Rajat Sharma

My Opinion

PAK VIOLENCE: WRITING ON THE WALL

AKBThe world is amazed as it watches visuals of commoners attacking the Pakistan army installations and vehicles in the aftermath of nationwide violence following the arrest of Pakistan Tehreek-i-Insaaf chairman Imran Khan. Army has been called out to help civil administration in Islamabad, Punjab, Balochistan and Khyber Pakhtoonkhwa. Mobs set fire to Radio Pakistan building in Peshawar and the corps commander’s residence in Lahore. The man on the street in Pakistan, who used to be in awe of the army in the past, has now decided to give the army a fight. People know that Imran Khan was arrested not by the National Accountability Bureau, but by the Army and ISI. Watching the fast-paced developments in Pakistan, I feel, Pakistan Army, ISI and Prime Minister Shehbaz Sharif have unwittingly made Imran Khan a hero again. When Imran Khan was Prime Minister, the man on the street was unhappy with his regime, because he failed to fulfil his promises. Imran Khan had made lofty promises before coming to power. He had floated ridiculous ideas for transforming Pakistan’s economy, but it was not practically possible to implement them in Pakistan. Imran Khan appeared to be failing as a Prime Minister. Had he remained in power, he might not have won elections again, but in Pakistan, important political decisions are not taken on the basis of prevailing public opinion. Neither the decision to unseat Imran Khan as PM was justified, nor the decision to grab him by his collar and putting him behind bars was correct. After being removed from power, Imran Khan went before the people and became a successful leader in a true sense. The words that he spoke a day before his arrest in a widely circulated video, caught the imagination of the people. The man on the street became ready to fight his battle against the establishment. That single video made Imran a mass leader among the people. The evidence lies in the fact that thousands of people have come out on the streets to protest and fight the army. The people are not scared of the army. These commoners, in the coming days and weeks, will become the biggest strength of Imran and his party. The surprising part is that neither the Pakistan Army nor Prime Minister Shehbaz Sharif and his alliance partners are unwilling to read the writing on the wall.

KARNATAKA RESULT: DIFFICULT TO PREDICT

It is very difficult to say how far the exit poll predictions for Karnataka assembly elections will prove to be true. Whenever an election is closely contested, it is difficult to predict the correct result. In 2018, the contest was close in Karnataka, and the elections threw up a hung assembly. All the opinion poll predictions proved false. One should not be surprised if the exit poll predictions prove wrong this time. There are some factors which are new this time. Firstly, Janata Dal(S) earlier used to be a big factor and was making most of the contests triangular, but this time, JD(S) is no more a big factor. There are straight contests between Congress and BJP for most of the seats this time. There was a clear change in Congress leadership this time unlike the earlier elections. The party properly managed infighting between its leaders, but the BJP failed to manage its leaders and the fighting came out in the open. Secondly, Congress was clear in its strategy this time. It decided to focus only on local issues. In the initial phase, there was no confusion in the party, but later, BJP changed the game. The moment Congress equated PFI with Bajrang Dal in its manifesto, it marked the entry of Lord Bajrangbali in the election and the Congress leadership was confused. The main election issue changed. The second biggest problem for the Congress was that it had not a single campaigner to match the charisma of Narendra Modi. The Prime Minister, through his rallies and road shows, changed the way the wind was blowing. Modi toiled hard, but the main campaigner for Congress, Rahul Gandhi appeared to be a reluctant campaigner. Nobody can say what will be the final result. No pollster could predict 282 for Modi in 2014 and 303 in 2019.

MODI IN CAMPAIGN MODE

Prime Minister Narendra Modi and Rajasthan chief minister Ashok Gehlot attending an event in Nathdwara to launch projects worth Rs 5,500 crore. Later Modi addressed a BJP rally in Mount Abu with former CM Vasundhara Raje. At the official event, the crowd shouted slogans in favour of Modi and did not allow Gehlot to speak. Modi had to intervene and he requested the people to listen to their chief minister. A peeved Ashok Gehlot said, opposition must be given respect in a democracy. He appealed to the PM to clear several pending projects in Rajasthan. At his rally, Modi attacked the Congress saying Rajasthan ministers do not have time to work for public welfare. Modi said, neither the CM trusts his MLAs, nor the MLAs trust their CM. “A competition to insult each other is going on in Rajasthan”, Modi said. Modi has his own style of working. At government events, he functions as a Prime Minister, but at BJP meetings, his changes as a campaigner. At the government function, he asked Gehlot to sit beside him, introduced him as his friend and praised, but at the BJP meeting, Modi raised the issue of ongoing tussle between Gehlot and his rival Sachin Pilot. This is Modi’s hallmark. Moreover, once an election campaign is over, Modi starts another campaign. After visiting Rajasthan, Modi’s next stop will be Madhya Pradesh.

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पाकिस्तान में हालात बेकाबू

AKBपाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को मंगलवार को पाक रेंजर्स की एक टुकड़ी ने गिरफ्तार कर लिया जिसके बाद पूरे देश हंगामा मच गया और चारों तरफ अफरा-तफरी मच गई। रेंजर्स ने इमरान खान को धक्का दिया और उनकी गर्दन को पकड़कर घसीटा। उन्हें एक बख्तरबंद गाड़ी में इस्लामाबाद हाईकोर्ट पररिसर से दूर ले जाया गया। इस कार्रवाई के दौरान पाक रेंजर्स जबरन हाईकोर्ट परिसर में घुस गए, जवानों ने खिड़की के शीशे तोड़ दिए पूर्व प्रधानमंत्री को गिरफ्तार कर लिया। इसके तुरंद बाद पाकिस्तान के लगभग सभी प्रमुख शहरों में देर रात तक घटनाएं या आगजनी और पत्थरबाजी हुई। मरान को अल-कादिर यूनिवर्सिटी ट्रस्ट के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया गया है। मंगलवार की रात उन्हें पुलिस लाइन में रखा गया और डॉक्टरों की टीम ने उनके स्वास्थ्य की जांच की। इमरान खान के केस में इस बात की कोई वैल्यू नहीं कि उन्हें किस केस में गिरफ्तार किया गया है। सारा पाकिस्तान जानता है कि शहबाज शरीफ की सरकार ने इमरान के खिलाफ 121 मामले दर्ज किए हैं। कई बार उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की गई। लेकिन कभी इमरान खान के समर्थकों ने रोक दिया तो कभी अदालत ने। इस बार इमरान को उठाने का पूरा प्लान ISI ने बनाया। रेजर्स ने पूरी प्लानिंग के साथ इमरान को गिरफ्तार किया। ISI इमरान को लेकर इतनी आक्रामक क्यों है ? ये कोई रहस्य नहीं है। इमरान खान कई दिनों ने ISI के मेजर जनरल फैसल नसीर पर आरोप लगा रहे हैं। मेजर जनरल को डर्जी हैरी कहते हैं और इमरान ने कई बार कहा कि डर्टी हैरी ने दो बार उनकी हत्या कराने की कोशिश की। अब मेजर जनरल इमरान को झूठा और फर्जी साबित करना चाहते हैं। मंगलवार को उन्होंने दिखा दिया कि इमरान खान पैर में गोली लगने की वजह से व्हील चेयर पर चलते थे लेकिन वो अपने पैरों पर चलकर पुलिस की गाड़ी में बैठे या कहें उन्हें पैरों पर चला कर रेंजर्स ने पुलिस की गाड़ी में बैठाया। अब ISI के मेजर जनरल यह साबित करने की कोशिश करेंगे कि इमरान खान के पैर में कोई गोली-वोली नहीं लगी, ये सब ड्रामा था। इमरान को ISI ने गिरफ्तार करवाया, लेकिन इसमें शहबाज शरीफ की पूरी भूमिका है। जिन रेंजर्स ने इमरान खान को कोर्ट रूम की खिडकियों के शीशे तोड़ कर कॉलर पकड़कर घसीटा वो पाकिस्तान के गृह मंत्री के लिखित आदेश के बगैर एक्शन नहीं लेते। लेकिन जिस अंदाज में इमरान खान को गिरफ्तार किया गया उससे उन्हें जनता की सहानुभूति मिलेगी। जब लोग सड़कों पर उतरेंगे, हिंसा होगी, तो हालात और बिगड़ेंगे। दुख की बात ये है कि हालात को संभालने वाला कोई नहीं है। क्योंकि पाकिस्तान की फौज इस वक्त शहबाज शरीफ के साथ है और पाकिस्तान की न्यायपालिका इमरान खान के साथ है। दोनों एक दूसरे से स्कोर सैटल करने में लगे हैं। इसलिए पाकिस्तान में स्थिति और बिगड़ेगी। जहां तक भारत का सवाल है तो पड़ोस में अस्थिरता हमारे लिए अच्छी नहीं है। अपने घर में आग लगी हो तो आप उसे बुझा सकते हैं लेकिन पड़ोसी के घर में आग लगी हो और पड़ोसी दुश्मन हो तो उस आग की गर्मी परेशान करती है।

द केरल स्टोरी : फिल्म देखनेवालों को पीटना अपराध

पश्चिम बंगाल के हावड़ा के बेलूर स्थित रंगोली मॉल में पुलिस ने ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म देखने पहुंचे लोगों को थिएटर से घसीटकर बाहर निकाल दिया। दिलीप घोष सहित भाजपा के अन्य नेताओं ने इस कार्रवाई की निंदा की। महाराष्ट्र में एनसीपी नेता जितेंद्र आव्हाड ने फिल्म निर्माताओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। ‘द केरल स्टोरी’ को लेकर इतनी सियासत ना होती अगर कर्नाटक में चुनाव ना होते। अगर चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका जिक्र ना करते तो यह बड़ा मुद्दा नहीं बनता। लव जिहाद बीजेपी के लिए कोई नया मुद्दा नहीं है। केरल में लड़कियों को मुस्लिम बनाने और ISIS में भेजने का मुद्दा बीजेपी पहले भी उठाती रही है, लेकिन सियासत दोनों तरफ से बराबर की जा रही है। इस फिल्म का विरोध करने वाले, बैन लगाने वाले भी अपने अपने मुस्लिम वोट बैंक को इंटेक्ट करना चाहते हैं। हैरानी इस बात पर है कि बीबीसी की गुजरात दंगों पर बनी फिल्म पर जब पाबंदी लगाई गई थी तब ममता बनर्जी ने उसका विरोध किया था अब ममता बनर्जी ‘द केरल स्टोरी’ को रोकने में लगी हैं। जो लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते थे वो लोग इस बैन को लेकर खामोश हैं। मेरा कहना यह है कि इस मामले में चाहे जितनी पॉलिटिक्स हो, फिल्म कितनी भी बुरी हो, इसे देखने जाने वालों की पिटाई करना और पुलिस से उन्हें पकड़वाना जुर्म है। ये नहीं होना चाहिए।

