कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार ने संविधान को बदलने की बात कही, पर बाद में अपनी इस वात से मुकर गए. इसे लेकर संसद के दोनों सदनों में बीजेपी ने हंगामा किया. शिवकुमार ने कहा था कि समय के साथ सब कुछ बदलता है, एक वक़्त आएगा, जब संविधान भी बदलेगा. उनसे सवाल किया गया था कि कर्नाटक सरकार ने सरकारी ठेकों में मुसलमानों को चार परसेंट आरक्षण देने का जो फैसला किया है, क्या वो संविधान के ख़िलाफ़ नहीं है? इस पर उपमुख्यमंत्री ने कहा कि “कांग्रेस सरकार ने मुसलमानों को आरक्षण पिछड़ा वर्ग के आधार पर दिया है, धर्म के नाम पर नहीं, लेकिन, वक़्त के साथ चीज़ें बदलती हैं, ये मामला भी अदालत में जाएगा और आगे चलकर हो सकता है कि संविधान में ये चीज़ बदले.” संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कांग्रेस आजादी के पहले वाली मुस्लिम लीग की राह पर चल पड़ी है. आज़ादी से पहले मुस्लिम लीग मुसलमानों को धर्म के आधार पर आरक्षण की मांग कर रही थी, जिसके कारण आगे चलकर देश विभाजन हुआ. विवाद बढ़ा तो शिवकुमार ने सफाई दी, कहा कि उन्होंने कभी संविधान बदलने की बात नहीं की. शिवकुमार ने असल में क्या कहा था, संविधान बदलने की बात कैसे कही थी, अगर इसको समझना है तो इस मामले पर शिवकुमार के कहे गए वाक्यों को सुनना जरूरी है. शिवकुमार ने कहा था कि, ‘हां मैं सहमत हूं. देखते हैं कोर्ट क्या कहता है. हमने कुछ शुरुआत की है. मुझे पता है कि लोग कोर्ट जाएंगे. अच्छे दिन का इंतजार करते हैं, अच्छे दिन आएंगे. बहुत सारे बदलाव हैं. संविधान बदलेगा. ऐसे फैसले भी हैं जो संविधान को बदल देते हैं’. ये सुनने के बाद शिवकुमार की सफाई का कोई मतलब नहीं रह जाता, न ही कांग्रेस की सफाई का कोई औचित्य है. शिवकुमार से मुसलमानों को आरक्षण दिए जाने पर सवाल पूछा गया था. उन्होंने साफ कहा कि इसके लिए संविधान बदलेगा. ये इस तरह का फैसला है जिसके लिए संविधान बदलता है. अब ये उन्होंने गलती से कहा था या कहने के बाद उन्हें लगा गलती हो गई, ये डीके शिवकुमार जानें. मोटी बात ये है कि उन्होंने संविधान को बदलने की बात साफ साफ लफ्जों में की थी.
न्यायपालिका में भ्रष्टाचार : क्या सरकार सिस्टम बदलेगी?
जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर मंगलवार को तीन जजों की जांच समिति मौके का मुआयना करने गई थी. समिति में पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ठ के मुख्य न्यायाधीनश जी एस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल हैं. होली के दिन इनस घर में आग लगी और फायर ब्रिगेड को बोरियों में अधजले नोट मिले. सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद हाईकोर्ट में तबादला कर दिया है. संसद में राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सदन के नेता जे पी नड्डा और प्रतिपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे को बुलाकर इस मुद्दे पर बात की. धनखड़ ने कहा कि जस्टिस वर्मा के मामले में जांच कमेटी बना दी गई है, जज का ट्रांसफर कर दिया गया है, जांच रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए लेकिन साथ साथ न्यायपालिका की साख पर जो बट्टा लगा है, ऐसा दोबारा न हो, इसके लिए सभी पार्टियों को मिलकर सोचने की जरूरत है. उधर इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने हड़ताल की धमकी दी है. बार एसोसिएशन का कहना है कि जस्टिस वर्मा के केस की जांच ED और CBI से कराई जानी चाहिए, इस तरह के केस में जजों को जो इम्युनिटी मिली है वो खत्म होनी चाहिए. असल में जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर भारी मात्रा में कैश मिलने के बाद से न्यायपालिका की पारदर्शिता पर बड़े सवाल खड़े हो गए हैं. आम तौर पर कैश बरामद होने के मामले जांच के लिए पुलिस या CBI को दिए जाते हैं क्योंकि इन्हीं एजेंसी के पास ऐसे मामलों की जांच करने की विशेषज्ञता होती है. लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ ने न्यायपालिका की मजबूरी बताई. अपनी स्वतंत्रता कायम रखने के लिए न्यायपालिका जज से संबंधित मामलों की जांच पुलिस को नहीं सौंपती. सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के पास अपनी कोई जांच एजेंसी नहीं है. फायर ब्रिगेड के चीफ का बयान लेने के लिए भी कोर्ट के अफसर वहां गए. फायर ब्रिगेड ने नोट देखे थे, जले हुए नोटों का वीडियो बनाया. अपने बयान में फायर ब्रिगेड ने जो कहा, वो चिंताजनक है. फायर ब्रिगेड के बयान की आखिरी लाइन नोट करने वाली है.