पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन से देश ने एक ऐसे निष्ठावान दिग्गज को खो दिया जिसने अपनी योग्यता के बल पर एक साधारण पद से सर्वोच्च संवैधानिक पद तक का सफर तय कर लोगों के बीच काफी सम्मान अर्जित किया। प्रणब दा के बारे में कहा जाता है कि अनुशासन को लेकर वे बेहद सख्त थे। उनकी यादाश्त तीक्ष्ण थी और इतिहास, कानून, पार्लियामेंट्री प्रैक्टिस और राजनीति विज्ञान का उन्हें व्यापक ज्ञान था। वे भारतीय राजनीति के एनसाइक्लोपीडिया थे।
प्रणब मुखर्जी जमीन से उठकर आए थे। उनका जन्म पश्चिम बंगाल के एक गरीब परिवार में हुआ था। वे रोजाना दस किलोमीटर पैदल चल कर स्कूल जाते थे। वे पूरे पचास साल राजनीति में रहे। सियासत में प्रणब दा1967 में आए। उन्होंने अजय मुखर्जी की बांग्ला कांग्रेस ज्वाइन कर राजनीति की शुरुआत की। उसी दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नजर में वे आए और कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। प्रणब दा 1969 में राज्यसभा के मेंबर बने और 2002 तक लगातार राज्यसभा में रहे। सिर्फ एक बार 2004 में उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
वर्ष 2012 में देश प्रणब दा देश राष्ट्रपति बने और 2019 में नरेन्द्र मोदी की सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा। वाकई प्रणव मुखर्जी जैसे ज्ञानी व्य़क्ति को यह सम्मान देना, किसी सम्मान की प्रतिष्ठा को बढ़ाना था। प्रणब मुखर्जी जिंदगी भर कांग्रेस के नेता रहे लेकिन एक बार जब राष्ट्रपति के पद पर बैठे तो किसी पार्टी के नहीं रहे। नए विचारों, नए सुझावों और नए प्रयोगों को प्रणब दा हमेशा प्रोत्साहित करते थे।
वर्ष 2018 में जब प्रणब मुखर्जी को RSS के वार्षिक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर नागपुर आने का न्योता दिया गया तो बड़ी चर्चा हुई। सियासी तूफान उठा, लेकिन प्रणब मुखर्जी नागपुर गए। उन्होंने राष्ट्र हित के मुद्दे पर अपनी बात कही और संघ प्रमुख की बात सुनी। अर्थव्यवस्था को कैसे मजबूत किया जाए, गरीबों के उत्थान के लिए सरकार क्या-क्या कर सकती है, इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाई।
सोमवार को जैसे ही प्रणब दा के निधन की खबर आई तो सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुख व्यक्त किया। पीएम मोदी ने ट्वीटर पर शोक संदेश के साथ जो तस्वीर पोस्ट की, उसमें मोदी प्रणब मुखर्जी के पैर छूते दिख रहे हैं। ये छोटी बात नहीं है। इस तस्वीर से यह जाहिर है कि पीएम मोदी पूर्व राष्ट्रपति के प्रति कितना सम्मान का भाव रखते थे। प्रणब मुखर्जी जब राष्ट्रपति थे तब और जब पद से मुक्त हो गए तब….जब भी किसी मसले पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को राय मशविरे की जरूरत होती थी तो प्रधानमंत्री का काफिला सीधे प्रणब मुखर्जी के घर की तरफ निकल जाता था।
मेरा नाता प्रणब दा से इमरजेंसी के बाद से था। इमरजेंसी खत्म होने के तुरंत बाद उनसे परिचय हुआ। प्रणब दा से जब भी मिलता था.. बातें करता था तो हमेशा कुछ न कुछ सीखने को मिलता था। ‘आपकी अदालत’ शो में प्रणब दा दो बार आए। मैंने उनसे तीखे सवाल पूछे लेकिन उन्होंने सीधे जबाव दिए। उन्होंने कभी इस बात का बुरा नहीं माना कि उलझाने वाले सवाल क्यों पूछते हो। वे हमेशा मुझसे कहते थे कि जो जनता जानना चाहती है, वो पूछना ही चाहिए। जब ‘आपकी अदालत’ शो के इक्कीस साल पूरे हुए उस समय प्रणब दा राष्ट्रपति थे और नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री, दोनों इस विशेष आयोजन में शामिल हुए। इस मौके पर प्रणब दा ने सार्वजनिक तौर पर मुझसे जो कहा…वो मेरे कानों में आज भी गूंज रहा है।