
पूरे नेपाल में दो दिन की आगज़नी, तोड़फोड़, फायरिंग के बाद अब बेचैनी से भरी शांति है. नेपाली सेना काठमांडू और अन्य शहरों में सभी महत्वपूर्ण स्थानों की सुरक्षा के लिए तैनात है. सेना ने गुरुवार सुबह तक लगातार कर्फ्यू लगा दिया है. नेपाल के सेनाध्यक्ष ने छात्र नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया है.
   नेपाल में इस समय करीब 2,500 भारतीय फंसे हुए हैं. सभी से कहा गया है कि वे स्थिति सामान्य न होने तक सड़कों पर बाहर न निकलें.
   नेपाल में आग भड़कने की दो मुख्य  वजह हैं, भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर बैन से आजादी खोने का खतरा. नेपाल में प्रधानमंत्री के.पी. ओली के इस्तीफे के बाद युवाओं को शांत हो जाना चाहिए था, लेकिन आंदोलनकारियों पर फायरिंग ने आग में घी डालने का काम किया.
    नेपाल की सड़कों पर मंत्रियों और नेताओं को पीटा गया. उनके घरों को आग लगाई गई. इसकी वजह लोगों के दिलोदिमाग में बरसों से जल रही आग है. नेपाल को कभी टिकाऊ सरकार नहीं मिली. 17 साल में 14 बार सरकारें बदलीं. के.पी. ओली चार बार प्रधानमंत्री बने. सरकारें जनमत से नहीं, जोड़तोड़ से बनी. कोई भारत विरोधी भालनाओं का फायदा उठा कर सत्ता में आया, तो किसी ने  चीन समर्थक होने की चाल चली.
   नेपाल के लोगों को जब ये एहसास हुआ कि ये लोग जनता की भावनाओं को भड़काते हैं, खुद ऐशोआराम की जिंदगी जीते हैं, देश को लूटते हैं तो लोगों के दिलों में गुस्सा बढ़ा. सोशल मीडिया के जरिए ये बात घर-घर पहुंच गई और मौका मिलते ही ये नाराजगी फूट पड़ी. इसीलिए मुख्य राजनीतिक दलों में लोगों का विश्वास नहीं रहा.
    नेपाल में तख्तापलट तो हो गया लेकिन अब नेपाल को कौन चलाएगा, नया नेता कौन होगा, नई सरकार का स्वरूप क्या होगा, ये सवाल सबके मन में हैं.
    दो विकल्प हैं, या तो सेना सारी सत्ता अपने हाथ में ले या फिर किसी नए नेता की अगुआई में सरकार का गठन हो. नए नेता के तौर पर काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह के नाम की खूब चर्चा है. नेपाल की युवा पीढ़ी rapper से राजनेता बने बालेंद्र शाह की समर्थक है. बालेंद्र शाह ने  2022 में निर्दलीय के तौर पर काठमांडू के मेयर का चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया था. उनकी छवि एक अच्छे प्रशासक की है. बालेंद्र शाह के मेयर रहते हुए कई ऐसे काम हुए हैं, जिनसे राजधानी में प्रशासन बेहतर हुआ. बेदाग छवि और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख के चलते बालेंद्र शाह लोगों के बीच, खासकर युवा पीढ़ी में खासे लोकप्रिय हैं. बालेंद्र शाह अपने समर्थकों से जुड़ने के लिए पारंपरिक मीडिया के बजाय सोशल मीडिया पर खासे सक्रिय रहते हैं, जिससे युवा पीढ़ी उनसे जुड़ी. कहा तो ये भी जा रहा है कि नेपाल में जो आंदोलन हुआ उसके पीछे बालेंद्र शाह ही थे.
   सवाल ये है कि इस आंदोलन के पीछे कोई नेता या संगठन नहीं हैं, फिर भी इतने सारे नौजवान इकट्ठा कैसे हुए ? राष्ट्रपति भवन से संसद तक कैसे पहुंचे? इनपर किसी का काबू नहीं है. इसीलिए इस आंदोलन के पीछे कौन है ? इसे लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं.
   क्या अमेरिका ने ये करवाया क्योंकि ओली का झुकाव चीन की तरफ है ? क्या नेपाल में राजशाही को वापस लेने की मांग करने वालों ने ये आंदोलन करवाया ? क्या चीन ने युवाओं को भड़काया, क्योंकि नेपाल में अमेरिका का पूंजीनिवेश बढ़ने लगा है ?
