देश में कोरोना पॉजिटिव मामलों का आंकड़ा 12 लाख (कुल 11,92,915 केस) की तरफ बढ़ रहा है । दूसरी तरफ बिहार , आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों से कोरोना मामलों में भारी बढ़ोतरी की खबरें आने लगी हैं। मंगलवार को देशभर में 38,444 नए मामले दर्ज किए गए, 7.5 लाख रोगी ठीक होकर घर जा चुके हैं और 4.1 लाख एक्टिव मामले अभी भी हैं।
3,27,031 मामलों के साथ महाराष्ट्र सबसे आगे है, उसके बाद 1,80,643 मामलों के साथ तमिलनाडू है। 1,25,096 मामलों के साथ दिल्ली तीसरे नंबर पर है।
सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि कोरोना वायरस बिहार, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में तेजी से फैल रहा है।
अकेले बिहार में ही कोरोना मामलों का आंकड़ा 28,504 तक पहुंच गया है। मंगलवार को 1109 नए मामले आए हैं और अबतक 198 लोगों की जान जा चुकी है। सबसे ज्यादा बुरा हाल राजधानी पटना का है, सिर्फ पटना में कोरोना के मरीजों की संख्या चार हजार से ज्यादा हो गई है। मुजफ्फरपुर में वायरस तेजी से फैल रहा है जहां पर मंगलवार को 177 मामले दर्ज किए गए। अन्य प्रभावित जिले भोजपुर, लखीसराय, सारण, भागलपुर और नालंदा हैं।
पटना के तीन बड़े अस्पतालों में सारे इंतजाम कम पड़ रहे हैं। सोमवार को, हमने प्राइमटाइम शो ‘आज की बात’ में सरकारी हॉस्पिटल PMCH के कोरोना सस्पेक्ट वार्ड में दो दिन से मरीजों के बीच पड़ी लाश की तस्वीरें दिखाई थी। इंडिया टीवी पर तस्वीरें दिखाए जाने के बाद शवो को तुरंत हटा दिया गया था।
मंगलवार को इसी तरह का वीडियो पटना के दूसरे बड़े सरकारी अस्पताल नालंदा मेडिकल कॉलेज (NMCH) से आया। NMCH के कोरोना वार्ड में दो दिन तक एक लाश मरीजों के बीच पड़ी रही। वीडियो में दिखा कि लाश के आसपास मरीज लेटे हैं, वार्ड में डॉक्टर या नर्स नहीं दिख रहे हैं, लेकिन मरीजों के तीमारदार जरूर दिख रहे हैं।
यह कोरोना उपचार के प्रोटोकॉल का सरासर उल्लंघन है। सिर्फ पीपीई किट पहने व्यक्ति को ही कोरोना आइसोलेशन वार्ड में जाने की अनुमति है। मरीजों के रिश्तेदारों ने डॉक्टर और नर्सों से शव को हटाने के लिए कहा क्योंकि उससे बदबू आने लगी, पर कोई सुनने वाला नहीं था। जब मरीजों ने खाना पीना बंद कर दिया तो अस्पताल प्रशासन जागा और रविवार से वहां पड़े शव को चुपचाप हटा दिया।
NMCH में भर्ती एक रिटायर्ड फौजी ने हमें कुछ वीडियो भेजे जिनसे पता चलता है कि डॉक्टर और नर्सें कभी कभार ही वॉर्ड में आते हैं। एक वीडियो में दिख रहा है कि कोरोना वॉर्ड में भर्ती एक मरीज़ को सांस लेने में दिक्कत हुई, जिसके बाद उसने नर्सिंग स्टाफ से मदद मांगी, लेकिन मदद नहीं मिली। वीडियो में मरीज़ ये कहते हुई सुनाई पड़ रहा है कि उसकी सांस बंद हो रही है, मरीज कह रहा है कि उसने नर्स को बताया था कि दिक्कत हो रही है, लेकिन नर्स ने कहा कि उनसे नहीं हो पाएगा। ऐसी स्थिति में जब मरीज की हालत बिगड़ने लगी, तो कोरोना वॉर्ड में भर्ती मरीज शंकर कुमार ने दूसरे पेशेंट को CPR दिया।
कोरोना के तेजी से बढ़ते मामलों के चलते बिहार का पूरा हेल्थ सिस्टम चरमरा गया है। NMCH में, इंडिया टीवी संवाददाता नीतीश चंद्र की मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई जिसके पिता गंभीर थे। वह व्यक्ति अपने बीमार पिता के लिए अपने साथ ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर पहुंचे हुए थे। उन्होंने बताया कि अस्पताल पर उन्हें बिल्कुल भरोसा नहीं है।
