नगालैंड के मोन जिले में शनिवार को सेना के पैरा स्पेशल फोर्सेज की कमांडो कार्रवाई के बाद वहां लोगों में काफी आक्रोश व्याप्त है। शनिवार को इस कमांडो कार्रवाई के दौरान कोयला खान में काम करनेवाले मजदूरों को लेकर जा रहे पिकअप वैन पर फायरिंग में 6 लोगों की मौत हो गई। इस घटना के तुरंत बाद भीड़ ने सैनिकों को घेर लिया। इसके बाद फिर गोलीबारी शुरू हुई जिसमें सात ग्रामीणों की मौत हो गई। नगालैंड की पुलिस ने 21 पैरा स्पेशल फोर्सेज यूनिट के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है, जबकि सेना ने मेजर जनरल की अगुवाई में कोर्ट ऑफ इन्क्वॉयरी का गठन किया है।
कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के तहत उस ‘विश्वसनीय खुफिया’ सूचना की जांच की जाएगी जिसके आधार पर एनएससीएन (के) के विद्रोहियों के संदेह में खदान मजदूरों पर फायरिंग की गई थी। नगालैंड और मेघालय के मुख्यमंत्रियों ने आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (एएफएसपीए) को निरस्त करने की मांग की है। संसद में गृह मंत्री अमित शाह ने अपने बयान में कहा कि यह गलत पहचान का मामला है। अमित शाह ने कहा-‘सरकार नगालैंड की घटना पर अत्यंत खेद प्रकट करती है और मृतकों के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना जताती है।’
शनिवार को हुए इस असफल ऑपरेशन में शामिल कमांडो यूनिट ने दावा किया कि एक ओपेन पिक-अप ट्रक में राइफल जैसी चीज ले जाते हुए देखा गया, जो कि बाद में एयरगन पाया गया। इस पिक-अप ट्रक में कुल 8 खदान मजदूर सवार थे। अमित शाह ने बताया कि कमांडोज ने गाड़ी को रुकने का इशारा किया लेकिन इसके बाद भी जब गाड़ी नहीं रुकी तब उग्रवादियों के होने के संदेह में फायरिंग की गई। कमांडोज को जब अपनी गलती का अहसास हुआ तब उन्होंने 8 में से जीवित बचे दो मजदूरों के इलाज के लिए मेडिकल सहायता मांगी लेकिन तब तक ग्रामीणों की एक भीड़ घटनास्थल पर जमा हो गई। हथियारों से लैस ग्रामीणों ने सैनिकों पर हमला कर दिया। इस हमले में एक पैराट्रूपर की मौत हो गई। इस घटना के बाद केंद्र और राज्य सरकारों ने मृतकों के परिजनों के लिए मुआवजे का ऐलान किया है।
इस बीच नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनार्ड संगमा ने आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (एएफएसपीए) को निरस्त करने की मांग करते हुए कहा है कि यह बहुत ही क्रूर (ड्रैकोनियन ) कानून है, जिसमें सेना को बिना वारंट किसी को भी गिरफ्तार करने और बिना जवाबदेही किसी को मारने की इजाजत दी गई है। आपको बता दें कि नगालैंड और मेघालय में नेफ्यू रियो और कोनार्ड संगमा की पार्टी बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए का हिस्सा हैं। नेफ्यू रियो ने कहा-एएफएसपीए से भारत की छवि धूमिल हुई है और इस क्रूर एक्ट को हटाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा एएफएसपीए पिछले 59 वर्षों से नगालैंड में लागू है और पिछले 25 वर्षों से विद्रोही समूहों के साथ संघर्ष विराम के बावजूद यह अधिनियम अभी भी लागू है।
नेफ्यू रियो ने कहा, ‘केंद्र का तर्क है कि उग्रवाद और नागा आंदोलन अभी जारी है और जब तक इस संघर्ष का समाधान नहीं हो जाता है तब तक वे इस एक्ट को नहीं हटा सकते। मैं उनसे यह पूछता हूं कि जब सभी विद्रोही ग्रुप सीजफायर किए हुए हैं और शांति की स्थिति बहाल है तो फिर आप हमारे राज्य को अशांत क्षेत्र का टैग क्यों लगाए हुए हैं?’
