अपराधी का कुकर्म देखो, न जात देखो , न धर्म देखो
दो तरह की तस्वीरें गुरुवार को आईं. एक, वो दिल दहलाने वाली तस्वीर जिसमें राम गोपाल मिश्रा को गोली मारी गई. रामगोपाल पर निशाना लगाकर मारने वाले तालीम और सरफराज़ साफ दिखाई दे रहे हैं.
दूसरी तस्वीर, लंगड़ा कर चलते तालीम और सरफराज़ की है जिन्हें एनकाउंटर में यूपी पुलिस ने गोली मारी. हैरानी की बात ये है कि आज भी कुछ लोग हत्यारों की हिमायत करते नजर आए. जो लोग कैमरे पर गोली चलाकर हत्या करते हुए दिखाई दे रहे हैं, उनका समर्थन करते नजर आए. पैर में गोली लगने के बाद दोनों अपराधी कह रहे हैं कि हमने भागने की कोशिश की, इसीलिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी.
लेकिन इसके बावजूद कई राजनीतिक नेताओं ने इसे फर्जी एनकाउंटर करार देने का प्रयास किया. इन लोगों को लगता है कि पुलिस ने हत्या के आरोप में जिन्हें पकड़ा, उन्हें पैर में गोली मारकर पुलिस ने नाजायज़ काम किया. उनका तर्क ये है कि योगी सरकार ‘ठोको’ की नीति पर काम करती है और ये नीति सिर्फ मुसलमानों के लिए है.
एनकाउंटर की खबर आई, तो सियासत शुरू हो गई. सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि सरकार अपनी नाकामी को छुपाने के लिए फर्जी एनकाउंटर करवा रही है. उनकी पार्टी के सांसद अफजाल अंसारी ने कहा कि ‘बंटोगे तो कटोगे’ कोई नारा नहीं, कोड वर्ड है और उसका क्या मतलब है, ये सबको दिख रहा है. यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि जनता को डराने के लिए इस तरह के नकली एनकाउंटर हो रहे हैं. कांग्रेस के सांसद इमरान मसूद ने कहा कि एकतरफा एक्शन क्यों हो रहा है? जिन लोगों ने दंगा किया, उनका एनकाउंटर कब होगा?
अजमेर शरीफ दरगाह के खादिम सरवर चिश्ती ने सरफराज़ और तालीम को बेकसूर बता दिया. उन्होंने कहा कि अगर कोई इस्लामिक झंडा उतार कर भगवा लहराएगा तो गोली नहीं चलेगी तो क्या फूल बरसेंगे? लेकिन सरवर चिश्ती ने ये नहीं बताया कि पुलिस पर हमला करने वाले हत्यारों पर क्या पुलिस अफसरों को फूल बरसाने चाहिए?
जब विरोधी दलों के तमाम नेताओं ने सरफराज़ और तालीम के एनकाउंटर को गलत बताया, लेकिन रामगोपाल की हत्या पर कुछ नहीं कहा, तो हैरानी हुई. ये वही लोग हैं, जो किसी धार्मिक यात्रा में हिंसा हो जाए तो कानून और व्यवस्था पर सवाल उठाते हैं. अगर पुलिस अपराधी को पकड़ने में देरी करे, तो पुलिस पर सवाल उठाते हैं. अगर पुलिस दंगाइयों पर सख्ती करे, तो पुलिस पर नाइंसाफी का इल्जााम लगाते हैं, और अगर पुलिस सरेआम हत्या करने वाले हत्यारों को गोली मारे तो एनकाउंटर को फर्जी बताते हैं.
आखिर इन नेताओं और पार्टियों की मजबूरी क्या है, सबको पता है. अगर आंकड़ें देखें, तो ये कहना गलत होगा कि यूपी में जितने पुलिस एनकाउंटर हुए उसमें सिर्फ मुसलमान अपराधियों पर गोलियां चलाई गईं. योगी आदित्यनाथ के शासन में जिन अपराधियों के साथ एनकाउंटर हुए हैं, उनमें अगर मुस्लिम है तो ब्राह्मण भी है और ठाकुर भी, यादव भी हैं और OBC भी.
पुलिस न तो नाम पूछकर गोली चलाती है, और न मजहब देखकर एनकाउंटर करती है. बहराइच में जो हुआ वो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था. रामगोपाल मिश्रा की हत्या के बाद जिस तरह से लोगों के घर और दुकानें जलाई गईं वो भी दुर्भाग्यजनक था. पुलिस ने अपराधियों को नेपाल सीमा के पास पकड़ा, वे भागने की कोशिश कर रहे थे. उस एनकाउंटर पर सवाल उठाना, किसी भी तरह न्यायोचित नहीं है. .मुझे लगता है कि ऐसे मामलों में पुलिस और अदालत को अपना अपना काम करने देना चाहिए.
Encounter: Criminals have no caste, no religion
Two contrasting images about Bahraich came in view on Thursday. In one, two accused Mohammed Talim and Sarfaraz were clearly seen firing bullets at Ramgopal Mishra, the youth who was killed. The other image was of both these youths, Talim and Sarfaraz, limping with a bullet each in their foot, being carried by UP police.
The surprising part is that there are people who are extending support to the killers who are clearly seen in the video firing shots at Ramgopal Mishra, while in the other image the two killers are admitting on camera that policemen fired bullets at their feet while they were trying to flee.
Yet, political leaders are alleging that this was a “fake encounter” stage managed by UP police. These leaders are alleging that police committed an illegal act by firing at these two youths. Their allegation is that Yogi Adityanath’s government is working on “thoko” (shoot) policy and this policy is being applied only against Muslims.
This is incorrect. If you look at facts and figures, it will be wrong to allege that only Muslims are victims of encounters. Those who died in police encounters during Yogi’s regime are Muslims, Brahmins, Thakurs, Yadavs and other backward castes.
Police does not fire by asking names of criminals, or by looking at their religion. What happened in Bahraich was unfortunate. The manner in which homes and shops were set on fire after Ramgopal Mishra’s murder was also unfortunate.
Let us look at how our politicians reacted. Soon after news came about the encounter, Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav said, the state administration was staging fake encounter to hide its failure in preventing violence in Bahraich. His party’s MP Afzal Ansari, brother of crime don late Mukhtar Ansari, said, ‘bantogey, toh katogey’ was not a slogan, but a codeword and the consequences are there for all to see.
