पाकिस्तान की साजिश नाकाम, खुफिया एजेंसियों को हमारा सलाम
पाकिस्तान ने फिर वही नापाक और शर्मनाक हरकत करने की कोशिश की जिसकी फिराक में वह पिछले एक साल से था। रात के अंधेरे में पाकिस्तानी दहशतगर्दों ने गोला-बारूद से भरे ट्रक में बैठकर कश्मीर में घुसने की कोशिश की। लेकिन हमारे सुरक्षा बलों के बहादुर जवानों ने सूरज उगने से पहले सभी आतंकवादियों को अंजाम तक पहुंचा दिया। जो लाशों की ढ़ेर लगाने आए थे, वो खुद लाश में तब्दील हो गए।
सुरक्षाबलों और खुफिया एजेंसियों ने बेहतरीन तालमेल का परिचय देते हुए गुरुवार को जम्मू-श्रीनगर हाइवे पर नगरोटा में बान टोल प्लाजा के पास जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों को मार गिराया। ये चारों आतंकवादी पाकिस्तान के रहनेवाले थे। सेना, सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस के संयुक्त ऑपरेशन में चारों आतंकवादी मारे गए। 11 एके 47 राइफल, तीन पिस्तौल, चार दर्जन से अधिक हथगोले और 10 किलो आरडीएक्स से लैस ये आतंकवादी चावल और रेत की बोरियों से लदे ट्रक में छिपे थे। ट्रक ड्राइवर फायरिंग और अंधेरे का फायदा उठाकर भाग निकला।
जब ट्रक को हाईवे के चेक प्वॉइंट पर रोका गया तो चारों आतंकवादियों ने फायरिंग शुरू कर दी और ग्रेनेड फेंकने लगे। आतंकियों की घुसपैठ और नगरोटा में एनकाउंटर में इन्हें मार गिराना कश्मीर में सेना और बीएसएफ द्वारा स्थापित बॉर्डर ग्रिड की एक बड़ी सफलता है। मैं अपनी खुफिया एजेंसियों की तारीफ करना चाहुंगा। उन्होंने बहुत पुष्ट जानकारी हासिल की थी। ये कोई आसान काम नहीं होता। इसमें खतरा बहुत होता है। इस जानकारी की वजह से सुरक्षाबलों ने पूरी प्लानिंग के साथ आतंकवादियों का सफाया किया। चूंकि जानकारी पक्की थी इसलिए हमारे सुरक्षाबलों का ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। लेकिन जरा सोचिए, अगर जानकारी वक्त पर न मिलती, अगर कहीं चूक हो जाती तो 10 किलो आरडीएक्स, 11 एके 47, 29 हथगोलों से कितना भारी नुकसान हो सकता था। पाकिस्तान अपने मंसूबों में कामयाब हो जाता तो न जाने कितने बेकसूर लोगों की जान चली जाती। जो आतंकवादी मारे गए वो पाकिस्तानी थे। आरडीएक्स पाकिस्तान का था, हथियारों पर चीन की मुहर लगी थी, आतंकियों की पैंट पर कराची का टैग था, उनके पास जो दवाइयां थी उन पर कराची की पैकिंग थी।
इन पाकिस्तानी आतंकवादियों ने एक बड़ी वारदात को अंजाम देने की योजना बनाई थी। ये हथियारों और गोला-बारूद की बड़ी खेप लेकर पूरी तैयारी के साथ आए थे, लेकिन हमारे बहादुर जवानों ने सुबह होने से पहले ही उन्हें ढेर कर दिया। तीन घंटे तक हुई फायरिंग में पुलिस के दो जवान घायल हो गए। मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बलों ने ट्रक को उड़ा दिया। ट्रक के अंदर से चार लाशें, बड़ी मात्रा में हथियार और बहुत सारी बोरियां मिलीं। आतंकवादी इस बात के लिए तैयार थे कि अगर घिर गए तो ट्रक में छिपकर ही सुरक्षाबलों पर हमला करेंगे। उन्होंने वही किया भी। रेत से भरी बोरियों को ढाल की तरह रखा गया था। आतंकवादी बोरियों के बीच में बैठे थे जिससे गोलियां उन तक न पहुंच सकें। लेकिन वो यह नहीं सोच पाए कि गोली की बजाए बम से पूरे ट्रक को भी उड़ाया जा सकता है।
हमारे सुरक्षाबलों के पास पक्की खुफिया जानकारी थी कि जैश-ए-मोहम्मद के कुछ दहशतगर्द हीरानगर और उसके आस-पास के इलाक़े में सरहद पार करने में कामयाब हुए हैं और वो हमला कर सकते हैं। इस सूचना के बाद सारे सिस्टम एक्टिव हो गए। खुफिया एजेंसियों ने वक्त पर बता दिया कि एक ट्रक में आंतकवादी हो सकते हैं। रूट भी पता था और जिस ट्रक पर शक था उसे लगातार ट्रैक किया गया। इस ट्रक ने सुबह 3 बजकर 44 मिनट पर सांबा के ठंडी खुई इलाके का टोल प्लाजा क्रॉस किया। उस वक्त इसे जाने दिया गया। इसके बाद ट्रक को नगरोटा के बान टोल प्लाजा पर रोका गया। इस वक्त तक टोल पर सारी तैयारी हो चुकी थी, सुरक्षाबलों के जवान पूरी तरह से तैयार थे। जैसे ही टोल प्लाजा पर जवानों ने ट्रक के ड्राइवर को जांच के लिए उतारा और पूछताछ करने लगे, ट्रक की जांच कराने को कहा तो ड्राइवर भागने लगा्। इसी बीच ट्रक में मौजूद आतंकवादियों ने फायरिंग शुरू कर दी। सुरक्षा बलों का शक सही था, खुफिया जानकारी पक्की थी। ट्रक में दहशतगर्द थे, लेकिन उनकी फायरिंग से ज्यादा नुकसान नहीं हुआ क्योंकि तैयारी पूरी थी। करीब तीन घंटे तक फायरिंग होती रही क्योंकि ट्रक में मौजूद आतंकवादी रेत से भरी बोरी की आड़ में छिपे थे। अंत में सुरक्षाबलों ने ट्रक को उड़ा दिया और चारों आतंकवादियों को ढेर कर दिया।
सवाल ये है कि बार-बार मुंह की खाने के बाद भी पाकिस्तान ऐसे हमले की कोशिश क्यों करता है और इस वक्त इतने बड़े हमले की प्लानिंग का मकसद क्या था? दरअसल इस समय कश्मीर में जिला विकास परिषद के चुनाव होने वाले हैं। 28 नवंबर से आठ चरणों में ये चुनाव हर जिले में होंगे। स्थानीय स्तर पर विकास का काम इन्हीं चुनी गई जिला परिषद के जरिए होगा। पूरे कश्मीर में जिला विकास परिषदों का गठन किया गया है। हर जिले में लोग जिला विकास परिषद के 14 सदस्यों को चुनेंगे और ये 14 सदस्य अपने चेयरमैन का चुनाव करेंगे। ये जिला परिषद कश्मीर में स्थानीय स्तर पर विकास के लिए जिम्मेदार होंगी। जाहिर है इन परिषदों के पास विकास के लिए काफी फंड होगा। ये जिला परिषद जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र को मजबूत करेगी और एक नई लीडरशिप को सामने आने का मौका मिलेगा। अब पाकिस्तान की कोशिश है कि इस वक्त लोगों को डराया जाए। इस चुनाव प्रक्रिया में रुकावट पैदा की जाए। दुर्भाग्य की बात ये है कि हमारे यहां भी ऐसे लोग, ऐसे नेता हैं जो पाकिस्तान की भाषा बोलते हैं। जो जानते हैं कि अगर कश्मीर में विकास हुआ तो उनकी दुकान बंद हो जाएगी।
Pakistan’s plot foiled: Salute to our intelligence agencies
In a shining example of intelligence sharing between security forces, a joint team of Army and CRPF jawans on early Thursday morning gunned down four Pakistani Jaish-e-Mohammad terrorists near the Ban toll plaza at Nagrota on Jammu-Srinagar highway. The terrorists, armed with 11 AK-47 rifles, three pistols, and more than four dozen grenades and 10 kg RDX, were hiding in a truck loaded with rice and sand bags. The truck driver fled in the darkness taking advantage of the melee.
When the truck was intercepted at the highway checkpoint, the four terrorists started firing and threw grenades. The terrorists were carrying medicines with Karachi markings and their trouser tags established their Pakistani origin.
The interception and gunning down of four Jaish terrorists at Nagrota is an example of another success of the border grid set up by the Army and Border Security Force at the Line of Control in Kashmir. I salute the intelligence officers who gathered specific inputs about the movement of these terrorists and passed them on to Army and state police, resulting in a brilliant coordinated effort.
The Pakistani terrorists had planned to carry out a major strike and had come prepared with a huge cache of weapons and ammunitions, but they were eliminated before the break of dawn by our valiant jawans. In the three-hour shootout, two police jawans were injured. The truck was blown up by security forces during the encounter.
Intelligence agencies were keeping track of the truck carrying the terrorists after inputs came that infiltrators had crossed over to India near Hiranagar at the international border. The truck was allowed to cross the toll plaza at Thandi Khui area of Samba at around 3.44 am. When it reached the Ban toll plaza, the army and CRPF jawans were fully prepared. They asked the driver to come out and open the truck for search. Soon firing started and the encounter was over within three hours. The encounter took longer because the terrorists were hiding behind sand bags.
The huge quantity of arms and ammunitions along with explosives clearly suggest that Pakistan was plotting to carry out a big terror attack to disrupt the District Development Council polls that are going to begin from November 28 in eight phases. The aim was to strike terror in the hearts of candidates and voters during these crucial polls, in which representatives will be elected to carry out developmental work in the districts. The saddest part is that there are political forces in the Valley who are still towing Pakistan’s line, because they know that their political existence will come to an end if there is all-round development in Jammu and Kashmir.
