Rajat Sharma

मोदी को सुप्रीम कोर्ट की क्लीन चिट : असली ‘मौत के सौदागर’ कौन थे ?

rajat-sirमहाराष्ट्र में जारी नॉन स्टॉप सियासी ड्रामे के बीच शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ी एक अच्छी खबर आई। सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी की उस जांच रिपोर्ट को सही माना है जिसमें नरेंद्र मोदी को 2002 के गुजरात दंगे में क्लीन चिट दी गई थी। कोर्ट ने एसआईटी की रिपोर्ट को चुनौती देनेवाली याचिका खारिज कर दी।

जस्टिस ए. एम. खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सी. टी. रविकुमार ने दंगे में मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी ज़किया जाफरी और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि इस याचिका में कोई मेरिट नहीं है, कोई दम नहीं है। दरअसल, इस याचिका में गुजरात दंगों के पीछे एक ‘बड़े स्तर पर साजिश’ की जांच की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य अधिकारियों के खिलाफ सभी आरोपों का अध्ययन किया। सीबीआई के पूर्व निदेशक आर. के. राघवन की अगुवाई वाली एसआईटी की जांच रिपोर्ट का भी अध्ययन किया और इसके बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची कि इस बात के कोई सबूत नही हैं कि 2002 में दंगे भड़काने के लिए ‘बड़े स्तर पर’ कोई साजिश रची गई।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा-‘संक्षेप में हमारा विचार है कि एसआईटी की इस जांच में कोई दोष नहीं पाया जा सकता। इस मामले को बंद करने से जुड़ी आठ फरवरी 2012 की एसआईटी रिपोर्ट पूरी तरह से तथ्यों और मजबूत तर्कों पर आधारित है। साथ ही उस अवधि में अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ आपराधिक साजिश (बड़े स्तर पर) के आरोपों को खारिज करने के लिए यह रिपोर्ट हर तरह से पर्याप्त है।

सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी और अन्य लोगों पर आरोप लगाकर इस मुद्दे को सनसनीखेज बनाने और झूठी गवाही देने के लिए दो पूर्व आईपीएस अधिकारियों आर. बी. श्रीकुमार और संजीव भट्ट को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने यह सुझाव दिया कि पिछले 16 साल से इस मुद्दे को गरमाए रखने के पीछे जो लोग शामिल हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। कोर्ट ने इन लोगों को ‘असंतुष्ट’ करार दिया।

बड़े स्तर पर जांच कराने की ज़किया जाफरी की याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एसआईटी ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में पूरी जांच की और उस रिपोर्ट पर सवाल उठाना न्याय का मजाक है। यह अदालत की बुद्धिमत्ता पर संदेह करने जैसा होगा।

नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तारीफ करते हुए बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा-‘आज मैं कांग्रेस, वामपंथियों और अन्य लोगों से पूछना चाहता हूं, आपकी पूरी दुकान पिछले 20 साल से नरेंद्र मोदी के खिलाफ अभियान के दम पर चल रही थी। अब और कितने दिन आप इस तरह अपनी दुकान को चलाओगे? उन्होंने कहा कि आज जब राहुल गांधी से ईडी पूछताछ करती है तो कांग्रेस कार्यकर्ता आसमान सिर पर उठा लेते हैं। जब गुजरात दंगे की एसआईडी जांच हो रही थी, तो उस वक्त नरेंद्र मोदी ने पूरी मजबूती से जांच का सामना किया और सच्चाई सामने आ गई है।

गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘सत्य सोने की तरह चमकता बाहर आया है। मोदी जी ने पिछले 18-19 साल से बड़ी खामोशी के साथ इस दर्द को सहा है। देश का इतना बड़ा नेता एक शब्द बोले बगैर सभी दुखों को भगवान शंकर के विषपान की तरह गले में उतारकर सहन करता रहा। ‘

अमित शाह ने कहा, ‘मैंने मोदी जी को नजदीक से इस दर्द को झेलते हुए देखा है। क्योंकि न्यायिक प्रक्रिया चल रही थी इसलिए सत्य के साथ होने के बावजूद उन्होंने इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोला। बहुत मजबूत मन का आदमी ही ऐसा कर सकता है। उन्होंने यह दर्द चुपचाप सहा।

मुझे लगता है कि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने जो सबसे चौंकाने वाली बात कही वो ये कि इस केस की को-पेटिशनर तीस्ता सीतलवाड़ ने ज़किया जाफरी की भावनाओं का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए किया। किसी के दर्द से खेलना, किसी की पति की मौत का फायदा उठाना एक बड़ा अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को देखा, समझा और माना कि तीस्ता सीतलवाड़ ने नरेन्द्र मोदी को बदनाम करने के लिए ज़किया जाफरी के दुख-दर्द का फायदा उठाया।

इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की भी जांच करवाने की जरूरत है। कोर्ट ने कहा- ‘अंत में हमें ऐसा लगता है कि राज्य के कुछ असंतुष्ट अधिकारियों और अन्य लोगों ने सनसनी फैलाने के लिए संयुक्त रूप से कुछ खुलासा करना चाहते थे जो खुद उनकी नजर में भी झूठ था। एसआईटी ने उनके दावों के झूठ को पूरी तरह से उजागर कर दिया था।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो प्रक्रिया का इस तरह से गलत इस्तेमाल करते हैं, उन्हें कटघरे में खड़ा करके उनके खिलाफ कानून के दायरे में कार्रवाई की जानी चाहिए।’

मेरे ख्याल से अब गुजरात दंगों को लेकर नरेन्द्र मोदी का चैप्टर क्लोज़ होना चाहिए और तीस्ता सीतलवाड़ जैसी सामाजिक कार्यकर्ता की फाइल खोलनी चाहिए। अगर हम सुप्रीम कोर्ट की भावनाओं का सम्मान करते हैं तो गुजरात दंगों को लेकर नरेन्द्र मोदी को बदनाम करने का खेल बंद होना चाहिए। जिन लोगों ने इन दंगों या दंगा पीड़ितों का इस्तेमाल अपनी सियासत चमकाने के लिए किया अब उनका नंबर आना चाहिए। देश की जनता को जानने का हक है कि असल में ‘मौत के सौदागर’ कौन थे।

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