I SALUTE EX-CRICKETERS WHO SUPPORTED FEMALE WRESTLERS
For the first time, on Friday, came reports which suggest the noose is gradually tightening on BJP MP Brij Bhushan Sharan Singh, the Wrestling Federation of India chief, who is facing sexual harassment charges from female wrestlers. Till Friday, he continued to be adamant threatening to hang himself if the charges are proved. It appeared the government was also trying to protect him. Such an impression unnerved our female wrestlers who were sitting on dharna at Delhi’s Jantar Mantar. The wrestlers found that , on one hand, while Delhi Police did not take time in filing FIR against them from trying to break police barricade during their march to Parliament, the complainants had to go to Supreme Court which had to issue direction to Delhi Police to file FIRs against the MP. The female wrestlers started feeling that Delhi Police, instead of taking action against the Federation chief, was trying to prove whether the female wrestler was adult or adolescent. Police was even investigating the veracity of the birth certificates submitted by the female wrestler ignoring that these certificates were used for participating in international tournaments. All these signals were not good. This allowed the Khap Panchayats, Congress, Aam Aadmi Party and other busybodies to jump into the fray to reap political benefit. But on Friday, BJP leadership directed Brij Bhushan Sharan Singh to stop making public comments, and the UP government refused permission to him to address a rally in Ayodhya, the rally had to be cancelled at the last minute. These developments indicate that the government has realized that the ruling party could face problems because of the slipshod manner in which the entire matter was handled. Visuals of the female wrestlers being dragged by policewomen at Delhi’s Jantar Mantar, can make any proud Indian weep. Such action cannot be defended. The insult crudely meted out to our daughters who won medals for our country can hurt any self-respecting Indian. One should now hope that police will stop being partial from now onwards and the daughters who lodged complaints will get justice. This is the call of time. I would like to praise Sunil Gavaskar, Kapil Dev, Roger Binny, Madan Lal and Kirti Azad, who extended support to the female wrestlers. The joint statement issued by the 1983 World Cup winning cricket team will give strength and courage to our female wrestlers.
SHASHI THAROOR ON RAHUL IN ‘AAP KI ADALAT’
Rahul Gandhi has stirred a fresh controversy by describing Muslim League as a ‘secular party’, while interacting with media at the Washington National Press Club. BJP leaders questioned his knowledge about history and Partition, while Congress tried to differentiate between Jinnah’s Congress and the IUML (Indian Union Muslim League) in Kerala, which is an alliance partner of Congress in United Democratic Front. Indian Union Muslim League is a registered political party, hence it cannot be technically called a communal organization. But the question may be asked on what grounds are Rahul Gandhi and other opposition leaders describing BJP as communal. BJP has been given a mandate by the people of India. It is the ruling party both at the Centre and many other states. Yet, Rahul Gandhi almost daily calls BJP a communal party. Actually, the topic is less technical, and more political. Rahul’s reply displays his political immaturity. It may be that because of community based equations in his Wyanad constituency, such a remark could be his compulsion, but from a national and political point of view, his remark is not justified. Congress MP from Thiruvananthapuram, Shashi Tharoor was my guest this weekend in my show ‘Aap Ki Adalat’. I asked him whether it was justified for Rahul to say in London and the US that democracy is dead in India. Shashi Tharoor first tried to defend him by saying that Rahul did not say that foreign forces should help in restoring democracy in India. When I read out his exact quote, Tharoor agreed and said that Rahul should not have made such a remark. Tharoor is considered an expert in international affairs. He worked for 29 years at the United Nations. He said, domestic matters of a country must not be discussed in foreign lands, but he also said, it was Prime Minister Modi who started doing this. I asked him what he thinks of the Australian PM Anthony Albanese who said ‘Prime Minister Modi is The Boss’ in Sydney, and of the Papua New Guinea PM who touched Modi’s feet. Tharoor admitted that he never noticed such things in his long international career. But he also reminded what former US President Barack Obama said about the best world leader. Obama had named Dr Manmohan Singh, he said. Tharoor said, respect for a Prime Minister means respect for India. ‘It is a matter of pride for India’, he said. You can watch ‘Aap Ki Adalat’ show with Shashi Tharoor, tonight at 10 pm on India.
राहुल की गलतियां : उनके इमेज प्लानर परेशान
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक नया विवाद छेड़ दिय़ा. वॉशिंगटन में नैशनल प्रेस क्लब को संबोधित करते हुए राहुल ने का कि मुसलिम लीग सेक्यूलर पार्टी है और यह पार्टी किसी भी रूप में गैर-सेक्यूलर नज़र नहीं आती. उनसे सवाल पूछा गया था कि केरल में उनकी पार्टी का मुसलिम लीग के साथ क्यों गठबंधन है. अब इसको लेकर बीजेपी और कांग्रेस नेता एक दूसरे पर वार, पलटवार कर रहे हैं. बुधवार को राहुल गांधी ने स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में कहा था कि संसद की मेरी सदस्यता इसलिए चली गयी क्योंकि मैं भारत जोड़ो यात्रा पर निकला था. राहुल ने कहा कि उन्हें अयोग्य सिद्ध करने की योजना तो उसी दिन शुरू हो गई थी, जब उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा शुरू की थी. राहुल ने कहा, मोदी सरकार को ये बर्दाश्त नहीं था कि भारत जोड़ो यात्रा सफल हो. इसीलिए उन्होंने एक महीने के भीतर कोर्ट में सुनवाई करवा करके मानहानि के आरोप में अधिकतम सज़ा दिला दी. लेकिन राहुल गांधी ने अमेरिका जाकर कई ऐसी बातें कह दीं जिनका मज़ाक उड़ा. उन्होने कहा कि गुरू नानक देव सऊदी अरब, श्रीलंका और थाईलैंड गए थे. गुरू नानक देव जी ने भी भारत जोड़ो यात्रा की थी. फिर फोन हाथ में लेकर हल्के अंदाज में दिखाया कि उनका फोन टैप हो रहा है. राहुल ने मंच से कहा, ‘मोदी जी मैं राहुल बोल रहा हूं, मैं जानता हूं मेरा फोन टैप हो रहा है’, हालांकि उन्होंने ये मज़ाक में कहा… पर आरोप गंभीर था. राहुल ने नए संसद भवन का भी मज़ाक उड़ाया, कहा ये भवन ‘अहंकार की इमारत’ है . राहुल गांधी के भाषण के जो अंश सामने आए हैं, उनमें नरेन्द्र मोदी के प्रति उनकी नफरत, और मोदी के कुर्सी पर बैठे होने से उनकी नाराजगी साफ दिखाई पड़ रही है. ये सही है कि काँग्रेस के लिए राहुल गांधी की अच्छी इमेज जरूरी हैं,उनको फाइटर के रूप में प्रोजेक्ट करना जरूरी है. कई साल तक राहुल गांधी की ये समस्या रही कि वो अपने बयानों से हंसी का पात्र बनते रहे, लोग उन्हें पप्पू कहने लगे. पिछले दो साल में कांग्रेस ने राहुल की इस इमेज को बदलने के लिए प्रयास किया, टीम बनाई, भारत जोड़ो यात्रा इसी प्रयास का हिस्सा थी. लंदन में राहुल के भाषण, इसी इरादे से आयोजित किए गए थे. फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ बातचीत, ट्रक ड्राइवर्स के साथ राहुल का वीडियो, इसी इमेज बिल्डिंग के इरादे से पब्लिसाइज़ किया गया. अब अमेरिका में कई शहरों में राहुल गांधी के भाषण, उनके लोगों से इंटरएक्शन इसी इमेज को और पुख़्ता करने के लिए किया गया है. इस प्रयास से किसी को कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. पर राहुल गांधी पिछले नौ साल से मोदी का मज़ाक़ उड़ाने की कोशिश करते रहे हैं. ये उनका स्वभाव बन गया है. वह विदेश जाकर भी मोदी की इमेज पर चोट करते हैं. इससे भी उन्हें कोई नहीं रोक सकता. लेकिन मुझे पता चला कि राहुल की इमेज बनाने वाले इस बात से परेशान हैं कि राहुल सब कुछ ठीक-ठाक करते करते भी कुछ ऐसा कह देते हैं कि इमेज बिल्डर भी परेशान हो जाते हैं. जैसे ये कहना कि गुरु नानक देव थाईलैंड गए थे, तथ्य की दृष्टि से गलत है. कई सिख नेताओं ने इस बात पर भी आपत्ति की कि राहुल ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा की तुलना गुरू नानक देव जी की यात्रा से कर दी. राहुल ने मोदी के दंडवत प्रणाम करने का मज़ाक़ उड़ाया, तो यहां वो वीडियो वायरल हो गया जिसमें राहुल गांधी महाकालेश्वर के सामने दंडवत प्रणाम की मुद्रा में है. राहुल अपने कारनामों से अपने इमेज बिल्डर की करी-कराई मेहनत पर पानी फेर देते हैं लेकिन कोई क्या कर सकता है. और उनकी टीम के लोग इस बात के लिए तैयार हैं कि अभी ऐसे कई और उदाहरण सामने आएंगे, जिन्हें हैंडल करना पड़ेगा. कांग्रेस में पुराने नेता ये मानते हैं कि मोदी का मज़ाक़ उड़ाने से, मोदी को नीचा दिखाने से चुनावों में नुक़सान होता है. ये लोग तो चुनावों के लिए हर जगह कर्नाटक का फॉर्मूला अपनाना चाहते हैं. फॉर्मूला है स्थानीय मुद्दों पर फ़ोकस करो, और जनता को मुफ़्त का माल देने के वादे करो. इसका एक उदाहरण कल रात राजस्थान में सामने आया.