दिल्ली में कोरोना के हालात विस्फोटक, आइए मिलकर इस महामारी का मुकाबला करें
दिल्ली में कोरोना वायरस से बुधवार को 131 लोगों की मौत हो गई जो एक दिन में हुई सबसे ज्यादा मौत है। इसके साथ ही राजधानी में कोरोना से मरनेवालों का कुल आंकड़ा 7,943 हो गया है। बुधवार को 7,486 नए मामले आने के साथ ही दिल्ली में कोरोना संक्रमितों का कुल आंकड़ा पांच लाख को पार कर 5,03,084 तक पहुंच गया है। देश की राजधानी में इस महामारी ने अपना उग्र रूप ले लिया है। दिल्ली अब कोरोना से बुरी तरह प्रभावित शहरों की लिस्ट में नंबर वन पर है।
दिल्ली में खतरा कितना बड़ा है, इसका अंदाजा शायद दिल्ली वालों को अभी नहीं है। पिछले 15 दिनों में एक लाख से ज्यादा मामले सामने आए हैं। कोरोना के मामले अचानक बढ़ने से राजधानी का हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर भी प्रभावित हुआ है। अस्पतालों में आईसीयू बेड की कमी हो गई है। वेंटिलेटर सपोर्ट वाले 92 प्रतिशत और बगैर वेंटिलेटर सपोर्ट वाले 88 प्रतिशत आईसीयू बेड फुल हो चुके हैं। कोरोना मरीजों के परिजन वेंटिलेटर वाले बेड की तलाश में एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल का चक्कर लगा रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम भारत इलेक्ट्रॉनिक्स हालात की गंभीरता को देखते हुए आपात स्तर पर बेंगलुरु से 250 वेंटिलेटर भेज रहा है। लेकिन जिस तरह से आंकड़े बढ़ रहे हैं, वेटिंलेटर्स की यह संख्या पर्याप्त नहीं हैं।
डायबिटीज और मोटापे से पीड़ित लोगों में मृत्यु दर बहुत ज्यादा है। मेडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह दिल्ली में कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर है। इससे पहले कोरोना संक्रमण की पहली लहर जून में और दूसरी सितंबर में देखी गई थी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हालात का जायजा लेने के लिए LNJP और गुरु तेग बहादुर अस्पतालों का दौरा किया। उन्होंने वादा किया है कि अगले कुछ दिनों में 663 ICU बेड बढ़ाए जाएंगे। केंद्र ने 750 अतिरिक्त बेड उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है।
रेलवे ने दिल्ली वालों की मदद के लिए शकूर बस्ती स्टेशन पर 50 मेडिकल कोचेज की तैनाती की है। एक कोच में 16 बेड हैं, यानि सिर्फ शकूरबस्ती स्टेशन पर 800 कोरोना मरीजों के इलाज का इंतजाम है। दिल्ली सरकार बड़े पैमाने पर आरटी-पीसीआर कोविड टेस्ट कराने जा रही है और इस महीने के अंत तक इसे बढ़ाकर 60 हजार रोजाना टेस्ट करने की तैयारी की है। दिल्ली हवाई अड्डे के पास DRDO अस्पताल और दक्षिणी दिल्ली के छतरपुर में 10,000 बेड के कोविड केयर सेंटर में तैनाती के लिए केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 45 डॉक्टरों और 160 पैरामेडिक्स को भेजा गया है।
अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में दशहरा के बाद से दिल्ली के प्रमुख बाजारों और दुकानों में भारी भीड़ को लेकर मैं चेतावनी दे रहा था। भीड़ ऐसी कि जिसमें एक इंच भी जगह नहीं थी। दिवाली खत्म होने के बाद भी बुधवार को हमने फिर से साउथ दिल्ली के सरोजिनी मार्केट में भारी भीड़ की तस्वीरें दिखाई। कमोबेश ऐसी ही तस्वीरें चांदनी चौक, गांधी नगर, सदर बाजार और लाजपत नगर में भी देखने को मिलीं। अब समय आ गया है कि कोरोना के गाइडलाइंस, इससे जुड़े दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन किया जाए नहीं तो हालात नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं।
कोरोना के खतरे का सबसे भयानक और डरावना असर दिख रहा है दिल्ली के कब्रिस्तानों और श्मशानों में। श्मशान घाटों से फिर वही तस्वीरें आ रही हैं जो मई-जून में आती थीं। चार महीने पहले हालात ऐसे थे कि सिर्फ सीएनजी और इलैक्ट्रिक क्रीमेटोरियम से काम नहीं चल रहा था इसलिए लकड़ी की चिता पर लाशें जलाई जा रही थी। अब दिल्ली में फिर से लकड़ी की चिताएं जलने लगी है। प्रशासन ने कोरोना की वजह से हो रही मौतों की संख्या को देखते हुए लकड़ी की चिता पर अन्तिम संस्कार की इजाजत दी गई है। इसके आलावा निगमबोध घाट पर अन्तिम संस्कार के लिए तीन और इलेक्ट्रिक भट्टियां बनाई गई हैं।
ऐसे समय में जब महामारी से लड़ने के लिए सभी दलों के नेताओं को हाथ मिलाना चाहिए था, लेकिन इसकी बजाय नेता राजनीति में व्यस्त हैं। खासकर यमुना के किनारे छठ पूजा को लेकर खूब राजनीति हो रही है। दिल्ली में सार्वजनिक जगहों पर छठ पूजा बैन करने के दिल्ली सरकार के फैसले का बीजेपी तीखा विरोध कर रही है। इसे लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी के नेताओं में तीखी जुबानी जंग हुई। दिल्ली बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और सांसद मनोज तिवारी ने सीएम अरविंद केजरीवाल को अपशब्द तक बोल दिया। मनोज तिवारी ने ट्वीट करके..केजरीवाल को ‘नमक हराम’ कह दिया। मनोज तिवारी ने कहा कि गाइडलाइंस के नाम पर केजरीवाल झूठा ड्रामा कर रहे हैं। उनका कहना था कि केजरीवाल ने अपने समर्थकों की भीड़ के साथ अक्षरधाम में दिवाली क्यों मनाई? और अब लोगों को छठ पूजा करने से मना कर रहे हैं। मनोज तिवारी ने अपने इसी ट्वीट में पूछा कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में बार-रेस्तरां को 24 घंटे खोलने की अनुमति क्यों दी है?
बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने छठ पूजा को लेकर दिल्ली सरकार के फैसले को बरकरार रखा। दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने सार्वजनिक जगहों पर छठ पूजा करने पर रोक लगाई थी। केजरीवाल सरकार के फैसले को दुर्गा जन सेवा ट्रस्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाई और दिल्ली सरकार के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सार्वजनिक जगहों पर छठ पूजा के लिए लोगों को इकट्ठा होने की इजाजत देना संक्रमण को तेजी से बढ़ने की अनुमति देना होगा। हाईकोर्ट ने कहा कि दिल्ली में कोरोना की तीसरी लहर आ चुकी है और लोगों को भीड़ की इजाजत देने से महामारी और तेजी से फैलेगी। हाईकोर्ट ने कहा कि त्योहार के लिए ज़िंदा रहना ज़रूरी है। सुनवाई के दौरान जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सुब्रमनियम प्रसाद की बेंच ने याचिकाकर्ता पर तीखे कमेंट किए। ट्रस्ट ने अपनी याचिका में छठ पूजा के लिए एक हजार लोगों के जमा होने की इजाजत मांगी थी। हाईकोर्ट ने कहा-‘ओह रियली..आज जब दिल्ली सरकार शादी के लिए पचास से ज्यादा लोगों को इकट्ठा होने की इजाजत नहीं दे रही है, आप चाहते हैं कि एक हजार लोगों को पूजा की इजाजत दी जाए। ऐसा कैसे हो सकता है? कोर्ट ने कहा-‘आज के समय में ऐसी याचिका जमीनी हकीकत से कोसों दूर है।’
दिल्ली में कोरोना इतनी तेजी से क्यों बढ़ा ये कोई राज नहीं है। पिछले पंद्रह दिनों में लोग खरीददारी करने बाजारों में पहुंचे, ये तो हम सबने देखा है। लेकिन कितने लोग एक-दूसरे से गले मिले ये हमने नहीं देखा। परिवार में पार्टियां हुई और पूरे के पूरे परिवार संक्रमित हो गए। जिन्होंने दीवाली घर में मनाई, पूजा भी ऑनलाइन की वो सुरक्षित हैं। अब शादियां आने वाली हैं तो पार्टियां शुरू हो गई और पार्टियों में न तो संख्या पर कोई रोक लगी और न किसी ने कोरोना से बचने के बारे में सोचा। इस मस्ती के माहौल का असर ये हुआ कि दिल्ली में कोरोना के मामलों में अचानक से उछाल आ गया। अब सरकार भी कन्फ्यूज है कि करे तो क्या करें….कितने लोगों का मास्क न पहनने पर चालान करें..जब हजारों लोग एक साथ नियम तोड़ते हैं तो कौन किसको पकड़े? बाजार बंद करें तो कोराबार का नुकसान और बाजार खोले तो लोगों की भीड़ बेकाबू। दूसरी बात ये कि अगर कुछ बाजार बंद कर भी दिए जाएं तो इससे क्या फर्क पड़ेगा, कुछ दुकानदारों की रोजी-रोटी मारी जाएगी। जिन लोगों को बाजार जाना है, घर से निकलना है, वो लोग उन मार्केट में भीड़ लगाने पहुंच जाएंगे जो खुले रहेंगे। इसलिए लॉकडाउन या बाजार बंद करने का अब फायदा नहीं दिखता। एक बात और है- ये त्योहारों का मौसम है। दिल्ली सरकार ने दीवाली की भीड़ से सीख ली और दिल्ली में घाटों पर छठ पूजा पर पाबंदी लगा दी, लेकिन दिल्ली सरकार को इस बात का अंदाजा नहीं था कि लोग छठ के लिए अपने अपने घर जाने के लिए भी निकलेंगे। बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन्स पर लोगों की भारी भीड़ नजर आ रही है।
दिल्ली में कोरोना की हालत कितनी खराब है, ये डॉक्टर्स से ज्यादा बेहतर कोई नहीं बता सकता। बुधवार को मैंने दिल्ली के 5 बड़े डॉक्टर्स से बात की। ये सब डॉक्टर्स ब़ड़े-बड़े हॉस्पिटल के साथ जुड़े हुए हैं। सबने कहा कि दिल्ली में हालत विस्फोटक और खतरनाक हैं। डॉक्टर्स ने कहा कि हमें अपने मरीज़ों के लिए आईसीयू में बेड्स नहीं मिल रहे हैं। 10-10 हॉस्पिटल में फोन करके आईसीयू बेड के लिए गुहार लगानी पड़ती है, हाथ जोड़ने पड़ते हैं। इन डॉक्टर्स ने बताया कि इतनी मारामारी है कि कई मामलों में आईसीयू बेड के इंतजार में मरीजों की मौत हो गई। डॉक्टर्स का कहना है कि ये कहना तो बहुत आसान है कि और आईसीयू बेड्स बढ़ा दिए जाएंगे। लेकिन आईसीयू बेड को मैनेज करने के लिए डॉक्टर्स चाहिए.. नर्सेस चाहिए, ये कहां से आएंगे? डॉक्टर्स ने कहा कि अगर लोग नहीं संभले तो हालात भयानक हो जाएंगे, कैजुअल्टीज बहुत बढ़ जाएंगी।
