थे। मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर ने आरोप लगाया कि उनका ट्रांसफर एंटीलिया के बाहर जिलेटिन की छड़ें पाए जाने के मामले के चलते नहीं किया गया, बल्कि इसका मकसद तो कुछ और ही था। अब शिवसेना और NCP का इल्जाम है कि परमबीर सिंह ने बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस से हाथ मिला लिया है और उनका असली मकसद डेप्युटेशन पर दिल्ली जाना है। उनका आरोप है कि पूर्व पुलिस प्रमुख ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद ही मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी थी। कुछ लोगों का दावा है कि 59 साल के परमबीर सिंह VRS लेकर राजनीति में जाना चाहते हैं। NCP नेता और महाराष्ट्र के कैबिनेट मिनिस्टर नवाब मलिक ने दावा किया कि उन्हें इस बात की पूरी जानकारी है कि परमबीर सिंह ने दिल्ली में किन-किन लोगों से मीटिंग की। मलिक ने कहा कि बीजेपी के कुछ बड़े नेताओं ने परमबीर सिंह से क्या कहा, ये भी उन्हें मालूम है।
मैंने चेक किया तो पता चला कि परमबीर सिंह ने न तो सेन्ट्रल गवर्मेंट में डेप्युटेशन पर आने के लिए अप्लाई किया है, और न ही उनका ऐसा कोई प्लान है। दूसरी बात, परमबीर सिंह ने अपने करीबियों से कहा है कि वह DG होमगार्ड के पद पर काम करेंगे और उनका VRS लेने का कोई प्लान नहीं है। तीसरी बात, परमबीर सिंह ने इस बात को कन्फर्म किया है कि वह इस दौरान न तो दिल्ली आए और न ही बीजेपी के किसी नेता से उनकी मुलाकात हुई है। मैंने भी सरकार में अपने सूत्रों से कन्फर्म किया है कि परमबीर सिंह की गृह मंत्री अमित शाह से कोई मुलाकात नहीं हुई है। परमबीर सिंह के करीबियों का कहना है कि जब उनसे राजनीति में जाने के बारे में पूछा जाता है तो इस सवाल पर वह जोर से हंसते हैं और कहते हैं कि वह सियासत के लिए लायक नहीं है, और न सियासत उनके लायक है।
यह बात तो सही है कि परमबीर सिंह और अनिल देशमुख, न तो दोनों सही हो सकते हैं और न ही दोनों गलत हो सकते हैं। इनमें से एक सही है और एक गलत है। इसलिए जांच जरूरी है, इल्जाम सामने हैं और उनकी हकीकत सामने आनी जरूरी है। यह देश में अपनी तरह का पहला मामला है जिसमें एक पुलिस चीफ ने अपने ही गृह मंत्री के खिलाफ जबरन वसूली के अभूतपूर्व आरोप लगाए हैं। इस केस से मुंबई पुलिस की छवि को बड़ा धक्का लगा है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि शरद पवार जैसे अनुभवी राजनेता, जिन्होंने जिंदगी का तीन-चौथाई हिस्सा राजनीति की ऊबड़-खाबड़ राहों में बिता दिया, अपने गृह मंत्री के बचाव में सामने आए।
शरद पवार को मैं पिछले 45 सालों से जानता हूं। वह 1978 में महाराष्ट्र के यंगेस्ट चीफ मिनिस्टर बने थे। तब से लेकर आज तक मैंने शरद पवार को इतना बेचैन और परेशान नहीं देखा है, जितना वह सोमवार को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखे थे। एक वरिष्ठ IPS अधिकारी द्वारा उनकी पार्टी के एक नेता के खिलाफ लगाए गए जबरन वसूली के इस आरोप ने पवार को हिला दिया है। वरना किसी मुद्दे पर शरद पवार 24 घंटे में 2 बार प्रेस कॉन्फ्रेंस करें, अपनी पार्टी के किसी नेता के बचाव में कागज लेकर सबूत पेश करें, ऐसा नहीं होता।
हैरानी की बात तो यह है कि रविवार को शरद पवार ने मीडिया से कहा था कि गड़बड़ियां हुईं हैं, शिकायतें मिली हैं और जांच होनी चाहिए। लेकिन अगले ही दिन उन्होंने अपने मंत्री को क्लीन चिट दे दी। एक तरफ तो NCP चीफ अपने नेता का बचाव कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे खामोशी से इस मामले को देख रहे हैं। परमबीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से CBI को गृह मंत्री के घर और दफ्तर के सभी CCTV कैमरों के फुटेज लेने का निर्देश देने की मांग की है। इससे यह झूठ बेनकाब हो जाएगा कि मंत्री होम क्वॉरन्टीन में थे और इस दौरान वह किसी पुलिस अफसर से नहीं मिले थे।
मुझे लगता है कि ये ऐसा मामला है जिसमें एक सवाल का जबाव मिलता है तो कई सारे दूसरे सवाल खड़े हो जाते हैं। पर्दे के पीछे बहुत कुछ हो चुका है, और बहुत कुछ हो रहा है। जितना बताया जा रहा है, उससे कहीं ज्यादा छुपाया जा रहा है। सवाल यह है कि परमबीर सिंह अब तक खामोश क्यों रहे? पद से हटाए जान के बाद ही उन्होंने चिट्ठी क्यों लिखी? क्या उन्हें कुर्सी जाने के दर्द ने बागी बना दिया? जब सचिन वाजे परमबीर सिंह का भी करीबी था, तो क्या उसने 100 करोड़ रुपये की वसूली की बात उन्हें नहीं बताई थी?
मुझे पता लगा है कि परमबीर सिंह को बहुत कुछ पता था, लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी था जो उनकी जानकारी में नहीं था। हालांकि परमबीर सिंह अपने आरोपों पर कायम हैं और हिम्मत के साथ वह इस लड़ाई को आर-पार तक लड़ने के मूड में हैं। अब तक तो उन्होंने सिर्फ मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी थी, लेकिन अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दी गई अपनी रिट याचिका में और भी डीटेल में जानकारी दी है। महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार के लिए परमबीर सिंह का ये कदम बहुत कष्टकारी है क्योंकि मामला अब सरकारी फाइलों से निकल कर देश की सबसे बड़ी अदालत के सामने आ गया है।
सियासत की महिमा अपंरपार है। बंद कमरों में होने वाली सियासत के राज़ सामने आने में उम्र गुजर जाती है। आज शिवसेना और NCP के नेता कह रहे हैं कि बीजेपी महाराष्ट्र की सरकार को गिराने के लिए परमबीर सिंह का इस्तेमाल कर रही है। दावा तो यह भी है कि परमबीर से होम मिनिस्टर के खिलाफ लेटर बीजेपी ने लिखवाया, और परमबीर की सुप्रीम कोर्ट मे पिटीशन भी बीजेपी की है। यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि परमबीर का नागपुर कनेक्शन भी है।
ये आरोप हैरान करने वाले हैं क्योंकि कुछ दिन पहले यही परमबीर सिंह जब मुंबई के पुलिस कमिश्नर थे, तो शिवसेना और एनसीपी की आंखों के तारे थे। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में हर थोड़े दिन में परमबीर की तारीफों के कसीदे पढे़ जाते थे। उन्हें सबसे दक्ष, सबसे ईमानदार अफसर बताया जाता था। अब शिवसेना के मुताबिक, वह अचानक बीजेपी के हो गए हैं, और देवेंद्र फडणवीस के इशारे पर काम कर रहे हैं। मजे की बात ये है कि जब शिवसेना और एनसीपी के नेता परमबीर की तारीफ किया करते थे, तब बीजेपी के नेता उन्हें मुख्यमंत्री के हाथ की कठपुतली बताते थे। बीजेपी आरोप लगाती थे कि शिवसेना और एनसीपी के इशारे पर परमबीर उसके नेताओं के खिलाफ केस करते हैं।
अब सिर्फ एक हफ्ते के अंदर ही मामला उल्टा हो गया है। अब शिवसेना और एनसीपी के नेता कह रहे हैं कि परमबीर का नाम अंबानी के घर के बाहर बारूद के केस में आने वाला था इसलिए खुद को बचाने के लिए उन्होंने ‘लेटर बम’ फोड़ दिया। अब गृह मंत्री अनिल देशमुख वे मामले देख रहे हैं जिनमें परमबीर सिंह पर कार्रवाई की जा सकती है।
व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कि ये वक्त इस बात में जाने का नहीं है कि परमबीर ने लेटर क्यों लिखा। अभी तो जांच इस बात की होनी चाहिए कि उन्होंने लेटर में क्या लिखा। पुलिस चीफ द्वारा चिट्ठी में लगाए गए सनसनीखेज आरोपों की सर्वोच्च प्राथमिकता पर जांच होनी चाहिए। गृह मंत्री पर यह आरोप कि वह पुलिस अफसरों से रेस्तरां और बार मालिकों से 100 करोड़ रुपये की उगाही करने के लिए कह रहे हैं, काफी गंभीर हैं। इनकी गंभीरता तब और भी बढ़ जाती है जब ये आरोप एक पुलिस कमिश्नर द्वारा लगाए जाते हैं।
सच्चाई सामने आनी ही चाहिए। अगर ये इल्जाम सच साबित हुआ तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि लेटर किसने लिखा, कब लिखा और क्यों लिखा। ये मुंबई पुलिस की प्रतिष्ठा का सवाल है। जिस पुलिस को लंदन की स्कॉटलैंड यार्ड के बाद बेस्ट पुलिस फोर्स कहा जाता था, उसकी इज्जत का सवाल है। और इसके साथ ही ये महाराष्ट्र सरकार की विश्वसनीयता का सवाल है। इसका जवाब जितनी जल्दी मिले उतना ही अच्छा है।
‘Extortion order to police’ : Maharashtra Home Minister’s role should be probed
The ongoing political drama in Maharashtra over the ‘extortion’ charge levelled against Home Minister Anil Deshmukh by the shunted Mumbai Police chief has now put the future of the Shiv Sena-NCP-Congress coalition government at stake.
NCP supremo Sharad Pawar, after calling for a probe into ex-police chief Parambir Singh’s charge, has now done a U-turn, and has given his Home Minister a clean chit. On Monday, the former police chief approached the Supreme Court challenging his transfer and demanded a CBI probe into the extortion charge.
The ruling BJP members rocked both Houses of Parliament on Monday demanding a CBI probe, but NCP chief Sharad Pawar is unfazed. He ruled out the Home Minister’s resignation and claimed, the minister was quarantined at his Nagpur home during the time, he was alleged to have asked police officers to collect extortion money. The Shiv Sena mouthpiece Saamna called Parambir Singh a “BJP pawn” who is being used to topple the coalition government.
In his press conference on Monday, Sharad Pawar produced a certificate from a Nagpur hospital which said Deshmukh was there from February 5 till 15, because of Covid-19 infection, and he was then in home quarantine from February 15 till 27. Pawar claimed that the allegation about a meeting where Deshmukh allegedly discussed “collecting Rs 100 crore” from bar owners were false. “The question of his resignation does not arise”, said the NCP supremo.
BJP leaders including former CM Devendra Fadnavis immediately tweeted to counter Pawar’s claim. They said, Deshmukh had addressed the media on February 15. Fadnavis tweeted, “It seems Sharad Pawar Ji is not briefed properly on Parambir Singh letter. In this letter only, the SMS evidence shows that the meeting date was mentioned as end of February. Now who is diverting issue?” Fadnavis added the SMS conversation between Parambir and his officers, and also retweeted Anil Deshmukh’s video posted by him on Twitter on February 15, showing he was addressing media.
On his part, Anil Deshmukh admitted that he indeed spoke to media on February 15, after coming out of hospital, and then flew to Mumbai. Pawar alleged that the allegations against Deshmukh appeared to be an attempt to disturb the probe into the “main case” about the explosives-laden vehicle outside Mukesh Ambani’s residence and the alleged murder of the vehicle owner. He said, “there are some names which need to be probed which some people may not like, and thus, allegations (of extortion) were made against Deshmukh. I don’t want the probe to be diverted.”
In his writ petition before the Supreme Court, Parambir Singh has said, “the petitioner submits that unbiased, uninfluenced, impartial and fair investigation is immediately required in the corrupt malpractices of Deshmukh before the evidence is destroyed.”