राजस्थान में बंटेगी रेवड़ियां
अब तक कांग्रेस गारंटीज दे रही थी, चुनाव जीतने के बाद उन्हें पूरा करने का वादा कर रही थी, लेकिन राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने चुनाव से पहले गारंटी पूरी कर दी. 100 यूनिट बिजली मुफ्त देने का एलान कर दिया, 200 यूनिट बिजली खर्च करने पर कोई फिक्स चार्ज और सरचार्ज नहीं लिया जाएगा, सिर्फ 100 यूनिट का पैसा लोगों को देना होगा. ये फैसला 1 मई से लागू होगा. इस फैसले का एलान करने के लिए अशोक गहलोत नें सुबह होने का इंतजार नहीं किया. रात दस बजे ट्वीट किया कि पौने ग्यारह बजे बड़ा एलान करेंगे, और रात ठीक पौने ग्यारह बजे गहलोत का वीडियो मैसेज आ गया कि अब राजस्थान के लोगों पर बिजली का बिल बोझ हल्का होगा. असल में कल अजमेर की रैली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि कांग्रेस के पास गारंटी का नया चुनावी फॉर्मूला है, लेकिन कांग्रेस की गारंटीज झूठी होती है. जैसे ही मोदी की पब्लिक मीटिंग खत्म हुई, उसके तुरंत बाद अशोक गहलोत ने वित्त सचिव समेत कई बड़े अफसरों को बुलाया, एक घंटे की मीटिंग के बाद तुरंत ही बिजली के बिल में छूट के एलान का फैसला हो गया. .गहलोत ने रात में ही एलान कर दिया. इसके बाद गहलोत ने प्रधानमंत्री पर हमला किया, कहा कि कांग्रेस की गारंटी पर सवाल उठाने वालों को ये जवाब है. गहलोत ने कहा कि कुछ लोग इसे चुनावी रेवड़ी कह रहे हैं, लेकिन सरकार का फैसला चुनाव के बाद भी लागू रहेगा. केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि गहलोत को लोगों का ख्याल चुनाव से सिर्फ चार महीने पहले क्यों आया. बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने इसे चुनाव स्टंट बताया. राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि मायावती की बीजेपी से मिलीभगत है, मायावती बीजेपी का टूल हैं. अभी तो गहलोत ने 100 यूनिट बिजली मुफ्त में देने का फैसला किया है. मेरी जानकारी ये है कि अगले कुछ दिनों में गहलोत वैट कम करके पेट्रोल डीजल की कीमतों में कमी का एलान भी कर सकते हैं. गहलोत को लग रहा है कि इस वक्त मंहगाई बड़ा मुद्दा है, इसलिए उन्होंने राजस्थान में मंहगाई राहत कैंप शुरू किए हैं, 10 लाख तक मुफ्त इलाज की योजना शुरू की है.
पहलवानों का आंदोलन : सरकार की छवि के लिए ठीक नहीं
बीजेपी के सांसद बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे पहलवानों के समर्तन में खाप पंचायतें भी मैदान में आ गई है. गुरुवार को यूपी के मुजफ्फरनगर में महापंचायत हुई, और शुक्रवार को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में खाप पंचायत हुई. खाप पंचायतों ने एलान कर दिया कि अब वो बेटियों के सम्मान की लड़ाई लड़ेंगी, लेकिन ये लड़ाई कैसे आगे बढ़ेगी इसका कोई फैसला नहीं हुआ. किसी को इस बात की गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि किसान आंदोलन के नेता पहलवानों के मान सम्मान के लिए मैदान में उतरे हैं. वो तो पहलवानों की परेशानी का फायदा उठाकर मोदी से अपना हिसाब चुकता करना चाहते हैं. खाप महापंचायत में जो लोग आए उनकी इन्टेंशन ठीक हो सकती है. उनकी सहानुभूति पहलवानों के साथ हो सकती है लेकिन ये आंदोलन किस दिशा में जाएगा, ये पंचायतों के कंट्रोल में नहीं है. पहलवानों की मजबूरी भी समझी जा सकती है. वो तो जहां से भी सपोर्ट मिलता है उसे स्वीकार करने के लिए मजबूर हैं, उनके पास कोई और रास्ता भी नहीं है. ममता बनर्जी भी महिला पहलवानों के साथ खड़ी हो गईं हैं. ममता ने कोलकाता में कैंडल मार्च निकाला. पहलवानों का मसला एक तरह से एंटी मोदी मोर्चा का रूप लेता जा रहा है. यह स्थिति मुख्य आरोपी बृज भूषण शरण सिंह को सबसे ज्यादा सूट करती है. उनके लिए तो बड़ा अच्छा है कि अपने आप को विरोधियों से बचाने के चक्कर में सरकार बृज भूषण शरण सिंह के साथ खड़ी हुई दिखाई दे रही है. बृज भूषण इसका पूरा फायदा उठा रहे हैं. जो आरोपी है वो सीना चौंड़ा करके खड़ा है और जो पीडिता हैं वो सपोर्ट की तलाश कर रही हैं. ये दुर्भाग्यपूर्ण है. यह स्थिति न भारतीय़ कुश्ती के लिए अच्छी है, न ही सरकार की छवि के लिए.
RAHUL’S GAFFES : IMAGE PLANNERS WORRIED
A fresh war of words has broken out between BJP and Congress, after Rahul Gandhi described Muslim League as “a completely secular party” at the National Press Club in Washington on Thursday. Rahul said, “there is nothing non-secular about them”, when asked about his party’s alliance with Indian Union Muslim League in Kerala. While BJP leaders described Rahul as “illiterate” and his remarks as “sinister”, Congress leaders replied, Jinnah’s Muslim League and the party with the same name in Kerala is different. Rahul’s remarks in the US have been making headlines in the Indian media. On Wednesday, he mocked Prime Minister Narendra Modi for prostrating full length before the ‘Sengo’l, the sceptre of Chola dynasty installed in Parliament. Rahul described the new Parliament building as “a monument of arrogance” and said Modi was trying to divert people’s attention from real problems by prostrating before idols. “I never prostrated before anybody”, remarked Rahul. In reply, BJP supporters circulated an old video of Rahul, titled ‘Pehchaan Koun’ (Identify him). The video taken in November last year shows Rahul prostrating before Lord Mahakaaleshwar (Shiva) at the famous shrine in Ujjain. BJP supporters asked, if Rahul can do so, what mistake did Modi commit? Congress wants to project Rahul Gandhi as a fighter. For the last several years, the problem with Rahul was that he became the butt of several jokes and people started describing him as ‘Pappu’ (childish). In the last two years, Congress have been trying to change Rahul’s image. They have formed a team to do so. Rahul’s ‘Bharat Jodo Yatra’ was part of that lexicon. Rahul’s speech in Cambridge University was part of that image building exercise. He was then shown dropping at a Delhi University hostel mess, chatting with students over meals, and a late midnight travel and talk with truck drivers from Ambala to Chandigarh. These images were publicized on social media, and now his visit to the US. Rahul’s interaction with cross sections of people in the US, including media, was part of that image building exercise. Nobody should have problems with this exercise, but one cannot ignore the fact that Rahul had been making fun of Narendra Modi for the last nine years. It has been part of his collection of jibes. He mocks Modi even in foreign countries and nobody can stop him. I have come to know that Rahul’s image builders are worried over his remarks that make him the butt of ridicule. Rahul, while praising the founder of Sikh religion Guru Nanak Dev, went on to say that the Guru had visited Thailand, which was factually incorrect. Several Sikh leaders objected to Rahul comparing his ‘Bharat Jodo Yatra’ with Guru Nanak Dev’s travels across India and beyond. When Rahul mocked Modi’s prostration, videos came out of Rahul doing the same thing at the Ujjain shrine. By doing this, Rahul has been throwing cold water on the painstaking efforts of his image builders. What can one do? His team of image planners are ready to face similar instances in the coming months too, which they may have to handle. Old timers in Congress say that by mocking or denigrating Modi, the party has to bear losses during elections. But Congress strategists have made up their mind to adopt the Karnataka formula in all elections: Focus on local issues and promise freebies to voters. The latest example came from Rajasthan.
FREEBIES IN RAJASTHAN
On Thursday morning, most of the national newspapers carried full page ads of Rajasthan chief minister announcing ‘zero electricity bill’ for consumers up to 100 units and waiver of fixed charge and surcharge for consumption up to 200 units. BJP and BSP chief Mayawati described it as ‘pre-election gimmick’ to woo voters, while Gehlot said, the waiver will continue even after elections. This is only the beginning. I have information that Ashok Gehlot is going to announce more reduction in excise duty on petrol and diesel. His government has been holding Inflation Relief Camps across the state. Gehlot has already introduced free hospital treatment scheme up to Rs 10 lakhs.
WRESTLERS’ PROTEST IS NOT GOOD FOR GOVT’S IMAGE
After the Maha Khap Panchayat in Muzaffarnagar, UP on Thursday, another Khap Panchayat took place in Kurukshetra, Haryana, on Friday over the issue of treatment meted out to medal winning female wrestlers. The Khaps have decided to call on President Droupadi Murmu and demand action against BJP MP and Wrestling Federation of India chief Brij Bhushan Sharan Singh, who is facing allegations of sexual harassment from female wrestlers. Nobody should be under the illusion that farmer leaders led by Naresh Tikait will launch agitation on the issue of ‘honour’ of female wrestlers. They are merely trying to take advantage of the wrestlers’ problems for their own advantage and trying to settle old scores with the government. The intentions of those who attended the Khap Panchayats may be good, they might be having sympathy towards the female wrestlers, but the Panchayats have no control in which direction the agitation will proceed. One can understand the compulsions of wrestlers. They are forced to accept support from any quarter because they have no other alternative. West Bengal CM Mamata Banerjee also came out in the open to take up the cause of wrestlers. She took out a candle march in Kolkata. A sort of anti-Modi front is evolving on the wrestlers’ issue. Such a situation suits the main accused Brij Bhushan Sharan Singh, who finds the government standing with him because of the opposition. He is taking full advantage and is adamant, while the victims are desperately seeking support. This is very unfortunate. Such a situation is neither good for Indian wrestling nor for the image of the government.