राजस्थान में सियासी ड्रामा

कांग्रेस के असंतुष्ट नेता सचिन पायलट ने मंगलवार को कहा कि अब ये साफ हो गया है कि मुख्यमंत्री ‘अशोक गहोलत की नेता वसुंधरा राजे हैं, न कि सोनिया गांधी’। पायलट ने कहा कि अब लोग यह स्पष्ट तौर पर समझते हैं कि गहलोत ने वसुंधरा के शासन के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के आदेश क्यों नहीं दिए। सचिन पायलट अजमेर से जयपुर के लिए पांच दिवसीय पदयात्रा शुरू करेंगे। गहलोत सरकार के कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने भी अशोक गहलोत पर निशाना साधा। प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि 2020 में अगर राजस्थान की सरकार गिरने से बची थी तो उसके पीछे सिर्फ और सिर्फ सोनिया गांधी और राहुल गांधी थे। किसी और को उसका क्रेडिट नहीं लेना चाहिए, ना ही किसी को इस बात की गलतफहमी होनी चाहिए कि उसने सरकार बचाई थी। मेरा मानना है कि सारी दुनिया जानती है कि सचिन पायलट ने अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत की थी पर कांग्रेस इसे स्वीकार नहीं करती। सबको पता है कि अशोक गहलोत ने अपनी चतुराई से पार्टी द्वारा मुख्यमंत्री बदलने के प्लान को पलीता लगा दिया था लेकिन कांग्रेस इसे नहीं मानती। हर किसी को पता है कि गहलोत और पायलट इसी तरह टकराते रहे तो राजस्थान में कांग्रेस को भारी नुकसान होगा और कांग्रेस इस मामले में भी डिनायल मोड में है। सबसे दिलचस्प बात ये है कि सचिन पायलट अब ये साबित करने में लगे हैं कि गहलोत और वसुंधरा राजे आपस में मिले हुए हैं और ये बात बीजेपी को भी परेशान कर रही है।

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PAKISTAN IN TURMOIL

AKBPakistan was thrown into turmoil on Tuesday after former Prime Minister chairman Imran Khan was suddenly arrested by a contingent of Pak Rangers in connection with a corruption case. He was pushed, shoved and dragged by his neck by Rangers personnel, and whisked away from Islamabad High Court premises in an armoured vehicle. Pak Rangers personnel broke window panes, forcibly entered the High Court premises and nabbed the former PM. Soon after, incidents or arson and stoning took place late through the night in almost all major cities of Pakistan. Imran as arrested by National Accountability Bureau in connection with a corruption case involving money laundering through Al-Qadir University Trust. He was kept at police lines on Tuesday night and his health was checked by a team of doctors. It does not matter in which case Imran was arrested. The people of Pakistan know that Prime Minister Shahbaz Sharif’s government had filed 121 cases against Imran Khan, and in recent months, security forces tried to arrest him several times but failed. This time, the plan for his arrest was meticulously planned and executed by the all-powerful ISI (Inter Services Intelligence) of Pakistan army. The reason behind the aggressive stance of ISI towards Imran Khan is no secret. Imran had been alleging for the last several days that senior ISI officer Maj Gen Faisal Naseer has been working as ‘Dirty Harry’ and had tried to assassinate him twice. The ISI officer is now trying to prove Imran Khan wrong. The former PM, who had been travelling in a wheel chair for the last several months, was forced to stand up and walk to the armoured vehicle. The ISI major general will now try to prove that Imran Khan was never hit by a bullet in his leg, and it was a drama. The arrest was a clear ISI action, but the role of Prime Minister Shahbaz Sharif cannot be ignored. The Pak Rangers personnel, who broke the window panes of the court room, and dragged Imran by his collar, normally take orders from the Interior Minister of Shahbaz’s government. Visuals of the manner in which Imran Khan was arrested and dragged to an armoured vehicle are sure to generate public sympathy for him. The situation in Pakistan is surely going to deteriorate as violence spreads in several provinces. The sad part is that there is nobody to control the situation. While the Pakistan army is siding with Shahbaz Sharif, the judiciary is with Imran Khan. Both camps are trying to settle scores. This is surely going to spiral the crisis out of control. As far as India is concerned, instability in the neighbourhood is not good news. One can douse fires in one’s own house, and if there is a fire in a neighbour’s house, who is your enemy, the heat of the flames can cause concern for the neighbourhood.

THE KERALA STORY: BEATING UP MOVIEGOERS IS A CRIME

In Belur, Howrah, West Bengal, police on Tuesday attacked moviegoers at the Forum Rangoli Mall theatre and disrupted screening of ‘The Kerala Story’. BJP leaders, including Dilip Ghosh, condemned the action. In Maharashtra, NCP leader Jitendra Ahwad demanded action against the makers of the movie. While movie goers are flocking to theatres to watch this controversial film, one fact must not be noted. The movie may not have attracted much political action, were it not for the Karnataka assembly elections. Had Prime Minister Modi not mentioned the movie in one of his election speeches, this issue would not have got much traction. Love Jihad is not a new issue. BJP had been raising the matter of girls in Kerala being converted to Islam and sent to join ISIS. There is politics going on from both sides. Those opposing and banning this movie want to keep their Muslim vote bank intact. The surprising part is that when the Centre prohibited screening of the BBC documentary on 2002 Gujarat riots early this year, it was Mamata Banerjee who had opposed this ban. And now, it is Mamata’s police which is disrupting the screening of The Kerala Story movie. Those who were speaking about freedom of expression are now silent about the ban imposed by Mamata Banerjee’s government. My view is: whatever may be the political objectives, it is a crime to use police to bash up cine goers who want to watch a movie. This is not acceptable.

POLITICAL DRAMA IN RAJASTHAN

Dissident Congress leader Sachin Pilot on Tuesday said, it is now clear that Chief Minister “Ashok Gehlot’s leader is Vasundhara Raje and not Sonia Gandhi”. Pilot said, people now clearly understand why Gehlot did not order probe into allegations of corruption during Vasundhara’s rule. Pilot will start a five-day padayatra from Ajmer to Jaipur. Another Congress minister Pratap Singh Khachriawas said, Gehlot’s government was saved in 2020 by Sonia Gandhi and nobody else. My view on this is: the entire world knows how Pilot led the revolt against Gehlot, but Congress is unwilling to accept this. Everybody knows how Gehlot, through clever moves, sabotaged the Congress leadership’s plan to change the CM, but Congress is unwilling to accept this. Everybody understands if Gehlot and Pilot continue fighting like this, Congress may suffer electoral reverses in assembly polls this year. The most interesting part is, Pilot is trying to prove that Gehlot and Vasundhara Raje are in cahoots, and this is worrying the BJP leadership.

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कर्नाटक में कांटे का मुकाबला

AKb (1)कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार सोमवार शाम को खत्म होने के साथ राजनीतिक पंडित नतीजों के आकलन में जुट गए हैं। दो हफ्ते पहले जब प्रचार अभियान शुरू हुआ तो विशेषज्ञों ने जो एक आकलन किया था उसके मुताबिक कांग्रेस शुरुआत में आगे चलती नजर आ रही थी। कांग्रेस ने बीजेपी की बोम्मई सरकार पर 40 प्रतिशत कमीशन का मुद्दा सफलतापूर्वक चिपका दिया था। ऐसे में बीजेपी बचाव की मुद्रा में दिखी। बीजेपी के भी कुछ नेता ऐसे थे जो इस तरह का आरोप लगा रहे थे। बीजेपी को दूसरा धक्का तब लगा जब उसने नई पीढ़ी को मौका देने की कोशिश की और पुराने लोगों के टिकट काटे। ऐसे में जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी जैसे पुराने और अनुभवी नेता बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। हवा कांग्रेस के पक्ष में बनने लगी थी। लेकिन इसके बाद कांग्रेस ने एक के बाद एक, कई गलतियां की। चुनाव घोषणापत्र में पीएफआई और बजरंग दल को एक जैसा बता दिया और मुस्लिम आरक्षण को बहाल करने का वादा कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को पकड़ लिया। उन्होंने चुनावी सभाओं में बजरंग बली का जयघोष किया और पासा पलट दिया। तीन दिन तक तो कांग्रेस इसी की सफाई देने के चक्कर में पड़ी रही। इसके बाद कांग्रेस ने एक और गलती की। पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हुबली में अपनी जनसभा में कर्नाटक की ‘संप्रभुता’ की रक्षा करने की बात कही। अमित शाह ने इसे मुद्दा बना दिया और फिर कांग्रेस को सफाई देनी पड़ी। दो हफ्ते पहले तक कांग्रेस आक्रामक थी और बीजेपी बचाव की मुद्रा में थी लेकिन आज स्थिति उलटी है। अब कांग्रेस रक्षात्मक मुद्रा में है। शुरुआत में कांग्रेस आगे दिखाई दे रही थी लेकिन पूरे कर्नाटक में नरेंद्र मोदी के तूफानी प्रचार के बाद बीजेपी अब कांग्रेस की बराबरी पर आ गई है। जिस चुनाव में टक्कर जितनी कांटे की होती है, जहां हार जीत के अंतर कम होने के आसार होते हैं, वहां किसी के लिए भी यह अनुमान लगाना बहुत मुश्किल होता है कि सरकार किसकी बनेगी। ऐसे कांटे के टक्कर वाले चुनाव में ज्यादातर ओपिनियल पोल भी गलत साबित हो जाते हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग 10 मई को होगी और नतीजे 13 मई को आएंगे।

