मोदी के शब्द और आंसू लोकतंत्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं
संसद में मंगलवार को राजनीति का वह चेहरा देखने को मिला जिसका मुझे हमेशा इंतजार रहता है। इस दिन देश के सबसे बड़े नेता ने विरोधी दल के नेता को विदाई देते हुए उनकी संवेदना को याद करके आंसू बहाए।
मंगलवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से एक और राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद की विदाई का दिन था। उनके लिए दिए गए अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 साल पहले श्रीनगर में हुए एक आतंकवादी हमले को याद किया, जब आजाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। आतंकवादियों ने गुजरात के पर्यटकों को ले जा रही एक बस पर ग्रेनेड फेंका था, जिसमें 4 पर्यटकों की मौत हो गई थी।
मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे। मोदी ने मंगलवार को कहा, ‘इस घटना के बाद सबसे पहले गुलाम नबी जी ने मुझे फोन किया था। उस फोन कॉल के दौरान वह लगातार रोते रहे। आजाद जी और प्रणब जी ने घटना में मारे गए लोगों के शवों को सेना के विमान से भेजने के लिए जितने प्रयास किए थे, वह मैं कभी नहीं भूलूंगा।’ आजाद उस दौरान खुद एयरपोर्ट गए थे, हमले में अपने लोगों को खो चुके परिवारों से उन्होंने हाथ जोड़कर माफी मांगी थी और और प्लेन के गुजरात पहुंचने तक मोदी के संपर्क में रहे।
जब आजाद ने बताया कि कैसे उन्होंने मोदी को फोन किया और उनसे कहा कि वह हमले में मारे गए बच्चों के मां-बाप का सामना आखिर कैसे करेंगे, तो उनकी आंखों में आंसू थे। आजाद ने कहा, ‘वे यहां घूमने-फिरने के लिए आए थे और मैं उनके परिजनो की लाशों को वापस भेज रहा हूं।’
मोदी ने कहा, ‘उनके (आजाद) आंसू नहीं रुक रहे थे, उन्होंने मुझसे परिवार के किसी सदस्य की तरह बात की। सत्ता आती और जाती है, लेकिन बहुत कम लोगों को इसे पचाना आता है। एक मित्र के रूप में घटना और अनुभवों के आधार पर मैं उनका आदर करता हूं।’ जब दोनों नेता भावनाओं से भरे हुए ये भाषण दे रहे थे तो पूरा सदन खामोश होकर सुन रहा था। सदन के सदस्य मोदी और आजाद की स्नेह भरी बातें सुनकर मेजें थपथपा रहे थे।
जो लोग मोदी को करीब से नहीं जानते उन्हें मंगलवार को मोदी की आंखों में आंसू देखकर आश्चर्य हो सकता है, लेकिन मैं अच्छे से जानता हूं कि मोदी ऊपर से जितने सख्त दिखते हैं, दिल के उतने ही नरम हैं और काफी इमोशनल हैं। जब बात जिम्मेदारी की हो, जब बात ड्यूटी की हो. तो मोदी सख्त प्रशासक होते हैं। लेकिन जब बात रिश्तों की हो, जनता के दुख दर्द की हो तो मोदी भावुक हो जाते हैं। मैंने कई बार उनकी आंखों में आंसू देखे हैं। बहुत-सी ऐसी घटनाएं हैं जब मैंने उन्हें भावुक होते हुए देखा है।
मंगलवार को आजाद की तारीफ करते हुए मोदी ने कहा कि कि गुलाम नबी आजाद भले ही सदन से रिटायर हो गए हों, लेकिन वह देश की बेहतरी के लिए काम करते रहेंगे। मोदी ने कहा, ‘वह भले ही राज्यसभा के मेंबर न रहें, लेकिन प्रधानमंत्री के घर के दरवाजे उनके लिए हमेशा खुले रहेंगे।’
मैं नरेंद्र मोदी को पिछले 40 साल से जानता हूं, और गुलाम नबी आजाद को भी तब से जानता हूं जब वो यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष थे और मैं एक रिपोर्टर था। अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर मैं कह सकता हूं कि ये दोनों नेता भले ही सियासत के कितने भी चतुर खिलाड़ी हों, लेकिन जब आपसी रिश्तों की बात आती है तो दोनों हमेशा दिल हारने को तैयार रहते हैं। दोनों भावनाओं से भरे हैं, नरम दिल के हैं और दूसरों को कष्ट में नहीं देख सकते।
कुछ लोग यह कह सकते हैं कि मोदी को इस तरह राज्यसभा में सार्वजनिक रूप से आंसू नहीं बहाने चाहिए थे, क्योंकि रोना कमजोरी की निशानी है। लेकिन मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री भी तो इंसान हैं, उनमें भी भावनाएं हैं और जब भावनाओं के समंदर में ज्वार उठाता है तो उसका बह जाना ही ठीक है। जब मंगलवार को मोदी के आंसू निकले तो इससे देश को कम से कम ये तो पता लगा कि उनका नेता निश्छल है, उसके सीने में भी एक दिल धड़कता है। देश के लोग यह तो जान गए कि उनका नेता विरोधियों का सम्मान करना, और व्यक्तिगत रिश्तों को निभाना जानता है। वह विरोधियों की तीखी आलोचना भूलना जानता है, और जो देश के लिए अच्छा है उसे डंके की चोट पर अच्छा कहना जानता है।
यही हमारे देश के लोकतन्त्र की ताकत है, यही मजबूती है। यहां विरोध का मतलब व्यक्तिगत दुश्मनी या बैर नहीं है। सब के लिए लोकतंत्र पहले है, देश पहले है। इसीलिए मंगलवार को गुलाम नबी आजाद ने कहा कि वह मुसलमान हैं, पक्के मुसलमान हैं और उन्हें फक्र है कि वह हिन्दुस्तानी मुसलमान हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया में मुसलमानों के लिए हिंदुस्तान से बेहतर, हिंदुस्तान से महफूज कोई और जगह नहीं है। आजाद ने कहा, ‘पाकिस्तान की हालत देखता हूं तो मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि पाकिस्तान नहीं गया। अपने हिंदुस्तानी मुसलमान होने पर फख्र होता है। दुनियाभर में सबसे ज्यादा गर्व हिंदुस्तानी मुसलमान को होना चाहिए। मुस्लिम देशों की हालत खराब हो रही है। वे आपस में ही लड़कर खत्म हो रहे हैं।’
जो लोग देश में मुसलमानों को भड़काने की कोशिश करते हैं, मुसलमानों को डराने की कोशिश करते हैं, उन्हें गुलाम नबी आजाद की ये बात बार-बार सुननी चाहिए। गुलाम नबी आजाद ने कहा कि वह जम्मू के उस इलाके से आते हैं जहां मुसलमानों की संख्या सबसे ज्यादा है, लेकिन उन्हें इस बात को गर्व है कि स्टूडेंट पॉलिटिक्स के टाइम से ही उन्हें हिंदू कश्मीरी पंडितों के 100 प्रतिशत वोट मिले। गुलाम नबी कहा कि लेकिन जब जब वह कश्मीरी पंडितों के दर्द के बारे में सोचते हैं, पुराने दिनों को याद करते हैं तो बहुत तकलीफ होती है। वह चाहते हैं घाटी में दहशतगर्दी का खात्मा हो, उजड़े आशियाने फिर बसें और विस्थापित कश्मीरी पंडित फिर अपने घरों को वापस लौटें।
गुलाम नबी आजाद सच्चे देशभक्त हैं। जब वह जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे, तब मैंने उन्हें आंतकवाद का बड़ी हिम्मत से मुकाबला करते हुए देखा है। मुझे याद है कि एक दिन मैं श्रीनगर में उनके घर पर था। हम लंच करने के लिए टेबल पर बैठे ही थे कि फोन पर आतंकवादी हमले की खबर मिली। हम दोनों ने अपना खाना छोड़ा और वहां पहुंचे जहां एनकाउंटर हुआ था। मैं उनके साथ खड़ा था और वह पुलिसवालों से घटना के बारे में जानकारी ले रहे थे कि तभी अचानक गोलियों की आवाज आई। पता चला कुछ आंतकवादी पास की बिल्डिंग में छुपे हुए थे। सिक्यॉरिटी वालों ने लगभग जबरदस्ती करके आजाद को गाड़ी में बैठाया और हमें वहां से जाने के लिए कहा। आजाद ने उनसे कहा कि आप अपना काम करें, लेकिन कोई दहशतगर्द बचना नहीं चाहिए। उन्होंने पुलिस वालों से कहा, ‘मैं आपके साथ चट्टान की तरह खड़ा हूं।’
मैं आज भी वह मंजर याद करता हूं तो आजाद को सलाम करने को जी चाहता है। आजाद जैसे नेताओं ने आतंकवाद को खत्म करने के लिए संघर्ष किया और पिछले 6 साल में नरेंद्र मोदी ने आतंकवादियों के सीने में मौत का खौफ भर दिया है। घाटी के हालात में बड़ा बदलाव आया है, और राज्यसभा में इस बात की तारीफ किसी और ने नहीं बल्कि महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के एक सांसद ने की। मीर मोहम्मद फैयाज ने उज्ज्वला और विकास की अन्य योजनाओं को जम्मू-कश्मीर में लाने के लिए केंद्र सरकार की तरीफ की। उन्होंने इस बात की भी तारीफ की कि केंद्र सरकार के मंत्रियों ने कश्मीर के किसी काम के लिए मना नहीं किया। उन्होंने कहा, कश्मीर में अब तरक्की आ रही है और जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ स्थानीय अधिकारियो को विभिन्न योजाओं के लिए ज्यादा फंड मिल रहा है।
पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को समाप्त किए जाने पर बेहद कड़ी चेतावनी देते हुए ठीक विपरीत बात कही थी। उन्होंने तब कहा था कि अगर आर्टिकल 370 हटा तो कश्मीर में तिरंगा उठाने वाला कोई नहीं मिलेगा और खून की नदियां बह जाएंगी। पर आज कश्मीर में विकास की लहर दिखाई दे रही है। आज 4G इंटरनेट सर्विस वापस आ गई है, स्कूल और कॉलेज खुलने लगे हैं, अस्पताल और सड़कें बेहतर हालत में हैं। लोगों को बिजली-पानी मिले, रोजगार मिले, इस दिशा में काम शुरू हो चुका है।
सबने माना कि कश्मीर में डिवेलपमेंट काउंसिल के चुनावों में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं हुई, और अब कश्मीर में जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत देखने को मिल रही है। मुझे पूरा यकीन है कि अब वह दिन भी जल्दी ही आएगा जब कश्मीर के नौजवानों के एक हाथ में राइफलों की जगह लैपटॉप होंगे, कश्मीरी पंडित बेखौफ होकर अपने घर लौट सकेंगे और कश्मीर के मंदिरों में घंटियों की गूंज सुनाई देगी। तब कश्मीर के लोगों को इस बात पर गर्व होगा कि वे हमारे महान देश का हिस्सा हैं। पूरे हिंदुस्तान को उस दिन का इंतजार है और मुझे यकीन है कि वह दिन जल्दी आएगा।
Modi’s tears and words: Commitment to democracy
Parliament was witness to poignant scenes of emotion on Tuesday when the nation’s tallest leader had tears in his eyes when he was bidding farewell to the leader of the opposition. This was a unique moment which I was praying for, since decades.
It was a day of farewell for Ghulam Nabi Azad, one of the senior Congress leaders and Leader of Opposition in Rajya Sabha. In his speech bidding adieu to Azad, Prime Minister Narendra Modi recollected a terror attack that took place in Srinagar 14 years ago, when Azad was the chief minister of Jammu & Kashmir. Terrorists had lobbed a grenade at a bus carrying tourists from Gujarat, in which four tourists died.
Modi was then the chief minister of Gujarat. On Tuesday, Modi said:“Ghulam Nabi ji was the first to call me after the incident. During that call he could not stop crying…I will never forget the efforts made by Azad ji and Pranab Ji in sending the bodies of those killed in an army transport aircraft to Gujarat.” At that time, Azad had personally gone to the airport, sought forgiveness from the surviving tourists and stayed in touch with Modi till the aircraft reached Gujarat.
Azad had tears in his eyes when he narrated how he called Modi and told him how he would face the parents of the children who died in the attack. “They had come here for tourism and I am sending back the bodies of their loved ones”, said Azad
Modi said: “He (Azad) could not stop crying, he talked to me like a family member. Power comes and goes but very few know how to handle it. I respect him as a friend because what he had done over these years.” The entire House watched in stunned silence as both the top leaders made emotional speeches. Members thumped their desks in appreciation of the words of affection from both Modi and Azad.
People who have never seen Modi weeping may have been surprised over Tuesday’s incident, but I know it for sure that though Modi appear tough on surface, he has a soft heart that can sway with emotion. Modi is always tough when duty beckons. At such times, he is a tough administrator and a negotiator. But in matters of relationships and in situations where the needy require help, Modi becomes emotional. I have seen tears in Modi’s eyes several times in the past when he was overcome with emotion.
On Tuesday, Modi, while praising Azad, said though he may have retired but he would continue to work for the betterment of the nation. “He may not continue as member of Rajya Sabha, but the doors of Prime Minister’s residence will always remain open for him”, Modi said.
I know Narendra Modi for the last 40 years, and I have known Ghulam Nabi Azad since the time when he was the chief of Indian Youth Congress. I was then a reporter. Based on my personal experience with both the leaders, I can certainly say that even though both of them are shrewd political players, but when matters of relationships arise, heart rules over mind. Both of them have soft corners in their hearts and they often become emotional.
Some critics may question why Modi wept publicly in Rajya Sabha, because a Prime Minister should never appear weak by shedding tears in public. But, I believe, a Prime Minister is also a human being, and if one is overcome with waves of emotion, it is better to allow tears to provide a channel for emotion. At least, on Tuesday, the nation came to know that the Prime Minister has a soft heart inside, he knows how to offer respect to those in the Opposition, and how he values personal relationships. He has a large heart to face the most vitriolic attack from the opposition, and has also the strength to say what is right for the nation.
This is the inherent strength of our strong democracy, where dissent is not translated into personal enmity. The nation is first and foremost, our democracy should rule supreme. That is why, on Tuesday, Ghulam Nabi Azad said, he was proud to be an Indian Muslim and there is no place on earth except India, that is the safest for Muslims. Azad said, “When I look at Pakistan, I feel how fortunate are we. We feel proud to be Indian Muslims because there are many Islamic countries which are racked with infightings among Muslims. They are destroying themselves.”