मोदी का 9 साल का रिपोर्ट कार्ड
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने वाले कांग्रेस के नेताओं को करारा जवाब दिया. मोदी ने कहा, कांग्रेस ये पचा नहीं पा रही है कि देश के लोग एक गरीब के बेटे पर भरोसा क्यों करते हैं, परिवारवाद का विरोध करने वाला गरीब का बेटा देश का सम्मान कैसे बढ़ा रहा है. मोदी ने कहा कि कांग्रेस के नेताओं को परेशानी नए संसद भवन से नहीं, उन से है, कांग्रेस को गुस्सा इस बात का है कि गरीब का बेटा उनके भ्रष्टाचार औऱ उनके परिवारवाद पर सवाल खड़े क्यों कर रहा है. मोदी ने कहा कि नए संसद भवन से देश की शान बढ़ी है, लेकिन कांग्रेस ने देश के लिए गौरवशाली क्षण को अपने स्वार्थ की भेंट चढ़ा दिया. मोदी ने बुधवार से राजस्थान में चुनाव अभियान की शुरूआत कर दी . मोदी पुष्कर पहुंचे. प्राचीन ब्रह्मा मंदिर में निर्जला एकादशी की पूजा की, और अजमेर की रैली में कांग्रेस पर जबरदस्त हमले किए. मोदी ने अपनी सरकार के 9 साल का रिपोर्ट कार्ड लोगों के सामने रखा. बताया कि किसानों, महिलाओं, गरीबों और नौजवानों के लिए सरकार ने क्या क्या किया, कैसे हाइवे और रेलवे पर 25 लाख करोड़ रुपये खर्च किये गये. मोदी ने कहा कि लोगों को 2014 से पहले और उसके बाद के हालात की तुलना करनी चाहिए, फ़र्क़ समझ में आ जाएगा. मैं इस बात को लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत मानता हूं कि प्रधानमंत्री अपने 9 साल के काम गिना रहे हैं. मोदी जनता को हिसाब दे रहे हैं. लोकतंत्र में सरकार की जवाबदेही होनी चाहिए. मोदी की ये बात सही है कि 9 साल पहले ज्यादातर बात भ्रष्टाचार को लेकर होती थी. विरोधी दलों को मोदी सरकार के कामों पर सवाल उठाने का हक है, उनके कमाकाज को परखने का अधिकार है, लेकिन अगर आप कांग्रेस का अभियान देखेंगे, तो कांग्रेस के नेता मोदी के कामकाज पर ज्यादा सवाल नहीं उठाते क्योंकि जो काम मोदी गिनाते हैं, वो ज़मीन पर दिखाई देता है. कांग्रेस का ज्यादातर समय मोदी को तनाशाह बताने में, मोदी को नीचा दिखाने में और मोदी का मजाक उड़ाने में जाता है. राहुल गांधी ने अमेरिका पहुंचकर यही किया. मोदी के साथ-साथ भारत के लोकतंत्र और भारत की संवैधानिक संस्थाओं पर भी हमला किया.
राहुल के बयानों से भारत को नुकसान होगा
अमेरिका दौरे पर गए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मंगलवार को कैलिफोर्निया में प्रवासी भारतीयों से कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज में लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थान कमज़ोर हो गये हैं. राहुल ने कहा, मोदी किसी की सुनते नहीं हैं, मोदी खुद को भगवान समझते हैं, भारत में विरोधियों के लिए राजनीति के सभी टूल खत्म कर दिए गए, सभी संस्थाओं पर बीजेपी और RSS का कब्जा हो गया है, देश का सारा पैसा सिर्फ पांच बड़े लोगों के पास पहुंच गया है, ग़रीबी बढ़ रही है, बेरोज़गारी चरम पर है, आपसी झगड़े बढ़ रहे हैं, मुसलमानों पर जुल्म हो रहे हैं, सरकार विपक्ष की आवाज़ दबा रही है. ऐसी बहुत सारी बातें राहुल गांधी ने कहीं लेकिन इनमें कोई नई बात नहीं थी. राहुल ने जो बातें लंदन में कही थी, क़रीब क़रीब वही बातें अमेरिका में भी दोहराईं, सिर्फ जगह बदली, तारीख़ बदली, श्रोता बदले, राहुल वही थे और उनके डायलॉग वही थे. लंदन में राहुल गांधी ने जो बातें कहीं थी, उस वक्त उनकी आलोचना हुई थी, लेकिन उसका उनपर कोई असर नहीं हुआ. राहुल इंदिरा गांधी की इस विरासत को नहीं मानते कि अपने घर के झगड़ों की चर्चा बाहर की दुनिया में नहीं करनी चाहिए. कांग्रेस में कई ऐसे नेता हैं जो मानते हैं कि राहुल को विदेशों में जाकर ये नहीं कहना चाहिए कि भारत में मुसलमानों पर जुल्म हो रहे हैं, क्योंकि पाकिस्तान और चीन इसका फायदा उठाते हैं. कांग्रेस में कई नेता ये भी मानते हैं कि विदेश में जाकर भारत के लोकतंत्र को कमजोर बताने से हमारी संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल उठाने से देश का नुकसान होता है, लेकिन फिर वो ये भी कहते हैं कि ये काम पहले मोदी ने किया. मोदी ने पहले विदेश में जाकर कहा कि उनके प्रधानमंत्री बनने से पहले देश में कुछ नहीं हुआ. उन्हें मोदी की इस बात पर भी आपत्ति है कि पहले बाहर के मुल्कों में रहने वालों को अपने आप को भारतीय कहने में शर्म आती थी. मैं एक बार के लिए मान लेता हूं कि मोदी को ये नहीं कहना चाहिए था लेकिन इसमें ऐसा कुछ नहीं था जिसका इस्तेमाल देश के दुश्मन भारत के खिलाफ कर सकें. राहुल जो कह रहे हैं उसका इस्तेमाल देश के दुश्मन करेंगे, इसका नुकसान भारत को होगा. अगर राहुल ये सोचते हैं कि इससे मोदी का नुकसान होगा या बीजेपी का नुकसान होगा, तो वो गलत सोचते हैं. जब ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने मोदी को ‘बॉस’ कहा, या अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मोदी की लोकप्रियता की बात की, या पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री ने मोदी के पैर छुए, तो ये भारत का सम्मान है, भारत के 140 करोड़ लोगों का सम्मान है, इसे सबको स्वीकार करना चाहिए.
हकीकत ये है कि राहुल गांधी कन्फ्यूज्ड हैं, उन्हें ये समझ नहीं आ रहा है कि नरेन्द्र मोदी को रोकें, तो कैसे रोकें, उन्हें चुनाव में कैसे हराएं.
असल में नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी में एक बुनियादी फर्क है. नरेन्द्र मोदी कभी आराम के मूड में नहीं होते, कभी छुट्टी नहीं लेते, एक चुनाव खत्म होता है, दूसरे की तैयारी में लग जाते हैं. कर्नाटक में जीत के बाद राहुल गांधी अमेरिका चले गए, लेकिन जिस दिन 11 मई को कर्नाटक में लोग वोट डाल रहे थे, उसी दिन मोदी ने राजस्थान चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी. 11 मई को मोदी राजस्थान में थे, श्रीनाथद्वारा में पूजा करने के बाद रैली की थी. बुधवार को पुष्कर गए और अजमेर में रैली की. मोदी अपने काम पर भरोसा कर रहे हैं, और कांग्रेस को अपनी गारंटीज पर यकीन है. पिछले 8 महीने में मोदी 6 बार राजस्थान का दौरा कर चुके हैं.
राजस्थान में कांग्रेस के लिये खतरे की घंटी
मोदी को मालूम है कि राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस के सामने एक ही समस्या है – गुटबाज़ी. अगर इसे दूर कर लिया, तो बात बन सकती है, इसलिये मोदी ने सबसे पहले गुटबाज़ी को खत्म करने में ताकत लगाई. काफी हद तक इसे दूर कर किया, बुधवार को अजमेर रैली के मंच पर वसुंधरा राजे, गजेंद्र सिंह शेखावत, राजेंद्र सिंह राठौर और सी. पी. जोशी सभी एक साथ दिखाई दिये. ऐसा लग रहा है कि राजस्थान बीजेपी के नेताओं को साफ बता दिया गया है कि अगला चुनाव वसुंधरा राजे के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. दूसरी तरफ कांग्रेस मुश्किल में है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की दूरियां खत्म करने की सारी कोशिशें नाकाम होती दिख रही है. बुधवार को सचिन पायलट अपने चुनाव क्षेत्र टोंक में थे. पायलट ने रैली में कहा कि वसुंधरा राजे शासन के दौरान हुए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए उन्होंने गहलोत सरकार को जो अल्टीमेटम दिया था, वह खत्म हो गया है, अब उन्हें आगे क्या करना है, इसका फैसला जल्दी करेंगे.गहलोत ने कहा था कि सबको धैर्य रखना चाहिए, सब्र का फल मीठा होता है, इस पर सचिन पायलट ने कहा कि उम्र में बड़े नेताओं को चाहिए कि वो नौजवानों को आगे आने का मौका दें, कुछ बुजुर्ग नेता खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, इसीलिए वो युवा नेताओं को पैर पकड़कर नीचे खींच लेते हैं. सचिन पायलट द्वारा उठाया गया भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई और रोजगार का मुद्दा तो गहलोत को घेरने के लिए है. हकीकत ये है कि सचिन पायलट चाहते हैं कि कांग्रेस राजस्थान में चुनाव से पहले उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करे. पांच साल पहले किया गया अपना वादा पूरा करे. लेकिन आजकल अशोक गहलोत को कांग्रेस हाईकमान का समर्थन है, इसलिए उन्होंने साफ कह दिया है कांग्रेस हाईकमान को कोई मजबूर नहीं कर सकता, उन्होंने सचिन पायलट को धैर्य रखने का उपदेश दिया. मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी को लगता है कि सचिन पायलट की नाराजगी झेली जा सकती है लेकिन चुनाव से पहले अशोक गहलोत को नाराज करना पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा. सचिन पायलट सब्र करने के लिए तैयार होंगे, ये मुश्किल लगता है. सचिन का अल्टिमेटम राजस्थान में कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है.
MODI PRESENTS HIS 9-YEAR RULE REPORT CARD
Prime Minister Narendra Modi, in his first public rally after completing nine years in office, on Wednesday, listed out the achievements of his government. At the same time, he lashed out at Congress saying it “cannot digest the fact that the son of a poor family can build and inaugurate a new Parliament building”. He said, “they are angry why the son of the poor is questioning them on the issue of corruption and dynastic politics.” With Rajasthan set to go for assembly polls later this year, Modi began his party’s month-long contact campaign from Ajmer. While listing the welfare measures taken by his government for women, poorer sections, farmers and youth, Modi said, people should compare the situation that prevailed in 2014 and now, and they will know the difference. He said, Rs 25 lakh crore were spent to build new highways, roads and railway. I consider this a good sign for democracy that our Prime Minister is listing the achievements of his government during the last nine years. In a democracy, the government must be accountable. Modi is right when he says that nine years ago, there used to be too many cases of high-end corruption. Opposition parties have the right to question the work of Modi government and judge his performance. But if you look at the Congress campaign, their leaders do not ask questions about the performance of Modi government. This is because the achievements that Modi lists out in his speeches, are visible on ground. Congress leaders spend most of their time on labelling Modi as “dictator”, defaming the Prime Minister and making fun of him.
