ये कश्मीर की जनता और लोकतंत्र, दोनों की जीत है
संविधान के अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू कश्मीर में आयोजित पहले बड़े चुनावों में घाटी की जनता ने एक बेहद ही जरूरी इम्तिहान पास करके दुनिया को यह जता दिया कि घाटी में लोकतंत्र था, है और आगे भी रहेगा। बीजेपी जहां जम्मू क्षेत्र में जिला विकास परिषद (DDC) चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, वहीं घाटी के इतिहास में बीजेपी ने पहली बार अपना खाता खोला।
पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन, जिसमें फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस और महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी सहित 7 पार्टियां शामिल हैं, ने घाटी में अच्छी कामयाबी हासिल की है। इस गठबंधन को गुपकार अलायंस के नाम से भी जाना जाता है। वहीं, इन चुनावों मं सबसे रोचक बात ये रही कि बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवारों की भी जीत हुई ।
अब जबकि जनता का फैसला आ चुका है, कोई भी यह आरोप नहीं लगा सकता है कि ये चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं थे। घाटी में लोगों ने बड़ी संख्या में बगैर किसी डर के अपने वोट डाले, पार्टियों ने पूरी तरह खुलकर चुनाव लड़ा, और नतीजे सामने आने के बाद एक भी बड़े नेता को चुनावों के स्वतंत्र और निष्पक्ष होने को लेकर कोई शिकायत नहीं थी।
गुपकार गठबंधन को उम्मीद थी कि डीडीसी चुनावों में उसकी बड़ी जीत होगी, लेकिन वह बहुमत हासिल करने में भी नाकाम रहा। बीजेपी ने अकेले चुनाव लड़ा और कश्मीर घाटी में 3 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि जम्मू के इलाके में कुल 72 सीटों पर उसके उम्मीदवार विजयी हुए। घाटी के कई निर्वाचन क्षेत्रों में तो बीजेपी बहुत ही कम मार्जिन से हार हुई। सबसे ज्यादा हैरानी की बात बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत रही। वे आम कश्मीरियों के बीच गए, उनसे सड़क, बिजली, पानी, स्कूल और अस्पताल का वादा किया, और कश्मीर की आवाम ने उनके ऊपर भरोसा किया।
कुल मिलाकर, इन चुनावों में लोकतंत्र की जीत हुई है। आतंकवादियों के खतरे के चलते कुल 8 चरणों में वोट डाले गए। कुलगाम जैसी जगहों पर भी 60 से 70 पर्सेंट वोटिंग हुई, जो कि हाल के दिनों में कभी नहीं सुना गया। अलगाववादियों और आतंकवादियों की धमकियों के बावजूद लोग अपने घरों से बाहर निकले और अपने मताधिकार का प्रयोग किया। घाटी में लोग अपने-अपने उम्मीदवारों के जीत के बाद जश्न मनाते नजर आए।
चुनावों के बाद सड़कों पर जो जश्न मना, उससे लगता है कि कश्मीर की आवाम का लोकतांत्रिक और राजनीतिक प्रक्रिया में भरोसा बढ़ा है। कश्मीर के आम मतदाता ने उन लोगों को सबक सिखा दिया जो सीमा पार बैठे अपने आकाओं के बताए गए एजेंडे पर काम कर रहे थे। आम वोटर, और खासकर महिलाएं जब स बार वोट देने पहुंचीं, तो उन्होने अपनी बुनियादी जरूरतों की बात की, जैसे बिजली, पानी, स्कूल और अस्पताल। लोगों के बीच से ही एक नई पार्टी, जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी, भी उभर कर सामने आई। इस पार्टी का गठन अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद हुआ था।
नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के वरिष्ठ नेताओं ने भी माना कि इस बार स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हुए हैं। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक बहुत बड़ी उपलब्थि है। उनकी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर जल्द से जल्द लोकतंत्र लाने का वादा किया था। आम लोग अलगाववादियों द्वारा लगभग हर दिन बुलाए जाने वाले बंद से तंग आ चुके थे। वे सुरक्षाबलों पर नौजवानों द्वारा बगैर किसी उकसावे के पत्थर फेंके जाने की घटनाओं से भी दुखी थे।
मैं यहां बताना चाहता हूं कि धारा 370 के हटने और जम्मू एवं कश्मीर को केंद्र शासित क्षेत्र घोषित करने के बाद, 7 अगस्त 2019 से अक्टूबर 2020 के बीच ग्रामीण इलाकों में औसतन हर रोज 30 किलोमीटर सड़क बन रही है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत 212 सड़कें और 38 छोटे पुल बनाए गए हैं। जम्मू-कश्मीर के सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लासेज बनकर तैयार हैं। इसके अलावा कम से कम 40 छोटे-बड़े पावर प्रॉजेक्ट्स शुरू किए गए हैं ताकि बिजली की कमी को पूरा किया जा सके।
बेशक, अभी भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। अभी अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण करना होगा और कई घरों तक अभी भी बिजली नहीं पहुंच पाई है। सिनेमाघरों की हालत खस्ता है। आम लोग अभी भी अच्छे 4जी नेटवर्क का इंतजार कर रहे हैं।
यह केंद्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन की जिम्मेदारी है कि विकास और कल्याणकारी योजनाओं को जल्द से जल्द शुरू किया जाए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि जिला विकास परिषद में कौन-सी राजनीतिक पार्टी सत्ता में है, एनसी, पीडीपी, बीजेपी या कांग्रेस, सभी पार्टियों के नेताओं को घाटी में शांति और तरक्की लाने के लिए हाथ मिलाना होगा। यही लोकतंत्र और कश्मीर की आवाम, दोनों के लिए सबसे बड़ी जीत होगी।
A victory, both for democracy and the people of Kashmir
In the first major electoral exercise conducted in Jammu and Kashmir since the nullification of Article 370 on August 5 last year, the people of Kashmir passed a significant test to tell the world that democracy is thriving in the Valley. While the BJP emerged as the single largest party in the first ever District Development Council elections in many districts of Jammu region, it made significant inroads for the first time in history in the Valley.
The People’s Alliance for Gupkar Declaration, called the Gupkar Alliance consisting of seven parties including Farooq Abdullah’s National Conference and Mehbooba Mufti’s People’s Democratic Party, gained significant lead in the valley, with a large number of independents holding the key to the councils.
Now that the people’s verdict has come, no one can now allege that elections were not free and fair. The people in the Valley cast their votes in large numbers without any fear, the political parties contested without any hindrance, and after the results were out, not a single major leader had any complaint about the holding of free and fair polls.
The Gupkar Alliance, which was aiming at sweeping the DDC elections, failed to score a majority. The BJP contested on its own, and won three seats in Kashmir Valley, while it won 53 seats in Jammu region. In many constituencies in the Valley, the BJP lost by slender margins. The surprising element was the number of independent candidates who won. They went to the voters and promised them good roads, hospitals, schools and clean drinking water, and in return, the people trusted them.
To sum up, democracy was the winner. Due to threats from terrorists, the polling was held in eight phases. In places like Kulgam, there was 60 to 70 per cent polling, a thing that was unheard of in recent times. People bravely came out of their homes and voted despite threats from separatists and terrorists. There were celebrations after candidates won in the Valley.
This is indicative of the trust reposed by the people of Kashmir in the democratic and political process. The common voter in Kashmir has taught a lesson to the doomsdayers and naysayers who were working on an agenda scripted by their masters from across the border. The common voters, mainly women, spoke out openly when they went to vote. They spoke about their essential needs: for electricity, water, schools, roads and hospitals. A new party, Jammu Kashmir Apni Party, emerged from among the people. This party was formed after the nullification of Article 370.
The very fact that the senior leaders of National Conference and PDP have admitted that the elections were free and fair, is a feather in the cap of Prime Minister Narendra Modi, whose government had promised to bring grassroots democracy at the earliest in Jammu and Kashmir. The common people were fed up of frequent bandh calls given by separatists almost every day. They were also unhappy with incidents of stoning by youths at security forces without any provocation.
After Article 370 was nullified and Jammu and Kashmir was declared a Union Territory, rural roads were constructed at the pace of 30 kilometres per day from August 7, 2019 to October, 2020. Under the PM Rural Roads Scheme, 212 rural roads and 38 small bridges were built. Smart classes have been built and are ready for use in many government schools. At least 40 small and big power projects have been launched.
Of course, much needs to be done. Hospitals and primary health centres will have to be built and many homes still do not have power connections. Cinema halls are defunct. The common people are still waiting for reliable 4G communication.
It is the responsibility of the Centre and the Union Territory administration to ensure that development and welfare schemes are launched at the earliest. It does not matter which political party is in power in the District Development Council, whether NC, or PDP, of BJP, or Congress, their leaders must join hands to bring peace and progress in the valley. That will be the ultimate victory for both democracy and for the people of Kashmir.
