आखिरकार संयुक्त किसान मोर्चा ने गुरुवार को एक साल से ज्यादा समय से चल रहे किसान आंदोलन को वापस ले लिया है। किसानों की ज्यादातर मांगें मंजूर किए जाने की चिट्ठी केंद्र सरकार से मिलने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन वापसी का ऐलान किया। दिल्ली में रहनेवाले और दिल्ली बॉर्डर के आर-पार रोजाना सफर करनेवाले लोगों के लिए यह अच्छी खबर है। किसान शनिवार से नेशनल हाईवे पर लगे अपने टेंट और अन्य स्ट्रक्चर को हटाना शुरू कर देंगे जबकि दिल्ली पुलिस भी सभी बैरिकेड्स हटा देगी।
एक साल तक बंद रहने के बाद दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर, टीकरी बॉर्डर और सिंघु बॉर्डर समेत कुल छह बॉर्डर प्वॉइंट से अब लोग पहले की तरह आसानी से आवागमन कर सकेंगे। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के अधिकारियों ने कहा कि राजमार्गों को ट्रैफिक के लिए खोलने में अभी कुछ समय लग सकता है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में किसानों के कब्जे वाले सभी टोल प्लाजा को भी 15 दिसंबर तक खोल दिया जाएगा। गुरुवार को कई किसानों ने सिंघू बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और यूपी गेट में धरना स्थल पर लगाए गए टेंट और लोहे के स्ट्रक्चर को हटाना शुरू कर दिया।
संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) द्वारा 378 दिन पहले शुरू हुए आंदोलन को ‘स्थगित’ करने की घोषणा के बाद मुख्य धरना स्थल पर किसानों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया। एसकेएम की तरफ से कहा गया कि अब 15 जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं की फिर मीटिंग होगी जिसमें इस बात की समीक्षा की जाएगी कि सरकार ने अपने वादे कहां तक पूरे किए। इसके बाद किसान नेता आगे की रणनीति तय करेंगे। इन नेताओं ने कहा कि अगर वादों को पूरा नहीं किया गया तो फिर से आन्दोलन शुरू कर सकते हैं।
किसान नेताओं ने दावा किया कि अपनी मांगें मनवाने के लिए सरकार को मजबूर कर उन्होंने एक बड़ी जीत हासिल की है। केंद्र की चिट्ठी पर कृषि मंत्रालय के सचिव संजय अग्रवाल ने दस्तखत किए हैं। चिट्ठी में कहा गया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) गारंटी कानून बनाने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा। इस कमेटी में संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। इसमें यह भी कहा गया है कि पंजाब, हरियाणा, यूपी, उत्तराखंड की सरकारें आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा देने के लिए राजी हैं। इस चिट्ठी में इस बात का भी जिक्र है कि राज्य सरकारों ने किसानों के खिलाफ दर्ज सभी मामलों को वापस लेने का वादा किया है। बिजली संशोधन बिल किसान नेताओं से बातचीत के बाद संसद में लाया जाएगा। साथ ही चिट्ठी में यह भी कहा गया है कि धान की पराली जलाने के मामले में किसानों को आपराधिक मामलों से मुक्त किया जाएगा। यही वे प्रमुख मांगें हैं जिन्हें केंद्र सरकार ने लिखित में मंजूर किया है।
किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार अपने वादों से मुकरी तो किसान फिर से आंदोलन पर उतर आएंगे। एक और किसान नेता अशोक धवले ने कहा- अभी सारे सवाल खत्म नहीं हुए हैं। अभी कर्ज मुक्ति, आदिवासियों की जमीन, फसल बीमा का सवाल है। इन नेताओं की प्रतिक्रिया से यह साफ है कि वामपंथी किसान नेता और बीकेयू प्रमुख राकेश टिकैत आंदोलन स्थगित करने के लिए इच्छुक नहीं थे। हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा के मंच से किसान नेताओं ने बार-बार कहा कि सारे नेता एकजुट हैं लेकिन जैसे ही प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म हुई, किसान नेताओं के रास्ते अलग-अलग दिखाई देने लगे। भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी गुट) के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने पंजाब में चुनाव लड़ने की बात कही। उन्होंने कहा कि वे जल्द नई पार्टी बनाएंगे और पंजाब विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारेंगे। चढ़ूनी ने यह बात तब कही जब संयुक्त किसान मोर्चे की तरफ से बार-बार कहा जा रहा था कि कोई किसान नेता चुनाव नहीं लड़ेगा। वहीं शिव कुमार कक्का और डॉ. दर्शन पाल ने कहा कि जो भी किसान नेता चुनाव लड़ेगा उसे मोर्चा से अलग होना पड़ेगा।
अब जबकि किसान संगठन के नेताओं की सारी बातें मान ली गई हैं और किसान नेता इसे अपनी जीत मान रहे हैं, उनके कुछ दावों को लेकर हैरानी होती है। मुझे आश्चर्य हुआ जब कई नेताओं ने कहा कि हम एक अहंकारी तानाशाह को झुकाकर जा रहे हैं। अहंकारी सरकार कभी क्षमा याचना नहीं करती। अहंकारी नेतृत्व कभी यह नहीं कहता कि हम अपनी बात किसानों को ठीक से समझा नहीं पाए। अहंकारी तो वह होता है जो अपनी जिद पर अड़ा रहता है और उसे लोकलाज की परवाह नहीं होती। तानाशाह तो वह होता है जो ताकत के बल पर अपनी बात मनवाने के लिए आतुर रहता है, जो लाठी-गोली के दम पर आंदोलन का दमन करता है। साल भर के आंदोलन में पुलिस ने एक बार भी बल प्रयोग नहीं किया। बल्कि लालकिले पर तो हमने पुलिसकर्मियों को प्रदर्शनकारियों के हमले से पीछे हटते हुए किले के प्राचीर से खाई में गिरते देखा, पुलिसकर्मियों को घायल होते देखा। उस समय लोग यह पूछ रहे थे कि पुलिस कुछ करती क्यों नहीं।
अब जबकि आंदोलन खत्म हो गया है, किसान नेताओं को खुले दिमाग से सोचना चाहिए कि कौन अहंकारी है और कौन तानाशाह। उन्हें विचार करना चाहिए कि उन्होंने क्या मांगा और बदले में सरकार से उन्हें क्या मिला। इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि क्या उन्हें जो मिला उससे किसानों का फायदा होगा या फिर जो उन्होंने वापस लौटाया उससे किसानों का फायदा होता। किसान नेताओं को आत्ममंथन करना चाहिए कि कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए हुए इस आंदोलन से आखिरकार किसे फायदा हुआ ?