UP Congress chief Ajay Rai said, fake encounters are being carried out to strike terror in the minds of people. Congress MP Imran Masood demanded why action is being taken only against one community, and not again those who set fire to homes and shops.
Ajmer Sharif Dargah’s khadim Sarwar Chishti described Sarfaraz and Talim as innocent and said when Ramgopal Mishra was tearing off an Islamic flag to hoist a saffron Hindu flag, should people throw flowers at him? At least Sarwar Chishti did not say whether police should have thrown flower petals at the killers who killed Mishra.
It is surprising that some politicians are not expressing even sympathy for Ramgopal Mishra, who was killed in cold blood. When violence takes place during a religious procession, politicians raise questions about law and order. When police takes time in catching culprits, politicians raise questions about the efficiency of police. If police takes strong action against rioters, the same politicians level allegations of injustrice. And when police fire bullets at the feet of killers during encounter, they call such encounters as fake. One can realize the politicial compulsions of such parties.
The five suspects of Bahraich violence who were caught by UP police on Thursday morning were trying to cross over to Nepal. To raise questions about whether the encounter was geuine or fake, is not justified. I think, we should allow the police and courts to perform their duty.
खाने में थूक : विकृत मानसिकता वालों के मन में खौफ पैदा करना ज़रूरी
आज मैं आपको जो बताने जा रहा हूं, उससे आपको बुरा लगेगा, गुस्सा आएगा, घिन्न आएगी, तकलीफ होगी, पर ये आपको बताना जरूरी है. आपको चेतावनी देना जरूरी है. बागपत जिला अस्पताल में दो कर्मचारियों, जब्बार खान और मुर्शीद खान ने डिप्टी सीएमओ से बदला लेने के लिए उनके खाने में टीबी के मरीजों का खतरनाक बैक्ट्रीरिया युक्त बलगम मिलाने की साजिश रची.
गाजियाबाद में एक घर में खाना बनाने वाली नौकरानी, रीना, बदला लेने के लिए आठ साल से आटे में अपना पेशाब मिला रही थी और कैमरे पर पकड़े जाने के बाद गिरफ्तार हुई. सहारनपुर के खलीफा होटल में तंदूरी रोटी सेंकने वाला आटे में थूक मिलाता हुआ पकड़ा गया.
ये तीनों घटनाएं कैमरे में रिकॉर्डेड हैं. ये तीनों घटनाएं रोंगटे खड़े करने वाली है, लेकिन पुलिस लाचार है. इस तरह की हरकत करने वालों को पकड़ने के लिए कोई कठोर कानून नहीं है. ऐसी नीच हरकत करने वालों को आसानी से ज़मानत मिल जाती है क्योंकि फिलहाल ऐसा कोई कानून नहीं हैं जिसके तहत पुलिस इस तरह की हैवानियत करने वालों को सख्त सज़ा दिला सके.
हालांकि अब योगी आदित्यनाथ की सरकार ने खाने की चीजों में ह्यूमन वेस्ट मिलाने को गैरजमानती अपराध बनाने का फैसला किया है और ऐसी हरकतें करने वालों को 10 साल जेल की सजा होगी और भारी जुर्माना लगाया जाएगा.
कानून बनेगा और उसके हिसाब से पुलिस कार्रवाई करेगी, ये तो बाद की बात है, लेकिन जो खबरें आईं है, वो सोचकर मन में बार बार यही सवाल उठता रहा कि कोई इंसान इस तरह की हरकत कैसे कर सकता है? ये कैसी सोच है? और तीन-तीन जगह एक ही तरह की घटनाएं हों, ये तो और भी हैरत की बात है.
शुक्र है कि बागपत जिला अस्पताल में इन दोनों कर्मचारियों को खाने में टीवी मरीज़ों का बलगम मिलाने की साजिश का समय पर पता चल गया क्योंकि उनके एक साथी रिंकू ने फोन पर बातचीत रिकार्ड कर डिप्टी सीएमओ को बता दिया. सोचिए जिन कर्माचारियों पर टीबी उन्मूलन की जिम्मेदारी हो, जो वायरस को फैलने से रोकने का काम करते हों, वही डॉक्टर और उसके पूरे परिवार के खाने में मरीज का बलगम मिलाने की साजिश रचें. ऐसा केस मैंने भी पहली बार सुना है, पहली बार देखा है.
इससे पहले थूक लगा कर रोटी बनाने के वीडियो तो आते थे लेकिन पिछले दो महीनों में इस तरह के केस में जिस तरह सख्ती से कार्रवाई की गई, उससे लगा कि ये मामले रुक जाएंगे और ऐसी हरकतें बंद हो जाएंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
सहारनपुर के खलीफा होटल से जो वीडियो आया उसमें साफ दिख रहा है कि जो शख्स तंदूर में रोटी सेंक रहा है, वो पहले हाथों से लोई तैयार करता है, फिर रोटी को तंदूर में डालने से पहले उसपर थूकता है. बजरंग दल के कुछ कार्यकर्ताओं ने हंगामा किया, पुलिस से शिकायत की और तब खलीफा होटल के मालिक और कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई हुई. होटल पर एक्शन को लेकर सहारनपुर पुलिस के एसपी का कहना है कि इस पर कार्रवाई करने का अधिकार खाद्य नियंत्रण विभाग का है, पुलिस का नहीं.
अब सवाल ये है कि इस तरह की घटनाओं को कैसे रोका जाए? योगी आदित्यनाथ ने इस तरह के केस में पुलिस को सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए थे, लेकिन बात नहीं बनी, क्योंकि पुलिस इस तरह की घिनौनी हरकत करने वालों को पकड़ती है, लेकिन कभी किसी ने सोचा ही नहीं कि इस तरह की नीचता भी कोई इंसान कर सकता है. इसके लिए कोई स्पेसिफिक कानून भी नहीं है. आमतौर पर पुलिस ऐसी हरकत करने वालों को पकड़ती है और उन्हें कोर्ट से आसानी से जमानत मिल जाती है.