Those who try to instigate and instil fear among Muslims in India must watch what Azad said in the Rajya Sabha on Tuesday. Azad said, he comes from a place in Jammu region in a state where Muslims are in majority, but whenever he contested student union elections, he got 100 per cent votes from Hindu Kashmiri Pandits. But when he finds the conditions in which Kashmiri Pandits are living, he has a feeling of sorrow for them. He wants that militancy should end with the Valley and the Pandits must return to their homes.
Ghulam Nabi Azad is a true patriot. I recall an incident that took place when he was the CM. He had invited me over lunch. At lunch, he got information that there had been a terrorist attack and an encounter was in progress. Both of us left the lunch and left for the scene of encounter. Even as the chief minister was taking updates from his officials, shots rang out from inside a building, and security personnel practically forced the CM to sit in his vehicle and leave. Azad told the officials to carry on with their task, and that not a single terrorist must survive. “I stand with you like a rock”, he told the police officers.
Today, when I recollect that incident, I want to salute Azad for his exemplary work. Leaders like Azad fought militancy over the years, and in the last six years, it is Modi who has struck fear in the hearts of terrorists. The situation in the Valley has undergone a major transformation, and the praise came from none other than an MP from Mehbooba Mufti’s People’s Democratic Party in Rajya Sabha. Mir Mohammed Fayaz, praised the Centre for bringing Ujjwala and other developmental schemes to Jammu and Kashmir. He appreciated the fact that Union Ministers were now listening to the issues concerning the state. He said, Kashmir was now witnessing major strides in development and people’s representatives and local officials were now getting more funds for different schemes.
Contrast this with the dire warning that PDP chief Mehbooba Mufti gave when Article 370 was abolished in Jammu and Kashmir on August 5, 2019. She had then said that rivers of blood will flow in the valley and there will not be a single person to carry the tricolour. Today 4G internet service is back, schools and colleges are reopening, hospitals and roads are in better shape, and work is going on fast to provide jobs, electricity and water to the people.
There were free and fair elections for District Development Councils recently, and the atmosphere is now ripe for ‘Jamhooriyat, Kashmriyat, Insaaniyat’. I am sure the days will soon return when the youths of Kashmir will hold laptops in their hands, instead of rifles, Kashmiri Pandits will be able to return to their homes and one can hear the bells ringing in temples throughout the Valley. The people of Kashmir will then say with pride that they are part of our great nation.
मोदी ने विरोधियों के आरोपों को अपने जवाबों से यूं किया खारिज
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को नए कृषि कानूनों के मुद्दे पर विपक्ष की तरफ से उठाए गए ज्यादातर सवालों के जवाब दिए। मोदी ने उन सारे सवालों के जवाब दिए जो उनके विरोधी कई दिनों से पूछ रहे थे। आज मोदी ने उस झूठ का पर्दाफाश किया जो किसान आंदोलन के नाम पर कई दिनों से फैलाया जा रहा था।
उनके आलोचकों ने कई सवाल उठाए। क्या MSP खत्म हो जाएगी? क्या मंडियां बंद हो जाएंगी? क्या किसानों की जमीन उनसे छीन ली जाएगी? क्या कान्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग के जरिए उद्योगपति किसानों पर हावी हो जाएंगे? क्या नए कानून आने के बाद किसान व्यापारियों के गुलाम हो जाएंगे? क्या मोदी सरकार छोटे किसानों को खत्म कर देगी, सिर्फ बड़े किसान बचेंगे? क्या मोदी किसानों की कीमत पर उद्योगपतियों का फायदा चाहते हैं?
सवाल यह भी उठ रहे थे कि अगर ये कानून किसानों के फायदे के लिए हैं तो किसान 75 दिन से धरने पर क्यों बैठे हैं? वो कौन सी ताकतें हैं जो किसानों और सरकार के बीच समझौता नहीं होने देना चाहतीं? क्या किसानों के बीच ऐसे लोग घुस गए हैं जो आंदोलन को खत्म नहीं होने देना चाहते? अगर सबकुछ ठीक-ठाक है तो फिर दुनियाभर में किसान आंदोलन को लेकर भारत की बदनामी क्यों हो रही है? सवाल तो ये भी था कि सिख और जाट किसान पीएम से नाराज क्यों हैं? क्या किसानों को लेकर सरकार का रवैया तानाशाही से भरा है।
पीएम मोदी ने सबकुछ सुना, देखा और सोमवार को राज्यसभा में एक साथ सारे जबाव दे दिए। उन्होंने सारे हिसाब बराबर कर दिए। जो लोग जवाब मांग रहे थे, उन्हें सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे पहले एमएसपी और मंडियों की बात की। उन्होंने कहा, 1.एमएसपी थी, एमएसपी है और एमएसपी रहेगी। 2. राशन की दुकानों से गरीबों को अनाज देने का काम जारी रहेगा। सरकारी मंडिया जारी रहेंगी और आधुनिक होंगी। इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तो मंडियों में सुधार होगा। 3. इस कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे किसानों की जमीन पर कब्जा होने की आशंका हो। उन्होंने कहा कि यह झूठ फैलाया जा रहा है कि औद्योगिक घराने किसानों की जमीन हड़प लेंगे।
पीएम मोदी ने कहा कि किसानों की जमीन पर कोई कब्जा कैसे कर सकता है? उन्होंने उदाहरण देकर फिर समझाया और बताया कि दूध का व्यापार किसान ही करते हैं। कृषि क्षेत्र के व्यापार में डेयरी प्रोडक्ट्स की भागीदारी 28 प्रतिशत है। किसान जहां चाहें, जिसे चाहें दूध बेच सकते हैं। किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है, तो क्या कोई कंपनी वाला किसान की भैंस जबरन खोल ले गया? इसी तरह अगर किसान कंपनियों के साथ सीधे व्यापार (कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग) करेंगे तो उनकी जमीन को भी कोई खतरा नहीं होगा।
पीएम मोदी ने कहा उनकी सरकार जो कर रही है वह छोटे किसानों के हित में हैं। इससे छोटे और सीमांत किसानों को फायदा होगा। उन्होंने कहा कि अब तक किसानों के नाम पर जो कुछ किया गया उसका फायदा बड़े किसानों को मिला है, जबकि देश में 86 प्रतिशत छोटे किसान ऐसे हैं जिनके पास 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है। ये वे किसान है जिनके लिए अब तक कुछ नहीं किया गया। मोदी ने सवाल किया, क्या इन किसानों का ख्याल रखना सरकार की जिम्मेदारी नहीं है?
किसानों के इस आंदोलन में ज्यादातर किसान पंजाब से हैं और आंदोलन की तस्वीरें फैलाकर ये कहा गया कि सिखों के साथ अन्याय हो रहा है। सरकार सिखों पर जुल्म कर रही है और मोदी सिखों का सम्मान नहीं करते। इसीलिए मोदी ने अपने भाषण में खासतौर पर सिखों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सिखों ने देश के लिए जो किया उस पर देश को नाज है। देश सिखों का सम्मान करता है। इसलिए किसान आंदोलन को लेकर जो लोग सिखों के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं वो ठीक नहीं हैं, क्योंकि सिखों ने सेवा और बहादुरी की मिसाल पेश की है।
किसान संगठनों के इस आंदोलन के पीछे कांग्रेस और लेफ्ट की ताकत है। कांग्रेस पर्दे के पीछे है लेकिन वामपंथी दल खुलकर साथ दे रहे हैं। इसीलिए पीएम मोदी ने कम्युनिस्टों की बात की और लाल बहादुर शास्त्री के जमाने का उदाहरण दिया। मोदी ने कहा कि देश में हरित क्रांति ऐसे ही नहीं हुई। शास्त्री जी को भारी विरोध झेलना पड़ा। उस वक्त कोई कृषि मंत्री बनने को तैयार नहीं होता था लेकिन शास्त्री जी ने हिम्मत नहीं हारी। उस वक्त वामपंथी शास्त्री जी को ‘अमेरिका का एजेंट’ बताते थे। अब वही कम्युनिस्ट फिर कह रहे हैं कि मोदी ने अमेरिका के इशारे पर कृषि कानून बनाया है।
इस बात में तो कोई दो राय नहीं है कि किसान आंदोलन में कम्युनिस्ट पूरी तरह ऐक्टिव हैं। महाराष्ट्र, पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान के वामपंथी संगठनों के कार्यकर्ता किसान आंदोलन में सक्रिय हैं। इसीलिए पीएम मोदी ने वाम दलों का जिक्र किया। इसके अलावा आपने देखा होगा कि टुकड़े-टुकडे़ गैंग के सदस्य़, कभी शाहीन बाग के धरनेबाज, कभी जेएनयू में आजादी के नारे लगाने वाले तो कभी जामिया मिलिया का गैंग किसान आंदोलन में दिखाई दिया। हालांकि किसान संगठनों के नेताओं ने बार-बार खुद को इन लोगों से अलग किया लेकिन फिर भी ये लोग बार-बार वहां पहुंचे। पीएम मोदी ने इन लोगों से सावधान रहने को कहा और इस तरह के आंदोलनकारियों को एक नया नाम दिया-‘आंदोलनजीवी’। पीएम मोदी ने कहा कि दो चीजों से सावधान रहना है-एक, आंदोलनजीवियों से और दूसरा एफडीआई यानि फॉरेन डिस्ट्रक्टिव आइडियोलॉजी से।
लाल किले पर हुई हिंसा और तिरंगे के अपमान के बाद दिल्ली के बॉर्डर पर दिल्ली पुलिस ने एहतियाती कदम उठाते हुए बैरीकेडिंग को मजबूत किया, कंक्रीट की दीवारें बनाईं। ट्रैक्टर फिर से दिल्ली में घुसकर उत्पात न मचा सकें, इसलिए सड़क पर टायर पंचर करने वाली कीलें लगाईं, कंटीले तार लगाए। भारत को बदनाम करने के लिए इन बैरिकेड्स की तस्वीरों को दुनियाभर में फैलाया गया। इस आरोप के साथ कि मोदी भारत में लोकतंत्र का गला घोंट रहे हैं, ऐसा परसेप्शन बनाने की कोशिश की गई कि किसानों का दमन किया जा रहा है किसी को अपनी बात कहने का हक नहीं है।
अपने ऊपर लगे आरोपों का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने सुभाष चंद्र बोस की बात याद दिलाई। उन्होंने कहा, भारत सिर्फ दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र नहीं है, बल्कि यह ‘लोकतंत्र की जननी’ है। मोदी ने कहा कि हिंदुस्तान में लोकतंत्र एक व्यवस्था नहीं, बल्कि भारतीयों की जीवनशैली है, संस्कृति का हिस्सा है।
कुल मिलाकर मोदी ने अपने अंदाज में विपक्ष और किसान नेताओं द्वारा हाल के हफ्तों में उठाए गए अधिकांश सवालों के ठोस और कन्विंसिंग जवाब दिए। लेकिन जो लोग सुनना नहीं चाहते, मानना नहीं चाहते, उन्हें कोई नहीं समझा सकता।
मुझे हैरानी होती है जब लोग कहते हैं कि मोदी ने किसानों के आंदोलन को सही तरीके से हैंडल नहीं किया। इनमें से कई मोदी समर्थक भी हैं जो कहते हैं कि इस मुद्दे को बेहतर तरीके से हैंडल किया जा सकता था।
सवाल ये है कि क्या किसान नेताओं से इस मुद्दे पर 11 बार बात करना मिसहैंडलिंग है? सोमवार को भी प्रधानमंत्री ने कहा कि बातचीत के रास्ते खुले हैं, क्या ये मिसहैंडलिंग है? क्या किसानों से ये कहना कि MSP नहीं हटेगी, मंडियां बनी रहेंगी, किसानों को ज्यादा दाम मिलेंगे, मिसहैंडलिंग है? किसानों से ये कहना कि वे जो भी संशोधन करना चाहते हैं, उस पर विचार हो सकता है, ये मिसहैंडलिंग है? किसानों को ये ऑफर देना कि 18 महीनों के लिए तीनों कानूनों को होल्ड पर रखा जा सकता है, क्या ये मिसहैंडलिंग है? प्रधानमंत्री ने बार-बार किसानों को समझाया, उनसे कहा कि सुनी-सुनाई बातों पर मत जाइए, इन कानूनों को एक मौका दीजिए, क्या इसे मिसहैंडलिंग कहा जाएगा?
क्या पुलिस को ये कहना कि किसानों पर लाठी गोली नहीं चलानी है, मिसहैंडलिंग है? लाल किले पर तिंरगे का अपमान हुआ, लेकिन पुलिस खामोश रही, 300 से ज्यादा पुलिसवाले घायल हुए फिर भी पुलिस ने गोली नहीं चलाई, क्या ये मिसहैंडलिंग है? जब लगा कि सरकार को सिख विरोधी बताकर कुछ लोग सिखों की भावनाओं को भड़का रहे हैं तो प्रधानमंत्री ने साफ-साफ कहा कि सिख गुरुओं के महान बलिदानों का वे सम्मान करते हैं, क्या ये मिसहैंडलिंग है?
मैंने अपनी आंखों के सामने इतिहास को घटित होते हुए देखा है। मिसहैंडलिंग तो तब हुई थी, जब 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में हजारों सिखों का कत्लेआम हुआ था। मिसहैंडलिंग तो तब हुई थी, जब 5 जून 2011 को रामलीला मैदान में स्वामी रामदेव के सोते हुए समर्थकों पर पुलिस ने लाठियां बरसाई थीं, और निर्दोष लोगों का खून बहाया गया था।
हैरानी की बात तो ये है कि किसान आंदोलन में किसानों से जुड़ी बातों को छोड़कर हर तरह की नाराजगी जाहिर की जा रही है। कोई कहता है कि हाईवे को ब्लॉक करने के लिए कांटों की तार क्यों लगा दी, कीलें क्यों गाड़ दीं। कोई कहता है कि किसानों को खालिस्तानी क्यों बताया जा रहा है। कोई कहता है कि मुट्ठी भर लोगों को क्यों लाल किले में घुसने और तिरंगे का अपमान करने दिया गया। कोई कह रहा है कि मोदी ने किसानों के लिए ‘जमात’ शब्द का इस्तेमाल क्यों किया।
हैरानी की बात ये भी है कि किसान खुद इन सवालों को नहीं उठा रहे हैं। ये सारी बातें इसलिए उठती हैं क्योंकि कुछ लोग साजिश के तहत किसान आंदोलन का इस्तेमाल दुनियाभर में देश को बदनाम करने के लिए कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जो ये निराधार आरोप लगा रहे हैं कि मोदी के शासन में लोकतंत्र को कुचला जा रहा है, और असंतोष की आवाज को दबाया जा रहा है। यह भारत के लोगों को तय करना है कि कौन सच बोल रहा है।
How Modi convincingly demolished the charges levelled by his critics
Prime Minister Narendra Modi on Monday replied to most of the questions raised by the opposition on the issue of new farm laws. He also nailed the lies that were being spread in the name of farmers’ agitation for the last several weeks.