In his writ petition, Parambir Singh has said that he “was apprehending further malicious and coercive actions against him at the instance of disgruntled home minister (Anil Deshmukh) in abuse of his powers.” In the petition, Parambir Singh mentioned how he “brought the corrupt practices of Deshmukh” in the knowledge of senior leaders and chief minister. He also mentioned how “On 24th/25th August, 2020, Rashmi Shukla, Commissioner, Intelligence, state intelligence department, had brought to the notice of DGP, who in turn brought to the knowledge of Additional Chief Secretary, Home Department, “corrupt malpractices in postings/transfers by” Deshmukh “based on telephonic interception”. The petition said, ‘Shukla was shunted out rather than taking any firm action” against Deshmukh.
The entire matter has now taken a political turn. Sharad Pawar seems to be emerging as the ‘mahanayak’ (top hero), Anil Deshmukh is the ‘khalnayak’ (villain) and Devendra Fadnavis is ‘aakramak’ (aggressive).
Shiv Sena and NCP leaders allege that the Antilia case suspect Sachin Vaze was Parambir Singh’s man and the ex-police chief knew each and every act being done by Vaze. They allege that when Vaze’s name cropped up after the Antilia incident, Vaze was called to his home by the police chief.
My information is that, Parmabir Singh questioned Vaze for nearly two hours. He was repeatedly asked whether he had any role in it, and he flatly denied. Parambir called Vaze again, when the latter wrote on his WhatsApp status that he wanted to say farewell to this world. The police chief requested him not to take the extreme step, and not to write such things on social media. At that time, Vaze had a terrible headache and the police chief gave him a Dispirin tablet. Several senior police officers had implored the police chief to persuade Vaze not to take the extreme step.
I have come to know that when Vaze was arrested by NIA in the Antilia case, Parambir Singh told his close officers that Vaze kept him in the dark by telling a lie. Parambir told senior officers that he had fully trusted Vaze based on his replies, his confidence and attitude. He never expected Vaze would tell him a lie.
In his writ petition before the Supreme Court, Parambir Singh has said that he has been made a scapegoat only on the basis of speculations and conjectures. In his petition, he pointed out that in the organizational structure of Mumbai Police, there were at least five officers in the chain of command between him and Vaze. There are five Joint Commissioners in Mumbai Police, and the Antilia explosive case was looked after by Joint Commissioner, Crime. He is assisted by an Additional CP of Crime Branch. The Additional CP is assisted by a Deputy Commissioner of Police, who is in charge of Crime Detection. Under him, works an Assistant Commissioner of Police, who looks after cases of extortion, crime intelligence, properties and theft. If it is under the ACP, that Sachin Vaze headed the Crime Intelligence Unit.
In his petition, Parambir Singh has pointed out that the Home Minister bypassed five police officers, and he used to call Vaze directly. The ex-police chief has alleged that he was transferred not due to the Antilia probe, but due to some other ulterior motive. Shiv Sena and NCP are now alleging that the ex-police chief has joined hands with BJP leader Devendra Fadnavis, and his main motive is to get himself transferred on deputation to the Centre. They allege that the former police chief wrote the explosive letter to the Chief Minister, after calling on Union Home Minister Amit Shah in Delhi. Some others have alleged that Parambir Singh wants to join politics after taking VRS, since he is now 59 years old. NCP leader and state minister Nawab Malik claims he has full details about whom Parambir Singh met during his stay in Delhi and the assurances that he has been given by some top BJP leaders.
I have checked and found that neither Parambir Singh has applied for deputation to Centre till date nor he has any plan to do so. Secondly, he has reportedly told his close friends that he would continue to work as DGP, Home Guards, and that he would not opt for VRS. Thirdly, he has said that he has not visited Delhi nor met any BJP leader recently. I have got this confirmed from my sources in government that he did not meet Amit Shah in Delhi. People close to the former police chief say, whenever somebody asks him whether he intends to join politics, he replies with a loud guffaw, and says he was neither fit for politics, nor is politics fit for a senior police officer like him.
We cannot say that both Anil Deshmukh and Parambir Singh are morally right or wrong. One of them is morally right, and the other is wrong. Hence a thorough probe is needed, the disclosures are there and the facts must come out. This unprecedented charge of extortion levelled by a police chief against his Home Minister is the first of its kind in the country. It has tarnished the image of Mumbai Police, but it is strange that a seasoned leader like Sharad Pawar, who has spent three-fourth of his life in the rough and tumble of politics, has come out in defence of his Home Minister.
I personally know Sharad Pawar for the last 45 years. In 1978, he became Maharashtra’s youngest chief minister. I have never seen Pawar so worried and uneasy, as he was on Monday at his press conference. This extortion charge levelled against his leader by a senior IPS officer, has made Pawar uneasy. Pawar is a leader who never addresses two press conferences in a span of 24 hours. Never in the past, did he show documents in defence of his party man.
On Sunday, Pawar told media that the matter should be thoroughly probed, and the following day, he gives a clean chit to his minister. On one hand, the NCP chief is defending his leader, and on the other hand, a nonplussed Chief Minister (Uddhav Thackeray) is watching the unfolding episode in silence. The ex-police chief is asking the Supreme Court to direct the CBI to take all CCTV camera footage from the home and office of the Home Minister. This will nail the lie that the minister was in home quarantine, and he did not meet any police officer.
To me, this appears to be a case, where a single reply to a question, evokes more questions. Much has already happened and is happening behind the screen, more facts are being concealed rather being placed in the open. Questions are being raised as to why the ex-police chief took such a long time to pull the skeletons out of the closet. Why was he silent so long? Did the sudden transfer made him a rebel? When Sachin Vaze was a confidante of Parambir, why didn’t he tell him about the Rs 100 crore extortion demand?
I have found that Parambir Singh knew most of the facts, but there were several other facts which could not have been in his knowledge. But Parambir Singh is firm on his extortion charge, he not only wrote the letter to the CM, but also detailed more information in his writ petition to the Supreme Court. For the embattled Thackeray government, the matter has now spilled from government files to the highest court of the land.
Politics is a perplexing, but fascinating game. It takes ages to unravel the intricate secrets that shroud the kernel of closed room politics. Today, Shiv Sena and NCP leaders are alleging that the BJP is using Parambir Singh as a pawn in a political game, it is the BJP who made the ex-police chief write the explosive letter, it is the BJP which goaded Parambir Singh to file his writ petition in Supreme Court. It is being alleged that Parambir has a Nagpur connection.
These allegations are surprising because only a month ago, Parambir Singh was the blue-eyed boy for Shiv Sena and NCP leaders. The SS mouthpiece Saamna used to write eulogies for the Mumbai Police chief. The Shiv Sena used to label him as the most honest and efficient police officer. But now, in Shiv Sena’s view, Parambir has crossed over to the BJP and he is being led by Devendra Fadnavis. From the other side, when SS and NCP leaders used to praise Parambir, BJP leaders in Maharashtra used to describe Parambir as the Chief Minister’s puppet. BJP leaders used to allege that Parambir used to slap cases against them at the behest of Shiv Sena and NCP.
Within a week, the tables have turned. SS and NCP leaders now allege that Parambir exploded the ‘letter bomb’ because his name was going to figure in the Antilia explosive case. Now the Home Minister Anil Deshmukh is looking into cases in which Parambir Singh can be nailed.
I personally feel that we should not waste our time trying to find out why Parambir Singh sent the ‘letter bomb’. Rather, the sensational charges made by the police chief in his letter must be investigated on top priority. The charge that a Home Minister is asking police officers to collect Rs 100 crore extortion money from restaurant and bar owners is a serious one. More so, when the charge is levelled by a Police Commissioner.
The truth must come out. If the charge is proved true, it does not matter who wrote the letter, when and why. It is the image of Mumbai Police that is at stake. It is the image of the city police force, that was considered the best one after London’s Scotland Yard. The probe will also put to test the credibility of Maharashtra government and the capability of Chief Minister Thackeray. The sooner we get the answers, the better.
A minister tells his police: “Go and collect Rs 100 crore”
We are today witnessing a sea change in governance. There was a time when underworld gangs used to extort money and Mumbai police used to catch the extortionists. Now, police officers are assigned to carry out extortions and send the money to the minister. Earlier, terrorists used to plant bombs and police used to catch terrorists. Now a police officer plants bomb to scare the nation’s topmost industrialist.
A letter written by former Mumbai Police chief Parambir Singh has let out a cat among the pigeons inside the Mantralaya. Comments from Shiv Sena leaders indicate that they are defending Parambir Singh and they want the Home Minister Anil Deshmukh to quit. On the other hand, comments from NCP leaders indicate are defending Anil Deshmukh and they want to trap the ex-police chief.
One positive outcome from this confrontation between Shiv Sena and NCP is that extortions made by Mumbai Police from restaurant and bar owners have now been exposed by none other than the city police chief. It is now public knowledge how top political leaders use the police, both as an instrument and a weapon. They use police as an instrument for carrying out extortion, and as a weapon to intimidate people. The latest example of this unbridled terror is the case of intimidating the nation’s top industrialist Mukesh Ambani.
By opening up the can of worms, ex-police chief Parambir Singh has indirectly exposed the motive behind parking of a vehicle laden with explosives outside’s Mukesh Ambani’s residence. The letter written by the former Mumbai police commissioner to the Chief Minister clearly exposes how the Home Minister was using an assistant police inspector Sachin Vaze to carry out extortions.
It is now clear that Sachin Vaze, drunk with the heady alcohol of power derived from political patronage, was out to extort a huge sum of money from Mukesh Ambani. The act of parking a vehicle, filled with gelatin sticks, outside Ambani’s residence, with a threatening letter left inside, was meant to terrorize the industrialist. As I had earlier written, Sachin Vaze was an actor, and it is now clear that the producer director was none other than the Home Minister Anil Deshmukh. If the motive was to extort big money from Mukesh Ambani, this will go down in the annals of India’s crime history as one of the biggest extortion cases.
Till now, we, the common people, only suspected that some ministers in Maharashtra may have been extorting money and police are accustomed to doing ‘hafta vasooli’ (weekly extortion), but these were mere assumptions. There were no evidences. But now the former police chief of Mumbai has given in writing that the Home Minister used to call his officers and gave them a “target” of collecting Rs 100 crore every month. According to this letter, the minister used to explain police officers the modus operandi of collecting money from bar and restaurant owners. It appears as if Anil Deshmukh is an expert in such matters and he feared nobody. He was brazenly telling police officers to carry out extortions. Since the police commissioner (Paramabir Singh) was not close to him, he went over his head to instruct other police officers directly. For Anil Deshmukh, Mumbai Police was his ‘jaagir’ (property) and he was acting like an emperor, drunk with power. Had he not commented on Parambir Singh’s transfer, this extortion would have continued in Mumbai, unabated.
When the National Investigation Agency (NIA) found that it was Sachin Vaze who had planted the car laden with explosives outside Mukesh Ambani’s residence, and there were evidences of at least five vehicles connected with Vaze used in this case of scaring Ambani, and Vaze tried to remove evidences, the Home Minister felt that the image of Mumbai Police has been sullied. He took this as an opportunity to shunt out the Police Commissioner, and went on to tell the media that it was not a routine transfer, and that Paramabir Singh “had committed unpardonable mistakes”. This got the goat of the ex-police chief and he decided to expose the Home Minister. Parambir Singh wrote a letter to the Chief Minister and pointedly mention that he had complained about Deshmukh to both chief minister Uddhav Thackeray and NCP supremo Sharad Pawar in the past.
This is not an issue between Parambir Singh and Deshmukh only. It is a wider issue, about who will gain control of Mumbai Police: Shiv Sena or NCP? The issue relates to who will get the power to extort money by using the police. The confrontation is now leading towards Uddhav Thackeray versus Sharad Pawar.
The most tragic part of this sordid episode is that nobody is bothered about the people who are suffering because of rampant extortions. Nobody is speaking about the owners of bars and restaurants who have to shell out money from their earnings. Their only responsibility is: shell out the money. It does not matter who gets the money at the highest level. These bar and restaurant owners are helpless in front of police. For them, it does not matter the least, whether the Home Minister or Police Commissioner is changed. Pay they must.