‘द केरल स्टोरी’ : प्रतिबंध जायज नहीं

आतंकवाद से जुड़े लव जिहाद पर बनी विवादित फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ पर पश्चिम बंगाल सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि तमिलनाडु में थिएटर मालिकों ने फिल्म दिखाने से मना कर दिया है। दूसरी ओर, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकारों ने फिल्म को ‘टैक्स फ्री’ कर दिया है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को अपने कैबिनेट मंत्रियों के साथ इस फिल्म को देखने की योजना भी बनाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक में अपनी एक चुनावी रैली में फिल्म की तारीफ करते हुए कहा कि यह ‘आतंकवादी साजिशों पर आधारित है और केरल में आतंकवादी साजिशों को उजागर करती है’। इस फिल्म का निर्माण विपुल अमृतलाल शाह ने और निर्देशन सुदीप्तो सेन ने किया है। ‘द केरल स्टोरी’ उन हिन्दू लड़कियों की कहानी पर आधारित है जिन्हें बहला-फुसलाकर पहले इस्लाम कबूल करवाया गया फिर उनका निकाह मुस्लिम नौजवान से कराया और फिर उन्हें आतंकवादी संगठन ISIS में भर्ती करा दिया गया।

बंगाल तो रचानत्मकता, कला और संस्कृति प्रदेश है। इसलिए वहां फिल्म पर पाबंदी की खबर से आश्चर्य हुआ। क्या ममता बनर्जी को वाकई में लगता है कि थियेटर में लोग फिल्म देख लेंगे तो कानून और व्यवस्था की समस्या खड़ी हो जाएगी या फिर उन्होंने इस फिल्म पर इसलिए प्रतिबंध लगाया क्योंकि कर्नाटक के चुनाव में नरेंद्र मोदी ने ‘ द केरल स्टोरी’ का जिक्र किया और इसे मुद्दा बनाया? फिल्म के विषय पर विवाद हो सकता है, फिल्म की कहानी पर विरोध हो सकता है, लेकिन फिल्म पर प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं है। जरूरी नहीं है कि 100 फीसदी लोग फिल्म के विरोध में हों और 100 फीसदी लोग फिल्म के पक्ष में हों। जिसे देखना है देखे, जिसे नहीं देखना है वो न देखे, लेकिन राज्य सरकारों का काम सियासी नफा- नुकसान के हिसाब से अपना फैसला जनता पर थोपना नहीं होता।

जो लोग ये सवाल उठा रहे हैं कि फिल्म में जो दावे किए गए वो गलत हैं। लव जिहाद के कुछ ही मामले हुए, कुछ ही लड़कियों को सीरिया भेजा गया लेकिन ऐसा दिखाया जा रहा है कि हजारों लड़कियों को सीरिया भेज दिया गया। मेरा कहना है कि एक लड़की को भेजा गया हो या एक हजार लड़कियों को, लड़कियों की संख्या से मामले की गंभीरता कम नहीं होती। दूसरी बात कोई फिल्म ये दावा नहीं करती कि वो पूरी तरह तथ्यों पर आधारित है। फिल्म एक विषय पर बनती है, तथ्यों पर नहीं। लव जिहाद जमीनी हकीकत है। इस पर किसी प्रोड्यूसर ने फिल्म बनाई तो गलत क्या है? चूंकि बीजेपी के नेता फिल्म का समर्थन कर रहे हैं, इसलिए ‘द केरल स्टोरी’ का विरोध किया जा रहा है। फिल्म पर प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं है। जो लोग यह इल्जाम लगा रहे हैं कि बीजेपी मुस्लिम विरोधी है और ‘द केरल स्टोरी’ के जरिए मुसलमानों को बदनाम करने की साजिश हो रही है इसलिए बीजेपी इस फिल्म को प्रमोट कर रही है। ऐसे नेताओं को यूपी के मुसलमानों की बात सुननी चाहिए। क्योंकि यूपी के मुसलमानों ने कहा कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सी फिल्म आई और कौन सी फिल्म गई। किसने फिल्म का समर्थन किया और किसने विरोध किया। वो सिर्फ सरकार के काम देखते हैं। बीजेपी ने यूपी शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में बिजनौर, अलीगढ़, मेरठ, सहारनपुर, कानपुर, वाराणसी और लखनऊ में 395 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। इनमें से करीब 90 फीसदी पसमांदा मुसलमान हैं। इन मुस्लिम उम्मीदवारों ने योगी और बीजेपी के बारे में जो कहा उससे मैं हैरान रह गया। योगी आदित्यनाथ अपनी सभी रैलियों में मतदाताओं से कहते रहे हैं कि कल्याणकारी उपायों का लाभ सभी वर्गों तक पहुंच रहा है।

क्या वसुंधरा ने गहलोत सरकार को बचाया?

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने धौलपुर में एक जनसभा में दावा किया कि 2020 में जब सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस विधायकों के एक गुट ने विद्रोह कर दिया था तब बीजेपी नेता और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने उनकी सरकार बचाई थी। गहलोत ने आरोप लगाया कि उस वक्त गृह मंत्री अमित शाह ने हमारे विधायकों को 10 से 20 करोड़ बांटा। गहलोत ने कहा कि वह पैसा अमित शाह को वापस लौटा देना चाहिए। सीएम गहलोत ने कहा कि उस वक्त वसुंधरा राजे सिंधिया और कैलाश मेघवाल ने कहा था हमारी कभी परंपरा नहीं रही है कि चुनी हुई सरकार को हम पैसे के बल पर गिराएं। इन्होंने सरकार गिराने वालों का साथ नहीं दिया जिस कारण हमारी सरकार बची रही। उधर, केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि गहलोत जो राग अलाप रहे हैं उसका कोई सबूत हो तो दिखाएं। अगर उनको पता है कि पैसे दिए गए हैं और भ्रष्टाचार हुआ है तो उसकी शिकायत दर्ज कराएं। उन्होंने मामले की सीबीआई से जांच कराने की चुनौती दी।

वसुन्धरा राजे ने कहा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 2023 में होने वाली हार से डरकर होकर झूठ बोल रहे हैं। राजे ने कहा कि रिश्वत लेना और देना दोनों अपराध हैं,यदि उनके विधायकों ने पैसा लिया है तो एफआईआर दर्ज करवाएं। वसुंधरा राजे ने ने कहा कि विधायकों की ख़रीद फ़रोख़्त की जहां तक बात है तो इसके महारथी तो स्वयं अशोक गहलोत हैं जिन्होंने 2008 और 2018 में अल्पमत में होने के कारण ऐसा किया था। उस वक्त न भाजपा को बहुमत मिला था और न ही कांग्रेस को। उस समय चाहते तो हम भी सरकार बना सकते थे पर यह भाजपा के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ था। इसके विपरीत गहलोत ने अपने लेन-देन के माध्यम से विधायकों की व्यवस्था कर दोनों समय सरकार बनाई थी।

गहलोत ने जो बयान दिया उसके पीछे की राजनीति समझने की कोशिश करनी चाहिए। सार्वजनिक तौर पर उन्होंने अमित शाह का नाम लिया लेकिन जिस शख्स को वह निशाना बना रहे थे वह कोई और नहीं बल्कि सचिन पायलट थे। यह ‘कहीं पे निगाहे, कहीं पे निशाना’ वाला मामला है। गहलोत ने अमित शाह के खिलाफ इस तरह के आरोप लगाने के लिए एक सार्वजनिक मंच का सहारा लिया लेकिन उनकी यह चाल शायद ही काम आए। उधर, मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सचिन पायलट ने अशोक गहलोत पर तंज कसते हुए कहा कि ‘अशोक गहलोत की नेता वसुंधरा राजे हैं, सोनिया गांधी नहीं’। आनेवाले दिनों में राजस्थान कांग्रेस का घमासान और गहराने के आसार हैं।

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A CLOSE CONTEST IN KARNATAKA

akbAs campaign ended for the Karnataka assembly elections on Monday evening, political pundits are busy calculating the outcome. When the campaign began two weeks ago, experts had made an overall assessment that Congress appears to be leading in the beginning. The party played its ’40 per cent commission’ card against the Bommai government, and BJP appeared to be on the defensive. There were some leaders in BJP too, who were levelling the corruption charges. The second setback to BJP took place, when the party decided to field young candidates, and denied tickets to old-timers like former CM Jagadish Shettar, Laxman Savadi. They quit BJP and joined Congress. The wave appeared to be favouring the Congress, but the party then committed one mistake after the other. The Congress election manifesto put PFI and Bajrang Dal on an equal footing and promised to restore Muslim job reservation. Prime Minister Narendra Modi latched on to this issue. He started chanting ‘Bajrang Bali Ki Jai’ in his election meetings and turned the tables on the Congress. For three days, Congress leaders were in a quandary over how to respond. The Congress then committed another mistake. Former party president Sonia Gandhi, in her only public meeting in Hubbali, spoke about defending Karnataka’s ‘sovereignty’. Amit Shah made it an issue. The Congress had to again give clarifications. Two weeks ago, Congress was on the offensive and BJP on the defensive, but today, the situation has changed. Congress is now on the defensive. In the beginning, Congress appeared to be leading, but after Modi’s whirlwind campaign across Karnataka, BJP has now come on equal footing with the Congress. In a closely contested election, margins of victory and defeat are slender, and it becomes very difficult for anybody to predict who will form the government. Opinion polls for such close contests often prove wrong. Polling is on May 10 and the results will be out on May 13.

