अयोध्या मे रामजन्मस्थान मंदिर के उद्घाटन और रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर कांग्रेस ने एक नया विवाद छेड़ने की कोशिश की है. कांग्रेस के नेताओं ने कहना शुरू कर दिया कि शंकराचार्यों को प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में न बुलाकर बीजेपी ने हिन्दुओं को बांटने की साजिश की है, बीजेपी रामानंदी संप्रादाय और शैव संप्रदाय को बांटने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि बीजेपी ने रामलला को हाईजैक कर लिया है. अयोध्या में भव्य राम मंदिर के उद्घाटन को सियासी अखाड़ा बना दिया है. दिग्विजय सिंह ने कहा कि बीजेपी और विश्व हिन्दू परिषद होते कौन हैं, अयोध्या में मंदिर के उद्घाटन समारोह का न्योता देने वाले? चंपतराय को ये तय करने का हक किसने दिया कि किसे बुलाया जाए, किसे न बुलाया जाए? दिग्विजय सिंह ने कहा कि शकंराचार्य सनातन परंपरा के वाहक है, बीजेपी और VHP शंकारचार्यों का अपमान कर रही है, इसीलिए शंकराचार्यों ने इस कार्यक्रम में आने से इनकार कर दिया है. इसके बाद दो शंकराचार्य – ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और पुरी गोवर्धन मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती के बयान भी आ गए. दोनों शंकराचार्यों ने कहा कि वो 22 जनवरी को अयोध्या नहीं जाएंगे. दोनों ने अलग अलग वजहें बताईं. अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि अयोध्या में होने वाला पूरा प्रोग्राम रानीतिक है, प्रधानमंत्री अपने चुनावी फ़ायदे के लिए रामलला की प्राण प्रतिष्ठा करने जा रहे हैं जबकि मंदिर का निर्माण अभी पूरा नहीं हुआ है. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि अयोध्या में कोई नया मंदिर नहीं बन रहा है, अयोध्या में तो पहले से ही भगवान राम का एक मंदिर मौजूद था, अब उसका जीर्णोद्धार किया जा रहा है और प्रधानमंत्री आधे अधूरे काम के बीच जाकर रामलला के विग्रह को स्थापित करने जा रहे हैं. इसलिए वो इस कार्यक्रम में नहीं जाएंगे. हालांकि अविमुक्तेश्वरानंद ने ये भी कहा कि प्राण प्रतिष्ठा से उन्हें कोई दिक़्क़त नहीं लेकिन वो अयोध्या तभी जाएंगे जब मंदिर पूरा बनकर तैयार हो जाएगा.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और दिग्विजय सिंह की बात एक जैसी है. एक जैसी क्यों है? ये भी आपको बता देता हूं. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और दिग्विजय सिंह के गुरू एक ही हैं. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य थे, दिग्वजिय सिंह के गुरू थे, स्वामी स्वरूपानंद को कांग्रेसी शंकराचार्य कहा जाता था. पिछले साल उनके निधन के बाद स्वामी अविमक्तेश्वरानंद सरस्वती को ज्योतिर्मठ का शंकराचार्य बनाया गया. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का पुराना नाम उमाशंकर पांडेय था. उन्होंने सन् 2000 में काशी में स्वरूपानंद सरस्वती से संन्यास की दीक्षा ली थी और स्वरूपानंद की वसीयत के आधार पर अविमुक्तेश्वरानंद को पिछले साल ज्योतिर्मठ का शंकराचार्य बना दिया गया. लेकिन संन्यासी अखाड़े जैसे निरंजनी अखाड़े और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इसका विरोध किया था. दावा किया गया था कि शंकराचार्य नियुक्त करने की जो विधि, परपंरा है, उसका पालन नहीं किया गया. मैं आपको ये भी बता दूं कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध आज से नहीं कर रहे हैं. उन्होंने काशी विश्वनाथ कॉरीडोर बनाए जाने का भी विरोध किया था, आमरण अनशन पर बैठ गए थे. एक और शंकराचार्य हैं, पुरी की गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती. निश्वचलानंद सरस्वती ने कहा कि वो अयोध्या में होने वाले रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाएंगे. निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से उन्हें कोई दिक़्क़त नहीं है, यह तो हिंदू धर्म का एक बड़ा कार्य हो रहा है, वो तो बस यह चाहते हैं कि पूजा-पाठ विधि विधान से हो, शास्त्रों के अनुसार हो. जब उनसे ये पूछा गया कि आख़िर कार्यक्रम में वो क्यों नहीं जा रहे हैं, तो निश्चलानंद ने कहा कि प्राण प्रतिष्ठा तो प्रधानमंत्री करेंगे, गर्भ गृह में वही जाएंगे, इसलिए, उनके जाने का कोई औचित्य नहीं. निश्चलानांद सरस्वती गोवर्धन पीठ के 145वें शंकराचार्य है. 