अब योगी आदित्यनाथ ने इस तरह की घटनाएं रोकने के लिए सख्त कानून बनाने का फैसला किया है. खाने-पीने की चीजों में मिलावट करना अपराध है, पर खाने में बलगम या पेशाब या थूक मिलाना महापाप है. इस मानसिकता को समझना मुश्किल है. आजकल सीसीटीवी होते हैं, सबके फोन में कैमरे होते हैं, इसीलिए ये अपराधी पकड़े गए. इनके खिलाफ सबूत भी मिल गए, वरना यहां तो पता ही नहीं चलता कि खाने में कौन क्या मिला रहा है और अगर पता चल भी जाता तो उसे साबित करना मुश्किल होता.
ऐसा पाप करने वालों की ये सोच कहां से आई, समझना मुश्किल है. कोई इसे थूक जिहाद कहेगा, कोई इसे विकृत मानसिकता कहेगा, कोई पागलपन करार देगा, लेकिन इससे अपराध की गंभीरता कम नहीं होती. जिनके साथ ये हुआ, जिन्होंने इस तरह का खाना खाया, उन पर क्या बीतती होगी, ये सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
ऐसी हरकत करने वालों को पकड़ने के लिए, सजा दिलाने के लिए, कोई कानून इसीलिए नहीं है क्योंकि कानून बनाने वालों ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि घर में काम करने वाली नौकरानी, तंदूर पर रोटी बनाने वाले लोग इतना घिनौना काम कर सकते हैं.
मैं योगी आदित्यनाथ की तारीफ करूंगा कि उन्होंने इस बारे में सोचा और कानून बनाने का फैसला किया. जबतक ऐसी विकृत मानसिकता वाले लोगों के मन में खौफ नहीं होगा, कानून का डर नहीं होगा, तब तक ऐसे लोग इस तरह के गंदे काम करते रहेंगे.
Mixing spit or urine in food : Strike fear of law in the minds of culprits
Today I want to mention some latest cases of people mixing spit or urine in food and serving them to others for consumption. Such cases can, of course, cause anger and a sense of disgust among all of you, but, in order to create public awareness about such despicable persons, it is necessary to inform and educate.
In Ghaziabad, a 32-year-old domestic help Reena was seen on video mixing her urine with flour dough for making chapatis for a family residing in a posh residential society. She had been doing this for the last eight years, and the family members woke up when they started facing health problems. When arrested, the domestic help said she did this because her employer often scolded her for minor mistakes and she wanted to take revenge.
At a dhaba named Khalifa hotel in Saharanpur, the owner and an employee were arrested for mixing spit with flour dough before serving tandoori rotis to customers.
In Baghpat district hospital, two employees, Jabbar Khan and Mushir Ahmed have been charged of conspiring to mix bacterial sputum of tuberculosis patients in food served to deputy CMO Dr Yashveer Singh and his family members. Jabbar Khan worked as coordinator in the tuberculosis and HIV department, while Mushir was a lab technician. The plan was for Mushir to hand over bacterial sputum samples of TB patients to a safai karmachari Tinku, who recorded the conversation on phone and alerted the Deputy CMO. Jabbar has been arrested while Mushir is absconding.
Deeply concerned over a rise in such incidents, Chief Minister Yogi Adityanath’s government is planning to bring an ordinance providing for 10 years’ imprisonment and huge fines for people convicted on charge of contaminating food with human waste like spit or urine.
Contaminating food with spit, urine or other human waste is not only a crime, but a big sin. It is difficult to understand the mindset of people who induge in such heinous acts. With the prolific use of CCTV and smartphone cameras, such culprits are now being nabbed, otherwise nobody knew who was mixing what in food items.
Even if one is charged of committing such acts, it is difficult to prove them in court due to lack of evidence. Some bigoted people call spitting in food as ‘thook jihad’, some term it as acts of a sick mind, and some label it as insane. But this does not reduces the gravity of the crime.
Just imagine what those victims of contaminated food are thinking right now. It makes one shiver. Our lawmakers never imagined that some people would stoop so low as to contaminate food in such a manner. Nobody imagined that maids working in homes or labourers working in dhabas or hotels would indulge in such crime.
I would like to praise Yogi Adityanath for deciding to bring an ordinance providing for stern punishment. Unless we strike fear in the minds of people with sick and depraved minds, such crimes will continue to happen.
EVM: चुनाव आयोग ने दिया हर सवाल का जवाब
आम तौर पर चुनाव नतीजे आने के बाद EVM और चुनाव आयोग पर सवाल उठाए जाते हैं, लेकिन चुनाव की तारीखों के एलान के साथ ही EVM पर सवाल उठ गए.
उद्धव ठाकरे की शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा कि महाराष्ट्र में चुनाव की तारीखों का ऐलान भले हो गया हो, उसका स्वागत भी है, लेकिन विरोधी दलों को EVM पर भरोसा नहीं हैं क्योंकि जो हरियाणा में हुआ, वो महाराष्ट्र में भी हो सकता है. संजय राउत ने कहा कि महाराष्ट्र के चुनाव में चुनाव आयोग को अपनी निष्पक्षता साबित करनी पड़ेगी.
कांग्रेस के नेता राशिद अल्वी ने भी यही आरोप दोहराया. उन्होंने कहा कि इज़राइल ने हिज़बुल्ला के पेजर हैक करके लेबनान में धमाके कर दिए, इज़राइल हैकिंग में माहिर हैं और मोदी के इज़राइल के साथ अच्छे रिश्ते हैं, इसलिए बीजेपी इज़राइल की मदद से EVM भी हैक कर सकती है. राशिद अल्वी ने कहा कि महाराष्ट्र में सभी विपक्षी दलों को EVM के बजाए बैलेट पेपर से चुनाव की मांग करनी चाहिए.
लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने EVM और चुनाव प्रक्रिया पर उठे हर सवाल का विस्तार से जवाब दिया. राजीव कुमार ने कहा कि दुनिया में कहीं भी भारत जैसी पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया नहीं है, इसके बाद भी सवाल उठाने वाले हर बार नए-नए मुद्दे उठा लाते हैं. जो लोग पेजर की हैकिंग को EVM से जोड़ रहे हैं, उन्हें इतना भी नहीं मालूम EVM इंटरनेट या किसी सैटेलाइट से कनेक्ट नहीं होता. ऐसे लोगों को वह क्या जवाब दें?