RAHUL’S REMARKS WILL SURELY HURT INDIA
Congress leader Rahul Gandhi, while addressing NRIs in California on Tuesday, mocked Prime Minister Narendra Modi and described him as a “specimen”. Rahul Gandhi said, “There is a group of people in India who are convinced they know everything. They think they know even more than God. They can sit with God and explain the Universe. And of course, our prime minister is one such specimen. They think they can explain history to historians, science to scientists and warfare to the army, But at the core of it is mediocrity. They are not ready to listen.” He ridiculed Modi for lying prostrate full length in front of the ‘Sengol’ (sceptre) during the inauguration of new Parliament building. Rahul Gandhi is almost repeating in the US, what he had earlier said during his visit to UK. He was strongly criticized for bringing a bad name for India at that time, but those criticisms have had no effect on him. Rahul does not believe in Indira Gandhi’s legacy that Indians should not speak about domestic differences on foreign shores. There are many Congress leaders who still believe in this principle. They feel, Rahul should not say in foreign countries that Muslims in India are facing atrocities, because Pakistan and China take undue advantage of his remarks. Several Congress leaders also believe that by saying democracy and Constitutional institutions in India have become weaker, he is causing damage to the country. Rahul Gandhi’s supporters say, even Modi did the same in the past. They say, Modi said in foreign countries that no progress took place in India before he became PM. They also object to Modi claiming that earlier our countrymen used to feel shame on introducing themselves as Indians while they are abroad. Even for a moment, even if I agree that Modi should not have said this, I feel there was nothing in his remark which could be used by our enemies against India. The remarks that Rahul Gandhi is making will be used by our enemies and it can harm India. If Rahul thinks that his remarks will harm Modi or the BJP, he is mistaken. When the Australian PM Anthony Albanese said at the Sydney NRI event that “Prime Minister Modi is the Boss” or when the US President Joe Biden spoke about Modi’s popularity or when the PM of Papua New Guinea touched Modi’s feet, every Indian was elated. It brings pride and glory to 140 crore Indians. We should all accept this. The fact is that Rahul Gandhi is confused. He is unable to find ways on how to stop Modi from winning elections. In fact, there is a basic difference between Modi and Rahul Gandhi. Modi is never in a restive mood. He never goes on holidays. The moment an election is over, he begins preparing for the next. After Congress won Karnataka polls, Rahul Gandhi immediately proceeded to the US. But on May 11, the day voters were casting their votes in Karnataka, Modi was in Nathdwara addressing a rally and preparing the ground for Rajasthan poll campaign. On Wednesday, Modi was again in Ajmer, Rajasthan, addressing a rally after performing prayers at Pushkar shrine. Modi visited Rajasthan six times during the last eight months. Modi considers his work as the basis for seeking votes, while Congress believes in giving ‘guarantees’ to voters.
RAJASTHAN: ALARM BELLS ARE RINGING FOR CONGRESS
Alarm bells are ringing in Rajasthan Congress. On Wednesday, dissident leader Sachin Pilot was in his constituency Tonk, where he told a rally that the deadline that he gave for instituting probes into corruption charges against former CM Vasundhara Raje is now over, and he would soon decide on his next step. Replying to CM Ashok Gehlot’s ‘advice’ that young leaders should be patient and that the fruits of patience are sweet, Pilot hit back and said, ‘it is time for older politicians to give opportunity to the younger ones’. Without naming Gehlot, he said, “some old leaders are now feeling insecured, and that is the reason why they are pulling the legs of younger ones.” Sachin Pilot’s line is clear: his demand for instituting probe into corruption charges against Vasundhara Raje are actually meant to harass Gehlot. The ground reality is that Pilot wants the Congress to project him as the chief ministerial candidate for this year’s assembly elections. He wants the party leadership to fulfill the promise made to him five years back. But Ashok Gehlot has the backing of Congress high command. He has clearly said, nobody can force the high command in taking any decision. Congress President Mallikarjun Kharge and Rahul Gandhi feel that Pilot’s unhappiness can be managed, but if Gehlot’s government is destabilized, it may amount to digging one’s own grave. Pilot may soon lose his patience. Now that his deadline is over, warning bells have started ringing for Congress in Rajasthan.
लव जिहाद की घटनाएं रोकने के उपाय
बजरंग दल ने ऐलान कर दिया है कि अगर लव जिहाद के मामले न रुके, अगर पुलिस ने इन पर रोक न लगाई, हिन्दू बेटियों के साथ ज्यादती न रूकी तो बजरंग दल एंटी रोमियो फोर्स गठित करेगा. बजरंग दल खुद पुलिसिंग का काम करेगा. विश्व हिंदू परिषद के संयुक्त महासचिव सुरेन्द्र जैन ने मंगलवार को कहा कि हम हिन्दू बेटियों को इस तरह से चाकुओं से गोदते हुए नहीं देख सकते. बागेश्वर धाम वाले धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि अब वक्त आ गया है हिन्दुओं को एकजुट होकर बेटियों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने होंगे. ये बात सुनने में साधारण लग सकती हैं, लेकिन ये देश में सुलग रही चिंगारी की तरफ इशारा करती है, इसलिए इस पर बात पर गौर करना जरूरी है. असल में, दिल्ली में साक्षी की सरेआम चाकुओं से गोदकर हत्या करने वाले साहिल ने पुलिस के सामने गुनाह कबूल कर लिया है और ये कहा है कि उसे साक्षी का कत्ल करने का कोई अफसोस नहीं है. उसकी कलाई पर कलावा मिला था और गले में रुद्राक्ष मिला, इसलिए बात और बड़ी हो गई. दिल्ली के अलावा लखनऊ, शाहजहांपुर, उत्तरकाशी, बरेली, पटना, कानपुर, मेरठ, और बीकानेर समेत कई शहरों से लव जिहाद की खबरें आईं हैं.कहीं जबरन हिन्दू लड़की का धर्मपरिवर्तन करवाकर निकाह करने और जुल्म करने का इल्जाम है, तो कहीं बहला फुसला कर नाबालिग हिन्दू लड़की को अगवा करने का आरोप है. कहीं धर्म परिवर्तन और निकाह से इंकार करने पर हमला करने और जान से मारने की धमकी का मामला है. हर जगह एक बात समान है.. लड़का मुस्लिम है, लड़की हिन्दू है, पहचान छुपाकर दोस्ती की कोशिश की गई, जब असलियत सामने आई तो मारपीट, धमकी और अपहरण की कोशिश हुई. जब अचानक इस तरह के बहुत से मामले सामने आए तो हिन्दू संगठन मैदान में आ गए. ये चिंता की बात है. मुझे लगता है कि ये मुद्दा सियासत का नहीं, संजीदगी से सोचने का है. जब ऐसी कोई घटना होती है, जिसमें कोई मुस्लिम लड़का, किसी हिंदू लड़की से संबंध बनाता है, फिर उस पर ज़ुल्म करता है, उसकी हत्या कर देता है, तो लव जिहाद का सवाल उठना स्वाभाविक है.आफ़ताब हो या साहिल, जब लोग देखते हैं कि किस बेरहमी से लड़की की हत्या की गई, तो इसका समाज के दिलो दिमाग़ पर गंभीर प्रभाव पड़ता है. पिछले कुछ साल की घटनाएं देखें, तो केरल में ईसाई लड़कियों के साथ जब इसी तरह की घटनाएं हुईं, तो पादरियों ने आवाज़ उठाई. कुछ दिन पहले जैन समाज के लोगों ने लव जिहाद को लेकर प्रोटेस्ट किया. इसमें दो चीज़ें समझने की हैं. एक, हो सकता है कि सारी घटनाएं लव जिहाद से जुड़ी न हों, हर केस में लड़के ने पहचान छुपाकर, लड़की से दोस्ती की हो, इसके सबूत नहीं मिलते, लेकिन ऐसी एक भी वारदात होती है, तो बात बहुत दूर तक जाती है. फिर बाक़ी घटनाओं को भी इसी नज़र से देखा जाता है. इसलिए समस्या गंभीर और पेचीदा है. अगर दिल्ली वाली घटना को देखें, यदि साहिल के हाथ पर कलावा न होता, उसके गले में रुद्राक्ष न मिलता, तो बात इतनी न बढ़ती. इसे एक जघन्य अपराध मानकर इसकी जांच होती लेकिन, अब इस केस का दायरा बड़ा हो गया है. बजरंग दल समेत कई संगठन इसमें कूद पड़े हैं. हालांकि ये बात सही है कि इस समस्या का इलाज हिन्दू सेना, एंटी रोमियो फोर्स या मुस्लिम फोर्स बनाने से नहीं होगा. इसका एक ही इलाज है. माता-पिता अपने बच्चों को अच्छे- बुरे, सही-गलत का फर्क बताएं, उनसे बात करें. बच्चों में इतना भरोसा पैदा करें कि वो हर बात अपने मां-बाप से शेयर कर सकें. और इसके साथ-साथ उलेमा और मौलाना भी मुस्लिम लड़कों को समझाएं कि पहचान छुपाकर, किसी को धोखा देकर उससे रिश्ता बनाना ठीक नहीं है, तभी इस तरह की समस्या से बचा सकता है. वरना इस तरह के मामले समाज में दूरियां बढ़ाएंगे.
सरकार पहलवानों से बातचीत शुरू करे
जिस तरह पहलवान मंगलवार को अपने मेडल लेकर गंगा में बहाने हरिद्वार पहुंचे, जिस तरह मेडल गोद में रखकर वो रोते दिखाई दिए, ये दृश्य दु:खी करने वाला था. ये सोच कर ही तकलीफ़ हो रही थी कि देश की शान बढ़ाने वाले ये मेडल अगर वाक़ई में पानी में बहा दिए गए, तो कितना बड़ा नुक़सान हो जाएगा. मैं तो नरेश टिकैत की तारीफ़ करूंगा, जिन्होंने हमारे चैंपियंस को समझाया और उन्हें मेडल गंगा में बहाने से रोका. असल में पहलवानों को लगता है कि सरकार में कोई उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है. उन्हें लगता है कि सारी सरकार बृजभूषण शरण सिंह को बचाने में लगी है. पहलवानों को लगता है कि पुलिस के बल पर उनकी आवाज़ को दबाया जा रहा है, इसलिए उन्हें जहां से भी सहारा मिलता है, जहां से भी उम्मीद की किरण दिखाई देती है, वो उसके पास पहुंच जाते हैं, जो भी उनकी आवाज़ उठाने को तैयार होता है, वो उसी से बात करने को तैयार हो जाते हैं. इस चक्कर में, बहुत सारे ऐसे लोग पहलवानों के इस आंदोलन में घुस गए हैं, जो उनकी तकलीफ़, उनके ग़ुस्से का फ़ायदा उठाना चाहते हैं. इन सारी बातों का एक ही हल है. खेल मंत्रालय में सर्वोच्च स्तर पर पहल की जाए. इन पहलवानों से बात हो, उन्हें भरोसा दिलाया जाए कि सरकार उनके ख़िलाफ़ नहीं है, उनके मान-सम्मान की रक्षा की जाएगी. मुझे लगता है जब तक पहलवानों के साथ कम्युनिकेशन गैप बना रहेगा, ये बात और बिगड़ती रहेगी.
