Rajat Sharma

मुस्लिमों को फ्रांस में जिहादियों द्वारा सिर कलम करने की घटना की निंदा क्यों करनी चाहिए

AKB31शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में भारत के हजारों मुसलमानों ने हिस्सा लिया। अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए उन्होंने मैक्रों के पोस्टर पर जूते बरसाए, उनकी तस्वीर को जूतों से पीटा। दरअसल, फ्रांस के राष्ट्रपति ने उन इस्लामिक जिहादियों के खिलाफ बयान दिया था जिन्होंने फ्रांस में चाकू से हमला कर 2 लोगों का सिर कलम कर दिया था और कई अन्य को घायल कर दिया था। ये हमले पैगंबर मोहम्मद के कार्टून के विरोध में किए गए थे।

जुमे की नमाज के बाद मुख्य रूप से भोपाल, मुंबई और हैदराबाद में बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर पड़े। ताज्जुब तो तब हुआ जब गुरुवार की रात 10 बजे के आसपास भोपाल के इकबाल मैदान में हजारों लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। कोरोना के वक्त में अचानक इतनी बड़ी संख्या में लोगों का एक जगह इकट्ठे होना चिंता की बात है। कांग्रेस के स्थानीय विधायक आरिफ मसूद ने पूरी प्लानिंग के तहत भीड़ जुटाई। ऐसी बातें फैलाई गईं कि फ्रांस के राष्ट्रपति ने इस्लाम की तौहीन की है, पैगंबर साहब का अपमान किया है, इसका विरोध करना होगा। लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नहीं था। मैक्रों ने इस्लामिक जिहादियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया था, जो पैगंबर के सम्मान की रक्षा के नाम पर निर्दोष लोगों का सिर कलम कर रहे थे।

भोपाल में इस विरोध-प्रदर्शन की तैयारी कांग्रेस विधायक ने पहले ही शुरू कर दी थी। फ्रांस के राष्ट्रपति इम्यैनुएल मैक्रों के फोटो छपवाए गए, फ्रांस के झंडे बांटे गए। तकरीर के लिए मंच भी तैयार किया गया। लाउडस्पीकर से अनाउंसमेंट हुआ और लोगों को विरोध प्रदर्शन के लिए बुलाया गया। पूरा ड्रामा प्री-प्लांड था और इरादा भी साफ था। एक ऐसे मुद्दे पर मुस्लिमों की भावनाओं को भड़काना जिसका भारत से कोई लेना-देना नहीं है। मंच पर भोपाल के शहर काजी मुस्ताक अहमद नदवी ने भड़काऊ भाषण देते हुए लोगों से पैगंबर की शान में गुस्ताखी करने वालों से बदला लेने को कहा। भीड़ को संबोधित करने के लिए कई मुस्लिम नेताओं और मौलानाओं को भी आमंत्रित किया गया था।

इसके तुरंत बाद आरिफ मसूद ने एक और भड़काऊ भाषण दिया और मुसलमानों को बदला लेने के लिए भड़काया। मसूद ने इस मुद्दे पर भारत सरकार के खिलाफ जहर उगला। मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों के वोटर 3 नवंबर को हो रहे चुनाव में अपना वोट डालने जाएंगे, और मसूद ने वोट के लिए इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की। शुक्रवार को भी भोपाल के इकबाल मैदान में लोगों की भारी भीड़ जुटी और इसने मैक्रों विरोधी नारे लगाते हुए फ्रांस के राष्ट्रपति के पोस्टर्स को अपने कदमों तले रौंदा। मजेदार बात यह है कि इनमें से अधिकांश प्रदर्शनकारियों को यह पता भी नहीं था कि मैक्रों कौन हैं और उन्होंने क्या बयान दिया था। उनका कहना था कि मस्जिद की तकरीर में मौलवी साहब ने कहा है कि फ्रांस में उनके प्यारे नबी का अपमान हुआ है, और वे उन्हीं की बात मानकर प्रदर्शन कर रहे हैं।

मुंबई के मुस्लिम बहुल इलाके भिंडी बाज़ार में एक स्थानीय संगठन रज़ा अकादमी ने ऐसे पोस्टर चिपकाए जिनमें लिखा था कि फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने पैगंबर का अपमान किया है और मुसलमानों को इसका बदला लेना होगा। स्थानीय पुलिस ने समय पर कार्रवाई की और इन पोस्टरों को हटा दिया, लेकिन जुमे की नमाज के बाद भीड़ मैक्रों विरोधी नारे लगाने के लिए इकट्ठा हो गई। मुंबई में भी अधिकांश प्रदर्शनकारियों को यह पता नहीं था कि मैक्रों हैं कौन।