इंडिया टीवी संवाददाता ने जब अस्पतालों की बदइंतजामी पर बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे से बात की तो मंत्री ने कहा कि सारे आरोप झूठे हैं। उनका तर्क था कि अगर अस्पताल में इंतजाम ठीक नहीं होते तो 300 से ज्यादा मरीज कैसे ठीक होकर घर वापस जाते।
वॉर्ड में कुत्ते घूमते हों, मरीजों के बीच लाश दो-दो दिन तक पड़ी रहे, यह किसी अस्पताल में कैसे हो सकता है। कोई नर्स किसी मरीज को तड़पता हुआ कैसे छोड़ सकती है, डॉक्टर्स मरीजों के मामले में लापरवाह कैसे हो सकते हैं, यह सुनकर दुख होता है। प्रोटोकॉल के तहत संक्रमण के खतरे की वजह से मरीज की मौत के बाद भी अस्पताल रिश्तेदारों को लाश नहीं सौंप सकता। तब बड़ा सवाल उठता है, कैसे कोई अस्पताल आइसोलेसन वार्ड में कोरोना मरीज के पास रिश्तेदार को बैठने दे सकता है? और ये बात न प्रशासन को दिखती है और न डॉक्टरों को, ये चिंता की बात है।
मेंगल पांडेजी न वीडियो मानने को तैयार हैं, और न रिपोर्टर ने जो चैक किया उसको मानने को तैयार हैं। वह तो बस 300 लोग ठीक हो गए, उसई की रट लगाए हुए हैं।
अब कोई बिहार के स्वास्थ्य मंत्री से पूछे कि जो हजारों बगैर लक्षण वाले लोग बिना अस्पताल जाए, बिना दवा खाए ठीक हो गए, क्या वो भी उन्हीं की कृपा से ठीक हो गए? क्या ये बिहार के हैल्थ सिस्टम का काम था? असल में जब मंत्री गलतियों को जानने के बाद भी, हकीकत समझने के बाद भी आंखें बंद कर लें तो यही होता है जो आज बिहार में हो रहा है। मरीज वॉर्ड में पड़ी लाशों के वीडियो बनाकर हमें भेज रहे हैं, अस्पताल में डॉक्टर्स नहीं हैं, नर्सेज नहीं हैं, मरीज के रिश्तेदार उनकी तिमारदारी कर रहे हैं जो प्रोटोकोल के बिल्कुल खिलाफ है। मंगल पांडे को सोचना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है।
एक ही कारण है, लोगों को बिहार के सिस्टम पर विश्वास नहीं हैं। और अगर ऐसे मंत्री होंगें तो विश्वास होगा भी कैसे? मरीज के रिश्तेदार खुद ऑक्सीजन का सिलेंडर लेकर हॉस्पिटल पहुंच रहे हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि लोगों को अस्पताल के इंतजामों पर यकीन नहीं है। सरकार की स्वास्थ्य सुविधाओं पर आम आदमी का भरोसा कम हुआ है। इसलिए जरूरी है कि मंगल पांडे कमियों से मुंह फेरने के बजाए इन कमियों को दूर करें तो शायद लोगों को राहत मिले।
जमीनी हकीकत ये है कि बिहार में डॉक्टरों के पास कोरोना से लड़ने के लिए मास्क, ग्लव्स और पीपीईकिट जैसी बेसिक चीजें नहीं हैं। बिहार की सरकार लोगों से खुद कोरोना टेस्ट करवाने के लिए कह रही है, लेकिन जमीनी हकीकत क्या है? टेस्टिंग के लिए लोगों की लंबी कतारें लगी हैं लेकिन टेस्ट करने के लिए कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं है।
लगता है कि केन्द्र सरकार को इस बात का अहसास हुआ है कि बिहार में कोरोना के खिलाफ जंग बिहार सरकार के बस की बात नहीं है। इसलिए अब केन्द्र सरकार ने सेन्ट्रल टीम को बिहार भेजकर हालत पर नजर रखने और राज्य सरकार को जरूरी मदद करने के आदेश दिए हैं। केंद्र की टीम के दौरे के तुरंत बाद NMCH के मेडिकल सुप्रिटेंडेंट को हटा दिया गया है।