जब मैंने डॉक्टर्स से पूछा कि रास्ता क्या है? करें क्या? तो उन्होंने कहा कि रास्ता वही है जो आप पिछले 8 महीने से रोज बताते हैं। मास्क लगाइए, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करिए और बार – बार हाथ धोते रहिए। डॉक्टर्स का कहना है कि हम जिस व्यक्ति से भी मिलते हैं उसको पॉजिटिव मान कर चलना चाहिए। मास्क लगाने के लिए जिद करनी चाहिए और दो लोगों ने मास्क लगाया हो तो भी 2 गज की दूरी रखनी चाहिए। मैं तो आपसे फिर यही कह सकता हूं 2 गज की दूरी और मास्क है जरुरी। त्योहार तो बाद में भी मना सकते हैं, दोस्तों से गले बाद में भी मिल सकते हैं, लेकिन ये सब करने के लिए जिंदा रहना जरुरी है।
छठ पूजा को लेकर दिल्ली में जो राजनीति चल रही है उसके बारे में तो मेरा कहना है कि दिल्ली में तीस से पैंतीस प्रतिशत वोटर बिहार से, पूर्वांचल से हैं। दिल्ली में कुल एक करोड़ चालीस लाख वोटर है। इनमें से बिहार, पूर्वांचल के वोटर्स की तादाद करीब चालीस लाख है। इसलिए सभी पार्टियों की कोशिश होती है कि पूर्वांचल के लोगों के साथ खड़े रहें, उनका समर्थन हासिल करें, उनकी भावनाओं का ख्याल रखें। लेकिन कोरोना के वक्त में घाटों पर छठ पूजा की मांग करना मैं ठीक नहीं मानता। कोरोना के इस वक्त में तो ये जरूरी है कि पूर्वांचल के लोगों को ये समझाया जाए कि घऱ में रहिए, घाटों से दूर रहेंगे तो कोरोना से बचे रहेंगे। जब दिवाली पूजन घर में रहकर हो सकती है तो छठ की पूजा और भगवान को अर्घ्य भी दिया जा सकता है। लेकिन सब बातें सियासी पिच पर फिट नहीं बैठती क्योंकि सिर्फ दिल्ली में नहीं मुंबई में भी छठ को लेकर सियासत हो रही है। वजह भी वही है। मुंबई में भी बिहार और पूर्वांचल के लोगों की संख्या सियासी समीकरण तय करने लायक है, जीत हार का फैसला करती है। इन लोगों से भी मेरी यही अपील है कि घर में रहिए और कोरोना से बचिए।
Covid situation in Delhi is explosive, let us fight this pandemic unitedly
Delhi recorded its highest daily Covid death toll of 131 on Wednesday, taking the total to 7,943 deaths. The total number of Covid cases in the capital crossed five lakhs and is presently at 5,03,084. On Wednesday, 7,486 new cases were reported. The pandemic is on a big surge in Delhi, which is now on top of the list of cities hit by Covid in India.
The picture is clear. The Covid virus infection is spreading fast among the people of Delhi, with one lakh cases reported in the last 15 days.
The spurt in Covid cases has affected the health infrastructure in the capital, with hospitals running out of ICU beds. Ninety-two per cent of ICU beds will ventilator support, and 87 per cent ICU beds without ventilator support are full. Relatives of Covid patients are running from one hospital to another in search of ventilators. The public sector undertaking Bharat Electronics is sending 250 ventilators from Bengaluru to Delhi on emergency basis, but this number seems to be insufficient.
The death rate is very high among people suffering from diabetes and obesity. According to medical experts, this is the third wave of Covid infections in Delhi, with the previous two noticed in June and September. Delhi chief minister Arvind Kejriwal visited LNJP and Guru Tegh Bahadur hospitals to assess the current situation. He has promised an increase of 663 ICU beds in the next few days, with the Centre assuring to provide 750 additional beds.
Indian Railways is converting rail coaches into a 800-bed Covid care-cum-isolation facility at Shakur Basti railway station.
Delhi government is going to ramp up mass RT-PCR Covid testing to 60,000 daily by month-end. 45 doctors and 160 paramedics from central paramilitary forces have been flown in for deployment at DRDO hospital near Delhi airport and at the 10,000-bed Covid care centre in Chhatarpur, South Delhi.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’, I had been warning since Dussehra festival about huge crowds of shoppers flocking to major Delhi markets, with not an inch of space left to even stand separately. On Wednesday, we again showed visuals of huge crowds at Sarojini Market in south Delhi, even after Diwali festival is over. The situation is similar in other major markets like Chandni Chowk, Gandhi Nagar, Sadar Bazar and Lajpat Nagar. Time has come to strictly enforce Covid norms otherwise the situation may go out of control.
In crematoriums and cemeteries, the scenes are heart rending. Three more electric crematoriums are coming up at Delhi’s Nigam Bodh Ghat to cope with the influx of bodies of Covid victims. Cemeteries are fast running out of space.
At a time when politicians of all hues should have joined hands to fight the pandemic, we notice politics in full flow over the issue of allowing Chhath Puja at the ghats of Yamuna river. On Wednesday, BJP MP Manoj Tiwari used the word ‘namak haraam’ in his tweet against Arvind Kejriwal. Tiwari was questioning why Kejriwal celebrated Diwali with a crowd of his supporters at Akshardham temple, and is now refusing to allow Chhath festival in public. In the same tweet, he asked why Kejriwal govt has allowed round-the-clock bars and restaurants in Delhi.
On Wednesday, the Delhi High Court upheld the state government’s ban on public gatherings during Chhath festival, saying any such event “could turn into a super spreader of the infection”. The High Court said, “right to life and health of the public at large cannot be sacrificed at the altar of a right to celebrate a festival.”
It is no secret why the pandemic spread all of a sudden in Delhi. There were huge crowds in markets for several consecutive days, but few people may have seen how people gathered at Diwali parties, shook hands, hugged one another and unintentionally spread the virus. There were family dinners and parties, after which entire families got the virus. The Delhi government was at its wits’ end. How many people could be challaned for not wearing masks, when entire crowds were moving around without a single mask on. Had the markets been locked down, it could have affected business and economy. Thousands of people turned up at railway stations and bus stands to go to their home states to celebrate Chhath Puja. Clearly, Delhi government could neither anticipate nor control the crowds.
On Wednesday, I spoke to five top doctors from reputed Delhi hospitals. They described the Covid situation in Delhi as “explosive, grave and life threatening”. The doctors disclosed how they had to phone several hospitals to beg for an ICU bed with ventilator to save their patients. Some of them revealed how their patients died while waiting for ventilators. Even if the number of ICU beds is increased, doctors and paramedics are required to take care of patients lying on those beds in ICU. There is a shortage of doctors and health care workers too.
When I asked them about the way out of this crisis, the doctors said, it is the same that we have been saying for the last eight months. Wear masks, maintain social distancing and frequently wash your hands after returning home or after touching objects that enter your home from outside.
About the ugly politics that is going on in Delhi over the ban on Chhath Puja, I have this to say. There are 30 to 35 per cent people from Bihar and UP staying in Delhi. Out of 1.4 crore voters, there are 40 lakh voters from UP, Purvanchal and Bihar. Most of the political parties try their best to articulate the grievances of this community. But given the present Covid crisis in Delhi, I feel, political leaders should not insist on public gatherings to celebrate Chhath festival.
Perform Chhath Puja at home. If one can perform Diwali Puja at home, then one can also celebrate Chhath festival and offer prayers to Sun God. It is not wise to drag politics in matters relating to public health and religious faith. This applies not only to Delhi, but also to Mumbai, where a large number of people from UP and Bihar celebrate Chhath festival in public.
