Rajat Sharma

राहुल की भारत जोड़ो यात्रा: क्या विपक्षी दल उन्हें नेता के रूप में स्वीकार करेंगे ?

AKBकांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की समापन रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल पर जमकर निशाना साधा। इसके साथ ही उन्होंने आरएसएस को भी जोड़ा और कहा कि ये लोग हिंसा भड़काते हैं।

शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में लगातार हो रही बर्फबारी के बीच राहुल गांधी ने कहा, ‘मुझे पता है कि हिंसा क्या होती है। मैंने इसे देखा है और इसे झेला है। जिन्होंने हिंसा नहीं देखी या हिंसा को नहीं झेला है, वे इसे नहीं समझ पाएंगे। जैसे मोदीजी, अमित शाहजी, भाजपा और आरएसएस – वे इस दर्द को कभी नहीं समझेंगे…मोदी, अमित शाह, अजीत डोभाल, आरएसएस के लोग जो हिंसा भड़काते हैं, वे इस दर्द को नहीं समझेंगे। सेना के किसी जवान का परिवार यह समझेगा, पुलवामा में शहीद हुए सीआरपीएफ जवानों का परिवार यह समझेगा, कश्मीर के लोग समझेंगे कि वह दर्द क्या होता है।

लोगों की भावनाओं की रग को छूने की कोशिश करते हुए राहुल गांधी ने अपनी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी की हत्याओं का जिक्र किया। उन्होंने याद किया कि कैसे जब वे 14 साल के थे तो स्कूल में पढ़ाई के दौरान और फिर जब वे अमेरिका के एक कॉलेज में थे तब उन्हें इन हत्याओं के बारे में फोन कॉल मिली थी। राहुल गांधी ने कहा, दोनों फोन कॉल उसी तरह की थी, जिस तरह की कॉल परिवार के किसी सदस्य के मरने पर कश्मीर के लोगों को और पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए सुरक्षाकर्मियों के परिवारों को मिली थी।

समापन रैली में कांग्रेस ने 23 विपक्षी दलों को न्योता भैजा था, लेकिन केवल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती, नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख उमर अब्दुल्ला और सीपीआई नेता डी. राजा ने इस रैली में हिस्सा लिया। समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, जद (यू), आरजेडी समेत ज्यादातर पार्टियों ने राहुल की रैली से किनारा कर लिया। वहीं जीएमके, झामुमो, आरएसपी, आईयूएमएल और बसपा ने रैली में शामिल होने के लिए अपने प्रतिनिधियों को भेजा । हालांकि, कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि ज्यादातर पार्टियों के नेता मौसम की खराबी के कारण नहीं पहुंच पाए। रैली के बाद राहुल ने प्रियंका गांधी के साथ मजेदार ‘स्नोबॉल फाइट’ (एक-दूसरे पर बर्फ के गोले फेंकना) की। राहुल की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ 7 सितंबर को कन्याकुमारी से शुरू हुई और 22 राज्यों से होते हुए 145 दिनों की यात्रा के बाद श्रीनगर पहुंची।

राहुल गांधी ने कहा कि इस यात्रा का मकसद राजनीतिक नहीं था । ‘यह कांग्रेस की यात्रा नहीं है । इसका उद्देश्य भारत को एकजुट करना है।’ इसके साथ ही उन्होंने यह आरोप लगाकर कि बीजेपी और आरएसएस नफरत फैला रहे हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को घेरने की कोशिश की। राहुल गांधी ने कहा-‘मोदी और अमित शाह डरते हैं। वे कश्मीर में पैदल नहीं चल सकते हैं। लोगों ने मुझे भी डराने की कोशिश की लेकिन मैं डरा नहीं। राहुल ने इल्जाम लगाया कि बीजेपी के लोग उनकी सफेद टी-शर्ट को लाल रंग में रंगना चाहते थे। अफसरों ने उनसे कहा था कि अगर पैदल चलेंगे तो उन पर हैंड ग्रेनेड फेंके जा सकते हैं। राहुल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर उनका घर है और यहां के लोगों से उन्हें ग्रेनेड नहीं, प्यार मिला।