Ultimately, it is the people, who will have to decide. They will exercise their right to vote at the time of elections and punish the corrupt. People today in Maharashtra are sad and unhappy with both the Shiv Sena and its leader Uddhav Thackeray. They are waiting for the right time. Parambir Singh has shown courage. No other senior police officer had ever done what Parambir Singh did, in the history of Maharashtra politics.
It’s possible, Paramabir may have to pay for this but his act will surely deter the ‘extortionists’. Let us hope that a Home Minister or a Chief Minister will now fear before ordering collection of extortion money. The media will now be more alert. More police officers may now muster the courage to speak. If this episode results in reduction in cases of extortion, we should thank Paramabir Singh for that. The ex-police chief must also remember: Others may try to intimidate him, anything can happen, but such a moment is not going to come again, he must carry on, with courage, come what may.
मंत्री जी ने पुलिस से कहा: ‘100 करोड़ की वसूली करो’
क्या ज़माना आ गया है. पहले मुंबई में अंडरवर्ल्ड वाले लोगों से वसूली करते थे और पुलिस उन्हें पकड़ती थी. अब पुलिस वसूली करती है और मंत्री तक पहुँचाती है. पहले आतंकवादी बम लगाते थे और पुलिस उन्हें पकड़ती थी. अब पुलिस अफ़सर बम लगाते हैं और सबसे बड़े उद्योगपति को धमकाते हैं.
मुम्बई के पुलिस कमिशनर रह चुके परमबीर सिंह की एक चिट्ठी ने महाराष्ट्र सरकार को मुश्किल में ला दिया है. शिव सेना के नेताओं के बयान बताते हैं कि वे परमबीर के साथ हैं, होम मिनिस्टर अनिल देशमुख को हटाना चाहते हैं. NCP के नेता अनिल देशमुख को बचाना चाहते हैं और परमबीर को फंसाना चाहते हैं. लेकिन शिव सेना और NCP के टकराव का एक बड़ा फायदा ये हुआ कि मुम्बई पुलिस कैसे लूट मचाती है, वसूली करती है, ये पूरी तरह से एक्सपोज़ हो गया. ये भी पता चल गया कि बड़े बड़े नेता कैसे पुलिस का एक औज़ार की तरह इस्तेमाल करते हैं, एक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं. औज़ार पैसा वसूलने के लिए, और हथियार लोगों को डराने के लिए. इस बेख़ौफ़ आतंक का सबसे ताज़ा उदाहरण है, मुकेश अम्बानी को डराने-धमकाने का केस.
हम सब कई दिन से इस सवाल का जवाब ढूंढ़ रहे थे कि मुकेश अम्बानी के घर के बाहर बारूद से भरी कार पार्क करने के पीछे मक़सद क्या था ? लगता है मुम्बई पुलिस कमिशनर के पद से हटाये गये परमबीर सिंह की चिट्ठी से इसका जवाब मिल गया. महाराष्ट्र के होम मिनिस्टर सचिन वाज़े का इस्तेमाल उगाही के लिए कर रहे थे. और अब लगता है सचिन वाज़े अपने आक़ाओं के आशीर्वाद के नशे में चूर होकर मुकेश अम्बानी से मोटा माल वसूलने की कोशिश में था. उसने जो कार पार्क की, जो बारूद बिछाया, जो धमकी भरी चिट्ठी लिखी, वो सिर्फ डराने के लिए थी. मुकेश अम्बानी को धमकाने के लिए थी. इस मामले में सचिन वाज़े एक एक्टर था, प्रोड्यूसर, डायरेक्टर तो अनिल देशमुख लगते हैं. अगर इस नाटक तो मक़सद पैसा वसूली था तो पुलिस के ज़रिये लूट-खसोट का देश का सबसे बड़ा और सबसे संगीन केस है.
अब तक तो हम सिर्फ सुनते थे कि महाराष्ट्र में कुछ मंत्री उगाही करते है, जानते भी थे कि पुलिस के माध्यम से हफ्ता वसूली होती है. पर सबूत कोई नहीं देता था. लेने वाले किसी से डरते नहीं थे और देने वाले अपनी परछाईं से भी डरते थे. अब तो मुम्बई के पूर्व पुलिस कमिशनर परमबीर सिंह ने लिख कर दिया है कि महाराष्ट्र के होम मिनिस्टर पुलिस अफसरों को अपने घर बुला कर 100 करोड़ रूपये वसूली करने का टार्गेट देते थे. कैसे रेस्त्रां वालों से, बार के मालिकों से पैसा वसूल करना है, कितना करना है, ये भी मंत्री जी समझा देते थे. साफ लगा, मंत्री अनिल देशमुख इस काम के एक्सपर्ट हैं. उन्हें किसी का डर नहीं था. वो बड़ी बेशर्मी से अपने खास पुलिसवालों से वसूली करवाते थे. चूंकि पुलिस कमिशनर उनके खास नहीं थे, इसलिये वो उनकी परवाह किये बग़ैर नीचे के पूलिसवालों को आदेश देते थे. अनिल देशमुख के लिए मुम्बई पुलिस उनकी जागीर थी और होम मिनिस्टर किसी सत्ता के नशे में चूर बादशाह की तरह काम कर रहे थे. अगर वो अपने इसी नशे के कारण कमिशनर परमबीर को हटाये जाने पर कमेंट न करते तो शायद वसूली का ये गोरखधंधा इसी तरह चलता रहता.
हुआ ये कि जब सचिन वाज़े पर इल्ज़ाम लगे – NIA ने अपनी जांच में पाया कि पुलिस के एक जूनियर अफसर वाज़े ने ही मुकेश अम्बानी के घर के बाहर बारूद से भरी गाड़ी पार्क करवाई थी, जब इस बात के सबूत मिले कि सचिन वाज़े से जुड़ी पांच-पांच गाड़ियां इस डराने की घटना में शामिल थीं और वाज़े ने सारे सबूत मिटाने की कोशिश की थी तो अचानक होम मिनिस्टर को लगा कि मुम्बई पुलिस की छवि खराब हुई है. तो उन्होने इसी बहाने पुलिस कमिशनर परमबीर सिंह का तबादला करवा दिया. मौके का फायदा उठा कर परमबीर को किनारे कर दिया. और मीडिया से साफ कह दिया कि परमबीर का ट्रान्सफर रूटीन ट्रान्सफर नहीं है, ये तो परमबीर के कर्मों का नतीजा है. ये बात परमबीर को चुभ गई और उन्होने अनिल देशमुख को एक्सपोज़ कर दिया. परमबीर ने इसके लिए मुख्यमंत्री को जो चिट्ठी लिखी, उसमें साफ साफ लिख दिया कि होम मिनिस्टर की काली करतूतों के बारे में पहले भी उद्धव ठाकरे को और शरद पवार को बता चुके थे.
लेकिन ये मामला सिर्फ देशमुख और परमबीर के टकराव का नहीं है. मामला मुम्बई पुलिस पर किसका कब्ज़ा हो, इसका है. मुम्बई पुलिस शिव सेना के कहने से चले या NCP के, ये झगड़ा है. मुम्बई पुलिस से वसूली कौन करवाये, लोगों को कौन लूट कर नेताओं को पैसा कौन पहुंचाए, इसका है. अब ये टकराव शरद पवार और उद्धव ठाकरे का है.
त्रासदी देखिए, जो जनता इसमें पिस रही है, उसकी परवाह किसी को नहीं है. जो रेस्त्रां चलाने वाले, बार चलाने वाले अपना पेट काट कर रिश्वत देते हैं, उनका तो कहीं ज़िक्र ही नहीं आता. उन्हें तो बस पैसे पहुंचाना है – लेने वाला कौन है, उससे उन्हें कोई मतलब नहीं है. वे तो पुलिस के सामने बेबस और लाचार हैं. होम मिनिस्टर बदले या पुलिस कमिशनर, वसूली देने वालों की हालत पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता.
लेकिन जनता को जब वोट देने का मौका आता है, वो हिसाब बराबर कर देती है. आज जनता शिव सेना से, उद्धव ठाकरे से, दु:खी है, नाराज़ है, लेकिन हताश जनता अवसर के इंतज़ार में है. परमबीर सिंह ने हिम्मत दिखाई है. महाराष्ट्र की राजनीति के इतिहास में आज तक किसी पुलिस अफसर ने ये काम नहीं किया. हो सकता है, परमबीर को इसकी क़ीमत चुकानी पड़े लेकिन जो काम उन्होने किया है, वो महाराष्ट्र में वसूली करने वालों को डरायेगा. उम्मीद तो ये है कि अब होम मिनिस्टर या चीफ मिनिस्टर वसूली का आदेश देने से पहले डरेंगे. अब मीडिया और ज़्यादा एलर्ट रहेगा. अब और पुलिस अफसर भी बोलेंगे. अगर इस घटनाक्रम में हफ्तावसूली में थोड़ी भी कमी आ गई, तो उसके लिए लोग परमबीर सिंह को हमेशा याद रखेंगे. परमबीर को भी कुछ याद रखना होगा:
“कुछ लोग तुम्हें समझाएंगे
वो तुमको ख़ौफ़ दिखाएँगे
जो है, वो भी खो सकता है
कुछ भी यहाँ हो सकता है
पर ये लम्हा तुम से ज़िंदा है
ये वक्त नहीं फिर आएगा
तुम अपनी करनी कर गुज़रो
जो होगा देखा जाएगा.”
महाराष्ट्र में कोरोना की दूसरी लहर, सिर्फ लॉकडाउन ही विकल्प नहीं
देशभर में पिछले 111 दिनों में पहली बार कोरोना के मामले 40 हजार के आंकड़े को पार कर 40,944 तक पहुंच गए हैं। यह सभी के लिए चिंता की बात है। इस साल एक दिन में कोरोना वायरस के इतने मामले पहली बार सामने आए हैं। कोरोना के एक्टिव मामलों की संख्या में 19 हजार की बढ़ोतरी हुई है जो कि पिछले साल सितंबर महीने के बाद सबसे बड़ा इजाफा है। कोरोना के मामले पिछले 9 दिनों से लगातार बढ़ रहे हैं। 17 राज्यों में यह बढ़ोतरी देखने को मिल रही है जिसमें महाराष्ट्र सबसे ज्यादा प्रभावित है। पिछले तीन दिनों में 54 हजार से ज्यादा मामले सामने आने के साथ ही शुक्रवार को कोरोना के एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 2.9 लाख हो गई।
महाराष्ट्र में हालात बहुत खराब हैं। यहां कोरोना के 25,681 नए मामले सामने आए हैं। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या हमारे मुल्क में कोरोना की दूसरी लहर आ चुकी है?