राजीव कुमार ने कहा कि जहां तक हरियाणा के चुनाव को लेकर की गई शिकायतों का सवाल है तो किसी शिकायत में कोई ठोस आरोप नहीं हैं. चुनाव आयोग हर शिकायत का अलग-अलग जवाब देगा.
चूंकि हरियाणा में मतों की गिनती के दौरान EVM की बैटरी को लेकर सवाल उठे थे, इस पर राजीव कुमार ने पूरी प्रक्रिया समझाई. उन्होंने कहा कि जब EVM में बैटरी डाली जाती है, तो उस पर भी उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों के दस्तखत होते हैं, हर पोलिंग बूथ में भेजी गई EVM के नंबर्स भी उम्मीदवारों को दिए जाते हैं. EVM की सील जब भी खोली जाती है, उस वक्त भी उम्मीदवार मौजूद होते हैं. इसके बाद किसी तरह की हेराफेरी का सवाल कहां पैदा होता है? मेरी राय में, जो लोग चुनाव से पहले ही EVM पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें बहुत सारे सवालों के जवाब देने होंगे – क्या लोकसभा चुनाव में EVM ठीक था और हरियाणा में हैक हो गया? क्या कर्नाटक और हिमाचल में EVM ने ठीक काम किया और मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गड़बड़ हो गई? ऐसी बातों पर कौन यकीन करेगा?
आज एक बार फिर बताना पड़ेगा कि EVM मशीन एक कैलकुलेटर की तरह होती है. इसका इंटरनेट से ब्लूटूथ से, या किसी और रिमोट डिवाइस से कोई कनेक्शन नहीं होता. EVM की बैटरी कितनी है, ये मशीन क्लोज़ करते समय फॉर्म में लिखा जाता है, जिसपर उम्मीदवार या उसके एजेंट के दस्तखत होते हैं.
दूसरी बात, इतने बड़े देश में जहां हजारों EVM का इस्तेमाल होता है, जहां लाखों सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया से जुड़े होेते हैं, कोई किसी मशीन की हैकिंग कैसे कर सकता है? और अगर कोई हेराफेरी करे तो ये बात छुपी कैसे रह सकती है?
चुनाव में हार जीत होती रहती है पर अपनी हार के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराना या EVM मशीन का सवाल उठाना, बचकानी बात लगती है. चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है. अगर संवैधानिक संस्थाओं पर बिना सबूत के सवाल उठेंगे तो इससे हमारे लोकतंत्र को नुकसान पहुंचेगा.
EVM: EC Clears All Doubts
Normally questions are raised about EVMs (electronic voting machines) and Election Commission after elections are over, but on Tuesday, the question of EVM was raised soon after EC declared the poll schedules for Maharashtra and Jharkhand assembly elections. Shiv Sena (Uddhav) leader Sanjay Raut said, opposition parties do not trust the working of EVMs and what happened in Haryana can be repeated in Maharashtra too. Raut said, EC will have to prove its impartiality in Maharashtra elections. Congress leader Rashid Alvi alleged that EVMs could be manipulated just like Hezbollah pagers which were hacked by Israel to carry out blasts in Lebanon. Alvi appealed to opposition parties to demand voting through paper ballots.
At his press conference, Chief Election Commissioner Rajiv Kumar rubbished this allegation and cleared all doubts. He said, “our EVMs are more robust than Hezbollah’s pagers and they are 100 per cent foolproof. EVMs cannot be hacked. Pagers are connected devices, but EVMs are not. Similar allegations were made earlier that votes cast in favour of one party were going to another.”
Regarding the 20 complaints received from Congress candidates about EVMs, Rajiv Kumar said, EC would write separately to each complainant with detailed facts and proof of candidates’ or their agents’ invoment in handing of EVMs at every stage”.
The CEC said, “where in the world is there so much public disclosure and participation? Results have differed in election after election and when the result is adverse, then the result is termed as wrong.”
Rajiv Kumar explained the entire polling and counting process. “When EVMs are commissioned, symbols loaded and new batteries installed, candidates or their agents sign on the seal. EVMs are kept in strongrooms with double lock and three layers of security. All processes are videographed. Counting area is barricaded. How can there be a mix-up when candidates and their agents check things round after round?”
I think, those who are again questioning EVMs, will have to answer many questions. One, Were EVMs working perfectly during Lok Sabha polls, but were hacked during Haryana polls? Did EVMs work perfectly in Karnataka and Himachal Pradesh, but were tampered with in MP and Chhattisgarh? Who will believe such allegations?
Let me reiterate. An electronic voting machine is just like a calculator, and it has no connection with internet via Bluetooth or any remote device. The battery usage of an EVM is writter on the form at the time the EVM is packed and sealed. It is countersigned by candidates or their agents.
Secondly, in a big country like India, where thousands of EVMs are used, lakhs of government employees are involved in the electoral process, how can EVMs be hacked? And if some people tamper with the EVMs, how can the matter remain a secret?
Victories and defeats do take place during elections, but to blame defeat on the Election Commission or to raise questions about EVM tampering, is, I think, childish. The Election Commission is a Constitutional body. If leaders start pointing fingers at our Constitutional bodies, without any solid proof, it can ultimately damage our democracy.
बाबा सिद्दीकी की हत्या: एक गैंगस्टर के सामने प्रशासन इतना मजबूर क्यों?
मुंबई में NCP नेता बाबा सिद्दीकी की सनसनीखेज हत्या ने सब को चौंका दिया है. पुलिस ने कोर्ट में खुलासा किया है कि बाबा सिद्दीकी की हत्या के तार गैंगस्टर गिरोह के सरगना लारेंस बिश्नोई से जुड़ने के सबूत मिले हैं. पुलिस का दावा है कि शूटर्स को बाबा सिद्दीकी के साथ-साथ उनके बेटे ज़ीशान सिद्दीकी को भी मारने का आदेश दिया गया था.
पुलिस ने इस केस में अब तक कुल 6 अपराधियों की पहचान की है जिनमें से तीन पुलिस की गिरफ्त में हैं. दो शूटर्स गुरमेल सिंह और धर्मराज कश्यप को तो पुलिस ने हत्या के कुछ ही घंटों के बाद पकड़ लिया था. तीसरे आरोपी प्रवीण लोनकर की गिरफ्तारी पुणे से हुई.