अपने भाषण में महबूबा मुफ्ती ने कहा, ‘गोडसे की विचारधारा ने जम्मू-कश्मीर से जो छीना है, राहुल की यह यात्रा उसे वापस लौटाएगी। राहुल गांधी ने कश्मीर के लोगों में उम्मीद की रोशनी जगाई है।’ नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘इस यात्रा ने यह साबित किया है कि भारत में अब भी संघ की विचारधारा से अलग विचारधारा के लोग मौजूद हैं। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि अभी तो राहुल कन्याकुमारी से कश्मीर तक चले हैं। अब उन्हें गुजरात से असम की यात्रा भी करनी चाहिए और वो भी राहुल के साथ इस यात्रा में शामिल होंगे।

बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने राहुल के आरोपों का जवाब देते हुए कहा, ‘ये कश्मीर की बदली हुई फिजा का ही सबूत है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी कश्मीर में बेखौफ होकर बर्फ से खेल रहे हैं। राहुल गांधी ने अपनी यात्रा को भारत जोड़ो का नाम दिया था लेकिन उन्होंने देश को ये नहीं बताया कि देश जितनी बार टूटा वो सब कांग्रेस के कारण टूटा।’

मैंने जब राहुल गांधी का भाषण सुना तो पहले दस- बारह मिनट तो ये समझना मुश्किल था कि वो कहना क्या चाहते हैं। आपने देखा होगा कि कांग्रेस के नेता ये कह-कह कर थक गए कि भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी की छवि बनी है। पर राहुल ने सोमवार को कहा कि यह यात्रा उन्होंने अपने लिए नहीं की। राहुल गांधी कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं लेकिन वो कहते हैं कि ये यात्रा उन्होंने अपनी पार्टी के लिए भी नहीं की। फिर उन्होंने यह भी कह दिया कि उनकी यात्रा राजनीति के लिए नहीं है। लेकिन उन्होंने नरेन्द्र मोदी और अमित शाह पर जो हमला किया वो पूरी तरह राजनीतिक था। इसलिए वो क्या कहते हैं और क्या करते हैं, ये समझना जरा मुश्किल है।

राजनीति को समझने वाले कहते हैं कि राहुल ने यह यात्रा अपने करीबी लोगों के कहने पर की। उनके सलाहकारों ने कहा कि लोगों में यह धारणा पनपने लगी कि राहुल राजनीति में ज्यादा रुचि नहीं रखते हैं और वे अनिच्छुक हैं। उनकी यह छवि बनने लगी कि मेहनत नहीं करते हैं और छुट्टी पर रहते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री पद के नए-नए दावेदार सामने आने लगे। कांग्रेस के नेता खुश हैं कि यात्रा की वजह से राहुल ने अपने आप को नीतीश कुमार और के चंद्रशेखर राव जैसे नेताओं के मुकाबले बड़ा नेता साबित कर दिया।

अब कांग्रेस के नेताओं को लगता है कि उन्हें एक नया राहुल गांधी मिल गया है जो उनकी नैया पार लगाएगा। जो काम पहले वाला राहुल नहीं कर पाया वो नया राहुल करके दिखाएगा। लेकिन चाहे ममता बनर्जी हों या फिर केसीआर, चाहे नीतीश कुमार हों या तेजस्वी यादव या फिर अखिलेश यादव, ये सारे नेता कांग्रेस का प्लान पंचर करने में लगे हैं। नीतीश कुमार, तेजस्वी और अखिलेश यादव मजहब के बाद अब सियासत को जाति के लेबल पर लाने की कोशिश में लगे हैं। इसके लिए पहले जातिगत जनगणना और अब रामचरित मानस को मोहरा बनाया गया है। कुल मिलाकर विपक्षी दलों की एकता अभी एक मृगतृष्णा बनी हुई है।

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