मैं आपको इतना कन्फर्म कर सकता हूं कि महाराष्ट्र में कोरोना की दूसरी लहर शुरू हो चुकी है लेकिन फिलहाल देश के अन्य राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर जैसी कोई बात नहीं है।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि देश में रोजाना कोरोना के जितने मामले आ रहे हैं उनमें से दो-तिहाई से ज्यादा मामले अकेले महाराष्ट्र के हैं। महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों और जिलों तक में कोरोना के नए मामलों का विस्फोट देखा जा रहा है। सीएसआईआर (वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद) के महानिदेशक शेखर सी मांडे का कहना है कि ये महाराष्ट्र के लोगों के लिए रेड अलर्ट है। अगर अभी न सुधरे तो फिर पिछले साल सितंबर जैसे हालात हो सकते हैं।
सीएसआईआर की बात पर गौर करना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह पूरे देश में बीमारी/महामारी के पैटर्न पर नजर रखता है। कोरोना के किस स्ट्रेन के मामले कहां ज्यादा आ रहे हैं? किस इलाके में कोरोना के फैलने का पैटर्न क्या है? सीएसआईआर आंकड़ों का विश्लेषण कर इन सवालों का जवाब वैज्ञानिक आधार पर देता है, फिर रिसर्च के रिजल्ट के हिसाब से सरकार को आगे की रणनीति बनाने की सलाह देता है। मांडे ने शुक्रवार को इंडिया टीवी को बताया कि वास्तव में महामारी की ‘दूसरी लहर’ महाराष्ट्र में आ चुकी है। उन्होंने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर अभी भारत के अन्य हिस्सों में आने वाली है। जबतक यह महामारी खत्म हो नहीं जाती है तबतक कोविड गाइडलाइंस का पालन सभी के लिए जरूरी है।
आखिर महाराष्ट्र में कोरोना की दूसरी लहर कैसे आई, कहां से आई ? असल में महाराष्ट्र के कम से कम 15 जिले ऐसे हैं जहां हालात पिछले साल से भी ज्यादा खराब हो गए हैं। इन जिलों में कोरोना वायरस बहुत तेजी से फैल रहा है। हालात का अंदाजा आपको आंकड़ा देखकर होगा। पिछले साल जब कोरोना पीक पर था, उस वक्त देश में एक दिन में 90 हजार के करीब मामले सामने आ रहे थे। उस वक्त भी महाराष्ट्र में एक दिन में ज्यादा से ज्यादा 24 हजार मामले आते थे। 1 सितंबर 2020 को महाराष्ट्र में एक दिन में सबसे ज्यादा, करीब 25 हजार मामले दर्ज किए गए थे, लेकिन शुक्रवार को यहां 26 हज़ार नए मामले सामने आए और ये अभी तक एक दिन में कोरोना के मरीजों की सबसे बड़ी संख्या है। पहले देश में कोरोना का हर पांचवां मरीज महाराष्ट्र से होता था लेकिन फिलहाल जो स्थिति है उसमें हर तीन में दो मरीज महाराष्ट्र से है।
मुंबई, नागपुर, पुणे जैसे शहरों का सबसे बुरा हाल है।आपको बता दूं कि पिछले दो दिनों में मुंबई में करीब 6 हज़ार नए कोरोना के मरीजों का पता चला है। गुरुवार को मुंबई में 2,800 से ज्यादा मामले आए जबकि शुक्रवार को 3 हजार से ज्यादा नए मरीजों का पता चला।
अब मन में ये सवाल भी उठता है कि आखिर महाराष्ट्र में ऐसा क्या हो रहा है जिसके कारण कोरोना फुल स्पीड से बढ़ रहा है? इसका जवाब बिल्कुल आसान है।असल में लोगों ने कोरोना से डरना छोड़ दिया। लोग मास्क लगाना भूल गए हैं। सोशल डिस्टेंसिंग खत्म हो गई है। इसी का असर ये है कि मुंबई में एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी धारावी कोरोना से मुकाबला करने के मामले में दुनिया के लिए उदाहरण बन गया था, अब वही धारावी फिर से कोरोना का घऱ बन गया है। धारावी में 30 से ज्यादा मामले आए हैं लेकिन इसके बाद भी यहां लोग बेखौफ होकर बिना मास्क लगाए आराम से मार्केट में घूम रहे हैं।
मेरा मानना है कि इसके लिए अगर सिर्फ जनता को दोष दिया जाए तो ये ठीक नहीं है, क्योंकि आमतौर पर मुश्किल वक्त में, हालात को देखते हुए सरकार को कड़े फैसले लेने चाहिए। अगर लोगों को तकलीफ से बचाने के लिए कुछ पाबंदियां लगानी है तो उसकी तैयारी पहले से होनी चाहिए। पहले से सारे विकल्पों पर विचार होना चाहिए। लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने ऐसा नहीं किया और अब जब हालात बिगड़ने लगे तो हड़बड़ी में फैसले लिए जा रहे हैं। कहीं लॉकडाउन है, कुछ शहरों पर वीकेंड पर लॉकडाउन है, कुछ जगहों पर कर्फ्यू लगाया है, कहीं नाईट कर्फ्यू है तो कहीं मास्क न पहनने वालों से जुर्माना वसूला जा रहा है। लेकिन मुश्किल ये है कि इसके बाद भी कोई असर नहीं हो रहा है।
शुक्रवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि मुंबई के भीड़-भाड़ वाले दादर मार्केट में लोग बिना मास्क के कैसे घूम रहे थे। कई लोगों के पास मास्क था लेकिन उसे वे अपनी जेब में रखे हुए थे और कैमरा देखते ही उन्होंने जल्दी से मास्क पहन लिया। महामारी से न तो महाराष्ट्र की जनता ने सबक लिया और न ही सरकार की आंख खुली। अब जब कोरोना ने फिर से हमला किया है तो सरकारऔर BMC दोनों परेशान है। कोरोना के बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए अब BMC ने दादर की फूल और सब्जी मंडी को शिफ्ट करने का फैसला लिया है। इसे बीकेसी और सोमैया ग्राउंड में शिफ्ट किया जा सकता है। इसके अलावा BMC ने मुंबई में नाइट कर्फ्यू लगाने की सिफारिश भी सरकार के पास भेजी है।
हमारे यहां एक कहावत है कि घर जलने के बाद जागे तो क्या जागे। BMC का रवैया ऐसा ही है। जब कोरोना फैल गया तो कदम उठा रहे हैं। मार्केट में भीड़ पहले भी थी इसलिए मार्केट को पहले भी शिफ्ट किया जा सकता था। खैर…जब जागे तब सबेरा। लेकिन दादर मार्केट के दुकानदार इसका विरोध कर रहे हैं।दुकानदारों का कहना है कि पिछले साल के आर्थिक उथल-पुथल के बाद बड़ी मुश्किल से जिंदगी पटरी पर आ रही है लेकिन सरकार मार्केट को शिफ्ट करके गाड़ी को फिर डिरेल करना चाहती है।अगर मार्केट शिफ्ट किया गया तो दुकानदार बर्बाद हो जाएंगे।
इंडिया टीवी के संवाददाता ने मुंबई की मेयर किशोरी पेडनेकर से जब इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि लोगों की चिंता ठीक है-‘लेकिन जब रोजगार और जिंदगी में से किसी एक चुनना हो तो जिंदगी को ही चुनेंगे। अगर जिंदगी रही तो दुकानदारी फिर चल निकलेगी। इसलिए अगर लोग खुद नहीं सुधर रहे तो फिर सरकार सख्ती करके उन्हें सुधारेगी। क्योंकि जान तो बचानी है।’मुंबई की मेयर ने प्रोएक्टिव रोल प्ले किया है लेकिन उन्हें यह कदम पहले उठाना चाहिए था। अब वो जितना चाहें सख्ती कर लें, कोरोना तो फैल चुका है। महाराष्ट्र के कई शहरों में पिछले साल मई के महीने जैसी तस्वीरें दिखने लगी है। जैसे उस वक्त लॉकडाउन के दौरान पुलिस ड्रोन कैमरों से इलाकों पर नजर रखती थी अब फिर वही हो रहा है।
उधर, पुणे में एक दिन में 5 हज़ार से ज्यादा नए मामले सामने आए हैं। इसके साथ-साथ नासिक,औरंगाबाद, नांदेड़, अमरावती, अकोला, नंदूरबार और जलगांव जैसे जिलों में भी इंफेक्शन तेजी से फैल रहा है। नागपुर में हालात बेहद खऱाब हैं। पिछले एक हफ्ते में यहां कोरोना के 18 हज़ार नए मरीज सामने आए हैं, जिसमें से पिछले तीन दिनों में ही 10 हजार से ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं। शुक्रवार को भी यहां 3 हज़ार से ज्यादा नए मरीजों का पता चला। ये हाल तब है, जब नागपुर में 21 मार्च तक लॉकडाउन लगा हुआ है। जरूरी सेवाओं को छोड़कर बाजार और व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद हैं। इसके बाद भी बहुत से लोग हालात को नहीं समझ रहे हैं। बहुत से दुकानदार चोरी-छिपे दुकान खोलते हैं। बहुत से लोग छोटी-छोटी गलियों में घर से बाहर घूमते रहते हैं। इसलिए ऐसे लोगों पर नजर रखने के लिए अब ड्रोन कैमरों की मदद ली जा रही है।
नागपुर में कई मरीज ऐसे हैं जिनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव है लेकिन वो एसिमटोमैटिक (जिनमें कोरोना का कोई लक्षण नहीं है) हैं। चूंकि पहले कोरोना के मामले बढ़ने की रफ्तार कम थी इसलिए अधिकारियों ने भी होम क्वारंटीन वाले मरीजों पर ध्यान नहीं दिया। नतीजा ये हुआ कि कई लोग होम क्वारंटीन के नियमों का पालन नहीं कर रहे थे। घर से बाहर निकलकर दूसरे लोगों को संक्रमित करने के कैरियर बन रहे थे, लेकिन अब जब कोरोना संक्रमण की रफ्तार तेज हो चुकी है तो एक बार फिर प्रशासन की नींद टूटी है। अब फिर से होम क्वारंटीन वाले स्टिकर्स घरों के बाहर लगाए जा रहे हैं। ये हिदायत दी जा रही है कि अगर कोई मरीज होम क्वांरटीन के नियम तोड़कर बाहर निकला तो ऐसे मरीजों पर 5000 रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा।
इसके बाद भी लोग सुधरने को तैयार नहीं हैं। इसकी एक तस्वीर मुंबई के चारकोप इलाके से सामने आई है जिसमें मास्क को लेकर चेकिंग अभियान के दौरान हाथापाई हो गई। दरअसल, बीएमसी की तरफ से कई जगह महिला मार्शलों को तैनात किया गया है। मुंबई में मास्क नहीं पहनने पर 200 रुपए का चालान है और इसी को लेकर एक महिला और मार्शल के बीच विवाद हो गया। महिला ने मास्क नहीं लगाया था, पहले तनातनी हुईऔर फिर हाथापाई तक नौबत पहुंच गई। अब अश्विनी चव्हाण नाम की महिला मार्शल ने मारपीट को लेकर शिकायत दर्ज करवाई है। ऐसी कई घटनाएं महाराष्ट्र के अलग-अलग इलाके में हुई हैं।
ये सिर्फ इत्तेफाक नहीं है कि जब देश में कोरोना क प्रकोप शुरू हुआ था तब भी सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में आए थे। और अब जबकि देश के ज्यादातर हिस्सों में कोरोना का प्रकोप कम हुआ, तब भी सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में है। यहां कोरोना की ‘दूसरी लहर’ देखने को मिल रही है। पहले सरकार लापरवाह थी, फिर लोग भी बेपरवाह हो गए और नतीजा ये हुआ कि महाराष्ट्र में हालात खराब हो गए।
राज्य सरकार समय-पर नियमों को लेकर सख्ती कर सकती थी और लोग भी अपनी ओर से भी मास्क पहनने, सोशल डिस्टेंसिंग और हाथों को सैनिटाइज करने के नियम का पालन कर सकते थे। जब मामले बढ़े तो डर बढ़ा और फिर सरकार और लोग कुछ दिन लिए रास्ते पर आए लेकिन पिछले तीन चार महीने से फिर से फुल लापरवाही का दौर शुरू हो गया। महाराष्ट्र के लोग कहने लगे कि अब थक गए हैं। लोगों ने मास्क लगाना बंद कर दिया।दो गज की दूरी रखना बंद हो गया और लोगों के दिल और दिमाग से कोरोना का डर खत्म को गया। मुझे लगता है यही वजह है कि तीन महीने में महाराष्ट्र के 15 जिलों में कोरोना एक बार फिर इतनी तेजी से फैल गया है।
मेरा मानना है इसकी दूसरी बड़ी वजह है राजनीतिक अस्थिरता। महाराष्ट्र में 3 दलों की गठबंधन सरकार है। कोई किसी की सुनता नहीं। सभी दल अपने-अपने मंत्रियों के साथ रहते हैं और मंत्री एक-दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं। पिछले साल भर में कोरोना के काल में महाराष्ट्र की सरकार ने इतनी सारी राजनीतिक समस्याओं का सामना किया है कि नेताओं के पास कोरोना पर पूरा ध्यान देने का वक्त नहीं है। अब जबकि मामला हाथ से निकल गया तो उद्धव ठाकरे कह रहे हैं कि आप मेरी बात नहीं मानेंगे तो लॉकडाउन लगाना पड़ेगा। वो डराने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन, मुझे नहीं लगता कि आज की परिस्थितियों में लॉकडाउन एक विकल्प है।
Second wave of pandemic has struck Maharashtra, but lockdown is not the answer
This is worrying news for all. For the first time in last 111 days, the daily number of Covid-19 cases in India crossed 40,000 to reach 40,944. The number of active cases also increased by 19,000, the biggest increase since last September. The surge in Covid cases has been consistent since the last nine days, as the pandemic continues to spread across 17 states, with Maharashtra leading. The number of active cases jumped to 2.9 lakh on Friday, with more than 54,000 cases in the last three days.