अब तक की पूछताछ में शूटर्स ने बताया कि उन्हें लारेंस गैंग की तरफ से सिर्फ टारगेट बताए गए थे, रुकने, रेकी करने से लेकर हथियार सब कुछ मुहैया करवाया गया. हर लड़के की जिम्मेदारी तय थी लेकिन किसी को ये नहीं मालूम कि हत्या का आदेश देने वाला कौन था? किसके कहने पर बाबा सिद्दीकी पर हमला हुआ?
इन शूटर्स ने बताया कि उन्हें बाबा सिद्दीकी और उनके बेटे जीशान को खत्म करने टारगेट दिया गया था. गुरमैल सिंह, धर्मराज कश्यप और प्रवीन लोनकर गिरफ्तार हो चुके हैं. एक शूटर शिव कुमार गौतम फरार है. शिव कुमार गौतम ने ही बाबा सिद्दीकी पर निशाना लगाकर फायरिंग की थी. पांचवा आरोपी ज़ीशान अख्तर फरार है. ज़ीशान शूटर्स के साथ कॉर्डिनेट कर रहा था. छठा आरोपी शुभम लोनकर भी फरार है.
शुभम लोनकर उर्फ सुबु लोनकर प्रवीण लोनकर का भाई है. इन दोनों ने शूटर्स शिवकुमार और धर्मराज को हमले के लिए तैयार किया, मुंबई में इनके रहने का इंतजाम किया, हथियार दिए. बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद शुभम लोनकर ने ही फेसबुक पोस्ट में हत्या की जिम्मेदारी ली. अपने पोस्ट में लॉरेंस बिश्नोई गैंग और अनमोल विश्नोई को टैग किया.
पुलिस को शक है कि बाबा सिद्दीकी की हत्या में ये सारे नौसिखिए तो मोहरा है, इसके पीछे बड़े अपराधियों का हाथ है. हैरानी की बात ये है कि 6 आरोपियों में से 4 का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है. बाबा सिद्दीकी की हत्या अब महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा मुद्दा बन गया है.
मेरा ये मानना है कि जिस तरह से बाबा सिद्दीकी की हत्या की गई, वो चौंकाने और डराने वाला है. बाबा के पास Y कैटेगरी की सुरक्षा थी. लेकिन सुरक्षाकर्मी उसे बचा नहीं पाए. वो तो कहीं नजर भी नहीं आए. बाबा को जान से मारने की धमकी मिली थी. पुलिस को थ्रेट परसेप्शन की जानकारी थी, तो भी हत्यारे आकर प्वॉइंट ब्लैंक से गोली मारकर चले गए.
सबसे बड़ी बात ये है कि 20-22 साल के लड़कों को इस काम के लिए लिया गया. उनमें कई ऐसे हैं जिनकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है. और वो पहली हत्या करके हीरो बन रहे हैं. अपने काले कारनामों को सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं. ये एक पैटर्न है, जो दिल्ली से लेकर मुंबई तक दिखाई दे रहा है. अगर ये काम जेल में बंद लॉरेंस बिश्नोई का है तो और भी चिंता की बात है.
एक खतरनाक अपराधी जेल में बैठकर अपना गैंग कैसे चला सकता है? उसने 200 लड़कों को शूटिंग की ट्रेनिंग देकर हत्या करने के लिए तैयार कैसे कर लिया? और पुलिसवाले बताते हैं कि लॉरेंस बिश्नोई ये काम 10-20 हजार रुपये में करवा लेता है. ऐसा कैसे हो सकता है कि वो जिसको चाहे हायर करे, जिसपर चाहे गोली चलवा दे.
हमारी सुरक्षा एजेंसियां क्या कर रही है? क्या इंटेलीजेंस फेल हो गई? सवाल सिर्फ..बाबा सिद्दीकी का, या दिल्ली में जिम के बाहर मारे गए नादिर शाह का नहीं है. सवाल ये है कि दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में खुलेआम गैंगवॉर चल रही है.
यूपी, हरियाणा और पंजाब से लड़कों को हायर करके हत्या कराने का कारोबार जारी है. किसी को तो इसका जवाब देना पड़ेगा. किसी को तो अपराध की इस आंधी पर रोक लगानी पड़ेगी.
यूपी में योगी आदित्यनाथ ने यह करके दिखाया है. उन्होंने अपराधियों के दिलों में खौफ पैदा किया है. माफिया का खात्मा करने का एक मॉडल तैयार किया है. इस मॉडल को बाकी राज्यों में भी लागू करने की जरूरत है. जो भी सरकार ऐसा करेगी, मुझे विश्वास है, उसको पब्लिक का पूरा समर्थन मिलेगा.
Baba Siddique Murder: Why is the system so helpless in front of a gangster?
The sensational murder of NCP leader Baba Siddique has shocked the nation, with Mumbai Police telling the court that it has evidence of the involvement of Lawrence Bishnoi gang’s shooters in this crime.
Police says, the arrested shooters have disclosed that they were asked to kill Baba’s MLA son Zeeshan Siddique too. Two shooters, Gurmail Singh and Dharmraj Kashyap were arrested within hours of the crime, while a third person, Praveen Lonkar, described as conspirator, was nabbed from Pune. The third shooter, Shiv Kumar Gautam, is absconding, while their coordinator Zeeshan Akhtar has gone underground. Police says, the shooters were hired by Praveen Lonkar and his brother Shubham Lonkar alias Subu.
It was Shubham Lonkar who had taken responsibility for the murder of Baba Siddique by posting his comments on social media. He had tagged Lawrence Bishnoi going and Anmol Bishnoi in his post. Top police officials believe that this could not be the handiwork of a bunch of novices, but some big criminals are involved in the conspiracy. Four out of the six suspects have no past criminal records.
Already Maharashtra politics is on the boil over the murder of the NCP leader. The manner in which Baba Siddique was murdered is shocking and frightening. Baba had ‘Y’ category security, but his securitymen could not save him. They were not seen at the time of crime. Baba had received threats to his life and police was aware of the threat perception. Yet the killers came, shot point-blank at him and fled.
The worrying part is that youths in the age group 20-22 years were hired to carry out this murder. They had no previous criminal background. They and their co-conspirators are proudly posting their comments on social media. There appears to be a pattern in this, from Delhi to Mumbai.