कोरोना का नया रूप बेहद खतरनाक, अत्यधिक सावधानी बरतें
ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के नए रूप की पहचान की है जो बेहद घातक है । दक्षिणी इंग्लैंड में लोगों के बीच यह नया वायरस तेजी से फैल रहा है। कोरोना के इस घातक रूप का खतरा पूरी दुनिया पर मंडराने लगा है। कोरोना के इस नए रूप के कारण ब्रिटेन में कोरोना के मामले तेजी से बढ़े हैं। शनिवार को प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने लंदन और आसपास के बड़े इलाके में कड़ी पाबंदी लगा दी है।
ब्रिटेन में हालात सबसे ज्यादा खराब है। एक दिन में 35 – 36 हजार नए मामले सामने आ रहे हैं। इनमें ज्यादातर मामले लंदन और आसपास के इलाकों में पाए जा रहे हैं। परेशानी की बात ये है कि इनमें से 95 प्रतिशत मामले कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन वाले हैं। इसलिए अब जिन इलाकों में कोरोना के ज्यादा मामले पाए जा रहे हैं, उन इलाकों में 30 दिसंबर तक दोबारा लॉकडाउन लागू कर दिया गया है। बच्चों और बुजुर्गों को इस वायरस से ज्यादा खतरा है। इम्पीरियल कॉलेज, लंदन के एक महामारी विशेषज्ञ ने कहा कि ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि कोरोना के इस नए रूप में बच्चों को संक्रमित करने की बेहद घातक प्रवृति है।
कोरोना के नए अवतार से ब्रिटेन, फ्रांस. जर्मनी, स्विटजरलैंड,नीदरलैंड,बेल्जियम,पोलैंड स्पेन और रूस समेत तमाम यूरोपीय देशों में दहशत है। लोगों को घरों में रहने को कहा गया है। सख्त पाबंदियां लगाई गई हैं। ब्रिटेन आने-जानेवाली उड़ानों को बंद कर दिया गया है। जॉर्डन, हांगकांग, इजरायल और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों ने भी तत्काल प्रभाव से ब्रिटेन जाने और आने वाली उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया।
भारत ने भी सोमवार को ऐलान किया कि मंगलवार रात बारह बजे से 31 दिसंबर की आधी रात तक भारत से न कोई फ्लाइट ब्रिटेन जाएगी और न ब्रिटेन से कोई फ्लाइट भारत आएगी।
कोरोना वायरस का जो नया रूप सामने आया है वो पुराने वायरस की तुलना में 70 प्रतिशत ज्यादा तेजी से फैलता है। कहा ये जा रहा है कि पहले अगर कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से पीड़ित व्यक्ति के संपर्क में पांच मिनट के लिए आता था तो वह संक्रमित हो सकता था लेकिन लेकिन अब जो नया वायरस आया है अगर उससे संक्रमित इंसान के संपर्क में कोई सिर्फ तीस चालीस सेकेन्ड के लिए भी आया तो वह भी वायरस का शिकार हो सकता है। ये इतनी तेजी से फैलता है.कि इस पर काबू पाना मुश्किल है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायरस के इस नए रूप को पहली बार दक्षिण-पूर्व इंग्लैंड में देखा गया था। यह शोधकर्ताओं के ध्यान में तब आया जब यह दक्षिण इंग्लैंड के कुछ हिस्सों से लिए गए नमूनों में इसकी अधिकता देखी गई। कोविड 19 से संक्रमित मरीजों से इन सैम्पल्स को सितंबर के शुरू में जमा किया गया था। कोरोना वायरस के इस नए रूप में स्पाइक प्रोटीन पर आठ म्यूटेशन हैं जिससे यह वायरस शरीर के अंदर कोशिकाओं को तेजी से संक्रमित करता है। वैक्सीन और एंटी-बॉडी ड्रग्स इन स्पाइक प्रोटीन को निशाना बनाते हैं लेकिन अभी भी यह साफ नहीं है कि जो वैक्सीन विकसित किए गए हैं, वे कोरोना के इस नए रूप पर काम करेंगे या नहीं। कोरोना का यह नया रूप ज्यादा संक्रामक है और तेजी से फैल रहा है जिसके कारण दुनिया भर के देश इसे लेकर अलर्ट हैं।
कोरोना के इस नए खतरे को देखते हुए ब्रिटेन और यूरोपीय देशों में क्रिसमस का जश्न शुरू होने से पहले ही समाप्त हो गया है। लंदन और यूरोप के अन्य शहरों के बाजारों में जहां पिछले हफ्ते तक दुकानों में रौनक थी, अब सुनसान हो गए हैं। लंदन के मशहूर ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट पर लॉक़डाउन के ऐलान से ठीक पहले हजारों लोगों की भीड थी, दुकानें खुली हुई थी लेकिन लॉकडाउन के ऐलान के बाद ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट, ट्रैफेलगर स्क्वॉयर समेत पूरे लंदन की तस्वीर बदल गई। पूरे इलाके में सन्नाटा पसर गया। लंदन के अलावा सबसे ज्यादा परेशानी दक्षिण-पूर्व इंग्लैंड और पूर्वी इंग्लैंड के लोगों को हो रही है। यहां बहुत ज्यादा सख्ती से लॉकडाउन लागू है। क्रिसमस के मौके पर 1 करोड़ अस्सी लाख से ज्यादा लोग घरों में कैद रहने को मजबूर हैं।
ब्रिटेन के लिए उस वक्त मुश्किल और बढ गई जब फ्रांस ने लॉकडाउन का ऐलान होने के बाद इंग्लैंड जाने वाले कंटेनर्स को बंदरगाह और सडकों पर ही रोक लिया।असल में इंग्लैंड के लिए पीने का पानी, खाने-पीने जैसी आवश्यक वस्तुओं फ्रांस से सड़क के रास्ते आते हैं। लॉकडाउन की वजह से फ्रांस बॉर्डर पर इंग्लैंड जाने वाले सामानों से लदे सैकडों ट्रक रूक गए। केंट में पोर्ट ऑफ डोवर भी बंद हो गया था। लेकिन बाद में इंग्लैंड की सरकार के आग्रह पर फ्रांस की सरकार ने पोर्ट से बेहद सीमित मूवमेंट की इजाजत दी है। पोर्ट डोवर से रोजाना दस हजार ट्रकों की आवाजाही होती है। लंदन से पेरिस, ब्रुसेल्स और एम्स्टर्डम तक की यूरोस्टार ट्रेन सेवाएं दो दिनों के लिए बंद कर दी गई हैं। इटली ने उन नागरिकों के प्रवेश पर रोक लगा दी है जो ब्रिटेन में कम से कम दो सप्ताह तक रुक चुके हैं। जो लोग पहले से ही इटली पहुंच चुके हैं, उन्हें क्वारंटीन कर दिया गया है।
भारत ने ब्रिटेन से आने वाले सभी यात्रियों के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट अनिवार्य कर दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई और राज्य के सभी प्रमुख शहरों में 22 दिसंबर से 5 जनवरी तक रात 11 बजे से सुबह 6 बजे तक का कर्फ्यू लगा दिया है। हालांकि इस नाइट कर्फ्यू से बसों और टैक्सियों को बाहर रखा गया है। यूके, यूरोप और मध्य-पूर्व से आने वाले सभी यात्रियों के भारत आने पर क्वारंटीन किया जाएगा। यात्रियों के टेस्ट के लिए करीब 2,000 बीएमसी डॉक्टरों और नर्सों को तैनात किया जाएगा।
ये कितनी बड़ी त्रासदी है कि कोरोना की वैक्सीन अभी तक पूरी तरह से आई नहीं है और सिर्फ इमरजेंसी इस्तेमाल शुरू हुआ है, ऐसी हालत में ये नई मुसीबत आ गई। क्रिसमस इंगलैंड और यूरोप का सबसे बड़ा त्यौहार है। इस मौके का लोग पूरे साल इंतजार करते हैं और ऐसे में लॉकडाउन हो जाए तो कितनी मनहूसियत पैदा हो जाती है, लोग कितना उदास हो जाते हैं। भारत में बैठकर इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। दक्षिण-पूर्व इंग्लैंड में तो सख्त लॉकडाउन है। लोग जरूरी काम से भी घर से नहीं निकल सकते। जरूरी सामान भी घर में पहुंचाए जा रहे हैं। सोचिए कैसे हालत होंगे।
हालांकि भारत के लिए राहत की खबर है। 1 जुलाई के बाद पहली बार, कोरोना के रोजाना मामले सोमवार को 20,000 से नीचे आ गए हैं। सोमवार को नए मामलों की संख्या 18,588 थी। वहीं एक्टिव मामले घटकर 160 दिनों के बाद तीन लाख से नीचे चले गए। वहीं कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में सोमवार को 60,000 से कम एक्टिव मामले दर्ज किए गए।
लेकिन इन सबके बीच अच्छी बात ये है कि अगले महीने से भारत में कोरोना वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने बताया कि भारत में जनवरी से लोगों को कोविड-19 की वैक्सीन देने का काम शुरू किया जाएगा । उन्होंने बताया कि सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता यह है कि वैक्सीन सुरक्षित और असरदार हो। डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि रेग्युलेटर सभी वैक्सीनों का विश्लेषण करेगा और अगले 6-7 महीने में 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन देनी की क्षमता हासिल कर ली जाएगी।
अभी तक कोरोना वायरस का नया रूप अपने देश तक नहीं पहुंच पाया है। इसलिए अत्यंत सावधानी बरतना वक्त का तक़ाज़ा है। जब तक देश में एक सुरक्षित वैक्सीन नहीं आ जाती है, तब तक बड़े पैमाने पर लोगों को सतर्क रहना चाहिए। लोगों को घबराने की की जरूरत नहीं है। फॉर्मूला वही पुराना है, मास्क लगाना है और दूरी बनाए रखना है। हाथों को सैनिटाइज करते रहना है। तभी लोग इस घातक वायरस के प्रकोप से मुक्त रह सकते हैं।
New variant of Coronavirus: Utmost caution is the need of the hour
There was growing alarm among nations across the globe after scientists in the United Kingdom identified a new mutant version of the deadly Coronavirus spreading among people in southern England. The emergence of this new variant has led to a surge in Covid cases in the UK, and on Saturday, Prime Minister Boris Johnson’s government clamped stringent Level 4 restrictions in large parts of London and the nearby boroughs.
More than 35,000 new Covid cases have been reported in the UK with most of the new cases from London and nearby boroughs. The new variant strain has been detected in nearly 95 per cent of the new cases. Children are as vulnerable to the new strain as the elderly. One epidemiologist at Imperial College, London said there is a hint that the new mutant has a higher propensity to infect children.
As news reached Europe, nearly two dozen European countries including France, Germany, Switzerland, Netherlands, Belgium, Poland Spain and Russia, and countries like Jordan Hong Kong, Israel and South Africa banned flights to and from UK with immediate effect.
India, on Monday announced there will be a ban on flights to and from UK with effect from Tuesday midnight till December 31 due to latest developments.
The new variant of Coronavirus is said to be 70 per cent more transmissible than the old variant. In plain language, if the Covid-19 virus took nearly five minutes to travel from one person to another, the new virus could infect a person within 30-40 seconds. It spreads so suddenly that it is difficult to control it.
The new variant was first noticed in southeast England, according to World Health Organization. It came to the attention of researchers when it appeared more frequently in samples from parts of south England. The samples were collected as early as September from patients who were infected with Covid-19. The new variant has eight mutations on the spike protein that viruses use to attach to and infect cells inside the body. Vaccines and anti-body drugs target these spike proteins, but it is still not clear whether the vaccines that have been developed will work on the new variant. This new variant is more contagious and spreading fast, because of which nations across the world are putting up barriers to stop their influx.
In view of the panic, Christmas celebrations on the streets in UK and European countries have almost come to an end even before they began. Markets in London and other European cities, that were packed with shoppers till last week, now offer a gloomy picture. The famous shopping districts of London like Oxford Street, Trafalgar Square, now give a desolate look. These markets were brimming with shoppers till Saturday, when the UK government announced clamping of stringent Level 4 lockdown rules due to the spread of the new variant. Nearly 1.80 crore people have been forced to stay indoors in the UK because of the new restrictions.
Thousands of trucks to and from France have been held up at the port of Dover, after the French authorities imposed restrictions. Later the restrictions were waived on export of essential items like food and water to the UK. The Eurostar train services from London to Paris, Brussels and Amsterdam have been discontinued for two days. Italy has barred entry of nationals who have stayed at least two weeks in the UK. Those who have already reached Italy have been quarantined.
India has made RT-PCR tests mandatory for all passengers coming from the UK. Maharashtra government has imposed night curfew in Mumbai and all major cities of the state from December 22 till January 5 from 11 pm to 6 am. Buses and taxis have been excluded from this night curfew. All passengers coming from the UK, Europe and Middle East will be quarantined on arrival. Nearly 2,000 BMC doctors and nurses will be deployed to carry out tests on passengers.
It is really tragic that even before the Covid vaccine has been introduced on a massive scale, a fresh trouble has erupted with the emergence of the new variant of Coronavirus, throwing all schedules in disarray. Sitting in India, it is difficult to gauge the level of gloom and despair that has descended on families in the UK and Europe, who had been waiting for months to celebrate Christmas and New Year. The curfew is very much strict in south-eastern England, where people cannot even step out of their homes to buy essential items.
For India, there is a silver lining in the clouds of despair. For the first time since July 1, daily Covid cases has fallen below 20,000 on Monday. The number of new cases was 18,588. The shrinking tally of active cases has gone below the three lakh mark after 160 days. Maharashtra, which was the worst-hit state, recorded an active case count below 60,000 on Monday.
Union Health Minister Dr Harsh Vardhan has said that India may start vaccinating people from January and the government’s top priority was safety and efficacy of the Covid vaccine. In the next six to seven months, India will have the capacity to inoculate nearly 30 crore people against Covid-19 virus, he said.
Till now, the new variant of Coronavirus is yet to reach our shores. Utmost caution is the need of the hour. Till the time a safe vaccine is not introduced in the country, people at large must remain vigilant and continue with wearing masks, maintaining social distance and frequent washing of hands. Let all of us join hands and keep our people free from this deadly virus.