The worst situation is in Maharashtra which reported 25,681 fresh Covid cases. The question that is being asked is: Has the second wave of the pandemic struck India?
I can now confirm that the second wave has begun in Maharashtra, but the same cannot be said about other states. More than two-third of the new cases are from Maharashtra, which is witnessing an explosion in the number of cases from different cities and even in districts. If the red alert is not heeded to, the state may face a critical situation that arose in September last year, says Shekhar C. Mande, the director-general of CSIR (Council of Scientific and Industrial Research).
CSIR is keeping a constant watch on the pattern of epidemic that is evolving, on the type of strains of the virus that have appeared, and it advises the government on taking remedial steps. Mande told India TV on Friday that the “second wave” of the epidemic has indeed come in Maharashtra. He added that the second wave is yet to arrive in other parts of India, and Covid-appropriate behaviour is now a must for all till the time the pandemic is not over.
From where did the second wave come in Maharashtra? There are at least 15 districts where the situation has worsened compared to last year. The virus is spreading fast in these districts. Let me give an example to illustrate. Last year, when the pandemic was at its peak, out of more than 90,000 fresh cases reportedly daily across India, Maharashtra accounted for only 24,000. On September 1 last year, the highest number of fresh cases recorded in Maharashtra was nearly 25,000, but on Friday the number was about to touch 26,000. Earlier one out of five Covid patients in India was from Maharashtra, but now, two out of three Covid patients are from this western state.
The situation in Mumbai, Pune and Nagpur is alarming. Nearly 6,000 new cases were reported in the last two days from Mumbai. On Thursday, the number was more than 2,800, and on Friday it was more than 3,000.
The question: Why is the virus moving at such a speed in Mahrashtra? The answer is simple: People have simply stopped fearing the pandemic, they have stopped wearing masks while walking on streets, and moving with the crowds. This is the reason why Asia’s biggest slum in Mumbai, Dharavi, which had set an example before the world by successfully tackling Covid, is now again a hotspot. More than 30 new cases were detected recently, and yet people are moving around without masks in markets.
I think, it will not be proper to blame people only. The accountability lies with local and state authorities, which should have strictly enforced Covid regulations in time. The Maharashtra government did not take decisions to enforce regulations, including lockdown, in time and the results are there for all to see. Presently, only ad hoc and knee-jerk decisions are being taken, like imposing weekend lockdowns in some places, night curfew in some towns, and fining people who move around without masks. These decisions, taken belatedly, are not yielding the right results.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Friday night, we showed how people were moving around without masks in the crowded Dadar market of Mumbai. Many of them had kept masks inside their pockets, and, on seeing our camera, they quickly put them on. The overall attitude of pedestrians towards the pandemic was that of nonchalance. Due to the epidemic, the BMC has decided to shift the flower market from Dadar, and the vegetable ‘mandi’ is being shifted to BKC and Somaiya grounds. BMC has recommended imposition of night curfew for Mumbai city.
The attitude of BMC reminds one of the proverb, ‘locking the stable after the horses have bolted’. They could have shifted the markets earlier. Already, the shopkeepers and traders in Dadar are protesting this move. Their argument is that, after facing economic turmoil last year, they had barely resumed their business, but are now being asked to move.
India TV reporter posed this question to Mumbai Mayor Kishori Pednekar. She said, “when there is a question of choosing between life and jobs, you have to choose life first. First save your life, business can prosper later. If people do not follow rules, the government will apply regulations strictly.” The Mumbai Mayor is surely playing a pro-active role, but she could have done this earlier. Already, drones are being used to keep a watch on crowds in markets and streets.
In Pune, the daily surge in new cases is now more than 5,000. In Nashik, Nanded, Aurangabad, Amravati, Akola, Nandurbar and Jalgaon districts, the virus is spreading fast.
The situation is worse in Nagpur, where 18,000 new cases were reported in the last one week. Out of these, 10,000 cases were reported in the last three days. On Friday, more than 3,000 new cases were reported. This, in a city, where lockdown is already in force, and markets and business establishments are closed, except essential services. Drones are being used to keep watch on people who loiter in streets during lockdown and on shopkeepers, who open their shops on the sly.
Many of the patients in Nagpur were asymptomatic but were found Covid positive after tests. Since the numbers had not surged in the beginning, those who were advised home quarantine, moved outside their homes nonchalantly, spreading the virus among crowds. They became the super spreaders. Now that the authorities have woken up from their slumber, large stickers are being pasted outside homes where Covid patients are in home isolation. Those violating home quarantine rules may have to pay Rs 5,000 as fine.
People are yet to realize the enormity of the danger. There is a video from Mumbai’s Charkop locality, where a woman thrashed a BMC lady marshal, Ashwini Chauhan, when she objected to her moving without a mask, and asked her to pay Rs 200 fine. The woman marshal has filed an FIR with police. Similar cases have been reported from some other places.
It is not a coincidence that Maharashtra registered the highest number of cases, when the pandemic struck India last year. And now, it is witnessing a ‘second wave’, while in other states, the situation is not so alarming. The situation in Maharashtra has worsened because of negligence on part of both the state government and the people.
The state government could have attacked and enforced regulations in time, and the people, on their part, could have followed the regimen of social distancing, wearing of masks, and frequent washing of hands. The situation worsened in the last three to four months. It seems that a sense of fatigue set in after people became fed up of wearing masks constantly. People stopped fearing the pandemic as life returned to normal. In my view, this seems to be the only reason why the virus spread so far across as many as 15 districts of Maharashtra within a span of three months.
The other reason, I assume, is because of political instability caused by a coalition government being run by three political parties, with no leader from one party listening to the other. Each party is siding with its own set of ministers, and the ministers are busy pulling one another’s legs. Politcians in Maharashtra had to face so many problems during the last year and they had little time to spend on the nitty-gritty of tackling a lethal pandemic.
Now that the situation is going out of hand, chief minister Uddhav Thackeray is threatening a state wide complete lockdown if people refused to follow regulations. Thackeray is trying to scare people, but, I do not think, imposition of a lockdown is the answer to the current problem.
युद्धस्तर पर टीकाकरण ही कोरोना महामारी को रोक सकता है
देश में कोरोना की दूसरी लहर खतरनाक होती जा रही है। गुरुवार को देशभर में कोरोना के 39,670 नए मामले सामने आए। यह पिछले साल 28 नवंबर के बाद एक दिन में संक्रमण का सबसे ज्यादा मामला है। महाराष्ट्र में गुरुवार को सबसे ज्यादा 25,833 नए मामले आए जबकि दिल्ली में कोरोना के 607 नए मामले आए। पंजाब में 2,387, कर्नाटक में 1,488, छत्तीसगढ़ में एक हजार से ज्यादा, गुजरात में 1,276, तमिलनाडु में 989, मध्य प्रदेश में 917, हरियाणा में 633, यूपी में 321, राजस्थान में 327 और चंडीगढ़ में कोरोना के 211 नए मामले आए। यह महामारी तेजी से फैल रही है।
महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, केरल और पंजाब जैसे राज्यों में पिछले पांच दिनों से कोरोना वायरस के नए मामले लगातार बढ़ रहे हैं। गुरुवार को पूरे देश में कोरोना संक्रमण से 154 लोगों की मौत हो गई। पिछले तीन दिनों में रोजाना इस संक्रमण से मरनेवालों की संख्या 150 से ज्यादा रही है। पंजाब और गुजरात के कई शहरों में नाइट कर्फ्यू की अवधि बढ़ा दी गई है। लुधियाना, जालंधर, अमृतसर, गुरदासपुर, पटियाला, मोहाली, रोपड़, कपूरथला और होशियारपुर में रात का कर्फ्यू दो घंटे बढ़ा दिया गया है। पंजाब और गुजरात में सभी मॉल और सिनेमा हॉल को शनिवार और रविवार को बंद करने का आदेश दिया गया है। गुजरात के अहमदाबाद, सूरत, राजकोट और वडोदरा में नाइट कर्फ्यू लगाया गया है।
मध्य प्रदेश सरकार ने महामारी फैलने की आशंका को देखते हुए महाराष्ट्र से आने-जानेवाली अंतरराज्यीय बसों के परिचालन पर 20 मार्च से 31 मार्च तक रोक लगा दी है। महाराष्ट्र से आनेवाले सभी यात्रियों को एक हफ्ते के लिए क्वारंटीन किया जाएगा। उज्जैन, ग्वालियर, जबलपुर, रतलाम, सागर, बैतूल और अन्य शहरों में बाजार और व्यापारिक प्रतिष्ठान रोजाना रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक बंद रहेंगे। इंदौर और भोपाल में पहले से ही नाइट कर्फ्यू लगा हुआ है।
कोरोना के मामले बढ़ने के साथ ही लोगों के अंदर इस बात का डर है कि कहीं फिर ल़ॉकडाउन ना लग जाए। सैकड़ों लोगों ने मुझसे मैसेज करके पूछा। इंडिया टीवी की फोन लाइन पर हजारों कॉल आए। लोग यही पूछ रहे हैं कि कोरना के बढ़ने की रफ्तार तो पिछले साल मार्च-अप्रैल से भी ज्यादा हो गई है और अब इसे रोकने के लिए क्या फिर से लॉकडाउन लग जाएगा? लोगों को लग रहा है कि करीब 8 महीने के बाद कारोबार थोड़ा पटरी पर लौटा है, डर थोड़ा कम हुआ है, रोजगार फिर मिलने लगा है। ऐसे में अगर एक बार फिर लॉकडाउन लगा तो मुश्किल हो जाएगी। जिंदगी कैसे चलेगी? सबसे ज्यादा डर रोज कमाने खाने वाले, रेहड़ी पटरी वाले और छोटे दुकानदारों को है। मैं इस डर को समझता हूं। लॉकडाउन का गरीब लोगों पर कैसा असर हुआ और उन पर क्या बीती, ये पूरे देश ने देखा है। मैंने सरकार के बड़े-बड़े मंत्रियों से बात की, अर्थशास्त्रियों से बात की, अफसरों की राय जानने की कोशिश की। एक स्पष्ट तस्वीर उभरकर आना बाकी है लेकिन ऐसे लगता है कि लोगों को अब कोरोना से उतना डर नहीं लग रहा है जितना कोरोना के कारण होने वाले नुकसान से लग रहा है। लोगों को अब इस बात खौफ नहीं है कि कोरोना फिर बहुत तेजी फैल रहा है, लोगों को चिंता इस बात की है कि कहीं दोबारा लॉकडाउन तो नहीं लग जाएगा।
