Rajat Sharma

क्या यूक्रेन से जंग की आग फैलेगी ?

akb full_frame_74900इस वक्त पूरी दुनिया में तीसरे विश्व युद्ध का खौफ है। जिस तरह से रूस ने यूक्रेन पर हमला कर उसकी घेराबंदी की है उससे खतरा बढ़ गया है। पिछले दो दिनों में रूस ने जल थल, नभ तीनों मार्ग से यूक्रेन पर हमला बोल दिया । साथ ही रूसी सेना ने यूक्रेन के कई शहरों को निशाना बनाया है। रूस की सेना यूक्रेन के काफी अंदर दाखिल हो चुकी है। इस हमले से कई शहरों में बड़े पैमाने पर तबाही हुई है। रूस के टैंक यूक्रेन की राजधानी कीव की तरफ बढ़ रहे हैं लेकिन बॉर्डर से आधे रास्ते तक की दूरी तय करने के बाद इवानकोव के पास उन्हें रोक दिया गया है।

यूक्रेन की राजधानी और अन्य शहरों पर रूसी सेना के बैलिस्टिक मिसाइलों से हुए हमले के भयावह दृश्य को पूरी दुनिया के लोगों ने देखा। शुक्रवार की सुबह रूसी सेना ने राजधानी कीव पर रॉकेट से हमले किए। यूक्रेन के विदेशी मंत्री ने इस हमले को ‘भयानक’ बताया। उन्होंने कहा कीव में इस तरह के हमले 1941 में हुए थे जब दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मन नाजी सेना ने आक्रमण किया था।

रूस और यूक्रेन की सेनाओं के बीच सूमी रीजन के ट्रॉस्ट्यानेट्स और अख़्तिरका में भीषण लड़ाई जारी है, वहीं खारकीव में भी दोनों सेनाओं के बीच जंग जारी है। रूसी सेना ने चेरनोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर कब्जा कर लिया है। साथ ही राजधानी कीव और कई अन्य शहरों में रूसी सेना दाखिल हो रही है। रूस की वायुसेना ने विलकोवो और तिरस्पोल पर हवाई हमले किए। वहीं पश्चिमी यूक्रेन में रूसी सेना ने स्टारोबिल्स्क में भारी गोलाबारी की जिससे बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। यूक्रेन के शहर गोलियों की आवाज और धमाकों से हिल गए हैं। रूसी हमले के खौफ के चलते एक लाख से ज्यादा लोगों ने यूक्रेन के शहरों से पलायन शुरू दिया है।

यूक्रेन के राष्ट्रपति के मुताबिक, रूस के हमले में यूक्रेन के सैनिकों समेत कम से कम 137 लोगों की मौत हुई है और 316 लोग घायल हुए हैं। हमले के पहले दिन रूस ने दावा किया कि उसकी सेना ने यूक्रेन के अंदर 83 टारगेट को नष्ट कर दिया। वहीं यूक्रेन का दावा है कि उसकी सेना ने खारकीव के पास रूस के चार टैंकों को तबाह कर दिया और लुहान्सक में रूस के 50 सैनिकों को मार गिराया। साथ ही यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में रूस के छह विमानों को मार गिराने का भी दावा किया। हालांकि इन सभी दावों को स्वतंत्र रूप से अभी तक वेरिफाई नहीं किया जा सका है। उधर रूस समर्थित अलगाववादियों ने दावा किया है कि उन्होंने यूक्रेन के दो विमानों को मार गिराया।

वहीं अमेरिका ने अपनी सेना को यूक्रेन में नहीं भेजने का फैसला किया है। गुरुवार की रात अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन ने कहा- ‘हमारी सेना यूक्रेन में रूस से नहीं लड़ेगी, अमेरिका पूरी ताकत से नाटो क्षेत्र की रक्षा करेगा।’ बायडेन ने अमेरिका में रूस की सभी प्रॉपर्टीज को फ्रीज करने का ऐलान किया। साथ ही चार और रूसी बैंकों पर भी प्रतिबंध लगाने की घोषणा की।

बायडेन ने रूसी हमले को पूर्व नियोजित बताते हुए आरोप लगाया कि रूस के राष्ट्रपति पिछले कई महीनों से इस हमले की योजना बना रहे थे। उन्होंने कहा, वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनने के लिए डॉलर, यूरो, पाउंड और येन में व्यापार करने की रूस की क्षमता को अमेरिका सीमित कर देगा। बायडेन ने कहा-‘पुतिन हमलावर हैं, पुतिन ने युद्ध को चुना, उन्हें और उनके देश को इसका परिणाम भुगतना होगा।’