मोदी पर भरोसा करें, उन्होंने स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू किया है
भारत के किसानों के नाम अपने सीधे संबोधन में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को ‘सिर झुकाकर और हाथ जोड़कर’ उनसे नए कृषि कानूनों पर केंद्र के साथ फिर से बातचीत शुरू करने की अपील की। मोदी ने कहा, किस तरह पिछले 20 साल से इन कानूनों पर काम हो रहा था और ये कानून ‘भारतीय हरित क्रांति के जनक’ डॉक्टर एम. एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय किसान आयोग के सुझावों पर आधारित हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ये तीनों नए कानून रातोंरात नहीं बने, बल्कि केन्द्र और राज्य सरकारों ने इन कानूनों के मसौदे पर चर्चा के बाद इन्हें मंजूरी दी। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ‘स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को 8 साल तक दबाकर बैठी रही।’ मोदी ने कहा, ‘अब अचानक भ्रम और झूठ का जाल बिछाकर, अपनी राजनीतिक जमीन जोतने के खेल खेले जा रहे हैं। किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर वार किए जा रहे हैं।’
मोदी ने किसानों को विस्तार से समझाया कि क्यों उनकी सरकार MSP को खत्म नहीं करेगी और मंडियों (APMC) को बंद नहीं करेगी। किसान नेताओं द्वारा MSP, APMC, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और कॉर्पोरेट्स द्वारा किसानों की जमीन की मिल्कियत पर कब्जा करने को लेकर जो शंकाएं पैदा की जा रही है , उन सबका मोदी ने जवाब दिया। मोदी ने किसानों के सामने अपनी सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड रखा और कहा कि कैसे उनकी सरकार ने अब तक की सबसे ज्यादा MSP का भुगतान किया है। मौदी ने विरोधी दलों से भी हाथ जोड़कर कहा कि वे किसानों के बीच झूठ और भ्रम न फैलाएं। उन्होने यहां तक कहा कि अगर विपक्षी दल नए कृषि सुधार लाने का श्रेय लेना चाहते हैं, तो वह भी उनको देने को तैयार हैं, उन्हें अपने लिए श्रेय नहीं चाहिए।
मोदी ने कहा, कैसे कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल खुद इन कानूनों को लाने की प्लानिंग कर रहे थे, लेकिन इन्हें लागू करने की उनमें हिम्मत नहीं थी। उन्होंने कहा कि कुछ पार्टियों (उनका इशारा कांग्रेस की तरफ था) ने अपने चुनाव घोषणापत्र में भी इन सुधारों को लागू करने का वादा किया था, लेकिन अब पूरी तरह यू-टर्न ले लिया।
मुझे याद है जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तब कृषि विशेषज्ञों का एक ग्रुप बनाया गया था, जिसने 2001 में अपनी रिपोर्ट दी थी। इस रिपोर्ट में खेती पर लगी तमाम कानूनी बंदिशों को हटाने की सिफारिशें की गई थी। 2002 में कई मंत्रालयों का एक टास्क फोर्स बना था और 2003 में कृषि सुधार कानून का ड्राफ्ट भी राज्य सरकारों को भेज दिया गया था। उसमें भी मोटे तौर पर कृषि क्षेत्र को प्राइवेट सेक्टर के लिए खोलने की बात कही गई थी।
सन् 2004 में जब डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार बनी, तब 2003 के इस ड्राफ्ट बिल पर तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार ने राज्यों के साथ चर्चा की थी। यूपीए शासन के दौरान 2007 में मंडियों के एकाधिकार को खत्म करने की शुरूआत की गई और मॉडल APMC रूल्स प्रकाशित हुए। इसके बाद 2010 में शरद पवार ने बाकायदा राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखकर कृषि कानूनों में बदलाव लाने और कृषि क्षेत्र में प्राइवेट प्लेयर्स की भागीदारी की बात कही थी।
इन तथ्यों से ये बिलकुल साफ है कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल ये कह कर किसानों को गुमराह कर रहे हैं कि तीनों नए कानूनों को जल्दबाजी में लाया गया और पास किया गया । इसीलिए प्रधानमंत्री ने शुक्रवार को किसानों को ऐसे नेताओं और पार्टियों से सावधान रहने को कहा। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की सुनेगी, हर बात सुनेगी, लेकिन अब सियासी शोर मचाने वालों की कोई बात न सरकार सुनेगी, न किसानों को सुननी चाहिए।
प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि विपक्ष किसानों की वास्तविक समस्याओं का हल निकालने की बजाय राजनीतिक लाभ हासिल करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है। मोदी ने यह भी आरोप लगाया कि पिछली यूपीए सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को कूड़ेदान में फेंक दिया था, जबकि उनकी सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के अपने संकल्प पर दृढ़ है और वह किसानों को खेती की वास्तविक लागत का डेढ़ गुना खरीद मूल्य दे रही है।
डॉक्टर एम. एस. स्वामीनाथन को 2004 में राष्ट्रीय किसान आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। दो साल बाद आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि किसानों को उनकी वास्तविक लागत का डेढ़ गुना MSP दिया जाना चाहिए। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। मोदी ने कहा कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट तो उन्होंने डस्टबिन से झाड़ पोंछकर निकाली और MSP को वास्तविक लागत का डेढ़ गुना कर दिया। मोदी ने एक बार फिर वादा किया कि उनकी सरकार MSP को बंद नहीं करेगी।
किसान नेताओं को यह पता होना चाहिए कि 2009 से 2014 के बीच मनमोहन सिंह के शासन के दौरान किसानों से सिर्फ 645 करोड़ रुपए की दालें MSP पर खरीदी गई थी। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में, 2014 से 2019 तक, सरकार ने 49 हजार करोड़ रुपये की दालें किसानों से MSP पर खरीदीं। इस तरह देखा जाए तो ये आंकड़े किसानों के हक़ की बात करने वाले कांग्रेस नेताओं के दावों की पोल खोल देते हैं।
मोदी ने विपक्ष के इस आरोप का भी जवाब दिया कि प्राइवेट प्लेयर्स की एंट्री के साथ ही सरकार द्वारा गठित APMC मंडियां बंद हो जाएंगी। उन्होने कहा कि आने वाले सालों में इन मंडियों का आधुनिकीकरण किया जाएगा और इस के लिए 500 करोड़ रुपये का बजट भी रखा गया है।
मोदी ने विपक्ष के इस आरोप का भी खंडन किया कि यदि प्राइवेट प्लेयर्स कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करने लगेंगे तो किसान अपनी जमीन से हाथ धो बैठेंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि नये कानून में बिलकुल साफ कहा गया है कि प्राइवेट कंपनियों द्वारा न तो किसानों की जमीन गिरवी रखी जा सकती है, न जमीन पर कोई सौदा हो सकता है और न कॉन्ट्रैक्ट करने वाली कंपनी इसे लीज पर दे सकती है। दूसरी ओर, यदि प्राइवेट पार्टियां कॉन्ट्रैक्ट तोड़ती हैं तो उन पर जुर्माना लगाया जाएगा और किसानों को ये आजादी दी गई है कि यदि उन्हें कभी भी ये लगे कि कॉन्ट्रैक्ट में उन्हें घाटा है, तो वह समझौता खत्म कर सकते हैं।
मोदी ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के बारे में पंजाब के जिस प्रोजेक्ट का जिक्र किया, वह ज्यादा पुरानी बात नहीं है। पिछले साल मार्च में वरुण ब्रुअरीज नाम की कंपनी ने पंजाब के पठानकोट में 800 करोड़ रुपये की लागत से एक प्लांट लगाया। इस प्लांट में जूस, डेयरी प्रोडक्ट, कार्बोनेटेड ब्रेवरीज और मिनरल वॉटर का प्रोडक्शन होता है। कई हजार लोगों को रोजगार देने वाले इस प्लांट का उद्घाटन खुद पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किया था। इस प्लांट के लिए जमीन भी पंजाब स्मॉल इंडस्ट्रीज एंड एक्सपोर्ट कॉर्पोरेशन ने दी थी। वही कैप्टन अमरिंदर सिंह, जो इस प्लांट को किसानों के लिए वरदान बता रहे थे, आज कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को किसानों के लिए फांसी का फंदा बता रहे हैं। ये कैसे हो सकता है!
भारत में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग लगभग 20 साल पहले शुरू हुई थी, जबकि नया कानून 6 महीने पहले ही लागू हुआ है। अभी तक किसी कॉर्पोरेट द्वारा किसी किसान की जमीन पर कब्जा करने का एक भी मामला सामने नहीं आया है।
यूपी के अलीगढ में धान पैदा करनेवाले करीब 1300 किसानों ने एक राइस कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया। आज वे पहले के मुकाबले 15 से 20 पर्सेंट ज्यादा पैसा कमा रहे हैं। उत्तरी गुजरात के 2,500 आलू किसानों ने हाइफन फूड्स (HyFun Foods) नाम की प्रोसेसिंग कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया और आज प्रति एकड़ 40 हजार रुपये ज्यादा कमा रहे हैं। इसी तरह पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 1,000 से ज्यादा किसानों ने आलू उगाने के लिए टेक्निको एग्री साइंस लिमिटेड नाम की कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट किया है और उन्हें पहले के मुकाबले अपनी फसल का 35 परसेंट ज्यादा दाम मिल रहा है। लेकिन विपक्षी दल किसानों को ये कहकर डरा रही हैं कि यदि कॉर्पोरेट्स ने पैसा देने से इनकार कर दिया, तब क्या होगा?
यह सवाल मैंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से पूछा। अपने राज्य में खेती का चेहरा बदल देने वाले बीजेपी सीनियर नेता चौहान ने माना कि कुछ मामलों में ऐसा हो सकता है कि कंपनियों ने किसानों को बकाया पैसा देने से मना कर दिया हो, लेकिन इसके लिए कानूनी प्रावधान भी हैं। उन्होंने पिपरिया में एक कंपनी का उदाहरण दिया, जिसने किसानों के साथ 3,000 रुपये प्रति क्विंटल के रेट पर धान खरीदने का कॉन्ट्रैक्ट किया था, लेकिन डील के बाद भी धान की खरीद नहीं की। चूंकि नया कानून लागू है, इसलिए किसान एसडीएम के पास गया, शिकायत की और कंपनी को 3000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान करना पड़ा। इसी तरह जबलपुर में एक व्यापारी ने बिना कॉन्ट्रैक्ट किए अनाज खरीदा तो उसे 25 हजार रुपये का जुर्माना भरना पड़ा।
मुझे लगता है कि जब सरकार खुद सवालों के जबाव दे रही है, और किसानों से कह रही है कि उन्हें उनके सारे सवालों के जवाब मिलेंगे, ऐसे में अड़ियल रुख अपनाने और कानूनों को निरस्त करने की मांग करने का कोई मतलब नहीं है। सरकार की नीयत पर शक करना ठीक नहीं है।
ज्यादातर किसान नेताओं ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री के बातचीत के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और मांग की कि पहले तीनों नए कानूनों को वापस लिया जाए। इन नेताओं ने ये भी कहा कि प्रधानमंत्री उन्हें नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश के किसानों को संबोधित कर रहे थे। मैं इस बात को नहीं मानता। प्रधानमंत्री मोदी ने आज सिर्फ मध्य प्रदेश के किसानों से बात नहीं की, बल्कि उन्होंने देश के हर किसान से बात की और खास तौर पर उन किसान भाइयों से बात की जो दिल्ली की सीमाओं पर धरने पर बैठे हुए हैं।
मैंने पीएम मोदी द्वारा कही गई हर बात को क्रॉसचेक किया। मोदी ने सही कहा कि पिछली यूपीए सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू नहीं किया था। मोदी सरकार ने क्या किया? उनकी सरकार ने स्वामीनाथन रिपोर्ट पर कार्रवाई की, किसान क्रेडिट कार्ड वितरित किए, किसानों को मिलने वाला लोन सस्ता किया और यह सुनिश्चित किया कि खरीद सीधे किसानों के खेतों से की जाए। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक, मोदी सरकार ने कृषि इन्फ्रास्ट्रचर के विकास में प्राइवेट प्लेयर्स को भागीदार बनाया, किसान फसल बीमा दिया और दुर्घटना की स्थिति में तुरंत सहायता का रास्ता निकाल दिया। मोदी सरकार ने स्वामीनाथन रिपोर्ट में की गईं ज्यादातर सिफारिशों को लागू किया।
मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि ये सारे काम मोदी सरकार ने किसानों के हित में किए हैं। मैं अब विपक्ष और किसान नेताओं से एक सवाल करना चाहता हूं। वे सब ये तो मानते हैं कि डॉक्टर स्वामीनाथन एक ऐसी शख्सियत थे जो हमेशा किसानों की भलाई चाहते थे। उन्हीं डॉक्टर स्वामीनाथन ने 2007 में कहा था कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के लिए जिस तरह की योजनाएं लागू की है, कृषि का जो मॉडल डिवेलप किया है, उसे दूसरे राज्यों को एक मॉडल के रूप में अपनाना चाहिए। डॉक्टर स्वामीनाथन ने कहा था कि यदि राज्य चाहते हैं कि उनके किसान खुशहाल हों तो उन्हें गुजरात मॉडल को फॉलो करना चाहिए।
ये वक्त का तकाज़ा है कि किसान नेता और राजनीतिक पार्टियों के नेता कम से कम डॉक्टर स्वामीनाथन की बातों को तो स्वीकार करें और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीयत पर संदेह जताना बंद करें । किसान नेताओं को अपनी जिद छोड़कर सरकार से बात करनी चाहिए, संवाद स्थापित करना चाहिए और इस पूरे मसले का शांतिपूर्ण हल निकालना चाहिए।
Trust Modi : He has implemented Swaminathan report
In his direct address to the farmers of India, Prime Minister Narendra Modi on Friday appealed to them “with bowed head and folded hands” to rejoin the dialogue with the Centre on issues relating to the three new agrarian laws. Modi explained how the three farm laws were on the anvil since the last 20 years with the setting up of National Commission on Farmers headed by the ‘father of Indian Green Revolution’ Dr. M. S. Swaminathan.
The Prime Minister said, all these three new laws were not framed overnight and every state government and the Centre had discussed and approved these drafts. He blamed the Congress “for sitting on Swaminathan Commission’s recommendations for eight long years”. Modi said, ”now suddenly a web of doubts and lies is being spun for the farmers in order to serve political interests. The opposition parties are using the shoulders of farmers to attack the government”.