‘THE KERALA STORY’ : BAN NOT JUSTIFIED

The controversial movie on terror-linked love jihad, ‘The Kerala Story’ has been banned by the West Bengal government, while in Tamil Nadu, theatre owners have refused to screen the film. On the other hand, BJP governments in Madhya Pradesh and Uttar Pradesh have declared the movie ‘tax-free’. UP chief minister Yogi Adityanath plans to watch the move along with his cabinet ministers on Friday. Prime Minister Narendra Modi, in one of his election rallies in Karnataka, praised the movie saying it was “based on terrorist plots and exposes terror conspiracies in Kerala”. The movie, directed by Sudipto Sen and produced by Vipul Amrutlal Shah, portrays the stories of Hindu women from Kerala who were converted to Islam and then recruited by the terror outfit ISIS. Bengal is known for its art, creativity and culture, and news about the ban on the movie by the Trinamool Congress government has surprised me. Does Mamata Banerjee really feels that the movie could create law and order problems after people watch it in theatres? Or, did she ban the movie only because PM Modi mentioned it during Karnataka elections and made it an issue? The subject of the movie can be questioned, the storyline can be opposed, but imposing ban on a movie cannot be justified. It is not that 100 per cent people are against this movie, or 100 per cent people support this film. Anybody is free whether to watch the movie or not. The function of a state government is not to impose its decision on the people based on political gains or losses. Those who say that the claims made in this movie are incorrect, and that only a few love jihad incidents took place in which some girls were sent to Syria after being converted to Islam, but it is being shown as if thousands of girls are being converted and sent to Syria. My view is that whether it is one girl or one thousand girls, the number of victims does not lessen the gravity of the problem. Secondly, no movie claims that it is fully based on facts. Movies are created on a subject, not necessarily based on facts. Love Jihad in India is a ground reality. What’s wrong if a producer makes a film on this topic? Was ‘The Kerala Story’ banned only because BJP leaders were supporting the movie. This is not justified. Those who allege that BJP is anti-Muslim, and that Muslims are being defamed by screening this movie, should hear what Muslim candidates fielded by BJP in the UP urban local body elections said. These Muslim candidates said, ‘it does not matter which movie comes or goes, who support or oppose. For us, the work of the government matters the most’. BJP has fielded 395 Muslim candidates in the UP urban local body polls in Bijnor, Aligarh, Meerut, Saharanpur, Kanpur, Varanasi and Lucknow. Nearly 90 per cent of these are Pasmanda Muslims. I was surprised to watch what these Muslim candidates said about Yogi and BJP. Yogi has been telling voters in all his rallies that the benefits of welfare measures are reaching all sections, irrespective of caste and community.

DID VASUNDHARA SAVE GEHLOT GOVT ?

Rajasthan chief minister Ashok Gehlot dropped a bombshell at a public meeting in Dholpur by claiming that BJP leader and former CM Vasundhara Raje saved his government in 2020, when a section of Congress MLAs led by Sachin Pilot revolted. Gehlot alleged that Home Minister Amit Shah distributed money to the tune of Rs 10-20 crores to dissident Congress MLAs, but Vasundhara Raje and another BJP leader Kailash Meghwal came to his government’s rescue. Gehlot challenged the dissident MLAs (belonging to Pilot camp) to return the money to Amit Shah. Union Jal Shakti Minister Gajendra Singh Shekhawat challenged Gehlot to come out with evidence or get the matter probed by CBI. Vasundhara Raje, in a statement, said, ‘Gehlot is facing defeat in this year’s assembly polls and is trying to diver the issues by telling lies’. She challenged Gehlot to file FIRs against the legislators who took bribes. She alleged that it was Gehlot “who is a master in horse trading of MLAs and had indulged in it in 2008 and 2018.” After hearing versions from all sides, one must try to understand the politics behind what exactly Gehlot did. Publicly, his barbs were meant for Amit Shah, but the person he was targeting was none other than Sachin Pilot. It is a case of ‘kahin pe nigahen, kahin pe nishana’. Gehlot used a public platform to level such allegations against Amit Shah, but his ploy may not work. Already, Sachin Pilot, at a press conference on Tuesday, lashed out at Gehlot saying, ‘Ashok Gehlot’s leader seems to be Vasundhara Raje and not Sonia Gandhi’. The turmoil in Rajasthan Congress is going to deepen in the coming days.

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‘आप की अदालत’ में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल

akb0110 इस बार ‘आप की अदालत’ शो में मेरे मेहमान हैं केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल। मैंने उनसे पूछा कि क्या बजरंगबली कर्नाटक में बीजेपी को शानदार जीत दिलाएंगे? इस पर उन्होंने जो जवाब दिया उसे आपको जरूर सुनना चाहिए। पीयूष गोयल ने जनता को बताया कि वो हनुमान जी के भक्त हैं। हर मंगलवार और शनिवार को हनुमान मंदिर में पूजा करने जाते हैं। पीयूष गोयल को पूरा भरोसा है कि कर्नाटक में इस बार बजरंगबली उनकी पार्टी को आशीर्वाद देंगे। उन्होंने कहा कि बजरंग बली तो हर जगह मौजूद रहते हैं पर कर्नाटक उनकी जन्मस्थली है। पीयूष गोयल ने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि बजरंग बली कर्नाटक की जनता पर कोई संकट नहीं आने देंगे।

‘आप की अदालत’ के इस शो में पीयूष गोयल ने राहुल गांधी पर करारा हमला किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के लोग राहुल गांधी को कर्नाटक में प्रचार करने से रोक रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि राहुल गांधी के प्रचार से कांग्रेस को नुक़सान होगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी में मुख्यमंत्री पद के तीन दावेदार हैं: सिद्धारमैया, डीके शिवकुमार और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे। पीयूष गोयल ने कहा कि कर्नाटक में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के बजाय कर्नाटक में ‘पार्टी जोड़ो’ यात्रा निकाली थी। पीयूष गोयल ने महाराष्ट्र की राजनीति पर भी बात की। मैंने ज़िक्र किया कि इस बात की बहुत चर्चा है कि महाराष्ट्र में अजित पवार, बीजेपी के साथ आना चाहते हैं और एनसीपी को अपने साथ लाना चाहते हैं। मैंने पीयूष गोयल से पूछा कि क्या बीजेपी को लगता है कि एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री रहते चुनाव लड़ा, तो नुक़सान होगा? क्या महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री को बदला जाएगा? गोयल ने जोर देकर कहा कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे बने रहेंगे और महाराष्ट्र में अगला विधानसभा चुनाव उन्हीं के नेतृत्व वाली शिवसेना और भाजपा मिलकर लड़ेंगे। पीयूष गोयल ने एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के इस्तीफे को ‘नाटक’ बताया। पीयूष गोयल के साथ ‘आप की अदालत’ शो आप शनिवार और रविवार रात 10 बजे और रविवार सुबह 10 बजे इंडिया टीवी पर देख सकते हैं।

कर्नाटक : संकट में कांग्रेस

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का प्रचार जोरों पर है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को बेंगलुरू में एक विशाल रोड शो निकाल रहे हैं । उधर, राहुल और सोनिया गांधी भी चुनावी रैलियों को संबोधित कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने यह आरोप लगाकर चुनाव प्रचार में नई गर्मी ला दी कि फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ का विरोध करके कांग्रेस परोक्ष रूप से आतंकवाद का समर्थन कर रही है। उन्होंने कहा कि यह फिल्म इस्लामिक आतंकी साजिश पर बनी है। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने इंडिया टीवी के संवाददाता देवेंद्र पाराशर को दिए एक इंटरव्यू में आरोप लगाया कि प्रियंका गांधी ने 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान अमेठी में नमाज पढ़ी थी। कांग्रेस के नेताओं को प्रियंका से इस बात की पुष्टि कर लेनी चाहिए कि स्मृति ईरानी का आरोप सही है या नहीं।

कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि किसी तरह बजरंग बली के मुद्दे से पीछा छुड़ाया जाए। आस्था और धर्म के मुद्दों को प्रचार में हावी नहीं होने दिया जाए। इसीलिए कांग्रेस के नेता इन पर बात नहीं कर रहे हैं। लेकिन बीजेपी का पूरा फोकस इस बात पर है कि कांग्रेस पर बजरंग दल को बैन करने के वादे पर कैसे घेरा जाए। दूसरी ओर, मोदी तुमकुरु और बेल्लारी में अपनी जनसभाओं में ‘जय बजरंगबली’ का जयकार लगाते रहे। कांग्रेस के नेताओं की मुश्किल ये है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी उन्हें बजरंग बली मुद्दे के संकट से बचा नहीं पाएंगे। कांग्रेस के नेताओं को इस बात का एहसास हो गया है कि चुनाव घोषणा पत्र में पीएफआई और बजरंग दल को एक जैसा बताकर उन्होंने बड़ी ग़लती कर दी है। नरेंद्र मोदी ने इसे बजरंगबली से जोड़कर इतना बड़ा मुद्दा बना दिया है कि कांग्रेस के प्रचार मैनेजर्स के हाथ-पांव फूल गए हैं। इस मुद्दे से छुड़ाने के लिए, तरह तरह की कोशिश की गई। कांग्रेस के नेता दरियादिली से सफाई दे रहे हैं कि पार्टी का बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का कोई इरादा नहीं है। कभी कांग्रेस के कुछ नेता मतदाताओं को यह दिखाने के लिए हनुमान चालीसा ले जा रहे हैं कि वे बजरंगबली के भक्त हैं। प्रियंका गांधी हनुमान जी की पूजा करने के लिए मंदिरों का चक्कर लगा रही हैं। कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डी. के. शिवकुमार ने राज्य भर में आंजनेय (बजरंगबली) मंदिर बनाने का वादा किया है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के नेताओं ने चुनाव आयोग से भी शिकायत कर दी कि पीएम मोदी ने बजरंग बली का नाम क्यों लिया? कुल मिलाकर, जो कनफ्यूज़न पैदा हुआ उसका बीजेपी भरपूर फ़ायदा उठा रही है।