If this murder is the handiwork of a criminal gangster like Lawrence Bishnoi sitting inside a jail, then it is more worrying. How can a dangerous criminal run his gang, sitting within the confines of a prison? How did he manage to train more than 200 youths in the art of shooting? Police officials say, Lawrence Bishnoi gets these murders done, by charging only Rs 10-20,000.
How can it be that he can hire anybody and make them fire at his targets? What are our security agencies doing? Has their intelligence machinery failed? The question is not confined to Baba Siddique alone, or a gym owner Nadir Shah, who was shot outside his gym in Delhi’s Greater Kailash. The main question is: open gang war is going in big metros like Delhi and Mumbai, where youths hired from UP, Haryana and Punjab are carrying out killings.
Somebody will have to answer. Somebody will have to put a brake on this crime wave. Yogi Adityanath has done this in Uttar Pradesh. He and his police have struck fear in the hearts of criminals and a model has been created to eliminate mafia gangs. Such a model needs to be replicated in other states too. Any government that follows this model will, I think, surely get public support.
How to say ‘TATA’ to the ‘RATAN’ of India?
With the passing away of Ratan Tata and appointment of Noel Tata, aged 67 as chairman of Tata Trusts, the over $ 100 billion Tata group has undergone a major changeover. The nation mourned the death of the patriarch, as corporate chieftains, top political leaders and celebrities came to pay their last respects in Mumbai. Under Ratan Tata, the group rose from a turnover of $4 billion to over $100 billion in 21 years. From salt, tea and coffee to airconditioners, cars, trucks, airlines, hotels, hospitals, steel and telecom, one can find the Tata group omnipresent in everyday life of each Indian. Ratan Tata was not merely a businessman or the patriarch of the group. He was an institution. He was the ideal industrialist, inspiration for youths and a blessing for the poor. It was he who brought the Tata group in the international automobile sector, gave the Indian middle class a dream to own a car.
Ratan Tata owned billions worth properties, but he always preferred to stay with his roots, living a simple life. During Covid pandemic, he opened the doors of Taj Hotel for patients who were unable to get beds in hospitals. His heart for the canines led him to refuse an invitation to the Buckingham Palace, because his pet dog was ill and he did not want to leave his side. When workers were being asked to vacate their homes, he listened to the appeal of workers and gave ownership rights to the employees. His vision was big. His group acquired international automobile brands Land Rover and Jaguar, and when the government-owned Air India was in dire straits, Ratan Tata decided to acquire Air India and gave it a new facelift. He had the Midas touch and made whichever industry he acquired a success. Words are not sufficient to speak about Ratan Tata’s philanthropic acts. While the doyens of Indian corporates, Microsoft founder Bill Gates, top politicians and celebrities paid their last respects to the departed patriarch, why was the common man on the street emotional on learning about Ratan Tata’s death? He was a businessman, he earned money for his companies, but why was the common Indian sad? One should try to understand.
Ratan Tata did not earn fame because of his wealth. It was the love and affection of the common man, because of his basic qualities, that made him great. Normally you do not find such levels of humility among people who head corporates. Ratan Tata was soft-spoken, the epitome of humility. He never showed off his wealth or displayed his clout. Yet he was always ready to help the needy. We heard many stories about how he helped people when somebody wanted assistance to build a hospital, when somebody wanted financial help for treatment, and when a person sought his help in getting admission. He had a large heart. Ratan Tata preferred to live a simple life, devoid of the usual trappings. He preferred to drive his car himself. He never moved around with his entourage of assistants. The common man noticed how Ratan Tata used to strictly follow protocol. Getting a physical body security check, or standing in a queue at an airport was not a problem for him. These are matters which one saw in public. But there are matters which outsiders do not know.
He had a clear heart. He never used unfair means to expand his business. He never used questionable means to dislodge his competitor. All these qualities came to the fore during his interactions, when he spoke to the new generation. Many a times he used to speak about trivial matters. He used to tell the youths not to start business only for making money. He used to advise them to start business to create a new identity. Such advices from Ratan Tata were followed by most of the people who had the fortune to interact with him. Men like Ratan Tata do not die. They rule the hearts of people with their work, their thoughts, their simple life and their personality. They live forever. For the young generation, its biggest tribute to Ratan Tata could be: at least learn something from his life and implement it in your own life.
भारत के इस ‘रतन’ को विदा के लिए ‘टाटा’ कैसे कहें ?