विपक्षी दल अब इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘यह हृदय विदारक घटना है। भारत सरकार को इसका जवाब देना चाहिए। यहां न तो लोग सुरक्षित हैं और ना ही सुरक्षाकर्मी, गृह मंत्रालय कर क्या रहा है? फेसबुक पर उन्होंने दावा किया कि पीड़ितों के अंतिम संस्कार में सबसे पहले स्थानीय कांग्रेस नेता शामिल हुए। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने भी इलाके का दौरा किया।
लोगों के गुस्से को समझा जा सकता है क्योंकि सेना के कमांडोज की फायरिंग में निर्दोष लोगों की मौत हुई है। सेना ने इस बात को माना कि गलती हुई लेकिन यह जानबूझकर नहीं किया गया। अब इस बात की जांच की जा रही है कि कमांडोज ने क्यों और किसके आदेश पर फायरिंग की। जब सैनिकों ने एंबुश लगाने की तैयारी की तो इसकी सूचना स्थानीय पुलिस को क्यों नहीं दी? सेना से इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई? मैंने नॉर्थ-ईस्ट के एक्सपर्ट्स से बात की और उन लोगों ने जो बताया वो वाकई हैरत में डालने वाली बात है। एक एक्सपर्ट ने बताया कि सेना साजिश का शिकार हुई है। नॉर्थ-ईस्ट में कई जनजातियां हैं जो देशभक्त हैं और वो सेना का साथ देती हैं। इस पूरी साजिश का मकसद सेना और इन जनजातियों के बीच एक दरार पैदा करना था।
शौर्य चक्र विजेता और रिटायर्ड कर्नल डी.पी.के. पिल्लई ने कहा कि नगालैंड में सेना की फायरिंग में जिन लोगों की मौत हुई है वे लोग कोनयाक जनजाति के हैं। यह जनजाति उग्रवादी संगठनों के खिलाफ है। पिल्लई ने बताया कि इस बार सेना को उनके इन्फॉर्मर ने गलत सूचना देकर धोखा दिया। दरअसल, अलगाववादी विद्रोही समूह एनएससीएन (के) कोनयाक जनजाति और सेना के बीच दरार पैदा करना चाहता था और विद्रोही आंदोलन के बारे में गलत जानकारी देने के लिए मुखबिर का इस्तेमाल करता था।
इस सवाल पर कि जब सेना ने पिक-अप ट्रक को रुकने का इशारा किया तो क्यों नहीं रुका, एक एक्सपर्ट ने कहा, नगालैंड में बड़े पैमाने पर अवैध कोयला खनन हो रहै है और खदान मजदूरों को लगा कि चेकिंग के लिए पुलिस उन्हें रोकने की कोशिश कर रही है। उनके पिक-अप ट्रक में माइनिंग से जुड़े सामान थे, इसी वजह से उन्होंने पिक-अप ट्रक को नहीं रोका। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही नॉर्थ-ईस्ट में अवैध खनन पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दे चुका है।
रिटायर्ड कर्नल पिल्लई ने बताया कि पिछले महीने जब एनएससीएन (के) विद्रोहियों के हमले में सेना के कर्नल विपल्व त्रिपाठी, उनकी पत्नी और बेटे समेत पांच लोग शहीद हुए थे तो उन शहीदों में असम राइफल्स का एक जवान भी था जो कोनयाक जनजाति का था। इस जवान के अन्तिम संस्कार से पहले उसके पिता ने अपने बहादुर बेटे की शहादत पर आंसू नहीं बहाए थे। तिरंगे में लिपटे बेटे के पार्थिव शरीर के पास खड़े होकर इस पिता ने उग्रवादी संगठनों को चुनौती दी थी और कहा था कि उनका एक बेटा देश पर शहीद हो गया लेकिन वो अपने दूसरे बेटे को भी देश की सेवा में भेजने को तैयार हैं। पूरे देश ने इस पिता को सलाम किया था। कोनयाक जनजाति में इस स्तर की देशभक्ति है।
सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने इस बहादुर पिता का वीडियो दिखाया जिसमें लोगों से आगे आकर देश सेवा करने की अपील की गई थी। रिटायर्ड कर्नल पिल्लई का कहना है, हो सकता है कि एनएससीएन (के) ने सेना के इन्फॉर्मर को खरीद लिया हो और उसके जरिए गलत खबर दी गई हो जिससे कोनयाक जनजाति के लोग मारे जाएं और उनके भीतर आर्मी के खिलाफ गुस्सा और नाराज़गी पैदा हो। फिलहाल निर्दोष युवकों की हत्या को लेकर कोनयाक जनजाति में काफी गुस्सा है।
अब केंद्र सरकार और सेना भी मान रही है कि जो लोग गोली का शिकार हुए वे लोग ना उग्रवादी थे, ना ही उनके पास हथियार थे। यह गलत पहचान का मामला है। जो एयरगन उन खदान मजदूरों के पास मिली उसे आमतौर पर ज्यादातर लोग शिकार के लिए अपने साथ रखते हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि जल्द से जल्द कोनयाक जनजाति की भावनाओं, उनके आक्रोश को शांत किया जाना चाहिए। केवल यह स्वीकार कर लेना कि यह गलत पहचान का मामला है, निर्दोष युवकों की मौत का एक्सक्यूज नहीं हो सकता।
हम सभी सेना को और जवानों की बहादुरी को सलाम करते हैं लेकिन जवान हमारे निर्दोष लोगों पर फायरिंग कर दें और आम लोगों को मौत के घाट उतार दें, इसे किसी कीमत पर ना तो सही ठहराया जा सकता है और ना ही इसका समर्थन किया जा सकता है। कुछ दिन पहले जम्मू-कश्मीर में एक गलत एनकाउंटर के मामले में आर्मी के अफसर का कोर्ट मार्शल हुआ है। इसी तरह इस केस में भी जिसकी गलती हो उसकी पहचान करके कार्रवाई होनी चाहिए और नरसंहार का केस चलना चाहिए। दुख की बात यह है कि इस मामले में भी सियासत हो रही है।