बिहार के सारण जिले के छपरा में ज़हरीली शराब पाकर मरने वालों की संख्या गुरुवार को बढ़कर 39 हो गई। अधिकारियों ने कहा कि कई परिवार सख्त शराबबंदी कानून लागू होने के कारण अपने यहां हुई मौतों के बारे में सूचना देने से कतरा रहे हैं। ज्यादातर पीड़ित मशरक और इसुआपुर इलाकों से हैं।
बुधवार को बिहार विधानसभा के अंदर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एक ऐसा रूप दिखा, जो पहले कभी नहीं देखा गया था। गुस्से में चिल्लाते हुए नीतीश ने विपक्षी बीजेपी के नेताओं से कहा, ‘तुम सभी को क्या हो गया है? तुम सब झूठ बोल रहे हो। तुम जो मांग कर रहे हो और कर रहे हो, वह गंदी राजनीति है। याद रखो कि तुम (शराबबंदी के समर्थन में) पहले क्या कहते थे।’
आम तौर पर शांत रहने वाले नीतीश कुमार गुस्से से कांप रहे थे और विपक्ष में बैठे बीजेपी नेताओं पर चिल्ला रहे थे। उन्होंने कहा: ‘तुम सब शराबी हो गए हो…तुम्हीं सब बिहार में गड़बड़ी कर रहे हो….तुम सब बरबाद हो जाओगे।’
बिहार के लोगों ने नीतीश कुमार को पहली बार इतनी कठोर भाषा का इस्तेमाल करते हुए देखा। विपक्ष ने जहरीली शराब से हुई मौतों पर चर्चा के लिए सदन में नोटिस दिया था, जिसे नामंजूर कर दिया गया। जैसे ही विपक्षी सदस्यों ने अपनी मांग को लेकर हंगामा शुरू किया, नीतीश कुमार अपना आपा खो बैठे और विपक्षी सदस्यों का खुलकर अपमान किया।
नीतीश कुमार अपनी शालीनता के लिए जाने जाते हैं, अनुभवी नेता हैं। वह जानते हैं कि सदन में आमतौर पर ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता। उकसावे की शुरुआत तब हुई, जब कुढ़नी से विधानसभा उपचुनाव में जीते बीजेपी नेता केदार गुप्ता के शपथ लेते समय बीजेपी के सदस्य ‘कुढ़नी तो झांकी है, पूरा बिहार बाकी है’ का नारा लगाने लगे।’
नीतीश कुमार पहले तो शांत रहे, लेकिन जब बीजेपी के नेताओं ने क्वेश्चन आवर में छपरा में जहरीली शराब से मौतों के मुद्दे पर चर्चा की मांग खारिज होने पर वेल में आकर नारेबाजी शुरू की, तो उन्होंने आपा खो दिया। बीजेपी के नेता शराबबंदी के फेल होने, और माफिया को संरक्षण देकर शराब की कालाबाजारी को बढ़ावा देने का इल्जाम लगा रहे थे।
जब स्पीकर बीजेपी के विधायकों से शांत होने की अपील कर रहे थे, अपनी सीट पर वापस जाने को कह रहे थे, उसी वक्त नीतीश कुमार अचानक उठे और चिल्लाने लगे। नीतीश ने कहा कि जब बिहार में शराबबंदी का फैसला हुआ, तब बीजेपी के नेता साथ में थे, लेकिन ‘अब तुम सब शराब पीने लगे हो, शराबी हो गए हो, बहुत गंदा काम कर रहे हो, इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।’ उन्होंने स्पीकर से विपक्ष के सभी नेताओं को सदन से निकालने की मांग की। आमतौर पर शांत रहने वाले नीतीश गुस्से में कांप रहे थे, और उनका यह रुख देखकर पूरा सदन हैरान रह गया था।
नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ने कहा कि विपक्ष के सदस्यों का अपमान करने के लिए मुख्यमंत्री को माफी मांगनी चाहिए। विजय सिन्हा ने आरोप लगाया कि बिहार में अपराधी, गैंगस्टर और माफिया ‘जंगल राज’ को बढ़ावा मिल रहा है।
इसके बाद नीतीश कुमार फिर से भड़क गए और विजय सिन्हा से कहा, ‘तुम पूरी तरह बर्बाद हो जाओगे। सबको पता है कि तुम कैसे जीते हो, और कौन गया था तब तुम्हारी जीत हुई थी।’ नीतीश कुमार दरअसल यह कहना चाहते थे कि विजय सिन्हा के क्षेत्र में वह प्रचार करने गए थे, इसीलिए चुनावों में उनकी जीत हुई थी।