Questions had been raised by his critics on whether minimum support prices (MSP) and agricultural ‘mandis’ would be abolished, on whether industrialists would gain an upper hand if contract farming was allowed, on whether small and marginal farmers will be completely marginalized, on whether farmers will lose ownership of their land and become slaves of industrialists, and similar other questions.
Questions had been raised on why farmers were sitting on dharna for the last 75 days if the laws were beneficial for them, on who are the forces who do not want the farmers and the government to reach a compromise, on why India’s name is being tarnished if the laws are pro-farmer. There were questions on why Sikhs and Jat farmers were unhappy with the PM, on whether the government’s stand was tyrannical.
Prime Minister Modi had been keeping a close eye on all these questions, and on Monday in Rajya Sabha, he came out with his replies. He raised questions about those who were pointing fingers at his pro-farmer bonafide.
The Prime Minister emphatically said (1) MSP was there, MSP is here and MSP will remain in future (2) the distribution of cheap foodgrains to the poor through Public Distribution System will continue (3) the fear that industrial houses will grab the land of farmers was based on lies.
Citing an example, Modi pointed out how farmers have been selling milk to corporates for the last several decades. He said, they were free to sell milk anywhere in India, and dairy farming constituted 28 per cent of agricultural sector. In a rhetorical flourish, Modi asked, has there been any case where a businessman forcibly took away the buffaloes of a farmer? Similarly, the farmers need not fear about their land, if they start contract farming for corporates.
Modi said, the new laws will also benefit the small and marginal farmers, who constitute 86 per cent of the farming community and own less than 2 hectares of land. Is it not my government’s duty to help the small farmers?, he asked.
Since a bulk of the protesters are Sikh farmers from Punjab, Modi sought to reject the charges being levelled by Khalistan supporters that his government was anti-Sikh. He said, the nation is proud of the brave Sikh community and Sikhs have set shining examples in the fields of humanitarian service and defence.
Since both the Congress and the Left are supporting the farmers’ agitation, Modi targeted the Left and reminded what the Left parties had done when Lal Bahadur Shastri was Prime Minister. Shastriji, he said, wanted to usher in Green Revolution in India, but the Left parties opposed him and labelled Shastriji as “an American agent”. They are doing the same thing now, Modi said.
The Left frontal organizations are already active in the farmers’ movement in Rajasthan, Punjab, Maharashtra and Madhya Pradesh. The ‘tukde tukde’ gangs, which were active during the Shaheen Bagh, JNU and Jamia Millia agitations, are now active in the farmers’ stir. On Monday, Modi named these people as ‘andolanjeevi’ (professional protesters) and asked people to be on guard against such elements who believe in FDI(foreign destructive ideology).
After protesters caused mayhem with tractors and insulted the national flag at Red Fort on Republic Day, police had to set up barricades with concertina wires and cemented nails. Images of these barricades were circulated across the world to defame India. A wrong perception about “atrocities on farmers and dissenters” is being created with the allegation Modi is “crushing democracy”.
The Prime Minister replied to these charges by quoting Netaji Subhash Chandra Bose. He said, India was not only the world’s most populous democracy but is the “mother of democracies”. In India, democracy is not only a system, but it is also a part of lifestyle and ethos of the Indian people, Modi said.
Overall, Modi, through his convincing replies, laced with sarcasm, answered most of the questions that were raised by the opposition and farmer leaders in recent weeks. But nobody can help, if the other side is unwilling to listen to reason.
I am surprised when some people allege that the farmers’ agitation was mishandled. These include some of Modi’s supporters who said the issue could have been handled in a better manner.
My questions are: If Modi’s ministers discussed the issue with farmer leaders 11 times, was it mishandling? Even on Monday, Modi said the road for talks is still open. Is it mishandling, if Modi promises no abolition of MSP and ‘mandis? Will you call it mishandling if Modi offers to amend the farm laws if required? Was it mishandling to offer the farmers 18 months to give the farm laws a trial? Was it mishandling when Modi told farmers not to believe in hearsay and rumours and go through the fine print in the farm laws?
Was it mishandling to tell police not to fire a single bullet at protesters? Was it mishandling when more than 300 policemen were injured and the police did not use force when the national flag was being insulted at Red Fort? Was it mishandling when Modi recalled the great sacrifices by Sikh gurus and leaders when lies were being propagated about the government being anti-Sikh?
I have watched history unfolding in front of my own eyes. It was grave mishandling when several thousand Sikhs were killed in Delhi during 1984 after Indira Gandhi’s assassination. It was mishandling when Delhi police in a midnight swoop on Swami Ramdev’s dharna, lathicharged his supporters on June 5, 2011, when they were sleeping. Blood of innocent people were shed.
The surprising part is that every other issue is being raised in connection with a farmers’ agitation except their core issues relating to farm laws. Questions are being raised about why cemented iron spikes and concertina wire were placed to block highways. Questions are being raised about why farmers are being labelled as Khalistanis. Questions are being raised on why a handful of people were allowed to enter Red Fort and insult the national flag. Questions are being raised on why Modi used the word ‘jamaat’ for farmers.
Here too, the surprising part is that the farmers themselves are not raising these questions. The moot point is that some people with vested interests inimical to India, are using the farmers’ agitation to sully the nation’s image in the international arena. They are those who are levelling baseless allegations that democracy and open dissent are being crushed during Modi’s rule. It is for the people of India to decide who is speaking the truth.
भारत को बदनाम करने की साजिश के अपराधियों को नहीं बख्शा जाना चाहिए
किसान आंदोलन को लेकर पॉप गायक रिहाना, क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थुनबर्ग और अन्य विदेशी सेलिब्रिटिज द्वारा पोस्ट किए गए ट्वीट को लेकर अबतक जो सबूत मिले हैं उससे पता चलता है कि ये ट्वीट स्वत:स्फूर्त नहीं थे। दरअसल, यह भारत को बदनाम करने की एक अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा था। भारतीय मूल के कनाडा के सांसद जगमीत सिंह ने यह माना है कि वे रिहाना के साथ चैट करते थे। जगमीत सिंह और रिहाना ट्वीटर पर एक दूसरे को फॉलो करते हैं, दोनों एक-दूसरे को डायरेक्ट मैसेज भी करते हैं और लगातार संपर्क में रहते हैं। हालांकि जगमीत सिंह ने इस पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया कि रिहाना से साथ उनकी क्या बात हुई। लेकिन वो क्या बात करते होंगे, इस पर क़यास लगाने की ज़रूरत नहीं।
कड़वा सच ये है कि जगमीत सिंह खालिस्तान की मांग के समर्थक हैं। खालिस्तान आंदोलन के लिए फंड जुटाने का काम करते हैं। 2013 में भारत सरकार ने जगमीत सिंह को भारत आने का वीज़ा नहीं दिया था। किसान आंदोलन के मुद्दे पर भी वो कनाडा में लगातार प्रोटेस्ट करते रहे हैं। ऐसे में जब रिहाना ने किसान आंदोलन को लेकर ट्वीट किया तो इसके पीछे जगमीत सिंह का हाथ होने की बात सामने आई। इस दावे को तब और हवा मिली जब जगमीत सिंह ने रिहाना के इस कमेंट को रिट्वीट करते हुए किसान आंदोलन का मुद्दा उठाने के लिए उन्हें शुक्रिया कहा। जगमीत यह दावा करते हैं कि रिहाना उनकी दोस्त है।
दिल्ली पुलिस इस पूरी पहेली को सुलझाने में जुटी है। पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि ट्विटर पर ग्रेटा थुनबर्ग द्वारा पोस्ट किए गए टूल किट को किसने तौयार किया था। इस टूल किट में जनवरी और फरवरी में किसानों के मुद्दे पर भारत में हंगामा खड़ा करने की योजनाओं को विस्तार से बताया गया था। 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) के बाद होने वाले विरोध प्रदर्शन की योजनाओं का जिक्र भी टूल किट में किया गया है। दिल्ली पुलिस की तरफ से दर्ज की गई एफआईआर में देशद्रोह, आपराधिक साजिश रचने और समुदायों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने से संबंधित धाराएं लगाई गई हैं। यह एक खुला एफआईआर है और जांच के बाद ही पता चलेगा कि साजिशकर्ता कौन थे। पुलिस का कहना है कि एफआईआर में ग्रेटा थुनबर्ग या किसी अन्य शख्स का नाम नहीं है।
जब मैंने टूल किट को देखा तो चकित रह गया। जिस टूल किट को ग्रेटा थुनबर्ग ने गलती से ट्वीट किया उसमें 4 और 5 फरवरी का यह प्लान था कि शाम साढ़े चार बजे से साढ़े सात बजे के बीच ट्वीटर पर किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट स्ट्रॉम चलाना है, यानी किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट करने हैं। इसका मकसद ये था कि 6 फरवरी को किसान एकता मोर्चे की चक्काजाम की कॉल को बड़ा बनाया जाए। दुनिया भर में इसकी चर्चा हो और दुनिया को ये दिखाया जाए कि भारत में सारे किसान सड़क पर हैं। सरकार किसानों का दमन कर रही है। जो टूल किट नंबर 2 है, उसमें 4 और 5 फरवरी को ट्विटर पर ट्रैंड करने के लिए जो लाइन तय की गई थी वो है अर्जेंट एक्शन हेडलाइन। अर्जेंट टूल किट में दो तरीके से सपोर्ट करने को कहा गया है। एक तो सोशल मीडिया के जरिए और दूसरा फिजिकल प्रजेंश के जरिए। टूल किट में बताया गया कि कहां-कहां विरोध-प्रदर्शन करना है। अपील की गई कि अगर हो सके तो किसानों का समर्थन करने दिल्ली के बॉर्डर पर पहुंचें। अगर हिन्दुस्तान से बाहर हैं तो जहां हैं उस देश में, भारत के दूतावास के बाहर इकट्ठा होकर भारत सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करें। जहां-जहां भारत सरकार के दफ्तर हैं, वहां भी प्रदर्शन किए जाएं। एक खास बात और है कि इस अर्जेंट टूल किट में बार-बार अडानी और अंबानी का नाम भी आया है। कहा गया है कि अंबानी और अडानी की कंपनियों के दफ्तरों के बाहर भी प्रदर्शन हों और इनका बहिष्कार किया जाए। 6 फरवरी के साथ-साथ 13 और 14 फरवरी को भी भारत के दूतावासों और सरकारी दफ्तरों के सामने धरना-प्रदर्शन का आह्वान किया गया।
चाहे रिहाना हों या ग्रेटा, ये सब एक बड़े प्लान का हिस्सा हैं। वो शायद जानती भी नहीं होंगी कि ये प्लान भारत की संप्रभुता और भारत की लोकतंत्र पर हमला करने का प्लान है। भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा वॉर शुरू करने का प्लान है। अब मैं आपको बताता हूं कि जो एक-एक बात दुनिया में फैलाने का प्लान था। वो कितना बड़ा झूठ है। ये कहा गया कि मोदी सरकार ने किसानों पर गोली चलवाई। पिछले 71 दिनों के किसानों के धरना-प्रदर्शन के दौरान एक भी गोली नहीं चली है। सच तो ये है कि पुलिस पर तलवार, फरसा, रॉड से हमला हुआ। तीन सौ पुलिस वाले घायल हुए, लेकिन उन्होंने गोली नहीं चलाई।
कहा ये गया कि सोशल मीडिया पर रोक लगा दी गई है और किसानों की खबरें बाहर नहीं आती, लेकिन ये सारा का सारा प्रोपेगंडा तो सोशल मीडिया के माध्यम से ही हो रहा है। किसानों के विरोध प्रदर्शन की खबरें सोशल मीडिया पर रोज आती हैं। 26 जनवरी को दंगा करने वाले लाल किले से फेसबुक लाइव करते रहे और ये कह रहे हैं कि सोशल मीडिया पर रोक लगा दी गई है।
यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने किसानों का खाना-पानी बंद कर दिया है। किसान परेशानी में हैं और भूख से मर जाएंगे। लेकिन पूरे देश ने देखा कि कैसे किसानों के बीच 2 महीने से लंगर लगा। आसपास के गांवों के किसानों ने दूध और फल भेजे। कोई मिठाई लेकर आता हैं तो कोई पिज्जा का इंतज़ाम करता है। वहीं किसान भाइयों ने भी अपने खाने-पीने का इंतजाम भी अच्छे से किया है। किसानों के खाने-पीने की कोई कमी नहीं है,लेकिन अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर यह झूठ फैलाया जा रहा है।
यह आरोप लगाया जा रहा है कि भारत सरकार कॉरपोरेट्स की मदद के लिए कृषि कानून ला रही है। ये कहा गया कि अंबानी-अडानी की सरकार है। अब आपको ये बताने की जरूरत नहीं कि ये लाइनें कौन कहता है? ‘अडानी-अंबानी की सरकार है’ ये किसका डायलॉग है? लेकिन यहां ये बताना जरूरी है कि ग्रेटा थुनबर्ग ने जो टूल किट 3 फरवरी को गलती से ट्वीट की थी उस डाक्यूमेंट का कुछ हिस्सा कांग्रेस पार्टी के ट्वीटर हैंडल से 18 जनवरी को ही पोस्ट किया गया था। यानी इस टूल किट की जानकारी कांग्रेस पार्टी को पहले से थी और इसके आधार पर कांग्रेस के कई नेताओं ने उसी प्लान के तहत ट्वीट किए जो इस टूल किट में बताए गए थे। अब ये संयोग है या प्रयोग है इसका जबाव तो कांग्रेस देगी।
विदेशी ताकतों ने ये फैलाने के लिए कहा कि मानवाधिकार खत्म हो गए हैं, पत्रकारों को डराया जा रहा है। लेकिन ये बताने की भी जरूरत नहीं कि भारत में सबको अपनी बात कहने की आजादी है। यहां किसी पर कोई पाबंदी नहीं है, न कोई किसी को डराता है और न कोई किसी से डरता है। ये भारत की लोकतंत्र की ताकत है।
असली बात ये है कि नरेन्द्र मोदी को बदनाम करने और दुनिया में भारत की छवि को खराब करने के लिए झूठ का सहारा लिया गया। झूठ भी ऐसा जिसका कोई सिर-पैर नहीं है। लेकिन दो अच्छी बातें हुईं। एक तो इस झूठ का वक्त रहते पर्दाफाश हो गया और दूसरा भारत की जनता ने उस बात पर यकीन किया जो वो अपनी आंखों से देखती हैं। हमारे देश के लोग किसी तरह के बहकावे में नहीं आए। यहां तक कि किसान संगठनों के जो नेता आंदोलन में एक्टिव हैं उन्होंने भी कहा कि वे इन अंतरराष्ट्रीय हस्तियों को नहीं जानते हैं। और इन लोगों के बयानों का किसान संगठनों के इन नेताओं से कोई मतलब नहीं है।
