हैदराबाद में बीजेपी का शानदार प्रदर्शन
भारतीय जनता पार्टी ने ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया है और उसकी सीटों की संख्या चार से छलांग लगा कर 48 तक पहुंच गई है. नगर निगम में अब भाजपा दूसरे स्थान पर है। उसने चुनाव में कांग्रेस को लगभग ध्वस्त कर दिया और कांग्रेस की सीटों की संख्या दो पर सिमट कर रह गई है।
बीजेपी ने नगर निगम के इस चुनाव में जिस तरह की ताकत झोंकी वैसा पहले कभी नहीं देखा गया। पार्टी ने यहां बहुत कुछ दांव पर लगाया। हैदराबाद में चुनाव प्रचार करने के लिए खुद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा उतरे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी चुनाव प्रचार करने आए और इसका जबरदस्त फायदा बीजेपी को मिला।
मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) भले ही 56 सीटें जीतकर पहले नंबर पर है, लेकिन चुनाव परिणामों से साफ है कि बीजेपी ने टीआरएस के गढ़ में खासी घुसपैठ की है। चुनाव के नतीजे टीआरएस के लिए ही सबसे ज्यादा खतरे की घंटी हैं। पिछले चुनाव में टीआरएस ने 150 में से 99 सीटों पर जीत दर्ज की थी। लेकिन इस बार टीआरएस की 43 सीटें घट गई। यह नतीजा टीआरएस के लिए साफ संदेश है कि पार्टी का जनाधार टूटने लगा है।
बीजेपी की ताकत बढ़ने का सीधा असर केसीआर की राजनीति पर पड़ेगा। 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनावों में बीजेपी और ज्यादा दमखम के साथ मैदान में उतरेगी। हैदराबाद में बीजेपी के उभरने और टीआरएस के कमजोर पड़ने का असर पूरे तेलंगाना पर होगा। ये नतीजे संकेत हैं कि तेलंगाना की राजनीति बदल सकती है। कर्नाटक के बाद तेलंगाना में बीजेपी के लिए दक्षिण भारत में एंट्री का दूसरा दरवाजा खुल गया है। बीजेपी ने तेलंगाना में अपना जनाधार मजबूत किया है और अब उसकी नजरें अगले विधानसभा चुनावों पर टिकी हैं।
पांच साल पहले हैदराबाद नगर निगम चुनाव में बीजेपी पांचवें नंबर की पार्टी थी लेकिन अब उसने कांग्रेस को बहुत पीछे छोड़ दिया है और दूसरे नंबर की पार्टी हो गई है। हैदराबाद में बीजेपी इतनी सीटें जीत ले ये बड़ी बात है। यह राज्य में चल रही परिवर्तन की लहर का साफ संकेत है।
इस चुनाव में ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) ने 51 सीटों पर चुनाव लड़कर 44 सीटें जीती है। अब ओवैसी दावा कर सकते हैं कि वो मुसलमानों के सबसे बड़े नेता हैं। उनकी पार्टी ने उन्हीं इलाकों में चुनाव लड़ा था जहां मुस्लिम वोटर ज्यादा हैं। ओवैसी की पार्टी ने अपने गढ़ पुराने हैदराबाद के इलाकों में ज्यादातर सीटें जीती है। उधर, टीआरएस चीफ चंद्रशेखर राव के लिए ये नतीजे खतरे की घंटी साबित हो सकते हैं। वो किसी तरह हैदराबाद में अपना मेयर तो बना लेंगे पर बीजेपी का डर अब उन्हें हर रोज सताएगा ।
सबसे बुरी हालत तो कांग्रेस की हो गई है। कांग्रेस ने 150 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन सिर्फ 2 सीटों पर जीत नसीब हुई। दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस ये भी नहीं कह सकती कि ईवीएम में गड़बड़ी हुई। क्योंकि यहां चुनाव ईवीएम से नहीं बल्कि बैलट पेपर से हुए थे।
इस चुनाव परिणाम से चार साफ संकेत सामने आए हैं। एक, दक्षिण भारत के इस राज्य में बीजेपी को अपने प्रयोगा का अच्छा नतीजा मिला है। बीजेपी के नेता और कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ गया है और ये दक्षिण भारत में बीजेपी के लिए एक नई शुरुआत है। दूसरा, बीजेपी ने पहली बार नगर निगम चुनाव में प्रचार के लिए अपने राष्ट्रीय नेताओं को उतारा और एक स्पष्ट रणनीति के साथ चुनाव लड़ा और यह सफल रहा। तीसरा, हैदराबाद के नतीजों ने दक्षिण भारत में बीजेपी के लिए दूसरा दरवाज़ा खोल दिया हैं। एक तरफ बैंगलुरू है जहां बीजेपी के पैर पहले से जमे हैं वहीं अब दूसरा दरवाजा हैदराबाद में खुला है। चौथा, तेलंगाना में बीजेपी का ग्राफ तेजी से बढ़ा है।
बीजेपी ने 2018 के बाद से तेलंगाना में जो रफ्तार पकड़ी है उसे रोकना केसीआर के लिए बहुत मुश्किल होगा। 2018 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर सिर्फ 7 प्रतिशत था लेकिन कुछ महीने बाद 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 20 प्रतिशत हो गया। उस समय से लेकर आज तक बीजेपी ने अपनी ताकत लगातार बढाई है।
हैदराबाद नगर निगम चुनाव के नतीजों का एक संदेश असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के नतीजों में छिपा है। यह चुनाव ओवैसी के लिए भी काफी अहम था क्योंकि उनकी परीक्षा उनके अपने घर में हो रही थी। ओवैसी ने इस चुनाव को सधी हुई रणनीति के साथ लड़ा और 150 वॉर्ड वाले हैदराबाद नगर निगम में सिर्फ 51 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे।
ओवैसी ने उन सीटों पर ताकत लगाई जहां मुस्लिम मतदाताओं की तादाद ज्यादा है। ओवैसी की इस रणनीति का एआईएमआईएम को जबरदस्त फायदा हुआ। ओवैसी 51 सीटों पर लड़े और 44 पर जीते। ओवैसी की पार्टी का स्ट्राइक रेट देखें तो यह 84 प्रतिशत के करीब रहा। अगर हैदराबाद में ओवैसी की ताकत कम हो जाती तो उनके लिए बाहर जाकर चुनाव लड़ना मुश्किल हो जाता। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम बहुल सीटों पर उम्मीदवार उतारने की जो प्लानिंग ओवैसी कर रहे हैं,उस पर भी ब्रेक लग जाता। अब वे बंगाल पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकते हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का समर्थन करता है।
हैदराबाद नगर निगम चुनाव के नतीजे ऐसे हैं कि तीनों पार्टियां- टीआरएस, बीजेपी और एआईएमआईएम इसे अपनी जीत बता रही हैं। बीजेपी का कहना है कि हमारी सीटें 4 से बढकर 48 हो गईं और वोट ढाई प्रतिशत से बढ़कर 26 प्रतिशत हो गया, इस हिसाब से ये बीजेपी की जीत है। ओवैसी कह रहे हैं कि हमारी स्ट्राइक रेट देखिए, हम 51 सीटों पर लड़े और 44 जीते। इससे बड़ी जीत क्या हो सकती है? टीआरएस 57 सीटों पर जीती जबकि पिछली बार उनके पास 99 सीटें थीं, लेकिन उनके यहां भी जश्न मनाया जा रहा है क्योंकि वो सबसे बड़ी पार्टी है। टीआरएस का कहना है कि हमने बीजेपी को मेयर बनाने से रोक दिया है, ये हमारी जीत है।
इस चुनाव में अगर कोई एक पार्टी है जो न जीत का दावा कर सकती है और न जश्न मना सकती है तो वो कांग्रेस है। कांग्रेस को बड़ी मुश्किल से नगर निगम की दो सीटों पर जीत मिली है। नतीजे सामने आने के बाद पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष ने इस्तीफा दे दिया और केंद्रीय नेतृत्व अवाक् है। हैदराबाद नगर निगम चुनाव नतीजों का मतलब ये है कि अब तक तेलंगाना में टीआरएस को कांग्रेस चुनौती देती थी लेकिन अब बीजेपी चैलेंजर बन गई है।
Hyderabad civic body results: A spectacular win for BJP
In a stunning performance, the Bharatiya Janata Party on Friday scored a spectacular leap in its tally from four to 48 wards in the Greater Hyderabad Municipal Corporation elections, almost decimating the Congress and became the second largest party in the civic body. This was the result of a high-octane poll campaign spearheaded by top leaders like Amit Shah, Yogi Adityanath and party chief J. P. Nadda.