80 साल के बुजुर्ग और सम्मानित संत हैं. स्वामी करपात्री जी महाराज से उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली थी. बचपन का नाम नीलांबर झा था. उनके पिता दरभंगा नरेश के राजपुरोहित थे. स्वामी निश्चलानंद की यही दिक्कत है. वो मानते हैं, संतों का अधिकार शासकों पर शासन करना है, उन्हें राम मंदिर के उद्घाटन से दिक्कत नहीं है, रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह से भी कोई परेशानी नहीं है, परेशानी सिर्फ इस बात से है कि मंदिर का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी क्यों कर रहे हैं? गर्भगृह में मोदी क्यों जाएंगे? ये अधिकार तो शंकराचार्य का है, उनका है. इसीलिए निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि जब मोदी प्राण प्रतिष्ठा करेंगे, जब मोदी सबसे पहले रामलला के दर्शन करेंगे, तो वह क्या वहां ताली बजाने जाएंगे? इस वाक्य से साफ है कि स्वामी निश्चलानंद की दिक्कत EGO (अहं) की है. वो ये सहन नहीं कर पा रहे हैं कि शंकराचार्य होते हुए वो कार्यक्रम में दर्शक के तौर पर शामिल हों. हालांकि सभी शंकारचार्यों को सम्मान के साथ निमंत्रण दिया गया था. निमंत्रण में ये कहा गया था कि पूज्य शंकराचार्य अपने एक सहयोगी के साथ अयोध्या पधारें. यही बात स्वामी निश्चलानंद को बुरी लग गई. उन्होंने कहा कि ये क्या बात हुई कि सिर्फ एक शिष्य को लेकर वो अयोध्या जाएंगे और उन्होंने कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार कर दिया. इसके बाद कांग्रेस के नेताओं ने कहना शुरू कर दिया कि चारों शंकराचार्य नाराज़ हैं, कोई शंकराचार्य अयोध्या इसीलिए नहीं जा रहा है, क्योंकि बीजेपी ने रामलला के प्रोग्राम को सियासी बना दिया है. लेकिन द्वारका पीठ और श्रंगेरी पीठ के शंकराचार्यों ने बयान जारी करके अपनी स्थिति साफ की. कांग्रेस के मंत्री प्रियांक खरगे चार शंकराचार्यों के नाराज़ होने का दावा कर रहे थे लेकिन वो जिस कर्नाटक राज्य के हैं, वहीं के श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य की तरफ़ से प्राण प्रतिष्ठा के समर्थन में बयान जारी किया गया. श्रृंगेरी शारदा पीठम के शंकराचार्य श्री भारती तीर्थ की तरफ़ से जारी बयान में कहा गया कि शंकराचार्य ने प्राण प्रतिष्ठा को लेकर न तो कोई नाराज़गी जताई है, न ही शंकराचार्य ने कोई ऐतराज़ किया है कुछ लोग शंकराचार्य के हवाले से अफ़वाहें फैला रहे हैं जबकि शंकराचार्य ने तो दीपावली पर ही भक्तों को संदेश दिया था कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा निर्विघ्न रूप से संपूर्ण हो, इसके लिए सभी भक्त राम-तारक मंत्र का जाप करें. बयान में कहा गया कि शंकराचार्य ने इस प्राण प्रतिष्ठा को पूरा आशीर्वाद दिया है और उन्होंने अपने सभी भक्तों से अधिक से अधिक संख्या में प्राण प्रतिष्ठा में भाग लेने के लिए भी कहा है. उधर, द्वारका के शारदा पीठम के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने एक बयान में कहा कि राम जन्मभूमि को दोबारा पाने के लिए, मौजूदा शंकराचार्य के गुरू ने रामालय ट्रस्ट और राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के ज़रिए लगातार प्रयास किए थे और अब बरसों के प्रयासों की वजह से रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का शुभ अवसर आया है, ऐसे समय पर शंकराचार्य बहुत प्रसन्न हैं और वह चाहते हैं कि प्राण प्रतिष्ठा के सभी कार्य शास्त्रोक्त विधि और धार्मिक मर्यादा के अनुरूप हों. VHP के कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि किसी भी शंकराचार्य ने राम मंदिर बनने का विरोध नहीं किया, इसलिए शंकराचार्यों के बहाने जो विवाद खड़ा किया जा रहा है, वो बेमानी है. कांग्रेस अयोध्या में होने वाले भव्य समारोह का बॉयकॉट करे, समझ में आता है. लेकिन शंकराचार्य जैसे बड़े धार्मिक पद पर बिराजे संत प्राण प्रतिष्ठा के समारोह पर सवाल उठाएं, ये दुख और दुर्भाग्य की बात है. आदि शंकराचार्य ने सिर्फ 32 साल की आयु में पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने वाले चार मठों को स्थापना की, देश के चार अलग अलग कोनों में मठ स्थापित किए, उन मठों की ज़िम्मेदारी समाज को रास्ता दिखाने वाले संतों को दी. ये परंपरा दो हज़ार साल से जारी है. आज भी हिन्दू जनमानस में शंकराचार्य का सम्मान सबसे ज्यादा है. शंकराचार्य व्यक्तिगत राग-द्वेष..मान-अपमान, मोह और अंहकार से मुक्त होते हैं. मोक्ष का मार्ग बताते हैं, सनातन परंपरा के वाहक होते है. ऐसे में अगर कोई शंकराचार्य ये कहे कि मोदी मंदिर का उद्घाटन क्यों कर रहे हैं? मोदी प्राण प्राण प्रतिष्ठा के समारोह में यजमान क्यों हैं? मंदिर का उद्घाटन अभी क्यों हो रहा है? तो ये बात उनके पद, गरिमा और प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं है. शंकराचार्य को इससे क्या लेना देना कि कब चुनाव हैं? किस पार्टी की सरकार है? चुनाव देखकर महूर्त निकाला गया या नहीं? जब शंकराचार्य इस तरह के बयान देते हैं तो इससे पूरे संत समाज की प्रतिष्ठा पर सवाल उठते हैं. जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो कांग्रेस के नेता इस मामले में शंकराचार्यों के अंह (EGO) को भड़का रहे हैं और फिर उनके बयानों को सियासी रंग देने की कोशिश कर रहे हैं. कुल मिलाकर कांग्रेस ने इस मामले में दो शंकराचार्यों को अपनी सियासत का मोहरा बना दिया क्योंकि कांग्रेस हाईकमान ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया. बीजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया और कांग्रेस अब इससे किसी तरह पीछा छुड़ाना चाहती है. लेकिन ये इतना आसान नहीं होगा.