दरअसल, देश के दुश्मन किसान आंदोलन को मौके के रूप में देख रहे हैं। नाम किसानों का है और साजिश देश को दुनिया में बदनाम करने की हो रही है। जो लोग किसानों के हमदर्द बन रहे हैं और किसानों की तस्वीरें लगाकर भारत की छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं, वे लोग इस आंदोलन के नाम पर भड़ी मात्रा में फंड भी इक्कठा कर रहे हैं। कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और जर्मनी जैसे तमाम मुल्कों में कहीं धर्म के नाम पर तो कहीं किसानों के नाम पर फंड इकट्ठा किया जा रहा है।
मुझे पूरा यकीन है कि दिल्ली के बॉर्डर पर पिछले 71 दिनों से आंदोलन कर रहे किसानों को इन सब बातों की भनक भी नहीं होगी। उन्हें पता भी नहीं होगा कि किसानों के नाम पर क्या-क्या हो रहा है। उन्हें इन संगठनों और साजिशकर्ताओं के नाम भी नहीं पता हैं। लेकिन ये भी सही है कि दिल्ली के बॉर्डर पर किसान नेताओं के बीच देश के दुश्मनों के कुछ एजेंट भी घुसे हैं और ये बात टूल किट में लिखी कुछ हिदायतों से साफ होती है। इस टूल किट में विरोध-प्रदर्शन की जो प्लानिंग की गई थी, उसमें साफ-साफ लिखा था कि किसान आंदोलन के समर्थन में जो भी तस्वीरें और वीडियो भेजे जाएंगे, उसकी सिंघु बॉर्डर और टीकरी बॉर्डर पर पहले किसान नेताओं द्वारा ‘स्क्रीनिंग’ की जाएगी उसके बाद सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर शेयर किया जाएगा।
दिल्ली पुलिस ने अपने बयान में पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन का नाम लिया है। अब मैं आपको इसके बारे में बताता हूं। ये पॉएटिक जस्टिस फाउंडेशन है क्या? कौन इसे चलाता है, किसान आंदोलन में इसका क्या रोल है? विदेश से ऑपरेट होने वाला ये पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन किस तरह भारत के खिलाफ साजिश रच रहा है। असल में ये फाउंडेशन कनाडा में काम करता है। कनाडा में रहकर इस फाउंडेशन के लोग किसान आंदोलन के नाम पर भारत को बदनाम करने और यहां का माहौल बिगाड़ने की साजिश रच रहे हैं। यही नहीं पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन ने कनाडा में भी किसान आंदोलन के नाम पर कई प्रोटेस्ट मार्च और रैलियां की हैं।
पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन ने अपनी वेबसाइट में लिखा है कि उसका मकसद मोदी सरकार की फासिस्ट मानसिकता को एक्सपोज़ करना और भारत में बड़े औद्योगिक घरानों के भ्रष्टाचार उजागर करना है। भारत की योग और चाय वाली इमेज को खराब करना और 26 जनवरी को दुनियाभर में गड़बड़ी कराना है। सोचिए, जो फाउंडेशन खुलेआम ये कह रहा है कि वो भारत के गणतंत्र दिवस के दिन यूनिफाइड ग्लोबल डिसरप्शन प्रोग्राम चलाना चाहता है वह फाउंडेशन छुप-छुपकर क्या-क्या करता होगा? पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन ने उन देशों को भी चुन कर रखा था, जहां किसान आंदोलन के दौरान सबसे ज्यादा प्रदर्शन करना है। इन देशों में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका का नाम है। इसके अलावा केन्या, डेनमार्क, इटली, मलेशिया, सिंगापुर, नीदरलैंड और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों में भी ये फाउंडेशन एक्टिव है।
किसान आंदोलन को लेकर जो संगठन और जो लोग विदेश में बैठकर साजिश रच रहे हैं। उसमें बार-बार मो ढालीवाल नाम के शख्स का नाम सामने आ रहा है। मो ढालीवाल पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन से जुड़ा हुआ है और कनाडा में रहकर खालिस्तान का एजेंडा चलाता है। सेमिनार ऑर्गनाइज कराता है, खालिस्तान के समर्थन में लगातार प्रोटेस्ट मार्च और रैलियों का आयोजन करता है। यह शख्स सोशल मीडिया पर खुले तौर पर इस बात को कबूल भी करता है कि वो खालिस्तानी है और खालिस्तान के लिए आंदोलन चला रहा है।
जो दस्तावेज लीक हुआ अगर वो सामने न आता तो शायद ये कभी पता ही नहीं चलता कि कितने बड़े पैमाने पर मोदी को बदनाम करने के लिए प्रोपेगंडा किया जा रहा है। भारत के लोकतंत्र पर किस तरह से हमला करके हमारे देश को एक फासिस्ट मुल्क बताने की कोशिश की जा रही है। ये उन्हीं ताकतों का काम है जिन्होंने ट्रंप की भारत यात्रा के समय दंगे करवाए थे।
ये उन्ही ताकतों का काम है जिन्होंने इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को चिट्ठी लिखकर कहा था कि वो भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में चीफ गेस्ट बनकर न जाएं। ये वही लोग हैं जिनके कहने पर ब्रिटेन की लेबर पार्टी के सांसदों ने किसान आंदलोन के बारे में इसी तरह की बातें कही थी। इन्हीं के उकसावे में आकर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने किसान आंदोलन के शुरूआत के दिनों में भारत के खिलाफ बयान दिया था।
अब तो ये बिल्कुल साफ है कि खालिस्तानी संगठनों ने ये प्लान तैयार करवाया और लोगों को भड़काया। किसानों को तो पता ही नहीं चल पाया कि कुछ लोग किसान आंदोलन में घुसकर उन्हें बदनाम करने में लगे थे। देश के दुश्मनों की साजिश को आगे बढ़ाने के लिए किसानों के धरने का सहारा ले रहे थे। इस के सबूत दिल्ली पुलिस की जांच में सामने आ रहे हैं। गूगल इंडिया को उन लोगों को ट्रेस करने में सहयोग करने के लिए कहा गया है जिन्होंने भारत में अराजक माहौल करने के लिए टूल किट बनाई थी। स्वाभाविक तौर पर अब जांच के बाद इन सबूतों को अदालतों के सामने पेश किया जाएगा।
मैं एक बात साफ कर देना चाहता हूं कि साजिश करने वाले चाहे देश के अंदर हों या विदेश में, उनके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। यह भारत की एकता और अखंडता पर हमला है। देश में रहने वाले कुछ लोग विदेश में बैठे षड्यंत्रकारियों का मोहरा बन गए। अब जबकि दिल्ली पुलिस ने लाल किले पर हमले के पीछे के अहम किरदारों को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया है, मुझे भरोसा है कि साजिश करने वाले किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा। मुझे भरोसा है कि इस मामले कोई भी निर्दोष किसान, जिसका इसमें कोई हाथ नहीं रहा है, उसे पुलिस परेशान नहीं करेगी।
Perpetrators of international conspiracy to defame India must not be spared
More evidences have come forward which show that the tweets posted by pop singer Rihanna, climate activist Greta Thunberg and others were not spontaneous. These were part of an international conspiracy to defame India. A Canadian MP of Indian origin, Jagmeet Singh, an avowed supporter of Khalistan, has admitted that he used to chat with Rihanna, as both of them were following each other on Twitter. Jagmeet Singh however refused to disclose what he discussed with Rihanna, but the answers are obvious.
Jagmeet Singh collects funds for Khalistan movement overseas. In 2013, the Indian government refused to grant him visa to visit India. When Rihanna posted her tweet in support of farmers, it was Jagmeet Singh who retweeted her post and thanked her for coming out in solidarity with farmers. He claims that Rihanna is his friend.
Delhi Police is trying to fix the missing pieces in the jigsaw puzzle. It is trying to find out who created the tool kit that was posted by Greta Thunberg on Twitter and was hurriedly deleted. The tool kit outlines detailed plans for creating disruption in India on the farmers’ issue in January and February. Specific plans for staging protests from January 26 (Republic Day) onwards have been mentioned in the toolkit. The FIR, lodged by Delhi Police, pertains to acts of sedition, hatching criminal conspiracy and promotion of enmity among groups. It is an open-ended FIR and the investigation will establish who the conspirators are. The FIR does not name Greta Thunberg or any other person, police said.
I was astonished when I went through the plans detailed in the tool kit. It called for creating a ‘tweetstorm’ against the Indian government in order to draw worldwide attention to the farmers’ protests. Farmer leaders have given a call for nationwide ‘chakka jam’ on Saturday, and the tweets by foreign celebrities were intended for this purpose. The tool kit outlines what Twitterati should do on February 4 and 5. It outlines two types of action: one, through social media, and two, through physical presence. It called for protests outside Indian embassies and consulates, and also inside India to express solidarity with farmers. Call has been given for protests on February 13 and 14 outside Indian embassies, and also outside offices of Ambani and Adani groups.
Whether it is Rihanna or Greta Thunberg or the Khalistani groups, they appear to be part of an international plan to defame India and challenge India’s sovereignty. They are peddling a bundle of lies about farmers’ protests throughout the world.
They have alleged that farmers were fired upon by police. It is an utter lie. There has been no firing during the 71-day-long dharna by farmers on Delhi’s borders. On the contrary, the fact is that rioters attacked policemen with swords and iron rods and more than 300 policemen were injured, but not a single shot was fired at farmers.
It was alleged that a ban has been put on social media, but the funniest part is that much of the propaganda war is being launched on social media inside India. On January 26, the rioters were telecasting their horrendous acts live on Facebook and other platforms.
It was also alleged that police have stopped supplies of food and water to farmers, but the whole nation has seen visuals of how langars were being run on a daily basis at the border points in Singhu, Tikri and Ghazipur. The farmers had brought their own stocks of foodgrains and vegetables, while villagers living in nearby areas provided them with fruits, foodgrains and milk.
It is being alleged that the Indian government is bringing the farm laws to help corporates. No prize for guessing who has been levelling the charge that Modi government is working to help “cronies like Ambani and Adani”.
The most worrying part is that the tool kit hurriedly posted by Greta Thunberg shows how some portions of it were already posted from a Congress party Twitter handle on January 18. It is now for the Congress to reply whether it was a coincidence or an experiment?
The toolkit also alleges that critics of the government and journalists are being intimidated and oppressed, and human rights are being violated. It is an open fact that everybody in India, including journalists, has the freedom to speak whatever one wants to, and there are no curbs on press freedom. No one is being threatened nor is anybody feeling intimidated.
The moot point is that an international conspiracy has been hatched to defame India by peddling lies through deceit. This has brought forth two positive results. One, the bundle of lies stands exposed, and two, the people of India are watching events that are unfolding in front of their own eyes. They do not need promptings from international celebrities. Even the farmer leaders sitting on dharna said on Thursday that they do not know these international celebrities, and their reactions do not matter.
The enemies of India are eyeing the farmers’ protests as a blessing in disguise, so that they can tarnish India’s image in the eyes of the world. Funds are being collected in countries like Canada, USA, Germany, UK, Australia and France, sometimes in the name of religion, or in the name of protesting farmers or in the name of their own fringe outfits.
The farmers sitting on dharna at Delhi borders for the last 71 days do not even know the names of these outfits and the conspirators. But the agents of this international conspiracy are still sitting with the farmers on Delhi’s borders. This has been revealed in the tool kit, in which supporters have been advised to show all pictures and videos of farmers’ protests for “screening” to the farm leaders at Singhu or Tikri borders, before posting them on social media.
The outfit named Poetic Justice Foundation, based in Canada, claims that it works for the upliftment of marginalized communities. The PJF took out several rallies in Canada in support of Indian farmers. It openly claims on its website that it is trying to expose the ‘fascist mindset’ of Modi government and acts of corruption by big Indian corporates. It had given a call for Unified Global Disruption Program on India’s Republic Day this year. The PJF is active in Australia, Canada, Britain, USA, Kenya, Denmark, Italy, Malaysia, Singapore, The Netherlands, and New Zealand.
Mo Dhaliwal, a PR man based in Vancouver, Canada, is of Indian origin. He is one of the leading lights of PJF, and his main agenda is furthering the cause of Khalistan. He openly flaunts his love for Khalistan and has been collecting funds for that cause.
Had the tool kit not been posted by Greta Thunberg mistakenly, the full extent of the international conspiracy that was hatched to defame India would not have come out in the open. The conspirators are part of that group, which incited communal riots in Delhi last year when the then US President Donald Trump was in India on a state visit.
They were part of the group which wrote letters and mails to UK Prime Minister Boris Johnson requesting him not to attend India’s Republic Day parade this year. This group encouraged British Labour Party MPs to issue statements in support of protesting farmers. It was at the instance of this group that Canadian Prime Minister Justin Trudeau gave a statement in support of farmers’ protests in India.
Delhi Police has collected more evidences of the global conspiracy to defame India. Google India has been asked to cooperate in tracing people who created the tool kit for causing disruption in India. Naturally, these evidences will now come up before the courts after investigation.
However, one thing must be made clear. Conspirators, whether staying inside India or abroad, must be brought to book. It is an attack on the unity and integrity of India. Some people living inside India have acted as pawns in the hands of conspirators sitting abroad.
Now that Delhi Police has begun arresting the key persons behind the attack on Red Fort, I am confident that none of the conspirators would be spared. I am also confident that none of the innocent farmers, who had no clue about this conspiracy, will be harassed by police.