The ruling Telangana Rashtra Samithi’s tally declined from 99 last time to 55, with the BJP making big inroads into TRS territory. This is the second state in the South, after Karnataka, where the BJP has extended its base with an eye on 2023 Telangana assembly polls.
Five years ago, BJP was at No.5 spot in the Hyderabad civic body, but it has now dethroned the Congress to gain the No. 2 spot. This is a clear indication of the winds of change that is blowing in the state. Asaduddin Owaisi’s All Indian Muslim Ittehadul Muslimeen (AIMIM) contested 51 seats, and won 44, mainly in its strongholds in Old Hyderabad. Owaisi kept his Muslim vote bank intact, but the civic body results have sound a warning to Chief Minister K. Chandrashekhar Rao, the TRS supremo. His party may not be able to get its city mayor elected on the basis of its own strength.
Congress was the worst sufferer in the elections. It contested 150 seats, but managed to win only two. The party cannot blame electronic voting machines this time, because the civic body polling was done on printed ballots.
Four clear signals have emerged from these results. One, BJP’s experiment in this Southern state have yielded results. Two, it contested the civic polls with a clear strategy by bringing in national leaders for the first time to campaign and it succeeded. Three, BJP has now two big municipal corporations, Bengaluru and Hyderabad, where it has a big presence. Four, BJP’s graph in Telangana is rising. In 2018, it had only 7 per cent vote share in the state assembly polls, but in the following year, it cornered 20 per cent vote share in the 2019 Lok Sabha elections.
The Hyderabad civic body results also show how Owaisi has succeeded in getting a good 84 per cent strike rate by resorting to a tactical strategy. Out of a total of 150 wards, he decided to contest only 51, where Muslim voters dominate, and managed to win 44 seats. Owaisi has shown that he is good at making election strategies. In Bihar, his party contested only 20 seats and won five, all in Muslim dominated areas. Had Owaisi failed in his home base in Hyderabad, it would have put a brake on his plans for West Bengal elections. Now he can concentrate on Bengal which has a sizeable proportion of Muslim voters, who support Mamata Banerjee’s Trinamool Congress.
While the three main parties in Hyderabad, TRS, BJP and AIMIM, are celebrating because of different reasons, the only party left out in the cold is Congress. Its state unit chief resigned after the results were out and the central leadership is clueless.
किसानों को ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ का नारा लगाने वालों से दूर रहना चाहिए
केंद्र और किसान नेताओं के बीच गुरुवार को बातचीत के एक और मैराथन दौर के बाद सरकार की कोशिशें कुछ रंग लाती दिख रही हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने संकेत दिया कि सरकार नए कृषि कानूनों के कुछ प्रावधानों में संशोधन के लिए तैयार है। सरकार ने कृषि उत्पाद बाजार समितियों (APMC), जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में ‘मंडी’ कहा जाता है, को मजबूत करने और उनका आधुनिकीकरण करने का प्रस्ताव रखा। इसके अलावा किसान नेताओं के सुझाव पर सरकार उन सभी प्राइवेट ट्रेडर्स के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन पर भी सहमत हुई, जो कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर किसानों से उनकी फसल खरीदेंगे। सरकार किसानों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग विवाद की स्थिति में विवाद निपटान के लिए ऊंची अदालतों में जाने की स्वतंत्रता दिए जाने के लिए कानूनी प्रावधान में संशोधन के लिए भी तैयार हो गई।
केंद्र सरकार APMC मंडियों और प्राइवेट मार्केट के लिए समान टैक्स के लिए भी सहमत हुई। इसके साथ ही केंद्र ने कॉर्पोरेट्स को किसानों से जुड़ी जमीन लेने से रोकने के लिए कड़े प्रावधान बनाने की भी पेशकश की। सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली को जारी रखने के अपने वादे को लिखित रूप में देने की भी बात कही। हालांकि गुरुवार की बैठक के बाद किसान नेताओं का मूड बहुत सकारात्मक नहीं दिखाई दिया, लेकिन फिर भी दोनों पक्ष शनिवार को फिर से मिलने के लिए सहमत हुए हैं। केंद्र ने किसान संगठनों के नेताओं से साफ-साफ कहा कि तीनों नए कृषि कानूनों को रद्द करना संभव नहीं है, जबकि किसान लगातार इन कानूनों को खत्म करने की मांग कर रहे हैं।
गुरुवार की बैठक में किसान नेताओं ने सरकार को 12 पन्नों में अपनी आपत्तियां दीं, और लगभग सभी बिंदुओं पर चर्चा की गई। बैठक शुरू होने से पहले केंद्रीय मंत्रियों ने 40 किसान नेताओं का हाथ जोड़कर स्वागत किया, लेकिन किसानों की तरफ से जवाब उतनी गर्मजोशी से नहीं मिला। इसके बाद सरकार ने किसान नेताओं से लंच करने की रिक्वेस्ट की, लेकिन उन्होंने सरकार की इस रिक्वेस्ट को भी ठुकरा दिया। किसान नेता अपने साथ लंगर का खाना लेकर आए थे। उन्होंने जमीन पर बैठकर खाना खाया और सरकार की चाय भी नहीं पी। सरकार आंतरिक चर्चा में विचार करेगी, यद देखेगी कि कानून में कहां बदलाव हो सकता है, और फिर शनिवार को किसान नेताओं के साथ होने वाली बैठक में अपना प्रस्ताव रखेगी।
सरकार और किसानों के बीच गुरुवार को बातचीत शुरू होने से पहले पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और उनसे जल्द से जल्द गतिरोध को हल करने की अपील की। अमरिंदर सिंह ने कहा कि किसानों के आंदोलन से पंजाब की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है और साथ ही देश की राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा हो सकता है। कैप्टन ने जो चिंता जाहिर की, उसका सबूत आज ही मिल गया। उनका इशारा खालिस्तान का राग गाने वालों की तरफ था जो भारत के साथ-साथ कनाडा और न्यूयॉर्क जैसी जगहों पर भी हरकत में आ गए हैं। उन्होंने फिर से अपनी भारत विरोधी चालें चलनी शुरू कर दी है।
गुरुवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि कैसे दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर धरना दे रहे किसानों की मौजूदगी में ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ जैसे आपत्तिजनक नारे लगाए गए। इन नारों पर किसानों या उनके नेताओं में से किसी ने भी आपत्ति नहीं की। नारे लगाने के ये वीडियो इंडिया टीवी के कैमरे पर शूट हुए हैं, और हमारी संवाददाता दीक्षा पांडे ने इन्हें खुद सुना है। ये देखकर एएमयू, जेएनयू, शाहीन बाग और दिल्ली दंगों के वक्त जफराबाद में राष्ट्र-विरोधी तत्वों द्वारा लगाए गए भड़काऊ नारों की यादें ताजा हो गईं। सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के इन शरारती तत्वों ने प्रधानमंत्री के खिलाफ भड़काऊ नारे लगाए, और किसानों में से किसी ने भी इस पर आपत्ति नहीं जताई।
किसानों को अपनी नाराजगी दिखाने का लोकतांत्रिक अधिकार है लेकिन उन्हें किसी भी कीमत पर राष्ट्रविरोधी तत्वों को अपने मंच का इस्तेमाल करने और अशांति फैलाने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। यदि किसान नेता इस तरह की हरकतों पर चुप्पी साध लेते हैं, तो खालिस्तान का नारा लगाने वाले और बीते कई दशकों से खामोश रहे राष्ट्र-विरोधी तत्वों की हिम्मत बढ़ जाएगी। किसी भी कीमत पर ऐसा नहीं होने देना चाहिए। हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान इस आंदोलन से फायदा उठाने की कोशिश कर सकता है और भारत की जनता इसे कभी बर्दाश्त नहीं करेगी। हम अपने देश को सीमा पार से रची जा रही साजिशों का शिकार नहीं होने दे सकते।
Farmers should guard against those shouting “Modi Teri Qabr Khudegi”
After another marathon round of talks between farmer leaders and the Centre on Thursday, there appeared to be some signs of a breakthrough. Union Agriculture Minister Narendra Singh Tomar indicated that the government was willing to amend some provisions of new farm laws. The government proposed to strengthen and modernize the APMCs (Agriculture Produce Marketing Committees), popularly known as ‘mandis’. It also agreed to the suggestion of farmer leaders for compulsory registration of all private traders who intend to purchase crops from farmers on contract basis. The government also agreed to amend the provision in law to allow farmers to approach higher courts for appeal in contract farming disputes.