The Prime Minister explained in detail, why the Centre would not discontinue minimum support prices for crops and will not disband mandis (agriculture produce marketing committees). He sought to dispel all doubts raised by farm leaders on MSPs, APMCs, contract farming and fears about corporates taking over land from farmers. Modi presented the track record of his government in giving the highest minimum support prices to farmers till now. He pleaded with the opposition not to spread lies and confusion among the farmers, and said he was willing to forego the credit of bringing in these agricultural reforms which were long overdue.
Modi explained how the Congress and other opposition parties were themselves planning to bring these laws in the past, but did not have the courage to implement them. These parties (he was indirectly referring to the Congress) had included these promises in their election manifesto and have now made a complete U-turn.
I remember, when Atal Bihari Vajpayee was the Prime Minister, a group of agricultural experts had given its report in 2001 suggesting dismantling of laws that have kept the farm sector in their grip. In 2002, an inter-ministerial task force was set up to study this report and the next year a draft farm bill was circulated among the states by the Centre. The main point in this draft related to opening up of the farm sector for corporates.
In 2004, when Dr Manmohan Singh was the PM, this draft bill was again discussed with the states by the then Agriculture Minister Sharad Pawar. In 2007, during UPA rule, model APMC rules were published in order to remove monopoly of the APMCs. In 2010, Pawar, as Agriculture Minister, had written to the state chief ministers for change in farm laws and opening of the sector for private companies.
Clearly, the Congress and other opposition parties are misleading the farmers by alleging that the three new farm laws have been brought and passed in haste. It was in this context that Modi, on Friday, told the farmers to listen to facts and not yield to lies and deceit being propagated by opposition parties.
The Prime Minister alleged that the opposition was more interested in gaining political advantage instead of addressing the real grievances of the farmers. He also alleged that the previous government had thrown the Swaminathan Commission report into the dustbin, whereas his government is firm in its resolve to double the income of farmers by 2022 and offer them procurement prices at one and a half times the actual costs incurred.
Dr M S Swaminathan was appointed chairman of National Commission on Farmers in 2004. Two years later, the NCF submitted its report which recommended that the MSP must be one and half times the actual costs incurred by farmers on their crops. The Congress-led UPA government put the report in cold storage. Modi said, it was his government which acted on Swaminathan Commission’s report and raised the MSPs to one and a half times the actual costs incurred. On Friday, Modi again promised that his government would not discontinue the MSPs.
The farmer leaders must know that procurement of pulses during Dr Manmohan Singh’s UPA government was only Rs 645 crores from 2009 till 2014, whereas Modi government during its first stint from 2014 to 2019 procured Rs 49,000 crore worth pulses from farmers. Facts cannot lie and these fly in the face of Congress leaders who claim to be upholding farmers’ rights.
Modi replied to the opposition’s charge that with the entry of private players, the APMCs set up by the government would become defunct. He said that the mandis would be modernized in the coming years and Rs 500 crores have been allocated in the budget for this purpose. He also refuted the opposition’s charge that farmers would lose their lands if private players entered into contract farming. The law, he said, clearly stipulates that the farm land cannot be taken over, nor leased by private parties. On the other hand, private parties can be penalized if they broke the contract, whereas farmers have been given liberty to walk out of contract if they feel that they will incur losses.
The contract farming project in Punjab, which Modi referred to in his speech, relates to Varun Breweries, a partner of multinational company Pepsico, which set up a plant in Pathankot by investing Rs 800 crores. This plant manufactures juice, dairy products, carbonated breweries and bottled mineral water. Punjab Chief Minister Capt Amrinder Singh had inaugurated this plant which provides employment to several thousand people. The land to the plant was allotted by Punjab Small Industries and Export Corporation. The same Capt Amrinder Singh, who was describing this plant as a blessing for farmers, is today opposing the idea of contract farming by describing it as “a hangman’s noose”. What a dichotomy!
Contract farming began in India almost 20 years ago, whereas the new law came into force only six months ago. There has not been a single case of any corporate taking over the ownership of any farmer’s land.
In Aligarh, nearly 1,300 farmers entered into a contract with a rice company to grow paddy. Today their earnings have increased by 15-20 per cent. In northern Gujarat, nearly 2,500 farmers growing potatoes entered into a contract with HyFun food processing company. Today the earnings of each farmer has increased by Rs 40,000 per acre. Similarly, in Punjab, Haryana and western UP, more than 2,000 farmers have entered into contract with Technico Agri Science Ltd for growing potatoes. Today their earnings have increased by 35 per cent. But opposition parties are scaring the farmers by saying if the corporates do not pay the farmers their dues, what will happen?
I raised this question with Madhya Pradesh chief minister Shivraj Singh Chouhan. This senior BJP leader, who has transformed the face of farming in his state, agreed that there could be cases where companies may have refused to pay dues to farmers, but there are strong legal provisions. He cited the example of a company in Piparia that entered into a contract with farmers to buy paddy at Rs 3000 per quintal. The company did not buy the paddy crop. Under the new law on contract farming, the farmers complained to the local SDM, and the company was forced to pay Rs 3000 per quintal to the aggrieved farmers. He said, in Jabalpur, a company bought foodgrains from farmers without entering into any formal contract. The company had to pay Rs 25,000 fine.
I believe that when the government at the highest level is ready to address each and every grievance of the agitating farmers, there is no point in sticking to an adamant attitude and demand that the laws be repealed. The government’s motive should not be questioned.
On Friday, most of the farmer leaders rejected the PM’s offer and demanded that the three new laws be withdrawn first. These leaders said that the PM was not addressing them and that he was only addressing the farmers of Madhya Pradesh. I disagree. The PM’s address was being telecast across the nation and his appeal was particularly addressed to the farmers who are sitting on dharna on the borders of Delhi.
I have cross-checked each and every fact that the PM narrated with all available records. Modi was right when he said that the previous UPA government did not implement Swaminathan Commission’s report. And what did Modi government do?
His government did follow up action on Swaminathan report, distributed Kisan Credit Cards, disbursed farm loans at nominal interest rate and ensured that the procurement be done directly from the farmers’ fields. As per Swaminathan Commission’s recommendations, Modi government allowed entry of private players in agriculture infrastructure development, started crop insurance for farmers, and assistance in case of accidents. Modi government implemented most of the recommendations mentioned in Swaminathan report.
I want to clearly say that all these measures were taken by Modi government in the best interest of the farmers. I would now like to pose a question to opposition and farmer leaders. They accept Dr Swaminathan as an eminent person who always believed in the welfare of farmers. The same Dr Swaminathan had said in 2007 that the measures taken by the then chief minister of Gujarat, Narendra Modi, for the welfare of farmers, must be accepted as a model by other state governments. Dr Swaminathan had said that other states must follow the Gujarat model if they want their farmers to become prosperous.
It is time that farmer leaders and politicians should accept what Dr Swaminathan had said, and must stop harbouring suspicions about Prime Minister Modi’s intentions. The farmer leaders must stop sulking and rejoin the dialogue to find a peaceful solution to the current impasse.
कड़ाके की सर्दी में खुले आसमान के नीचे धरना दे रहे किसानों को बदनाम न करें
जब पूरा दिल्ली-एनसीआर कड़ाके की सर्दी झेल रहा है, दिल्ली और आसपास के इलाकों में बर्फीली हवाएं चल रही हैं और न्यूनतम तापमान गिरकर 3.5 डिग्री सेल्सियस तक चला गया है, ऐसे समय में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के हजारों किसान पिछले 23 दिनों से दिल्ली बॉर्डर पर खुली आकाश के नीचे धरना दे रहे हैं। ये किसान खुले में अपना भोजन पकाते हैं, लंगर में खाते हैं और ट्रकों-ट्रॉलियों के अंदर सोते हैं।
वहीं दूसरी ओर, सोशल मीडिया पर यह दिखाया जा रहा है कि धरने पर बैठे किसान पिज्जा का मजा ले रहे हैं, किसानों को रबड़ी-जलेबी परोसी जा रही है, वे मसाज चेयर पर बैठकर मसाज करवा रहे हैं। इनके कपड़े वाशिंग मशीनों में धुल रहे हैं और रहने के लिए जंगल सफारी के टेंट लगे हैं। इस तरह के वीडियो को प्रसारित करने का मकसद ये दिखाना है कि जैसे किसान आंदोलन करने नहीं बल्कि पिकनिक मनाने के लिए दिल्ली के बॉर्डर पर आए हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे दिखाया जा रहा है कि जैसे किसान खुद तो मजे कर रहे हैं और रास्ता बंद करके दूसरों को परेशान कर रहे हैं।
