सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यूपी सरकार को निर्देश दिया कि वह हाथरस गैंगरेप केस में पीड़िता के परिवार एवं अन्य गवाहों के लिए विटनेस प्रोटेक्शन प्लान के साथ एक हलफनामा पेश करे। राज्य सरकार को यह भी बताने के लिए कहा गया है कि क्या परिवार के पास अपने प्रतिनिधित्व के लिए कोई वकील है। इस मामले की सुनवाई एक हफ्ते बाद फिर होगी।
भारत के चीफ जस्टिस एस. ए. बोबडे ने कहा, ‘हम जानना चाहते हैं कि क्या पीड़ित परिवार के पास कोई वकील है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की कार्यवाही (12 अक्टूबर को होने वाली) को लेकर और हम इसे और ज्यादा प्रासंगिक कैसे बना सकते हैं, इस बारे में हम आपसे (सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता) भी सुझाव चाहते हैं। हमें यह भी रिकॉर्ड पर चाहिए कि विटनेस प्रोटेक्शन प्लान पहले से ही लागू है।’ उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से पेश होने वाले सॉलिसिटर जनरल की मांग थी कि सुप्रीम कोर्ट को खुद हाथरस केस की CBI जांच की निगरानी करनी चाहिए। तुषार मेहता ने कहा, ‘एक युवा लड़की की मौत को सनसनीखेज न बनाया जाए, और इस मामले की सही और निष्पक्ष जांच की जाए।’
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने हाथरस की घटना को ‘भयानक और चौंकाने वाला’ करार दिया। CJI बोबडे, जस्टिस ए. एस. बोपन्ना और जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जनहित याचिका पर सुनवाई शुरू करने से कुछ घंटे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने पीड़िता का उसके गांव में आनन-फानन में अंतिम संस्कार किए जाने के बचाव में 16 पन्नों का एक हलफनामा दायर किया।
राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में आरोप लगाया कि कुछ राजनेताओं और मीडियाकर्मियों ने कथित रूप से पीड़ित के परिवार के सदस्यों को उकसाया था और हिंसक विरोध-प्रदर्शन हुए थे, जिसकेचलते ‘परिजनों की उपस्थिति में’ रात में ही अंतिम संस्कार किया गया। राज्य सरकार ने कहा, ‘असाधारण परिस्थितियों और कानून व्यवस्थआ की स्थिति को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन को पीड़िता का अंतिम संस्कार रात में करने के लिए असाधारण कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा। अंतिम संस्कार पीड़िता के परिजनों की मौजूदगी में हुआ, जो संभावित हिंसा की स्थिति से बचने के लिए इसपर सहमत हुए।’
राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में यह आरोप लगाया कि कुछ राजनैतिक दलों और मीडिया के एक वर्ग द्वारा सोशल मीडिया और विरोध-प्रदर्शनों का इस्तेमाल करके सरकार की छवि को धूमिल करने के लिए ‘दुष्प्रचार’ किया गया। यह भी आरोप लगाया गया कि ‘हाथरस की घटना का इस्तेमाल करके सांप्रदायिक और जातीय दंगों को उकसाने की एक योजनाबद्ध कोशिश की गई, और इसलिए यह उचित होगा कि न्यायालय की निगरानी में समयबद्ध तरीके से इसकी सीबीआई जांच कराई जाए।’ सरकार ने अपने हलफनामे में कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट की निगरानी से यह सुनिश्चित हो जाएगा कि जांच के दौरान किसी प्रकार की झूठी कहानियां इसमें हस्तक्षेप नहीं करें।’
राज्य सरकार ने यह भी बताया कि ‘पीड़िता ने पुलिस को दिए अपने पहले बयान में बलात्कार का जिक्र नहीं किया था और उसने रेप का आरोप अपने दूसरे बयान में लगाया जिसके बाद सभी चारों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।’