बीजेपी के नेताओं ने बाद में सदन के बाहर धरना दिया और आरोप लगाया कि बिहार में शराब माफिया कुछ ताकतवर लोगों के संरक्षण में काम कर रहा है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी, जिन्होंने नीतीश के साथ 15 साल तक बतौर उपमुख्यमंत्री काम किया, ने कहा, ‘नीतीश कुमार पहले तो ऐसे नहीं थे। पता नहीं उनको क्या हो गया है। उम्र का असर है या हालात का, कह नहीं सकते। लेकिन नीतीश का यह रूप देखकर हैरानी होती है।’
नीतीश कुमार ने पिछले कुछ महीनों में कई बार संयम खोया है। वहीं, लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव विधानसभा में खामोश रहे। उन्होंने बाद में बेहद सधे हुए अंदाज में नीतीश कुमार का बचाव किया। उन्होंने कहा, ‘शराबबंदी की शपथ तो बीजेपी के नेताओं ने भी ली थी। शराबबंदी के फैसले के वक्त बीजेपी भी सरकार में शामिल थी। उनके वक्त भी जहरीली शराब से मरने की घटनाएं होतीं थीं, लेकिन तब बीजेपी ने ऐसा हंगामा क्यों नहीं किया। बीजेपी के मंत्री के घर से भी शराब बरामद हुई थी।’
तेजस्वी यादव को बीजेपी पर इल्जाम लगाने का पूरा हक है। उनकी यह बात सही है कि जिस वक्त बिहार में शराबबंदी का फैसला हुआ था, उस वक्त बीजेपी नीतीश कुमार के साथ सरकार में शामिल थी। लेकिन यह भी सही है कि जब पहले बिहार में जहरीली शराब पीकर लोगों की जान गई थी, उस वक्त तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी के नेताओं ने भी नीतीश कुमार की सरकार पर सवाल उठाए थे। 2 साल पहले, नंबवर 2020 की बात है। उस वक्त तेजस्वी यादव विपक्ष के नेता थे, और बीजेपी सरकार में थी। उस वक्त नीतीश कुमार ने तेजस्वी को इसी तरह डांटा था। उन्होंने कहा था, ‘दोस्त का लड़का है इसलिए सुनता रहता हूं, लेकिन अब बहुत हो गया।’
जहरीली शराब से बड़ी संख्या में लोगों की मौत निश्चित रूप से चिंता की बात है। ये सरकार और प्रशासन की नाकामी है। पिछले एक साल में बिहार में करीब 100 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हुई है। पिछले साल अगस्त में सारण जिले में जहरीली शराब से 9 लोगों की मौत हुई थी और 17 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी। इसी साल 21 मार्च को भागलपुर, बांका और मधेपुरा में नकली शराब पीने से 37 लोगों की जान चली गई थी। पिछले साल 5 नंबवर को मुजफ्फरपुर और गोपालगंज में 24 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने की वजह से हुई थी। ये तो वे मामले हैं जिनकी रिपोर्ट हुई, जो चर्चा में आ गए। ऐसे न जाने कितने मामले होंगे जिनके बारे में पीड़ित परिवार शराबबंदी कानून के तहत कार्रवाई के डर से अपनों की मौत की सूचना भी नहीं देते।
चूंकि इस तरह की घटनाएं लगातार हो रही हैं, इसलिए नीतीश कुमार के फैसले पर सवाल उठाना कोई गलत बात नहीं है। जब नीतीश ने शराबबंदी का फैसला किया था, उस वक्त RJD ने इसका विरोध किया था। तेजस्वी यादव शराबबंदी का विरोध करते हुए कहते थे, ‘बिहार में शराबबंदी है, लेकिन शराब की होम डिलीवरी हो रही है। घर-घर शऱाब मिल रही है। शराबबंदी कानून भ्रष्ट पुलिसवालों के लिए वसूली का जरिया बन गया है।’