The Centre also agreed for equal taxes for APMC mandis and private markets. The Centre also offered to make stringent provisions to stop corporates from acquiring lands belonging to farmers. The government also offered to give in writing its solemn promise to continue with the minimum support price (MSP) system. Both sides agreed to meet again on Saturday though the mood of farmer leaders at the end of Thursday’s meeting did not appear to be quite positive. The Centre clearly told them that repealing the three new farm laws was unlikely, while the farmer leaders insisted on scrapping the legislations.
At Thursday’s meeting, the farmer leaders had given to the government their objections running into 12 pages, and almost all the points were taken up for discussion. Before the meeting began, the Union Ministers welcomed the 40 farmer leaders with folded hands, but the latter appeared to be aloof. They declined the government’s offer for lunch and brought their meals from gurudwara. They also declined to have tea offered by the government.
On the specific objections raised by farmer leaders, the government is going to have internal discussions on which provisions to amend and it will come up with its offer at the Saturday meeting.
Before the round of talks began on Thursday, Punjab chief minister Capt Amarinder Singh met Home Minister Amit Shah in Delhi to appeal to him to resolve the standoff at the earliest. Amarinder Singh said, the farmers’ agitation could cause harm to Punjab’s economy and it could adversely affect national security. The Captain was not off the mark. He was pointing his finger at Khalistani activists who have now become active, both in India and in places like Canada and New York. They have started their anti-India tirade again.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Thursday night, we showed how a group of people chanted objectionable slogans like “Modi Teri Qabr Khudegi” in the presence of farmers sitting on dharna at Delhi’s Tikri border. None of the farmers or their leaders objected. The chanting of slogans was recorded on camera by our correspondent Diksha Pandey. This scene reminded one of provocative slogans chanted by anti-national elements in AMU, JNU campuses and at Shaheen Bagh and Delhi Jaffrabad riot spots. The most surprising part was that these mischievous elements from ‘Tukde-Tukde’ gang raised provocative slogans against the Prime Minister, and none of the farmers objected to it.
Farmers have the democratic right to express dissent but they must now allow anti-national elements to infiltrate their ranks and cause unrest. If farmer leaders remain silent to such acts, anti-national elements like Khalistan supporters, who had been lying low for several decades, will get the chance to rear their heads again. This must not be allowed, at any cost. Our neighbouring country, Pakistan, will try to gain advantage from this agitation and the people of India will never tolerate such a situation. We must now allow our nation to become a victim of conspiracy being hatched across the border.
किसान खुद कह रहे हैं, नए कानून के बाद फसलों से हुई है ज्यादा आमदनी
पिछले आठ दिनों से हम देश के अन्नदाता किसानों की ऐसी तस्वीर देख रहे हैं जिससे तकलीफ होती है। नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर ये किसान ठंड के मौसम में दिल्ली के बॉर्डर पर रास्ता रोककर बैठे हुए हैं। इन तस्वीरों से साफ है कि किसान केंद्र के साथ लंबे टकराव के लिए पूरी तरह से तैयार हो कर आए हैं। पुलिस उनसे हाथ जोड़कर रास्ता खाली करने को कह रही है लेकिन किसानों पर उनकी बातों का कोई असर नहीं हो रहा है। रास्ता बंद करने से आम लोगों को परेशानी होती है, यहां तक की सब्जियां पैदा करने वाले, दूध बेचने वाले किसानों का भी नुकसान हो रहा है लेकिन किसान अपनी बात पर अड़े हैं। किसानों की तरफ से कहा गया है कि अगर नए कृषि कानूनों को रद्द करने की उनकी मांगें नहीं मानी गई तो वो दिल्ली को सील कर देंगे।
किसान देश का पेट भरते हैं। देश में हर कोई किसानों को सम्मान करता है और किसानों के साथ खड़ा होता है इसलिए ये किसी को अच्छा नहीं लग रहा कि किसान सड़क पर सर्दी में ठिठुरें। सर्द रात में देश का अन्नदाता इस तरह खुले आसमान के नीचे बैठे। ये किसे अच्छा लगेगा? दफ्तर जाने के लिए घर से निकले लोग किसानों के प्रदर्शन की वजह से जाम में फंस गए। न आगे जाने का रास्ता था और न पीछे लौटने की जगह। कई तस्वीरें देखकर लगता है कि किसानों को बहकाया जा रहा है। कई ऐसे लोग दिखे जो किसानों के इस आंदोलन का राजनैतिक फायदा उठाने में लगे हैं। बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में, हमने दिखाया कि महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और उत्तराखंड में कुछ किसान नए कृषि कानूनों का फायदा उठा रहे हैं और अपनी फसल को मंडियों से भी ज्यादा कीमत पर बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। हमने दिखाया कि महाराष्ट्र के नासिक में किसानों में प्याज प्याज, केला, अंगूर और अन्य सब्जियों की नकदी फसलें उगाई और मंडियों में न जाकर सीधे व्यापारियों को ऊंची कीमत पर बेचकर अच्छा लाभ कमाया।
नासिक के नांदुर शिंगोटे गांव में रहने वाले विनायक हेमाडे नाम के किसान ने हरा धनिया बेचकर साढ़े 12 लाख रुपया कमाया। उसने अपनी 8 एकड़ जमीन में से 4 एकड़ जमीन पर इस साल के जुलाई – अगस्त महीने में करीब 40-50 हजार की लागत से हरा धनिया की फसल लगाई। करीब 45-50 दिनों तक फसल की दिन-रात देखभाल की और सितम्बर महीने में फसल तैयार हो गयी। अपने गांव से थोड़ी दूर के व्यापारी को जब इनकी फसल के बारे मालूम हुआ तो उन्होंने विनायक से संपर्क करके दाम लगाया। मोल भाव करके विनायक को अपनी फसल का साढ़े 12 लाख रुपये मिला। फसल तो वैसे भी बिक ही जाती लेकिन इस डील में विनायक को अपना माल थोक मंडी में ले जाने की जरुरत नहीं पड़ी और उसका सारी फसल व्यापारी खेत से ही ले गए। जिससे किसान का हजारों रुपये का ट्रांसपोर्टेशन खर्च बच गया। विनायक को इस तरह से अपनी फसल का पूरा पैसा भी एक साथ मिला और मंडी में धक्के नहीं खाने पड़े। नए किसान कानून के तहत ये प्रावधान है कि कोई भी किसान की फसल सीधे खरीद सकता है।
अब आपको गुजरात के मेहसाणा की बात बताता हूं। मेहसाणा कॉटन (कापस) की खेती के लिए मशहूर है। इस वक्त मेहसाणा में कॉटन की खरीद हो रही है। ज्यादातर किसान मंडियों में जा रहे हैं लेकिन जिन किसानों को नए कानून की जानकारी है वो मंडी के बजाए व्यापारियों से भी संपर्क कर रहे हैं और सीधे कॉटन मिल्स में अपना माल बेच रहे हैं। इंडिया टीवी संवाददाता को किसानों ने बताया कि कृषि कानून बनने के बाद किसानों ने अपने ग्रुप्स बनाए हैं ताकि व्यापारियों के साथ सीधी खरीद-फरोख्त कर सकें और जब एक बार डील क्लोज़ हो जाती है तो फिर व्यापारी खुद किसानों का माल उठाने के लिए ट्रक भेजते हैं। कुछ किसान बिना किसी ग्रुप के सीधे व्यापारियों से डील कर रहे हैं। किसानों ने बताया कि वो नए कानून की वजह से मंडी टैक्स से बच गए। इसमें पैसा तुरंत मिल रहा है और भाव मंडी से ज्यादा मिल रहा है। मंडी में 20 किलो कपास का रेट 1100 रुपए हैं जबकि कॉटन मिल 20 किलो कपास के 1140 रुपए दे रही है। इन किसानों का कहना है कि अब तक तो ऐसा होता था कि पहले किसान मंडी में अपनी फसल बेचने जाता था वहां उसे दलाल मिलते थे जो कम दाम पर फसल खरीदते थे और फिर मुनाफा लेकर मार्केट में या मिलों को बेचते थे। अब नया कानून आया है और इससे विचौलिए खत्म हो गए, दलाली खत्म हो गई। इसलिए किसान को सीधा फायदा हो रहा है।
