देश में कोरोना वायरस के नए मामलों में गुरुवार को जबर्दस्त बढ़ोतरी देखने को मिली। कुल 49,300 नए मामले सामने आने के साथ संक्रमित लोगों की तादाद 13 लाख के करीब (12,7,945) पहुंच गई। कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों की लिस्ट में मौजूदा समय में अमेरिका और ब्राजील के बाद भारत तीसरे पायदान पर है। देश में इस वायरस से मरनेवालों की संख्या 30 हजार के आंकड़े को पार गई है और म़तकों की संख्या के वैश्विक आंकड़ों की लिस्ट में अब भारत छठे स्थान पर आ चुका है।
यह खतरनाक वायरस बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, असम, तेलंगाना, कर्नाटक और यूपी के ग्रामीण इलाकों में तेजी से फैल रहा है। इस महामारी के प्रसार रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने और एक एक्शन प्लान तैयार करने के लिए केंद्र सरकार ने इन आठ राज्यों की सरकारों के साथ शुक्रवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एक अर्जेंट मीटिंग की।
आंध्र प्रदेश में एक दिन के अंदर कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा मामले सामने आए। वहीं 10 अन्य राज्यों में भी कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिली। आंध्र प्रदेश में गुरुवार को लगभग आठ हजार नए मामले सामने आए। इसके बाद नंबर रहा तमिलनाडु का जहां
6,472 नए मामले सामने आए। देशभर में पिछले दो दिनों में लगभग एक लाख नए मामले सामने आने के साथ ही संक्रमितों की कुल संख्या में बड़ा उछाल आया है।
उधर, केंद्र सरकार ने लाल किले पर होनेवाले स्वतंत्रता दिवस समारोह को लेकर यह तय किया है कि इस बार स्कूली बच्चे रैली में शामिल नहीं होंगे। केवल 250 गणमान्य लोगों को ही स्टैंड में बैठने के लिए आमंत्रित किया जाएगा। इसके साथ ही वहां तैनात सभी पुलिसकर्मी पीपीई किट पहने रहेंगे।
आइए देखते हैं कि केरल में 30 जनवरी को दर्ज किए गए पहले मामले के बाद से इस महामारी ने भारत में कैसे खतरनाक रूप लिया। 30 जनवरी से 30 जून तक के पांच महीनों के दौरान कोरोना वायरस के कुल 5,66,000 मामले दर्ज किए गए। लेकिन 1 जुलाई से 23 जुलाई (कुल 23 दिन) के बीच देशभर में करीब सात लाख नए मामले दर्ज किये गए। ये आंकड़े भयावह हैं। यहां राहत की बात केवल यह है कि आधे से ज्यादा कोरोना मरीज ठीक हो गए और उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
कई राज्यों में हेल्थ केयर सिस्टम फेल हो रहा है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बार-बार अपील किए जाने के बावजूद लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
गुरुवार को झारखंड सरकार ने मास्क न पहनने पर एक लाख का जुर्माना और लॉकडाउन के नियम तोड़ने पर दो साल कैद की सजा को लेकर एक अध्यादेश लाने का फैसला किया। ये अजीब लग सकता है। लेकिन झारखंड में सरकार को ये फैसला इसलिए लेना पड़ा क्योंकि झारखंड में अबतक कोरोना के 6 हजार 761 केस आ चुके हैं और 65 लोगों की मौत हो चुकी है। सरकार को लगता है कि लोग इस खतरे को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, अपील से काम नहीं चल रहा है, इसलिए सख्ती करनी ही पड़ेगी। हालांकि मुझे लगता है कि एक लाख का जुर्माना बहुत ज्यादा है। लेकिन अगर जुर्माने का डर कोरोना से सुरक्षा देता है, तो ये ठीक है। क्योंकि यह वायरस इतनी तेजी से फैल रहा है कि सरकारी इंतजाम, सरकारी सिस्टम फेल होने लगे हैं।