हालांकि नीतीश कुमार शराबबंदी के मुद्दे पर अडिग हैं। उन्होंने गुरुवार को कहा, शराबबंदी मेरी व्यक्तिगत इच्छा से लागू नहीं की गई, बल्कि राज्य की महिलाओं के अनुरोध पर इसे लागू किया गया। पिछली बार जब जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत हुई थी, तो कुछ लोगों ने कहा था कि पीड़ितों को मुआवजा दिया जाना चाहिए। अगर कोई जहरीली शराब पीएगा तो वह मरेगा ही। इसकी मिसाल हम सबके सामने है। ऐसी मौतों पर शोक व्यक्त किया जाना चाहिए और नकली शराब के बारे में जागरूकता फैलाई जानी चाहिए। लोगों को इसके बारे में समझाना होगा।’
नीतीश कुमार ने गुरुवार को कहा कि उन्होंने अधिकारियों को अवैध शराब की बिक्री में शामिल गरीब लोगों को न पकड़ने का निर्देश दिया है। नीतीश ने कहा, ‘अवैध शराब बनाने वाले और शराब का कारोबार करने वाले लोगों को पकड़ना होगा।’
लेकिन खुद नीतीश कुमार के सहयोगियों की राय अलग है। RJD नेता और पूर्व मंत्री सुधाकर सिंह ने मांग की कि शराबबंदी कानून को वापस लिया जाए और लोगों में जागरूकता फैलाने पर जोर दिया जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि भ्रष्ट पुलिसकर्मी ही अवैध शराब के व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं, और शराबबंदी कानून के उल्लंघन के बढ़ते मामलों के की वजह से कोर्ट पर भी प्रेशर बढ़ रहा है।
नीतीश कुमार के सियासी विरोधी और केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार किसी टेंशन में हैं, फ्रस्टेशन में हैं। अब यह फ्रस्ट्रेशन राजनीतिक मजबूरियों का है, या फिर तेजस्वी को कुर्सी सौंपने का, यह कहना मुश्किल है।’
पिछले कुछ दिनों से नीतीश कुमार बार-बार कह रहे हैं कि अब तेजस्वी यादव को ही सारा काम करना है, बिहार की सरकार उन्हीं को संभालनी है। नीतीश की पार्टी में तो यहां तक चर्चा है कि वह JDU का RJD में विलय कर सकते हैं। जाहिर-सी बात है कि इस सुगबुगाहट से नीतीश की पार्टी के कई नेता परेशान हैं। उनमें सबसे बड़ा नाम उपेंद्र कुशवाहा हैं, जो नीतीश की ही तरह कुर्मी समुदाय के नेता हैं। उपेंद्र कुशवाहा ने बुधवार को कहा, ‘किसी ने आधिकारिक तौर पर (विलय के बारे में) कुछ नहीं कहा है, न ही हमारे पार्टी फोरम पर कोई चर्चा हुई है, लेकिन अगर कोई JDU का RJD में विलय करना चाहता है तो यह एक आत्मघाती कदम होगा।’
उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार के पुराने साथी हैं, लेकिन कुछ साल पहले दोनों के रास्ते अलग हो गए थे। उन्होंने अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बनाई और NDA के साथ चले गए। वह मोदी की पहली सरकार में मंत्री बने, और जब मोदी की दूसरी सरकार में मंत्री पद नहीं मिला तो NDA छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का JDU में विलय कर दिया, और नीतीश ने उन्हें JDU संसदीय बोर्ड का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया। नीतीश की ही तरह उपेंद्र भी कुर्मी समाज से आते हैं, और उन्हें लगता था कि नीतीश के बाद वही उनके उत्तराधिकारी होंगे। लेकिन अब नीतीश अचानक तेजस्वी को आगे बढ़ाने लगे हैं, JDU को RJD में मर्ज करने की बात हो रही है। इसके चलते उपेंद्र कुशवाहा को अपने सियासी मुस्तकबिल की चिंता सता रही है।
बीजेपी के नेता सुशील मोदी ने दावा किया कि RJD और JDU का विलय तय है क्योंकि नीतीश के साथ आने के लिए लालू यादव ने यही शर्त रखी थी। उन्होंने नीतीश से पहले ही कह दिया था कि बिहार को तेजस्वी के हवाले करके वह राष्ट्रीय राजनीति में जाएं। सुशील मोदी ने कहा, ‘अब JDU के नेताओं को अपना भविष्य खुद देखना होगा। आने वाले दिनों में JDU के अंदर विद्रोह की स्थिति पैदा होने वाली है। JDU के अंदर खलबली मची हुई है, लोग नहीं चाहते कि उनका विलय हो। वे नहीं चाहते हैं कि तेजस्वी के नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ें। इसलिए आगे आने वाले कुछ महीनों के अंदर बिहार की राजनीति में कई भूचाल आने वाले हैं।’