पवार: इस्तीफा वापस

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की घोषणा के चार दिन बाद शुक्रवार अपना इस्तीफा वापस ले लिया। उन्होंने कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं और बड़े नेताओं की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इस्तीफा वापस लेने का फैसला किया है। इसमें कोई शक नहीं कि राजनीतिक अनुभव, चतुराई, दांव-पेंच में शऱद पवार का कोई मुकाबला नहीं। उन्होंने अपनी एक चाल से अजित पवार को चारों खाने चित कर दिया जो पार्टी अध्यक्ष पद पर नजर गड़ाए हुए थे। हालांकि शरद पवार की उम्र हो गई है। वे 82 साल के हैं और स्वास्थ्य उनका साथ नहीं देता। लेकिन, राजनीति में उनका दिमाग़ बहुत तेज़ी से चलता है। 63 साल उन्होंने राजनीतिक में जी-तोड़ मेहनत की है इसलिए, अच्छा होता कि वो एक मार्गदर्शक बनकर रहते। लेकिन, परिस्थितियों ने उन्हें मजबूर कर दिया कि वो अध्यक्ष बने रहें। लेकिन, इस पूरे संकट से एक बात यह निकलकर आई कि जितनी भी पार्टियां, एक व्यक्ति के नाम और काम पर चलती हैं, उनमें से किसी के पास, उत्तराधिकार को लेकर कोई योजना नहीं है। बड़े नेता के शीर्ष पर रहते उत्तराधिका का प्लान बनाने की हिम्मत कौन कर सकता है? और कोई नेता शीर्ष पर रहते हुए अपना उत्तराधिकारी तय नहीं करना चाहता। एनसीपी में शरद पवार के इस्तीफ़े और उनकी वापसी के दौरान जो मंथन हुआ उसका एक अच्छा परिणाम ये निकला है कि इस पार्टी में थोड़े दिन बाद,उत्तराधिकारी तय हो जाएगा। शरद पवार ने ख़ुद ये एलान किया कि वो संगठन में फेर-बदल करेंगे और इस हिसाब से करेंगे कि एक उत्तराधिकार की योजना बन जाए। अगर दूसरी पार्टियों के नेता भी अपने रिटायरमेंट के पहले, ऐसे ही प्लान बना लें तो देश की राजनीति के लिए अच्छा होगा।

PIYUSH GOYAL IN ‘AAP KI ADALAT’

akb0710 This weekend Union Commerce Minister Piyush Goyal is my guest in ‘Aap Ki Adalat’ show. I asked him whether Bajrangbali will bless BJP in Karnataka with a resounding win. You must listen to his reply. Goyal said, he has been a devotee of Bajrangbali since his youth days. Whenever he goes out of town, or visits abroad, he makes it a point to visit Hanuman temple on Tuesdays and Saturdays to offer his prayers. On Karnataka, Goyal was confident that Bajrangbali would bless his party this time. ‘Bajrangbali is omnipresent, Karnataka is Bajrangbali’s place of birth. I am fully confident, Bajrangbali will not allow any crisis for the people of Karnataka’, he said. In ‘Aap Ki Adalat’ show, Goyal made scathing remarks on Congress leader Rahul Gandhi and said, even Congress leaders want Rahul must not campaign, because they fear the party may lose. He said, there are three claimants for the CM post in Congress: Siddaramaiah, D. K. Shivkumar and Congress President Mallikarjun Kharge. Goyal said, Rahul’s ‘Bharat Jodo Yatra’ in Karnataka was in fact ‘Party Jodo Yatra’ in that state. Goyal also spoke on Maharashtra politics. I asked him about speculations that Sharad Pawar’s nephew Ajit Pawar may join BJP camp along with NCP legislators, and, in that case, will the CM be replaced? Goyal emphatically said that Chief Minister Eknath Shinde will continue and the next assembly elections in Maharashtra will be fought jointly by Eknath Shinde-led Shiv Sena and BJP. Goyal described the resignation move by NCP supremo Sharad Pawar as “a drama”. You can watch ‘Aap Ki Adalat’ show with Piyush Goyal on Saturday and Sunday nights at 10 pm and on Sunday morning at 10 am on India TV.

CONGRESS IN A QUANDARY IN KARNATAKA

Campaigning in Karnataka is in full swing with Prime Minister Narendra Modi taking out a huge road show in Bengaluru on Saturday, and Rahul and Sonia Gandhi to address election rallies. Modi added a fresh touch to the campaign by alleging that the Congress was indirectly supporting terrorism by opposing the movie ‘The Kerala Story’, which he said was based on Islamic terror conspiracy. Union Minister Smriti Irani, in an interview to India TV correspondent Devendra Parashar, alleged that Priyanka Gandhi had offered namaaz in Amethi during 2019 poll campaign. I think, Congress leaders should confirm whether Smriti’s allegation is true or not. Congress in Karnataka is trying hard to shake off the Bajrangbali issue and wants to ensure that religion and faith must not overshadow the campaign. On the other hand, Modi continued to chant ‘Jai Bajrangbali’ at his public meetings in Tumkuru and Bellary. The problem with Congress is that Sonia and Rahul Gandhi may not be able to save the party on Bajrangbali issue. Congress leaders have realized they have committed a big mistake in comparing Bajrang Dal with PFI in its election manifesto. Narendra By making Bajrangbali a big issue, Modi has forced Congress leaders to run for cover. Congress leaders are profusely clarifying that the party has no intention to ban Bajrang Dal. Some leaders are carrying Hanuman Chalisa in their pockets to show to voters that they are devotees of Bajrangbali, while Priyanka Gandhi is making a round of temples to offer prayers to Lord Hanuman. Congress state chief D. K. Shivkumar has promised to build Anjaneya (Bajrangbali) temples across the state. On the other hand, Congress has lodged complaint on Bajrangbali issue with the Election Comission. Clearly, the confusion is worse confounded in the Congress camp, and BJP is trying to reap the harvest.

PAWAR: BACK TO SQUARE ONE

Four days after he announced his resignation as NCP chief, Sharad Pawar, on Friday said, he has decided to continue responding to the sentiments of party workers and appeals made to him by several national leaders. There is not an iota of doubt that there is no politician in India who can match Sharad Pawar in political experience and acumen. By offering to resign, and then withdrawing his decision, Pawar floored his nephew Ajit Pawar, who was eyeing the party chief post. The 82-year-old political warhorse is facing health problems, but his political mind works with great speed. For 63 years, he toiled in the hurly-burly of Maharashtra politics. It would have been better if he had chosen to remain as the guiding force for his party, but circumstances forced his hand to continue as party chief. One message that came out from this crisis is that most of the political parties in India which work under a single leader, do not have a succession plan. Who can dare to make a succession plan with the party supremo active at the top? No supreme leader wants to anoint a successor. The churning (‘manthan’) that took place in NCP during Pawar’s resignation and withdrawal, has yielded one good result: a successor will be selected in NCP after some days. Pawar himself announced that he would reorganize the party setup, in such a manner, that a succession plan is put in place. If other parties also prepare similar succession plans for their party chiefs after retirement, it will be good for national politics.

पहलवानों से बदसलूकी गलत, केंद्र बातचीत शुरु करे

akb fullदिल्ली के जंतर मंतर पर बुधवार की रात जिस तरह से पुलिसवालों ने देश के लिए मेडल जीतनेवाले पहलवानों के साथ बदसलूकी और गाली-गलौज की, वह किसी जुल्म से कम नहीं है । इन चैंपियन पहलवानों के साथ जो कुछ भी हुआ उसे देखकर किसी को भी दुख होगा। मेडल जीतने वाली महिला पहलवानों की आंखों में आंसू देखकर किसी का भी दिल रोएगा। मुझे लगता है उस रात इनके साथ ज़ुल्म हुआ। मैं मान सकता हूं कि पहलवानों के इस दंगल में अब आम आदमी पार्टी ज़ोर आज़माने के लिए कूद गई है। यह भी समझ में आता है कि मनीष सिसोदिया के जेल जाने से और अपने नए घर पर खर्च की डीटेल सामने आने से केजरीवाल काफ़ी परेशान हैं। बाज़ी पलटने के लिए वे पहलवानों का इस्तेमाल करना चाहते हैं। मैं ये भी मान सकता हूं कि दीपेंद्र हुड्डा पहलवानों को उकसा रहे हैं, उनके धरने को हवा दे रहे हैं। जिस-जिसको मौक़ा मिल रहा है वो इन पहलवानों का इस्तेमाल मोदी सरकार को नीचा दिखाने के लिए कर रहा है। लेकिन, क्या इस मामले को समझदारी के साथ हैंडल नहीं किया जाना चाहिए था? क्या, खेल मंत्री को इस मामले को सुलझाने के लिए और ज़्यादा प्रयास नहीं करने चाहिए थे? कोई, पहलवानों के धरने का फ़ायदा न उठा पाए, इसके लिए सरकार को एक्स्ट्रा अलर्ट नहीं रहना चाहिए था? पुलिस की बदनामी न हो, इसके लिए क्या अधिकारियों को चतुराई से काम नहीं लेना चाहिए था? जंतर मंतर की बुधवार रात की तस्वीरों ने सरकार के विरोधियों के हाथ में मसाला दे दिया। आम जनता ऐसी तस्वीरों को देखकर, अपने चैंपियंस को रोते देखकर आहत होती है। कोई इन पहलवानों को ज़िद्दी कह सकता है, मिसगाइडेड मिसाइल कह सकता है, पर ये अपराधी नहीं हैं। य़े पहलवान समाज के दुश्मन नहीं हैं। इन्होंने देश का नाम रौशन किया है। इसलिए, अगर इन्होंने कोई ग़लती की भी है, तो इन्हें रियायत देनी चाहिए। सरकार को इनसे बात करके, इस मामले को जल्दी से जल्दी सुलझाना चाहिए।