रतन टाटा नहीं रहे. इस ‘रतन’ को ‘टाटा’ कैसे कहें? भारत के इस महान सपूत को अलविदा कैसे कहें? कैसे यकीन करें कि रतन टाटा अब इस दुनिया में नहीं रहे? रतन टाटा का काम और नाम इतना बड़ा है कि आप अपने आसपास देखेंगे तो हर जगह उनकी उपस्थिति का एहसास होगा. AC टाटा का, TV टाटा का, Tea-coffee टाटा की, कार से लेकर एयरलाइन तक सब टाटा की, Hotels और Hospitals टाटा के, कैंसर का इलाज टाटा का, रिसर्च टाटा की, steel हो या telecom, हर फील्ड में आपको टाटा की मौजूदगी मिलेगी. इसीलिए रतन टाटा कहीं नहीं जा सकते, वो आपको रोज़ नज़र आएंगे, यहीं मिलेंगे. रतन टाटा सिर्फ एक बिजनेसमैन नहीं थे. वह सिर्फ टाटा ग्रुप के सर्वेसर्वा नहीं थे. रतन टाटा एक संस्थान थे, एक विचार थे. रतन टाटा किसी न किसी रूप में हम सबकी जिंदगी से जुड़ गए थे. उद्योगपतियों के आदर्श थे, युवाओं के लिए प्रेरणा थे, गरीबों के लिए मसीहा थे. रतन टाटा ने टाटा ग्रुप को दुनिया भर में फैलाया. टाटा का नमक तो देश पहले से खा रहा था, लेकिन टाटा की चाय घर-घर की किचन में रतन टाटा ने पहुंचाई. मिडिल क्लास को कार का सपना रतन टाटा ने दिखाया. भारत के ऑटोमोबाइल सेक्टर को इंटरनेशनल रतन टाटा ने बनाया. मिनरल वाटर से लेकर विस्तारा एयर लाइन तक सब रतन टाटा का है. रतन टाटा शोहरत की बुलंदियों पर थे, अपार दौलत थी, लेकिन हमेशा जमीन से जुडे रहे. इंसानियत का जज्बा ऐसा था कि कोरोना काल में जब अस्पतालों में मरीजों के लिए जगह नहीं थी तो मुंबई में ताज होटल के दरवाजे कोरोना मरीजों के लिए खोल दिए. दिल में दया इतनी कि प्रिंस चार्ल्स का बर्मिंघम पैलेस में आने का न्योता इसलिए नामंजूर कर दिया क्योंकि उनका पेट डॉग बीमार था. वो उसे छोड़कर नहीं जाना चाहते थे. सेवा भाव ऐसा कि टाटा कंपनी के घरों से मजदूरों को निकाला जा रहा था, मजदूरों ने रतन टाटा से अपील की, तो कंपनी के घर मजदूरों के नाम कर दिए. उन्हें घरों का मालिकाना हक़ दे दिया. सोच इतनी बड़ी कि लैंड रोवर और जगुआर जैसे बड़े अन्तरराष्ट्रीय ब्रैंड्स को खरीद लिया. एयर इंडिया खतरे में पड़ी, तो एयर इंडिया खरीद लिया. रतन टाटा वाकई भारत के सच्चे रत्न थे. उन्होंने जिस कारोबार को छुआ, वो सोना उगलने लगा, खूब पैसा कमाया, लेकिन काफी कुछ दान दे दिया. रतन टाटा के व्यक्तित्व को शब्दों में समेटना नामुमकिन है. उनकी खूबियां गिनाने के लिए अल्फाज़ कम पड़ जाते हैं. रतन टाटा का अन्तिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया लेकिन लोगों के दिलों में रतन टाटा हमेशा बसे रहेंगे. रतन टाटा को लेकर आज लोग इतने भावुक क्यों हैं? रतन टाटा उद्योगपति थे, बिजनेस चलाते थे, पैसा कमाते थे, तो फिर उनको लेकर आज घर-घर में लोग दुखी क्यों हैं? इसे समझने की ज़रूरत है. रतन टाटा को उनकी जायदाद ने बड़ा नहीं बनाया. उन्हें लोगों का प्यार मिला, उनके बुनियादी गुणों के कारण. ऐसी बातों को लेकर जो आमतौर पर बड़े लोगों में नहीं मिलतीं. रतन टाटा विनम्र थे, कभी अपनी जायदाद का दिखावा नहीं करते थे, कभी अपनी ताकत का प्रदर्शन नहीं करते थे. रतन टाटा दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे. आज ऐसे अनेक अनुभव हमें सुनने को मिले. किसी ने अस्पताल बनाने के लिए मदद मांगी, किसी ने इलाज के लिए, किसी ने एडमिशन के लिए. रतन टाटा ने सबकी खुले दिल से मदद की. ऐसी बहुत सारी कहानियां आपको सुनने को मिल जाएंगी. रतन टाटा की सादगी को भी लोगों ने पसंद किया. वो खुद कार ड्राइव करते थे, न कोई तामझाम, न भीड़भाड़. आम लोग देखते थे कि रतन टाटा हमेशा प्रोटोकॉल का पालन करते थे, सिक्योरिटी चेक कराने और लाइन में खड़े होने में उन्हें कोई समस्या नहीं थी. लेकिन ये सब वो बातें थी जो ऊपर से दिखाई देती थी. इन सबसे ऊपर जो बात थी, अंदर की बात, वो ये कि रतन टाटा दिल के साफ थे. कारोबार को आगे बढ़ाने में उन्होंने ग़लत हथकंडों का सहारा नहीं लिया. अपनी कंपनी को ऊपर उठाने के लिए किसी दूसरी कंपनी को गिराने का काम नहीं किया और रतन टाटा के ये सारे गुण उनकी बातचीत में नज़र आती थी. जब वो नई पीढ़ी के लोगों से बात करते थे तो बहुत सारी छोटी-छोटी बातें बताते थे, लेकिन वो बड़े काम की होती थी. वो नौजवानों से कहते थे कि सिर्फ पैसा कमाने के लिए कारोबार शुरू मत करो. बिजनेस शुरू करो अपनी अलग पहचान बनाने के लिए. रतन टाटा की ऐसी बातें लोगों के दिलों में उतर जाती थी. इसीलिए मैंने कहा कि रतन टाटा जैसे लोग मरा नहीं करते. वो अपने कर्म से, विचार से, अपनी सादगी से, अपने व्यक्तिव से हमेशा लोगों के दिलों पर राज करते हैं. हमेशा जिंदा रहते हैं. रतन टाटा को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके जीवन से कुछ सीखें और अपने जीवन में उतारें.
मोदी ने फिर ललकारा: कांग्रेस के जातिवाद का पर्दाफाश किया
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि हरियाणा के चुनाव नतीजे देश के मूड को दर्शाते हैं. मोदी ने कहा कि कांग्रेस का एजेंडा नफरत और ज़हर फैलाना है, वोटों के चक्कर में कांग्रेस हिन्दुओं को बांटना चाहती है. प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस सनातन से नफरत करती है क्योंकि इसमें उसको वोटों का फायदा होता दिखाई देता है.
नरेंद्र मोदी ने याद दिलाया कि गांधी जी ने आजादी के बाद कहा था कांग्रेस को अब खत्म हो जाना चाहिए. कांग्रेस तो खत्म नहीं हुई लेकिन अब देश को खत्म करने की साजिश में जुटी है. मोदी का हमला कल से और ज्यादा करारा था. मोदी ने कहा कि हरियाणा के लोगों ने कांग्रेस को आइना दिखा दिया. उन्होने कहा कि कांग्रेस का चुनावी फॉर्मूला है, मुसलमानों को डराओ और हिन्दुओं को बांटों.
मोदी ने कहा कि कांग्रेस मुस्लिम जातियों की बात नहीं करती क्योंकि इससे उसके वोटबैंक के बिखरने का खतरा होता है लेकिन हिन्दुओं को जातियों में बांटती है क्योंकि हिन्दुओं की एकजुटता से कांग्रेस को डर लगता है. मोदी ने कहा कि कांग्रेस समाज में ज़हर घोलने वाली जातिवादी और सांप्रदायिक पार्टी बन गई है और ये बात अब देश समझ रहा है.