इधर, दिल्ली में गुरुवार को यूक्रेन के राजदूत ने इस संकट को खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद मांगी। मोदी ने सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक के बाद गुरुवार रात राष्ट्रपति पुतिन से टेलिफोन पर बात की। मोदी ने पुतिन से अपील की कि तत्काल हिंसा पर विराम लगाया जाय और सभी पक्ष कूटनीतिक बातचीत और संवाद की राह पर लौटें, इसके लिए ठोस प्रयास किये जाएं।

इसके साथ ही मोदी ने पुतिन से कहा कि भारत यूक्रेन में रह रहे अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। खासतौर से छात्रों के लिए जो वहां पढ़ने गए हैं । मोदी ने कहा उन्हें वहां से सुरक्षित निकालने के प्रयासों को भारत सर्वोच्च प्राथमिकता देता है । पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी को बताया कि आखिर किन कारणों से उन्हें सैन्य कार्रवाई करने का आदेश देना पड़ा। पुतिन ने कहा कि ‘डोनबास (पूर्वी यूकैन से अलग होने वाले क्षेत्रों) में यूकैन के सैनिकों ने वहां के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई’ की है। पुतिन ने पीएम मोदी से कहा, ऐसी परिस्थितियों में, यूक्रेन के इलाके में अमेरिका तथा नाटो की सैन्य गतिविधियों का जारी रहना रूस के लिए अस्वीकार्य था और इसी कारण एक विशेष सैन्य अभियान शुरू करने का फैसला लिया गया।

गुरुवार की देर रात अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने टेलीफोन पर बातचीत की। जयशंकर ने दोनों विदेश मंत्रियों से कहा कि इस संकट के समाधान के लिए बातचीत और कूटनीति के जरिए आगे बढ़ना ही सबसे अच्छा तरीका है।

इस वक्त यूक्रेन में जमीनी हालात बिल्कुल स्पष्ट हैं। अमेरिका और उसके नाटो सहयोगी रूस को चेतावनी देते रहे, बयान जारी करते रहे लेकिन जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो उसकी मदद के लिए अपने सैनिकों को भेजने से परहेज किया। अब तक अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने केवल एक ही ठोस कदम उठाया है और वह है, रूस के खिलाफ व्यापक आर्थिक प्रतिबंध। अमेरिका के राष्ट्रपति बायडेन ने नाटो देशों की एक वर्चुअल मीटिंग बुलाई है, लेकिन इस बात की संभावना नहीं है कि रूसी सेना से मुकाबले के लिए नाटो की सेना यूक्रेन में दाखिल होगी।

अगर यूक्रेन और रूस की तुलना की जाए तो रूस के आगे यूक्रेन की ताकत बहुत कम है। यूक्रेन के पास कुल दो लाख सैनिक हैं जबकि रूस के पास 8.5 लाख सैनिक हैं। रूस के पास 544 अटैक हेलिकॉप्टर हैं, जबकि यूक्रेन के पास केवल 34 अटैक हेलिकॉप्टर हैं। वायुसेना की बात करें तो पहले से ही रूस की वायुसेना बेहतर है। टैंकों की बात करें तो रूस के पास 12,420 टैंक हैं जबकि यूक्रेन के पास करीब 2,500 टैंक हैं। युद्धपोत में भी यूक्रेन का रूस से कोई मुकाबला नहीं है। रूस के पास 772 युद्धपोत हैं, जबकि यूक्रेन के पास 73 हैं। रूस के पास एक विमानवाहक पोत, 15 डिस्ट्रॉयर (विध्वंसक) और 70 पनडुब्बी है जबकि यूक्रेन के पास न तो विमानवाहक पोत है, न डिस्ट्रॉयर है और न ही पनडुब्बी है।

यूक्रेन के मसले पर चीन ने खुले तौर पर रूस का पक्ष लिया है। इतना ही चीन ने इस संकट के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया है। उसने आरोप लगाया कि अमेरिका यूक्रेन को हथियार देकर तनाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। चीन ने इसे रूस का हमला कहने से भी इनकार कर दिया है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से इस मामले में बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि रूस और चीन दोनों के पास वीटो पावर है। यूक्रेन ने भारत से मदद मांगी जो नरेंद्र मोदी के मजबूत नेतृत्व और दुनिया में भारत की बढ़े हुए प्रभाव का सबूत है। लेकिन भारत के लिए अमेरिका और रूस में से किसी एक को चुनना बेहद मुश्किल है। रूस भारत का पुराना और परखा हुआ दोस्त है वहीं अमेरिका भारत का नया और बड़ा पार्टनर है। अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत का रणनीतिक साझेदार है। अमेरिका और भारत के संबंध नई ऊंचाई पर पहुंच गए हैं।