मणिपुर : आपसी बातचीत ही एकमात्र हल
पिछले एक महीने से हिंसा के शिकार मणिपुर में हालात धीरे-धीरे बेहतर हो रहे हैं. मंगलवार को मणिपुर के 11 ज़िलों में कर्फ्यू में छह घंटे की ढील देनी शुरू की गई. जब राजधानी इम्फाल में कर्फ्यू में ढील दी गई, तो लोग ज़रूरी सामान ख़रीदने बाहर निकले. बाज़ारों में हालात सामान्य दिखे. मणिपुर में तीन मई से शुरू हुई हिंसा में अब तक 80 लोगों की मौत हो चुकी है, हिंसा, लूट-पाट और आग़ज़नी के आरोप में नौ हज़ार से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. हिंसा में बेघर हुए 10 हज़ार से ज़्यादा लोगों को आर्मी कैम्प्स में रखा गया है. गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर में लगातार अलग-अलग गुटों और नेताओं से बातचीत कर रहे हैं. उन्होंने सभी से अपील की कि वे कम से कम दो हफ्ते के लिए शांति बनाये रखें, सरकार उनकी मांगों पर ज़रूर गौर करेगी. मणिपुर में हिंसा की वजह बहुत पुरानी है. यहां मैतेई समुदाय का कुकी समुदाय के साथ दशकों से झगड़ा चल रहा है. अब बात इसलिए बढ़ गई क्योंकि कोर्ट ने सरकार को मैतई समुदाय को जनजाति या ट्राइबल दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने का आदेश दे दिया. इसका कुकी समुदाय विरोध करता रहा है. दूसरा कारण राज्य सरकार का वो आदेश है जिसमें एन बीरेंद्र सिंह की सरकार ने जंगलों पर हो रहे अतिक्रमण के खिलाफ अभियान शुरू करने की बात कही. चूंकि जंगली इलाक़ों में कुकी-नगा समुदाय के लोग रहते हैं, इसलिए इसका विरोध शुरू हुआ और धीरे-धीरे ये मामला मैतेई समुदाय और कुकी समुदाय के आपसी संघर्ष में तब्दील हो गया. हालात ऐसे हो गए कि स्थिति को संभालने के लिए अर्धसैनिक बलों के साथ-साथ सेना और असम राइफल्स के जवान तैनात किए गए.चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने कहा कि मणिपुर की हिंसा दो समुदायों के झगड़े का नतीजा है और इसका हल बातचीत से ही होगा. मुझे लगता है कि CDS जनरल अनिल चौहान की बात सही है कि मैतेई समुदाय और कुकी समुदाय दोनों हमारे ही भाई हैं, इसलिए दोनों पक्षों की बात सुनकर कोई हल निकालना चाहिए.
HOW TO PREVENT ‘LOVE JIHAD’
Vishwa Hindu Parishad’s youth outfit Bajrang Dal has announced that it would set up “Anti-Romeo Force” to protect Hindu daughters if police fails to stop incidents of ‘love jihad’. Surender Jain, the joint general secretary of Vishwa Hindu Parishad said on Tuesday, his community can no longer sit and watch silently as Hindu daughters are stabbed and stoned to death. Dhirendra Krishna Shastri, the head priest of Bageshwar Dham said, time has come for all Hindus to unite and protect their daughters. Such remarks may appear ordinary, but they indicate a serious issue on which Indians should sit down and think. After a jilted Muslim lover Sahil stabbed a Hindu girl Sakshi to death, it was found that he was wearing ‘kalaava’ (red or black sacred thread worn on wrist by Hindus) and a ‘rudraksh mala’ to fool the girl that he was a Hindu. Reports of ‘love jihad’ cases have come from Lucknow, Shahjahanpur, Uttarkashi, Patna, Meerut, Bareilly, Muzaffarnagar, Moradabad, Kanpur and Bikaner. The thread is common. In all these cases, Muslim youths enticed Hindu girls, while some of them were forcibly converted after being abducted. In Shahjahanpur, a Muslim youth Naved posed as a Hindu, befriended a Hindu girl, made videos and, through blackmail, forced her to convert to Islam. When the girl told her family, Naved allegedly gave her poison leading to her death. There was tension in the town after Hindu outfits took out protest march. In Uttarkashi, two Muslim youths tried to kidnap a Hindu girl, but when people stopped them and asked questions, the girl revealed that she was being abducted. In Aliganj locality of Lucknow, a Muslim youth Arbaaz, who was trying to force a girl in his college for marriage, threatened her and threw stones at her home on May 26. Arbaaz has gone underground and police is on the lookout. There are similar cases from other cities too. I think, the entire issue is not political. One should think seriously. When there are cases involving a Muslim male and a Hindu female, the question of ‘love jihad’ naturally arises. Whether it was Aftaab, who brutally murdered Shradha Walker or Sahil, who stabbed Sakshi multiple times, such horrendous murders are bound to create scars in the minds of the community. A few years ago, when similar ‘love jihad’ cases occurred in Kerala with Christian girls, priests raised their voice. A few days ago, people from Jain community also staged protests against ‘love jihad’. We have to understand: it may be that all these cases may not be connected with ‘love jihad’ where the boys hid their identity to entice the girl, but when one such case occurs, it has wide repercussions. Other cases are also seen through this binary. Since the issue is grave and complicated, particularly in the Delhi murder case where the killer was wearing ‘kalaava’ and ‘rudraksh mala’, the sphere of investigation has become wider from a routine murder. Now outfits like Bajrang Dal have joined the debate. It is right to say that setting up a Hindu Sena or Anti-Romeo Force or Anti-Muslim Force is not the solution. The only solution is: parents should tell their children the difference between good and evil. They should talk to their offsprings, create trust so that their children should share facts about their friends. It is also the responsibility of ulema (Muslim clerics) to teach Muslim youths not to strike friendship with Hindu girls by hiding their identities. This is the only way to avoid a grave problem, otherwise such incidents can widen the chasm between both the communities.
GOVT MUST BEGIN FRESH TALKS WITH WRESTLERS
Visuals of medal winning wrestlers reaching Haridwar to ‘immerse’ their medals on Tuesday were really sad. Most of the wrestlers and their relatives were weeping. It makes one sad to watch these players, who had won laurels for the country, going to river Ganga to immerse their hard-won medals. I would rather praise farmer leader Naresh Tikait who went to Haridwar, persuaded the wrestlers not to take the extreme step and promised to bring about a solution in five days. There is a sense of comprehension among the protesting wrestlers that nobody in the government is willing to listen to them. They feel the entire government machinery is trying to protect the Wrestling Federation of India chief Brij Bhushan Sharan Singh. The wrestlers feel, their voice is being throttled through use of police force. This is the reason why they find rays of hope when other personalities reach out to them to offer support. When such leaders promise to raise their voice, the wrestlers are eager to speak to them. But, in the process, there are many who have infiltrated the movement of wrestlers and are trying to take advantage of their anger and grievances. There is only one solution which I can suggest. An initiative must begin from highest level in Sports Ministry, talks should begin with the wrestlers, they must be convinced that the government is not against them and their honour will be protected. I think, so long as the communication gap will remain, matters can deteriorate.
MANIPUR: TALKS BETWEEN KUKIS AND MEITEIS, THE ONLY WAY OUT
With nearly 100 persons, including 30 Kuki militants, killed, roughly 200 injured and almost 50,000 people rendered homeless, the situation in Manipur is slowly limping back to normal. Home Minister Amit Shah is holding a series of meetings to bring the warring Kuki and Meitei communities together. He has appealed to both sides to ensure peace for a fortnight before their demands are taken up. Kuki community leaders have demanded President’s Rule and setting up of a separate hill administration for tribals. The reasons behind tension between both communities are several decades old. The situation was aggravated by a High Court order asking government to consider giving Scheduled Tribe status to Meitei community, which is being opposed by Kukis. The second main reason is Chief Minister N. Birendra Singh’s government order to launch anti-encroachment drive in forests, inhabited by Kuki and Naga communities. There was widespread mob violence, with militants looting armouries and using AK-47 and M-16 rifles to attack civilians. Army, Assam Rifles and paramilitary forces had to be rushed to quell violence. Chief of Defence Staff Anil Chauhan has said that any solution between the two communities can be achieved only through negotiations. I think Gen. Anil Chauhan is right when he says that both Meitei and Kuki communities are our brothers and talks are the only way out.
दिल्ली में नृशंस हत्या : क्या ये लव जिहाद तो नहीं ?