वहीं झारखंड के पड़ोसी राज्य बिहार की स्थिति ज्यादा चिंताजनक है। हेल्थ केयर सिस्टम बिल्कुल खस्ताहाल है। कोरोना पेशेंट्स को हॉस्पिटल्स में बेड नहीं मिल पा रहे हैं, और जो लोग पहले से हॉस्पिटल्स में भर्ती हैं वे वहां की लापरवाही के शिकार हो रहे हैं।
गुरुवार को इंडिया टीवी ने रोहतास जिले का एक वीडियो दिखाया जिसमें पीपीई किट पहने हुए हेल्थ केयर वर्कर्स (स्वास्थ्यकर्मी) एक कोरोना मरीज के शव को अंतिम संस्कार के लिए बिक्रमगंज ब्लॉक के श्मशान में ले जा रहे हैं। शव पूरी तरह से एक शीट में लपेटा हुआ था। शव को आग के हवाले करने के बाद उसे अधजली अवस्था में छोड़कर हेल्थकेयर वर्कर्स वहां से चले गए। कुछ मिनट बाद ही वहां आवारा कुत्तों का एक झुंड पहुंच गया और वे अधजले शव को नोंचने लगे। पास के गांववालों ने इस पूरी घटना का वीडियो बनाया। आसपास घनी आबादी है और लोग अब उन कुत्तों से भी डर रहे हैं जिन्होंने कोरोना मरीज के शव को नोंचा था। कौन सोच सकता था कि ऐसा वक्त भी आएगा। किसी वायरस का ऐसा डर भी होगा कि इंसान ही इंसान की लाश को इस तरह छोड़कर भाग जाए और कुत्ते लाश को नोंचकर खाएं। लेकिन ये हुआ तो है। तस्वीरें इसकी गवाही हैं।
इस तरह की गंभीर लापरवाही के और भी उदाहरण हैं। अररिया जिले में चंदन कुमार नाम के शख्स को कोरोना वायरस टेस्ट के लिए जिला हॉस्पिटल गया था। उसने फॉर्म भरा, लेकिन टेस्ट किट समाप्त हो गए थे, इसलिए टेस्ट नहीं किया गया था। वह घर वापस लौट गया, लेकिन दो दिन बाद उसे एक हेल्थ वर्कर का फोन आया और कहा गया कि उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव थी, और वे उसे हॉस्पिटल ले जाने के लिए एम्बुलेंस लेकर आ रहे हैं। जब चंदन कुमार ने कहा कि उसका सैंपल नहीं लिया गया था, तो हेल्थ वर्कर्स ने उसके फोन और पते का डिटेल्स दिया, और कहा कि वे उसे क्वॉरन्टीन सेंटर लेकर जाएंगे। अंतत: चंदन कुमार को फॉरबिसगंज के एक क्वॉरन्टीन सेंटर में रखा गया। अब इस शख्स की चिंता बढ़ गई है कि कहीं कोरोना रोगियों के बीच रहने से वह भी इस वायरस की चपेट में न आ जाए।
अब जरा सोचिए जिस शख्स का सैंपल ही नहीं लिया गया। उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई और उसको भर्ती करके उसका इलाज किया जा रहा है। लेकिन मैं आपको असलियत बताता हूं। असलियत ये है कि बिहार में लोगों को टेस्ट कराने के लिए कई-कई दिन तक इंतजार करना पड़ रहा है। अगर फिगर्स देखें तो बिहार में सबसे कम टेस्ट हो रहे हैं। मुझे कई लोगों से शिकायत मिली है कि उन्हें खांसी है, बुखार है, कोरोना के सिम्टम्स हैं और वो टेस्ट कराना चाहते हैं। लेकिन जब जाते हैं तो वहां तीन-चार सौ लोगों की भीड़ होती है। पहले तो इस बात का डर होता है कि इस भी़ड़ से कोरोना ना हो जाए, लेकिन पूरा दिन इंतजार करने के बाद कह दिया जाता है कि आज का पचास टेस्ट करने का कोटा पूरा हो गया है। अब कल आना। अगले दिन जाते हैं तो फिर यही हाल होता है।
नीतीश कुमार ने हेल्थ डिपार्टमेंट से कहा है कि बीस हजार टेस्ट रोज होने हैं। लेकिन बिहार के हेल्थ एक्सपर्ट्स ने मुझे बताया कि राज्य का इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐसा नहीं है कि बीस हजार टेस्ट रोज हो सके। हालांकि अब रैपिड एंटीजन टेस्ट होना शुरू हुए हैं, जिससे टेस्टिंग में तेजी आ सकती है। चूंकि टेस्टिंग कम हो रही है, इसीलिए बिहार में हालात भयानक होते जा रहे हैं। .