- ‘आग काबू में आने के बाद 4-5 अधजली बोरियां मिलीं जिनके अंदर भारतीय मुद्रा भरी थी’. इसके बाद शक की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती लेकिन ये अधजली भारतीय मुद्रा कहां गायब हो गईं? क्या वहां पर कुछ बिन जले नोटों की बोरियां भी थीं ? उन बोरियों को कौन ले गया ? पुलिस ने नोट मिलने के बाद उस जगह को सील क्यों नहीं किया ? ये सारे सवाल उठाया जाना लाजिमी हैं. इसमें कोई शक नहीं कि जज यशवंत वर्मा के मामले में सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने सब कुछ पारदर्शी तरीके से किया. सारे दस्तावेज और वीडियो वेबसाइट पर डाल दिए. अब सवाल ये उठा कि इतना हो जाने के बाद भी जस्टिस वर्मा को सिर्फ ट्रांसफर किया गया. एक जज पर जब कैश लेने का आरोप हो, प्रत्यक्षतया सबूत हों, तो उन्हें सस्पेंड क्यों नहीं किया गया ? इसका जवाब भी जस्टिस चंद्रचूड़ ने दिया. उन्होंने कहा कि कोर्ट के पास किसी जज को ट्रांसफर करने के अलावा सजा देने का कोई और तरीका नहीं है. जब जांच पूरी होगी, अगर जज को दोषी पाया गया, तो चीफ जस्टिस, जज यशवंत वर्मा को इस्तीफ़ा देने को कह सकते हैं. अगर जज इस्तीफा देने से इनकार कर दे तो चीफ जस्टिस उनके ख़िलाफ़ महाभियोग की सिफ़ारिश कर सकते हैं लेकिन महाभियोग की प्रक्रिया बहुत लंबी होती है. इन सारी बातों का मतलब ये है कि न्यायपालिका में ऐसे मामलों से डील करने के तरीके में बदलाव की ज़रूरत है. न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जांच और सजा की एक समुचित व्यवस्था बनाने की आवश्यकता है. उम्मीद करनी चाहिए कि इस केस से इस दिशा में कोई ठोस समाधान निकलेगा.
कुणाल कामरा के कॉमेंट : तोड़फोड़ से क्या होगा ?
स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा का कमेंट बड़ा सियासी मुद्दा बन गया है.मुंबई पुलिस ने कुणाल कामरा को पूछताछ के लिए खार झाने में बुलाया लेकिन कामरा ने एक हफ्ते की मोहलत मांगी है. कामरा के खिलाफ FIR दर्ज हो गई. होटल में तोड़फोड़ करने के केस में एकनाथ शिन्दे की शिवसेना के बारह नेता गिरफ्तार हुआ और जमानत पर छूट कर बाहर आ गए. उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी के नेता सीना ठोंककर कुणाल कामरा के समर्थन में खड़े हो गए. कुणाल कामरा ने अपने शो मे satiric तरीके से पेरोडी गाना सुनाया था, जिसमें उन्होने एकनाथ शिंदे को गद्दार बताया था. कुणाल कामरा का ये शो मुंबई में खार इलाके के एक होटल में 21 जनवरी को हुआ था लेकिन उसका वीडियो दो महीने बाद सामने आया. जैसे ही कामरा ने वीडियो रिलीज किया तो शिन्दे की पार्टी के कार्यकर्ता भड़क गए. कुणाल कामरा अभी खामोश हैं. उन्होंने एक बयान जारी कर कहा है कि अगर कोर्ट उनसे माफी मांगने को कहेगा तो वो माफी मांग लेंगे. कुणाल कामरा ने शिंदे को गद्दार कहा, चोर कहा लेकिन ये तो उद्धव ठाकरे और संजय राउत सौ सौ बार कह चुके हैं, रोज़ कहते हैं, एकनाथ शिन्दे ने उद्धव ठाकरे की कुर्सी छीनी, उनकी पार्टी छीनी, पार्टी का सिंबल छीन लिया, इसलिए उद्धव बार बार उन्हें खोखा चोर कहते हैं. और जब जब मौका मिलता है शिंदे भी उद्धव ठाकरे को असली गद्दार, धोखेबाज कहते हैं. इसीलिए इन दोनों को तो ऐसी बातों का बुरा मानने का कोई अधिकार नहीं है. ये सही है कि कुणाल कामरा कई बार शालीनता की सीमा पार करते हैं लेकिन ऐसी बातों से डील करने के लिए कानून है, कोर्ट है. अगर कुणाल कामरा ने बोलने की आजादी का गलत फायदा उठाया तो इसकी शिकायत कोर्ट में की जानी चाहिए. लेकिन शिंदे के समर्थकों को कानून हाथ में लेने की इजाजत कैसे दी जा सकती है. आज महाराष्ट्र में शिंदे की शिवसेना सरकार में है, इसीलिए शिंदे के समर्थकों तोड़फोड़ करने का लाइसेंस तो नहीं दिया जा सकता. कॉमेडियन के बारे में, उनके कमेंट्स के बारे में फैसला अदालत करे तो बेहतर होगा. अगर सरकार चलाने वाले ही कानून तोड़ने लगेंगे तब तो अराजकता फैल जाएगी.