Rajat Sharma

द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति चुना जाना एक खास संदेश देता है

akb fullगुरुवार का दिन भारत के लिए गौरवशाली रहा, जब द्रौपदी मुर्मू भारत की 15वीं राष्ट्रपति चुनी गईं। वह सर्वोच्च संवैधानिक पद पर निर्वाचित होने वाली पहली आदिवासी महिला हैं। मुर्मू सोमवार, 25 जुलाई को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करने पर एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को ट्वीट कर बधाई दी। मोदी ने ट्विटर पर लिखा, ‘भारत ने इतिहास रच दिया है। ऐसे समय में जब 1.3 अरब भारतीय आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, पूर्वी भारत के एक सुदूर हिस्से में पैदा हुई आदिवासी समुदाय की एक बेटी हमारी राष्ट्रपति चुनी गई है! श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी का जीवन, उनके शुरुआती संघर्ष, उनकी उत्कृष्ट सेवा और उनकी अनुकरणीय सफलता प्रत्येक भारतीय को प्रेरित करती है। वह हमारे नागरिकों, खासकर गरीबों, वंचितों और दलितों के लिए आशा की किरण बनकर उभरी हैं।’

मोदी ने राष्ट्रपति चुनाव का नतीजा आने के बाद द्रौपदी मुर्मू से उनके घर जाकर मुलाकात की और उन्हें जिस तरह से सम्मानित किया, वह देखने लायक था। मोदी जब द्रौपदी मुर्मू के घर से निकल रहे थे तो मुर्मू उन्हें विदा करने बाहर तक आईं । प्रधानमंत्री ने उनके साथ वहीं खड़े होकर फोटो खिंचवाई, और इसके बाद जब तक वह अंदर नहीं गईं तब तक प्रधानमंत्री वहीं खड़े रह कर इंतजार करते रहे। मुर्मू के घर के अंदर जाने के बाद ही मोदी अपनी गाड़ी में बैठे।

मुर्मू को इलेक्टोरल कॉलेज के 64.03 फीसदी वोट मिले, जबकि उनके दावेदार यशवंत सिन्हा को 35.97 फीसदी वोट मिले। मुर्मू को 540 सांसदों और 2,284 विधायकों के वोट मिले। उन्हें नागालैंड, सिक्किम और आंध्र प्रदेश से 100 फीसदी वोट मिले। 18 राज्यों के 126 विधायकों और 17 सांसदों ने भारी क्रॉस वोटिंग करते हुए मुर्मू को वोट दिया। संसद में 208 सांसदों ने यशवंत सिन्हा को वोट दिया।

बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और धर्मेंद्र प्रधान मुर्मू को राष्ट्रपति चुने जाने पर बधाई देने के लिए उनके आवास पर गए। बीजू जनता दल, शिवसेना, जेएमएम और वाईएसआर कांग्रेस जैसे गैर-एनडीए दलों से मिले व्यापक समर्थन को देखते हुए द्रौपदी मुर्मू की जीत तय थी।

यशवंत सिन्हा को कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, NCP, RJD, समाजवादी पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और वाम दलों का समर्थन हासिल था, लेकिन कांग्रेस और NCP जैसी पार्टियों के कई नेताओं ने भी द्रौपदी मुर्मू के लिए क्रॉस वोटिंग की। 53 वोट अवैध पाए गए। वोटिंग से पहले यशंवत सिन्हा ने सभी सांसदों और विधायकों से अपनी अन्तरात्मा की आवाज पर वोटिंग करने की अपील की थी। यशवंत सिन्हा को उम्मीद थी कि NDA के कुछ सांसद और विधायक अन्तरात्मा की आवाज पर उन्हें वोट देंगे लेकिन हुआ उल्टा। विपक्ष के कुछ सांसदों और विधायकों ने अपनी अन्तरात्मा की आवाज सुनकर मुर्मू को वोट दिया।

ओडिशा में मुर्मू के गृह जनपद मयूरभंज में, खासतौर पर रायरंगपुर में, जमकर जश्न मनाया गया और लोग खुशी से नाचते दिखाई दिए। मुर्मू का परिवार शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए दिल्ली आने की तैयारी कर रहा है। उनके भाई तारिणीसेन टुडू ने कहा कि वह अपनी बड़ी बहन से आशीर्वाद लेने के लिए दिल्ली जाएंगे। देश के कई इलाको में आदिवासी समुदाय के लोग नाच-गाकर उनकी जीत का जश्न मना रहे हैं

यदि क्रॉस वोटिंग के पैटर्न का विश्लेषण किया जाए तो द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में 100 सांसदों ने पार्टी लाइन से हट कर वोटिंग की। इसके साथ-साथ 12 राज्यों में विरोधी दलों के 104 विधायकों ने भी अंतरात्मा की आवाज पर द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया। सबसे ज्यादा असम में 22 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की। इसके बाद मध्य प्रदेश में 19, महाराष्ट्र में 16, झारखंड और गुजरात में 10-10, मेघालय में 7, छत्तीसगढ़ और बिहार में 6-6, गोवा में 4, हिमाचल प्रदेश में 2 जबकि हरियाणा और अरुणाचल प्रदेश में एक-एक विधायक ने पार्टी लाइन से अलग जाकर द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया। इन सभी विधायकों ने पार्टी लाइन से अलग जाकर आदिवासी समुदाय से आने वाली द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया।

बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA के पास अपने दम पर इतने वोट थे कि द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना तय था, लेकिन मुर्मू को देश के सर्वोच्च पद पर बैठाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो दांव खेला है, वह अहम है। द्रौपदी मुर्मू आदिवासी हैं, जमीन से जुड़ी हैं, एक लंबा राजनीतिक अनुभव रखती हैं और उनकी छवि बिल्कुल बेदाग है।

आजादी के बाद यह पहला मौका है जब कोई आदिवासी राष्ट्रपति के पद पर पहुंचा है। इसीलिए बीजेपी द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने का जश्न देश के 100 से ज्यादा आदिवासी बहुल जिलों और 1 लाख 30 हजार गांवों में मनाएगी। यानी अब बीजेपी आदिवासियों के बीच अपनी पैठ को और मजबूत करने की कोशिश करेगी। एक आदिवासी महिला को देश के सर्वेच्च पद पर बैठाने का असर महिलाओं पर भी होगा।

द्रौपदी मुर्मू के गृह राज्य ओडिशा, इससे लगे झारखंड और उत्तर पूर्वी राज्यों में अनुसूचित जनजाति के लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है। बीजेपी अब इन लोगों के बीच अपनी पैठ और मजबूत करना चाहती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ओडिशा में अच्छा प्रदर्शन किया था और पार्टी अब उसे 2024 के विधानसभा चुनाव में दोहराना चाहती है।

बात सिर्फ ओडिशा की नहीं है। देश के अलग-अलग राज्यों में 1,495 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जो अमुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। इसी तरह लोकसभा की 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। राज्यों की बात करें तो गुजरात की 27, राजस्थान और महाराष्ट्र की 25-25, मध्य प्रदेश की 47, छत्तीसगढ़ की 29 झारखंड की 28 और ओडिशा की 33 सीटों पर आदिवासी समाज के मतदाता हार जीत का फैसला करते हैं।

इस वक्त गुजरात की आदिवासी बहुल 27 सीटों में से सिर्फ 9 सीटें बीजेपी के पास हैं। गुजरात में इसी साल चुनाव होने हैं। इसी तरह राजस्थान में 25 में से 8, छत्तीसगढ़ में 29 में से सिर्फ 2 और मध्य प्रदेश में अमुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों में से सिर्फ 16 सीट बीजेपी के पास हैं। यानी पिछले चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों में बीजेपी का प्रदर्शन उसकी उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहा। अब बीजेपी को उम्मीद है कि द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने से एसटी समुदाय के लोगों में पार्टी को लेकर सही मैसेज जाएगा और चुनावों में इसका फायदा मिलेगा।

द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से अपने देश के हर आदिवासी को, हर गरीब को यह संदेश गया कि वह भी देश क सर्वोच्च पद पर पहुंच सकता है। अगर दिल में देश सेवा का जज्बा हो, जनसेवा की भावना हो, तो इस देश की मिट्टी मान देती है, सम्मान देती है।

दूसरा संदेश यह है कि नरेंद्र मोदी जब किसी ऊंचे पद के लिए उम्मीदवार के बारे में सोचते हैं तो उनकी नजर समाज के सबसे निचले पायदान पर जाती है, खासतौर से उन लोगों पर जो सबसे गरीब, और पिछड़े तबके से आते हैं। अगर नरेंद्र मोदी चाहते तो अपनी पार्टी के किसी बड़े नेता को, अपने किसी दोस्त को, अपने किसी प्रशंसक को राष्ट्रपति बनवा सकते थे, लेकिन उन्होंने एक आदिवासी की तरफ देखा, एक महिला की तरफ देखा। उन्होंने झोपड़ी में रहने वाली द्रौपदी मुर्मू को देश के सबसे बड़े, सबसे आलीशान भवन में पहुंचा दिया। द्रौपदी मुर्मू का जीवन संघर्षों से भरा रहा है, वह हालात के सामने हार न मानने का प्रतीक हैं, जूझने, जीतने और लक्ष्य तक पहुंचने का जीता जागता सबूत हैं। जो लोग महिलाओं को कमजोर समझते हैं, द्रौपदी मुर्मू उनके लिए जबाव हैं।

तीसरी बात यह कि नरेंद्र मोदी ने एक ऐसे उम्मीदवार को चुना, जिसको सपोर्ट और विरोध करने के नाम पर विरोधी दल बंट गए। एक गरीब आदिवासी महिला का विरोध करने की हिम्मत न तो हेमंत सोरेन कर सके, और न उद्धव ठाकरे। जिस-जिस विधायक या सांसद की सीट पर बड़ी संख्या में आदिवासी हैं, उनको द्रौपदी मुर्मू को वोट देने के लिए मजबूर होना पड़ा।

चौथी बात यह कि आने वाले दिनों के लिए नरेंद्र मोदी ने पूरे देश को ये संदेश दिया है कि मोदी और बीजेपी देश के आदिवासियों का सम्मान करते हैं। गरीब और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए उनके दिल में सम्मान है।

द्रौपदी मुर्मू के जरिए यह संदेश देश के हर गरीब, हर पिछड़े, हर आदिवासी तक बड़ी आसानी से पहुंचेगा। यह नरेंद्र मोदी के विचार, विश्वास और राजनीति की एक बड़ी जीत है, जो अगले 5 साल तक राष्ट्रपति भवन में सुशोभित दिखाई देगी।

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