बाकी राज्यों ने तो लॉकडाउन के दौरान अपनी टेस्टिंग क्षमता सुधार ली थी। मरीजों को रखने के लिए आईसीयू के इंतजाम कर लिए गए थे और क्वारंटीन सेंटर्स की संख्या बढ़ा दी गई थी। लेकिन बिहार ने ऐसा कुछ नहीं किया।
उधर, किशनगंज में गंभीर रूप से बीमार महिला मरीज को एक सरकारी हॉस्पिटल में ले जाया गया था, लेकिन हॉस्पिटल के कर्मचारियों ने उसे एडमिट करने के बजाय कहा कि पहले कोरोना टेस्ट किया जाएगा। पांच घंटे तक महिला बीमारी से तड़पती रही और आखिरकार उसकी मौत हो गई। कोई भी डॉक्टर या नर्स उसके पास नहीं गया। गुस्साए परिजनों ने हॉस्पिटल में तोड़फोड़ की, एक एम्बुलेंस की खिड़की के शीशे तोड़ दिए। हालात बिगड़ते देख पुलिस को बुलाना पड़ा। अगर हॉस्पिटल के कर्मचारियों ने समय रहते महिला को एडमिट किया होता तो उसकी जान बचाई जा सकती थी।
ये बात सही है कि मरीजों के परिवारवालों को हॉस्पिटल में हंगामा और तोड़फोड़ नहीं करनी चाहिए। ये गलत है। इसका समर्थन नहीं किया जा सकता। लेकिन हंगामा करने वाले परिवारवालों को जो डॉक्टर ज्ञान दे रहे हैं, उन्हें भी ये समझना चाहिए कि अगर डॉक्टर्स ने वक्त पर इलाज किया होता तो शायद ये नौबत ही नहीं आती।
बिहार में हर तरह की दिक्कत दिख रही है। पटना के गर्दनीबाग हॉस्पिटल में हाल ये है कि डॉक्टर्स वैन में बैठकर कोरोना वायरस के संदिग्ध पुलिसकर्मियों का टेस्ट कर रहे हैं। इसकी वजह ये है कि कोरोना के एक मरीज की मौत के बाद हॉस्पिटल को सैनिटाइज करने अटैंडेंट्स नहीं आए थे। डॉक्टर्स ने अटैंडेंट्स के आने का ज्यादा इंतजार नहीं किया और वैन में बैठकर पुलिसकर्मियों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी।
चाहे रोहतास हो, किशनगंज, अररिया हो या पटना। इन सारी घटनाओं को देखने के बाद ये लगता है कि बिहार में हेल्थ केयर सिस्टम पूरी तरह से फेल हो रहा है। अगर आज भी ना चेते तो कोई रास्ता नहीं बचेगा। हजारों लोग इस खतरनाक वायरस के शिकार हो जाएंगे। अब भी सावधानी नहीं बरती गई तो कितनी बर्बादी होगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। हालांकि पटना के दो सबसे बड़े हॉस्पिटल्स PMCH और NMCH के कोरोना वॉर्ड की हकीकत मैंने आपको पिछले दो दिन ‘आज की बात’ शो में दिखाई है। वॉर्ड में मरीजों के बीच पड़ी लाशों की तस्वीरें दिखाई थी। थोड़ी सुकून की बात ये रही कि बिहार सरकार ने उसके बाद एक्शन भी लिया..ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए समय पर कार्रवाई की।