एक सोलह साल की बेटी की मौत दिल में खौफ पैदा करती है. तस्वीरें देखकर दिल कांप जाता है. बार-बार ये सवाल दिमाग में आता है कि कोई इंसान इतना बेरहम, इतना क्रूर कैसे हो सकता है? आफताब और श्रद्धा वालकर का केस अभी अंजाम तक नहीं पहुंचा है. अभी अपराधी को सज़ा नहीं मिली है और आज उसी तरह का केस हुआ. साहिल ने साक्षी को सरेआम चाकू से गोद डाला. ये पुलिस के लिए एक मर्डर केस हो सकता है, लेकिन समाज के लिए ये ख़ौफ़ पैदा करने वाली घटना है. आज हर माता पिता को अपनी बेटी की सुरक्षा की चिंता होगी. उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि अपनी बेटी को बचाने के लिए करें, तो क्या करें. साक्षी के साथ जो कुछ हुआ उसका ब्यौरा देखकर, रोंगटे खड़े हो जाते हैं. सबसे पहली बात, साहिल ने अपनी पहचान छुपाकर उससे दोस्ती की (वह अपनी कलाई पर कलावा पहनता था). दूसरी, साक्षी की मां की बात सुनकर ऐसा लगा कि उन्हें साक्षी और साहिल की दोस्ती की जानकारी थी. उन्होंने बेटी को रोका तो बेटी दोस्त के घर रहने चली गई. श्रद्धा वालकर के केस में भी ऐसा ही हुआ था. तीसरी बात, साहिल ने सरेआम साक्षी को मौत के घाट उतार दिया और लोग देखते रहे, किसी ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की. ये कैसा समाज है? ये कैसे लोग हैं? क्या उन्हें एक बेटी की चीख़ सुनाई नहीं दी? क्या इस बेटी पर चाकू के वार होते देखकर, उनका दिल नहीं कांपा? ये बहुत चिंता की बात है. सब लोगों को ये समझना पड़ेगा कि अगर किसी ने हिम्मत दिखाई होती तो साक्षी को बचाया जा सकता था. इस तरह की वारदात को देखकर कोई अनदेखा कैसे कर सकता है? शोर मचाना चाहिए था, लोगों को इकट्ठा करना चाहिए था. अपराधी अकेला था, उसे रोकने की कोशिश भी करनी चाहिए थी. एक बार ये सोचना चाहिए था कि आपकी बेटी के साथ भी ऐसा हो सकता है. इस घटना से बच्चों को सबक लेना चाहिए कि माता पिता से बातचीत करना बंद न करें. कोई भी बात हो घर वालों से न छिपाएं. अगर साक्षी ने मां की बात सुनी होती, अगर साहिल उसे तंग कर रहा था, धमका रहा था, ये बात उसने अपने पिता को बताई होती, तो हो सकता है कि वक्त रहते वो कुछ करते, पुलिस को खबर देते, तो आज ये दिन न देखना पड़ता. माता पिता को भी चाहिए कि वो बच्चों की बात सुनें, उनकी भावनाओं को समझें, उन्हें प्यार से समझाएं, अच्छे बुरे का फर्क बताएं. ऐसा नहीं होना चाहिए कि बच्चे, माता पिता के बजाय दूसरों पर भरोसा करने लगें. साक्षी के केस में ऐसा ही हुआ. उसने माता पिता के बजाय, दोस्त पर यकीन किया, उसके घर चली गई. चूंकि साक्षी का परिवार के साथ संपर्क बंद था, इसीलिए साहिल की हिम्मत बढ़ी. उसने साक्षी को अकेली पाकर उस पर हमला किया. और सबसे जरूरी बात – अपराधियों के मन में खौफ पैदा करना पुलिस की जिम्मेदारी है. दिल्ली पुलिस को इसके बारे में सोचना चाहिए. अब साक्षी को वापस तो नहीं लाया जा सकता लेकिन दिल्ली पुलिस जल्दी से जल्दी साहिल को ऐसी सजा दिलवाए, जिससे इस तरह की दरिंदगी करने से पहले कोई भी सौ बार सोचे.
पहलवानों के साथ पुलिस की बदसलूकी ग़लत है
हमारी चैंपियन पहलवानों का मामला इस कदर बिगड़ गया है कि इसे संभालना अब किसी के लिए भी मुश्किल होगा. इसमें हर कोई अपने अपने स्तर पर ज़िम्मेदार है. कहीं न कहीं इसका दोषी है. सबसे बड़ी बात ये है कि पुलिस को पहलवान बेटियों के साथ इस तरह ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं करनी चाहिए थी, उन्हें सड़क पर घसीटना नहीं चाहिए था. बल प्रयोग की ये तस्वीरें ग़ुस्सा दिलाती हैं. जो भी देखेगा, उसकी हमदर्दी इन पहलवानों के साथ होगी. अगर तर्क ये है कि पहलवानों ने पुलिस से अनुमति लिए के बिना संसद जाने की कोशिश की, क़ानून को तोड़ा और पुलिस के लिए उन्हें रोकना ज़रूरी था, तो सवाल उठता है, क्या इसके लिए इस तरह बल का प्रयोग करना ज़रूरी था? इस मामले में सबसे ज़्यादा ग़लती बृजभूषण शरण सिंह की है, जो अपने बयानों से खिलाड़ियों को भड़का रहे हैं, उन्हें चिढ़ा रहे हैं. उन्हें अपनी ज़ुबान पर लगाम लगानी चाहिए और मामले को और उलझाना नहीं चाहिए. ग़लती खेल मंत्रालय की भी है, जिसने मामले को इतना बढ़ने दिया. ऐसी क्या मजबूरी थी कि समय रहते, इस मामले को सुलझाया नहीं गया? आज ये कहना कि पहलवान राजनीतिक खेल का शिकार हो गए, बेमानी है. ये पहलवान तो शुरु से ही नेताओं को अपने से दूर रख रहे थे, इन्हें राजनीतिक हाथों में क्यों जाने दिया गया? कोई भी समस्या न तो पुलिस की ताक़त से सुलझ सकती है, न टेंट उखाड़ने से. ये मानना पड़ेगा कि जनता की नज़र में बृजभूषण शरण सिंह एक बाहुबली नेता हैं, जिसकी कोई विश्वसनीयता नहीं है. दूसरी तरफ़ ये पहलवान, देश को मेडल दिलाने वाली बेटियां हैं, चैंपियन हैं, लोगों की सहानुभूति उनके साथ है.
BRUTAL MURDER IN DELHI : IS IT “LOVE JEHAD” ?
The horrendous killing of a 16-year-old girl Sakshi in Shahbad Dairy locality of Delhi, has shocked the nation. The visuals of the killer stabbing the girl multiple times and then crushing her head with a stone, as people looked on, has created fear in the minds of people. The question that frequently arises is: How can a person become so cruel and merciless? The brutal murder case of Shradha Walker by her live-in partner Aftab Poonawala is yet to reach its conclusion in courts, the killer is yet to be sentenced, and now this fresh incident of brutal murder. The killer Sahil stabbed Sakshi with a knife multiple times and then smashed her head with a stone. For the police, this may be a case of murder, but for the society, at large, this incident can strike fear. Every parent today may be worrying about his or her daughter. They do not know what to do to protect their daughters. Going through details of this diabolical murder can make anybody’s hair stand on end. Firstly, Sahil hid his identity to strike friendship with Sakshi (he wore a ‘kalawa’(red or black thread) that Hindus wear on their wrists); Secondly, Sakshi’s mother knew that her daughter and Sahil were friends, and when she prevented her, she went to her friend’s home to stay (the same happened in the case of Shradha Walker); Thirdly, Sahil stabbed Sakshi multiple times on a street and people watched, doing nothing. Nobody tried to stop him. What type of society are we living in? Didn’t people hear the screams of the daughter? Didn’t people tremble in fear on watching the girl being stabbed not once, but 34 times? This is a matter of grave concern. People must understand that even if one onlooker had shown the courage, Sakshi could have been saved. How can anybody, watching this gory murder, turn a blind eye? People could have at least created a big hue and cry. A crowd could have collected. The killer was alone and there could have been attempts to overpower him. At least the onlookers should have thought, this could have happened to their daughters. Teenagers should learn a lesson: Never stop communication with your parents; Do not hide your confidential matters from your family. Had Sakshi listened to her mother’s advice, had she told her that Sahil was harassing and intimidating him, fad she told her father, he could have done something in time and inform the police. The family would not have seen this day. I have some advice for parents too: Listen to your children. Understand their feelings. Try to persuade them with words of love. Tell them the difference between good and evil. Situation should not arise where children start trusting outsiders instead of their parents. This happened in the case of Sakshi. She trusted her friend instead of her parents, and went to stay with her friend. Since the communication with her family was closed, the killer gained courage and attacked Sakshi, finding her alone. And the most important point: It is the responsibility of police to strike fear in the minds of criminals. Delhi Police must think on those lines. Sakshi will not return, but Delhi Police must ensure the fastest and most stringent punishment for Sahil, so that any criminal may think a hundred times before committing such a heinous crime.
USE OF POLICE FORCE AGAINST WRESTLERS IS UNACCEPTABLE
The case of our champion women wrestlers has now become so topsy-turvy, that it could be difficult for anybody to iron out the case. Everybody is responsible to some extent. The most crucial point is: Delhi Police should not have misbehaved with the women wrestlers, who brought glory to our country. They should not have been dragged on the streets. Visuals of police personnel using force on the women wrestlers cause anger. Anybody watching these visuals will definitely have sympathy for these wrestlers, who are seeking justice. If the argument is put forth that the wrestlers tried to march towards Parliament without seeking police permission, that they broke the law, and police had to stop them, the question arises: Was use of force necessary in such a situation? The biggest culprit is the Wrestling Federation of India chief, and the villain of the piece, Brij Bhushan Sharan Singh. His statements were irking and taunting for the players. He must stop making such remarks immediately, and prevent the matter from being tangled further. Even the Sports Ministry has committed mistake by allowing the matter to drag on. What was the compulsion that the case could not be resolved in time? To say today that the players are now caught in a political game, is useless. These players had been keeping politicians away from their sit-in at Jantar Mantar since the beginning. Why was their protest allowed to go into the hands of politicians? No problem can be solved by using police force or by forcibly removing the tents of protesters. One must understand that in the eyes of people, Brij Bhushan Sharan Singh is a ‘bahubali’ politician, having no credibility. On the other hand, we have our women wrestlers, our brave daughters, champions, who brought glory to our country by winning medals. The common man’s sympathy is with the female wrestlers.
