आधिकारिक सूत्रों ने अब इस बात की पुष्टि कर दी है कि भारतीय और चीनी सैनिकों ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पैंगोंग झील और चुशुल के पास 7 से 11 सितंबर के बीच कई बार चेतावनी के तौर पर 100 से 200 राउंड गोलियां दागी थीं। यह घटना विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच मॉस्को में हुई मुलाकात के कुछ दिन पहले हुई थी। इस मुलाकात में दोनों ने तनाव को कम करने के लिए एक पांच सूत्री योजना पर सहमति व्यक्त की थी जो अभी भी कागजों पर ही है।
गोलीबारी की यह घटना तब हुई जब चीनी सैनिकों ने 7 और 8 सितंबर को भड़काऊ तरीके से पहले फायरिंग की, जिसके बाद भारतीय सैनिकों ने भी जवाबी फायरिंग करते हुए वॉर्निंग शॉट्स लगाए। भारतीय सेना के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने हमारे डिफेंस एडिटर मनीष प्रसाद को घटना के बारे में बताते हुए इस बात की पुष्टि की है। वरिष्ठ अधिकारियों ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय जवानों ने चीनी पक्ष को निशाना बनाकर वॉर्निंग शॉट्स नहीं दागे थे, लेकिन संदेश साफ था। यदि दुश्मन गोलीबारी करने का ठान ही लेता है, तो हमारी सेना के जवान उसे मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार हैं।
सेना के अधिकारियों ने खुलासा किया कि चीनी सैनिकों ने पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे से हवा में फायरिंग की क्योंकि वे कम से कम 24 फीचर्स (पहाड़ की चोटियों) से भारतीय जवानों को किसी भी कीमत पर पीछे हटाना चाहते थे। 1962 के बाद पहली बार हमारे जवानों रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण उन चोटियों पर अपनी पोस्ट बना ली है, जहां वे पहले पट्रोलिंग नहीं किया करते थे। इन चोटियों पर तैनात हमारे सैनिक अब चीनी टुकड़ी की हरकतों पर लगातार नजर रख सकते हैं।
इंडिया टीवी को पता चला है कि जब हमारे जवान फिंगर थ्री के पश्चिमी हिस्से की तरफ बढ़ रहे थे, तो उसी दौरान चीनी सैनिक फिंगर 3 और फिंगर 4 के बीच के इलाके को कब्जा करने, उसको डॉमिनेट करने की नीयत से आगे बढ़ रहे थे। इस उकसावे वाली कार्रवाई के चलते लगभग 100-200 राउंड गोलियां हवा में दागी गईं। पहले चीन की तरफ से ताबड़तोड़ फायरिंग की गई, जिसका मुंहतोड़ जवाब देते हुए हमारे जवानों में भी वॉर्निंग शॉट्स दागे।
हमारे डिफेंस एडिटर के मुताबिक, पहली बार 7 सितंबर को चुशूल सब सेक्टर में गोलियां चलीं, जबकि पैंगोंग झील पर फायरिंग की घटना 8 सितंबर को हुई थी। हमारे जवानों को अतिक्रमण के लिए आगे आ रहे चीनियों को पीछे धकेलने के लिए फायरिंग करनी पड़ी। इस घटना के 2 दिन बाद 10 सितंबर को दोनों विदेश मंत्री मॉस्को में मिले थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमारे सशस्त्र बलों को जवाबी कार्रवाई के लिए हालात के हिसाब से फैसले लेने की छूट दे रखी है। शर्त सिर्फ इतनी है कि: हमारे जवानों पहले फायर नहीं करेंगे, वे एलएसी क्रॉस नहीं करेंगे, लेकिन अगर दुश्मन गड़बड़ी करता है तो ऐक्शन लेने में देरी भी नहीं करेंगे। चीन के जनरलों को यह अंदाजा हो गया है कि उनकी कोई भी चाल काम नहीं आ रही है। इसलिए वे अब युद्धाभ्यास के पुराने वीडियो जारी करके प्रॉपेगेंडा वॉर का सहारा ले रहे हैं।