भारत को बदनाम करने की अंतरराष्ट्रीय साज़िश
एक बार फिर भारत के खिलाफ अन्तरराष्ट्रीय साज़िश के नए सबूत सामने आए। आज एक बार फिर पता चला कि किसान आंदोलन की आड़ में भारत को बदनाम करने के लिए अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्लानिंग की गई। बुधवार को एनवायरमेंटल एक्टिविस्ट ग्रेटा थुनबर्ग ने किसान आंदोलन को लेकर ट्वीट किया लेकिन बाद में उन्होंने उस ट्वीट को तुरंत डिलीट कर दिया, जब Twitterati ने उन पर “भारत को बदनाम करने की अंतर्राष्ट्रीय साजिश” का हिस्सा होने का आरोप लगाया।
भारत समर्थकों ने ग्रेटा द्वारा अपना ट्वीट डिलीट किये जाने के बाद #GretaThunbergExposed शेयर किया। अपने ट्वीट में ग्रेटा ने लिखा था, ‘यदि आप मदद करना चाहते हैं, तो यह अपडेटेड टूलकिट है।‘ ग्रेटा ने Google डॉक्यूमेंट का एक लिंक शेयर किया जिसमें भारत के कृषि कानूनों के खिलाफ लोगों को जुटाने के लिए कई स्रोतों का उल्लेख किया गया था। अब हटा दिए गए इस डॉक्यूमेंट में किसानों की आवाज़ को ऑनलाइन पर बढावा देने के लिए अतीत में की गई कार्रवाइयों की एक सूची शामिल थी।
ग्रेटा द्वारा गलती से शेयर किये गये इस डॉक्यूमेंट से यह साबित होता है कि कैसे पॉप स्टार रिहाना और अन्य हस्तियों द्वारा भारत में किसानों के विरोध के समर्थन में किए गए ट्वीट स्वत:स्फूर्त नहीं थे, बल्कि भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने के एक बड़े पीआर अभियान का हिस्सा थे। यह एक सुनियोजित, पहले से तयशुदा कैम्पेन का हिस्सा था। इसके जरिए 26 जनवरी (भारत के गणतंत्र दिवस) को “ग्लोबल डे ऑफ एक्शन” का आह्वान किया गया था, जिसका मुख्य उदेश्य “कॉर्पोरेट हितों के पक्ष में अपने नागरिकों का उत्पीड़न, प्रेस की आज़ादी पर रोक और स्वतंत्र पत्रकारों का उत्पीड़न, राष्ट्रवाद को नुकसान पहुंचाने वाले सरकार के आलोचकों का उत्पीड़न” जैसे मुद्दों को दुनिया भर में उछालना था।
इस डॉक्यूमेंट के जरिए भारत की छवि को धूमिल करने की कोशिश की गई। इसने भारत के “योग और चाय” वाली छवि को भी चोट पहुंचाने की कोशिश की गई। इस पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन में भारत को बदनाम करने के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसे कनाडा के वैंकूवर स्थित एक पीआर विशेषज्ञ खालिस्तानी समर्थक मो धालीवाल ने तैयार किया था। वह खुद को स्काईरॉकेट डिजिटल का स्ट्रैटेजी निदेशक बताता है। उसका ट्विटर हैंडल कहता है, वह “दिन में ब्रांड और डिजिटल प्रोडक्ट्स का निर्माण करता है, और रात में आंदोलन करता है”।
किसानों के मुद्दे पर बुधवार को रिहाना, ग्रेटा थुनबर्ग, पूर्व पोर्न स्टार मिया खलीफा, अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी मीना हैरिस द्वारा भारत सरकार के खिलाफ ट्वीट पर भारत सरकार ने कड़ा एतराज़ जताया। विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि “कृषि कानूनों को संसद में बहस करने के बाद पास किया गया है। किसानों का एक छोटा सा वर्ग इनके खिलाफ आंदोलन कर रहा है। मुद्दे को सुलझाने के लिए सरकार इन किसानों के साथ बात कर रही है लेकिन ये दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि कुछ लोग अपने निहित स्वार्थ के लिए किसान आंदोलन के बहाने अपना एजेंडा चला रहे हैं। किसान आंदोलन के दिन 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस जैसे पावन पर्व पर हिंसा की गई, दुनिया के कुछ शहरों में महात्मा गांधी की प्रतिमाओं को नुकसान पहुंचाया गया लेकिन इसके बावजूद एक खास ग्रुप भारत के खिलाफ माहौल तैयार कर रहा है। भारत में भी जो हिंसा हुई उसमें कई पुलिसवाले घायल हुए। ऐसे में सेलीब्रेटीज से ये उम्मीद की जाती है कि वो कुछ भी कहने और लिखने से पहले मुद्दे की गहराई तक जाएंगे, उसके बारे में जानकारी लेंगे।“
बॉलीवुड हस्तियां अक्षय कुमार, अजय देवगन, सुनील शेट्टी, करण जौहर, एकता कपूर और क्रिकेट आइकन सचिन तेंदुलकर ने अपने ट्वीट में इस तरह के सोशल मीडिया अभियान का विरोध किया और भारतीयों से अपनी समस्या का हल खुद निकालने और बाहरी लोगों को किसानों के मसले से दूर रहने का आह्वान किया। रिहाना, ग्रेटा और उनके जैसे अन्य लोग शायद ही किसानों के मुद्दों की पेचीदगियों के बारे में ज्यादा जानते हों, लेकिन उन्हें कनाडा में बैठे एक खालिस्तानी समर्थक के पीआर कैम्पेन का हिस्सा बना दिया गया।
बुधवार की रात को अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में, मैंने कई ऐसे वीडियो दिखाए जो राष्ट्रविरोधी तत्वों द्वारा रची गई लाल क़िले वाली साजिश के सबूत हैं। गणतंत्र दिवस से कई दिन पहले, ये दंगाई पंजाब के गांवों में घूम-घूमकर किसानों को दिल्ली पहुंचने और ‘लाल किले पर कब्जा’ करने के लिए उकसाते रहे। इन दंगाईयों ने गांव वालों के कहा कि अब तक प्रधानमंत्री लाल किले से राष्ट्रीय ध्वज फहराते थे, और अब उसी लाल क़िले से झंडा फहराने की हमारी बारी है।
इसे अंजाम देने के लिए एक प्रशिक्षित व्यक्ति को दिल्ली लाया गया। 23 साल का जुगराज सिंह पंजाब के तरन तारन जिले के वन तारा सिंह गांव का रहने वाला है, ओर वह गुरद्वारों के खंभों और गुम्बदों पर चढ कर पवित्र निशान साहिब फहराने की महारत रखता है। जुगरात सिंह कई साल पहले बेंगलुरु में एक मामूली कर्मचारी था। वह की महीने पहले पंजाब लौट आया और गांव में बने गुरुद्वारों के खंभों और गुंबदों पर चढ़कर निशान साहिब फहराता था और पैसे कमाता था।
26 जनवरी को, जब दंगाइयों की उग्र भीड़ लाल किले की प्राचीर में प्रवेश करने लगी, जुगराज सिंह एक धार्मिक झंडा और एक पीले रंग का बैनर लेकर आगे बढ़ा, और देखते ही देखते कुछ ही मिनटों में वह खंभे पर चढ़ गया और उन्हें फहरा दिया। जिस वक्त जुगराज सिंह पोल पर चढ़कर झंड़ा फहरा रहा था उस वक्त भीड़ राष्ट्रविरोधी नारे नारे लगा रही थी और पहले से तयशुदा प्रोग्राम के मुताबिक उसी जगह से पूरी वारदात को फेसबुक पर लाइव किया जा रहा था। इसकी जिम्मेदारी दी गई थी पंजाबी एक्टर और एक्टिविस्ट दीप सिद्धू को। दीप सिद्धू को वहां कब तक रूकना है, कितने टाइम के बाद वहां से भागना है, कैसे भागना है सब कुछ तय था और सब वैसे ही हुआ।
दीप सिद्धू ने लालकिले की प्राचीर पर तिंरगे की जगह दूसरा झंडा फहराने की तस्वीरों को लाइव किया और फिर वहां से बाइक पर भागा। अभी दीप सिद्धू फरार है, पुलिस उसे खोज रही है। दीप सिद्धू आजकल अचानक फेसबुक पर अपना वीडियो अपलोड करता है। उसने हाल में जो वीडियो सर्कुलट किया है उसमें वो ये कह रहा है कि उसके पास पंजाब कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेता मदद के लिए आये थे। आंदोलन के दौरान और उससे पहले भी इन दोनों पार्टियों के नेताओं ने उससे सम्पर्क करने की कोशिश की थी।
इस साज़िश में तीसरा प्रमुख व्यक्ति लुधियाना का इकबाल सिंह था। इकबाल सिंह लालकिले की प्राचीर के सामने मैदान में भीड़ के बीच खड़ा था और वहीं से लाइव कर रहा था। वह भीड़ को लालकिले के अंदर दाखिल होने के लिए भड़का रहा था, लालकिले पर फतह करने की बात कह रहा था। इस शख्स ने 58 मिनट तक ये काम किया।
हमारे पास इकबाल सिंह के जो वीडियो हैं उनमें वह जिन शब्दों का इस्तेमाल कर रहा है, जिस तरह से लोगों को भड़का रहा है, वो हम आपको बता नहीं सकते। फिलहाल ये शख्स भी फरार है।
दिल्ली पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जो जवान लालकिले की सुरक्षा की ड्यूटी पर थे, उन्होने उग्र भीड़ को देखकर लाहौरी गेट की तरफ वाले तीनों दरवाजे बंद कर दिए थे। लोहे की मोटी रॉड बड़े दरवाजे के पीछे लगाई गई थी। उसके बाद लोहे की जंजीर भी लगी थी लेकिन इकबाल सिंह ने भीड़ को भड़काया और लालकिले के गेट को तोड़कर फतह हासिल करने के नारे लगवाए। कुछ ही देर बाद उन्मादी भीड़ ने लालकिले के गेट को तोड़ दिया। उसी दौरान इकबाल सिंह दूसरे लोगों के साथ मिलकर भीड़ से कह रहा था कि ‘टाप जाओ, गेट पर चढ जाओ। अब लाल किले के अंदर जाना है, अगर टाप नहीं पाते तो गेट तोड़ दो।‘
मैं ये नहीं कहता कि लालकिले पर जो हुआ वो किसान संगठनों के सारे नेताओं को पता था। जिस दिन ये घटना हुई उस दिन कई किसान नेताओं ने माफी मांगी, और 30 जनवरी को इस घटना के खिलाफ उपवास रखा। किसान संगठन के नेताओं को गलती का एहसास था जो हुआ उसका उन्हें दुख था। गणतंत्र दिवस पर हमारी राष्ट्रीय विरासत का अपमान करने से दंगाइयों को रोकने में वे क्यों असफल रहे, इसके बारे में उन्हें विचार करना चाहिए और लोगों को बताना चाहिए कि दंगाइयों को क्या सजा दी जानी चाहिए।
दुनिया में ऐसी कई ताक़तें हैं जो भारत की बढ़ती शक्ति से परेशान हैं। ये लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विश्व के एक नेता के तौर पर नहीं देखना चाहते । पाकिस्तान को हम जानते हैं, चीन की चाल को हम पहचानते हैं लेकिन इनके अलावा इंटरनेशनल लेवल पर ऐसी बहुत सारी ताकतें हैं जो इस बात से परेशान है कि भारत कैसे एक महाशक्ति बनता जा रहा है। वो इस बात से हैरान है कि कोरोना की महामारी में भारत में लाशों के ढेर नहीं बिछे। वो इस बात पर परेशान हैं कि भारत ने दस महीने में कोरोना के प्रकोप पर कैसे काबू पा लिया। उन्हें ये बात बर्दाश्त नहीं हो पा रही कि भारत ने अपने यहां दो-दो वैक्सीन डेवलप कर ली। सिर्फ अपने लोगों के लिए नहीं बल्कि पड़ोसी देशों को वैक्सीन पहुंचाकर उनके दिल जीत लिए। कुछ लोग इस बात को पचा नहीं पाए कि नरेन्द्र मोदी ने कोरोना से देश को बचाया, दुनियाभर में भारत के प्रधानमंत्री की तारीफ हुई।
ये कुछ लोगों के लिए कड़वा सच है पर भारत के लिए गौरव की बात है। जो लोग इसे स्वीकार नहीं कर पाते वो भारत में आग लगाने का, नफरत की बीज बोने का मौका ढूंढते रहते हैं। सिर्फ इसलिए कि वो मोदी को कमजोर कर सकें, जिसे वो चुनाव में हरा नहीं सकते, जिसे लोकतांत्रिक तरीके से हटा नहीं सकते उसे इंटरनेशनल लेवल पर बदनाम करें और एंबैरेस करें लेकिन ये लोग भूल जाते हैं कि चुनी हुई सरकार के पीछे देश की जनता का सपोर्ट होता है।
नरेन्द्र मोदी एक व्यक्ति नहीं हैं, देश के प्रधानमंत्री हैं। वो दुनिया के लिए इस देश के प्रतिनिधि हैं। दुनिया ने देखा है कि नरेन्द्र मोदी डरने वाले लीडर नहीं है। ये बात पाकिस्तान भी समझता है और चीन भी। अब दुनिया की बाकी ताकतों को भी इसका एहसास हो रहा है कि ये देश एक है। हमारे आपस में झगड़े हो सकते हैं, मतभेद हो सकते हैं लेकिन हम किसी विदेशी प्रोपेगेंडा को हावी नहीं होने देंगे। हम देश का सिर कभी झुकने नहीं देंगे।
International conspiracy to defame India
The cat is finally out of the bag. There was an international conspiracy to defame India on the issue of farmers’ protests. On Wednesday, climate activist Greta Thunberg shared a “toolkit” on Twitter to amplify farmers’ voices, but she later hurriedly deleted the tweet when Twitterati accused her of being a part of an “international conspiracy to defame India”.
Pro-India supporters shared a hashtag @GretaThunbergExposed after the climate activist deleted her tweet. In her tweet, Greta had written “Here’s a toolkit if you want to help”. She shared a link to a Google Document that mentioned several resources to mobilize people against India’s farm laws. The now-deleted document consisted of a list of actions taken in the past to amplify farmers’ voices online.