सेंगोल को लेकर अनावश्यक विवाद
नये संसद भवन का उद्घाटन होने में 24 घंटे से भी कम समय बचे हैं . नया संसद भवन इतना भव्य, खूबसूरत और आधुनिक बना है कि विरोधी दलों के नेता भी उसकी तारीफ किए वगैर नहीं रह पाए, लेकिन अब इतिहास को लेकर नया विवाद शुरू हो गया. कांग्रेस ने लोकसभा में सत्ता के हस्तांरण के प्रतीक सैंगोल को स्थापित करने का विरोध किया है. कांग्रेस का कहना है कि सैंगोल का 1947 के सत्ता हस्तांतरण से कोई लेना देना नहीं है.. ये प्रतीक तमिलनाडु के संतों ने पंडित नेहरू को गिफ्ट किया था, अंग्रेजों ने आजादी के वक्त सैंगोल के जरिए पावर ट्रांसफर नहीं किया था, इसलिए इसे इतना महत्व देने की जरूरत नहीं है. जवाब में बीजेपी ने कहा कि चूंकि सैंगोल हिन्दू शैव परंपरा का प्रतीक है., शिव के उपासकों की तरफ से उपहार दिया गया था., .सैंगोल पर नंदी विराजमान हैं, इसीलिए कांग्रेस इसका विरोध कर रही है, क्योंकि कांग्रेस हिन्दू विरोधी है. सेंगोल को लेकर कांग्रेस का ऐतराज ये है कि इसका सत्ता के हस्तांतरण से कोई लेना देना नहीं है, सेंगोल पंडित नेहरू को तमिलनाडू के साधु संतों ने दिया था, न कि अंग्रेज वायसराय माउंटबैटन ने. मुझे लगता है कि मुद्दा ये नहीं है कि नेहरू जी को सेंगोल किसने दिया था? मुद्दा ये है कि 1947 में आजादी के वक्त नेहरू जी को सैंगोल क्यों दिया गया था? कांग्रेस के नेता इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि सैंगोल चोल साम्राज्य में सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक था, नए राजा को दिया जाता था. इस बात से भी कांग्रेस के नेता इंकार नहीं कर सकते कि 14 अगस्त 1947 को सेंगोल लेकर आए साधु संतों को ट्रेन से दिल्ली बुलाया गया था, अगले दिन भगवान को जिस जल से स्नान करवाया गया था, वो जल भी स्पेशल प्लेन से दिल्ली मंगवाया गया था. ये भी इतिहास में दर्ज है कि साधु संतों ने नेहरू जी को सौंपने से पहले गलती से सेंगोल को माउंटबैटन के हाथ में दे दिया, इसलिए उसे फिर गंगाजल से शुद्ध करके नेहरू जी के हाथ में आजाद भारत पर निष्ठा के साथ शासन करने के प्रतीक के तौर पर दिया गया. इसलिए ये कहना कि इसका इतिहास से कोई मतलब नहीं है, ये तो गलत है. सवाल ये भी है कि इतनी पवित्र वस्तु को नेहरू जी की वॉकिंग स्टिक बता कर 75 साल तक इलहाबाद के संग्राहलय में क्यों रखा गया? अब अगर नरेन्द्र मोदी ने इस सेंगोल को फिर से गरिमा लौटाई है, .लोकतन्त्र के सबसे बड़े मंदिर में स्पीकर के आसान के बगल में स्थापित करने का फैसला किया है, तो इसमें गलत क्या है? इसका विरोध क्यों? मुझे लगता है कि प्रोटेस्ट हो गया, विरोधी दलों ने अपनी बात दर्ज कर दी.. अब बेहतर होगा इस तरह की सियासत को किनारे रखकर इस एतिहासिक मौके पर सभी को शामिल होना चाहिए, इससे पूरी दुनिया में अच्छा संदेश जाएगा.
केजरीवाल को कांग्रेस का झटका
अरविन्द केजरीवाल शुक्रवार को दिन भर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मिलने का इंतजार करते रहे लेकिन कांग्रेस ने उन्हें वक्त ही नहीं दिया. सुबह सुबह केजरीवल ने ट्विटर पर लिखा था कि केन्द्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ वो कांग्रेस का सपोर्ट चाहते हैं .इसी सिलसिले में वो राहुल गांधी और खरगे से मिलेंगे, उन्होंने इसके लिए वक्त मांगा है. दोपहर में खबर आई कि खरगे ने केजरीवाल को शाम साढ़े पांच बजे का वक्त दिया है. खरगे के घर पर शाम चार बजे कर्नाटक में मंत्रिमंडल विस्तार पर चर्चा के लिए मीटिंग शुरू हुई. राहुल गांधी भी पहुंच गए, तो लगा कि इस मीटिंग के बाद केजरीवाल को बुलाया जाएगा. लेकिन मीटिंग खत्म होने के बाद कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल से पूछा गया कि केजरीवाल की खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात कब होगी, तो वेणुगोपाल ने कहा – कौन सी मीटिंग? उन्हें तो इस बात की जानकारी नहीं है कि केजरीवाल ने किसी मीटिंग के लिए औपचारिक अनुरोध किया है. वेणुगोपाल ने कहा कि कांग्रेस के दरवाजे खुले हैं. लेकिन पहले तो केजरीवाल की तरफ से बातचीत का औपचारिक प्रस्ताव आए, उसके बाद मुलाकात का वक्त तय होगा, और कांग्रेस केजरीवाल के समर्थन के मुद्दे पर दिल्ली और पंजाब यूनिट के लीडर्स से बात करके ही कोई फैसला लेगी. केजरीवाल के समर्थन के मुद्दे पर दिल्ली और पंजाब के कांग्रेस नेताओं की राय क्या है, ये अजय माकन, संदीप दीक्षित, प्रताप सिंह बाजवा और सुखजिंदर सिंह रंधावा कई बार बता चुके हैं. पवन खेड़ा ने कहा कि केजरीवाल कांग्रेस के नेताओं से वक्त मांगने से पहले माफी मांगें. उन्होंने कांग्रेस के नेताओं को लेकर पिछले कई सालों में जो उल्टे सीधे बयान दिए, उनपर खेद जताएं. अगर मल्लिकार्जुन खरगे ने दिल्ली और पंजाब के कांग्रेस के नेताओं की बात को तवज्जो दी, तो केजरीवाल को मुलाकात का वक्त तो देंगे, लेकिन केजरीवाल को कांग्रेस का सपोर्ट मिलेगा, इसकी उम्मीद कम है. न केजरीवाल माफी मांगेंगे और न कांग्रेस सपोर्ट करेगी .ये बात केजरीवाल भी जानते हैं .लेकिन वो मुलाकात का वक्त इसलिए मांग रहे हैं जिससे वो बाद में इल्जाम लगा सकें कि कांग्रेस विपक्ष की एकता में रोड़ा है. कांग्रेस की वजह से बीजेपी मजबूत हो रही है.
ममता ने किया ‘द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल’ फिल्म का विरोध
पश्चिंम बंगाल में एक नया विवाद शुरु हो गया है. द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल नाम की फिल्म का शुक्रवार को ट्रेलर जारी हुआ. उसके थोड़ी देर के बाद ही बंगाल की पुलिस ने फिल्म के डायरैक्टर प्रोड्यूसर को नोटिस भेज दिया. ये फिल्म पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं पर हुए अत्याचार के इश्यू पर बनी है. फिल्म के प्रोडयूसर वसीम रिजवी का दावा है कि उन्होंने सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म बनाई है..इसमें किसी तरह की कोई सियासत नहीं है. फिल्म के डायरेक्टर सनोज मिश्रा का कहना है कि उन्होंने तो बस सच दिखाया है, लेकिन बंगाल की पुलिस उनके साथ आतंकवादियों जैसा बर्ताव कर रही है, हो सकता है उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए या उनकी हत्या हो जाए, लेकिन वो डरने वाले नहीं है. फिल्म के ट्रेलर को लेकर ममता की पार्टी में जबरदस्त गुस्सा है. पार्टी के नेता कुणाल घोष ने कहा कि ये फिल्म बीजेपी का प्रोपेगैंडा टूल है. फिल्म के जरिए बीजेपी बंगाल में नफरत का माहौल बनाना चाहती है. ऐसी फिल्म बनाने वाले को तो जेल में बंद कर देना चाहिए. फिल्म अभी रिलीज नहीं हुई है, सिर्फ ट्रेलर जारी किया है. फिल्म को सेंसर बोर्ड ने मंजूरी दी है .इसलिए फिल्म रिलीज होने से पहले ही उसके प्रोड्यूसर डारेक्टर को नोटिस भेजना ठीक नहीं है. ममता ने इससे पहले द केरला स्टोरीज पर बैन लगाया था. सुप्रीम कोर्ट ने उनके इस फैसले को गैरकानूनी बताया था. मुझे लगता है कि कम से कम सुप्रीम कोर्ट के फैसले से तो ममतो को सीखना चाहिए.
UNNECESSARY CONTROVERSY OVER SENGOL
The new Parliament building will be inaugurated less than 24 hours from now, on Sunday, and already visuals of the new Lok Sabha and Rajya Sabha have amazed people across India. The new complex is a spectacular mix of tradition and modernity, and even opposition leaders could not restrain themselves from praising the new building. Already a controversy has cropped up about Sengol, the traditional five-feet-long golden sceptre used by the ancient Chola dynasty and handed over by Lord Mountbatten to Jawaharlal Nehru on the midnight of 14-15th August, 1947, to symbolize the transfer of power. While Congress leaders described this claim as bogus, BJP leaders hit back saying Congress hates India’s ancient tradition and culture. Congress leaders claim that Sengol had nothing to do with transfer of power in 1947. They say that Hindu saints from Tamil Nadu came to Delhi and handed over Sengol to Pandit Nehru, and it was not Lord Mountbatten who handed over the sceptre to Nehru. I think, the issue is not who gave the Sengol to Nehru. The issue is why Sengol was given to Nehru at the time of independence in 1947? Congress leaders cannot deny the fact that Sengol was the symbol of supremacy for the Chola dynasty, and it used to be handed over every time to the new monarch. Congress leaders cannot deny that the sadhus from the South were invited to come to Delhi by train to bring the Sengol, and the holy water used for bathing the Lord was also brought to Delhi by a special aircraft. It is also recorded in history that the sadhus, before handing over the sceptre to Nehru, mistakenly gave it first to Lord Mountbatten. It was again consecrated with holy Ganga water and then handed over to Nehru, as a symbol of independent India. To say that Sengol has no historical relevance is incorrect. The question is: why was the Sengol displayed in Allahabad museum for 75 years as Pandit Nehru’s ‘walking stick’? If Narendra Modi gave glory to Sengol again, in the biggest temple of Indian democracy, by installing it near the seat of Lok Sabha Speaker, what is wrong in it? Why is this move being opposed? I think, opposition parties have already registered their protest and put forth their arguments. It will be better if they participate in the historic inaugural ceremony of the new Parliament building, keeping political rivalry to the sidelines. This will send a good message to the entire world.
CONGRESS SNUB TO KEJRIWAL
Aam Aadmi Party supremo Arvind Kejriwal waited the whole day, on Friday, for an appointment to meet Congress leader Rahul Gandhi and party president Mallikarjun Kharge, but it did not materialize. In the morning, he tweeted that he needed Congress support on the Delhi ordinance issue, and that he would meet Rahul Gandhi and Kharge. By afternoon, news came that Kharge gave 5.30 pm time to meet Kejriwal. At 4 pm, meeting began at Kharge’s residence to clear names of new Karnataka ministers. It was attended by Rahul Gandhi. But soon after the meeting, when party general secretary K C Venugopal was asked about the meeting with Kejriwal, he feigned ignorance. He said, our doors are open, but first Kejriwal should come with a formal proposal, and only then will a meeting be fixed. “Any decision on supporting Kejriwal will be taken after consulting Delhi and Punjab unit party leaders”, he added. Congress spokesperson Pawan Khera said, Kejriwal should first apologize for the remarks that he made against party leaders in the past, and only then, a meeting will be fixed. It seems, Kharge will meet Kejriwal, but chances of Congress supporting Kejriwal are less. Neither Kejriwal will apologize for his past remarks, nor will the Congress extend support. Kejriwal knows this, but he is seeking a meeting, only to allege afterwards that it is the Congress which has become the main obstacle in the path of Opposition unity.
