Rajat Sharma

My Opinion

किसान आंदोलन: मोदी को बदनाम करना वामपंथियों का एजेंडा

akb2711 सोमवार की रात अपने प्राइम शो ‘आज की बात’ में हमने आपको राजस्थान-हरियाणा बॉर्डर पर शाहजहांपुर स्थित किसानों के धरनास्थल का दृश्य दिखाया। यहां पर सीपीआई से जुड़े किसान संगठन अखिल भारतीय किसान सभा के बैनर तले महिलओं ने ‘मोदी, मर जा तू’ जैसे आपत्तिजनक नारे लगाए।

ऐसा लगता है कि वामपंथी दल किसानों के आंदोलन को मोदी से टकराव में बदलने की कोशिक में जी-जान से लगे हैं। सीपीआई, सीपीआई (एम), सीपीआई (एमएल) और नक्सल समर्थक, सब मिलकर किसानों की आड़ में अपना एजेंडा आगे बढ़ाने में लगे हैं। सोमवार को आंदोलनकारी किसानों ने एक दिन का उपवास रखा। वे शांति से अपने आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन जब इस तरह की नारेबाजी की तहकीकात की गई तो पता चला इस तरह की भाषा का किसानों ने समर्थन नहीं किया। महिलाएं जिस जगह प्रदर्शन कर रही थीं, वहां मंच पर ऑल इंडिया किसान सभा के बैनर लगे थे। ऑल इंडिया किसान सभा लेफ्ट से जुड़ा है और ये सीपीआई का संगठन है। वामपंथ के प्रति निष्ठा रखने वाले तत्व नफरत और हिंसा का माहौल बनाना चाहते हैं।

इंडिया टीवी संवाददाता पवन नारा उस धरनास्थल पर पहुंचे जहां आपत्तिजनक नारेबाजी की गई थी। वहां पर धरना प्रदर्शन जारी था और सवाल पूछने पर बताया गया कि वीडियो सही है। वहां मौजूद लोगों ने माना कि मोदी के खिलाफ घटिया नारे लगाए गए थे लेकिन फिर उन्होंने जस्टिफाई किया। उन्होंने कहा कि -इसमें गलत क्या है? यहां पर कुछ महिलाएं ऐसी मिलीं जो ‘मोदी, मर जा तू’ के नारे लगवा रही थीं। पता चला कि ये महिलाएं किसान नहीं हैं और न ही इनका किसानों से कोई मतलब नहीं है। नारेबाजी करने वाली जिन महिलाओं के वीडियो को सोशल मीडिया पर किसान बताकर सर्कुलेट किया जा रहा है, असल में वे लेफ्ट के कार्यकर्ता हैं जो किसानों के भेष में आंदोलन को बदनाम करने की नीयत से किसानों के बीच घुसे हैं। इन नारों का किसानों से कोई लेना-देना नहीं था। यहां वही नारे लगाए गए जो ‘टुक़ड़े-टुकड़े’ गैंग के लोग जेएनयू, शाहीन बाग, अलीगढ यूनीवर्सिटी और जामिया मिलिया में लगाते थे। बताया गया कि नारेबाजी में जो महिलाएं दिख रही थी वो आशा वर्कर का एक समूह था। वामदलों से जुड़े इस तरह के ग्रुप रोज आते हैं और चले जाते हैं। लोग बदलते हैं,लेकिन माहौल नहीं बदलता।

अब ये तो साफ है कि इस तरह के खूनी नारे लगाने वाले किसान नहीं हैं। किसान तो अपनी मांगें मनवाने के लिए शांतिपूर्ण तरीके से धरने पर बैठे हैं। किसानों ने अपनी बात शालीनता से कही है। सर्दी का मौसम है, बारिश भी हुई है, लेकिन किसानों ने हिम्मत नहीं छोड़ी है। तरह-तरह से उकसाया जा रहा है लेकिन किसान भाइयों ने ऐसी कोई बात नहीं की जो शालीनता के दायरे से बाहर हो। लेकिन कभी ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग तो कभी एंटी मोदी मोर्चा चलाने वाले लोग किसानों के इस आंदोलन को टकराव में बदलना चाहते हैं। ये वही लोग हैं जिन्होंने कभी दिल्ली का पानी और दूध-सब्जी बंद करने की बात कही थी, लेकिन किसानों ने इसे नामंजूर कर दिया। ये वही लोग हैं जो इस आंदोलन का कोई हल नहीं चाहते। मैंने आपको इसके सबूत दिखाए हैं। इस साजिश में लेफ्ट समर्थक अकेले नहीं हैं बल्कि भारत विरोधी एक बड़ा खेमा सक्रिय है। नफरत फैलाने की कोशिश सिर्फ देश में नहीं हुई, लंदन से लेकर न्यूयॉर्क तक से ऐसी कई खबरें आईं जहां पाकिस्तान के कहने पर लोग सड़कों पर उतरे और मोदी विरोधी नारे लगाए। कनाडा में तो कई दिनों तक ये दौर चला।

कुछ दिन पहले कनाडा में खालिस्तान का समर्थन करने वालों ने मोदी के खिलाफ इसी तरह के आपत्तिजनक नारे लगाए थे। इन खालिस्तान समर्थकों को हवा मिली थी कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से। ट्रूडो ने वहां बैठे-बैठे दिल्ली के बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन की आग में घी डालने का काम किया। उन्होंने ऐसा रुख अपनाया जो किसी राषट्राध्यक्ष को शोभा नहीं देता। भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने का उनका कोई अधिकार नहीं है। सोमवार को देश के 22 पूर्व राजनयिकों ने खुली चिट्ठी लिखकर जस्टिन ट्रूडो की आलोचना की और कहा कि जस्टिन ट्रूडो का बयान खालिस्तान समर्थक ताकतों को बढ़ावा देने और भारत के अंदरूनी मामलों में दखल देने की कोशिश है। इन लोगों ने भारत विरोधी प्रचार के लिए कनाडा की धरती का उपयोग नहीं करने देने के लिए सख्त चेतावनी दी है।

जस्टिन ट्रूडो को अपने मुल्क की चिंता करनी चाहिए और अपने किसानों की चिंता करनी चाहिए। उन्होंने भारत के किसानों को भड़काने की कोशिश की। भारत सरकार की आलोचना की। उन्होंने ये नहीं देखा हमारे यहां किसान 19 दिन से धरने पर बैठे हैं और सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं। हमारे यहां किसानों को पूरी आजादी है, सरकार उनसे लगातार बात कर रही है। लेकिन जस्टिन ट्रूडो अपने देश के किसानों के साथ क्या सलूक करते हैं? कुछ दिन पहले कनाडा में अल्बर्टों प्रांत में किसानों ने सरकार के खिलाफ आंदोलन की बात कही और कुछ किसान सड़क पर उतर पड़े। दो-चार ट्रैक्टर सड़क के किनारे खड़े किए और जस्टिन ट्रूडो की आलोचना की। इसके बाद ट्रूडो ने पुलिस भेजकर किसानों को गिरफ्तार करवा लिया। किसानों को टॉर्चर किया गया। ट्रूडो अपने देश में प्रदर्शन करने वाले किसानों पर जुल्म करते हैं और हमारे यहां के किसानों से कहते हैं और विरोध प्रदर्शन करो। इसकी वजह सियासी है। दरअसल कनाडा में चुनाव होनेवाले हैं। यह बात सब लोग जानते हैं कि कनाडा में खालिस्तान समर्थक जमात टूडो की लिबरल पार्टी का मजबूत ‘वोट बैंक’ है। टूडो इन्हें कनाडा में रहकर भारत के खिलाफ बोलने, प्रदर्शन करने और अपना प्रोपेगंडा चलाने की इजाजत देते हैं और बदले में खालिस्तानी संगठन जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी की हर तरह से मदद करते हैं।

इधर दिल्ली में किसानों के आंदोलन का आज 20वां दिन है और दिल्ली के बॉर्डर पर किसान भाई धरने पर बैठे हैं। धरनास्थल पर स्वच्छता नहीं है। साफ-सफाई की हालत खराब है। किसान अपना राशन लेकर आए हैं और खाना खुद बना रहे हैं, लंगर चल रहा है। लेकिन बॉर्डर पर न पूरी तरह से शौचालय की व्यवस्था है, न पानी का इंतजाम है, न सफाई है। यहां गंदगी का अंबार है और बीमारियां फैलने का खतरा है। बहुत से किसान भाई बीमार हैं लेकिन उनकी देखभाल का जो इंतजाम है वो नाकाफी है । हमारे संवाददाता भास्कर मिश्रा ने टिकरी बॉर्डर, सिंघु बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर से जो रिपोर्ट और तस्वीरें भेजी वो वाकई में परेशान करने वाली है। इन तीनों जगह शौचालय की कमी दिखी, साफ सफाई के लिए भी सरकारी इंतजाम ना के बराबर थे। जगह-जगह कूड़ा पड़ा हुआ था, पानी जमा था जिससे मच्छर पैदा हो रहे हैं और डेंगू का खतरा बढ़ गया है।

चिंता की बात ये है कि किसानों के आंदोलन में बड़ी संख्या में बुजुर्ग,महिलाएं और बच्चे हैं। सर्दी के मौसम में कोरोना के संकट के वक्त बुजुर्गों और बच्चों को तो खास एतिहयात बरतने की जरूरत होती है। इसलिए मुझे लगता है कि किसान भले ही अपने नौजवान समर्थकों और अधिक संख्या में बुला लें और अपना विरोध-प्रदर्शन जारी रखें लेकिन कम से कम बुजुर्गों को और बच्चों को वापस भेज दें। क्योंकि बुजुर्गों और बच्चों को खतरा ज्यादा है। दूसरी तरफ दिल्ली और हरियाणा की सरकार से कहना चाहूंगा कि वो सिर्फ जुबानी जमाखर्च न करें। सेवादार होने का ड्रामा न करें। पचास हजार किसानों के बीच पच्चीस मोबाइल टॉयलेट्स से क्या होगा? सफाई का इंतजाम क्यों नहीं है। अस्थाई बाथरूम और शौचालय भी बनाए जा सकते हैं। डॉक्टर्स की तैनाती भी बढ़ाई जा सकती है। मुझे लगता है कि अरविन्द केजरीवाल हों या मनोहर लाल खट्टर, दोनों सरकारें किसान भाइयों की दिक्कतों को देखें और दूर करें।

इसका दूसरा पहलू ये भी है कि जो किसान दिल्ली नहीं आए हैं वो भी परेशानी में हैं क्योंकि किसानों के आंदोलन के कारण उनकी फसल नहीं बिक रही है। गोभी,मटर चुकंदर की फसल जानवर खा रहे हैं। जो छोटे-छोटे दो-चार बीघे वाले किसान हैं और रोज मंडी में सब्जी बेचकर घऱ चलाते हैं उन किसानों के सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है।चूंकि पंजाब और हरियाणा से सब्जी दिल्ली की मंडी में आती है और दिल्ली में किसान आंदोलन के कारण सब्जी की सप्लाई बंद है इसलिए पंजाब और हरियाणा की मंडियों में किसानों की सब्जी नहीं बिक रही। किसान अपनी फसलों को फेंकने पर मजबूर हैं। इसलिए जो किसान धऱने पर बैठे हैं उन्हें इन किसान भाइयों के बारे में सोचना चाहिए। कम से कम दिल्ली में सब्जी की सप्लाई का रास्ता देना चाहिए। इन आंदोलन से सिर्फ किसान ही नहीं, व्यापारी और मजदूर भी परेशान हैं। ये लोग किसानों का समर्थन करते हैं लेकिन किसानों के आंदोलन की वजह से इन लोगों की रोजी-रोटी पर
संकट आ गया है।

किसान संगठनों को तीनों कृषि कानूनों पर चर्चा के लिए कृषि मंत्री की ओर से दिए गए प्रस्ताव को स्वीकार करना चाहिए, ताकि समाधान का रास्ता निकल सके। उम्मीद करनी चाहिए कि किसान संगठनों के नेता सरकार की बात सुनेंगे और सरकार के पास अपनी बात रखेंगे। पहले ही बहुत समय बीत चुका है और इस तरह रास्ते को रोककर आवागमन ठप करने से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो रहा है।

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Farmers’ agitation:Leftists agenda is to denigrate Modi

AKB30In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Monday night, we showed visuals of women supporters under the banner of Akhil Bharatiya Kisan Sabha, a farmers’ wing of CPI, raising objectionable slogans like ‘Modi, Mar Ja Tu’ (Death to Modi) at the farmers’ dharna site at Shahjahanpur on Rajasthan-Haryana border.