पिछले कुछ दिनों से हाथरस की बेटी से जुड़े हर अपडेट पर मेरी नजर है। मैंने इस दौरान सैकड़ों वीडियो देखे हैं और पीड़िता एवं उसके माता-पिता के बयान सुने हैं। मैंने पीड़िता के शव का रात में ही अंतिम संस्कार किए जाने को लेकर पुलिस और प्रशासन के तर्क भी सुने हैं। मैं आपको ये भी बता दूं कि उत्तर प्रदेश पुलिस के बहुत सारे अफसरों ने इस घटना के बारे में मुझसे बात की है, और जिस तरह से हाथरस पुलिस ने इस मामले को डील किया, उसको जस्टिफाई करने के लिए उन्होंने कई तर्क दिए। उनके तर्क क्या हैं, ये मैं आपको एक-एक करके बताता हूं।
पहला तर्क, यह घटना दिन में 10.30 बजे के आसपास हुई और पीड़िका अपने माता-पिता के साथ पुलिस स्टेशन गई। तुरंत केस दर्ज हुआ, और पहले उसे जिला अस्पताल और फिर 2 बजे तक उसे AMU के हॉस्पिटल में ऐडमिट भी करवा दिया गया। पुलिस का ये भी कहना है कि पहले दिन उस लड़की ने बलात्कार की शिकायत नहीं की थी, इसलिए उस दिन डॉक्टरों ने रेप से जुड़ा कोई टेस्ट नहीं किया।
मैंने हॉस्पिटल के बाहर चबूतरे पर लेटी दर्द से तड़पती 19 साल की लड़की का वीडियो देखा है। लड़की वहां दर्द से तड़प रही है, और वहीं 2 पुलिस वाले खड़े हैं जो उसके परिवार वालों से बयान ले रहे हैं। इसके बाद मैंने हॉस्पिटल के स्ट्रेचर पर पड़ी, दर्द से कराह रही लड़की की बात सुनी है जिसमें उसने टूटे-फूटे लब्जों में आरोपी द्वारा अपने साथ की गई जबरदस्ती की बात कही है। उसने कहा, ‘चोट इसलिए लगी, गर्दन इसलिए टूटी क्योंकि मैंने संदीप को अपने साथ जबरदस्ती नहीं करने दी।’
यूपी पुलिस के अफसरों से मेरा सवाल यह है कि जुल्म की शिकार लड़की इससे ज्यादा और क्या कहेगी? क्या किसी महिला के साथ जबरदस्ती का मतलब रेप नहीं है? कानून तो यही कहता है। मैं मानता हूं कि शुरू में ही रेप का केस दर्ज न करना, ये पुलिस की पहली बड़ी लापरवाही थी।
यूपी पुलिस के अफसरों का कहना है कि पीड़िता ने घटना के 8 दिन बाद दुष्कर्म का आरोप लगाया, और जैसे ही उन्होंने आरोप लगाया पुलिस ने FIR में रेप का आरोप भी जोड़ दिया। घटना के 11 दिन बाद मेडिकल टेस्ट किया गया। हर पुलिसकर्मी जानता है कि यदि घटना के 96 घंटे बाद मेडिकल टेस्ट किया जाए तो ऐसे मामलों में जांच से कुछ नहीं होता, बलात्कार का कोई सबूत नहीं मिल सकता। पुलिस किसे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही है? यह लापरवाही नंबर 2 थी। इसी के चलते पुलिस की नीयत पर शक हुआ।
तीसरी बात पुलिस अफसरों ने कही कि लड़की की मां ने 3 बार बयान बदले। उनके मुताबिक, पीड़िता की मां ने पहले कहा कि गला घोंटा गया, इसके बाद उसने कहा कि रस्सी से गला दबाया गया, और फिर कहा कि दुपट्टे से गला घोंटा गया। मेरा कहना यह है कि इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि गला कैसे दबाया गया? इससे क्या फर्क पड़ता है कि गला हाथों से दबाया गया, रस्सी से दबाया गया या दुपट्टे से? कड़वा सच तो यह है कि आरोपी द्वारा गला दबाने से हुई स्पाइनल इंजरी के चलते एक बेटी ने तड़प-तड़प कर अपनी जान दे दी। यह पुलिस की लापरवाही नंबर 3 थी।
चौथी बात यह है कि जब पुलिस को यह पता चला कि स्पाइनल इंजरी के चलते लड़की की हालत खराब है और वह दर्द से तड़प रही है, तो उसे दिल्ली शिफ्ट करने में देरी क्यों की गई? इसके जवाब में पुलिस का कहना है कि लड़की का परिवार शुरू में उसे इलाज के लिए दिल्ली शिफ्ट करने के लिए तैयार नहीं था। यदि मैं पुलिस की यह बात मान भी लेता हूं, तो मेरा सवाल यह है कि: जब पुलिस परिवार की कही बातों को इतना मान दे रही थी, तो उसने एंबुलेंस के सामने बैठी लड़की की मां की मिन्नतों को नजरअंदाज करते हुए पीड़िता के शव को रात में ही सफदरजंग अस्पताल से बाहर क्यों निकाल लिया? पुलिस ने परिवार को शव का अंतिम संस्कार सुबह करने की इजाजत क्यों नहीं दी?