कर्नाटक में बजरंगबली का असर

कर्नाटक की अपनी चुनाव रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजरंगबली का जयकारा किया, तो कांग्रेस ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज करा दी । कांग्रेस ने चुनाव आयोग से मोदी के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है। लेकिन एक बात कहनी पड़ेगी कि मोदी में बजरंगबली का जयकारा लगा कर कर्नाटक के चुनाव में हवा बदल दी है। कल तक जो कांग्रेस पूरी तरह आक्रामक थी, वह अब बचाव की मुद्रा में आ गई है। अब सफाई दी जा रही है कि बजरंग दल पर बैन लगाने की बात कांग्रेस ने नहीं कही। प्रियंका गांधी लोगों से कह रही हैं कि बीजेपी के प्रचार पर ध्यान न दें । लेकिन हनुमान चालीसा की गूंज तो गली-गली में सुनाई दे रही है । बीजेपी के समर्थक कर्नाटक के कई शहरों में हनुमान चालीसा का पाठ कर रहे हैं। अब कांग्रेस के नेता डीके शिवकुमार कह रहे हैं कि हम भी आंजनेय (बजरंगबली) के मंदिर बनवाएंगे। कुल मिलाकर कांग्रेस अब बीजेपी के एजेंडे पर खेल रही है और अपने मुद्दों को भूल गई है । अब लोग बजरंगबली को कैसे भूलेंगे? ज़ाहिर है इस मामले में बीजेपी का पलड़ा भारी है और कांग्रेस को नुकसान हो सकता है ।

बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण पर रोक

पटना हाईकोर्ट ने गुरुवार को बिहार में चल रहे जाति आधारित सर्वेक्षण पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया। चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने कहा- ‘प्रथम दृष्टया हमारी राय है कि राज्य के पास जाति आधारित सर्वेक्षण करने की कोई शक्ति नहीं है और जिस तरह से यह किया जा रहा है वह एक जनगणना के समान है और ऐसा करना संघ की विधायी शक्ति का अतिक्रमण होगा।’ खंडपीठ ने कहा- ‘सरकार की ओर से जारी अधिसूचना से हम यह भी देखते हैं कि सरकार राज्य विधानसभा के विभिन्न दलों, सत्ता पक्ष और विपक्षी दल के नेताओं के साथ सूचनाएं साझा करना चाहती है, जो कि बहुत चिंता का विषय है।’ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने इस साल जनवरी से बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण का काम शुरु कराया था । उस वक्त सरकार ने कहा था कि विभिन्न जातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के बारे में विस्तृत जानकारी मिलने से वंचित समूहों के लिए बेहतर नीतियां बनाने में मदद मिलेगी। ये बात सही है कि जिस वक्त जाति आधारित सर्वेक्षण कराने का फैसला हुआ था, उस वक्त नीतीश कुमार बीजेपी के साथ थे। बीजेपी ने भी जाति आधारित सर्वेक्षण पर सहमति जताई थी। लेकिन यह भी सही है कि इस सर्वेक्षण पर अब हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। कोर्ट ने साफ कहा है कि सरकार यह बताने में नाकाम रही है कि आखिर जातिगत जनगणना क्यों कराना चाहती है? इसकी क्या जरूरत है? दूसरी बात ये कि अगर इस मुद्दे पर सभी पार्टियों की सहमति थी तो सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पास करने के बजाय इसे विधेयक के तौर पर पास क्यों नहीं करवाया? तीसरी बात कोर्ट ने कही कि जातिगत जनगणना से निजता के उल्लंघन की पूरी आशंका है इसलिए इस सर्वेक्षण को फिलहाल रोकना जरूरी है। कुल मिलाकर अब यह मामला लटक गया है और अब इस मुद्दे पर सियासत होगी कि जातीय जनगणना किसके कारण रुकी।

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MANHANDLING UNACCEPTABLE, CENTRE MUST TALK TO WRESTLERS

AKb (1)The manner in which police personnel in Delhi roughly manhandled and abused our medal winning wrestlers at Jantar Mantar on Wednesday night is nothing short of an atrocity. Those who have seen visuals of our champion female wrestlers weeping after the scuffle with police, will surely feel sad. The tears of our female wrestlers are bound to touch the chords of our hearts. Whatever happened on that night was atrocious. I agree, Aam Aadmi Party intervened in the sit-in to flex its muscles. I can also understand, with Manish Sisodia in jail, and Arvind Kejriwal worried after exposure of public money spent on his lavish official residence, AAP leaders wanted to use the wrestlers for their benefit. I can also agree, Congress leader Deepender Hooda is instigating the wrestlers and egging them on to carry on with their sit-in. I agree, other politicians are also trying to use the wrestlers to embarrass Modi’s government. But my simple question is: Couldn’t the situation been handled peacefully, and with care? Shouldn’t the Sports Minister taken initiative in defusing the crisis? Shouldn’t the government remain vigilant in disallowing others to take advantage of the sit-in? Shouldn’t senior officials cleverly handled the situation to avoid bringing a bad name to police? The visuals of Wednesday midnight scuffle at Jantar Mantar have given ammunition to the opposition to attack the Centre. The common man feels offended and sad on watching our medal winning wrestlers being roughly manhandled by police. You can say, some of the wrestlers are adamant, they are misguided missiles, but they are not criminals. These wrestlers are not enemies of society. They brought fame and glory to our country. Even if they might have committed mistakes, they should have been given concessions. Government must start a dialogue with the wrestlers and solve the problem.

MUCH ADO ABOUT BAJRANGBALI IN KARNATAKA

The Congress has lodged a complaint with the Election Commission over Prime Minister Narendra Modi invoking the name of Bajrangbali (Hanuman) in his rallies in Karnataka. It has asked the Commission to restrain Modi from invoking the names of Hindu gods in his election speeches. Needless to say, Modi has completely changed the narrative in Karnataka elections. Congress, which was on offensive till recently, is now on the defensive. Priyanka Gandhi is asking voters not to take notice of BJP’s ‘Bajrangbali’ campaign. Already Hanuman Chalisa is being recited in several cities of Karnataka by BJP supporters. To counter Modi, Congress leader D K Shivkumar has promised to set up Anjaneya (Hanuman) temples across Karnataka. Congress is now playing on BJP’s pitch and has practically forgotten the local issues that it had been raising. On the Bajrangbali issue, BJP has an upper hand, and this can cause damage to Congress’ prospects.

CASTE CENSUS PUT ON HOLD IN BIHAR

Patna High Court, on Thursday, issued an interim order staying the caste-based survey going on in Bihar. “Prima facie, we are of the opinion that the State has no power to carry out a caste-based survey, in the manner in which it is fashioned now, which would amount to a census, thus impinging upon the legislative power of the Union Parliament”, the bench of Chief Justice K. Vinod Chandran and Justice Madhuresh Prasad said. The bench said, “We also see from the notification issued that the government intends to share data with the leaders of different parties of the State Assembly, the ruling party and opposition party, which is also a matter of great concern.” Chief Minister Nitish Kumar’s government had launched the caste-based survey in Bihar from January this year, saying that detailed info about socio-economic conditions of different castes, will help create better policies to help disadvantaged groups. It is also correct that when the decision on caste-based survey was taken, Nitish Kumar was with the BJP, and the latter had agreed to it. But, it is also a fact that the High Court has said that the state government has failed to convince why it wants to carry out the caste census. Secondly, if all parties had agreed on carrying out the caste census, why was a bill not passed by the legislature, instead of a resolution. Thirdly, the High Court has pointed out that caste-based survey can cause violation of individual privacy, and hence, an interim stay is necessary. The ball is now in the court of political parties, which are going to start the blame game.

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बजरंग दल को लेकर कांग्रेस पसोपेश में

akbकर्नाटक में जारी अपने घोषणा पत्र में बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने के वादे को लेकर कांग्रेस फंसती नजर आ रही है । इस चुनाव में बजरंग बली सबसे बड़ा मुद्दा बन गए हैं । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी रैलियों में ‘बजरंगबली की जय’ का जयकारा लगवा रहे हैं और मतदाताओं से कह रहे हैं कि जब वो वोट डालने जाएं तो ‘बजरंग बली की जय’ बोलकर ही ईवीएम का बटन दबाएं । पूरे चुनाव अभियान का सुर और स्वर बदल चुका है । कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम. वीरप्पा मोइली ने स्पष्ट किया कि बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का कोई प्रस्ताव नहीं है क्योंकि राज्य सरकार के पास संगठनों पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार ही नहीं है । वहीं छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाना चाहिए । यह सही है कि बजरंगबली और बजरंग दल का आपस में कोई संबंध नहीं है, लेकिन बीजेपी ने इस मसले को ऐसा ट्विस्ट दे दिया है जिसके चक्कर में कांग्रेस में फंस गई है । गलती कांग्रेस से हुई, क्योंकि बजरंग दल कोई आतंकवादी संगठन नहीं हैं । बजरंग दल राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल नहीं है । जो लोग नहीं जानते उन्हें बता दूं कि बजरंग दल का गठन 1984 में हुआ था। 1984 में हुई धर्म संसद में राम जन्मभूमि मंदिर के लिए आंदोलन का फैसला हुआ था। तय हुआ कि देशभर में ‘राम जानकी रथ यात्रा’ निकाली जाएगी। यात्राएं शुरू हुईं तो उन पर पथराव की घटनाएं होने लगीं। सरकार से सुरक्षा की मांग की गई लेकिन सुरक्षा नहीं मिली। फिर विश्व हिन्दू परिषद ने राम जानकी रथ यात्राओं की सुरक्षा के लिए अपने कार्यकर्ताओं की टोलियां बनाईं। चूंकि राम जानकी रथ यात्राएं राम मंदिर निर्माण के लिए हो रही थीं और बजरंगबली प्रभु राम के अनन्य भक्त और योद्धा थे इसलिए यात्रा में चल रहे रामभक्तों की सुरक्षा करने वाली टोलियों को हनुमान जी के नाम पर बजरंग दल कहा गया। बजरंग दल का गठन हिन्दुओं और रामभक्तों की रक्षा के लिए हुआ इसलिए इसे आंतकवादी संगठन कैसे कहा जा सकता है। चूंकि कांग्रेस ने बजरंग दल की तुलना पीएफआई से कर दी इसलिए यह इतना बड़ा मुद्दा बन गया। अपनी सभाओं में पीएम मोदी ने लोगों से कहा कि वो घर घर जाएं और उनके संदेश को फैलाएं: ईवीएम का बटन दबाते हुए हुए ‘बजरंगबली की जय’ का नारा लगाएं और कांग्रेस को सबक सिखाएं। कर्नाटक में टक्कर कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही है। यह सही है कि कुछ दिन पहले तक कर्नाटक में कांग्रेस की स्थिति मजबूत थी। लेकिन पिछले चार दिनों में नरेन्द्र मोदी के धुंआधार प्रचार से हवा बदली है। बीजेपी को अहसास है कि कर्नाटक में मोदी ही नैया पार लगा सकते हैं इसलिए अब मोदी के प्रचार का दायरा बढ़ा दिया गया है। नरेंद्र मोदी बुधवार तक कर्नाटक में 12 जनसभाएं और तीन रोड शो कर चुके हैं। शनिवार (6 मई) को मोदी 37 किलोमीटर का रोड शो भी करेंगे। यह मोदी का अब तक सबसे लंबा रोड शो होगा। इसमें मोदी 17 विधानसभा सीटों को कवर करेंगे। सात मई को कर्नाटक में मोदी चार जनसभाओं को संबोधित करेंगे। बीजेपी के नेताओं को पूरा यकीन है कि मोदी का प्रचार गेम चेंजर साबित होगा।