उधर, उत्तराखंड में कई नौजवान खेती की तरफ लौट रहे हैं कोई मशरूम की खेती कर रहा है तो कोई कैप्सिकम यानी शिमला मिर्च उगा रहा है। हरिद्वार के मनमोहन भारद्वाज पहले हॉर्टिकल्चरिस्ट थे लेकिन बाद में ये मशरूम और शिमला मिर्च फार्मिंग में आ गए। उन्होंने पिछले कुछ महीनों में 10 एकड़ जमीन पर एक पॉली हाउस में शिमला मिर्च और केले की खेती शुरू की। मनमोहन ने कहा कि पहले वो जब मंडियों में अपनी फसल बेचते थे तो उन्हें अपनी फसल का काफी कम दाम मिलता था। पेमेंट में भी देरी होती थी लेकिन नए कानून बनने के बाद वो कहीं नहीं जाते। बड़ी-बड़ी कंपनियां उनके खेत पर आती हैं। फसल की कीमत भी ज्यादा मिलती है और तमाम तरह के सिरदर्द से भी बच जाते हैं। मनमोहन भारद्वाज ने बताया कि पहले उन्हें एक किलो हरी शिमला मिर्च के मंडी में 30 रुपए मिलते थे लेकिन अब वो इसे 60 रुपए किलो के हिसाब से बेच रहे हैं। इसी तरह एक किलो रंगीन शिमला मिर्च के भी अब 100 रुपए की बजाए 135 रुपए मिल रहे हैं।
राजस्थान के बारां में कुछ नौजावनों ने मिलकर किसानों का ग्रुप बनाया है। इस ग्रुप से 1000 से ज्यादा किसान जुड़ चुके हैं। ये एक तरह का फार्मर प्रोड्यूसर्स ऑर्गनाइजेशन..यानी एफपीओ है। इस ग्रुप ने किसानों को इकट्ठा करने के बाद अब उन्हें मंडी और मार्केट के भाव बताने शुरू कर दिए हैं। व्हाट्स एप ग्रुप पर रोजाना किसानों को उनकी फसल की रेट पता चल जाते हैं। इसका फायदा ये है कि अगर मंडी के मुकाबले मार्केट में ज्यादा दाम मिलता है तो फिर किसान अपने उत्पाद को सीधे बाजार में बेच देता है और उसे मंडी जाने और दलाली देने की जरूरत नहीं पडती। इस ग्रुप का नाम अंता किसान एग्रो प्रोड्यूस है। इस ग्रुप के साथ इलाके के 12 गांव के किसान जुड़े हुए हैं। किसानों का कहना है कि पहले बिचौलियों की वजह से भाव कम मिलते थे लेकिन अब किसान अपनी मर्जी से फसल बेच सकता है और इसका पैसा भी खातों में डायरेक्ट पहुंच रहा है।
इन उदाहरणों से यह साफ है कि देश भर के अधिकांश किसान नए कानूनों के बारे में चिंतित नहीं हैं। सब कह रहे हैं कि नए कानूनों से उन्हें फायदा मिला है। इससे ये बात तो साफ हो गई कि कम से कम देश के सभी किसान ना तो नए कानूनों से नाराज हैं ना नए कृषि कानूनों को किसानों के खिलाफ बता रहे हैं। अब सवाल ये है कि आखिर फिर दिल्ली के बॉर्डर पर किसान धऱने पर क्यों बैठे हैं? उन्हें क्या दिक्कत है? उन्हें क्या नाराजगी है? किसानों के गिने चुने नेता तो बोलते हैं और अपने हिसाब से कानून को समझाते हैं। लेकिन जो वाकई में किसान हैं..उन भोले-भाले किसानों ने जो जबाव दिए वो सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। पंजाब के गांवों से ट्रैक्टर की ट्राली में बैठकर पांच पांच सौ किलोमीटर की दूरी तय करके दिल्ली पहुंचे किसानों से पूछा गया कि भाई क्या दिक्कत है? कानून में क्या कमी है? तो ज्यादातर किसान भाइयों ने कहा कि काला कानून है, जब तक सरकार वापस नहीं लेगी तब बैठे रहेंगे। राशन पानी की कमी नहीं है। फिर पूछा कि कानून से क्या दिक्कत है? कानून काला क्यों है तो कुछ किसान चुप हो जाते हैं। कुछ कहते हैं कि इतने पढ़े-लिखे नहीं हैं। बस इतना पता है कि सरकार ने काला कानून बनाया है और उसे वापस कराने आए हैं।
जरा सोचिए सीधे-सादे किसान नहीं जानते कि नया कानून क्या है, न उन्होंने कानून पढ़ा है और न ही किसी ने उन्हें कानून समझाने की कोशिश की है। और इन कानूनों को काला कानून बताकर जो लोग नेतागिरी कर रहे हैं, वो न तो किसान की भावना को जानते हैं और न किसान को फायदा पहुंचाना चाहते हैं। वो तो किसानों की परेशानी का फायदा उठाना चाहते हैं। वो तो कह रहे हैं कि अवॉर्ड वापसी होगी। रास्ता जाम होगा। इन सारी बातों का किसानों से क्या मतलब है। लेकिन नेतागिरी करने पहुंचे चंद्रशेखर और पप्पू यादव जैसे नेता अपनी दुकान चलाएंगे। हमेशा आंदोलन के लिए ख़़ड़ी रहने वाली मेधा पाटेकर और योगेन्द्र यादव फिर से लाइमलाइट में आ जाएंगे।
इस आंदोलन में ज्यादातर किसान पंजाब से आए हैं और पंजाब में 2 साल बाद चुनाव होने हैं। चुनाव को देखते हुए कांग्रेस, अकाली दल और आम आदमी पार्टी पूरी तरह एक्टिव हैं। वामपंथी नेताओं ने अपने ट्रेड यूनियन वालों को किसान के बीच खड़ा कर दिया है। लेफ्टिस्ट छात्र नेता भी वहां डफली बजाने और नारे लगाने पहुंच गए हैं। लेकिन इन सब बातों को स्वीकार भी किया जा सकता है और बर्दाश्त भी किया जा सकता है, क्योंकि ये अपने लोग हैं। ये वो लोग हैं जो लोकतंत्र में अपनी बात कहने का अधिकार रखते हैं, आलोचना और राजनीति का अधिकार रखते हैं, लेकिन जब इस आंदोलन का फायदा विदेशी ताकतें उठाने लगे तो चिंता होती है।
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Farmers speak: New laws helped them in getting more money for their crops
For the last eight days, the nation has been watching thousands of farmers protesting on the borders of national capital, prepared for a long-drawn confrontation with the Centre on the issue of repeal of new farm laws. Most of the countrymen are sad when they watch farmers squatting, cooking and sleeping in the open in harsh cold winter. With highways linking Delhi closed at several border points, supply of fruits, vegetables and foodgrains has come to a standstill. The farmers have threatened to block Delhi if their demand for withdrawal of new laws is not met.
The people of India have utmost respect for the hardworking farmers and nobody likes them sitting indefinitely on the highways. Thousands of office going commuters faced ordeal this week as the arterial roads remained choked. There seems to be efforts by some vested interests who are trying to gain political mileage by instigating the farmers to continue with their agitation.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Wednesday night, we showed how some farmers in Maharashtra, Gujarat, Rajasthan and Uttarakhand are taking advantage of the new farm laws by selling their crops to buyers, including corporates, at rates higher than those prevailing in ‘mandis’. We showed farmers in Nashik, Maharashtra, who have raised cash crops like onion, bananas, grapes and other vegetables are selling their crops at higher rates to buyers directly, without going to mandis.
A farmer Vinayak Hemade of Nandur Shingote village near Nashik grew green ‘dhania’(coriander) leaves on eight acre of land at a cost of Rs 40,000. After 50 days, he got a buyer from Nashik who came to his field and bought the entire crop for Rs 12,50,000. Hemade earned this money without going to the local ‘mandi’. He saved money on labour and transportation costs. Hemade has now became an ardent supporter of the new farm laws.
In neighbouring Gujarat, Mehsana is famous for growing cotton. This time, farmers formed small groups to bargain directly with cotton mills. Some of the farmers told India TV correspondent that they got Rs 1140 per 20 kg of cotton from the mill, compared to Rs 1100 per 20 kg rate prevailing in the ‘mandi’. Because of the new farm laws, the farmers are saving money on ‘mandi fees’. Farmers do not have to deal with middlemen now and they are happy with the new laws.
In Haridwar, Uttarakhand, a former horticulturist Manmohan Bhardwaj grew capsicums and bananas under a poly house spread over 10 acres of land. Earlier, he used to get only Rs 30 per kg for green capsicum, but now he is getting double the amount for capsicum directly from buyers. Bhardwaj is getting Rs 135 per kg for coloured capsicum compared to Rs 100 he used to get earlier.