WHY MAMATA IS OPPOSING ‘THE DIARY OF WEST BENGAL’ MOVIE
In West Bengal, a fresh controversy has begun, after the trailer of a movie ‘The Diary of West Bengal’ was released, and soon after the state police sent the director Sanoj Mishra, a legal notice under Section 41A of Criminal Procedure Code to appear for interrogation. The movie highlights the ‘atrocities’ committed on Hindus in West Bengal. It was uploaded on YouTube a month ago, and is slated to hit the theatres in August. Director Sanoj Mishra claims, he has only shown the truth, but the state police is treating him like a terrorist. Trinamool Congress leader Kunal Ghosh said, this movie is a ‘propaganda tool’ of BJP, which wants to spread hatred among communities in Bengal. Such film makers should be jailed, he said. The movie is yet to be released, only the trailer has been released. The Central Board of Film Certification has approved this movie. To send a legal notice to the director and producer before a movie is released, is unjustified. Chief Minister Mamata Banerjee had earlier imposed ban on “The Kerala Story”, but the Supreme Court described it as illegal. I hope, Mamata Banerjee will at least learn from the Supreme Court verdict.
संसद भवन को लेकर विपक्ष मोदी को क्यों निशाना बना रहा है ?
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस अर्ज़ी को सुनने से इंकार कर दिया जिसमें गुज़ारिश की गयी थी कि 28 मई को नये संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति महोदया से कराने का निर्देश जारी किया जाय. दो अवकाशकालीन न्यायाधीशों जे के माहेश्वरी और पी एस नरसिम्हा ने कहा कि उन्हें पता है ये याचिका क्यों और कैसे दाखिल की गयी है. कोर्ट के इंकार करने के बाद याचक ने अपनी अर्ज़ी वापिस ले ली. नये संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को करेंगे. 20 विपक्षी दलों ने समारोह का बहि,कार करने का ऐलान किया है, जबकि दूसरी तरफ 25 दलों ने कहा है कि उनके प्रतिनिधि समारोह में आएंगे. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्ष से अपील की कि वह बहिष्कार के अपने फैसले को वापस ले, क्योंकि नया संसद भवन भारतीय लोकतंत्र का और सभी देशवासियों की अपेक्षाओं का प्रतीक है. नये संसद भवन को लेकर जो विवाद खड़ा किया गया है, उसके बारे में मैं तीन बातें साफ कहना चाहता हूं. पहली तो ये कि वर्तमान संसद भवन को बदलना जरूरी था, ये बात लोकसभा के दो पर्व अध्यक्षों, मीरा कुमार और शिवराज पाटिल ने कही थी. मोदी ने इस बात को समझा और एक नया अत्याधुनिक संसद भवन रिकॉर्ड समय के अंदर तैयार करवाया. ये अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है. दूसरी बात ये कि संसद भवन लोकसभा अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र में आता है, लोकसभा लोगों के सीधे वोट से बनती है, जनता की भावनाओं की प्रतीक है., अध्यक्ष ओम बिड़ला ने उद्घाटन करने के लिए प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया, इसमें कुछ भी गलत नहीं है. संसदीय व्यवस्था में सबसे ज्यादा अधिकार प्रधान मंत्री को दिये गये हैं. तो क्या प्रधानमंत्री एक बिल्डिंग का उद्घाटन नहीं कर सकते ? तीसरी बात ये कि इसमें राष्ट्रपति के अपमान का तो दूर दूर तक कोई सवाल ही नहीं उठता है. प्रधानमंत्री को बुलाना राष्ट्रपति का निरादर कैसे हो सकता है? ऐसा नहीं है कि विरोधी दलों के नेता इन बातों को नहीं समझते, वो सब जानते है, पर चुनाव सिर पर हैं. विरोधी दलों के ज्यादातर नेता मोदी से परेशान हैं, मोदी के आगे बेबस भी हैं. निजी बातचीत में सब मानते हैं कि 2024 में मोदी फिर जीतेंगे. यही परेशानी का सबब है. सबकी कोशिश है कि किसी तरह मोदी की छवि बिगाड़ी जाए, मोदी को दलित-आदिवासी विरोधी कहो, अमीरों का दोस्त कहो, लोकतंत्र का हत्यारा कहो, शायद कुछ चिपक जाए. दुनिया के सबसे बड़े, सबसे जीवन्त लोकतन्त्र में अगर कोई ये कहे कि देश में लोकतन्त्र मर चुका है., तो उसकी नासमझी पर क्या कहा जाए? ये मोदी के प्रति नफरत की पराकाष्ठा है, ये स्वस्थ लोकतन्त्र के लिए घातक है. मुझे सबसे अच्छी बात पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा की लगी. देवेगौड़ा की पार्टी जेडीएस भी विपक्ष में है. NDA के खिलाफ है, नरेन्द्र मोदी की विरोधी है, लेकिन देवेगौड़ा ने कहा कि नयी संसद का जो भवन बना है, वह कोई बीजेपी का दफ्तर नहीं है, जिसका विरोध किया जाए या जिसके उद्घाटन का बॉयकॉट किया जाए. नया संसद भवन बीजेपी का नहीं, पूरे देश का है, इसलिए इसके उद्घाटन में सबको शामिल होना चाहिए, उनकी पार्टी इसका हिस्सा बनेगी. देवेगौड़ा ने बीजेपी के प्रति विरोध भी जता दिया और लोकतान्त्रिक परंपराओं का सम्मान भी कर दिया. लोकतन्त्र में यही होना चाहिए लेकिन कांग्रेस और उसके साथ खड़े दूसरे दल ये नहीं कर पाएंगे, क्योंकि उनका मकसद राष्ट्रपति का सम्मान नहीं, मोदी का विरोध है. नरेन्द्र मोदी से उन्हें इतनी नफरत है कि वो किसी भी हद तक जा सकते हैं. कभी कभी लगता है कि कांग्रेस वाकई में प्रधानमंत्री के पद को अपनी विरासत अपनी संपत्ति मानती है , उस कुर्सी पर कोई और बैठे, ये एक परिवार को रास नहीं आता.
क्या राहुल गांधी विपक्ष के पीएम उम्मीदवार बनेंगे ?
लगता है कांग्रेस अब इस जल्दी में हैं कि किसी तरह राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया जाए. गुरुवार को इसकी शुरुआत हुई . कांग्रेस के सांसद मणिकम टैगोर ने कहा है कि यही सही वक्त है जब विपक्ष की तरफ से राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर देना चाहिए, .क्योंकि विरोधी दलों में जो प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं, लोकप्रियता के मामले राहुल गांधी उन सबसे बहुत आगे हैं. अपनी बात को साबित करने के लिए मणिकम टैगोर ने CSDS के सर्वे का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने राहुल गांधी को पीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किया लेकिन फिर भी CSDS के सर्वे में उन्हें 27 परसेंट लोग पीएम उम्मीदवार के तौर पर देखना चाहते हैं. मणिकम टैगोर ने कहा, हमें ये बात समझनी चाहिए क्योंकि नयी पीढी 30 साल से कम उम्र की है, वो अब पीएम उम्मीदवार को लेकर च्वाइस चाहती है, 2019 में हमने किसी को पीएम उम्मीदवार के तौर पर पेश न करके गलती की थी. मणिकम टैगोर ने कहा कि ममता बनर्जी को सिर्फ 4 परसेंट लोग पीएम उम्मीदवार के तौर पर पसंद करते हैं , और नरेंद्र मोदी को 41 परसेंट लोग पसंद करते हैं. राहुल को 27 परसेंट लोग हसंद करते हैं, इसमें सिर्फ 14 परसेंट का अंतर है, अगर राहुल गांधी को पीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया जाय, तो ये अन्तर कम किया जा सकता है. महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले ने मणिकम टैगोर की बात का समर्तन किया. नाना पटोले ने कहा कि बीजेपी ने राहुल गांधी की छवि बिगाड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली, उल्टे राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ी है., इसलिए उन्हें पीएम उम्मीदवार घोषित करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. कांग्रेस की तरफ से इस तरह की बयानबाजी को मोदी विरोधी मोर्चे में शामिल पार्टियों ने कोई तवज्जोह नहीं दी. एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि फिलहाल इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है क्योंकि अभी फोकस इस पर है कि बीजेपी के खिलाफ सभी विरोधी दलों को एक साथ एक मंच पर लाया जाए, पहले इस पर सहमति बन जाए, प्रधानमंत्री पद का चेहरा कौन होगा, ये तो बाद की बात है. विरोधी दलों के नेता भले ही कांग्रेस की तरफ से छोड़े गए इस शिगूफे से थोड़े अहसज हों, लेकिन बीजेपी के नेता इससे खुश हैं. बीजेपी के नेताओं का कहना है कि अगर कांग्रेस की ये मुराद पूरा हो जाती है., तो 2024 में बीजेपी के लिए इससे अच्छा कुछ नहीं होगा, क्योंकि एक तरफ नरेन्द्र मोदी का चेहरा होगा, दूसरी तरफ राहुल गांधी का. फिर तो लोगों को फैसला करने में कोई दिक्कत नहीं होगी. मज़े की बात ये है कि बीजेपी के नेता अपनी बात को सही साबित करने के लिए ममता बनर्जी और शरद पवार के पुराने बयानों का हवाला दे रहे हैं, क्योंकि इन दोनों नेताओं ने कहा था कि राहुल गांधी में वो परिपक्वता नहीं है, राहुल गांधी की वैसी स्वीकार्यता नहीं है. राहुल के नेतृत्व में मोदी का मुकाबला नामुमकिन है लेकिन शरद पवार से राहुल गांधी की दावेदारी को लेकर जब सवाल किया गया तो वो इस बात को टाल गए क्योंकि उनके पास अरविन्द केजरीवाल बैठे थे, जो दिल्ली संबंधी केन्द्र के अध्य़ादेश के खिलाफ अपनी मुहिम में पवार का समर्थन मांगने आये थे.