It appears that the Left parties including CPI, CPI(M), CPI(ML) and pro-Naxalites are furthering their own agenda in the guise of supporting the farmers’ cause. Farmers can never use such objectionable slogans against the Prime Minister. On Monday, the agitating farmers observed a day’s fast. They have been carrying on their agitation peacefully, but elements owing allegiance to the Left are trying to inject hatred and violence.

India TV reporter Pawan Nara spoke to Left activists present at the dharna site, and surprisingly they said there was nothing objectionable in such provocative slogans. It was revealed that the women raising anti-Modi slogans were not farmers, but belonged to Asha workers’ groups, who come to the dharna site daily to chant slogans. Videos of such slogan shouting women are being circulated on social media by projecting them as farmers, while, in reality, these protesters have nothing to with farming. In recent times, such provocative slogans have been heard among ‘Tukde-Tukde’ gang activists in the campuses of JNU, AMU and Jamia Millia.

The farmers have nothing to do with such protesters who have a clear political agenda. They are braving the cold winter, staging their sit-in on the borders of Delhi in a peaceful manner. The ‘tukde-tukde’ gang activists are trying to force a confrontation between the farmers and the Centre by raising such provocative slogans. The Left supporters are not alone in this conspiracy. Anti-Indian separatist elements, with full support from Pakistan, are staging such anti-Modi rallies in London, Canada and the US.

In Canada, pro-Khalistan supporters raised anti-Modi slogans after getting encouragement from the remarks of Canadian Prime Minister Justin Trudeau, who had no business interfering in the internal affairs of India. A group of 22 former Indian diplomats on Monday in an open letter hit out at Justin Trudeau for “gratuitously” walking into the ongoing farmer protests, which amounted to blatantly interfering in India’s internal affairs. These former ambassadors have warned Canada not to allow use of its soil for anti-Indian propaganda by Khalistani elements.

Justin Trudeau must realize that on one hand the Indian government has allowed farmers to stage peaceful protests for the last 19 days, but in his own country, in Alberta province, the Canadian police brutally suppressed a farmers’ demonstration a few days ago and arrested all the protesters. It will be more appropriate for the Canadian PM to look after his own internal matters instead of interfering in India’s farmer protests. It is a known fact that many of the pro-Khalistan elements in Canada are providing support to Trudeau’s Liberal party and are solid ‘vote banks’.

Back in Delhi, the public hygiene situation on the national capital’s borders is worsening. Due to lack of adequate number of toilets, collection of water at different spots leading to proliferation of mosquito larvae, and lack of proper hygiene, many of the farmers have fallen sick. Our reporter Bhaskar Mishra visited three border points at Tikri, Singhu and Ghazipur and found dumps of garbage and lack of toilets. Old men, women and children were staying in the open with the protesters and it was a pitiable sight.

I would request farmers to send back their old relatives, women and children to their villages in order to protect them from communicable diseases during this Covid-19 pandemic. The farmers are free to call in their young relatives at their protest sites. I would also like to tell Delhi and Haryana governments to stop speaking like ‘sevadars’ only for mass consumption. Only 25 mobile toilets have been set up to handle 50,000 protesters, and it is a deplorable sight.

Both the state governments, headed by Arvind Kejriwal and M L Khattar, must increase the number of temporary toilets, provide warm water for the protesters and ensure proper sanitation. These farmers are our ‘annadatas’ (food providers) and we must ensure that they must not face difficulties.

I would also like to appeal to farmers to at least allow the entry of fruits and vegetable trucks into Delhi. I have seen visuals of rats and animals gorging on cauliflowers, carrots and turnips lying in the open, because they cannot be transported to Delhi. The farmers must think of their own brethren who are suffering big losses because of the blockage of goods transport. They must also think of small traders and labourers, who depend on transport of fruits and vegetables.

The farmers’ organisations should accept the Agriculture Minister’s open offer for discussing all the three farm laws clause wise, so that a solution could be found out. Already much time has elapsed and the blockage of transport is causing huge loss to the economy

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पंजाब के किसान आंदोलन को वामपंथी झुकाव वाले उनके नेताओं ने कैसे हाइजैक कर लिया

akb0611शुक्रवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया था कि किस तरह वामपंथी झुकाव वाले और मोदी विरोधी किसान नेताओं ने दिल्ली में किसानों के आंदोलन को हाईजैक कर लिया है। ये वो किसान नेता हैं जो सरकार से टकराव चाहते हैं। ये वो किसान नेता हैं जो किसी भी तरह से समझौता नहीं होने देना चाहते। केंद्रीय कृषि मंत्री ने शुक्रवार को भी कहा कि हम बात करने को तैयार हैं, आप हमें ये बताइए कि कानून में कमी कहां है, किसान कानून में क्या बदलाव चाहते हैं। लेकिन आंदोलन पर कब्जा करके बैठे मुट्ठी भर किसान नेताओं ने इसका जबाव नहीं दिया, बल्कि ये कहा कि आंदोलन और तेज होगा। उन्होंने घोषणा की है कि दिल्ली के रास्ते बंद कर दिए जाएंगे, रेलवे ट्रैक पर धरने होंगे जिससे कि सामान्य जनजीवन थम जाए।

ये किसान नेता कौन हैं जो बातचीत में रुकावट पैदा कर रहे हैं? वे कौन लोग हैं जिनका झुकाव साफतौर पर नक्सलियों की तरफ है? उनमें से किसने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों का महिमामंडन किया था? इन किसान नेताओं के बारे में देश को जरूर मालूम होना चाहिए। किसान आंदोलन को लीड कर रहे बड़े चेहरों में एक नाम सतनाम सिंह पन्नू का है। सतनाम सिंह पन्नू किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के अध्यक्ष हैं। किसान मजदूर संघर्ष कमेटी का गठन 2007 में हुआ था। फिलहाल इस संगठन के 5,000 सदस्य हैं और इसका असर तरनतारन, गुरदासपुर, फिरोजपुर और अमृतसर में है।

दूसरे किसान नेता हैं दर्शन पाल सिंह, जो क्रांतिकारी किसान मोर्चा के प्रमुख हैं। दर्शन पाल सिंह वही किसान नेता हैं जिन्होंने गुरुवार को शरजील इमाम, उमर खालिद जैसे राष्ट्रविरोधी तत्वों और एल्गार परिषद के कार्यकर्ताओं की जेल से रिहाई की मांग करने वाले पोस्टरों के समर्थन में बयान दिया था। क्रांतिकारी किसान मोर्चा सीपीआई-एम के प्रति निष्ठा रखता है, और इसके 700 से ज्यादा सदस्य हैं। इस संगठन का पंजाब के बठिंडा, फिरोजपुर, फरीदकोट, संगरूर और पटियाला जिलों में असर है।

तीसरे किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां हैं, जिन्होंने भारतीय किसान यूनियन एकता (उगराहां) की स्थापना की थी। इस संगठन के फेसबुक पर 46,000 फॉलोवर्स हैं। बीकेयू (उगराहां) का दबदबा पंजाब के अमृतसर, बठिंडा, बरनाला, गुरदासपुर और लुधियाना जैसे जिलों में ज्यादा है। यह संगठन लेफ्ट की तरफ झुकाव रखने वाले 34 किसान-मजदूर संगठनों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने में कामयाब रहा है।

चौथे नंबर पर भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरी कलां हैं। पहले ये बच्चों को साइंस पढ़ाते थे और अब एक किसान नेता हैं। माना जाता है कि पंजाब में होने वाले किसान आंदोलन के पीछे इनका ही दिमाग है। सुखदेव अपने कॉलेज यूनियन के प्रेजिडेंट भी बने थे, और इनका झुकाव माओवादियों की तरफ था। वह एक बार ‘रेल रोको’ आंदोलन करते हुए बुरी तरह घायल भी हो गए थे।

इन नेताओं में पांचवां नाम सुरजीत सिंह फूल का है, जो भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) के स्टेट प्रेजिडेंट हैं। बीकेयू (क्रांतिकारी) की स्थापना 2004 में हुई थी और इस संगठन का झुकाव भी CPI(M) की तरफ है। फिलहाल इस संगठन से 1,000 से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं। इस संगठन का पंजाब के बठिंडा, संगरूर, फाजिल्का, फरीदकोट, फिरोजपुर, मोगा और पटियाला जिलों पर अच्छा असर है। माओवादियों से रिश्ते होने के आरोप में पंजाब पुलिस ने एक बार उन्हें गिरफ्तार भी किया था।

सरवन सिंह पंधेर एक अन्य किसान नेता हैं, जो पहले किसान मजदूर संघर्ष कमिटी के जोनल प्रेजिडेंट थे और अब कार्यकारी उपाध्यक्ष हैं। किसान आंदोलन का एक बड़ा चेहरा बूटा सिंह बुर्ज गिल भी हैं, जो बीकेयू (दाकुंडा) के अध्यक्ष हैं और CPI(M) की तरफ झुकाव रखते हैं। बूटा सिंह 1984 से ही किसानों के लिए काम कर रहे हैं और 2004 में उन्होंने अपनी एक पार्टी भी बनाई थी। उनका संगठन अजमेर सिंह लाखोवाल के बीकेयू (लाखोवाल) के साथ मिलकर काम करता है।

अजमेर सिंह लाखोवाल बीकेयू (लाखोवाल) के प्रमुख हैं जिसकी स्थापना 1992 में हुई थी। अजमेर सिंह लाखोवाल 1994 में उस वक्त विवादों में आ गए थे, जब उन्होंने इंदिरा गांधी के हत्यारों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह की तारीफ की थी। उन्हें 1999 में ट्रैक्टर खरीद घोटाले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। वह शिरोमणि अकाली दल के करीबी हैं। भारतीय किसान यूनियन (लाखोवाल) के पंजाब के अलग-अलग हिस्सों में 7,000 से ज्यादा सदस्य हैं और अमृतसर, फतेहगढ़ साहिब, फरीदकोट, गुरदासपुर, होशियारपुर, लुधियाना, मनसा, पटियाला, रोपड़ और संगरूर में इसकी अच्छी पकड़ है। अजमेर सिंह लाखोवाल कई बार कनाडा घूमकर आए हैं, जहां उनका बेटा रहता है। वह अकाली दल की मदद से पंजाब मंडी बोर्ड के चेयरमैन भी चुने गए थे।

एक अन्य नेता जगमोहन सिंह हैं, जो पंजाब सरकार के को-ऑपरेटिव डिपार्टमेंट में काम करते थे। वह पहले बीकेयू (एकता) में थे और इस समय बीकेयू दाकुंडा के महासचिव हैं। निर्भय सिंह धूडिके, जो कीर्ति किसान संघ के प्रमुख हैं, का सीपीआई (एमएल) के साथ करीबी रिश्ता है। उनके संगठन का अमृतसर, पठानकोट, जालंधर और संगरूर में अच्छा असर है। उनके संगठन में 5,500 से भी ज्यादा सदस्य हैं और पंजाब में एक बस जलाने के लिए उन्हें 3 साल की सजा भी हो चुकी है। माओवादी गतिविधियों के सिलसिले में पुलिस ने एक बार उनके घर पर छापा भी मारा था, लेकिन वह भाग निकले थे।

कमलप्रीत सिंह पन्नू किसान संघर्ष कमिटी की पंजाब इकाई के प्रमुख हैं। इस संगठन की स्थापना 2000 में हुई थी। किसान संघर्ष कमिटी से 1,500 से ज्यादा लोग जुड़े हैं और इस संगठन का झुकाव CPI(M) की ओर है। कंवलप्रीत सिंह पन्नू के संगठन का दबदबा कपूरथला, जालंधर, तरनतारन और गुरदासपुर जिलों में है। सतनाम सिंह अजनाला नाम के एक अन्य नेता हैं, जो रिवॉल्यूशनरी मार्क्सिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से जुड़े हैं। वह बठिंडा, रोपड़, संगरूर और तरन तारन जिलों में जम्हूरी किसान सभा चलाते हैं। सतनाम सिंह अजनाला पार्टी के मुखिया मंगत राम के खास माने जाते हैं।