In Baran, Rajasthan, nearly 1,000 farmers have joined what they called FPO (Farmer Producers Organization) WhatsApp group, where they get market and ‘mandi’ rates immediately on their cellphones and sell their crops directly to the buyers. Farmers from 12 villages have joined Anta Kisan Agro Produce group. According to these farmers, earlier they were at the mercy of middlemen, but now they get money directly to their bank accounts from buyers. This group provides fertilizer, seeds and pesticide to farmers at affordable rates.
These instances make it clear that most of the farmers across the country are not worried about the new laws. On the contrary, many of them are already taking advantage of the new laws to shore up their earnings.
Contrast this with the hundreds of farmers who have descended on the capital riding tractors and trolleys from Punjab. India TV reporters spoke to most of them. These farmers described the new farm laws as ‘kaala kanoon’ (black laws), but when asked on what points were they opposing these laws, the farmers remained silent. Most of the farmers appeared to be blindly driven by the talk of self-serving leaders who have told them that the new farm laws are ‘black laws’ and must be withdrawn. None of the leaders have explained the pros and cons of the new farm laws to these farmers, most of whom are hardworking, but illiterate.
Just imagine. How some leaders are playing with the lives and emotions of farmers, who say they have not read the new laws and are totally unaware about its provisions. Nobody tried to explain the new farm laws to these farmers in a proper and logical manner. Small time leaders with no grassroots like Medha Patkar, Yogendra Yadav, Pappu Yadav and Chandrashekhar Azad are trying to take political mileage out of this farmers’ agitation.
Punjab will be going to assembly polls in March 2022 and the Congress, Akali Dal and Aam Aadmi Party are already active among the farmers. The Left parties have sent their trade union leaders among the farmers. Leftist students and activists have reached the sit-in sites to sing songs using ‘dafli’ (musical instrument). In a democracy, dissent and protests by political forces are welcome, but when external forces enter the scene to create unrest, it becomes a matter of serious concern.
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आंदोलन कर रहे किसान ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग से सावधान रहें
सरकार और 35 किसान संगठनों के नेताओं के बीच मंगलवार को हुई बातचीत का भले ही कोई नतीजा नहीं निकलता, लेकिन कम से कम दोनों पक्षों में एक-दूसरे को समझने की शुरुआत हो गई है। पहली बार बातचीत का रास्ता खुला और जो डेडलॉक था, वह खत्म हुआ। यह एक अच्छी शुरुआत है क्योंकि दोनों पक्षों ने लगभग चार घंटे तक कृषि कानूनों पर चर्चा की। बातचीत के दौरान सरकार द्वारा नए कानूनों को लेकर एक प्रेजेंटेशन भी दिया गया ताकि गलतफहमियों को दूर किया जा सके।
सरकार ने किसान नेताओं से नए कानूनों को लेकर उनकी आपत्तियों को बिंदुवार तरीके से सामने लाने को कहा है ताकि गुरुवार को होने वाली दूसरे दौर की बैठक में सरकार द्वारा एक-एक क्लॉज पर विचार किया जा सके। सरकार के दो वरिष्ठ मंत्रियों पीयूष गोयल और नरेंद्र सिंह तोमर ने बुधवार को गृह मंत्री अमित शाह को पहले दौर की बातचीत में सामने आई चीजों के बारे में जानकारी दी। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे राकेश टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन के नेताओं के साथ मंगलवार की शाम को एक और बैठक हुई।
अब हम सबके सामने सवाल यह है कि आगे का रास्ता क्या है? इस मुद्दे का हल क्या हो सकता है? पहले दौर की बातचीत में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने नए कानूनों का अध्ययन करने के लिए एक एक्सपर्ट कमिटी का गठन करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन किसान नेताओं ने इसे खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि सरकार को नए कानून बनाने से पहले ऐसा करना चाहिए था। किसान नेताओं ने सरकार से दो टूक कहा कि वे अपने आंदोलन तब तक जारी रखेंगे जब तक कि नए कानून वापस नहीं ले लिए जाते।
एक तरफ 35 संगठनों के किसान सरकार के साथ बातचीत की टेबल पर बैठे थे, तो दूसरी तरफ हजारों किसान सिंघू बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर, बुराड़ी मैदान, चिल्ला बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर धरने पर बैठे थे। किसानों के इन धरनों के चलते भारी ट्रैफिक जाम के साथ-साथ गाड़ियों की आवाजाही बंद हो गई। दिल्ली की सीमाओं पर किसानों द्वारा की गई घेराबंदी को देखते हुए दिल्ली पुलिस ने मंगलवार को बगैर किसी दिक्कत के गाड़ियों की आवाजाही के लिए रूट्स की एक लिस्ट जारी की। हरियाणा सरकार में बीजेपी की सहयोगी जननायक जनता पार्टी ने मांग की कि नए कृषि कानूनों में MSP स्कीम को जारी रखने का प्रावधान शामिल किया जाना चाहिए।
किसान नेताओं के साथ बातचीत शुरू करके मोदी सरकार ने एक सकारात्मक संकेत दिया है। पहले यह बातचीत 3 दिसंबर को होने वाली थी, लेकिन दिल्ली की सीमाओं पर जारी वर्तमान गतिरोध को देखते हुए बातचीत को बगैर किसी शर्त के तय समय से पहले ही हो गई। ऐसा करके सरकार ने संदेश दिया है कि न तो वह अपनी बात को लेकर अड़ी है, और न ही उसका इरादा संदिग्ध है। किसानों ने बगैर किसी पूर्व शर्त के बातचीत में शामिल होकर एक सकारात्मक संदेश दिया है।
किसानों को एहसास है कि लोकतंत्र में, सभी बड़ी समस्याओं को बातचीत के माध्यम से ही शांति से हल किया जा सकता है। आंदोलन का सहारा लेकर उन्होंने साफ तौर पर संकेत दिया है कि वे नए कानूनों से खुश नहीं हैं। बैठक के बाद नरेंद्र तोमर की बात सुनकर साफ था कि सरकार खुले मन से किसानों से बात कर रही है, और वह किसानों के साथ किसी भी तरह की सियासत नहीं कर रही है। अगर दोनों पक्षों को एक दूसरे पर यकीन है तो फिर रास्ता जरूर निकल सकता है। लेकिन बहुत से लोग ऐसे हैं जिनका किसान आंदोलन से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन वे किसानों के हमदर्द बनकर उनके बीच पहुंच रहे हैं और उन्हें सरकार के खिलाफ भड़का रहे हैं।
छोटे-छोटे राजनीतिक संगठनों के नेता जैसे कि भीम आर्मी के चंद्रशेखर और बिहार के पप्पू यादव मंगलवार को किसानों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करने के लिए उनके बीच गए। एक बार को मान भी लें कि ये नेता किसानों को लेकर चिंतित हैं, लेकिन मैं यह नहीं समझ पा रहा कि शाहीन बाग की दादी और कनाडा के प्राइम मिनिस्टर जस्टिन ट्रूडो क्यों बीच में कूद रहे हैं। उन्हें तो भारतीय किसानों की समस्याओं और शिकायतों से कोई लेना-देना नहीं है।
दरअसल, जस्टिन ट्रूडो इस मुद्दे पर इसलिए बोले हैं क्योंकि उनके देश में भारतीय मूल के सिख वोटर्स बड़ी मात्रा में रहते हैं। ये सिख पंजाब से ताल्लुक रखते हैं और कनाडा में चुनावों के दौरान इनका समर्थन ट्रूडो और उनकी पार्टी के लिए बहुत मायने रखता है। ट्रूडो ने कहा है कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन (किसानों के द्वारा) के अधिकार की रक्षा के लिए कनाडा हमेशा खड़ा रहेगा और यह उनके लिए चिंता की बात है। ट्रूडो के बयान के जवाब में भारतीय विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि ‘हमने कनाडाई नेताओं द्वारा भारत में किसानों से संबंधित कुछ ऐसी टिप्पणियों को देखा है जो भ्रामक सूचनाओं पर आधारित है। इस तरह की टिप्पणियां अनुचित हैं, खासकर जब वे एक लोकतांत्रिक देश के आंतरिक मामलों से संबंधित हों।’
ब्रिटिश नेताओं जॉन मैकडोनेल और टैन डेसी ने भी भारत में किसानों के विरोध प्रदर्शन से निपटने के तरीकों की आलोचना की है। ये ब्रिटिश नेता मोदी विरोधियों के रूप में जाने जाते हैं और भारत को इन लोगों को ये साफ-साफ समझाने की जरूरत है कि यह हमारे देश का आंतरिक मामला है। किसान हमारे हैं, हम उनके साथ खड़े हैं, और बाहर के लोग ऐसी बयानबाजी करने से बाज आएं, हमारे देश के आंतरिक मामलों में दखल ना दें। इस मसले को किसान और सरकार आपस में मिलकर हल कर लेंगे।
किसानों को यह बात समझनी होगी कि बाहरी ताकतें उनके आंदोलन का फायदा उठाने की कोशिशों में जुटी हैं। कुछ प्रदर्शनकारियों ने धरनास्थल पर खालिस्तान समर्थक पोस्टर भी लगाए, जो साफतौर पर एक देश-विरोधी काम है। यहां इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि अधिकांश किसानों ने इन लोगों को अपने आंदोलन से दूर रहने के लिए कहा और उन्हें किनारे लगा दिया। किसानों को पता होना चाहिए कि आंदोलन बहुत बड़ा है, और इसकी कोई एक लीडरशिप भी नहीं है, इसलिए टुकड़े-टुकड़े गैंग और खालिस्तान समर्थक तत्व उनके विरोध का फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं। ऐसे में किसानों को बेहद सावधान रहने की जरूरत है।
Farmers protest : Beware of the ‘tukde tukde’ gang
Though talks between the leaders of 35 farmers’ outfits and the government remained inconclusive on Tuesday, there were signs of accommodation from both sides. For the first time, a channel of communication has opened to break the deadlock. It was a good start as both sides discussed the farm laws for nearly four hours which included a presentation on the new legislations by the government to dispel misgivings.