पंजाब में पिछले तीन दिनों में कोरोना के 100 से ज्यादा मरीजों की मौत हो चुकी है। अकेले जालंधर में 500 से ज्यादा नए मरीज़ मिले हैं। पंजाब के अस्पतालों में करीब 300 लोग ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं और कई लोग वेटिंलेटर पर भी हैं। ये बेहद गंभीर स्थिति है और इसे पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी समझते हैं। इसलिए गुरुवार को उन्होंने कहा कि चाहे लोगों को पसंद हो या ना हो, लेकिन वो बाजारों और सार्वजनिक स्थानों पर कोविड गाइडलाइंस के पालन के लिए दोबारा से सख्ती करेंगे। अगर इसके बाद भी हालात नहीं सुधरे तो फिर और कड़े उपाय अपनाएंगे।
उधर, गुजरात में भी कमोबेश इसी तरह के हालात हैं। अहमदाबाद में बस सेवाएं बंद कर दी गई हैं। सभी जिम और पार्क अगले आदेश तक बंद कर दिए गए हैं। सभी मॉल और सिनेमा हॉल वीकेंड पर बंद रहेंगे। राज्य के अधिकांश शहरों में सभी स्कूल और कॉलेज 10 अप्रैल तक बंद रहेंगे। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने पूरे राज्य में लॉकडाउन से इनकार किया लेकिन इस बात पर जोर दिया कि सख्ती तो बरती जाएगी।
दिल्ली और पंजाब के मुख्यमंत्रियों ने कोविड वैक्सीनेशन की रफ्तार बढ़ाने और मास वैक्सीनेशन की बात कही है। गुरुवार रात तक देशभर में 3.89 करोड़ वैक्सीनेशन हुआ। यह आंकड़ा भले ही बड़ा दिखाई दे, लेकिन 137 करोड़ लोगों के देश में यह एक बूंद के समान है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने केंद्र से अनुरोध किया है कि वह बिना किसी बंदिश के सभी को वैक्सीन लगाने की अनुमति प्रदान करे। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मांग की है कि कोरोना की दूसरी लहर के फैलाव को रोकने के लिए सभी उम्र के लोगों को वैक्सीन लगनी चाहिए।
चाहे कैप्टन अमरिन्दर सिंह हों या अरविन्द केजरीवाल, मैं इन दोनों मुख्यमंत्रियों की राय से सहमत हूं। देश में वैक्सीन की कमी नहीं है, उत्पादन बढ़ गया है, इसे और तेजी से बढ़ाया भी जा सकता है। कोरोना को रोकने का एक ही उपाय है युद्धस्तर पर वैक्सीनेशन। वैक्सीनेशन की रफ्तार को तेजी से बढ़ाने की जरूरत है। शुरुआत में 45 वर्ष से ज्यादा के लोगों को वैक्सीन लेने की छूट दी जा सकती है। इसके लिए किसी तरह के रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं होनी चाहिए। ये लोग वैक्सीनेशन सेंटर पर जाएं और टीका लगवाएं। किसी तरह की बंदिश नहीं होनी चाहिए। न डॉक्टर का सर्टिफिकेट, न रजिस्ट्रेशन का चक्कर और न अप्वाइंटमेंट का झंझट। मुझे तो लगता है कि अगर संभव हो और वैक्सीन की उपलब्धता हो तो 18 साल से ऊपर के सभी नागरिकों को कोरोना वैक्सीन लेने की छूट मिलनी चाहिए।
बड़ी संख्या में लोग वैक्सीन लगवाना चाहते हैं लेकिन सरकार की इजाजत नहीं है, क्योंकि नियमों की पाबंदी है इसलिए वो वैक्सीन नहीं लगवा पा रहे हैं। फिलहाल सरकार ने सिर्फ 60 साल से ज्यादा के लोगों को वैक्सीन देने की छूट दी है और 45 से ऊपर कोमॉर्बिड लोग ही टीका लगवा सकते हैं। 45 वर्ष से ऊपर की उम्र के कई लोगों ने मुझसे संपर्क किया और इस संबंध में पूछा। ये बात साबित करती है कि बड़ी संख्या में लोग वैक्सीन लगवाना चाहते हैं, लेकिन सरकार की तरफ से इजाजत नहीं होने के कारण टीका नहीं लगवा पा रहे हैं। अगर18 वर्ष से ज्यादा उम्र के सभी भारतीयों को वैक्सीन लेने की अनुमति दी जाती है तो वैक्सीन बर्बाद होने की संभावना खत्म हो जाएगी, जिसकी चिंता प्रधानमंत्री भी जता चुके हैं।
युद्धस्तर पर वैक्सीनेशन ही इस महामारी की दूसरी लहर को रोक सकता है। वैक्सीनेशन जितना तेज होगा, कोरोना की स्पीड उतनी कम होगी। एक बात का ध्यान रखना होगा कि सिर्फ वैक्सीनेशन से भी भला होने वाला नहीं है, इसके साथ-साथ लोगों को सावधानी बरतनी होगी। हर शख्स को कोविड गाइडलाइंस का पालन करना होगा। लापरवाही बिल्कुल नहीं होनी चाहिए, ना सरकारी स्तर पर और ना ही आम लोगों के लेवल पर। इसलिए मास्क लगाएं, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें, दो गज की दूरी रखें और बार-बार हाथ धोएं।
Massive vaccination on a war footing can only arrest the spread of Covid pandemic
India is witnessing its second wave of Covid-19 pandemic, with 39,670 fresh cases recorded on Thursday. This is the highest single day rise since November 28 last year.
Maharashtra reported the highest number of 25,833 fresh cases on Thursday, while there were 607 new cases in Delhi, 2,387 cases in Punjab, 1,488 cases in Karnataka, over 1,000 cases in Chhattisgarh, 1,276 new cases in Gujarat, 989 cases in Tamil Nadu, 917 cases in Madhya Pradesh, 633 cases in Haryana, 321 cases in UP, 327 cases in Rajasthan and 211 in Chandigarh. The pandemic is spreading fast.
For the last five days, there has been a consistent surge in the number of fresh Covid-19 cases in states like Maharashtra, MP, Gujarat, Kerala and Punjab. On Thursday, 154 deaths were reported across India. For the last three successive days, the death toll has been in the 150-plus category.
Punjab and Gujarat have extended night curfew hours in several cities. Night curfew has been extended by two hours in Ludhiana, Jalandhar, Amritsar, Gurdaspur, Patiala, Mohali, Ropar, Kapurthala and Hoshiarpur. All malls and cinema halls have been ordered shut in both Punjab and Gujarat on Saturdays and Sundays. Night curfews have been imposed in Ahmedabad, Surat, Rajkot and Vadodara cities of Gujarat.
Madhya Pradesh government has banned the plying of inter-state bases to and from Maharashtra from March 20 till March 31, in view of the alarming spread of the pandemic. All passengers arriving from Maharashtra will be kept in week-long quarantine. Markets and business establishments in the towns of Ujjain, Gwalior, Jabalpur, Ratlam, Sagar, Betul, and other places will remain closed from 10 pm to 6 am daily. Night curfew is already in place in Indore and Bhopal.
With the situation becoming scary, people at large are fearing another lockdown. I have personally got several messages and India TV has received thousands of phone calls from viewers inquiring whether lockdown will be imposed again as it was done in March last year. I understand their fear and apprehension. Small and medium businessmen, roadside hawkers, owners of eateries, had revived their business after more than eight months of strict lockdown, and they are fearing the worst again. I have spoken to several ministers, top officials and economists. A clear picture is yet to emerge, but it seems, people at large appear not to be fearing the pandemic much compared to their fear of facing another lockdown.
In Punjab, more than 100 Covid patients have died in the last three days. In Jalandhar city alone, more than 500 fresh Covid cases were reported. Nearly 300 Covid patients are presently on oxygen support in Punjab hospitals, and several others are on ventilator support. This is a critical situation and none other than the Punjab chief minister Capt. Amarinder Singh said this on Thursday. He said, whether people like it or not, his government would, from now on, strictly enforce Covid regulations in markets and public places. If the situation does not improve, stricter measures would be enforced, he added.
A similar situation has evolved in Gujarat. Bus services have been suspended in Ahmedabad, all gyms and public parks have been closed, malls and cinema halls will close on weekends. All schools and colleges in most of the cities of Gujarat shall remain closed till April 10. The Gujarat chief minister Vijay Rupani has ruled out a statewide lockdown, but said, Covid norms will now be enforced strictly.
The chief ministers of Delhi and Punjab have called for mass Covid vaccinations, without any hindrances. As of Thursday night, 3.89 crore vaccinations were carried out. Though the figure may appear to be big, it is but a drop in the ocean, in a country of 137 crore people.
While Delhi CM Arvind Kejriwal has requested the Centre to allow vaccination for all, without any restraints, Punjab CM Capt. Amarinder Singh has demanded that people of all age groups must be vaccinated to stop the spread of the second wave of Covid pandemic.
I agree with both the chief ministers. A massive vaccination program must be launched across India, now that the production and distribution of Covid vaccines have been ramped up. Vaccination must begin on a war footing and the speed of vaccination must pick up. All people above the age of 45 years must be allowed to take vaccines, without prior registration or appointment. They should be free to go to any vaccination centre and take the vaccine. I feel, if the production of Covid vaccines is increased at a higher pace, all people above 18 years in India must be vaccinated.
There are millions of people who want to take vaccine but because of the requirement of doctor’s certificates on co-morbidities, they are unable to do so. I have personally got many calls from people, who are in the 45-plus age group. They desperately want to take the vaccine but are unable to do so. If all Indians above the age of 18 years are allowed to take vaccine, the problem of wastage of vaccines can also be solved.
Only a massive Covid vaccination program on a war footing can stop this second wave of pandemic. But one thing must be kept in mind. Vaccine is not the only solution. Everybody will have to scrupulously follow the Covid guidelines: frequent washing of hands, social distancing and compulsory wearing of masks. There must be no complacency on this score, both at the level of authorities and also at the level of common people.
अगर सचिन वाज़े एक्टर है, तो उसका डायरेक्टर कौन है ?
यह बेहद दुखद और चौंकाने वाला मामला है कि कैसे सचिन वाज़े जैसे एक सहायक पुलिस इंस्पेक्टर की करतूतों ने मुंबई पुलिस के माथे पर कलंक लगा दिया। लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या सचिन वाज़े एक बड़े गेम में सिर्फ एक मोहरा है? महाराष्ट्र में पावरफुल राजनीतिक ताकतों द्वारा उसे मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा था? क्या सचिन वाज़े को शिवसेना के बड़े नेताओं ने संरक्षण दिया?