एक बात सब को समझनी चाहिए कि सिंघु बॉर्डर पर आंदोलन करने वाले ज्यादातर किसान पंजाब के सिख हैं। दूसरों की मदद कैसे करना है, भूखों को खाना कैसे खिलाना है, सेवा भाव कैसा होता है, ये सिखों की परंपरा से सीखा जा सकता है। पूरी दुनिया में गुरूद्वारों में लगातार लंगर चलते हैं। इसी तरह अब किसान आंदोलन के बीच में लंगर चल रहे हैं और इनका ज्यादातर इंतजाम दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी ने किया है। सुबह की चाय से लेकर नाश्ता, दोपहर का खाना और शाम की चाय के साथ स्नैक्स, रात का भोजन और फिर गर्म दूध किसानों को दिया जा रहा है। अगर कभी किसी व्यापारी ने ड्राई फ्रूट्स दान कर दिए तो उन्हें भी लंगर में बांट दिया जाता है। रोटी बनाने के लिए बड़े-बड़े तवे रखे गए हैं। रोटी बनाने की एक मशीन भी गुरूद्वारे की तरफ से लगाई गई है। इस मशीन से हर घंटे में बीस हजार रोटियां बनती हैं।
मेरे पास कई ऐसे वीडियो आए जिनमें दिखाया गया कि किसान लक्जरी टेंट्स में रह रहे हैं। ये टेंट आमतौर पर जंगल सफारी में या फिर कैंपिग में इस्तेमाल किये जाते हैं।ऐसा दावा किया गया कि इन टेंट्स में ठंड से बचाने का इंतजाम है और हीटर लगे हुए हैं। साथ ही ये भी दावा किया गया कि सैंकड़ों ऐसे टेंट लगाए गए हैं और पूरी टेंट सिटी बसा दी गई है।
सच्चाई जानने के लिए इंडिया टीवी के रिपोर्टर को दिल्ली बॉर्डर के धरना स्थलों पर भेजा गया। सब कुछ देखने के बाद हमारे रिपोर्टर पवन नारा ने बताया कि ये सही है कि एक टेंट सिटी बनी है और इसमें कुछ लक्जरी टेंट भी हैं, लेकिन ये टेंट सिटी हेमकुंड फाऊंडेशन ने बसाई है। हेमकुंड साहिब में मत्था टेकने के लिए जो लोग जाते हैं उनके ठहरने के लिए ऐसे ही टेंट लगाए जाते हैं। इस तरह के करीब सौ टेंट लगाए गए हैं। लेकिन इनकी बुकिंग नहीं होती है बल्कि कोई भी आकर इनमें आराम कर सकता है। लेकिन सौ टेंट्स में हजारों किसान नहीं ठहर सकते। किसानों की संख्या लगभग 60 हजार है। ज्यादातर किसान अपनी रातें ट्रकों और ट्रैक्टर ट्रॉलियों के अंदर बिता रहे हैं। इसलिए ये कहना है कि आंदोलन करने वाले किसान लक्जरी टेंट में रह रहे हैं,गलत होगा। किसान अपने ट्रैक्टर और ट्रॉली के साथ आए हैं। किसानों की ट्रॉली ही उनका आशियाना बन गई है। ट्रॉली पर तिरपाल लगाई है ताकि सर्द हवा से बचा जा सके। ट्रॉली के अंदर पुआल लगाई है और उसके ऊपर गद्दे डाले गए हैं ताकि तीन-चार डिग्री की ठंड को भी बर्दाश्त कर सकें।
इसी तरह का एक और वीडियो खूब फैलाया गया कि आंदोलन में शामिल किसानों के लिए वॉशिंग मशीने लगी हैं। किसानों के कपड़े मशीनों में धुल रहे हैं। पहली बात तो ये कि वॉशिंग मशीन में किसानों के कपड़े धुलें, इसमें क्या परेशानी है? लेकिन हमारे रिपोर्टर ने जब इसकी तहकीकात की तो ये बात सही निकली कि कुछ वॉशिंग मशींने लगाई गई हैं। कुछ किसानों के कपड़े वॉशिंग मशीनों में धोए भी जा रहे थे, लेकिन सिर्फ तीन-चार वॉशिंग मशीनें ही लगी है। इन मशीनों को दो किसान खुद लेकर आए हैं। बाकी किसान खुले आसमान के नीचे अपने कपड़े धोते और सुखाते हैं।
किसान आंदोलन का एक और वीडियो खूब चर्चा में है। इस वीडियो के जरिए दावा किया गया कि किसानों का आंदोलन फाइव स्टार आंदोलन है। यहां किसानों के लिए फुट मसाज का इंतजाम किया गया है। वीडियो में एक साथ कई फुट मसाज मशीनें लगी हैं। कई किसान बैठकर पैरों की मसाज करवा रहे हैं। हमारे रिपोर्टर ने जब वीडियो की पड़ताल की तो पता चला कि वीडियो सही है और सिंघु बॉर्डर का ही है। लेकिन हर जगह फुट मसाज मशीनें नहीं लगी हैं। एक फुट मसाज सेंटर खालसा एड की तरफ से बनाया गया है। इसमें बुजुर्ग महिलाओं और पुरुषों के फुट मसाज का इंतजाम है। जो बुजुर्ग किसान काफी दूर से चलकर आ रहे हैं, उनके पैरों को आराम देने के लिए ये फुट मसाजर लगाए गए हैं। ठीक इसी तरह एक वीडियो में यह दिखाया गया कि किसान अपने साथ कई सैलून वालों को भी साथ लाए हैं। आंदोलन वाली जगह पर हेयर स्पा और मेन्स पार्लर चल रहे हैं। हमारे रिपोर्टर ने बताया कि सिंघु बॉर्डर पर खुद कुछ लोगों ने अपनी पहल से किसान भाइयों के लिए सैलून का इंतजाम किया है। इस सैलून में किसानों के बाल मुफ्त में काटे जाते हैं।
किसान अपना राशन अपने साथ लेकर आए हैं। गुरुद्वारों का लंगर लगता है पर कहने वालों ने कह दिया कि पिज्जा पार्टी चल रही है। किसान रात की कड़कती ठंड में अपना घर-बार छोड़कर ट्रॉलियों में तिरपाल के नीचे सोते हैं, पर कहने वालों ने कह दिया कि उनके लिए लक्जरी टेंट लगाए गए हैं। किसी ने वॉशिंग मशीन दिखाई तो किसी ने फुट मसाज की चेयर। मुझे लगता है कि ऐसी बातें फैलाना किसानों के साथ अन्याय है। हमारे रिपोर्टर्स ने पाया कि कुछ लोगों ने मुफ्त में टेंट लगाए, किसी ने पिज्जा खिलाया तो किसी ने बूढ़े लोगों के लिए फुट मसाज का इंतजाम कर दिया। इससे किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। हमें तो उन लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्होंने मुफ्त में ये सुविधाएं किसानों को दी। जिससे जितना बन पड़ा, उसने उतना किया। जिसके पास जो कुछ था उसने वही सेवाभाव से दिया। वैसे भी यह हमारे देश की परंपरा और लोगों के संस्कार हैं। क्या लोग भूल गए कि मार्च-अप्रैल में जब लॉकडाउन से परेशान मजदूर सड़कों पर पैदल निकले तो उनके लिए भी लंगर लगाए गए थे? उन मजदूरों को भी ट्रांसपोर्टर्स ने मुफ्त में बसों-ट्रकों में बैठाकर उन्हें घर छोड़ा था। कुछ लोगों ने तो मजदूरों को हवाई जहाज से उनके शहर भेजा था।
इसलिए किसानों की मांगों और उनके आंदोलन को पिज्जा और टेंट में फंसाना ठीक नहीं है। जब आप ऐसे वीडियो देखें तो उनपर भरोसा ना करें। कुछ लोगों को लग सकता है कि किसान बहकावे में आ गए हैं और वो जिद पकड़ कर बैठे हैं। लेकिन इस वजह से ऐसे वीडियो बनाना और भ्रम फैलाना ठीक नहीं है। मैं तो हर उस व्यक्ति के खिलाफ हूं जो अफवाहें फैलाता है, जो देश और समाज को बांटने की बात करता है। इसीलिए जब किसानों के आंदोलन में ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग घुसा और प्रधानमंत्री के लिए अपमानजनक बातें कही गई तो हमने इंडिया टीवी पर उसे भी एक्सपोज़ किया। किसान भाइयों से मैं आज भी यही कहूंगा कि बातचीत का सिलसिला जारी रहना चाहिए। नरेंद्र मोदी की नीयत पर शक ना करें और सरकार से बात करें।किसान आंदोलन को लेकर इस तरह के वीडियो प्रसारित करने वाले लोगों से मेरी यह अपील है कि वे किसानों को बदनाम न करें। किसान हमारे ‘अन्नदाता’ हैं। नए कृषि कानूनों पर उनकी कुछ शंकाएं हैं, उनके कुछ मुद्दे हैं और उन्हें इन मामलों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने दें।
Do not defame farmers who are out in the open braving harsh winter
At a time when people in the National Capital Region are shivering in winter, with a minimum temperature of 3.5 degree Celsius, and with cold, icy winds blowing across Delhi, thousands of farmers from Punjab, Haryana and UP are staying in the open as the dharna entered the 23rd day. They cook their food in the open, eat at ‘langars’ and sleep inside trucks and trolleys.
On the other hand, the social media is buzzing with videos claiming that farmers are gorging on pizzas and rabri-jalebi sweets, using washing machines and foot massagers, and staying inside luxurious safari tents. Those circulating these videos claim that farmers are having a good time while putting thousands of commuters and traders to difficulties by blocking highways.
Before making such sweeping comments, one must realize that most of the farmers camping at Singhu border are Sikhs from Punjab. They know how to organize ‘langars’ (community kitchens), feed others, since this is part of their centuries-old Sikh tradition. Delhi Sikh Gurdwara Parbandhak Committee has been organizing ‘langars’ for these farmers, where they are provided breakfast, lunch, tea with snacks, dinner and hot milk at night. If some businessmen donate dry fruits, these are distributed among them. The gurdwaras have brought in roti making machines that churn out 20,000 rotis within an hour.
I was sent some videos showing some farmers staying in luxury tents, the type of camping tents normally used during jungle safari, equipped with heaters. It was claimed that there were hundreds of such tents, and a tent city has come up.
India TV reporters were sent to the dharna sites on Delhi’s border to find out the truth. Our reporter Pawan Nara found that a tent city has indeed come up, equipped with some luxury tents. These tents have been set up by Hemkund Foundation, which normally puts them up for pilgrims who visit Hemkund Sahib. There are roughly 100 such tents, which are not booked. Anybody is free to stay inside such tents. But the number of tents is nor more than 100, whereas the number of farmers is nearly 60,000. Most of them the farmers are spending their nights inside trucks and tractor trolleys. To say that farmers are having a whale of a time staying inside luxury tents is incorrect. The trolleys are covered with tarpaulin, mattresses have been put on hays for farmers to rest and sleep in 3 degree Celsius temperature.
There is another video showing washing machines being used by farmers. On checking, it was found that only three or four washing machines have been bought by two farmers, while thousands of others are washing their clothes in the open. Another video shows farmers using foot massagers. Our reporter found that only a few foot massagers have been provided, some by Khalsa Aid organisation, for the benefit of aged farmers and old women accompanying them. A few saloons are working where farmers get their hair cut free of charge.
The farmers have brought foodgrains, pulses and vegetables with them. They are having food at ‘langars’ run by gurdwaras, but some mischievous elements are propagating that the farmers are having a pizza party, which is untrue.
I believe it is highly improper to level allegations that farmers camping at Delhi’s border are having a good time. We should rather thank people who have provided tents and other facilities to farmers. This is part of our old cultural traditions: to help people in distress. This year, during March and April, we have seen how people on the roadside distributed food and water to migrant labourers who left the cities during lockdown and walked on foot to their villages. Transporters allowed their trucks to be used to carry those migrants. Some people had sent migrants to their home towns by aeroplanes.
It will be highly unjustified to introduce such frivolous matters like use of tents and washing machines, to the basic agricultural issues that are being debated both by the farmers and the Centre. I would request all not to trust such videos being circulated by vested interests. Some people may have the opinion that the agitating farmers have been misguided and are adamant, but spreading confusion through such videos is not acceptable. I am against all such people who spread false videos and try to create divisions in society.
We at India TV exposed how those from ‘tukde tukde’ gang chanted anti-Modi slogans and displayed placards in support of anti-national elements. I would again request our farmer friends to continue their discussions with the government. They should not mistrust Prime Minister Narendra Modi’s motives and work towards an amicable solution. I would also like to appeal to people circulating such videos not to defame the farmers. They are our ‘annadatas’ (food providers) and they have some issues with the new farm laws. Let them settle these matters in a peaceful manner.