The government has sought point-wise specific objections on the new laws from farmer leaders which will be taken up by the government clause by clause at the second round of talks due on Thursday. On Wednesday, two senior ministers Piyush Goyal and Narendra Singh Tomar briefed Home Minister Amit Shah about the outcome of the first round. There was another meeting on Tuesday with Bharatiya Kisan Union leaders led by Rakesh Tikait, representing UP and Uttarakhand farmers, in the evening.
The questions before all of us is: what is the way forward? What could be the solution? In the first round of talks, Agriculture Minister Narendra Singh Tomar proposed setting up of an experts committee to study the new laws, but this was not accepted by the farmer leaders. They said, the government should have done this before preparing the new laws. The farmer leaders told the government in no uncertain terms that they would not suspend their agitation until and unless the new laws are withdrawn.
Even as the talks were going on, thousands of farmers continued to sit on dharna at Singhu border, Tikri border, Burari ground, Chilla border and Ghazipur border, resulting in huge traffic jams and blockage of traffic movement. With the borders of Delhi under siege, Delhi Police on Tuesday issued a list of routes for motorists for smooth movement. The Jannayak Janata Party, an ally of BJP in Haryana government, demanded that the provision for continuance of MSP scheme must be incorporated in the new farm laws.
By initiating talks with farm leaders, the Modi government has sent out a positive signal. The talks were originally due on December 3, but considering the present deadlock created on Delhi borders, the talks were preponed, without any condition. The government has sent out the message that it is not rigid in its attitude, nor is its intention doubtful. The farmers have also sent out a positive message by joining the talks without any pre-conditions.
The farmers realize that in a democracy, all big problems can be solved peacefully only through talks. By resorting to agitation, they have clearly indicated that they are not happy with the new laws. Listening to Narendra Tomar’s remarks after the meeting, it is clear that the government has an open mind on the issue, and it is not indulging in any political upmanship with the farmers. If there is trust from both sides, a solution can be found out. But there are also vested interests who want to take advantage of the crisis and are instigating the farmers to take an extremist path.
Leaders of small time political outfits like Chandrashekhar Ravana of Bhim Army and Pappu Yadav from Bihar appeared before farmers on Tuesday to express their solidarity. Even if one admits that these leaders are concerned about the farmers, I do not find why the old lady Dadi from Shaheen Bagh and the Prime Minister of Canada Justin Trudeau came forward to express their support. They have nothing to do with the problems and grievances of Indian farmers.
Of course, Justin Trudeau has spoken because of the presence of a large number of Indian origin Sikh voters from Punjab in his country, whose support during elections in Canada matters a lot for him and his party. Trudeau has said that Canada will always be there to defend the right of peaceful protest (by farmers) and it was a matter of concern for him. In reply, the Indian Ministry of External Affairs on Tuesday said that “ill-informed comments by Canadian leaders relating to farmers in India.. are unwarranted”. British leaders John McDonnell and Tan Dhesi criticized the handling of farmers’ protests in India. These British leaders are known Modi-baiters and it is time for India to tell them clearly that it is a domestic issue to be resolved by the Indian government and Indian farmers.
The agitating farmers must also realize that there are outside forces trying to take advantage of their agitation. Some protesters have even put up pro-Khalistan posters at the site, which is clearly an anti-national act. It is gratifying to note that most of the farmers asked these people to stay away from their agitation and they were sidelined. The farmers must know that there is no single leadership that is spearheading their agitation and outsiders, like those from Tukde-Tukde gang and pro-Khalistan elements, may try to take advantage. Extreme caution is the need of the hour.
मोदी पर भरोसा करें, उनका ट्रैक रिकॉर्ड देखें और बात करें किसान
किसान आंदोलन में हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हज़ारों किसानों के शामिल होने के बाद अब केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच बातचीत की पूरी तैयारी हो गई है। वाराणसी में सोमवार को देव दीपावली के अवसर पर अपने भाषण में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘किसानों को गुमराह’ करने के लिए विपक्षी दलों की खूब खिंचाई की।
नरेंद्र मोदी अपने भाषण में किसानों के मुद्दे पर करीब 27 मिनट तक बोले। उन्होंने कहा- ‘ऐतिहासिक कृषि सुधारों के मामले में भी जानबूझकर यही खेल खेला जा रहा है। हमें याद रखना है, ये वही लोग हैं जिन्होंने दशकों तक किसानों के साथ लगातार छल किया है। अब जैसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तो घोषित होता था लेकिन एमएसपी पर खरीद बहुत कम की जाती थी। घोषणाएं होती थी, खरीद नहीं होती थी। सालों तक एमएसपी को लेकर छल किया गया। किसानों के नाम पर बड़े-बड़े कर्जमाफी के पैकेज घोषित किए जाते थे। लेकिन छोटे और सीमांत किसानों तक ये पहुंचते ही नहीं थे। यानि कर्ज़माफी को लेकर भी छल किया गया। किसानों के नाम पर बड़ी-बड़ी योजनाएं घोषित होती थीं। लेकिन वो खुद मानते थे कि 1 रुपए में से सिर्फ 15 पैसे ही किसान तक पहुंचते हैं।यानि योजनाओं के नाम पर छल।’
मोदी ने कहा- ‘किसानों के नाम पर, खाद पर बहुत बड़ी सब्सिडी दी गई। लेकिन ये फर्टिलाइज़र (खाद) खेत से ज्यादा काला बाज़ारियों के पास पहुंच जाता था। यानि यूरिया खाद के नाम पर भी छल। किसानों को प्रोडक्टिविटी (उत्पादन) बढ़ाने के लिए कहा गया लेकिन लाभ किसान के बजाय किसी और की सुनिश्चित की गई। पहले वोट के लिए वादा और फिर छल, यही खेल लंबे समय तक देश में चलता रहा है।’
मोदी ने कहा-‘जब इतिहास छल का रहा हो, तब 2 बातें बड़ी स्वभाविक हैं। पहली ये कि किसान अगर सरकारों की बातों से कई बार आशंकित रहता है तो उसके पीछे दशकों का या लंबा छल का इतिहास है। दूसरी, ये कि जिन्होंने वादे तोड़े, छल किया, उनके लिए ये झूठ फैलाना एक प्रकार से आदात बन गई है, मजबूरी बन चुकी है कि जो पहले होता था वैसा ही अब भी होने वाला है क्योंकि उन्होंने ऐसा ही किया था इसलिए वो ही फॉर्मूला लगाकर के आज भी देख रहे हैं। लेकिन जब इस सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड देखोगे तो सच आपके सामने खुलकर के आ जाएगा। हमने कहा था कि हम यूरिया की कालाबाज़ारी रोकेंगे और किसानों को पर्याप्त यूरिया देंगे। बीते 6 साल में यूरिया की कमी नहीं होने दी।’
मोदी ने कहा-‘पहले तो यूरिया ब्लैक में लेना पड़ता था, यूरिया के लिए रात-रात लाईन लगा करके रात को बाहर ठंड में सोना पड़ता था और कई बार यूरिया लेने वाले किसानों पर लाठी चार्ज की घटनाएं होती थी। आज ये सब बंद हो गया। यहां तक कि कोरोना लॉकडाउन में भी जब लगभग हर गतिविधि बंद थी, तब भी यूरिया पहुंचाने में दिक्कत नहीं आने दी गई। हमने वादा किया था कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुकूल लागत का डेढ़ गुणा एमएसपी देंगे। ये वादा सिर्फ कागज़ों पर ही नहीं, ये वादा हमने पूरा किया और इतना ही नहीं किसानों के बैंक खाते तक पैसे पहुंचे, इसका प्रबंध किया।’