भारत को अब दोनों विश्व शकर्तियों के बीच संतुलन बनाना होगा। भारत का फिलहाल फोकस यूक्रेन में फंसे करीब 20 हजार भारतीयों को सुरक्षित बाहर निकालने पर है। गुरुवार की रात को ‘आज की बात’ शो में हमने उन महिलाओं को अपने बेटे और बेटियों की सुरक्षा के लिए रोते हुए दिखाया जो इस वक्त यूक्रेन में हैं। यूक्रेन में फंसे भारतीयों की मुसीबत समझी जा सकती है। उनके परिवारों का दर्द और चिंता भी जायज है लेकिन हालात ऐसे हैं, कि कोई चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता। इन छात्रों की सहायता के लिए पूर्वी यूरोप में भारतीय दूतावासों ने हेल्पलाइन खोली है। छात्रों को भारत सरकार पर भरोसा करना चाहिए। मुझे याद है कि यमन में जब हालात बेहद बुरे थे तब प्रधान मंत्री मोदी ने अपने मंत्री रिटायर्ड जनरल वी. के. सिंह को वहां भेजा था । जनरल वी के सिंह अपनी जान मुसीबत में डालकर सभी भारतीयों को सुरक्षित वापस लेकर आए थे।

यूक्रेन संकट का असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर दिखने लगा है। रूस के हमले के बाद दुनियाभर के शेयर बाजार में हाहाकार मच गया है। कच्चे तेल की कीमत में भारी उछाल आया है। इसका सीधा असर आने वाले दिनों में पेट्रोल-डीजल की कीमत पर पड़ेगा। भारत में इसके गंभीर परिणाम होंगे और ऐसे संकेत हैं कि ईंधन की कीमतें मार्च के पहले सप्ताह तक बढ़ सकती हैं।

दरअसल, रूस ने यूक्रेन में अपनी सैन्य शक्ति का ट्रेलर दिखाया है। सैन्य नीति के जानकारों के मुताबिक रूस के पास जो फौजी ताक़त है उसके आगे यूक्रेन की सेना का कोई मुकाबला नहीं है। अगर रूस चाहे तो चौबीस घंटे में यूक्रेन पर कब्जा कर सकता है लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। पुतिन ने इसे ‘स्पेशल ऑपरेशन’ का नाम दिया। साथ ही पुतिन ने यह भी कह दिया कि उन्हें अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के एक्शन की फिलहाल कोई परवाह नहीं है। पुतिन का मकसद है नाटो की सेनाएं उनके दरवाजे तक न आएं। क्योंकि रूस के दबाव को कम करने के लिए यूक्रेन नाटो का सदस्य बनने की कोशिश कर रहा था और पुतिन नहीं चाहते कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बने।

पुतिन इस बात पर अड़े हुए हैं कि यूक्रेन इस बात का ऐलान करे कि वह कभी नाटो का सदस्य नहीं बनेगा। पुतिन का यह दबाव एक सीमित उद्देश्य के लिए है ताकि नाटो की सैन्य शक्ति रूस के आसपास नहीं पहुंच पाए। पुतिन इस बात का भी फायदा उठा रहे हैं कि उनसे डील करने के तरीकों में जर्मनी और फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों में मतभेद हैं। लेकिन इसके साथ पुतिन यह भी जानते हैं कि रूस की सैन्य ताकत चाहे जितनी हो उसकी इकोनॉमिक पावर इतनी नहीं है कि अमेरिकी और यूरोप के प्रतिबंधों को ज्यादा वक्त तक बर्दाश्त कर सकें।

आर्थिक तौर पर पुतिन ज्यादा लंबे वक्त तक लड़ाई नहीं लड़ सकते। इसलिए लगता है कि दबाव बनाने और यूक्रेन में घुसने के बाद वो सौदेबाजी करेंगे। सौदा यही होगा कि नाटो की सेनाएं रूस के आसपास से लौट जाएं और बदले में पुतिन की फौज यूक्रेन से वापस लौट जाए। इस वक्त तो यही लगता है। लेकिन जब जंग शुरू होती है तो इसके एक्सक्लेशन (फैलने और लंबा खिंचने) की संभावना बनी रहती है। एक जरा सी गलती जंग की आग को भड़का सकती है। इसलिए अभी वेट एंड वॉच की स्थिति रखनी होगी। इससे ज्यादा कहना जल्दीबाजी होगी।

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