झूठ की फैक्ट्रियां किसानों को भड़काने के लिए किस तरह अफवाहें फैलाने में जुटी हैं
ऐसे समय में जब सुप्रीम कोर्ट किसानों और केंद्र के बीच गतिरोध को दूर करने के लिए सभी पक्षों की एक समिति गठित करने जा रही है, अफवाह फैलाने वाली फैक्ट्रियां झूठी खबरों और वीडियो के जरिए आंदोलनकारियों को भड़काने की कोशिशों में जुटी हुई हैं। ये झूठी अफवाहें न सिर्फ किसानों बल्कि सेना में काम करने वाले उनके रिश्तेदारों के बीच भी असंतोष पैदा करने के लिए फैलाई जा रही हैं। यह गंभीर बात है जिसपर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।
आइए, अब एक-एक करके उन अफवाहों की बात करते हैं जो हाल ही में फर्जी साबित हुई हैं।
तथ्य नंबर एक: 12 दिसंबर को गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने भारतीय रेल को लेकर ट्विटर पर 25 सेकंड का एक वीडियो शेयर किया था। हार्दिक ने इस वीडियो के साथ कॉमेंट में लिखा था, ‘भारतीय रेल पर अडानी के फ्रेश आटे का विज्ञापन देखने लायक है। अब तो दावे के साथ कह सकते हैं कि किसानों की लड़ाई सत्य के मार्ग पर है।’ हार्दिक पटेल ने जो वीडियो ट्वीट किया था, उसमें एक ट्रेन का इंजन दिख रहा है जिसके दोनों तरफ फॉर्चून ब्रैंड के आटे का विज्ञापन नजर आ रहा है। साथ ही, एक जगह अडानी विलमार का पोस्टर भी लगा है। हार्दिक पटेल के इस ट्वीट को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने रीट्वीट किया, और फिर उन्होंने कॉमेंट किया, ‘जिस भारतीय रेलवे को देश के करोड़ों लोगों ने अपनी मेहनत से बनाया, बीजेपी सरकार ने उस पर अपने अरबपति मित्र अडानी का ठप्पा लगवा दिया। कल को धीरे-धीरे रेलवे का एक बड़ा हिस्सा मोदीजी के अरबपति मित्रों को चला जाएगा।’ उन्होंने आगे लिखा, ‘देश के किसान, खेती-किसानी को भी आज मोदी जी के अरबपति मित्रों के हाथ में जाने से रोकने की लड़ाई लड़ रहे हैं।’ इसके बाद तो सोशल मीडिया पर ये फर्जी खबर जंगल की आग की तरह फैल गई कि भारतीय रेलवे अपनी ट्रेनों को अडानी ग्रुप को बेचने जा रही है।
इसके बाद भारत सरकार के प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो ने ‘फैक्ट चेक’ अलर्ट के तहत ट्वीट किया, ‘फेसबुक पर एक वीडियो के साथ यह दावा किया जा रहा है कि सरकार ने भारतीय रेल पर एक निजी कंपनी का ठप्पा लगवा दिया है। यह दावा भ्रामक है। यह केवल एक वाणिज्यिक विज्ञापन है जिसका उद्देश्य केवल ‘गैर किराया राजस्व’ को बेहतर बनाना है।’ अडानी ग्रुप के इस विज्ञापन वाले वीडियो का किसान आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने इसे किसानों के बीच खूब घुमाया । इसके जरिए किसानों को ये बताने की कोशिश की, मानो अडानी को रेलगाडियां बेची जा रही है, उसी तरह, जिस तरह कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग के जरिए किसानों की जमीन हड़प ली जाएगी।
इंडिया टीवी के संवाददाता देवेंद्र पाराशर ने वीडियो की सत्यता की जांच की और पाया कि असल में पश्चिमी रेलवे ने अतिरिक्त आय जुटाने के लिए वडोदरा डिविजन में नॉन फेयर रेवेन्यू स्कीम के तहत 10 ट्रेनों में विज्ञापन देने के लिए टेंडर जारी किए थे। ये टेंडर अडानी ग्रुप को मिले थे और इसी के बाद फरवरी में अडानी ग्रुप ने अडानी विलमार के फॉर्चून आटे का विज्ञापन वडोदरा की ट्रेन पर पेंट किया था। वेस्टर्न रेलवे के फेसबुक पेज पर एक फरवरी को फॉर्चून के विज्ञापन की पेंटिंग वाली ट्रेन के उद्घाटन समारोह की जानकारी दी गई थी।
पता ये भी चला है कि इस साल मार्च तक वेस्टर्न रेलवे जोन ने 37 लोकोमोटिव को ‘नॉन फेयर रेवेन्यू’ स्कीम के तहत 73 लाख 26 हजार रुपये सालाना की दर पर विज्ञापन के लिए दिया था। इन विज्ञापनों को 5 साल दिखाने के लिए पश्चिमी रेलवे को 4 करोड़ 40 लाख रुपये बतौर ‘नॉन फेयर रेवेन्यू’ मिले थे।
इंडिया टीवी के संवाददाता को रेलवे बोर्ड से पता चला कि न तो कोई ट्रेन किसी कंपनी को बेची गई, न ही लीड़ पर दी गई। रेलवे बोर्ड ने कहा कि ये केवल एक विज्ञापन हैं, जो रेलवे के लिए आमदनी का जरिया है। न किसी ने रेल बेची, और न ही खरीदी, लेकिन कांग्रेस नेताओं ने यह अफवाह फैलाने के लिए इसे गलत तरीके से पेश किया कि भारतीय रेलवे अपनी ट्रेनें अडानी ग्रुप को बेच रही है। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का आरोप है कि अंबानी के रिलायंस ग्रुप को तो पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह लेकर आए थे। इन नेताओं ने यह भी पूछा कि क्या मोदी के 6 साल के शासन के दौरान ही अंबानी और अडानी अरबपति बन गए ? 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले भी इन उद्योगपतियों का कारोबार काफी बड़ा था।
तथ्य नंबर 2: एक तेलुगु अखबार ‘प्रजशक्ति’ ने दावा किया कि भारतीय सेना के 25,000 शौर्य चक्र विजेताओं ने किसानों के आंदोलन के समर्थन में अपने मेडल रक्षा मंत्रालय को वापस कर दिए हैं। हमने अपने रक्षा संवाददाता मनीष प्रसाद से रक्षा मंत्रालय से संपर्क कर इसकी सत्यता की जांच करने के लिए कहा। पता चला कि 1956 से लेकर 2019 तक कुल मिलाकर सिर्फ 2,048 शौर्य चक्र मेडल ही दिए गए हैं। ‘प्रजाशक्ति’ एक CPI(M) समर्थक अखबार है। इसकी तेलुगु खबर का हिंदी, पंजाबी और अंग्रेजी में अनुवाद करके उसे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में, खासतौर पर किसानों के बीच अंसतोष पैदा करने के लिए बांटा गया। कई किसानों ने इस खबर को पूरी तरह सच भी मान लिया, जबकि इसमें दूर-दूर तक को सच्चाई नहीं थी।
तथ्य नंबर 3: खुद को तीन-तीन दैनिक अखबारों के मुख्य सम्पादक होने का दावा करने वाले गुरचरण सिंह बब्बर का भी एक वीडियो खूब सर्कुलेट हो रहा है। इस वीडियो में वह दावा कर रहा है कि उसे ‘टॉप सीक्रेट सोर्सेज’ से पता चला है कि सरकार ने किसानों के आंदोलन को कुचलने की पूरी तैयारी कर ली है और इसके लिए आधी रात को सिंघू, टिकरी और गाजीपुर हॉर्डर पर एक बड़ा ऑपरेशन शुरू किया जाएगा। अपने इस वीडियो संदेश में बब्बर ने कहा कि प्राइवेट एजेंसियां इस बात की जानकारी जुटा रही हैं कि धरनास्थल पर किसानों के बीच कितनी महिलाएं, बच्चे, युवा और नेता मौजूद हैं। अपने संदेश में बब्बर ने ये झूठा दावा करते हुए कहा कि सुरक्षा बल के जवान रात के समय बिजली काटने के बाद अंधेरे में सो रहे किसानों पर धावा बोलेंगे, ताकि उन्हें तितर-बितर किया जा सके। उसने दावा किया कि सरकार इस ऑपरेशन के लिए CRPF और BSF का भी इस्तेमाल कर सकती है। अपने वीडियो संदेश में बब्बर ने यहां तक कहा कि सरकार प्रदर्शनों को रोकने के लिए हरियाणा और पंजाब में कर्फ्यू लगा सकती है और गिरफ्तार किसानों एवं उनके नेताओं को अस्थाई जेलों में कैद कर सकती है।
इंडिया टीवी के संवाददाताओं ने गुरचरण सिंह बब्बर के बारे में तहकीकात की तो पाया कि पत्रकार होने की बजाय वह अखिल भारतीय सिख कॉन्फ्रेन्स का अध्यक्ष है। उसने सुप्रीम कोर्ट के जजों और 1984 के सिख विरोधी दंगों के वकील एच. एस. फुल्का के बारे में पहले भी कई भड़काऊ बातें कही हैं। दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश सिख किसानों को बब्बर के बारे में पता है और वे उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लेते। ब्रिटेन के एक पत्रकार सरदार प्रभदीप सिंह, जो यूट्यूब पर एक न्यूज चैनल चलाते हैं, ने बब्बर द्वारा किए गए दावों की सत्यता पर सवाल उठाए। उन्होंने बब्बर को चुनौती दी कि वह अपनी खबर का स्रोत बताएं।
तथ्य नंबर 4: गाजियाबाद के एक टोल प्लाजा के पास सेना की मूवमेंट का एक वीडियो फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर पर ये फर्जी अफवाह फैलाने के लिए पोस्ट किया गया कि दिल्ली के बॉर्डर से किसानों को तितर-बितर करने के लिए सेना को बुला लिया गया है। नवाब सतपाल तंवर ने, जो कि खुद को भीम सेना का चीफ बताता हैं, दावा किया कि उसने टोल प्लाजा पर यह वीडियो स्वयं शूट किया। जांच करने पर पता चला कि यह वीडियो एक जगह से दूसरी जगह तैनात की जा रही सेना की एक बटालियन के मूवमेंट का है, और किसानों के धरने से इसका कोई लेना-देना नहीं है। इंडिया टीवी के संवाददाताओं ने जब गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे किसानों से पूछा कि क्या उन्होंने वहां सेना की कोई मूवमेंट देखी है, तो उनमें से अधिकांश ने जवाब दिया कि वे 21 दिन से यहां खुले में बैठे हैं, और आर्मी की बटालियन तो क्या, सेना का एक भी जवान उन्हें नहीं दिखा।
किसानों को भड़काने के लिए जवानों के बारे में झूठ फैलाया जाए, इससे घटिया बात और क्या हो सकती है। इसकी जितनी निंदा की जाए, वह कम है। यह समझने की जरूरत है कि अशांति पैदा करने के लिए इस तरह की अफवाहें जानबूझकर फैलाई जा रही हैं। देश के दुश्मन पूरी तरह ऐक्टिव हैं और वे मौके का फायदा उठाकर हिंसा और अशांति फैलाना चाहते हैं। राहत की बात सिर्फ इतनी है कि अधिकांश किसान समझदार हैं और आसानी से ऐसी बातों पर भरोसा नहीं करते। किसानों के चारों तरफ झूठ, छल और प्रपंच का जाल बिछाया जा रहा है, उनमें से अधिकांश कम पढ़े-लिखे हो सकते हैं, लेकिन वे आसानी से ऐसी बातों पर भरोसा नही करते। वे जो अपनी आंख से देखते हैं, अपने कान से सुनते हैं, उस पर भरोसा करते हैं।
ऐसी निराधार अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि किसानों को एक-दूसरे से मोबाइल फोन पर बात करने से रोकने के लिए सरकार जैमर का इस्तेमाल कर रही है। अब यह तो कॉमन सेंस की बात है कि दिल्ली के बॉर्डर पर हजारों किसान बैठे हैं, और सबके पास एक-एक या दो-दो मोबाइल फोन हैं, और एक जगह पर एक साथ इतने ज्यादा मोबाइल ऐक्टिव हैं इसलिए उस इलाके में नेटवर्क की प्राब्लम तो हो ही सकती है। लेकिन अफवाह फैलाने वालों ने इस बात को भी हथियार बनाते हुए अफवाह फैलाई कि यह सब एक सरकारी एजेंसियों द्वारा एक ‘ऑपरेशन’ को अंजाम देने के लिए किया जा रहा है।
पंजाब के किसानों को हताश करने के लिए सोशल मीडिया पर एक वीडियो खूब फैलाया जा रहा है। इस वीडियो में एक किसान अपने खेत की पूरी फूलगोभी की फसल को रौंद देने की धमकी दे रहा है। यह वीडियो पंजाब से नहीं, बल्कि बिहार के समस्तीपुर जिले के मुक्तापुर का है। चूंकि स्थानीय बाजार में फूलगोभी की फसल एक रुपये किलो की दर पर खरीदी जा रही थी, इसलिए वह हताश किसान ट्रैक्टर से अपनी पूरी फसल को रौंदने जा रहा था।
मैं इस बात के लिए केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद की तारीफ करूंगा कि उन्होंने इस किसान के वीडियो को देखा और अपने विभाग के कॉमन सर्विस सेंटर को निर्देश दिया कि इस किसान को संपर्क कर इनकी फसल को देश के किसी भी बाजार में उचित मूल्य पर बेचने का प्रबंध किया जाए। इसके बाद दिल्ली के एक व्यापारी ने समस्तीपुर में किसान से संपर्क किया और उसकी फूलगोभी की फसल को 10 रुपये किलो के भाव से खरीदा। कुछ ही घंटों में किसान के बैंक खाते में आधी राशि एडवांस के रूप में पहुंच गई। बुधवार को पूरी फसल जैसे ही ट्रक पर लोड हुई, तो बकाया राशि भी किसान के बैंक खाते में पहुंच गई।
आजकल व्हाट्सऐप, ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब के जरिए अफवाहें उड़ाना, फेक न्यूज फैलाना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है। हमने इंडिया टीवी पर एक एक्सपर्ट टीम तैयार की है जो सोशल मीडिया पर इस तरह के हर वायरल वीडियो का सच ढूंढ़ निकालती हैं। मेरा आपसे वादा है कि जब-जब कोई साजिश करेगा, झूठ फैलाने की कोशिश करेगा, अफवाहें फैलाने की कोशिश करेगा, हम बेखौफ होकर उसका सच आपके सामने उजागर करेंगे ।
How rumour mills are working overtime to spread unrest among farmers
At a time when the Supreme Court has intervened to set up a committee of all stakeholders to break the ongoing deadlock between the farmers and the Centre, rumour mills are working overtime to incite the agitators by spreading false news and videos. Baseless rumours are being circulated to spread disaffection not only among farmers but also their relatives who work in the armed forces. This is a serious aspect which needs urgent attention.
Let me take up the rumours that were proved fake recently, one by one.
Fact Number 1: On December 12, Gujarat Congress leader Hardik Patel tweeted a 25-second video clip showing a logo of Adani Wilmar on a train which advertised Fortune Chakki Fresh Atta. Hardik Patel tweeted: “Adani group’s fresh Atta ad on Indian Railways is worth watching, we can now say that the farmers are on the side of Truth.” This video was retweeted by Priyanka Gandhi, Congress general secretary, who commented: “The railways that was created with the hard work of crores of Indians..BJP has put a stamp of its billionaire friend Adani. In the days to come, a large part of the railways will go to the billionaire friends of Modi ji”. She further wrote: “India’s farmers are waging a tough battle as they try to stop Modi ji’s billionaire friends from taking over farm sector.” There was frenzy on social media which acted as force multiplier to send the baseless message that the Indian Railways is going to sell its trains to Adani group.
In its ‘Fact Check’ alert, the Press Information Bureau of the Government of India tweeted: “It has been claimed in a Facebook video that Indian Railways has accepted a private firm’s logo. This claim is misleading. This is just an advertisement that aims to improve revenue.” The Adani ad video had nothing to do with farmers, but it was widely circulated by Congress leaders, particularly among farmers to spread the fake message that their lands will be given to Adani group in the same manner in which trains are being given to that group.