मैंने ऐम्बुलेंस के सामने लड़की की मां का सिर पीटते हुए, और उसके हाथों एवं शरीर पर ‘हल्दी’ लगाने के लिए शव को अपने घर ले जाने के लिए पुलिस से गुहार लगाने का वीडियो देखा है। यूपी पुलिस जो कह रही है यदि हम उसे मान भी लें, तो क्या दाह संस्कार के वक्त दंगाई गांव में इकट्ठा हो पाते? वह भी रात के अंधेरे में? यह लापरवाही नंबर 4 थी।
यूपी पुलिस के अफसरों के कुछ और तर्क भी हैं। उनका दावा है कि पीड़िता के परिवार और आरोपी के परिवार के बीच पुरानी रंजिश थी। यह घटना उनके पारिवारिक झगड़ों का नतीजा थी। पुलिस का यह भी दावा है कि सभी 4 आरोपियों को तभी गिरफ्तार कर लिया गया था, जब पीड़िता ने उनका नाम बताया था। इन सारी बातों का अब कोई मतलब नहीं है क्योंकि सच्चाई यह है कि 19 साल की एक लड़की को टॉर्चर किया गया, उसका यौन उत्पीड़न हुआ, और 2 हफ्ते तक मौत से जूझने के बाद उसने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। यह भी एक तथ्य है कि परिवार के सदस्यों की सहमति के बिना, रात में चुपचाप उसके शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
मैं एक बार फिर कह रहा हूं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने CBI जांच का आदेश देकर सही काम किया है, और उत्तर प्रदेश पुलिस को अब मामले पर पर्दा डालने की कोशिश बंद करनी चाहिए। राज्य सरकार ने पहले ही 5 पुलिस अफसरों को सस्पेंड कर दिया है, लेकिन हाथरस के डीएम, जिनके आदेश पर पुलिस ने जबरन पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया, अभी भी अपने पद पर बने हुए हैं। डीएम के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई? इंडिया टीवी के रिपोर्टर ने हाथरस के इंस्पेक्टर संजीव शर्मा से बात की, जिन्होंने कैमरे पर स्वीकार किया कि दाह संस्कार की रात जो कुछ भी किया गया उसके लिए ‘ऊपर से आदेश’ दिया गया था। यदि आदेशों का पालन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की गई, तो सवाल उठता है कि जिसने ये आदेश दिए, उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई।
एएमयू मेडिकल कॉलेज अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर के प्रमुख डॉक्टर अज़ीम मलिक ने कहा है कि घटना के 11 दिन बाद लिए गए सैंपल पर FSL की रिपोर्ट कभी भी यौन उत्पीड़न के बारे में निर्णायक फैसला नहीं दे सकती है। उनके मुताबिक, सरकारी दिशानिर्देशों के अनुसार, इस तरह का मेडिकल टेस्ट घटना के 96 घंटों (4 दिनों) के भीतर किया जाता है ताकि निर्णायक साक्ष्य मिल सकें। यूपी पुलिस का यह दावा कि रेप का कोई सबूत नहीं था, कोई अहमियत नहीं रखता।
कुल मिलाकर स्थानीय पुलिस की ओर से की गई घोर लापरवाही, जिला प्रशासन के अधिकारियों के अहंकार और मनमाने रवैये, पीड़ित परिवार के प्रति संवेदनशीलता की कमी, इन सभी ने मिलकर 19 साल की इस लड़की के जीवन के साथ खिलवाड़ किया। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस मामले का संज्ञान लिया और अपने आदेश में मेरे न्यूज शो ‘आज की बात’ का हवाला दिया, और अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने है।
मुझे पूरा यकीन है कि हाथरस की बेटी को इंसाफ मिलेगा, लेकिन जब तक मामला अदालत में है, तब तक यह हमारे समाज की जिम्मेदारी है कि हम पीड़िता के माता-पिता और उसके परिवार के सदस्यों के साथ सहानुभूति रखें, उन्हें सांत्वना दें और उन्हें अदालत में चुनौतियों का सामना करने की ताकत दें।