बुधवार को जारी किए गए युद्धाभ्यास के वीडियो में से एक के बारे में दावा किया गया कि ये वीडियो वेस्टर्न सिचुआन प्रोविंस का है जहां पर चीनी PLA की 77वीं ग्रुप आर्मी ने आर्मर यूनिट, एयर डिफेंस और आर्टिलरी यूनिट के साथ लाइव फोर्स कंफ्रंटेशन एक्सरसाइज को अंजाम दिया। इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी कि यह युद्धाभ्यास कब हुआ। चीनी सेना के फाइटर एयरक्राफ्ट और अटैक हेलिकॉप्टर्स के अधिकांश वीडियो एडिटेड होते हैं।
चीनी सेना इस बात पर भी फर्जी प्रॉपेगेंडा फैला रही है कि भारत के जवान सब जीरो टेंपरेचर के साथ-साथ कोरोना वायरस की चुनौती का भी सामना करेंगे। हमारे डिफेंस एडिटर ने चीन के इस झूठ का पर्दाफाश करते हुए विजुअल्स भेजे हैं कि भारतीय सेना किस तरह प्रभावी तरीके से फॉरवर्ड बेस पर सभी जवानों और अफसरों की स्क्रीनिंग को अंजाम दे रही है। एक स्पेशल ट्रांजिट फैसिलिटी का निर्माण किया गया है जहां अफसरों और जवानों की फिजिकल स्क्रीनिंग के साथ-साथ उनके सामान की भी जांच होती है। पूरी तरह से मेडिकली सर्टिफाई होने के बाद ही इन जवानों को फॉरवर्ड पोस्ट पर आगे जाने की इजाजत दी जाती है।
कुल मिलाकर हालत कुछ ऐसी दिखती है: चीन की सेना आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए है, हम कोरोना वायरस महामारी से लड़ रहे हैं, और हमारे अफसरों और जवानों को सब-जीरो टेम्परेचर में लड़ाई के लिए तैयारी करनी पड़ रही है। यह सब आसान नहीं है लेकिन हमारे उन अफसरों और जवानों के जज्बे को सलाम है जो दुश्मन से टकराने के लिए बेताब हैं।
मैंने कई ऐसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों से बात की जो लद्दाख के बर्फीले इलाकों में काम कर चुके हैं। उनमें से एक ने बहुत ही दिलचस्प बात बताई। उन्होंने कहा कि चीन भले ही कितना भी प्रॉपेगेंडा कर ले, लेकिन उनके जनरल्स यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि उनके युवा अफसरों और जवानों में वह जज्बा नहीं है जो पहाड़ की चोटियों पर लड़ाई लड़ने के लिए जरूरी है। उनके अंदर अपने देश, अपनी सेना के लिए लड़ने-मरने का जज्बा ही नहीं है।
सेना के रिटायर्ड अफसर ने इसकी वजह भी बताई कि युवा चीनी अफसरों और जवानों में अपने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने का जज्बा क्यों नहीं है। उन्होंने कहा कि चीन में ज्यादातर युवा अफसर और जवान मजबूरी के चलते सेना में शामिल होते हैं। चीन में सभी युवाओं के लिए सेना में शामिल होना अनिवार्य है। इनमें ऐसे भी युवा शामिल हैं जो चीन के अमीर परिवारों से ताल्लुक रखते हैं और विलासिता का जीवन जीने के आदी है। फिर भी उन्हें एक निश्चित अवधि के लिए सेना में अपनी सेवाओं देनी पड़ती हैं। ये युवा अफसर और जवान अपनी जल्दी-जल्दी अपना कंपलसरी पीरियड पूरा करके ऐशो-आराम की अपनी उस जिंदगी में वापस लौटना चाहते हैं जिसके वे आदी हैं।
यही वजह है कि उनके अंदर देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने का जज्बा ही नहीं है। दूसरी ओर, हमारे युवा अफसरों और जवानों का मनोबल हमेशा ऊंचा रहता है। वे अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए मौत से भी लड़ने के लिए तैयार रहते हैं। ये जोश, ये हौसला, ये जज्बा हमारी फौज की सबसे बड़ी ताकत है। देश अपने उन बहादुर अफसरों और जवानों को सलाम करता है जो हमारी सीमाओं की रक्षा के लिए वहां तैनात हैं।