  मुझे लगता है ये सारी बातें महज़ अटकलें हैं. नेपाल में जो आग की लपटें दिखाई दे रही हैं, उनके पीछे जन आक्रोश है, व्यवस्था से नाराजगी है. जनता ने सबको मौका देकर देख लिया. वामपंथियों को, माओवादियों को और दक्षिणपंथियों को, लेकिन सबके सब भ्रष्ट निकले. वहां के  सोशल मीडिया मे भ्रष्टाचार की बड़ी चर्चा है. जैसे, Airbus से विमान खरीदे गए, उसमें भ्रष्टाचार हुआ लेकिन लाख शोर मचाने के बावजूद कोई एक्शन नहीं हुआ. दूसरा, बड़े  नेताओं के बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं जबकि नेपाल के लोगों के लिए न अच्छे स्कूल हैं, न कॉलेज.
   ऐसी सारी बातें लोगों के दिलों में घर करती रहीं और नतीजा ये हुआ कि जब एक बार आग लगनी शुरू हुई तो उसने बुझने का नाम नहीं लिया. पुलिस ने लोगों के सामने हथियार डाल दिए और फौज ने balancing रोल अपनाया.
   आज की तारीख में सारी उम्मीद फौज पर है क्योंकि नेपाल में स्थिति सामान्य होने की बहुत जरूरत है. फौज ये काम या तो अपील करके कर सकती है या फिर सख्ती से.
उपराष्ट्रपति चुनाव का नतीजा : विपक्ष के लिए झटका
    सी. पी. राधाकृष्णन देश के 15वें उपराष्ट्रपति होंगे. उपराष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार राधाकृष्णन ने INDIA अलायंस के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को 152 वोटों के अंतर से हराया. राधाकृष्णन को 452 वोट और रेड्डी को 300 वोट मिले.    ये नतीजा विपक्ष के लिए जितना बड़ा झटका है, NDA के लिए उतना ही बड़ा बूस्टर है क्योंकि चुनाव में NDA पूरी तरह एकजुट रहा, जबकि विपक्ष के सासंदों ने पाला बदला, क्रॉस वोटिंग की.
     विपक्ष के कम से कम 14 सांसदों ने क्रॉस वोटिंग की. चुनाव में राज्यसभा और लोकसभा के कुल 781 सासंदों को वोट देना था. इनमें से 767 सांसदों ने वोट डाले जिसमें 752  वोट सही पाये गये, 15 वोट अवैध घोषित हुए. एनडीए के पास 427 सांसद थे, इसके अलावा  जगनमोहन रेड्डी की पार्टी YSRCP के 11 सांसदों ने भी एनडीए के पक्ष में वोटिंग की.
    इस हिसाब से एनडीए के पास कुल 438 वोट थे लेकिन राधाकृष्णन को कुल 452 वोट मिले. इसका मतलब ये है कि विपक्ष के 14 सांसदों ने एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की.
   चुनाव NDA जीतेगा इसमें किसी को कोई शक नहीं था. जब चुनाव प्रक्रिया शुरु हुई, NDA के पास INDIA bloc के मुकाबले 103 वोट ज्यादा थे लेकिन मोदी के उम्मीदवार राधाकृष्णन ने राहुल गांधी के bloc से 152 वोट ज्यादा पाकर सबको चौंका दिया.
  कांग्रेस और उसके साथी दलों के नेता TV और Social Media पर चुनाव में अपनी जीत के दावे कर रहे थे, NDA सांसदों से Cross voting करवाने की बड़ी बड़ी बातें कह रहे थे.
   कुछ लोगों ने तो यहां तक लिखा कि राहुल गांधी मलेशिया में TDP और JDU के नेताओं से secret meeting करने गए थे, वो भी scooter पर बैठ कर. ये बातें जितनी बेसिर-पैर की दिखाई दे रही थी, उससे कहीं ज्यादा फ़िज़ूल की निकली. दांव उल्टा पड़ गया. INDIA bloc के अपने सांसद टूट गए, cross voting कर दी.
    अब राहुल गांधी और उनके managers को ये पता करने में कई महीने लग जाएंगे कि उनके कौन-कौन से सांसदों ने उनका साथ छोड़ दिया और मोदी के उम्मीदवार को वोट दे दिया.
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