यूपी निकाय चुनाव में कड़ी मेहनत कर रहे हैं योगी

उत्तर प्रदेश के 37 जिलों में स्थानीय निकायों के लिए पहले चरण का मतदान गुरुवार को हुआ, जबकि दूसरे चरण का मतदान 11 मई को होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगभग सभी जिलों को कवर करते हुए प्रचार में जुटे हुए हैं। बुधवार को उन्होंने मऊ, आजमगढ़, बलिया और संत कबीर नगर में रैलियों को संबोधित किया और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती दोनों पर हमला बोला। उन्होंने मतदाताओं को याद दिलाया कि कैसे सपा और बसपा के शासन में माफिया सरगनाओं और गैंगस्टरों का राज था, लेकिन अब उनमें से ज्यादातर सलाखों के पीछे हैं । वहीं अखिलेश यादव मतदाताओं के सामने स्थानीय मुद्दों को उठा रहे हैं । अखिलेश यादव ने ट्विटर पर लिखा कि बीजेपी के नेताओं के हैलीकॉप्टर पूरे प्रदेश में घूम रहे हैं । सारे नेता प्रचार कर रहे हैं । यह बीजेपी का डर है । लेकिन सच्चाई यह है कि यूपी की शहरी स्थानीय निकाय में पहले से बीजेपी का कब्जा है । पिछले चुनाव में 16 नगर निगमों में से बीजेपी ने 14 में जीत दर्ज की थी । दो जगह बीएसपी के मेयर बने थे और समाजवादी पार्टी का खाता भी नहीं खुला था। इसके बाद भी योगी आदित्यनाथ के साथ-साथ बीजेपी के सभी नेता जबरदस्त मेहनत कर रहे हैं। सीएम योगी अब तक 28 जनसभाएं कर चुके हैं । दूसरी तरफ, अखिलेश यादव ने प्रचार के नाम पर लखनऊ मेट्रो में सफर किया । वे गोरखपुर, सहारनपुर और कन्नौज गए में सभाओं को संबोधित किया। मायावती तो इस बार बाहर ही नहीं निकलीं। इसलिए लगता है कि योगी की मेहनत का असर 13 मई को शहरी निकायों के नतीजों में दिखाई देगा।

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CONGRESS CAUGHT IN A BIND OVER BAJRANG DAL

AKBThe Congress seems to be caught in a bind over its promise to ban Bajrang Dal in Karnataka. With Prime Minister Narendra Modi chanting ‘Bajrangbali ki Jai’ slogan at his rallies and asking Kannadiga voters to chant the same while casting their vote, the tone and tenor of election campaign has completely changed. Former Karnataka CM and senior Congress leader M. Veerappa Moily on Thursday clarified that there was no proposal to ban Bajrang Dal, simply because the state government does not have the power to ban radical outfits. On the other hand, Chhattisgarh CM Bhupesh Baghel said, Bajrang Dal must be banned. It is true that there is no connection between Bajrangbali (Hanuman) and Bajrang Dal, but BJP has given the Congress promise a twist. Congress made the mistake in naming Bajrang Dal as a radical outfit. It is not a terror outfit which indulges in anti-national activities. For those who do not know, Bajrang Dal was set up in 1984 at the Vishwa Hindu Parishad’s Dharma Sansad, when the Ramjanmabhoomi movement was launched. At that time, ‘Ram Janaki rath’ yatras were taken out by VHP, and when incidents of stoning took place, and the state governments refused to provide security, VHP formed its own groups of young men to provide security to Ram devotees. The group was named Bajrang Dal because Bajrangbali (Hanuman) is considered the foremost devotee and warrior of Lord Ram. The Bajrang Dal thus came into existence. It was set up for protection of Hindus and Ram devotees. It cannot be termed a terror outfit. Since Congress clubbed Bajrang Dal with Islamic radical outfit PFI, it became a big issue. At his public meetings, PM Modi told the audience to go home and spread his message: to chant ‘Bajrangbali ki Jai’ while pushing the EVM button and teach Congress a lesson. Karnataka is heading towards a straight contest between Congress and BJP. It is true that Congress was in a strong position till a few days ago, but Narendra Modi changed the narrative in the last four days. BJP leaders feel, Modi can help the party win the elections. Modi has extended his campaign in Karnataka. Till Wednesday, he has addressed 12 public meetings and took out three road shows. On Saturday (May 6) , Modi will lead a 37 kilometre long road show, the largest so far, in the city of Bengaluru, covering 17 assembly seats. On Sunday, he will address four rallies. BJP leaders are confident that Modi could prove to be a game changer this time.

YOGI TOILING HARD IN UP ELECTIONS

The first phase of polling for local urban bodies took place in 37 districts of Uttar Pradesh on Thursday, while the second phase will take place on May 11. Chief Minister Yogi Adityanath is in the thick of campaigning, covering almost all the districts. On Wednesday he addressed rallies in Mau, Azamgarh, Ballia and Sant Kabir Nagar, and attacked both Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav and BSP supremo Mayawati. He reminded voters how mafia dons and gangsters used to rule during SP and BSP rule, but now most of them were behind bars. On his part, Akhilesh Yadav is raising local issues facing voters. On Twitter, Akhilesh wrote how BJP leaders were travelling across the state in helicopters, because the party fears defeat. The fact is completely different. In the last urban local bodies elections, BJP won 14 out of 16 municipal corporations, while BSP won two. SP could not open its account. Despite BJP’s firm footing, Yogi, along with other BJP leaders, is toiling hard. He has addressed 28 public meetings till now. On the other hand, Akhilesh Yadav travelled in Lucknow Metro, and addressed meetings in Gorakhpur, Saharanpur and Kannauj. Mayawati did not address a single meeting. The indications are quite clear. Yogi’s toil is going to bear fruits when the votes will be counted on May 13.

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पवार : सस्पेंस जारी

AKBराष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के संस्थापक शरद पवार ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफे का ऐलान करके सबको चौंका दिया है । पवार ने कुछ दिन पहले कहा था कि तवे पर रोटी पलटने का वक्त आ गया है लेकिन मंगलवार उन्होंने तवा ही उलट दिया। पवार के बयान के बाद महाराष्ट्र की सियासत में हलचल पैदा हो गई। पार्टी के सीनियर नेताओं और कार्यकर्ताओं ने रोते हुए उनसे इस्तीफा न देने की गुहार लगाई। सैकड़ों कार्यकर्ता धरने पर बैठ गए । बुधवार को एक बार फिर पार्टी के बड़े नेताओं ने शरद पवार से मुलाकात की और उनसे इस्तीफा वापस लेने की अपील की। शरद पवार ने अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए 2-3 दिन का समय मांगा है। शरद पवार इस वक्त देश के सबसे उम्रदराज सक्रिय नेता हैं। पवार 82 साल के हैं लेकिन इस उम्र में भी उनकी सक्रियता और राजनैतिक कौशल कमाल का है। उनके सियासी दांव-पेंचों का लोहा सब मानते हैं। शरद पवार 60 साल से सक्रिय राजनीति में हैं। सबसे कम उम्र में महाराष्ट्र की सियासत में उन्होंने ‘रोटी’ पलटी थी और 1978 में सिर्फ 37 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बन गए थे। मैं 1978 से ही शरद पवार की राजनीति को करीब से देख रहा हूं। पवार साहब की खासियत यह है कि वो दाएं हाथ से जो करते हैं उसकी खबर बाएं हाथ को नहीं लगने देते। और वो जब कोई बात कहते हैं तो उससे पहले आगे के चार कदम प्लान कर चुके होते हैं। इसलिए पवार ने मंगलवार जो कदम उठाया उससे इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि उनकी स्कीम में आगे क्या है। लेकिन आज की परिस्थितियों में तीन बातें साफ हैं। पहली बात, बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य के कारण पवार रोजमर्रा की दौड़भाग की जिंदगी से आराम चाहते हैं। दूसरी बात, पवार समझते हैं कि उनके भतीजे अजित पवार ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहते। अजित पवार अपने चाचा शरद पवार के रिटायरमेंट के लिए उतावले हैं। अजित पवार को लगता है कि वो पने चाचा के स्वाभाविक उत्तराधिकारी हैं और उनकी जगह गर कोई और आया भी, तो यह एक अस्थाई व्यवस्था होगी। तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात, महाराष्ट्र की राजनीति में अजित पवार के समीकरण उन समीकरणों से बिल्कुल अलग हैं, जो शरद पवार ने बनाए हैं। अगर पार्टी की कमान अजित पवार के हाथ में आती है तो महाराष्ट्र की राजनीति की पूरी तस्वीर बदल जाएगी। इसलिए राजनीति पर नजर रखनेवालों को अभी कुछ दिन इंतजार करना होगा। तेल और तेल की धार दोनों देखनी होगी।