दिल्ली के लोग सावधानी बरतें, कृपया कोविड गाइडलाइंस का पालन करें
आज सबसे पहले आपको चेतावनी दे दूं कि अगर कोरोना को लेकर लापरवाही जारी रही, कोरोना को लेकर जारी की गई गाइडलाइंस का उल्लंघन होता रहा तो एक बार फिर लॉकडाउन जैसी पाबंदियां लग सकती हैं। कम से कम दिल्ली में तो ऐसे ही हालात बन चुके हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने साफ-साफ कह दिया कि अगर लोगों के व्यवहार में बदलाव नहीं आया, लोगों ने गंभीरता नहीं दिखाई, बाजारों में भीड़ लगाना बंद नहीं किया तो एक बार फिर पाबंदियां लग सकती हैं। इसके लिए दिल्ली सरकार ने केन्द्र सरकार से इजाजत मांगी है। केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के उन ‘हॉटस्पॉट’ बाजारों में लॉकडाउन की इजाजत मांगी है, जहां कोरोना को लेकर गाइडलाइंस का उल्लंघन किया जा रहा है। वहीं, दिल्ली सरकार ने पहले ही शादियों और सामाजिक समारोहों में मेहमानों की संख्या 200 से घटाकर 50 तक सीमित कर दी है।
कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर दिल्ली में हालात वाकई में खराब हैं। सितंबर के अंतिम सप्ताह से 12 अक्टूबर तक दिल्ली में कोरोना के मामलों में गिरावट आ रही थी। लेकिन इसके बाद यहां कोरोना के मामले अप्रत्याशित रूप से बढ़ने लगे। अब नतीजा ये है कि दिल्ली के अस्पताल कोरोना मरीजों से भर गए हैं। यहां के अस्पतालों में आईसीयू बेड की कमी होने लगी है। दिल्ली में आईसीयू बेड की संख्या बढ़ाने के लिए केंद्र की मदद लेनी पड़ी और डीआरडीओ से सहयोग से इनकी संख्या बढ़ाई जा रही है। दिल्ली की आबादी दो करोड़ के आसपास है, यानि देश की आबादी का करीब डेढ़ प्रतिशत, लेकिन देश में कोरोना के जितने मामले रोज मिल रहे हैं उनमें से करीब 13 प्रतिशत मामले केवल दिल्ली से आ रहे हैं। दिल्ली में पिछले दो दिनों में कोरोना वायरस से रोजाना करीब 100 मौतें हो रही हैं। यानि देश में कोरोना से मरने वाला हर चौथा शख्स दिल्ली का है।
अकेले नवंबर महीने में दिल्ली में कोरोना वायरस से अबतक 1,300 लोगों की मौत हो चुकी हैं। मृतकों में अधिकांश डायबिटिज से ग्रसित थे। दिल्ली में कोरोना से होनेवाली मौतों का आंकड़ा 7,812 हो गया है। मंगलवार को 6,396 पॉजिटिव मामले सामने आने के साथ ही यहां कोरोना के कुल मामले 4.95 लाख से ज्यादा हो गए हैं। दिल्ली कोरोना ऐप पर जारी आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली के 90 फीसदी वेंटिलेटर वाले आईसीयू बेड और बिना वेंटिलेटर वाले 88 फीसदी आईसीयू बेड फुल हो चुके हैं। कोरोना के गंभीर लक्षण वाले मरीज आईसीयू बेड की तलाश में एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में भटक रहे हैं।
असल में कोरोना के खतरे को सब देख रहे हैं, लेकिन इसकी परवाह नहीं कर रहे हैं। सब जानते हैं कि कोरोना खतरनाक है, इसकी कोई दवा नहीं, कोई वैक्सीन नहीं हैं। लेकिन जो लोग ये मानते हैं कि कोरोना दूसरों को हो सकता है और उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा, वही लोग पूरे समाज को खतरे में डाल रहे हैं। ऐसे लोगों की लापरवाही के कारण अब हालत ये हो गई कि दोबारा वही दौर लौट सकता है जो अप्रैल से लेकर जून के महीने में था। वही स्थिति हो सकती है जब सड़क, बाजार, दफ्तर सबकुछ लॉकडाउन की वजह से वीरान हो गए थे।
अगर आंकड़ों की नजर से देखें तो देश में कोरोना जिस रफ्तार से काबू में आ रहा है, दिल्ली में उसी रफ्तार से बढ़ रहा है। कोई नहीं चाहता कि फिर से लॉकडाउन लगे। कोई नहीं चाहता कि पांबिदयां हों। लेकिन जो तस्वीरें हमने आपको इंडिया टीवी पर दिखाई, उससे आप समझ जाएंगे। मैं कुछ दिन से लगातार इस खतरे से आगाह कर रहा हूं। बाजारों में जबरदस्त भीड़ है। सरोजनी नगर, चांदनी चौक, चावड़ी बाजार, लाजपत नगर, सदर बाजार और गांधी नगर जैसे कई बाजार हैं, जहां न तो कोई सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहा है और मास्क पहनने में भी लोग लापरवाही बरत रहे हैं। इन बाजारों में पैर रखने की जगह नहीं है। ज्यादातर लोगों ने मास्क तो लगा रखा है लेकिन ठीक से नहीं लगाया। काफी लोग ऐसे भी दिखे जो बिना मास्क के ही भीड़ में घूम रहे थे। लोग मास्क न लगाने के दर्जनों बहाने बनाते हैं। हर किसी की अपनी दलील है, लेकिन ये नहीं जानते कि इस गलती का अंजाम बहुत भयानक है। उन्हें दिल्ली के श्मशानों की तस्वीरें देखनी चाहिए जहां शवों की लंबी कतार है।
दिल्ली में कोरोना से मरने वालों की तादाद मई-जून के महीने से भी ज्यादा हो गई है। जून में औसतन 75 लोगों की मौत हर रोज हो रही थी। ये वो वक्त था जब दिल्ली में कोरोना पीक पर था। लेकिन अब पिछले दस दिन से दिल्ली में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा हर रोज करीब सौ है। इससे आप हालात की गंभीरता का अंदाजा लगा सकते हैं। श्मशान घाट हो या फिर कब्रिस्तान, हर जगह फिर से मौत का ताडंव दिखने लगा है। कब्रिस्तानों में जगह नहीं बची है। श्मशान में अन्तिम संस्कार के लिए लाइनें लग रही हैं। अलग से इंतजाम करने पड़ रहे हैं। अकेले निगमबोध घाट पर कोरोना की वजह से मरने वाले 20 से 25 लोगों का अंतिम संस्कार रोज हो रहा है, जबकि दस दिन पहले तक निगमबोध घाट में सिर्फ कोरोना के मरीजों के 5 से 7 शव ही आते थे। हालात का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि निगम बोध घाट इलेक्ट्रिक और सीएनजी से चलने वाला श्मशान घाट है लेकिन कोरोना की वजह से जिस तरह से मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है, उसके बाद लकड़ी से भी शव जलाने की मंजूरी दी गई है।
जो दिक्कत श्मशान घाटों पर है वही दिक्कत कब्रिस्तानों में भी हो रही है। दिल्ली के कब्रिस्तानों में जगह कम पड़ने लगी है। हमारे संवाददाता ने दिल्ली में आईटीओ के पास जदीद कब्रिस्तान का जायजा लिया। यह दिल्ली का सबसे बड़ा कब्रिस्तान है। कोरोना से मरने वाले लोगों को दफनाने के लिए यहां अलग से करीब 10 बीघा जमीन दी गई थी, लेकिन अब जिस रफ्तार से कोरोना मरीजों के शव आ रहे हैं उसके बाद लगता है कि अगले बीस दिन में ये कब्रिस्तान पूऱी तरह भर जाएगा। बीस दिन के बाद कब्रिस्तान के लिए नई जगह खोजनी पड़ेगी।
दिल्ली में पिछले दस-बारह दिन में कोरोना के मामले इतनी तेजी से क्यों बढ़े, ये कोई ठीक से नहीं बताता। किसी ने कहा कि लोगों ने बाजारों में भीड़ लगाई, वहां कोरोना के सुपरस्प्रैडर आ गए इसलिए मामले बढ़े। किसी ने कहा कि दिल्ली में पिछले एक महीने में प्रदूषण तेजी से बढ़ा है। प्रदूषण की वजह से सांस की बीमारियां होती है और जब सांस की तकलीफ होती है, फेफड़े कमजोर होते हैं तो कोरोना वायरस और तेजी से फैलता है। किसी ने कहा कि कोरोना के मामले इसलिए बढ़ गए क्योंकि दिल्ली में सर्दी बढ गई है। किसी एक आदमी को वायरस का संक्रमण होता है तो लोग घर के अंदर होते हैं और ऐसे में वायरस एक-दूसरे को संक्रमित कर देता है।
मेरा सुझाव ये है कि थोड़े दिन और सब्र करें और कन्ट्रोल रखें। घर पर रहें और भीड़ वाली जगहों में न जाएं। मिलना-जुलना कम करें। बाहर निकलें तो मास्क जेब में न रखें बल्कि मुंह पर लगाएं। मास्क मुंह पर लटकाएं नहीं, ठीक से लगाकर निकलें। यही आपको बचाएगा। एक-दूसरे से दूरी बनाकर रखें। थोड़े दिन की बात और है, हिम्मत रखें और सावधानी बरतें। कोरोना की ज्यादातर वैक्सीन ट्रायल के फाइनल स्टेज में है। पूरी उम्मीद है कि वैक्सीन जल्दी आएगी और आप जानते हैं कि उम्मीद पर तो दुनिया कायम है।
A word of caution to Delhites: please stick to Covid guidelines
At the outset, let me caution all of you that if we continue to defy Covid protocol, a situation may develop where lockdown may be enforced again in Delhi. The present situation is such that lockdown may become a necessity. Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal has clearly said that if people do not stop crowding market places, lockdown in crowded markets may be enforced soon. Kejriwal has sought the Centre’s permission to go ahead with lockdown in ‘hotspot’ markets where Covid guidelines are being violated. Already, Delhi government has restricted number of guests at weddings and social functions from 200 to 50.
The Covid situation in Delhi is alarming. After showing a declining trend from the last week of September till October 12, Delhi has witnessed an unabated rise in the number of new and active Covid cases, resulting in shortage of ICU beds in hospitals. The Centre had to step in with help from DRDO to augment the number of ICU beds for Covid patients in Delhi.
Delhi’s population is presently a little more than 2 crores, roughly 1.5 per cent of India’s population. Thirteen per cent of new Covid cases in India are now being reported from Delhi. There have been roughly 100 Covid-related deaths in Delhi daily for the last two days. Every fourth person presently dying in India of Covid is from Delhi.
In November alone, 1,300 people died of Covid in Delhi and among them diabetics are the worst-hit. The number of Covid-related deaths in Delhi has reached 7,812., while the total tally of Covid cases has crossed 4.95 lakhs with 6.396 cases reported on Tuesday. According to data shared by hospital on Delhi Corona App, 90 per cent ICU beds with ventilator support are presently occupied and 88 per cent ICU beds without ventilator speed are currently occupied. Covid patients having critical symptoms are running from one hospital to another in search of ICU beds.
The most worrying part is that people in Delhi know Corona is a serious disease, there are no medicines for cure or prevention, and the vaccine is not yet ready. Yet most of the people crowding market places have this false belief that they will remain untouched while others may suffer from Corona. Such people are putting the entire society at risk. Because of the vanity and irresponsible attitude of such people, the days of April to June may return to Delhi, when roads, markets and offices will again look deserted due to strict lockdown.
At a time when other cities and states of India are witnessing a gradual fall in number of Covid cases, Delhi stands out as an exception. Nobody loves to enforce a lockdown, but the visuals that we have shown on India TV of crowds in big markets of Delhi for the last several weeks should serve as a warning. Sarojini Nagar, Lajpat Nagar, Chandni Chowk, Sadar Bazar, Chawdi Bazar, Gandhi Nagar and similar other markets had been witnessing huge crowds daily. Most of the people do not wear masks. Social distancing in such a crowd is out of the question. While violators give umpteen number of excuses for not wearing masks, they should watch visuals of the number of bodies that are reaching the crematoriums of Delhi.
In June, when the pandemic was at its peak, there were, on average, 75 Covid-related deaths daily in Delhi, and now it has shot up to almost one hundred. Because of the surge in the number of deaths, there is acute shortage of space in cemeteries and there are long queues of people waiting with bodies outside crematoriums. There are daily 20 to 25 Covid-related cremations at Nigam Bodh Ghat, while this number was hardly between 5 and 7 ten days ago. The Ghat has both electric and CNG crematoriums, but because of the rush, permission has now been given to cremate bodies even on wooden pyres.
Our reporter visited the Jadeed Qabristan near Delhi’s ITO, and found that the ten bighas of land allotted for burying Covid victims is now almost full. If the momentum continues, the cemetery may run out of space in the last twenty days for giving victims a decent burial.