बुधवार को बीजेपी नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बहुत बड़ा आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2018 में जब वे सत्ता में थे तो शिवसेना प्रमुख् उद्धव ठाकरे ने उन्हें फोन कर सचिन वाज़े के निलंबन को खत्म करने और फिर से बहाल करने का अनुरोध किया था। सचिन वाज़े को जबरन वसूली और हिरासत में मौत के आरोप में निलंबित किया गया था।
फडणवीस ने कहा,’ मुझे अभी-भी याद है कि उद्धव जी ने वर्ष 2018 में मुझे फोन किया था। उन्होंने यह पूछा था कि क्या वाज़े को फिर से बहाल करना संभव है? मैंने उन्हें कहा था कि यह संभव नहीं है।’ फडणवीस ने कहा-परमबीर सिंह (जिन्हें मुंबई पुलिस कमिश्नर से हटाया गया), सचिन वाजे छोटे लोग हैं। ये एक बड़े गेम के मोहरे हैं और जब वे मुख्यमंत्री थे तो उनपर विवादों से घिरे इस सहायक पुलिस इंस्पेक्टर को बहाल करने का दबाव डाला गया था।’
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा-‘सबसे अहम सवाल तो ये है कि सहायक पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाज़े को क्यों बहाल किया गया? 2004 में उन्हें सस्पेंड किया गया था। वर्ष 2007 में उन्होंने वीआरएस (स्वैच्छिक सेवनिवृति) के लिए आवेदन दिया। चूंकि उनके खिलाफ जांच चल रही थी इसलिए उनका वीआरएस आवेदन स्वीकृत नहीं हुआ। 2018 में जब मैं मुख्यमंत्री था तो शिवसेना ने वाज़े को बहाल करने के लिए मेरे ऊपर दबाव बनाया। उस वक्त मैंने वाज़े के पुराने रिकॉर्ड देखे, फिर एडवोकेट जनरल (महाधिवक्ता) की राय ली तो उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट की निगरानी में जांच चल रही है। इसके बाद मैंने उसे नहीं बहाल करने का फैसला लिया।’
फडणवीस ने आरोप लगाया कि सचिन वाज़े के शिवसेना नेताओं के साथ ‘व्यापारिक संबंध’ थे। उन्होंने कहा, ‘वाज़े की बहाली (उद्धव ठाकरे के शासन के दौरान) के पीछे के मकसद की भी जांच होनी चाहिए। क्या उन्हें लोगों से जबरन वसूली के लिए वापस लाया गया था? क्योंकि उन्हें मुंबई पुलिस में सबसे अहम भूमिका दी गई थी। पुलिस कमिश्नर के बाद वही नजर आते थे। इसलिए इनके राजनीतिक आकाओं का पता लगाने की जरूरत है, जो अभी-भी अहम मंत्रालयों बने हुए हैं और जिनके इशारों पर वाजे़ अपना खेल कर रहा था।’
ये इल्जाम बेहद गंभीर हैं। ये मामला सिर्फ मुंबई पुलिस की छवि पर दाग का नहीं है बल्कि ये मामला महाराष्ट्र सरकार चलाने वाले लोगों पर सवाल उठाता है। साफ तौर पर कहें तो मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के बाहर जिलेटिन से भरी स्कॉर्पियो और मनसुख हिरेन की हत्या से उठी चिंगारी अब मुंबई के पुलिस कमिश्नर से होती हुई मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे तक पहुंच गई है। यही वजह है कि फडणवीस ने मांग की है कि एनआईए को इस बात की पूरी जांच करनी चाहिए कि वाज़े के राजनीतिक आका कौन हैं, जिनके संरक्षण में वह इन नापाक गतिविधियों को अंजाम दे रहा था।
फडणवीस ने कहा, ‘मैं बार-बार कह रहा हूं कि ये परमबीर सिंह, सचिन वाज़े छोटे लोग हैं। इनके नाम से गुत्थी नहीं सुलझेगी। इस बात की जांच होनी चाहिए कि सचिन वाज़े को ऑपरेट करने वाले कौन से लोग सरकार में बैठे हैं? इनके राजनीतिक आका कौन हैं? परमबीर और वाज़े को ऑपरेट करने वाले लोगों की जांच कौन करेगा? सचिन वाज़े को ऑपरेट करने वाले पॉलिटिकल बॉस (राजनीतिक आका) को ढूंढना पड़ेगा। मुख्यमंत्री जिस तरह से सचिन वाज़े का बचाव कर रहे थे उससे तो ऐसा लगता है कि अगर सबूत नहीं आते तो वाज़े को अबतक महात्मा ठहरा दिया जाता। इस मामले की तह तक जाना होगा और यह पता लगाना होगा कि वाज़े किसके हितों की रक्षा कर रहे थे? जिनके हितों की रक्षा कर रहे थे उनसे वाज़े के कैसे ताल्लुक हैं? इस पूरे लिंक का पता चलना चाहिए।’
देवेन्द्र फडणवीस ने जो इल्जाम लगाए वो बहुत गंभीर हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि देवेन्द्र फडणवीस के पास इल्जामात के पीछे ठोस तथ्य हैं और उनके तर्कों में दम भी है। हर किसी के मन में ये सवाल ये है कि आखिर एक छोटा पुलिस अफसर, सहायक पुलिस इंस्पेक्टर के स्तर का अधिकारी देश के शीर्ष उद्योगपति मुकेश अंबानी को डराने-धमकाने के बारे में सोच भी कैसे सकता है? उसने साजिश रची, पूरे प्लान को अंजाम दिया और फिर सबूत मिटाए । और फिर सरकार ने क्या किया? पूरी जांच उसी के हवाले कर दी।
मैंने दो दिन पहले भी यही बात कही थी कि जो तार जुड़ रहे हैं उससे ऐसा लग रहा है कि सचिन वाज़े को पूरा यकीन था कि कोई भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। वह सोचता था-‘सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का’। देवेन्द्र फडणवीस ने भी बुधवार को यही कहा कि सचिन वाज़े को एक सहायक पुलिस इंस्पेक्टर समझना बड़ी गलती है। उसका रुतबा मुंबई पुलिस में कमिश्नर के बाद सबसे ज्यादा था। वह मुख्यमंत्री की ब्रीफिंग में दिखता था, वह राज्य के गृह मंत्री के साथ मौजूद रहता था।
देवेन्द्र फडणवीस ने दूसरा गंभीर इल्जाम ये लगाया कि सचिन वाज़े को सरकार ने वसूली अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया था। वह अपने राजनीतिक आकाओं के लिए जबरन वसूली करता था। फडणवीस ने आरोप लगाते हुए कहा-‘मुंबई के जितने सारे हाई प्रोफाइल केस थे वे सब क्राइम इन्वेस्टिगेशन यूनिट (सीआईयू) के.पास जाते थे जिसका हेड वाज़े था। बादशाह रैपर केस, ऋतिक रोशन फर्जी ईमेल जैसे सारे केस सीआईयू को सौंपे गए। हालांकि इुन मामलों को सीआईयू को सौंपने का कोई कारण नहीं था, इन मामलों को रीजन में जाना था। वाज़े शिवसेना के मंत्री के साथ भी दिखते थे। उन्हें मुंबई में डांस बार चलाने की इजाजत देने के लिए अधिकार दिए गए थे। हमें लगता है कि सीआईयू के प्रमुख के तौर पर नहीं बल्कि वसूली अधिकारी के तौर पर उनको बैठाया गया।’
ये बात तो मुंबई पुलिस में हर कोई मानता है कि सचिन वाज़े की पहुंच ऊपर तक थी। वो सरकार का सबसे पसंदीदा और दुलारा अधिकारी था। उसकी धमक हर थाने में थी। लेकिन फडणवीस के सवाल आसानी से उद्धव ठाकरे का पीछा नहीं छोड़नेवाले हैं। फिलहाल सबके मन में एक बड़ा सवाल ये है कि सचिन वाज़े भले ही मोहरा हो लेकिन उसके जरिए जिस साजिश को अंजाम दिलवाया गया, उसके पीछे मसकद क्या था? मुकेश अंबानी के घऱ के बाहर बारूद से भरी गाड़ी पार्क करके सचिन वाज़े के राजनीतिक आका क्या चाहते थे?
यही सवाल जब देवेन्द्र फडणवीस से पूछा गया तो उन्होंने कहा-‘मकसद तो राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की जांच में सामने आएगा। लेकिन ऐसा लगता है कि इन्होंने इस कारनामे से एक बड़ा मैसेज देने की कोशिश थी। और हो सकता है ‘फिरौती’, ‘वसूली’, ‘एक्सटॉर्शन’ जैसे शब्द मुंबई में फिर सुनने को मिलें।’ अब सवाल ये है कि अगर सचिन वाज़े मुंबई पुलिस पर इस कलंकगाथा का सिर्फ एक एक्टर है तो फिर इसका डायरेक्टर कौन है? इस डायरेक्टर तक पहुंचे बिना ये नहीं पता चलेगा कि मुकेश अंबानी को डराने का और सचिन वाज़े को इतनी ताकत देने का मकसद क्या था?
Sachin Vaze was a mere actor, who was the director behind the whole episode?
It is both saddening and shocking how a mere assistant police inspector like Sachin Vaze brought disrepute to Mumbai Police, but the bigger question is: How he was being used as a pawn by powerful political forces in Maharashtra? Did top leaders of Shiv Sena provide support and protection to Sachin Vaze?
On Wednesday, BJP leader and former CM Devendra Fadnavis alleged that in 2018, when he was in power, Shiv Sena chief Uddhav Thackeray personally called him up and requested him to reinstate Sachin Vaze, who was under suspension on charges of extortion and custodial death.
Fadnavis said, “I still remember, Uddhav Ji had telephoned me in 2018, asking if it was possible to reinstate Waze. I had said it was not possible.” He said, Sachin Vaze and Parambir Singh (who was removed from the post of Mumbai Police Commissioner) were just pawns in a larger game, and when he was CM, he was pressured to reinstate the controversial assistant inspector.
The former CM said, “there is an important question, why was API Sachin Vaze reinstated? He was suspended in 2004. He applied for VRS in 2007. His VRS request was not accepted because there was an inquiry pending against him. When I was CM in 2018, Shiv Sena had been pressurizing us to reinstate Vaze. At that time, I reviewed his past record, I took the advice of the then Advocate General, who told me that there was an inquiry going on by the High Court. That is when I decided against reinstating him.”
Fadnavis alleged that Sachin Vaze had “business relations” with active Shiv Sena leaders. He said, “there should also be a probe into the motive behind his reinstatement (during Uddhav Thackeray’s rule). Was he brought back to extort money from people, because he was given the most important role in Mumbai Police, only next to the police commissioner?.. Therefore, there is a need to find out the political bosses, who are still holding important portfolios, at whose behest Vaze was operating.”
These are serious allegations. The image of Mumbai Police and the role of those who are running the state government is now under question. To put it bluntly: the sparks that flew from the Antilia explosives incident and Mansukh Hiren murder, have now reached the office of Chief Minister Uddhav Thackeray, dislodging the city police commissioner in its wake. That is why Fadnavis is demanding that the NIA must probe who were the political bosses under whose patronage Sachin Vaze was carrying out his nefarious activities.
Fadnavis said, “I am saying this again and again. Vaze and Parambir Singh are small timers. Who are their political bosses? Who will probe the leaders at whose instances these two were working? Look at the manner in which the chief minister was defending Sachin Vaze. Had there been no evidences against him, he would have become a mahatma (great soul) by now. We have to go deep into this matter and find out whose interests Vaze was protecting, because of which he was reinstated. We have to find out the links.”
Fadnavis is making these serious allegations based on evidences and his arguments are logical. The talk of the town now is how could a small-time police officer had the gumption to intimidate India’s top industrialist by parking a vehicle filled with explosives? Vaze planned the plot, he executed it and then went on to remove evidences about his involvement. What did the government do? It handed over the responsibility of investigation into Antilia case to Vaze!
I had said this two days ago: the pointers clearly indicate Vaze was acting as if nobody could challenge him because of the patronage from his political masters. Devendra Fadnavis said the same thing on Wednesday. He said, it would be incorrect to think that Vaze was a mere assistant inspector, he was wielding more power than that of the police commissioner. He was seen at briefings by the chief minister, he was seen with the state home minister.
The second serious allegation that Fadnavis levelled was that Vaze was acting as money collector for his political bosses. Fadnavis alleged: “All the high profile cases in Mumbai, like the Badshah rapper case and Hrithik Roshan fake email case were handed over to Crime Investigation Unit headed by Vaze. He was seen with top Shiv Sena leaders. He was given powers to allow dance bars in Mumbai. I think he was appointed as collection officer by his bosses.”
It is an open fact that Sachin Vaze was feared by police officers in most of the police stations. He was the blue-eyed boy of the state government. The questions raised by Fadnavis are not going to leave Uddhav Thackeray easily. If Vaze was a pawn, what was the real motive behind intimidating Mukesh Ambani by planting a vehicle filled with explosives? What was the motive of his political handlers?
To these questions, Fadnavis said, it was for the NIA to probe and find out. It seems a bigger message was sought to be conveyed by planting the explosives. It could be that the motive was to bring words like ‘ransom’, ‘extortion’ back into the crime lexicon of Mumbai. Was Sachin Vaze only an actor, then who was his director? Till the time, this is not revealed, the real motive behind planting explosives outside Antilia cannot be brought to light.