मोदी का बजरंगबली स्ट्रोक

कर्नाटक में आठ दिन के बाद विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होगी। चुनाव प्रचार पूरे शबाब पर है। कांग्रेस का घोषणा पत्र जारी होने के कुछ ही मिनट बाद मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभियान का नैरेटिव बदल दिया। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ऐलान कर दिया कि अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो मुसलमानों का आरक्षण बहाल होगा, गोहत्या पर बना कानून वापस लिया जाएगा और नफरत फैलाने वाले संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। यहां तक तो ठीक था। लेकिन कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में नफरत फैलाने वालों संगठनों के नामों में पीएफआई के साथ-साथ बजरंग दल का भी नाम डाल दिया। बस इसी बात को मोदी ने पकड़ लिया और इसे ऐसा मोड़ दिया कि शाम होते-होते कांग्रेस के नेता हनुमान चालीसा लेकर घूमते दिखाई दिए। कांग्रेस के नेताओं को लोगों यह समझाने के लिए मजबूर होना पड़ा कि वे बजरंगबली के विरोधी नहीं हैं। पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस को पहले प्रभु राम से दिक्कत थी और अब कांग्रेस को बजरंग बली का नाम लेने वालों से नफरत हो गई है, बजरंग बली की जय बोलने वालों पर पांबदी लगाने की बात कर रही है। इसके जवाब में कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने अपनी जेब से हनुमान चालीसा निकाला और कहा कि वो भी हनुमान भक्त हैं। उन्होंने कहा कि बजरंग दल जैसे संगठन को बजरंग बली से तुलना करके मोदी ने हनुमान भक्तों की आस्था का अपमान किया है। कांग्रेस के रक्षात्मक होने पर बीजेपी नेताओं ने दबाव बनाया और कांग्रेस को मुस्लिम समर्थक और हिंदू विरोधी करार दिया। बुधवार को मोदी ने अपनी रैलियों में ‘बजरंगबली की जय’ का नारा लगाया। वहीं कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने अपनी सभाओं में बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा कि उसे असली मुद्दों पर चुनाव लड़ना चाहिए। एक बात कहनी पड़ेगी कि राहुल गांधी से बेहतर वक्ता प्रियंका गांधी हैं। कम से कम प्रियंका मुद्दे तो उठाती हैं। उनके भाषणों में कुछ तो नया होता है। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी समस्या यही है कि राहुल गांधी उसके सबसे बड़े प्रचारक हैं और उनका मुकाबला नरेन्द्र मोदी जैसे चतुर और वाकपटु नेता से है। दूसरी बात यह है कि बीजेपी की रणनीति बिल्कुल स्पष्ट है लेकिन कांग्रेस असमंजस की स्थिति में है। कांग्रेस मुस्लिम मतदाताओं को नाराज नहीं करना चाहती और खुद को हिन्दुओं की हितैषी भी दिखाना चाहती है। इसी चक्कर में उसने पीएफआई की तुलना बजरंग दल से कर दी। बजरंग दल पर पाबंदी की बात मोदी ने पकड़ ली और अब कांग्रेस के नेता अगले आठ दिन तक सफाई देते घूमेंगे।

बृजभूषण शरण के नखरे

पहलवानों के आरोपों से घिरे भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह का असली चेहरा जनता के सामने आ गया। मंगलवार को वह इंडिया टीवी पर एक लाइव बहस के दौरान भड़क गए और बीच में इंटरव्यू छोड़कर चले गए। हमारे एंकर सौरव शर्मा ने बृजभूषण के सामने उस हलफनामे को रखा जिसमें एक नाबालिग महिला पहलवान ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था । इंटरव्यू के दौरान बृजभूषण शरण सिंह ने आरोप लगाने वाली महिला पहलवानों के नाम भी ले लिए । इंडिया टीवी के पास महिला पहलवान के हलफनामे की कॉपी थी जिसमें बृजभूषण पर यौन उत्पीड़न के इल्जाम लगाए गए थे। जब सौरव शर्मा ने हलफनामे का हवाला दिया तो बृजभूषण उखड़ गए। सौरव शर्मा ने उन्हें बताया कि एक महिला पहलवान ने जांच कमेटी को बताया है कि कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष ने उन्हें अपने दफ़्तर में बुलाकर ग़लत तरीक़े से उनके शरीर को छुआ, ज़बरदस्ती गले लगाने की कोशिश की। इसपर उनका रिएक्शन मांगा गया, तो वो नाराज़ हो गए। इंडिया टीवी पर बृजभूषण शरण सिंह का लाइव टेलीकास्ट जंतर मंतर पर धरने पर बैठे पहलवान भी देख रहे थे। उन्होंने बाद में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि बृजभूषण शरण सिंह की यही असलियत है। यही उनका असली चेहरा है। विनेश फोगाट ने कहा, ‘सोचिए जब बृजभूषण शरण सिंह नेशनल मीडिया के साथ ऐसा कर सकते हैं तो फिर बंद कमरे में खिलाड़ियों से कैसा सलूक करते होंगे’। मैंने बृजभूषण शरण सिंह से सौरव शर्मा की बातचीत देखी। सौरव एक अच्छे प्रोफेशनल एंकर की तरह सवाल पूछ रहे थे। उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं कही कि नेताजी को इंटरव्यू बीच में छोड़कर भागना पड़े। नेताजी अपनी सफाई में जांच रिपोर्ट का हवाला दे रहे थे। जब सौरव ने रिपोर्ट का वो हिस्सा पढ़कर सुनाया, जहां एक लड़की ने बृजभूषण शरण सिंह पर सीधे-सीधे यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था तो नेताजी बिफर गए और डरकर भाग गए। मैं कहना चाहता हूं कि जो लोग सार्वजनिक जीवन में होते हैं उन्हें बर्दाश्त करना पड़ता है। जो लोग चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं उन्हें जनता के प्रति उत्तरदायी होना पड़ता है। मीडिया के सवालों के जवाब देने पर जिस तरह का ड्रामा बृजभूषण शरण सिंह ने किया जिस तरह के नखरे उन्होंने दिखाए वो उनकी कमजोरी को दर्शाते हैं। माइक उतारना, देख लेने की धमकी देना, ऐसा तो वो लोग करते हैं जिन्हें एक्सपोज होने का डर होता है। हमलोग ऐसी धमकियों से ना कभी डरे हैं और ना डरेंगे। मैं तो बृजभूषण शरण सिंह को आमंत्रित करता हूं कि वो ‘आप की अदालत’ में आएं, देश के चैंपियन पहलवानों का सामना करें और सवालों के जवाब दें ताकि जनता के सामने दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए।

गंभीर बनाम कोहली

लखनऊ में आईपीएल मैच के बाद हार से बौखलाए गौतम गंभीर ने एक बार फिर विराट कोहली पर अपनी खीझ निकालने की कोशिश की। दोनों के बीच जमकर बहस हुई। मामला इतना बढ़ गया कि बीच-बचाव की नौबत आ गई। इस घटना ने सभी क्रिकेट प्रेमियों को झकझोर कर रख दिया है। गंभीर लखनऊ सुपर जायंट्स के मेंटर हैं और विराट कोहली रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के स्टार बल्लेबाज हैं। लखनऊ के इकाना स्टेडियम में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर और लखनऊ सुपरजायंट्स के बीच मैच चल रहा था। रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर ने मैच 18 रन से जीत लिया। गौतम गंभीर लखनऊ सुपरजायंट्स के प्रदर्शन से निराश थे और इसका गुस्सा उन्होंने विराट कोहली पर उतारने की कोशिश की। एक बात तो साफ है कि गौतम गंभीर विराट कोहली की लोकप्रियता और उनकी सफलता से जलते हैं। दोनों दिल्ली के बड़े प्लेयर हैं। गौतम गंभीर इस बात को कभी पचा नहीं पाए कि विराट उनके मुकाबले बहुत बड़े प्लेयर बन गए। जब विराट कोहली आउट ऑफ फॉर्म चल रहे थे और उनके बल्ले से रन नहीं बन रहे थे तब गौतम गंभीर ने विराट कोहली को राइट ऑफ कर दिया था। गंभीर कोहली का मजाक उड़ाते थे। विराट कोहली ने अपने बल्ले से ऐसा करारा जवाब दिया कि गौतम गंभीर को मिर्ची लगने लगी। दिल्ली से चुनाव लड़कर और सांसद बनने के बाद गौतम गंभीर का अहंकार और भी बढ़ गया। विराट की लोकप्रियता गंभीर को कितना परेशान करती है यह मंगलवार को ग्राउंड में साफ-साफ नजर आया। विराट कोहली ऐसे प्लेयर हैं जो हमेशा एग्रेसिव रहते हैं। वो किसी तरह की नॉन-सेंस को बर्दाश्त नहीं करते इसीलिए उन्होंने गौतम गंभीर को बराबर का जवाब दिया। कोहली गंभीर को समझाने की कोशिश कर रहे थे कि हुआ क्या है, लेकिन गंभीर सुनने को तैयार नहीं थे। लेकिन कुल मिलाकर गौतम गंभीर ने जो किया वह खेल भावना के खिलाफ था। ऐसी घटनाओं से क्रिकेट का नुकसान होता है।

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