बलदेव सिंह निहालगढ़ CPI की किसान इकाई अखिल भारतीय किसान सभा को चलाते हैं और बठिंडा, मोगा, मानसा और पटियाला में उनके काफी समर्थक हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण किसान नेता रुलदू सिंह मानसा हैं जो सीपीआई की तरफ झुकाव रखने वाले संगठन पंजाब किसान यूनियन को चलाते हैं। इस संगठन के लुधियाना, मानसा और मुक्तसर में 2,500 सदस्य हैं। हन्नान मोल्लाह सीपीआई(एम) के बड़े नेता हैं और अखिल भारतीय किसान सभा के प्रमुख हैं। वह पश्चिम बंगाल से सीपीआई(एम) के सांसद थे और उन्होंने कुल 8 बार लोकसभा चुनाव जीता था। इस समय वह अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के एक वरिष्ठ नेता हैं।

संक्षेप में कहें तो पंजाब के अधिकांश किसान नेताओं की मॉडरेट और एक्सट्रिमिस्ट, दोनों तरह की लेफ्ट पार्टियों के प्रति निष्ठा है। पंजाब की राजनीति में एक दौर था, जब हरकिशन सिंह सुरजीत सहित कई कम्युनिस्ट नेताओं की किसानों के संगठनों पर अच्छी पकड़ थी। हालांकि, वर्तमान में इन किसान नेताओं का किसानों की भलाई से कम ही लेना-देना है और फिलहाल ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कृषि नीतियों के विरोध के अपने राजनीतिक एजेंडे पर चल रहे हैं। एक वक्त था जब ये वामपंथी किसान नेता आढ़तियों के खिलाफ थे, बिचौलियों को किसानों का खून चूसने वाला कहते थे, लेकिन अब उन्होंने किसानों के आंदोलन को गति देने के लिए अपने साथ बड़ी संख्या में आढ़तियों को भी शामिल किया है।

जब संसद ने नए कृषि कानूनों को मंजूरी दी, तो इन वामपंथी नेताओं ने भोले-भाले किसानों को भड़काया और आंदोलन पर अपना कब्जा कर लिया। जब-जब सरकार ने अपने और किसानों के बीच पुल बनाने की कोशिश की, इन वामपंथी नेताओं ने उसमें पलीता लगा दिया। इन्होंने न बात आगे बढ़ने दी, और न ही रास्ता निकलने दिया। वे किसानों के आंदोलन की दिशा बदलने में भी कामयाब हो गए, और गुरुवार को उन्होंने सामने आकर राष्ट्रविरोधी तत्वों और प्रो-नक्सल नेताओं की रिहाई के लिए किसानों से नारे लगवाए। शुक्रवार को किसानों को जब ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग के लोगों शरजील इमाम, उमर खालिद और वरवरा राव एवं गौतम नवलखा जैसे नक्सली समर्थक बुद्धिजीवियों की असलियत पता चली, तो उन्होंने इनके पोस्टर, तख्तियां और बैनर खुद ही हटा दिए।

लेकिन चिंता की बात यह है कि ये राष्ट्रविरोधी तत्व और उनके समर्थक अभी भी किसानों के बीच मौजूद हैं और एक संगठित तरीके से काम कर रहे हैं। इन तत्वों का झुकाव खालिस्तानी और कश्मीरी अलगाववादियों के साथ-साथ माओवादियों की तरफ है जो बगावत में लगे हुए हैं। खुफिया एजेंसियों ने आगाह किया है कि ये तत्व किसानों के आंदोलन का फायदा उठाकर अशांति और हिंसा को जन्म दे सकते हैं।

सरकार और किसानों के बीच संघर्ष की बात ही बहुत डराने वाली और परेशान करने वाली है, इसलिए अब ज्यादा सावधानी की जरूरत है। ईश्वर न करें, कभी भी ऐसी परिस्थिति पैदा हो। आंदोलनकारी किसानों को तीन मोर्चों पर सतर्क रहने की जरूरत है। पहला किसानों को ध्यान रखना होगा कि कहीं देश विरोधी ताकतें किसान आंदोलन में घुसकर अपने खतरनाक इरादों को अंजाम देने में कामयाब न हो जाएं। दूसरी ध्यान रखने वाली बात ये है कि जिन लोगों के राजनीतिक मंसूबे हैं, जो किसानों को ढाल बनाकर आगे बढ़ रहे हैं, उनसे किसानों को दूर रहना होगा। और तीसरा मोर्चा कोविड-19 का है, क्योंकि यदि आंदोलन लंबा खिंचता है तो यह महामारी किसानों के लिए घातक साबित हो सकती है। उन्हें जितनी जल्दी सही सलाह मिलेगी, उतना ही बेहतर होगा।

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How Punjab farmer agitation was hijacked by their Left-leaning leaders

akbIn my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Friday night, we showed how a handful of farmer leaders, with Leftist and anti-Modi leanings, have hijacked the farmers’ agitation in Delhi. These are the leaders who want a bitter confrontation with the Centre and are trying to stall negotiations at each and every step. Even on Friday, the Union Agriculture Minister said that the government was ready for talks, but the farmer leaders should come forward and tell the provisions of farm laws which they want to be amended. But the handful of farmer leaders decided not to respond and intensified the agitation. They have announced that they would block roads and railway tracks in the National Capital region and bring normal life to a standstill.

Who are these farmer leaders who are stalling talks? Who are the ones who have clear leanings towards Naxalites? Who, among them, had glorified the killers of former PM Indira Gandhi? The nation must know about these farmer leaders.

The first among them is Satnam Singh Pannu, president of Kisan Mazdoor Sangharsh Samiti, set up in 2007, claiming to have more than 5,000 members with a sizeable presence in taran taran, Gurdaspur, Ferozepur and Amritsar.

The second is Darshan Pal Singh, head of Krantikari Kisan Morcha. He is the leader who, on Thursday, supported the holding of placards demanding release of anti-national elements like Sharjeel Imam, Umar Khalid and Elgar Parishad activists, presently in jail. This union owes allegiance to CPI-M, has more than 700 members and has a presence in Bathinda, Sangrur, Patiala, Ferozepur and Faridkot.

The third is Joginder Singh Ugrahan, who set up the Bharatiya Kisan Union Ekta (Ugrahan), and has 46,000 followers on Facebook. His union has a good presence in Amritsar, Gurdaspur, Bathinda, Barnala and Ludhiana. This union managed to bring 34 pro-Left farmer outfits in Punjab on a single platform.

The fourth is Sukhdev Singh Kokri Kalan, general secretary of BKU (Ugrahan). Earlier, he used to teach science to students and is now a farmer leader. He is said to be the brain behind the farmers’ agitation in Punjab. He was the president of his college union, had leanings towards Maoists, and was once seriously injured while carrying out ‘rail roko’ agitation.

The fifth leader is Surjit Singh Phool, state president of BKU(Krantikari). Set up in 2004, this outfit has leanings towards CPI(M) and has more than 1,000 members. It has a sizeable presence in Bathinda, Sangrur, Ferozepur, Faridkot, Fazilka, Moga and Patiala. He was once arrested by Punjab Police for his pro-Maoist activities.

Another leader is Sarwan Singh Pandher, who was earlier zonal president and now executive vice-president of Kisan Mazdoor Sangharsh Committee. There is Buta Singh Burj Gill, president of BKU Dakunda, and has pro-CPI(M) leanings. He has been working among farmers since 1984 and set up a political party in 2004. His union works in tandem with BKU (Lakhowal).

Ajmer Singh Lakhowal heads BKU (Lakhowal) set up in 1992. He came into controversy, when in 1994, he praised Indira Gandhi’s killers, Beant Singh and Satwant Singh. He was arrested in 1999 in connection with tractor purchase scam. He is close to Shiromani Akali Dal, and has more than 7,000 followers in Amritsar, Fatehgarh Sahib, Faridkot, Gurdaspur, Hoshairpur, Ludhiana, Mansa, Patiala, Ropar and Sangrur. He has visited Canada several times, where his son stays. He was elected chairman of Punjab Mandi Board with the help of Akali Dal.

There is another leader Jagmohan Singh, who used to work in the Co-operative department of Punjab government. He was earlier in BKU (Ekta) and is presently the general secretary of BKU Dakunda. Nirbhay Singh Dhudike, who heads the Kirti Kisan Union, and has close links with CPI(ML). His union is active in Amritsar, Pathankot, Jullundur and Sangrur. His union has more than 5,500 members and he was once sentenced to three years’ imprisonment for setting fire to a bus in Punjab. Police had once raided his home in connection with Maoist activities, but he managed to escape.

Kamalpreet Singh Pannu is the Punjab unit president of Kisan Sangharsh Committee, set up in 2000. It has more than 1,500 followers and has leanings towards CPI(M). It has a presence in Kapurthala, Jalandhar, Taran Taran and Gurdaspur. There is another leader Satnam Singh Ajnala, belonging to Revolutionary Marxist Party of India. He runs the Jamhoori Kisan Sabha in Bhatinda, Ropar, Sangrur and Taran Taran. He is said to be close to that party’s chief Mangat Ram.

Baldev Singh Nihalgarh runs the CPI farmers’ wing Akhil Bharatiya Kisan Sabha and has supporters in Bhatinda, Moga, Mansa and Patiala. Another important farmer leader is Ruldu Singh Mansa who runs the pro-CPI Punjab Kisan Union, which has 2,500 members in Ludhiana, Mansa and Muktsar. Hannan Mollah, a CPI(M) leader, heads the All India Kisan Sabha. He was a CPI(M) MP from West Bengal, who won the Lok Sabha elections eight times. Presently, he is a senior leader of All India Kisan Sangharsh Coordination Committee.

In a nutshell, most of the farmer leaders from Punjab owe their allegiance to Left Parties, both moderate and extremist. There was a period in Punjab politics, when Communist leaders, including Harkishen Singh Surjit, used to hold sway over farmers’ outfits. However, presently, most of these farmer leaders have less to do with the interest of farmers and follow the political agenda of opposing Prime Minister Narendra Modi’s farm policies. At one point of time, these leftist farmer leaders used to condemn middlemen (adhatiyas) as bloodsuckers of farmers, but now they have included a large number of adhatiyas in their group to spearhead the farmers’ agitation.

When the new farm laws were enacted by Parliament, these Left leaders grabbed the chance to incite and instigate illiterate farmers and took control of the agitation. These leaders torpedoed every attempt by the government to establish channels of communication with the farmers. They succeeded in changing the direction of the farmers’ agitation, and on Thursday, they came out in the open and made farmers chant slogans for release of anti-nation elements and pro-Naxalite leaders. On Friday, when the farmers came to know about the antecedents of ‘Tukde Tukde’ gang activists like Sharjeel Imam, Umar Khalid, and pro-Naxalite intellectuals like Varvara Rao and Gautam Navlakha, they threw away the posters, placards and banners.

But the most worrying aspect is that these anti-national elements and their supporters are still there within the ranks of farmers and are working in an organized manner. These elements have leanings towards Khalistani and Kashmiri separatists and Maoists who are engaged in insurrection. Intelligence agencies have cautioned that these elements may create unrest and violence taking advantage of the farmers’ agitation.

The very idea of a violent confrontation between the Centre and farmers is alarming, to say the least. God forbid, such a situation should not arise under any circumstance. The agitating farmers will have to guard themselves (1) against the machinations of anti-national forces, (2) against political elements who are trying to gain advantage, and (3) against the Covid-19 pandemic which take a toll of their lives, if the agitation continues for long. The sooner saner counsel prevails among them, the better.