Nobody is quite sure why there has been a sudden surge in the number of Covid cases in Delhi. Apart from the reason cited about huge crowds in markets, the other reason being given is about the severe air pollution that has taken Delhi in its grip during the last one month. There are also experts who cite the onset of winter resulting in many cases of cough and cold. The average Delhite is wondering what to do: even if one stays at home, spread of droplets from somebody coughing could be infectious.
My advice is: better stay at home, avoid going to crowded places and meeting people, always wear a mask when you step outside and maintain at least six feet distancing. This will help all of us to tide over the present crisis. The present peak in Delhi is bound to decline, but keep patience, have courage and stick to guidelines. Most of the vaccines are in the final stages of trial. The sooner the vaccine comes, the better. Let us hope for the best.
2025 के लिए अपने बिहार नेतृत्व को यूं तैयार कर रही है बीजेपी
नीतीश कुमार ने सोमवार को 7वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। पटना में हुए शपथ ग्रहण समारोह में 12 अन्य मंत्रियों ने भी शपथ ली। इनमें बीजेपी और जेडीयू से 5-5 मंत्री थे, जबकि एक-एक मंत्री HAM और VIP से थे। बड़ी बात यह है कि इस टीम को कैप्टन ने खुद नहीं चुना है, बल्कि यह टीम उन्हें चुनकर दी गई है।
ऊपर से तो सबकुछ ठीक-ठाक दिखाई दिया, लेकिन अंदर ही अंदर बहुत सारे सवाल उठाए गए। सबसे पहला सवाल तो यही था कि हर बार नीतीश कुमार की सरकार में उपमुख्यमंत्री रहने वाले सुशील कुमार मोदी को इस बार मंत्रिमंडल से बाहर क्यों रखा गया? उनके भविष्य को लेकर अटकलें अभी भी तेज हैं। बिहार की सरकार में बीजेपी पहली बार सीनियर पार्टनर के रूप में उभरी है और नीतीश कुमार की जेडीयू जूनियर पार्टनर बन गई है। इसलिए पूछा जा रहा है कि क्या नीतीश कुमार पर पहले से ज्यादा बंधन लगाए जाएंगे।
बीजेपी ने एक को छोड़कर बाकी नए लोगों को मंत्री बनाया है। ऐसे में सवाल उठता है कि बीजेपी के पुराने अनुभवी नेताओं का क्या होगा? नीतीश कुमार ने जेडीयू के ज्यादातर पुराने और अनुभवी नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह दी है, तो सवाल यह है कि जेडीयू के नए नेताओं का क्या होगा?
69 साल के नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के रूप में यह आखिरी पारी होगी। सोमवार को सभी की निगाहें भारतीय जनता पार्टी के दो उपमुख्यमंत्रियों तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी पर टिकी थीं, जो कि मंच पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अगल-बगल बैठे थे। इन दोनों ने पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की जगह ली, जो नीतीश कुमार के विश्वासपात्र थे। सुशील कुमार मोदी बीजेपी और नीतीश कुमार के बीच तालमेल का काम भी करते थे। जब नीतीश कुमार से शपथ ग्रहण के बाद पूछा गया कि क्या इस बार उन्हें मुश्किल होगी, तो उनका जवाब था, ‘जनता ने हमें जिम्मेदारी दी है, निभाएंगे।’
नीतीश कुमार कम बोलते हैं और हमेशा बहुत सोच-समझकर और नाप-तोलकर बोलते हैं। उन्होंने सुशील मोदी के सवाल पर कुछ नहीं कहा। बीजेपी नेतृत्व ने भले ही इस बार सुशील मोदी को सरकार से दूर रखा है, लेकिन बिहार के दोनों नए उपमुख्यमंत्री उनकी पसंद के बताए जा रहे हैं। 64 साल के तारकिशोर प्रसाद उसी वैश्य जाति से ताल्लुक रखते हैं जिससे सुशील मोदी आते हैं। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुराने वफादार हैं, और कटिहार विधानसभा से 4 बार विधायक रह चुके हैं। तारकिशोर प्रसाद बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ता है और उनकी सीमांचल के कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया जिलों में मजबूत पकड़ है, जो कि पश्चिम बंगाल से सटे हैं। जाहिर है कि पार्टी नेतृत्व के दिमाग में अगले साल होने वाले बंगाल के चुनाव भी हैं।
पूर्व बीमा एजेंट रेणु देवी नोनिया जाति से हैं, जो अत्यंत पिछड़ा वर्ग में आती है। जब बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को रोककर उन्हें समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया था, उस समय 1991 में रेणु देवी विश्व हिंदू परिषद की दुर्गा वाहिनी में शामिल हो गईं। बाद में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को जॉइन किया और अग्रणी महिला नेताओं में से एक बन गईं। उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाकर पार्टी नेतृत्व उन महिला मतदाताओं को धन्यवाद देना चाहता है जिन्होंने इस बार एनडीए का समर्थन किया है।
संदेश स्पष्ट है: बीजेपी बिहार में सुशील मोदी की जगह एक नया नेतृत्व विकसित करना चाहती है। चूंकि नीतीश कुमार पहले ही यह घोषणा कर चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है, इसलिए बीजेपी यह बात अच्छी तरह जानती है कि उसे 2025 का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ना होगा। बीजेपी के केंद्रीय नेता चाहते हैं कि पार्टी की राज्य इकाई इन 5 सालों का इस्तेमाल एक नया नेतृत्व तैयार करने के लिए करे। दूसरी बात ये है कि नीतीश कुमार की पार्टी में उनका उत्तराधिकारी कौन होगा, ये भी अगले 5 साल में तय होना है। इसीलिए नीतीश ने अपने सबसे करीबी और सबसे वफादार लोगों को मंत्रिमंडल में लेते हुए जातियों के समीकरण का भी ख्याल रखा है। नीतीश के इन करीबियों में विजय चौधरी, अशोक चौधरी और मेवालाल चौधरी शामिल हैं।
नीतीश कुमार के सबसे करीबी विश्वासपात्रों में से एक विजय चौधरी भूमिहार हैं और पिछली विधानसभा में स्पीकर थे। अशोक चौधरी जिन्होंने JDU में शामिल होने के लिए कांग्रेस छोड़ दी थी, वह दलित (पासी जाति) हैं और नीतीश कुमार के दाहिने हाथ हैं। मेवालाल चौधरी पिछड़े वर्ग से हैं और कुशवाहा जाति से आते हैं। मेवालाल चौधरी को उपेंद्र कुशवाहा के अपनी पार्टी समेत अलग होने के बाद आगे लाया गया है। कुशवाहा की पार्टी का इन चुनावों में प्रदर्शन खराब रहा है। शीला मंडल, जो पिछले साल तक एक हाउसवाइफ थीं, को पहली बार पार्टी का टिकट दिया गया और चुनाव जीतने के बाद उन्हें मंत्री भी बना दिया गया। उन्हें मंत्री बनाकर नीतीश उन महिला मतदाताओं को धन्यवाद देना चाहते हैं, जिन्होंने राज्य में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए उनका समर्थन किया।
बीजेपी और जेडीयू दोनों ही अगले 5 सालों में राज्य में अपने भविष्य के नेतृत्व को तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। यह तेजस्वी यादव की आरजेडी के बिल्कुल उलट है, जो सिर्फ एक शख्स और उसके परिवार पर भरोसा कर रही है। तेजस्वी, उनकी पार्टी और महागठबंधन के अन्य सभी सहयोगियों ने रविवार को शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार किया, और आरोप लगाया कि NDA ने जनादेश के साथ विश्वासघात किया है, और उसे धोखे से बदल दिया है।’ मेरे ख्याल से तेजस्वी यादव को शपथ ग्रहण समारोह का बॉयकॉट नहीं करना चाहिए था। उन्हें थोड़ी मैच्यॉरिटी दिखानी चाहिए थी, बड़ा दिल दिखाना चाहिए था। लोकतंत्र में जीत और हार होती रहती है, पर रिश्तों में ऐसी कड़वाहट नहीं आनी चाहिए कि मामला व्यक्तिगत दुश्मनी तक पहुंच जाए।
विधानसभा में 110 विधायकों वाले एक मजबूत महागठबंधन के नेता के रूप में तेजस्वी यादव के सामने एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। विपक्ष के नेता के रूप में तेजस्वी को सरकार के कामकाज और उसकी नीतियों में खामियों को पकड़ना होगा, उनकी आलोचना करनी होगी। इसलिए उनको अपनी सोच बड़ी रखनी होगी। तेजस्वी अभी सिर्फ 31 साल के हैं और उन्हें अभी लंबा सफर तय करना है। उन्हें विपक्ष के नेता के रूप में अपनी भूमिका को बड़ी गंभीरता से लेना होगा। उन्हें उन नेताओं से भी सबक लेना चाहिए जो विपक्ष में हैं, लेकिन अपनी भूमिका को गंभीरता से नहीं लेते हैं। राहुल गांधी उनमें से एक हैं।
How BJP is grooming its Bihar leadership for 2025
Nitish Kumar took oath for the seventh time as Bihar chief minister on Monday. Twelve other ministers, five each from BJP and Janata Dal (United) and one each from smaller allies, HAM and VIP, took oath at a swearing-in ceremony in Patna. This is a team not picked up by its captain, but a team selected by allies and handed over to the captain.
On the face of it, everything looked cool, but beneath the surface, there were many questions. The first: why was Sushil Kumar Modi, who had always been deputy CM to Nitish Kumar, left out? Speculations are still rife about his future. For the first time, BJP is the bigger party and Nitish Kumar’s JD(U) is a junior partner. Questions are being raised whether Nitish Kumar will have to work under constraints.
Barring one, BJP has picked up all new faces in the ministry. The question arises: what will happen to the experienced leaders in Bihar BJP? On his part, Nitish Kumar has retained old faces as his ministers, and the question is: what will happen to the new crop of leaders in his party?
This is 69-year-old Nitish Kumar’s last innings as chief minister. On Monday, all eyes were on BJP’s two deputy chief ministers Tarkishore Prasad and Renu Devi, who were sitting on either side of the CM on the dais. They have jointly replaced the former deputy CM Sushil Kumar Modi, who till now, was a trusted deputy CM of Nitish Kumar and was the main channel of communication between Nitish Kumar and the BJP. After the ceremony, Nitish Kumar was asked whether he feels constrained now, his reply was: “The people have given us the responsibility. We will fulfil it.”
Nitish Kumar is a man of few words and he always speaks carefully. He did not reply to questions about Sushil Kumar Modi. The BJP leadership has kept Sushil Modi away from the state government, but the two persons picked as deputy CMs in his place are said to be his proteges.