India TV reporter Devendra Parashar checked the veracity of the video and reported that in order to generate extra revenue, Western Railway had called for tenders for display of ads on 10 trains In Vadodara division under the non-fare revenue scheme. The Adani group got its bid accepted in February this year, and five locomotives were allotted to Adani Wilmar for ads on a pro-rata basis in February. It was under these circumstances that the locomotive in Vadodara was painted with the Fortune Atta ad. This was published on the Western Railway Facebook page on February 1 announcing the launch of the first locomotive with Fortune branding.
Till March this year, Western Railway had collected Rs 73 lakh 26 thousand per year as non-fare revenue from ads displayed on 37 locomotives. For display of ads for five years, the WR collected Rs 4 crore 40 lakh as non-fare revenue. India TV reporter contacted the Railway Board which clarified that no train was sold or leased to any party, and display of these ads only generated non-fare revenue for the Railways. This was misrepresented by Congress leaders to spread the rumour that Railways was selling its trains to Adani group. BJP leaders allege that it was Punjab CM Capt Amrinder Singh who invited Ambani’s Reliance group to his state. These leaders have posed a question whether Ambani and Adani became billionaires only during the last six years of Modi’s rule? These industrialists had expanded their business much before Modi became the PM in 2014.
Fact Number 2: A Telugu newspaper ‘Prajashakti’ claimed that 25,000 soldiers of the Indian Army have returned their Shaurya Chakra medals to express solidarity with the farmers’ protest. We asked our Defence correspondent Manish Prasad to check from the Ministry of Defence. It was found that only 2,048 Shaurya Chakra medals have been awarded from 1956 till 2019. The daily ‘Prajashakti’ is a pro-CPI(M) newspaper, and the news clipping in Telugu was translated to Hindi, Punjabi and English and circulated in UP, Punjab and Haryana, particularly among farmers to spread disaffection among them. Many of the farmers took this as gospel truth, but the news was entirely baseless.
Fact Number 3: A video message was circulated showing Gurcharan Singh Babbar, who claims to be the editor-in-chief of three daily morning newspapers. In the video, the man claimed that he had ‘top secret information’ about the Centre’s plan to launch a large operation at midnight to end the farmers’ protest at Singhu, Tikri and Ghazipur border points. In the video message, Babbar says, private agencies were collecting information about the numbers of women, children, youths and leaders present among the farmers who are on dharna. In the message, Babbar warns that security forces may snap off electric connections in the area at night to carry out an operation to disperse the farmers. The government may also use the CRPF and BSF for this operation, he claimed. In his message, Babbar warns that the government may impose curfew in Haryana and Punjab to quell protests and put the arrested farmers and their leaders in temporary jails.
India TV reporters checked Gurcharan Singh Babbar’s antecedents and found that instead of being a journalist, he was the president of All India Sikh Conference. He had been making provocative comments about Supreme Court judges and 1984 anti-Sikh riots advocate H S Phulka in the past too. The interesting part is that most of the Sikh farmers know about Babbar and do not take his comments seriously. A UK-based journalist Sardar Prabhdeep Singh, who runs a news channel on YouTube, questioned the veracity of the claims made by Babbar. He dared him to disclose the sources of his information.
Fact Number 4: A video of army movement near a Ghaziabad toll plaza was posted on Facebook, WhatsApp and Twitter to spread baseless rumours that army has been called in to disperse the protesting farmers from Delhi’s borders. A man named Nawab Satpal Tanwar, said to be Bhim Sena chief, has claimed that he shot the video at the toll plaza. On checking, it was found that it was only a routine transfer of army battalion from one place to another, and had nothing to do with farmers’ protest. India TV reporters asked farmers at Ghazipur border whether they noticed any army movement. Most of them replied that they have not seen a single army jawan during the last 21 days that they have been sitting in the open.
Such acts of spreading baseless rumours about the army are condemnable. One has to realize that these rumours are being deliberately spread to create unrest. The enemies of our nation are active and they are trying their best to spread violence and disruption. The only silver lining in the cloud is that most of the farmers do not believe in baseless rumours. A web of lies, deceit and propaganda is being spun around the farmers, most of whom may be illiterate, but have the uncanny sense of sifting the grain from the chaff.
Baseless rumours are being spread about the government using jammers to stop farmers from communicating with one another on cellphones. It is common sense that the presence of thousands of farmers, having one or two cellphones each, can cause network issues, but these are also being attributed by rumour mongers to government agencies by spreading rumours about an impending ‘operation’.
A video of a farmer threatening to destroy his entire cauliflower crop in the field is being circulated to spread rumours that farmers in Punjab have become desperate. The video is not from Punjab, but from Muktapur in Bihar’s Samstipur district. Since cauliflower crop was being bought at Re. 1 a kilo in the local market, the farmer, out of desperation, was going to destroy his entire crop by using a tractor. I would like to thank Law Minister Ravi Shankar Prasad, who, after watching the video, instructed the common service centre of his ministry to get in touch with the farmer, and ensure that his crop was sold at a fair price elsewhere. A Delhi trader contacted the farmer in Samstipur, and bought his crop at Rs 10 a kg. Half of the amount was immediately transferred as advance to the farmer’s bank account. On Wednesday, when the entire crop was loaded on a truck, the farmer got the remaining half of his earnings.
Spreading rumours through fake videos on WhatsApp, Twitter, Facebook and YouTube has become very easy nowadays. We, at India TV, have set up a dedicated team to fact-check each and every questionable video that surfaces on social media. It’s my promise that we will show you the truth and dispel all baseless rumours that are being spread by rumour mongers.
कृषि कानून: कांग्रेस, अकाली दल और शिवसेना ने कैसे किया ‘यू टर्न’
गुजरात के कच्छ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को कहा कि तीनों नए कृषि कानूनों के मुद्दे पर कुछ राजनीतिक दल किसानों को भ्रमित कर रहे हैं। मोदी ने कहा, किसानों को ये कहकर बहकाया जा रहा है कि यदि ये कानून लागू हो गए तो उनकी जमीन पर दूसरे लोगों का कब्जा हो जाएगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि ये बिल्कुल वही सुधार हैं जिनकी मांग विपक्षी पार्टी और किसान संगठन पिछले कई सालों से कर रहे थे। मोदी ने कहा कि विपक्ष में जो लोग आज किसानों को गुमराह कर रहे हैं, वे सत्ता में होने पर इन सुधारों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वे कोई फैसला नहीं कर सके। उन्होंने कहा कि आज जब देश ने एक ऐतिहासिक कदम उठाने का फैसला किया है तो वे किसानों को गुमराह कर रहे हैं।
मंगलवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि किस तरह राजनीतिक दलों और उनके नेताओं ने किसानों के मुद्दे पर ‘यू टर्न’ लिया है और सियासी तौर पर उनके सेंटिमेंट को भुनाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। ये नेता और राजनीतिक दल पहले कहा करते थे कि कॉरपोरेट के आने से किसानों को फायदा होगा और उनकी आमदनी में वृद्धि होगी, लेकिन अब वे किसानों को चेतावनी दे रहे हैं कि यदि कॉरपोरेट आ गया तो वह किसानों को उनके ही खेतों से बेदखल कर देगा। पहले यही नेता कहा करते थे कि ‘आढ़तिए’ किसानों का खून चूसते हैं, और अब वही नेता इन आढ़तियों को किसानों का सबसे अच्छा दोस्त बता रहे हैं। ये वे राजनेता हैं जो पहले कहते थे कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग होगी तो किसान मालामाल हो जाएगा, और अब कह रहे हैं कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग होगी तो पूंजीपति किसानों की जमीन पर कब्जा कर लेंगे।
इन नेताओं में सबसे पहला नंबर अकाली दल के सर्वेसर्वा सुखबीर बादल का है। अकाली दल बीजेपी के साथ केंद्र की मोदी सरकार में पार्टनर थी। सुखबीर की पत्नी हरसिमरत कौर कैबिनट मिनिस्टर थीं, और उनकी मौजूदगी में ही केंद्रीय कैबिनेट ने तीनों नए कृषि कानूनों के ड्राफ्ट को मंजूरी दी थी और फिर संसद ने इन विधेयकों को पारित किया था।
आज सरकार और एनडीए से नाता तोड़ने के बाद सुखबीर बादल आरोप लगा रहे हैं कि ये तीनों कृषि कानून किसान विरोधी हैं, उन्हें बर्बाद करने वाले हैं। वह बीजेपी को एक ऐसी पार्टी बता रहे हैं जो किसानों की दुश्मन है। मंगलवार को तो सुखवीर बादल ने यहां तक कह दिया कि सबसे बड़ी ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ तो बीजेपी है जो देश के टुकड़े-टुकड़े करना चाहती है। मैंने अपने शो में हरसिमरत कौर का एक पुराना बयान दिखाया था, जब उन्होंने केंद्रीय मंत्री रहते हुए इन कृषि कानूनों की जमकर तारीफ की थी और इनका विरोध करने के लिए कांग्रेस एवं आम आदमी पार्टी पर निशाना साधा था।
अब सवाल यह है कि जब सुखवीर बादल और उनकी पत्नी को पता था कि ये कानून किसानों के हक में है, तो फिर उन्होंने इसका विरोध क्यों किया? ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने बीजेपी के साथ अपना 24 साल पुराना रिश्ता तोड़ दिया? इसकी वजह यह है कि पंजाब में 2 साल बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और सुखवीर की नजर किसानों की भलाई से ज्यादा इन चुनावों में जीत हासिल करने पर है। जब सुखवीर बादल को लगा कि कृषि कानूनों का विरोध करके कैप्टन अमरिंदर सिंह किसानों के हीरो बन जाएंगे, तो उन्होंने भी मैदान में उतरने और इन कानूनों का विरोध करने का फैसला किया।
इसका नतीजा यह हुआ कि अब वे न तो इधर के रहे और न उधर के। न किसान उनका भरोसा करते हैं और न ही बीजेपी, लेकिन वे अपनी कोशिश में लगे हैं। सुखवीर बादल चाहते हैं कि अब बीजेपी उनके पास आए और किसानों का आंदोलन खत्म करने के लिए मदद मांगे। वह चाहते हैं कि वर्तमान तनाव खत्म करने का सारा क्रेडिट उन्हें मिल जाए। यही वजह है कि वह अकाली दल की यूनिट के जरिए किसानों को लगातार दिल्ली के बॉर्डर पर भेजकर केंद्र पर प्रेशर बनाने में जुटे हैं। अकाली दल अब किसानों के मुद्दे पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के साथ ही खड़ी दिख रही है। हरसिमरत कौर बादल कुछ दिन पहले तक इन दोनों ही पार्टियों पर ‘किसानों को गुमराह’ करने के लिए निशाना साधती रहती थीं।
कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव के अपने घोषणापत्र में वादा किया था: कांग्रेस कृषि उपज मंडी समितियों के अधिनियम में संशोधन करेगी, जिससे कि कृषि उपज के निर्यात और अंतर्राज्यीय व्यापार पर लगे सभी प्रतिबन्ध समाप्त हो जाएं।’ इस मैनिफेस्टो में यह भी वादा किया गया था कि ‘कांग्रेस आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 को बदलकर आज की जरूरतों और संदर्भों के हिसाब से नया कानून बनाएगी जो विशेष आपात परिस्थितियों में ही लागू किया जा सकेगा।’
जब मोदी सरकार ने इन्हीं सब वादों को शामिल करते हुए कानून बनाए तो राहुल गांधी ने पलटी मार ली और इन विधेयकों का विरोध करने का फैसला किया। कांग्रेस अब मांग कर रही है कि APMC (कृषि मंडियों) को भंग नहीं किया जाना चाहिए और आवश्यक वस्तु अधिनियम को उसके पुराने स्वरूप में ही रहने देना चाहिए। राहुल गांधी लगभग रोज ही ट्वीट करके अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से नए कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरने के लिए कह रहे हैं। मंगलवार को उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘मोदी सरकार के लिए प्रोटेस्ट कर रहे किसान खालिस्तानी हैं, और क्रोनी कैपिटलिस्ट बेस्ट फ्रेंड्स हैं।’ पंजाब के कांग्रेस सांसद पिछले कई दिनों से दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना दे रहे हैं और तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।