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प्रदर्शनकारी किसानों के बीच राष्ट्रविरोधी तत्वों ने कैसे की घुसपैठ

akb2711 दिल्ली में जारी किसानों के आंदोलन के 16वें दिन तक पहुंचते-पहुंचते एक बेहद ही चिंताजनक पहलू सामने आया है। किसानों के इस आंदोलन में राष्ट्रविरोधी तत्वों की घुसपैठ हो चुकी है। गुरुवार रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने पंजाब के कुछ किसानों का एक वीडियो दिखाया जिसमें शरजील इमाम, उमर खालिद, खालिद सैफी और एल्गार परिषद के ऐक्टिविस्ट्स की रिहाई की मांग की गई थी। ये सभी ‘टुकडे-टुकडे’ गैंग का हिस्सा हैं और इस समय कस्टडी में हैं।

शरजील इमाम JNU का एक ऐक्टिविस्ट है जिसके ऊपर कम से कम 5 राज्य सरकारों ने सांप्रदायिक, अलगाववादी और भड़काऊ भाषण देने के मामले दर्ज किए हैं जिनके चलते दिल्ली में दंगे हुए थे। शरजील इमाम ने शाहीन बाग आंदोलन के दौरान राष्ट्रविरोधी तत्वों को इकट्ठा किया था और इस साल के दिल्ली दंगों के दौरान दंगाइयों के साथ मिलकर साजिश रची थी।

उमर खालिद जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी का एक जाना-माना छात्र नेता है और उसके ऊपर इस साल की शुरुआत में दिल्ली में हुए दंगों की साजिश रचने का आरोप है। वह इस समय जेल में है। उमर खालिद ने कश्मीरी अलगाववादियों अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की फांसी का भी विरोध किया था। ये वही उमर खालिद है जिसने JNU में उस रैली को आयोजित किया था जिसमें ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे नारे लगाए थे। ये ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग का सरदार है। खालिद सैफी दिल्ली में हुए दंगों का एक अन्य आरोपी है और फिलहाल जमानत पर बाहर है।

गुरुवार को जब शुरू में मैंने ये वीडियो देखा तो मुझे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। महिला किसान, जिनमें से अधिकांश ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं, ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ से ताल्लुक रखने वाले इन लोगों के पोस्टर कैसे लहरा सकती हैं? मैंने अपने रिपोर्टर्स को इसकी हकीकत पता लगाने को कहा और फिर इस बात की पुष्टि हो गई कि किसानों के हाथों में वाकई में ये पोस्टर्स थे और वे इन लोगों की रिहाई की मांग करते हुए नारे लगा रहे थे।

भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) ने दिल्ली की टिकरी सीमा पर अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाने के लिए इस रैली को आयोजित किया था। वे एल्गार परिषद के गौतम नवलखा, आनंद तेलतुंबडे, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज जैसे ‘अर्बन नक्सल’ नेताओं की रिहाई की मांग कर रहे थे, जिनमें से अधिकांश देश विरोधी गतिविधियों के आरोप में जेल में हैं।

मुझे नहीं लगता कि पंजाब के किसान इन कट्टरपंथी नेताओं की करतूतों के बारे में जानते हैं। आमतौर पर किसान ऐसे राष्ट्रविरोधी तत्वों की गतिविधियों के बारे में ज्यादा नहीं जानते जो सांप्रदायिक नफरत, माओवादी उग्रवाद और अलगाववादी आंदोलनों को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने की कोशिश करते हैं। पंजाब के इन किसानों को इन राष्ट्रविरोधी तत्वों द्वारा आसानी से यह कहकर बहकाया जा सकता है कि इन लोगों को सरकार ने ‘झूठे केसों’ में जेल में डाल रखा है।

अभी तक हम सिर्फ बीजेपी के नेता ये आरोप लगा रहे थे कि किसानों के आंदोलन को राष्ट्रविरोधी तत्वों ने हाइजैक कर लिया है, लेकिन वीडियो देखने के बाद किसी को भी यकीन हो जाएगा कि ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग के लोग अब किसानों के बीच घुस चुके हैं। किसानों के मंच से शरजील इमाम और उमर खालिद को रिहा करने की मांग को लेकर नारे लगाए गए।

‘आज की बात’ शो में हमने किसान नेता दर्शनपाल सिंह को इन अलगाववादियों के समर्थन में बोलते हुए दिखाया था। जब हमने यह वीडियो यूपी भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत को दिखाया, तो उन्होंने यह बात मानी कि किसानों को अबसे ऐसे असामाजिक और राष्ट्रविरोधी तत्वों से बचना होगा जो उनके बीच घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को किसानों के मंच का दुरुपयोग करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।

भारत के अधिकांश लोगों की सहानुभूति अपनी जमीनों और फसलों पर खुद के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ रहे किसानों के साथ है। उनकी सहानुभूति किसानों के साथ इसलिए है क्योंकि वे दिल्ली की भीषण ठंड में खुले में डेरा डाले हुए हैं। कोई नहीं चाहता कि हमारे अन्नदाता सड़कों पर खुले में बैठे रहें और यूं ही दिक्कतें झेलते रहें। अधिकांश लोग चाहते हैं कि केंद्र सरकार किसानों की जायज मांगों को मान ले, लेकिन यदि राष्ट्रविरोधी और अलगाववादी तत्व उनके बीच में घुसते हैं तो किसानों के प्रति देश की जनता की सहानुभूति खत्म हो जाएगी।

मेरा मानना है कि किसानों के बीच में हर तरह के एलिमेंट घुस गए हैं, जो अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। उनमें से कुछ राहुल गांधी का गुणगान कर रहे हैं, तो कुछ अडानी और अंबानी की कंपनियों के उत्पादों और सेवाओं के बॉयकॉट का नारा लगा रहे हैं, तो कुछ ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ और ‘अर्बन नक्सल्स’ के समर्थन में अपना प्रॉपेगेंडा फैला रहे हैं। किसान नेताओं को समझना होगा कि जब तक इस तरह के राष्ट्रविरोधी तत्व अपने स्वार्थ के चलते किसानों के बीच मौजूद हैं, तब तक कोई रास्ता नहीं निकलेगा। मैं उम्मीद करता हूं कि पंजाब के किसान नेता, राकेश टिकैत जैसे नेताओं की सलाह पर गौर करेंगे और अपने बीच घुसपैठ करने वाले सभी राष्ट्रविरोधी तत्वों को बाहर का रास्ता दिखाएंगे।

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How anti-national elements infiltrated the ranks of protesting farmers

28th OCTOBER NEWS 09.38 PM_frame_7979The most worrying aspect in the current farmers’ agitation in Delhi, entering its 16th day, is the infiltration of anti-national elements among the ranks of protesters. In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Thursday night, we showed a video of few farmers from Punjab carrying placards demanding release of Sharjeel Imam, Umar Khalid, Khalid Saifi and Elgar Parishad activists, all part of ‘Tukde-Tukde’ gang, presently in custody.

Sharjeel Imam is a JNU activist who has been charged with sedition by at least five state governments for making communal, separatist and inflammatory speeches that led to riots in Delhi. Sharjeel Imam had mobilized anti-national elements during the Shaheen Bagh agitation and had conspired with rioters during this year’s Delhi riots.

Umar Khalid is a prominent JNU student leader and he has been charged with planning the conspiracy to foment Delhi riots early this year. He is presently in jail. Umar Khalid had also protested the execution of Kashmiri separatists Afzal Guru and Maqbool Bhat. He is known as the leader of ‘tukde-tukde’ gang that organized the infamous rally in JNU campus during which ‘Bharat tere tukde honge’ slogans were chanted. Khalid Saifi is another accused in this year’s Delhi riots and is presently out on bail.

On Thursday, when I initially saw the video I could not believe my eyes. How could women farmers, most of them illiterate, hold placards carrying pictures of these ‘tukde-tukde’ gang activists? I asked our reporters to find out and it was confirmed that the farmers were indeed carrying these placards and chanting slogans demanding the release of these activists.

The rally was organized by Bharatiya Kisan Union (Ugrahan) to celebrate International Human Rights Day, at Delhi’s Tikri border. They were demanding the release of ‘urban Naxal’ Elgar Parishad leaders like Gautam Navlakha, Anand Teltumbde, Varvara Rao, Sudha Bhardwaj, most of whom are in jail on charge of anti-national activities.

I doubt whether the Punjab farmers are aware of the activities of these radical leaders. Normally, farmers do not know much about the activities of anti-national elements who try to weaken national unity by promoting communal hatred, Maoist insurrection and separatist movements. These farmers from Punjab can be easily duped by elements who have been telling them that all these activists have been jailed under ‘false charges’.

Till now, we have only been hearing charges by BJP leaders that anti-national elements have hijacked the farmers’ agitation, but after watching the video, one is convinced that ‘tukde-tukde’ gang activists have already made their entry into the ranks of farmers. Slogans were chanted from the podium demanding release of Sharjeel Imam and Umar Khalid.

In ‘Aaj Ki Baat’ show, we showed farmer leader Darshanpal Singh speaking out in support of these separatists. When we showed this video to UP Bharatiya Kisan Union leader Rakesh Tikait, he agreed that farmers, from now onwards, must be on guard against anti-social and anti-national elements who are trying to infiltrate their ranks. They must not be allowed to misuse the platform of farmers, he said.

Most of the people of India sympathize with farmers who are fighting for protecting their rights over their farmland and crops. They have sympathy for farmers who have been camping in the open during Delhi’s harsh winter. Nobody wants that our ‘annadatas’ (food providers) should continue sitting in the open on highways, facing difficulties. Most of the people want that the Centre should accept the justified demands of farmers, but if anti-national and separatist elements enter their ranks, people’s sympathy for farmers will be eroded.

I think different elements with vested interests have already infiltrated the ranks of farmers. Some of them are singing paeans in praise of Rahul Gandhi, some are insisting on boycott of all products and services marketed by Ambani and Adani groups, and some are carrying on with their insidious propaganda in support of ‘urban Naxals’ and separatists.

Farmer leaders must realize that no solution can be found if anti-national elements join the ranks of their supporters. I hope farmer leaders from Punjab farmer leaders will listen to sage advice from leaders like Rakesh Tikait and remove all anti-national elements who have infiltrated their ranks.

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किसान नेताओं और केंद्र के बीच बातचीत की डोर किसने तोड़ी?

akb2711 किसान नेताओं और केंद्र के बीच बातचीत की डोर बुधवार को उस समय टूट गई जब किसान संगठनों ने नए कृषि कानून में संशोधन के सरकार के प्रस्ताव को सिरे से खारिज करते हुए यह ऐलान किया कि वे अपने आंदोलन को और तेज करेंगे। किसानों के रुख पर थोड़ी हैरानी और थोड़ा दुख भी हुआ। सरकार चाहती है कि बातचीत से बीच का रास्ता निकले लेकिन किसान ‘हां या ना पर अड़े हैं। किसान कह रहे हैं कि बातचीत से इंकार नहीं है, लेकिन बात तभी बनेगी जब सरकार तीनों कृषि सुधार कानून वापस ले।

सरकार का रुख बिल्कुल साफ है कि तीनों कानूनों को वापस नहीं लिया जाएगा। सरकार का कहना है कि किसानों की चिंताओं को दूर किया जाएगा। कानूनों में संशोधन भी हो सकता है लेकिन चुनी हुई सरकार को झुकाने की नियत से हो रही सियासी कोशिशों को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। सरकार टूटे तारों को जोड़ने की कोशिश कर रही थी। किसान संगठनों के साथ बातचीत जारी रखने की पूरी कोशिश कर रही थी लेकिन किसानों ने जंग का ऐलान कर आर-पार की बात कर दी।

कौन हैं वे नेता जो किसान संगठनों के नेताओं को बात करने से रोक रहे हैं? क्या वजह कि बात नहीं बन रही है? किसानों ने बुधवार को जिस धमकी भरे अंदाज में बात की उसे देख कर हैरत हुई। क्योंकि जो डॉयलॉग अब तक राहुल गांधी रैलियों में बोल रहे थे और ट्विटर पर लिख रहे थे हू-ब-हू, शब्दश: वही डॉयलॉग किसान संगठनों के नेताओं के मुंह से निकले। जो बातें किसान नेताओं ने कहीं वही बातें राहुल गांधी और शरद पवार सहित पांच विपक्षी नेताओं ने राष्ट्रपति से मिलने के बाद कही। कुल मिलाकर ऐसा लग रहा है कि जैसे 22 विरोधी दल मिलकर किसान संगठनों और सरकार के बीच टकराव चाहते हैं। एक बार फिर शाहीन बाग जैसे हालात बनाने की कोशिश हो रही है। एक बार फिर एंटी सीएए जैसा माहौल बनाने की तैयारी हो रही है।