मोदी के तेवर, मोदी की आवाज़ और मोदी के अंदाज़ में एक बार फिर पुरानी खनक दिखाई दी. ऐसा लगा जैसे मोदी का आत्मविश्वास अब high पर है. मोदी ने आज हर उस सवाल का जवाब दिया जो लोकसभा चुनाव में कम सीटें आने के बाद उठाए गए थे. मोदी ने जता दिया कि न तो मोदी की लोकप्रियता कम हुई है, न देश का मूड बदला है और न ही कांग्रेस बीजेपी को जीतने से रोक पाई है.
मोदी के आज के भाषण का दूसरा हिस्सा लोगों को ये बताने के लिए था कि कांग्रेस मुसलमानों के वोट पाने के लिए हिंदुओं को आपस में बांटती है. ये लोकसभा चुनाव में हिंदू वोटों के जातियों में बंटने के संदर्भ में था लेकिन आज लगा कि अब मोदी आश्वस्त हैं, कि काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती. हरियाणा में बीजेपी को सब वर्गों के वोट मिले और इससे बीजेपी में एक नया विश्वास जागृत हुआ है और एंटी-मोदी मोर्चे का आत्मविश्वास हिल गया है.
इसका असर महाराष्ट्र, झारखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में देखने को मिल रहा है. महाराष्ट्र में .कांग्रेस लोकसभा चुनाव नतीजों के आधार पर ज्यादा सीटों पर दावा ठोंक रही थी, लेकिन हरियाणा के चुनाव नतीजों ने बाजी पलट दी. कांग्रेस की bargaining power खत्म हो गई. अब उद्धव ठाकरे इस बात का दबाव बना रहे हैं कि उन्हें महाविकास अघाड़ी की तरफ से मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया जाए, चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा जाए.
यूपी में अखिलेश यादव ने 10 विधानसभा उपचुनावों में 6 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों का एकतरफा ऐलान कर दिया. अखिलेश यादव को ये बात तो लोकसभा चुनाव के वक्त ही समझ आ गई थी कि उत्तर प्रदेश में अलायन्स का फायदा समाजवादी पार्टी को कम कांग्रेस को ज्यादा हुआ है.मध्य प्रदेश और हरियाणा में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को एक भी सीट नहीं दी. अखिलेश यादव कांग्रेस को जबाव तो देना चाहते थे, वो सही मौके के इंतजार में थे.हरियाणा के चुनाव नतीजों ने मौका दे दिया और अखिलेश ने उसे लपक लिया.
दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने ऐलान कर दिया कि विधानसभा चुनाव में कोई गठबंधन नहीं होगा. वैसे हकीकत ये है कि अरविन्द केजरीवाल हरियाणा में कांग्रेस की मदद से पैर जमाना चाहते थे लेकिन कांग्रेस को लग रहा था कि हवा उसके पक्ष में हैं, इसलिए कांग्रेस ने आखिरी वक्त तक केजरीवाल को लटकाए रखा और ऐन मौके पर अलायन्स से इंकार कर दिया. नाराज़ केजरीवाल ने सभी नब्बे सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए. केजरीवाल का तो खाता भी नहीं खुला, लेकिन कांग्रेस का सत्ता में लौटने का सपना टूट गया.
Vintage Modi is back: Exposes Congress on caste
A day after the spectacular Haryana victory, Prime Minister Narendra Modi sharpened his attack on Congress saying, the results of Haryana reflect the nation’s mood. He said, Congress was trying to spread its ‘hateful and poisonous agenda’ by dividing Hindus among caste lines for partisan ends. Modi said, “Congress never raises the issue of caste divisions within the Muslim community. Its formula is simple: keep Muslims as a vote bank by spreading fear, and divide Hindu society on caste lines to score electoral advantage…The same Congress leaders who raise caste division issue among Hindus remain mum about caste divisions among Indian Muslims”.
The Prime Minister’s tone and tenor of speech reminds one of Vintage Modi, whose self-confidence now seems to be on a high. Modi replied to all questions that were being raised after BJP’s seat tally was reduced in the Lok Sabha elections. He made it clear that neither has his popularity waned, nor has the nation’s mood changed for the Congress to stop his BJP juggernaut. Modi’s speech was meant to convey to the people that the Congress was trying to divide only Hindus, and not Muslims. This was in reference to the vote divisions that were noticed among Hindu castes during the Lok Sabha elections.
There is a Hindi proverb, ‘Kaath Ki Haandi Baar Baar Nahin Chadhti’ (you can deceive once, but not always). BJP got voters from all sections of society this time in Haryana and the party has regained its mojo.
On the other hand, the anti-Modi bloc appears to be demoralized and already knives are out among the allies against the ‘arrogant’ attitude of Congress party. The immediate consequences are being seen in Maharashtra, Jharkhand, UP and Delhi.
In UP, Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav snubbed the Congress and unilaterally declared the names of six candidates out of 10 seats going for byelections, without consulting his ally. Akhilesh had already realized that the gains made in LS elections by Congress in UP was at the cost of Samajwadi Party, while in Madhya Pradesh and Haryana, Congress refused to share a single seat with his party. The Congress was demanding five out of the 10 seats in UP assembly byelections. Akhilesh was waiting for the right moment, and he struck the day after the Haryana results were out.
In Maharashtra, Congress, which had been asking for more seats in Maha Vikas Aghadi, has now lost its bargaining power, and Shiv Sena (UBT) chief Uddhav Thackeray is pressing for the MVA to declare him as the chief ministerial candidate. The allies are now telling Congress that it derives its strength from INDIA bloc, and the party has no clout in the absence of an alliance.
In Delhi, Aam Aadmi Party has declared that there would be no alliance with Congress for assembly polls. Arvind Kejriwal wanted a toehold in Haryana, but the Congress leaders, feeling the ‘wind’ blowing in favour of the party, kept the seat-sharing issue hanging and rejected AAP’s request at the last moment. A furious Kejriwal fielded his candidates in all the 90 seats in Haryana. Though his party drew a blank, it halted Congress from returning to power.