एनडीए सरकार किसानों की कैसे मदद पर कर रही है इसका खुलासा करते हुए पीएम ने कहा-‘सिर्फ दाल की ही बात करें तो 2014 से पहले के 5 सालों में, हमसे जो पहले वाली सरकार थी उसके 5 सालों में लगभग 650 करोड़ रुपए की ही दाल किसान से खरीदी गई थी। लेकिन हमने 5 साल में क्या किया आ करके, 5 सालों में हमने लगभग 49 हज़ार करोड़ यानि करीब-करीब 50 हजार करोड़ रुपए की दालें एमएसपी पर खरीदी हैं यानि लगभग 75 गुणा बढ़ोतरी। कहां 650 करोड़ और कहां करीब-करीब 50 हजार करोड़। 2014 से पहले के 5 सालों में, उनकी आखिरी सरकार की मैं बात कर रहा हूं, 5 सालों में पहले की सरकार ने पूरे देश में एमएसपी पर 2 लाख करोड़ रुपए का धान खरीदा था। लेकिन हमने 5 साल में धान के लिए 5 लाख करोड़ रुपए एमएसपी के रूप में किसानों तक पहुंचा दिया। यानि लगभग ढाई गुणा ज्यादा पैसा किसान के पास पहुंचा है। 2014 से पहले के 5 सालों में गेहूं की खरीद पर डेढ़ लाख करोड़ रुपए के आसपास ही किसानों को मिला। डेढ़ लाख करोड़, उनकी सरकार के 5 साल। हमारे 5 साल में गेहूं पर 3 लाख करोड़ रुपए किसानों को एमएसपी का मिल चुका है यानि लगभग 2 गुणा। अब आप ही बताइए कि अगर मंडियां और एमएसपी को ही हटाना था, तो इतनी बड़ी हम ताकत क्यों देते भाई? हम इन पर इतना निवेश ही क्यों करते? हमारी सरकार तो मंडियों को और आधुनिक बनाने के लिए, मजबूत बनाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है।’
कांग्रेस का नाम लिए बिना पीएम मोदी ने पार्टी पर जमकर हमला बोला और कहा-‘ आपको याद रखना है, यही लोग हैं जो पीएम किसान सम्मान निधि को लेकर हर गली-मोहल्ले में, हर प्रेस कॉन्फ्रेंस में, हर ट्वीटर में सवाल उठाते थे। ये लोग अफवाह फैलाते थे, ये मोदी है, ये चुनाव है न इसलिए ये किसान सम्मान निधि ले के आया है। ये 2,000 रुपया एक बार दे देगा, दुबारा कभी नहीं देगा। दूसरा झूठ चलाया कि ये 2,000 अभी दे रहा है लेकिन चुनाव पूरा हो गया तब ब्याज समेत वापस ले लेगा।’
मोदी ने कहा-‘आप हैरान हो जाएंगे, एक राज्य में तो इतना झूठ फैलाया, इतना झूठ फैलाया कि किसानों ने कहा कि हमें 2,000 रुपया नहीं चाहिए, यहां तक झूठ फैलाया। कुछ राज्य ऐसे भी हैं, एक राज्य जो किसान के नाम से बाते कर रहे हैं, उन्होंने तो प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना को अपने राज्य में लागू ही नहीं होने दिया क्योंकि अगर ये पैसा किसानों के पास पहुंच गया और कहीं मोदी का जय-जयकार हो गया तो फिर तो हमारी राजनीति ही खत्म हो जाएगी। किसानों के जेब में पैसा नहीं जाने दिया। मैं उन राज्य के किसानों से कहना चाहता हूं कि आने वाले समय में जब भी हमारी सरकार बनेगी, ये पैसा भी मैं वहां के किसानों को दे के रहूंगा। देश के 10 करोड़ से ज्यादा किसान परिवारों के बैंक खाते में सीधी मदद दी जा रही है और यह प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के द्वारा लगातार चल रहा है। साल में तीन बार देते हैं और अब तक लगभग 1 लाख करोड़ रुपया सीधा किसानों के बैंक खाते में पहुंच चुका है। हमने वादा किया था कि किसानों के लिए पेंशन योजना बनाएंगे। आज पीएम किसान मानधन योजना लागू है और बहुत कम समय में ही 21 लाख किसान परिवार इसमें जुड़ भी चुके हैं।‘
प्रधानमंत्री ने कहा-‘ वादों को ज़मीन पर उतारने के इसी ट्रैक रिकॉर्ड के बल पर किसानों के हित में नए कृषि सुधार कानून लाए गए हैं। किसानों को न्याय दिलाने में, ये कितने काम आ रहे हैं, ये आने वाले दिनों में हम जरूर देखेंगे, हम अनुभव करेंगे और मुझे विश्वास है मीडिया में भी इसकी सकारात्मक चर्चाएं होगी और हमें देखने भी मिलेगा, पढ़ने को भी मिलेगा। मुझे अहसास है कि दशकों का छलावा किसानों को आशंकित करता है। किसानों का दोष नहीं है, लेकिन मैं देशवासियों को कहना चाहता हूं, मैं मेरे किसान भाई-बहनों को कहना चाहता हूं और मां गंगा के घाट पर से कहना चाहता हूं, काशी जैसी पवित्र नगरी से कह रहा हूं- अब छल से नहीं, गंगाजल जैसी पवित्र नीयत के साथ काम किया जा रहा है।’
मोदी ने कहा-‘आशंकाओं के आधार पर भ्रम फैलाने वालों की सच्चाई लगातार देश के सामने आ रही है। जब एक विषय पर इनका झूठ किसान समझ जाते हैं, तो ये दूसरे विषय पर झूठ फैलाने लग जाते हैं। 24/7 उनका यही काम है। देश के किसान, इस बात को भली-भांति समझते हैं। जिन किसान परिवारों की अभी भी कुछ चिंताएं हैं, कुछ सवाल हैं, तो उनका जवाब भी सरकार निरंतर दे रही है, समाधान करने का भरपूर प्रयास कर रही है। मां अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से हमारा अन्नदाता आत्मनिर्भर भारत की अगुवाई करेगा। मुझे विश्वास है, आज जिन किसानों को कृषि सुधारों पर कुछ शंकाएं हैं, वो भी भविष्य में इन कृषि सुधारों का लाभ उठाकर, अपनी आय बढ़ाएंगे, ये मेरा पक्का विश्वास है।’
पिछले कई दिनों से दिल्ली बॉर्डर पर धरने पर बैठे कई किसानों ने प्रधानमंत्री की बात सुनीं। हमारा अन्नदाता दिल्ली के पास सरहद पर इतनी सर्दी में सड़क पर बैठा है। सड़क पर बैठ कर सर्द रातें काटना कोई आसान नहीं है। लेकिन किसान भाई सड़क पर बैठे हैं। तस्वीरें देख कर आंख में आंसू आते हैं। सड़क पर खाना बना रहे हैं वहीं लंगर चल रहा है। ट्रैक्टर ट्रालियों में सो रहे हैं. ये दुखद है। मुझे लगता है कि जो नए कानून बने हैं, उनमें कुछ गलत नहीं है पर एक कम्यूनिकेशन गैप है। पिछले कई महीने से किसानों के साथ संवाद में कहीं ना कहीं कमी तो है इसीलिए अगर किसानों के मन में कुछ आशंकाएं हैं, कुछ सवाल हैं तो जबाव मिलने ही चाहिए और बार बार मिलने चाहिए। जब तक किसान कन्विंस (संतुष्ट) ना हो जाएं तब तक उन्हें जवाब मिलने चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में किसानों की गलतफहमियों को दूर करने की पूरी कोशिश की। उन्होंने अच्छा किया कि अपने भाषण में सीधे और साफ तरीके से बहुत सारी बातें स्पष्ट कर दीं। मोदी ने एक बार फिर भरोसा दिलाया कि एमएसपी खत्म नहीं होगी। दूसरी बात, मंडिया खत्म नहीं होंगी बल्कि मंडियों को आधुनिक किया जा रहा है और अगर किसान चाहें तो व्यापारियों को सीधे अपनी फसल बेच सकते हैं। तीसरी बात, व्यापारी या कंपनियों को किसी भी रूप में किसान की जमीन लीज पर लेने या खरीदने का हक नहीं होगा। कोई कानून ऐसा नहीं है जिससे किसान की जमीन पर कोई कब्जा नहीं कर सकेगा। सिर्फ फसल को खरीदने का एग्रीमेंट (करार) और किसी भी वक्त अगर किसान को लगता है कि उसे नुकसान है तो वो एग्रीमेंट से बाहर हो सकता है। इसके लिए उसे कोई जुर्माना नहीं देना होगा न ही उसका कोई नुकसान होगा। चौथी बात, अगर कोई व्यापारी या कंपनी किसान के साथ धोखा करती है, किसान का पूरा पेमेन्ट नहीं करती है तो किसान कानूनी मदद ले सकता है। अब इससे ज्यादा साफ बात और क्या हो सकती है? इसके बाद भी अगर किसानों के मन में कोई सवाल है तो सरकार बात करने को तैयार है इसका भरोसा भी मोदी ने दिया है।
किसान इस बात पर जोर दे रहे हैं कि सरकार एमएसपी की बात कानून में डाले। सरकार कानून में ये लिखे कि एमएसपी खत्म नहीं होगी और एमएसपी से कम दाम पर किसान की फसल को खरीदना कानूनन जुर्म होगा। जब तक सरकार ये बात नहीं मानती तब तक किसान वापस नहीं लौटेंगे। सरकार किसान नेताओं को तो समझाने की पूरी कोशिश कर सकती है, लेकिन उन लोगों का क्या किया जाए जो राजनीतिक एजेंडे के साथ आए हैं? कुछ विपक्षी दल खुलेआम किसानों के कंधों पर अपनी बंदूक रखकर राजनीति कर रहे हैं। किसानों को मोदी पर भरोसा करना चाहिए। मौजूदा गतिरोध के शांतिपूर्ण समाधान के लिए किसानों को सरकार से बात करनी चाहिए।
Trust Modi: Farmers should see his track record and talk
The stage is now set for fresh talks between the Centre and leaders of farmers’ outfits on Tuesday even as more farmers from Haryana, Punjab and western UP have joined the protesters. In Varanasi, while addressing supporters on the occasion of Dev Deepawali on Monday, Prime Minister Narendra Modi slammed opposition parties for “misleading farmers”.