This document shared mistakenly by Greta reveal how tweets posted in support of farmers’ protests in India by pop star Rihanna and other celebrities were not organic but were part of a larger PR campaign to defame India internationally. It was part of a planned and pre-scripted campaign. It called for a “Global Day Of Action” on January 26 (India’s Republic Day) which was expected “to highlight issues…relating to oppression of its citizens in favour of corporate interests, curtailed press freedoms and harassment of independent journalists, persecution of the critics of the government with charges of anti-nationalism”.
The document also targets India’s image and soft power push and it also talks of targeting India’s Yoga and Chai image. The power point presentation gives details about how to discredit India. It was prepared by a Khalistani supporter Mo Dhaliwal, a PR strategy expert based in Vancouver, Canada. He is the Director of Strategy for Skyrocket Digital. His Twitter handle says, he “builds brands and digital products by day, and agitates by night”.
The co-ordinated tweets against Indian government by Rihanna, Greta Thunberg, former porn star Mia Khalifa, US Vice President Kamala Harris’ niece Meena Harris on Wednesday over the farmers’ issue evoke a strong rebuttal from the Ministry of External Affairs, which said: “Before rushing to a comment on such matters, we would urge that the facts be ascertained, and a proper understanding of the issues at hand be undertaken. The temptation of sensationalist social media hashtags and comments, especially when resorted to by celebrities and others, is neither accurate nor responsible.”
Bollywood celebrities like Akshay Kumar, Ajay Devgn, Suneil Shetty, Karan Johar, Ekta Kapoor and cricket icon Sachin Tendulkar, Virat Kohli and Anil Kumble in tweets, opposed the social media campaign and called for Indians to resolve their problem themselves and outsiders to stay away.
Rihanna, Greta and others of their ilk hardly know much about the intricacies of the issues confronting farmers, but have been made part of a concerted PR campaign handled by none other than this Khalistani supporter based in Canada.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Wednesday night, I had showed several videos which are damning evidences of a conspiracy hatched and executed by anti-national elements. Several days before Republic Day, these rioters went around in villages of Punjab exhorting farmers to march to Delhi “and occupy the Red Fort”. Villagers in Punjab were told by these elements that till now Prime Ministers used to hoist the national flag from Red Fort, and now it’s our turn to hoist a flag from the same monument.
A trained person who had the expertise of climbing up poles and hoist flags on gurdwaras was brought to Delhi. Jugraj Singh, a 23-year-old man from Wan Tara Singh village of Taran Taran district of Punjab, was hired for this purpose. He was a small-time employee in Bengaluru several years ago, returned home, and started earning money by climbing up poles and domes of village gurdwaras to hoist the sacred Nishan Sahib flag.
On January 26, as the mob entered the ramparts of Red Fort, Jugraj Singh rushed forward carrying the religious flag and another yellow banner, climbed up the pole within minutes, and hoisted them. This video was telecast live on Facebook by the mastermind of the plot, Deep Sidhu, a Punjabi actor-cum-political activist.
Deep Sidhu’s stay at the Red Fort and his escape was meticulously planned. Soon after this flag hoisting, he rode a bike and fled, and is still underground. Jugraj Singh has also gone underground. In his Facebook videos, Deep Sidhu has admitted that he was approached by Congress and AAP leaders in Punjab during the farmers agitation.
There was a third key person, Iqbal Singh from Ludhiana, who stood among the violent mob at the ramparts of Red Fort. He was assigned the task of instigating the mob to force its way into the Red Fort.
In the video, Iqbal Singh was using abusive words against Prime Minister Narendra Modi. When the mob tried to forcibly enter Red Fort, the paramilitary personnel guarding the fort, closed three main entrances from Lahori Gate side. They bolted the gates with long steel rods and chains. Iqbal Singh was seen in the video egging on the mob to break open the gates with iron rods. He was asking the mob to climb up the gates and enter the fort. Iqbal Singh was also seen in the video asking the mob to pull down the national flag. He was also seen threatening security personnel with bloodshed, if the mob was not allowed to enter.
The farmer leaders now sitting on dharna at Singhu, Tikri and Ghazipur borders must ponder why they failed to prevent the rioters from causing insult to our national heritage on Republic Day. They should come out and tell people what punishment must be meted out to the plotters and rioters.
I can say with confidence that the thousands of farmers who had reached Delhi borders on January 26, did not know about the sacrilege that was being committed at Red Fort. I also agree that most of the farmer leaders were unaware about the Red Fort plot. With tears in eyes, these leaders had tendered their apology to the nation. But they cannot deny the fact that they have many anti-national elements sitting in their midst in the garb of farmers. The only motive of these anti-national elements was to tarnish the nation’s reputation.
Elements from anti-Indian lobbies that are active in world capitals are now desperate, because the ongoing farmers’ protest has failed to create any ripples across the world. Major world powers consider these protests as India’s domestic issue. These anti-national lobbies are now taking recourse to social media, using the Twitter handles of Rihanna, Greta, Mia Khalifa and others.
There are many forces on the international level that are inimical to India’s interests. They are envious of India which is fast emerging as a big power and winning laurels by sending Covid vaccines to countries in South Asia, Brazil, Southeast Asia, Africa and other countries.
These forces, which never wanted India to emerge as a world power, are surprised over how India successfully tackled the Covid pandemic. They had expected thousands of deaths in India due to pandemic and starvation, but this did not happen, through timely imposition of lockdown, free cash and foodgrains given to the poor and nationwide healthcare facilities. Today, after a 10-month-long war against Corona, India can safely claim that the pandemic is now under control.
For those in the opposition in India, who cannot digest the fact that Narendra Modi’s stature has gone up by many notches after the successful handling of the pandemic, the farmers’ protests have come as a handy stick to flog a dead horse. Leaders and parties, who failed to defeat Modi at the hustings, not once, but twice, are now desperate. They are now out to embarrass Modi by tarnishing India’s reputation on the world stage.
These leaders fail to realize that Modi is not an individual, he is a Prime Minister elected with huge majority by the people, and he represents India in the world arena. The world knows that Modi is a leader who cannot be cowed down easily, and both our neighbours Pakistan and China have realized this to their utter discomfort.
The world knows that India as a nation, is united, and the farmers’ protest is an issue that needs to be solved domestically. We will never allow international propaganda to cow us down, nor will we ever allow our nation to hang its head in shame.
हिंदुओं के खिलाफ शरजील के जहरीले बयान पर चुप क्यों है शिवसेना?
कल मैंने हिंदुओं के खिलाफ शरजील उस्मानी के जहरीले बयानों को सुना। शरजील अलीगढ़ में अपने जहरीले बयानों के बाद सुर्खियों में आया था। उस पर भड़काऊ बयान देने के कई मामले दर्ज हैं।
पुणे पुलिस ने मंगलवार को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इस पूर्व छात्र नेता के खिलाफ FIR दर्ज कर ली है। उसके ऊपर 30 जनवरी 2021 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद की बैठक में हिंदुओं के खिलाफ भड़काऊ बयान देने का आरोप है। इस भाषण का वीडियो देखने और मामले की प्राथमिक जांच के बाद उस्मानी के खिलाफ IPC की धारा 153 A (विभिन्न समूहों के बीच संप्रदाय के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत एक मामला दर्ज किया गया है।
शरजील उस्मानी को यूपी पुलिस ने दिसंबर 2019 में अलीगढ़ में भड़काऊ भाषण देने और दंगा भड़काने के आरोपों में गिरफ्तार किया था, जिसके बाद अदालत ने उसे जमानत पर रिहा कर दिया था। तब से अलीगढ़ जिले में उसके प्रवेश करने पर रोक लगी हुई है। अब शरजील देशभर में मुसलमानों के बीच भड़काऊ भाषण देने में व्यस्त है।
मंगलवार रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने आपको शरजील के जहरीले भाषण का वीडियो दिखाया था। इस वीडियो में वह हिंदुओं को लेकर भड़काऊ बातें कह रहा था और बदला लेने की धमकी भी दे रहा था। आखिर उसने ऐसा क्या कहा था?
शरजील ने मोदी विरोधी और लेफ्ट समर्थक बुद्धिजीवियों की एक बैठक को संबोधित करते हुए कहा, ‘मैं राष्ट्रवाद को नहीं मानता हूं। मैं इस बात को बिल्कुल साफ कर देता हूं और मैं खासतौर पर यही बात करने आया हूं। इससे पहले मैं हल्की-फुल्की बात कर रहा था। आज मैं साफ-साफ कहना चाहता हूं कि हिंदुस्तान में हिंदू समाज बुरी तरीके से सड़ चुका है। 14 साल के जुनैद हाफिज को चलती ट्रेन में एक भीड़ 31 बार चाकू मारकर कत्ल कर देती है, लेकिन कोई 14 साल के बच्चे को बचाने नहीं आता है। दूसरों की लिंचिंग करने वाले ये लोग हमारे और आपके बीच में से आते हैं, लेकिन अब यह इतना नॉर्मल हो गया है कि कोई भी इस तरह की लिंचिंग पर सवाल नहीं उठाता।’
उसने कहा, ‘पहले हिंदुस्तान में मुसलमान को कत्ल करने के लिए वजह चाहिए होती थी। तब वे कहते थे कि ये इंडियन मुजाहिदीन से जुड़ा हुआ था, ये सिमी का मेंबर है। ऐसी कहानियां बनाई जाती थीं कि फलाने बम धमाके में इसका लिंक रहा होगा। उसके बाद मुसलमानों को कत्ल करना या उनके ऊपर जुल्म करना जायज करार दिया जाता था। अब वे मुसलमानों को मार देते हैं, इसके लिए उन्हें किसी बहाने की जरूरत नहीं है।’
शरजील ने कहा, ‘कोई गोश्त खा रहा है, बकरी है, चिकन है या बीफ है, कोई फर्क नहीं, मार देंगे। आप ट्रेन में जा रहे हैं, सीट मांगेंगे, नहीं दोगे तो मार देंगे। यह धमकी है हमारी तरफ से हिंदू समाज के लोगों के लिए। आप समझिए इस बात को। इंसान कितना भी कमज़ोर हो, कोई भी ज़िंदा चीज़ चाहे वह इंसान हो या जानवर, अगर आप उसकी ज़िंदगी से खिलवाड़ करेंगे तो पलट कर एक बार जवाब ज़रूर देगा। अमूमन छिपकली किसी को काटती नहीं, छेड़ कर देखिए दो बार, काट लेगी। तो इतना भी न करिए कि पलटकर जवाब देना पड़े। एल्गार का मतलब होता है जंग का ऐलान, और जंग का ऐलान तभी कर सकते हैं जब हमारे बीच में लोग शहादत देने के लिए तैयार हों, बलिदान देने को तैयार हों।
एएमयू का यह पूर्व छात्र नेता यहीं पर नहीं रुका। एल्गार परिषद की बैठक में उसने आगे कहा, ‘हिंदुस्तान में पिछले 6 सालों में इस्लाम और मुसलमानों पर लगातार हमले हुए हैं। कोई भी हमारे मज़हब पर कुछ भी बोलकर जा सकता है। चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी में इसी महीने एक सेमिनार हुआ, जिसमें एक स्पीकर ने खुले तौर पर कहा कि इंसान कुरान पढ़ेगा तो हैवान बन जाएगा। हम अगले चार सालों में एक हिंदू राष्ट्र बनाएंगे और उसके बाद आप देखिएगा कि मुसलमानों की कोई औकात नहीं रह जाएगी। ये जो लोग हैं आपके (हिंदू) समाज को इस तरीके से सड़ा रहे हैं और आपके बच्चे ऐसे समारोहों में जा रहे हैं। हमारी (मुसलमानों की) उंगली दोनों की तरफ होगी। आप खींचकर अपने लोगों को वहां से निकालिए और हम खींचकर अपने लोगों को ऐसी जगहों से निकालेंगे।’
शरजील उस्मानी ने ये बातें नक्सल समर्थक लेखिका अरुंधति रॉय, पूर्व आईपीएस अफसर एस एम मुशरफ और रिटायर्ड जज बी जी कोलसे पाटिल की मौजूदगी में कहीं। ये बयान दिवंगत बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना द्वारा शासित राज्य में दिए गए, जो कभी हिंदुत्व पर अपना पेटेंट होने का दावा करती थी और बीजेपी की तुलना में कहीं ज्यादा कट्टरपंथी थी। लेकिन देखिए, राजनीतिक मजबूरियों ने शिवसेना को कितना बदल दिया।
केसरिया बाने को अपनी पहचान बताने वाली शिवसेना अब अपने गढ़ पुणे में दिए गए शरजील उस्मानी के जहरीले बयानों पर चुप रहने को मजबूर है। छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर बनी शिवसेना अब इस मुद्दे पर खामोश है और शरजील के बयानों की निंदा करने के लिए कोई भी शिवसैनिक केसरिया झंडा लेकर सड़कों पर नहीं उतरा।
शरजील का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद एक स्थानीय वकील ने पुणे के स्वारगेट पुलिस स्टेशन में एक FIR दर्ज करवाई है। बीजेपी भी इस मुद्दे पर आक्रामक हो गई है और उसने आरोप लगाया है कि शिवसेना-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-कांग्रेस की महाविकास आघाड़ी सरकार उस्मानी के खिलाफ नरम रुख अख्तियार कर रही है।
शिवसेना के खिलाफ सबसे तीखी टिप्पणी भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने की। उन्होंने कहा, ‘एक बाहरी व्यक्ति महाराष्ट्र में आता है और हिंदू समुदाय की भावनाओं का अपमान करता है। क्या महाराष्ट्र में मुगलों का शासन है, कि कोई भी आकर हिंदुओं का अपमान करके बगैर किसी कार्रवाई का सामना किए चला जाता है?’