अब सवाल उठता है कि आखिर सरकार ने ऐसी कौन सी बात कह दी जिससे किसान संगठनों के नेता अचानक नाराज हो गए? वे बातचीत से पीछे हट गए और आर-पार की बात करने लगे। दरअसल, सरकार ने जो 21 पेज का प्रस्ताव किसान नेताओं को भेजा था उस प्रस्ताव के आने से पहले ही किसान संगठनों के नेता तय कर चुके थे कि अब आंदोलन का रास्ता ही अख्तियार करना है। अगर सरकार बात करती है तो मीटिंग से इंकार नहीं करेंगे लेकिन अब आंदोलन को देशभर में फैलाया जाएगा। ये बात मैं नहीं कह रहा हूं। ये खुलासा भी किसान संगठनों के नेताओं ने खुद ही किया। असल में मंगलवार शाम को ही सरकार की तरफ से किसान नेताओं को अनौपचारिक बातचीत का न्योता भेजा गया था। इस बैठक में गृह मंत्री अमित शाह के साथ मीटिंग रखी गई। कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल भी मौजूद थे। सरकार को उम्मीद ये थी कि किसान संगठनों से बातचीत करके कोई बीच का रास्ता निकल आएगा लेकिन किसान नेताओं ने बात शुरू होने से पहले ही कह दिया कि बातचीत का फायदा नहीं है क्योंकि वे कानून में संशोधन नहीं चाहते हैं। सरकार कानून ही वापस ले ले तभी बात बनेगी। इसके बाद भी सरकार के सबसे वरिष्ठ मंत्रियों ने किसान नेताओं को समझाने की कोशिश की, मनाने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी।

असल में मंगलवार रात अमित शाह की मीटिंग सिर्फ 5-6 किसान संगठनों के नेताओं से होनी थी। ये वो लोग हैं जिनका ओपन माइंड (खुले विचार वाले) हैं और जो ये समझते हैं कि ये आंदोलन हमेशा तो नहीं चल सकता, इसलिए बीच का रास्ता निकालना चाहिए। ये किसान नेता प्रधानमंत्री मोदी के प्रति अच्छी भावना रखते हैं। उन्होंने ये कहा भी है कि मोदी के बारे में कोई कुछ भी कह सकता है लेकिन ये नहीं कहा जा सकता कि वे किसानों के विरोधी हैं। इसीलिए उम्मीद थी कि इस मीटिंग में रास्ता निकलेगा, लेकिन जब बाकी नेताओं को पता चला तो उन्होंने इस मीटिंग में ऐसे लोगों को घुसा दिया जो सरकार के घोर विरोधी हैं। जिनके सामने खुलकर बात नहीं हो सकती। जो किसान नेता पॉजटिव माइंड (सकारात्मक सोच) के साथ बात करने आए थे वो भी चुप रहे। इसीलिए भले अभी रास्ता नहीं निकला है, लेकिन उम्मीद अभी भी बाकी है।

केंद्र ने बुधवार को किसानों को भेजे गए अपने प्रस्ताव में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और एपीएमसी ‘मंडियों’ को जारी रखने के लिए लिखित आश्वासन देने का वादा किया। प्रस्ताव में कहा गया है कि सरकार मांग के मुताबिक किसानों को एमएसपी पर लिखित भरोसा देगी। एपीएमसी एक्ट में हुए बदलाव के कारण किसानों को लग रहा है कि प्राइवेट मंडियों के खुलने से पुराना मंडी सिस्टम खत्म हो जाएगा और किसान पूरी तरह प्राइवेट प्लेयर या कॉरपोरेट पर निर्भर हो जाएंगे। सरकार ने किसानों को भरोसा दिया है कि मंडियां पहले की तरह चलती रहेंगी। किसानों को इस बात पर भी आपत्ति थी कि कानून के मुताबिक किसी प्राइवेट फर्म, कंपनी या व्यक्ति को किसानों की उपज खरीदने के लिए किसी तरह के लाइसेंस की जरूरत नहीं होगी। सरकार ने किसानों की इस आपत्ति को भी दूर करने की कोशिश की। बुधवार को जो प्रस्ताव भेजा गया उसमें सरकार ने कहा कि कानून में रजिस्ट्रेशन का प्रावधान जोड़ा जाएगा। राज्य सरकारों को नई प्राइवेट मंडियों का रजिस्ट्रेशन का अधिकार दिया जाएगाऔर प्राइवेट मंडियों से टैक्स भी वसूला जाएगा।

किसानों के मन में एक बड़ी आशंका अपनी जमीन को लेकर भी है। किसानों को लगता है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए सरकार की तरफ से जो प्रावधान किए गए हैं उनके जरिए बड़े कॉरपोरेट किसानों की जमीन पर कब्जा कर लेंगे। सरकार के प्रस्ताव में कहा गया है कि कोई कंपनी या व्यक्ति किसान के साथ जो करार करेगा उसमें किसान की जमीन की बिक्री, लीज या मार्टगेज करने का अधिकार किसी कंपनी को नहीं होगा। किसान के साथ करार करने वाली कंपनी किसान की जमीन पर किसी तरह का पक्का निर्माण नहीं कर सकती। अगर ये जरूरी है…तो करार खत्म होते ही उसे हटाना होगा।अगर तय वक्त में नहीं हटाया तो उसका मालिकाना हक किसान का होगा और किसान की जमीन पर या उस जमीन पर किए गए निर्माण पर कोई व्यक्ति या कंपनी किसी तरह का लोन नहीं ले सकेगी।

किसान संगठन पराली जलाने को लेकर बने कानून को भी नरम करने की मांग कर रहे हैं। किसान चाहते हैं कि सरकार एयर क्वालिटी मैनेजमेंट आफ एनसीआर आर्डिनेंस, 2020 को खत्म करे। इस कानून के तहत पराली जलाने पर जुर्माने और आपराधिक कार्रवाई का प्रावधान है। सरकार की तरफ से किसानों को लिखित प्रस्ताव दिया गया है कि इस विधेयक को लेकर किसानों की आपत्तियों का हल निकाला जाएगा।

केंद्र के प्रस्तावों को नामंजूर करते हुए किसान नेताओं ने अंबानी और अडानी ग्रुप के उत्पादों का बहिष्कार करने का आह्वान किया। इन लोगों ने बीजेपी के नेताओं का घेराव करने का भी ऐलान किया। ये बातें किसानों के आंदोलन का हिस्सा कैसे हो सकती हैं? ऐसा लग रहा है जैसे किसान आंदोलन नहीं सियासी आंदोलन हो रहा है। दरअसल, किसान आंदोलन में अब राजनीति घुस गई है। किसानों के आंदोलन को मोदी विरोधी नेताओं ने हाईजैक कर लिया है।

असल में जिस वक्त किसान संगठनों की प्रेस कॉन्फेंस चल रही थी उसी वक्त राहुल गांधी (कांग्रेस), शऱद पवार (एनसीपी), सीताराम येचुरी (सीपीएम), इलनगोवन (डीएमके) और डी राजा (सीपीआई) किसानों के मुद्दे पर राष्ट्रपति से मिलने पहुंचे। इन लोगों ने भी राष्ट्रपति से कृषि सुधार कानूनों पर रोक लगाने की मांग की। राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद बाहर निकलने पर राहुल गांधी ने वही बातें कही जो किसान संगठनों के नेताओं ने कही थी। राहुल गांधी ने कहा कि सरकार ने अडानी-अंबानी को फायदा पहुंचाने के लिए कानून बनाया। इस कानून को रद्द करने की जरूरत है। राहुल ने कहा कि मोदी को किसानों की ताकत का अंदाजा नहीं है, किसान डरने वाला नहीं है। जब तक कानून वापस नहीं लिया जाएगा तब तक किसान आंदोलन वापस नहीं लेंगे।

मुझे हैरत इस बात पर नहीं हुई कि राहुल गांधी ने अंबानी-अडानी को किसानों का दुश्मन और मोदी का दोस्त बताया। आश्चर्य इस बात पर हुआ कि कुछ किसान संगठनों के नेता यही भाषा बोलते हुए सुनाई दिए। उन्होंने अंबानी-अडानी के प्रोडक्टस् का बहिष्कार करने की बात कही। राहुल गांधी का तो रिकॉर्ड है कि वे पिछले छह साल से अंबानी-अडानी को ब्लेम कर रहे हैं। जब मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण विधेयक लाई थी तो राहुल ने कहा था कि ये अंबानी -अडानी की सरकार है और किसानों की जमीन लेकर अंबानी -अडानी को दे दी जाएगी। उत्तर प्रदेश में जब विधानसभा के चुनाव हुए उससे पहले राहुल ने कहा कि नोटबंदी अंबानी- अडानी को फायदा देने के लिए करवाई गई है। लेकिन चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई। जनता ने राहुल पर यकीन नहीं किया। राहुल गांधी ने उत्तराखंड की एक रैली में कहा था कि मोदी जी ने अंबानी -अडानी की जेब में लाखों -करोड़ों रुपए डाले। उस चुनाव में भी कांग्रेस हार गई। हरियाणा में चुनाव हुए तो राहुल ने कहा कि मोदी अंबानी- अडानी के लाउडस्पीकर बन गए हैं वहां भी कांग्रेस की हार हुई। राहुल लोकसभा चुनाव में बार -बार कहते थे कि मोदी जी ने अंबानी की जेब में 30 हजार करोड़ रुपए डाल दिए लेकिन चुनाव में वो बुरी तरह हारे। ऐसे कितने सारे उदाहरण दिए जा सकते हैं लेकिन राहुल गांधी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी है। उनकी पार्टी के नेताओं ने भी कई बार उनको समझाया कि ऐसी बेसिर-पैर की बातों से पार्टी का नुकसान होता है। इसलिए किसान नेताओं को भी ये बात समझ लेनी चाहिए।

कई लोग ऐसे हैं जो किसान संगठनों के नेताओं को समझा रहे हैं कि वो अड़े रहे तो सरकार को झुका सकते हैं। वो इन किसान नेताओं को बताते हैं कि पहले सरकार ने दिल्ली आने का रास्ता रोका लेकिन किसान अड़े रहे तो रास्ता खोल दिया। इसके बाद बुराड़ी में आने की शर्त रखी लेकिन किसान नहीं माने औरअड़े रहे तो सरकार झुक गई। किसानों ने कहा कि बात करेंगे लेकिन शर्त नहीं होनी चाहिए। ये बात भी सरकार मान गई लेकिन मंगलवार को जब अमित शाह ने बात शुरू की तो किसान नेता अड़े रहे। हां या ना में जवाब मांगते रहे। इसके बाद भी सरकार ने अपनी तरफ से एक प्रस्ताव भेजा, ये सब दिखाकर कुछ लोग किसान नेताओं को समझा रहे हैं कि अड़े रहो, दबाव बनाओ.. तुम जीत जाओगे। लेकिन अच्छी बात ये है कि इन किसान नेताओं के बीच ऐसे लोग भी हैं जो कह रहे हैं कि सरकार की सहानुभूति को सरकार की कमजोरी नहीं समझना चाहिए। इनलोगों ने कहा कि जब तक मेधा पाटकर और योगेन्द्र यादव जैसे प्रोफेशनल आंदोलनकारी किसानों के आंदोलन में बैठे रहेंगे तब तक कोई रास्ता निकलना मुश्किल है।

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Who torpedoed the talks between farmer leaders and the Centre

akb0110Talks between the farmer leaders and the Centre broke down on Wednesday, when farmer unions rejected the government’s offer to amend the new farm laws and announced they would intensify their agitation. I was a bit surprised and sad, too. The government sincerely wanted a solution to the standoff, but the farmer leaders stuck to their ‘yes or no’ stand. The farmer leaders are still saying they are not averse to talks, but any discussion can proceed further only if the new laws are withdrawn.

The government’s stand is quite clear. The three new farm laws will not be withdrawn, but the grievances of farmers will be addressed and the laws will be amended. The government has made it clear that it would not allow political attempts to browbeat the Centre. The government had been trying its best to continue with its communication with the farmer unions, but the farmer leaders have now sounded the war bugle. They have now vowed to fight to the finish.