आइए एक बार फिर से जानते हैं कि वाकई में हुआ क्या था। फ्रांस में एक टीचर ने पैगंबर मुहम्मद के एक आपत्तिजनक कार्टून को अपनी क्लास के छात्रों को दिखाया था, जिसके बाद चेचेन्या के एक युवक ने उसका सिर कलम कर दिया। पूरा फ्रांस अपने इस टीचर के साथ खड़ा हो गया, और राष्ट्रपति मैक्रों ने इस घटना को ‘इस्लामी आतंकवादी हमला’ कहते हुए इसकी कड़ी निंदा की। इसके कुछ ही दिन बाद एक ट्यूनीशियाई शख्स फ्रांस के नीस शहर के एक चर्च में घुसा और उसने ‘अल्लाहू अकबर’ का नारा लगाते हुए एक महिला का सिर कलम कर दिया और 2 अन्य की चाकू घोंपकर हत्या कर दी। बाद में गोली लगने से वह गंभीर रूप से घायल हो गया। नीस के मेयर ने इसा घटना को ‘इस्लामो-फासिज्म’ करार दिया, जबकि मैक्रों ने कहा कि फ्रांस कभी भी इस तरह के आतंकी हमलों के सामने अपने मूल मूल्यों का आत्मसमर्पण नहीं करेगा। यहां इस बात पर ध्यान देना होगा कि सभी यूरोपिय देशों में फ्रांस में सबसे ज्यादा मुसलमान हैं।

मैक्रों ने कहा, ‘अगर हम पर फिर से हमला होता है तो यह हमारे मूल्यों के प्रति संकल्प, स्वतंत्रता को लेकर हमारी प्रतिबद्धता और आतंकवाद के सामने नहीं झुकने की वजह से होगा। मैं एक बार फिर साफ-साफ कहता हूं, हम किसी भी चीज़ के सामने नहीं झुकेंगे।’ अपने इस बयान में मैक्रों ने कहीं भी ऐसी कोई बात नहीं की जिसे पैगंबर का अपमान कहा जा सके। उन्होंने केवल हर फ्रांसीसी नागरिक की धार्मिक स्वतंत्रता के बारे में बात की थी और इस्लामिक आतंकवाद की निंदा की थी। आतंकी हमलों को रोकने के लिए फ्रांस ने अब सार्वजनिक स्थानों पर 7,000 से ज्यादा सैनिकों को तैनात किया है।

मैक्रों के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कई इस्लामिक देशों ने, जिनकी अगुवाई खासतौर पर तुर्की कर रहा है, फ्रांस में बने सभी उत्पादों का बहिष्कार करने का आह्वान किया है। शुक्रवार को कई इस्लामिक देशों में मैक्रों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए। भारत की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, ‘मैं आज नीस में चर्च के भीतर हुए नृशंस हमले समेत फ्रांस में हुए हालिया आतंकी हमलों की कड़ी निंदा करता हूं। पीड़ितों के परिजनों और फ्रांस के लोगों के प्रति हमारी गहरी संवेदना है। भारत आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में फ्रांस के साथ खड़ा है।’

मेरा सवाल यह है कि फ्रांस के किसी टीचर ने कोई विवादित पोस्टर दिखाया तो इससे भारतीय मुसलमानों का क्या लेना-देना है? जिहादी हमला केवल फ्रांस या यूरोप के लिए चिंता का विषय नहीं है। पूरी दुनिया ही इस्लामिक आतंकवाद से चिंतित है, और प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में फ्रांस के साथ एकजुटता व्यक्त करके सही काम किया है। 2015 में फ्रांसीसी पत्रिका चार्ली हेब्दो के कई पत्रकारों को इस्लामिक जिहादियों ने मौत के घाट उतार दिया था, और भारत ने उस हमले की भी निंदा की थी। फ्रांस में इस हफ्ते हुई चाकूबाजी और सिर कलम करने की घटनाओं की कड़ी से कड़ी निंदा होनी चाहिए, लेकिन इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है।

अगर पैगंबर मोहम्मद साहब की फोटो दिखाने से, जिन्हें वे अपना ‘नबी’ कहते हैं, मुसलमान भाई-बहनों की आस्था को चोट पहुंचती है, तो ऐसा काम कतई नहीं होना चाहिए। उनकी भावनाओं का सम्मान होना चाहिए, इससे बोलने की आजादी खत्म नहीं हो जाती। कुरान भी ये कहता है और बाइबिल में भी ये लिखा है कि किसी का दिल दुखाना अन्याय है, लेकिन में मुसलमान भाई-बहनों से भी अपील करना चाहूंगा कि वे हत्या करने वालों का, सिर कलम करने वाले स्वयंभू जिहादियों का खुलकर विरोध करें। वे ऐसे हत्यारों को किसी भी तरह का परोक्ष या प्रत्यक्ष समर्थन न दें, क्योंकि कुरान में ये कहा गया है कि एक भी इंसान की हत्या पूरी इंसानियत की हत्या है। जीसस क्राइस्ट और मोहम्मद साहब, दोनों का संदेश यही है कि धर्म के नाम पर किसी की हत्या करना पाप है, और साथ ही धर्म के नाम पर किसी का दिल दुखाना भी पाप है। इसी पाप से दुनिया को बचाने की जरूरत है।

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