यूपी में योगी आदित्यनाथ ने अवैध रूप से बने धार्मिक स्थलों को हटाने का उठाया बीड़ा
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार ने सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से बनाए गए करीब 40 हजार धार्मिक स्थलों को हटाने का बड़ा अभियान शुरू किया है। योगी सरकार ने जिन धार्मिक स्थलों को हटाने का बीड़ा उठाया है उनमें मंदिर, मस्जिद और मजार भी शामिल हैं। राज्य सरकार यह कार्रवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच के 3 जून 2016 के उस आदेश का पालन करते हुए कर रही है जिसमें कहा गया है कि सरकार एक जनवरी 2011 के बाद सार्वजनिक जगहों पर अवैध तरीके से बनाए गए धार्मिक स्थलों को हटाए ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश को अब करीब पांच साल के बाद सख्ती से लागू किया जा रहा है। 12 मार्च को राज्य के गृह विभाग ने सभी जिला कलेक्टरों और पुलिस प्रमुखों को निर्देश जारी किया कि वर्ष 2011 से लेकर अब तक सड़कों या सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर बनाए गए सभी धार्मिक स्थलों को हटाया जाए । योगी आदित्यनाथ ने अफसरों को सख्ती से इस आदेश का पालन करने की हिदायत दी है और दो महीने के भीतर इस आदेश पर हुई कार्रवाई की पूरी रिपोर्ट मांगी है।
योगी सरकार की तरफ से इस संबंध में सभी जिला कलेक्टरों को एक सर्कुलर भेजा गया है। इस सर्कुलर के जरिए यह निर्देश दिया गया है कि 1 जनवरी 2011 या उसके बाद सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर बनाया गया कोई भी धार्मिक स्थान, चाहे वो मंदिर हो, मस्जिद या मज़ार, उसे वहां से हटाया जाए। संबंधित धार्मिक स्थलों का रखरखाव करने वालों से उसे 6 महीने के अंदर दूसरी जगह प्राइवेट जमीन पर शिफ्ट करने के लिए कहा जाए, अगर ऐसा नहीं होता है तो संबंधित धार्मिक स्थल को वहां से हटा दिया जाए। इतना ही नहीं योगी सरकार ने इस संबंध में जारी आदेश के अनुपालन को लेकर भी रिपोर्ट मांगी है। अधिकारियों ने क्या कार्रवाई की, अतिक्रमण कब तक खाली होगा, इसे हटाया जाएगा या शिफ्ट होगा, अधिकारियों को इसकी पूरी रिपोर्ट शासन को भेजनी होगी। अगर हाईकोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया जाता है तो संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाएगी।
राज्य सरकार के सूत्रों की मानें तो पिछले 10 वर्षों में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर बड़े पैमाने पर अवैध रूप से धार्मिक स्थलों का निर्माण किया गया। 2009 के बाद तत्कालीन बीएसपी सरकार ने एक सर्वे किया था जिसमें अवैध रूप से निर्मित करीब 40 हजार धार्मिक स्थलों की पहचान की गई थी।
योगी सरकार के इस पूरे अभियान का सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि ये पूरी कवायद उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में की जा रही है, जहां राजनीति में धर्म और जाति का बोलबाला है, जहां मज़हब के नाम पर सरकारें बनती-बिगड़ती हैं। इस पूरे अभियान में अभी तक कहीं से भी झगड़े और झंझट की खबरें नहीं आई हैं। न कहीं नारेबाजी हुई है और न विरोध प्रदर्शन और न ही सियासत। ये इसलिए संभव हो पा रहा है क्योंकि यहां सरकार का इकबाल है।
अधिकारियों को अपने काम के लिए बिल्कुल फ्री हैंड दिया गया है, काम में किसी तरह की कोई दखलंदाजी नहीं है। ये नहीं देखा जा रहा है कि जमीन पर कब्जा करके मंदिर बनाया गया है या फिर मस्जिद। ये भी नहीं देखा जा रहा है कि कब्जा करने वाले किस पार्टी के समर्थक हैं, किस दल के वोटर हैं। सिर्फ जमीन के कागज देखे जा रहे हैं और सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक जमीन पर मार्किंग की जा रही है। अगर पूरा मंदिर सरकारी जमीन पर बना है या सड़क के किनारे अतिक्रमण करके बनाया गया है और लोगों को उसकी वजह से मुश्किल हो रही है तो फिर पूरा मंदिर हटाया जा रहा है। अगर मंदिर या मस्जिद का कुछ हिस्सा ही सरकारी जमीन पर है तो फिर उतना हिस्सा ही हटाया जा रहा है।
ये मुहिम उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में चल रही है। इंडिया टीवी के संवाददाताओं ने लखनऊ, बाराबंकी और गाजियाबाद में अवैध रूप से अतिक्रमण कर बनाए गए धार्मिक स्थलों की रिपोर्ट भेजी है। उदाहरण के तौर पर बाराबंकी के फतेहपुर में रोड के किनारे बनी मजार को शिफ्ट कर दिया गया है। उसी तरह लखनऊ में भी रोड पर मंदिर के नाम पर हुए कब्जे को हटा दिया गया है। असल में योगी आदित्यनाथ ने अफसरों को निर्देश दिया है कि 1 जनवरी 2011 या उसके बाद कोई भी धार्मिक स्थल अगर सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके बनाया गया है तो उसे फौरन हटाया जाए। वहीं अगर अतिक्रमण कट ऑफ डेट से पहले का है तो संबंधित धार्मिक स्थल को हटाने लिए इससे जुड़े न्यास या रखरखाव करनेवालों को छह महीने का समय दिया जाए।
दरअसल सितंबर 2009 में ही सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था कि मंदिर, चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारे के नाम पर सार्वजनिक स्थानों या सड़कों पर किसी भी तरह के अनधिकृत निर्माण की इजाजत नहीं दी जाएगी। अपने इसी आदेश को दोहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2011 में सड़क, फुटपाथ या अन्य सार्वजनिक इस्तेमाल वाली जगहों पर प्रतिमा स्थापित करने या अन्य किसी प्रकार के निर्माण की इजाजत देने से राज्य सरकारों को रोक दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने उस वक्त केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से कहा था, ‘ नाले के किनारे, तंबाकू-गुटखा बेचने वाले छोटी दुकानों के पास मंदिरों और मस्जिदों का निर्माण भगवान का अपमान है। इस तरह का निर्माण किसी आस्था की वजह से नहीं होता बल्कि लोग पैसा कमाने के लिए ऐसा करते हैं। राज्य सरकारों को उन्हें हटाना होगा। ”
अब जब योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इस महत्वपूर्ण काम को अंजाम देना शुरू किया है तो सभी राजनीतिक दलों की ये जिम्मेदारी है कि वे इस अभियान को अपना समर्थन दें। उत्तरप्रदेश में जो हो रहा है, वो दूसरे राज्यों के लिए नजीर है।
योगी आदित्यनाथ ने जो किया वो बहुत हिम्मत का काम है क्योंकि कोई भी नेता न हिन्दुओं को नाराज़ करने का जोखिम उठाता है और न मुसलमानों को। चुनाव जीतने के लिए दोनों के वोट की जरूरत होती है। मंदिर टूटने से हिन्दू नाराज हो सकते हैं, मजार या मस्जिद टूटने से मुसलमान नाराज हो सकते हैं। लेकिन योगी ने नाराजगी की चिन्ता करने के बजाए आम लोगों की सहूलियत को ध्यान में रखा। लोगों को कहीं आने-जाने में किसी तरह की असुविधा न हो इसका ख्याल रखा। दरअसल, पिछली सरकारों के उदासीन रवैए के चलते हर शहर की ये बड़ी समस्या है कि कहीं प्लेटफॉर्म पर मजार बनी है तो कहीं चौराहे पर बीचों-बीच मंदिर बना है।जहां जिसके मन में आता है वो एक मूर्ति रखकर चला जाता है और लिख देता है कि ये प्राचीन मंदिर है। इसके बाद उसे वहां से कोई नहीं हटाता है। सरकारी जमीन पर कब्जा करने का ये सबसे अच्छा और आसान तरीका बन गया है।
अभी हाल का उदाहरण आपको देता हूं। इसी साल तीन जनवरी को दिल्ली के चांदनी चौक में बीच सड़क पर बने हनुमान मंदिर को दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर हटाया गया। इसके कुछ दिन के बाद 21 फरवरी को आधी रात के वक्त मंदिरनुमा स्टील के फ्रेम को सड़क पर रखकर फिर से हनुमान जी की वही मूर्ति रख दी गई। जबकि इस मूर्ति को हटाने के बाद नगर निगम के स्टोर में रखा गया था और वहां से इसे बड़े रहस्यमयी तरीके उठाकर मंदिरनुमा स्टील फ्रेम के अंदर रख दिया गया। और फिर से पूजा-पाठ शुरू हो गया। बड़ी बात ये है कि आधी रात में इस मंदिर के ‘जीर्णोद्धार’ में उत्तरी एमसीडी के मेयर, स्थानीय पार्षद और अन्य नेताओं ने हिस्सा लिया। बीजेपी और आम आदमी पार्टी, दोनों दलों के नेताओं ने दावा किया कि चांदनी चौक के लोगों ने मंदिर की फिर से स्थापना की है। वहां बीजेपी के नेता भी राम-नाम का जप करने पहुंचे और आम आदमी पार्टी के नेता भी हनुमान चालीस पढ़ने लगे वहीं कांग्रेस के नेता मूर्तियों को साष्टांग प्रणाम करते नज़र आए। तीनों पार्टियों के नेताओं ने ये सोचा कि भक्त नाराज ना हो जाएं। आपको बता दें कि दिल्ली नगर निगम के चुनाव अगले साल अप्रैल में होने वाले हैं।
दरअसल धार्मिक आधार पर वोट खोने के डर की वजह से राजनीतिक नेता इस तरह के अतिक्रमण और अवैध निर्माण की इजाजत देते हैं। वह काम जिसमें मंदिरों को भी गिराना शामिल हो, योगी आदित्यनाथ के लिए आसान नहीं है क्योंकि उनकी छवि एक राम भक्त की है। योगी अपने समर्थकों को कट्टर हिन्दू दिखते हैं। इसीलिए मेरा कहना है कि योगी आदित्यनाथ ने जो काम किया है, वो हिम्मत का काम है और इसका समर्थन करना चाहिए।
Yogi Adityanath has taken up a big task of removing illegally built religious shrines in UP
The UP government led by Chief Minister Yogi Adityanath has embarked upon a gigantic task of demolishing more than 40,000 religious shrines like temples, mosques and mazaars(tombs) built illegally on government land. This follows an order from the Lucknow bench of Allahabad High Court dated June 3, 2016, in which the state government was asked to remove or shift these illegal shrines that were built by encroaching on public property after January 1, 2011.
This order is now being implemented vigorously after a gap of nearly five years. On March 12 this year, the state home department issued instructions to all district collectors and police chiefs to demolish or shift all religious shrines built illegally since 2011 on roads or near the roads on government land. The Yogi government has sought a compliance report within two months.
The circular sent to all district collectors states that religious sites built on government land before January 1, 2011, should be transferred to a private property proposed by the followers of the respective religious site or the persons responsible for its management within six months. A compliance report must be sent to the government. If the High Court’s orders are not obeyed, the officials concerned will be held responsible.
According to state government sources, the number of religious shrines built on illegally encroached government land has increased considerably in the last ten years. The former BSP government, after 2009, had conducted a survey in which nearly 40,000 illegally built religious sites had been identified.
The most surprising aspect of this operation is that this is being carried out in a state like Uttar Pradesh, where religion and caste issues dominate political discourse. Till date, there have been no protests or demonstrations or political sword rattling, and it is indicative of the political dominance that the state government presently enjoys.
This is because the authorities have been given a free hand: no discrimination on grounds of religion or caste, no differentiation between a temple, or a mosque or a mazaar, no fine tuning to check whether the organizers support which political party or leader. Only documents are being checked and the plots are being marked and mapped. If a temple is found built on government land, the temple is being removed or if any part of the shrine has encroached public land, that portion is being demolished.
This work is currently in progress in all districts of UP. India TV reporters went to the illegally encroached spots in Lucknow, Barabanki and Ghaziabad and sent their reports. For example, in Barabanki, a mazaar built near a road in Fatehpur has been shifted, temples built on roads in Lucknow are being removed. The order is clear: if the illegal encroachment was made after 2011, the shrines should be removed immediately, and if the encroachment is prior to the cut-off date, six months’ time is being given to remove the shrine.
In September, 2009, the Supreme Court had ruled no unauthorized construction shall be permitted in the name of temple, church, mosque or gurdwara on public streets, public parks or places. Reiterating its order, the Supreme Court, in 2011, had restrained state governments from granting permission to install statue or erect any structure on public roads, pavements, sideways and other public utility spaces.
The court had then told the Additional Solicitor General, appearing for the Centre: “Construction of temples and mosques near drains and kiosks selling tobacco products is an insult to God. This is not due to faith but because people want to make money. The states must remove them.”
Now that the UP government led by Yogi Adityanath has undertaken this onerous task, it is the responsibility of all political parties to lend support to this operation. This should serve as an example for other state governments too.
Yogi Adityanath has taken a bold step, because no political leader would ever dare antagonize voters, whether Hindu or Muslim. Without pandering to religious communities, Yogi kept the interests of people uppermost in his mind so that they can travel or walk without hindrance. Due to indifferent attitude of past governments, mazaars were even built on railway platforms, while temple or mosques were built right in the middle of roads or at busy crossings.
On January 3 this year, a Hanuman temple built on the central verge of Delhi’s Chandni Chowk was removed on Delhi High Court orders. On February 21, the steel frame of the temporary shrine was erected again in the middle of the road, and the idol of Lord Hanuman, that had been kept in a store of Municipal Corporation, was mysteriously ‘lifted’ and placed inside the temple. The ‘restoration’ of the shrine at midnight was attended by none other than the Mayor of North MCD, the local councillor and other leaders. Both the BJP and AAP leaders claimed that the “people of Chandni Chowk” have restored the shrine. Both the parties said they had no issue with it. The Delhi municipal elections are due in April next year.
It is because of the fear of losing votes on religious grounds that political leaders allow such illegal encroachments to take place. Nowadays leaders from different political parties are offering prayers in temples and reciting Hanuman Chalisa and other shlokas at rallies, with an eye on Hindu voters. It is in this backdrop that the UP chief minister Yogi Adityanath has taken up this bold task of removing religious shrines in his state.