Who are the leaders who are trying to sabotage the talks? It was surprising to watch the intimidating tone of some farmer leaders on Wednesday. They were mouthing the same dialogues that Congress leader Rahul Gandhi used to deliver at his rallies and posting in his tweets. The sentences used by two farmer leaders at their press conference almost match with those used in the memorandum submitted to the President by five opposition leaders, including Rahul Gandhi and Sharad Pawar. It appears as if the 22 opposition parties and the farmers’ groups want a confrontation with the Centre, similar to the Shaheen Bagh agitation. Efforts are on to create an anti-CAA like atmosphere.

The question arises: what did the Centre say or do which raised the heckles of the farmer leaders? The fact remains that the farmer leaders had already made up their mind to reject the government’s offers and intensify their agitation, even before the 21-page draft from the Centre reached them. On Tuesday evening itself, the farmer leaders had told Home Minister Amit Shah and the two Union Ministers, Piyush Goyal and Narendra Singh Tomar, that nothing short of a repeal of the new laws was acceptable to them. For them, there was no middle path.

The Tuesday meeting failed because the Home Minister had initially invited five to six farm leaders, who had an open mind and who knew that the agitation cannot continue forever. These leaders had respect in their hearts for the Prime Minister Narendra Modi and wanted a solution to be found out. These farmer leaders had been saying openly that anybody was free to say anything about Modi, but no one can say he is anti-farmer. When other farmer groups knew about the talks that was going to take place with Amit Shah, they sent leaders who were stridently anti-government and had extreme views against the Centre. At the meeting, the farmer leaders, who had moderate views, remained silent, when these leaders with extreme views started speaking and torpedoed the conciliation move.

In its offer sent on Wednesday, the Centre promised to give written assurance to continue with the Minimum Support Price system and the APMC ‘mandis’, agreed to the farmers’ demand that private operators seeking to buy produce from the farmers must get themselves registered, and state government could collect ‘mandi tax’ from these private traders. The government also promised to incorporate provisions not to allow private operators from purchase, lease and mortgage of farmer’s land and prohibit them from making permanent constructions on farm land. The Centre also promised to consider farmers’ objections to Air Quality Management of NCR Ordinance, 2020 brought in the wake of air pollution caused in the National Capital Region by burning of ‘parali’ (stubble).

While rejecting the Centre’s offers, the farmer leaders gave a call to boycott products manufactured and marketed by Ambani and Adani groups. They also announced their move to ‘gherao’ BJP leaders. How can all these be part of a farmers’ agitation? The farmers’ agitation has now been fully politicized. Political leaders who are opposed to Narendra Modi have hijacked the farmers’ movement.

On Tuesday, when the farmer leaders were addressing a press conference, five opposition leaders, Rahul Gandhi (Congress), Sharad Pawar (NCP), Elangovan (DMK), Sitaram Yechury (CPI-M) and D. Raja (CPI) met the President demanding repeal of the farm laws. Rahul Gandhi later described the farm laws as ‘Ambani Adani laws’ that needed to be repealed. The tone and tenor of both Rahul Gandhi and those of the farmer leaders were the same.

I was not surprised when Rahul Gandhi alleged that the Modi government was favouring Ambani and Adani groups. He has been making these allegations since last six years, when he first opposed the land acquisition bills, during demonetization, and during the Uttarakhand and Haryana assembly polls, which his party lost. During last year’s Lok Sabha elections, Rahul Gandhi went to rallies where he alleged that Modi had given Rs 30,000 crore benefit to Anil Ambani through the Rafale deal, but the people of India rejected his charges at the hustings. Even his own party leaders advised Rahul to avoid making such allegations as it was harming the party prospects. The farmer leaders must learn a lesson from this.

There are advisers who are advising the farmer leaders to take an extreme stand and reject anything short of repeal of the farm laws. They have been telling them that if they remain adamant, the government would yield. They pointed out how the government opened up the highways, when the farmers marching to Delhi persisted. They have also pointed how the government yielded when the farmers refused to go to Burari ground to stage dharna. They have pointed out how the government yielded when the farmer leaders said there must be no pre-conditions for talks. Similarly, on Tuesday, when Home Minister Amit Shah began speaking about the offers the government was going to make, these leaders stuck to their old stand: first repeal the laws.

The farmer leaders are listening to their advisers who are telling them to carry on with their extreme stand and put pressure on the government to achieve ‘victory’. Fortunately, there are also leaders among the farmers who have been saying that the government’s eagerness for talks should not be construed as weakness. These leaders have pointed out that there can never be a solution if they have ‘professional protesters’ like Medha Patkar and Yogendra Yadav in their midst.

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भारत बंद ज्यादातर राज्यों में क्यों हुआ फ्लॉप?

akb2711 कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार और किसानों के बीच जारी गतिरोध को खत्म करने की कोशिश मंगलवार रात विफल रही, इसके कारण आज होने वाली छठे दौर की बातचीत भी अधर में लटक गई। दिल्ली की सीमा पर किसानों का यह आंदोलन आज अपने 14 वें दिन में प्रवेश कर गया है।

नई दिल्ली के पूसा स्थित राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर में गृह मंत्री अमित शाह, तीन अन्य केंद्रीय मंत्रियों और कुछ चुने हुए किसान नेताओं के बीच देर शाम चार घंटे तक चली बैठक में किसान नेता तीनों नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े रहे। केंद्र सरकार ने कानून वापिस लेने की मांग को खारिज कर दिया और कहा कि वह कृषि कानूनों में संशोधन के लिए नए प्रस्ताव भेजेगी।

केंद्र और किसानों के बीच यह बातचीत उसी दिन हुई जिस दिन किसान नेताओं ने भारत बंद का आह्वान किया था और इसे 22 राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त था। पंजाब, हरियाणा, झारखंड, बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश, पश्चिमी यूपी, कर्नाटक, राजस्थान जैसे राज्यों में इस बंद का आंशिक असर देखने को मिला जबकि केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों में इसका असर रहा । वहीं दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और बेंगलुरु जैसे महानगरों में इस बंद का सामान्य जन-जीवन पर कोई खास असर देखने को नहीं मिला।

कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तेलंगाना राष्ट्र समिति, तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी दलों ने बंद को सफल बनाने के लिए काफी कोशिश की। इन दलों के कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर प्रदर्शन किया और सड़क, रेल यातायात को रोकने की कोशिश की। इन पार्टियों ने बंद के लिए पूरी ताकत लगाई लेकिन लोगों ने उनकी बातें ज्यादा नहीं सुनी। ज्यादातर राज्यों में व्यापारिक प्रतिष्ठान और दफ्तर खुले रहे। मंगलवार रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, बेंगलुरु और कई अन्य शहरों में बाजार खुले रहने के दृश्य दिखाए।

राजस्थान के भीलवाड़ा और जयपुर में व्यापारियों ने उन कांग्रेस कार्यकर्ताओं का विरोध किया जो बाजार बंद कराने की कोशिश कर रहे थे। भीलवाड़ा के आजाद चौक पर कांग्रेस कार्यकर्ता बाजार बंद कराने के लिए पहुंचे थे। दुकानदारों से किसानों के समर्थन में बाजार बंद करने को कहा। लेकिन जैसे ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने मोदी सरकार के खिलाफ नारे लगाए तो कुछ दुकानदारों ने विरोध किया। कांग्रेस कार्यकर्ताओं और दुकानदारों के बीच बहस हुई। लेकिन जब कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने सत्ता की धौंस दिखाने की कोशिश की तो दुकानदारों ने ‘मोदी-मोदी’ के नारे लगाने शुरू कर दिए। हालत ये हो गई कि पुलिस को बीच बचाव करना पड़ा। जयपुर में भी कांग्रेस कार्यकर्ता दुकानें बंद कराने पहुंचे थे। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जब जबरदस्ती दुकानें बंद करवाने की कोशिश की तो दुकानदार भड़क गए। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने जब मोदी सरकार के खिलाफ नारे लगाए तो दुकानदारों ने ‘मोदी-मोदी’ के नारे लगाने शुरू कर दिए।

मध्य प्रदेश में राजगढ़ के ब्यावरा में भी कांग्रेस के कार्यकर्ता दुकानें बंद करवा रहे थे। चूंकि कांग्रेस के विधायक भी कार्यकर्ताओं के साथ थे इसलिए ज्यादातर दुकानदारों ने अपनी दुकान बंद कर दी। लेकिन एक दुकानदार सामने आया और बोला-एक दिन तो दूर, एक घंटा या एक मिनट के लिए भी दुकान बंद नहीं होगी। इस दुकानदार ने कांग्रेस नेताओं को जमकर खरी -खोटी सुनाई। कांग्रेस के विधायक के सामने ही दुकानदार ने कृषि सुधार कानूनों को सही ठहराया और कहा कि कांग्रेस की लूट बंद हो रही है इसलिए कांग्रेस कानून का विरोध कर रही है।

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने बाजार बंद कराने की बजाय दूसरा फॉर्मूला अपनाया। स्टेशन पर या स्टेशन से दूर आउटर सिंगनल पर खड़ी ट्रेन के इंजिन पर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता चढ़ गए। कुछ इंजिन के आगे पटरी पर बैठ गए। नारेबाजी की, वीडियो बनाया, फोटो खिंचवाईं फिर उसे पार्टी के दफ्तर में भेज दिया और घऱ चले गए। इसी तरह की तस्वीरें प्रयागराज में देखने को मिली।

इन तस्वीरों से आप समझ सकते हैं कि देश की आम जनता, दुकानदार, दफ्तर जानेवालों ने भारत बंद का ज्यादा साथ क्यों नहीं दिया। असल में लोग समझ गए कि विरोधी दलों के नेताओं का किसानों से कोई खास मतलब नहीं है। वो तो अपनी फोटो खिंचवाने और पार्टी का झंडा उठवाने के लिए आए थे। विरोधी दलों के बड़े-बडे नेताओं को इस बात का एहसास हुआ कि मोदी की लोकप्रियता कायम है और लोगों को मोदी पर भरोसा है। इसकी वजह ये भी है मोदी सरकार के मंत्री लगातार किसानों से बात कर रहे हैं।

अब ये समझने की जरुरत है कि भारत बंद के आह्वान का ज्यादा असर क्यों नहीं हुआ? पहली बात तो ये कि इस बंद का आह्वान तो किसान संगठनों ने किया था पर इसमें राजनैतिक दल घुस गए। किसानों से तो लोगों की सहानुभूति है, पर बंद कराने सड़कों पर उतरे कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं को लोग शरारती मानते हैं। लोगों को साफ लगा कि नेता अपने स्वार्थ, अपने फायदे के लिए बंद करवा रहे हैं, ‘रेल रोको’ और ‘रास्ता रोको’ का नारा दे रहे हैं। किसानों के आंदोलन को राजनीतिक दलों ने हाइजैक कर लिया है। आपने देखा होगा जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं वहां कांग्रेस ने और जहां दूसरे विरोधी दलों की सरकारें हैं वहां उन्होंने भी अपनी अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की फौज मैदान में उतार दी। आपको आश्चर्य होगा कई जगह लोगों ने ‘मोदी-मोदी’ के नारे लगाए। कई जगह दुकानदारों ने साफ कहा कि हम बंद का समर्थन नहीं करते।

दूसरी बात ये कि भारत के आम लोगों को मोदी के नेतृत्व पर भरोसा है और वे जानते हैं कि सरकार ईमानदारी से किसानों द्वारा उठाए गए मुद्दों को हल करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने किसानों की किसी मांग को ठुकराया नहीं है बल्कि रास्ता निकालने की कोशिश की जा रही है। हो सकता है कि नीति में कमी हो लेकिन मोदी की नीयत में खोट नहीं है।

तीसरी बात ये है कि पिछले आठ महीने से लोग कोरोना की वजह से लगी पाबंदी से परेशान हैं। बड़ी मुश्किल से दुकानें खुली हैं, दफ्तर खुले हैं। लोगों ने बहुत नुकसान उठाया है। अब लोग और परेशानी नहीं उठाना चाहते।