Sixty-four-year-old Tarkishore Prasad, belonging to the same Vaishya caste as Sushil Modi, is an old RSS loyalist who has won from Katihar constituency four times. A grassroots level leader, he comes from an areas that adjoins West Bengal. Obviously, the party leadership has the West Bengal elections due next year in mind.
Renu Devi, a former insurance agent, belongs to the Nonia caste, an extremely backward class. She joined the Durga Vahini of Vishwa Hindu Parishad in 1991, when the then CM Lalu Prasad Yadav stopped L K Advani’s rathyatra and arrested him in Samastipur. Later, she joined the BJP and became one of the front rank female leaders. By making her the deputy CM, the party leadership wants to thank women voters who supported the NDA this time.
The message is clear: BJP wants to develop a new leadership in Bihar replacing Sushil Modi. Since Nitish Kumar has already announced that this is his last election, BJP has realized that it would have to fight the 2025 assembly elections alone without depending on any major ally. The central leaders of BJP want the state unit to utilize these five years to develop a strong frontline leadership.
Secondly, the Janatal Dal(U) will have to decide about who will replace Nitish Kumar as successor after five years. With this objective, Nitish has kept caste equations in mind while picking up ministers in his own party. Among them are Vijay Chaudhary, Ashok Chowdhary and Mewalal Chaudhary.
Vijay Chaudhary, one of the closest confidantes of Nitish Kumar, is a Bhumihar and was Speaker in the last assembly. Ashok Chowdhary who left Congress to join JD(U) is a Dalit (Pasi community) and is Nitish’s right hand. Mewalal Chaudhary belongs to the OBC Kushwaha community and is being projected as a counter to Upendra Kushwaha, whose party fared poorly this time.
Sheila Mandal, who was a housewife till last year, was given a party ticket for the first time, and has been made minister. By making her a minister, Nitish wants to thank the women voters who supported him for banning sale of liquor in the state.
Both the BJP and JD(U) are trying to groom their state leaderships for the next five years. This is in complete contrast to Tejashwi Yadav’s Rashtriya Janata Dal, which is banking on a single individual and his family. Tejashwi, his party and all other allies of Mahagathbandhan on Monday boycotted the swearing-in ceremony, alleging what they called ‘betrayal of people’s mandate, which was changed by fraud’.
I feel Tejashwi Yadav should not have boycotted the oath taking ceremony. He should have shown a large heart and a sense of maturity. Victory and defeat are a part of democracy, but personal differences should not lead to personal enmity.
As the leader of 110-strong Mahagathbandhan in the assembly, Tejashwi Yadav has an onerous responsibility before him. As leader of opposition, Tejashwi must point out lapses in the functioning of the government and its policies. His thoughts and ideas should be on a wider level. Tejashwi is only 31 years old and he has a long way to go. He should take his responsibility as opposition leader seriously. He should also take a lesson from those leaders who are in opposition, but do not take their responsibility seriously. Rahul Gandhi is one of them.
दिवाली की रात देश के जवानों के सम्मान में दीया जलाना न भूलें
इंडियन आर्मी ने शुक्रवार को कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पार पाकिस्तानी सेना के बॉर्डर पोस्ट, बंकरों और फ्यूल डंप्स पर जोरदार जवाबी हमला किया। यह पाकिस्तान द्वारा 8 जगहों पर बेमतलब की गई उस भारी गोलाबारी का बदला था, जिसमें भारतीय सेना के 5 जवानों के साथ-साथ एक महिला सहित 5 नागरिकों की जान चली गई। भारतीय सेना के सूत्रों ने देर रात बताया कि जवाबी कार्रवाई में 11 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और 16 अन्य घायल हो गए।
भारतीय सेना के सूत्रों ने आरोप लगाया कि पाकिस्तानी सैनिकों ने बारामूला, डावर, केरन, उरी और नौगाम सेक्टरों में 778 किलोमीटर लंबी LOC पर भारी मोर्टार और अन्य हथियारों के साथ गोलाबारी शुरू कर दी। यह गोलाबारी केरन सेक्टर में पाकिस्तानी आतंकवादियों की घुसपैठ को आसान बनाने के लिए की गई थी, जिसे नाकाम कर दिया गया। पुंछ में पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा फॉरवर्ड एरिया में मोर्टार दागे जाने से 5 नागरिक घायल हो गए। सेना के सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान द्वारा की गई गोलाबारी के चलते बांदीपोरा में 2 स्कूली छात्राओं सहित 5 नागरिक घायल हो गए।
भारतीय सेना ने शुक्रवार को 105 मिमी और 155 मिमी की तोपों, एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइलों और भारी मोर्टार के साथ जोरदार जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान की कई निगरानी चौकियों और बंकरों को पूरी तरह तबाह कर दिया। भारतीय सेना द्वारा किए गए इस हमले में पाकिस्तान के हथियार और ईंधन के भंडारों समेत कई आतंकी लॉन्च पैड जमींदोज हो गए। सेना के सूत्रों ने कहा कि पाकिस्तानी रेडियो इंटरसेप्ट्स के मुताबिक, हमले में 11 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए जिनमें स्पेशल सर्विस ग्रुप (SSG) के 2 या 3 कमांडो भी शामिल हैं। SSG के कमांडो अक्सर LoC पर हमले करने वाली बॉर्डर ऐक्शन टीम में शामिल होते रहे हैं। सेना के सूत्रों ने कहा कि 10 से 12 पाकिस्तानी घायल भी हुए हैं।
इंडिया टीवी ने अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में भारतीय सेना द्वारा किए गए टारगेटेड हमले की एक छोटी-सी वीडियो क्लिप दिखाई थी। केरन सेक्टर में घुसपैठ की यह कोशिश इंडियन आर्मी के एक कैप्टन, 2 जवानों और BSF के एक कॉन्स्टेबल की शहादत के 5 दिन बाद की गई। भारत के ये सैनिक घुसपैठ रोकने के प्रयास में वीरगति को प्राप्त हुए थे। सेना के एक प्रवक्ता ने कहा कि शुक्रवार को पाकिस्तान ने उरी से लेकर केरन सेक्टरों तक कई जगहों पर गोलाबारी शुरू कर दी जिसके बाद भारतीय सेना ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया।
पाकिस्तानी सेना ने यह बात तो मानी कि भारतीय सैनिकों ने तोपखाने और भारी मोर्टार से हमला कर नीलम घाटी, बाग घाटी और झेलम घाटी में उसकी चौकियों को तबाह कर दिया, लेकिन उसने अपने मारे गए सैनिकों की संख्या कम बताकर हताहतों के असली आंकड़े को छिपाने की कोशिश की। भारतीय सेना द्वारा जारी किए गए वीडियो क्लिप में साफ दिखाई दे रहा है कि हमारे वीर जवानों द्वारा की गई जवाबी कार्रवाई के बाद पाकिस्तानी सैनिक अपनी-अपनी चौकियों से सिर पर पैर रखकर भाग रहे हैं। भारत द्वारा किए गए इस जोरदार हमले में कम से कम 12 पाकिस्तानी बॉर्डर पोस्ट तबाह हो गईं।
पाकिस्तान को बिल्कुल साफ संदेश मिल गया है कि यदि वह सीजफायर का उल्लंघन करेगा तो भारत की तरफ से जोरदार पलटवार होगा। 4 भारतीय जवानों के शहीद होने के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान को ईंट का जवाब पत्थर से देने का फैसला किया, और यह वजह है कि तोपों के साथ-साथ एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों का भी इस्तेमाल किया गया। भारतीय सेना ने पहले उन जगहों को कैमरे पर रिकॉर्ड किया जहां से छिपकर पाकिस्तानी सैनिक गोलाबारी कर रहे थे, फिर तोपों और गाइडेड मिसाइलों से दुश्मन की चौकियों को निशाना बनाते हुए जोरदार हमला किया। पाकिस्तान द्वारा सुबह की गई गोलाबारी के दौरान जान बचाकर भागती हुए लोगों, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, के वीडियो भी रिकॉर्ड किए गए।
पाकिस्तान ने पिछले साल के 3,233 सीजफायर उल्लंघन की तुलना में इस साल अब तक कश्मीर में 4,052 बार सीजफायर का उल्लंघन किया है। इस गोलीबारी में अब तक कम से कम 20 आम नागरिकों की मौत हुई है और 47 घायल हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जवानों के साथ दिवाली मनाने की अपनी परंपरा को लगातार सातवें साल जारी रखते हुए शनिवार को राजस्थान के जैसलमेर सीमा पर लोंगेवाला का दौरा किया। इस मौके पर उनके साथ चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे और बीएसएफ चीफ राकेश अस्थाना शामिल थे।
मोदी ने जवानों को दिवाली की मिठाई बांटी और सभी से मुलाकात भी की। प्रधानमंत्री ने सभी देशवासियों से अपील की है कि वे इस दिवाली के दिन सैनिकों के सम्मान में एक दीया जरूर जलाएं। उन्होंने ट्वीट किया, ‘इस दिवाली हम सभी एक दीया उन सैनिकों के सम्मान में जलाएं जो निडर होकर देश की रक्षा करते हैं। सैनिकों की अनुकरणीय बहादुरी के लिए उनके प्रति शब्दों से कृतज्ञता ज्ञापित करने की भावना न्याय नहीं कर सकती। हम सीमाओं पर डटे सैनिकों के परिवार वालों के प्रति भी कृतज्ञ हैं।’
नरेंद्र मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जो हर साल दिवाली सैनिकों के साथ मनाते हैं। जब देश का प्रधानमंत्री सीमा पर जवानों के बीच खड़ा होता है, तो प्रत्येक जवान अपने पीछे चट्टान की तरह खड़े 130 करोड़ भारतीयों की ताकत को महसूस करता है। सेना अतीत में भी अदम्य साहस और वीरता का परिचय देती रही है, लेकिन शायद ही कभी इसकी चर्चा होती थी।
नरेंद्र मोदी ने वक्त को बदल दिया है। हमारी फौज पाकिस्तान को सबक सिखाती है, सर्जिकल स्ट्राइक करती है, एयर स्ट्राइक करती है, उसके बंकर उड़ाती है, घर में घुस कर मारती है और फिर आम जनता को इन हमलों के वीडियो भी दिखाती है। हमारी सेना पहली बार बिना कुछ छिपाए पूरी दुनिया को बता रही है कि हम किस तरह अपने दुश्मनों को सबक सिखा रहे हैं। हम दुनिया को बता रहे हैं कि अगर पाकिस्तान सीजफायर के उल्लंघन और आतंकी हमलों को नहीं रोकता है तो हम यूं ही जवाबी कार्रवाई करते रहेंगे।