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘रजत ने हमें बताया कि इस कार्यक्रम के जरिए वे अदालत में बहस करने के लिए बिना कानूनी डिग्री या बिना लाइसेंस वाले वकील बन गए हैं।’ उन्होंने कहा, ‘रजत, आपको देश के 125 करोड़ लोगों ने जनता का वकील बनाया है। इस रोल को कभी मत छोड़ना। आपको उन लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाना चाहिए जिनके बारे में आपको यह पता चलता है कि उन्होंने कुछ गलत किया है, लोगों का अहित किया है, आम आदमी को नुकसान पहुंचाया है। मैं आपके कार्यक्रम की सफलता की कामना करता हूं और कृपया आप अपना रोल न बदलें। आप भारत की जनता के पब्लिक प्रॉस्क्यूटर (सरकारी वकील) हैं।
जो प्रणब दा से एक बार मिल लिया, जिसने उनके ज्ञान के सागर में गोता लगा लिया और जिसने उनसे कुछ सीख लिया वो जीवन भर प्रणब मुखर्जी को नहीं भूल सकता। प्रणब मुखर्जी के जीवन को कुछ शब्दों में समेटना संभव नहीं है। वो इंटलैक्चुअल थे, ज्ञान का भंडार थे, लेकिन सबसे ऊपर वो बेहतरीन इंसान थे। देश और समाज को बहुत अच्छी तरह समझते थे। वे देशभक्त थे और सबको साथ लेकर चलते थे। ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ उन पर पूरी तरह फिट होता था।
प्रणब दा देश के राष्ट्रपति थे, लेकिन मेरे लिए वह हमेशा प्रणब दा ही रहे। देश की राजनीतिक घटनाओं के बारे में, देश की विदेश नीति के बारे में या फिर पार्लियामेंट मे हुई किसी चर्चा के बारे में या सरकार के किसी फैसले के बारे में कुछ भी जानना हो,जो कहीं न मिले तो प्रणब दा को फोन करो, सेकेन्ड्स में जबाव मिलता था।
चाहे कोई भी मंत्रालय हो, विदेश, रक्षा या फाइनेंस, प्रणब दा जिस मंत्रालय में भी रहे वहां उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी। प्रणब दा स्वतंत्र भारत के उन तीन नेताओं में एक थे जिनके पास तीन सीसीएस (सुरक्षा मामलों पर कैबिनेट समिति) पद रहे- वित्त, रक्षा और विदेश मंत्रालय। प्रणब दा के पास भारत के प्रधानमंत्री बनने की पूरी क्षमता थी। तीन बार ऐसे मौके आए जब कांग्रेस उन्हें प्रधानमंत्री बना सकती थी। लेकिन मुझे हमेशा इस बात का दुख रहेगा कि उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनने का अवसर नहीं मिला।
प्रणब दा के पास पीएम बनने का पहला मौका 1984 में था जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई। उस वक्त प्रणब मुखर्जी और राजीव गांधी दोनों बंगाल में थे। वे एक साथ दिल्ली लौट रहे थे। जब राजीव गांधी ने उनसे पूछा कि किसे प्रधानमंत्री बनाना चाहिए। प्रणब मुखर्जी ने कहा कि जो सबसे सीनियर कैबिनेट मंत्री है उसे प्रधानमंत्री बनना चाहिए। प्रणब मुखर्जी उस वक्त कैबिनेट में सबसे सीनियर मंत्री थे। राजीव गांधी को ये बात अच्छी नहीं लगी। उसी शाम राजीव गांधी को तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने प्रधानमंत्री की शपथ दिलाई और प्रणब दा को कैबिनेट में जगह भी नहीं मिली। उसके बाद प्रणब मुखर्जी ने थोड़े दिन के लिए कांग्रेस छोड़ दी थी लेकिन फिर वो वापस आ गए।
दूसरी बार 1991 में प्रणब दा के पास पीएम बनने का अवसर आया। 1991 में राजीव गांधी की हत्या हुई उस समय गांधी परिवार ने प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी पीवी नरसिम्हाराव को दी और प्रणब मुखर्जी को किनारे कर दिया। इसके बाद तीसरी बार जब 2004 में मौका आया तो सोनिया गांधी ने डॉक्टर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री चुना। अगर प्रणब मुखर्जी को अवसर मिलता तो देश का और भी कल्याण होता। वो देश की प्रगति को एक नई दिशा दे सकते थे। उनका अनुभाव देश के बहुत काम आ सकता था और उन्होंने राष्ट्रपति बनने के बाद ये साबित करके दिखाया। उन्होंने जनता का प्यार हासिल किया। आज भले ही प्रणब दा हमारे बीच नहीं रहे लेकिन वो अनंत काल तक लोगों के दिलों में रहेंगे।