किसान पिछले 14 दिनों से सर्दी में सड़क पर बैठे हैं। वे खेती और अपना काम छोड़कर दिल्ली के बॉर्डर पर धरना दे रहे हैं। आम लोगों में किसानों के प्रति हमदर्दी भी है इसलिए ये लग रहा था कि किसानों के बंद कॉल का असर होगा, लेकिन बंद बेअसर सिर्फ इसलिए रहा क्योंकि इसमें सियासत घुस गई। नेताओं ने किसानों के आंदोलन का इस्तेमाल करके अपनी पार्टी का चेहरा चमकाने की कोशिश की। मोदी को घेरने की कोशिश की। इसलिए भारत बंद को आम जनता का समर्थन नहीं मिला। इसके अलावा पंजाब, यूपी, मध्य प्रदेश, हरियाणा समेत अन्य राज्यों में किसान रबी फसलों की बुवाई में व्यस्त हैं। उनके पास अपना काम छोड़कर दिल्ली में धरने पर बैठने का समय नहीं है। इन किसानों का कहना है कि उन्हें खेती छोड़कर दिल्ली जाने की फुरसत कहां है।

मुझे सूत्रों से यह जानकारी मिली है कि दिल्ली आए किसानों के बहुत सारे नेताओं को भी ये अहसास हो गया कि सरकार की मंशा खराब नहीं है। सरकार ने जो तीन नए कानून बनाए हैं उनमें वो सारे अमेंडमेंट्स (संशोधन) करने को तैयार हैं, जो किसान चाहते हैं। लेकिन किसान नेताओं की दिक्कत ये है कि उनकी आवाज एक नहीं है। उनमें कई ग्रुप और कई नेता हैं। अपने आपको बड़ा नेता साबित करने के लिए इनमें से हर नेता सरकार के खिलाफ कड़े से कड़ा स्टैंड लेना चाहता है जो ऐसे आंदोलन में लोकप्रियता दिलाता है। इस जोश में किसानों ने हां या ना की बात कह दी। इन नेताओं ने ये कह दिया कि या तो तीनों कानून वापस लो वरना कोई बात नहीं होगी।

अब किसान भी ये जानते हैं कि ये मांग नहीं मानी जा सकती। रास्ता बीच का निकलना है। अब ऐसे में किसान नेताओं को किसी फेस सेविंग (चेहरा बचानेवाले) फैसले की जरूरत पड़ी ताकि वे अपने समर्थकों के बीच यह कह सकें कि हमने लड़ाई जीत ली है। कुछ किसान नेताओं ने मांग की थी कि प्रधानमंत्री उनसे मिलें लेकिन फिर गृह मंत्री अमित शाह से वो बात करने को तैयार हो गए। इस बातचीत के बाद कृषि कानूनों में संशोधन का एक प्रस्ताव केंद्र सरकार की ओर से किसानों को भेज दिया गया है। अब फैसला पूरी तरह किसान नेताओं के हाथ में है।

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Bharat Bandh: Why did it flop in most states?

akb1911The sixth round of talks between the Centre and farmer leaders scheduled on Wednesday was called off after both sides failed to achieve a breakthrough in the current impasse on Tuesday night. The farmers are on dharna at Delhi border, which has now entered the 14th day.
In a late evening four-hour-long meeting between Home Minister Amit Shah, three other central ministers and some selected farmer leaders in the National Agricultural Science Complex in Pusa, New Delhi, the farmer leaders insisted on repeal of the three new farm laws. This was rejected by the Centre, which said it would send fresh proposals for amending the laws.
The talks took place on a day when the Bharat Bandh call given by the farmer leaders, and supported by 22 political parties, evoked partial response in states like Punjab, Haryana, Jharkhand, Bihar, Bengal, MP, western UP, Karnataka, Rajasthan, while it had impact in states like Kerala, Andhra Pradesh, Telangana, Chhattisgarh and Odisha. Overall, the bandh had visibly no impact on normal life in metros like Delhi, Mumbai, Chennai, Kolkata and Bengaluru.
Congress, Telangana Rashtra Samiti, Trinamool Congress, Samajwadi Party and Left parties’ activists tried to block road and rail traffic for some time, but business establishments and offices remained open in most of the states. In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Tuesday night, we showed visuals of markets open in Delhi, Mumbai, Lucknow, Bengaluru and several other cities.
In Bhilwara and Jaipur of Rajasthan, traders opposed Congress workers who were trying to shut down markets. Many of the traders chanted ‘Modi, Modi’ slogans. In Vyawara town of Rajgarh, Madhya Pradesh, traders openly told the local Congress MLA to leave and allow them to keep the markets open. In Lucknow and Prayagraj cities of Uttar Pradesh, Samajwadi Party workers, instead of trying to shut markets, went to railway stations, sat on engines, did brief photo-op sessions and then left. Instead of obstructing rail traffic, they were more interested in sending videos of their protests to their leaders.
These visuals clearly indicate that the common public, including office goers, businessmen and shopkeepers, were not interested in ‘Bharat Bandh’ because they have realized that the opposition parties were least interested in protecting the rights of farmers, and were merely indulging in political sabre rattling. Even most of the opposition leaders have realized that the common people is not at all unhappy with Prime Minister Narendra Modi, whose ministers are busy trying to find a solution to the farmers’ grievances.
Why was the ‘Bharat Bandh’ call proved to be a flop? There are several reasons: One, the bandh call was given by farmers’ organisations, but major political parties waded in and lent their support, politicizing the entire issue. Though people were sympathetic towards the farmers, they realized that the opposition parties were trying to gain political mileage by resorting to ‘rasta roko’ and ‘rail roko’.
Two, common people of India continue to have trust in Modi’s leadership and they know that his government is sincerely trying to resolve the issues raised by the farmers. Three, for the last eight months due to Covid restrictions, shopkeepers, traders and middle class people working in markets and shopping malls, had been facing too many financial hurdles, and they were unwilling to shut down the shutters again.
The people at large do sympathize with the farmers who have been out in the cold on Delhi’s borders for the last 13 days, but they are wary of opposition parties trying to politicize the issue. Moreover, farmers are presently busy with the sowing season for Rabi crops in states like Punjab, UP, Madhya Pradesh, Haryana and other states, and they do not have time to leave their work and go to sit on dharna in Delhi.
I have learnt from my sources that many of the farmer leaders who have come to Delhi do not doubt the sincere intentions of the Centre, but the problem with them is that they are not united. They do not have a single leader or a collective leadership. There are many groups, several leaders, and some of them are trying to dominate the others by appearing to have the most extreme views.
In order to project themselves as ‘strong’ leaders, they are hardening their stand to gain popularity. The farmer leaders and their supporters, out of sheer bravado, have stuck to the ‘Yes or No’ line, meaning, either repeal the new laws, otherwise they will be no discussions. They understand that this cannot be accepted. There has to be a way out of the impasse.
The farmer leaders are looking for a face saving device so that they can tell their supporters that they have won the battle. Some farmer leaders wanted that Prime Minister Modi should meet them, but ultimately they agreed to meet Amit Shah. Now that the ball is in the farmers’ court with the Centre sending its formal proposals, their leaders will have to decide.

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कौन कर रहा है किसानों के आंदोलन को हाइजैक करने की कोशिश?

akb2711 इस वक्त तकरीबन तमाम विपक्षी दल नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आन्दोलन में कूद पड़े हैं। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसान पिछले बारह दिन से दिल्ली की सीमा पर धरना देकर बैठे हुए हैं। मंगलवार को किसानों ने भारत बन्द की कॉल दी, और तमाम विपक्षी दल इसका समर्थन करते हुए सियासत में कूद पड़े।

कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना, अकाली दल, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों समेत ज्यादातर विपक्षी दलों ने मांग की है कि नए कानूनों को रद्द किया जाय। राहुल गांधी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, शरद पवार, मायावती समेत विपक्ष के तमाम बड़े चेहरे किसानों के समर्थन में आगे आ गए है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को अपने ट्वीट में मांग की कि ‘अंबानी-अडानी कृषि कानूनों को रद्द किया जाए।’ तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने दिल्ली में किसानों से मिलने के लिए अपने खासमखास सहयोगी डेरेक ओ’ब्रायन को भेजा। अखिलेश यादव यूपी में ‘किसान पदयात्रा’ के लिए निकले, लेकिन उन्हें हिरासत में ले लिया गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सिंघू बॉर्डर पर बैठे पंजाब के किसानों से मिले और कहा कि मैं एक सीएम के रूप में नहीं, एक ‘सेवादार’ के रूप में आया हूं।

सोनिया और राहुल गांधी से लेकर शरद पवार, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, मायावती, और के. चंद्रशेखर राव तक, तमाम बड़े विपक्षी नेता किसानों को समर्थन देने के लिए मैदान में कूद पड़े हैं। लेकिन किसान नेता ये सब देखकर परेशान हैं। उन्होंने तो आज तक किसी पार्टी के नेता को अपने मंच पर आने नहीं दिया क्योंकि उनका कहना था कि जब यही पार्टियां विपक्ष में होती हैं तो किसानों से जुड़े मुद्दों पर अलग ही राग अलापती हैं और सत्ता में आते ही इनके सुर बदल जाते हैं। किसान नेताओं का कहना है कि जब ये नेता सत्ता में थे, उस वक्त इन्होने उन्हीं प्रावधानों का समर्थन किया था, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए कृषि कानूनों में शामिल किया हैं।

सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि कैसे राजनीतिक दलों के नेता, जो अब कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, पहले ‘मंडियों’ को खत्म करने की बात कह रहे थे, कृषि क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ाने पर जोर दे रहे थे और अनाज, सब्जियों की स्टॉक लिमिट खत्म करने के पक्ष में थे।

इन नेताओं के पिछले बयानों को अगर आप देखें, तो आप य़ही कहेंगे कि सिर्फ राजनीति चमकाने के चक्कर में ये नेता किसानों को बहका और भड़का रहे हैं । ये नेता सियासी मौकापरस्ती का सहारा ले रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए किसान आंदोलन को हवा दे रहे हैं । कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र की कुछ बातों का जिक्र किया है जिनमें ये वादा किया गया था कि एपीएमसी ऐक्ट को निरस्त या संशोधित किया जाएगा, लेकिन जब मोदी सरकार ने इस वादे को लागू करने की कोशिश की तो अब इसका विरोध किया जा रहा है।

6 साल पहले 27 दिसंबर 2013 को, जब मनमोहन सिंह की सरकार सत्ता में थी, राहुल गांधी समेत कांग्रेस के कई नेताओं और मुख्यमंत्रियों ने एक जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी जिसमें पार्टी के प्रवक्ता अजय माकन ने घोषणा की कि सभी कांग्रेस शासित राज्यों में किसानों को APMC मार्केट करे बाहर अपनी फसल को बेचने की इजाजत दी जाएगी। मुझे याद है कि 2004 में सरकार बनने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कृषि सुधार लाना चाहते थे, लेकिन लेफ्ट पार्टियों ने और उन्होंने कृषि क्षेत्र में रिफॉर्म का आइडिया ड्रॉप कर दिया। मनमोहन सरकार में मंत्री कपिल सिब्बल ने संसद में कहा था कि बिचौलिए APMC मार्केट में किसानों को लूटते हैं इसलिए उन्हें अपनी फसल सीधे बड़ी कंपनियों को बेचने की इजाजत होनी चाहिए।

इसी तरह का यू-टर्न एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने लिया है। पवार ने ही मनमोहन सिंह की सरकार में कृषि मंत्री रहते हुए APMC ऐक्ट में सुधार की वकालत की थी। उन्होंने 2010 में APMC ऐक्ट में सुधारों का समर्थन करने वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक चिट्ठी लिखी थी। इंडिया टीवी ने शरद पवार द्वारा दिल्ली की तत्कालीन सीएम शीला दीक्षित और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखी गईं 2 चिट्ठियों को दिखाया है। इन चिट्ठियों में पवार ने लिखा था कि ग्रामीण इलाकों में विकास, रोजगार और आर्थिक समृद्धि के लिए कृषि क्षेत्र को अच्छी तरह से संचालित बाजार की जरूरत है, जिसके लिए कोल्ड स्टोरेज और मार्केटिंग ढांचे में बड़ा निवेश चाहिए। उन्होंने लिखा था कि ऐसे में निजी क्षेत्र को अहम रोल निभाने की जरूरत है और इसके लिए एक रेगुलेटर और नीतिगत माहौल होना चाहिएथ। पवार ने तब किसानों के लिए निजी क्षेत्र में मार्केटिंग चैनल के विकल्पों का आह्वान किया था।

अब जब मोदी सरकार ने इन सुझावों को नए कानूनों में शामिल कर लिया है, तो पवार मोदी का विरोध कर रहे हैं। 2005 में एक इंटरव्यू में पवार ने तो धमकी तक दे दी थी कि अगर APMC ऐक्ट में बदलाव के लिए राज्य सरकारों ने सहमति नहीं दी तो केंद्र सरकार राज्यों को आर्थिक मदद देना बंद कर देगी। आज भी पवार के करीबी नेता प्रफुल्ल पटेल नए कृषि कानूनों का विरोध नहीं कर रहे हैं। वह केवल यह मांग कर रहे हैं कि एमएसपी सिस्टम, जो कि एक प्रशासनिक निर्णय है, को ऐक्ट में ही शामिल कर लिया जाए।

लेकिन एक बेहद जरूरी सवाल पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है । यदि केंद्र हर साल 22 फसलों के लिए MSP तय करता है, तो एक्सपर्ट्स के मुताबिक सरकार को सभी 22 फसलों को एमएसपी पर खरीदने के लिए लगभग 17 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी। इस समय सरकार का कुल राजस्व ही 16.5 लाख करोड़ रुपये है। ऐसे में यदि सारा पैसा फसलों की खरीद पर ही खर्च कर दिया जाएगा तो स्वास्थ्य, शिक्षा और देश की सुरक्षा के लिए पैसा कहां से आएगा?