राहुल गांधी की समस्या यह है कि उन्हें किसानों की फिक्र कम है और इस बात की चिंता ज्यादा है कि मोदी को कैसे परेशान किया जाए। पिछले 6 साल से उनकी सुई अंबानी, अडानी पर अटकी हुई है। मसला चाहे कोई भी हो, चाहे ङभूमि अधिग्रहण हो, या नोटबंदी हो, या जीएसटी हो या राफेल विमानों की खरीद हो, वह हर मसले को अंबानी और अडानी से जोड़ देते हैं। किसानों के लिए बने कानून को भी राहुल गांधी ने अंबानी, अडानी से जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि मोदी ने ये कानून अपने चहेते उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाए हैं, लेकिन राहुल गांधी पिछले 6 साल में ये आरोप इतनी बार लगा चुके हैं कि अब कोई इसे गंभीरता से नहीं लेता। अगर मोदी सरकार ने किसानों के लिए ये कानून न बनाए होते तो राहुल गांधी ये पूछते कि मोदी सरकार ने किसानों को बिचौलियों से बचाने के लिए क्या किया। वह तब कहते कि मोदी आढ़तियों के साथ मिले हुए हैं, किसानों के दुश्मन हैं।
सिर्फ विरोध के लिए मोदी का विरोध करने वालों में कांग्रेस ही अकेली नहीं है। अब महाराष्ट्र में इसकी साझेदार शिवसेना भी इसमें शामिल हो गई है। इस पार्टी ने कृषि कानूनों का समर्थन किया था और लोकसभा में इसके पक्ष में मतदान किया था, लेकिन जब अगले दिन राज्यसभा में तीनों बिल पेश किए गए, तो शिवसेना का रुख बदल गया और वह वोटिंग से गायब हो गई। यह ‘यू’ टर्न का एक क्लासिक उदाहरण है। शिवसेना के वही नेता जो कुछ दिन पहले तक राहुल गांधी की राजनीतिक समझ पर सवाल उठाते थे, अब उन्हें कृषि विशेषज्ञ मानने को तैयार हैं।
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ भी ऐसा ही है। दिल्ली में उनकी सरकार ने इन नए कृषि कानूनों को 22 नंबवर को अधिसूचित किया। जब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आम आदमी पार्टी की सरकार पर बीजेपी के साथ खड़े होने का आरोप लगाया, तो केजरीवाल ने पलटवार करते हुए कहा कि तीनों कानून केंद्र सरकार ने बनाए हैं, और चूंकि ये कानून वाणिज्यिक गतिविधियों से जुड़े हैं, इसलिए राज्य सरकार इन्हें लागू होने से नहीं रोक सकती।
यह भी सच है कि आम आदमी पार्टी ने जब 2017 का पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ा, तो अपने घोषणापत्र में लिखा था कि APMC ऐक्ट में सुधार किया जाएगा ताकि किसान अपनी फसल को राज्य के बाहर भी, किसी भी खरीदार को बेच सकें। इसी घोषणापत्र में पार्टी ने मंडियों और प्रोसेसिंग यूनिट्स में बड़े पैमाने पर निजी पूंजी लाने का वादा भी किया था। केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने मंगलवार को बताया कि किस तरह से अपनी सियासत चमकाने के लिए पार्टी किसानों को गुमराह कर रही है।
चाहे कांग्रेस हो, या अकाली दल या आम आदमी पार्टी या फिर वामपंथी दल, इन सभी राजनीतिक पार्टियों की निगाह 2022 के पंजाब विधानसभा चुनावों पर है और इनकी पूरी दिलचस्पी ज्यादा से ज्यादा किसानों का समर्थन हासिल करने में है। यही पूरे मामले की जड़ है। ये सारी पार्टियां वहां के चुनाव में मुख्य दावेदार हैं और वे किसानों का गुस्सा नहीं झेलना चाहतीं। इन पार्टियों को लग रहा है कि जिस मोदी को वे चुनाव में नहीं हरा पाईं, उसे किसानों के सवाल पर फंसा देंगी। लेकिन इस आंदोलन का सबके रोचक पहलू ये है कि किसान नेता यह नहीं चाहते कि राजनीतिक दल उनके इस आंदोलन में शामिल हों। वे अपनी लड़ाई खुद लड़ना चाहते हैं। मैंने मंगलवार को कई बड़े किसान नेताओं से बात की। उन्होंने वादा किया कि किसानों के इस आंदोलन से किसी भी पार्टी को सियासी फायदा नहीं उठाने दिया जाएगा। कुछ किसान नेता तो अपने आंदोलन से लेफ्ट पार्टियों को भी किनारे करना चाहते हैं।
उत्तर भारत के राज्यों में भले ही लेफ्ट की बड़ी मौजूदगी न हो, लेकिन पंजाब के कुछ हिस्सों में इसके काडर का एक अच्छा नेटवर्क है जो किसानों के साथ काम कर रहा है। वामपंथी दल लगातार किसानों के आंदोलन को हाइजैक करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अभी तक कामयाबी नहीं मिल पाई है। हमने जब राष्ट्रविरोधी और नक्सली नेताओं की रिहाई के लिए प्लेकार्ड्स पकड़े हुए और ‘मोदी मर जा तू’ जैसे नारमे लगाते हुए लेफ्ट समर्थकों के वीडियो दिखाए तो किसान नेताओं ने कहा कि इस तरह की नारेबाजी को अब बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। दिल्ली की सीमा पर घरना देने वाले इन किसान नेताओं ने मंगलवार को कहा कि वे राष्ट्रविरोधी नारेबाजी या इस तरह की किसी भी गतिविधि की इजाजत नहीं देंगे। उन्होंने वादा किया कि वे राष्ट्रविरोधी तत्वों को किसानों के बीच नहीं घुसने देंगे।
Farm laws: Did Congress, Akali Dal, Shiv Sena take a ‘U’ turn ?
On Tuesday, Prime Minister Narendra Modi said in Kutch, Gujarat, that farmers are being misled by some political parties on the three new farm laws. Modi said, farmers are being fooled into believing that others will occupy their land if the laws are implemented. These reforms, the PM said, are exactly the same that farmers’ outfits and the opposition had been asking over the years.
Modi said, those in the opposition who are misleading the farmers today, were trying to push these same reforms when they were in power, but they could not take a decision. Today, when the country has decided to take a historic step, they are misleading the farmers, he added.
In my ‘Aaj Ki Baat’ prime time news show on Tuesday night, we showed how political leaders and parties took a ‘U’ turn over the farmers’ issue and are now trying to politically exploit the sentiments of farmers. These leaders and political parties had been saying that corporates would usher in prosperity for farmers, but are now warning the farmers that if corporates are allowed entry, they would deprive the farmers of their agricultural land.
Earlier, these leaders used to allege that ‘aadhatiya’(commission agents) were fleecing the farmers. The same leaders are now saying that commission agents are the best friends of farmers. Earlier, these leaders used to paint a rosy picture about contract farming. They are now misleading the farmers by saying that farmers may lose their land if contract farming is allowed.
Prominent among these leaders is the head of Shiromani Akali Dal, Sukhbir Singh Badal. His party was in power at the Centre and was a partner in Modi government. His wife Harsmirat Kaur was a cabinet minister, and it was in her presence that the Union Cabinet adopted the draft of the three new farm legislations and Parliament passed these bills.
Today, after walking out of the government and NDA, Sukhbir Singh Badal is alleging that the three farm laws are ‘anti-farmer’ and BJP as a party is an enemy of farmers. On Tuesday, Badal even alleged that the BJP itself was a ‘tukde-tukde’ gang and wants to divide the country. In my show, I showed an old soundbite of his wife Harsimrat Kaur, who as a union minister, had praised the farm bills and had criticized the Congress and other parties for opposing the bills.
The question now is: if Sukhbir Badal and his wife knew that the new laws were beneficial for farmers, then why are they opposing them now? Why did they snap off the 24-year-old ties of their party with the BJP? The answer is: Punjab is heading for assembly elections after two years and Sukhbir Badal is more interested in winning these elections rather than thinking about the interests of farmers. When he found that Punjab CM Capt. Amrinder Singh is emerging as a hero among farmers by opposing the farm laws, he decided to pitch in and opposed the farm laws.
The result: Shiromani Akali Dal is presently neither here, nor there. Neither do the farmers trust Badal’s party, nor is the BJP willing to accept him. Badal wants the BJP leaders to approach him to seek his help in defusing the standoff with farmers. He wants to take credit for defusing the current tension. With this motive in mind, he has been sending Akali supporters to Delhi border to join protesters in order to mount pressure on the Centre. The Akali Dal is now on the same wavelength on the farmers issue with Congress and Aam Aadmi Party. Both these parties were till recently being criticized by Badal’s wife for “misleading the farmers”.
The Congress, in its 2019 Lok Sabha poll manifesto, had promised: “Congress will repeal the Agricultural Produce Market Committees Act and make trade in agricultural produce—including exports and inter-state trade—free from all restrictions.” It also promised: “The Essential Commodities Act, 1955 belongs to the age of controls. Congress promises to replace the Act by an enabling law that can be invoked only in the case of emergencies.”
When Modi government enacted laws incorporating these promises, Rahul Gandhi did a ‘U’ turn and decided to oppose these bills. The Congress is now demanding that APMCs (agricultural mandis) must not be disbanded and that Essential Commodities Act must remain in its previous form. Rahul Gandhi has been posting tweets almost daily asking his partymen to go to the streets to protest against the new farm laws. On Tuesday, he tweeted: “For Modi govt…protesting farmers are Khalistanis and Crony capitalists are best friends.” Congress MPs from Punjab have been staging dharna at Delhi’s Jantar Mantar for the last 10 days demanding repeal of the three new laws.
The problem with Rahul Gandhi is, he is least bothered about the interests of farmers, and is more interested in embarrassing Prime Minister Narendra Modi. For the last six years, most of his remarks about Modi helping “capitalist cronies like Ambani, Adani” now sound like a stuck gramophone record, irrespective of whether the issue relates to land acquisition or GST or demonetization or acquisition of Rafale fighter planes. Rahul Gandhi has made such allegations so often that most of the people now rarely take his charges seriously. Had Modi not enacted these farm laws, Rahul would have changed his track and asked what Modi government was doing to protect farmers from middlemen and commission agents. He would have blamed Modi for being anti-farmer and in hands-in-league with commission agents.
The Congress is not alone in its anti-Modi stand. Its ally in Maharashtra, Shiv Sena, has also stepped in. This party supported the farm laws and voted in favour in Lok Sabha, but when they were introduced in Rajya Sabha the next day, it abstained from voting. This was a classic case of ‘U’ turn. The same Shiv Sena leaders, who used to question Rahul Gandhi’s intelligence quotient in the past, now consider him an expert on agriculture.
Similar is the case with Arvind Kejriwal’s Aam Aadmi Party. His government in Delhi notified the new farm laws on November 22. When Punjab CM Capt. Amrinder Singh blamed the AAP government for siding with the BJP, Kejriwal replied that the laws had been enacted by the Centre, and since these laws were related to commercial activities, his government could not obstruct them.
The fact is: in 2017, when AAP contested the Punjab assembly polls and released a manifesto, it promised reforms in APMC Act, so that farmers would be free to sell their crops to any buyer, anywhere, even outside the state. In the same manifesto, the party promised to bring large scale private investments in mandis and processing units. Union minister Mukhtar Abbas Naqvi on Tuesday pointed out how the party was misleading farmers in order to gain advantage.
Whether it is the Congress, or Akali Dal or Aam Aadmi Party or the Left, all these political parties are more interested in garnering support of farmers with an eye of 2022 Punjab assembly polls. This is the crux of the matter.
These parties are main contenders in Punjab elections, and are unwilling to face the wrath of farmers. These parties, which had failed to defeat Narendra Modi in the elections, have now found the farmers’ issue as a convenient tool to embarrass Modi. But the most interesting aspect is that the farmers do not want any political party to join their agitation. They want to fight their own battle. I spoke to several top farmer leaders on Tuesday. They promised that the farmers would not allow any party to gain advantage. Some of the farmer leaders even want to edge out the Left parties from their agitation.
Though the Left may not have a large presence in north Indian states, it has a good network of cadre in Punjab who are working with the farmers. The Left parties are relentlessly trying to hijack the farmers’ agitation, but the cat is out of the bag. After we showed visuals of Left supporters holding placards for release of anti-national and Naxalite leaders and their supporters shouting ‘Death to Modi’ slogans, other farmer leaders have disapproved such actions. On Tuesday, farmer leaders at the dharna sites on Delhi border said they would not allow anti-national slogans or activities any more. They promised not to allow anti-national elements to infiltrate their ranks.