सुशील मोदी की ही बात को बीजेपी के एक अन्य नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा, ‘नीतीश ने 2025 तक अपनी गद्दी सुरक्षित कर ली है। अब JDU के दूसरे नेता देखें कि उनका भविष्य कहां सुरक्षित रहेगा। अब RJD JDU को ठग रही है या JDU RJD को, यह पता नहीं चल रहा है। लेकिन मैं JDU के लोगों से कहूंगा कि 2025 का उनका भविष्य किसके हाथ में है, वे उसकी चिंता शुरू कर दें।’
RJD के नेता शिवानंद तिवारी ने कहा, ‘नीतीश कुमार 2005 से ही बिहार के मुख्यमंत्री हैं। अब अगर वह तेजस्वी को गद्दी सौंपने की बात कर रहे हैं, तो इसमें गलत क्या है? तेजस्वी यादव खुद को साबित कर चुके हैं, इसलिए वह चीफ मिनिस्टर की कुर्सी के स्वाभाविक दावेदार हैं।’
यह सही है कि लोगों ने नीतीश कुमार को पहली बार इस तरह से गुस्से में कांपते हुए देखा। उन्होंने अपना संयम क्यों खोया, इसे समझने की जरूरत है। इसकी दो वजहें हैं।
पहली, नीतीश कुमार ने 6 साल पहले बिहार में शराबबंदी का कानून तो बना दिया, पर जमीन पर उसे लागू नहीं करवा पाए। बिहार में आज भी आसानी से शराब मिल जाती है, बस पास में पैसे होने चाहिए। चूंकि गरीब लोग ज्यादा कीमत की शराब खरीद नहीं सकते, इसलिए वे कच्ची, नकली, जहरीली शराब खरीदते और पीते हैं। पहले पहले RJD कहती थी कि शराबबंदी लागू नहीं कर सकते तो कानून को वापस ले लीजिए, अब वही बात BJP कहती है। पहले वह बीजेपी पर निर्भर थे, अब उनकी सरकार RJD के सहारे चल रही है। और इस तरह नीतीश दोनों तरफ से फंस जाते हैं।
दूसरी, नीतीश इसलिए भी फ्रस्टेट हैं क्योंकि वह जानते हैं कि अब थोड़े दिनों में उनकी कुर्सी जा सकती है। उन्हें तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाना ही पड़ेगा। नीतीश कुमार मजबूर हैं। न तो वह तेजस्वी से नाराजगी जता सकते हैं, और न ही अपनी कुर्सी बचा सकते हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की राजनीति का सहारा लेने की कोशिश की थी, लेकिन वह बहाना भी हवा हवाई हो गया। विरोधी दलों में प्रधानमंत्री पद के दावेदारों की फेहरिस्त बहुत लंबी है, और उसमें नीतीश कुमार का नाम काफी नीचे है। अब नीतीश जाएं तो कहां जाएं। वह पिछले 17 साल से बिहार के मुख्यमंत्री हैं।
नीतीश कुमार सियासत के माहिर खिलाड़ी हैं और वह हर बार पलटी मारकर अपनी कुर्सी बचाते रहे। लेकिन अब पलटी मारने का सारा स्टॉक खत्म हो चुका है। अब पाला बदलने की कोई गुंजाइश नहीं बची, ऐसे में क्रोध आना, आपा खोना स्वाभाविक है।
मैं नीतीश कुमार को पिछले कई दशकों से जानता हूं। वह व्यवहार में शालीनता रखने वाले, मुस्कुराकर अपनी बात कहने वाले नेता रहे हैं। मैंने उन्हें कभी गुस्से में नहीं देखा है। लेकिन लगता है कि राजनैतिक मजबूरियों ने उन्हें बहुत परेशान कर दिया है। जिस बीजेपी से उन्होंने दामन छुड़ाया था, वह एक के बाद एक चुनाव जीतती जा रही है। जिन नरेंद्र मोदी का साथ नीतीश कुमार ने छोड़ा, वह 2024 की रेस में सबसे आगे दिखाई दे रहे हैं। गुजरात में मोदी की ऐतिहासिक जीत नीतीश कुमार को यकीनन काफी चुभती होगी।