The Prime Minister devoted nearly 27 minutes of his speech to farmers’ issues. He said: “Farmers are being misled on the issue of new historic farm bills. These are the people who have been deceiving farmers for the last several decades. For years, they used to declare MSPs (minimum support prices) but farmers’ produce were never bought at those rates. Big farm loan waiver packages were announced but small and marginal farmers never got the benefit. They deceived farmers in the name of farm loan waivers. Big schemes for farmers were announced but they themselves admitted that only 15 paise out of a rupee reached the farmers.”
Modi said: “Huge subsidies were given in the past for urea fertilizers but most of the fertilizers landed up with black marketeers. They asked farmers to raise productivity, but they ensured profitability for others instead of farmers. This game of deceit had been going on in the country for decades. Two point are clear when there has been a long history of deceit.
“Firstly, farmers who were being deceived for decades continue to have misgivings over government’s promises. Secondly, for those who broke promises and deceived farmers, this became a habit, a sort of compulsion to ensure that the status quo remains. But if you look at the track record of our government, the truth will come out. We said, we will stop black marketing of urea and give sufficient urea to farmers, we did it. For the last six years, there has been no shortage of urea.
“Earlier, farmers used to buy urea in black, they had to spend nights in queues and were even lathi charged. Today that has stopped. Even during national lockdown due to Corona, we ensured supply of urea to farmers. We promised that according to Swaminathan Commission’s recommendations, farmers will get prices at 150 per cent of their costs. We fulfilled that promise. We ensured that the money reached the bank accounts of farmers”, Modi said.
Elaborating on how his government helped farmers, the PM said: “The previous government during five years prior to 2014, purchased only Rs 650 crore worth pulses from farmers. Only Rs 650 crores. In our five years of rule, we purchased Rs 49,000 crores worth pulses from farmers. The previous government bought Rs 2 lakh crore worth paddy from farmers in five years, we purchased Rs 5 lakh crore worth paddy in five years at MSP rates. The previous government bought Rs 1.5 lakh crore worth wheat in five years, while out government bought Rs 3 lakh crore worth wheat from farmers in five years. Just imagine, if we had wanted to abolish mandis and MSPs, why should we have given so much money? Why should we have invested so much? Our government is spending crores to modernize mandis.”
Without naming the Congress, Modi hit out at the party saying: “You must remember, these are the people who used to spread lies in streets, at press conference, and on Twitter, that Modi has brought Kisan Samman Nidhi scheme only to get farmers’ votes during elections. He will give Rs 2,000 to each farmers, but will not give any more money. They told another lie saying that once the elections are over, he will take back this money along with interest.
“You will be surprised to know, in one state, they spread so much lies that farmers started saying they will not take Rs 2,000. One state, that speaks so much about farmers, did not even implement the PM Kisan Samman Nidhi scheme out of fear that if farmers got money, they will sing praises about Modi. They did not allow farmers to get the money. I want to tell farmers of that state that whenever we form our government there, we will definitely give them their money. More than 10 crore farmers in the country are getting money directly into their accounts. We give this money to farmers thrice every year and till now Rs 1 lakh crore has reached the accounts of farmers. We had promised pension for farmers, and in a very short time, 21 lakh farmers are now part of PM Kisan Maan Dhan scheme.”
The Prime Minister said: “It is on the basis of this proven track record of fulfilling our promises that we have framed these new farm reforms laws. In the coming months, we will see how these new laws will benefit millions of farmers. I will welcome constructive debates on this in the media. I understand, farmers have been deceived for decades, and that is why they are apprehensive about these new reforms. I do not blame the farmers for this, but I want to tell my farmer brothers and sisters from the sacred ghats of the holy city of Kashi that our intention is as pious as the water of Ma Ganga.”
Modi said: “The truth about those spreading misgivings based on apprehensions is coming out. When farmers catch them lying, they come out with another lie. They are doing this round-the-clock, 24×7. The families of farmers who are still apprehensive (about new laws) are being convinced by the government, which is trying its best to arrive at a solution. With the blessings of Ma Annapurna, out annadatas (farmers) will spearhead India’s aim of ‘atmanirbharta’ (self-reliance). I believe the day will come when the farmers, who are protesting now, will get the full benefits from these agricultural reforms and raise their earnings.”
Many of the farmers who are sitting on dharna at Delhi border since last several days have watched the Prime Minister speaking on their issues. Spending wintry nights on the highway inside trucks, trailers and on tractors, is not an easy job. The agitating farmers are cooking food on the roadside and having their meals collectively in ‘langars’. This is really unfortunate. I feel that there is nothing anti-farmer in the new farm laws, but there appears to be a huge communication gap. There has been lack of proper communication with the farmers for the last several months. If there are questions and misgivings in the minds of farmers, they must get the answers from the government.
The Prime Minister tried his best to remove the misgivings of farmers in his speech. It was a good initiative and he has clarified on most of the issues. Modi has promised that mandis will not be abolished, MSPs will stay, farmers will be free to sell their produce to those who offer better prices, traders or corporates cannot buy the farmer’s land nor can they take it on lease, they cannot take control of his land, the agreement will only relate to purchase of crop, and if, at any point of time, the farmer feels that he is not getting the right price, he can walk out of the agreement and he will not be fined. If any trader or corporate deceived a farmer, does not make full payment, the farmer can take legal assistance. I think these should be sufficient to remove misgivings from the minds of farmers.
The farmers are insisting that the government must incorporate in its new laws that MSPs will not be abolished, and that purchase of crops at price lesser than the MSP will legally be a crime. The government can try its best to convince the farmer leaders, but what about those who have come with a political agenda? Some of the opposition parties are openly training their guns from the shoulders of agitating farmers. Farmers should trust Modi. They should talk to the government for a peaceful solution to the current stalemate.