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिखे एक पत्र में फडणवीस ने कहा, ‘30 जनवरी को पुणे में एल्गार परिषद के कार्यक्रम में शरजील उस्मानी द्वारा हिंदू समुदाय के खिलाफ दिया गया बयान अपमानजनक, आपत्तिजनक और बेहद गंभीर है। इस पर राज्य सरकार को तुरंत सख्त कदम उठाने की जरूरत है। उसके द्वारा दिया गया बयान आपत्तिजनक और सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने वाले थे। जब यह पता था कि एल्गार परिषद के पिछले कार्यक्रमों में क्या हुआ था, तो इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए थी। शरजील के भाषण से अब यह साफ हो गया है कि इस कार्यक्रम को अनुमति प्रदान करना कितना गलत था। यदि कार्यक्रम के लिए अनुमति दी गई थी तो वहां होने वाली चीजों को अनदेखा करना ठीक बात नहीं है।’
कुछ इसी तरह की बात एनसीपी के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र सरकार के मंत्री छगन भुजबल ने कही। उन्होंने कहा कि (उस्मानी को) बोलते वक्त संयमित रहना चाहिए था और जब धर्म की बात हो तो शब्दों का चयन सोच-समझकर करना चाहिए था।
अगर यह बाला साहेब ठाकरे का जमाना होता तो महाराष्ट्र की धरती पर, पुणे जैसे सांस्कृतिक शहर में कोई ऐसी बात कहकर नहीं जा सकता था। शिवसेना इसे हल्के में नहीं लेती लेकिन इस वक्त महाराष्ट्र में शिवसेना का चीफ मिनिस्टर है, उद्धव ठाकरे की सरकार है। इसके बाद भी उस्मानी के खिलाफ एक्शन की बात तो दूर, शिवसेना का कोई नेता इस भड़काऊ बयान की निंदा तक करने के लिए सामने नहीं आया। 2018 में इसी शिवसेना ने एल्गार परिषद के पहले कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोगों को राष्ट्र-विरोधी और आतंकवादी कहा था। शिवसेना ने तब एल्गार परिषद की तुलना अल कायदा से की थी।
उद्धव ठाकरे को एक बार फिर पढ़ना चाहिए कि उस वक्त शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में क्या-क्या लिखा गया था। शिवसेना तब बीजेपी के साथ थी और उसने खुलकर कड़ा रुख अपनाया था, लेकिन अब समय बदल गया है। अब कांग्रेस और एनसीपी के साथ शिवसेना का गठबंधन है और अपनी सरकार बचाने के लिए पार्टी ने चुप रहने का फैसला किया है। इस चुप्पी के पीछे राजनीतिक मजबूरी है। पहले शिवसेना के नेता कुर्सी के लिए बोलते थे, और अब कुर्सी को बचाने के लिए चुप रहते हैं। शिवसेना की खामोशी ये साबित करती है कि राजनीति में विचारधारा कोई मायने नहीं रखती। सत्ता के समीकरण ही पार्टी के विचार और पार्टी की विचारधारा तय करते हैं।
Sharjeel’s hate speech against Hindus: Why is Shiv Sena Silent?
Yesterday I came across Sharjeel Usmani’s venomous speech against Hindus. Sharjeel has been in news for his poisonous utterances in Aligarh. He is facing several cases for provoking people and making hate speeches.
Pune Police on Tuesday filed an FIR against this former Aligarh Muslim University student leader on charge of making a provocative speech against Hindus at the Elgar Parishad 2021 meet held in the city on January 30. An offence under Section 153A (promoting enmity between different groups on communal grounds) of the Indian Penal Code was registered after a preliminary inquiry, and after going through a video of his speech.
Sharjeel Usmani was arrested by UP police for making provocative speeches and instigating riots in Aligarh in December, 2019 after which he was released by court on bail. Since then he has been externed from entering Aligarh district, and is busy giving provocative speeches among Muslims throughout the country.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Tuesday night, we showed a video of his venomous speech in which he lashed out at Hindu community and had threatened retaliation. What did he exactly say?
Sharjeel told the gathering attended by anti-Modi and pro-Left intellectuals: “I do not believe in nationalism. I want to make it very clear and I have come here to say this. Earlier, I used to speak softly. Today I want to say clearly that Hindu society in India has become rotten. They killed 14-year-old Junaid on a running train by stabbing him with a knife 31 times, but nobody came forward to save the 14-year-old boy. People who lynch others come from among us, but this has become so normal that nobody now questions such lynching.
“ Earlier, one needed a reason to kill Muslims in India. At that time, they used to say somebody belongs to Indian Mujahideen, or SIMI. Stories used to be spun to say that so and so had links with bomb blasts. They used to give justifications for killing or perpetrating atrocities on Muslims. Now, they just kill, they do not need excuses”, he said.
Sharjeel said: “If one eats meat, whether beef or mutton or chicken, kill. If they travel in train, ask for seats, if they refuse, then kill. You can consider this as a threat to people from Hindu society. Try to understand. Any living people, whether a human being or an animal, if you play with its life, it will retaliate, even if it’s weak. Normally, a lizard never bites, but if you try to tease it twice, it will bite. So, at least do not go to such an extent that it may retaliate. Elgar means war, you can do ‘elgar’ only if people among us are ready to offer martyrdom or sacrifice.”
The former AMU student leader did not stop here. He said at the Elgar Parishad meet: “For the last six years, Muslims and Islam in India have been under attack. Anybody can say anything against our religion. This month (January), at a seminar in Chaudhary Charan Singh University, a speaker came and said, a human being will turn into a monster if he recites the Holy Quran. We will create a Hindu Rashtra in the next four years, and then you will see, Muslims will cease to have any power. Such speakers rot your (Hindu) society and your children attend their gatherings. Now we (Muslims) will raise fingers at both. Please try to bring back your children from such gatherings, we will do the same with our children.”
Sharjeel Usmani made these remarks in the presence of pro-Naxalite writer Arundhati Roy, former IPS officer S M Mushref and retired judge B. G. Kolse Patil. These remarks were made in a state ruled by late Balasaheb Thackeray’s Shiv Sena, which once used to claim that it owned the patent on Hindutva and was more radical compared to the BJP. But look what political compulsions have done to Shiv Sena.
The party that used to claim saffron ownership is now silent on poisonous remarks made by Usmani, and that too, in Shiv Sena’s fortress in Pune. The Shiv Sena, which was founded in the name of Chhatrapati Shivaji Maharaj, is silent on this issue and none of its cadres are out on the streets to condemn Sharjeel’s remarks.
After Sharjeel’s video became viral on social media, a local lawyer filed an FIR at the local Swargate police station in Pune. The BJP took up the issue and has alleged that the Shiv Sena-NCP-Congress Maharashtra Vikas Aghadi government is toeing a soft line towards Usmani.
The most stinging remark against Shiv Sena was made by senior BJP leader and former Chief Minister Devendra Fadnavis who said, “ an outsider comes to Maharashtra and insults the feelings of Hindu community. Is there Mughal rule in Maharashtra, that any one can come and insult Hindus and goes away scot-free?”
In a letter to Maharashtra CM Uddhav Thackeray, Fadnavis wrote: “”The statement made by Sharjeel Usmani at Elgar Parishad event in Pune on 30 January against Hindu community is defamatory, objectionable and is very serious, there is a need for the state government to immediately take strict action on it.. the statement made by him is objectionable and were meant to disrupt the communal harmony. … When it was known what had happened through the Elgar Parishad event in the past, such an event should not have been permitted to happen. How wrong it was to permit this event to happen is now visible through Sharjeel’s speech. It is not good to ignore things that happened in the event if the event was given permission.”
The feeling was echoed by senior NCP leader and Maharashtra minister Chhagan Bhujbal who said the speaker (Usmani) should have kept himself within limits while speaking against a community.
Had the late Balasaheb Thackeray been alive, nobody would have dared make such a provocative speech on the soil of Maharashtra and leave unscathed. A political party like Shiv Sena never takes such remarks lightly, but it is unfortunate that the present government is headed by the Shiv Sena chief. Forget taking action against Usmani, not a single Shiv Sena leader came forward to condemn his provocative speech. The same party, Shiv Sena, in 2018 had described those who assembled at the first Elgar Parishad event as anti-nationals and terrorists. Shiv Sena had then compared the Elgar Parishad activists with Al Qaeda.
Uddhav Thackeray should read what his party organ Saamna had written in its editorial at that time. Shiv Sena was then an ally of BJP, and had taken a strong stand, but now times have changed. Shiv Sena is in a cosy relationship with Congress and NCP, and for saving its government, the party has decided to remain silent. Political compulsion is the reason behind this silence. Earlier Shiv Sena leaders used to scream in their quest for throne, but now they are silent in order to keep their throne intact. Such silence underlines the fact that in politics, ideology does not matter. Political equations now decide the thoughts and actions of a party.
बजट निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था को गति देगा
वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने जब सोमवार को विकासोन्मुखी बजट पेश किया तो शेयर बाजार ने 2,315 अंकों की भारी उछाल के साथ इसका स्वागत किया। वहीं विपक्ष ने यह सवाल उठाया कि क्या इस बजट से लोगों को रोज़गार मिलेगा। क्या इस बजट से रोजगार की संभावनाएं ज्यादा पैदा होंगी?
इंडिया टीवी पर मेरे प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में सीतारामन ने सोमवार रात को कहा कि उन्हें पूरा भरोसा है कि कृषि और इंफ्रास्ट्रक्चर पर सरकार जो भारी भरकम पैसे खर्च करेगी, उसका अर्थव्यवस्था पर काफी अच्छा असर पड़ेगा।
सीतारामन ने कहा कि आम तौर पर अर्थशास्त्री यह मानते हैं कि इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च होनेवाले हर एक रूपये पर दो से ढाई रुपये का वैल्यू मिलता है। इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले से ही इसमें रोजगार मिलने लगता है। रोजगार मिलने का यह क्रम इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर काम शुरू होने के दो से पांच साल तक मिलता रहेगा। इससे जहां संपत्ति का सृजन होता है वहीं लोगों को रोजगार भी मिलता है। इससे सीमेंट और स्टील जैसे कोर सेक्टर में भी रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी क्योंकि इनके पास भी इंफ्रा प्रोजेक्ट्स से ऑर्डर आते हैं। इसे virtuous cycle कहते हैं। एक से दूसरा और दूसरे से तीसरा जुड़ा हुआ है। इस तरह से अर्थव्यवस्था को गति मिलती है।
सीतारामन ने विपक्ष के इस आरोप को खारिज कर दिया कि बजट में गरीब और मध्यम वर्ग के लिए उस तरह कुछ भी नहीं दिया गया है जैसे महामारी के दौरान अमेरिका ने हर परिवार को 2000 डॉलर तक के चेक दिए थे। वित्त मंत्री ने याद दिलाया कि फिछले साल लॉकडाउन लागू करने के 48 घंटे के अन्दर सरकार ने गरीबों, जरूरतमंदों, विकलांगों और वृद्धों के बैंक खातों में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए किस्तों में पैसे भेजना शुरू कर दिया था। “ हमने उससे एक सबक सीखा। क्योंकि जिन लोगों को पैसा मिला उन लोगों ने उसे तुरंत खर्च नहीं किया। मैं इसके लिए उन्हें जिम्मेदार या दोषी नहीं ठहरा रही हूं। लेकिन इस महामारी को लेकर उस समय अनिश्चितता थी इसलिए लोगों ने उस वक्त पैसे को बचाना मुनासिब समझा। लोगों के हाथों में पैसा डालना कोई सीधा सादा समाधान नहीं है। ”
सीतारामन ने कहा, “ मैं उस देश का नाम नहीं लूंगी लेकिन जिन देशों ने अपने जीडीपी का 15 फीसदी तक पैसा महामारी के दौरान खर्च कर दिय़ा, और अपने कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजने के एवज में कॉर्पोरेट्स को इन्सेंटिव दिया, वही देश अब अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए टैक्स बढ़ा रहे हैं। इसके विपरीत हमने इस बजट में टैक्स की दरों को नहीं बढ़ाया और न ही हमने कीमतें बढ़ाई हैं। “
निर्मला सीतारामन ने उन आलोचकों को जवाब दिया, जो यह सवाल कर रहे थे कि सरकार अपने राजकोषीय घाटे की भरपाई कैसे करेगी। सीतारामन ने कहा: “ इन लोगों ने तो महा मारी के समय पहले हमसे कहा कि आप करेंसी प्रिंट करो, राजकोषीय घाटे और रेटिंग एजेंसियों के बारे में चिंता मत करो। अब यही लोग राजकोषीय घाटे को लेकर सवाल उठा रहे हैं। मैं अधिक खर्च करने के पक्ष में थी और मैंने तब कहा था कि अगर मैंने अभी खर्च नहीं किया तो विकास रूक जाएगा। हमें खर्च करने में संकोच नहीं है।’
यह पूछे जाने पर कि सरकार अधिक खर्च करने के लिए पैसे का इंतजाम कैसे करेगी, सीतारामन ने कहा, ‘हां, मैंने इस साल कर्ज लेने के कैलेंडर की घोषणा की है, हम अगले साल भी कर्ज लेने की घोषणा करेंगे, हम उचित दरों पर कर्ज लेने के लिए आरबीआई के साथ चर्चा कर रहे हैं। सरकार ज़रूर कर्ज लेगी। हमारा उद्देश्य एक सीमा तक कर्ज लेना है, और फिर धीरे-धीरे राजकोषीय घाटे को कम करना है ताकि अर्थव्यवस्था की रफ्तार में कोई बाधा न आए।’
अपने बजट में, सीतारामन ने इतिहास में पहली बार स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 137 प्रतिशत वृद्धि का प्रस्ताव रखा है, लेकिन इसमें से 35,000 करोड़ रुपये कोरोना की वैक्सीन पर खर्च किए जाएंगे। स्वास्थ्य सेवा को गति देने के लिए एक नई योजना- ‘प्रधानमंत्री आत्म निर्भर स्वस्थ भारत योजना’ शुरू की जाएगी। इसी तरह, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के लिए बजट में सबसे ज्यादा 18 प्रतिशत की वृद्धि करके अब तक की सबसे बड़ी राशि 1.18 लाख करोड़ रुपये का प्रस्ताव रखा गया है। इससे इस साल 11 हजार किलोमीटर तक नेशनल हाईवे बनाने के लक्ष्य को पूरा किया जाना है। इसके तहत छह-लेन हाईवे, स्पीड राडार और नए एक्सप्रेस वे बनाए जाएंगे। इस इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) बाजार से 65,000 करोड़ रुपये जुटाएगा और प्रतिदिन 40 किलोमीटर हाईवे बनाने का लक्ष्य पूरा किया जाएगा।
यह बताने की कोई जरूरत नहीं है कि निर्मला सीतारामन ने इस बजट को जिन परिस्थितियों में बनाया वे कोई आम परिस्थितियां नहीं हैं। देश पिछले एक साल से कोरोना के संकट से जूझ रहा है, और इस एक साल के दौरान लॉकडाउन के चलते इंडस्ट्री बंद रहीं, सरकार की आमदनी के स्रोत सीमित रह गए और खर्चे बेतहाशा बढते रहे। लॉकडाउन के दौरान हर हिंदुस्तानी को खाना खिलाने की जिम्मेदारी सरकार पर थी। जैसा कि मोदी और सीतारामन ने कहा, सरकार पिछले एक साल के दौरान पहले ही 5 आर्थिक पैकेजों की घोषणा कर चुकी है जो 5 ‘मिनी बजट’ की तरह थे। पिछले एक साल में हमने सीतारामन को 20 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज के बारे में बताते हुए 5 बार सुना। ऐसे में इस बजट के लिए बहुत कुछ नहीं बचा था, और अधिकांश लोग इनकम टैक्स, कॉर्पोरेट टैक्स और इनडायरेक्ट टैक्स में भारी बढ़ोतरी की आशंका जता रहे थे। बढ़ती कीमतों और मुद्रास्फीति के बारे में भी आशंकाएं थीं, जबकि इन्फ्रा सेक्टर को लगता था कि फंड की कमी के चलते रफ्तार कम हो जाएगी। कई तरह की सब्सिडी खत्म होने की भी बात चल रही थी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
