झारखंड के पारसनाथ में श्री सम्मेद शिखर तीर्थ की पवित्रता बनाए रखने के केंद्र सरकार के फैसले पर जैन समुदाय में खुशी की लहर दौड़ गई है। गुरुवार को सरकार ने श्री सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने के फैसले को वापस ले लिया और साथ ही यह आदेश भी दिया कि इस तीर्थ स्थल की पवित्रता किसी कीमत पर भंग न हो। पारसनाथ को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के फैसले के खिलाफ जैन समुदाय के लोगों द्वारा देशव्यापी विरोध के बाद सरकार ने यह कदम उठाया।
पर्यावरण मंत्रालय ने गुरुवार को झारखंड सरकार को एक ऑफिस मैमोरैंडम भेजा। इस मैमोरैंडम में झारखंड सरकार को सम्मेद शिखर में पर्यटन और अन्य गतिविधियों जैसे- शराब, मांसाहारी भोजन, तेज म्यूजिक, अनधिकृत कैंपिंग और ट्रेकिंग पर प्रतिबंध लगाने के लिए तत्काल सभी आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया गया।
मंत्रालय ने तत्काल प्रभाव से पारसनाथ अभ्यारण्य पर पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र (ईएसजेड) संबंधी अधिसूचना को संशोधित कर लिया। झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ी में जैन धर्म का गर्भगृह स्थित है।
पारसनाथ में संशोधित ईएसजेड अधिसूचना को लागू करने और उसकी निगरानी के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने एक समिति भी गठित की है। इस समिति में जैन समुदाय के दो सदस्य और स्थानीय आदिवासी समुदाय के एक सदस्य को स्थायी सदस्य के रूप में शामिल किया जाएगा।
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा, सम्मेद शिखरजी पर्वत (पारसनाथ पहाड़ी) जैन धर्म का सबसे पवित्र और श्रद्धेय तीर्थ स्थान है। उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार जैन समाज की आस्था का सम्मान करती है। श्री सम्मेद शिखर जी की पवित्रता का आदर करती है और इस तीर्थस्थल की पवित्रता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।’
केंद्र ने ईएसजेड अधिसूचना के खंड 3 के क्रियान्वयन पर तत्काल रोक लगा दी है, जिसमें सभी तरह की पर्यटन गतिविधियां शामिल हैं। जैन संतों और समुदाय के अन्य प्रमुख सदस्यों ने केंद्र सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है।
मेरे प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में गुरुवार की रात एक इंटरव्यू में जैन संत आचार्य नयन पद्मसागर जी महाराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘आध्यात्मिक युगपुरुष’ बताया और कहा, ‘हम जानते थे कि वह हमारी मांग को स्वीकार करेंगे और हम बहुत खुश हैं। हमारे तीर्थ स्थान की सुरक्षा निश्चित रूप से भारत की महान आध्यात्मिक विरासत के संरक्षण को सुनिश्चित करेगी।’
यह अच्छी बात है कि देर से ही सही लेकिन सरकार ने 4 साल पहले हुई गलती को सुधार लिया। बड़ी बात यह है कि जैन समाज के सबसे बड़े तीर्थ श्री सम्मेद शिखर की पवित्रता खतरे में पड़ने की आशंका थी, लेकिन इसके बाद भी जैन समाज ने शान्ति के साथ, सद्भाव के साथ और धैर्य के साथ अपनी बात कही। जैन समाज ने पूरे देश में प्रदर्शन किए, लेकिन कहीं किसी आम आदमी को दिक्कत नहीं हुई, कहीं से किसी तरह की अप्रिय घटना की खबर नहीं आई। अलग-अलग शहरों में हजारों लोग जुटे, लेकिन कहीं गड़बड़ नहीं हुई।
यही हमारे शांतिप्रिय जैन समाज की खासियत है, इससे सीख लेनी चाहिए। देश में जैन समाज की आबादी सिर्फ 0.45 फीसदी यानी कि करीब 50 लाख है। जैन समाज के आंदोलन और सरकार के फैसले से यह साबित होता है कि भले ही किसी समाज की आबादी कम हो लेकिन अगर वह अपनी जायज मांग को जायज तरीके से रखते हैं तो लोकतंत्र में उनकी बात सुनी जाती है और सरकार को उस पर ऐक्शन लेना पड़ता है।