सवाल ये है कि पाकिस्तान की सेना इतनी परेशान क्यों है कि बार-बार मार खाने के बाद भी सीजफायर वॉयलेशन की हिमाकत करती है। इसकी एक बड़ी बजह तो ये है कि पाकिस्तानी फौज पिछले कई महीनों से घुसपैठ नहीं करवा पा रही है। भारी फायरिंग की आड़ में जब भी घुसपैठियों को हमारी सरहद में घुसाने की कोसिश की गई, उसे हर बार हमारी फौज ने नाकाम कर दिया। ऐसा ही कुछ शुक्रवार को दिवाली के एक दिन पहले हुआ।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान बीते कई दिनों से पूरी दुनिया को बता रहे हैं कि भारत, पाकिस्तान के 3 टुकड़े करना चाहता है। पहले ही पाकिस्तान की मिलिटरी लीडरशिप अपने देश की संसद में हुए उस खुलासे को लेकर शर्मिंदा है जिसमें उसके नेताओं ने स्वीकार किया था कि पुलवामा में आतंकी हमला पाकिस्तान ने ही करवाया था और इसके आर्मी जनरलों ने भारत से हमले की धमकी मिलने के बाद विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा करने का फैसला किया था। पाकिस्तान को लगता था कि चीन के साथ भारत का टकराव बढ़ेगा तो वह उसका फायदा उठाएगा, लेकिन अब इस बात के आसार हैं कि चीन की फौज अपने सैन्य साजो-सामान के साथ पीछे हट जाएगी। भारत की डिप्लोमैसी की इस कामयाबी ने भी पाकिस्तान को और फ्रस्ट्रेट कर दिया है।
मुझे लग रहा है कि पाकिस्तान बार-बार ये भूल जाता है कि ये नरेंद्र मोदी की लीडरशिप वाला इंडिया है। उसे पता होना चाहिए कि जब भी वह सीजफायर का उल्लंघन करेगा तो भारत जोरदार जवाबी कार्रवाई करेगा। जब भी पाकिस्तान भारत पर गोली बरसाएगा तो भारत उसे घर में घुसकर गोले मारेगा। मुझे लता जी का गाया और प्रदीप जी का लिखा मशहूर गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ याद आ रहा है। उस गाने में कुछ पंक्तियां थीं, ‘जब देश में थी दिवाली, वे खेल रहे थे होली, जब हम बैठे थे घरों में, वे झेल रहे थे गोली।’ इसलिए दिवाली के मौके पर हम एक दीया अपने देश के उन सैनिकों के लिए भी जलाएं जो पूरी लगन के साथ हमारी सरहदों की निगरानी कर रहे हैं। वे वहां डटे हुए हैं, ताकि हम और आप चैन की नींद सो सकें।
Do not forget to light a diya for our jawans on Diwali night
Indian army on Friday resorted to punitive assaults on Pakistani army’s border posts, bunkers and fuel dumps across the Line of Control in Kashmir. This was in retaliation over unprovoked shelling at eight places by Pakistan resulting in the death of five army jawans and five civilians, including a woman, in several sectors. Late at night, Indian army sources said, eleven Pakistani soldiers were killed and sixteen others were injured in the retaliatory attacks.
Indian army sources alleged that Pakistani troops started shelling with heavy mortars and other weapons across the 778 kilometre long LOC, in Baramulla, Dawar, Keran, Uri and Nowgam sectors. This shelling was done to facilitate infiltration of Pakistan terrorists in Keran sector, which was foiled. In Poonch, five civilians were injured when Pakistani troops rained mortars in forward areas. Five civilians including two schoolgirls were injured in Pakistani shelling in Bandipora, army sources said.
On Friday, Indian army retaliated with 105 mm and 155 mm artillery guns, anti-tank guided missiles and heavy mortars to blow up Pakistani observation posts and bunkers. Several ammunition and fuel dumps and multiple terror launch pads were destroyed in the Indian attacks.
Army sources said, according to Pakistani radio intercepts, eleven Pakistani soldiers, including two or three Special Service Group commandos, who often take part in Border Action Team cross-LOC attacks were killed in Indian counter attack. Ten to twelve Pakistanis were injured, army sources said.
India TV in its prime time show ‘Aaj Ki Baat’ showed short video clips of the targeted fire assaults. The infiltration bid in Keran sector came five days after an Indian army captain, two jawans and a BSF constable were killed while trying to stop an intrusion attempt. On Friday, Pakistan started shelling from Uri to Keran sectors at several points and the Indian army gave them a befitting response, an army spokesperson said.
The Pakistani army has admitted that Indian troops shelled their posts in Neelum Valley, Jhelum Valley, Bagh Valley and Jhelum valley with artillery and heavy mortars, but tried to conceal the exact number of casualties, by giving meagre numbers.
The video clips released by Indian army clearly show Pakistani soldiers fleeing their posts out of fear, in the face of massive attacks by our brave jawans. At least twelve Pakistani border posts were destroyed in the Indian attack.
The message to Pakistan has clearly gone home: that India will retaliate heavily if Pakistan violates ceasefire rules. After four Indian jawans were martyred, the Indian army decided to repay Pakistan in its own coin, and used artillery guns and anti-tank guided missiles. This was done after Indian army recorded on camera the spots from where Pakistani troops were firing, and then made pinpointed attack on these enemy posts with artillery guns and guided missiles. Videos of women, children and men running for their lives during Pakistani shelling in the morning were also recorded.
Pakistan has committed 4,052 ceasefire violations in Kashmir this year till now compared to 3,233 ceasefire violations last year. As many as 20 civilians have died and 47 were injured on Indian side due to shelling.
Continuing the customary tradition of spending Diwali with jawans for the seventh year in a row, Prime Minister Narendra Modi on Saturday visited Longewala on Jaisalmer border in Rajasthan, accompanied by Chief of Defence Staff Gen Bipin Rawat, Army Chief Gen M M Narwane and BSF chief Rakesh Asthana.
Modi distributed Diwali sweets to jawans and met each one of them. The Prime Minister has appealed to all Indians to light a diya on Diwali night as a salute to our jawans. He tweeted: “This Diwali, let us also light a diya as a salute to soldiers who fearlessly protect our nation. Words can’t do justice to the sense of gratitude we have for our soldiers for their exemplary courage. We are also grateful to the families of those on our borders.”
Narendra Modi is the first Prime Minister who has been spending Diwali with jawans every year. When a Prime Minister stands among the jawans at the border, every jawan feels the might of 130 crore Indians who stand rock solid behind them. The army used to show exemplary courage and bravery in the past too, but these were hardly made public.
Modi has changed the lexicon. Our army and air force carry out surgical strikes inside enemy territory, blow up Pakistani bunkers and teach the enemy a lesson, and the videos of these attacks are made available to the general public. For the first time, our army has been telling the whole world, without concealing anything, how we have been teaching our enemies a lesson. We have been telling the world that we will retaliate if Pakistan does not cease ceasefire violations and terror attacks.
The question is: why is the Pakistani army so desperate? It has been unable to carry out any major infiltration of terrorists in the last one year. Whenever it provided cover firing to help terrorists infiltrate in Kashmir, our troops have retaliated heavily. The same thing happened on Friday, on the eve of Diwali.
Pakistan Prime Minister Imran Khan has been telling the whole world that India wants to trifurcate Pakistan into three parts. Already, the top military brass in Pakistan is feeling embarrassed after their own politicians revealed in Parliament that Pakistan had carried out the terror attack in Pulwama and its army generals decided to release Wing Commander Abhinandan after India threatened to attack. Pakistan had planned to derive advantage after India was locked in a standoff with China in Ladakh, but after reports came that China has agreed to withdraw its artillery and heavy armoured vehicles from forward areas, the Pakistani army establishment has become frustrated.
I think, the Pakistani establishment frequently forgets that it is Narendra Modi’s India that it is dealing with. It must realize that India will retaliate heavily if it flagrantly violates ceasefire. It must know that Indian armed forces can strike deep inside Pakistan if it brazenly carries out a major terror attack.
I remember the famous song ‘Ai Mere Watan Ke Logon’ sung by Lata Mangeshkar and penned by the great lyricist Pradeep, and the lines “Jab desh me thi Diwali, who khel rahe the Holi, jab hum baithe the gharon me, who jhel rahe the goli”. Come, let us all light a diya tonight as a mark of salute to the Indian jawans who are vigilantly guarding our frontiers. They are there to guard, so that we can sleep in peace.