एनसीपी और शिवसेना, दोनों ने इन तीन नए कृषि कानूनों को संसद में ‘मौन समर्थन’ दिया था। उस समय शिवसेना नेता अरविंद सावंत ने इन कानूनों का विरोध नहीं किया था। उन्होंने सिर्फ यह सुझाव दिया था कि MSP के मुद्दे पर और कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग में किसानों के साथ धोखा न हो। जब सावंत से नए कानूनों के बारे में संसद के बाहर पूछा गया तो उन्होंने कहा था कि अगर कोई नया कानून लाकर अच्छा काम कर रहा है, तो हम उसका विरोध क्यों करें ? वही शिवसेना आज भारत बंद के आह्वान का समर्थन कर रही है।

समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को, जो ‘किसान पदयात्रा’ निकालना चाहते थे, पता होना चाहिए कि उनके पिता मुलायम सिंह यादव खुद 2019 में कृषि पर संसद की स्थायी समिति के सदस्य थे। संसद के पिछले साल के शीतकालीन सत्र में समिति की रिपोर्ट पेश हुई थी जिसमें मुलायम सिंह यादव की टिप्पणी का जिक्र हैय़ मुलायम सिंह ने कहा था कि मंडियों को बिचौलियों के चंगुल से आजाद किए जाने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को इसी का जिक्र करते हुए आरोप लगाया कि जो पार्टियां कृषि सुधारों का विरोध कर रही है, वही संसद की स्थायी समिति की बैठक में उनका समर्थन कर रहे थे । योगी ने साफ कहा कि अब राजनीतिक फायदे की उम्मीद में किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं होगा।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सोमवार को सिंघु बॉर्डर पर ‘सेवादार’ बनकर किसानों के बीच पहुंचे, उनसे मुलाकात की और नए कृषि कानूनों का विरोध किया। लेकिन उन्होंने किसानों को यह नहीं बताया कि 23 नवंबर को उनकी ही सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को अपने गजट में अधिसूचित करके दिल्ली में लागू कर दिया था।

जिन पार्टियों और नेताओं का मैंने जिक्र किया है, उन्होंने मोदी सरकार के नए कृषि कानूनों के ज्यादातर प्रावधानों का कभी न कभी समर्थन किया था। जब उन्हें आज यही बात याद दिलाई जाती है तो उनका तर्क होता है कि इन कानूनों को जल्दबाजी में बनाया गया और किसानों से सलाह नहीं ली गई। उनकी मांग है कि इन कानूनों को सेलेक्ट कमिटी के पास भेजा जाना चाहिए था। वे तर्क देते हैं कि इन्हें राज्यसभा में जल्दबाजी में बगैर बहस के क्यों पारित किया गया।

लब्बोलुआब यह है कि चाहे राहुल गांधी हों या शरद पवार, मायावती हों या अखिलेश यादव, ये सभी चुनावों में असफल रहे हैं और वे नरेंद्र मोदी को घेरने का कोई मौका नहीं चूकना चाहते। उन्होंने विपक्षी दलों का महागठबंधन बनाने की भी कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। उन्होंने धार्मिक असहिष्णुता, सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों पर मोदी को मुस्लिम विरोधी घोषित करके घेरने की कोशिश की, लेकिन इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ा।

विपक्ष अब किसानों को मोदी के खिलाफ लामबंद करने और उन्हें इन नए कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रहा है। किसानों की भलाई से इन नेताओं को कोई मतलब नहीं है। किसानों को अब यह बात सोचनी होगी कि कहीं उनके आंदोलन को राजनीतिक नेताओं द्वारा हाइजैक तो नहीं किया जा रहा है। किसान नेताओं को इस बात का भी अहसास जरूर होना चाहिए कि कैसे पाकिस्तान और खालिस्तान का समर्थन करने वाले राष्ट्रविरोधी संगठन उनके आंदोलन से फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं।

साफ है कि किसानों के आंदोलन का अब राजनीतिकरण हो चुका है, और विदेशी ताकतें भारत के खिलाफ इसका फायदा उठाने की कोशिश कर रही हैं। ये सभी अंततः राष्ट्रीय हित के लिए हानिकारक साबित होंगे।

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Who are those trying to hijack farmers’ agitation ?

akb2711 Almost the entire opposition is presently engaged in politics over the issue of new farm laws being opposed by farmers’ unions of Punjab, Haryana and western UP. Most of the opposition parties like the Congress, NCP, Shiv Sena, Akali Dal, Samajwadi Party, Trinamool Congress and Left Parties, supported Tuesday’s ‘Bharat Bandh’ call given by farmers’ unions demanding repeal of the new laws. Several leading opposition leaders like Rahul Gandhi, Akhilesh Yadav, Arvind Kejriwal have jumped into the fray.

Congress leader Rahul Gandhi in his tweet on Monday demanded that the ‘Ambani-Adani farm laws be repealed’. Trinamool Congress supremo Mamata Banerjee sent her lieutenant Derek O’Brien to meet the agitating farmers in Delhi. Akhilesh Yadav set out to join the ‘kisan padyatra’ in UP, but was detained. Delhi CM Arvind Kejriwal met the agitating Punjab farmers at Singhu border and said, he had come there not as a CM, but as a ‘sewadar’.

In a nutshell, almost all the major opposition leaders from Sonia and Rahul Gandhi, to Sharad Pawar, Uddhav Thackeray, Mamata Banerjee, Akhilesh Yadav, Mayawati, and K. Chandrashekhar Rao have joined the bandwagon of leaders extending support to the agitating farmers. The farmer leaders are stumped. Till now, they had been consistently refusing to give platform to all political leaders because their grouse had been that political parties sing different tunes when in power and in opposition, on issues relating to farmers. Farmer leaders had been saying that these leaders, when in power, supported the same provisions that Prime Minister Narendra Modi has included in the new farm laws.

In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Monday night, we showed how these political leaders who are now opposing the farm laws, had been speaking in favour of abolition of ‘mandis’, allowing private investment in agriculture sector, and doing away with stock limits for foodgrains and vegetables.
By watching their previous statements, one can easily conclude that political leaders are instigating and inciting farmers in order to score political brownie points. They are resorting to crass political opportunism. Their only aim is to fan the flames of farmers’ agitation and put Prime Minister Narendra Modi in the dock. Law Minister Ravi Shankar Prasad on Monday mentioned excerpts from the Congress election manifesto in which it was promised that the APMC Act would be repealed or amended, but when Modi government tried to implement the promise, it is being opposed.

Six years ago, on December 27, 2013, when Manmohan Singh government was in power, Rahul Gandhi, several Congress leaders and chief ministers, addressed a joint press conference, where party spokesperson Ajay Maken announced that the Congress governments in states would allow farmers to sell their produce outside the APMC ‘mandis’. I remember, when Dr Manmohan Singh became PM in 2004, he wanted to bring agricultural reforms, but was stalled by his Left party allies. His minister Kapil Sibal had said in Parliament that middlemen fleeced the farmers, and they should be allowed to sell their produce outside the APMC markets.

A similar U-turn has been made by NCP supremo Sharad Pawar. It was Pawar, who, as Agriculture Minister in Dr Manmohan Singh’s government, had advocated reforms in APMC Act. He had written a letter in 2010 to state chief ministers supporting reforms in APMC Act. India TV has showed two letters written by Pawar to the then Delhi CM Sheila Dixit and MP CM Shivraj Singh Chouhan. In these letters, Pawar had called for entry of private sector in cold storage and marketing of agricultural produce, the need for a well coordinated market with a regulator. Pawar had then called for private sector marketing options for farmers.

Now that Modi government has incorporated these suggestions in the new laws, Pawar and his party are opposing them. In an interview in 2005, Pawar had gone to the extent of threatening to withdraw Central assistance if states refused to implement the agricultural reforms. Even today, Pawar’s chief lieutenant Praful Patel is not opposing the new farm laws. He is only demanding that the MSP system, an administrative policy decision, be incorporated in the Act itself.

But nobody is replying to a vital question that desperately needs an answer. If the Centre starts announcing MSPs for 22 crops every year, then, according to experts, the Centre would need Rs 17 lakh crores to procure all these 22 crops. The Centre’s present annual revenue is Rs 16.5 lakh crores. If the entire revenue is spent on procuring all the crops, where will the money be left for health, education, defence?

Both the NCP and Shiv Sena had given ‘silent support’ to the government on these three new farm laws when they were passed in Parliament. Shiv Sena leader Arvind Sawant did not the oppose the laws. He only gave suggestions on fixing MSPs and provisions to ensure that farmers are not cheating by contract farming. When he was asked outside Parliament about the new laws, Sawant had said, if somebody is doing a good work by bringing new laws, why should we oppose? The same Shiv Sena, today, is supporting the Bharat Bandh call.

Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav who was to join the ‘kisan padyatra’ must know that it was his father Mulayam Singh Yadav was a member of the Parliament Standing Committee on Agriculture. The committee report submitted in last year’s winter session of Parliament carried Mulayam Singh’s remarks that APMC markets should be freed from the clutches of middlemen. UP chief minister Yogi Adityanath pointed this out on Monday. He alleged that the parties that are opposing agricultural reforms had supported the same reforms in the Standing Committee meeting. Yogi clearly said that the efforts of opposition leaders to use the shoulders of farmers to train their guns at Modi would not succeed.

Delhi CM Arvind Kejriwal who met the farmers at Singhu border on Monday as a “sewadar” and opposed the new farm laws, did not tell them that it was the Delhi government which notified all the three farm laws in its Gazette on November 23 this year, in order to implement them.

The political leaders whom I have named in the preceding paras had supported most of the provisions of the new farm laws enacted by Modi government. When these facts are brought to notice, their standard reply is: these laws were framed in a hurry and farmers were not consulted. They demand, these laws should have been sent to the Select Committee. They argue why these laws were passed in a hurry, during pandemonium, in Rajya Sabha.

The bottomline is this: the parties of most of these leaders like Rahul Gandhi, Sharad Pawar, Mayawati, Akhilesh Yadav lost the parliamentary elections, and they do not want to miss any chance to corner Narendra Modi. They even tried to forge a grand alliance of opposition parties but failed. They tried to corner Modi on issues like religious intolerance, CAA, NRC and anti-Muslim policies. All these efforts failed.

The opposition is now trying to mobilize the farmers against Modi and force him to withdraw these new laws. These leaders are least bothered about the betterment of farmers. The farmers should now ponder whether their agitation is being hijacked by self-serving political leaders. They must also realize how Pakistan and anti-national outfits supporting Khalistan are trying to gain advantage because of their agitation. Clearly, the farmers’ agitation has now been politicized, and foreign powers, inimical to India, are trying to gain advantage. All these will ultimately be detrimental to the national interest.

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