निर्मला सीतारामन ने इस बजट में कमाल कर दिया। इसीलिए मुझे लगा कि ये एक पॉजिटिव बजट है और इसमें कोई निगेटिविटी नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो सोचा वह निर्मला सीतारामन ने इंम्पलिमेंट किया। आम आदमी पर कोई नया बोझ नहीं डाला। सरकार ने अपनी इनकम के नए रास्ते खोजे, रोजगार के ज्यादा अवसर बनाए, ‘वोकल फॉर लोकल’ को ध्यान में रखा और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में पूरे विश्वास के साथ कदम आगे बढ़ाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसीलिए यह कहते हुए बजट की सराहना की कि यह एक ‘एक प्रो-ऐक्टिव बजट है जो धन सृजन के साथ-साथ जनकल्याण को भी बढ़ावा देगा।’
2020 पूरी दुनिया के लिए एक बेहद मुश्किल साल था और कोरोना वायरस की महामारी के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित किया। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने यह एक बड़ी चुनौती थी, जिन्हें यह सुनिश्चित करना था कि महामारी या फिर भुखमरी के चलते 135 करोड़ भारतीयों की जान न जाए। और प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनौती का सामना बखूबी किया। आज महामारी काफी हद तक नियंत्रण में है, वैक्सीनेशन का काम शुरू हो गया है और अर्थव्यवस्था खड़ी होती नजर आ रही है। सिर्फ किसान दो महीने से भी ज्यादा वक्त से ‘धरने’ पर बैठे हैं, और मोदी ने किसानों के हितों का भी ध्यान रखा है। बजट के जरिए उन्होंने किसानों को संदेश भी दिया है कि सरकार उनकी आय में 150 प्रतिशत की वृद्धि करने के लिए प्रतिबद्ध है।
इसी तरह मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में सरकार स्वैच्छिक ऑटो स्क्रैपिंग पॉलिसी के साथ आई है, जिसके तहत 20 साल से अधिक पुराने सभी वाहन ऑटोमेटेड टेस्ट से गुजरेंगे और उन्हें स्क्रैप कर दिया जाएगा। इससे 50,000 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होगा और पिछले साल लॉकडाउन का बहुत बुरा असर झेलने वाली ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में ज्यादा नौकरियां पैदा होंगी। उस समय बिक्री लगभग बन्द रहने के कारण देश भर में कारों के हजारों शोरूम बन्द हो गए थे।
कुल मिलाकर बजट को देखते हुए मुझे लगता है कि 3 ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर सरकार अपना ध्यान केंद्रित कर रही है: स्वास्थ्य, कृषि और बुनियादी ढांचा। ये तीनों सेक्टर सरकार के लिए बड़ी चुनौती हैं। कोरोना वायरस की महामारी ने हमें ये अहसास दिला दिया कि देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का काफी अभाव है। पीपीई किट, वेंटिलेटर, टेस्टिंग फैसिलिटी, ऑक्सीजन सिलेंडर और अन्य जरूरी मेडिकल इक्विपमेंट्स भी नहीं थे। डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक्स की भारी कमी थी। कई जिलों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या भी काफी कम थी। पीपीई किट, वेंटिलेटर के निर्माण और टेस्टिंग फैसिलिटी को तैयार करने में पिछले एक साल में असाधारण तेजी नजर आई है।
इसी तरह कृषि के क्षेत्र में सरकार ने 3 ऐतिहासिक कानून बनाए, लेकिन विपक्ष ने स्वयंभू किसान नेताओं के साथ मिलकर इन कानूनों के बारे में किसानों को गुमराह करने की पूरी कोशिश की, और उनका यह काम अभी भी जारी है। सरकार ने 11 दौर की बातचीत के जरिए किसानों की भावनाओं को समझने की पूरी कोशिश की, और 18 महीने के लिए कानूनों को होल्ड पर रखने का भी ऑफर दिया, लेकिन फिर भी किसान नेताओं ने अपना जिद्दी और अड़ियल रवैया नहीं छोड़ा। इसके नतीजे में किसान 2 महीने से भी ज्यादा समय से धरने पर बैठे हैं, और इस दौरान हिंसा और तिरंगे के अपमान के चलते देश की छवि भी धूमिल हुई है। सरकार किसानों की आशंकाओं को दूर करने की लगातार कोशिश कर रही है, और प्रधानमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि यदि किसान बातचीत को फिर से शुरू करना चाहते हैं तो वह केवल ‘एक कॉल दूर’ हैं।
इंडस्ट्री की बात करें तो फैक्ट्रियों में माल बन रहा है, ट्रांसपोर्टेशन भी हो रहा है लेकिन मॉल्स खाली बड़े हैं और ज्यादातर दुकानों पर खरीदार नहीं हैं। ट्रांसपोर्ट सेक्टर, टेक्सटाइल से लेकर खिलौने के कारोबार तक में मंदी नजर आ रही है क्योंकि ग्राहकों के पास सामान खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। कोरोना के कारण लोगों ने बाहर खाना बंद कर दिया है, इससे होटल और फूड इंडस्ट्री बुरी तरह प्रभावित हुई है। लोग बाहर नहीं जा रहे हैं जिसके चलते टूरिज्म सेक्टर बर्बाद हो गया है। लोगों ने प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट करना कम कर दिया है, जिससे रियल एस्टेट सेक्टर कमजोर हुआ है। ये सभी ऐसे सेक्टर हैं जो बड़ी संख्या में रोजगार देते हैं। यही वजह है कि सरकार सड़क, रेलवे, बंदरगाह और हवाई अड्डों जैसी बुनियादी सुविधाओं पर बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च करने जा रही है ताकि रोजगार पैदा हो सकें।
एक बार अर्थव्यवस्था की हालत सुधरेगी, और लोगों की जेब में पैसा होगा तो दुनिया भर की कंपनियां बिजनस के लिए भारत आएंगी। सरकार ने इस बजट के जरिए यही पहिया घुमाने की पूरी कोशिश की है। इसलिए विरोधी दल भले ही कहें कि बजट में कुछ भी नया नहीं है, मुझे लगता है कि यह बजट निश्चित रूप से हमारी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने की ताकत देगा। भारतीय अर्थव्यवस्था में जरूर उछाल आएगा, यह एक बार फिर अपने पैरों पर खड़ी होगी, और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य के साथ एक नए भारत का निर्माण होगा जिसपर हम सभी गर्व करेंगे।
Budget will surely give a big boost to Indian economy, an Atmanirbhar Bharat
On Monday, when the stock market welcomed Finance Minister Nirmala Sitharaman’s growth-oriented annual budget with a huge jump of 2,315 points, there were questions raised by the opposition about whether the budget would generate more employment. Appearing in my prime time live show in ‘Aaj Ki Baat’ on India TV, Sitharaman said she was confident that money that will be spent on agriculture and infrastructure will “definitely have a multiplier effect”.
“Each rupee of public spending on infrastructure generates a value of not less than Rs two or two and a half”, Sitharaman told me. “Even before work on infrastructure projects commences, it will generate employment. The employment cycle will continue for the next two to five years as work on infra projects continue. It leads to both assets creation and generation of employment. This will also create employment in core sectors like cement and steel, which will be getting orders from infra projects. This is called virtuous cycle which has a multiplier effect in giving a boost to economy”, she explained.
Sitharaman rejected the Opposition’s charge that the budget has not given money in the hands of poor and middle class, like the US which gave cheques up to $2000 to every American family during the pandemic. The Finance Minister pointed out that within 48 hours of the imposition of lockdown, the government started releasing money to the bank accounts of the poor, needy, handicapped and old people through Direct Benefit Transfer under Pradhan Mantri Garib Kalyan Yojana. We learnt a lesson from that. People who got the money did not spend it immediately. I am not holding them responsible. Since there was uncertainty about the pandemic, people chose to save that money. There is no straight solution by putting money in the hands of the people.”
She said, “I will not name countries, but those developed countries who gave out money up to 15 per cent of their GDP, and gave incentives to corporates for sending their employees on furlough, are now going to increase taxes to mop up revenue. On the contrary, we, in this budget, did not raise taxes nor did we increase prices of commodities.”
She hit out at those who were questioning how the government would bridge its fiscal deficit. Sitharaman said: ”These people had earlier given suggestions to increase spending by printing currency and not to worry about rating agencies. The same people are now raising questions about fiscal deficit. I was in favour of spending more and I had then said that if I do not spend now, I will be halting growth. We did not hesitate in spending.
Asked how the govt would arrange funds for spending more, Sitharaman said, “Yes, I have announced the calendar for borrowing this year, we will be announcing borrowing for next year too, we are in discussion with RBI for borrowing at reasonable rates. Government will surely go in for borrowing. Our aim is to borrow to a limit, and then gradually reduce fiscal deficit so that the growth of economy is not hampered.”
In her budget, Sitharaman has proposed a whopping 137 per cent increase in outlay for health for the first time in history, but this factors in Rs 35,000 crore that will be spent on Covid vaccines. A new scheme – Pradhan Mantri Atma Nirbhar Swastha Bharat Yojana will be launched to ramp up primary, secondary and tertiary healthcare. Similarly, the highest ever budget outlay of Rs 1.18 lakh crore for road transport and highway ministry makrs an increase of 18 per cent. This will be spent on six-lane highways, speed radars and new expressways, with a target of reaching 11,000 kilometre of national highways to be built this year. National Highways Authority of India will raise Rs 65,000 crore from the market, and the daily highway construction average will be increased to 40 km per day.
There is no gainsaying the fact that Nirmala Sitharaman has prepared this budget under exceptional post-pandemic circumstances. For almost one whole year, most of the industries remained closed due to pandemic and lockdown, revenue resources of the government were limited while expenditure was unlimited due to the pandemic. It was the government’s responsibility during the lockdown period to ensure that every Indian got food. Already, as Modi and Seetharaman said, the government had already announced five tranches of economic stimulus packages during the last one year, which were almost like “mini-Budgets”. We had heard Seetharaman for the past one year explaining details about the Rs 20 lakh crore stimulus package. There was not much left for this budget, and most of the people were apprehending huge hike in income tax, corporate tax, and indirect taxes. There were fears about rising prices and inflation, while the infra sector was expecting a huge dip in outlay due to lack of funds. Subsidies were going to be slashed, but nothing of this sort happened.
Nirmala Sitharaman has done a miracle. I think this is a positive budget and there are no negativities in it. Sitharaman implemented the ideas and vision of Prime Minister Narendra Modi. There was no fresh burden on the common man. The government has opened up new avenues of augmenting funds, creating more jobs, kept ‘vocal for local’ in mind, and these were confident steps towards an “Atmanirbhar Bharat”. The Prime Minister praised the Budget saying it was “a pro-active budget that will give boost to wealth creation as well as wellness”. The year of 2020 that saw a world reeling under Covid pandemic, also affected Indian economy. It was a grave challenge to our Prime Minister, who had to ensure that 135 crore Indians must not die, either due to pandemic or due to starvation. And he has come out of the torrid challenge with flying colours. Today the pandemic is more or less under control, the work of vaccination has begun and the economy is looking up. Only the farmers are on ‘dharna’ for more than two months, and Modi has kept the interests of farmers, too, in his mind. Through the budget, he has sent them the message that the government is determined to enhance their income by 150 per cent.
Similarly, in the manufacturing sector, the government has come up with the Voluntary Auto Scrapping Policy, under which all vehicles more than 20 years old, will undergo automated tests and will be scrapped. This will generate Rs 50,000 crore worth revenue and create more jobs in the automobile sector, which faced the full brunt of the lockdown last year. At that time, thousands of car showrooms had to be closed down as sales dipped.
Overall, looking at the budget, I find there are three sectors on which the government is concentrating : Health, Agriculture and Infrastructure. All these sectors offer a great challenge. The Covid pandemic made us sit and realize that there was lack of a comprehensive healthcare infra. There were not even PPE kits, ventilators, testing facilities, oxygen cylinders and other vital medical equipments. There were acute shortage of doctors, nurses and paramedics. Many districts lacked primary health centres. The speed that was noticed during the last one year in the fields of manufacturing PPE kits, ventilators and readying testing facilities was extraordinary.
Similarly, in agriculture, three path breaking laws were enacted, but the opposition along with self-appointed farmer leaders tried their best to mislead farmers about these laws, and still continue to do so. The government, through 11 rounds of talks, tried its best to assuage the feelings of farmers, and offered even to put the laws on hold for 18 months, and yet the farm leaders are stubborn and adamant. The result: the farmers are sitting on a dharna for more than two months and the nation’s image has been besmirched due to violence and disrespect to national flag. The government continues with its efforts to allay the fears of farmers, and the Prime Minister has already said that he was “only one call away” if the farmers want to resume talks.
In industry, goods are being manufactured and transported, but the malls are empty and most of the shops have hardly any buyers. Transport sector, textile, toy industry, and several other sectors are looking at recession, because consumers do not have money to buy. The tourism, travel, aviation, hotel and food industry sectors are in doldrums due to lack of tourists and consumers. The real estate sector is limping as there are very few home buyers. These were the sectors that used to give employment to lakhs of people. It is in this context that the government has come forward to spend a huge chunk of the budget on infrastructure like road, railways, ports and airports, to generate employment.
Once the economy is geared up, and people have money in their pockets, the world will come to India for business. On its, part, the government has tried its best to move the wheels through this budget. Even as naysayers in the opposition may say that the budget has nothing new to offer, I believe that this budget will surely give a boost to growth in our economy. Indian economy will definitely rebound and stand on its legs, and with Atmanirbhar Bharat as the aim, this will nurture a new India we shall all be proud of.