मोदी ने जेएनयू छात्रों से कहा-राष्ट्रहित को विचारधारा से ऊपर रखें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में स्वामी विवेकानंद की 13 फीट ऊंची मूर्ति का अनावरण किया। इन दौरान पीएम मोदी ने छात्रों को बताया कि उन्हें राष्ट्रहित को अपनी विचारधारा से ऊपर क्यों रखना चाहिए। मोदी ने जेएनयू छात्रों के जरिए पूरे देश से कहा कि विचारधारा राष्ट्र से बड़ी नहीं होती। राष्ट्र के लिए, राष्ट्रहित के लिए अगर विचारधारा से समझौता करना पड़े तो करिए। राष्ट्र की एकता और देश की भलाई के लिए विचारधारा को छोड़कर सबको साथ आना चाहिए।
पीएम मोदी ने कहा-‘किसी एक बात जिसने हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाया है- वो है राष्ट्रहित से ज्यादा प्राथमिकता अपनी विचारधारा को देना। क्योंकि मेरी विचारधारा ये कहती है, इसलिए देशहित के मामलों में भी मैं इसी सांचे में सोचूंगा, इसी दायरे में काम करूंगा, ये रास्ता सही नहीं है दोस्तों, ये गलत है। आज हर कोई अपनी विचारधारा पर गर्व करता है। ये स्वाभाविक भी है। लेकिन फिर भी, हमारी विचारधारा राष्ट्रहित के विषयों में, राष्ट्र के साथ नजर आनी चाहिए, राष्ट्र के खिलाफ कतई नहीं।’
उन्होंने छात्रों को याद दिलाया कि कैसे महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता के संघर्ष में विभिन्न विचाराधारा के लोगों को एक साथ किया था। उन्होंने विभिन्न मतों के लोगों को अपनी विचारधारा को अलग रखकर स्वतंत्रता के उद्देश्य के लिए प्रेरित किया।
मोदी ने कहा-‘आप देश के इतिहास में देखिए, जब-जब देश के सामने कोई कठिन समस्या आई है, हर विचार, हर विचारधारा के लोग राष्ट्रहित में एक साथ आए हैं। आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के नेतृत्व में हर विचारधारा के लोग एक साथ आए थे। उन्होंने देश के लिए एक साथ संघर्ष किया था। ऐसा नहीं था कि बापू के नेतृत्व में किसी व्यक्ति को अपनी विचारधारा छोड़नी पड़ी हो। उस समय परिस्थिति ऐसी थी, तो हर किसी ने देश के लिए एक Common Cause को प्राथमिकता दी।
मोदी ने जेएनयू छात्रों को यह भी याद दिलाया कि किस तरह 70 के दशक में इमरजेंसी के दौरान कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, जनसंघ और वाम दलों के नेता लोक नायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में एकजुट हुए थे।
उन्होंने कहा-‘अब इमरजेंसी को याद करिए, इमरजेंसी के दौरान भी देश ने यही एकजुटता देखी थी। और मुझे तो उस आंदोलन का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला था, मैंने सारी चीजों को खुद देखा था, अनुभव किया था, मैं प्रत्यक्ष गवाह हूं। इमरजेंसी के खिलाफ उस आंदोलन में कांग्रेस के पूर्व नेता और कार्यकर्ता भी थे। आरएसएस के स्वयंसेवक और जनसंघ के लोग भी थे। समाजवादी लोग भी थे। कम्यूनिस्ट भी थे। जेएनयू से जुड़े कितने ही लोग थे जिन्होंने एक साथ आकर इमरजेंसी के खिलाफ संघर्ष किया था। इस एकजुटता में, इस लड़ाई में भी किसी को अपनी विचारधारा से समझौता नहीं करना पड़ा था। बस उद्देश्य एक ही था- राष्ट्रहित। और ये उद्देश्य ही सबसे बड़ा था। इसलिए साथियों, जब राष्ट्र की एकता अखंडता और राष्ट्रहित का प्रश्न हो तो अपनी विचारधारा के बोझ तले दबकर फैसला लेने से, देश का नुकसान ही होता है। मोदी ने आगे कहा-‘हां, मैं मानता हूं कि स्वार्थ के लिए, अवसरवाद के लिए अपनी विचारधारा से समझौता करना भी उतना ही गलत है। हमें अवसरवाद से दूर, लेकिन एक स्वस्थ संवाद को लोकतन्त्र में जिंदा रखना है।’
प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की जरूरत पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा- ‘आज देश आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य और संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है। आज आत्मनिर्भर भारत का विचार 130 करोड़ से अधिक भारतीयों के Collective Consciousness (सामूहिक चेतना) का, हमारी Aspirations (आकांक्षाओं) का हिस्सा बन चुका है। आत्मनिर्भर राष्ट्र तभी बनता है जब संसाधनों के साथ-साथ सोच और संस्कारों में भी वो आत्मनिर्भर बने।’
जेएनयू को वामपंथी रुझान वाले छात्रों और शिक्षकों का गढ़ माना जाता है। ये पहला मौका है जब प्रधानमंत्री मोदी जेएनयू के किसी कार्यक्रम में शामिल हुए और वहां के छात्रों को संबोधित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने जो बातें कहीं वो बेहद अर्थपूर्ण हैं। प्रधानमंत्री ने विवेकानंद की जिस मूर्ति का अनावरण किया वह मूर्ति 2018 में ही बनकर तैयार हो गई थी। 2015 में बीजेपी से जुड़े छात्र संगठन एबीवीपी ने कुलपति जगदीश कुमार के सामने स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा स्थापित करने की मांग रखी थी। 2017 में जेएनयू की कार्यकारी परिषद में इसे लेकर एक प्रस्ताव रखा गया. जिसे मान लिया गया। 2018 में मूर्ति बनकर तैयार हो गई थी। लेकिन मूर्ति को लेकर विवाद होते रहे। अनावरण से पहले मूर्ति पर कालिख पोत दी गई। स्वामी विवेकानंद को हिन्दुत्व का प्रतीक बताकर अतिवादी वामपंथियों ने कुछ अपशब्द लिखे। इसके बाद मूर्ति का अनावरण नहीं हो सका।
पीएम मोदी ने कहा-‘ ये सिर्फ एक प्रतिमा नहीं है बल्कि ये उस विचार की ऊंचाई का प्रतीक है जिसके बल पर एक संन्यासी ने पूरी दुनिया को भारत का परिचय दिया। उनके पास वेदान्त का अगाध ज्ञान था। उनके पास एक विजन था। वो जानते थे कि भारत दुनिया को क्या दे सकता है। वो भारत के विश्व-बंधुत्व के संदेश को लेकर दुनिया में गए। भारत के सांस्कृतिक वैभव को, विचारों को, परम्पराओं को उन्होंने दुनिया के सामने रखा। गौरवपूर्ण तरीके से रखा।’
मोदी ने कहा-‘ आप सोच सकते हैं जब चारों तरफ निराशा थी, हताशा थी, गुलामी के बोझ में दबे हुए थे हम लोग, तब स्वामीजी ने अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी में कहा था, और ये पिछली शताब्दी के प्रारंभ में कहा था। उन्होंने क्या कहा था? मिशिगन यूनिवर्सिटी में भारत का एक संन्यासी घोषणा भी करता है, दर्शन भी दिखाता है। वो कहते हैं – यह शताब्दी आपकी है। यानी पिछली शताब्दी के प्रारंभ में उनके शब्द हैं- ‘’ये शताब्दी आपकी है, लेकिन 21वीं शताब्दी निश्चित ही भारत की होगी।‘’ पिछली शताब्दी में उनके शब्द सही निकले हैं, इस शताब्दी में उनके शब्दों को सही करना, ये हम सबका दायित्व है।’
जेएनयू में मोदी का यह भाषण इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले पांच वर्षों में जेएनयू कैंपस राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के कारण चर्चा में आया। जेएनयू में भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह …इंशा अल्लाह के नारे सुनाई दिए। कश्मीर की आजादी के नारे लगे। छात्र नेता उमर खालिद और कन्हैया कुमार जैसे लोगों को मंच मिला। इसीलिए आज मोदी ने कहा कि एक-दूसरे से चर्चा करो, विवाद और तर्क करो…विचारधारा को मत छोड़ो। लेकिन विचारधारा के चक्कर में देश को तोड़ने की बात तो मत कहो।
जेएनयू कैंपस में विवेकानंद की प्रतिमा का प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अनावरण करने के कुछ राजनीतिक मायने भी हैं। पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। स्वामी विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस बंगालियों की चेतना के महान प्रतीक हैं। बंगाल में स्वामी विवेकानंद का बहुत सम्मान है। स्वामी विवेकानंद ने बंगाल में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। खुद नरेंद्र मोदी रामकृष्ण मिशन के वैल्लूर मठ में रहे हैं। मोदी ने एक संन्यासी के कहने पर रामकृष्ण मिशन में शामिल होने का फैसला लिया था लेकिन बाद में एक वरिष्ठ संन्यासी की सलाह पर वे वापस गुजरात लौट आए। मोदी ने स्वामी विवेकानंद को बहुत गहराई से पढ़ा और समझा है, इसीलिए उन्होंने इतने विस्तार से इस पर बात की। लेकिन पश्चिम बंगाल में चुनाव है। इसलिए कुछ लोग मोदी की बात को बंगाल के चुनाव से जोड़कर भी देखेंगे।
Modi to JNU students: Put national interest above ideology
While unveiling a 13-feet tall statue of Swami Vivekananda at the Jawaharlal Nehru University campus on Thursday, Prime Minister Narendra Modi told students why they should put national interest above ideology. He reminded students of how Mahatma Gandhi attracted leaders from different ideologies in his struggle for independence, and how leaders of various hues at that time gave priority to the common cause for independence and kept their ideologies aside.
Modi also reminded JNU students how during the dark period of Emergency in the Seventies, leaders from Congress, Socialist Party, Jana Sangh and Left parties joined hands under the leadership of Lok Nayak Jayaprakash Narayan.
“In this fight against Emergency, none of the leaders and workers had to compromise with their ideologies and the common cause was ‘national interest’. I was fortunate to be part of that struggle, I saw all that happened and had personal experience. I was a direct witness. So, on questions of national unity and integrity, if we take decisions under the weight of ideologies, it can cause harm to the nation. Of course, it is also wrong to compromise on ideology because of self-interest and opportunism. But, a healthy debate is a must to keep democracy alive ”, Modi said.
Modi also spoke of the need for a ‘self-reliant (atmanirbhar) India’. He said, it has now become part of the aspirations and collective consciousness of more than 130 crore Indians. “A nation becomes self-reliant when it relies not only on its resources, but is also self-reliant in thoughts and values (sanskaar)”, Modi pointed out.
This was Modi’s first address to the students of JNU, considered a citadel of Left-leaning students and teachers, and his words were meaningful and significant. He was unveiling Vivekananda’s statue, which was scheduled two years ago in 2018, but at that time some ultra-Left students had thrown black paint on it after deriding Swamiji as a proponent of Hindutva.
“This is not a mere statue. It is a symbol of the great ideas on the basis of which a saint introduced India to the world. Swamiji had a vast repository of Vedanta knowledge. He had a vision and he knew what India could give to the world. He introduced the world to India’s rich cultural heritage, its ideas and traditions, with pride.
“Can you imagine what Swamiji told the Michigan University at a time when we were all despondent, groaning under the weight of foreign rule? That too, at the beginning of last century? He told the American students and professors, ‘this may be your century, but the 21st century will belong to India’. On our shoulders rests the responsibility of translating his vision into reality.”, said Modi.
Modi’s words assume significance because the JNU campus had been in the centre of controversy during the last five years, when anti-national and separatist slogans like ‘Bharat tere tukde hongey, Inshallah, Inshallah’ were raised by, what we call the ‘tukde-tukde’ gang, and students
leaders like Umer Khalid and Kanhaiya Kumar were given platform to spout anti-national ideas.
It was in this context that Modi advised students to indulge in healthy debates, stick to ideologies, but refrain from weakening national unity and territorial integrity. His advice was clear: do not speak of breaking the nation in the name of ideologies.
Modi unveiling Vivekananda’s statue in JNU campus has a political connotation too. Assembly elections are due next year in West Bengal. Swami Vivekananda and his guru Ramakrishna Paramhansa are great icons in the consciousness of Bengalis. Modi had spent several years of his life at the famous Belur Math set up by Swamiji. He had decided to join the Ramakrishna Mission order of monks but on the advice of a senior monk, he abandoned this idea and returned to Gujarat. To state the obvious, Modi has his sights trained on West Bengal elections now.